गहरी पैठ

कोरोना के कहर में तबलीगी जमात की नासमझी से जो समस्याएं बढ़ी हैं, उन्होंने केंद्र सरकार को फिर से हिंदू मुसलिम करने का कट्टर कार्ड थमा दिया है. देखा जाए तो देश की जनता को आराम से जीने का मौका देने का वादा दे कर जीतने वाली भारतीय जनता पार्टी सरकार ने अपना एक और दांव, दंगे चला कर अब घरघर में दहशत का माहौल खड़ा कर दिया है. किसी को भी देश का गद्दार कहने का हक खुद ब खुद लेने के बाद अब उन्होंने जगहजगह गोली मारो गद्दारों को नारा गुंजाना शुरू कर दिया है. बिना सुबूत, बिना गवाह, बिना अदालत, बिना दलील, बिना वकील के किसी को भी गद्दार कह कर उसे मार डालने का हक बड़ा खतरनाक है.

न सिर्फ मुसलमानों को डराया जा सकता है, इस नारे से हर उस को डराया जा सकता है, जिस ने अपनी अक्ल लगा कर भगवा भीड़ की मांग को पूरी करने से इनकार कर दिया हो.

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आज देश का दलित, किसान, मजदूर, बेरोजगार युवा, बलात्कारों से परेशान लड़कियां, छोटे व्यापारी सरकारी फैसलों से परेशान हैं. दलितों के घोड़ी पर चढ़ कर शादी करने पर मारपीट ही नहीं हत्या कर दी जाती है और जिस ने भी उस के खिलाफ आवाज उठाई, उसे गद्दार कह कर गोली मारने का हक ले लिया गया है. अगर किसान कर्ज माफ करने के लिए सरकार के खिलाफ मोरचा खोलें तो उन्हें गद्दार कहा जा सकता है. अगर व्यापारी नोटबंदी, जीएसटी और बैंकों के फेल होने पर होने वाले नुकसान की बात करें तो उन्हें गद्दार कहा जा सकता है. नागरिकता कानून ?की फुजूल की बात करने वाले को गद्दार कहने का हक है. छोटीबड़ी अदालतों में वकीलों के झुंड मौजूद हैं जो अपने हकों को मांगने वालों को गद्दार कह कर जज के सामने तक नहीं जाने दे रहे. जजों को गद्दार कह कर उन का रातोंरात तबादला कर दिया जा रहा है.

सारे देश में सरकार डिटैंशन सैंटर बनवा रही है जो आधी जेल की तरह हैं जहां नाममात्र का खाना मिलेगा, नाममात्र के कपड़े मिलेंगे, पर बरसों रहना पड़ सकता है. उन को गुलाम बना कर उन से काम कराया जा सकता है. लड़कियों को बदन बेचने पर मजबूर किया जा सकता है. यह हिटलर ने जरमनी में किया था. स्टालिन ने रूस में किया था. माओ ने चीन में किया था. कंबोडिया में पोलपौट ने किया था.

गद्दार कह कर कैसे सिर फोड़े जा सकते हैं. घरों को जला कर सजा दी जा सकती है. इस का नमूना दिल्ली में दिखा दिया गया. जिन्होंने किया वे आजाद घूम रहे हैं. जो शांति के लिए जिम्मेदार हैं, वे भड़काऊ भाषण देने में लगे हैं.

इस सब से मुसलमानों को तो लूटा जा ही रहा है, दलित और पिछड़े भी लपेटे में आ गए हैं. आज सरकारी नौकरियों में केवल ऊंचों को पद देने का हक एक बार फिर मिल गया है, क्योंकि या तो सरकारी काम ठेके पर दे दिए गए हैं या बंद कर दिए गए हैं. दहशत के माहौल की वजह से कोई बोल नहीं पा रहा. कन्हैया कुमार जो बिहार में भारी भीड़ जमा कर रहा था को अब दिल्ली की अदालतों में बुला कर परेशान करने की साजिश की जा रही है. चंद्रशेखर आजाद को बारबार लंबी जेल में भेज दिया जाता है. हार्दिक पटेल का मुंह बंद कर दिया गया है.

देश को अमन चाहिए, क्योंकि अगर पेट में आधा खाना ही हो, कपड़े फटे हुए हों तो भी अगर चैन हो तो जिंदगी कट जाती है. अब यह चैन भी गद्दार के नारे के नीचे दब रहा है.

पूरी दुनिया कोरोना की महामारी से जूझ रही है. लौकडाउन के बाद जरूरी कीमती सामान से लदे ट्रक जहां थे वहीं खड़े हैं. पहले भी हालात ट्रक ड्राइवरों के पक्ष में कहां थे. देखें तो देश के ट्रक ड्राइवरों की जिंदगी वैसे ही उबाऊ और खानाबदोशी होती है, उस पर हर नाके पर, हर सड़क पर बैठे खूंख्वारों से निबटना एक आफत होती है. सेव लाइफ फाउंडेशन का अंदाजा है कि ट्रक ड्राइवर हर साल तकरीबन 50,000 करोड़ रुपए रिश्वत में देते हैं. रिश्वत ट्रैफिक पुलिस वाले, टैक्स वाले, नाके वाले, चुंगी वाले, पोल्यूशन वाले तो लेते ही हैं, अब धार्मिक धंधे करने वाले भी जम कर लेने लगे हैं. धार्मिक धंधे वाले ट्रकों और टैक्सियों को रोक कर ड्राइवरों से उगाही करते हैं.

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कोई कह सकता है कि यह रिश्वत तो मालिक की जेब से जाती होगी, पर यह गलत है. बहुत से ट्रकों को लगभग ठेके पर दे दिया जाता है कि ट्रक पहुंचाओ, रास्ते में जो हो, भुगतो और एकमुश्त पैसा ले लो. ड्राइवर को ऐसे में अपने मुनाफे में कटौती नजर आती है. वह कानूनी, गैरकानूनी दोनों रोकटोक पर रिश्वत देने में हिचकिचाता है और अकसर झगड़ा हो जाता है और मारपीट तक हो जाती है तो नुकसान ट्रक ड्राइवर का ही होता है.

ड्राइवरों की जिंदगी वैसे ही बड़ी दुखद है. उन्हें 12 घंटे ट्रक चलाना होता है, इसलिए अकसर वे शराब और दवाओं का नशा करते हैं. देश की सड़कें बेहद खराब हैं जो ट्रक चलाने में ड्राइवर की हड्डीपसली दुखा देती हैं. आमतौर पर सड़कों पर लाइट नहीं होती. अंधेरे में चलाना मुश्किल होता है. भारत में अब तक सुरक्षित ट्रक नहीं बनने शुरू हुए हैं. ड्राइवरों के केबिन एयरकंडीशंड नहीं होते, उन ट्रकों के भी नहीं जिन में खाने के सामान या दवाओं के लिए रेफ्रीजरेटर लगे होते हैं, इसलिए बेहद गरमीसर्दी का मुकाबला करना पड़ता है. बहुत से ड्राइवरों को बदलते साथियों के साथ चलना होता है.

हमारे यहां ड्राइवरों को रास्ते में सोने के लिए ढाबों पर पड़ी चारपाइयां ही होती हैं, जिन पर न गद्दे होते हैं, न पंखे तक.

घरों से दूर रहने की वजह से ड्राइवर राह चलती बाजारू औरतों को पकड़ते हैं, पर वे लूटने की फिराक में रहती हैं. उन के गैंग अलग बने होते हैं जो परेशान करते हैं. ड्राइवरों को बीवियों की चिंता भी रहती है कि उन के पीछे वे औरों के साथ तो नहीं आंखें लड़ा रहीं.

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यही वजह है कि आज 1000 ट्रकों पर 400-500 ड्राइवर ही मिल रहे हैं. ट्रांसपोर्ट उद्योग को ड्राइवरों की कमी की वजह से भारी नुकसान होने लगा है. एक तरफ बेरोजगारी है, पर दूसरी तरफ ट्रेनिंग न मिलने की वजह से ड्राइवरों की कमी है. ट्रेनिंग तो आज सिर्फ जय श्रीराम कह कर मंदिर के धंधे कैसे चलाए जाएं की दी जा रही है.

गुरुजी का नया बखेड़ा

झारखंड मुक्ति मोरचा के सुप्रीमो शिबू सोरेन उर्फ गुरुजी ने राज्य में स्थानीय नीति यानी डोमिसाइल नीति को ले कर एक बार फिर बखेड़ा खड़ा कर दिया है.

उन्होंने यह कह कर नया सियासी बवाल मचा दिया है कि पिछली रघुवर दास सरकार की डोमिसाइल नीति आदिवासी विरोधी है. इस के बाद राज्य में एक नई बहस छिड़ गई है और आदिवासी आंदोलन नए सिरे से गोलबंद होता दिखाई देने लगा है.

इस पर शिबू सोरेन का कहना है कि स्थानीय नीति का आधार साल 1932 का खतियान होना चाहिए. गौरतलब है कि रघुवर दास सरकार ने डोमिसाइल नीति 1985 को कट औफ डेट रखा था.

हिंसक आंदोलनों के बाद साल 2015 में झारखंड की डोमिसाइल नीति जमीन पर उतरी थी. साल 2000 से इस मसले को ले कर भड़की आग ने कई सरकारों की लुटिया डुबो दी थी.

इस के पहले राज्य के पहले मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी हुए थे. शिबू सोरेन के सुर में सुर मिला कर झामुमो के महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य कहते हैं कि 1985 के आधार पर स्थानीय नीति जायज नहीं है. अब इस नीति को ले कर नए सिरे से विचार किया जाएगा.

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साल 2015 में लागू की गई डोमिसाइल नीति के तहत 30 साल से झारखंड में रहने वाले अब झारखंडी (स्थानीय) करार दिए गए. इस के तहत झारखंड सरकार द्वारा संचालित व मान्यताप्राप्त संस्थानों, निगमों में बहाल या काम कर रहे मुलाजिमों, पदाधिकारियों और उन के परिवार को स्थानीय माना गया है.

झारखंड राज्य और केंद्र सरकार के मुलाजिमों को स्थानीयता का विकल्प चुनने की सुविधा दी गई है. अगर वे झारखंड राज्य को चुनेंगे तो उन्हें और उन की संतानों को स्थानीय नागरिक माना जाएगा.

इस के बाद वे अपने पहले के गृह राज्य में स्थानीयता का फायदा नहीं उठा सकेंगे, वहीं झारखंड को नहीं चुनने की हालत में वे अपने गृह राज्य में स्थानीयता का लाभ ले सकेंगे.

भौगोलिक सीमा में निवास करने वाले वैसे सभी लोग, जिन का खुद या पुरखों का नाम पिछले सर्वे खतियान में दर्ज हो व मूल निवासी, जो भूमिहीन हों, उन के संबंध में उन की प्रचलित भाषा, संस्कृति और परंपरा के आधार पर ग्राम सभा द्वारा पहचान किए जाने पर उन्हें स्थानीय माना गया है.

इस के साथ ही वैसे लोगों को भी स्थानीय माना गया है, जो कारोबार और दूसरी वजहों से पिछले 30 साल या उस से ज्यादा समय से झारखंड में रह रहे हों और अचल संपत्ति बना ली हो. ऐसे लोगों की बीवी, पति और संतानें स्थानीय मानी गई हैं.

गौरतलब है कि राज्य में आदिवासियों की आबादी 26 फीसदी ही है और 74 फीसदी गैरआदिवासी हैं. झारखंड मुक्ति मोरचा के विधायक नलिन सोरेन कहते हैं कि उन की पार्टी शुरू से ही साल 1932 को आधार मान कर स्थानीय नीति बनाने की मांग करती रही है. नई डोमिसाइल नीति से आदिवासियों का हक मारा गया है. इस नीति में आदिवासियों की अनदेखी कर गैरआदिवासियों का ध्यान रखा गया है.

गौरतलब है कि झारखंड सरकार ने 22 सितंबर, 2001 को बिहार के नियम को अपनाया था. संकल्प संख्या-5, विविध-09/2001, दिनांक 22 सितंबर, 2001 द्वारा बिहार के श्रम, नियोजन एवं प्रशिक्षण विभाग के सर्कुलर 3/स्थानीय नीति 5044/81806, दिनांक 3 मार्च, 1982 को आधार बनाया गया. इसी आधार पर खतियान (पिछला सर्वे रिकौर्ड औफ राइट्स) को स्थानीयता का आधार माना गया है.

साल 2000 में बिहार से अलग हो कर नया झारखंड राज्य बनने के बाद राज्य में डोमिसाइल नीति को ले कर आंदोलन चल रहा था. नया झारखंड राज्य बनने के बाद से 2015 तक 10 बार मुख्यमंत्रियों की अदलाबदली हुई, पर हर किसी ने डोमिसाइल नीति पर टालमटोल वाला रवैया ही अपनाया.

बहरहाल, शिबू सोरेन राजनीतिक फायदे को देख कर पाला बदलने और गुलाटी मारने के माहिर खिलाड़ी रहे हैं.

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साल 1980 में वे पहली बार जब सांसद बने, तो उस समय कांग्रेस के साथ थे. 1983 में जनता दल बना तो उन्होंने कांग्रेस को ठेंगा दिखा कर जनता दल का दामन थाम लिया.

2 साल बाद उन्हें लगा कि वहां उन की दाल नहीं गल रही है तो फिर कांग्रेस की गोद में जा बैठे और 1985 का विधानसभा चुनाव कांग्रेस के साथ मिल कर लड़ा. 1990 आतेआते कांग्रेस से उन का मन भर गया और उन्होंने फिर से जनता दल का झंडा उठा लिया.

जनता दल के घटक दल के रूप में उन्होंने चुनाव लड़ा. उन की पार्टी झामुमो के 6 उम्मीदवार जीत कर संसद पहुंच गए.

साल 1993 में शिबू सोरेन का माथा फिर घूमा और वे अपने 6 सांसदों के साथ कांग्रेसी प्रधानमंत्री नरसिंह राव के पक्ष में खड़े हो गए, जिस के लिए वे 3 करोड़ रुपए से ज्यादा की घूस लेने के आरोप में भी फंसे हुए हैं.

इस के कुछ समय बाद ही उन का कांग्रेस से मन उचट गया और वे भाजपा के साथ मिल कर नीतीश कुमार को बिहार का मुख्यमंत्री बनाने की मुहिम में लग गए.

साल 1996 में नीतीश कुमार मुख्यमंत्री तो बने, पर सदन में बहुमत साबित नहीं कर पाए और जनता दल टूट गया. तब गुरुजी शिबू सोरेन लालू प्रसाद यादव के साथ खड़े हो गए.

साल 2000 में जब अलग झारखंड राज्य बना, तो वे मुख्यमंत्री बनने के लोभ में भाजपा की अगुआई वाले राजग में शामिल हो गए. जब भाजपा ने बाबूलाल मरांडी को मुख्यमंत्री बना दिया तो शिबू बिदक कर कांग्रेसराजद गठबंधन की छत के नीचे जा बैठे.

साल 2007 में मधु कोड़ा को झारखंड का मुख्यमंत्री बनाने में उन्होंने मदद की और साल 2008 में खुद मुख्यमंत्री बनने के चक्कर में कोड़ा की सरकार को गिरा दिया था. अब अपनी पार्टी और बेटे की सरकार में वे उलटपुलट बयान दे कर उन के लिए परेशानी खड़ी कर रहे हैं.

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14 मार्च, 2020 को एक पत्रकार ने पूछा कि अब झारखंड में आप की सरकार है, तो क्या राज्य का विकास होगा? इस के जवाब में शिबू सोरेन ने कहा, ‘हम विकास का ठेका लिए हुए हैं क्या?’

पौलिटिकल राउंडअप : चिराग पासवान का ऐलान

पटना. लोक जनशक्ति पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान ने 3 मार्च को कहा था कि उन की पार्टी किसानों के मुद्दे पर बिहार विधानसभा चुनाव में उतरेगी.

याद रहे कि बिहार में इस साल के आखिर में विधानसभा चुनाव होने वाले?हैं. इसी को ध्यान में रख कर 14 अप्रैल को पटना के गांधी मैदान में होने वाली रैली में लोक जनशक्ति पार्टी का चुनाव घोषणापत्र ‘विजन डौक्यूमैंट 2020’ जारी किया जाएगा. इस में जातपांत मुद्दा नहीं रहेगा, बल्कि प्रदेश का विकास मुख्य मुद्दा होगा.

रजनीकांत का खुलासा

चेन्नई. फिल्म सुपरस्टार रजनीकांत ने 12 मार्च को साफ किया कि तमिलनाडु का मुख्यमंत्री बनने की उन की ख्वाहिश कभी नहीं थी और राजनीति की उन की योजना में भावी पार्टी और उस की अगुआई वाली संभावित सरकार के अलगअलग प्रमुख होंगे.

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याद रहे कि रजनीकांत ने 31 दिसंबर, 2017 को राजनीति में आने का ऐलान किया था और अपनी पहली आधिकारिक प्रैस कौंफ्रैंस में यह भी कहा कि उन की योजना है कि मुख्यमंत्री के तौर पर किसी पढ़ेलिखे नौजवान को आगे किया जाए.

केजरीवाल ने नकारा एनआरसी

नई दिल्ली. केंद्र सरकार के ‘कागज दिखाओ मिशन’ को नकारते हुए दिल्ली विधानसभा में 13 मार्च को एनपीआर और एनआरसी के खिलाफ प्रस्ताव पास कर दिया गया.

इस प्रस्ताव पर हुई चर्चा में हिस्सा लेते हुए दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने केंद्र सरकार से पूछा कि कोरोना से देश में चिंता बढ़ी है और अर्थव्यवस्था का बुरा हाल हो चुका है. इन समस्याओं से किनारा कर सीएए, एनपीआर, एनआरसी पर जोर क्यों दिया जा रहा है?

उन्होंने केंद्र सरकार पर तंज कसते हुए कहा कि अगर सरकार हम से दस्तावेज मांगे तो दिल्ली विधानसभा के 70 में से 61 विधायकों के पास जन्म प्रमाणपत्र नहीं है, तो क्या उन्हें डिटैंशन सैंटर में रखा जाएगा?

जिन्हें लग रहा था कि केजरीवाल सरकार के प्रति मुलायम हो गए हैं, उन्हें थोड़ा संतोष हुआ होगा कि वे फिलहाल तो सिर्फ मुठभेड़ी माहौल से बच रहे हैं.

योगी के तीखे तेवर

लखनऊ. नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ किए गए प्रदर्शनों में हुई हिंसा में सार्वजनिक संपत्तियों के नुकसान की भरपाई के लिए आरोपियों की तसवीर वाली

होर्डिंग्स प्रदेश सरकार द्वारा लखनऊ में अलगअलग चौराहों पर लगाई गईं. इस पर नाराज होते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उन होर्डिंग्स को हटवाने का आदेश दिया. इस के बाद योगी सरकार सुप्रीम कोर्ट गई, पर सुप्रीम कोर्ट ने भी पूछा था कि किस कानून के तहत यह कार्यवाही की गई?

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इस के जवाब में योगी सरकार 13 मार्च को उत्तर प्रदेश रिकवरी औफ डैमेज टू पब्लिक ऐंड प्राइवेट प्रोपर्टी अध्यादेश 2020 ले कर आई, जिसे कैबिनेट से मंजूरी भी मिल गई. इस के तहत आंदोलनोंप्रदर्शनों के दौरान सार्वजनिक या निजी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने पर कुसूरवारों से वसूली भी होगी और उन के पोस्टर भी लगाए जाएंगे.

यह कानून नितांत लोकतंत्र विरोधी है. भाजपा को पुराणों से मतलब है, संविधान से नहीं. जहां राजा राम शंबूक का गला मरजी के अनुसार काट सकते हैं.

कांग्रेस है डूबता जहाज

रांची. भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता और कभी केंद्रीय मंत्री रहे शाहनवाज हुसैन ने 14 मार्च को कहा कि कांग्रेस की बदहाली के लिए खुद कांग्रेस पार्टी जिम्मेदार है और आज इस की दशा डूबते हुए उस जहाज की तरह हो गई है, जिस पर सवार लोग अपनी जान बचाने के लिए उस में से कूद कर भाग रहे हैं.

शाहनवाज हुसैन ने एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि कांग्रेस के नौजवानों को यह समझ में आ गया है कि पार्टी नेता राहुल गांधी की अगुआई में न तो उन का भला होने वाला है और न ही देश का भला होने वाला है. मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया की घर वापसी हुई है. दूसरे प्रदेशों में भी कांग्रेस में भगदड़ मची है.

कांग्रेस में ऊंची जाति वालों या अंधभक्तों की कमी नहीं जो भाजपा के वर्णव्यवस्था वाले फार्मूले में पूरा भरोसा रखते हैं. ये विभीषण हैं.

गहलोत ने केंद्र को कोसा

जयपुर. राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने 14 मार्च को राजसमंद जिले में आरोप लगाया कि केंद्र सरकार की गलत नीतियों के चलते देश में अभी मंदी का दौर है. भारत सरकार की गलत नीतियों की वजह से नौकरियां लग नहीं रही हैं… नौकरियां जा रही हैं. ऐसे माहौल में अगर हम लोग ऐसे फैसले करेंगे, जिन का फायदा सब को मिले तो मैं समझता हूं कि आने वाले वक्त में हम लोग स्वावलंबन की तरफ बढ़ सकेंगे.

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अपनी सरकार की तारीफ करते हुए अशोक गहलोत ने कहा कि सरकार राज्य में ढांचागत विकास के साथसाथ पानी, बिजली, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं, सड़कों, ऊंची पढ़ाईलिखाई पर खास ध्यान दे रही है.

यूट्यूब चैनल और साजिश

चंडीगढ़. कांग्रेस विधायक नवजोत सिंह सिद्धू ने 14 मार्च को अपना यूट्यूब चैनल ‘जीतेगा पंजाब’ शुरू किया था, पर इस के 2 दिन बाद ही 16 मार्च को चैनल के चीफ एडमिन स्मित सिंह ने दावा किया कि कुछ ‘पंजाब विरोधी ताकतें’ इसी नाम की फर्जी आईडी बना कर लोगों को गुमराह करने की कोशिश कर रही हैं. ‘जीतेगा पंजाब’ की लौंच के कुछ ही मिनटों के भीतर इसी नाम की सैकड़ों फर्जी यूट्यूब आईडी बन गईं. कुछ पेशेवर लोग जनता के साथ नवजोत सिंह सिद्धू के सीधे जुड़ाव को कम करने में लगे हैं.

इसी गरमागरमी में मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने 16 मार्च को ही एक बयान दिया कि उन का अमृतसर के विधायक (नवजोत सिंह सिद्धू) के साथ कोई मसला नहीं है और वे पार्टी में किसी के साथ भी किसी भी मामले पर चर्चा कर सकते हैं.

कांग्रेस हुई कड़ी

अहमदाबाद. राज्यसभा चुनाव से पहले गुजरात कांग्रेस ने 16 मार्च को अपने उन 5 विधायकों को पार्टी से सस्पैंड कर दिया, जिन्होंने हाल ही में विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दिया था. कांग्रेस ने जहां इसे भाजपा की साजिश बताया, वहीं भाजपा ने इन इस्तीफों के पीछे कांग्रेस के कलह को जिम्मेदार बताया. सस्पैंड होने वाले विधायकों में मंगल गावित समेत 4 दूसरे विधायक शामिल थे.

गुजरात की 182 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा के पास 103 सीटें हैं, जबकि कांग्रेस के पास 73 विधायक हैं. भारतीय जनता पार्टी अब देशभर में दूसरे दलों के विधायकों को खरीदने में लग गई है.

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कोरोना वायरस: बीमारी को शोषण और उत्पीड़न का जरिया बनाने पर आमादा सरकार

देश मे आर्थिक इमरजेंसी लगाने की बाते करना भाजपा सरकार की जरूरत हो सकती है, लेकिन देश की जरूरत कतई नही है. सरकार कोरोना वायरस को शोषण का जरिया बनाने पर आमादा है.

जिनकी मदद करनी थी, उनसे ही मदद मांग रहे है, किसानों से,छात्रों से, कर्मचारियो से अर्धसैनिक बलों से मदद मांग रहे है.

जो पीड़ित है, और बीमारों का इलाज करने में लगे हुए है, उनका वेलफेयर फ़ंड मांग रहे है. बेशर्मी के तमाम रिकॉर्ड ही तोड़ दिए है.

कर्मचारियो का डी ए जुलाई 2021 तक फ्रीज कर दिया है, 4 %  जो जनवरी ड्यू था वह नही दिया और आगे को तीन बार का डीए नही मिलेगा यानि कुल मिलाकर वेतन का 15 % के आस पास डीए कट जाएगा. इनकमटैक्स कट ही चुका है. अब भी कट ही रहा है.

टीए न देने का आदेश कर ही चुके है, एक दिन का वेतन एक वर्ष तक काटकर पीएम केयर फ़ंड में देने के आदेश कर दिये है.

निजी कंपनियों को तो उपदेश दिए जाते हैं कि किसी का वेतन न रोकें पर उनके बकाए भुगतान को भी रोका जा रहा है और खुद कर्मचारियों के वेतन काटे जा रहे हैं.

कर्मचारी संगठनों ने इस कटौती का विरोध किया है पर जब तक पंडे पूजारी और उनके इशारे पर चलने वाले टीवी हैं, सरकार को डर नहीं. फिर भाजपा का आईटी सैल भी रात-दिन एक कर मोदी के गुणगान में लगा है ताकि धर्म और उससे चल रहे जातीय भेदभाव बना रहे.

रिटायर्ड फौजी सुप्रीम कोर्ट चले गए है. रिटायर्ड फौजियों का डीए काटना घोर अनर्थ है. उन्होंने कोर्ट में चुनौती दी है. इन्हीं फौजियों का नाम लेकर चुनाव जीते जाते हैं पर अब हाल में चुनाव नहीं हो रहे तो उन्हें कुर्बान कर दिया गया है.

कर्मचारी संगठन, किसान संगठन, मजदूर संगठन और छोटे दुकानदारों के संगठन मिलकर अडानी अम्बानी की सेवक सरकार का खुलकर विरोध कभी नहीं कर पाएंगे क्योंकि उनके नेता ऊंची जातियों के ही हैं.

भूपेश बघेल: साकी, प्याले में शराब डाल दे

छत्तीसगढ़ में शराबबंदी को अपना हथियार बनाकर 2018 के विधानसभा चुनाव में सत्ता की वैतरणी पार करने वाले भूपेश बघेल मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद शराबबंदी के मामले पर कैसे करवट बदल रहे हैं, यह सारा देश देख चुका है. अब जब कोरोना का संकट सर पर है, शराबबंदी को लेकर भूपेश बघेल की कांग्रेस सरकार के उछल कूद के नजारे देखकर सत्ता की उथली नीतियों पर आप और हम हंस  भी नहीं सकते. जहां 15 वर्ष तक सत्ता के बाहर जाकर कांग्रेस  की हालत पतली हो गई थी और  आदर्श बघारने लगी थी वहीं सत्ता सिंहासन  में बैठने के बाद वही कांग्रेस और उसके चेहरे शराबबंदी को लेकर  नित्य नए-नए तर्क दे रहे हैं.

कथनी और करनी में जो अंतर आया है वह राजनीति की असलियत को नंगे पन के साथ  उघाड़ कर सामने रख देता है. यहां हम आपको बताना चाहते हैं कोरोना वायरस महामारी के पश्चात लाक डाउन की स्थिति में भी छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल की सरकार ने दोनों हाथों से शराब बेचा. शायद आपको विश्वास ना हो … मगर यह 100 फीसदी सही बात है. आप शायद कल्पना भी नहीं कर सकते कि 22 मार्च 2020 को जब प्रधानमंत्री के आह्वान पर संपूर्ण देश में लॉक डाउन था छत्तीसगढ़ में देसी और विदेशी शराब की दुकाने खुली हुई थी जिसकी बड़ी निंदा हुई. मगर सरकार ने इस पर कोई नैतिक जिम्मेदारी स्वीकार करते हुए दो शब्द कहने से भी गुरेज किया.

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मर रहे है  आम लोग…

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में संदिग्ध परिस्थितियों में दो लोगों की मौत हो गई. मौत शराब नहीं मिलने और  स्पिरिट पीने की वजह से हुई बताई जा रही है.दरअसल, लाॅकडाउन होने की वजह से शराब दुकानें  बंद है, फलत: कुछ  दोस्तों ने स्पिरिट पीकर अपनी लत दूर करने की कोशिश की, मगर  उन्हे अपनी  जिंदगी से हाथ धोना पड़ गया.यह  घटना रायपुर के गोलाबाजार थाना क्षेत्र में बाँसटाल की है. यहां रहने वाले तीन लोगों ने शराब की जगह स्पिरिट का सेवन कर लिया . इससे उनकी तबियत बिगड़ गई. फिर इनमें से दो लोग असगर खान (43 वर्ष) और दिनेश समुंदर (45 वर्ष) की मौत हो गई है. रायपुर के महापौर  एजाज ढेबर बताते हैं – जिस तरह कोरोना वायरस के मद्देनजर शराब की दुकानें बंद की गई है. यह उसका ही असर है. महापौर ने बताया  उनके पास यह खबर भी आई है कि एक युवक ने शराब ना मिलने की वजह से फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली .

सरकार चाहती है प्याले छलका लो…

उपरोक्त दो युवकों की मौत की बिनाह पर भूपेश बघेल की सरकार यह पटकथा तैयार कर रही है कि कैसे शराब की दुकाने जल्द से जल्द छत्तीसगढ़ में खुल जाएं. दरअसल, यह माना जा रहा है कि छत्तीसगढ़ में सरकार के हाथों में शराब दुकानें चल रही हैं जो  दुधारू गाय के समान है. इस बिजनेस से बेपनाह पैसा आता है. इसका सबसे ज्वलंत तथ्य यही है कि जब देशभर में 14 अप्रैल 2020 तक लाक डाउन है तब सरकार की तरफ से यह बात बारंबार सामने लायी गई है की आगामी 0 7 अप्रैल तक ही शराब दुकानें बंद हैं. यानी यह कहा जा सकता है कि जैसे ही हालत थोड़ी भी   सामान्य होंगे छत्तीसगढ़ की सरकार सबसे पहले देशी और विदेशी शराब की दुकानों पर खोल देगी. क्योंकि प्रतिदिन करोड़ों रुपए की इनकम सरकार को शराब से होती रही है. अब सच यही  है  की छत्तीसगढ़ की जनता, आम गरीब आदमी, भूखा मर जाए कोरोना  की चपेट में आकर  तिल तिल कर मर जाए, छत्तीसगढ़ की  सरकार को उससे कोई लेना देना नहीं है. लोकतंत्र के इस  संवैधानिक छत्रछाया में यह सब बेहद दर्दनाक और दुखद है.

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भाजपाई नीतीश को पटकनी देंगे पीके?

भारतीय जनता पार्टी को केंद्र में और जनता दल (यू) को बिहार में अपनी चुनावी योजनाओं से जीत दिलाने वाले प्रशांत किशोर उर्फ पीके ने अपने पुराने दोनों क्लाइंट को धूल चटाने के लिए कमर कस ली है. उन्होंने बिहार की कुल 8,800 पंचायतों में पैठ बनाने की कवायद शुरू कर दी है. पंचायतों में अपनी पैठ बना कर वे बिहार विधानसभा पर नजरें टिका चुके हैं.

20 फरवरी, 2020 से ‘बात बिहार की’ नाम से नए कार्यक्रम की शुरुआत कर चुके पीके का दावा है कि 3 लाख नौजवान इस से जुड़ चुके हैं और 20 मार्च, 2020 तक 10 लाख और नौजवानों को जोड़ना है.

गौरतलब है कि इस साल के आखिर में बिहार में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. सवाल यह भी है कि क्या पीके नीतीश कुमार जैसे सियासी धुरंधर और भाजपा जैसी नैशनल पार्टी को चुनौती देने की ताकत रखते हैं, क्योंकि मार्केटिंग और राजनीति दोनों अलगअलग चीजें हैं.

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जनता दल (यू) के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और चुनावी रणनीतिकार रहे प्रशांत किशोर ने 18 फरवरी, 2020 को पटना में प्रैस कौंफ्रैंस कर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और राजग के खिलाफ हल्ला बोल दिया था. उन्होंने नीतीश कुमार को अपने पिता समान बताते हुए दावा किया कि उन दोनों का रिश्ता केवल राजनीति का नहीं रहा है. उस के तुरंत बाद उन्होंने नीतीश कुमार के साथ विचारों के मतभेद का खुलासा कर डाला.

पीके ने कहा कि साल 2019 के लोकसभा चुनाव के समय से ही नीतीश कुमार और उन के बीच ‘आल इज वैल’ नहीं रहा.

नीतीश कुमार हमेशा कहते हैं कि वे गांधी, लोहिया और जेपी की विचारधारा को नहीं छोड़ सकते हैं, पर गांधी के साथसाथ गोडसे के विचारों को मानने वालों के साथ वे कैसे खड़े हैं? इसी से हमारे बीच मतभेद रहा.

पीके ने नीतीश कुमार के विकास के कामों को तथाकथित विकास करार दे डाला. भाजपा के साथ होते हुए भी आज तक बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की उन की सालों पुरानी मांग क्यों नहीं पूरी हुई?

बिहार में शिक्षा की हालत बेहद खराब है. प्रति परिवार बिजली की खपत में बिहार सब से पिछड़ा है. विकास के मामले में बिहार पिछले 15 सालों से 22वें नंबर पर क्यों है? अपनी बात कहने और मनवाने के लिए हरदम नीतीश कुमार पिछलग्गू बने रहते हैं.

पीके ने नीतीश कुमार को सियासी चुनौती दे दी है, लेकिन क्या उन में कूवत है कि वे नीतीश कुमार जैसे सियासी धुरंधर और सोशल इंजीनियरिंग के मास्टर के सामने टिक सकेंगे? पीके जहां मार्केटिंग और पब्लिसिटी के मास्टर हैं, वहीं नीतीश कुमार के पास तकरीबन 45 सालों का सियासी अनुभव है. वे विधायक, सांसद, मुख्यमंत्री, केंद्रीय मंत्री रहे हैं और भाजपा और राजद जैसे ताकतवर दलों को साधते रहे हैं.

साल 1974 के जेपी आंदोलन की उपज नीतीश कुमार साल 1985 में पहली बार विधायक बने थे. साल 1989 में वे पहली बार सांसद बने थे. उस के बाद साल 1991, साल 1996, साल 1998, साल 1999 और साल 2004 में वे लोकसभा चुनाव जीते थे. साल 1990 के अप्रैल से नवंबर महीने तक वे केंद्रीय कृषि मंत्री रहे.

19 मार्च, 1998 से ले कर 5 अगस्त, 1999 तक नीतीश कुमार केंद्रीय रेल मंत्री रहे. 13 अक्तूबर, 1999 से ले कर 22 नवंबर, 1999 तक वे भूतल परिवहन मंत्री रहे. 27 मई, 2000 से 20 मार्च, 2001 तक वे कृषि मंत्री रहे. 22 जुलाई, 2001 से ले कर साल 2004 तक वे रेल मंत्री रहे.

साल 2005 में नीतीश कुमार बिहार के मुख्यमंत्री बने और उन्होंने न्याय के साथ विकास का नारा दिया. तब से अब तक वे लगातार बिहार के मुख्यमंत्री की कुरसी पर काबिज हैं.

साल के आखिर में होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज कराने के लिए नीतीश कुमार ने सियासी दांवपेंच खेलना शुरू कर दिया है. नीतीश कुमार की सब से बड़ी ताकत उन की ईमानदार छवि है और फैसला लेने के मामले में वे पक्के माने जाते हैं.

पीके पर पलटवार करते हुए जद (यू) के राष्ट्रीय संगठन के महासचिव आरसीपी सिंह ने कहा कि नीतीश कुमार को पिछलग्गू बनाने की औकात किसी के पास नहीं है. वे अपने काम के बूते देशभर में पहचान बन चुके हैं. हमें किसी ऐरेगैरे से सर्टिफिकेट की जरूरत नहीं है.

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जद (यू) के सीनियर नेता ललन सिंह ने पीके की तुलना टिटहरी से करते हुए कहा कि टिटहरी रात को पैर उठा कर सोती है, क्योंकि उसे लगता है कि उस ने अपने पैरों से आसमान को थाम रखा है. सुबह उठ कर वह इस बात का प्रचार भी करती है कि अगर वह पैर उठा कर नहीं सोती तो आसमान गिर पड़ता.

भाजपा नेता सुशील मोदी ने पीके पर तंज कसते हुए कहा कि इवैंट मैनेजमैंट करने वालों की कोई विचारधारा नहीं होती है. वे अपने क्लाइंट की विचारधारा और बोली को तुरंत अपना लेने में माहिर होते हैं.

पीके साल 2014 में नरेंद्र मोदी की जीत का सेहरा अपने सिर बांधने में बड़बोले बने रहे, तब भाजपा और मोदी उन्हें गोडसेवादी नहीं लगे? पिछले ढाई साल से पीके नीतीश कुमार के साथ मिल कर अपनी राजनीति चमकाने में लगे रहे और अब चुनाव आते ही नीतीश गोडसेवादी बन गए?

वहीं राजद के सीनियर नेता शिवानंद तिवारी कहते हैं कि पीके के बयान से साफ हो गया है कि बिहार में विकास नहीं हुआ है. पीके ने साफ कहा है कि साल 2005 में जिस जगह पर बिहार खड़ा था, आज भी वहीं खड़ा है.

बिहार भाजपा के अध्यक्ष और सांसद संजय जायसवाल कहते हैं कि चुनावी साल में पीके जैसे कई लाउडस्पीकर बजेंगे. पैसे ले कर टेप बजाने वाले पीके वही बोलते हैं, जिस बात के लिए उन्हें भुगतान किया जा सकता है.

नीतीश कुमार के खिलाफ पीके की यह बयानबाजी उन की सियासत में ऐंट्री की कवायद है या जद (यू) से निकाले जाने की खुन्नस है, इसे पीके ने साफ नहीं किया. बिहार विधानसभा चुनाव में उन की भूमिका केवल रणनीतिकार की होगी या वे राज्य के धुरंधर नेताओं के साथ चुनावी अखाड़े में ताल ठोंक कर उतरेंगे, यह भी साफ नहीं किया.

पिछले विधानसभा चुनाव में पीके नीतीश कुमार के साथ बतौर रणनीतिकार जुड़े और बाद में सलाहकार भी बने. कैबिनेट मंत्री का दर्जा मिला और उस के बाद राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाए गए.

महागठबंधन से नाता तोड़ लेने के बाद भाजपा के साथ जब नीतीश कुमार ने अपनी सरकार बनाई, तब भी पीके चुप क्यों रहे? जद (यू) में रहते हुए भी पश्चिम बंगाल और दिल्ली के चुनावों में किस विचारधारा के साथ रणनीतिकार बने रहे? अपने कारोबार और सियासत को साथसाथ चलाते रहे. गांधीवादी होते हुए भी भाजपा के रणनीतिकार बनना क्यों कबूल किया? इन सारे सवालों का जवाब पीके को आने वाले समय में देना होगा.

साल 1977 को बिहार के रोहतास जिले के कोनर गांव में जनमे प्रशांत किशोर उर्फ पीके के पिता श्रीकांत पांडे डाक्टर थे. पीके ने गांव में ही मिडिल क्लास तक की पढ़ाई की. 8 साल तक यूएनओ से जुड़े रहने के बाद साल 2014 के आम चुनाव में भाजपा के प्रचार मुहिम की रणनीति बना कर मशहूर हुए प्रशांत किशोर साल 2012 में गुजरात विधानसभा चुनाव में भाजपा से जुड़े थे.

भाजपा के लिए साल 2014 के चुनाव में ‘चाय पर चर्चा’ उन का कामयाब और मशहूर कार्यक्रम साबित हुआ था. भाजपा की सोशल मीडिया मुहिम को उन्होंने ही डिजाइन किया था. उसी समय अनेक कालेजों और कंपनियों से 200 प्रोफैशनलों को चुन कर पीके ने सीएजी (सिटीजन फौर अकाउंटेबेल गवर्नैंस) नाम की कंपनी बनाई. साल 2015 में भाजपा से अलग होने के बाद उन्होंने अपनी कंपनी सीएजी का नाम बदल कर आईपीएसी यानी इंडियन पौलिटिकल ऐक्शन कमेटी कर दिया था.

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साल 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में पीके जद (यू) के प्रचार मुहिम से जुड़े. जद (यू) और राजद के गठबंधन को भारी जीत दिलाने के इनाम में उन्हें नीतीश कुमार ने जद (यू) का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पद दे दिया. पिछले साल एनआरसी के मसले पर जद (यू) की पार्टी लाइन से अलग राय रखने के बाद नीतीश कुमार के साथ उन के मतभेद शुरू हुए थे.

साल 2016 में पीके ने पंजाब में कांग्रेस की प्रचार मुहिम संभाली और कांग्रेस को भारी जीत मिली. इस से प्रशांत किशोर का रुतबा और कद दोनों बढ़ गए. साल 2017 में उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को जीत दिलाने की चुनौती कबूल की, लेकिन उस में बुरी तरह नाकाम रहे.

साल 2019 में उन्होंने आंध्र प्रदेश में वाइएसआर कांग्रेस की प्रचार की नैया की पतवार संभाली और उस में कामयाबी मिली. साल 2020 में दिल्ली में अरविंद केजरीवाल की पार्टी ‘आप’ के प्रचार का दारोमदार लिया और केजरीवाल को दोबारा दिल्ली की सत्ता पर काबिज कराने में मददगार बने.

अब प्रशांत किशोर ने पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी और तमिलनाडु में द्रमुक को जिताने की कमान अपने कंधों पर ली है. लगता है कि भाजपा के लिए ‘चाय पर चर्चा’ राहुल गांधी के लिए ‘खाट पर चर्चा’ और नीतीश कुमार के लिए ‘बिहार में बहार हो नीतीशे कुमार हो’ जैसे नारे गढ़ने वाले पीके अब खुद राजनीतिक अखाड़े में कमर कस कर उतरने की तैयारी में हैं.

नीतीश का मास्टर स्ट्रोक

चुनावी साल में बिहार विधानसभा ने एनपीआर और एनआरसी के खिलाफ प्रस्ताव पास कर नीतीश कुमार ने अपने विरोधियों को एक बार फिर चारों खाने चित कर दिया है. गौरतलब है कि देश में पहली बार भाजपा के सहयोग से यह प्रस्ताव पास किया गया. नीतीश कुमार ने अपने इस मास्टर स्ट्रोक से राजद समेत तमाम विरोधी दलों की बोलती बंद कर दी है, वहीं भाजपा को उस के ही दांव से बेबस कर दिया है.

विधानसभा में नीतीश कुमार ने साफ कहा है कि बिहार में एनआरसी लागू होने का सवाल ही नहीं है. एनपीआर साल 2010 के प्रावधान पर ही लागू होगा. मुझे भी नहीं पता है कि मेरी मां का जन्म कब हुआ था.

नीतीश कुमार के इस राजनीतिक पैतरे से बौखलाए राजद नेता तेजस्वी यादव ने अपनी खुन्नस निकालते हुए कहा कि नीतीशजी कब किधर चले जाएं, पता नहीं. उन का ऐसा ही इतिहास रहा है.

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तेजस्वी यादव के इस बयान के बाद नीतीश कुमार ने उन्हें गार्जियन की तरह समझाते हुए कहा कि कुछ बातें बोलने का अधिकार केवल आप के पिता को है, आप को सोचसमझ कर बोलना चाहिए.

फुजूल की ट्रंप सेवा

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की भारत की 36 घंटों की यात्रा पर जो तैयारी भारत सरकार ने की थी, वह पागलपन का दौरा ज्यादा थी. डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के चुने हुए राष्ट्रपति जरूर हैं और हो सकता है कि 2020 के चुनावों में एक बार फिर चुन लिए जाएं, पर वे न तो विश्व नेता हैं और न ही अमेरिकी जनता के नेता. वे सिर्फ हेरफेर, रूसी कृपा से, अमेरिकी गोरों की भड़ास पूरी करने वाले सिरफिरे से विशुद्ध व्यवसायी हैं जो राजनीति में घुस गए और जैसे व्यापार चलाते हैं, वैसे ह्वाइट हाउस चला रहे हैं.

उन्हें अमेरिका के सर्वोच्च पद पर बैठे होने के कारण इज्जत पाने का हक है, पर हम अपना दिल और दिमाग बिछा दें, इस की कोई जरूरत नहीं. उन का स्वागत एक आम पदासीन राष्ट्राध्यक्ष की तरह से होना चाहिए था, उन से व्यापार व कूटनीति के समझौते होने चाहिए थे, पर इतना होहल्ला मचाना अपनी कमजोरी दिखाता है.

अमेरिका अब भारत जैसे देश को कुछ दे नहीं सकता. एक समय पब्लिक ला 480 के अंतर्गत अमेरिका ने भारत की भूखी जनता को मुफ्त गेहूं दिया था. आज हमारा अपना भंडार लबालब भरा है. भारत अमेरिका से जो पाता है, वह खरीदता है, मुफ्त नहीं पाता. अमेरिका भारत की विदेश नीति में कोई खास मदद नहीं करता. अमेरिका में लाखों भारतीय मूल के लोग नागरिक हैं या अन्य वर्क वीजाओं के अंतर्गत काम कर रहे हैं, पर यह किसी राष्ट्रपति की कृपा नहीं है, यह अमेरिकियों की जरूरत है.

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अमेरिका अब दूसरा सब से मजबूत लोकतंत्र होने का लंबाचौड़ा रोब भी मार नहीं सकता, क्योंकि भारत और अमेरिका दोनों जगह नागरिकों की स्वतंत्रताएं आज बेहद खतरे में हैं. अमेरिका की जेलें लाखों कैदियों से लबालब भरी हैं और भारत की जेलें यातनाघर हैं, जहां बिना सजा पाए लोग वर्षों गुजार देते हैं. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अमेरिका और भारत दोनों में सरकारी या व्यापारिक ग्रहण लग चुका है.

अमेरिका अब किसी भी माने में दुनिया का सिपाही नहीं है और भारत किसी भी माने में एक आदर्श विकासशील देश नहीं है. ऐसे में भारत की अमेरिकी राष्ट्रपति की चाटुकारिता एक बेवकूफी से ज्यादा कुछ नहीं है, इसीलिए डोनाल्ड ट्रंप के बारे में जनता में कहीं भी जोश नहीं है. टीवी मीडिया इसे तमाशे के रूप में दिखाता रहा है और सड़कों पर भीड़ भाड़े पर ही आई थी. राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की यह क्षणिक यात्रा मात्र एक कौमा है, निरर्थक सा.

बढ़ गई बेकारी

गांवकसबों में बेकारी आज की सरकार के लिए कोई परेशानी की बात नहीं है. पुराणों में बारबार यही दोहराया गया है कि शूद्रों और उन के नीचे जंगलवासियों को कम में रहने की आदत होनी चाहिए और राजा को उन के पास जो भी हो छीन लेना चाहिए. यह हुक्म पुराणों में भरा हुआ है कि राजा जनता से धन एकत्र कर के ब्राह्मणों को दान कर दे.

आज देशभर की सरकारें यही कर रही हैं, चाहे किसी भी पार्टी की क्यों न हों. आरक्षण से जो उम्मीद बनी थी कि सदियों से दबाएकुचले किसान, कारीगर, मजदूर, कलाकार, मदारी, लोहार, बढ़ई, बिना जमीन वाले मजूर अपने बच्चों को पढ़ालिखा कर सरकारी नौकरी पा जाएंगे, अब खत्म होती जा रही है. मनरेगा जैसे प्रोग्राम की भी गरदन मरोड़ दी गई है. स्कूलों में खाना खिलाने में छुआछूत इस कदर फैल गया है कि अब निचले तबकों के बच्चे स्कूल जाने से कतराने लगे हैं.

इन गरीबों को अब मालूम पड़ गया है कि उन का कुछ भला न होगा. अकेले उत्तर प्रदेश में पिछले 2 सालों में 12 लाख से ज्यादा लोग बेरोजगार हो गए हैं और वे अब अपने घर वालों पर बोझ बन गए हैं. गरीब घरों में जब एक बेरोजगार और आ जाए तो आमदनी तो कम हो ही जाती है. जो रहनसहन पहले सब का था, वह एक निठल्ले की वजह से और हलका हो जाता है. हर घर में झगड़े शुरू हो गए हैं.

मंदिर, आश्रम, पूजापाठ का जो चसका हाल के सालों में चढ़ा है उस ने गांवकसबों की तसवीर और खराब कर दी है. खाली बैठे लोग मंदिरों से कमाई की खातिर मंदिरों के इर्दगिर्द दुकानें लगा कर बैठ गए हैं. जहां मिलता तो जरा सा है, पर यह भरोसा हो जाता है कि भगवान की कृपा होगी.

सरकार के खजाने में पैसा कम हो रहा है, क्योंकि एक तरफ टैक्स कम मिल रहे हैं, दूसरी तरफ सरकारी फुजूलखर्ची बढ़ रही है. सारे देश में पुलिस पर बेहद खर्च बढ़ रहा है. नागरिक संशोधन कानून से देश में अफरातफरी मची है, जिस के लिए चप्पेचप्पे पर पुलिस तैनात है और कहीं से तो पैसा आएगा ही. कश्मीर में कई लाख सैनिक, अर्धसैनिक और पुलिस वाले हैं. लाखों को नागरिकों पर नजर रखने के लिए लगा दिया गया है. मंदिरों पर सरकार बेतहाशा खर्च कर रही है.

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प्रधानमंत्री रोजगार योजना एक छोटा नमूना है जिस में पिछले साल 6 लाख मजदूर काम कर रहे थे, इस साल ढाई लाख रह गए. देशभर में कहीं भी न कुएं खुद रहे हैं, न डैम बन रहे हैं, न नहरें बन रही हैं, न जंगल उगाए जा रहे हैं.

देश में 16-27 साल के बीच के एकचौथाई जवान लड़केलड़कियां बेकार हैं और सरकार को मंदिर बनाने की पड़ी है. जीएसटी की वजह से लाखों छोटे दुकानदारों ने काम बंद कर दिया, क्योंकि उन का काम नकद से चलता था और जीएसटी में यह नहीं हो पाता. इन दुकानों पर काम करने वाले आज बेकार हैं. देश में नए मकान बनने कम हो गए हैं और नए मजूरों के लिए काम खत्म हो गया है.

गाडि़यां कम बिक रही हैं तो पैट्रोल कम बिक रहा है, सड़क के किनारे बनी गाड़ी मरम्मत की दुकानें उजड़ रही हैं. सरकारी विभागों में 22 लाख पद खाली हैं, पर सिवा भरती के विज्ञापन देने के कोई काम नहीं हो रहा.

यह देश के कल की बुरी हालत का एक जरा सा हलका सा निशान है, पर यह पुराणों की बात साबित करता है.

पौलिटिकल राउंडअप : भाजपाई बनीं वीरप्पन की बेटी

चेन्नई. कुख्यात चंदन और हाथी दांत तस्कर रहे वीरप्पन की बेटी विद्यारानी ने 22 फरवरी को भारतीय जनता पार्टी की सदस्यता ले ली. इस के बाद सोशल मीडिया पर लोगों ने भाजपा को निशाने पर लेना शुरू कर दिया, जबकि इस बारे में विद्यारानी का कहना है कि उन्हें उन के पिता से जोड़ कर नहीं देखना चाहिए और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से प्रभावित हो कर वे भाजपा में शामिल हुई हैं.

बचपन से ही आईएएस बनने का सपना देखने वाली विद्यारानी अपने गांव और आसपास के इलाके में साफ पानी और सड़क जैसी बुनियादी सुविधाओं के सुधार के लिए काम करना चाहती हैं.

विद्यारानी ने कहा, ‘मेरे पिता के रास्ते जरूर गलत थे, लेकिन उन्होंने हमेशा गरीबों के बारे में ही सोचा. मैं अब सही रास्ते पर चल कर सही काम करने की कोशिश कर रही हूं.’

आजम खान की गिरफ्तारी

लखनऊ. समाजवादी पार्टी के दिग्गज नेता और सांसद आजम खां और उन के परिवार को 26 फरवरी को जेल भेजे जाने के बाद समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने आगबबूला होते हुए कहा कि यह बदले की भावना से किया गया है और सत्ता का गलत इस्तेमाल करना भाजपा की राजनीतिक आदत है.

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डिप्टी सैक्रेटरी के यहां पड़ा छापा

रायपुर. छत्तीसगढ़ के सीएमओ में डिप्टी सैक्रेटरी के पद पर तैनात सौम्य चौरसिया के घर पर 28 फरवरी को इनकम टैक्स डिपार्टमैंट ने छापा मारा तो मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने इसे ‘राजनीतिक बदला’ बताया और केंद्र सरकार पर प्रदेश की बहुमत वाली सरकार को अस्थिर करने का आरोप भी लगाया.

इस से पहले रायपुर में पुलिस ने इनकम टैक्स महकमे के नो पार्किंग इलाके पर खड़ी गाडि़यों को जब्त कर लिया था. इनकम टैक्स महकमे ने 27 फरवरी को महापौर एजाज ढेबर समेत कई बड़े अफसरों के यहां छापे मारे थे.

राहुल गांधी को मिली राहत

रांची. कांग्रेस के अध्यक्ष रह चुके राहुल गांधी को लोकसभा चुनावों के समय ‘सभी मोदियों को चोर बताए’ जाने के बयान के मामले में निचली अदालत से जारी सम्मन पर झारखंड हाईकोर्ट ने 27 फरवरी को राहत देते हुए उन्हें निजीतौर पर पेशी से छूट दी.

रांची की निचली अदालत ने राहुल गांधी को मानहानि के एक मामले में सम्मन जारी करते हुए 28 फरवरी को खुद या अपने वकील के जरीए अदालत में हाजिर होने का निर्देश दिया था.

निचली अदालत में वकील प्रदीप मोदी ने राहुल गांधी पर 20 करोड़ रुपए की मानहानि का मुकदमा दर्ज कराया था, जिस में कहा गया कि लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान रांची के मोरहाबादी मैदान में कांग्रेस की सभा में राहुल गांधी ने नरेंद्र मोदी, नीरव मोदी, ललित मोदी का नाम लेने के साथ कहा था कि जिन के नाम के आगे मोदी है वे सभी चोर हैं.

मुसलिम रिजर्वेशन पर रार

मुंबई. पढ़ाईलिखाई में मुसलिमों को 5 फीसदी रिजर्वेशन देने को ले कर महाराष्ट्र की उद्धव ठाकरे सरकार में अलगअलग राय नजर आई. राकांपा के कोटे से एक मंत्री ने जहां मुसलिमों को 5 फीसदी रिजर्वेशन के लिए जल्द एक कानून लाने की बात कही, वहीं शिव सेना के मंत्री ने कहा कि इस संबंध में अभी तक कोई फैसला नहीं लिया गया है.

इस से पहले 28 फरवरी को महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे की अगुआई वाली गठबंधन सरकार ने कहा था कि वह मुसलिमों को स्कूलकालेजों में रिजर्वेशन देने के लिए कानून बनाएगी. इस के लिए कांग्रेस और राकांपा की तरफ से मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे पर पहले से दबाव बनाया जा रहा था.

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कमलनाथ का केंद्र से सवाल

इंदौर. देशभर में अपने स्वादिष्ठ पोहे के लिए मशहूर इस शहर में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ ने 28 फरवरी को केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार पर हमला करते हुए सवाल किया कि देश में आखिर ऐसी कौन सी आफत आ गई थी, जो केंद्र सरकार को संशोधित नागरिकता कानून बनाना पड़ा और सीएए में क्या है, वह बात छोडि़ए, लेकिन सवाल है कि क्या कोई युद्ध चल रहा है या देश में बड़ी संख्या में शरणार्थी आ रहे हैं जो केंद्र सरकार ने सीएए का चक्कर चला दिया? यह कानून बनाने की आखिर क्या जरूरत थी? इस कानून का आखिर क्या मकसद है?

कन्हैया को लपेटा

नई दिल्ली. दंगों में जल रही दिल्ली की आंच बढ़ाने के लिए जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी देशद्रोह केस में भाकपा नेता व जेएनयू स्टूडैंट यूनियन के अध्यक्ष रह चुके कन्हैया कुमार समेत 10 और लोगों के खिलाफ अरविंद केजरीवाल की दिल्ली सरकार ने 28 फरवरी को मुकदमे की मंजूरी दे दी, जो शायद अमित शाह के दबाव में दी गई है. केजरीवाल हाल में पलटी मारते नजर आ रहे हैं.

सुशील मोदी के कड़े बोल

पटना. ज्योंज्यों बिहार के विधानसभा चुनाव नजदीक आ रहे हैं, त्योंत्यों वहां एकदूसरे की खिंचाई करने का माहौल बनने लगा है.

भारतीय जनता पार्टी और जनता दल की गठबंधन सरकार को घेरने के लिए विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ‘बेरोजगारी हटाओ यात्रा’ निकाल रहे हैं. उसे ले कर भाजपाई नेता और बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार  मोदी ने कड़े शब्दों का इस्तेमाल किया.

उन्होंने कहा है कि तेजस्वी यादव खुद इतने पढ़ेलिखे हैं नहीं कि कोई सम्मानजनक नौकरी पा सकें, लेकिन वे लाखों बिहारियों की नौकरी खतरे में डालने वाली मांग को जरूर तूल दे रहे हैं.

इस से पहले शनिवार, 29 फरवरी को तेजस्वी यादव ने अपने ट्वीट में लिखा था, ‘उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी कह रहे हैं कि बिहार के 7 करोड़ बेरोजगार युवाओं को नौकरी लेने अब चांद पर जाना होगा, क्योंकि नीतीशजी बिहार में नौकरी नहीं दे सकते…’

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ममता बनर्जी का दर्द

कोलकाता. देश में फैले दंगों पर मची राजनीति से दुखी पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने लोगों से समाज से जाति, पंथ और धर्म के आधार पर सभी तरह के विभाजन को उखाड़ने की अपील की.

ममता बनर्जी का यह बयान 1 मार्च को उस दिन आया, जब केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कोलकाता में सीएए के समर्थन में एक रैली की थी.

मिथिला की बेटी ने उड़ा दी है नीतीश कुमार की नींद

बिहार में आजकल सियासी रोटी गरम है और हर छोटे बड़े नेता तवे पर रोटी रख गरमगरम बयान देने में कसर नहीं छोड़ रहे.

अब बिहार सहित देश के कई जगहों पर एक खबर ने अनायास ही बिहार की राजनीति में सनसनी फैला दी है और यह सनसनी कोई और नहीं लंदन से पढलिख कर आई एक आधुनिक युवती पुष्पम प्रिया चौधरी ने फैलाई है.

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दरअसल, बिहार के कई अखबारों में छपे एक विज्ञापन ने सब को चौंका दिया है. विज्ञापन में पुष्पम प्रिया चौधरी नाम की एक महिला ने खुद को बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में मुख्यमंत्री का उम्मीदवार बताया है. विज्ञापन के जरीए इस महिला ने बताया है कि उस ने ‘प्लूरल्स’ नाम का एक राजनीतिक दल बनाया है और वह उस की अध्यक्ष हैं.

महिला दिवस पर पेश की दावेदारी

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर जहां पूरा विश्व महिला सशक्तिकरण पर जोर देने की बात कर रहा था, पुष्पम प्रिया चौधरी ने बिहार के अखबारों में विज्ञापन देते हुए मुख्यमंत्री पद की दावेदारी पेश की. अपनी पार्टी का नाम उन्होंने प्लूरल्स  दिया है जबकि ‘जन गण सब का शासन’ पंच लाइन दी है.

पुष्पम प्रिया ने विज्ञापन में बताया कि उन्होंने विदेश में पढ़ाई की है और अब बिहार वापस आ कर प्रदेश को बदलना चाहती हैं.

कौन हैं पुष्पम

इंगलैंड के द इंस्टीट्यूट औफ डेवलपमैंट स्टडीज विश्वविद्यालय से एमए इन डेवलपमैंट स्टडीज और लंदन स्कूल औफ इकोनोमिक्स ऐंड पोलीटिकल साइंस से पब्लिक ऐडमिनिस्ट्रेशन में एमए किया है. वह दरभंगा की रहने वाली हैं और जेडीयू के पूर्व एमएलसी विनोद चौधरी की बेटी हैं. फिलहाल वे लंदन में ही रहती हैं.

जनता से अपील

पुष्पम प्रिया चौधरी ने विज्ञापन में बिहार की जनता को एक पत्र भी लिखा है, जिस में उन्होंने कहा है कि अगर वह बिहार की मुख्यमंत्री बनीं  तो 2025 तक बिहार को देश का सब से विकसित राज्य बना देंगी और 2030 तक इस का विकास यूरोपियन देशों जैसा होगा.

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पिता ने कहा नैतिक समर्थन है

पुष्पम प्रिया के पिता विनोद चौधरी चूंकि जेडीयू नेता हैं इसलिए मीडिया ने उन्हें घेर कर उन की राय जाननी चाही. पिता विनोद चौधरी ने कहा,”मेरी बेटी विदेश में पढ़ीलिखी  है. वह बालिग है और उस की और मेरी सोच में फर्क स्वाभाविक है. वह जो भी कर रही है सोचसमझ कर कर रही होगी. एक पिता होने के कारण मेरा आशीर्वाद सदैव उस के साथ है.”

क्या बदलने वाली है बिहार की राजनीति

बिहार की राजनीति यों तो दबंगई की रही है और अपने इसी दबंगई से कभी यहां की सत्ता पर राष्ट्रीय जनता दल के लालू प्रसाद यादव ने एकतरफा राज किया था. उन्हें करिश्माई नेता के तौर पर भी जाना जाता था. अपने चुटीली बोल और ठेठ गंवई अंदाज में बोलने वाले लालू फिलहाल चारा घोटाले में जेल में हैं पर उन की अनुपस्थिति में पत्नी राबङी देवी, बेटा तेजस्वी और तेजप्रताप राजनीति की बागडोर संभाले हुए हैं. राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि बिहार में राजद का अपना वोट बैंक है, जो कभी भी निर्णायक साबित हो सकता है.

उधर बीजेपी से नाता जोङ कर सरकार चला रहे सुशासन बाबू यानी नीतीश कुमार के लिए आगामी चुनाव जीतना आसान नहीं होगा, क्योंकि अभी तक बिहार में जातिगत आधार पर वोट पङते हैं मगर बीजेपी सरकार द्वारा लागू कैब, बढती बेरोजगारी, बिगङते कानून व्यवस्था से बिहार की जनता हलकान है और इस बार बीजेपी+जेडीयू गंठबंधन वहां आसानी से सरकार बना लेगी, इस में संशय ही है.

प्रशांत किशोर का दांव

उधर कभी नीतीश के खास रहे प्रशांत  किशोर भी सुशासन बाबू को खूब चिढा रहे हैं. नीतीश का बीजेपी के समर्थन में बोलना प्रशांत किशोर को शुरू से ही खल रहा था. वे पार्टी में रहते हुए भी नीतीश कुमार की नीतियों का कई बार आलोचना कर चुके थे, सो नीतीश ने उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया.

राजनीति के जानकार बताते हैं कि प्रशांत नीतीश के लिए राह का रोङा बन सकते हैं.

जल्दी ही मशहूर हो गई हैं प्रिया

पुष्पम प्रिया चौधरी यों तो युवा चेहरा हैं और जल्दी लोकप्रिय भी हो गई हैं पर बिहार की राजनीति में अभी नई हैं. पर यह राजनीति है और कहते हैं कि राजनीति और क्रिकेट अनिश्चितताओं का होता है. ऐसे में दिल्ली की तरह वहां भी कोई नया समीकरण बन जाए क्या पता?

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यह तो वक्त ही बताएगा कि बिहार में किस की सरकार बनेगी पर मिथिला की इस बेटी ने सियासी तीसमारखाओं की नींद जरूर उङा दी है.

पौलिटिकल राउंडअप : मध्य प्रदेश में बड़ा घोटाला

भोपाल. साल 2009 में तब की संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार ने मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में बुंदेलखंड इलाके के 13 जिलों में तरक्की के कामों के लिए 7 हजार, 266 करोड़ रुपए दिए थे. इन में से 3 हजार, 800 करोड़ रुपए केवल मध्य प्रदेश के लिए दिए गए थे. लेकिन यह पैसा भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गया.

इस योजना से जुड़े दस्तावेजों को सच मानें तो 5 टन के पत्थर स्कूटर से ढोए गए थे. साथ ही, इलाके में 2 हफ्ते के अंदर 100 से ज्यादा बकरियों की मौत हो गई थी. सूत्रों के मुताबिक, पन्ना इलाके में जंगल महकमे ने मोटरसाइकिल, स्कूटर, कार और जीप को कागज पर जेसीबी के रूप में दर्ज किया था.

13 फरवरी की इस खबर के मुताबिक कांग्रेस सरकार ने बुंदेलखंड पैकेज घोटाले की जांच ईओडब्ल्यू को सौंप दी है.

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अखिलेश के मन की बात

लखनऊ. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने 11 फरवरी को दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी की जीत के बाद भारतीय जनता पार्टी को आड़े हाथ लिया. उन्होंने कहा कि दिल्ली के लोगों ने भारतीय जनता पार्टी के अहंकार के खिलाफ मतदान किया है, विकास के लिए मतदान किया है. भाजपा ने चुनाव को सांप्रदायिक बनाने की भरपूर कोशिश की थी और उस की यह नफरत वाली मुहिम बुरी तरह से प्रभावित हुई है.

अखिलेश यादव ने इस जीत के लिए आम आदमी पार्टी और उस के नेताओं को बधाई दी और उम्मीद जताई कि यह चुनाव देश की राजनीतिक कहानी को बदल देगा.

सुप्रीम कोर्ट का निर्देश

नई दिल्ली. देश की बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट ने 13 फरवरी को अपने एक अहम आदेश में राजनीतिक दलों से कहा कि वे उम्मीदवारों के आपराधिक रिकौर्ड को वैबसाइटों पर भी अपलोड करें. इस आदेश का पालन न करने पर अवमानना की कार्यवाही की जा सकती है.

सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि पार्टियां उम्मीदवारों के आपराधिक रिकौर्ड को अखबारों, वैबसाइटों और सोशल साइटों पर प्रकाशित करें. इस के साथ ही सवाल किया कि आखिर राजनीतिक पार्टियों की ऐसी क्या मजबूरी है कि वह आपराधिक बैकग्राउंड वाले उम्मीदवार को टिकट देती हैं?

शराब को बताया ‘संजीवनी’

पटना. हिंदुस्तानी अवाम मोरचा के अध्यक्ष जीतनराम मांझी ने 13 फरवरी को अपने एक बयान में कहा था, ‘‘थोड़ी शराब पीना काम करने वाले मजदूरों के लिए संजीवनी के बराबर होता है, जो दिनभर कमरतोड़ मेहनत कर अपने घर लौटते हैं.’’

इस बयान पर राज्य की नीतीश कुमार सरकार की ओर से भी तीखी बयानबाजी हुई, क्योंकि इसी सरकार ने राज्य में साल 2016 में शराब को बैन कर दिया था.

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कांग्रेस ने भी जीतनराम मांझी के बयान से नाराजगी जताई. याद रहे, राज्य में शराब को बैन किए जाने संबंधी कानून जब बनाया गया था, तब प्रदेश की नीतीश सरकार में कांग्रेस भी शामिल थी.

भाजपा भी जीतनराम मांझी को कोसने में पीछे नहीं रही. भाजपा नेता और राज्य सरकार में भूमि सुधार मंत्री राम नारायण मंडल ने कहा, ‘‘लोग शराब पर बैन लगाने से खुश हैं और यह हमेशा के लिए रहने वाला है.’’

 मंत्री ने दिया अपना खून

रांची. झारखंड सरकार में स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता 13 फरवरी को राजेंद्र इंस्टिट्यूट औफ मैडिकल साइंसेज का दौरा करने पहुंचे थे. वहां उन्हें पता चला कि अस्पताल में भरती एक बुजुर्ग औरत का इलाज ब्लड बैंक में खून की कमी होने के चलते नहीं हो पा रहा था. जब मंत्री ने उन बुजुर्ग औरत के पति से इस बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि जब वे ब्लड बैंक गए तो उन से कहा गया कि खून लेने के बदले में खून देना पड़ेगा, मगर कोई भी खून देने के लिए तैयार नहीं हुआ.

यह सुन कर स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता ने खुद ही खून देने का फैसला किया और ब्लड बैंक पहुंच गए. इस के बाद उन्होंने वहां मौजूद लोगों से जरूरतमंदों को ब्लड डोनेट करने की अपील की.

झुग्गियों के आगे बनाई दीवार

अहमदाबाद. अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की 24 फरवरी की अहमदाबाद यात्रा से पहले देश में बवाल मच गया. विपक्षी दल कांग्रेस ने आरोप लगाया कि झुग्गीझोंपड़ी बस्ती को छिपाने के लिए भाजपा शासित अहमदाबाद नगरनिगम ने हवाईअड्डे के पास एक ऊंची दीवार बना दी.

कांग्रेस ने कहा कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नजर से झुग्गी में रहने वाले लोगों की गरीबी छिपाने के लिए यह दीवार खड़ी की गई, जबकि कांग्रेस के आरोपों को खारिज करते हुए नगरनिगम के अफसरों ने 14 फरवरी को कहा कि 4 फुट ऊंची और 500 मीटर लंबी दीवार बनाने के काम को डोनाल्ड ट्रंप के गुजरात दौरे से बहुत पहले मंजूरी मिल चुकी थी.

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कांग्रेस ने भाजपा को घेरा

जम्मू. जम्मूकश्मीर कांग्रेस ने कश्मीर घाटी में मुख्यधारा के नेताओं पर उन सुरक्षा अधिनियम यानी पीएसए लगाने के लिए 15 फरवरी को प्रशासन पर आरोप लगाया कि भाजपा अपने विरोधियों पर दबाव डालने की रणनीति का इस्तेमाल कर रही है.

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीए मीर ने विरोध प्रदर्शन के दौरान कहा, ‘‘यह केवल घाटी के बारे में नहीं है, भाजपा सरकार पूरे देश में अपनी नीतियों का विरोध करने वाले लोगों को फंसा रही है और पीएसए जैसे कानून का गलत इस्तेमाल कर रही है. इस कानून का पिछले 40 सालों में सब से ज्यादा गलत इस्तेमाल किया गया है.’’

जीए मीर पहले आईएएस रहे और आज के नेता शाह फैसल पर पीएसए लगाए जाने को ले कर पूछे गए एक सवाल का जवाब दे रहे थे.

संविधान की दी दुहाई

हैदराबाद. उत्तर प्रदेश के वाराणसी से मध्य प्रदेश के इंदौर के बीच 16 फरवरी को शुरू हुई ‘काशीमहाकाल ऐक्सप्रैस’ ट्रेन में एक सीट को शिव के लिए आरक्षित करने और उसे मंदिर का रूप देने पर आल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुसलमीन के मुखिया असदुद्दीन ओवैसी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधा और संविधान की प्रस्तावना की याद दिलाई.

असदुद्दीन ओवैसी ने अपने ट्वीट के जरीए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को यह बताने की कोशिश की कि संविधान इस बात की घोषणा करता है कि भारत एक, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक और गणतंत्र राष्ट्र है और रेलवे का यह कदम ‘संविधान की आत्मा’ कही जाने वाली प्रस्तावना के खिलाफ है.

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रसोई गैस : कीमत पर बवाल

कोलकाता. रसोई गैस सिलैंडर की कीमतों में हुई बढ़ोतरी के खिलाफ 14 फरवरी को मार्क्सवादी कम्यूनिस्ट पार्टी की महिला शाखा और युवा कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने शहर में 2 जगहों पर प्रदर्शन किया, जिस के चलते उत्तरी और दक्षिणी कोलकाता में यातायात गड़बड़ा गया. तख्तियां और बैनर लिए इन लोगों ने दोपहर 3 बजे से तकरीबन आधे घंटे तक राजाबाजार में एपीसी रोड को जाम कर दिया था.

गौरतलब है कि 14.2 किलोग्राम रसोई गैस सिलैंडर की कीमत 714 रुपए से बढ़ा कर 858.50 रुपए कर दी गई है, जो जनवरी, 2014 से अब तक की सब से ज्यादा बढ़ोतरी है.

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