छत्तीसगढ़ मे अचानक पड़ने वाले आयकर के छापों दबिश  से मानो प्रदेश की राजनीति पर बिजली गिर गई. छत्तीसगढ़ सरकार और आयकर विभाग  यानी केंद्रीय सत्ता आमने-सामने आ गए. आयकर विभाग के अधिकारियों पर दबाव बनाने उनकी गाड़ियां जप्त कर ली गई, सारा नाटक सुर्खिया  बनता रहा. प्रतिक्रिया दूर तलक गई . इस संदर्भ में प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को जाने अनजाने में इंवॉल्व कर दिया गया. छत्तीसगढ़ के संदर्भ में या अपने आप ने पहली घटना है जब संवैधानिक संस्था द्वारा की गई कार्यवाही पर प्रतिक्रिया इतनी तल्ख हो गई.

कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी से  छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने मुलाकात की. उन्हें इतना भी सब्र  नहीं रहा कि इस मसले पर मोबाइल पर, वीडियो कॉन्फ्रेंस पर हालात की जानकारी  दी जा सकती थी.मगर हडबडी ऐसी की सीधे सरकारी प्लेन पर दिल्ली कूच कर गए, जब मौसम बिगड़ा, तो रात राजस्थान जयपुर में गुजारनी पड़ी. यहां यह भी समझना होगा कि आयकर के छापों को क्या कांग्रेस के अध्यक्ष होने के नाते सोनिया गांधी रोक सकती है? अच्छा होता राजनीतिक परिपक्वता दिखाते हुए भूपेश बघेल मुख्यमंत्री की बहैसियत सीधे प्रधानमंत्री कार्यालय से बात करते जिसका संदेश संपूर्ण प्रदेश में सकारात्मक साबित होता.

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 मत चूको चौहान

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल कि राजनीतिक परिपक्वता यहीं पर दांव पर लग गई. जब उन्होंने केंद्रीय आयकर विभाग के छापों के बाद घबराकर प्रतिक्रिया व्यक्त करनी शुरू कर दी. ऐसे मामलों में उन्हें धीरज और समझदारी से अपने पद की गरिमा के अनुकूल व्यवहार करना चाहिए था. यह सब जानते हैं कि आयकर विभाग का छापा सीधे-सीधे छत्तीसगढ़ सरकार को परिसर में लाने के लिए था मुख्यमंत्री और कांग्रेस सरकार के चहेते लोगों पर छापे पड़ना यह संकेत था कि छत्तीसगढ़ सरकार अपनी सीमा में रहे. ऐसे में सूझबूझ  की दरकार तो यही थी कि 15 वर्षों बाद सत्ता में आई कांग्रेस पार्टी छत्तीसगढ़ में इस छापों से हमदर्दी हासिल करके दिखाती मगर छत्तीसगढ़ की जनता में इसका संदेश विपरीत चला गया मुख्यमंत्री के बड़े-बड़े सलाहकार सोते रह गए मानो उनके हाथों के तोते उड़ गए और स्वयं मुख्यमंत्री मत चूको चौहान की जगह झुक गए चौहान हो कर रह गए.

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