Corona: यहां सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियां उड़ रहीं

छत्तीसगढ़ एक ऐसा राज्य है जहां कोरोना महामारी एक हद तक काबू में है. इन पंक्तियों के लिखे जाने तक इस भीषण महामारी की चपेट में एक भी शख्स की मृत्यु नहीं हुई है. शायद यही कारण है कि छत्तीसगढ़ के शहरों में कोरोना  महामारी का भय सिर्फ सरकारी विज्ञापन, पुलिस की लाठी तक केंद्रित होकर रह गया है. बाजारों में, सड़कों पर, मोहल्लों में गांव गांव में जो दृश्य देखने को मिल रहा है वह बेहद हैरत अंगेज है. क्योंकि सोशल डिस्टेंसिंग का यहां पालन नहीं हो रहा है.दूसरी तरफ

कोरोना के तेजी से बढ़ते संक्रमण और लॉक डाउन के बीच  छत्तीसगढ़  में शराब दुकानों के खोले जाने से  कांग्रेस सरकार, सोशल मीडिया से लेकर विपक्ष के निशाने में आ गई है. सरकार के खिलाफ यह नाराजगी उस वादे के उल्लंघन को लेकर है जो विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस ने किया था, वादे के अनुसार सूबे में सरकार बनने पर प्रदेश में पूर्ण शराबबंदी लागू की जाएगी. अपने इस वादे को लेकर डेढ़ साल पुरानी यह सरकार विपक्ष के निशाने पर तो पहले से ही थी लेकिन लॉक डाउन में 45 दिन दुकान बंद रखने के बाद दुबारा ऐसे वक्त में पुनः शराब दुकान चालू किये  गये जब लोगों की यह लत छूट चुकी थी. जिससे अब एक बार फिर सबके निशाने में भूपेश बघेल सरकार आ गई है.

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और हालात यह है कि इस संदर्भ में छत्तीसगढ़ की सरकार ने मौन साध लिया है. लोगों की आलोचनाओं को झेलते हुए एक मंत्री शिव कुमार डहरिया का बयान हास्यास्पद रूप से सामने आया है कि छत्तीसगढ़ में तो शराब प्रधानमंत्री मोदी के आदेश पर बेची जा रही है .

भाजपा अर्थात विपक्ष हुआ आक्रमक

प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह ने सवाल उठाते हुए कहा  है कि कांग्रेस की सरकार शराबबंदी के नाम पर बनी है. यह एक अच्छा अवसर सरकार खो  रही है क्योंकि 40 दिन तक लोग बिना शराब के रह चुके हैं. अभी तक शराब नहीं मिलने के कारण किसी की भी मृत्यु नहीं हुई है. धारा 144 के बीच शराब दुकानों में लंबी-लंबी कतारों में सोशल के साथ ही पर्सनल डिस्टेंशिंग के उल्लंघन पर डॉ रमन सिंह ने चिंता जताई है. उन्होंने कहा कि प्रदेश की भूपेश बघेल सरकार को लोगों की चिंता नहीं है. लाइन में एक दूसरे से सट कर लोग खड़े हैं, शराब दुकान प्रारंभ कर सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जी उडा़ई जा रही है. सवाल यह है कि जब सरकार के वरद हस्त में सोशल डिस्टेसिंग की धज्जियां उड़ रही हैं तो कोरोना  विषाणु  महामारी से प्रदेश आगे कैसे बचेगा यह बड़ा सवाल है.

छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री  डॉ रमन सिंह ने  एक अन्य महत्वपूर्ण मसले पर भूपेश बघेल सरकार को घेरते हुए कहा है देश के अन्य राज्यों से आने वाले नागरिकों को, परमिशन लेकर आने वालों  को राज्य की सीमा में रोका जा रहा है. जो बिना अनुमति आ रहे हैं उन्हें ट्रक में बैठाकर छोडा़ जा रहा है.

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“क्वॉरेंटाइन सेंटर” में शराब पीकर लोग झूम रहे

दूसरे भाजपा के कद्दावर नेता पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने राजधानी  पत्रकारों से मुलाकात करके  सरकार के द्वारा शराब दुकान खोले जाने पर निशाना साधते हुए कहा कि कवर्धा में क्वॉरेंटाइन सेंटर में कोरोना के मरीज पाए जा रहे हैं. शराब पीकर के वहां  झूम रहे हैं. महिलाएं विरोध कर रही है तो उनके खिलाफ गंभीर धाराओं में मामला दर्ज किया जा रहा है. मामला तो उन अधिकारियों पर दर्ज होना चाहिए. जहां पर शराब दुकान में 5 से ज्यादा लोग नजर  आते हैं . उन्होंने एक सवाल के जवाब में  कहा भूपेश  सरकार अपनी पूर्ण शराबबंदी का वादा निभाए हम सरकार को उसके द्वारा किए गए वादे की याद दिलाते हैं.

बृजमोहन अग्रवाल ने कहा कि सरकार अन्य प्रदेशों से आ रहे प्रवासी मजदूरों को  लेकर राजनीति कर रही है, एक जिले से दूसरे जिले में लोगों को जाना है उसके लिए परमिशन नहीं मिल रही है. लोग अपना आवेदन लेकर केवल घूम रहे हैं अभी तक कितना पैसा आपने कोरोना के लिए खर्च किया है यह सार्वजनिक करे सरकार. सरकार यह भी सार्वजनिक करे कि सरकार के पास कितने मजदूरों और कितने छात्रों का आवेदन आया है, इसको सार्वजनिक करें और कितनी ट्रेन की मांग केंद्र सरकार से की है, उसे भी सार्वजनिक करें केवल गोलमोल बातें कर रही है कांग्रेस की भूपेश सरकार. उन्होंने धान खरीदी को लेकर भी सरकार को आड़े हाथों लिया. उन्होंने कहा कि किसानों को डिफरेंस की राशि देने के लिए मुख्यमंत्री ने विधानसभा में कहा था, लेकिन मई का महीना शुरू हो गया है और अभी तक उनके खाते में पैसे नहीं गए.

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Lockdown में घटा सिजेरियन डिलीवरी का आंकड़ा

पिछले कुछ सालों में देश में आपरेशन से होने वाले प्रसव में काफी इजाफा हुआ है जिससे सिजेरियन से होने वाली डिलीवरी पर सवाल खड़ा किये हैं क्यों की डॉक्टरों और अस्पतालों पर लगातार यह आरोप लगते रहें हैं की मुनाफाखोरी के चलते निजी अस्पताल सरकारी अस्पतालों के कर्मचारियों से मिलीभगत कर केस को जटिल बता कर अपने यहाँ रेफर करा लेते हैं जहाँ भारीभरकम राशि पर आपरेशन किया जाता है आपरेशन से होने वाले प्रसव के मामलों में हर केस पर 40 हजार से लेकर 1 लाख तक का खर्चा सामान्य तौर पर परिजनों से वसूला जाता है

लेकिन कोरोना के चलते पिछले 2 महीनों से लगाये गए लॉकडाउन ने प्राइवेट अस्पतालोंके साथ स्वास्थ्य महकमें के कर्मचारियों की मिलीभगत और कारगुजारियों की पोल खोल दी है। क्यों की लॉक डाउन के चलते सिजेरियन डिलीवरी के मामलों में काफी कमी आई है.

गर्भवती महिलाओं और बच्चों के मामलों पर काम करने वाली लखनऊ की संस्था सहयोग में टीम लीडर प्रवेश वर्मा नें संस्था द्वारा कराये गए अध्ययन के आंकड़े जारी किये है जिसमें आपरेशन से होने वाले प्रसव के मामलों में काफी कमी देखने को मिली है.

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उन्होंने जो आंकड़े जारी किये हैं उसमें उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में 25 मार्च से 25 अप्रैल तक 514 बच्चे पैदा हुए इसमें से मात्र 14 बच्चों का जन्म ही आपरेशन से हुआ बाकी 500 बच्चे नार्मल पैदा हुए वहीँ मध्यप्रदेश के रायसेन जिले के आंकड़ों को अगर देखा जाये तो लॉक डाउन के दौरान अप्रैल महीनें में सरकारी अस्पतालों में 12 दिनों में 52 डिलीवरी जिसमें 47 बच्चों का जन्म नार्मल तरीके से हुआ बाकी 3 बच्चे सिजेरियन के जरिये पैदा हुए

उत्तर प्रदेश के कन्नौज जिले में में अगर लॉक डाउन के दौरान होने वाले प्रसवों पर अगर नजर डाला जाए तो लॉक डाउन के बीच वहां के सरकारी अस्पतालों में कुल 285 बच्चों नें जन्म लिया जिसमें महज 23 बच्चे ही आपरेशन के जरिये पैदा हुए बाकी 262 प्रसव नार्मल ही पैदा हुए.

प्रवेश वर्मा नें बताया की सिजेरियन के जरिये होने वाले प्रसव के मामलों में यह कमी पूरे देश में दर्ज की गई है उन्होंने बताया की निजी अस्पतालों में तो 80 से 95 फीसदी प्रसव आपरेशन से ही कराये जाते थे लेकिन कोरोना के डर के चलते निजी अस्पताल अब डिलीवरी वाले केस ले ही नहीं रहें हैं ऐसे में अधिकांश डिलीवरी नार्मल तरीके से सरकारी अस्पतालों में ही हो रही हैं.

सिजेरियन में कमी का यह है कारण- देश भर में सिजेरियन के आंकड़ों में आई कमी का कारण केवल कोरोना का भय है क्यों की सिजेरियन के चलते महिला और बच्चे को 9  दिनों तक अस्पताल में में ही रुकना पड़ता है ऐसे में निजी अस्पताल डिलीवरी केस को लेने से मना कर रहें हैं क्यों की अस्पताल प्रबंधन को 9 दिनों तक महिलाओं की देखभाल करनी पड़ेगी ऐसे में अस्पताल बंद होने का हवाला केस को टरका दिया जा रहा है

सिजेरियन डिलीवरी का  क्या है गाइड लाइन  प्रवेश वर्मा नें बताया की विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्ल्यूएचओ ने सिज़ेरियन डिलीवरी को लेकर गाइड लाइन जारी किया है जिसके तहत  जितनी डिलीवरी हो रही है उसमें से महज 10 से 15 प्रतिशत ही सिज़ेरियन डिलीवरी होनी चाहिए बाकी नार्मल डिलीवरी ही होनी जरुरी है. लेकिन भरकम मुनाफाखोरी के चलते इसका उलटा होता रहा है. पर राष्ट्रीय स्वास्थ्य सर्वेक्षण में यह इससे कहीं ज्यादा पाया गया. केवल निजी अस्पतालों की बात करें तो वहां यह आंकड़ा 60% का था. राज्यवार बात करें तो तेलंगाना में यह प्रतिशत सबसे अधिक 58 है और तमिलनाडु में 34. तेलंगाना के निजी अस्पतालों में कुल प्रसव के 75% मामलों में सिज़ेरियन डिलीवरी की गई.

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डर का है खेल – जिन मरीज़ या भावी माता को डर दिखाने वाली बात से दिल्ली के अपोलो अस्पताल के डॉ. पुनीत बेदी भी सहमत हैं. एक टीवी कार्यक्रम के दौरान उन्होंने कहा, ‘अक्सर आपने डॉक्टरों को कहते सुना होगा कि गर्भनाल बच्चे के गले में फंस गयी है. सब यह बात सुनते ही डर जाते हैं. यहां सोचने वाली बात यह है कि बच्चा पेट के अंदर नाक से सांस नहीं ले रहा होता, उसे खून के जरिये ऑक्सीजन मिल रही होती है. यह बात आप अक्सर सुनेंगे पर इसका कोई मेडिकल आधार नहीं है.’

मजदूरों का दर्द : अब शहर लौट कर कभी नहीं जाऊंगा

बिहार से दिल्ली आते समय मदन की मां ने बङे प्यार से बेटे को ठेकुआ बना कर देते हुए कहा था कि परदेश जा रहे हो, भूख लगे तो खा लेना. रास्ते के लिए मां ने चूङा का भूजा भी बना कर दिया था. आंखों में हसरत लिए जब वह दिल्ली आया तो अपने एक गांव के दोस्त के कमरे पर रहने लगा. दोस्त ने ही उसे एक ठेकेदार के यहां काम पर लगाया था. मदन की जिंदगी पटरी पर चलने लगी थी. वह हर महीने वह मां को पैसे भी भेजने लगा था. उस ने सोचा था कि इस दीवाली को वह गांव जाएगा. मगर मार्च महीने में सब गङबङ हो गया. कोरोना वायरस की वजह से पूरे देश में लौकडाउन लगा तो सभी घरों में कैद हो गए. खाने तक को पैसे कम पङ गए तो उस ने एक दोस्त से मदद मांगी. लेकिन उस की हालत भी पतली थी.

जब आंसू बन जाए जिंदगी

मदन बतातेबताते रो पङा,”साहेब, बहुत परेशान हैं. एक भी रूपया नहीं है जेब में. ठेकेदार भी हाथ खङे कर चुका है. ऊपर से कोरोना से डर लगता है. मांबाबूजी फोन पर कह रहे हैं घर आ जाओ. मगर कैसे जाएं? तिलतिल कर जीने को मजबूर हैं. दिल्ली बङा ही बेदर्द शहर है. यहां कोई किसी का नहीं होता. अब गांव जा कर ही रहूंगा और वहीं कुछ काम कर के पेट पालूंगा.”

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रहनाखाना नहीं अपनों का साथ चाहिए

उधर सरकार ने श्रमिकों के लिए ट्रेनें चलाईं तो चंदन किसी तरह गांव पहुंच गया. वह 6 महीने पहले ही कानपुर काम करने आया था.

उस ने फोन पर बताया,”शहरों में बिना पैसा किसी को कोई पहचानता तक नहीं. अब कभी लौट कर शहर नहीं जाऊंगा. गांव तो थोङा खुलाखुला है पर जहां रहता था वहां दम घुटता था. अब कभी लौट कर शहर नहीं जाऊंगा.”

ट्रेन नहीं तो पैदल ही चल दिए

दिल्ली के गांधी नगर में एक गारमैंट फैक्टरी में काम करने वाला शिव कुमार पैदल ही गांव जाने को बेताब है, तो वहीं रोहिला 12-13 दिन पहले कुछ लोगों के साथ गांव की ओर निकल चुका था मगर अभी तक गांव पहुंच नहीं पाया है.

दिल्ली में 35-40 लाख के करीब प्रवासी मजदूर हैं जो गांव लौट जाना चाहते हैं. ये नहीं चाहते कि दोबारा यहां लौट कर आएं और इन के कभी न लौटने की कसम एक्सपर्ट्स को डराने लगा है.

परदेश में कोई अपना कहां

यों इन के रहनेखाने का इंतजाम दिल्ली सरकार ने कर रखा है बावजूद प्रवासी मजदूर हर हाल में गांव लौट जाना चाहते हैं.

उत्तर प्रदेश से दिल्ली आए मनोज की हालत भी कुछ ऐसा ही कुछ है. वह पहले ₹8-9 हजार महीना कमा लेता था.

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वह बताता है,”इस बात का कोई मतलब नहीं कि मैं ने यहां रह कर कितना कमाया, अब तो बस यही है कि जल्द से जल्द घर पहुंच जाऊं. मैं पिछले महीने भी गांव जाने के लिए पैदल ही निकल गया था मगर पुलिस ने पकङ कर शैल्टर होम में डाल दिया. यहां रहनाखाना तो हो रहा पर कोरोना वायरस से बहुत डर लग रहा है. कम से कम गांव तो यहां से सुरक्षित है न.”

अब गांव में ही रहूंगा

बिहार में सहरसा का रहने वाला सूरज गांव पहुंच चुका है. उस ने फोन पर बताया,”हरियाणा से गांव वापस आना आसान नहीं रहा. बहुत पापङ बेले. वहां प्लंबर का काम करता था. कमाई भी ठीकठाक हो जा रही थी. अब गांव छोडूंगा भी या नहीं कुछ कह नहीं सकते. घर के लोग अब जाने देना नहीं चाहते. मेरे दादाजी बारबार कहते हैं कि उधर की हवा ठीक नहीं. कोरोना के बाद डेंगू और फिर प्रदूषण में जीना बहुत मुश्किल हो जाएगा. सोच रहा हूं यहीं कुछ काम कर के कमाऊं.”

मनरेगा से कितनों का पेट भरेगा

पिंटू भी गांव लौट चुका है और फिर वापस दिल्लीमुंबई नहीं जाना चाहता. उस की बीवी रेखा गांव में ही मनरेगा से कमाई कर लेती है.

वैसे भी गांव में बङी संख्या में मजदूर मनरेगा से जुङे हैं पर समय पर भुगतान नहीं मिलने के कारण परेशान हो जाते हैं.

हालांकि महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून (मनरेगा) के तहत वृद्धि 1अप्रैल से सरकार ने कर दी है और इस के तहत मनरेगा के लिए राष्ट्रीय औसत मजदूरी ₹182 से बढ़ कर प्रतिदिन ₹ 202 हो जाएगी.

मनरेगा के तहत अभी 13.62 करोङ जौब कार्डधारक हैं और योजना के जरीए ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को प्रतिदिन की मजदूरी और साल में 100 दिन रोजगार की गारंटी दी जाती है. अब जब लाखों की तादाद में शहरों में रहने वाले प्रवासी मजदूर अपनेअपने गांव लौटेंगे तो जाहिर है इस से रोजगार की स्थिति भयावह ही होगी. मजदूरों को काम मिलना आसान नहीं होगा.

बिहार की स्थिति और भी भयावह

इस में बिहार की स्थिति तो और भी भयावह है. बिहार सरकार ने साल 2017-18 में ₹ 168 मनरेगा के लिए मजदूरी तय की थी. इस के 3 साल में सरकार ने महज ₹3 ही बढ़ाए जो अब 2019-20 में ₹171 ही तय की गई है. ऐसे में एक मजदूर खुद और परिवार का पेट कैसे पालेगा, यह सोचने वाली बात है.

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उधर, इस महामारी के बीच सरकारी राहत फिसड्डी ही साबित हुई है तिस पर केंद्र और राज्य सरकारों ने पैट्रोल व डीजल के दामों में भी बढ़ोतरी कर दी है. जाहिर है, इस से महंगाई भी बढ़ेगी ही.

मगर फिलहाल तो देश कोरोना वायरस की जद में है और आम लोगों की तरह देश के तमाम राज्यों के मजदूर यही चाहते हैं कि जान बच जाए बस. अभी तो उन का गांव और अपनों का साथ मिलना ही काफी है.

कोरोना ने किया आइसक्रीम बिजनेस का कबाड़ा

इस साल गर्मियों के मौसम का सबसे पसंदीदा आइसक्रीम व्यवसाय कोरोना वायरस की चपेट में आ गया है. लौक डाउन की बजह से इस व्यवसाय को करोड़ों रुपए का घाटा हुआ है और इस व्यवसाय से जुड़े लाखों लोग बेरोजगार हो गए हैं.

आइसक्रीम कारोबार के लिए मार्च, अप्रेल,म‌ई और जून के चार महीने  का समय सबसे ज्यादा आमदनी वाला सीजन होता है. इन्हीं महिनों में शादी विवाह और विभिन्न प्रकार के समारोह होने के कारण पूरे कारोबार का पचास फीसदी बिजनेस होता है. यही कारण है कि इसके कारोबारी इस सीजन का आठ माह इंतजार करते हैं. 25 मार्च से लौक डाउन के शुरू होते ही आइसक्रीम और कोल्ड ड्रिंक का व्यवसाय पूरी तरह  पटरी से उतर गया है.

आइसक्रीम कारोबार से जुड़े लोगों का कहना है कि करोड़ों रुपए मूल्य की आइसक्रीम और कच्चा माल फैक्ट्रियों में रखा हुआ है, लेकिन पार्लर बंद रहने से सप्लाई नहीं हो पा रही है.ग्रीन जोन में भी आइसक्रीम सप्लाई की अनुमति न होने से तैयार माल खराब होने की कगार पर है.

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लौक डाउन के दौरान अकेले मध्यप्रदेश में करीब 150 करोड़ का नुक़सान आइसक्रीम कारोबारियों को हुआ है.प्रदेश में आइसक्रीम की खपत भोपाल, इंदौर, ग्वालियर, जबलपुर में सबसे ज्यादा होती है.इंदौर और भोपाल शहरों में अलग अलग कंपनियों के करीब 80 डिस्ट्रीब्यूटर हैं और हर साल रोजाना आठ से दस लाख की बिक्री होती है.लेकिन इस वार इस कारोबार पर कोरोना की माश्र पडी है. इंदौर के टाप एन टाउन के डिस्ट्रीब्यूटर दर्पण हसीजा के अनुसार इस सीजन में बड़ा नुक़सान हुआ है. अब उम्मीद यही कर रहे हैं कि 17 म‌ई के बाद कुछ रिकवरी इस कारोबार में हो सके.ग्वालियर  के बाडीलाल कंपनी के संदीप जैन के मुताबिक रेस्टोरेंट,बार, शापिंग मॉल, पार्लर आदि बंद होने से कारोबार का कबाड़ा ही हो चुका है.

18 फीसदी टेक्स स्लैब से जुड़े इस कारोबार में कारोबारियों को तो करोड़ों का नुक़सान हुआ ही है, इस व्यवसाय से जुड़े लेबर भी लौक डाउन में अपने अपने घर की ओर पलायन कर गये हैं. भोपाल के हबीबगंज स्टेशन इलाके में ठेला गाड़ी चलाने वाले मनमोहन चौरसिया बताते हैं कि लौक डाउन में आइसक्रीम का काम बंद रहने से रोज़ी रोटी का संकट खड़ा हो गया था, इसलिए मजबूरन वे अपने गांव वापस आ गये हैं.

लौक डाउन की बजह से वर्फ की फैक्ट्रियों में भी ताले लटके हुए हैं. आइस फैक्ट्री के संचालक संदीप जायसवाल का कहना है कि मार्च के आखिर में ही वर्फ की मांग शुरू हो जाती है, लेकिन लौक डाउन लागू होते ही न इस वार आर्डर मिले और न ही फैक्ट्री चालू हो सकी. फैक्ट्री  से हर साल छोटे छोटे व्यवसायी भी वर्फ ले जाकर गांव कस्बों में बेचते थे, जो इस वार पूर्ण रूप से बंद है. मटका कुल्फी का धंधा गांव और कस्बाई इलाकों में काफी लोकप्रिय है और इनसे जुड़े लोगों के लिए फायदेमंद भी है . राजस्थान से क‌ई लोग मध्यप्रदेश के गांवों में आकर मटका कुल्फी बनाने एव बेचने का काम करते हैं. होली के बाद से ही ये गांव, कस्बों में आ जाते हैं, परन्तु इस वार  मटका कुल्फी का धंधा शुरू नहीं कर पाए. लौक डाउन  होने से ऐसे लोग बेकारी में समय काट रहे हैं. वर्फ फैक्ट्रियां बंद होने के बावजूद उल्टे लाखों रुपए के विजली बिल उनके मालिकों को थमाये जा रहे हैं. कमोवेश यही हाल कोल्ड ड्रिंक कंपनियों का है.

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आइसक्रीम और कोल्ड ड्रिंक व्यवसाय से जुड़े लोग भी सरकार से अब राहत की मांग करने लगे हैं.उन्हे अब सरकार से यही आस लगी है कि 17 म‌ई के बाद इस सेक्टर को भी पूरी छूट दी जाय, जिससे  एक डेढ़ महिने के बचे हुए सीजन में कुछ भरपाई हो सके.

औरतें, शराब और कोरोना

आजकल एक चुटकुला बहुत वायरल हो रहा है और वह यह कि लोग तो लॉक डाउन का पालन कर पा रहे हैं लेकिन सरकार नहीं कर सकी. तभी तो सरकार ने लॉक डाउन के बावजूद चालीस दिनों से बंद शराब की दुकानों को खोलने का फैसला किया ताकि देश की आर्थिक स्थिति को संभाला जा सके. जिन्हें अब तक नाकारा शराबी समझा जाता था अब वही देश की अर्थव्यवस्था को संभालेंगे. चुटकुलों में तो शराबियों को बाहुबली के रूप में भी दिखाया जा रहा है जो गिरती हुई इकोनामी को संभालने के लिए आगे आए हैं.

लेकिन बाहुबली क्या मर्द ही हैं. उन औरतों का क्या जो पीती हैं? क्या उनको भी हमारा समाज इसी तरह स्वीकार कर सकता है? आदमी पिए और पीकर चाहे दंगा करें या मारपीट उसे इस बात की छूट मिल जाती है कि उसने पी रखी है. लेकिन जब एक औरत पीती है तो  समाज को उसे स्वीकारने में काफी दिक्कत होती है. समाज को यह दिक्कत कम है कि करोड़ों औरतों के पति पिता बेटे क्यों शराब पीते हैं क्योंकि ऐसा होता  तो सरकार दुकानें ही नहीं चलने देती जैसे ड्रग्स की दुकानें नहीं चल सकती हैं. होना तो यह चाहिए कि शराब बिके ही नहीं लेकिन टैक्स की खातिर न केवल शराब जम कर बिकवाई जाती है, जगह जगह दुकानें मंदिरों की तरह खुलवाई जाती हैं.

समस्या लड़कियों से है कि वे पीती हैं  मतलब बिगड़ी हुई हैं.

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शराब या सिगरेट पीना औरत के चरित्र से जोड़ दिया जाता है. जो औरतें पीती हैं उन्हें गलत नजर से देखा जाता है. शायद इसीलिए आजकल की युवा लड़कियां जो ज्यादातर शराब और सिगरेट दोनों के शौक रखती हैं और पीने से कोई गुरेज नहीं करतीं, वह अपने अपने बॉयफ्रेंडों की आढ़ में पी लिया करती थीं. लेकिन जब से यह लॉक डाउन हुआ है, तब से बॉयफ्रेंड से मिलना भी दूभर हो गया है. सब अपने-अपने घरों में बंद हैं. तो ऐसे में जिन औरतों को पीने का शौक है उनका क्या हो? ये लड़कियां बराबरी की होड़ में शराब सिगरेट पीने लगती हैं, इसमें संदेह नहीं.

शराब की लाइन में लड़कियां

हाल ही में एक फोटो वायरल हुई जिसमें करीब छह – सात लड़कियां एक साथ शराब की लाइन में लगी, बोतल खरीदने के लिए अपनी बारी का इंतजार कर रही हैं. यह नजारा हमारे देश के लिए वाकई हैरान करने वाला था. तभी तो सभी इनकी फोटो खींचने लगे, वीडियो बनाने लगे, पुलिसकर्मी भी इनके आसपास घूमने लगे, और तो और न्यूज़ चैनल वाले भी वहां पहुंचकर इन लड़कियों का “मैडम, मैडम” पुकार कर इंटरव्यू लेने लगे.

बौखला गया देश

कैसा लगा होगा इन्हें? क्या शराब की दुकान की लाइन में लगने पर उन्हें संकोच हुआ होगा? क्या इन्हें इस बात का अनुमान होगा कि सबकी नजरें आकर इन पर ही टिक जाएंगी? सब लोगों का इनके प्रति ऐसा व्यवहार – लोगों की घूरती नजरें, कुछ खुसफुसाहट, तरह तरह की बातें बनाना, इनके बारे में होते चर्चे… कितना अजीब लगा होगा कि जब आज देश की सभी शराब की दुकानों के खुलते ही सारे मर्द एक दूसरे के ऊपर चढ़कर दुकान की खिड़की तक पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं; सोशल डिस्टेंसिंग को ताक पर रखकर सब पुलिस वालों की बात को भी अनसुना कर रहे हैं, तब ऐसे में यह कुछ लड़कियां जो सोशल डिस्टेंसिंग मेंटेन करते हुए अपनी जगह पर खड़ी अपनी बारी का इंतजार कर रही है तो उनके प्रति हमारे देश में बात का बतंगड़ क्यों बन रहा है? और तो और सेलिब्रिटीज भी इनके बारे में टिप्पणी करने से बाज नहीं आ रहे. मशहूर निर्देशक रामगोपाल वर्मा ने इसी फोटो को ट्वीट करते हुए लिखा की खुद शराब की दुकान पर खड़ी लड़कियां कैसे खुद को शराबियों से बचाने की बात कह सकती हैं.

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इसका जवाब प्रसिद्ध गायिका सोना महापात्रा ने दिया और कहा कि आप जैसे लोगों को सही अर्थों में शिक्षित होने की आवश्यकता है ताकि वह समझ सकें कि शराब पीने में किसी प्रकार के लिंग भेद की जरूरत नहीं. जरूरत है तो यह समझने की कि शराब पीकर हिंसक होना गलत है.

किसी काम के नहीं आजकल के ये बॉयफ्रेंड

हमारे देश में आज भी शराब या सिगरेट पीने वाली लड़की को हेय दृष्टि से देखा जाता है. उसके चरित्र को गलत आंका जाता है. यदि वह पीती है तो इसका मतलब यह है कि वह इजीली अवेलेबल है. मर्द पिए तो कोई बात नहीं, ये उसका शौक ठहरा लेकिन अगर औरत पिए तो लांछन सीधा उसके चरित्र पर उठता है. इसीलिए अक्सर लड़कियां अपने बॉयफ्रेंड से शराब की बोतलें मंगा लेती हैं और अपना शौक घर बैठे पूरा कर लेती हैं, बिना अपने चरित्र को समाज में गिराए हुए. लेकिन आजकल के बॉयफ्रेंड भी किसी काम के नहीं रह गए हैं.

नहीं रहीं शिवलरी

जब लड़कियां कहती हैं कि हम हर काम में लड़कों के बराबर हैं तो लड़के भी अपनी शिवलरी भूलकर लड़कियों के साथ एकदम बराबरी करने लगे हैं. अब आज के बॉयफ्रेंड अपनी गर्लफ्रेंड के लिए दरवाजा खोलना या डाइनिंग टेबल की कुर्सी सरकाना या फिर खाने का बिल अदा करना अपनी ड्यूटी नहीं समझते हैं. इसमें भी वह अपनी गर्लफ्रेंड के साथ बराबर चलते हुए बिल को भी आधा-आधा करना चाहते हैं.

जो हुआ अच्छा हुआ

अगर इन लड़कियों के बॉयफ्रेंडों ने इनका साथ दिया होता तो इन्हें क्या जरूरत थी इस तरह लाइनों में खड़े होकर शराब खरीदने की? हो सकता है इन्हें भी घर बैठे ही शराब मिल जाती और बात वहीं खत्म हो जाती. लेकिन एक तरह से अच्छा ही हुआ. बदलते हुए देश को यह तस्वीर देखनी भी बेहद जरूरी है. जैसे लाखों मर्द लाइनों में खड़े होकर शराब खरीदने की उत्सुकता दिखा सकते हैं वैसे ही मुट्ठी भर औरतें क्यों उनके साथ लाइन में खड़े होकर अपने लिए शराब नहीं खरीद सकतीं? आखिर दोनों ही इंसान हैं. जैसे एक ने पी, वैसे ही दूसरे ने. संस्कृति और संस्कारों का भोज एक ही के कंधे पर कब तक रहेगा?

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हो सकता है की भीड़ का फायदा उठाकर कुछ लोग इनसे टकराए भी हों, इनके करीब आ गए हों, इनके शरीर पर इधर-उधर हाथ लगाया हो और धक्का-मुक्की का फायदा उठाया हो. लेकिन जब तक लड़कियां खुद अपनी जरूरतें और इच्छाएं पूरी करने के लिए बाहर नहीं निकलेंगी तब तक देश की तस्वीर बदलना मुश्किल है. क्यों आज की लड़की अपने शौक पूरे करने के लिए अपने बॉयफ्रेंड का मुंह देखे? अच्छा तो यही हुआ की लड़कियां खुद ही निकलीं और खुलेआम डटकर अपने शौक को पूरा करने की हिम्मत दिखाई चाहे एक बिल्कुल ग़लत काम के लिए ही सही.

शराब सिगरेट को किसी तरह से भी स्वीकार नहीं किया जा सकता और यह भी नहीं कि शराब के लिए लाइनें लगें. चाहे कर का नुकसान हो शराब को वैसे ही मान्यता नहीं दी जा सकती. हो सकता है कि सरकार को पैसे तो वेश्याघर चलाने, लड़कियों के अपहरण, जूए, हत्या, ड्रग्स आदि में भी मिल जाएं तो क्या उन्हें मान लिया जाए. शराब की शिकार औरतें ही हैं और वे ही इस बार इसका जीता जागता विज्ञापन बन गईं.

कोरोना के नाम पर भ्रम फैलाता अंधविश्वास

कोरोना वायरस से जहां पूरा विश्व परेशान है, वहीं सोशल मीडिया पर अंधविश्वास का बाजार गरम है. दूसरे बाहरी देशों की तरह भारत में भी कोरोना वायरस तेजी से पांव पसार रहा है, मगर दूसरी तरफ सुरक्षा के तमाम उपायों की अपील के बावजूद धर्म के ठेकेदारों द्वारा अंधविश्वास फैला कर लोगों को गुमराह किया जा रहा है.

इन दिनों कैसेकैसे अंधविश्वास फैला कर लोगों को गुमराह किया जा रहा है, आप भी जानिए:

रामचरितमानस और कोरोना

सोशल मीडिया पर फैल रही इस अफवाह ने एक बार फिर 90 के दशक में फैली अफवाह की याद ताजा करा दी है, जिस में यह दावा किया गया था कि मंदिरों, घरों में रखी गणेश की मूर्ति दूध पीने लगी है. इस अफवाह की वजह से लोगों का हुजूम मंदिरों में उमड़ पड़ा था और हजारोंलाखों लिटर दूध नालियों में बहा दिया गया था.

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आज जहां कोरोना वायरस महामारी बन चुका है, इस के खतरों के बीच आजकल सोशल मीडिया पर एक अंधविश्वास खूब फैलाया जा रहा है, जिस में यह दावा किया जा रहा है कि रामचरितमानस के बालकांड के पन्नों  को ध्यान से देखने पर उन में एक बाल दिख सकता है. यह बाल उसी को दिखेगा जो धर्म के रास्ते पर चलता है या भगवान की आराधना करता है.

लोगों को बताया जा रहा है कि गंगाजल या जिस के पास गंगाजल उपलब्ध नहीं है वह घर में एक साफ लोटे में पानी भर ले और इस बाल को उस में डाल कर पूरे परिवार को यह पानी पिला दे तो उसे और उस के परिवार का कोरोना वायरस कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा.

दायां अंगूठा और हलदी

उत्तराखंड की रहने वाली रानी बिष्ट को किसी ने ह्वाट्सएप पर भेजा कि ग्राम नागेलाव, वाया पीसांगन, जिला अजमेर के एक अस्पताल में एक बालिका का जन्म हुआ. बालिका ने जन्म लेते ही बोला कि भारत में जो कोरोना वायरस संक्रमण फैला हुआ है, उस के बचाव के लिए भारत के प्रत्येक नागरिक को अपने दाएं पैर के अंगूठे के नाखून पर हलदी का लेप लगाना है. इस से कोरोना का संक्रमण खत्म हो जाएगा और सभी नागरिक सकुशल रहेंगे.

यह कह कर बालिका की उसी समय मौत हो गई. यह देख कर अस्पताल के डाक्टर भी हैरान रह गए. आप से निवेदन है कि आप भी तत्काल इस तरह का लेप अपने दाएं पैर के अंगूठे के नाखून पर लगा कर कोरोना वायरस संक्रमण से अपनी और अपने परिवार की जिंदगी बचाएं.

रानी बिष्ट ने फोन पर बताया कि कोरोना वायरस से हम लोग काफी डरे हुए हैं और इसी डर की वजह से हम ने सोचा कि चलो क्या हर्ज है इस में, सो खुद भी लेप लगाया और परिवार के दूसरे लोगों को भी लगा दिया.

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डर का माहौल 

सोशल मीडिया पर आजकल शास्त्रों और ग्रंथों का हवाला दे कर यह दावा किया जा रहा है कि इस महामारी का उल्लेख सैकड़ों साल पहले साधुसंतों ने अपने लिखित ग्रंथों में किया था और यह दावा किया था कि पृथ्वी पर कलियुग का अंत महामारी और प्रलय से होगा. लाखोंकरोड़ जीवजंतु मारे जाएंगे, इसलिए अधिक से अधिक लोग धर्म के रास्ते पर चलें और देवीदेवताओं व गुरुओं की आराधना करें.

जाहिर है, यह डर भी धर्म के उन्हीं पाखंडियों की ओर से फैलाया जा रहा है जो चाहते हैं कि लोग विज्ञान का रास्ता छोड़ कर ऊपर वाले की आराधना में लगे रहें, पूजापाठ करें जिस से वे तो मजे में रहें, जनता लुटतीपिटती रहे.

सिलबट्टे का शोर

ग्रामीण क्षेत्रों में एक अंधविश्वास जोरों पर है. इस में एक सिलबट्टे पर किसी बरतन या बालटी को रख कर उसे गोबर से पाट दिया जाता है. कुछ देर बाद उस बरतन को पकड़ कर उठाने के लिए बोला जाता है.

अफवाह फैला दी गई है कि बरतन को पकड़ कर उठाने से अगर सिलबट्टा छूट कर नहीं गिरा तो समझो कि उस के घर कोरोना वायरस का असर नहीं होगा. जिस का सिलबट्टा हट कर गिर जाएगा उसे खतरा है और इस के लिए उसे हवन व पूजापाठ कराना होगा.

यह एक कोरा अंधविश्वास है जो भौतिकी के सिद्धांत पर आधारित है. विशेषज्ञ मानते हैं कि गोबर भारी होता है और सिलबट्टे और बालटी के बीच आने से वैक्यूम बन जाता है यानी इस में हवा का दबाव होता है जो सिलबट्टे और बालटी को मजबूती से जकड़ लेता है.

यह थ्योरी भी उसी सिद्धांत पर काम करती है जो एक गिलास में भरे हुए पानी पर कागज रख कर उलटा करने पर भी गिलास में से पानी के नहीं गिरने जैसी होती है. यह कोई चमत्कार नहीं है, बल्कि विज्ञान है.

ऐसे बचें कोरोना से

दुनियाभर के वैज्ञानिकों और स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने जोर दे कर कहा है कि कोरोना वायरस का संक्रमण एक इनसान से दूसरे इनसान में होता है. कोविड 19 नामक यह बीमारी संक्रमित आदमी के संपर्क में आने, खांसने और छूने के बाद उस वायरस के मानव शरीर में प्रवेश करने की वजह से होती है.

अभी तक इस की कोई वैक्सीन या दवा उपलब्ध नहीं है और जितना संभव हो लोगों से हाथ मिलाना, उन के करीब जाना, भीड़भाड़ वाले इलाके से दूर रहना आदि से ही इस का बचाव संभव है.

विशेषज्ञों ने लोगों को इस दौरान धार्मिक जगहों पर भी जाने से मना किया है तो जाहिर है कि इस बीमारी का इलाज तथाकथित देवीदेवता आदि के हाथों में तो कतई नहीं है.

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बेहतर यही होगा कि सरकार और स्वास्थ्य विशेषज्ञों के सुझावों को मानें, तभी इस जानलेवा बीमारी से बचा जा सकता है. धार्मिक अंधविश्वास के चक्कर में तो कतई न पड़ें.

यह बीमारी पूरी दुनिया में अब भयंकर रूप ले चुकी है. हर देश के डाक्टर, नर्स और दूसरे मुलाजिम युद्ध स्तर पर इस बीमारी से जूझ रहे हैं. उन सब की यही अपील है कि घरों में रहें.

आवारा जानवरों का बढ़ता कहर

लेखक- नीरज कुमार मिश्रा

उत्तर प्रदेश में सरकार ने पूरी तरह से पशु हत्या पर बैन लगाया हुआ है, जिस के चलते गैरजरूरी पशुओं की तादाद बहुत बढ़ रही है. अपने राजनीतिक फायदे और पंडों को लुभाने के लिए सरकार सरकारी खजाने से बड़ीबड़ी और भव्य गौशालाएं भी बनवाती है और गायों की रखवाली के लिए एक अच्छीखासी तनख्वाह पर स्टाफ भी रखा जाता है.

आवारा पशु, जिन में आमतौर पर बूढ़ी, बीमार गाएं और सांड़ होते हैं और जिन से न तो दूध मिल पाता है और न ही वे बोझ ढोने लायक होते हैं, पर ये जानवर तथाकथित गौरक्षकों के लिए तुरुप का पत्ता जरूर साबित होते हैं.

धर्म से जुड़े ये जानवर जब हमारी फसलों को खाने लगें और हमारे बच्चों को चोट पहुंचाने लगें तब तो हमें इस दिशा में कोई ठोस कदम उठाने की जरूरत होती है, क्योंकि किसी भी जानवर की जान से ज्यादा कीमती इनसान की जान होती है.

सरकार ने बूचड़खाने पर रोक लगा रखी है. इस वजह से भी आवारा पशुओं की तादाद बढ़ती जा रही है, शहरों में कांजीहाउस होते भी हैं, तो उन की व्यवस्था बदतर ही होती है.

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उदाहरण के तौर पर जनपद लखीमपुर खीरी को ही लें. यह एक तराई का इलाका है, यहां की मुख्य फसल वैसे तो गन्ना है, पर बहुत से किसान ऐसे भी हैं, जो केले और दूसरी सब्जियां भी उगाते हैं.

इन सारे किसानों की फसलों को इन आवारा जानवरों से खतरा होता है. रात के समय जानवरों का झुंड पूरी फसल ही बरबाद कर जाता है. जो बड़े और पैसे वाले किसान हैं, वे तो अपनी फसलों की पूरी तरह से तारबंदी करा लेते हैं, पर जो छोटे किसान हैं, उन के पास अमूमन तारबंदी कराने के भी पैसे नहीं होते. ऐसे में ये आवारा जानवर ऐसे किसानों के लिए बहुत बड़ी समस्या ले कर आते हैं.

खीरी जिले के एक गांव मालपुर के रहने वाले फागुलाल बताते हैं, ‘‘पहले तो हमारी फसलों को नीलगायों से खतरा था, पर अब तो ये आवारा पशु इतना बढ़ गए हैं कि रात में भी हमें अपनी फसल बचाने के लिए खेत में ही मचान बना कर सोना पड़ता है.’’

चौकी के श्रीराम का कहना है, ‘‘हमारी हालत तो तब खुदकुशी करने जैसी हो जाती है, जब खूनपसीना बहा कर हम फसल बोते हैं और ये आवारा जानवर आ कर उस फसल को खराब कर देते हैं.’’

आवारा पशु सड़क पर होने वाले हादसों के लिए सब से ज्यादा जिम्मेदार होते हैं. ये आवारा पशु सड़कों के बीचोंबीच खड़े हो जाते हैं और गाडि़यों व बच्चों के आने पर बेतहाशा इधरउधर भागते हैं. नतीजतन, वे खुद भी चोटिल होते हैं और हादसों को भी अंजाम देते हैं.

खीरी जिले में ही गोला नामक कसबा है, जो धार्मिक लोगों के लिए आस्था का केंद्र बन गया है. भक्त लोग इसे ‘शिवजी की नगरी’ और ‘छोटी काशी’ के नाम से भी जानते हैं.

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यहां पर गाय और सांड़ों की भरमार है. ये सांड़ कभी भी आतंकित हो कर इधरउधर भागते हैं और लोगों को घायल कर देते हैं.

गोला बाजार इलाके में एक औरत खरीदारी कर रही थी, तभी वहां पर एक सांड़ आया और उस औरत पर हमला करने लगा. वह औरत सहम कर अपना सामान वहीं छोड़ कर भागी, तो सांड़ ने उस की साड़ी को ही नुकीले सींगों में फंसा लिया और उसे खींचता ही चला गया, जिस से उस औरत की साड़ी उतर गई और वह शर्म से गड़ गई.

अपनी इज्जत छिपाने के लिए उस औरत ने पास के घर में शरण ली. इस के बावजूद उस सांड़ को किसी ने नहीं मारा. आखिरकार ‘शंकरजी की नगरी है’ तो भला सांड़ को मारे भी कौन?

भारत में गौरक्षा के नाम पर जितनी राजनीति हुई, उतनी किसी और मुद्दे पर नहीं हुई. पलिया कलां के सब्जी बाजार में भी आवारा पशु सब्जी की तलाश में आ जाते हैं और दुकानदारों का अच्छाखासा नुकसान कर देते हैं.

एक गाय ने जब किसी मुसलिम दुकानदार की सब्जी में मुंह मारा, तो उस दुकानदार ने गाय को मारने के लिए डंडा उठाया, पर उस के एक हिंदू पड़ोसी दुकानदार ने उसे टोक दिया और कहा, ‘अरे, गौमाता ने तेरी सब्जी खा ली है. अब तेरे धंधे में बरकत ही बरकत आएगी,’ उस का इतना कहना ही था कि तब तक उसी गाय ने हिंदू दुकानदार की सब्जी में मुंह मार दिया. तब क्या था, उस हिंदू दुकानदार ने गाय पर डंडों की बारिश कर दी. अब यह दोहरा मापदंड किसलिए?

नुकसान हर हाल में नुकसान ही है. उस में भी धर्म की दीवार बना देने से कोई फायदा होता नहीं दिखता, पर फिलहाल योगी आदित्यनाथ की सरकार में सभी डरे हुए हैं. डरे इसलिए भी हैं कि सड़क पर हमारी गाड़ी से कोई और भले ही टकरा जाए, पर कोई गाय न टकराए, क्योंकि अगर गाय टकरा गई तो समझो, गौरक्षा दल वालों को अपनी राजनीति चमकाने के लिए आप ने कुछ दिनों के लिए एक मुद्दा दे दिया.

उत्तर प्रदेश के कई शहरों में तो इन पशुओं ने इतना आतंक मचाया है कि यहां के लोग इन पशुओं को पकड़ कर सरकारी स्कूलों में बंद करने पर मजबूर हो गए.

आवारा पशुओं की तादाद बढ़ाने में पंडितपुरोहितों का भी बहुत योगदान है. पंडितों के मुताबिक, जब घर का कोई बुजुर्ग मर जाता है, तो उस के नाम पर गाय दान कर देने से मरने वाले की आत्मा को शांति मिलती है और उस की आत्मा को स्वर्ग मिलता है.

चूंकि गाय 50-60 हजार रुपए की आएगी, इसलिए लोग एक छोटी सी गाय या बछिया का दान करते हैं, जो उन को बहुत कम पैसे की मिलती है. अब इस बछिया को ले कर पंडित क्या करेगा, उस के लिए तो बछिया का पेट भरना भी मुश्किल होता है, इसलिए वह बछिया को आवारा छोड़ देता है. कुछ और आस्थावान लोग मन्नत पूरी होने पर सांड़ को छोड़ देते हैं.

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ये गाय और सांड़ देश में भारी नुकसान पहुंचा रहे हैं, जिस की गिनती कोई कर नहीं रहा. यह नुकसान खेत मालिकों को हो रहा है, दुकानदारों को हो रहा है, बाजारों को हो रहा है, सड़क परिवहन को हो रहा है. फायदा सिर्फ गाय की राजनीति करने वालों और गाय दान में लेने वालों को हो रहा है.

दिल्ली में शराब : जनता से ज्यादा रैवन्यू से प्यार

तुम दे कर मधु का प्याला मेरा मन बहला देती हो, उस पार मुझे बहलाने का उपचार न जाने क्या होगा…

मशहूर कवि हरिवंश राय बच्चन की कविता की ये पंक्तियां आज के संदर्भ में बिलकुल सटीक बैठती हैं. कवि ने अपनी कविता में कहा है कि तुम मधु यानी शराब का प्याला दे कर मेरा मन जरूर बहला देती हो पर यह प्याला मेरे जीवन को कोई उपचार शायद ही दे सके.

अब यह विडंबना ही है कि दिल्ली के बुराङी स्थित नत्थूपुरा मोङ पर नशा मुक्ति केंद्र के ठीक आगे शराब की दुकान है. 1-2 साल पहले ही शराब की यह दुकान खुली थी तो खासकर स्थानीय महिलाओं ने कङा विरोध जताया था. इस मामले पर जम कर राजनीति भी हुई थी. तब क्षेत्र के आम आदमी पार्टी विधायक संजीव झा ने पहले तो इस ठेके को बंद करवा दिया पर बाद में ठेका क्यों और किस के आदेश पर खुला, यह बताने को कोई तैयार नहीं.

अब जबकि दिल्ली सहित देश के अन्य राज्यों में करोना वायरस के कहर के बीच शराब की दुकानें खुल गई हैं तो लोग लौकडाउन की धज्जियां उड़ाते हुए सुबह से ही लंबी लाइनों में लग गए.

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समाजिक दूरी का बना मजाक

शराब के ठेके खुलने के आदेश के बाद राजधानी दिल्ली के कई इलाकों में भी बेवङों की भीङ देखी गई.

बुराङी के संतनगर और नत्थूपुरा में सुबह से ही लोग लाइनों में लग गए तो वहीं लक्ष्मी नगर, करोलबाग, रोहिणी आदि जगहों पर लगभग आधा किलोमीटर तक लगी लोगों की लंबी लाइन पहले दिन से ही डराने लगा है.

दिल्ली के लक्ष्मी नगर स्थित शराब की दुकान में हालात इतने बेकाबू हो गए कि खबर है कि पुलिस को लाठी चार्ज तक करनी पड़ी.

यहां एकएक लोग कार्टून भरभर कर बियर की बोतलें ले जाते दिखे.

संतनगर में एक 72 साल का व्यक्ति भी लाइन में लगा था.

इतने सुबहसुबह क्यों आए यहां? क्या कोरोना वायरस से डर नहीं लगता? उस ने छूटते ही बताया,”काहे का डर? एक न एक दिन तो मरना ही है फिर कोरोनाकोरोना क्या करें? लौकडाउन से पहले रोज ही शराब पीता रहा हूं मैं. देखो इतनी उम्र में भी जिंदा हूं. जिस दिन मरना होगा मर जाऊंगा.”

वहां एक 18-19 साल का लङका भी लाइन में खङा था. खुद की पहचान छिपाने के लिए गमछा से अच्छी तरह मुंह ढंके हुए था. कोरोना वायरस की वजह से मुंह में मास्क लगाना जरूरी तो है पर उस ने अपनेआप को छिपाने के लिए कस कर गमछा बांधे था.

शराब अपने लिए खरीद रहे हो? पूछने पर वह भङक गया. बोला,”हम अपने पैसे से शराब खरीद रहे हैं, आप क्यों पूछ रहे हो?”

मुद्दे पर राजनीति हो गई शुरू

अब दिल्ली में शराब के ठेके को ले कर राजनीति भी गरम हो गई है. भाजपा ने इसे केजरीवाल सरकार की विफलता और शराब माफियाओं के आगे झुकना बता रही है.

दिल्ली भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता राहुल त्रिवेदी कहते हैं,”एक तरफ पूरी दिल्ली रैड जोन में है, वहीं दूसरी तरफ केजरीवाल सरकार ने दिल्ली में शराब के ठेके खोलने का जो निर्णय लिया है वह पूरी तरह सरकार का गलत निर्णय है. बिना कोई इंतजाम, बिना कोई पूर्व तैयारियों के यह आदेश दिल्ली सरकार को नहीं देनी चाहिए थी. उस दिल्ली में जहां रोज सैकड़ों मामले कोविड-19 के आ रहे हैं, वहां शराब के ठेके खुलने से स्थिति नियंत्रण के बाहर आ जाएगी.”

यह पूछने पर कि दिल्ली सरकार ने तो केंद्र की मंजूरी के बाद ही ठेके खोलने के आदेश जारी किए हैं, तो राहुल त्रिवेदी कहते हैं,”देखिए, यह सही है कि शराब से राजस्व की प्राप्ति होगी पर दिल्ली रैड जोन में है. केंद्र ने ग्रीन और औरेंज जोन में ठेके सशर्त खोलने की अनुमति दी है. रैड जोन में ठेके खोलने के लिए राज्य सरकारों को अपने विवेक पर निर्णय लेने को कहा है. ऐसे में जब पूरी दिल्ली में रैड जोन है तो शराब के ठेके खोलना जनता को महामारी में धकेलने जैसा है.

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“पूरी दिल्ली से यह खबरें आ रही हैं कि शराब के ठेकों पर लंबीलंबी लाइनें लगी हैं. कहींकहीं तो पुलिस बल का प्रयोग तक करना पङ रहा है. यह केजरीवाल सरकार का गलत निर्णय है.”

शराब दुकानों पर भीड़ डरा रही है

दिल्ली महिला कांग्रेस की प्रदेश अध्यक्ष, शर्मिष्ठा मुखर्जी कहती हैं,”एक महिला होने के नाते केजरीवाल सरकार की इस निर्णय की निंदा करती हूं. एक तरफ दिल्ली की महिलाएं जरूरी राशन जुटाने के लिए सुबह लाइनों में लगती हैं, वहीं दिल्ली के ठेकों पर पुरूषों की भीङ देख कर हैरान हूं. आज पूरी दिल्ली रैड जोन में है. शराब दुकानों पर भीङ काफी डरावनी है.

“मुख्यमंत्री केजरीवाल ने यह कहा था कि दुकानों में मार्शल तैनात होंगे पर न तो कहीं मार्शल दिखे और न ही सुरक्षा के कोई खास इंतजाम. सोशल डिस्टैंसिंग का माखौल उङ रहा है सो अलग.”

एक नई मुसीबत

औल इंडिया संगठित कामगार, उत्तर भारत की प्रभारी व पूर्व दिल्ली प्रदेश महिला कांग्रेस की प्रदेश अध्यक्ष, साईं अनामिका कहती हैं,”केजरीवाल सरकार के इस निर्णय से हैरान भी हूं और हताश भी. एक तरफ लोग कोरोना वायरस के कहर से परेशान हैं, तो वहीं दूसरी ओर यह नई मुसीबत. ठीक है, इस से सरकार को आबकारी राजस्व की प्राप्ति होगी पर लोगों की जान की कीमत से बढ़ कर कतई नहीं.”

बोलने से बचते रहे

उधर चौतरफा आलोचनाओं में घिरी केजरीवाल सरकार के मंत्री, विधायक इस मुद्दे पर कुछ भी बोलने से बचते दिखे.

दिल्ली के तीमारपुर से विधायक और आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता दीलिप पांडेय ने पहले तो यह पूछा कि किस विषय पर बात करनी है और जब यह बताया कि दिल्ली सरकार ने शराब के ठेके खोलने की अनुमति क्यों दी जबकि पूरी दिल्ली रैड जोन में है, तो उन्होंने कुछ भी कहने से इनकार कर दिया.

इस साल दिल्ली विधानसभा चुनाव में भारी जीत दर्ज करने वाले मुख्यमंत्री केजरीवाल की तारीफ मुफ्त बिजली, पानी और डीटीसी में महिलाओं को मुफ्त यात्रा कराने पर काफी हुई थी. मगर शराब के ठेके खोलने को ले कर दिल्ली सरकार बैकफुट पर है और विरोध करने वाले खूब तंज कस रहे हैं.

सोशल मीडिया पर भी लोग केजरीवाल सरकार की खूब आलोचना कर रहे हैं. एक यूजर ने लिखा,”हमें पीने का शौक नहीं, पीते हैं राजस्व जुटाने के लिए…”

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मगर यह बात सिर्फ दिल्ली की ही नहीं है. राजस्व जुटाने के नाम पर लोग केंद्र सरकार पर भी जम कर भड़ास निकाल रहे हैं. यूजर्स कह रहे हैं कि अभी स्थिति गंभीर थी तो यह निर्णय लेना कतई उचित नहीं था, वह भी तब जब बिहार में शराबबंदी है और राज्य ने इस बड़े राजस्व प्राप्ति के रास्ते बंद कर भी विकास के काम किए हैं.

तो क्या हर मोरचे पर तारीफ बटोरने वाले दिल्ली के मुख्यमंत्री को पूरी दिल्ली में भी शराबखोरी पर रोक लगा कर शराबबंदी लागू नहीं करनी चाहिए?

केजरीवाल बनाम मोदी, मिले सुर मेरा तुम्हारा तो सुर बने हमारा

तीसरी बार दिल्ली के मुख्यमंत्री की कुरसी पर काबिज अरविंद केजरीवाल की आवाज अब भारतीय जनता पार्टी के सुप्रीमो व देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विरोध में नहीं, बल्कि सहानुभूति में उठने लगी है. वे मोदी की तारीफ करते नहीं अघाते.

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने पीएम बैठक के बाद एक ट्वीट में कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लौकडाउन बढ़ा कर सही फैसला किया है. आज भारत कई विकसित देशों से बेहतर हालत में है, क्योंकि हम ने शुरुआत में ही लौकडाउन कर दिया था. अगर हम इसे अभी हटाते हैं तो इस से अब तक हुए फायदे बेकार चले जाएंगे.

उन्होंने यह भी कहा कि लौकडाउन से कोई भी जिला कोरोनामुक्त नहीं होने वाला है. जब तक दवाई नहीं आएगी, कोई जिला या राज्य या फिर पूरी दुनिया कोरोनामुक्त नहीं होगी. जब दवाई आएगी तब देखा जाएगा. अभी तो हमें कोरोना के साथ जीने के लिए 2 चीजें करनी है- पहली – इस के फैलाव को रोकना है और दूसरी – मौत पर कंटोल करना है.

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मोदी सरकार की तारीफ करते हुए मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा कि 2 महीने के लौकडाउन के बाद अब अर्थव्यवस्था को खोल कर बहुत अच्छा काम किया गया.

कोरोना संकट और लौकडाउन को ले कर मोदी सरकार की ओर से उठाए गए कदमों से दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल काफी खुश हैं. उन्होंने इस बात को माना कि केंद्र की ओर से अधिकतर गाइडलाइन अच्छी हैं. स्वास्थ्य मंत्रालय की गाइडलाइन काफी फायदेमंद रहीं. हेल्थ सैंटर, कोरोना सैंटर, कोविड 19 अस्पताल, फिर होम क्वारंटीन की गाइडलाइन जारी करने सम्बंधी सभी चीजें बातचीत कर के चल रही हैं. हम ने उन्हें आइडिया दिया था.

भले ही अरविंद केजरीवाल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ कर लें, पर एक समय वह भी था जब उन को मोदी की हर बात गलत लगती थी, चाहे वह सर्जिकल स्ट्राइक का मुद्दा हो या सीएए का मुद्दा. फिर अब… उन का इस तरह तारीफ करना शायद वे मोदी से फिलहाल भिड़ने से बच रहे हैं.

पर सच तो यह है कि आने वाले दिनों में यह उन के लिए आत्मघाती साबित होगा क्योंकि जनता से किए वादे दरकिनार जो हो गए हैं, जिस के दम पर वे मुख्यमंत्री की कुरसी पर काबिज हुए थे.

मोदी सरकार की तारीफ करने के साथ ही उन्होंने कहा कि लौकडाउन बढ़ाना कोरोना का इलाज नहीं है, बस यह इस को फैलने से रोकता है.

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अगर यह सोचें कि किसी एरिया या राज्य में पूरी तरह से लौकडाउन कर दिया और वहां केस जीरो हो जाएंगे, मुश्किल है. ऐसा तो पूरी दुनिया में हो रहा है. अमेरिका, स्पेन, इटली और यूके भी इस बीमारी से अछूते नहीं हैं. इसे ले कर लोगों के अंदर एक डर बैठ गया है. जिस दिन मौत का डर निकल जाएगा, उस दिन लोगों के मन से कोरोना का डर भी खत्म हो जाएगा.

उन्होंने आगे कहा, “अगर हम दिल्ली को लौकडाउन कर के छोड़ दें तो केस खत्म नहीं होने वाले. लौकडाउन कोरोना को कम करता जरूर है, पर खत्म नहीं. इसलिए अर्थव्यवस्था को खोलने का समय आ गया है. इस के लिए दिल्ली तैयार है.”

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल अपनी परेशानी जाहिर करते हुए कहते हैं कि अगर लौकडाउन के बाद भी पौजिटिव केस बढ़ते हैं तो हम लोगों को इस के लिए तैयार रहना होगा. केंद्र सरकार को चाहिए कि पूरी तैयारी के साथ धीरेधीरे राज्यों से लौकडाउन खोले. जो रेड जोन हैं, केवल उन इलाकों को बंद रखना चाहिए.

दिल्ली ने कोरोना महामारी के दौरान बड़ी मुश्किल लड़ाई लड़ी. वे कहते हैं कि कोरोना से बचाव ही बेहतर इलाज है. पर हमें जीने की आदत बदलनी होगी.

उन्होंने कहा कि कोरोना ने सिखा दिया है कि हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर मजबूत रखो. इसलिए हमें भी अपने यहां मैडिकल रिसर्च को और मजबूत बनाना होगा.

ऐसा नहीं है कि चिंता की लकीरें सिर्फ दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के चेहरे पर ही दिख रही हैं, ऐसी चिंताओं से हर राज्य के मुख्यमंत्री जूझ रहे हैं.

एक ओर जहां पूरे देश की अर्थव्यवस्था चौपट है, वहीं आम लोगों के जीवन में भी उथलपुथल मची हुई है कि हमारा जीने का ढर्रा किस तरह का होगा. जिन लोगों की रोजीरोटी चली गई, उन्हें नए सिरे से पहल करनी होगी. गांवों की तरफ पलायन कर चुके अप्रवासी मजदूरों को वापस लाना होगा, तभी रोजगार का पहिया पुराने ढर्रे पर चल सकेगा.

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अर्थव्यवस्था को ले कर सरकार का परेशान होना लाजिम है, वहीं कारोबार को पटरी पर लाना भी किसी चुनौती से कम नहीं.

उन्होंने मोदी के साथ सुर मिलाने में ही अभी तो अपनी भलाई समझी है, पर यदि जनता मोदी सरकार से नाराज़ हो गई तो उसका खामियाजा केजरीवाल को भी भुगतना पड़ सकता है. आमतौर पर जरूरत से ज्यादा शक्तिशाली नेताओं के आगे जूनियर नेता सरेंडर कर ही देते हैं. अतः आने वाले दिनों में उन का इस तरह सुर मिलाना आत्मघाती साबित होगा.

“मदिरालय” हुए गुलजार, कोरोना को आमंत्रण!

अगर हम यह कहें कि छत्तीसगढ़ मे कांग्रेस की भूपेश सरकार ने प्रदेश की चरमरा चुकी आर्थिक व्यवस्था के मद्देनजर मदिरा दुकानों से लाॅक डाउन हटा लिया है इस तरह छत्तीसगढ़ की भूपेश बघेल सरकार ने एक तरह से “आ बैल मुझे मार” की कहावत चरितार्थ कर दी है.

दरअसल, भारत सरकार  ने तीसरे लाॅक डाउन में ग्रीन जिलों सहित आरेंज जिलों में बहुतेरी सुविधाओं के साथ शराब यानी मदिरा के जाम छलकाने की आजादी दे कर सिरे से गलत  निर्णय लिया  है.

और जैसा कि होना था संपूर्ण देश के साथ-साथ छत्तीसगढ़ में भी मदिरालय के सामने मदिरा प्रेमियों का मद चढ़ता हुआ दिख रहा हैं. सारी सोशल डिस्टेंसिंग,नियम कायदे कोरोना महामारी का भय, ध्वस्त होता हुआ दिखाई दे रहा  है .छतीसगढ में  जो ठोले (पुलिस) पहले घर से निकलने पर लाठियां भांजते  थे, वहीं पुलिस शराब भट्ठियों  में लाठी लेकर व्यवस्था संभालते हुए दिखी. सरकार की इस गैर जिम्मेदारी पूर्ण नीति के कारण देश और प्रदेश में जैसा  कोरोना महामारी संक्रमण काल का माहौल था लोगों में एक अच्छी  जागरूकता का संचार हो चुका था. वह लोगों के  इस मदिरालय पहुंचने और मेला लगाने के कारण  ध्वस्त हो गया. वहीं सरकार की नीति और नियत भी उजागर हो गई की चंद पैसों की खातिर सरकार अपनी आवाम को शराब जैसी बीमारी बेचने को  तैयार है.

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शर्मनाक! शराब की होम डिलीवरी

आपको आश्चर्य होगा कि जो काम कभी नहीं हुआ अर्थात शराब की होम डिलीवरी, कोरोना महामारी के इस भयंकर समय में छत्तीसगढ़ सरकार ने यह काम भी करने का निर्णय लिया है. यह आश्चर्य है कि गरीब जनता की हमदर्द कहलाने वाली संवेदनशील

छत्तीसगढ़ सरकार अब शराब की होम डिलीवरी करेगी. सरकार ने तैयारी की है मोबाइल फोन और व्हाट्स एप से यह आर्डर लिया जाएगा और डिलीवरी बाॅय के जरिए लोगों तक पहुंचाई जाएगी. सरकार ने अपनी दलील में कहा है कि कोरोना वायरस संक्रमण का फैलाव रोकने और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन किए जाने के मद्देनजर यह फैसला लिया गया है. और जैसा कि होना चाहिए  विपक्ष भाजपा ने शराब की होम डिलीवरी पर  आपत्ति दर्ज करते हुए आरोप लगाया है कि शराबबंदी की वकालत करने वाली सरकार डिलीवरी बाॅय के रूप में लाइसेंसधारी कोचिए की नियुक्ति कर रही है. सरकार की कथनी और करनी में बड़ा अंतर है. यहां पाठकों को यह बताना उचित होगा कि कांग्रेस पार्टी ने विधानसभा चुनाव के पूर्व प्रदेश में पूर्ण शराबबंदी की वकालत करते हुए जनता से वोट मांगा था.

हो गई है मोटी चमड़ी!

दरअसल, सत्ता सुंदरी का सुख भोगने के बाद मुख्यमंत्री भूपेश बघेल सहित कांग्रेस के के दूसरे चेहरे टी एस सिंह देव जो “बाबा” के रूप में प्रसिद्ध हैं अपने वादे भूल चुके हैं.और सत्ता के मद में आकर शराबबंदी की बात करना नहीं  चाहते  हैं. गाहे  बगाहे  अगर कोई पूछता है तो कहते हैं हमने कमेटी बना दी है अर्थात कांग्रेस पार्टी छत्तीसगढ़ में सत्ता  पर काबिज होने के बाद अपना वादा भूल चुकी है. यहां बताना लाजमी होगा कि कोरोना संकट की वजह से देशभर में लागू लाॅकडाउन के बीच राज्य सरकार ने शराब दुकानों को बंद तो कर दिया .मगर  बीते डेढ़ महीने से राज्य में शराब दुकानों के संचालन पर पूरी तरह से रोक लगी होने के बाद भी प्रदेश भर में शराब दो नंबर पर बिकती रही. इधर  जब लाॅकडाउन की मियाद 14 मई तक बढ़ाए जाने के बाद केंद्र सरकार ने नए सिरे से एडवायजरी जारी कर रेड, आरेंज और ग्रीन जोन के दायरे में आने वाले जिलों में कई तरह की आर्थिक गतिविधियों के संचालन की अनुमति तो नई एडवायजरी के आने के बाद देश के कई राज्यों की भांति गांधी की अनुशासित पार्टी कांग्रेस द्वारा  छत्तीसगढ़ में भी शराब दुकानों को  खोलने की अनुमति दी गई है.

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आबकारी विभाग की ओर से जारी आदेश में दुकान खोलने-बंद करने के लिए तय मियाद के साथ-साथ शराब बिक्री की लिमिट भी तय की गई है. इसी आदेश के बिंदु चार में विभाग ने डिलीवरी बाॅय के जरिए शराब की सप्लाई किए जाने का आदेश दिया है. डिलीवरी बाॅय की नियुक्ति प्लेसमेंट एजेंसी के जरिए होगी. शराब की डिलीवरी की दर के निर्धारण का जिम्मा मैनपावर एजेंसी से प्राप्त न्यूनतम दरों पर किया जाना तय किया गया है. अब छत्तीसगढ़ के घर घर घर बैठे ही शराब पहुंचेगी तथा आर्थिक स्थिति संभालने के नाम पर भूपेश बघेल सरकार ने शराब के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया है.

मनोवैज्ञानिक भी मानते हैं गलत

संपूर्ण देश के साथ-साथ छत्तीसगढ़ में शराब की दुकानों को प्रारंभ करने कि जहां चारों तरफ आलोचना हो रही है वही इसकी खिलाफत में भी आवाज उठ रही है साथ ही यह तर्क भी दिया जा रहा है कि एक लोकतांत्रिक जनहितकारी सरकार को शराब जैसी बुराई को खत्म करने की पहल करने का कोना काल में यह एक बेहतरीन मौका है दूसरी तरफ मनोवैज्ञानिक भी शराब को खासतौर पर इस संक्रमण कारी बीमारी के समय बेचे जाने को गलत ठहरा रहे हैं चिकित्सक का कहना है कि शराब संघ संग बैठकर पीने का एक शगल है ऐसे में कोरोना फैलने का भय और भी बढ़ जाता है वही जिस तरह शराब दुकानों  में लोगों की खूब भीड़ जुट रही है जिसके कारण महामारी को सरकार स्वयं आमंत्रण  दे रही है.

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