बिहार से दिल्ली आते समय मदन की मां ने बङे प्यार से बेटे को ठेकुआ बना कर देते हुए कहा था कि परदेश जा रहे हो, भूख लगे तो खा लेना. रास्ते के लिए मां ने चूङा का भूजा भी बना कर दिया था. आंखों में हसरत लिए जब वह दिल्ली आया तो अपने एक गांव के दोस्त के कमरे पर रहने लगा. दोस्त ने ही उसे एक ठेकेदार के यहां काम पर लगाया था. मदन की जिंदगी पटरी पर चलने लगी थी. वह हर महीने वह मां को पैसे भी भेजने लगा था. उस ने सोचा था कि इस दीवाली को वह गांव जाएगा. मगर मार्च महीने में सब गङबङ हो गया. कोरोना वायरस की वजह से पूरे देश में लौकडाउन लगा तो सभी घरों में कैद हो गए. खाने तक को पैसे कम पङ गए तो उस ने एक दोस्त से मदद मांगी. लेकिन उस की हालत भी पतली थी.

जब आंसू बन जाए जिंदगी

मदन बतातेबताते रो पङा,"साहेब, बहुत परेशान हैं. एक भी रूपया नहीं है जेब में. ठेकेदार भी हाथ खङे कर चुका है. ऊपर से कोरोना से डर लगता है. मांबाबूजी फोन पर कह रहे हैं घर आ जाओ. मगर कैसे जाएं? तिलतिल कर जीने को मजबूर हैं. दिल्ली बङा ही बेदर्द शहर है. यहां कोई किसी का नहीं होता. अब गांव जा कर ही रहूंगा और वहीं कुछ काम कर के पेट पालूंगा."

ये भी पढ़ें- कोरोना ने किया आइसक्रीम बिजनेस का कबाड़ा

रहनाखाना नहीं अपनों का साथ चाहिए

उधर सरकार ने श्रमिकों के लिए ट्रेनें चलाईं तो चंदन किसी तरह गांव पहुंच गया. वह 6 महीने पहले ही कानपुर काम करने आया था.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 महीना)
USD2
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...