पिछले कुछ सालों में देश में आपरेशन से होने वाले प्रसव में काफी इजाफा हुआ है जिससे सिजेरियन से होने वाली डिलीवरी पर सवाल खड़ा किये हैं क्यों की डॉक्टरों और अस्पतालों पर लगातार यह आरोप लगते रहें हैं की मुनाफाखोरी के चलते निजी अस्पताल सरकारी अस्पतालों के कर्मचारियों से मिलीभगत कर केस को जटिल बता कर अपने यहाँ रेफर करा लेते हैं जहाँ भारीभरकम राशि पर आपरेशन किया जाता है आपरेशन से होने वाले प्रसव के मामलों में हर केस पर 40 हजार से लेकर 1 लाख तक का खर्चा सामान्य तौर पर परिजनों से वसूला जाता है
लेकिन कोरोना के चलते पिछले 2 महीनों से लगाये गए लॉकडाउन ने प्राइवेट अस्पतालोंके साथ स्वास्थ्य महकमें के कर्मचारियों की मिलीभगत और कारगुजारियों की पोल खोल दी है। क्यों की लॉक डाउन के चलते सिजेरियन डिलीवरी के मामलों में काफी कमी आई है.
गर्भवती महिलाओं और बच्चों के मामलों पर काम करने वाली लखनऊ की संस्था सहयोग में टीम लीडर प्रवेश वर्मा नें संस्था द्वारा कराये गए अध्ययन के आंकड़े जारी किये है जिसमें आपरेशन से होने वाले प्रसव के मामलों में काफी कमी देखने को मिली है.
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उन्होंने जो आंकड़े जारी किये हैं उसमें उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में 25 मार्च से 25 अप्रैल तक 514 बच्चे पैदा हुए इसमें से मात्र 14 बच्चों का जन्म ही आपरेशन से हुआ बाकी 500 बच्चे नार्मल पैदा हुए वहीँ मध्यप्रदेश के रायसेन जिले के आंकड़ों को अगर देखा जाये तो लॉक डाउन के दौरान अप्रैल महीनें में सरकारी अस्पतालों में 12 दिनों में 52 डिलीवरी जिसमें 47 बच्चों का जन्म नार्मल तरीके से हुआ बाकी 3 बच्चे सिजेरियन के जरिये पैदा हुए