अब नीतीश के कभी काफी करीब रहे और चुनावी रणनीतिकार प्रशांत कुमार ने सरकार पर निशाना साधा है.
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एक के बाद एक ट्वीट कर प्रशांत किशोर ने कहा,”कोटा में फंसे सैकड़ों बच्चों को नीतीश कुमार ने यह कह कर खारिज कर दिया कि ऐसा करना लौकडाउन की मर्यादा के खिलाफ होगा. अब उन्हीं की सरकार ने बीजेपी के एक एमएलए को कोटा से अपने बेटे को लाने के लिए विशेष अनुमति दे दी. नीतीशजी, अब आप की मर्यादा क्या कहती है?”
बिहार के गरीब मजदूर फंसे पड़े हैं
इस से पहले भी प्रशांत किशोर ने कई ट्विट कर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर निशाना साधा था, जब बिहार के प्रवासी मजदूरों को बिहार में प्रवेश को ले कर नीतीश कुमार ने इसे लौकडाउन का उल्लंघन बताया था.
अपने ट्विट में प्रशांत ने कहा था,”देश भर में बिहार के लोग फंसे पङे हैं और नीतीशजी मर्यादा का पाठ पढा रहे हैं. स्थानीय सरकारें कुछ कर भी रही हैं पर, पर नीतीशजी ने संबंधित राज्यों से इस मसले पर बात भी नहीं की. पीएम के साथ मीटिंग में भी उन्होंने इस की चर्चा तक नहीं की.”
प्रशांत किशोर ने अगले ट्विट में लिखा,”नीतीशजी इकलौते ऐसे सीएम हैं जो पिछले 1 महीने से लौकडाउन के नाम पर पटना के अपने आवास से बाहर तक नहीं निकले हैं. साहेब की संवेदनशीलता और व्यस्तता ऐसी है कि कुछ करना तो दूर, दूसरे राज्य में फंसे बिहार के लोगों को लाने के लिए इन्होंने किसी सीएम से बात तक नहीं की.”
कन्नी काट गए मंत्रीजी
बिहार सरकार में जल संसाधन मंत्री और दिल्ली जदयू के प्रभारी संजय झा से जब फोन पर बात करने की कोशिश की गई तो उन्होंने गोलमोल जवाब देते हुए कहा,”देखिए यह तो अधिकारियों के बीच की बात है. सरकार कहीं भी इस मुद्दे को ले कर शामिल नहीं है.”
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यह पूछने पर कि नीतीश सरकार ने बिहार के प्रवासी मजदूरों की घर वापसी के लिए क्या किया है? उन्होंने गोलमोल जवाब दे कर बताने से इनकार कर दिया.
गरीब मजदूरों की कोई अहमियत नहीं
इधर दिल्ली में फंसे हजारों दिहाङी मजदूरों को लौकडाउन का हवाला दे कर ‘जहां हैं वहीं रहें’ कहने वाले नीतीश कुमार की आलोचना करते हुए दिल्ली प्रदेश कांग्रेस के प्रवक्ता पुष्पेंद श्रीवास्तव ने कहा,”लगता है बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव को ले कर नीतीशजी गठबंधन धर्म निभा रहे हैं या फिर वे भाजपा नेताओं के दबाव में हैं.”
उन्होंने कहा,”यह तो बेहद अफसोस की बात है कि एक तरफ जहां बिहार के हजारों प्रवासी मजदूर दिल्ली सहित देश के कई जगहों पर फंसे पङे हैं, तो सिवाय इन के लिए कुछ करने के, बिहार के एक भाजपा एमएलए को कोटा से अपने बेटे को लाने के लिए वीआईपी पास जारी करना मूर्खता है.
“जब नीतीश कुमार प्रवासी मजदूरों को बिहार लाने में असमर्थ थे और लौकडाउन का हवाला दे रहे थे तो इस की सराहना ही हो रही थी पर भाजपा नेता को पास जारी कर उन्होंने यह साबित कर दिया कि उन की नजरों में गरीब मजदूरों की कोई अहमियत नहीं है. जब कोटा में रह रहे अन्य छात्रों को उन्होंने क्वारंटाइन में रखने को कहा था तो इस बात की क्या गारंटी है कि भाजपा एमएलए के बेटे को कोई संक्रमण नहीं है? क्या इस बात की गारंटी खुद मुख्यमंत्री या राज्य के अधिकारी लेंगे?”
जवाब किसी के पास नहीं
इस मुद्दे को ले कर अब जदयू के पदाधिकारी और विधायक भी कुछ कहने से बचते दिख रहे हैं. दिल्ली प्रदेश जदयू के महासचिव राकेश कुशवाहा ने इस बाबत कुछ कहने से साफ इनकार कर दिया और यहां तक कह दिया कि उन्हें इस की जानकारी तक नहीं है.
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मालूम हो कि बिहार में कोरोना वायरस अब धीरेधीरे अपना पैर पसार चुका है और सरकारी आंकड़ों के मुताबिक अब तक वहां 86 पौजिटिव मामले दर्ज किए गए हैं जबकि 2 लोगों की मौत भी हो चुकी है.
कानून तो हर किसी पर लागू होता है
मगर इतना तो साफ है कि कोरोना वायरस को ले कर देशभर में लागू लौकडाउन को ले कर जहां नीतीश सरकार की प्रवासी मजदूरों की घर वापसी और ठोस निर्णय न ले पाने की वजह से आलोचना की जा रही थी, वहीं भाजपा के एक एमएलए के बेटे को पास जारी कर सरकार खुद कटघरे में है. बात भी सही है, नीतीश कुमार राज्य के मुखिया हैं और इस नाते राज्य के अमीरगरीब हर नागरिक के प्रति उन की जिम्मेदारी बनती है. आज वे विपक्ष के निशाने पर हैं तो जाहिर है इस कदम से उन की आलोचना होगी ही वह भी तब जब लौकडाउन में हर किसी पर देश का कानून एकसमान लागू होता है.