इस साल गर्मियों के मौसम का सबसे पसंदीदा आइसक्रीम व्यवसाय कोरोना वायरस की चपेट में आ गया है. लौक डाउन की बजह से इस व्यवसाय को करोड़ों रुपए का घाटा हुआ है और इस व्यवसाय से जुड़े लाखों लोग बेरोजगार हो गए हैं.

आइसक्रीम कारोबार के लिए मार्च, अप्रेल,म‌ई और जून के चार महीने  का समय सबसे ज्यादा आमदनी वाला सीजन होता है. इन्हीं महिनों में शादी विवाह और विभिन्न प्रकार के समारोह होने के कारण पूरे कारोबार का पचास फीसदी बिजनेस होता है. यही कारण है कि इसके कारोबारी इस सीजन का आठ माह इंतजार करते हैं. 25 मार्च से लौक डाउन के शुरू होते ही आइसक्रीम और कोल्ड ड्रिंक का व्यवसाय पूरी तरह  पटरी से उतर गया है.

आइसक्रीम कारोबार से जुड़े लोगों का कहना है कि करोड़ों रुपए मूल्य की आइसक्रीम और कच्चा माल फैक्ट्रियों में रखा हुआ है, लेकिन पार्लर बंद रहने से सप्लाई नहीं हो पा रही है.ग्रीन जोन में भी आइसक्रीम सप्लाई की अनुमति न होने से तैयार माल खराब होने की कगार पर है.

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लौक डाउन के दौरान अकेले मध्यप्रदेश में करीब 150 करोड़ का नुक़सान आइसक्रीम कारोबारियों को हुआ है.प्रदेश में आइसक्रीम की खपत भोपाल, इंदौर, ग्वालियर, जबलपुर में सबसे ज्यादा होती है.इंदौर और भोपाल शहरों में अलग अलग कंपनियों के करीब 80 डिस्ट्रीब्यूटर हैं और हर साल रोजाना आठ से दस लाख की बिक्री होती है.लेकिन इस वार इस कारोबार पर कोरोना की माश्र पडी है. इंदौर के टाप एन टाउन के डिस्ट्रीब्यूटर दर्पण हसीजा के अनुसार इस सीजन में बड़ा नुक़सान हुआ है. अब उम्मीद यही कर रहे हैं कि 17 म‌ई के बाद कुछ रिकवरी इस कारोबार में हो सके.ग्वालियर  के बाडीलाल कंपनी के संदीप जैन के मुताबिक रेस्टोरेंट,बार, शापिंग मॉल, पार्लर आदि बंद होने से कारोबार का कबाड़ा ही हो चुका है.

18 फीसदी टेक्स स्लैब से जुड़े इस कारोबार में कारोबारियों को तो करोड़ों का नुक़सान हुआ ही है, इस व्यवसाय से जुड़े लेबर भी लौक डाउन में अपने अपने घर की ओर पलायन कर गये हैं. भोपाल के हबीबगंज स्टेशन इलाके में ठेला गाड़ी चलाने वाले मनमोहन चौरसिया बताते हैं कि लौक डाउन में आइसक्रीम का काम बंद रहने से रोज़ी रोटी का संकट खड़ा हो गया था, इसलिए मजबूरन वे अपने गांव वापस आ गये हैं.

लौक डाउन की बजह से वर्फ की फैक्ट्रियों में भी ताले लटके हुए हैं. आइस फैक्ट्री के संचालक संदीप जायसवाल का कहना है कि मार्च के आखिर में ही वर्फ की मांग शुरू हो जाती है, लेकिन लौक डाउन लागू होते ही न इस वार आर्डर मिले और न ही फैक्ट्री चालू हो सकी. फैक्ट्री  से हर साल छोटे छोटे व्यवसायी भी वर्फ ले जाकर गांव कस्बों में बेचते थे, जो इस वार पूर्ण रूप से बंद है. मटका कुल्फी का धंधा गांव और कस्बाई इलाकों में काफी लोकप्रिय है और इनसे जुड़े लोगों के लिए फायदेमंद भी है . राजस्थान से क‌ई लोग मध्यप्रदेश के गांवों में आकर मटका कुल्फी बनाने एव बेचने का काम करते हैं. होली के बाद से ही ये गांव, कस्बों में आ जाते हैं, परन्तु इस वार  मटका कुल्फी का धंधा शुरू नहीं कर पाए. लौक डाउन  होने से ऐसे लोग बेकारी में समय काट रहे हैं. वर्फ फैक्ट्रियां बंद होने के बावजूद उल्टे लाखों रुपए के विजली बिल उनके मालिकों को थमाये जा रहे हैं. कमोवेश यही हाल कोल्ड ड्रिंक कंपनियों का है.

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आइसक्रीम और कोल्ड ड्रिंक व्यवसाय से जुड़े लोग भी सरकार से अब राहत की मांग करने लगे हैं.उन्हे अब सरकार से यही आस लगी है कि 17 म‌ई के बाद इस सेक्टर को भी पूरी छूट दी जाय, जिससे  एक डेढ़ महिने के बचे हुए सीजन में कुछ भरपाई हो सके.

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