नहीं रहीं शूटर दादी, कोरोना से हुआ निधन 

भारत में कोराना वायरस का कहर बढ़ता ही जा रहा है. अब खेल जगत से जुड़े लोग भी इस वायरस की चपेट में हैं. 2 दिन पहले ही भारतीय महिला हाकी टीम की कप्तान रानी रामपाल समेत 7 खिलाड़ी कोविड 19 पौजिटिव पाए गए और कल 30 अप्रैल, 2021 को दुनिया की सब से उम्रदराज और ‘शूटर दादी’ के नाम से मशहूर निशानेबाज चंद्रो तोमर की कोरोना संक्रमण के चलते मौत हो गई. वे 89 साल की थीं.

उत्तर प्रदेश के बागपत जिले की रहने वाली चंद्रो तोमर को कोरोना संक्रमण के बाद सांस लेने में परेशानी के चलते मेरठ के एक अस्पताल में भरती कराया गया था.

चंद्रो तोमर ने 65 साल की उम्र में निशानेबाजी शुरू की थी. दरअसल, एक दिन वे अपनी पोती शैफाली को ले कर भारतीय निशानेबाज डाक्टर राजपाल सिंह की शूटिंग रेंज पर गई थीं. 2 दिन की ट्रेनिंग में उन्होंने देखा कि शैफाली को गन लोड करना ही नहीं आया. तीसरे दिन दादी ने उस के हाथ से गन ले कर लोड की और निशाना लगा दिया. निशाना सटीक लगा.

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यह देख कर डाक्टर राजपाल सिंह हैरान रह गए और बोले, ‘दादी, तू भी शूटिंग शुरू कर दे.’ बच्चों ने भी उन्हें थोड़ा उकसाया और बोले कि दादी प्रैक्टिस शुरू कर, हम गांव में किसी से नहीं कहेंगे… और बस दादी शुरू हो गईं.

चंद्रो तोमर का निशानेबाजी का सिलसिला चल पड़ा. उन का निशाना लाजवाब था. यही वजह है कि बुजुर्ग चंद्रो तोमर ने निशानेबाजी में नैशनल और स्टेट लैवल पर कई मैडल अपने नाम किए. ‘शूटर दादी’ ने वरिष्ठ नागरिक वर्ग में कई पुरस्कार भी हासिल किए, जिन में ‘स्त्री शक्ति सम्मान’ भी शामिल है जिसे खुद राष्ट्रपति ने उन्हें भेंट किया था.

फिल्मकार अनुराग कश्यप ने फिल्‍म ‘सांड़ की आंख’ चंद्रो तोमर और उन की देवरानी प्रकाशी तोमर की असली जिंदगी पर ही बनाई थी. यह फिल्म काफी मशहूर हुई थी.

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फिल्म हीरो आमिर खान ने भी दोनों ‘शूटर दादी’ की कहानी से प्रभावित हो कर उन्‍हें अपने शो ‘सत्‍यमेव जयते’ में भी बुलाया था.

चंद्रो तोमर की देवरानी प्रकाशी भी दुनिया की उम्रदराज महिला निशानेबाजों में गिनी जाती हैं. अपनी जिंदगी में इन दोनों औरतों ने मर्द प्रधान समाज में कई रूढ़ियों को भी खत्म किया.

सरिता पत्रिका ने साल 2019 में चंद्रो तोमर पर लंबा लेख छापा था, जब उन पर बनी फिल्म ‘सांड़ की आंख’ रिलीज हुई थी. इस फिल्म मेम भूमि पेडनेकर ने चंद्रो तोमर का किरदार और तापसी पन्नू ने उन की देवरानी प्रकाशी तोमर का किरदार निभाया था.

यूपी पंचायती चुनाव ड्यूटी पर कोरोना संक्रमण के कारण 135 शिक्षकों की मौत

लेखिका- सोनाली 

देश के विभिन्न राज्यों  में कोरोना वायरस महामारी की दूसरी लहर का प्रकोप लगातार बढ़ता जा रहा है और उत्तर प्रदेश भी उनमें से एक है जहां लगातार कोरोना के मामले व उससे हो रही मौत के आंकड़े भी लगातार बढ़ रहे हैं.

जहां एक ओर अदालतें चुनावी रैलियों में कोविड दिशानिर्देशों के पालन न होने को लेकर चुनाव आयोग को फटकार लगा रही हैं, वहीं यूपी के पंचायत चुनाव में बिना कोविड प्रोटोकॉल के चुनावी ड्यूटी करते हुए संक्रमित हो रहे कई सरकारी कर्मचारी अपनी जान गंवा रहे हैं.

एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, पंचायत चुनाव में ड्यूटी करने वाले राज्य के 135 शिक्षकों, शिक्षा मित्रों और अनुदेशक कोरोना संक्रमण के चलते जान गंवा चुके हैं.

राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ ने मुख्यमंत्री से पंचायत चुनाव तत्काल स्थगित कर संक्रमितों का निशुल्क इलाज व मृतकों के परिजनों को 50 लाख की सहायता व अनुकंपा नियुक्ति देने की मांग की है.

शिक्षकों व कर्मचारियों की चुनाव में ड्यूटी लगने की वजह से उनके परिवारों में बेचैनी है. वर्तमान हालात को देखते हुए कोई भी चुनाव ड्यूटी नहीं करना चाहता है. चुनाव में प्रथम चरण के प्रशिक्षण से लेकर तीसरे चरण के मतदान तक हजारों शिक्षक, शिक्षामित्र व अनुदेशक कोरोना से संक्रमित हो चुके हैं. जहां-जहां चुनाव हो चुके हैं वहां कोविड संक्रमण कई गुना बढ़ गया है.

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संघ के प्रवक्ता वीरेंद्र मिश्र ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर कहा है कि कोविड-19 की भयंकर महामारी के बीच प्रदेश में पंचायत चुनाव कराए जा रहे हैं, जिसमें सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियां उड़ रही हैं. पंचायत चुनाव से जुड़े अधिकारी, कर्मचारी, शिक्षक व सुरक्षाकर्मी प्रतिदिन संक्रमित हो रहे हैं और अनगिनत मौतों के साथ जनमानस सहमा हुआ है.

उल्लेखनीय है कि प्रदेश में  58,189 ग्राम पंचायत हैं, जहां ग्राम प्रधान के चुनाव होने हैं, जबकि ग्राम पंचायत सदस्यों के लिए 732, 563 पदों पर चुनाव होना है. इनके अलावा 75,855 क्षेत्र पंचायत सदस्य के पदों पर निर्वाचन होना है. राज्‍य के 75 ज़िलों में ज़िला पंचायत सदस्य के कुल 3,051 पदों पर चुनाव होने हैं.

मतदान चार चरणों में- 15 अप्रैल, 19 अप्रैल, 26 अप्रैल और 29 अप्रैल को होना था, जिनमें बस एक ही चरण बचा है. बता दें कि मतगणना दो मई को होगी.

मिश्र ने बताया, ‘चुनाव प्रशिक्षण व ड्यूटी के बाद अब तक हरदोई, लखीमपुर में 10-10, बुलंदशहर, हाथरस, सीतापुर, शाहजहांपुर में 8-8, भदोही, लखनऊ व प्रतापगढ़ में 7-7, सोनभद्र, गाजियाबाद व गोंडा में 6-6, कुशीनगर, जौनपुर, देवरिया, महाराजगंज व मथुरा में 5-5, गोरखपुर, बहराइच, उन्नाव व बलरामपुर में 4-4 तथा श्रावस्ती में तीन शिक्षक, शिक्षा मित्र या अनुदेशक की अकस्मात मृत्यु हुई है.

उन्होंने यह भी कहा कि महासंघ ने चुनाव से पहले शिक्षकों को टीका लगवाने की मांग की थी. मिश्र ने कहा, ‘केंद्रीय गृह मंत्रालय ने पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में तैनात पोलिंग पार्टियों के टीकाकरण को अनुमति दी थी, इसी तरह पंचायत चुनाव में भी किया जा सकता था. लेकिन इस पर सरकार ने कोई ध्यान नहीं दिया. महासंघ ने मुख्यमंत्री के अलावा यह पत्र पर बेसिक शिक्षा मंत्री सतीश द्विवेदी व प्रमुख सचिव रेणुका कुमार को भी भेजा है.

गौरतलब है कि पंचायत चुनाव में प्रदेश के सभी ज़िलों के विभिन्न विभागों के कर्मचारियों और अधिकारियों की मतदान और मतगणना में ड्यूटी लगी है.एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, इनमें सर्वाधिक संख्या प्राइमरी स्कूल के शिक्षकों की है, जहां लगभग 80 प्रतिशत परिषदीय शिक्षक चुनाव की ड्यूटी में लगे हुए हैं.

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शिक्षकों ने दी मतगणना के बहिष्कार की चेतावनी

उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले में पंचायत चुनाव ड्यूटी के बाद अब तक सात शिक्षा कर्मी दम तोड़ चुके हैं. शिक्षकों ने मृतकों के परिजनों को 50 लाख रुपये के मुआवजे की मांग के साथ मतगणना के लिए कोविड संबंधी पुख्ता इंतजाम करने की भी बात कही है. और ऐसा न होने पर मतगणना का बहिष्कार करने  की चेतावनी दी है.

उत्तर प्रदेश जूनियर हाईस्कूल शिक्षक संघ ने जिला अधिकारी को दिए मांग पत्र में कहा कि पंचायत चुनाव की ड्यूटी के बाद बड़ी संख्या में शिक्षक बीमार हैं. कई अस्पतालों में भर्ती हैं, तो कई घर पर ही क्वारंटीन हैं. अब तक जिले के सात शिक्षा कर्मी  संक्रमण के कारण दम तोड़ चुके हैं.

शिक्षक संघ ने कहा कि मतगणना के लिए पुख्ता इंतजाम हों, मतगणना ड्यूटी से पहले इसमें शामिल होने वाले शिक्षकों समेत तमाम कर्मचारियों को कोरोना का टीका लगवाया जाए. उन्होंने चेताया है कि ऐसा न होने की स्थिति में वे इस ड्यूटी का बहिष्कार करने को विवश होंगे.

इससे पहले बीते हफ्ते तीसरे चरण के मतदान से पहले अलीगढ़ के शिक्षकों ने पंचायत चुनाव का विरोध करते हुए तीसरे और चौथे चरण के चुनाव स्थगित करने की मांग की थी. ऐसी ही मांग मेरठ जिले के शेरकोट से भी उठी थी.

उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षक संघ सेवारत गुट की वर्चुअल बैठक में जिला मंत्री विनोद कुमार ने महामारी के बीच पंचायत चुनाव कराने को सरकार व चुनाव आयोग की संवेदनहीनता बताया था. उनका भी कहना था कि बाकी चरणों के चुनाव और  मतगणना स्थगित किए जाएं और ऐसा नहीं किया गया तो ड्यूटी का बहिष्कार किया जाएगा. जिला मंत्री ने सरकार पर पंचायत चुनाव को प्राथमिकता देकर शिक्षकों एवं कर्मचारियों को मौत के मुंह में धकेलने का आरोप लगाया था. उनका कहना था  केंद्रों पर किसी कोविड दिशानिर्देश का पालन नहीं हो रहा है, जिसके चलते तेजी से संक्रमण फ़ैल रहा है.

हालांकि सरकार की ओर से लगातार कहा जा रहा है कि महामारी मद्देनजर सभी दिशानिर्देशों का पालन किया जा रहा है, लेकिन हकीकत कुछ ओर ही बयां करती नजर आ रही है.

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा- आपराधिक अभियोग चलाया जाए

इस मामले पर अब इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सख्त रुख अपनाते हुए चुनाव आयोग को आड़े हाथ लिया और नोटिस जारी किया और कहा कि पंचायत चुनाव के दौरान सरकारी गाइडलाइंस का पालन क्यों नहीं की गया. अब ड्यूटी कर रहे 135 लोगों की मौत की खबर है. कोर्ट ने आयोग से जवाब मांगा कि क्यों न उसके खिलाफ कार्रवाई की जाए और आपराधिक अभियोग चलाया जाए. साथ ही हाईकोर्ट ने रह गए चुनाव में तुरंत कोरोना गाइडलाइंस का पालना सुनिश्चित करने का आदेश दिया है. साथ ही अवहेलना करने पर चुनाव करवा रहे अधिकारियों पर कार्रवाई की चेतावनी दी है.

इसके साथ ही कोरोना संक्रमण से निपटने के लिए सरकारी रवैये की भी कोर्ट ने आलोचना की है. हाईकोर्ट ने कहा है कि सरकार माय वे या नो वे (मेरा रास्ता या कोई रास्ता नहीं) का तरीका छोड़े और लोगों के सुझावों पर भी अमल करे. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अधिक संक्रमित नौ शहरों के लिए कई सुझाव दिए हैं. साथ ही उन पर अमल करने और सचिव स्तर के अधिकारी के हलफनामे के साथ 3 मई तक अनुपालन रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया है.

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हाईकोर्ट ने दिए निर्देश

हाईकोर्ट ने प्रदेश के नौ शहरों, लखनऊ, प्रयागराज, वाराणसी, कानपुर नगर, आगरा, गोरखपुर, गाजियाबाद, गौतमबुद्धनगर और झांसी के जिला जजों को आदेश दिया है कि सिविल जज सीनियर रैंक के न्यायिक अधिकारी को नोडल अधिकारी के रूप मे तैनात करें. ये शासन की ओर से बनाई गई कोरोना मरीजों की रिपोर्ट सप्ताहांत मे महानिबंधक हाईकोर्ट को भेजें. मामले की अब अगली सुनवाई 3 मई को होगी.

यह आदेश न्यायाधीश सिद्धार्थ वर्मा और अजित कुमार की खंडपीठ ने कोरोना मामले में कायम जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए दिया है. कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा है कि कोरोना का भूत गली, सड़क पर दिन-रात मार्च कर रहा है. लोगों का जीवन भाग्य भरोसे है, कोरोना के भय से लोगों ने स्वयं को अपने घर मे लॉकडाउन कर लिया है. सड़कें रेगिस्तान की तरह सुनसान हैं. भारी संख्या मे लोग संक्रमित हो रहे हैं और जीवन बचाने के लिए बेड की तलाश मे अस्पतालों के चक्कर लगा रहे हैं. अस्पताल मरीजों की जरूरत पूरी करने मे असमर्थ हैं. डॉक्टर, स्टाफ थक चुके है. जीवन रक्षक दवाएं, इंजेक्शन की मारामारी है. ऑक्सीजन, मांग और आपूर्ति के मानक पर खरी नहीं उतर रही. सरकार के उपाय नाकाफी हैं.

हाईकोर्ट ने चेतावनी दी है कि पेपर वर्क बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. इन सभी सुझावों पर राज्य सरकार को अमल करने का निर्देश दिया है. कोर्ट ने सरकार के प्लान को खारिज करते हुए नये सिरे से प्लान तैयार करने का आदेश दिया है

कोरोना: देश में “संयुक्त सरकार” का गठन हो!

इस महामारी से एकजुट हो कर जूझने के लिए जरूरत आ पड़ी है, देश में ‘संयुक्त सरकार’ का गठन हो.

क्या वाकई देश में ‘संयुक्त सरकार’ बनाने की जरूरत आ पड़ी है?

देश में कोरोना को ले कर जो हालात बन चुके हैं, वह दिल दहला रहे हैं. कहीं रेमडेसीविर इंजेक्शन नहीं है, कहीं औक्सीजन गैस नहीं है, कहीं बेड नहीं है, तो कहीं एंबुलेंस नहीं है.

लाशों को भी श्मशान घाट में जगह नहीं मिल पा रही है. उसे देख कर लगता है कि देश में मैडिकल इमर्जेंसी नहीं, बल्कि संयुक्त सरकार का गठन किया जाना चाहिए .

देश के गंभीर हालात पर देश भले ही मौन है, मगर देश के बाहर तमाम आलोचना हो रही है. आस्ट्रेलिया के प्रमुख अखबार ‘फाइनेंशियल रिव्यू’ ने प्रसिद्ध कार्टूनिस्ट डेविड रो का एक कार्टून छापा है- “पस्त हाथी पर मौत की सवारी.”

इस कार्टून में भारत को एक हाथी का प्रतीक दिखाया गया है, जो मरणासन्न है और प्रधानमंत्री मोदी अपने सिंहासन पर निश्चिंत शान से बैठे हुए हैं.

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देश और दुनिया में इस तरह की आलोचना से अच्छा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वयं देश के मुखिया होने के नाते सामने आ कर देश में सभी महत्वपूर्ण दलों के प्रमुख नेताओं को ले कर संयुक्त सरकार का गठन की घोषणा कर के देश को बचा सकते हैं. जैसे ही हालात में सुधार हो, देश पुनः अपने राजनीतिक रंगरूप में आगे बढ़ने लगे.

वस्तुत: कोरोना का कहर देश के लगभग सभी राज्यों में बिजली बन कर टूटा है. देश का सब से बड़ा राज्य उत्तर प्रदेश हो या महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश हो या राजस्थान, दिल्ली हो या दक्षिण भारत के प्रदेश सभी जगह कोविड-19 के कारण स्वास्थ्य संकट खड़ा हो गया है और शासनप्रशासन की धज्जियां उड़ रही हैं. लगता ही नहीं कि कहीं कोई व्यवस्था सुचारु रूप से चल रही है. अस्पतालों के बद से बदतर हालात वायरल वीडियो के रूप में देश देख रहा है. जीवनरक्षक दवाएं नहीं मिल पा रही हैं और अगर ये कहीं मिल भी रही हैं, तो कालाबाजारी में लाखों रुपए लोगों को देने पड़ रहे हैं.

जिस तरह कोरोना महासंकट के कारण हालात बेकाबू हो गए हैं और संभले नहीं संभल रहा है. उन्हें देख कर लगता है कि तत्काल प्रभाव से देशहित मे संयुक्त राष्टीय सरकार को देश को सौंप देना चाहिए.

औक्सीजन का ही एक मसला अगर हम देखें तो पाते हैं कि देश के हर कोने में त्राहिमामत्राहिमाम मची हुई है. कहीं औक्सीजन नहीं है, तो कहीं औक्सीजन होने पर उसे अनट्रेंड लोग संचालित कर रहे हैं और न जाने कितने मरीज सिर्फ लापरवाही से मर गए. कई जगहों पर तो औक्सीजन लीकेज के कारण आग लग गई और बेवजह लोग मर गए.

औक्सीजन का वितरण भी देशभर में सुचारु रूप से नहीं हो पा रहा है. सवाल है कि आखिर इस का दोषी कौन है? शासनप्रशासन आखिर कहां है? ऐसी गंभीर हालत को देख कर कहा जा सकता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी को देश को जो दिशा देनी चाहिए, उसे नहीं दे पा रहे हैं. चहुं ओर अव्यवस्था का आलम बन गया है, इसलिए जितनी जल्दी हो सके, देश अगर संयुक्त राष्ट्रीय सरकार काम संभाल ले तो कोरोना संकट से नजात शीघ्र मिलने की संभावना है .

देश में महामारी का आलम है. भयंकर हो चुके कोरोना के कारण सरकारें ‘मौतों का हत्याकांड’ कर रही हैं यानी आंकड़े छिपाए जा रहे हैं.

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छत्तीसगढ़ से औक्सीजन लखनऊ, उत्तर प्रदेश भेजा जा रहा है. और कहीं का औक्सीजन कहीं सत्ता की धौंस दिखा कर रोक लिया जा रहा है. लोग इस आपाधापी में बेवजह ही मर रहे हैं. ऐसे गंभीर हालात बन गए हैं. जमाखोरी और महंगाई सुरसा के मुंह की तरह बढ़ चुकी है. शासन महंगाई को रोक नहीं पा रहा है और जमाखोरी कर के लोग आम लोगों को दोनों हाथों से लूट रहे हैं. लगता है, देश में शासन नहीं है. देश अराजकता की ओर बढ़ चुका है. जिसे जितनी जल्दी हो सके, व्यवस्थित करने के लिए संयुक्त सरकार बनाना इस दृष्टिकोण से उचित प्रतीत होता है क्योंकि इसी संवैधानिक माध्यम से देश में एक रूप से शासन संभव होगा और देश कोरोना से लड़ पाएगा.

और दुनिया चिंतित हो उठी है…

जिस तरीके से कोरोना की रफ्तार बढ़ रही है, आने वाले समय में प्रतिदिन 5 लाख कोरोना मरीज मिलने लगेंगे तो हालात और भी गंभीर हो जाएंगे. स्थिति में सुधार का क्या प्रयास हो रहा है? यह देशदुनिया की जनता को दिखाई नहीं दे रहा है. स्थिति विषम होते हुए ही दिखाई दे रही है.

यहां सब से महत्वपूर्ण तथ्य है कि कोविड-19 की तबाही भयावह मंजर को, भारत के गंभीर हालात को दुनिया देख रही है और उसे देख कर के चिंतित है. और आगे आ कर के हाथ बंटाना चाहती है पाकिस्तान, चीन जैसे शत्रु राष्ट्रों के अलावा यूरोपीय संघ, जरमनी, ईरान ने भारत के गंभीर हालात को देख कर के सहायता देने की पेशकश की है. वहीं रूस और अमेरिका भी सामने आ गया है, क्योंकि आज भारत के कारण दुनिया को ‘मानवता संकट’ में दिखाई देने लगी है.
अनेक देश भारत को इस महामारी से बचाने के लिए पहल कर रहे हैं. ऐसे हालात को देख कर के कहा जा सकता है कि जब दुनिया चिंतित है, तो सीधा सा अर्थ है कि भारत की वर्तमान में भारतीय जनता पार्टी की मोदी सरकार असफल सिद्ध हो रही है. हालात यही बने रहे तो कहा जा रहा है कि आने वाला समय और भी भयावह होगा.

हमारे यहां विगत दिनों सब से मजाक भरा फैसला यह रहा कि कोरोना वैक्सीन 3 दरों पर खरीदने का ऐलान किया गया. केंद्र सरकार स्वयं 150 रुपए में और राज्यों को 600 रुपए में वैक्सीन बेचने का फरमान जारी हुआ, जो सरकार के दिवालियापन का ही सुबूत है.

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गंभीर हालत का इस बात से भी पता चलता है कि दुनिया के कई देशों ने भारत से अपनी आवाजाही को रोक दिया है. भारत के कई बड़े पैसे वाले अपनी जान बचाने की खातिर देश छोड़ कर भाग चुके हैं.

यह भी महत्वपूर्ण तथ्य है कि भारत में हुई मौतों पर अमेरिका जैसे देश मान रहे हैं कि भारत में जो आंकड़े सरकार बता रही है, उस से दोगुना से 5 गुना तक मौतें हो रही हैं, जिन्हें छुपाया जा रहा है.

ऐसे में अगर देश को मैडिकल इमर्जेंसी से बचाने के लिए यथाशीघ्र ही एक राष्ट्रीय सरकार बननी चाहिए, तभी देश में एक रूप में शासन व्यवस्था होने पर लोगों की जान बचेगी, अन्यथा आने वाले समय में जो भयंकर मंजर होगा, उस के कारण लोग देश की शासन व्यवस्था और शासन में बैठे हुए लोगों को कभी भी माफ नहीं कर पाएंगे. इसलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से आग्रह है कि अपना अहम छोड़ कर सभी राष्ट्रीय दलों को साथ ले कर देश के प्रमुख अर्थशास्त्री, न्यायविद, चिकित्सक, सामाजिक विभूति को आगे ला कर एक ‘राष्ट्रीय संयुक्त सरकार’ बनाएं और उन्हें कैबिनेट मंत्री का दर्जा देते हुए देश को नेतृत्व देने का काम किया जाना चाहिए.

लाला रामदेव: कोरोनिल को ना उगल पा रहे, ना निगल

आज बाबा रामदेव का आश्रम कोरोना पॉजिटिव मरीजों को लेकर  देश दुनिया में चर्चा में आ गया है. सौ के आसपास मरीज पॉजिटिव मिलने के बाद हड़कंप है. वहीं बाबा रामदेव से  जैसी अपेक्षा थी उनका स्वभाव देश जानता है, उन्होंने साफ कह दिया है कि यह झूठी खबरें हैं, अफवाहबाजी है.

आज यह सवाल है कि क्या बाबा रामदेव अपने ही  बुने हुए कोरोनिल के जाल में तो नहीं फंस गए हैं ? उन्होंने बड़ी ही चालाकी दिखाते हुए जब दुनिया में कोरोना संक्रमण फैला हुआ था 1 वर्ष पूर्व ही कोरोनिल का ईजाद करके अपनी पीठ थपथपाई थी.

अगर देश में कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर नहीं आती भयावह मंजर देश नहीं देखता तो शायद रामदेव बाबा यह भी कहते कि देखो! मेरी बनाई “कोरोनिल”  से कोरोना भाग गया.

वर्तमान भारत सरकार में बैठे प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी से उनकी गलबहियां सार्वजनिक है. कांग्रेस को सत्ता से बेदखल करने में उनका एक बड़ा योगदान देश ने देखा है. ऐसे में बाबा रामदेव “लाला” बन कर कोरोना कोविड 19 जैसी संक्रमण कारी बीमारी का इलाज और दवाई बनाने का दावा करने लगे, यही नहीं दवाई आज पूरे देश में हर शहर मेडिकल दुकानों में उपलब्ध है. जिसे बड़ी शान के साथ यह कह करके बेचा गया कि इसका इस्तेमाल करने से आप सुरक्षित रहेंगे. देश की भोली-भाली जनता आंख बंद करके उन्हें अपना आराध्य पूज्य मानने वाले लोग उन्हें गेरूए कपड़ा पहने हुए और लंबी दाढ़ी के कारण साधु संत त्यागी  समझ कर के लोग उनकी बात का अक्षरश: पालन करने लगे, परिणाम स्वरूप करोड़ों रुपए रामदेव बाबा ने कोरोनील के नाम पर अपनी गांठ में दबा लिए.

अब कोरोना पलट करके उनके ही आश्रम, योगपीठ में दस्तक दे रहा है और बाबा बगले झांकने को मजबूर हैं. ऐसे हालात बन गए हैं कि उन्हें न तो उगलते बन रहा है और न निगलते.

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पतंजलि योगपीठ और कोरोना

आज यह चर्चा का विषय बन गया है कि हरिद्वार में बाबा रामदेव का पतंजलि योगपीठ  कोरोना विस्फोट का केंद्र है. यहां 83 लोग कोरोना संक्रमित पाए गए है. सभी संक्रमतों का आइसोलेट कर दिया गया है. कहा जा रहा है अब बाबा रामदेव की भी कोरोना जांच की जा सकती है. मगर समय बीता जा रहा है उनकी जांच की रिपोर्ट इन पंक्तियों के लिखे जाने तक नहीं आई है, जो यह सवाल खड़ा करती है कि क्या रामदेव कोई विशिष्ट प्राणी है जिनकी कोरोना जांच नहीं होगी ? बड़ी संख्या में कोरोना संक्रमित मिलने के बाद जिला प्रशासन को चाहिए कि संशय को मिटाते हुए आश्रम के सभी लोगों का कोरोना टेस्ट करके जो कोरोना पॉजिटिव हैं उनका इलाज प्रारंभ करें. क्योंकि कोरोना को किसी भी तरह से छुपाना गंभीर परिणाम ला सकता है.

दरअसल, पंतजलि योगपीठ के कई संस्थानों में  कोरोना संक्रमित मिल रहे हैं. हरिद्वार सीएमओ डॉ. शंभू झा के मुताबिक 10 अप्रैल से अब तक पंतजलि योगपीठ आचार्यकुलम और योग ग्राम में  कोरोना पॉजिटिव मिल चुके हैं. इन संक्रमितों को पतंजलि परिसर में ही आइसोलेट किया गया है.

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बाबा रामदेव अपने कथनी और करनी में हमेशा से अलग अलग दिखाई देते हैं. वे जो कहते हैं वह करते नहीं हैं और करते हैं वैसा कहते नहीं है. आज इस वैश्विक महामारी के समय में जो गंभीरता समझदारी बाबा रामदेव के आचरण में दिखाई देनी चाहिए वह नहीं दिखाई देती. अपने इन्हीं व्यवहार के कारण , जो ऊंचाई रामदेव बाबा ने प्राप्त की थी विगत 10 वर्षों में धराशायी होती दिख रही है.

बाबा रामदेव का सम्मान और प्रभाव धीरे-धीरे खत्म हो रहा है. आज कोरोना कोविड-19 के इस समय में क़रोनिल ला करके अपनी साख दांव पर लगा दी है , उन्होंने अपने आपको चक्रव्यूह में डाल दिया है जहां से बचकर निकलना अभिमन्यु के लिए भी संभव नहीं हुआ था.

पंचायत चुनाव से गांवों तक पहुंच रहा कोरोना संकट

जिस समय कोरोना की दूसरी लहर से पूरे देश में तांडव मचा हुआ है, उसी समय उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव हो रहे हैं. पंचायत चुनाव के प्रचार में न तो लोग मास्क पहन रहे हैं, न ही दो गज की दूरी किसी का पालन नहीं हो रहा है. ऐसे में चुनाव प्रचार के साथसाथ कोरोना का प्रसार भी गांवों में हो रहा है.

जिन जिलों में पंचायत के चुनाव हो चुके हैं, वहां पर कोरोना के मामले ज्यादा निकल रहे हैं. कई जिलों से मतदान में ड्यूटी करने वाले कर्मचारियों के कोरोना पौजिटिव होने के मामले भी सामने आए हैं. कर्मचारी संगठन भी इस के खिलाफ आवाज उठाने लगे हैं.

उत्तर प्रदेश के पंचायत चुनाव 4 चरणों में हो रहे हैं. 15 अप्रैल और 19 अप्रैल के 2 चरणों के मतदान हो चुके हैं. 26 अप्रैल और 29 अप्रैल वाले 2 चरणों में मतदान होेने वाला है. एक गांव में कम से कम 1500 वोटर हैं. ग्राम प्रधान, पंच, ब्लौक सीमित सदस्य और जिला पंचायत सदस्य के 4 पदों पर मतदान हो रहा है. ऐसे में 4 तरह के उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं. वे सभी बड़ी संख्या में लोगों के साथ प्रचार कर रहे हैं.

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कोरोना की दूसरी लहर की शुरुआत भी अप्रैल के दूसरे हफ्ते से ही शुरू  हुई. जैसेजैसे चुनाव आगे बढ़ रहे हैं, उसी तरह से कोरोना संक्रमण भी आगे बढ़ रहा है.

प्रचार और मतदान ड्यूटी से कोरोना का खतरा

गांवगांव कोरोना का संकट 2 तरह से फैल रहा है. एक तो चुनावी प्रचार से दूसरा मतदान करने आने वाले वोटर और मतदान में ड्यूटी करने आने वाले कर्मचारी इस संक्रमण को बढ़ा रहे हैं.

सुलतानपुर जिले में लंभुआ के कोटिया निवासी सुरेश चंद्र त्रिपाठी दुबेपुर ब्लौक के उच्च प्राथमिक विद्यालय उतुरी में सहायक अध्यापक नियुक्त थे. उन्हें चुनाव अधिकारी बना कर चांदा के कोथराखुर्द भेजा गया. उन्हें कई दिनों से बुखार आ रहा था. इस के बाद भी उन की कोरोना की जांच नहीं हुई.

सुरेश चंद्र त्रिपाठी अपनी जांच कराने और चुनावी ड्यूटी से छुट्टी देने के लिए बारबार कहते रहे, पर विभाग के लोगों ने इसे गंभीरता से नहीं लिया. न तो उन की जांच हुई, न ही उन की ड्यूटी कटी.

19 अप्रैल को पंचायत चुनाव के दूसरे फेस में चुनावी ड्यूटी के दौरान सुरेश चंद्र त्रिपाठी की तबीयत खराब हुई. इस के बाद उन्हें जिला अस्पताल सुलतानपुर भेजा गया, जहां उन की मौत हो गई. मौत के बाद जांच पर पता चला कि वह कोरोना पौजिटिव भी थे.

ऐसे में सोचा जा सकता है कि कोरोना का संक्रमण किस तरह से फैल रहा है. सुरेश चंद्र त्रिपाठी के संपर्क में गांव के तमाम लोग आए होंगे. न तो उन की जांच मुमकिन है और न ही उन का पता लगाया जा सकता है. इस तरह से पंचायत चुनाव में गांवगांव कोरोना फैलने का डर बना हुआ है.

इंडियन पब्लिक सर्विस इंप्लौइज फैडरेशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष बीपी मिश्रा और महामंत्री प्रेमचंद्र ने प्रधानमंत्री और चुनाव आयोग को चिट्ठी भेजी है. इस में लिखा है कि कोरोना जैसी महामारी को देखते हुए देशभर में हो रहे चुनावों को स्थगित कर दिया जाए, क्योंकि चुनाव ड्यूटी में लगे हजारों कर्मचारी संक्रमित हो रहे हैं. चिट्ठी में कहा गया है कि चुनाव में कोविड प्रोटोकौल का पालन करा पाना मुमकिन नहीं है.

नक्सल बनाम भूपेश बघेल: “छाया युद्ध” जारी आहे

80 फीसदी तक हो रहा मतदान

पंचायत चुनावों में 80 फीसदी तक मतदान हो रहा है, जिस से यह समझा जा सकता है कि कितनी ज्यादा भीड़ वोट डालने के लिए लाइनों में लगती है. किसी भी लाइन में 2 गज की दूरी का कोई पालन नहीं होता है. पुलिस के डर से वोट डालते समय भले ही लोग मास्क का इस्तेमाल कर लें, पर चुनाव प्रचार में मास्क का इस्तेमाल तकरीबन न के बराबर होता है.

वोट डालने के लिए मतदाताओं को मुंबई, सूरत, पंजाब और दिल्ली से गांव बुलाया गया. ये लोग प्राइवेट गाड़ी कर के गांव में वोट डालने आए और वहां से वापस अपनी जगह चले गए. ऐसे बाहरी लोग कोरोना संक्रमण फैलने की सब से बड़ी वजह हैं. जिन जिलों में पहले और दूसरे चरण का मतदान हो चुका है, वहां कोरोना के मरीज सब से ज्यादा मिलने लगे हैं. इस से साफ है कि पंचायत चुनाव कोरोना संक्रमण को बढ़ाने वाला साबित हो रहा है.

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कोरोना अवसाद और हमारी समझदारी

छत्तीसगढ़ सहित संपूर्ण देश में कोराना कोविड-19 से हालात बदतर होते दिखाई दे रहे हैं. छत्तीसगढ़ के भिलाई में एक कोरोना मरीज ने अवसाद में  आकर के आत्महत्या कर ली. इसी तरह एक युवती ने भी आर्थिक हालातों को देखते हुए  कोरोनावायरस पाज़िटिव होने के बाद आत्महत्या कर ली.

कोरोना के भयावह  हालात  की खबरें टीवी, सोशल मीडिया पर गैरजिम्मेदाराना रवैये के साथ  दिखाई जा रही है. जबकि इस सशक्त माध्यम का उपयोग लोगों को साहस बंधाने और जागरूक करने के लिए किया जा सकता है.

दरअसल, आत्महत्या की जो घटनाएं सामने आ रही है, उसका कारण है लोग अवसाद ग्रस्त हो ऐसे कदम उठा रहे हैं. जो समाज के लिए चिंता का सबब  है.

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इस समय में हमें किस तरह अवसाद से बचना हैऔर बचाना है और लोगों को अवसाद से निकालना है….  इस गंभीर मसले पर, इस रिपोर्ट में हम चर्चा कर रहे हैं.

कोरोना काल के इस संक्रमण कारी समय में देखा जा रहा है कि समस्या निरंतर गंभीर होती जा रही है. लॉकडाउन को ही लीजिए, तो यह स्पष्ट हो जाता है कि जिस तरह की पाबंदियां कोरोना- 2 के इस समय काल में लगाई गई हैं वैसी पिछली दफा नहीं थी. चिकित्सालय और सरकारी व्यवस्था भी धीरे धीरे तार तार होते दिखाई दे रहे हैं.

ऐसी परिस्थितियों में जब आज अमानवीयता का दौर है. हर एक जागरूक व्यक्ति को चाहिए कि वह अपने आसपास सकारात्मक उर्जा का संचार करें और लोगों के लिए सहायक बन कर उदाहरण बन जाए.

यह घटना एक सबक है

छत्तीसगढ़ के इस्पात नगरी कहे जाने वाले भिलाई के एक अस्पताल में भर्ती कोरोना के एक मरीज ने अस्पताल की खिड़की से छलांग लगाकर आत्महत्या कर ली.

घटना भिलाई स्थित जामुल थाना क्षेत्र के अंतर्गत एक अस्पताल में घटित हुई. 14 अप्रैल 2021की बीती रात   अस्पताल के  कोविड मरीज ने “बीमारी” से तंग आकर आत्मघाती कदम उठा लिया. घटना की सूचना मिलते ही पुलिस मौके पर पहुंची और मामले की विवेचना कर रही है  जामुल पुलिस ने हमारे संवाददाता को बताया कि आत्महत्या करने वाला  शख्स जामुल के एक अस्पताल में 11 अप्रैल से भर्ती था.उसकी कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव आई थी और इलाज चल रहा था. मृतक का नाम ईश्वर विश्वकर्मा है और वह धमधा नगर का रहने वाला है. उसने  अपने वार्ड की खिड़की से छलांग लगाकर आत्महत्या कर ली. पुलिस ने बताया कि अस्पताल प्रबंधन से घटना की सूचना मिली. इसके बाद अस्पताल पहुंचकर मर्ग कायम कर स्वास्थ्य कर्मियों और डॉक्टर से पूछताछ जारी है.

जैसा कि हम जानते हैं ऐसे गंभीर आत्मघात  के मामलों में भी पुलिस की अपनी एक सीमा है. पुलिस औपचारिकता निभाते हुए मामले  की फाइल को आगे  बंद कर देगी. मगर विवेक शील समाज में यह प्रश्न तो उठना ही चाहिए कि आखिर ईश्वर विश्वकर्मा ने आत्महत्या क्यों की क्या ऐसे कारण थे जो उसे आत्म घाट का कदम उठाना पड़ा और ऐसा क्या हो आगामी समय में कोई कोरोना पेशेंट आत्महत्या न करें. समाज और सरकार दोनों की ही जिम्मेदारी है कि हम संवेदनशील हो और अपने आसपास सकारात्मक कार्य अवश्य करें, हो सकता है आप के इस कदम से किसी को संबल मिले और जीने का हौसला भी.

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मीडिया की ताकत को दिशा !

कोरोना कोविड19 के इस समय काल में देश का राष्ट्रीय और स्थानीय मीडिया चाहे वह इलेक्ट्रॉनिक हो अथवा प्रिंट मीडिया ऐसा प्रतीत होता है कि अपने दायित्व से पीछे हट गया है. अथवा वह भूल चुका है कि उसकी ताकत आखिर कहां है.

जिस तरह आज राष्ट्रीय और स्थानीय मीडिया में इस समय खबरें दिखाई जा रहे हैं… और हर पल बार-बार भयावह रूप में दिखाई जा रही है. जिसके कारण लोगों में एक भय का वातावरण निर्मित होता चला जा रहा है. मीडिया का यह परम कर्तव्य है कि खराब से खराब समय में भी अच्छाई को सामने लाते हुए उसे विस्तार से दिखाएं ताकि लोगों में जनचेतना जागता का वातावरण बने. हिंदी और तेलुगु कि कवि डॉक्टर टी. महादेव राव के मुताबिक पूर्व में मीडिया का ऐसा रुख नहीं था, आज मीडिया जिस तरह अपनी ताकत को भूल कर रास्ते से भटक गई है वह समाज के लिए गंभीर चिंता का विषय है. आज मीडिया को चाहिए कि वह लोगों में यह जागरूकता पैदा करें कि हम किस तरह इस महामारी से बच सकते हैं, इसकी जगह लोगों को मौत के आंकड़े और श्मशान घाट के भयावह हालत दिखाकर अखिर मीडिया कैसी भूमिका निभा रहा है.

चिकित्सक डॉक्टर जी आर पंजवानी के मुताबिक महामारी के इस समय में हम जितना हो सके बेहतर से बेहतर काम करें और लोगों को सकारात्मक ऊर्जा से भर दें यही हमारा प्रथम दायित्व होना चाहिए.

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टीवी और फिल्म के बाद भोजपुरी इंडस्ट्री में भी छाया कोरोना का कहर, Aamrapali Dubey हुईं वायरस का शिकार

टीवी और फिल्म इंडस्ट्री के बाद भोजपुरी इंडस्ट्री में कोरोना का कहर छाया हुआ है.  इसकी शुरुआत भोजपुरी क्विन आम्रपाली दुबे  से हुई. रविवार को आम्रपाली दुबे (Aamrapali Dubey) कोरोना पॉजिटिव पाई गईं.

दरअसल इसकी जानकारी आम्रपाली ने खुद फैंस के साथ शेयर की है. आम्रपाली ने अपने इंस्टा अकाउंट पर एक पोस्ट शेयर किया. जिसमें एक्ट्रेस ने लिखा, ‘सभी को नमस्ते, मैं आप सबको यह बताना चाहती हूं कि आज सुबह मेरी कोविड रिपोर्ट पॉजिटिव आई है. मैं और मेरा परिवार पूरी सावधानी बरतते हुए मेडिकल केयर ले रहे हैं.

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उन्होंने आगे लिखा, आप लोग चिंता ना करें, हम सब एकदम ठीक हैं. बस केवल मुझे और मेरे परिवार को दुआओं में याद रखिएगा.

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एक्ट्रेस के पोस्ट पर मोनालिसा, काजल राघवानी, दिनेश लाल यादव और रानी चटर्जी समेत कई भोजपुरी सेलेब्स ने कमेंट कर स्टार के जल्दी स्वस्थ होने की कामना की. वहीं अगर बात करें कोरोना की तो बीते एक ही महीने में करीब 50 से अधिक स्टार्स को कोरोना ने अपनी चपेट में ले लिया है. टीवी इंडस्ट्री के कुछ शोज पर कोरोना अटैक हुआ है. इनमें अनुपमा, इंडियन आइडल 12 और भी कई सारे शोज शामिल हैं.

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Lockdown Returns: आखिर पिछले बुरे अनुभव से सरकार कुछ सीख क्यों नहीं रहीं?

भले अभी साल 2020 जैसी स्थितियां न पैदा हुई हों, सड़कों, बस अड्डों, रेलवे स्टेशनों में भले अभी पिछले साल जैसी अफरा तफरी न दिख रही हो. लेकिन प्रवासी मजदूरों को न सिर्फ लाॅकडाउन की दोबारा से लगने की शंका ने परेशान कर रखा है बल्कि मुंबई और दिल्ली से देश के दूसरे हिस्सों की तरफ जाने वाली ट्रेनों में देखें तो तमाम कोविड प्रोटोकाॅल को तोड़ते हुए लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी है. पिछले एक हफ्ते के अंदर गुड़गांव, दिल्ली, गाजियाबाद से ही करीब 20 हजार से ज्यादा मजदूर फिर से लाॅकडाउन लग जाने की आशंका के चलते अपने गांवों की तरफ कूच कर गये हैं. मुंबई, पुणे, लुधियाना और भोपाल से भी बड़े पैमाने पर मजदूरों का फिर से पलायन शुरु हो गया है. माना जा रहा है कि अभी तक यानी 1 अप्रैल से 10 अप्रैल 2021 के बीच मंुबई से बाहर करीब 3200 लोग गये हैं, जो कोरोना के पहले से सामान्य दिनों से कम, लेकिन कोरोना के बाद के दिनों से करीब 20 फीसदी ज्यादा है. इससे साफ पता चल रहा है कि मुंबई से पलायन शुरु हो गया है. सूरत, बड़ौदा और अहमदाबाद में आशंकाएं इससे कहीं ज्यादा गहरी हैं.

सवाल है जब पिछले साल का बेहद हृदयविदारक अनुभव सरकार के पास है तो फिर उस रोशनी में कोई सबक क्यों सीख रही? इस बार भी वैसी ही स्थितियां क्यों बनायी जा रही हैं? क्यों आगे आकर प्रधानमंत्री स्पष्टता के साथ यह नहीं कह रहे कि लाॅकडाउन नहीं लगेगा, चाहे प्रतिबंध और कितने ही कड़े क्यों न करने पड़ंे? लोगों को लगता है कि अब लाॅकडाउन लगना मुश्किल है, लेकिन जब महाराष्ट्र और दिल्ली के खुद मुख्यमंत्री कह रहे हों कि स्थितियां बिगड़ी तो इसके अलावा और कोई चारा नहीं हैं, तो फिर लोगों में दहशत क्यों न पैदा हो? जिस तरह पिछले साल लाॅकडाउन में प्रवासी मजदूरों की दुर्दशा हुई थी, उसको देखते हुए क्यों न प्रवासी मजदूर डरें ?

पिछले साल इन दिनों लाखों की तादाद में प्रवासी मजदूर तपती धूप व गर्मी में भूखे-प्यासे पैदल ही अपने गांवों की तरफ भागे जा रहे थे, इनके हृदयविदारक पलायन की ये तस्वीरें अभी भी जहन से निकली नहीं हैं. पिछले साल मजदूरों ने लाॅकडाउन में क्या क्या नहीं झेला. ट्रेन की पटरियों में ही थककर सो जाने की निराशा से लेकर गाजर मूली की तरह कट जाने की हृदयविदारक हादसों का वह हिस्सा बनीं. हालांकि लग रहा था जिस तरह उन्होंने यह सब भुगता है, शायद कई सालों तक वापस शहर न आएं, लेकिन मजदूरों के पास इस तरह की सुविधा नहीं होती. यही वजह है कि दिसम्बर 2020 व जनवरी 2021 में शहरों में एक बार फिर से प्रवासी मजदूर लौटने लगे या इसके लिए विवश हो गये. लेकिन इतना जल्दी उन्हें अपना फैसला गलत लगने लगा है. एक बार फिर से वे पलायन के लिए विवश हो रहे हैं.

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प्रवासी मजदूरों के इस पलायन को हर हाल में रोकना होगा. अगर हम ऐसा नहीं कर पाये किसी भी वजह से तो चकनाचूर अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाना सालों के लिए मुश्किल हो जायेगा. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) के अनुसार लगातार छह सप्ताह से कोविड-19 संक्रमण व मौतों में ग्लोबल वृद्धि हो रही है, पिछले 11 दिनों में पहले के मुकाबले 11 से 12 फीसदी मौतों में इजाफा हुआ है. नये कोरोना वायरस के नये स्ट्रेन से विश्व का कोई क्षेत्र नहीं बचा, जो इसकी चपेट में न आ गया हो. पहली लहर में जो कई देश इससे आंशिक रूप से बचे हुए थे, अब वहां भी इसका प्रकोप जबरदस्त रूप से बढ़ गया है, मसलन थाईलैंड और न्यूजीलैंड. भारत में भी केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के डाटा के अनुसार संक्रमण के एक्टिव केस लगभग 13 लाख हो गये हैं और कुछ दिनों से तो रोजाना ही संक्रमण के एक लाख से अधिक नये मामले सामने आ रहे हैं.

जिन देशों में टीकाकरण ने कुछ गति पकड़ी है, उनमें भी संक्रमण, अस्पतालों में भर्ती होने और मौतों का ग्राफ निरंतर ऊपर जा रहा है, इसलिए उन देशों में स्थितियां और चिंताजनक हैं जिनमें टीकाकरण अभी दूर का स्वप्न है. कोविड-19 संक्रमितों से अस्पताल इतने भर गये हैं कि अन्य रोगियों को जगह नहीं मिल पा रही है. साथ ही हिंदुस्तान में कई प्रांतों दुर्भाग्य से जो कि गैर भाजपा शासित हैं, वैक्सीन किल्लत झेल रहे हैं. हालांकि सरकार इस बात को मानने को तैयार नहीं. लेकिन महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उधव ठाकरे तक सार्वजनिक रूप से कह चुके हैं कि उनके यहां महज दो दिन के लिए वैक्सीन बची है और नया कोटा 15 के बाद जारी होगा.

हालांकि सरकार ने इस बीच न सिर्फ कोरोना वैक्सीनों के फिलहाल निर्यात पर रोक लगा दी है बल्कि कई ऐसी दूसरी सहायक दवाईयों पर भी निर्यात पर प्रतिबंध लग रहा है, जिनके बारे में समझा जाता है कि वे कोरोना से इलाज में सहायक हैं. हालांकि भारत में टीकाकरण शुरुआत के पहले 85 दिनों में 10 करोड़ लोगों को कोविड-19 के टीके लगाये गये हैं. लेकिन अभी भी 80 फीसदी भारतीयों को टीके की जद में लाने के लिए अगले साल जुलाई, अगस्त तक यह कवायद बिना रोक टोक के जारी रखनी पड़ेगी. हालांकि हमारे यहां कोरोना वैक्सीनों को लेकर चिंता की बात यह भी है कि टीकाकरण के बाद भी लोग न केवल संक्रमित हुए हैं बल्कि मर भी रहे हैं.

31 मार्च को नेशनल एईएफआई (एडवर्स इवेंट फोलोइंग इम्यूनाइजेश्न) कमेटी के समक्ष दिए गये प्रेजेंटेशन में कहा गया है कि उस समय तक टीकाकरण के बाद 180 मौतें हुईं, जिनमें से तीन-चैथाई मौतें शॉट लेने के तीन दिन के भीतर हुईं. बहरहाल, इस बढ़ती लहर को रोकने के लिए तीन टी (टेस्ट, ट्रैक, ट्रीट), सावधानी (मास्क, देह से दूरी व नियमित हाथ धोने) और टीकाकरण के अतिरिक्त जो तरीके अपनाये जा रहे हैं, उनमें धारा 144 (सार्वजनिक स्थलों पर चार या उससे अधिक व्यक्तियों का एकत्र न होना), नाईट कर्फ्यू सप्ताहांत पर लॉकडाउन, विवाह व मय्यतों में निर्धारित संख्या में लोगों की उपस्थिति, स्कूल व कॉलेजों को बंद करना आदि शामिल हैं. लेकिन खुद केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डा. हर्षवर्धन का बयान है कि नाईट कफर््यू से कोरोनावायरस नियंत्रित नहीं होता है, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसे ‘कोरोना कफर््यू’ का नाम दे रहे हैं ताकि लोग कोरोना से डरें व लापरवाह होना बंद करें (यह खैर अलग बहस है कि यही बात चुनावी रैलियों व रोड शो पर लागू नहीं है).

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महाराष्ट्र के स्वास्थ्य मंत्री राजेश टोपे का कहना है कि राज्य का स्वास्थ्य इन्फ्रास्ट्रक्चर बेहतर करने के लिए दो या तीन सप्ताह का ‘पूर्ण लॉकडाउन’ बहुत आवश्यक है. जबकि डब्लूएचओ की प्रवक्ता डा. मार्गरेट हैरिस का कहना है कि कोविड-19 के नये वैरिएंटस और देशों व लोगों के लॉकडाउन से जल्द निकल आने की वजह से संक्रमण दर में वृद्धि हो रही है. दरअसल, नाईट कफर््यू व लॉकडाउन का भय ही प्रवासी मजदूरों को फिर से पलायन करने के लिए मजबूर कर रहा है. नया कोरोनावायरस महामारी को बेहतर स्वास्थ्य इन्फ्रास्ट्रक्चर और मंत्रियों से लेकर आम नागरिक तक कोविड प्रोटोकॉल्स का पालन करने से ही नियंत्रित किया जा सकता है.

लेकिन सरकारें लोगों के मूवमेंट पर पाबंदी लगाकर इसे रोकना चाहती हैं, जोकि संभव नहीं है जैसा कि पिछले साल के असफल अनुभव से जाहिर है. अतार्किक पाबंदियों से कोविड तो नियंत्रित होता नहीं है, उल्टे गंभीर आर्थिक संकट उत्पन्न हो जाते हैं, खासकर गरीब व मध्यवर्ग के लिए. लॉकडाउन के पाखंड तो प्रवासी मजदूरों के लिए जुल्म हैं, क्रूर हैं. कार्यस्थलों के बंद हो जाने से गरीब प्रवासी मजदूरों का शहरों में रहना असंभव नहीं तो कठिन अवश्य हो जाता है, खासकर इसलिए कि उनकी आय के स्रोत बंद हो जाते हैं और जिन ढाबों पर वह भोजन करते हैं उनके बंद होने से वह दाल-रोटी के लिए भी तरसने लगते हैं.

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#Lockdown: लौक डाउन की पाबन्दी में अनचाही प्रैगनेंसी से कैसें बचें

कोरोना के खतरे को देखते हुए अब आप भी घर से बाहर नहीं निकलेंगें और जब घर से बाहर नहीं निकलेंगे तो निश्चित ही खाली तो बैठेंगे नहीं. आप कहानियां पढेंगे, टीवी देखेंगे, सोसल मीडिया की ख़ाक छानेंगे, कोरोना के बारे में जाननें के लिए इंटरनेट की दुनियां में खो भी जायेंगे. भले ही आप ने आज तक घर में बीबी के साथ खाना पकाने में मदद न की हो लेकिन इस खाली समय में आप अब खाना भी पकाएंगे. यह सब करनें से तो दिन कटने वाला नहीं हैं. इस लिए बीबी के साथ रोमांस भी तो करेंगे.

लेकिन संभल कर क्यों की अगर आप का परिवार पूरा हो चुका है और अब आप और बच्चे नहीं चाहते हैं या अभी आप नें  बच्चे ही की प्लानिंग ही नहीं की है तो कोरोना लौकडाउन में किये जाने वाले रोमांस के दौरान की छोटी सी भी लापरवाही आप के और आपके साथी के लिए मुसीबत बन सकता हैं. क्यों की रोमांस करने को सरकार ने इमरजेंसी में तो रखा नहीं है. ऐसे में हमबिस्तर से होने वाली अनचाही प्रेगनेंसी से बचनें के लिए आप बाहर निकल कर कंडोम, कौन्ट्रसेप्टिव पिल यानी गर्भनिरोधक गोली जैसी कोई चीज नहीं ले सकतें हैं.

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चूंकि आप लौकडाउन के चलते घर में कैद हैं तो कहीं ऐसा न हो की आप की हमबिस्तर होने की चाहत साथी के ऊपर भारी पड़ जाए. तो ऐसे में गर्भनिरोधक की कमी के चलते साथी प्रैग्नेंट भी न हों और लौकडाउन में रोमांस भी हो जाए. इसके लिए इन उपायों को अपना कर आप अनचाही प्रैगनेंसी से बच सकतें हैं.

पुलआउट मैथेड

कोरोना के कहर के बीच और लौकडाउन के दौरान अगर आप के पास कंडोम या गर्भनिरोधक गोलियों का स्टाक ख़त्म हो गया है या उपलब्धता नहीं हो पा रही है तो निश्चित ही यह मैथेड आप के लिए प्रभावी हो सकता है. ऐसे स्थिति में सेक्स के दौरान मेल साथी को सेक्स के अंतिम क्षणों में अपने अंग को वेजाइना से बाहर निकालना होता है. जिससे शुक्राणु गर्भाशय तक नहीं पहुंच पाते है. इस वजह से गर्भधारण की संभवना शून्य हो जाती है. लेकिन पुलआउट कंडीशन में सेल्फ कंट्रोल की बड़ी आवश्यकता होती है. ऐसे में जब आप के पास कोई उपाय नहीं है तो आप के सामने यही एक सहारा हो सकता है .

स्वास्थ्य कर्मियों का ले सहारा – 

लौकडाउन के दौरान भले ही आप के बाहर निकलनें पर पाबन्दी लगी हो लेकिन शहरों से लेकर गाँवों तक में तैनात स्वास्थ्य कर्मियों की इमरजेंसी ड्यूटी लगाईं गई है. जिन्हें परिवार को सीमित करने के साधनों को मुफ्त या बहुत ही मामूली कीमत पर वितरण हेतु उपलब्ध कराया गया है. इन स्वास्थ्य कर्मियों में आशा, ए एन एम जैसे लोग शामिल हैं. जिन्हें महानगरों से लेकर गांवों तक में सभी राज्यों में तैनात किया गया है. इनको आप काल कर घर पर बुला सकते हैं और उनसे आप अनचाही प्रेग्नेसी से बचनें वाले साधनों की मांग कर सकतें हैं. इसके अलावा मेडिकल स्टोर्स के खुलने पर भी पाबंदी नहीं लगाईं गई है और कई जगहों पर मेडिकल स्टोर्स संचालकों को होम डिलेवरी का भी निर्देश दिया गया है. इनको भी आप फोन कर कंडोम , कौन्ट्रसेप्टिव पिल्स मंगा सकतें हैं.

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किन साधनों का करें उपयोग-

हमबिस्तर के दौरान वैसे तो आप अपनें मर्जी से परिवार नियोजन के साधनों का उपयोग कर सकतें हैं. अगर आपने बिना किसी गर्भनिरोधक साधन के ही सम्बन्ध बना लिया है तो इसके लिए आप आशा कर्मी से इमरजेंसी कौन्ट्रसेप्टिव पिल्स की मांग कर सकतें हैं. इसे हमबिस्तर होने के 72 घंटों के भीतर महिला को खाना होता है. यह इमरजेंसी कौन्ट्रसेप्टिव पिल्स आशा के पास केंद्र सरकार द्वारा राज्य सरकारों को भरपूर मात्रा में उपलब्ध कराई गई हैं. इनके पास कंडोम भी मुफ्त वितरण के लिए उपलब्ध कराया गया है. इसके अलावा माला डी, माला एन जैसी गोलियों का उपयोग भी किया जा सकता है. यह गोलियां भी स्वास्थ्य कर्मियों को फोन कर घर पर ही मुफ्त में मंगाया जा सकता है. लेकिन माला डी, माला एन जैसी गोलियां स्टीरौयड होने के कारण हौर्मोनल होती हैं.  जिसके शरीर पर साइड इफेफ्ट भी देखे जा सकतें है लेकिन इस लॉक डाउन के दौरान यह भी आप की साथी बन सकती हैं.

छाया सबसे अच्छा साधन – 

लौकडाउन के बीच लगी पाबंदियों में अनचाहे गर्भ से बच पायें इसके लिए उपलब्ध साधनों में शामिल खाने की गोलियों में छाया को सबसे अच्छा माना गया है. यह नान हार्मोनल गोली है जो सरकार द्वारा मुफ्त वितरण हेतु छाया के नाम से स्वास्थ्य कर्मियों को को उपलब्ध कराई गई है. महिला को इसे माला-एन की तरह प्रतिदिन सेवन नहीं करना पड़ता है. छाया गर्भनिरोधक गोलियों का सेवन तीन माह तक सप्ताह में दो बार और तीन माह पूरा होने के बाद सप्ताह में केवल एक बार ही करना होता है. इसमें स्टीरॉयड न होने से यह नान हर्मोनल गर्भ निरोधक गोली होती है, जिसका कोई साइड इफेक्ट नहीं होता है. हार्मोनल गोलियों की तरह छाया के सेवन से मोटापा, मतली होना, उल्टी या चक्कर आना, अधिक रक्तस्त्राव, मुहांसे जैसे कोई दुष्प्रभाव नहीं होते.  इस कारण यह अधिक सुरक्षित है.
तो आप भी लॉक डाउन के दौरान निश्चिंत होकर घर पर अपने साथी के साथ रोमांस कर सकतें है, हमबिस्तर हो सकतें हैं. बस ऊपर बताई गई बातों का ख्याल आप को रखना होगा. आप यह न सोचें की आप को इस इमरजेंसी में गर्भनिरोधक साधन कहाँ मिलेंगे. आप इसे स्वास्थ्य कर्मियों से मुफ्त में घर मंगा सकतें हैं इसके अलावा सेल्फ कंट्रोल द्वारा पुलआउट मैथेड का प्रयोग भी कर सकतें हैं. इस लिए इन बातों का ध्यान जरुर रखें नहीं तो लॉक डाउन की पाबंदियां अनचाहे गर्भ के रूप में सामने आ सकतीं हैं.
इन उपायों के अलावा भी अनचाही प्रैग्नेसी से बचनें के कई स्थाई और अस्थाई उपाय हैं जिसका उपयोग किया जा सकता है. लेकिन यह समय बाकी के उपायों के अजमाने का नहीं हैं. इसे लिए इन्हीं उपायों के सहारे आप साथी के साथ को हसीन बना सकतें हैं.

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गौहर खान ने तोड़ी कोरोना गाइडलाइंस, दर्ज हुआ FIR

बिग बॉस फेम  ऐक्ट्रेस गौहर खान के खिलाफ कोरोना की गाइडलाइंस का उल्लंघन करने पर बीएमसी ने एफआईआर दर्ज की है. बीएमसी ने ट्विट कर बताया कि  गौहर की कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव आई थी, और उन्होंने लापरवाही दिखाई.

दरअसल एक्ट्रेस पर कोरोना पॉजिटिव होने के बावजूद नियमों का उल्लंघन करते हुए बाहर घूमने और शूटिंग करने का आरोप है.

खबर यह आ रही है कि गौहर खान के पास कोरोना की दो रिपोर्ट थी जिसमें एक रिपोर्ट मुंबई की है जिसमें उनका कोविड टेस्ट पॉजिटिव है तो वहीं दूसरी रिपोर्ट दिल्ली की है, जो नेगेटिव आई है.

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मिली जानकारी के अनुसार एक्ट्रेस पर आरोप है कि कोरोना पॉजिटिव आने के बावजूद भी गौहर बाहर घूम रही हैं. इस बारे में कुछ लोगों ने शिकायत भी की थी.

 

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रिपोर्ट्स के अनुसार जब बीएमसी वाले गौहर के घर पहुंचे तो उन्होंने दरवाजा नहीं खोला और ना ही उनका फोन पिक किया. इसके बाद बीएमसी ने अपने ट्विटर अकाउंट से पर गौहर के खिलाफ एक ट्वीट कर जानकारी दी कि कोरोना गाइडलाइन्स का उल्लंघन करने के लिए गौहर के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है. बीएमसी एफआईआर की एक कॉपी भी ट्वीट की.

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आपको बता दें कि कुछ दिनों पहले ही गौहर खान के पिता का निधन हो गया था. उनके पिता जफर अहमद खान लंबे समय से बीमार चल रहे थे और अस्‍पताल में एडमिट थे.

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