धरातल पर नदारद हैं सरकारी ऐलान

लेखक- धीरज कुमार

मुंबई में 25 साल के सरोज कुमार ठाकुर अपने 2 दोस्तों 20 साल के सोनू कुमार और 23 साल के विकास कुमार के साथ रहते थे. तीनों हास्पिटल में हास्पिटल ब्रदर का काम करते थे. लौकडाउन के बाद वे अपने पैसे से खातेपीते रहे, लेकिन जब पैसा खत्म हो गया तो जिंदगी बचाने के लिए सिर्फ एक ही उपाय था, किसी तरह घर पहुंचना. और फिर उन तीनों ने मिल कर घर जाने का फैसला किया. घर से खाते पर पैसे मंगवाए. किसी तरह वहां से पैदल निकले. कुछ दिन पैदल चलने के बाद उन्हें एक ट्रक वाला मिला जिस ने पहले तो उन्हें लिफ्ट दी लेकिन बाद में उन तीनों से 9,000 रुपए भाड़े के रूप में ले लिए.

ट्रक वाले ने उन्हें बनारस छोड दिया. बनारस से छोटी गाड़ी कर के वे रोहतास, बिहार पहुंचे. घर पहुंचने के बाद शांति महसूस हुई, लेकिन गांव वालों ने गांव के बाहर ही रोक कर क्वारंटीन सैंटर, जो अपने ही पंचायत के सरकारी स्कूल में बना है, वहां जाने का आदेश दिया .अभी वे तीनों कुछ दिन यही रहेंगे. खानेपीने का इंतजाम सरकार द्वारा किया गया है, लेकिन इंतजाम ठीक नहीं है. गांव वाले ऐसे बरताव कर रहे हैं जैसे वे सब अछुत हैं. जिन दोस्तों व परिवार के लिए इतनी मुश्किलें झेलने के बाद जिंदगी पर खेल कर गांव पहुंचे हैं, सभी मिलने से डर रहे हैं. चाहे फिर घरपरिवार के लोग हों या दोस्त.

ये भी पढ़ें- गुरुजी का नया बखेड़ा

डेहरी ब्लौक के पहलेजा गांव के 42 साल के सत्येंद्र शर्मा और 37 साल के संजय शर्मा इंदौर, मध्य प्रदेश में रहते थे. वे वहां फर्नीचर बनाने का काम करते थे. उन का 17 साल का भतीजा इम्तिहान देने के बाद घूमने गया था. वहां काम बंद हो गया. खाने के लाले पड़ने लगे. तीनों ने अपनी मोटरसाइकिल से घर आने का फैसला किया. वे 3 दिनरात मोटरसाइकिल चला कर घर पहुंच गए. सिर्फ रात में कुछ घंटे के लिए पेट्रोल पंप पर सोए. रास्ते में किसी से भी खानापीना तक नहीं लिया, क्योंकि वे काफी डरे हुए थे. अब वे लोग गांव के स्कूल में क्वारंटीन सैंटर पर रह रहे हैं.

दिल्ली में 26 साल के अनुज कुमार, 24 साल के अनूप कुमार और 19 साल के मुकेश प्रसाद कंस्ट्रक्शन कंपनी में काम करते थे. तीनों एक ही गांव के थे. वे कंस्ट्रक्शन कंपनी में मिक्चर मशीन में ड्राइवर और हैल्पर का काम करते थे. तीनों का एक ही मकसद था, पैसा कमा कर घर के लोगों को बेहतर जिंदगी देना. लेकिन वे कभी सपने में भी नहीं सोचे थे कि इस महामारी में फंस जाएंगे और जिंदगी को बचाना भी बड़ा मुश्किल हो जाएगा.

वे तीनों कहते हैं कि अब कभी भी दिल्ली नहीं जाएंगे. जब से महामारी फैली है, वे दहशत में जी रहे थे. जिस तरह से दिल्ली में माहौल बन चुका था, ऐसा नहीं लगता था कि वे कभी घर पहुंच पाएंगे. घर की दहलीज पर आ कर भी वे घरपरिवार से दूर हैं, इस बात का अफसोस रहेगा, लेकिन सिर्फ कुछ दूरी पर घर होने के बाद भी वे लोग फोन से घर का हालचाल ले रहे हैं.

ये भी पढ़ें- आपदा बनी सत्ता के लिए एक अवसर

जब उन से कहा गया कि सरकार तो ट्रेन चला रही है, वहां से मजदूरों को ला रही है तो उन का कहना था कि ट्रेन आप के मोबाइल में चल रही होगी. हम मजदूरों के लिए तो ट्रेन नहीं चल रही है. अगर ट्रेन चल रही होती तो हम पैदल या इस तरह से ट्रक में जानवरों की तरह बैठ कर घर नहीं आते. सुने तो हम लोग भी थे कि मोदीजी विदेश में रहने वाले लोगों को हवाईजहाज से अपने देश वापस ला रहें हैं, पर हम मजदूरों को मरने के लिए छोड़ दिए, क्योंकि हम सब गरीब थे. ऐसी जिल्लत भरी जिंदगी कभी नहीं देखी थी, लेकिन हम लोगों को कोरोना महामारी ने ऐसा दिखा दिया. अब घर पर ही छोटामोटा काम कर लेंगे, लेकिन दोबारा पलट कर वहां कभी नहीं जाएंगे

ये उदाहरण तो सिर्फ बानगी भर हैं. बहुत से लोगो के जिंदगी संकट में पड़ गई थी. बहुत से लोग काफी परेशान थे. परेशानी के इस आलम में जिंदगी बचाना मुश्किल लग रहा था. जो बच कर आए थे वे अपनेआप को खुशनसीब समझ रहे थे. ज्यादातर लोगों का यही कहना था कि जब हम लोग संकट में घिर गए थे, तो ऐसा लग ही नहीं रहा था कि हम लोग इस देश के नागरिक नहीं हैं. लोगों का  बरताव बदल गया था.

उन लोगों का कहना था कि राज्य सरकार के पास इतना इंतजाम नहीं है कि हम सब को रोजगार दे. वर्तमान मुख्यमंत्री हमारे राज्य में 15 साल से शासन कर रहे हैं, लेकिन अभी तक हम बेरोजगारों के लिए कोई इंतजाम नहीं कर पाए हैं. जब हम दूसरे राज्यों में रोजगार के लिए जाते हैं और पैसा कमा कर अपने राज्य में भेजते हैं, तो हमारे परिवार के लोग उसब्से सामान खरीदते हैं. सरकार उन सामानों पर टैक्स लेती है. क्या उस पैसे से राज्य का विकास नहीं हो रहा है?

बहुत से क्वारंटीन सैंटरों पर इंतजाम इतना खराब था कि कई जगह पर तो मजदूर बगावत भी कर रहे थे. लोग देखरेख करने वाले पर अपना गुस्सा उतार रहे थे. राज्य सरकार की बदइंतजामी का आलम यह था कि लोग कहीं भोजन के लिए परेशान थे, तो कहीं रहने का इंतजाम भी ठीक नहीं था. देखरेख करने वाले शिक्षकों को भी उचित किट नहीं दी गई थी.

डेहरी के पहलेजा पंचायत के सरकारी स्कूल को क्वारंटीन सैंटर बनाया गया है जिस में अलगअलग राज्यों से आए हुए मजदूरों की तादाद 60 है. इसी पंचायत के मुखिया प्रमोद कुमार सिंह ने बताया, “क्वारंटीन सैंटर पर 30 मजदूरों के लिए इंतजाम किया गया है. जिस तरह से राज्य सरकार ने ऐलान किया है, उस तरह सरकारी मुलाजिम इंतजाम करने में कतरा रहे हैं, क्योंकि यहां अफसरशाही ज्यादा है.

“लेकिन गांव का मुखिया होने के नाते मैं अपने खर्च पर लोगों के लिए सब्जी बनवाने और दूसरी तरह के इंतजाम कर रहा हूं, क्योंकि वे लोग हमारे हैं. राज्य सरकार सारी घोषणाएं अखबार में तो कर दी है, लेकिन सुविधाएं धरातल पर नदारद हैं.”

लौकडाउन की घोषणा होने से पहले केंद्र सरकार को मजदूरों के बारे में भी सोचना चाहिए था. जो समस्याएं आज आई हैं, उन के बारे में अगर पहले सरकार सजग होती तो आज जिस तरह से उन के साथ समस्याएं हो रही हैं, वे नहीं होतीं.

सरकार चाहती तो उन मजदूरों को तबाह होने से बचा सकती थी, क्योंकि पहला मामला 22 जनवरी को केरल में मिला था. सरकार को अंतर्राष्ट्रीय सेवाएं बंद कर देनी चाहिए थीं. देश के विभिन्न राज्यों में जो मजदूर असंगठित क्षेत्र में काम कर रहे थे, उन्हें सुरक्षित अपने राज्य में जाने की सूचना दी जा सकती थी. केंद्र सरकार ने भी इन मजदूरों के बारे में कुछ नहीं सोचा, क्योंकि ये गरीब परिवार से आते थे. सरकार ने सिर्फ नेताओं ,पूंजीपतियों और उद्योगपतियों के बारे में सोचा.

अब देखना यह होगा कि इस महामारी के बाद राज्य सरकार आए हुए मजदूरों के लिए क्या इंतज करती है. सरकार ने तो यह घोषणा कर दी है कि सभी मजदूरों को हर महीने 1,000 रुपये खाते में दिए जाएंगे, साथ ही मजदूरों के लिए राशन भी दिया जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं लगता है. सरकार की घोषणाएं अखबार में तो खूब दिख जाएंगी, पर धरातल पर नदारद रहती हैं.

आपदा बनी सत्ता के लिए एक अवसर

कहा जाता है कि आपदा अपने साथ मौके ले कर आती है. सत्ता साजिशों में कामयाब होती है, तो उन्हें अपने लिए मौकों में तबदील कर लेती है और जनता जागरूक व लड़ाकू होती है तो हालात को अपने मुताबिक ढाल लेती है.

भारत के लिहाज से आज के हालात देखें तो सत्ता इस कोरोना रूपी आपदा को मौके में तबदील करती नजर आ रही है. सरकारों ने लौकडाउन के बीच नियम बनाया कि 33 फीसदी से ले कर 50 फीसदी तक लोग काम कर सकते हैं, मगर साथ में श्रम कानूनों में बदलाव कर के काम के घंटे 8 से बढ़ा कर 12 कर दिए हैं यानी तैयारी ऐसी कि जो मजदूर पलायन कर के जा रहे हैं, उन में से 50 फीसदी के लिए दोबारा आने के दरवाजे बंद हो जाएंगे. कम वेतन में ज्यादा काम करवाने का इंतजाम कर लिया गया है.

भारत में  43 करोड़ मजदूर हैं, जिन में से तकरीबन 39 करोड़ असंगठित क्षेत्र से हैं. मतलब साफ है कि तकरीबन 18 करोड़ मजदूरों की नौकरी जा सकती है. सरकार ने 40,000 करोड़ रुपए मनरेगा के लिए अतिरिक्त आवंटित किए हैं, ताकि कुछ दिनों के लिए मजदूर वहीं लग जाएं और उस समय का इस्तेमाल करते हुए पूंजीवादी मौडल को दुरुस्त कर लिया जाए.

ये भी पढ़ें- पौलिटिकल राउंडअप : चिराग पासवान का ऐलान

विदेशों से लाखों लोग हवाईजहाजों से लाए गए व विभिन्न राज्यों में फंसे पैसे वाले परिवारों के छात्रों को एसी बसों से घर लाया गया, मगर मजदूरों की गांव वापसी की राहों में कांटे बिछा कर डरावना अनुभव करवाया जा रहा है. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण कह रही हैं कि विपक्ष राजनीति कर रहा है, राज्य सरकारें अतिरिक्त ट्रेनों की मांग क्यों नहीं कर लेतीं? वित्त मंत्री को पता है कि सब से बुरी हालत मध्य प्रदेश, बिहार व उत्तर प्रदेश के मजदूरों की हो रही है और तीनों राज्यों में इन की ही सरकार है, मगर वे विपक्ष पर आरोप लगाते हुए कह रही हैं कि पलायन करने वालों की पीड़ा पर राजनीति नहीं करनी चाहिए.

सरकार ने बड़ी चतुराई के साथ राहत पैकेज को पूंजीवादी मौडल को दुरुस्त करने की तरफ बढ़ा दिया और बातें किसानमजदूर की हो रही हैं. फिजाओं में स्वदेशी अपनाओ व आत्मनिर्भर सरीखे जुमले फेंक कर विदेशी निवेश की सीमा बढ़ा दी गई और यहां तक रक्षा उद्योगों तक मे 50 फीसदी से ज्यादा के निवेश की अनुमति दे दी गई यानी अब हमारे लिए रक्षा उपकरण बनाने वाली कंपनियों पर मालिकाना हक विदेशियों का होगा.

लाजिम है जो करोड़ों मजदूर शहरों से गांवों में गए हैं तो उन का आर्थिक भार गांवों को ही उठाना होगा और जो मनरेगा में 40,000 करोड़ रुपए अतिरिक्त दिए हैं, वे कुछ दिन मजदूरों को थामने का लौलीपौप मात्र है. किसानों को अतिरिक्त कर्जे की जो घोषणा हुई है वह किसानों को कर्ज में डुबोने वाली साबित होगी. बड़े लुटेरों के लिए दिवालिए कानून पर एक साल के लिए रोक लगा दी गई, मगर किसानों की जमीनों की कुर्की पर कोई रोक नहीं लगाई गई है. संकेत साफ है कि नई कृषि नीति के तहत कंपनियां किसानों की जमीनों पर खेती के लिए निवेश करेंगी और किसान व जो मजदूर फ्री किए गए हैं, दोनों मिल कर खेतों में मजदूरी करेंगे.

ये भी पढ़ें- Corona: यहां सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियां उड़ रहीं

किसानों व मजदूरों के लिए सत्ता की तरफ से इशारा साफ है कि उद्योगों में कम मैनपावर से ज्यादा श्रम करा कर पूंजी निर्माण करवाया जाएगा और खेतीकिसानी में ज्यादा मजदूर धकेल कर कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के जरीए खेतों पर कब्जा करवाया जाएगा. जब मजदूर व किसान सत्ता की नीतियों से समान रूप से प्रभावित होने जा रहे हैं तो आज अकेले ही मजदूर सड़कों पर क्यों पिट रहे हैं? लुटेपिटे मजदूर आने किसानों के हिस्से में ही हैं तो मजदूरों के साथ अभी किसान एकजुटता दिखाते हुए लड़ क्यों नहीं लेते?

अटल बिहारी वाजपेयी कहा करते थे कि सब्र की भी एक सीमा होती है. गुजरात के राजकोट में मजदूरों के सब्र की सीमा टूट पड़ी और उस की भेंट चढ़ गए मीडिया के लोग. दरअसल, मजदूरों की आवाज न उठाने के चलते लोग मीडिया से भी सख्त नाराज हैं.

Corona : यहां “शिक्षक” नाकेदार हैं 

शिक्षक की हमारे मन में कितनी इज्जत है. कहते हैं शिक्षक दीपक की तरह होता है जो खुद जलकर “रोशनी” फैलाता है. इतिहास में से बढ़कर एक शिक्षक हुए जिन्होंने समाज को दिशा देने में अहम भूमिका निभाई. मगर छत्तीसगढ़  में शिक्षक स्कूलों में ताले लगाकर सरकारी फरमान का निर्वहन करते  आस-पास के गांव में, पेड़ के नीचे, कहीं धूप में नाकेदार बने हुए हैं और करोना काल में आने जाने वालों का हिसाब किताब रख रहे हैं.

दुनिया भर के देशों में फैली कोरोना महामारी (कोविड 19) का असर  छत्तीसगढ़ में भी फैला हुआ है ऐसे में लाॅक डाउन की स्थिति बनी हुई है गांव गांव में लोगों ने नाके और गेट बना कर आवाजाही को रोक दिया है ताकि कोई अनजान व्यक्ति गांव में प्रवेश न कर सके मगर सरकार ने छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले में एक फरमान निकाल कर शिक्षकों को गांव गांव के नाको  पर तैनात कर दिया है अब हालात यह है कि स्कूलों में ताले लगे हुए हैं और जो शिक्षक स्कूल में बच्चों को पढ़ाता वह छत्तीसगढ़ सरकार की मेहरबानी से एक अदना सा गेटकीपर बन  कर नाके पर बैठा सरकार की असलियत को उजागर कर रहा है प्रस्तुत है एक खास रिपोर्ट-

ये भी पढ़ें- कोरोना के अंधविश्वास और टोटकों में उलझे ‌लोग

आप हैं हेड मास्टर  राठिया !

और सच  जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती वह सब हमने देखा और आपके लिए लाए हैं वह संपूर्ण  बातचीत वह सारा वीडियो जिसे देख पढ़ कर छत्तीसगढ़ शासन की असलियत को समझ पाएंगे आइए आपको ले चलते हैं छत्तीसगढ़ के जिला रायगढ़ के ग्राम धसकामुड़ा . जहां ग्रामीणों द्वारा बनाए गए  एक नाका दिखाई दे रहा है  यहाँ  एक बुजुर्ग  खड़ा हुआ है. हमने उनसे जानना चाहा आप कौन हैं क्या कर रहे हैं?

उनका जवाब सुनकर हम हैरान रह गए और हमें अपनी व्यवस्था पर शर्म आई. शख्स ने बताया कि वे गांव के प्राथमिक विद्यालय मे हेड मास्टर है.यह है हमारी  नग्न व्यवस्था!  सरकारें शिक्षक के साथ ऐसा ही व्यवहार करती रही है. बुजुर्ग हेड मास्टर ने बताया कि उसका नाम भोजराम राठिया है और वह प्राथमिक शाला धसका  मुड़ा में पदस्थ है. उसके चेहरे के हाव भाव बता रहे थे कि वह अपनी ड्यूटी बड़े ही ईमानदारी से निभा रहा है.हमारा दूसरा प्रश्न  यह था कि  गुरुजी आपको तनख्वाह कितनी मिलती है ? तो उन्होंने बड़े  शालीनता के साथ बताया कि लगभग 74000 हजार  रुपये मासिक वेतन उन्हें मिलता है.

ये भी पढ़ें- भूपेश का छत्तीसगढ़ : नशीले पदार्थ का स्वर्ग!

यह दृश्य यह बताने के लिए पर्याप्त है कि सरकार हमारे शिक्षकों का कितना ख्याल रख रही है.  और सबसे बड़ी विसंगति यह की उन्हें एक  तहसीलदार के लिखित  आदेश पर नाकेदार की ड्यूटी निभानी पड़ रही है. यह संपूर्ण व्यवस्था यह बयां करती है कि किस तरह कोरोना महामारी संक्रमण काल में जब छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल बारंबार ऑनलाइन पढ़ाई की बात कर रहे हैं करोड़ों रुपए  शासन इस पर खर्च कर रहा है मगर इसका  हश्र क्या है उसकी सच्चाई क्या है यहां जमीन पर दिखाई देती है.

भूपेश बघेल की ऑनलाइन पढाई

एक तरफ छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल बारंबार यह कहते दिखाई दे रहे हैं कि नौनिहालों को ऑनलाइन शिक्षा देने की व्यवस्था छत्तीसगढ़ सरकार ने की है. इस हेतु  आदेश जारी कर दिए गए हैं मगर लगता है कि  ऑनलाइन का यह  अश्वमेघ का घोड़ा  यहाँ आकर ठहर गया है . यहां शिक्षकों को गांव गांव के नाकों में ड्यूटी पर लगा दिया गया है जो  बेहद बेहद शर्मनाक है.

कोरोना के अंधविश्वास और टोटकों में उलझे ‌लोग

कोरोना वायरस के फैलते संक्रमण के चलते देश में उत्पन्न संकट के वक्त हमारे तौर तरीकों और आचरण ने यह साबित कर दिया है कि हिन्दुस्तान में वैज्ञानिक दृष्टिकोण के बजाय अंधविश्वास और धार्मिक रीति रिवाज कितने हावी हैं.
मध्यप्रदेश के अशोकनगर जिले के  ईसागढ़ के कंडेलगंज की चालीस वर्षीय शांतिबाई  की मौत भोपाल के एम्स  में कोरोना संक्रमण की वजह से हो गई. एम्स से सैंपल रिपोर्ट आने के बाद शांतिबाई की मौत की वजह कोरोना संक्रमण बताया गया. लेकिन इस रिपोर्ट के बाद भी मृतका का पति अजब सिंह इस मौत की वजह जादू-टोना बताता रहा. पड़ोसियों की मानें तो पत्नी के बीमार होने पर उसने घर में ही झाड़-फूंक भी कराया. लेकिन शांति बाई की हालत बिगड़ने के बाद उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया, लेकिन कोरोना संक्रमण से पीड़ित शांतिबाई को बचाया नहीं जा सका.

ये भी पढ़ें- भूपेश का छत्तीसगढ़ : नशीले पदार्थ का स्वर्ग!

कहा जाता है कि सच जब तक जूते पहनता है, तब तक झूठ पूरी दुनिया का चक्कर लगा आता है. फिलहाल यह हाल  देश के गांव, कस्बों का है ,जहां कोरोना वायरस को लेकर तरह-तरह की अफवाहें फैल रही हैं. 19 मार्च को रात 8 बजे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जैसे ही रविवार 22 मार्च को “जनता कर्फ्यू” के बाद देशवासियों से “थाली-ताली बजाने” की अपील की, वैसे ही  गांव देहातों में क‌ई प्रकार की अफवाहें तेजी से फैलने लगीं.
उत्तरप्रदेश के पिछड़े इलाके के एक गांव रामगढ़वा में अपनी ससुराल में  रह रही  वेदिका बताती कि शाम के समय गांव की महिलाएं स्नान कर पैरों में हल्दी लगाकर देहरी वाली दीवार के दोनों ओर पैरों की छाप लगाती है. और घर में जितने पुरुष सदस्य हैं, उतनी संख्या में दिया जलाती हैं.  घर की बड़ी-बूढ़ी औरतें आजकल हर रोज थाली बजाकर  “कोरोना” को भगाती हैं.
उत्तरप्रदेश के आजमगढ़ जिले के गुरेथा गांव से गुड़ बनाने मध्यप्रदेश आये आत्माराम अब अपने गांव पहुंच गए हैं. मोबाइल फोन पर  हालचाल पूछने पर बताते है कि गांव के पंडित ने यहां लोगों से कहा है कि कोरोना से बचने के लिए घर में हर रोज नियमित पूजा पाठ करना चाहिए.नीम के पेड़ के पास दिया जलाना और पेड़ को दो लोटा जल चढ़ाना, घर की चौखट पर लोहबान (लोबान) और कपूर का दिया रखना है. यही नहीं  घर के बाहर गाय के गोबर से ऊँ नमः शिवाय लिखने और बुजुर्ग महिलाओं से हर शाम थाली बजाने को भी कहा जा रहा है.
मध्यप्रदेश के झाबुआ जिले के क‌ई गांवों में लोग कोरोना को देवी प्रकोप मान रहे हैं.जिले के नवापाड़ा,रोटला, कंजवानी, वागलाघाट, टिकड़ी जैसे दर्जनों गांवों की महिलाएं कोरोना की बीमारी से बचने के लिए देवी-देवताओं की मूर्तियों पर जल और फूल चढ़ा रही हैं . इतना ही नहीं ये महिलाएं पांच से लेकर ग्यारह दिन का उपवास भी रख रही है. दिन भर के उपवास के बाद शाम को महिलाओं द्वारा देवी स्थल पर जाकर बायरस के गांव में न आने की प्रार्थना की जाती है और तभी भोजन ग्रहण करती हैं. महिलाओं का कहना है कि देवी देवताओं को ठंडा रखेंगे तो कोरोना वायरस अपने आप ठंडा हो जायेगा.

ये भी पढ़ें- Corona Virus : मैं जिंदा हूं

राणापुर ब्लौक के मेडिकल आफिसर डॉ जी एस चौहान  इसे ग्रामीणों को अंधविश्वास बताते हुए कहते हैं कि आदिवासी महिलाएं अपने भोलेपन, अज्ञानता और शिक्षा के अभाव के चलते कही सुनी बातों पर जल्दी यकीन कर‌ लेती हैं.सच तो यह है कि जब धर्म की हिमायती सरकारों और  धर्म के ठेकेदार धर्म गुरुओं, मौलाओं , शंकराचार्यों, संत-महंतों द्वारा कोरोना से बचने जो दलीलें दी जा रही हैं ,उनका अनुकरण तो देश की भोली भाली जनता आखिर करेगी ही .
मध्यप्रदेश के नरसिंहपुर जिले के एक इलाके में तो‌ पंडे पुजारियों ने‌ यह खबर फैला दी कि तुलसीदास के रामचरितमानस मानस की पुस्तक के सुंदरकांड के पन्नों को उलटाकर देखें. इन पन्नों पर उन्हें  हनुमान जी का बाल मिलेगा, उसे पानी में घोलकर पीने से कोरोना वायरस का कोई असर नहीं होगा . फिर क्या था भेड़ चाल का सिलसिला चला तो गांव के तमाम घरों में हनुमान जी के बालों की खोज शुरू हो गई. आज भी गांव कस्बों में मंगलवार, शनिवार को रामायण के सुंदरकांड का पाठ होता है ,सो रामायण के पन्नों पर पढ़ने वालों के बाल भी मिल गये. इस बाल को  हनुमान जी का प्रसाद मानकर कोरोना भगाने का अभियान शुरू हो गया.
राजस्थान के अजमेर में किशनगढ़ के गांव गुदली में तो एक पुजारी (भोपा) ने  झाड़ फूंक के जरिए कोरोना भगाने का धंधा शुरू कर दिया था. फिर क्या था गांव वालों की भीड़ कोरोना झड़वाने उसके पास आने लगी.यह पुजारी लोगों से दावा करता कि एक वार उसका झाड़ा लगने के बाद कोरोना किसी के पास तक नहीं फटकेगा .कोरोना की मार से जहां लोगों के काम धाम बंद होने से मंदी की मार पड़ रही थी ,वहीं पुजारी की झाड़ फूंक का धंधा चलने लगा और पुजारी को अच्छी खासी चढ़ोत्तरी मिलने लगी. झाड़ फूंक के चक्कर में पुजारी ने न तो लोगों से दूरी बनाई और न ही सुरक्षा उपायों की चिंता की. आखिरकार एक दिन पुजारी खुद ही कोरोना की चपेट में आ गया.जब हालत बिगड़ी तो दरगाह  पुलिस थाने में तैनात पुजारी के भाई ने उसे अजमेर के जवाहर लाल नेहरू अस्पताल के कोविड वार्ड में भर्ती कराया. जांज में यह पुजारी कोरोना पाज़ीटिव निकला तो पूरे गुदली गांव में प्रशासन ने कर्फू लगा दिया.
देश के बड़े-बड़े अस्पतालों में  जहां डाक्टर अपनी जान की परवाह किए विना कोरोना पीड़ितों की जान बचाने में लगे हैं और रिसर्च सेन्टरों में कोरोना की वैक्सीन खोजने का काम चल रह है , वहीं दूसरी ओर अंधविश्वास पंख लगाकर अपने पैर फैला रहा है. देश के इस तर के हालात देखकर तो नहीं लगता कि इस वैश्विक महामारी से जल्द छुटकारा भारत वासियों को मिलेगा.

भूपेश का छत्तीसगढ़ : नशीले पदार्थ का स्वर्ग!

छत्तीसगढ़ कोरोना महामारी के समयकाल मे नशीले पदार्थों के स्वर्ग के रूप में बदल गया है. प्रदेश के गली कूचे और शहरों, कस्बों में चारों तरफ नशे का व्यापार खुलेआम चल रहा है. यह भूपेश बघेल की प्रशासनिक दक्षता पर यह एक प्रश्न लगाता है और बताता है कि किस तरह प्रशासन की घोड़े पर भूपेश बघेल की लगाम कितनी कितनी ढीली है. छत्तीसगढ़ में चाहे प्रतिबंधित गुटखा, तंबाकू हो या अवैध शराब सब कुछ धड़ल्ले से बिक रहा है. और यह सब इन दिनों मानो किसी नदी में आई बाढ़ की भांति बौराई हुई स्थिति में है.

आपको आश्चर्य होगा कि नशीले पदार्थों की बिक्री और कालाबाजारी सारी सीमाएं तोड़ चुकी है. 5 रूपये का गुड़ाखू यहां 30 रुपए में बिकता है. 30 रूपये का गुड़ाखू छत्तीसगढ़ के गांव-गांव में 120 रूपये में बेचा जा रहा है. यही हाल विभिन्न कंपनियों के गुटखा आदि का भी हो चुका है. जिससे लोगों को एक तरह से लूटा जा रहा है.सबसे बड़ा यक्ष प्रश्न तो यह है कि जब सरकार ने इस पर प्रतिबंध लगा दिया है तो यह गली गली में, दुकान दुकान में, अबाध गति से कैसे बेचा जा रहा है?

ये भी पढ़ें- Corona Virus : मैं जिंदा हूं

दरअसल, जिस चीज पर सरकार की निगाहें इनायत अर्थात सरकार की गाज गिरती है, वह चीज ब्लैक में अवैध रूप से बिकने लगती है और भारी कीमत पर बिकती है और जिसे प्रशासन का पूरा संरक्षण रहता है.

ढीली घोड़े की लगाम

खाद्य पदार्थों के अवैध भंडारण, कालाबाजारी एवं बिक्री करने वालों पर प्रशासन सिर्फ दिखावे की कार्रवाई करता है. राजस्व, पुलिस, खाद्य और नगरीय निकायों के अधिकारी छत्तीसगढ़ के एक शहर मुंगेली के शिवाजी वार्ड में एक किराना स्टोर्स के गोदाम में दबिश देते हैं . दुकान से लगभग 30 लाख रूपये की अवैध रूप से भंडारित 48 बोरी (प्रति बोरी 200 पैकेट) राजश्री, गुटखा तंबाकू गुडाखू आदि जप्त होता है जो बताता है कि किस तरह शहरों में अवैध भंडारण जारी है और बिक्री की जा रही है. यह एक छोटा सा उदाहरण एक जिले की एक दुकान का है इससे आप अनुमान लगा सकते हैं कि छत्तीसगढ़ में हालात कितने गंभीर हो चुके हैं.

मुंगेली कलेक्टर डाॅ. सर्वेश्वर नरेंद्र भुरे ने निर्देश दिया की खाद्य पदार्थों के अवैध भंडारण, कालाबाजारी एवं बिक्री करने वालों के विरूद्ध राजस्व, पुलिस, खाद्य और नगरी निकायों के अधिकारियों द्वारा लगातार कार्रवाई की जाए . मगर अधिकारी भी तू डाल डाल मैं पात पात की तर्ज पर दिखावा कर रहे हैं . कृषि उपज मंडी में संचालित एक किराना स्टोर्स में छापा मारा गया. अधिकारियों ने शेखी बघारते हुए बताया कि यहां अधिक दर पर नमक बिक्री की शिकायत मिली थी. किराना स्टोर्स में अवैध रूप से भंडारित 81 बोरी नमक और मंडी गोदाम में भंडारित 47 बोरी नमक जब्त किया गया. दुकान सील कर दुकान संचालक के खिलाफ आवश्यक वस्तु अधिनियम के तहत सख्त कार्रवाई की गई. मगर लाखों करोड़ों की आबादी में चंद दुकानों तक पहुंचकर अधिकारी वर्ग सिर्फ औपचारिकता ही पूरी कर रहा है जमीनी सच्चाई यह है कि गांव गली मोहल्लों में यह सब अपने उफान पर है. ऐसा प्रतीत होता है कि भूपेश बघेल का अंकुश भोथरा हो चुका है.

ये भी पढ़ें- कोरोना: छत्तीसगढ़-मध्य प्रदेश मे “भारत-पाक” का बॉर्डर!

एक नजीर यह भी

अधिकारियों द्वारा एक नमकीन फैक्टरी मे छापेमारी की कार्रवाई की गई. छापेमारी के दौरान फैक्टरी में सिलौनी निर्माण के लिए उनके कर्मचारी द्वारा बिना मास्क लगाये पैर से मैदा को मिलाया जा रहा था और सिलौनी को तला जा रहा था. फैक्टरी में साफ-सफाई का भी अभाव था. सिलौनी के पैकिंग में न ही निर्माण कम्पनी का नाम और न तिथि, वैधता तिथि और न ही दर का उल्लेख किया गया था. इनके विरूद्ध प्रकरण पंजीबद्ध कर वैधानिक कार्रवाई की गयी .

इसी तरह एक अन्य किराना स्टोर्स द्वारा टाटा नमक की खुदरा मूल्य 18 रूपये प्रति पैकेट को 60 रूपये प्रति पैकेट की दर से बेचा जा रहा था. इनके विरूद्ध भी कार्रवाई करते हुए 25 हजार रूपये की जुर्माना लगाया गया . एक एजेसीं द्वारा सोशल डिस्टेसिंग का पालन नहीं करने पर एक हजार रूपये और छापामारी कार्रवाई के दौरान एक पान मसाला के दुकान में अवैध रूप से गुटखा और पान मसाला बिक्री करने पर 20 हजार रूपये की जुर्माना किया गया .

इसके अलावा नाप तौल विभाग द्वारा भी छापेमारी की कार्रवाई जारी है . छापेमारी के दौरान एक ट्रेडर्स द्वारा इलेक्ट्रानिक मशीन का सत्यापित नहीं करने पर उसके विरूद्ध दो हजार रूपये की जुर्माना किया गया. यह सब कार्रवाई बेहद अल्प रूप में हो रही है और अधिकांश जगह तो संबंधों व दबाव के कारण जुर्माना राशि वापिस भी की गई है. यही नहीं यह सत्य भी प्रकट हुआ है कि चंद दिनों में पांच लाख रुपए कमाने वाले पर अगर 20 हजार का जुर्माना लग गया तो वह खुश है. क्योंकि उसने लाखों रुपए तो कमा कर तिजोरी भर ही ली हैं.

ये भी पढ़ें- जब सड़क किनारे ही एक महिला ने दिया बच्चे को जन्म

Corona Virus : मैं जिंदा हूं

  • कोरोना और लॉक डाउन की वजह से जिंदा हुआ 3 साल पहले मरा हुआ सख्स..
  • तीन साल पहले मृत सामझ परिजनों ने किया था अंतिम संस्कार..
  • मृत समझकर नाबालिक के नरकंकाल को किया था अंतिम संस्कार..
  • 3 साल बाद आया वापस, उलझा अज्ञात नर कंकाल को जलाने का मामला..

“कोरोना काल में जिंदा हुआ कंकाल, 3 साल पहले हुई थी मौत, बेटा समझकर कंकाल का किया अन्तिमसंस्कार और तेरहवीं, अब लॉक डाउन में लौट आया बेटा तो मचा हड़कंप सब पहुंचे थाने, ये ज़िंदा है तो मरा कौन था..”

छतरपुर: लॉकडाउन होने के चलते तीन साल पहले अपने पुत्र को मृत समझकर अंतिम संस्कार करने के बाद बीते रोज वह अपने परिजनों के घर पहुंचा. जिसेे देख किशोर के माता पिता की खुशी का ठिकाना नहीं रहा जहां इसकी जानकारी पुलिस को दी गई.

ये भी पढ़ें- कोरोना: मध्य प्रदेश मे “भारत- पाक” का बॉर्डर!

कोरोना काल में ‘जिंदा’ हुआ कंकाल..

कोरोना काल में एक तरफ जहां लोगों की मौत हो रही है वहीं दूसरी तरफ बिजावर में एक कंकाल जिंदा हो गया. जहां एक तरफ इस महामारी से लोगों की मौतें हो रहीं हैंतो वहीं दूसरी ओर इस बीमारी और लॉक डाउन की वजह से एक मरा हुआ शख्स जिंदा अपने घर वापस आ गया है. इस ख़बर से लोगों में कौतूहल है तो वहीं पुलिस प्रशासन हैरान परेशान है कि अब क्या करे.

क्या है पूरा मामला..

जिले के प्राकृतिक स्थान मोनासैया के जंगल में 3 साल पहले एक नर कंकाल मिला था कपड़ों की पहचान को लेकर पुलिस ने एक व्यक्ति को सौंप दिया था जिसका पुत्र गायब था और परिजनों ने जनसमूह की उपस्थिति में उस नर कंकाल को अपना पुत्र समझकर अंतिम संस्कार कर दिया था. लेकिन मामले में उस समय नया मोड़ आ गया जब वही नाबालिक जिसको मृत समझकर 3 वर्ष पूर्व अंतिम संस्कार किया गया था.

उक्त युवक दिल्ली से रविवार की रात अपने घर वापस आया. जानकारी के अनुसार शाहगढ थाना क्षेत्र के डिलारी गांव निवासी उदय कुमार आदिवासी पिता भगोला आदिवासी (13) वर्ष गायब हो गया था. जिसमें थाना पुलिस ने फरियादी भगोला की शिकायत पर पुलिस ने धारा 363 का मामला दर्ज किया था और तभी से पूरे मामले की जांच थाना पुलिस द्वारा की जा रही थी और संदेह के आधार पर कई लोगों से पूछताछ भी की गई थी.

ये भी पढ़ें- जब सड़क किनारे ही एक महिला ने दिया बच्चे को जन्म

वहीं इसी दौरान मोनासैया के जंगल में एक नरकंकाल मिलने पर पुलिस ने भगोला को सौंप दिया और उसने अपने पुत्र का नरकंकाल समझकर अंतिम संस्कार और दिन तेरहवीें कर दी थी. इसके बाद बीते दिनों से जारी लॉकडाउन होने से रविवार की रात वही नाबालिक उदय कुमार अपने घर वापस आ गया.

उदय कुमार आदिवासी ने बताया कि वह घर से परेशान होकर 3 वर्ष पूर्व दिल्ली चला गया था. उसके बाद गुडग़ांव में 3 वर्ष से काम करके अपनी गुजर बसर कर रहा था. लेकिन कोरोना वायरस के चलते पिछले 2 माह से काम बंद होने से वह परेशान हो गया था और सभी मजदूरों को प्रशासन की देख-रेख में अपने-अपने गांव वापस भेजने का प्रबंध किया जा रहा था. इसी दौरान उदय कुमार आदिवासी भी रविवार को किसी तरह अपने गांव डिलारी पहुंच गया और परिजनों से जा मिला.

किशोर के पिता भगोला ने बताया कि इसकी सूचना उसने थाना पुलिस को दी और सोमवार को पूरे परिजन और खुद उदय कुमार एस.डी.ओ.पी. कार्यालय बिजावर पहुंचे. जहां जांच पड़ताल के बाद पुलिस ने उदयभान को परिजनों के सुपुर्द कर दिया.

किसके कंकाल का किया गया था अंतिम संस्कार..

3 साल पहले अज्ञात नर कंकाल को उदय कुमार का कंकाल समझ कर परिजनों द्वारा अंतिम संस्कार किया गया था. लेकिन वह किसका था, पुलिस द्वारा इस मामले में जांच करने की बात कह रही है.

थाना प्रभारी छत्रपाल सिंह ने बताया कि जब उदय कुमार वापस लौट आया है तो निश्चित ही वह नर कंकाल किसी अन्य का होगा. इसयकी जांच कराई जाएगी.

इनका कहना है..

SDOP बिजवार सीताराम की मानें तो तीन साल पहले गायब व्यक्ति वापस आया है, जिससे परिजनों में खुशी की लहर है. वहीं जो नर कंकाल वहां पर मिला था इसकी जांच कराई जाएंगी. जांच के बाद भी मामले में स्पष्ट जानकारी हो सकेगी.

ये भी पढ़ें- Lockdown में घटा सिजेरियन डिलीवरी का आंकड़ा

मामला चाहे जो भी हो पर हैरानी इस बात की है कि जो मर चुका था वो जिंदा वापिस आ गया पर जो मरा था आखिर वो कौन था.

अब पुलिस भी हैरान है कि जिस युवक को मरा हुआ समझकर 3 साल पहले कंकाल का अन्तिमसंस्कार कर फाइल बंद कर दी थी. अब वो फिर से खोलनी पड़ेगी. कि आखिर मरा कौन था.

हालांकि ऐसे में पुलिस की कार्यप्रणाली पर बड़े सवाल भी खड़े हो रहे हैं. और अब पुलिस कंकाल मिलने वाले केस की फाईल दोबारा खोलने की तैयारी कर रही है.

कोरोना: छत्तीसगढ़-मध्य प्रदेश मे “भारत-पाक” का बॉर्डर!

कोरोना विषाणु महामारी से दुनिया के 112 देश  त्राहिमाम कर रहे हैं. कोरोना के दंश से आम जनता कितनी पीड़ित है यह  बार-बार  उजागर हो रहा है. इस दरमियान जहां संवेदनशीलता की कई खबरें आ आ रही है वहीं कुछ  घटनाएं झकझोर देने वाली भी हो रही है.  इस दरमियान छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश के बॉर्डर पर एक ऐसी घटना घटी है जो शायद दो देशों के बीच ही घटित हो सकती है.छत्तीसगढ़ मध्य प्रदेश राज्य  कोरोना महामारी के कारण ऐसा व्यवहार कर रहे हैं मानो यह अपने आप में अलग अलग हों. और दूसरे प्रदेश के नागरिकों से उसका कोई सरोकार ना हो. छत्तीसगढ़ सरकार की हठधर्मिता के कारण कहें या अधिकारियों की नासमझी कि एक बुजुर्ग की मौत बॉर्डर पर  इसलिए हो गई क्योंकि अधिकारियों ने उन्हें रोक इलाज के लिए हॉस्पिटल नहीं जाने दिया दिया. जबकि परिजन मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ दोनों ही राज्यों में निवास करते हैं उनके पास विधिवत ई- पास भी था. बुजुर्ग इलाज के अभाव में बॉर्डर पर ही मौत का ग्रास बन गया.

कोरोना का भय!

मध्य प्रदेश में कोरोना  महामारी के कारण हाहाकार मचा हुआ है. मगर छत्तीसगढ़ इससे एक तरह से बहुत कुछ  सुरक्षित  है. आंकड़ों के मुताबिक अभी तक छत्तीसगढ़ में एक भी कोरोना पॉजिटिव की मृत्यु नहीं हुई है.

ये भी पढ़ें- जब सड़क किनारे ही एक महिला ने दिया बच्चे को जन्म

ऐसे में छत्तीसगढ़ का सत्ता प्रतिष्ठान कुछ ज्यादा ही कड़ाई करने पर उतारू हो गया है. छत्तीसगढ़ की सीमाओं को सील कर दिया गया है. परिणाम स्वरूप दूसरे  पड़ोसी प्रदेश के लोग यहां नहीं आ पा रहे उनमें ऐसे लोग भी हैं जो छत्तीसगढ़ के ही रहवासी हैं. मगर नियम कायदों का हवाला देकर रोका जा रहा है परिणाम स्वरूप एक बुजुर्ग केशव मिश्रा  की बॉर्डर पर इलाज के अभाव में मृत्यु हो गई. दरअसल यह घटना

corona-mp

मनेन्द्रगढ़ के समीप घुटरीटोला बैरियर में घटित हुई जहां बुजुर्ग के परिजनों द्वारा  बीमार को इलाज के लिए ड्यूटी पर तैनात अफसरों से छत्तीसगढ़ से मनेंद्रगढ़ स्थित सेंटर हॉस्पिटल जाने की अनुमति मांगी जा रही थी. मगर संवेदनशील कहे जाने वाली भूपेश सरकार के अधिकारी और कारिंदों ने उन्हें घंटों रोक रखा, वे रोते और गिडागिड़ाते रहे जिसकी वीडियो भी वायरल हो चुका हैं.  नतीजा यह हुआ कि 70 वर्षीय बुजुर्ग की बेरियर के निकट एक कार में अचानक  मौत हो गई.

कई प्रदेशों की सीमाएं हैं छत्तीसगढ़ से लगी

वस्तुतः राकेश और उसके भाई निलेश मिश्रा एसईसीएल  कोल इंडिया के कोरबा खदान में कार्यरत हैं. मंगलवार को अपने बीमार पिता केशव मिश्रा 70 वर्ष का उपचार कराने कार के द्वारा दोनों भाई उमरिया, मध्य प्रदेश से बिलासपुर जा रहे थे. इसी बीच रास्ते में बुजुर्ग केशव की तबियत अचानक बिगड़ने लगी.दोनों भाइयों ने सोचा कि पास मनेंद्रगढ़, छत्तीसगढ़  में एसईसीएल का सेंट्रल हॉस्पिटल है जहां उनका उपचार कराया जा सकता है. घुटरी टोला बैरियर में पहुंचने के बाद राकेश और नीलेश ने बैरियर में तैनात पुलिसकर्मियों और अधिकारियों से विनती की उन्हें पिता के उपचार के लिए सेंट्रल हॉस्पिटल तक जाने की परमिशन दे दी जाए. लेकिन लाकडाउन के चलते ड्यूटी में तैनात  अफसरों ने छत्तीसगढ़ का परमिशन न होने का हवाला देकर उन्हें मना कर दिया. दोनों भाई और उनकी बुजुर्ग  माता के रोने-गिड़गिड़ाने का भी इन कर्तव्यनिष्ठ अधिकारियों पर कोई फर्क नहीं पड़ा.

ये भी पढ़ें- Lockdown में घटा सिजेरियन डिलीवरी का आंकड़ा

नतीजा यह हुआ कि बुजुर्ग की हार्टअटैक से कार में ही मौत हो गई.जिसके बाद दोनों भाइयों का रोना बिलखना आरम्भ हो गया.  घटना की जानकारी मिलते ही मदद की और रिश्तेदार भी वहां आ पहुंचे और उन्होंने जमकर हंगामा मचाया. मामले की जानकारी फैलते ही कई अधिकारी भी घुटरी टोला बेरियर पर पहुंच गए मगर मानो उनके भी हाथ बंधे हुए थे . यहां यह बताना लाजमी होगा कि छत्तीसगढ़ एक ऐसा प्रदेश है जिसके साथ मध्य प्रदेश, झारखंड, उड़ीसा ,आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र जैसे देशों की सीमाएं सीधे-सीधे लगी हुई है.

जब सड़क किनारे ही एक महिला ने दिया बच्चे को जन्म

जब से लौकडाउन लगा है मजदूरों की स्थिति बेहद भयावह हो गई है. इन की दर्दनाक घटनाएं आएदिन समाचारों की सुर्खियां बनती जा रही हैं.

लौकडाउन के बाद जहां मजदूरों को भूखे पेट रहने पर मजबूर होना पङ रहा है, वहीं अपने गांव जाने की छटपटाहट में ये जानलेवा घटनाओं के भी शिकार हो रहे हैं. सरकारी प्रयास पर्याप्त साबित नहीं हो पा रही, ऐसे में दूसरे राज्यों में फंसे मजदूर हजारों किलोमीटर तक का सफर पैदल ही तय कर रहे हैं.

हाल ही में महाराष्ट्र के अहमदाबाद में 16 मजदूरों की मौत ट्रेन से कट कर हो गई थी और हालात ऐसे हो चुके हैं कि अब तो मजदूरों की दर्दभरी कहानियां देखसुन कर रौंगटे खड़े हो जा रहे हैं.

ये भी पढ़ें- Lockdown में घटा सिजेरियन डिलीवरी का आंकड़ा

इस बीच मजदूरों से जुङी एक घटना दिल को झकझोर देने वाली है.

एमपीमहाराष्ट्र के बिजासन बौर्डर पर नवजात बच्चे के साथ पहुंची महिला मजदूर की कहानी बेहद दर्दनाक है.

बच्चे के जन्म के 1 घंटे बाद ही उसे गोद में ले कर महिला 160 किलोमीटर तक पैदल चल कर बिजासन बौर्डर पर पहुंची.

वह गर्भ से थी और जाना 1 हजार किलोमीटर दूर था

शकुंतला नाम की एक महिला अपने पति के साथ नासिक में रहती थी. गर्भावस्था के 9वें महीने में वह अपने पति के साथ नासिक से सतना के लिए पैदल निकली. नासिक से सतना की दूरी करीब 1 हजार किलोमीटर है.

रास्ते में चलते हुए उसे लेबर पेन हुआ तो साथ चल रहे पति और दूसरे लोगों की समझ में कुछ नहीं आ रहा था. उधर महिला दर्द से तङपने लगी थी. पति की स्थिति बेहद खराब थी. जेब में फूटी कौङी भी नहीं था.

हालात इतने खराब हो गए कि बिजासन बौर्डर से 160 किलोमीटर पहले सड़क किनारे ही महिला ने बच्चे को जन्म दिया.

पुलिस वाले भी हैरान रह गए

शनिवार को महिला बिजासन बौर्डर पर पहुंची तो उस के गोद में नवजात बच्चे को देख चेकपोस्ट की एक महिला इंचार्ज उस के पास जांच के लिए पहुंची. उन्हें लगा कि महिला को मदद की जरूरत है. उस के बाद उस से बात की, तो कहने को कुछ शब्द नहीं थे.

महिला 70 किलोमीटर चलने के बाद रास्ते में मुंबई-आगरा हाइवे पर बच्चे को जन्म दिया था. इस में 4 महिला साथियों ने मदद की थी.

ये भी पढ़ें- मजदूरों का दर्द : अब शहर लौट कर कभी नहीं जाऊंगा

महिला की बातों को सुन कर पुलिस टीम अवाक रह गई. महिला ने जब यह बताया कि वह बच्चे को जन्म देने तक 70 किलोमीटर पैदल चली थी, तो पुलिस वालों का दिल भी पसीज गया.

जन्म देने के बाद भी निकल पड़ी पैदल

आश्चर्य तो यह भी है कि बच्चे को  जन्म देने के बाद वह महिला 1 घंटे सड़क किनारे ही रुकी और फिर दोबारा पैदल चलने लगी. बच्चे के जन्म के बाद वह बिजासन बौर्डर तक पहुंचने के लिए 160 किलोमीटर पैदल चली.

महिला के पति की लौकडाउन के बाद नौकरी छूट गई थी और जेब में फूटी कौङी भी नहीं थी. ऐसे में उस ने पैदल ही सतना जाने की सोची. दिक्कत यह थी कि उस की बीवी गर्भ से थी और इतनी दूर पैदल जाना इतना आसान भी नहीं था. मगर मरता क्या न करता. आखिरकार उन के बीच एक ही रास्ता था कि वे अपने गांव लौट जाएं.

साहस बटोर कर वे अन्य लोगों के साथ गांव की ओर निकल पङे मगर रास्ते में ही उस की बीवी को लेबर पेन शुरू हो गया. हालांकि बौर्डर पर मौजूद पुलिस वालों ने उस महिला की जरूर हरसंभव मदद की.

ये भी पढ़ें- कोरोना ने किया आइसक्रीम बिजनेस का कबाड़ा

मगर इस दर्दनाक कहानी के पीछे सरकारी निकम्मापन सरकार की उन दावों की भी पोल खोलता है, जिस में आम जनता और खासकर मजदूर वर्ग पिस रहा है मगर इन की सुनने वाला फिलहाल कोई नहीं.

Corona: यहां सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियां उड़ रहीं

छत्तीसगढ़ एक ऐसा राज्य है जहां कोरोना महामारी एक हद तक काबू में है. इन पंक्तियों के लिखे जाने तक इस भीषण महामारी की चपेट में एक भी शख्स की मृत्यु नहीं हुई है. शायद यही कारण है कि छत्तीसगढ़ के शहरों में कोरोना  महामारी का भय सिर्फ सरकारी विज्ञापन, पुलिस की लाठी तक केंद्रित होकर रह गया है. बाजारों में, सड़कों पर, मोहल्लों में गांव गांव में जो दृश्य देखने को मिल रहा है वह बेहद हैरत अंगेज है. क्योंकि सोशल डिस्टेंसिंग का यहां पालन नहीं हो रहा है.दूसरी तरफ

कोरोना के तेजी से बढ़ते संक्रमण और लॉक डाउन के बीच  छत्तीसगढ़  में शराब दुकानों के खोले जाने से  कांग्रेस सरकार, सोशल मीडिया से लेकर विपक्ष के निशाने में आ गई है. सरकार के खिलाफ यह नाराजगी उस वादे के उल्लंघन को लेकर है जो विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस ने किया था, वादे के अनुसार सूबे में सरकार बनने पर प्रदेश में पूर्ण शराबबंदी लागू की जाएगी. अपने इस वादे को लेकर डेढ़ साल पुरानी यह सरकार विपक्ष के निशाने पर तो पहले से ही थी लेकिन लॉक डाउन में 45 दिन दुकान बंद रखने के बाद दुबारा ऐसे वक्त में पुनः शराब दुकान चालू किये  गये जब लोगों की यह लत छूट चुकी थी. जिससे अब एक बार फिर सबके निशाने में भूपेश बघेल सरकार आ गई है.

ये भी पढ़ें- दिल्ली में शराब : जनता से ज्यादा रैवन्यू से प्यार

और हालात यह है कि इस संदर्भ में छत्तीसगढ़ की सरकार ने मौन साध लिया है. लोगों की आलोचनाओं को झेलते हुए एक मंत्री शिव कुमार डहरिया का बयान हास्यास्पद रूप से सामने आया है कि छत्तीसगढ़ में तो शराब प्रधानमंत्री मोदी के आदेश पर बेची जा रही है .

भाजपा अर्थात विपक्ष हुआ आक्रमक

प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह ने सवाल उठाते हुए कहा  है कि कांग्रेस की सरकार शराबबंदी के नाम पर बनी है. यह एक अच्छा अवसर सरकार खो  रही है क्योंकि 40 दिन तक लोग बिना शराब के रह चुके हैं. अभी तक शराब नहीं मिलने के कारण किसी की भी मृत्यु नहीं हुई है. धारा 144 के बीच शराब दुकानों में लंबी-लंबी कतारों में सोशल के साथ ही पर्सनल डिस्टेंशिंग के उल्लंघन पर डॉ रमन सिंह ने चिंता जताई है. उन्होंने कहा कि प्रदेश की भूपेश बघेल सरकार को लोगों की चिंता नहीं है. लाइन में एक दूसरे से सट कर लोग खड़े हैं, शराब दुकान प्रारंभ कर सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जी उडा़ई जा रही है. सवाल यह है कि जब सरकार के वरद हस्त में सोशल डिस्टेसिंग की धज्जियां उड़ रही हैं तो कोरोना  विषाणु  महामारी से प्रदेश आगे कैसे बचेगा यह बड़ा सवाल है.

छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री  डॉ रमन सिंह ने  एक अन्य महत्वपूर्ण मसले पर भूपेश बघेल सरकार को घेरते हुए कहा है देश के अन्य राज्यों से आने वाले नागरिकों को, परमिशन लेकर आने वालों  को राज्य की सीमा में रोका जा रहा है. जो बिना अनुमति आ रहे हैं उन्हें ट्रक में बैठाकर छोडा़ जा रहा है.

ये भी पढ़ें- केजरीवाल बनाम मोदी, मिले सुर मेरा तुम्हारा तो सुर बने हमारा

“क्वॉरेंटाइन सेंटर” में शराब पीकर लोग झूम रहे

दूसरे भाजपा के कद्दावर नेता पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने राजधानी  पत्रकारों से मुलाकात करके  सरकार के द्वारा शराब दुकान खोले जाने पर निशाना साधते हुए कहा कि कवर्धा में क्वॉरेंटाइन सेंटर में कोरोना के मरीज पाए जा रहे हैं. शराब पीकर के वहां  झूम रहे हैं. महिलाएं विरोध कर रही है तो उनके खिलाफ गंभीर धाराओं में मामला दर्ज किया जा रहा है. मामला तो उन अधिकारियों पर दर्ज होना चाहिए. जहां पर शराब दुकान में 5 से ज्यादा लोग नजर  आते हैं . उन्होंने एक सवाल के जवाब में  कहा भूपेश  सरकार अपनी पूर्ण शराबबंदी का वादा निभाए हम सरकार को उसके द्वारा किए गए वादे की याद दिलाते हैं.

बृजमोहन अग्रवाल ने कहा कि सरकार अन्य प्रदेशों से आ रहे प्रवासी मजदूरों को  लेकर राजनीति कर रही है, एक जिले से दूसरे जिले में लोगों को जाना है उसके लिए परमिशन नहीं मिल रही है. लोग अपना आवेदन लेकर केवल घूम रहे हैं अभी तक कितना पैसा आपने कोरोना के लिए खर्च किया है यह सार्वजनिक करे सरकार. सरकार यह भी सार्वजनिक करे कि सरकार के पास कितने मजदूरों और कितने छात्रों का आवेदन आया है, इसको सार्वजनिक करें और कितनी ट्रेन की मांग केंद्र सरकार से की है, उसे भी सार्वजनिक करें केवल गोलमोल बातें कर रही है कांग्रेस की भूपेश सरकार. उन्होंने धान खरीदी को लेकर भी सरकार को आड़े हाथों लिया. उन्होंने कहा कि किसानों को डिफरेंस की राशि देने के लिए मुख्यमंत्री ने विधानसभा में कहा था, लेकिन मई का महीना शुरू हो गया है और अभी तक उनके खाते में पैसे नहीं गए.

ये भी पढ़ें- केजरीवाल की नसीहत : बदलनी होगी जीने की आदत

Lockdown में घटा सिजेरियन डिलीवरी का आंकड़ा

पिछले कुछ सालों में देश में आपरेशन से होने वाले प्रसव में काफी इजाफा हुआ है जिससे सिजेरियन से होने वाली डिलीवरी पर सवाल खड़ा किये हैं क्यों की डॉक्टरों और अस्पतालों पर लगातार यह आरोप लगते रहें हैं की मुनाफाखोरी के चलते निजी अस्पताल सरकारी अस्पतालों के कर्मचारियों से मिलीभगत कर केस को जटिल बता कर अपने यहाँ रेफर करा लेते हैं जहाँ भारीभरकम राशि पर आपरेशन किया जाता है आपरेशन से होने वाले प्रसव के मामलों में हर केस पर 40 हजार से लेकर 1 लाख तक का खर्चा सामान्य तौर पर परिजनों से वसूला जाता है

लेकिन कोरोना के चलते पिछले 2 महीनों से लगाये गए लॉकडाउन ने प्राइवेट अस्पतालोंके साथ स्वास्थ्य महकमें के कर्मचारियों की मिलीभगत और कारगुजारियों की पोल खोल दी है। क्यों की लॉक डाउन के चलते सिजेरियन डिलीवरी के मामलों में काफी कमी आई है.

गर्भवती महिलाओं और बच्चों के मामलों पर काम करने वाली लखनऊ की संस्था सहयोग में टीम लीडर प्रवेश वर्मा नें संस्था द्वारा कराये गए अध्ययन के आंकड़े जारी किये है जिसमें आपरेशन से होने वाले प्रसव के मामलों में काफी कमी देखने को मिली है.

ये भी पढ़ें- कोरोना ने किया आइसक्रीम बिजनेस का कबाड़ा

उन्होंने जो आंकड़े जारी किये हैं उसमें उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में 25 मार्च से 25 अप्रैल तक 514 बच्चे पैदा हुए इसमें से मात्र 14 बच्चों का जन्म ही आपरेशन से हुआ बाकी 500 बच्चे नार्मल पैदा हुए वहीँ मध्यप्रदेश के रायसेन जिले के आंकड़ों को अगर देखा जाये तो लॉक डाउन के दौरान अप्रैल महीनें में सरकारी अस्पतालों में 12 दिनों में 52 डिलीवरी जिसमें 47 बच्चों का जन्म नार्मल तरीके से हुआ बाकी 3 बच्चे सिजेरियन के जरिये पैदा हुए

उत्तर प्रदेश के कन्नौज जिले में में अगर लॉक डाउन के दौरान होने वाले प्रसवों पर अगर नजर डाला जाए तो लॉक डाउन के बीच वहां के सरकारी अस्पतालों में कुल 285 बच्चों नें जन्म लिया जिसमें महज 23 बच्चे ही आपरेशन के जरिये पैदा हुए बाकी 262 प्रसव नार्मल ही पैदा हुए.

प्रवेश वर्मा नें बताया की सिजेरियन के जरिये होने वाले प्रसव के मामलों में यह कमी पूरे देश में दर्ज की गई है उन्होंने बताया की निजी अस्पतालों में तो 80 से 95 फीसदी प्रसव आपरेशन से ही कराये जाते थे लेकिन कोरोना के डर के चलते निजी अस्पताल अब डिलीवरी वाले केस ले ही नहीं रहें हैं ऐसे में अधिकांश डिलीवरी नार्मल तरीके से सरकारी अस्पतालों में ही हो रही हैं.

सिजेरियन में कमी का यह है कारण- देश भर में सिजेरियन के आंकड़ों में आई कमी का कारण केवल कोरोना का भय है क्यों की सिजेरियन के चलते महिला और बच्चे को 9  दिनों तक अस्पताल में में ही रुकना पड़ता है ऐसे में निजी अस्पताल डिलीवरी केस को लेने से मना कर रहें हैं क्यों की अस्पताल प्रबंधन को 9 दिनों तक महिलाओं की देखभाल करनी पड़ेगी ऐसे में अस्पताल बंद होने का हवाला केस को टरका दिया जा रहा है

सिजेरियन डिलीवरी का  क्या है गाइड लाइन  प्रवेश वर्मा नें बताया की विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्ल्यूएचओ ने सिज़ेरियन डिलीवरी को लेकर गाइड लाइन जारी किया है जिसके तहत  जितनी डिलीवरी हो रही है उसमें से महज 10 से 15 प्रतिशत ही सिज़ेरियन डिलीवरी होनी चाहिए बाकी नार्मल डिलीवरी ही होनी जरुरी है. लेकिन भरकम मुनाफाखोरी के चलते इसका उलटा होता रहा है. पर राष्ट्रीय स्वास्थ्य सर्वेक्षण में यह इससे कहीं ज्यादा पाया गया. केवल निजी अस्पतालों की बात करें तो वहां यह आंकड़ा 60% का था. राज्यवार बात करें तो तेलंगाना में यह प्रतिशत सबसे अधिक 58 है और तमिलनाडु में 34. तेलंगाना के निजी अस्पतालों में कुल प्रसव के 75% मामलों में सिज़ेरियन डिलीवरी की गई.

ये भी पढ़ें- औरतें, शराब और कोरोना

डर का है खेल – जिन मरीज़ या भावी माता को डर दिखाने वाली बात से दिल्ली के अपोलो अस्पताल के डॉ. पुनीत बेदी भी सहमत हैं. एक टीवी कार्यक्रम के दौरान उन्होंने कहा, ‘अक्सर आपने डॉक्टरों को कहते सुना होगा कि गर्भनाल बच्चे के गले में फंस गयी है. सब यह बात सुनते ही डर जाते हैं. यहां सोचने वाली बात यह है कि बच्चा पेट के अंदर नाक से सांस नहीं ले रहा होता, उसे खून के जरिये ऑक्सीजन मिल रही होती है. यह बात आप अक्सर सुनेंगे पर इसका कोई मेडिकल आधार नहीं है.’

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें