पिछले 15-20 सालों में नोएडा और ग्रेटर नोएडा का बहुत तेजी से विकास हुआ है. इस के आसपास के गांव भी विकास की दौड़ में शामिल हैं. ग्रेटर नोएडा क्षेत्र का गांव बिसरख 20 साल पहले भले ही गांव था, लेकिन अब छोटेमोटे शहरों से बेहतर है. यहां पर गौर सिटी-2 की टाउनशिप बन गई है. प्रशांत कुमार गौर सिटी-2 के गैलेक्सी नार्थ एवेन्यू-2 के फ्लैट नंबर ए-1468 में रहता था. उस के फ्लैट से 2 फ्लोर नीचे उस के दोस्त रूपेंद्र सिंह चंदेल का फ्लैट था. प्रशांत और रूपेंद्र के बीच गहरी दोस्ती थी. 28 अप्रैल, 2019 को रविवार की छुट्टी थी. उस दिन शाम करीब साढ़े 6 बजे प्रशांत घर पर ही था और पत्नी व बच्चों के साथ मौल घूमने जाने की तैयारी में लगा था. उसी वक्त उस के मोबाइल पर रूपेंद्र के बहनोई ओमवीर का फोन आया.
ओमवीर इसी सोसायटी के फ्लैट नंबर-244 में रहता था. ओमवीर ने फोन पर प्रशांत को जो कुछ बताया, उसे सुन कर वह चिंतित हो उठा. ओमवीर ने बताया था कि रूपेंद्र दोपहर में अपनी सफेद रंग की फोर्ड फिगो कार ले कर घर से गया था. उसे कुछ पैसों की जरूरत थी. वह घर से पत्नी के गहने ले कर गाजियाबाद के पी.सी. ज्वैलर्स के पास गिरवी रखने के लिए निकला था. लेकिन साढ़े 3 घंटे गुजर जाने के बावजूद अभी तक वह घर नहीं लौटा है.
ओमवीर ने यह भी बताया कि रूपेंद्र की पत्नी अमृता और वह खुद कई बार रूपेंद्र से फोन पर संपर्क करने की कोशिश कर चुके हैं, मगर दूसरी ओर से काल रिसीव नहीं की जा रही.
यह ऐसी बात थी जिसे सुन कर किसी को भी चिंता हो सकती थी. रूपेंद्र तो वैसे भी प्रशांत का बहुत अच्छा दोस्त था. लिहाजा वह फटाफट जीने की सीढि़यां उतर कर रूपेंद्र के फ्लैट पर पहुंच गया. ओमवीर वहां पहले से ही मौजूद था. रूपेंद्र की पत्नी अमृता के चेहरे पर उड़ रही हवाइयां साफ बता रही थीं कि वह बेहद परेशान है. प्रशांत ने जब अमृता से रूपेंद्र के बारे में पूछा तो उस ने भी वही सब बताया जो कुछ देर पहले ओमवीर ने फोन पर उसे बताया था.
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वह घबराते हुए बोली, ‘‘भैया, वो सोने के जेवर ले कर गए हैं. इतनी देर हो गई, न तो वापस आए हैं और न ही फोन रिसीव कर रहे हैं. मेरा दिल बहुत घबरा रहा है. आप को तो पता है कि यह इलाका कितना खराब है. यहां आए दिन लूटपाट और न जाने क्याक्या होता रहता है. कहीं उन के साथ कुछ ऐसावैसा तो नहीं हो गया? मैं चाहती हूं कि एक बार आप लोग सोसायटी के बाहर जा कर उन्हें आसपास के इलाके में देख लें.’’
कहतेकहते अमृता की आंखों में आंसू छलक आए.
‘‘घबराइए मत भाभीजी, कुछ नहीं होगा रूपेंद्र को. हम लोग अभी पुलिस को खबर कर देते हैं.’’ प्रशांत ने कहा.
‘‘नहीं प्रशांत भाई, अभी हमें पुलिस को इनफौर्म नहीं करना है. मैं चाहता हूं कि पहले हम कुछ लोग मिल कर रूपेंद्र को तलाश कर लें, अगर वह नहीं मिलता तो फिर पुलिस को सूचना दे देंगे.’’ ओमवीर ने बीच में बात काट कर अपनी राय दी.
‘‘हां, यह भी ठीक है. पहले हम लोग तलाश कर लेते हैं.’’ प्रशांत बोला.
पुलिस में जाने से पहले प्रशांत की खोजबीन
इस के बाद प्रशांत और ओमवीर सोसायटी के दफ्तर में पहुंचे. वहां से ओमवीर ने सोसायटी के गार्ड और औपरेटर का काम करने वाले सुमित को अपने साथ ले लिया. प्रशांत ने सोसायटी में रहने वाले अपने दोस्तों संजीव और रोबिन को भी साथ ले लिया.
इस के बाद वे सभी कार ले कर आसपास के इलाके में रूपेंद्र को तलाश करने के लिए निकल पड़े. एक घंटे में उन लोगों ने आसपास के 6-7 किलोमीटर का रास्ता देख लिया लेकिन न तो उन्हें कहीं रूपेंद्र की कार दिखाई दी और न ही आसपास के इलाके में कहीं कोई दुर्घटना होने की जानकारी मिली.
सभी लोग आगे की काररवाई पर विचार करने के लिए वापस सोसायटी की तरफ लौटने लगे. तब तक रात के 10 बज चुके थे. गौर सिटी से कुछ दूर ब्रह्मा मंदिर है. जैसे ही वे लोग कार से मंदिर के पास से गुजरे कि तभी सुमित ने चिल्ला कर कहा, ‘‘सर, कार रोको… कार रोको.’’
‘‘क्या हुआ भाई, कुछ हो गया क्या?’’ कार की ड्राइविंग सीट पर बैठे प्रशांत ने कार की गति धीमी करते हुए सुमित से पूछा.
सुमित ने मंदिर के पास सर्विस रोड की तरफ इशारा करते हुए कहा, ‘‘सर, वो देखो वहां एक सफेद रंग की कार खड़ी है. मुझे लगता है, वह रूपेंद्र सर की ही है.’’
सभी ने चौंकते हुए सर्विस रोड की तरफ देखा तो वहां वाकई एक सफेद रंग की कार खड़ी नजर आई. प्रशांत ने फौरन अपनी कार आगे बढ़ा दी. कुछ दूर आगे जा कर यू टर्न ले कर वह कार को सर्विस रोड पर वहां ले गया, जहां सफेद रंग की कार खड़ी थी.
पास पहुंचते ही प्रशांत ने देखा कि वाकई वह फोर्ड फिगो कार थी और उस का नंबर यूपी95जे 9096 था, जो रूपेंद्र की कार का था. कार का नंबर पढ़ते ही प्रशांत और ओमवीर साथियों के साथ जल्दी से नीचे उतरे और उन्होंने गाड़ी के शीशे से भीतर झांका तो उन के हलक से चीख निकल गई. क्योंकि कार के भीतर ड्राइविंग सीट पर खून से लथपथ रूपेंद्र का शव पड़ा था.
प्रशांत व ओमवीर ने दरवाजा खोल कर रूपेंद्र को हिलाडुला कर देखा तो ओमवीर की मौत हो चुकी थी.
‘‘ओह माई गौड! मुझे जिस बात का शक था, वही हुआ. लगता है बदमाशों ने लूटपाट कर के रूपेंद्र को मार दिया है.’’ कहते हुए ओमवीर ने अपना माथा पकड़ लिया.
जिस की तलाश में प्रशांत और उस के साथी निकले थे, वह तलाश पूरी हो चुकी थी. रूपेंद्र जिंदा तो नहीं मिला अलबत्ता उस की लाश जरूर मिल गई थी. उस की मौत कैसे हुई? क्या हादसा हुआ? यह पता लगाना पुलिस का काम था.
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लिहाजा करीब साढ़े 10 बजे प्रशांत ने पुलिस नियंत्रण कक्ष को फोन कर के इस घटना की सूचना दे दी. कुछ ही देर में पीसीआर की गाड़ी वहां पहुंच गई. ओमवीर ने भी तब तक अपनी पत्नी और रूपेंद्र की पत्नी को इस बारे में खबर कर दी थी. गौर सिटी के कुछ दूसरे लोग भी रूपेंद्र की लाश मिलने की सूचना पा कर वहां पहुंच गए.
पीसीआर गाड़ी से आए पुलिसकर्मियों ने घटनास्थल का निरीक्षण करने के बाद यह खबर स्थानीय बिसरख थाने को दे दी. बिसरख थाने के एसएचओ मनोज पाठक पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. उन्होंने घटनास्थल की जांचपड़ताल के बाद सीओ पीयूष कुमार सिंह, एसपी (देहात) विनीत जायसवाल और फोरैंसिक टीम को खबर कर दी. कुछ ही देर में फोरैंसिक टीम और पुलिस अधिकारी घटनास्थल पर पहुंच गए.
जांचपड़ताल में पुलिस को घटनास्थल पर ऐसा कोई निशान नहीं मिला, जिस से पता चल पाता कि रूपेंद्र की हत्या लूटपाट के लिए या लूटपाट का विरोध करने के कारण हुई है. सब से बड़ी बात यह थी कि उस की हत्या उस के निवास से करीब ढाई किलोमीटर की दूरी पर हुई थी.
रूपेंद्र की पत्नी अमृता भी अपने 6 साल के बेटे आयुष्मान के साथ वहां पहुंच गई थी. पति की मौत के बाद एक पत्नी का दुख और सदमा उस पर क्या असर करता है, अमृता का विलाप देख कर समझा जा सकता था. ओमवीर की पत्नी शिखा जो रिश्ते में अमृता की ननद थी, उस ने कुछ दूसरी महिलाओं व लोगों के साथ मिल कर रो रही अमृता को सांत्वना दी.
फोरैंसिक टीम ने मृतक की कार के भीतर से फिंगरप्रिंट व दूसरी तरह के नमूने एकत्र कर लिए थे. मौके की काररवाई निपटाने के बाद इंसपेक्टर मनोज पाठक ने रूपेंद्र का शव रात में ही पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया. साथ ही उन्होंने मृतक के परिजनों से इस मामले की एफआईआर दर्ज कराने के लिए लिखित शिकायत देने के लिए अगली सुबह थाना बिसरख आने के लिए कहा.
थाने में रिपोर्ट लिखाने से भी किया मना
लेकिन हैरत की बात यह कि अगली सुबह रूपेंद्र की पत्नी या उस के बहनोई ओमवीर में से कोई भी थाने नहीं पहुंचा. हां, रूपेंद्र का दोस्त प्रशांत जरूर अपने दोस्तों को ले कर बिसरख थाने पहुंच गया था. इंसपेक्टर पाठक ने जब उस से पूछा कि रूपेंद्र की पत्नी या परिवार के लोगों में से कोई एफआईआर कराने क्यों नहीं आया तो प्रशांत ने बताया कि उस ने रूपेंद्र के परिवार वालों से थाने चलने के लिए कहा था. लेकिन उन्होंने कहा कि रिपोर्ट लिखाने से क्या होगा, इस से रूपेंद्र जिंदा तो हो नहीं जाएंगे.
परिजनों का जवाब बेहद चौंकाने वाला था, लेकिन पुलिस को जांच आगे बढ़ाने के लिए महज शिकायत की जरूरत होती है. घटना से प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से जुड़ा कोई भी शख्स शिकायत कर सकता है.
लिहाजा इंसपेक्टर पाठक ने प्रशांत से ही लिखित में शिकायत ले कर 29 अप्रैल, 2019 को भादंसं की धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज कर जांच शुरू कर दी. मुकदमा दर्ज होने के बाद पुलिस ने उसी दिन रूपेंद्र के शव का पोस्टमार्टम करवा कर शव उस के घर वालों को सौंप दिया. तब तक रूपेंद्र के पिता और भाई के अलावा उस के दूसरे रिश्तेदार तथा अमृता के परिजन भी आ चुके थे.
सुबह से ही इंसपेक्टर पाठक ने रूपेंद्र हत्याकांड की जांच का काम तेज कर दिया. उन्होंने एसआई पीयूष और वीरपाल के नेतृत्व में एक पुलिस टीम का गठन कर दिया. साथ ही उन्होंने एसपी (देहात) की टीम के कांस्टेबल सुधीर और संजीव को मृतक के परिवार के सभी सदस्यों के मोबाइल फोन की कालडिटेल्स निकलवाने और उन के फोन को सर्विलांस पर लगवाने की जिम्मेदारी सौंप दी.
पुलिस टीम ने रूपेंद्र के परिजनों से पूछताछ की. इस के अलावा गैलेक्सी सोसायटी में लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज भी खंगालनी शुरू कर दी.
काल डिटेल्स, सीसीटीवी कैमरों की फुटेज आदि की जांच के बाद पुलिस ने पहली मई को ओमवीर को हिरासत में ले लिया. ओमवीर मृतक का बहनोई था. इंसपेक्टर मनोज पाठक ने थाने ला कर जब उस से थोड़ी सख्ती से पूछताछ की तो उस ने अपने खिलाफ पुलिस के पास मौजूद सबूतों को देख कर आसानी से सच उगल दिया.
पुलिस के सामने जब रूपेंद्र की हत्या का सच आया तो सब हैरान रह गए क्योंकि ओमवीर ने रूपेंद्र की हत्या अपनी सोसायटी के गार्ड सुमित और एक अन्य साथी भूले के साथ मिल कर की थी. पुलिस की एक टीम ने उसी दिन उन दोनों को गिरफ्तार कर लिया. ओमवीर और उस के दोनों साथियों से पूछताछ हुई तो रूपेंद्र हत्याकांड की कहानी कुछ इस तरह सामने आई—
रूपेंद्र सिंह चंदेल (33 वर्ष) मूलरूप से उत्तर प्रदेश के महोबा जिले के गांव मोहारी का रहने वाला था. उस के पिता अर्जुन सिंह चंदेल पीएसी में हैडकांस्टेबल हैं और इन दिनों उन की नियुक्ति प्रयागराज में है. रूपेंद्र का एक मंझला भाई राघवेंद्र भी शादीशुदा है और गांव में रहता है. राघवेंद्र वकालत की पढ़ाई कर रहा है. रूपेंद्र का एक छोटा भाई भी है, जो दिल्ली में रहता है. रूपेंद्र ने एमबीए किया था और पढ़ाई पूरी करने के बाद सन 2012 में उस की नौकरी ग्रेटर नोएडा की बिसकुट कंपनी हिंज प्राइवेट लिमिटेड में लग गई थी.
नौकरी लगने के एक साल बाद सन 2013 में परिवार वालों ने उस की शादी महोबा की रहने वाली अमृता सिंह से कर दी. अमृता न सिर्फ सुंदर थी बल्कि पोस्टग्रैजुएट भी थी. अमृता से शादी के बाद रूपेंद्र की जिंदगी में तेजी से बदलाव आने लगा.
एक साल बाद ही वह एक बच्चे का पिता बन गया, जिस का नाम आयुष्मान रखा. अमृता के जीवन में आने के बाद रूपेंद्र ने तेजी के साथ तरक्की की सीढि़यां चढ़ीं और वह सेल्स मैनेजर के ओहदे तक पहुंच गया.
करीब 3 साल पहले उस ने फोर्ड फिगो कार खरीदी थी, उस के बाद एक साल पहले यानी मई 2018 में रूपेंद्र ने गैलेक्सी नार्थ एवेन्यू-2 में 35 लाख रुपए में 2 बैडरूम का फ्लैट भी खरीद लिया था. रूपेंद्र की अच्छी सैलरी थी, इसलिए ये तमाम चीजें उस ने लोन ले कर खरीदी थीं. मकान खरीदने के बाद रूपेंद्र ने अपने मकान में 2-3 लाख रुपए खर्च कर के इंटीरियर डिजाइनिंग का कुछ काम भी कराया था.
ओमवीर इंटीरियर डिजाइनर से बना बहनोई
रूपेंद्र के फ्लैट में इंटीरियर का काम उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले के मोहारी गांव के रहने वाले ओमवीर सिंह ने किया था. ओमवीर गैलेक्सी-2 सोसायटी के फ्लैट संख्या ई-244 में अपने भाई कृष्णवीर तथा 2 रिश्तेदारों के साथ रहता था. ये सभी गौर सिटी की सोसायटियों में इंटीरियर डिजाइनिंग का काम करते थे.
उस ने गैलेक्सी-2 सोसायटी में भी करीब 20 से अधिक फ्लैटों का इंटीरियर डिजाइन किया था. रूपेंद्र को जब ओमवीर से बातचीत में यह बात पता चली कि ओमवीर भी ठाकुर है तो उस ने अपने फ्लैट की इंटीरियर डिजाइन का काम ओमवीर से ही कराया.
कुछ दिन रूपेंद्र के घर में काम करने के दौरान ओमवीर और रूपेंद्र की दोस्ती हो गई. ओमवीर 4 भाइयों में सब से बड़ा था. उस का एक छोटा भाई कृष्णवीर उसी के साथ काम करता था जबकि बाकी दोनों भाई गांव में ही रह कर खेती करते थे. ओमवीर पढ़ालिखा और अच्छे परिवार का लड़का था.
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जब रूपेंद्र से ओमवीर की दोस्ती हो गई तो रूपेंद्र के घर उस का अकसर आनाजाना हो गया. रूपेंद्र रोजाना सुबह को नौकरी पर निकल जाता और शाम को ही घर लौटता था. लेकिन ओमवीर का अपना काम था. वह ज्यादातर गैलेक्सी सोसायटी में ही रहता था. इसलिए वह जबतब रूपेंद्र की गैरमौजूदगी में भी उस के घर चला जाता था.
चूंकि ओमवीर रूपेंद्र का दोस्त था, इसलिए ओमवीर जब भी रूपेंद्र की अनुपस्थिति में उस के घर जाता तो अमृता ओमवीर को एक पारिवारिक दोस्त की तरह सम्मान और सत्कार देती थी. शुरुआत में तो ओमवीर कभीकभार ही रूपेंद्र के घर आता था, लेकिन धीरेधीरे अमृता की खूबसूरती उस के मन में बस गई.
अमृता को पति से प्यारा लगने लगा ओमवीर
इस के बाद तो वह रोज ही कुछ घंटों के लिए रूपेंद्र की गैरमौजूदगी में उस के घर जाने लगा. शुरू में ओमवीर और अमृता औपचारिक रूप से ही बातचीत करते थे, लेकिन जब ओमवीर का अकसर आनाजाना शुरू हुआ तो दोनों की झिझक दूर हो गई और वे खुल कर बातचीत करने लगे.
जनवरी 2019 में दोनों की झिझक इस हद तक दूर हो गई कि ओमवीर अमृता से शारीरिक छेड़छाड़ करने लगा. जब अमृता ने उस की इस तरह की हंसीमजाक का कोई विरोध नहीं किया तो ओमवीर की हिम्मत बढ़ गई. इस के बाद वह इस से भी एकदो कदम आगे बढ़ गया.
उस ने हंसीमजाक में पहले अमृता को एकदो बार अपनी बांहों में भर लिया था. लेकिन जब अमृता ने इस का भी विरोध नहीं किया तो बात इस के आगे चुंबन तक पहुंच गई. दरअसल, रूपेंद्र जहां गंभीर और सीधे स्वभाव का युवक था, वहीं ओमवीर तेजतर्रार और आधुनिक विचारधारा का लड़का था.
अमृता ओमवीर जैसे तेजतर्रार लोगों को पसंद करती थी. यही कारण रहा कि उस ने कभी ओमवीर की किसी हरकत का बुरा नहीं माना था. इस से ओमवीर की हरकतें और बढ़ने लगीं. फिर एक दिन ऐसा भी आया कि दोनों के बीच मर्यादा की दीवार टूट गई. दोनों के बीच उस रिश्ते ने जन्म ले लिया, जिसे समाज अवैध संबंध कहता है. अमृता को ओमवीर के जिस्म का ऐसा चस्का लगा कि बाद में दोनों के बीच अकसर ही यह खेल खेला जाने लगा.
रूपेंद्र उन के खेल से पूरी तरह अनजान था. अमृता की शारीरिक जरूरतें पूरी होने लगीं तो उस ने धीरेधीरे पति में दिलचस्पी लेनी बंद कर दी. ओमवीर ही उस के लिए सब कुछ हो गया था. लेकिन ओमवीर के मन में कुछ और ही खिचड़ी पकने लगी थी. उस ने सोचा कि अमृता के साथ अगर रूपेंद्र का ये मकान भी उसे मिल जाए तो नोएडा जैसी औद्योगिक नगरी में वह अपना बड़ा बिजनैस खड़ा कर सकता है. इसलिए अब उस ने धीरेधीरे अमृता के दिलोदिमाग में रूपेंद्र के खिलाफ जहर के बीज बोने शुरू कर दिए.
अपनी लच्छेदार बातों में फंसा कर ओमवीर ने अमृता के दिमाग में नफरत भर दी. बात यहीं खत्म नहीं हुई. 2019 के फरवरी महीने में रूपेंद्र की मौसी की लड़की शिखा 15 दिन के लिए रूपेंद्र के घर रहने के लिए आई थी. शिखा अमृता जैसी खूबसूरत तो नहीं थी लेकिन सीधीसादी थी. उसे देख कर ही ओमवीर के मन में खयाल आया कि क्यों न रूपेंद्र के घर में बेरोकटोक आने के लिए शिखा से शादी कर ली जाए.
जब यह बात उस ने अमृता से कही तो बात उस की भी समझ में आ गई. अमृता ने इस बारे में पति से बात की तो रूपेंद्र को भी लगा कि जवान मौसेरी बहन के लिए अगर ओमवीर जैसा बिरादरी का ही लड़का मिल जाए तो इस से अच्छा और क्या होगा. ओमवीर ठीकठाक कमा भी लेता था.
रूपेंद्र ने जब महोबा में रहने वाली अपनी मौसी से यह बात की तो वह तैयार हो गईं. फरवरी के आखिरी हफ्ते में दोनों परिवारों की रजामंदी से ओमवीर और शिखा की शादी हो गई. शादी के कुछ रोज बाद शिखा अपने पति ओमवीर के पास नोएडा आ गई. वह गैलेक्सी-2 सोसायटी में पति के साथ रहती थी. शिखा का अभी गौना भी होना था, लिहाजा 10 दिन बाद वह अपने मायके चली गई.
लेकिन इसी दौरान एक दिन न जाने क्यों रूपेंद्र को अमृता के किसी व्यवहार से शक हो गया कि ओमवीर से उस के संबंध कुछ अलग तरह के हो चुके हैं. हालांकि उसे सिर्फ शक था लेकिन फिर भी उस के मन में शक का कीड़ा कुलबुलाने लगा था. लिहाजा रूपेंद्र ने अमृता से ओमवीर से दूरी बना कर रखने की बात कह दी. रूपेंद्र के ऐसा कहते ही अमृता समझ गई कि हो न हो रूपेंद्र को उन के संबंधों पर शक हो गया है.
बनने लगी हत्या की योजना
अमृता ने जब यह बात ओमवीर को बताई तो उसे भी लगा कि उसे अगर अमृता व उस की संपत्ति हासिल करनी है तो रूपेंद्र को रास्ते से हटाना होगा. यह काम करने का यही अच्छा मौका है. यह बात उस ने अमृता से कही. अमृता तो उस के प्यार में अंधी हो चुकी थी, लिहाजा वह पति की हत्या कराने के लिए तैयार हो गई.
ओमवीर ने अमृता से कहा कि अगर वह कुछ पैसे खर्च कर दे तो वह ऐसे लोगों का इंतजाम कर देगा जो रूपेंद्र को उन के रास्ते से हटा देंगे. अमृता ने ओमवीर से कह दिया कि वह उसे पैसे दे देगी, वह भाड़े के हत्यारों का इंतजाम कर ले.
योजना के अनुसार, अमृता ने इस दौरान ओमवीर से दूरी बना ली. उसे ओमवीर से जो बात करनी होती वह या तो उसे फोन कर देती या फिर वाट्सऐप पर मैसेज कर के बात कर लेती थी. इधर रूपेंद्र इस बात से अनजान था कि ओमवीर तथा अमृता उस के खिलाफ एक खूनी साजिश रच चुके हैं. इस साजिश को अमली जामा पहनाने के लिए ओमवीर ने अपनी ही सोसायटी के एक गार्ड सुमित को भी पैसे का लालच दे कर साजिश में शामिल कर लिया.
सुमित हापुड़ जिले की बाबूगढ़ तहसील के गांव भडंगपुर का रहने वाला था. पिछले 2 सालों से वह गैलेक्सी-2 सोसायटी में गार्ड की नौकरी कर रहा था. सुमित हैबतपुर गांव में किराए का एक कमरा ले कर रह रहा था.
सुमित ओमवीर से कई बार कह चुका था कि वह कोई ऐसा काम बताए, जिस से उसे मोटी रकम मिल सके. उस रकम से वह अपना कोई कामधंधा शुरू कर लेगा. ओमवीर के कहने पर सुमित ने जिला बुलंदशहर के बीबीनगर के रहने वाले अपने एक दोस्त भूले को भी इस साजिश में शामिल कर लिया.
लेकिन बिना पैसा लिए वे इस काम को अंजाम देने के लिए तैयार नहीं थे. उन्होंने इस काम के लिए 3 लाख रुपए की मांग की थी. ओमवीर ने यह बात अमृता को बताई तो अमृता ने 23 अप्रैल को ओमवीर के साथ जा कर अपनी सोने की 2 चूडि़यां और एक हार बेच कर एडवांस में डेढ़ लाख रुपए दे दिए.
लालची ओमवीर ने इन पैसों में से 50 हजार रुपए अपने पास रख कर 50-50 हजार रुपए सुमित और भूले को दे दिए. बाकी रकम उस ने काम पूरा होने के बाद देने का वायदा कर लिया.
काम को अंजाम देने के लिए सुमित ने 8 हजार रुपए में .32 बोर की कंट्री मेड पिस्टल और कुछ कारतूस खरीद लिए. अब सही मौका देख कर सुमित की हत्या की वारदात को इस तरह अंजाम देना था कि लूट की घटना लगे.
28 अप्रैल, 2019 को रविवार का दिन था और रूपेंद्र की उस दिन छुट्टी थी. ओमवीर ने उस दिन को खासतौर से इसलिए चुना था क्योंकि उन्हें जो कहानी बनानी थी, उस के लिए रूपेंद्र की छुट्टी का दिन ही सब से मुफीद लगा था.
ओमवीर छुट्टी के दिन अकसर रूपेंद्र के घर उस से मिलने चला जाता था. उस दिन भी वह उस के घर आया. वे दोनों चाय पी कर निबटे ही थे कि अमृता ने रूपेंद्र से दोपहर के वक्त कहा कि रसोई की चिमनी खराब हो गई है उसे दूसरी चिमनी खरीदनी है. लिहाजा दोपहर के वक्त रूपेंद्र चिमनी खरीदने की बात कह कर अपने फ्लैट से निकला.
घर में घुस कर विश्वास जीता फिर लगा दिया ठिकाने
रूपेंद्र के साथ लिफ्ट में नीचे तक ओमवीर भी आया. लेकिन वह नीचे आ कर रूपेंद्र से यह कह कर अपने फ्लैट की तरफ बढ़ गया कि उसे हैबतपुर जाना है, वह पार्किंग से गाड़ी निकाल कर सोसायटी के बाहर उस का इंतजार करे. तब तक वह अपने फ्लैट से कुछ सामान ले कर आता है. रूपेंद्र अपनी कार निकालने के लिए पार्किंग की तरफ चला गया. तभी ओमवीर ने सुमित और भूले को सोसायटी के बाहर पहुंचने को कहा. इतनी देर में ओमवीर अपने फ्लैट पर पहुंचा और वहां से पिस्टल और कारतूस जेब में रख कर सोसायटी के बाहर पहुंच गया.
रूपेंद्र को भी पार्किंग से कार ले कर बाहर पहुंचने में 15 मिनट का समय लगा. वहां रुक कर वह ओमवीर का इंतजार करने लगा. सोसायटी से थोड़ा आगे वह रूपेंद्र के पास पहुंचा तो उस ने कुछ ही दूरी पर खड़े सुमित व भूले से पूछा, ‘‘अरे भाई, तुम यहां कैसे खड़े हो, किस का इंतजार कर रहे हो?’’
सुमित ने जोर से चिल्ला कर कहा, ‘‘भैया, आटो का इंतजार कर रहे हैं. तिगड़ी गोलचक्कर तक जाना है.’’
ओमवीर ने वहीं से चिल्ला कर कहा, ‘‘अरे आ जाओ, रूपेंद्र भैया उधर ही जा रहे हैं. तुम लोगों को भी छोड़ देंगे.’’
ओमवीर खुद तो रूपेंद्र की कार में बैठ ही गया, उस ने रूपेंद्र से सुमित व उस के साथी को भी तिगड़ी गोलचक्कर तक लिफ्ट देने की सिफारिश कर कार में बिठा लिया.
गरमी के कारण गौर सिटी की हैबतपुर जाने वाली सर्विस रोड पर दिन के वक्त छुट्टी वाले दिन कुछ ज्यादा ही सन्नाटा रहता है. सोसायटी के करीब ढाई किलोमीटर दूर जाने पर अचानक ओमवीर ने रूपेंद्र से कार रोकने को कहा तो रूपेंद्र ने बिना कुछ सोचेसमझे कार रोक दी.
कार रोकने के बाद उस ने ओमवीर से जैसे ही पूछा कि क्या हुआ, कार क्यों रुकवाई तो वह यह देख कर चौंक गया कि तब तक ओमवीर अपनी कमर में खोंसे पिस्टल को निकाल कर उस की तरफ तान चुका था. जब तक रूपेंद्र कुछ समझता तब तक ओमवीर ने उस की कनपटी से पिस्टल सटा कर गोली चला दी.
गोली चलते ही खून की धारा बहने के साथ ही रूपेंद्र का सिर स्टीयरिंग पर लुढ़क गया. उसे जब इत्मीनान हो गया कि वह ढेर हो चुका है तो उन तीनों ने रूपेंद्र की घड़ी, पर्स, अंगूठी और गले में पहनी सोने की चेन निकाल ली ताकि पुलिस यही समझे कि मामला लूटपाट के लिए हुई हत्या का है. चूंकि दोपहर के वक्त इलाके में सन्नाटा था, इसलिए न तो किसी ने गोली की आवाज सुनी और न ही किसी ने उन्हें वारदात को अंजाम देते हुए देखा.
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इस के बाद तीनों वहां से निकले और पिस्टल बाकी बचे कारतूसों के साथ कुछ ही दूरी पर झाडि़यों के पीछे एक गड्ढे में फेंक दी. भूले वारदात के बाद अपने गांव चला गया था, जबकि ओमवीर तथा सुमित सोसायटी में वापस आ गए. सुमित वापस आ कर सोसायटी में अपनी ड्यूटी करने लगा जबकि ओमवीर ने घर पर आ कर अपने कपड़े बदले क्योंकि उस की शर्ट पर खून के निशान लग गए थे.
इस के 3-4 घंटे बाद योजना के मुताबिक अमृता ने अपना नाटक शुरू किया. उस ने ओमवीर को बुला कर कहा कि अब सभी से यही कहना है कि रूपेंद्र घर से गहने ले कर निकला था. वह गहने उसे गाजियाबाद में पीसी ज्वैलर्स के पास गिरवी रखने थे. दोनों ने यही कहानी गढ़ी.
उसी के बाद ओमवीर ने घटना का गवाह बनाने के लिए रूपेंद्र के पड़ोसी प्रशांत को फोन कर के इस बारे में बताया और उस के बाद रूपेंद्र को ढूंढने का नाटक शुरू हुआ. सब कुछ पहले से तय था. इन लोगों ने सुमित को इसलिए जानबूझ कर साथ लिया कि वह नाटक रचते हुए उन्हें रूपेंद्र की कार तक ले जाए. यही उस ने किया भी.
चूंकि पुलिस को जांच के दौरान पता चला था कि रूपेंद्र का मोबाइल तो उस की जेब में है लेकिन उस का पर्स, अंगूठी और सोने की चेन उस के पास नहीं थी, इसलिए उस रात पुलिस भी इस वारदात को लूटपाट के लिए हुई हत्या की घटना मान कर जांच करने में लगी थी.
अमृता का व्यवहार ही बना शक की वजह
लेकिन अगले दिन बिसरख के एसएचओ मनोज पाठक को पहली बार रूपेंद्र की पत्नी अमृता का यह व्यवहार अजीब लगा कि पति की हत्या की सूचना के बाद जब वह घटनास्थल पर पहुंची तो उस ने पुलिस को कोई शिकायत नहीं दी. वह बस यही कहती रही कि किसी ने जेवर लूटने के लिए उस के पति की हत्या कर दी. अगले दिन भी जब उस ने कोई शिकायत नहीं दी तो उस पर शक और गहरा गया.
जांच में एसएचओ का शक उस वक्त और भी ज्यादा बढ़ गया जब अमृता से पूछताछ की तो वह एक रटीरटाई थ्यौरी के मुताबिक बेधड़क हो कर मामले को लूटपाट का बताने पर अड़ी रही.
जब उस के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवाई गई तो पता चला कि जिस समय दोपहर में रूपेंद्र को गोली मारी गई थी, उसी वक्त ओमवीर ने उसे फोन कर के लंबी बातचीत की थी और वाट्सऐप पर कहा था कि काम हो गया है.
हालांकि ओमवीर और सुमित ने पूछताछ में यह बताया था कि वे वारदात के वक्त सोसायटी में थे. लेकिन वारदात के वक्त उन के मोबाइल की लोकेशन रूपेंद्र के मोबाइल की लोकेशन के साथ ही मैच हो रही थी.
सोसायटी के आउट गेट पर लगे सीसीटीवी कैमरे की जांच करने पर पता चला कि जिस वक्त रूपेंद्र सोसायटी के बाहर अपनी कार ले कर निकला था, उस के 2-4 मिनट के अंतराल से ओमवीर तथा सुमित एक अन्य व्यक्ति के साथ पैदल सोसायटी के बाहर निकले थे. इतना ही नहीं, सुमित और ओमवीर डेढ़ घंटे बाद एक साथ सोसायटी के अंदर प्रवेश करते हुए सीसीटीवी फुटेज में दिखे.
ओमवीर और सुमित के बीच इसी दौरान हुई बातचीत और ओमवीर की अमृता के साथ लंबीलंबी बातचीत तथा वाट्सऐप संदेशों ने भी पुलिस को ओमवीर तथा अमृता पर शक करने की वजह दे दी. ओमवीर पर पुलिस का शक उस वक्त यकीन में बदल गया जब 29 अप्रैल की सुबह रूपेंद्र के बैंक खाते से किसी ने 10 हजार रुपए की 2 बार एटीएम में ट्रांजैक्शन की. इस का मैसेज पुलिस के कब्जे में मौजूद रूपेंद्र के फोन पर आया तो पुलिस चौंकी.
पुलिस की एक टीम उसी समय उस एटीएम की जांच करने के लिए गई. शाम होतेहोते सीसीटीवी की फुटेज देखने पर पुलिस को पता चला कि यह रकम एटीएम से ओमवीर ने निकाली थी. बस फिर क्या था, पुलिस के सामने सारी कडि़यां जुड़ती चली गईं. पुलिस ने सब से पहले ओमवीर को हिरासत में ले कर कड़ी पूछताछ की. उस ने सारा सच उगल दिया. इस के बाद इंसपेक्टर पाठक की टीम ने उसी दिन सुमित और भूले को भी धर दबोचा.
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जब तीनों को पुलिस ने गिरफ्तार किया, तभी अमृता को अपनी गिरफ्तारी की आशंका हो गई थी. पुलिस उस तक पहुंचती, उस से पहले ही वह फरार हो गई. इंसपेक्टर पाठक ने ओमवीर तथा उस के साथियों की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त पिस्टल और कई जिंदा कारतूस भी बरामद किए.
पुलिस ने ओमवीर, सुमित और भूले को अदालत में पेश कर जेल भेज दिया. इस के बाद पुलिस ने अमृता को पकड़ने के लिए जाल बिछाया. सर्विलांस की मदद से आखिर 4 मई को अमृता को भी गिरफ्तार कर लिया गया. पुलिस ने उस से मिली जानकारी के बाद ओमवीर को एक बार फिर से पुलिस रिमांड पर लिया तो उस की शिनाख्त पर पुलिस ने ज्वैलर्स के यहां से डेढ़ लाख रुपए में बेचे गए आभूषण भी बरामद कर लिए.
अगर पुलिस रूपेंद्र की हत्या को केवल लूटपाट का विरोध करने के दौरान हुई मौत पर ही अपनी जांच केंद्रित करती तो अमृता और ओमवीर अपनी साजिश में कामयाब हो जाते. आरोपियों ने एक के बाद एक ऐसी कई छोटीछोटी गलतियां कर दी थीं कि पुलिस धीरेधीरे उन कडि़यों को जोड़ कर उन तक पहुंच गई.
ननदोई के इश्क में गिरफ्तार हुई अमृता के पास अब न तो पति है और न ही प्रेमी. नाजायज संबंधों के चक्कर में उस ने अपने सुखी संसार को खुद ही उजाड़ लिया.
—कथा पुलिस की आरोपियों से हुई पूछताछ पर आधारित
(कहानी सौजन्य- मनोहर कहानियां)