हक ही नहीं कुछ फर्ज भी- भाग 1: क्यों सुकांत की बेटियां उन्हें छोड़कर चली गई

Writer- Dr. Neerja Srivastava

‘‘पापा ऐश्वर्या डैंटल कोर्स करने के लिए चीन जा रही है. मैं भी जाना चाहती हूं. मुझे भी डैंटिस्ट ही बनना है.’’

‘‘तो बाहर जाने की क्या जरूरत है? डैंटल कोर्स भारत में भी तो होते हैं.’’

‘‘पापा, वहां डाइरैक्ट ऐडमिशन दे रहे हैं 12वीं कक्षा के मार्क्स पर… यहां कोचिंग लूं, फिर टैस्ट दूं. 1-2 साल यों ही चले जाएंगे,’’ उन्नति बोली.

‘‘पर बेटा…’’

‘‘परवर कुछ नहीं पापा. आप ऐश्वर्या के पापा से बात कर लीजिए. मैं उन का नंबर मिला देती हूं… उन्हें सब पता है… वे अपने काम के सिलसिले में अकसर वहां जाते रहते हैं.’’

सुकांत ने बात की. फीस बहुत ज्यादा थी. अत: वे सोच में पड़ गए.

‘‘ऐजुकेशन लोन भी मिलता है जी आजकल बच्चों को विदेश में पढ़ने के लिए… पढ़ने में भी ठीकठाक है… पढ़ लेगी तो दांतों की डाक्टर बन जाएगी,’’ निधि भी किचन से हाथ पोंछते हुए उन के पास आ गई थीं.

‘‘पर पहले पता करने दो ठीक से कि वह मान्यताप्राप्त है भी या नहीं.’’

‘‘है न मां. बस वापस आ कर यहां एक परीक्षा देनी पड़ती है एमसीआई की और प्रमाणपत्र मिल जाता है. पापा, अगर मेरी जगह सुरम्य होता तो आप जरूर भेज देते.’’

‘‘नहीं ऐसा बिलकुल नहीं है. तुम ने ऐसा क्यों सोचा? क्या तुम भाईबहनों में मैं ने कभी कोई फर्क किया?’’ सुकांत ने उस के गालों पर प्यार से थपकी दी.

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बैंक में कैशियर ही तो थे सुकांत. निधि स्कूल में टीचर थीं. दोनों के वेतन से घर बस ठीकठाक चल रहा था. कुछ ज्यादा जमा नहीं कर सके थे दोनों. सुकांत की पैतृक संपत्ति भी झगड़े में फंसी थी. बरसों से मुकदमे में पैसा अलग लग रहा था. हां, निधि को मायके से जरूर कुछ संपत्ति का अपना हिस्सा मिला था, जिस से भविष्य में बच्चों की शादी और अपना मकान बनाने की सोच रहे थे.

‘‘मकान तो बनता रहेगा निधि, शादियां भी होती रहेंगी… पहले बच्चे लायक बन जाएं तो यह सब से बड़ी बात होगी… है न?’’ कह सुकांत ने सहमति चाही थी, फिर खुद ही बोले, ‘‘हो सकता है हम मुकदमा जीत जाएं… तब तो पैसों की कोई कमी नहीं रहेगी.’’

‘‘हां, ठीक तो कह रहे हैं. आजकल बहुएं भी लोग कामकाजी ही लाना ज्यादा पसंद करने लगे हैं. बढि़या प्रोफैशनल कोर्स कर लेगी तो घरवर भी बहुत अच्छा व आसानी से मिल जाएगा,’’ निधि ने अपनी सहमति जताई.

‘‘जमा राशि आड़े वक्त के लिए पड़ी रहेगी… कोई ऐजुकेशन लोन ही ले लेते हैं. वही ठीक रहेगा… पता करता हूं डिटेल… इस के जौब में आने के बाद ही किस्तें जानी शुरू होंगी.’’

सुकांत ने पता किया और फिर सारी प्रक्रिया शुरू हो गई. उन्नति पढ़ाई के लिए विदेश चली गई. दूसरी बेटी काव्या के अंदर भी विदेश में पढ़ाई करने की चाह पैदा हो गई. 12वीं कक्षा के बाद उस ने लंदन से बीबीए करने की जिद पकड़ ली.

‘‘पापा, दीदी को तो आप ने विदेश भेज दिया मुझे भी लंदन से पढ़ाई करनी है… पापा प्लीज पता कीजिए न.’’

सुकांत और निधि ने सारी तहकीकात कर काव्या को भी पढ़ाई के लिए लंदन भेज दिया.

अब रह गया था सब से छोटा बेटा सुरम्य. पढ़ने में वह भी अच्छा था. वह भी डाक्टर बनना चाहता था. मगर घर का खर्च देख कर उस का खयाल बदलने लगा कि मातापिता कहां तक करेंगे… साल 6 महीने बाद पीएमटी परीक्षा में सफल भी हुआ तो 4 साल एमबीबीएस की पढ़ाई. फिर इंटर्नशिप. उस के बाद एमडी या एमएस उस के बिना तो डाक्टरी का कोई मतलब ही नहीं. फिर अब मम्मीपापा रिटायर भी होने वाले हैं… कब कमा पाऊंगा, कब उन की मदद कर पाऊंगा… 2 लोन पहले ही उन के सिर पर हैं.

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मुझे कुछ जल्दी पढ़ाई कर के पैसा कमाना है. फिर उस ने अपना स्ट्रीम ही कौमर्स कर लिया. 12वीं कक्षा के बाद उस ने सीए की प्रवेश परीक्षा पास कर ली. स्टूडैंट लोन ले कर उस ने अपनी सीए की पढ़ाई शुरू कर दी. दिन में पढ़ाई करना और रात में काल सैंटर में जौब करने लगा. सुकांत और निधि थोड़े परेशान अवश्य थे, पर मन में कहीं यह संतोष था कि बच्चे काबिल बन कर अपने पैरों पर खड़े हो इज्जत और शान की जिंदगी जीएंगे, इस से बड़ी और क्या बात होगी उन के लिए.

सुकांत रिटायर हो कर किराए के मकान में आ गए थे.

‘‘और क्या जी हम नहीं बनवा सके घर तो क्या बच्चे तो अपना घर बना कर ठाठ से रहेंगे,’’ एक दिन निधि बोलीं.

उन्नति का बीडीएस पूरा हो गया. वापस आ कर उस ने भारत की मान्यता के लिए परीक्षा भी उत्तीर्ण कर ली. इंटर्नशिप के बाद उसे लाइसैंस मिल गया. मांबाप का सीना गर्व से चौड़ा हो गया. उन्नति ने एक पीजी डैंटिस्ट रवि को जीवनसाथी के रूप में पसंद कर लिया. रवि को दहेज नहीं चाहिए था पर घर वालों को शादी धूमधाम से चाहिए थी.

‘‘ठीक ही तो है पापा शादी रोजरोज थोड़े ही होती है. अब ये लोग दहेज तो नहीं ले रहे न,’’ उन्नति मम्मीपापा, को दलील के साथ राजी करने की कोशिश में थी.

‘‘हांहां, हो जाएगा. तू चिंता मत कर,’’ सुकांत ने उसे तसल्ली देते हुए कहा.

जैसेतैसे सुकांत और निधि ने बड़ी बेटी को फाइवस्टार होटल से विदा किया.

‘‘मम्मीपापा मुझे पढ़ने का शौक था सो पढ़ लिया… प्रैक्टिस वगैरह मेरे बस की नहीं… मुझे तो बस घूमनाफिरना और मस्ती करनी है. लोन का आप देख लेना… मेरे पास वहां बैंक का कोई लेटरवैटर नहीं आना चाहिए वरना बड़ा बुरा फील होगा ससुराल में… रवि को मैं ने लोन के बारे में कुछ नहीं बताया है,’’ उन्नति ने जातेजाते दोटूक अपना मंतव्य बता डाला.

‘‘रवि को मालूम है तू काम नहीं करेगी?’’ सुरम्य को जब मालूम हुआ तो उस ने हैरानगी से पूछा.

मजाक: जो न समझो सो वायरस

 लेखिका- दीपान्विता राय बनर्जी

‘‘अरे साधना, अब गुस्सा थूक भी दो, बहूबेटी में भेद क्या, दोनों ही हमारे भले के लिए कहती हैं. देख नहीं रही हो क्या, इस कोरोनामरोना के चक्कर में हमारी खानदानी जमींदारी तोंद मरियल होती जा रही है, तुम भी थोड़ा सब्र कर लो.’’

‘‘कैसे सब्र कर लूंगी, जिंदगीभर हम ने घीदूध में अपने बच्चों को पाला, अब कल की आई बहू हमें सिखाती है कि हमें क्या और कैसे खाना है. चलो जी, हम अपने घर चलते हैं, यहां बेकार आए थे. अब देखो, कैसे इस वायरस

के चक्कर में फंस गए. कहती है, सामान खर्च करने में काफी सोचविचार करना होगा.

पहले दोपहर के खाने में 2 सब्जियां, दाल, चावल, रोटी, दही, रायता या दहीबडे़ के साथ पापड़, सलाद सबकुछ होता था. दोनों बेटों और तुम्हें हमेशा नौनवेज भी बना कर दिया. रात को फिर अलग सब्जी बनाई, घी में चुपड़ी रोटी के साथ कोई एक हलवा भी होता था या फिर मखाने की खीर. यहां आने के बाद कुछ दिन ठीक बीते, लेकिन अब हम इन पर भारी पड़ गए. कोरोना वायरस के नाम पर खानापीना सब बंद करने पर तुली है यह.’’

‘‘अरे क्या कहा, यही न, कि अब दाल, चावल, सब्जी, दही में ही दोपहर का खाना खत्म करना होगा, तो चलो, यही सही. महीनाभर ही तो हैं यहां.’’

‘‘नहींनहीं, महीनाभर कहां. बेटा तो कह रहा था कि इस चौपट दुनिया में अब मांबाबूजी अकेले क्या रहेंगे. अब हमें इन के साथ ही रहना होगा और इस कलमुंही का और्डर मानना पड़ेगा. देखना, रात को घी वाली रोटी की जगह सूखी रोटी ही मिलेगी. फरमान सुना दिया है महारानी ने.’’

बहू अंजना से रहा नहीं जा रहा था. अभी यह उस की मां होती तो हाथ में बेलनकलछी पकड़े ही वह रसोई से दौड़ी आती और मां पर बरस पड़ती. लेकिन ठहरी सास, सांस ऊपरनीचे हो कर रह गई लेकिन जबान को काबू करते हुए इतना ही कहा, ‘‘मांजी, घर का राशन हमें ज्यादा दिनों तक चलाने लायक खर्चना है, तभी हम ज्यादा से ज्यादा घर में रह पाएंगे

और कम लोगों के संपर्क में आएंगे. घी बनाने लायक मलाईदार दूध नहीं है, तो संकटकाल में इतना सब्र तो कर सकते हैं.’’

‘‘आई बड़ी सब्र सिखाने वाली.’’

‘‘अरे मांजी, सारा देश लौकडाउन है, कर्फ्यू लगा है, कोई निकले तो संक्रमित हो सकता है, समझो न.’’

‘‘फिर झूठ, कोरोना का नाम लेले कर हमारा खानापीना बंद करने पर तुले हैं. क्यों हमारा बेटा नहीं जा रहा है औफिस?’’

‘‘वे रेलवे में हैं न, यहां मेल ट्रेन बंद हैं, सिर्फ गुड्स ट्रेनें चल रही हैं. जरूरत के सामानों की आवाजाही चलाने के लिए यह काम घर से नहीं हो सकता, मां.

‘‘लेकिन आगे आने वाले दिनों में सामानों और खानेपीने की वस्तुओं की भारी किल्लतों का सामना करना पड़ सकता है, इसलिए बचत और कम में गुजारा हमें अभी से सीखना होगा.’’

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‘‘हां, अब हमारा खानापीना बंद कर सब का पेट भरेगा. सुबह कहा था, ससुरजी के पसंद की मछली बना लो. बहाना निकल आया, अब रात को कहूंगी कस्टर्ड, तो वह भी नहीं बनेगा.’’

‘‘अरे मांजी, आप को कैसे समझाएं, अब पसंदनापसंद का समय गया. लाखों दिहाड़ी मजदूर अपने घर जाने को तरस गए, सड़कों पर लोगों का रोना लगा है, एक वक्त के लिए दो सूखी रोटी भी नसीब नहीं उन्हें.

‘‘अब घर में रखे सामानों को कटौती से ही खर्चना है. बाहर निकलने की मनाही है, सब को थोड़ाथोड़ा सुधरना ही होगा.’’

‘‘अच्छा हम बिगड़े हैं, जो सुधरेंगे?’’

अंजना को लगा हाथ का बेलन वह अपने ही सिर पर दे मारे, लेकिन तुरंत ‘‘मरजी है आप की,’’ जुमला याद आने से उस ने खुद को जज्ब कर लिया.

अंजना के वहां से जाते ही साधनाजी ने अपनी पुरानी सहेली और कालेज के रिटायर्ड लैक्चचर नन्दाजी को फोन लगाया.

‘‘नन्दा, यहां बेटे के घर कैद हो गई हूं, तुम्हारे घर आ कर कुछ दिन रहना चाहती हूं. यहां न अपनी मरजी से खापी सकती हूं, न आसपास किसी से मिल सकती हूं.

‘‘अरे कोरोना है तो है, हमारे आसपास थोड़े ही है. घर में न पैसे की कमी है, न बाजार दूर है, फिर भी बहू ने बचत के नाम पर हमारी नकेल कसी हुई है. पता नहीं क्यों रातदिन कोरोना का रोना ले कर बैठी है. एक तो घर में कैद, ऊपर से पसंद का खाना भी नहीं. जो भी कहती हूं बनाने को, कहती है कोरोना है.’’

‘‘ठीक ही तो कहती है तुम्हारी बहू्. पढ़ीलिखी सास हो कर भी तुम बहू का नजरिया नहीं समझ रही हो. देश जब भयंकर महामारी की चपेट में है, रोज हजारों मजदूर भूखे बिलख रहे हैं, छोटेछोटे बच्चे भूख से बेहाल सड़क पर आ गए हैं, न ठौर न ठिकाना. ऐसे में कुछ कम में चलेंगे, बचत करेंगे तो आगे यह काम आएंगे. बचत ही तो कमाई है. इस आड़े वक्त में खबरों पर नजर रखो और बहू पर भरोसा.’’

डांवांडोल मन से साधनाजी ने अभी फोन रखा ही था कि बेंगलुरु से उन के बड़े बेटे के लड़के यानी उन के बड़े पोते का फोन आ गया.

पोते से पता चला कि हफ्तेभर से वह अपने किराए के फ्लैट में कैद है.

घर से औफिस का काम तो कर रहा है, लेकिन खानेपीने के सामानों की और घर के सारे काम खुद करने की दिक्कतें बहुत हैं. औनलाइन सारे सामान नहीं पहुंच रहे हैं. काफी कटौती में गुजारा हो रहा है.

पोते पर गहरी आस्था की वजह से दादी के दिमाग का एंटिना अब कुछ सीधा हो चुका था.

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फोन रख कर वह चुपचाप मुंह फुला कर बैठ गईं.

दादा ने कहा, ‘‘तसल्ली हुई? अब मुंह फुला कर बैठे अपना गाल न बजाओ. कमरे से बाहर जा कर बहू

की काम में मदद करो, घर

के बाहर कर्फ्यू है, घर के अंदर नहीं.’’

साधनाजी जराजरा सी रोष वाली नजर पति पर डाल बहू के पास चली आईं.

कमरे में ससुरजी को सुनाई पड़ा, ‘‘लाओ दो, जो भी बना रही हो उस में हाथ बंटा दूं, तुम्हारे ससुरजी की यही इच्छा है.’’

ससुरजी को इस साधना वायरस पर हंसी आ गई, सुधरेगी नहीं. द्य

जीवन की मुसकान

मैंवाईडब्लूसीए से बिजनैस मैनेजमैंट का डिप्लोमा कर रही थी. साल समाप्त होने जा रहा था. अंत में हमें अपनी प्रोजैक्ट रिपोर्ट जमा करानी थी. आखिरी दिन हमारी एक साथी बहुत परेशान थी. किसी व्यक्तिगत समस्या के कारण उस का प्रोजैक्ट तैयार नहीं हो पाया था. वह सब से उन की प्रोजैक्ट रिपोर्ट मांग रही थी कि अगर वे उसे दे दें, तो वह भी उसी तरीके से उसे प्रिंटिंग प्रैस में ले जा कर अपनी भी रिपोर्ट तैयार कर ले. लेकिन कोई भी लड़की उसे देना तो दूर, ठीक से दिखा भी नहीं रही थी.

रोंआसी सी वह मेरे पास आ कर गिड़गिड़ाने लगी. मैं ने अपनी सालभर की मेहनत उस के हाथों में दे दी. वह भागती हुई चली गई. सारी लड़कियों ने मुझे डांटना शुरू कर दिया.

क्लास खत्म हो गई. मैं गेट पर जा कर खड़ी हो गई. धीरेधीरे पूरा कालेज खाली हो गया. आधा घंटा मेरी एक सहेली साथ में खड़ी रही, फिर बाद में मुझे नसीहतें देते हुए वह भी चली गई. अब रोंआसी होने की बारी मेरी थी. करीब और

20-25 मिनट बाद एक औटो तेजी से आ कर मेरे पास रुका. वह लड़की नीचे उतरी और मुझे प्रोजैक्ट रिपोर्ट वापस की. उस की प्रोजैक्ट रिपोर्ट तैयार हो रही है और वह वापस वहीं पर जा रही है.

अब मेरी मुसकराहट वापस लौट आई थी. अच्छाई पर अतिविश्वास और अधिक गहरा हो गया था.

मैंऔर मेरे पति हनीमून पर कुल्लू गए. शाम को घूमने निकल गए. ऊंची पहाड़ी पर एक स्मारक बना था, उसे देखने के लिए दोनों पैदल चल पड़े.

मैं ने साड़ी पहनी थी. पहाड़ी पर चलना मुश्किल हो रहा था. तभी एक जीप आ रही थी. उस में बैठे सज्जन ने हमें स्मारक तक लिफ्ट दे दी. वापसी पर भी उन्होंने हमें वापस बाजार तक छोड़ दिया.

जीप से उतरते हुए हमारा कैमरा उसी जीप में छूट गया. जीप वालों का कोई पता नहीं मालूम था. फिर भी उम्मीद में बाजार में वहां वापस गए जहां उन्होंने हमें जीप से उतारा था. अभी हमें वहां पहुंचे 5 मिनट ही हुए थे कि हमें दूर से जीप आती दिखाई दी. जीप हमारे पास रुकी और वे सज्जन बोले, ‘‘बेटे की नजर आप के कैमरे पर पड़ गई थी. आप ने अपने होटल का नाम बताया था, वहीं जा रहे थे.’’

हम ने तहे दिल से उन्हें धन्यवाद दिया.

द चिकन स्टोरी- भाग 3: क्या उपहार ने नयना के लिए पिता का अपमान किया?

लेखक- अरशद हाशमी

‘‘तुम ही चल कर एक बार पिताजी को सम?ा लो,’’ उस ने मेरी बात को अनसुनी करते हुए कहा.

‘‘अरे नहीं रे बाबा.’’ गोलगप्पा मेरे मुंह से बाहर निकलतेनिकलते बचा. मैं तो आज तक भी उन के सामने आने से घबराता हूं. याद है, कैसे तुम ने मु?ो फंसवा दिया था. अब तुम दोनों ही कुछ रास्ता निकालो, मैं ने साफ इनकार  कर दिया.

पिताजी और उपकार दोनों ही ?ाकने के लिए तैयार नहीं थे. फिर कुछ दिनों बाद उपकार को एक मीटिंग में हिस्सा लेने के लिए एक हफ्ते के लिए अमेरिका जाना पड़ा. अभी वह अमेरिका पहुंचा भी नहीं था कि उस के पिताजी की तबीयत अचानक बिगड़ गई. रातभर बेचारे दर्द से तड़पते रहे. अगले दिन जब खाना बनाने वाली आंटी आईं तो उन्होंने ?ाट से अस्पताल से एंबुलैंस मंगवा कर उन को एडमिट कराया. उन्होंने उपकार को फोन कर के सूचित किया. उपकार के लिए इतनी जल्दी वापस आना लगभग असंभव था. किसी भी सूरत में वह दोतीन दिनों से पहले वापस नहीं आ सकता था. उस ने मु?ो फोन करने की कोशिश की, लेकिन मेरा फोन खराब होने की वजह से मु?ा से बात नहीं हो पाई. तब उस ने नयना को फोन किया तो वह तुरंत पिताजी के पास अस्पताल पहुंच गई.

अंकलजी की हालत में अब काफी सुधार था. नयना 2 दिनों तक उन के पास अस्पताल में ही रही. नयना ने उपकार को फोन कर के वापस आने से मना कर दिया कि अब अंकल की तबीयत बिलकुल सही है और वह अपना काम खत्म कर के ही लौटे.

फिर वह उन को अस्पताल से घर ले आई और उन की खूब सेवा की.

‘‘तुम पाठक साहब की बेटी हो न. पाठक साहब तो काशी गए हुए हैं. तुम दिल्ली से कब आईं. सौरी, तुम को मेरे लिए इतना कष्ट उठाना पड़ रहा है.’’ उपकार के पिताजी नयना को पाठक साहब की बेटी सम?ा रहे थे. शहर में पाठक साहब ही उन के एकमात्र मित्र थे, इसलिए उन को लगा शायद नयना पाठक साहब की बेटी है.

‘‘मैं आप की बेटी हूं और मु?ो आप की सेवा करने में कोई कष्ट नहीं है. और आप को डाक्टर ने ज्यादा बोलने के लिए मना किया है, इसलिए आप ज्यादा बात न करें,’’ नयना ने उन को दवाई देते हुए कहा.

‘कितनी सुशील और संस्कारी लड़की है. काश, उपकार इस से शादी के लिए तैयार हो जाए.’ नयना को अपनी सेवा करते देख अंकलजी ने मन ही मन सोचा.

उपकार रोज ही अंकलजी से फोन पर बात करता. अंकलजी ने उस को बिलकुल भी चिंता नहीं करने की बात कही.

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नयना ने मु?ो फोन कर के अंकलजी के बारे में बता दिया था, तो मैं उन से मिलने आया. नयना ने मु?ो मना किया था कि मैं उस के बारे में अंकलजी को कुछ न बताऊं. अंकलजी की तबीयत अब काफी अच्छी थी. उपकार 2 दिनों बाद वापस आने वाला था.

‘‘बेटा, तुम तो उपकार के सब से अच्छे दोस्त हो. उस को सम?ाओ कि वह इस लड़की से शादी के लिए तैयार हो जाए. इस से अच्छी लड़की उस को कहां मिलेगी. पता नहीं, वह किस लड़की से शादी करने की जिद पकड़े बैठा है.’’ अंकलजी ने यह मु?ा से धीरे से कहा.

अब मैं अंकलजी से क्या कहता. चुपचाप चाय पी कर वहां से चला आया.

फिर जिस दिन उपकार को वापस आना था, नयना वापस अपने घर आ गई. उपकार के आने से पहले ही पाठक साहब काशी से वापस आ गए थे.

‘‘अरे पंडितजी, यह क्या हाल बना लिया. मैं तो मिठाई लाया था अपनी पारुल का रिश्ता काशी में कर दिया है.  अब जल्दी से ठीक हो जाइए, शादी अगले महीने ही है,’’ पाठक साहब अंकलजी के पास बैठते हुए बोले.

‘‘अरे बिटिया की शादी तय भी कर आए इतनी जल्दी.’’ पाठक साहब की बेटी की शादी की बात सुन अंकलजी बिलकुल निराश हो गए.

‘‘जी, बस, सबकुछ जल्दी ही तय हो गया. एक छोटे से समारोह में पारुल और शैलेश की सगाई भी कर दी है,’’ पाठक साहब ने अंकलजी को बताया.

‘‘सगाई भी हो गई, लेकिन बिटिया तो यहीं थी, फिर कैसे?’’ अंकलजी हैरानी से बोले.

‘‘नहीं, पारुल तो हमारे साथ काशी में ही थी. वह दिल्ली से वहीं आ गई थी,’’ पाठक साहब ने कहा तो अंकलजी सोच में पड़ गए कि अगर पारुल काशी में थी तो उन के साथ इतने दिनों तक कौन थी.

फिर शाम तक उपकार भी वापस आ गया. अंकलजी ने उपकार से पूछा कि आखिर इतने दिनों तक उन की सेवा करने वाली लड़की कौन थी.

‘‘मेरे एक दोस्त की बहन थी,’’ उपकार ने छोटा सा जवाब दिया, ‘‘कल से आप की देखभाल के लिए एक नर्स आ रही है. आप जल्दी से अच्छे हो जाइए, तो मैं आप को प्रयाग ले कर चलूंगा,’’ उपकार ने मुसकरा कर अंकलजी से कहा.

‘‘मेरी एक बात मान ले बेटा, नर्स की जगह तू उसी लड़की को इस घर में ले आ मेरी बहू बना कर,’’ अंकलजी ने उपकार का हाथ अपने हाथों में ले कर कहा.

‘‘मैं तो कब का माना हुआ हूं, आप ही नहीं मान रहे,’’ उपकार ने हताशाभरी मुसकान से कहा, तो अंकलजी को मानो एक ?ाटका सा लगा.

‘‘तो क्या यह वही लड़की है जिस से तुम शादी करना चाहते हो,’’ अंकलजी ने बड़ी हैरत से कहा.

‘‘जी बाबूजी, लेकिन अब नहीं. मेरे लिए वह आप से बढ़ कर नहीं है. आप को यह शादी मंजूर नहीं है, तो फिर यह शादी नहीं होगी,’’ उपकार अपने आंसुओं को रोकने की कोशिश करते हुए बोला और फिर वहां से चला गया. लेकिन अंकलजी विचलित हो गए.

रातभर अंकलजी सही से सो नहीं पाए. बारबार उन्हें नयना की सेवा और उपकार की आंखों में आंसू याद आते रहे. एक तरफ उन का धर्म था, तो दूसरी तरफ बेटे की खुशियां. वे किसी भी निर्णय पर नहीं पहुंच पा रहे थे. फिर सुबह होतेहोते उन्होंने एक फैसला कर लिया.

‘‘अगर तुम मु?ो इतना ही मान देते हो तो जहां मैं कहूं वहां शादी करोगे,’’ अंकलजी ने चाय पीते हुए उपकार से कहा.

‘‘जैसा आप कहें पिताजी,’’ उपकार ने हार मानते हुए कहा.

‘‘तो फिर नयना को बोलो जल्दी से मेरी बहू बन कर इस घर में आ जाए,’’ अंकलजी ने मुसकरा कर कहा तो उपकार को विश्वास ही नहीं हुआ.

‘‘पिताजी, क्या आप सच कह रहे हैं?’’ उपकार की बांछें खिल गईं.

‘‘हां, अभी के अभी उस को यहां बुलाओ. 2 दिनों से उस को नहीं देखा, तो कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा,’’ अंकलजी उपकार की खुशी देख कर खुद भी बहुत खुश थे.

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उपकार ने ?ाट से नयना को फोन कर के घर बुला लिया.

‘‘बेटी, क्या तुम इस घर की बहू बनोगी,’’ अंकलजी ने आते ही नयना से कहा, तो नयना आंखों में आंसू लिए उन के गले लग गई.

‘‘नालायक, तू ने भी मु?ा को नहीं बताया,’’ कुछ दिनों बाद दोनों की सगाई के मौके पर अंकलजी ने मेरे कान खींचते हुए कहा.

फिर उपकार और नयना दोनों ने एकदूसरे को सगाई की अंगूठी पहनाई.

‘‘आज मैं अगर तुम से कुछ मांगूं, तो दोगे,’’ नयना ने उपकार से मेरी मौजूदगी में कहा.

‘‘जी बोलिए, आज आप जो कहेंगी, मैं वह करूंगा,’’ उपकार ने हंसते हुए कहा.

‘‘तो आज से आप और मैं पूर्ण शाकाहारी होंगे. हम पिताजी के लिए इतना तो कर सकते हैं न,’’ नयना ने गंभीरता से कहा तो ह्यमु?ो अपनी बहन पर बड़ा गर्व हुआ.

‘‘जो हुक्म मल्लिका का.’’ चिकन छोड़ने के खयाल से उपकार का मुंह लटक तो गया लेकिन फिर उस ने नयना से नाटकीय अंदाज में ?ाकते हुए यह कहा, तो हम सब हंस पड़े. हम ने ध्यान भी नहीं दिया कि हमारे पीछे अंकलजी हमारी बातें सुन कर अपनी आंखों में आए पानी को साफ कर रहे थे.

हताश जिंदगी का अंत- भाग 2: क्यों श्यामा जिंदगी से हार गई थी?

रोजरोज की कलह से आजिज आ कर रामसागर ने रामभरोसे को घर से अलग कर दिया और पड़ोस में ही एक कमरा बरामदे वाला मकान रहने को दे दिया. रामभरोसे इसी एक कमरे वाले घर में अपनी पत्नी श्यामा व 4 बेटियों के साथ रहने लगा. लड़ाई झगडे़ से नजात मिली तो श्यामा ने राहत की सांस ली. उस ने अपने विनम्र स्वभाव से पति को भी सम झाया कि वह शराब पीना छोड़ दे और अपनी बेटियों की पढ़ाईलिखाई तथा पालनपोषण पर ध्यान दे. उस ने यह भी कहा कि वह कमाई का कोई ठोस रास्ता निकाले, जिस से घरगृहस्थी सुचारु रूप से चल सके.

रामभरोसे शराबी जरूर था किंतु पत्नीबच्चों से उसे प्यार था. उस ने पत्नी की बात मान कर शराब पीनी छोड़ी तो नहीं लेकिन कम जरूर कर दी. रामभरोसे अब तक कमानी मरम्मत का हुनर सीख चुका था. उस ने पिता के साथ काम करना छोड़ दिया और शांतिनगर स्थित एक गैराज में ट्रक व ट्रैक्टर की कमानी मरम्मत का काम करने लगा. गैराज से उसे अच्छी कमाई होने लगी.

पति कमाने लगा तो श्यामा की घरगृहस्थी सुचारु रूप से चलने लगी. वह पति की कमाई से पूर्णरूप से संतुष्ट तो नहीं थी पर असंतुष्ट भी न थी. उस की बड़ी बेटी पिंकी शांतिनगर स्थित निरंकारी बालिका इंटर कालेज में पहले से पढ़ रही थी. अब उस ने प्रियंका, वर्षा तथा रूबी का भी दाखिला इसी बालिका कालेज में करा दिया था. श्यामा अपनी बेटियों का जीवन संवारना चाहती थी. इसलिए वह उन के पालनपोषण तथा पढ़ाइलिखाई पर विशेष ध्यान देने लगी. बेटियों की पढ़ाई का खर्च पूरा करने के लिए पड़ोस के एक धनाढ्य परिवार में वह खाना बनाने (रसोइया) का काम करने लगी.

समय बीतता रहा. समय के साथ श्यामा की बेटियां भी सालदरसाल बड़ी होती गईं और वे एक क्लास पास कर दूसरे में पहुंचती रहीं. वर्ष 2015 में एक बार फिर श्यामा के जीवन में भी ग्रहण लगना शुरू हो गया. इस ग्रहण ने उस के जीवन में ही नहीं बल्कि बेटियों के जीवन में भी अंधेरा कर दिया.

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हुआ यह कि जिस गैराज में रामभरोसे कमानी मरम्मत का काम करता था, उसी में एक युवक विपिन काम करता था. एकसाथ काम करते विपिन और रामभरोसे में दोस्ती हो गई थी. दोस्ती गहरी हुई तो दोनों साथ खानेपीने लगे. दोस्ती के नाते एक रोज रामभरोसे विपिन को अपने घर ले आया. यहीं घर पर पीनेखाने के दैरान विपिन की नजर रामभरोसे की खूबसूरत बीवी श्यामा पर पड़ी. श्यामा 4 बेटियों की मां जरूर थी लेकिन यौनाकर्षण बरकरार था. पहली ही नजर में श्यामा विपिन के दिलदिमाग पर छा गई. वह श्यामा को अपनी अंक शायिनी बनाने का सपना संजोने लगा. वह सोचने लगा,’ यह हूर की परी, इस कालेकलूटे के भाग्य में. इसे तो मेरी होना चाहिए था.

विपिन जानता था कि श्यामा के बिस्तर तक पहुंचने का रास्ता रामभरोसे से हो कर जाता है. अत: उस ने रामभरोसे से दोस्ती और गाढ़ी कर ली. साथ ही, वह उसे मुफ्त में शराब और गोश्त परोसने लगा. यही नहीं, वह गाहेबगाहे उस की आर्थिक मदद भी करने लगा. विपिन ने जब देखा कि राम भरोसे पूर्णरूप से उस के एहसान तले दब चुका है तब उस ने कहा, ‘रामभरोसे ठेके पर पीने से मजा किरकिरा हो जाता है. घर में बैठ कर पीने का मजा ही कुछ और है. भाभी के हाथ का पका गोश्त मजा और भी दूना कर देगा.’

मुफ्त की शराब और गोश्त के लालच में रामभरोसे ने विपिन की बात मान ली. इस के बाद वह एक हाथ में मीट की थैली तथा दूसरे हाथ में शराब की बोतल ले कर रामभरोसे के घर पहुंचने लगा. श्यामा मीट पकाती और वे दोनों बैठ कर शराब पीते. फिर वे दोनों साथ बैठ कर रोटीमीट खाते. विपिन इस बीच श्यामा को ललचाई नजरों से देखता और उस की खूब तारीफ करता. बच्चों को ललचाने के लिए वह उन के लिए टौफीबिस्कुट लाता. कभीकभी उन को नकद रुपए भी थमा देता. यही नहीं, वह श्यामा को आकर्षित करने के लिए उस को भी 5 सौ रुपए का नोट थमा देता.

कहते हैं औरत को मर्द की निगाह की अच्छी परख होती है. श्यामा ने भी विपिन की नजर परख ली थी. वह जान गई थी कि विपिन की नजर उस के जिस्म पर है. वह उसे ललचाई नजरों से देखता है. अपने गंदे इरादों को पूरा करने के लिए उस ने उस के पति का सहारा लिया है. उस के मन में खोट है. उस के गंदे इरादों की यदि वह भागीदार बन गई तो कल वह बेटियों को भी नहीं छोडे़गा. लेकिन वह ऐसा नहीं होने देगी. उस के कदमों को रोकना होगा.

शाम को जब विपिन और रामभरोसे आए तो श्यामा दीवार बन कर दोनों के सामने खड़ी हो गई, ‘विपिन, रोजरोज घर पर खानेपीने का तमाशा नहीं चलेगा. पीना है तो ठेके पर जाओ. घर में हमारी बेटियां हैं. उन के सामने मैं तुम्हें शराब नहीं पीने दूंगी. इसी वक्त मेरे घर से चले जाओ.

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’‘भाभीजी, आज आप को क्या हो गया जो खानेपीने को मना कर रही हो.’ विपिन असहज सा हो गया.

‘विपिन मैं कोई बच्चा नहीं हूं. सब जानती हूं कि तुम मेरे घर में पैर क्यों पसार रहे हो. क्यों मेरे पति को गुमराह कर रहे हो. क्यों मेरी आर्थिक मदद कर रहे हो. इन सब का जवाब चाहते हो तो सुनो, क्योंकि तुम्हारी निगाह मेरे जिस्म पर है.’

कड़वी सचाई सुन कर विपिन की बोलती बंद हो गई. वह वापस लौट गया. ठेके पर पीने के दौरान विपिन ने श्यामा के खिलाफ रामभरोसे के खूब कान भरे. बेइज्जत करने का इलजाम लगाया. देररात नशे में धुत हो कर राम भरोसे घर आया तो विपिन को घर से बेइज्जत कर भगाने को ले कर श्यामा से भिड़ गया. श्यामा ने पति को सम झाने का प्रयास किया, लेकिन उस की सम झ में कुछ नहीं आया. उस ने श्यामा को जम कर पीटा. बड़ी बेटी पिंकी मां को बचाने आई तो उस ने उस की भी पिटाई कर दी.

Satyakatha: स्पा सेंटर की ‘एक्स्ट्रा सर्विस’- भाग 2

सौजन्य- सत्यकथा

राजेश अभी भी घबराया हुआ था. उस के जीवन में ऐसा कुछ पहली बार हो रहा था. हालांकि घबराहट की उस घड़ी में भी राजेश मन ही मन बेहद खुश था. उस ने सभी युवतियों पर फिर से नजर दौड़ाई और उन सब में से जो सब से खूबसूरत महिला थी, उसे पसंद कर लिया. उस का नाम रीटा था. राजेश ने रीटा की तरफ इशारा करते हुए पूनम से पूछा, ‘‘पूनमजी, क्या ये स्पैशल मसाज कर सकती हैं?’’

इस से पहले कि पूनम राजेश के सवाल का जवाब देती, रीटा बोल पड़ी, ‘‘जी सर, आप मेरे साथ आइए.’’

यह सुन कर पूनम ने रीटा को राजेश के सामने कहा, ‘‘ठीक है, सर को तुम रूम में ले जाओ और हां, सर का खास ध्यान रखना. क्योंकि यह यहां पहली बार मसाज कराने आए हैं.’’

रीटा ने पूनम की बातों पर हामी भरी और वह राजेश को अपने साथ सेंटर की पहली मंजिल पर बने एक केबिन में ले गई. रीटा ने राजेश को जूते उतार कर अंदर आने को कहा.

राजेश कमरे में अंदर आते ही चुपचाप दरवाजे के पास खड़ा हो कर कमरे में मौजूद चीजों को एक नजर देखने लगा. कमरे में दुकान के रिसैप्शन से भी कम रौशनी थी, लेकिन चीजें दिखाई दे रही थीं.

उस ने देखा कि वह कमरा ज्यादा बड़ा नहीं था. कमरे के बीचोंबीच एक सिंगल बैड था, जहां वह लेटने वाला था. इस के अलावा कमरे के एक कोने में एक लंबा सा टेबल था, जहां पर मसाज के लिए सभी तरह का सामान रखा हुआ था.

रीटा ने दरवाजे के बगल में खड़े राजेश को आवाज लगाते हुए कहा, ‘‘सर, यह आप का टावल है. आप बाथरूम में जा कर नहा लीजिए और इस टावल में खुद को लपेट कर इस बिस्तर पर लेट जाइए. मैं 15 मिनट के बाद आऊंगी. तब तक आप रेडी हो जाइए.’’

राजेश ने रीटा की बातों को चुपचाप सुना और उस की बातों पर हामी भरी. राजेश बिना किसी देरी के कमरे के अंदर मौजूद बाथरूम में गया, अपने कपड़े एक तरफ टांगे, बाथरूम का झरना खोला और नहाया. 5 मिनट में नहा कर और तैयार हो कर वह रूम में वापस गया.

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उस ने देखा कि रीटा अभी वापस नहीं लौटी थी. मन में उत्सुकता का समंदर ले कर राजेश कमरे में उस बिस्तर पर सीने के बल लेट गया और रीटा का इंतजार करने लगा.

करीब 10 मिनट के बाद रीटा कमरे में आई और बोली, ‘‘सर, अगर आप तैयार हैं तो क्या मैं मसाज शुरू कर सकती हूं?’’

राजेश ने रीटा के सवाल का जवाब दिया और कहा, ‘‘जी रीटाजी, मैं तैयार हूं. आप शुरू कर सकती हैं.’’

रीटा राजेश की ओर आई और टेबल के ऊपर पड़े तेल की बोतल उठा कर राजेश के पीठ पर उड़ेलने लगी. हलके गरम तेल की छुअन राजेश अपने पीठ पर महसूस कर रहा था.

तेल उड़ेलने के बाद रीटा ने जब अपने नाजुक हाथ राजेश की पीठ पर मलने शुरू किए तो राजेश के पूरे बदन में झुरझुरी सी फैल गई.

राजेश के जीवन में यह पहली बार था, जब कोई महिला उस के शरीर को छू रही थी. राजेश अपनी आंखें बंद कर के रीटा की स्पैशल मसाज का पूरा मजा लेने लगा.

उस के शरीर के कुछ हिस्सों में तनाव पैदा हो गया था, जिसे जबजब रीटा जानेअनजाने अपने हाथों से छू लेती तो राजेश के पूरे बदन में मानो करंट सा दौड़ जाता.

रीता ने अपने हाथों से राजेश के बदन के हर हिस्से पर तेल लगा दिया था. अब बारी मालिश की थी. जब रीटा ने राजेश के गरदन और कंधे पर अपने हाथ मालिश के लिए फेरने शुरू किए तो राजेश को हल्काहल्का दर्द महसूस होने लगा.

लेकिन इस दर्द का एहसास तीखा नहीं था, बल्कि मीठा था. रीटा के हाथों को महसूस करते हुए राजेश कब गहरी नींद में चला गया, उसे होश ही नहीं था.

राजेश के सो जाने के बाद रीटा ने उस के शरीर के हर हिस्से की अपने हाथों से मालिश की. मालिश के बाद रीटा ने हल्के गरम पत्थर राजेश की पीठ और गरदन पर रख दिए, जोकि इसी स्पैशल मसाज का हिस्सा थे.

जब राजेश की आंखें खुलीं और वह नींद से जागा तो उसे अपनी पीठ और गरदन पर गरमाहट महसूस हुई और रीटा उस के सामने चुपचाप बैठी थी. राजेश ने गरदन उठाई और रीटा से कहा, ‘‘अरे रीटाजी, मसाज हो गई है क्या?’’

रीटा ने राजेश के सवाल का जवाब देती हुए कहा, ‘‘नहीं सर, अभी एक और सेशन बाकी है. आप काफी देर से सो रहे थे तो मैं ने आप को डिस्टर्ब नहीं किया.’’

यह सुन कर राजेश ने कहा, ‘‘जी मैडम. मैं काफी गहरी नींद में सो गया था. कसम से मजा आ गया. पहली बार बौडी मसाज करवा रहा हूं. मुझे अंदाजा ही नहीं था कि इस में इतना मजा आता है.’’ कह कर राजेश चुप हो गया.

जब गरम पत्थर को हटाने का समय हो गया तो रीटा कुरसी से उठी और एकएक कर राजेश के शरीर से पत्थर हटाते हुए बोली, ‘‘सर, क्या आप एक्स्ट्रा सर्विस लेना चाहते हैं?’’

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राजेश ने रीटा का सवाल सुन तो लिया था लेकिन उसे समझ नहीं आया कि ये एक्स्ट्रा सर्विस भला कौन सी बला है. तब राजेश ने रीटा से सवाल किया, ‘‘एक्स्ट्रा सर्विस मतलब? मैं ने तो स्पैशल मसाज के पैसे काउंटर पर दे दिए थे.’’

रीटा ने राजेश के सवाल पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा, ‘‘नहीं सर, स्पैशल मसाज तो एक अलग चीज है, एक्स्ट्रा सर्विस में हम आप के शरीर के कुछ खास हिस्सों की खास मसाज करते हैं. जिस के पैसे आप को काउंटर पर नहीं, बल्कि हमें देने होते हैं.’’

राजेश रीटा की बातों का इशारा समझने लगा था. वह रीटा से बोला, ‘‘मुझे आप की एक्स्ट्रा सर्विस के कितने पैसे और देने होंगे?’’

रीटा ने राजेश के सवाल का जवाब देते हुए कहा, ‘‘सर ये डिपेंड करता है कि आप कैसी सर्विसेज लेना चाहते हैं.’’

राजेश की उत्सुकता अब सातवें आसमान पर पहुंच चुकी थी. उस के शरीर का रोमरोम मानो खड़ा हो गया था. उस ने रीटा को धीमी आवाज में कहा, ‘‘ठीक है, आप अपनी सारी एक्स्ट्रा सर्विस मुझे दे दीजिए.’’

रीटा ने बिना वक्त बरबाद किए, राजेश को पीठ के बल लेटने को कहा. अब रीटा की हल्के गुलाबी रंग की यूनिफार्म भी ढीली हो गई थी. राजेश अपने सामने रीटा की ढीली पड़ती यूनिफार्म से उस के अंगों को साफ देख पा रहा था.

देखते ही देखते एक्स्ट्रा सर्विस के नाम पर राजेश ने वो सब हासिल कर लिया था, जिस से वह अब तक अछूता था. राजेश और रीटा दोनों के शरीर आपस में जुड़ गए थे. ऐसा लग रहा था जैसे वे दोनों एकदूसरे के लिए ही बने हों.

कुछ समय बाद जब रीटा की नसें ढीली पड़तीं तो वो राजेश की पीठ में अपने नाखून गड़ा देती. उन के बीच का यह शारीरिक मेल काफी लंबा चला. अंत में जब उन दोनों के बीच सब कुछ खत्म हो गया तो राजेश फिर एक बार बाथरूम में जा कर नहाया. उस ने अपने कपड़े पहने.

अगले भाग में पढ़ें- दिल्ली सरकार के सख्त कदम

श्यामली- भाग 2: जब श्यामली ने कुछ कर गुजरने की ठानी

सोम के मित्र अतुल ने उन्हें ड्रिंक का गिलास औफर किया. श्यामलीजी ने घबरा कर कहा, ‘‘मैं ड्रिंक नहीं करती.’’

सोम ने गिलास ले कर जबरदस्ती उन के मुंह में लगा दिया, ‘‘छोड़ो भी यह बी ग्रेड देहाती मैंटेलिटी. अब तुम रईसों वाले शौक करो और ऐश की जिंदगी जीयो.’’

श्यामलीजी की आंखों से अश्रुधारा बहने लगी. वे कोने में जा कर बैठ गईं. नौनवैज खाना देख खाने के पास भी नहीं गईं.

उस दिन उन के कारण सोम को अपनी बेइजती महसूस हुई थी. वे सारे रास्ते उन्हें भलाबुरा कहने के साथसाथ गालियां भी देते रहे थे.

इतनी गालीगलौज के बाद भी वे श्यामलीजी के तन को रौंदना नहीं भूले थे. वे रातभर सिसकती रही थीं. समझ नहीं पा रही थीं कि उन्हें ऐसी स्थिति में क्या करना चाहिए. अगली सुबह सब कुछ उलटपुलट कर उन के जीवन में अघटित घट गया. पापाजी रात में सोए तो उन्होंने सुबह आंखें ही नहीं खोलीं. सब कुछ बदल चुका था. मम्मीजी श्यामलीजी को अपशगुनी कहकह कर रो रही थीं. उन की शादी को अभी मात्र 2 महीने ही हुए थे.

नातेरिश्तेदारों की भीड़ के सामने मम्मीजी का एक ही प्रलाप जारी रहता कि बिना दानदहेज की तो बहू लाए और वह भी ऐसी आई कि मेरी जड़ ही खोद दी. इस ने तो हमें बरबाद कर दिया.

यह ठीक था कि सोम दुखी थे, लेकिन वे मम्मीजी को चुप भी तो करा सकते थे, परंतु नहीं. वे उन से खिंचेखिंचे से रहते, लेकिन रात में उन के शरीर पर उन का पूरा अधिकार होता. उन की इच्छाअनिच्छा की परवाह किए बिना वे अपनी भूख मिटा कर करवट बदल कर खर्राटे भरने लगते.

श्यामलीजी उदास और परेशान रहतीं, क्योंकि वहां उन का अपना कोई न था, जिस से वे अपने मन का दर्द कह सकें.

उन्हीं दिनों उन के शरीर के अंदर नवजीवन का स्फुरण होने लगा. वे समझ नहीं पा रही थीं कि हंसे या फूटफूट कर रोए. विद्रोह करने की न ही प्रवृत्ति थी और न ही हिम्मत. वे अपनी शादी को टूटने नहीं देना चाहती थीं. वे रिश्तों को निभाने में विश्वास रखती थीं. दोनों की इज्जत का समाज में मजाक नहीं बनने देना चाहती थीं. सोम मैडिकल स्टोर में बिजी हो गए थे. वे कभी नहीं सोच पाए कि श्यामलीजी का भी कोई अरमान या इच्छा होगी. वे भी प्यार और सम्मान की चाहत रखती होंगी. वे तो स्वचालित मशीन बन गई थीं,  जिस का काम था- मम्मीजी और सोम को हर हाल में खुश रखना. कोई आएजाए जो उस का आदरसम्मान और सेवा करना.

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उन्होंने सुबह से शाम तक अपने को घर के कामों में झोंक दिया था. जो भी खाना बनातीं सोम को पसंद नहीं आता. कहते कि यह क्या खाना बनाया है? मुझे तो मटरपनीर की सब्जी खानी है. फिर वे थके कदमों से रात के 11 बजे सब्जी बनाने में जुट जातीं.

जब भी मम्मीपापा उन से मिलने को आए या घर ले जाने की बात की तो मम्मीजी ने ऐसा लाड़प्यार और उन की अनिवार्यता दिखाई कि उन लोगों को यह महसूस हुआ कि वे लोग धन्य हैं, जिन की बेटी को इतना संपन्न और प्यार करने वाला पति और परिवार मिला है.

वे अपनी मां के कंधे पर अपना सिर रख कर अपना मन हलका करना चाहती थीं, लेकिन मम्मीजी और सोम ने ऐसा जाल बिछाया कि एक पल को भी उन्हें मां के साथ अकेले नहीं बैठने दिया.

गोद में राशि के आने के सालभर बाद ही शुभ आ गया. उन की व्यस्तता जिम्मेदारियों के कारण बढ़ गई थी. वे घरगृहस्थी और बच्चों में उलझती गई थीं.

जब कभी सोम उन का अपमान करते या भलाबुरा कहते तो उन्हें अपने पर बहुत क्रोध आता कि क्यों वे ये सब सह रही हैं. क्या बच्चे केवल उन के हैं? आखिर बीज तो सोम का ही है.

सोम के लिए तो अब वे मात्र तन की भूख मिटाने की जरूरत बन कर रह गई थीं. सोम ने स्टोर पर कुछ काम बढ़ा लिया था. मैन काउंटर की डिस्ट्रीब्यूटरशिप ले ली थी. इसलिए और ज्यादा बिजी रहने लगे थे.

स्टोर पर कंप्यूटर का काम करने के लिए एक लड़की, जिस का नाम नइमा था, उसे रख लिया था. वह काफी खूबसूरत और फैशनेबल थी. जल्दी ही सोम उस के प्यार में पड़ गए. वे नइमा को साथ ले कर क्लब जाने लगे. वहां पौप म्यूजिक की धुन पर डांस और ड्रिंक के गिलास खनकते. वहां वह सोम का बखूबी साथ देती. जल्द ही नइमा सोम की जरूरत और जिंदगी बन गई.

एक दिन स्टोर के मैनेजर महेश ने मम्मीजी को अपना नाम न बताने की शर्त पर बताया कि सोम बहक गए हैं. नकली दवा बेचने लगे हैं. वे कई बार ऐक्सपायरी दवा भी ग्राहकों को दे देते हैं. ड्रग्स सप्लाई का काम भी करना शुरू कर दिया है. किसी भी समय मुसीबत में पड़ सकते हैं.

अब मम्मीजी को श्यामलीजी की याद आई कि श्यामली, सोम को कंट्रोल करो. वह तो अपनी तो अपनी, हम सब की बरबादी के रास्ते पर भी चल निकला है.

मम्मीजी की हिम्मत ही नहीं थी कि वे सोम से दुकान के विषय में बात कर सकें. उन्होंने जब भी कुछ पूछताछ या टोकाटाकी की तो सोम गालीगलौच पर उतर आते.

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सोम के साथ उन का औपचारिक सा रिश्ता रह गया था. अब वे बच्चों के लिए महंगेमहंगे खिलौने लाते. उन के और मम्मीजी के लिए भी कीमती तोहफे ले कर आते. वे देर रात लौटते. उन के मुंह से रोज शराब की दुर्गंध आती. लेकिन श्यामलीजी लड़ाई से बचने के लिए चुप रहतीं.

उन्हें महंगे तोहफे, कीमती साडि़यों की चाह नहीं थी. वे तो पति के प्यार की भूखी थीं. वे उन की बांहों में झूलती हुईं प्यार भरी बातें करना चाहती थीं.

नियति ने स्त्री को इतना कमजोर क्यों बना दिया है कि वह घर न टूटने के डर से अपने वजूद की कुरबानी देती रहती है?

अब तो सोम के लाए हुए तोहफों को वे खोल कर भी नहीं देखती थीं.

एक दिन सोम चिढ़ कर बोले कि इतनी महंगी साडि़यां ला कर देता हूं, लेकिन तुम्हारा उदास और मायूस चेहरा मेरा मूड खराब कर देता है.

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मैं तुम्हें मार रहा हूं? गाली दे रहा हूं? क्या कमी है?

श्यामलीजी हिम्मत कर के प्यार से, बच्चों का वास्ता दे कर उन से शराब पीने और क्लब जाने को मना करने लगीं तो सोम बेशर्मी से बोले कि मैं ये सब न करूं तो क्या करूं? मैं तुम से संतुष्ट नहीं हूं, न तो शारीरिक रूप से न ही मानसिक रूप से. मेरा और तुम्हारा मानसिक स्तर बिलकुल अलग है. हम दोनों कभी एक नहीं हो सकते.

Crime Story- गुड़िया रेप-मर्डर केस: भाग 2

अदालत के दाईं ओर बने कटघरे में मुलजिम नीलू उर्फ अनिल उर्फ चरानी मुंह लटकाए खड़ा था और उस के चेहरे का रंग पीला पड़ा था. जज राजीव भारद्वाज अपनी न्याय की कुरसी पर विराजमान थे. अदालत कक्ष में दोनों पक्षों यानी बचाव पक्ष के अधिवक्ता महेंद्र एस ठाकुर और सरकार की ओर से अधिवक्ता अमित जिंदल मौजूद थे.

न्यायाधीश ने सुनाई सजा

मुकदमे की काररवाई शुरू की गई. जिला एवं सत्र न्यायाधीश राजीव भारद्वाज ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा, ‘‘दोनों पक्षों के विद्वान अधिवक्ताओं की दलीलें सुनी गईं. इस मामले में सीबीआई ने 55 गवाहों के बयान दर्ज किए. मामले के 14 में से 12 बिंदू नीलू के खिलाफ गए थे और 2 बिंदू आरोपी के पक्ष में. गौरतलब बात यह है कि आरोपी की हत्या वाली जगह पर मौजूदगी, पोस्टमार्टम रिपोर्ट, डीएनए रिपोर्ट आरोपी के खिलाफ रहीं.

‘‘मिट्टी के सैंपल, शरीर पर निशान भी नीलू के दोषी होने को साबित करते हैं. नीलू के पक्ष में यह रहा कि पुलिस या सीबीआई उस की आपराधिक पृष्ठभूमि साबित नहीं कर सकी.

‘‘इस जघन्य अपराध के आरोपी अनिल कुमार उर्फ नीलू को भादंवि की धारा 372 (2) (आई) और 376 (ए) के तहत बलात्कार का दोषी माना जाता है. साथ ही भारतीय दंड संहिता की धारा 302 के तहत उसे हत्या और धारा 4 के तहत दमनकारी यौन हमला करने की सजा का दोषी माना जाता है. चूंकि पीडि़ता नाबालिग थी इसलिए

अदालत उसे पोक्सो एक्ट का दोषी भी करार देती है.’’

न्यायाधीश राजीव भारद्वाज ने आगे कहा, ‘‘सीबीआई की ओर से दायर चार्जशीट के तथ्यों को आधार मानते हुए यह अदालत इस नतीजे पर पहुंची है कि दोषी अनिल कुमार उर्फ नीलू उर्फ चरानी को नाबालिग से दुष्कर्म के जुर्म में मरते दम तक आजीवन कारावास और हत्या के मामले में आजीवन कारावास सहित 10 हजार रुपए जुरमाना लगाती है.

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‘‘जुरमाना न भरने की सूरत में दोषी को एक साल का अतिरिक्त कारावास काटना होगा. आरोपी की सजा फैसले के दिन से मानी जाएगी. आरोपी अनिल कुमार उर्फ नीलू उर्फ चरानी को न्यायिक हिरासत में लेते हुए यह अदालत उसे जेल भेजने की आदेश देती है अत: आरोपी को तत्काल पुलिस कस्टडी में लिया जाए. आज के मुकदमे की काररवाई यहीं खत्म की जाती है.’’

न्यायाधीश राजीव भारद्वाज ने 10 मिनट में फैसला सुना कर उस दिन की अदालत की काररवाई को विराम दिया और न्याय की कुरसी से उठ कर अपने कक्ष में चले गए. इस के बाद शिमला पुलिस ने अभियुक्त अनिल कुमार को हिरासत में लिया और उसे जेलले गई.

आइए पढ़ते हैं कि गुडि़या रेप और मर्डर केस की दिल दहला देने वाली सनसनीखेज कहानी. इस दर्दनाक और शर्मनाक घटना ने देश तक को हिला कर रख दिया था, जिस में पुलिस महानिरीक्षक से ले कर कांस्टेबल सहित 9 पुलिसकर्मियों तक को जेल की हवा खानी पड़ी थी. आखिर क्या हुआ था इस कहानी में, आइए पढ़तें हैं.

16 वर्षीय गुडि़या मूलरूप से शिमला के विधानसभा चौपाल के छोग की रहने वाली थी. पिता शिवेंद्र कुमार और मां अर्पिता की 5 संतानों में वह चौथे नंबर पर बेटियों में सब से छोटी थी लेकिन बेटा अमन से बड़ी थी. बड़ी होने के नाते गुडि़या अपने मांबाप और बहनों की लाडली और भाई की दुलारी थी.

स्कूल से घर नहीं लौटी गुडि़या

नाम के अनुरूप गुडि़या थी ही गुडि़या जैसी एकदम मासूम, चपल, चंचल और बेहद खूबसूरत, शिमला की खूबसूरत वादियों की तरह जिसे हर कोई प्यार किए बिना थकता नहीं था. मांबाप की लाडली गुडि़या उतनी ही अव्वल थी पढ़ने में.

पढ़लिख कर वह जीवन में बड़ा अफसर बनने की जिजीविषा रखती थी. तो मांबाप भी बेटी के सपने को पूरा करने के लिए हमेशा तत्पर रहते थे. बच्चों की बेहतर परवरिश और शिक्षा पर वह पानी की तरह पैसे बहाते थे.

शिवेंद्र कुमार एक बड़े किसान थे. उन का अपने क्षेत्र में बड़ा नाम था. नाम के साथसाथ बड़ी पहचान भी थी. उन के पास पैसों की कोई कमी नहीं थी, इसीलिए बच्चों की शिक्षा पर वह खूब पैसे खर्च करते थे.

लेकिन होनी को कौन टाल सकता है, जो होना है वह तो हो कर ही रहता है. ऐसा ही कुछ शिवेंद्र के साथ भी हुआ.

उन्हें क्या मालूम था कि उन के साथ बड़ा भयानक और कड़वा मजाक होने वाला है जिस का जख्म समय के मरहम के साथ तो भर जाएगा, लेकिन उस के निशान ताउम्र नासूर की तरह सालता रहेगा.

वह तारीख थी 4 जुलाई, 2017. गुडि़या, महासू के सीनियर सैकेंडरी हायर स्कूल में 10वीं कक्षा में पढ़ती थी. उन दिनों शाम साढ़े 4 बजे उस के स्कूल की छुट्टी हुआ करती थी. उस दिन भी उस के स्कूल की नियत समय पर छुट्टी हुई थी.

छुट्टी होते ही गुडि़या स्कूल से घर के लिए निकल गई थी लेकिन देर शाम तक वह घर नहीं पहुंची थी. बेटी के घर न पहुंचने पर मां अर्पिता को चिंता हुई.

उन्होंने फोन कर के पति को बताया, ‘‘शाम होने वाली है, बेटी अभी तक घर नहीं लौटी. मुझे चिंता हो रही है, जरा स्कूल फोन कर के पता करिए, आखिर बेटी कहां रह गई.’’

पत्नी की बात सुन कर औफिस गए शिवेंद्र भी परेशान हो गए. शिवेंद्र ने पत्नी से कहा अभी स्कूल के प्रधानाचार्य को फोन कर के पता करता हूं. तुम चिंता मत करो.

फिर उन्होंने फोन काट दिया और स्कूल के प्रधानाचार्य को फोन मिला कर बेटी के बारे में पूछा.

शिवेंद्र की बात सुन कर प्रधानाचार्य भी हैरान रह गए थे. उन्होंने गुडि़या के पिता को बताया कि बेटी गुडि़या स्कूल आई थी और समय से घर के लिए निकल गई थी.

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प्रधानाचार्य से बात करने के बाद शिवेंद्र की चिंता और बढ़ गई. उन्होंने नातेरिश्तेदारों के यहां फोन कर के बेटी के बारे में पूछा लेकिन वह वहां भी नहीं पहुंची थी. अब घर वाले यह सोच कर परेशान होने लगे कि गुडि़या गई तो गई कहां? मन में यह सवाल उठते ही शिवेंद्र की धड़कनें तेज हो गईं.

उन्हें ये समझते देर न लगी कि कहीं बेटी के साथ कोई अनहोनी तो न हो गई. औफिस से देर रात घर लौटे शिवेंद्र पत्नी के साथ सोफे पर बैठेबैठे बेटी के घर लौटने के इंतजार में मुख्यद्वार को टकटकी लगाए ताकते रहे और बेटी की चिंता में पूरी रात दोनों पतिपत्नी ने आंखों में काट दी थी.

जंगल में नग्नावस्था मिली थी लाश

इस बीच शिवेंद्र ने कोटखाई थाने में तहरीर दे कर बेटी की गुमशुदगी की सूचना दर्ज करा दी थी. इंसपेक्टर राजिंदर सिंह मुकदमा अपराध संख्या 97/2017 पर गुमशुदगी दर्ज कर के जरूरी काररवाई में जुट गए थे.

अगले भाग में पढ़ें- विद्रोह और जन आंदोलन ने पकड़ी रफ्तार

Best of Manohar Kahaniya: प्यार पर प्रहार

सौजन्य- मनोहर कहानियां

प्रियंका और कृष्णा प्यार की पींगें भर रहे थे. दोनों का प्यार दोस्तों के बीच चर्चा का विषय बन गया था. कृष्णा तिवारी की उम्र जहां 25 वर्ष थी, वहीं प्रियंका श्रीवास 21 साल की थी. दोनों अकसर छत्तीसगढ़ के बिलासपुर शहर की सड़कों पर एकदूसरे का हाथ थामे घूमते हुए दिख जाते.  कृष्णा उसे अपनी बुलेट मोटरसाइकिल पर भी घुमाता था. दोनों का प्रेम परवान चढ़ रहा था.

कृष्णा तिवारी उर्फ डब्बू मूलत: कोनी, बिलासपुर का रहने वाला था और प्रियंका पास के ही बिल्हा शहर के मुढ़ीपार गांव की थी. वह बिलासपुर में अपने मौसा जोगीराम के यहां रह कर बीए फाइनल की पढ़ाई कर रही थी.

एक दिन कृष्णा ने शहर के विवेकानंद गार्डन में घूमतेघूमते प्रियंका से कहा, ‘‘प्रियंका, आज मैं तुम से एक बहुत खास बात कहने जा रहा हूं,जिस का शायद तुम्हें बहुत समय से इंतजार होगा.’’

‘‘क्या?’’ प्रियंका ने स्वाभाविक रूप से कहा.

‘‘मैं तुम से शादी करना चाहता हूं,’’ कृष्णा बोला, ‘‘मैं चाहता हूं कि हम दोनों शादी कर लें या फिर घरपरिवार से कहीं दूर भाग चलें.’’

‘‘नहींनहीं, मैं भाग कर शादी नहीं कर सकती, वैसे भी अभी मैं पढ़ रही हूं. शादी होगी तो मेरे मातापिता की सहमति से ही होगी.’’

‘‘तब तो प्यार भी तुम्हें मम्मीपापा की आज्ञा ले कर करना चाहिए था.’’ कृष्णा ने उस की खिल्ली उड़ाते हुए मीठे स्वर में कहा.

‘‘देखो, प्यार और शादी में बहुत बड़ा फर्क है. तुम मुझे अच्छे लगे तो तुम से दोस्ती हो गई और फिर प्यार हो गया.’’ प्रियंका ने सफाई दी.

‘‘अच्छा, यह तो बड़ी कृपा की आप ने हुजूर.’’ कृष्णा ने विनम्र भाव से कहा, ‘‘अब कुछ और कृपा बरसाओ, मेरी यह इच्छा भी पूरी करो.’’

‘‘देखो डब्बू, तुम मेरे पापा को नहीं जानते. वह बड़े ही गुस्से वाले हैं. मैं मां को तो मना लूंगी मगर पापा के सामने तो बोल तक नहीं सकती. वो तो अरे बाप रे…’’ कहतेकहते प्रियंका की आंखें फैल गईं और चेहरा सुर्ख हो उठा.

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‘‘प्रियंका, तुम कहो तो मैं पापा से बात करूं या फिर उन के पास अपने पापा को भेज दूं. मुझे यकीन है कि हमारे खानदान, रुतबे को देख कर तुम्हारे पापा जरूर हां कह देंगे. बस, तुम अड़ जाना.’’ कृष्णा ने समझाया.

‘‘देखो कृष्णा, हमारे घर के हालात, माहौल बिलकुल अलग हैं. मैं किसी भी हाल में पापा से बहस या सामना नहीं कर सकती. तुम अपने पापा को भेज दो, हो सकता है बात बन जाए.’’ प्रियंका बोली.

‘‘और अगर नहीं बनी तो?’’ कृष्णा ने गंभीर होते हुए कहा.

‘‘नहीं बनी तो हमारे रास्ते अलग हो जाएंगे. इस में मैं क्या कर सकती हूं.’’ प्रियंका ने जवाब दिया.

एक दिन कृष्णा तिवारी के पिता लक्ष्मी प्रसाद तिवारी प्रियंका श्रीवास के पिता नारद श्रीवास से मिलने उन के घर पहुंच गए. नारद श्रीवास का एक बेटा और 2 बेटियां थीं. वह किराने की एक दुकान चलाते थे.

लक्ष्मी प्रसाद ने विनम्रतापूर्वक अपना परिचय देते हुए कहा, ‘‘भाईसाहब, मैं आप से मिलने बिलासपुर से आया हूं. आप से कुछ महत्त्वपूर्ण बातचीत करना चाहता हूं.’’

कृष्णा के पिता ने की कोशिश

नारद श्रीवास ने उन्हें ससम्मान घर में बिठाया और खुद सामने बैठ गए. लक्ष्मी प्रसाद तिवारी हाथ जोड़ कर बोले, ‘‘मैं आप के यहां आप की बड़ी बेटी प्रियंका का अपने बेटे कृष्णा के लिए हाथ मांगने आया हूं.’’

यह सुन कर नारद श्रीवास आश्चर्यचकित हो कर लक्ष्मी प्रसाद की ओर ताकते रह गए. उन के मुंह से बोल नहीं फूट रहे थे. तब लक्ष्मी प्रसाद बोले, ‘‘भाईसाहब, मेरे बेटे कृष्णा को आप की बिटिया पसंद है. हालांकि हम लोग जाति से ब्राह्मण हैं, मगर बेटे की इच्छा को ध्यान में रखते हुए आप के पास चले आए. आशा है आप इनकार नहीं करेंगे.’’

यह सुन कर नारद श्रीवास के चेहरे का रंग बदलने लगा. उन्होंने लक्ष्मी प्रसाद से कहा, ‘‘देखो तिवारीजी, आप मेरे घर आए हैं, ठीक है. मगर मैं अपनी बिटिया का हाथ किसी गैरजातीय लड़के को नहीं दे सकता.’’

‘‘मगर भाईसाहब, अब समय बदल गया है. मेरा आग्रह है कि आप घर में चर्चा कर लें. बच्चों की खुशी को देखते हुए अगर आप हां कर देंगे तो यह बड़ी अच्छी बात होगी.’’ लक्ष्मी प्रसाद ने सलाह दी.

‘‘देखिए पंडितजी, मैं समाज के बाहर बिलकुल नहीं जा सकता. फिर प्रियंका के लिए मेरे पास एक रिश्ता आ चुका है. वे लोग प्रियंका को पसंद कर चुके हैं. मैं हाथ जोड़ता हूं, आप जा सकते हैं.’’ नारद श्रीवास ने विनम्रता से कहा तो लक्ष्मी प्रसाद तिवारी अपने घर लौट गए.

घर लौट कर उन्होंने जब बात न बनने की जानकारी दी तो कृष्णा को गहरा धक्का लगा. अगले दिन कृष्णा ने अपनी बुलेट निकाली और नारद श्रीवास की दुकान पर पहुंच गया. उस समय नारद ग्राहकों को सामान दे रहे थे. दुकान के बाहर खड़ा कृष्णा नारद श्रीवास को घूरघूर कर देख रहा था. जब वह ग्राहकों से फारिग हुए तो उन्होंने कृष्णा की ओर मुखातिब होते हुए कहा, ‘‘हां, क्या चाहिए?’’

कृष्णा ने उन से बिना किसी डर के अपना परिचय देते हुए कहा, ‘‘कल मेरे पापा आप के पास आए थे.’’

यह सुनते ही नारद श्रीवास के दिलोदिमाग में बीते कल का सारा वाकया साकार हो उठा, जिसे लगभग वह भुला चुके थे. उन्होंने कहा, ‘‘हां, तो?’’

कृष्णा तिवारी ने कहा, ‘‘आप ने मना कर दिया. मैं इसलिए आया हूं कि एक बार आप से मिल कर अपनी बात कहूं.’’

‘‘देखो, तुम चले जाओ. मैं ने तुम्हारे पिताजी को सब कुछ बता दिया है और इस बारे में अब मैं कोई बात नहीं करूंगा.’’

कृष्णा ने अपनी आंखें घुमाते हुए अधिकारपूर्वक कहा, ‘‘आप से कह रहा हूं, आप मान जाइए नहीं तो एक दिन आप खून के आंसू रोएंगे.’’

‘‘तो क्या तुम मुझे धमकाने आए हो?’’ नारद श्रीवास का पारा चढ़ गया.

‘‘धमकाने भी और चेतावनी देने भी. आप नहीं मानोगे तो अंजाम बुरा होगा.’’ कहने के बाद कृष्णा तिवारी बुलेट से घर वापस लौट गया.

नारद श्रीवास कृष्णा के तेवर देख कर अवाक रह गए. उन्होंने सोचा कि यह लड़का एक नंबर का बदमाश जान पड़ता है. मैं ने अच्छा किया कि इस के पिता की बात नहीं मानी.

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उन्होंने उसी दिन अपने साढ़ू भाई जोगीराम श्रीवास को फोन कर के सारी बात बता दी. उन्होंने उन से प्रियंका पर विशेष नजर रखने की बात कही, क्योंकि प्रियंका उन्हीं के घर रह कर पढ़ रही थी.

नारद की बातें सुन कर जोगीराम ने उन से कहा, ‘‘आप बिलकुल चिंता मत करो. मैं खुद प्रियंका से बात कर के देखता हूं और आप लोग भी बात करो. इस के अलावा आप धमकी देने वाले कृष्णा के खिलाफ पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करा दो.’’

‘‘नहींनहीं, पुलिस में जाने से हमारी ही बदनामी होगी. मैं अब जल्द ही प्रियंका की सगाई, शादी की बात फाइनल करता हूं.’’ नारद बोले.

21 अगस्त, 2019 डब्बू उर्फ कृष्णा ने प्रियंका को सुबहसुबह लवली मौर्निंग का वाट्सऐप मैसेज भेजा और लिखा, ‘‘प्रियंका हो सके तो मुझ से मिलो, कुछ जरूरी बातें करनी हैं. जाने क्यों रात भर तुम्हारी याद आती रही, इस वजह से मुझे नींद भी नहीं आ सकी.’’

प्रियंका ने मैसेज का प्रत्युत्तर हमेशा की तरह दिया, ‘‘ठीक है, ओके.’’

मौसी ने समझाया था प्रियंका को

प्रियंका रोजाना की तरह उस दिन भी तैयार हो कर कालेज के लिए निकलने लगी तो मौसा और मौसी ने उसे बताया कि वह घरपरिवार की मर्यादा को ध्यान में रखे. कृष्णा से मेलमुलाकात उस के पापा को पसंद नहीं है. तुम्हें शायद यह पता नहीं कि कृष्णा ने मुढ़ीपार पहुंच कर धमकी तक दे डाली है. यह अच्छी बात नहीं है. अगर इस में तुम्हारी शह न होती तो क्या उस की इतनी हिम्मत हो पाती?

मौसी की बातें सुन कर प्रियंका मुसकराई. वह जल्दजल्द चाय पीते हुए बोली, ‘‘मौसी, आप जरा भी चिंता मत करना. मैं घरपरिवार की नाक नहीं कटने दूंगी. जब पापा मुझ पर भरोसा करते हैं, उन्होंने मुझे पढ़ने भेजा है, मेरी हर बात मानते हैं तो मैं भला उन की इच्छा के बगैर कोई कदम कैसे उठाऊंगी. आप एकदम निश्चिंत रहिए.’’

मौसी सीमा ने उसे बताया कि जल्द ही उस की सगाई एक इंजीनियर लड़के से होने वाली है, इसलिए वह कृष्णा से दूर ही रहे.

हंसतीबतियाती प्रियंका रोज की तरह सीपत रोड स्थित शबरी माता नवीन महाविद्यालय की ओर चली गई. वह बीए अंतिम वर्ष की पढ़ाई कर रही थी.

कालेज में पढ़ाई के बाद प्रियंका क्लास से बाहर आई तो कृष्णा का फोन आ गया. दोनों में बातचीत हुई तो प्रियंका ने कहा, ‘‘मैं कालेज से निकल रही हूं और थोड़ी देर में तुम्हारे पास पहुंच जाऊंगी.’’

प्रियंका राजस्व कालोनी स्थित कृष्णा के किराए के मकान में जाती रहती थी. वह मकान बौयज हौस्टल जैसा था. कृष्णा और प्रियंका वहां बैठ कर अपने दुखदर्द बांटा करते थे. प्रियंका ने उस से वहां पहुंचने की बात कही तो कृष्णा खुश हो गया.

कृष्णा घर का बिगड़ैल लड़का था. आवारागर्दी और घरपरिवार से बेहतर संबंध नहीं होने के कारण पिता ने एक तरह से उसे घर से निकाल दिया था. कृष्णा किराए का मकान ले कर रहता था. उस मकान में पढ़ाई करने वाले और भी लड़के रहते थे. उस के पास एक बुलेट थी. अपने खर्चे पूरे करने के लिए वह पार्टटाइम कार वाशिंग का काम करता था.

काफी समय बाद भी प्रियंका कृष्णा के कमरे पर नहीं पहुंची तो वह परेशान हो गया. वह झल्ला कर कमरे से निकला और प्रियंका को फोन किया. प्रियंका ने उसे बताया कि वह अपनी फ्रैंड के साथ है और उस के पास पहुंचने में कुछ समय लगेगा.

कृष्णा उस से मिलने के लिए उतावला था. काफी देर बाद भी जब वह नहीं पहुंची तो उस ने प्रियंका को फिर फोन किया. प्रियंका बोली, ‘‘आ रही हूं यार. मैं अशोक नगर पहुंच चुकी हूं.’’

इस पर कृष्णा ने झल्ला कर कहा, ‘‘मैं वहीं आ रहा हूं. तुम रुको, मैं पास में ही हूं’’

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कृष्णा थोड़ी ही देर में अशोक नगर जा पहुंचा. प्रियंका वहां 2 सहेलियों के साथ खड़ी थी.

प्रियंका की बातों से कृष्णा को लगा कि आज उस का रंग कुछ बदलाबदला सा है. मगर उस ने धैर्य से काम लिया. प्रियंका को देख वह स्वाभाविक रूप से मुसकराते हुए बोला, ‘‘प्रियंका, तुम मुझे मार डालोगी क्या? तुम से मिलने के लिए सुबह से बेताब हूं और तुम कह रही हो कि आ रही हूं…आ रही हूं.’’

‘‘तो क्या कालेज भी न जाऊं? पढ़ाई छोड़ दूं, जिस के लिए मैं गांव से यहां आई हूं?’’ प्रियंका ने तल्ख स्वर में कहा.

‘‘मैं ऐसा कहां कह रहा हूं, मगर कालेज से सीधे आना था. 2 घंटे हो गए तुम्हारा इंतजार करते हुए. कम से कम मेरी हालत पर तो तरस खाना चाहिए तुम्हें.’’

‘‘और तुम्हें मेरे घर जा कर हंगामा करना चाहिए. पापा से क्या कहा है तुम ने, तुम ऐसा कैसे कह सकते हो?’’ प्रियंका ने रोष भरे स्वर में कहा.

प्रियंका को गुस्से में देख कर कृष्णा को भी गुस्सा आ गया. दोनों की अशोक नगर चौक पर ही नोकझोंक होने लगी, जिस से वहां लोगों का हुजूम जमा हो गया. तभी एक स्थानीय नेता प्रशांत तिवारी जो कृष्णा और प्रियंका से वाकिफ थे, वहां पहुंचे और उन्होंने दोनों को समझाबुझा कर शांत कराया.

कृष्णा प्रियंका को ले आया अपने कमरे पर

दोनों शांत हो गए. कृष्णा ने प्रियंका को बुलेट पर बिठाया और अपने कमरे की ओर चल दिया. रास्ते में दोनों ही सामान्य रहे. अपने कमरे पर पहुंच कर कृष्णा ने कहा, ‘‘प्रियंका, अब दिमाग शांत करो. मैं तुम्हारे लिए बढि़या चाय बनाता हूं.’’

यह सुन कर प्रियंका मुसकराई, ‘‘यार, मुझे भूख लग रही है और तुम बस चाय बना रहे हो.’’

इस के बाद कृष्णा पास के एक होटल से नाश्ता ले आया. दोनों प्रेम भाव से बातचीत करतेकरते कब फिर से तनाव में आ गए, पता ही नहीं चला. कृष्णा ने कहा, ‘‘तुम मुझ से शादी करोगी कि नहीं, आज मुझे साफसाफ बता दो.’’

प्रियंका ने स्पष्ट शब्दों में कहा, ‘‘नहीं, मैं शादी घर वालों की मरजी से ही करूंगी.’’

हत्या कर कृष्णा हो गया फरार

दोनों में बहस होने लगी. उसी दौरान बात बढ़ने पर कृष्णा ने चाकू निकाला और प्रियंका पर कई वार कर उसे गंभीर रूप से घायल कर दिया. खून से लथपथ प्रियंका को मरणासन्न छोड़ कर वह वहां से भाग खड़ा हुआ. घायल प्रियंका कराहती रही और वहीं बेहोश हो गई.

हौस्टल के राकेश वर्मा नाम के एक लड़के ने प्रियंका के कराहने की आवाज सुनी तो वह कमरे में आ गया. उस ने गंभीर रूप से घायल प्रियंका को बिस्तर पर पड़े देखा तो तुरंत स्थानीय सरकंडा थाने में फोन कर के यह जानकारी थानाप्रभारी जयप्रकाश गुप्ता को दे दी.

जानकारी मिलते ही थानाप्रभारी जयप्रकाश गुप्ता कुछ पुलिसकर्मियों को साथ ले कर राजस्व कालोनी के हौस्टल पहुंच गए. उन्होंने कमरे के बिस्तर पर खून से लथपथ एक युवती देखी, जिस की मौत हो चुकी थी.

थानाप्रभारी ने यह जानकारी अपने उच्चाधिकारियों को भी दे दी. एडीशनल एसपी ओ.पी. शर्मा एवं एसपी (सिटी) विश्वदीपक त्रिपाठी भी मौके पर पहुंच गए. दोनों पुलिस अधिकारियों ने मौकामुआयना करने के बाद उस की लाश पोस्टमार्टम के लिए भेजने के आदेश दिए.

अधिकारियों के जाने के बाद थानाप्रभारी ने प्रियंका की लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी. हौस्टल के लड़कों से पता चला कि जिस कमरे में प्रियंका की हत्या हुई थी, वह कृष्णा का है. प्रियंका के फोन से पुलिस को उस की मौसी व पिता के फोन नंबर मिल गए थे, लिहाजा पुलिस ने फोन कर के उन्हें अस्पताल में बुला लिया.

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प्रियंका के मौसामौसी और मातापिता ने अस्पताल पहुंच कर लाश की शिनाख्त प्रियंका के रूप में कर दी. उन्होंने हत्या का आरोप बिलासपुर निवासी कृष्णा उर्फ डब्बू पर लगाया. पुलिस ने कृष्णा के खिलाफ हत्या की रिपोर्ट दर्ज कर उस की खोजबीन शुरू कर दी. उस का मोबाइल फोन स्विच्ड औफ था. पुलिस को पता चला कि वह रायपुर से नागपुर भाग गया है.

पकड़ा गया कृष्णा

थानाप्रभारी जयप्रकाश गुप्ता व महिला एसआई गायत्री सिंह की टीम आरोपी को संभावित स्थानों पर तलाशने लगी. पुलिस ने कृष्णा के फोटो नजदीकी जिलों के सभी थानों में भी भेज दिए थे.

सरकंडा से करीब 25 किलोमीटर दूर स्थित मुंगेली जिले के थाना सरगांव के एक सिपाही को 23 अगस्त, 2019 को कृष्णा तिवारी सरगांव चौक पर दिख गया. उस सिपाही का गांव आरोपी कृष्णा तिवारी के गांव के नजदीक ही था. इसलिए सिपाही को यह जानकारी थी कि कृष्णा मर्डर का आरोपी है और पुलिस से छिपा घूम रहा है.

लिहाजा वह सिपाही कृष्णा तिवारी को हिरासत में ले कर थाना सरगांव ले आया. सरगांव पुलिस ने कृष्णा तिवारी को गिरफ्तार करने की जानकारी सरकंडा के थानाप्रभारी जयप्रकाश गुप्ता को दे दी.

उसी शाम सरकंडा थानाप्रभारी कृष्णा तिवारी को सरगांव से सरकंडा ले आए. उस से पूछताछ की गई तो उस ने प्रियंका की हत्या करने का अपराध स्वीकार कर लिया. उस की निशानदेही पर पुलिस ने घटनास्थल से एक चाकू भी बरामद किया, जो 3 टुकड़ों में था.

कृष्णा ने बताया कि हत्या करने के बाद वह बुलेट से सीधा रेलवे स्टेशन की तरफ गया. उस समय उस के कपड़ों पर खून के धब्बे लगे थे. उस के पास पैसे भी नहीं थे. स्टेशन के पास अनुराग मानिकपुरी नाम के दोस्त से उस ने 500 रुपए उधार लिए और रायपुर की तरफ निकल गया.

कृष्णा तिवारी उर्फ दब्बू से पूछताछ कर पुलिस ने उसे 24 अगस्त, 2019 को मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी, बिलासपुर के समक्ष पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

-कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Crime Story: एकतरफा चाहत में प्यार की दीवानगी

रोहिणी के सैक्टर-5 में रहने वाले पीयूष मलिक रोजाना की तरह 4 फरवरी, 2017 को भी शाम का खाना खा कर सड़क पर टहल रहे थे. उस दिन उन के साथ उन का एक दोस्त भी था. दोनों लोग बातें करते हुए मेनरोड पर टहल रहे थे. उसी समय किसी ने उन पर गोली चलाई, जो उन के पैरों के पास से निकल कर सड़क पर जा लगी.

पीयूष और उन के दोस्त ने तुरंत पीछे पलट कर देखा तो एक युवक काले रंग की मोटरसाइकिल से तेजी से उन के बगल से निकल गया. वह इतनी तेजी से निकला कि वह उसे पहचान नहीं सके. इस के बाद वह तुरंत घर आए और यह बात अपने घर वालों को बताई.

पीयूष के पिता गुलशन मलिक परेशान हो गए कि रात को उन के बेटे पर हमला किस ने किया? उन की तो किसी से कोई दुश्मनी भी नहीं थी. पीयूष प्रौपर्टी डीलिंग का काम करते थे. उन्होंने सोचा कि कहीं उस की किसी से कोई कहासुनी तो नहीं हो गई.

इस बारे में उन्होंने पीयूष से पूछा तो उन्होंने ऐसी किसी बात से मना कर दिया. गुलशन मलिक मूलरूप से हरियाणा के रहने वाले थे. वहां उन की अच्छीखासी जमीनजायदाद है. नारनौल में एक पैट्रोल पंप भी है. कहीं हरियाणा के ही किसी व्यक्ति ने तो यह हमला नहीं किया. इस बारे में वह गंभीरता से सोचने लगे.

पीयूष की पत्नी इरा मलिक और मां तो बहुत ज्यादा घबरा गईं. इरा की 2 महीने पहले ही पीयूष से शादी हुई थी. गुलशन मलिक बेटे को ले कर थाना विजय विहार पहुंचे, थानाप्रभारी अभिनेंद्र जैन को पीयूष ने अपने साथ घटी घटना के बारे में बताया. अभिनेंद्र जैन ने भी उन से यही पूछा कि उन की किसी से दुश्मनी तो नहीं है.

मलिक परिवार शरीफ और शांतिप्रिय था, इसलिए उन की किसी से कोई दुश्मनी का सवाल ही नहीं था. पुलिस ने एक बार यह भी सोचा कि कहीं हमलावर का निशाना पीयूष का वह दोस्त तो नहीं था, जो साथ में टहल रहा था. हमलावर से हड़बड़ाहट में गोली पीयूष की तरफ चल गई हो. इसलिए पुलिस ने पीयूष के दोस्त से भी पूछताछ की. उस ने भी किसी से दुश्मनी होने की बात से इनकार कर दिया.

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crime

पुलिस से शिकायत कर के गुलशन मलिक घर लौट आए. घर आ कर सभी हमलावर के बारे में कयास लगाने लगे. उधर पुलिस ने मामला दर्ज तो नहीं किया था, पर थानाप्रभारी के निर्देश पर एसआई पवन कुमार मलिक मामले की जांच में जुट गए थे. इस घटना के बाद पीयूष सतर्क हो गए थे. अब रात को उन्होंने मेनरोड पर घूमना बंद कर दिया था. कुछ दिनों की सतर्कता के बाद वह सामान्य तरीके से रहने लगे.

पीयूष की पत्नी इरा मलिक नोएडा की एक निजी कंपनी में नौकरी करती थीं. वह मैट्रो से नोएडा आतीजाती थीं. सुबह पीयूष अपनी कार या स्कूटी से उन्हें रोहिणी वेस्ट मैट्रो स्टेशन पर छोड़ आते थे और जब वह ड्यूटी पूरी कर के लौटती थीं तो पति को फोन कर देती थीं. तब पीयूष उन्हें लेने मैट्रो स्टेशन पहुंच जाते थे.

20 अप्रैल, 2017 को भी पत्नी के फोन करने पर पीयूष रात 8 बजे के करीब उन्हें लेने स्कूटी से रोहिणी वेस्ट मैट्रो स्टेशन पर गए. उन के घर से मैट्रो स्टेशन यही कोई एक, डेढ़ किलोमीटर दूर था, इसलिए वहां आनेजाने में ज्यादा वक्त नहीं लगता था. पीयूष को इरा मैट्रो स्टेशन के गेट के बाहर तय जगह पर खड़ी मिल गईं.

सैक्टर-5, 6 के डिवाइडर के पास स्थित जूस की दुकान के पास उन्होंने स्कूटी रोक दी. वह वहां रोजाना जूस पीते थे. जूस पी कर दोनों स्कूटी से घर के लिए चल पड़े. स्कूटी इरा चला रही थी और पीयूष पीछे बैठे थे. जैसे ही पीयूष अपने घर के पास वाली गली के चौराहे के नजदीक पहुंचे, पीयूष को अपने दाहिने कंधे पर पीछे की ओर कोई चीज चुभती महसूस हुई. इस के तुरंत बाद बम फटने जैसी आवाज हुई. इस के बाद उन के पास से एक मोटरसाइकिल सवार तेजी से गुजरा. उस की मोटरसाइकिल काले रंग की थी.

पीयूष को जिस जगह चुभन महसूस हुई थी, वहां अब दर्द होने लगा था. उन्होंने उस जगह हाथ रखा तो वहां से खून बह रहा था. खून देख कर वह घबरा गए. इरा ने उन का कंधा देखा तो रो पड़ीं, क्योंकि वहां गोली लगी थी. इरा के रोने की आवाज सुन कर उधर से गुजरने वाले लोग रुक गए. उन में से कुछ पीयूष को जानते थे. उसी बीच किसी ने पीयूष के घर जा कर इस बात की सूचना दे दी. पिता गुलशन मलिक जल्दी से मौके पर पहुंचे और बेटे को नजदीक के डा. अंबेडकर अस्पताल ले गए.

मौके पर मौजूद किसी व्यक्ति ने पुलिस कंट्रोल रूम को फोन कर के पीयूष को गोली मारने की सूचना दे दी थी. सूचना मिलते ही पुलिस कंट्रोल रूम की गाड़ी मौके पर पहुंच गई. चूंकि वह इलाका रोहिणी के थाना विजय विहार के अंतर्गत आता था, इसलिए थानाप्रभारी अभिनेंद्र जैन एसआई पवन कुमार मलिक के साथ मौके पर पहुंच गए.

वहां पहुंचने पर पता चला कि जिस युवक को गोली लगी थी, उसे डा. अंबेडकर अस्पताल ले जाया गया था. वह डा. अंबेडकर अस्पताल पहुंचे तो वहां के डाक्टरों ने बताया कि पीयूष मलिक नाम के जिस युवक के कंधे में गोली लगी थी, उस के घर वाले उसे सरोज अस्पताल ले गए हैं.

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थानाप्रभारी ने जब अस्पताल में भरती पीयूष को देखा तो वह चौंके, क्योंकि यह वही पीयूष था, जिस पर किसी ने 4 फरवरी, 2017 को गोली चलाई थी. इलाज कर रहे डाक्टरों से बात कर के एसआई पवन कुमार मलिक ने पीयूष का बयान लिया. पीयूष ने पुलिस को जो बताया, उस से यही लगा कि कोई व्यक्ति है, जो उन्हें जान से मारने पर तुला है.

पुलिस ने पीयूष की तहरीर पर अज्ञात हमलावर के खिलाफ हत्या के प्रयास का मामला दर्ज कर लिया. रोहिणी जिले के डीसीपी के निर्देश पर थानाप्रभारी अभिनेंद्र जैन के नेतृत्व में एक पुलिस टीम इस केस के खुलासे के लिए लग गई. टीम में एसआई पवन कुमार मलिक, विजय कुमार, ट्रेनी एसआई अनुज कुमार, हैडकांस्टेबल जितेंद्र, कांस्टेबल सूबाराम आदि शामिल थे.

पुलिस ने सरोज अस्पताल पहुंच कर पीयूष से बात की. पीयूष प्रौपर्टी डीलिंग का काम करते थे. कहीं ऐसा तो नहीं था कि पीयूष ने किसी विवादित प्रौपर्टी का सौदा किया हो? बातचीत में उन्होंने पुलिस को बताया कि वह विवादित प्रौपर्टी पर हाथ ही नहीं डालते. उन का किसी से कभी कोई झगड़ा भी नहीं हुआ.

पुलिस के लिए यह मामला एकदम ब्लाइंड था. कोई भी ऐसा क्लू नहीं मिल रहा था, जिस से केस की जांच शुरू की जा सके. पुलिस ने इस मामले पर गौर किया तो पता चला कि पीयूष पर की गई दोनों ही वारदातों में काले रंग की मोटरसाइकिल पर सवार युवक उन के सामने से निकला था. पर उस मोटरसाइकिल का नंबर पुलिस के पास नहीं था, जिस से उस की जांच की जा सकती.

अस्पताल से डिस्चार्ज हो कर पीयूष घर आ गए तो पुलिस ने उन्हें थोड़ा सतर्क रहने को कहा. वारदात के एक महीने बाद 4 मई की शाम को इरा की ससुराल के पास एक शख्स काले रंग की मोटरसाइकिल से आया और एक पत्र फेंक कर चला गया.

इरा ने जब वह पत्र पढ़ा तो पता चला वह किसी युवती की ओर से लिखा गया था. उस ने लिखा था कि पीयूष उस का प्रेमी है. उस ने किसी दूसरी लड़की से शादी कर के उस के साथ धोखा किया है. गुलशन मलिक ने उस पत्र की जानकारी पुलिस को दी. उस पत्र से यही लगा कि यह मामला प्रेमप्रसंग का है, पर जब इस बारे में पीयूष से बात की गई तो उन्होंने ऐसी किसी बात से इनकार कर दिया.

6 मई की शाम को काले रंग की मोटरसाइकिल से एक युवक पीयूष के घर के सामने वाली सड़क पर घूम रहा था. इत्तफाक से उस समय पीयूष के पिता गुलशन मलिक घर के सामने खड़े थे. चूंकि काले रंग की मोटरसाइकिल शक के दायरे में आ चुकी थी, इसलिए उन्होंने उस मोटरसाइकिल को रुकवा लिया.

उन्होंने उस का नंबर नोट कर के उस युवक से नातपता पूछा तो उस ने बताया कि उस का नाम विक्की है और वह बुद्धविहार में रहता है. उन्होंने उस का फोन नंबर पूछा तो उस ने अपना फोन नंबर भी बता दिया. उसी समय उन्होंने अपने फोन से उस का नंबर मिलाया तो उस के फोन की घंटी बज उठी. उन्हें लगा कि यह युवक गलत नहीं है. अगर यह गलत होता तो अपना फोन नंबर सही न बताता.

पीयूष के साथ घटी घटना को एक महीने से ज्यादा हो चुका था, पर काफी भागदौड़ के बावजूद पुलिस को हमलावर के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली थी. गुलशन मलिक बारबार थाने के चक्कर लगा रहे थे. एक दिन वह एसआई पवन कुमार मलिक से बात कर रहे थे, तभी उन्हें बुद्धविहार के रहने वाले विक्की के बारे में याद आ गई.

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काले रंग की मोटरसाइकिल के बारे में सुन कर एसआई पवन कुमार मलिक चौंके. क्योंकि घटना के समय काले रंग की ही मोटरसाइकिल नजर आई थी. विक्की नाम के उस युवक का फोन नंबर पवन कुमार मलिक ने अपने फोन के ट्रूकालर में डाल कर चैक किया तो उस में नाम विवेक अग्रवाल आया. उन्होंने उस का नंबर मिलाया तो वह बंद मिला. नंबर बंद मिलने पर उन्हें शक हुआ. विक्की को बुद्धविहार में बिना पते के ढूंढना आसान नहीं था.

इस के बाद पवन कुमार मलिक मोटरसाइकिल के नंबर डीएल4एस एनडी 1560 के आधार पर जांच में जुट गए. उन्होंने मोटरसाइकिल के उक्त नंबर की जांच कराई तो वह पश्चिमी दिल्ली के कीर्तिनगर के रहने वाले बबलू के नाम रजिस्टर्ड थी. पुलिस उस पते पर पहुंची तो वहां कोई और ही मिला. आसपास के लोगों ने बताया कि बबलू और उस का परिवार पहले यहीं रहता था. 2 साल पहले वह यहां से कहीं और चला गया है. पुलिस कीर्तिनगर से बैरंग लौट आई.

इस के बाद पुलिस की जांच एक बार फिर ठहर गई. ट्रूकालर में जो विवेक अग्रवाल का नाम आया था, उस के बारे में पीयूष से बात की गई तो उस ने साफ मना कर दिया कि वह किसी विवेक अग्रवाल को नहीं जानता.

एक दिन गुलशन मलिक के घर में विवेक अग्रवाल के बारे में बात चल रही थी, तभी पीयूष की पत्नी इरा कुछ सोचते हुए बोली, ‘‘कहीं यह विवेक अग्रवाल वही तो नहीं, जो मुझे फोन पर तंग करता था?’’

इरा के मुंह से यह सुन कर घर के सभी लोग उस की तरफ देखने लगे. पीयूष ने कहा, ‘‘तुम ने इस बारे में कभी बताया नहीं.’’

‘‘आप को बताने की जरूरत ही नहीं पड़ी, मैं ने फोन पर ही उसे ठीक कर दिया था. अब फोन में देखती हूं कि यह वही है या कोई और.’’ कह कर इरा अपने फोन के वाट्सऐप मैसेज देखने लगी. वाट्सऐप मैसेज भेजने वाले उस नंबर को इरा ने ब्लौक कर दिया था. जब उस ने उस नंबर को अनब्लौक कर पूर्व में भेजे गए मैसेज देखे तो एक मैसेज में उस युवक का नाम मिल गया. उस का नाम विवेक अग्रवाल ही था.

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पीयूष पत्नी के साथ पवन कुमार मलिक के पास पहुंचे. इरा ने पूरी बात पवन कुमार मलिक को बता दी. इस के बाद उस के नंबर पर भेजे गए वाट्सऐप मैसेज पढ़ कर पवन कुमार मलिक को पीयूष पर वारदात करने की वजह समझ में आने लगी.

उन्होंने विवेक अग्रवाल के फोन नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई. वह अकसर जिन नंबरों पर बात करता था, वे उस के परिजनों और दोस्तों के निकले. पहले दोस्तों को पूछताछ के लिए थाने बुलाया गया. दोस्तों से पुलिस को विवेक के घर का पता मिल गया. पुलिस जब उस के घर पहुंची तो वह घर पर नहीं मिला.

पुलिस विवेक के पिता जगदीश प्रसाद को थाने ले आई. विवेक घर से फरार जरूर था, पर उसे यह जानकारी मिल गई कि पुलिस उस के पिता को थाने ले गई है. यह खबर मिलते ही वह घर लौट आया और आत्महत्या करने के लिए ज्यादा मात्रा में नींद की गोलियां खा लीं. कुछ ही देर में जब विवेक की हालत बिगड़ने लगी तो उसे डा. अंबेडकर अस्पताल ले जाया गया. यह 8 मई, 2017 की बात है.

पुलिस को यह जानकारी मिली तो पवन कुमार मलिक हैडकांस्टेबल जितेंद्र के साथ डा. अंबेडकर अस्पताल पहुंचे. वहां डाक्टर विवेक का इलाज कर रहे थे. इलाज होने तक पुलिस विवेक की निगरानी करती रही. 11 मई को विवेक जैसे ही अस्पताल से डिस्चार्ज हुआ, थाना विजय विहार पुलिस उसे पूछताछ के लिए थाने ले आई.

थाने में विवेक से पीयूष पर की गई फायरिंग के बारे में सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने स्वीकार कर लिया कि उसी ने उस पर 2 बार जानलेवा हमला किया था. उस ने उस पर हमले की जो वजह बताई, वह एकतरफा प्यार की चाशनी में सराबोर थी—

वेक अग्रवाल पश्चिमी दिल्ली के मानसरोवर गार्डन में रहने वाले जगदीश प्रसाद का बेटा था. विवेक नजदीक ही रमेशनगर में ओम साईं प्रौपर्टी के नाम से अपना धंधा करता था. उस का काम ठीकठाक चल रहा था, इसलिए वह खूब बनठन कर रहता था. उस के प्रौपर्टी डीलिंग के औफिस से कुछ ही दूरी पर कीर्तिनगर में डब्ल्यूएचएस (वेयरहाउस स्कीम) का औफिस था. यह कंपनी विभिन्न हाउसिंग डेवलपमेंट द्वारा बनवाए गए फ्लैटों की मार्केटिंग करती थी.

चूंकि विवेक का काम प्रौपर्टी डीलिंग का था, इसलिए वह भी इस औफिस में आताजाता रहता था. उसी औफिस में एक लड़की को देख कर उस का दिल बेकाबू हो उठा. बेहद खूबसूरत उस लड़की को देख कर अविवाहित विवेक पर ऐसा असर हुआ कि वह किसी न किसी बहाने उस के औफिस के चक्कर लगाने लगा.

उस के लिए उस के दिल में चाहत पैदा हो गई. अपने स्तर से उस ने उस लड़की के बारे में जानकारी हासिल की तो पता चला कि उस का नाम इरा है और वह रोहिणी सेक्टर-1 में रहती है. इतना ही नहीं, उस ने किसी तरह उस का मोबाइल नंबर भी हासिल कर लिया.

इस के बाद विवेक ने इरा का पीछा करना शुरू किया. इरा को इस बात का अहसास भी नहीं हुआ कि कोई उसे चाहने लगा है. उसे देख लेने भर से विवेक को मानसिक संतुष्टि मिल जाती थी. यह बात सन 2014 की है.

कुछ दिनों बाद इरा का औफिस कीर्तिनगर से नोएडा शिफ्ट हो गया तो उसे भी नौकरी के लिए रोहिणी से नोएडा जाना पड़ा. विवेक को पता चला कि इरा मैट्रो द्वारा रोहिणी वेस्ट स्टेशन से नोएडा जाती है. तब वह सुबह उस के घर से रोहिणी मैट्रो तक उस का पीछा करता. उसी दौरान उस ने इरा को वाट्सऐप पर मैसेज भेजने शुरू कर दिए. इरा ने उस के मैसेज का कोई जवाब नहीं दिया, बल्कि उस का नंबर ब्लौक कर दिया.

विवेक तो इरा का जैसे दीवाना हो चुका था. उस ने किसी तरह उस के औफिस का फोन नंबर हासिल कर लिया. वह उस के औफिस फोन करने लगा. इरा ने उसे लताड़ा ही नहीं, बल्कि पुलिस में शिकायत करने की धमकी दी तो उस ने उस के औफिस के लैंडलाइन पर फोन करना बंद कर दिया.

विवेक को लगा कि उस की दाल गलने वाली नहीं है तो उस ने किसी तरह खुद को कंट्रोल किया और इरा की तरफ से अपना ध्यान हटाने की कोशिश की. उस के दिल में इरा बसी हुई थी, पर उस की धमकी की वजह से वह उसे फोन करने की हिम्मत नहीं कर पा रहा था.

सन 2015 की बात है. एक दिन विवेक मोतीनगर मैट्रो स्टेशन के बाहर खड़ा था, तभी उस की नजर कार से उतर रही इरा पर पड़ी. कार कोई अधेड़ उम्र का व्यक्ति चला रहा था. शायद वह उस का पिता था. चूंकि इरा उसे पहचानती नहीं थी, इसलिए वह इरा को तब तक देखता रहा, जब तक वह मैट्रो स्टेशन में नहीं चली गई.

इरा को देख कर विवेक का सोया प्यार फिर जाग उठा. उस ने अब तय कर लिया कि चाहे कुछ भी हो, वह उस के नजदीक पहुंचने की कोशिश करेगा. अब वह फिर से रोजाना उस का पीछा करने लगा. इतना ही नहीं, उस ने एक नया नंबर खरीदा और उसी नंबर से अपने प्यार का हवाला देते हुए उसे वाट्सऐप मैसेज भेजने लगा.

इरा ने उस के नंबर को ब्लौक कर दिया तो विवेक ने उसे फोन कर के अपने दिल के हालात से रूबरू कराने की कोशिश की. पर इरा ने उसे डपट दिया, साथ ही चेतावनी भी दी. पर विवेक तो जुनूनी प्रेमी बनता जा रहा था. एकतरफा प्यार में वह अपने बिजनैस तक पर ध्यान नहीं दे रहा था. इतना ही नहीं, वह नशा भी करने लगा था.

चूंकि इरा रोहिणी में रहती थी, इसलिए विवेक भी अपने परिवार के साथ रोहिणी के बुद्धविहार में आ कर रहने लगा. उस ने इरा का घर देख ही लिया था. उस के औफिस जाने के टाइम पर वह उस के घर के बाहर मेनरोड पर खड़ा हो जाता और रोहिणी वेस्ट मैट्रो स्टेशन तक उस का पीछा करता. यही काम वह उस के औफिस से घर लौटते वक्त करता. वह उसे परेशान नहीं करता था. केवल चुपचाप पीछा करता था.

नवंबर, 2016 के अंतिम सप्ताह में इरा ने अचानक औफिस जाना बंद कर दिया. विवेक परेशान हो गया. वह समझ नहीं पा रहा था कि इरा कहां चली गई? जब 2-3 दिन वह नहीं दिखी तो उसे लगा कि शायद उस की तबीयत खराब हो गई है. पर वह लंबे समय तक नहीं दिखी तो उसे यही लगा कि इरा ने शायद नौकरी छोड़ दी है.

विवेक की बेचैनी बढ़ती जा रही थी. लिहाजा उस ने इरा के औफिस में संपर्क किया तो पता चला कि 10 दिसंबर, 2016 को उस की शादी है.

इस खबर ने विवेक के दिल पर हथौड़े की तरह वार किया. उसे लगा कि उस की प्रेमिका उस के हाथ से निकलने वाली है. उस ने यहां तक पता लगा लिया कि इरा की शादी सेक्टर-15 रोहिणी के रहने वाले पीयूष मलिक के साथ तय हुई है. उस की शादी को वह रोक सके, ऐसी विवेक की क्षमता नहीं थी. क्योंकि पीयूष का परिवार हर तरह से उस के परिवार से ज्यादा सामर्थ्यवान था, लिहाजा विवेक मन मसोस कर रह गया.

शादी के बाद इरा ने जनवरी, 2017 में फिर से औफिस जाना शुरू कर दिया तो विवेक ने फिर से उस का पीछा करना शुरू कर दिया. विवेक ने महसूस किया कि शादी के बाद इरा के रूपरंग में और ज्यादा निखार आ गया है. एकतरफा प्यार में सुलगते हुए विवेक को कई साल बीत गए थे.

इरा को उस का पति ही रोहिणी वेस्ट मैट्रो स्टेशन अपनी कार या स्कूटी से छोड़ने आता और शाम को लेने जाता. इरा को जब अपने पति के साथ वह देखता तो उस के सीने पर सांप लोटने लगता. उसे इरा का पति दुश्मन दिखने लगता.

विवेक ने कई साल पहले शाहरुख खान और जूही चावला की फिल्म ‘डर’ देखी थी. इस फिल्म में शाहरुख खान जूही चावला को प्यार करता था. उसी दौरान जूही की शादी सनी देओल से हो गई थी. तब शाहरुख को सनी देओल दुश्मन दिखता था. जूही को पाने के लिए उस ने सनी देओल पर कई बार जानलेवा हमला किया था. ठीक यही स्थिति विवेक अग्रवाल की भी थी.

विवेक ने अब तय कर लिया कि अपने प्यार को पाने के लिए वह इरा के पति पीयूष को रास्ते से हटा देगा. विवेक ने अपने एक दोस्त से पहले कभी एक देसी तमंचा और कुछ कारतूस लिए थे. वह अपनी मोटरसाइकिल नंबर डीएल 4एसएन डी 1560 से पीयूष की रेकी करने लगा. पीयूष को गोली मारने का वह ऐसा मौका ढूंढने लगा कि अपना काम कर के आसानी से फरार हो सके.

पीयूष शाम को खाना खा कर अपने परिजन या किसी दोस्त के साथ घर के सामने वाली सड़क पर घूमने के लिए निकल जाते थे. यही समय विवेक को उपयुक्त लगा. 4 फरवरी, 2017 की रात करीब 10 बजे पीयूष अपने एक दोस्त के साथ घूम रहे थे. विवेक तो घात लगाए ही था. मौका देख कर उस ने पीयूष को निशाना बनाते हुए गोली चला दी.

इत्तफाक से गोली पीयूष के बराबर से निकलती हुई सड़क से टकरा गई. गोली चला कर विवेक मोटरसाइकिल से भाग गया. गोली की आवाज सुन कर पीयूष घबरा गए. वह सीधे अपने घर गए और पिता को जानकारी दी. बाद में पीयूष ने पुलिस को भी यह जानकारी दे दी.

अगले दिन विवेक ने पीयूष की कालोनी में जा कर पता लगाया तो उसे पता चला कि पीयूष को गोली लगी ही नहीं थी. इस के बाद विवेक उस एरिया में कुछ दिनों तक नहीं गया. पर उस ने इरा का दीदार करने के लिए मैट्रो स्टेशन जाना बंद नहीं किया.

पीयूष को मारने की उस ने ठान ही रखी थी. लिहाजा 2 महीने बाद वह फिर से पीयूष की रेकी करने लगा. पूरी योजना के बाद विवेक 20 अप्रैल, 2017 को रोहिणी सेक्टर-5 में एक डिवाइडर के पास खड़ा हो गया. इरा को रोहिणी वेस्ट मैट्रो स्टेशन से ले कर लौटते समय पीयूष ने जूस की दुकान पर जूस पिया. जूस पीने के बाद वह जैसे ही स्कूटी से इरा के साथ घर की ओर चले, विवेक ने पीछे से पीयूष को निशाना बनाते हुए गोली चला दी.

गोली पीयूष के कंधे पर लगी. गोली चला कर विवेक अपनी मोटरसाइकिल से फरार हो गया. इस बार विवेक को उम्मीद थी कि पीयूष मर गया होगा. पर उस की सोच गलत साबित हुई. बाद में जब विवेक को पता चला कि पीयूष इस बार भी बच गया है तो उसे बड़ा दुख हुआ. पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराने वाली बात उसे पता चल गई थी. उस ने ऐसा कोई सबूत नहीं छोड़ा था, जिस से पुलिस उस तक पहुंच पाती.

पुलिस को गुमराह करने के लिए उस ने लड़की की ओर से एक चिट्ठी लिख कर इरा की ससुराल में डाल दी थी, जिस से पुलिस की जांच की दिशा बदल जाए. पर जब पीयूष ने कह दिया कि उस का किसी लड़की के साथ कोई चक्कर नहीं था तो पुलिस ने उस ओर ध्यान नहीं दिया.

काले रंग की मोटरसाइकिल ही शक के घेरे में थी और फिर एक दिन पीयूष के पिता ने उसे अपने घर के सामने काले रंग की मोटरसाइकिल पर घूमते देखा तो रोक लिया. उस समय विवेक ने जल्दबाजी में अपना फोन नंबर सही बता दिया था. उसी फोन नंबर की वजह से वह पुलिस के हत्थे चढ़ गया.

पूछताछ के बाद पुलिस ने विवेक अग्रवाल को भादंवि की धारा 307, 27/54/59 आर्म्स एक्ट के तहत गिरफ्तार कर न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. इस मामले की तफ्तीश एसआई पवन कुमार मलिक कर रहे थे.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सच्चा प्यार- भाग 2: जब उर्मी की शादीशुदा जिंदगी में मुसीबत बना उसका प्यार

Writer- Girija Zinna

मैं ने तुरंत उस आवाज को पहचान लिया. हां वह और कोई नहीं शेखर ही था.

‘‘कैसी हैं आप? उम्मीद है आप मुझे याद करती हैं?’’

मैं ने हंसते हुए कहा, ‘‘कोई आप को भूल सकता है क्या? बताइए, क्या हालचाल हैं? कैसे याद किया मुझे आप ने अपनी इतनी सारी गर्लफ्रैंड्स में?’’

‘‘आप के ऊपर एक इलजाम है और उस के लिए जो सजा मैं दूंगा वह आप को माननी पड़ेगी. मंजूर है?’’ उस की आवाज में शरारत उमड़ रही थी.

‘‘इलजाम? मैं ने ऐसी क्या गलती की जो सजा के लायक है… आप ही बताइए,’’ मैं भी हंस कर बोली.

शेखर ने कहा, ‘‘पिछले 1 हफ्ते से न मैं ठीक से खा पाया हूं और न ही सो पाया… मेरी आंखों के सामने सिर्फ आप का ही चेहरा दिखाई देता है… मेरी इस बेकरारी का कारण आप हैं, इसलिए आप को दोषी ठहरा कर आप को सजा सुना रहा हूं… सुनेंगी आप?’’

‘‘हां, बोलिए क्या सजा है मेरी?’’

‘‘आप को इस शनिवार मेरे फ्लैट पर मेरा मेहमान बन कर आना होगा और पूरा दिन मेरे साथ बिताना होगा… मंजूर है आप को?’’

‘‘जी, मंजूर है,’’ कह मैं भी खूब हंसी.

उस शनिवार मुझे अपने फ्लैट में ले जाने के लिए खुद शेखर आया. मेरी खूब खातिरदारी की. एक लड़की को अति महत्त्वपूर्ण महसूस कैसे करवाना है यह बात हर मर्द को शेखर से सीखनी चाहिए. शाम को जब वह मुझे होस्टल छोड़ने आया तब हम दोनों को एहसास हुआ कि हम एकदूसरे को सदियों से जानते… यही शेखर की खूबी थी.

उस के बाद अगले 6 महीने हर शनिवार मैं उस के फ्लैट पर जाती और फिर रविवार को ही लौटती. हम दोनों एकदूसरे के बहुत करीब हो गए थे. मगर मैं एक विषय में बहुत ही स्पष्ट थी. मुझे मालूम था कि हम दोनों भारत से हैं. इस के अलावा हमारे बीच कुछ भी मिलताजुलता नहीं. हमारी बिरादरी अलग थी. हमारी आर्थिक स्थिति भी बिलकुल भिन्न थी, जो बड़ी दीवार बन कर हम दोनों के बीच खड़ी रहती थी.

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शुरू से ही जब मैं ने इस रिश्ते में अपनेआप को जोड़ा उसी वक्त से मेरे मन में कोई उम्मीद नहीं थी. मुझे मालूम था कि इस रिश्ते का कोई भविष्य नहीं है. मगर जो समय मैं ने शेखर के साथ व्यतीत किया वह मेरे लिए अनमोल था और मैं उसे खोना नहीं चाहती थी. इसलिए मुझे हैरानी नहीं हुई जब शेखर ने बड़ी ही सरलता से मुझे अपनी शादी का निमंत्रण दिया, क्योंकि उस रिश्ते से मुझे यही उम्मीद थी. अगले हफ्ते ही वह भारत चला गया और उस के बाद हम कभी नहीं मिले. कभीकभी उस की याद मुझे आती थी, मगर मैं उस के बारे में सोच कर परेशान नहीं होती थी. मेरे लिए शेखर एक खत्म हुए किस्से के अलावा कुछ नहीं था.

शेखर के चले जाने के बाद मैं 1 साल के लिए अमेरिका में ही रही. इस दौरान मेरी मां भी अपनी अध्यापिका के पद से सेवानिवृत्त हो चुकी थीं. उन्हें अमेरिका आना पसंद नहीं था, क्योंकि वहां का सर्दी का मौसम उन के लिए अच्छा नहीं था. इसलिए मैं अपनी पीएच.डी. खत्म कर के भारत लौट आई.

अमेरिका में जो पैसे मैं ने जमा किए और मेरी मां के पीएफ से मिले उन से मुंबई में 2 बैडरूम वाला फ्लैट खरीद लिया. बाद में मुझे क्व30 हजार मासिक वेतन पर एक कालेज में लैक्चरर की नौकरी मिल गई.

मेरे मुंबई लौटने के बाद मेरी मां मेरी शादी करवाना चाहती थीं. उन्हें डर था कि अगर उन्हें कुछ हो जाए तो मैं इस दुनिया में अकेली हो जाऊंगी. मगर शादी इतनी आसान नहीं थी. शादी के बाजार में हर दूल्हे के लिए एक तय रेट होता था. हमारे पास मेरी तनख्वाह के अलावा कुछ भी नहीं था. ऊपर से मेरी मां का बोझ उठाने के लिए लड़के वाले तैयार नहीं थे.

जब मैं अमेरिका से मुंबई आई थी तब मेरी उम्र 25 साल थी. शादी के लिए सही उम्र थी. मैं भी एक सुंदर सा राजकुमार जो मेरा हाथ थामेगा उसी के सपने देखती रही. सपने को हकीकत में बदलना संभव नहीं हुआ. दिन हफ्तों में और हफ्ते महीनों में और महीने सालों में बदलते हुए 3 साल निकल गए.

मेरी जिंदगी में दोबारा एक आदमी का प्रवेश हुआ. उस का नाम ललित था. वह भी अंगरेजी का लैक्चरर था. मगर उस ने पीएचडी नहीं की थी. सिर्फ एमफिल किया था. पहली मुलाकात में ही मुझे मालूम हो गया कि वह भी मेरी तरह मध्यवर्गीय परिवार का है और उस की एक मां और बहन है. उस ने कहा कि उस के पिता कई साल पहले इस दुनिया से जा चुके हैं और मां और बहन दोनों की जिम्मेदारी उसी पर है.

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पहले कुछ महीने हमारे बीच दोस्ती थी. हमारे कालेज के पास एक अच्छा कैफे था. हम दोनों रोज वहां कौफी पीने जाते. इसी दौरान एक दिन उस ने मुझे अपने घर बुलाया. वह एक छोटे से फ्लैट में रहता था. उस की मां ने मेरी खूब खातिरदारी की और उस की बहन जो कालेज में पढ़ती थी वह भी मेरे से बड़ी इज्जत से पेश आई.

इसी दौरान एक दिन ललित ने मुझ से कहा, ‘‘उर्मी, क्या आप मेरे साथ कौफी पीने के लिए आएंगी?’’

उस का इस तरह पूछना मुझे थोड़ा अजीब सा लगा, मगर फिर मैं ने हंस कर पूछा, ‘‘कोई खास बात है जो मुझे कौफी पीने को बुला रहे हो?’’

उस ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘हां, बस ऐसा ही समझ लीजिए.’’

शाम कालेज खत्म होने के बाद हम दोनों कौफी शौप में गए और एक कोने में जा कर बैठ गए. मैं ने उस के चेहरे को देख कर कहा, ‘‘हां, बोलो ललित क्या बात करनी है मुझ से?’’

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