Manohar Kahaniya: करोड़ों की चोरियां कर बना रौबिनहुड- भाग 1

सौजन्य- मनोहर कहानियां

महानगरों की कोठी और बंगलों में चोरी होना कोई नई बात नहीं है. लेकिन देश की राजधानी दिल्ली से सटे गाजियाबाद के कवि नगर इलाके की कोठी नंबर केडी-12 में रहने वाले स्टील कारोबारी कपिल गर्ग के घर में 3 सितंबर, 2021 की रात को हुई चोरी की वारदात कुछ अलग थी.

पहली खास बात तो यह थी कि कपिल गर्ग उत्तर प्रदेश के चिकित्सा स्वास्थ्य राज्यमंत्री अतुल गर्ग के मकान से चंद कदमों की दूरी पर रहते थे, जिस से वहां की सुरक्षा चाकचौबंद थी.

दूसरी बात यह थी कि चोरों ने कपिल गर्ग के मकान में खिड़की की ग्रिल तोड़ कर प्रवेश किया था और वह अलमारी में रखे हुए हीरे व सोने के करोड़ों रुपए के जेवर व नकदी चुरा ले गए थे. यही कारण था कि चोरी की इस घटना को पुलिस ने असाधारण मान कर इस की गंभीरता से तफ्तीश शुरू की थी.

कारोबारी कपिल कुमार गर्ग की कविनगर औद्योगिक क्षेत्र में हरि स्टील एंड क्रेन सर्विस के नाम से फर्म है. यहां इस कोठी में वह अपने बेटे वंश गर्ग, पुत्रवधू शिवानी और 8 माह की पोती के साथ रह रहे थे. कुछ महीने पहले उन की पत्नी की कोरोना से मृत्यु हो गई थी.

3 सितंबर, 2021 की रात कपिल और उन का बेटा वंश एक कमरे में सोए हुए थे, जबकि पुत्रवधू व पोती दूसरे कमरे में सो रही थी. इस दौरान रात के किसी वक्त कोठी के पीछे की तरफ से छत से होते हुए चोर कोठी में दाखिल हुए और प्रथम तल पर बनी खिड़की की ग्रिल तोड़ कर कोठी के भीतर प्रवेश किया.

चोर सीधे उन की बहू के कमरे में पहुंचे और कमरे के भीतर बने स्टोर में रखी अलमारी में से सोने व हीरे के जेवर चोरी कर ले गए.

सुबह उठने पर वारदात का पता चला तो घर में कोहराम मच गया. हैरानी यह थी कि परिवार में सोते हुए किसी भी सदस्य को इस की भनक तक नहीं लगी. तत्काल पुलिस को सूचना दी गई.

वारदात चूंकि शहर की सब से पौश कालोनी की थी. इसलिए कविनगर थानाप्रभारी संजीव शर्मा टीम के साथ तत्काल मौके पर पहुंच गए.

एसएसपी पवन कुमार, एसपी (सिटी प्रथम) निपुण अग्रवाल ने भी मौके पर पहुंच कर घटनास्थल का निरीक्षण किया. मौके पर फोरैंसिक टीम ने भी पहुंच कर जांच के लिए नमूने एकत्र किए. डौग स्क्वायड को भी मौके पर बुलाया गया, लेकिन उन से कोई खास मदद नहीं मिली.

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शुरुआत में कपिल गर्ग इतना ही बता सके कि घर में करीब एक करोड़ रुपए से अधिक के गहनों व नकदी की चोरी हुई है. चोरी हुए जेवरों में उन की विवाहित बेटी के भी आभूषण थे, जो उन के पास ही रखे थे.

चोरों ने जिस तरह सफाई के साथ घर में प्रवेश किया था और उस स्थान को ही निशाना बनाया था, जहां कीमती गहने रखे थे, उस से साफ था कि चोरी की वारदात में किसी पहचान वाले का ही हाथ होगा.

दरअसल, चोरों ने मकान के पिछले हिस्से से, जोकि बंद रहता है, उस तरफ से कोठी में प्रवेश किया. उन को शायद जानकारी थी कि जेवर कहां रखे हैं. इस के चलते वह कोठी में बने सिर्फ उस कमरे में पहुंचे, जहां जेवर रखे हुए थे.

गार्ड व घरेलू सहायक को भी पता नहीं चला कि घर में चोर घुसे हैं. घटना के समय गार्ड व घरेलू सहायक भी घर में मौजूद थे. घरेलू सहायक मनोज पहली मंजिल पर बने कमरे में सोया हुआ था, जबकि गार्ड दिल बहादुर बाहर गार्डरूम में तैनात झपकी ले रहा था.

पुलिस ने दोनों से ही पूछताछ की और उन की बैकग्राउंड के बारे में जानकारी हासिल की. लेकिन कपिल गर्ग ने उन में से किसी पर भी शक जाहिर नहीं किया था. पुलिस ने तहकीकात के लिए दोनों के पहचानपत्र और मोबाइल नंबर ले लिए ताकि उन के फोन की काल डिटेल्स निकाली जा सके.

घर में सीसीटीवी कैमरे भी लगे थे, इसलिए पुलिस को लगा कि चलो जिस ने भी चोरी की है, वह सावधानी बरतने के बावजूद पकड़ में आ जाएगा. लेकिन जब कैमरों की जांच की गई तो पता चला कि पिछले काफी समय से सीसीटीवी कैमरे खराब पड़े हुए थे.

पुलिस ने परिवार की इस लापरवाही पर माथा पीट लिया. अकसर ऐसा ही होता है लोग हजारों रुपए खर्च कर देते हैं, लेकिन अपनी हिफाजत के लिए लगे सीसीटीवी कैमरे लगवाने के बाद कभी यह देखने की कोशिश नहीं करते कि वे काम कर भी रहे हैं या नहीं.

एसएसपी पवन कुमार के निर्देश पर कपिल गर्ग की शिकायत पर कविनगर थाने में 4 सितंबर, 2021 को भारतीय दंड संहिता में चोरी की धारा 380, 457 के अंतर्गत केस दर्ज कर के थाने के एसएसआई देवेंद्र कुमार सिंह को जांच की जिम्मेदारी सौंप दी.

पहले दिन से ही पुलिस पर वारदात का खुलासा करने के लिए उच्चाधिकारियों का जबरदस्त दबाव था. इसीलिए एसपी (सिटी) निपुण अग्रवाल ने थानाप्रभारी संजीव शर्मा के साथ क्राइम ब्रांच प्रभारी सचिन मलिक की एक विशेष टीम का गठन कर दिया.

थाना पुलिस और क्राइम ब्रांच की टीमें इलाके में मुखबिरों की सहायता से सुरागसी के काम में जुट गईं. थाने की पुलिस कपिल गर्ग के परिचितों, उन के घर आने वाले लोगों, फैक्ट्री में काम करने वाले लोगों के साथ कालोनी में आने वाले वेंडरों की लिस्ट बना कर उन से पूछताछ का काम करने लगी.

सीसीटीवी फुटेज से दिखी आशा की किरण

दूसरी तरफ क्राइम ब्रांच की टीम ने केडी ब्लौक में सभी कोठियों और रोड साइड में लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज खंगालने का काम शुरू कर दिया. पुलिस की टीमों में 2 दिन के भीतर 25 से अधिक सीसीटीवी के फुटेज देखे तो क्राइम ब्रांच की टीम को आशा की किरण दिखाई देनी शुरू हो गई.

दरअसल, घटना वाली रात 3 से 4 बजे के बीच एक काले रंग की स्कौर्पियो गाड़ी कपिल गर्ग के घर के आसपास तथा उन की गली के बाहर मंडराती नजर आई.

लेकिन फुटेज इतनी धुंधली थी कि उस में सवार लोगों व गाड़ी का नंबर स्पष्ट नहीं दिखा. लेकिन इस से उम्मीद का एक सिरा पुलिस के हाथ लग गया था.

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जिस जगह चोरी हुई, वहां से 3 रास्ते शहर से बाहर जाने वाले थे. पुलिस ने उन सभी रास्तों पर आगे की तरफ बढ़ते हुए जितने भी सीसीटीवी कैमरे रोड साइडों में लगे थे, उन्हें खंगालने का काम शुरू कर दिया.

जैसेजैसे टीम वहां के सीसीटीवी फुटेज खंगालती रही, वैसेवैसे सुराग पुख्ता होता चला गया. ईस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रैसवे पर बने टोल प्लाजा की तरफ बढ़ते हुए ये काली स्कौर्पियो गाड़ी एक के बाद एक कई सीसीटीवी में कैद हो गई, लेकिन कहीं भी गाडी का नंबर साफतौर पर दिखाई नहीं दिया.

सीसीटीवी की जांच में ये गाड़ी जब टोल प्लाजा के पास एक पैट्रोल पंप पर पहुंची, गाड़ी कुछ देर वहां रुकी, लेकिन उस ने पैट्रोल पंप से उस में तेल नहीं भरवाया. वह गाड़ी थोड़ी देर रुक कर टोल को पार कर ईस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रैसवे पर चढ़ गई, जिस से साफ हो गया कि ये गाड़ी गाजियाबाद से बाहर चली गई थी.

लेकिन इस पूरी कवायद का फायदा ये हुआ कि पुलिस को टोल प्लाजा के सीसीटीवी से स्कौर्पियो कार का नंबर मिल गया. इस जगह मिली सीसीटीवी में यह भी साफ हो गया कि गाड़ी में ड्राइवर समेत कुल 2 लोग सवार थे.

पुलिस ने टोल प्लाजा के सीसीटीवी फुटेज को भी जांच के लिए कब्जे में ले लिया. टोल प्लाजा के फास्टटैग एकाउंट की जांचपड़ताल की तो पता चला कि किसी इरफान नाम के व्यक्ति के वालेट से ये पेंमेट हुई थी.

टोल प्लाजा और परिवहन विभाग से सभी डिटेल्स निकलवा कर जांच आगे बढ़ी तो पता चला कि ये गाड़ी और फास्टटैग से जुड़ा बैंक खाता इरफान पुत्र मोहम्मद अख्तर, निवासी गांव जोगिया गाढ़ा, थाना पुपरी, जिला सीतामढ़ी, बिहार के नाम पर है.

कविनगर थानाप्रभारी संजीव कुमार शर्मा ने जब इस जांच प्रगति से एसपी (सिटी) निपुण अग्रवाल को अवगत कराया तो उन्होंने एक टीम तत्काल बिहार के सीतामढ़ी रवाना करने का आदेश दिया. उसी दिन आरटीओ विभाग से भी स्कौर्पियो गाड़ी के बारे में जानकारी हासिल कर ली गई थी.

यूपी पुलिस टीम पहुंची सीतामढ़ी

एसएसआई देवेंद्र सिंह और क्राइम ब्रांच प्रभारी सचिन मलिक के नेतृत्व में पुलिस की एक टीम सीतामढ़ी के लिए भेज दी गई. 7 सितंबर, 2021 को पुलिस की टीम ने स्थानीय पुपरी थाने से इरफान के बारे में जानकारी हासिल की तो पता चला कि इरफान एक शातिर अपराधी है. उस के खिलाफ पुपरी थाने में ही झगड़ा, जानलेवा हमला करने और धमकी देने के मामले दर्ज हैं.

स्थानीय पुलिस से गाजियाबाद पुलिस को पता चला कि दिल्ली, पंजाब, गोवा, कर्नाटक, ओडिशा व तेलंगाना की पुलिस इरफान की तलाश में अकसर उस के गांव में छापा मारती रहती है लेकिन वह इतना शातिर है कि पुलिस के हत्थे नहीं चढता.

स्थानीय पुलिस को साथ ले कर जब पुलिस की टीम ने इरफान के गांव जोगिया गाढ़ा में उस के घर पर छापा मारा तो वहां इरफान नहीं मिला, लेकिन उस की पत्नी गुलशन परवीन पुलिस को मिल गई.

पुलिस को गांव में उस के घर में खड़ी वह स्कौर्पियो कार भी मिल गई, जिसे कविनगर में कपिल गर्ग के घर में चोरी के दौरान सीसीटीवी फुटेज में देखा गया था.

इतना ही नहीं, वहां बिहार नंबर की एक महंगी जगुआर कार भी मिली. पुलिस समझ गई कि गाजियाबाद में चोरी के बाद इरफान सीधे अपने गांव आया था और चोरी का माल ठिकाने लगाने के बाद वह वहां से खिसक गया.

पुलिस को पूरा यकीन था कि इतनी बड़ी चोरी करने के बाद इतनी जल्दी उस ने चोरी का सारा माल नहीं बेचा होगा, लिहाजा पुलिस ने इरफान के घर की तलाशी ली.

पुलिस को वहां से नकदी तो ज्यादा नहीं मिली, लेकिन कई लाख रुपए के गहने बरामद हुए जो कपिल गर्ग के घर हुई चोरी का माल था या नहीं, यह जानने के लिए पुलिस टीम ने घर से बरामद हुए सामान के फोटो खींच कर गाजियाबाद में एसएचओ संजीव शर्मा को भेजे.

संजीव शर्मा ने कपिल गर्ग के परिवार को बुला कर वाट्सऐप से आई फोटो जब परिजनों को दिखाई तो उन्होंने बता दिया कि इस में से अधिकांश गहने उन के घर से ही चोरी हुए हैं.

अब यह बात पूरी तरह साफ हो गई कि कपिल गर्ग के घर हुई चोरी में इरफान का ही हाथ है. पुलिस ने उस की पत्नी गुलशन उर्फ परवीन को चोरी का माल घर में रखने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस को स्थानीय पुलिस से इस बात की जानकारी भी मिल चुकी थी कि इरफान ने अपने गांव व आसपास के इलाकों में बहुत सारे लोगों को शार्टकट से पैसा कमाने का लालच दे कर अपने गैंग में शामिल कर लिया था.

इसलिए पुलिस ने उस की पत्नी गुलशन से स्थानीय थाने में महिला पुलिस की मदद से सख्ती के साथ पूछताछ की तो पता चला कि गाजियाबाद के कविनगर में हुई चोरी के दौरान पुपरी थाना क्षेत्र का ही इरफान का ड्राइवर मोहम्मद शोएब पुत्र गुलाम मुर्तजा निवासी राजाबाग कालोनी तथा विक्रम शाह पुत्र रामवृक्ष शाह निवासी गाढ़ा कालोनी भी शामिल था.

पुलिस ने उसी रात छापा मारा. संयोग से दोनों अपने घर पर ही मिल गए और दोनों को गिरफ्तार कर लिया गया. उन के घर से भी तलाशी के दौरान चोरी के कुछ आभूषण बरामद हुए जो उन्होंने कपिल गर्ग के घर से चोरी किए थे.

तीनों आरोपियों को सीतामढ़ी की अदालत में पेश करने के बाद कविनगर पुलिस उन्हें ट्रांजिट रिमांड पर ले कर गाजियाबाद आ गई. यहां पर सक्षम न्यायालय में पेश कर तीनों को पुलिस ने 3 दिन की रिमांड पर ले लिया. जिस के बाद उच्चाधिकारियों ने गुलशन परवीन, शोएब और विक्रम से विस्तृत पूछताछ की.

शोएब तथा विक्रम ने घटनास्थल केडी 12 में कपिल गर्ग की कोठी पर जा कर इस बात की पहचान कर दी कि वे इरफान के साथ 3 सितंबर को चोरी करने आए थे. इस के बाद शुरू हुआ ताबड़तोड गिरफ्तारियों का सिलसिला.

पुलिस की टीमों ने इरफान के गिरोह में काम करने वाले इमरान पुत्र अकीउर्रहमान मूल निवासी एकता नगर, थाना क्वारसी, अलीगढ़ जो इन दिनों बरेली के खुशबू एनक्लेव इलाके में रहता था, को भी गिरफ्तार किया. इमरान चोरी के आभूषण बिकवाने में इरफान की मदद करता था.

पुलिस ने अलीगढ़ के रहने वाले 3 सर्राफा कारोबारियों मुरारी वर्मा, शिवम वर्मा तथा धीरज वर्मा को भी गिरफ्तार किया. जिन से चोरी के कुछ आभूषण भी बरामद किए गए.

इन चारों की गिरफ्तारी के बाद पुलिस टीमों ने जांचपड़ताल और पूछताछ को आगे बढ़ाते हुए इरफान के गांव के रहने वाले मोहम्मद मुजाहिद और पड़ोस के जाहिदपुर गांव में रहने मोहम्मद सरबरूल हुदा को भी गिरफ्तार कर लिया. लेकिन यह सिलसिला यहीं खत्म होने वाला नहीं था.

छानबीन आगे बढ़ी तो पता चला कि अलीगढ़ में बरौला जाफराबाद में रहने वाली इरफान की प्रेमिका रूपाली उर्फ संगीता गांव गाढ़ा जोगिया में रहने वाली उस की विधवा बहन लाडली खातून को भी इरफान के चोरी के कारनामों की पूरी जानकारी रहती है.

वे दोनों न सिर्फ पुलिस से बचने के लिए छिपने में उस की मदद करती हैं, बल्कि चोरी के माल को ठिकाने लगाने से ले कर उस से ऐश भरी जिंदगी जीने में भी हिस्सेदार बनी रहती हैं.

एक के बाद एक पुलिस इरफान से जुड़े 11 लोगों को गिरफ्तार कर चुकी थी, लेकिन पुलिस के लिए छलावा बन चुका इरफान उर्फ उजाला हर बार पुलिस की पकड़ से फिसल जाता था.

इस दौरान साक्ष्यों के अभाव में उस की बहन लाडली खातून तथा प्रेमिका रूपाली उर्फ संगीता की जमानत भी हो गई. लेकिन इरफान फिर भी पुलिस की पकड़ में नहीं आया.

कविनगर पुलिस तथा क्राइम ब्रांच की टीम लगातार उस की गिरफ्तारी के प्रयास में लगी रही. इस दौरान कविनगर थाने के प्रभारी संजीव शर्मा का तबादला हो गया था. उन की जगह अब्दुल रहमान सिद्दीकी कविननगर थाने के नए थानाप्रभारी बन कर आए.

उन्होंने जांच अधिकारी देवेंद्र सिंह के साथ मिल कर नई रणनीति तैयार की और अब तक पूछताछ में आए तमाम लोगों की निगरानी का काम शुरू करा दिया जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से इरफान के साथ जुड़े थे.

लगातार प्रयास के बाद पुलिस टीम को जानकारी मिली कि इरफान 24 अक्तूबर को गाजियाबाद कोर्ट में अपने वकील से मिलने के लिए आएगा. क्योंकि उस ने अपने गिरोह के गिरफ्तार साथियों की जमानत करानी है. पुलिस ने 24 अक्तूबर को इरफान को पकड़ने के लिए बड़ा जाल बिछाया.

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लक्ष्य- भाग 1: क्या था सुधा का लक्ष्य

निलेश और सुधा दोनों दिल्ली के एक कालेज में स्नातक के छात्र थे. दोनों में गहरी दोस्ती थी. आज उन की क्लास का अंतिम दिन था. इसलिए निलेश कालेज के पार्क में गुमसुम अपने में खोया हुआ फूलों की क्यारी के पास बैठा था. सुधा उसे ढूंढ़ते हुए उस के करीब आ कर पूछने लगी,  ‘‘निलेश यहां क्यों बैठे हो?’’

उस का जवाब जाने बिना ही वह एक सफेद गुलाब के फूल को छूते हुए कहने लगी, ‘‘इन फूलों में कांटे क्यों होते हैं. देखो न, कितना सुंदर होता है यह फूल, पर छूने से मैं डरती हूं. कहीं कांटे न चुभ जाएं.’’ निलेश से कोई जवाब न पा कर उस ने फिर कहा, ‘‘आज किस सोच में डूबे हो, निलेश?’’

निलेश ने चुप्पी तोड़ते हुए कहा, ‘‘सोच रहा हूं कि जब हम किसी से मिलते हैं तो कितना अच्छा लगता है पर बिछड़ते समय बहुत बुरा लगता है. आज कालेज का अंतिम दिन है. कल हम सब अपनेअपने विषय की तैयारी में लग जाएंगे. परीक्षा के बाद कुछ लोग अपने घर लौट जाएंगे तो कुछ और लोग की तलाश में भटकने लगेंगे. तब रह जाएगी जीवन में सिर्फ हमारी यादें इन फूलों की खूशबू की तरह. यह कालेज लाइफ कितनी सुहानी होती है न, सुधा.

‘‘हर रोज एक नई स्फूर्ति के साथ मिलना, क्लास में अनेक विषयों पर बहस करना, घूमनाफिरना और सैर करना. अब सब खत्म हो जाएगा.’’ सुधा की तरफ देखता हुआ निलेश एक सवाल कर बैठा, ‘‘क्या तुम याद करोगी, मुझे?’’

‘‘ओह, तो तुम इसलिए उदास बैठे हो. आज तुम शायराना अंदाज में बोल रहे हो. रही बात याद करने की, तो जरूर करूंगी, पर अभी हम कहां भागे जा रहे हैं?’’ वह हाथ घुमा कर कहने लगी, ‘‘सुना है दुनिया गोल है. यदि कहीं चले भी जाएं तो हम कहीं न कहीं, किसी मोड़ पर मिल जाएंगे. एकदूसरे की याद आई तो मोबाइल से बातें कर लेंगे. इसलिए तुम्हें उदास होने की जरूरत नहीं.’’

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सुधा का अंदाज देख कर निलेश गंभीर होते हुए बोला, ‘‘दुनिया बहुत बड़ी है, सुधा. क्या पता दुनिया की भीड़ में हम खो जाएं और फिर कभी न मिलें? इसलिए आज तुम से अपने दिल की बातें करना चाहता हूं. क्या पता कल हम मिलें, न मिलें. नाराज मत होना.’’ वह घास पर बैठा उस की आंखों में झांकते हुए बोला, ‘‘सुधा, मैं तुम से प्यार करने लगा हूं. क्या तुम भी मुझ से प्यार करती हो?’’

यह सुनते ही सुधा के चेहरे का रंग बदल गया. वह उत्तेजित हो कर बोली, ‘‘यह क्या कह रहे हो, निलेश? हमारे बीच प्यार कब और कहां से आ गया? हम एक अच्छे दोस्त हैं और दोस्त बन कर ही रहना चाहते हैं. अभी हमें अपने कैरियर के बारे में सोचना चाहिए, न कि प्यार के चक्कर में पड़ कर अपना समय बरबाद करना चाहिए. प्यार के लिए मेरे दिल में कोई जगह नहीं.

‘‘सौरी, तुम बुरा मत मानना. सच तो यह है कि मैं शादी ही नहीं करना चाहती. शादी के बाद लड़कियों की जिंदगी बदल जाती है. उन के सपने मोती की तरह बिखर जाते हैं. उन की जिंदगी उन की नहीं रह जाती, दूसरे के अधीन हो जाती है. वे जो करना चाहती हैं, जीवन में नहीं कर पातीं. पारिवारिक उलझनों में उलझ कर रह जाती हैं. मेरे जीवन का लक्ष्य है कुशल शिक्षिका बनना. अभी मुझे बहुत पढ़ना है.’’

‘‘सुधा, पढ़ने के साथसाथ क्या हम प्यार नहीं कर सकते? मैं तो प्यार में सिर्फ तुम से वादा चाहता हूं. भविष्य में तुम्हारे साथ कदम मिला कर चलना चाहता हूं. जब अपने पैरों पर खड़े हो जाएंगे तभी हम घर बसाएंगे. अभी तुम्हें परेशान होने की जरूरत नहीं, और रही बात शादी के बाद की, तो तुम जो चाहे करना. मैं कभी तुम्हें किसी भी चीज के लिए टोकूंगा नहीं.’’

‘‘पर मैं कोई वादा करना नहीं चाहती. अभी कोई भी बंधन मुझे स्वीकार नहीं.’’ तब सुधा की यह बात सुन कर उस ने कहा, ‘‘प्यार इंसान की जरूरत होती है. आज भले ही तुम इस बात को न मानो, पर एक दिन तुम्हें यह एहसास जरूर होगा. इन सब खुशियों के अलावा अपने जीवन में एक इंसान की जरूरत होती है. जिसे जीवनसाथी कहते हैं. खैर, मैं तुम्हारी सफलता में बाधक बनना नहीं चाहता. दिल ने जो महसूस किया, वह तुम से कह बैठा. बाकी तुम्हारी मरजी.’’

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वह अनमना सा उठा और घर की तरफ चल पड़ा. उस के पीछेपीछे सुधा भी चल पड़ी. कुछ देर चुपचाप उस के साथसाथ चलती रही. अब दोनों बस स्टौप पर खड़े थे, अपनीअपनी बस का इंतजार करने लगे. तभी सुधा ने खामोशी तोड़ने के उद्देश्य से उस से पूछा, ‘‘तुम्हारे जीवन में भी तो कोई लक्ष्य होगा. स्नातक के बाद क्या करना चाहोगे क्या यों ही लड़की पटा कर शादी करने का इरादा?’’

यह सुन कर निलेश झुंझलाते हुए बोला, ‘‘ऐसी बात नहीं  है, सुधा. मैं तुम्हें पटा नहीं रहा था. अपने प्यार का इजहार कर रहा था. पर जरूरी तो नहीं कि जैसा मैं सोचता हूं वैसा ही तुम सोचो, और प्यार किसी से जबरदस्ती नहीं किया जाता. यह तो एक एहसास है जो कब दिल में पलने लगता है, हमें पता ही नहीं चलता. आज के बाद कभी तुम से प्यार का जिक्र नहीं करूंगा. दूसरी बात, जीवन के लक्ष्य के बारे में अभी मैं ने कुछ सोचा नहीं. वक्त जहां ले जाएगा, चला जाऊंगा.’’

‘‘निलेश, यह तुम्हारी जिंदगी है, कोई और तो नहीं सोच सकता. समय को पक्ष में करना तो अपने हाथ में होता है. अपने लक्ष्य को निर्धारित करना तुम्हारा कर्तव्य है.’’

इस पर निलेश बोला, ‘‘हां, मेरा कर्तव्य जरूर है लेकिन अभी तो स्नातक की परीक्षा सिर पर सवार है. उस के बाद हमारे मातापिता जो कहेंगे वही करूंगा.’’ तभी सुधा की बस आ गई और वह बाय करते हुए बस में चढ़ गई. निलेश भी अपने गंतव्य पर चला गया.

सुधा अब अपने घर आ चुकी थी. जब खाना खा कर वह अपने कमरे में बिस्तर पर लेटी तो सोचने लगी,

क्या सचमुच निलेश मुझ से प्यार करता है? या यों ही मुझे आजमा रहा था. पर उस ने तो अपने जीवन का निर्णय मातापिता पर छोड़ रखा है. उन्हीं लागों को हमेशा प्रधानता देता है. क्या जीवन में वह मेरा साथ देगा? अच्छा ही हुआ जो उस का प्यार स्वीकार नहीं किया. प्यार तो कभी भी किया जा सकता है, पर जीवन का सुनहला वक्त अपने हाथों से नहीं जाने दूंगी. समय के भरोसे कोई कैसे जी सकता है? जो स्वयं अपना निर्णय नहीं ले सकता वह मेरे साथ कदम से कदम मिला कर कैसे चल सकता है? क्या कुछ पल किसी के साथ गुजार लेने से किसी से प्यार हो जाता है? निलेश न जाने क्यों ऐसी बातें कर रहा था? यह सोचतेसोचते वह सो गई.

अगले दिन वह परीक्षा की तैयारी में लग गई. निलेश से कम ही मुलाकात होती. एकदिन सुबह वह उठी तो रमन, जो निलेश का दोस्त था ने बुरी खबर से उसे अवगत कराया कि निलेश के पापा एक आतंकी मुठभेड़ में मारे गए हैं. आज सुबह 6 बजे की फ्लाइट से वह अपने गांव के लिए रवाना हो गया. उस के पापा की लाश वहीं गांव में आने वाली है. वह बहुत रो रहा था. उस ने कहा कि तुम्हें बता दें.

यह सुन वह बहुत व्याकुल हो उठी. उस को फोन लगाने लगी पर उस का फोन स्विच औफ आ रहा था. वह दुखी हो गई, उसे दुखी देख उस की मां ने सवाल किया कि सुधा क्या बात है, किस का फोन था? तब उस ने रोंआसे हो कर कहा, ‘‘मां, निलेश के पापा की आतंकी मुठभेड़ में मृत्यु हो गई,’’ यह कहते हुए उस की आंखों में आंसू आ गए और कहने लगी, क्यों आएदिन ये आतंकी देश में उत्पात मचाते रहते हैं? कभी मंदिर में धमाका तो कभी मसजिद में करते हैं तो कहीं सरहद पर गोलीबारी कर बेकुसूरों का सीना छलनी कर देते हैं. क्या उन की मानवता मर चुकी है या उन के पास दिल नहीं होता जो औरतों के सुहाग उजाड़ लेते हैं. आतंक की डगर पर चल कर आखिर उन्हें क्या सुख मिलता है?’’

सुधा के मुख से यह सुन उस की मां उस के करीब जा कर समझाने लगी, ‘‘बेटी, कुछ लोगों का काम ही उत्पाद मचाना होता है. अगर उन के दिल में संवेदना होती तो ऐसा काम करते ही क्यों? पर तुम निलेश के पिता के लिए इतनी दुखी न हो. सैनिक का जीवन तो ऐसा ही होता है बेटी, उन के सिर पर हमेशा कफन बंधा होता है. वे देश के लिए लड़ते हैं, पर उन का परिवार एक दिन अचानक ऐसे ही बिखर जाता है. मरता तो एक इंसान है लेकिन बिखर जाते हैं मानो घर के सभी सदस्य. हम उस शहीद को नमन करते हैं. ऐसे लोग कभी मरते नहीं बल्कि अमर हो जाते हैं.’’

पर सुधा अपने कमरे में आ कर सोचने लगी कि काश, निलेश के लिएवह कुछ कर पाती. आज वह कितना दुखी होगा. एक तरफ मैं ने उस का प्यार ठुकरा दिया, दूसरी तरफ उस के सिर से पिता का साया उठ गया. इस समय मुझे उस के साथ होना चाहिए था. आखिर दोस्त ही दोस्त के काम आता है. कई बार जब मैं निराश होती तो वह मेरा साहस बढ़ाता. आज क्या मैं उस के लिए कुछ नहीं कर सकती? वह बारबार फोन करती पर कोई जवाब नहीं आता तो निराश हो जाती.

2 महीने बाद परीक्षा हौल में उस की आंखें निलेश को ढूंढ़ रही थीं. पर उस का कोई अतापता नहीं था. वह सोचने लगी, क्यों उस के विषय में वह चिंतित रहने लगी है? वह मात्र दोस्त ही तो था, एकदिन जुदा तो होना ही था. फिर उसे ध्यान आया कि कहीं उस की परीक्षा खराब न हो जाए, और वह अपना पेपर पूरा करने लगी.

अपने हुए पराए- भाग 1: आखिर प्रोफेसर राजीव को उस तस्वीर से क्यों लगाव था

लेखक-योगेश दीक्षित

जिंदगी में हार न मानने वाले प्रोफैसर राजीव आज सुबह बहुत ही थके हुए लग रहे थे. मैं उन को लौन में आरामकुरसी पर निढाल बैठे देख सन्न रह गया. उन के बंगले में सन्नाटा था. कहां संगीत की स्वरलहरियां थिरकती रहती थीं, आज ख़ामोशी पसरी थी. मुझे देखते ही वे बोले, ‘‘आओ, बैठो.’’

उन की दर्दमिश्रित आवाज से मुझे आभास हुआ कि कुछ घटित हुआ है. मैं पास पड़ी बैंच पर बैठ गया.

‘‘कैसे हो नरेंद्र?’’ आसमान की ओर निहारते उन्होंने पूछा.

‘‘ठीक हूं,” मैं ने दिया. मेरा दिल अभी भी धड़क रहा था. मैं उन की पुत्री करुणा की तबीयत को ले कर परेशान था. 5 दिनों पूर्व वह अस्पताल में भरती हुई थी. फोन पर मेरी बात नहीं हो सकी. जब भी फोन लगाया स्विचऔफ मिला. चिंताओं ने पैने नाखून गड़ा दिए थे.

मुझे खामोश देख प्रोफैसर राजीव रुंधे स्वर से बोले, “दिल्ली से कब आए?”

‘‘कल रात आया.’’

‘‘इंटरव्यू कैसा रहा?’’

‘‘ठीक रहा.’’

कुछ देर खामोशी छाई रही. उन की आंखें अभी भी आसमान के किसी शून्य पर टिकी थीं. चेहरे पर किसी भयानक अनिष्ट की परछाइयां उतरी थीं जो किसी अनहोनी का संकेत दे रही थीं. मैं चिंता से भर उठा. करुणा को कुछ हो तो नहीं गया. लेकिन जब करुणा को चाय लाते देखा तो सारी चिंताएं उड़ गईं. वह पूरी तरह स्वस्थ्य दिख रही थी.

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‘‘पापा चाय लीजिए,’’ करुणा ने चाय की ट्रे गोलमेज पर रखते हुए कहा.

मेरी नजरें अभी भी करुणा के चेहरे पर जमी थीं, लेकिन उस की तरफ से कोई प्रतिक्रिया न देख हैरान रह गया, लगा नाराज है. करुणा चाय दे कर मुड़ी ही थी कि पैर डगमगा गए. मैं ने तुरंत हाथों में संभाल लिया. वह संभलती हुई बोली, ‘‘थैंक्यू.’’ मैं तुरंत अलग हो गया. प्रोफैसर राजीव बोले, “जब चलते नहीं बनता तो हाईहील की सैंडिल क्यों पहनती हो?”

‘‘फैशन है पापा.”

‘‘हूं, सभी मौडर्न हुए जा रहे हैं.’’

मैं समझ गया, उन का इशारा राहुल की बहू अपर्णा पर था. अपर्णा अकसर जींस व टोप पहने ही दिखती है.

मेरे पिताजी और प्रोफैसर राजीव की दोस्ती जगजाहिर थी. एक साथ उन्होंने पढ़ाईलिखाई की, नौकरी की. पड़ोस में मकान बनाया. किसी भी समारोह में गए, साथ गए. यहां तक कि चुनाव भी साथ लड़ा.

मेरे पिताजी कैंसर की बीमारी से पीड़ित थे, जल्दी ही उन की मृत्यु हो गई. मुझे हिदायत दे गए थे कि प्रोफैसर राजीव के घर को अपना घर समझना, पूरी इज्जत देना. तब से मेरा आनाजाना लगा रहता है. प्रोफैसर राजीव मुझे अकसर याद करते रहते हैं और मैं उन के बाहरी काम निबटाता रहता हूं. वे अपने लड़के राहुल से अधिक विश्वस्त मुझे मानते हैं.

प्रोफैसर राजीव का संपन्न परिवार है – पत्नी, एक लड़का, बहू और एक लड़की है. धर्म में उन की आस्था है. भजन, कीर्तन, भागवत जैसे कार्यक्रम वे कराते रहते हैं. करूणा जब एकाएक बीमार हुई और उसे अस्पताल में भरती होना पड़ा तो सभी चिंतित हो गए. मुझे भी शौक लगा. उसे पीलिया हो गया था. 10 दिन वह आईसीयू में भरती रही. तीनचार दिन मैं देखता रहा.

इसी बीच, मेरा इंटरव्यूकौल आ गया. मुझे दिल्ली जाना पड़ा. आज जब दिल्ली से वापस लौटा तो करुणा की याद ही दिल में बसी थी – वह कैसी है, अस्पताल से आई कि नहीं… सोचता हुआ प्रोफैसर राजीव के घर पहुंचा. प्रोफैसर राजीव बाहर ही मिल गए. उन्हें उदास देख मन में तरहतरह की शंकाएं पल गईं.

प्रोफैसर राजीव की चिंता मुझे अभी भी हो रही थी कि वे कुछ छिपाए हुए हैं. वरना तो ऐसे गमगीन वे कभी नहीं दिखे. करुणा के जाने के बाद मैं ने उन की चिंता का कारण पूछा तो वे टालते हुए उठ गए और अंदर कमरे में चले गए. उन के हावभावों ने मुझे फिर घेर लिया. मैं तुरंत करुणा के कमरे में गया. करुणा सोफे पर बैठी डायरी के पन्ने पलट रही थी, बोली, ‘‘कुछ काम?’’

‘‘क्या बिना काम के नहीं आ सकता?’’

‘‘रोका किस ने, मैं होती कौन हूं?’’

‘‘अच्छा, समझा.’’

‘‘क्या?’’

‘‘मैं दिल्ली चला गया था, इसलिए…’’

‘‘हां, मैं अस्पताल में थी और हुजूर दिल्ली चले गए.’’

‘‘इंटरव्यू था?’’

‘‘जानती हूं, मैं मर रही थी और आप छूमंतर हो गए, बता कर जा सकते थे.’’

‘‘सौरी, करुणा. प्लीज, मेरा जाना बहुत जरूरी था. पता है, मैं सिलेक्ट हो गया.’’

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‘‘सच, नौकरी लग गई तुम्हारी?’’

‘‘हां, लग जाएगी.’’

यह सुनते ही वह मेरे गले से लग गई. उस की गर्म सांसों से मेरा दिल मधुर एहसास से भर उठा, होंठ उस के कपोलों से जा लगे. वह तुरंत दूर होती बोली, ‘‘यह क्या?’’

‘‘सौरी,’’ मैं ने कान पकड़ते हुए कहा.

एक मधुर मुसकन उस के चेहरे पर पसर गई जिसे मैं मंत्रमुग्ध सा देखता रह गया. तभी प्रोफैसर राजीव की आवाज कानों में पड़ी. मैं तुरंत उन के कमरे में गया.

‘‘क्या है अंकल?’’

‘‘बेटा पानी ले आ, मेरी तबीयत ठीक नहीं लग रही.’’

‘‘क्या हो गया, आप कुछ बताते भी नहीं. अच्छा रुकिए, पहले पानी पीजिए.’’ पानी का गिलास थमाते हुए मैं बोला, ‘‘आप आज इतने उदास क्यों हैं?’’

‘‘बेटा, राहुल नए घर में चला गया.’’

‘‘क्या?’’ मेरे पैरों के नीचे जमीन खिसक गई. शादी तो उस ने अपनी मरजी से कर ली थी, बहू ले आया, न कोई न्योता न कार्ड और अब घर भी अलग कर लिया. प्रोफैसर राजीव की परेशानियों का दर्द अब मुझे समझ आया.

राहुल यह कैसे कर सकता है, मैं सोच उठा?

अंकल 75 वर्ष की उम्र क्रास कर चुके हैं. अम्मा जी रुग्ण हैं. और राहुल घर से अलग हो गया. चिंताओं के बादल मेरे सिर पर उमड़ गए. वृद्धावस्था में पुत्र की कितनी आवश्यकता होती है, इसे कौन नहीं समझता. राहुल को अवश्य अपर्णा ने बहकाया होगा.

प्रोफैसर राजीव ने राहुल के लिए क्या कुछ नहीं किया, स्नातकोत्तर कराया, कालेज में नौकरी लगवाई. दिनरात उस के पीछे दौड़े. और आज उस ने यह सिला दिया अंकल को. उन्हें अपने से ज्यादा करुणा की चिंता थी. वे उस के विवाह के लिए चिंतित थे. उन्हें मेरे और करुणा के संबंधों की कोई जानकारी नहीं थी. करुणा की शादी के लिए उन्होंने कितने ही प्रयास किए थे. अच्छा घरबार चाहते थे. लड़का भी कमाऊ चाहते थे जैसे हर पिता की इच्छा रहती है. लेकिन उन्हें हर कदम पर निराशा ही मिली थी. असफलताओं ने उन्हें कमजोर कर दिया था और आज राहुल के अलग घर बसाने की बात ने उन्हें आहत कर दिया.

करुणा को मैं पसंद करता था, यह बात मैं प्रोफैसर राजीव से नहीं कह सका. मैं डर रहा था कि मेरी इस बात का अंकल कुछ गलत अभिप्राय न निकालें. मैं उन का विश्वासपात्र था. उन के विश्वास को तोड़ना नहीं चाहता था कि इस से उन्हें बहुत दर्द पहुंचेगा. प्रोफैसर राजीव कहीं लड़के को देखने जाते तो मुझे भी साथ ले जाते, मैं मना भी नहीं कर पाता.

करुणा भी इसे जानती थी, लेकिन वह खामोश रही. उसे इस से कोई फर्क नहीं पड़ा. यह बात मुझे संतोष देती कि जितने भी रिश्ते आते करुणा के उपेक्षित उत्तर से उचट जाते, वह ऐसे तर्क रखती कि वर पक्ष निरुत्तर हो जाते और वापस लौट जाते. मन ही मन मेरी मुसकान खिल जाती.

प्रोफैसर राजीव की हालत दिनबदिन बिगड़ती गई. शरीर दुर्बल हो गया. उन का बाहर निकलना भी बंद हो गया. मैं उन की सेवा में लगा रहा.

Manohar Kahaniya: बहन के प्यार का साइड इफेक्ट- भाग 1

सौजन्य- मनोहर कहानियां

Writer- आर. के. राजू

घर में सभी लोगों की लाडली नंदिनी की शादी को ले कर उस के पिता ओमप्रकाश चिंतित रहते थे. उस की शादी की उम्र हो चुकी थी. वह जितनी चंचल, उतनी ही हिम्मती और बातबात पर अड़ जाने वाली थी. जिद्दी इतनी कि एक बार जो मन में ठान लिया, उसे पूरा कर के ही छोड़ती थी. मुरादाबाद की एक एक्सपोर्ट कंपनी में काम करने वाले ओमप्रकाश के खातेपीते सुखीसंपन्न परिवार में पत्नी ओमवती के अलावा बेटी नंदिनी और बेटा गगन था.

मुरादाबाद की लालबाग रामगंगा कालोनी में रहने वाले इस परिवार के सभी सदस्य सौतेलेपन की कुंठा से ग्रसित थे. वहीं सौतेलापन नंदिनी को भी भीतर ही भीतर कुछ ज्यादा ही कुरेदता रहता था. उस की बड़ी बहन पूजा की शादी हो चुकी थी. वह अपने घर में खुश थी, लेकिन नंदिनी को पड़ोस में रहने वाले प्रदीप नाम के युवक से प्यार हो गया. लेकिन वह उस की बिरादरी का नहीं था. इस के अलावा वह बेरोजगार भी था.

इसी बात को ले कर गगन उस के प्रेम में रोड़ा बन बैठा था. नंदिनी गगन की भले ही सौतेली बहन थी, लेकिन वह नहीं चाहता था कि नंदिनी प्रदीप से प्यार करे. गगन अपने मातापिता को इस बारे में उकसाता भी रहता था. पिता भी गगन का ही पक्ष लेते थे. सौतेली मां कलावती का निधन भी बीते साल कैंसर से हो चुका था.

घर में नंदिनी की एकमात्र हमदर्द गगन की पत्नी राधा बन सकती थी, लेकिन उस की घर में जरा भी नहीं चलती थी. गगन नंदिनी के साथसाथ उसे भी काफी डांटडपट कर रखता था. कई बार इस वजह से नंदिनी काफी दुखी हो जाती थी और गगन के विरोधी तेवर को अपने दिल पर लेती हुई बिफर भी पड़ती थी.

उस के मुंह से निकल पड़ता था, ‘‘गगन उस का दुश्मन है, क्योंकि वह सौतेला भाई जो है, अपना होता तो…’’

अब नंदिनी को यह समझ नहीं आ रहा था कि वह अपने दिल की बात कहे तो किस से? अपनी समस्या का समाधान निकाले भी तो किस की मदद ले? यही सोच कर वह हमेशा तनाव में रहती थी.

प्रेमी प्रदीप के साथ वह ज्यादा समय तक मिलबैठ भी नहीं सकती थी. क्योंकि गगन उस पर हमेशा पहरेदार की तरह तना रहता था. हर बात में मिर्चमसाला लगा कर पिता को बताता था और घर में बात का बतंगड़ बना डालता था.

और तो और, उस के प्रेमी को नाकारा निकम्मा कहता हुआ घर में सभी के सामने उसे काफी जलील करता था. इस बात को ले कर नंदिनी परेशान रहने लगी थी. उस के मन में तरहतरह के खयाल आतेजाते रहते थे.

अपनी समस्याओं को ले कर उधेड़बुन में एक बार नंदिनी बाजार से गुजर रही थी. तभी अचानक उस की मुलाकात ममता से हो गई. उसी ने टोका, ‘‘अरे नंदिनी तुम! काफी परेशान दिख रही हो? क्या बात है?’’

‘‘अरे ममता! तुम तो पहचानने में ही नहीं आ रही हो. तुम्हारी शादी होने वाली है क्या? बहुत दिनों बाद मिली… कैसी हो तुम?’’ नंदिनी ने चौंकते हुए उसी की तरह एक साथ कई सवाल दाग दिए.

‘‘मैं तो बस अपने दिल को बहला रही हूं. खुद को दिलासा दे रही हूं. तुम्हारे भाई ने जब से मुझे धोखा दिया है, उस के बाद समझो आज ही मूड फ्रैश करने के लिए थोड़ा बनठन कर निकली हूं… अच्छी लग रही हूं न?’’ ममता ने भी नंदिनी के अंदाज में जवाब दिया.

‘‘बहुत ही अच्छी, ग्लैमरस. तुम्हारी सुंदरता का कोई जवाब नहीं. तुम कुछ भी पहन लो हीरोइन दिखती हो…’’ नंदिनी बोली.

‘‘बसबस, किसी की अधिक तारीफ नहीं करते. उस से उस की मुराद पूरी होने में अड़चन आ जाती है.’’ ममता बोली.

‘‘तुम्हारी मुराद क्या है?’’ नंदिनी तपाक से पूछ बैठी.

‘‘बदला,’’ नंदिनी के लहजे में ममता बोली.

‘‘एेंऽऽ बदला… यह कोई मुराद हुई? मगर किस से?’’ चौंकती हुई नंदिनी ने पूछा.

‘‘तुम्हारे उसी भाई से, जो मेरी जिंदगी उजाड़ कर तुम्हारी जिंदगी भी बरबाद करने पर तुला है.’’ ममता गुस्से में बोली.

‘‘कह तो तुम बिलकुल सही रही हो, मगर क्या कर सकती हूं, समझ नहीं पा रही हूं.’’ नंदिनी ने कहा.

वह मायूसी के साथ आगे कहने लगी, ‘‘गगन सौतेला भाई है न, इसलिए अपना सौतेलापन खुल कर दिखा रहा है. प्रदीप को मेरा और पूरे परिवार का दुश्मन बताता है. पापा को उस के खिलाफ काफी भड़का दिया है. पापा से बोलता है कि उन की जायदाद पर प्रदीप की नजर है. तुम तो जानती हो उसे, वह ऐसा बिलकुल ही नहीं है. वह मुझे बहुत प्यार करता है. मैं भी उसे बहुत चाहती हूं.’’

‘‘देखो, नंदिनी तुम्हारे चाहने और नहीं चाहने से क्या होता है. गगन कभी नहीं चाहता है कि तुम्हारी प्रदीप के साथ शादी हो. इस के पीछे छिपा हुआ उस का मकसद समझो. वह जानता है कि तुम्हारी प्रदीप से शादी होने पर तुम इसी मोहल्ले में रहने लगोगी… और फिर अपने पिता की संपत्ति पर हक जताने लगोगी. इसलिए वह तुम्हारी शादी कहीं दूर करवाना चाहता है.’’ ममता ने समझाया.

इसी के साथ उस ने यह भी कह दिया कि उन दोनों का एक ही दुश्मन है गगन.

गगन की प्रेमिका थी ममता

यह बात नंदिनी के दिमाग में घर कर गई. उस वक्त तो ममता और नंदिनी अपनीअपनी उलझनों का बोझ एकदूसरे पर उतार कर विदा हो लिए, लेकन दोनों के दिमाग में गगन के विरोध की ज्वाला धधकने लगी.

ऐसा होना भी स्वाभाविक था. नंदिनी को गगन हमेशा कहता रहता था कि प्रदीप उस का हितैषी नहीं दुश्मन है, वह उस के साथ प्रेम का नाटक कर रहा है और उस की मंशा जमीनजायदाद हथियाने की है.

एक समय में लालबाग रामगंगा कालोनी निवासी रमेश कुमार की बेटी ममता गगन की प्रेमिका हुआ करती थी. गगन उस पर जान छिड़कता था. गगन भी ममता से बेइंतहा मोहब्बत करता था. उस का दीवाना था.

वह बेहद सुंदर और मांसलता के दैहिक आकर्षण से भरी हुई थी, अपनी खूबसूरती को आधुनिक पहनावे और स्टाइल से और भी ग्लैमर बना देती थी. बौडी लैंग्वेज से ले कर बोलचाल तक से किसी को भी पलक झपकते ही अपनी ओर आकर्षित कर लेती थी.

उस के स्वच्छंद विचार और आधुनिक पहनावे से निखरे रूपरंग का कई लोग गलत अर्थ भी निकालते थे. दबी जुबान में उसे बदचलन तक कह देते थे. ऐसी धारणा रखने वालों में गगन के पिता ओमप्रकाश भी थे.

उन्होंने ममता को ले कर गगन को एक बार खूब डांटा था. उस से दूर रहने की चेतावनी दी. यहां तक कि उन्होंने भी उसे बदचलन करार दे दिया था. दुर्भाग्य से 2018 में गगन की मां कलावती का कैंसर से निधन हो गया.

करीब 25 साल पहले ही ओमप्रकाश ने अमरोहा निवासी विवाहिता कलावती से दूसरा विवाह तब किया था, जब उन की पहली पत्नी का आकस्मिक निधन हो गया था. विवाह के वक्त कलावती की गोद में 3 साल का गगन भी था. नंदिनी का बचपन उसी सौतेले भाई के साथ गुजरा, जो अब 28 साल का हो चुका था.

ओमप्रकाश की पहली पत्नी से उन के 2 बच्चे पूजा और नंदिनी थी. वे पूजा की शादी कर चुके थे और नंदिनी की शादी के प्रयास में थे.

कलावती के निधन के बाद ओमप्रकाश घर को संभालने के लिए गगन की शादी की योजना बनाने लगे थे. इसी सिलसिले में ममता के साथ उस के प्रेम संबंध का मामला सामने आ गया था. उन्होंने ममता से शादी करना सिरे से मना कर दिया था.

इस पर गगन न तो पिता का विरोध कर पाया, और न ही ममता की भावनाओं की कद्र. और फिर गगन की शादी 6 जुलाई 2018 को मुरादाबाद में ही बलदेवपुरी थाना कटघर निवासी कुंदन कुमार की बेटी राधा से हो गई.

गगन का राधा के साथ शादी होना ममता को अच्छा नहीं लगा. वह खुल कर विरोध नहीं कर पाई, लेकिन भीतर ही भीतर नफरत की आग में जल उठी. इस का जिक्र उस ने कई बार अपने दूसरे दोस्तों से भी किया, वह अकसर महीने-2 महीने के लिए दूसरे शहर चली जाया करती थी और लोगों को कभी बरेली तो कभी लखनऊ में नौकरी लगने की बातें बताती रहती थी.

यहां तक कि वह अपने मातापिता से अलग किराए का कमरा ले कर रहने लगी थी. वह जिगर कालोनी में स्थित एक्सपोर्ट फर्म में काम करती थी.

वह प्रदीप को भी ताने मारती थी, जो उस के दूर का रिश्तेदार था. ममता ने प्रदीप को एक बार तो साफसाफ कह दिया था कि जब तक गगन रहेगा तब तक उस की नंदिनी से शादी नहीं हो पाएगी.

यही बात वह नंदिनी को भी ताना देते हुए अकसर कहती थी कि गगन उसे उस के प्रेमी प्रदीप से कभी मिलने नहीं देगा. गगन भले ही उस का सौतेला भाई है, लेकिन उस की पिता की संपत्ति का वारिस वही बनेगा.

उस दिन बाजार में ममता ने नंदिनी को एक बार फिर उस के हरे जख्म को कुरेद दिया था. ममता से बात कर के नंदिनी विचलित हो गई थी. गगन चाहता था कि उस की बहन की शादी किसी रोजगारशुदा व्यक्ति से ही हो. इस में उसे सौतेले पिता का भी समर्थन मिला हुआ था.

नंदिनी के पिता हमेशा गगन का पक्ष ले कर नंदिनी को समझाते थे कि प्रदीप न तो बिरादरी का है, और न ही बराबरी का. जबकि इस की नंदिनी के कानों पर जूं तक नहीं रेंगती थी. वह मस्ती में रहती हुई अपनी जिद पर अड़ी थी.

कबाड़ी का कारोबार करने वाले गगन का यही सोचना था कि प्रदीप की निगाह उस के पिता की प्रौपर्टी पर टिकी है. ओमप्रकाश एक्सपोर्ट फर्म में काम करते थे. उन के लाड़प्यार में पली नंदिनी ही घर की देखभाल और खर्च की पूरी जिम्मेदारी संभाले हुई थी.

बाजार और बैंक आदि का हिसाबकिताब नंदिनी के जिम्मे था. फिर भी घर में गगन की ही मनमानी चलती थी. वह पत्नी राधा को इस से दूर रखता था.

नंदिनी नहीं चाहती थी कि उस की शादी किसी दूसरे शहर में हो. वह हमेशा पिता के मकान में ही रहना चाहती थी. प्रदीप को ले कर गगन के साथ नंदिनी का हमेशा झगड़ा होता रहता था.

बात जून 2021 की है. जब एक दिन नंदिनी के साथ गगन का झगड़ा काफी बढ़ गया था. इस कारण गगन अपनी ससुराल जा कर रहने लगा था. तब उस की पत्नी राधा भी अपने मायके में ही थी.

एक तरफ नंदिनी थी, और दूसरी तरफ ममता. दोनों के दिल में गगन को ले कर विरोध की सुलगती चिंगारी जबतब भड़क उठती थी. नंदिनी अपने प्रेमी से शादी में आई बाधा को ले कर परेशान थी तो ममता को गगन से शादी नहीं हो पाने का मलाल था. कारण ममता ने गगन के साथ कई साल साथ गुजारे थे और विवाह होने के कसमेवादे किए थे.

उन पलों को याद करके हुए ममता भावुक हो जाती थी. ममता ने प्रण कर लिया था कि वह गगन को जरूर सबक सिखाएगी. ममता को बस समय का इंतजार था.

नंदिनी से मिलने के बाद ममता ने अपने दिल की भड़ास निकाल दी थी. तभी ममता को मालूम हुआ था कि गगन 2 महीने से अपनी ससुराल बलदेवपुरी में रह रहा है.

नंदिनी से मुलाकात से कुछ दिन पहले ही ममता की मुलाकात प्रदीप से भी हुई थी. उस ने नंदिनी की परेशानी के बारे में उसे जानकारी दे दी थी. उस ने भी बदले की आग में जलती ममता और नंदिनी की पीड़ा गहराई से महसूस की. जल्द ही तीनों ने गगन को लक्ष्य बना कर एक मीटिंग की. विशेषकर नंदिनी और ममता ने प्रदीप को अपनी योजना में शामिल कर लिया.

योजना के मुताबिक प्रदीप ने अपने एक दोस्त वीरू उर्फ हरीश को भी साथ ले लिया. वीरू मुरादाबाद में थाना मझोला के गांव जयंतीपुर का रहने वाला एक बदमाश किस्म का युवक था.

तीनों ने वीरू से गगन को ठिकाने लगाने की बात कही. उन्होंने बदले में उसे 50 हजार रुपए दिए. दरअसल, नंदिनी और ममता ने मिल कर प्रदीप के माध्यम से गगन को रास्ते से हमेशा के लिए हटाने की योजना बनाई थी.

योजना के अनुसार नंदिनी ने ममता को गगन का मोबाइल नंबर दिया. ममता ने अपने पूर्व प्रेमी गगन को काल की, ‘‘हैलो गगन.’’

‘‘हां, कौन?’’ गगन ने पूछा

‘‘अरे मुझे पहचाना नहीं, मैं तुम्हारी ममता बोल रही हूं.’’ ममता ने उलझाया मीठी बातों में गगन अचानक ममता की आवाज सुन कर एकदम से भौचक्का रह गया. भले ही ममता से उस की शादी नहीं हुई थी, किंतु उस के दिल में ममता अभी भी बसी हुई थी. न चाहते हुए भी अचरज से बोला, ‘‘चलो, तुम्हें मेरी याद तो आई.’’

‘‘मुझ से मिलोगे नहीं? तुम्हें तो पता ही होगा कि अब मेरा घर वालों से कोई वास्ता नहीं रहा. मैं बंगला गांव में रह रही हूं किराए पर. पास ही जिगर कालोनी में जौब करती हूं, फोन में तुम्हारा नंबर अचानक दिख गया तो तुम्हारी याद आ गई. फिर मैं ने फोन कर लिया.’’ ममता बोली.

अगले भाग में पढ़ें- गगन को झाडि़यों में ले गई ममता

10 साल- भाग 2: क्यों नानी से सभी परेशान थे

Writer- लीला रूपायन

मेरी नानी से सभी बहुत परेशान थे. मैं तो डर के मारे कभी नानी के पास जाती ही नहीं थी. मुझे देखते ही उन के मुंह से जो स्वर निकलते, वे मैं तो क्या, मेरी मां भी नहीं सुन सकती थीं. कहतीं, ‘बेटी को जरा संभाल कर रख. कमबख्त, न छाती ढकती है न दुपट्टा लेती है. क्या खजूर की तरह बढ़ती जा रही है. बड़ी जवानी चढ़ी है, न शर्म न हया.’ बस, इसी तरह वृद्धों को देखदेख कर मेरे कोमल मन में वृद्धावस्था के प्रति भय समा गया था. वृद्धों को प्यार करो तो चैन नहीं, उन से न बोलो तो भी चैन नहीं. बीमार पड़ने पर उन्हें पूछने जाओ तो सुनने को मिलता, ‘देखने आए हो, अभी जिंदा हूं या मर गया.’ उन्हें किसी भी तरह संतोष नहीं.हमारे पड़ोस वाले बाबाजी का तो और भी बुरा हाल था. वे 12 बजे से पहले कुछ नहीं खाते थे. बेचारी बहू उन के पास जा कर पूछती, ‘बाबा, खाना ले आऊं?’

‘यशवंत खा गया क्या?’ वे पूछते.

‘नहीं, 1 बजे आएंगे,’ बहू उत्तर देती.

‘अरे, तो मैं क्या उस से पहले खा लूं? मैं क्या भुक्खड़ हूं? तुम लोग सोचते हो मैं ने शायद जिंदगी में कभी खाना नहीं खाया. बडे़ आए हैं मुझे खाना खिलाने वाले. मेरे यहां दसियों नौकर पलते थे. तुम मुझे क्या खाना खिलाओगे.’ बहू बेचारी मुंह लटकाए, आंसू पोंछती हुई चली आती. कुछ दिन ठीक निकल जाते. बेटे के साथ बाबा खाना खाते. फिर न जाने क्या होता, चिल्ला उठते, ‘खाना बना कि नहीं?’

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‘बस, ला रहा हूं, बाबा. मैं अभी तो आया हूं,’ बेटा प्यार से कहता. ‘हांहां, अभी आया है. मैं सब समझता हूं. तुम मुझे भूखा मार डालोगे. अरे, मैं ने तुम लोगों के लिए न दिन देखा न रात, सबकुछ तुम्हारे लिए जुटाता रहा. आज तुम्हें मेरी दो रोटियां भारी पड़ रही हैं. मेरे किएकराए को तुम लोगों ने भुला दिया है. बीवियों के गुलाम हो गए हो.’ फिर तो चुनचुन कर उन्हें ऐसी गालियां सुनाते कि सुनने वाले भी कानों में उंगली लगा लेते. बहूबेटे क्या, वे तो अपनी पत्नी को भी नहीं छोड़ते थे. उन के पांव दबातेदबाते बेचारी कभी ऊंघ जाती तो कयामत ही आ जाती. बच्चे कभी घर का सौदा लाने को पैसे देते तो अपने लिए सिगरेट की डब्बियां ही खरीद लाते. न जाने फिर मौका मिले कि नहीं. सिगरेट उन के लिए जहर थी. बच्चे मना करते तो तूफान आ जाता.

यह वृद्धावस्था सचमुच ही बड़ी बुरी है. मालूम नहीं लोगों की उम्र इतनी लंबी क्यों होती है? अगर उम्र लंबी ही होनी हो तो उन में कम से कम सामंजस्य स्थापित करने की तो बुद्धि होनी चाहिए? ‘अगर मेरी भी उम्र लंबी हुई तो क्या मैं भी अपने घरवालों के लिए सनकी हो जाऊंगी? क्या मैं अपनी मिट्टी स्वयं ही पलीद करूंगी?’ हमेशा यही सोचसोच कर मैं अपनी सुंदर जवानी को भी घुन लगा बैठी थी. बारबार यही खयाल आता, ‘जवानी तो थोड़े दिन ही अपना साथ देती है और हम जवानी में सब को खुश रखने की कोशिश भी करते हैं. लेकिन यह कमबख्त वृद्धावस्था आती है तो मरने तक पीछा नहीं छोड़ती. फिर अकेली भी तो नहीं आती, अपने साथ पचीसों बीमारियां ले कर आती है. सब से बड़ी बीमारी तो यही है कि वह आदमी को झक्की बना देती है.’

इसी तरह अपने सामने कितने ही लोगों को वृद्धावस्था में पांव रखते देखा था. सभी तो झक्की नहीं थे, उन में से कुछ संतोषी भी तो थे. पर कितने? बस, गिनेचुने ही. कुछ बच्चों की तरह जिद्दी देखे तो कुछ सठियाए हुए भी.देखदेख कर यही निष्कर्ष निकाला था कि कुछ वृद्ध कैसे भी हों, अपने को तो समय से पहले ही सावधान होना पड़ेगा. बाकी वृद्धों के जीवन से अनुभव ले कर अपनेआप को बदलने में ही भलाई है. कहीं ऐसा न हो कि अपने बेटे ही कह बैठें, ‘वाह  मां, और लोगों के साथ तो व्यवहार में हमेशा ममतामयी बनी रही. हमारे परिवार वाले ही क्या ऐसे बुरे हैं जो मुंह फुलाए रहती हो?’ लीजिए साहब, जिस बात का डर था, वही हो गई, वह तो बिना दस्तक दिए ही आ गई. हम ने शीशे में झांका तो वह हमारे सिर में झांक रही थी. दिल धड़क उठा. हम ने बिना किसी को बताए उसे रंग डाला. मैं ने तो अभी पूरी तरह उस के स्वागत की तैयारी ही नहीं की थी. स्वभाव से तो हम चुस्त थे ही, इसीलिए हमारे पास उस के आने का किसी को पता ही नहीं चला. लेकिन कई रातों तक नींद नहीं आई. दिल रहरह कर कांप उठता था.

अब हम ने सब पर अपनी चुस्ती का रोब जमाने के लिए अपने काम की मात्रा बढ़ा दी. जो काम नौकर करता था, उसे मैं स्वयं करने लगी. डर था न, कोई यह न कह दे, ‘‘क्या वृद्धों की तरह सुस्त होती जा रही हो?’’ज्यादा काम करने से थकावट महसूस होने लगी. सोचा, कहीं ऐसा न हो, अच्छेखासे व्यक्तित्व का ही भुरता बन कर रह जाए. फिर तो व्यक्तित्व का जो थोड़ाबहुत रोब है, वह भी छूमंतर हो जाएगा. क्यों न कोई और तरकीब सोची जाए. कम से कम व्यक् तित्व तो ऐसा होना चाहिए कि किसी के बाप की भी हिम्मत न हो कभी हमें वृद्धा कहने की. अब मैं ने व्यायाम की कई किताबें मंगवा कर पढ़नी शुरू कर दीं. एक किताब में लिखा था, कसरत करने से वृद्धावस्था जल्दी नहीं आती और काम करने की शक्ति बढ़ जाती है. गुस्सा भी अधिक नहीं करना चाहिए. बस, मैं ने कसरत करनी शुरू कर दी. गुस्सा भी पहले से बहुत कम कर दिया.पूरा गुस्सा इसलिए नहीं छोड़ा ताकि सास वाली परंपरा भी न टूटे. हो सकता है कभी इस से काम ही पड़ जाए. ऐसा न हो, छोड़ दिया और कभी जरूरत पड़ी तो बुलाने पर भी न आए. फिर क्या होगा? परंपरा है न, अपनी सास से झिड़की खाओ और ज ब सास बनो तो अपनी बहू को बीस बातें सुना कर अपना बदला पूरा कर लो. फिर मैं ने तो कुछ ज्यादा ही झिड़कियां खाई थीं, क्योंकि हमें दोनों लड़कों को डांटने की आदत नहीं थी. यही खयाल आता था, ‘अपने कौन से 10-20 बच्चे हैं. लेदे कर 2 ही तो लड़के हैं. अब इन पर भी गुस्सा करें तो क्या अच्छा लगेगा? फिर नौकर तो हैं ही. उन पर कसर तो पूरी हो ही जाती है.’

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मेरे बच्चे अपनी दादी से जरा अधिक ही हिलमिल जाते थे. यही हमारी सास को पसंद नहीं था. एक उन का चश्मा छिपा देता तो दूसरा उन की चप्पल. यह सारा दोष मुझ पर ही थोपा जाता, ‘‘बच्चों को जरा भी तमीज नहीं सिखाई कि कैसे बड़ों की इज्जत करनी चाहिए. देखो तो सही, कैसे बाज की तरह झपटते हैं. न दिन को चैन है न रात को नींद. कमबख्त खाना भी हराम कर देते हैं,’’ और जो कुछ वे बच्चों को सुनाती थीं, वह इशारा भी मेरी ओर होता था, ‘‘कैसी फूहड़ है तुम्हारी मां, जो तुम्हें इस तरह ‘खुला छोड़ देती है.’’ मेरी समझ में यह कभी नहीं आया, न ही पूछने की हिम्मत हुई कि ‘खुला छोड़ने से’ आप का क्या मतलब है, क्योंकि इंसान का बच्चा तो पैदाइश से ले कर वृद्धावस्था तक खुला ही रहता है. हां, गायभैंस के बच्चे की अलग बात है.

औरत एक पहेली- भाग 2: विनीता के मृदु स्वभाव का क्या राज था

आते ही वह सब के साथ घुलमिल कर बातें करने लग जातीं. रसोईघर में पटरे पर बैठ कर आग्रह कर के मुझ से दाल- रोटी ले कर खा लेतीं.

मैं संकोच से गड़ जाती. उन्हें फल, मिठाइयां लाने को मना करती, परंतु वह नहीं मानती थीं. संदीप मुझ से कहते, ‘‘विनीताजी जो करती हैं, उन्हें करने दिया करो. मना करने से उन का दिल दुखेगा. उन के अपने बच्चे नहीं हैं इसलिए वह हमारे बच्चों पर अपनी ममता लुटाती रहती हैं.’’

मैं परेशान सी हो उठती. भरेपूरे शरीर की स्वामिनी विनीता के अंदर ऐसी कौन सी कमी है, जिस ने उन्हें मातृत्व से वंचित कर दिया है. मैं उन के प्रति असीम सहानुभूति से भर उठती थी. एक दिन मन का क्षोभ संदीप के सामने प्रकट किया तो उन्होंने बताया, ‘‘विनीताजी के पति अपाहिज हैं. बच्चा पैदा करने में असमर्थ हैं. एक आपरेशन के दौरान डाक्टरों ने गलती से उन की शुक्राणु वाली नस काट दी थी.’’

मैं और अधिक सहानुभूति से भर उठी.

संदीप बताते रहे, ‘‘विनीताजी के पति की प्रथम पत्नी का एक पुत्र उन के साथ रहता है, जिसे उन्होंने मां की ममता दे कर बड़ा किया है. इतनी बड़ी फर्म, दौलत, प्रसिद्धि सबकुछ विनीताजी के अटूट परिश्रम का सुखद परिणाम है.’’

अचानक मेरे मन में खयाल आया, ‘विनीता की गुप्त बातों की जानकारी संदीप को कैसे हो गई? कब और कैसे दोनों के बीच इतनी अधिक घनिष्ठता हो गई कि वे दोनों यौन संबंधों पर भी चर्चा करने लगे.’

मैं ने इस विषय में संदीप से प्रश्न किया तो वह झेंप कर खामोश हो गए.

मेरे अंतर में संदेह का कीड़ा कुलबुला उठा था. मुझे लगने लगा कि विनीता अकारण ही हम लोगों से आत्मीयता नहीं दिखलाती हैं. वह हमारे बच्चों पर खर्च कर के हमारे घर में अपना स्थान बनाना चाहती हैं. कोई ऐसे ही तो किसी को हजारों का कर्जा नहीं दिलवा सकता. इन सब का कारण संदीप के प्रति उन का आकर्षण भी तो हो सकता है.

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संदीप 50 वर्ष के होने पर भी स्वस्थ, सुंदर थे. शरीर सौष्ठव के कारण अपनी आयु से कई वर्ष छोटे दिखते थे. किसी समआयु की महिला का उन की ओर आकर्षित हो जाना आश्चर्य की बात नहीं थी.

मैं सोचने लगी, ‘विनीता जैसी सुंदर महिला एक अपाहिज आदमी के साथ संतुष्ट रह भी कैसे सकती है?’ मुझे अपना घर उजड़ता हुआ लगने लगा था.

अब जब भी विनीता मेरे घर आतीं, मेरा मन उन के प्रति कड़वाहट से भर उठता था. उन की मधुर मुसकराहट के पीछे छलकपट दिखाई देने लगता. ऐसा लगता जैसे विनीता अपनी दौलत के कुछ सिक्के मेरी झोली में डाल कर मुझ से मेरी खुशियां और मेरा पति खरीद रही हैं. मुझे विनीता, उन की लाई गई वस्तुओं और उन की दौलत से नफरत होती चली गई.

मैं ने उन के दफ्तर जाना बंद कर दिया. वह मेरे घर आतीं तो मैं बीमारी या व्यस्तता का बहाना बना कर उन्हें टालने का प्रयास करने लगती थी. मेरे बच्चे और संदीप उन के आते ही उन की आवभगत में जुटने लगते थे. यह सब देख मुझे बेहद बुरा लगने लगता था.

मैं विनीता के जाने के पश्चात बच्चों को डांटने लगती, ‘‘तुम सब लालची प्रवृत्ति के क्यों बनते जा रहे हो? क्यों स्वीकार करते हो इन के लाए उपहार? इन से इतनी अधिक घनिष्ठता किसलिए? कौन हैं यह हमारी? मकान बन जाएगा, फिर हमारा और इन का रिश्ता ही क्या रह जाएगा?’’

बच्चे सहम कर मेरा मुंह देखते रह जाते क्योंकि अभी तक मैं ने उन्हें अतिथियों का सम्मान करना ही सिखाया था. विनीता के प्रति मेरी उपेक्षा को कोई नहीं समझ पाता था. सभी  मेरी मनोदशा से अनभिज्ञ थे. मकान के किसी कार्यवश जब भी संदीप मुझ से विनीता के दफ्तर चलने को कहते, मैं मना कर देती. वह अकेले चले जाते तो मैं मन ही मन कुढ़ती रहती, लेकिन ऊपर से शांत बनी रहती थी.

मैं संदीप को विनीता के यहां जाने से नहीं रोकती थी. सोचती, ‘मर्दों पर प्रतिबंध लगाना क्या आसान काम है? पूरा दिन घर से बाहर बिताते हैं. कोई पत्नी आखिर पति का पीछा कहां तक कर सकती है?’

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मेरे मनोभावों से बेखबर संदीप जबतब विनीता की प्रशंसा करने बैठ जाते. अकसर कहते, ‘‘विनीताजी से मुलाकात नहीं हुई होती तो हमारा मकान इतनी जल्दी नहीं बन पाता.’’

कभी कहते, ‘‘विनीताजी दिनरात परिश्रम कर के हमारा मकान इस प्रकार बनवा रही हैं जैसे वह उन का अपना ही मकान हो.’’

शैतान भाग 3 : अरलान ने रानिया के साथ कौन सा खेल खेला

किचन के पास उसे अरसलान मिल गया. उस ने उसे देखते ही कहा, ‘‘अरसलान, मैं ने फैसला कर लिया है कि मैं तुम्हारी जिंदगी से निकल जाऊंगी, पर तुम फिजा को मुझे दे दो.’’

‘‘यह क्या बकवास है?’’ वह उलझ कर बोला.

‘‘यह बकवास नहीं है, वकील से कह कर एक दस्तावेज तैयार कराओ, जिस में लिखा हो, अगले 10 सालों तक तुम मुझे फिजा का गार्जियन रख रहे हो. मैं जहां रहूंगी, फिजा वहीं रहेगी. तुम हर महीने खर्चे की रकम देते रहोगे? मैं एक फ्लैट अलग ले लूंगी.’’

‘‘मैं तुम्हें वहीं फ्लैट दे दूंगा, जहां हम मिलते थे.’’

‘‘पर तुम वहां नहीं आ सकोगे. हफ्ते में एक बार आप बच्ची को बाहर ले जा सकते हो.’

‘‘ठीक है, मैं वकील से बात करता हूं.’’ उस ने कहा.

ठीक 11 बजे रानिया ड्राइंगरूम में पहुंच गई, जहां सब लोग इकट्ठे थे. वह एक कोने के सोफे पर फिजा को गोद में ले कर बैठ गई. वहां सोनिया के डाक्टर व उस के दफ्तर के मैनेजर राशिदी भी थे. वकील ने वसीयत के बारे में कहना शुरू किया, ‘‘वसीयत के मुताबिक जिन को यहां होना चाहिए, वे यहां हैं, पर यहां ज्यादा लोग नहीं रह सकते. इसलिए मिस कंजा और खाला आप बाहर चली जाएं प्लीज. यह कानूनी मामला है.’’

कंजा ने घूर कर वकील को देखा, फिर अरसलान की तरफ इस उम्मीद से देखा कि शायद वह रोक लेगा. पर वह सिर झुकाए बैठा रहा. दोनों गुस्से से बाहर निकल गईं.

वकील ने कहना शुरू किया, ‘‘वसीयत डेढ़ माह पहले लिखी गई थी. डाक्टर साहब और मैनेजर राशिदी इस के गवाह हैं. इस पर सिविल जज के साइन करवा लिए गए हैं. सारा काम पक्का है.’’

अरसलान बेचैन हो कर बोला, ‘‘यह सारी बातें छोडि़ए, आप वसीयत पढ़ कर सुनाइए.’’

‘‘वसीयत के मुताबिक सोनिया मैडम की तमाम जायदाद की वारिस उन की बेटी फिजा है.’’ वकील ने कहा.

‘‘बकवास है, इतनी सी बच्ची यह बिजनैस और कारखाना कैसे चला सकती है?’’ अरसलान ने गुस्से से कहा.

‘‘इस की चिंता आप मत कीजिए अरसलान मियां. इस के लिए सोनिया मैडम ने 4 लोगों की एक कमेटी बना दी है. जिस में मैनेजर राशिदी, डाक्टर साहब, उन के पापा के दोस्त अजमल साहब और मैं शामिल हूं. हम सब के काम की निगरानी रानिया को सौंपी गई है.’’ वकील ने कहा.

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‘‘ऐसा कैसे हो सकता है?’’ अरसलान ने चिढ़ कर कहा.

‘‘यह इस तरह हो सकता है अरसलान साहब कि सोनिया को आप पर भरोसा नहीं था. वह जानती थी कि आप अपनी नई जिंदगी में मगन हो कर फिजा को भूल जाएंगे या आप उसे अपने रास्ते से हटा देंगे.’’

‘‘वसीयत में मेरे लिए क्या हुक्म है?’’ अरसलान ने धीरे से पूछा.

‘‘आप की किस्मत का फैसला रानिया मैडम के हाथों है, क्योंकि सोनिया मैडम सारे अधिकार उन्हें दे गई हैं.’’ वकील साहब ने कहा, ‘‘कमेटी के सारे काम भी रानिया मैडम से पूछ कर उन की ही सलाह से होंगे. सोनिया मैडम एक खत भी रानिया मैडम के लिए छोड़ गई हैं.’’

यह सुन कर रानिया मन ही मन शर्मिंदा हो गई. उस ने दिल ही दिल में सोनिया का शुक्रिया अदा किया.

वकील साहब ने कागजात देख कर कहा, ‘‘अरसलान, आप के लिए वसीयत में खास हिदायतें हैं. आप जनरल मैनेजर राशिदी और रानिया की इजाजत से ही औफिस जा सकते हैं और इन की मरजी से ही आप को काम मिलेगा. एक खास शर्त उन्होंने यह रखी है कि इस कोठी में आप तभी रह सकते हैं, जब आप रानियाजी से शादी कर लेंगे और बाहर कोई अफेयर नहीं चलाएंगे.’’

अरसलान गुस्से से तिलमिला कर बोला, ‘‘यह आप सब की मिलीभगत है. आप सब ने मेरे खिलाफ साजिश रची है. मैं इस के खिलाफ अदालत जाऊंगा.’’

‘‘अरसलान साहब, आप कोर्ट जाने की तो बात भी न करें, मेरे पास इस की रिपोर्ट मौजूद है कि सोनियाजी को दवा के कैप्सूल में जहर दिया गया था.’’ डाक्टर साहब बोले.

यह सुन कर अरसलान डर कर चुप हो गया. सोनिया ने एक खत रानिया के लिए भी लिखा था. उस खत को पढ़ने के लिए वह दूसरे कमरे में चली गई. खत खोल कर उस ने उसे पढ़ना शुरू किया—

‘मेरी दोस्त रानिया, शायद मेरी सौंपी गई जिम्मेदारी बहुत ज्यादा है, पर मुझे यकीन है कि मोहब्बत में तुम सब निभा लोगी. अरसलान सिर्फ दौलत से प्यार करता है, इसलिए मैं ने उसे अपनी वसीयत में कुछ नहीं दिया है. अब यह तुम्हारे हाथ में है कि तुम उस के झांसे में न आओ और मेरे बिजनैस से उसे दूर रखो. वह एक बेवफा अय्याश इंसान है.’

रानिया ने इतना ही पढ़ा था कि उसे दरवाजे पर आहट महसूस हुई. देखा तो अरसलान सामने खड़ा था. वह धीरे से बोला, ‘‘रानिया, मैं अपनी भूलों का प्रायश्चित करता हूं. अब मैं तुम से शादी करना चाहता हूं. सारी उम्र मैं तुम्हारा वफादार रहूंगा, यह वादा है.’’

‘‘अरसलान, मेरा दिल सोनिया जितना बड़ा नहीं है, फिर भी मैं एक फैसले पर पहुंच गई हूं. यह फैसला मैं सब के सामने सुनाना चाहती हूं.’’ कह कर रानिया ड्राइंगरूम की तरफ बढ़ी. वह पीछे चलतेचलते गिड़गिड़ाया, ‘‘रानिया, मुझे एक मौका दो.’’

‘‘मेरे पास अब तुम्हें देने को कुछ नहीं है.’’

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‘‘तुम किसी से शादी तो करोगी ही, फिर मैं क्या बुरा हूं. देखो मैं फिजा का बाप हूं. कम से कम इस बात को तो ध्यान में रखो.’’

‘‘मैं ने इंकार नहीं किया है अरसलान. अभी मेरा फैसला सुनाना बाकी है.’’ वह बोली.

ड्राइंगरूम में सब मौजूद थे. वकील साहब ने कहा, ‘‘मिस रानिया, हम सब आप का फैसला जानना चाहते हैं.’’

रानिया ने आत्मविश्वास से कहा, ‘‘मैं सपनों में रहने वाली एक आम सी लड़की थी. मैं ने भी अरसलान साहब जैसे खूबसूरत इंसान को अपने ख्वाबों में बसाया था. जब यह भी मुझ पर मेहरबान हुए तो मैं ने इन्हें देवता समझ कर इन की हर बात मानी, पर मुझे नहीं पता था कि यह देवता के रूप में एक शैतान हैं.’’

‘‘रानिया मेरी बात सुनो…’’ अरसलान ने बीच में टोका.

‘‘अरसलान साहब, मुझे अपनी बात पूरी करने दीजिए.’’ अरसलान को चुप कराते हुए रानिया बोली, ‘‘सब कुछ लुट जाने के बाद आज मेरी आंखें खुलीं तो अरसलान साहब चाहते हैं कि मैं वही गलती दोबारा करूं. लेकिन मैं ऐसा नहीं करूंगी. मेरी मंजिल फिजा की अच्छी देखभाल और बेहतरीन परवरिश है.’’

रानिया का फैसला सुन कर अरसलान का चेहरा लटक गया. उस ने आगे कहा, ‘‘अरसलान साहब, हर सूरत में आप आज शाम 5 बजे से पहले यह घर छोड़ देंगे. और जब तक आप घर नहीं छोड़ेंगे, ये तमाम लोग यहीं रहेंगे. फिजा की गार्जियन होने के नाते उस की हिफाजत के लिए यह मैं जरूरी समझती हूं.’’

अरसलान एकदम से उठ खड़ा हुआ और गुस्से से बोला, ‘‘यह मेरा घर है, मुझे यहां से कोई नहीं निकाल सकता और तेरी तो औकात ही क्या है?’’

रानिया ने वकील की तरफ देख कर कहा, ‘‘वकील साहब, इन्हें बताइए कि जब तक फिजा बालिग नहीं हो जाती, तब तक इस घर की मालिक मैं हूं और उस की भलाई और हिफाजत के लिए मेरा यह फैसला जरूरी है.’’

वकील ने सख्त लहजे में कहा, ‘‘अरसलान साहब, आप वसीयत लागू करवाने में जरा सी भी अड़चन डालेंगे तो हम पुलिस व कोर्ट की मदद लेंगे. फिर आप का क्या अंजाम होगा, आप समझ सकते हैं.’’

अरसलान बैठ गया. रानिया ने कागजात देखते हुए कहा, ‘‘अरसलान साहब, आप अपने साथ अपनी जरूरत की चीजें ले जा सकते हैं. अगर आप इसी शहर में रहना चाहते हैं तो मैनेजर राशिदी आप को हर महीने 10 हजार रुपए देंगे और अगर आप दुबई वाले औफिस में काम करना चाहते हैं तो हर माह आप को तनख्वाह 4 हजार दरहम मिलेगी. रहने का इंतजाम औफिस की तरफ से होगा. यह आप की मरजी है, जहां आप जाना चाहें.’’

अरसलान के चेहरे पर मुर्दनी छा गई. उस ने मरी सी आवाज में कहा, ‘‘मैं दुबई के औफिस जाना चाहूंगा.’’

‘‘राशिदी साहब, आप अरसलान साहब को दुबई भिजवाने का इंतजाम करा दीजिए. इन्हें खर्च वगैरह दे दीजिएगा. मैं काम से बाहर जा रही हूं. 5 बजे तक आ जाऊंगी. तब तक घर साफ हो जाना चाहिए.’’ रानिया ने मजबूत लहजे में कह कर फिजा को गोद में लिया और बाहर निकल गई. राशिदी उसे बाहर तक छोड़ने आए. चलतेचलते उन्होंने कहा, ‘‘मैडम, यह अच्छा हुआ कि वह दुबई जा रहा है. वहां का जीएम बहुत तेज है. वह उसे सही तरीके से हैंडल करेगा और हमारी भी परेशानी खत्म हो गई.’’

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‘‘हां राशिदी साहब, सोनियाजी ने जो कुछ किया, बहुत सोचसमझ कर किया. अगर वह यहीं रहता तो दिमाग पर एक बोझ सा रहता.’’

रानिया ने गाड़ी में बैठते हुए ड्राइवर से कहा, ‘‘कब्रिस्तान चलो.’’

राशिदी ने सोचा कि सोनिया के पास जा कर उस के एहसानों का शुक्रिया अदा करेंगी. कब्रिस्तान में सोनिया की कब्र के पास बैठ कर रानिया ने कहा था कि अब वह ख्वाबों की दुनिया से निकल कर हकीकत की जमीन पर खड़ी है. वह फिजा की पूरे दिल से देखभाल व परवरिश करेगी. उसे मां का प्यार देगी. कभी पीछे मुड़ कर मोहब्बत की तरफ नहीं देखेगी. कभी कोई शिकायत का मौका नहीं देगी. यही उस का मरहूमा सोनिया से वादा था.

Manohar Kahaniya: आस्था की चोट- भाग 1

सौजन्य- मनोहर कहानियां

Writer- शाहनवाज 

बिजनैसमैन अरुण और डा. आस्था की गृहस्थी की गाड़ी हंसीखुशी से चल रही थी. लेकिन उन दोनों के बीच आए ‘वो’ ने गृहस्थी में नफरत का बीज अंकुरित कर दिया. इसी बीच डा. आस्था ने पति अरुण को ऐसी ठेस पहुंचाई कि अरुण ने एक खतरनाक फैसला ले लिया. फिर जो हुआ…

13अक्तूबर, 2021 की देर शाम को करीब साढ़े 8 बज रहे थे. उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में सिविल

लाइंस के रहने वाले तरुण अग्रवाल, अपने छोटे भाई अरुण अग्रवाल, जोकि अलीगढ़ शहर की रमेश विहार कालोनी में अपने परिवार के साथ रहता था, के घर पर पहुंचा था. तरुण का घर अरुण के घर से मात्र 20 मिनट की दूरी पर था, जो वह अकसर अपनी बाइक से तय किया करता था.

दरअसल, एक दिन पहले ही अरुण अपने दोनों बच्चों को तरुण के घर पर छोड़ने आया था और आज तरुण अपने भतीजेभतीजी के कपड़े लेने अरुण के घर पर आया था.

तरुण ने अपनी बाइक अरुण के घर के आगे रोकी और बाहर से देखा तो घर पर अंधेरा और काफी शांति छाई हुई थी. घर के बाहर बरामदे में बस एक लाइट ही जल रही थी, जिस से बाहर गली तक थोड़ीबहुत रौशनी फैल रही थी.

बाइक से उतर कर तरुण बरामदे से होते हुए मकान के मेनगेट पर पहुंचा तो देखा कि दरवाजे पर ताला लटका हुआ है. दरवाजे पर ताला लटका देख तरुण को थोड़ी हैरानी हुई कि अभी तक तो डा. आस्था (अरुण की पत्नी) घर वापस आ जाया करती है.

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उस ने डा. आस्था को फोन लगाया लेकिन आस्था का नंबर स्विच्ड औफ होने की वजह से कोई जवाब नहीं मिला. आस्था के बाद उस ने अरुण के नंबर पर भी फोन लगाया, लेकिन अफसोस अरुण का नंबर भी स्विच्ड औफ ही मिला. उस ने मकान के बाहर बरामदे पर नीचे बैठ कर 15-20 मिनट तक इंतजार किया, लेकिन घर खोलने के लिए कोई नहीं आया. काफी देर तक इंतजार करने के बाद हार मान कर तरुण ने अपनी जेब में हाथ डाला, अरुण के घर की चाबी निकाली और मेन गेट खोलने के लिए आगे बढ़ा.

दरअसल तरुण को अरुण ने ही पिछले दिन अपने घर की चाबी दी थी, लेकिन वह खुद दरवाजा नहीं खोलना चाहता था. वह नहीं चाहता था कि गलीमोहल्ले में अपने भाई के घर का दरवाजा खोलते हुए कोई उसे देखे और अपने मन में क्याक्या सोच ले. इसलिए दरवाजा खोलने से पहले काफी देर तक उस ने इंतजार किया. लेकिन जब कोई उम्मीद उसे नहीं दिखी तब जा कर उस ने अपने पास मौजूद चाबी से दरवाजा खोलना बेहतर समझा.

दरवाजा खोल कर तरुण ने सब से पहले कमरे की सभी लाइट्स औन कीं. कमरे का सारा सामान व्यवस्थित तरीके से अपनी जगह पर मौजूद था. उस ने सब से पहले बच्चों के कमरे में जा कर अलमारी से उन के 2-2 जोड़ी कपड़े निकाले और अपने हाथों में मौजूद कपड़े के थैले में उन्हें डाल दिया.

काफी देर तक बाहर इंतजार करने की वजह से तरुण का गला सूख गया था और उसे प्यास लगने लगी थी. क्योंकि तरुण अब घर के अंदर ही था तो वह घर में किचन की ओर बढ़ा.

किचन में पहुंच कर फ्रिज से पानी की बोतल निकाली और पानी पीते हुए उस की नजर छत की ओर गई. छत पर उस ने ऐसा कुछ देखा, जिस से उस की चीख निकल गई.

वह इतनी तेज चीखा कि उस का शोर घर के बाहर गली तक पहुंच गया था. चीख सुन कर गली के लोग चौंकते हुए वहां आ गए और अरुण के घर के आगे जमावड़ा लगा लिया.

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दरअसल, छत की तरफ तरुण ने एक लाश को लटका हुआ पाया जोकि किसी और की नहीं, बल्कि उस के छोटे भाई की पत्नी डा. आस्था की थी. तरुण बेशक से पानी पी चुका था लेकिन आस्था की लटकी हुई लाश देख कर उस का मन इतना बेचैन हो उठा और उस की दिलों की धड़कन इतनी तेज हो गई कि उसे फिर से प्यास महसूस होने लगी.

बहन ने जताया हत्या का शक

वह डरासहमा घर के बाहर आया तो देखा कि कुछ लोगों की भीड़ का जमावड़ा घर के आगे लग चुका था. गली में खड़े लोगों ने बाहर से तरुण को आवाज लगाते हुए पूछा कि आखिर हुआ क्या है. तरुण ने उन के सवालों को नजरअंदाज करते हुए अपनी जेब से फोन निकाला और पुलिस को फोन लगाया.

पुलिस को सूचित करने के बाद उस ने आस्था की छोटी बहन आकांक्षा, जोकि आगरा की रहने वाली थी, को फोन कर सूचना दी फिर घर के बाहर आ कर उस ने गली वालों को इस घटना के बारे में बताया.

अलीगढ़ का क्वार्सी थाना रमेश विहार कालोनी से बहुत दूर नहीं था. कुछ देर में ही पुलिस की टीम अरुण के घर आ पहुंची थी. मामले की जानकारी मिलते ही सीओ (तृतीय) श्वेताभ पांडेय भी तुरंत ही घटनास्थल पर पहुंच गए.

क्वार्सी पुलिस स्टेशन के थानाप्रभारी विजय सिंह, सीओ श्वेताभ पांडेय और उन की टीम घटनास्थल पर पहुंच कर बेहद सावधानी से उस कमरे की ओर आगे बढ़ी, जहां पर डा. आस्था की लाश लटकी हुई थी.

उस कमरे में घुसते ही सीओ श्वेताभ पांडेय को सड़ने की हलकी बदबू महसूस हुई. उन्होंने अपनी जेब से रुमाल निकाल कर अपनी नाक पर रखा. जैसेजैसे वे लाश के नजदीक पहुंचते जा रहे थे, वैसेवैसे बदबू और भी तीखी होती जा रही थी.

डा. आस्था की लाश के करीब पहुंच कर उसी अवस्था में श्वेताभ पांडेय ने डेडबौडी का मुआयना किया. हालांकि प्रथमदृष्टया सभी को यह मामला खुदकुशी का ही लग रहा था लेकिन श्वेताभ पांडेय की नजर एक ऐसी चीज पर गई, जिस से उन के दिमाग से आस्था की खुदखुशी का खयाल चला गया था. उन्होंने देखा कि आस्था की नाक से खून निकल कर सूख चुका था.

श्वेताभ पांडेय ने इस से पहले भी कई खुदखुशी के मामलों का निपटारा किया था, लेकिन कभी किसी भी मामले में इस तरह की चीज देखने को नहीं मिली थी. यह देख कर उन के मन में यह मामला खुदकुशी का कम, हत्या का ज्यादा महसूस होने लगा था.

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श्वेताभ पांडेय और थानाप्रभारी विजय सिंह के मन का शक पत्थर की तरह और मजबूत तब हो गया जब उन्होंने तरुण से मृतका के पति और बच्चों के बारे में पूछताछ की.

तरुण ने उन्हें बताया कि एक दिन पहले ही अरुण अपने बच्चों को उन के घर पर छोड़ कर कहीं चला गया था और बीते कल से ही उस का फोन भी नहीं लग रहा है.

यह सुन कर पुलिस की टीम एकदम से हरकत में आ गई. अभी पुलिस की टीम घटनाथल पर सबूतों के लिए खोजबीन कर ही रही थी कि आगरा से आस्था की छोटी बहन आकांक्षा भी अरुण के घर पर पहुंच गई. आकांक्षा को जब उस की बड़ी बहन के मरने की जानकारी मिली तो पहली ही नजर में उस ने इस घटना को हत्या करार दिया.

जब श्वेताभ पांडेय और विजय सिंह ने इस पूरे मामले को ले कर आकांक्षा से पूछताछ की तो उस ने चौंकाने वाले तथ्य पुलिस के सामने रखे.

आकांक्षा ने पुलिस को बताया कि उस की बहन डा. आस्था और उस के बिजनैसमैन पति अरुण के बीच पिछले काफी लंबे समय से नोकझोंक बनी हुई थी. उस ने बताया कि अरुण आस्था पर बेवजह शक किया करता था कि वह किसी और के साथ प्रेम संबंध में बंधी हुई है, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं था.

अरुण का अपनी पत्नी पर इस तरह से शक करना आस्था को नागवार गुजरता था, जिस के चलते उन दोनों के बीच पिछले कुछ सालों से खूब लड़ाइयां होती थीं. कभीकभार अरुण आस्था पर हाथ भी उठाया करता था.

यह सब कहते हुए आकांक्षा ने अरुण अग्रवाल (आस्था का पति), तरुण अग्रवाल (अरुण का बड़ा भाई), अनुज अग्रवाल (अरुण का छोटा भाई) और अर्पित अग्रवाल (अरुण का दोस्त) पर आस्था की हत्या का इलजाम लगाते हुए इन सभी के खिलाफ रिपोर्ट लिखवाई.

आकांक्षा ने बताया कि आस्था पर शक करने का काम सिर्फ अरुण ही नहीं कर रहा था, बल्कि ये सब लोग आस्था पर हमेशा नजर बनाए रहते थे और झूठी बातें बना कर आस्था को फंसाने का काम किया करते थे.

थानाप्रभारी ने आकांक्षा से पूछताछ करने के बाद आस्था का शव पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. इस के बाद पुलिस मामले की जांच में जुट गई.

क्योंकि यह मामला हाईप्रोफाइल था, इसलिए डा. आस्था के शव का पोस्टमार्टम जल्द ही हो गया. 14 अक्तूबर की शाम को 4 डाक्टरों, जिस में डा. विशाका माधवी, डा. नीरज, डा. अनिल और डा. हारुन शामिल थे, के पैनल ने वीडियोग्राफी के बीच फोरैंसिक टीम की मौजूदगी में आस्था के शव का पोस्टमार्टम किया.

पोस्टमार्टम में पता चला कि डा. आस्था को गला दबा कर मारा गया था. उन के साथ इस से पहले मारपीट हुई थी, जिस से उन के पैरों पर नीले निशान व चेहरे, गरदन आदि पर भी मारपीट की खरोंच के निशान मौजूद थे. पोस्टमार्टम में उन की मौत का कारण गला दबा कर (स्ट्रांगुलेशन) हत्या करना आया था.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद पुलिस को यह गुत्थी सुलझती हुई नजर आ रही थी. इस का अर्थ यह था कि घटना को आत्महत्या दर्शाने के लिए आस्था की लाश को फंदे पर लटकाया गया था.

यह सब साफ होने के बाद पुलिस ने अरुण के बड़े भाई तरुण से पूछताछ की. तरुण पुलिस की पूछताछ के आगे ज्यादा देर तक टिक नहीं पाया.

उस ने पुलिस के सामने साफ शब्दों में इस बात को स्वीकार कर लिया कि अरुण ने उस के घर अपने बच्चों को सौंपते समय उसे आस्था की हत्या की सूचना दे दी थी.

तरुण ने बताई हकीकत

इस के साथ ही उस ने अपने घर की चाबियां भी उसे सौंपी थी ताकि वह अगले दिन शाम को उस के घर जाए और इस मामले को आत्महत्या साबित करे. परंतु अरुण ने तरुण को यह नहीं बताया था कि वह अपने बच्चों को उस के पास छोड़ कर आखिर जा कहां रहा है.

यह सब कुबूल करने के बाद पुलिस ने तरुण को 14 अक्तूबर को गिरफ्तार कर के अगले दिन 15 अक्तूबर को उसे कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया.

लेकिन अब पुलिस को मामले के मुख्य आरोपी अरुण को पकड़ना था. तरुण तो इस हत्या में सिर्फ अरुण का सहयोगी था. उसे पकड़ना पुलिस के लिए काफी नहीं था.

पुलिस ने अपनी इनवैस्टीगेशन और पोस्टमार्टम रिपोर्ट के आधार पर यह भी पता लगा लिया था कि इस हत्याकांड में अकेला अरुण ही शामिल नहीं हो सकता. बल्कि इस में और भी लोगों के शामिल होने की संभावनाएं थीं.

अगले भाग में पढ़ें- आखिर अरुण ने अपनी डाक्टर पत्नी को क्यों मारा

डंकी फ्लाइट: दूसरे देश में घुसने का जोखिम भरा रास्ता

‘मृग मरीचिका’ कहनेसुनने में जितना जादुई शब्द लगता है, असलियत में उतना ही भयानक होता है. यह शब्द उस प्यासे हिरन की कहानी से उपजा है, जो गरम रेत के मरुस्थल में पानी होने का धोखा खाता गया, पर यहांवहां भटकने के बाद भी प्यास से मर गया.

जब किसी इनसान में ऐसी ही ‘मृग मरीचिका’ का भरम होता है, तो वह अपनी जान को जोखिम में डालने से नहीं चूकता है. अब एक और शब्द पर गौर फरमाते हैं, जिसे इंगलिश में ‘डंकी फ्लाइट’ कहते हैं. इस शब्द की तह में जाने से पहले यह जान लें कि अचानक यह शब्द क्यों सुर्खियों में आ गया है?

दरअसल ऐसी खबर आई है कि शाहरुख खान और राज कुमार हिरानी एक फिल्म पर काम कर रहे हैं, जो गैरकानूनी तरीके से किसी दूसरे देश में दाखिल होने वाले लोगों और उन की समस्याओं से जुड़ी हुई बताई जा रही है. शाहरुख खान इस फिल्म ऐसे इनसान का किरदार निभाएंगे, जो विदेश जाने के लालच में अपना सबकुछ दांव पर लगा देता है.

फिल्म की तो छोडि़ए, अगर असली जिंदगी की बात करें तो भारत में ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो किसी भी कीमत पर और किसी भी तरीके से विदेश जाने का नशा पाले रखते हैं.

अकेले पंजाब राज्य के बहुत से नौजवान अमेरिका और कनाडा में घुसने के लिए दलालों को लाखों रुपए देने के लिए तैयार रहते हैं. यही वजह है कि न जाने कितने भारतीय नागरिक अपनी जान जोखिम में डाल कर लैटिन अमेरिका के रास्ते अमेरिका पहुंचने की कोशिश करते हैं.

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मैक्सिको ने साल 2019 में 311 भारतीय लोगों को वापस भारत भेज दिया था. वे सब गैरकानूनी तरीके से बौर्डर पार कर अमेरिका जाने की फिराक में थे. हद तो यह थी कि अमेरिका में घुसने के लिए उन्होंने मानव तस्करों को 20 लाख से 50 लाख रुपए दिए थे.

इन लोगों में से ज्यादातर भारत से पहले इक्वाडोर पहुंचे थे, उस के बाद कोलंबिया, पनामा और होंडुरास होते हुए आखिरकार मैक्सिको पहुंचे थे. उन में से ज्यादातर पंजाब और हरियाणा के किसान परिवारों के बेरोजगार नौजवान थे.

पनामा के जंगलों से गुजरते हुए उन नौजवानों ने कई लाशें देखी थीं, जो शायद उन लोगों की थीं, जो उन की ही तरह गैरकानूनी तरीके से अमेरिका जाना चाहते थे. जंगल में न खाना था और न ही पानी. पकड़े गए बहुत से नौजवानों ने बताया कि प्यास बु?ाने के लिए उन्हें अपनी कमीजों से पसीना निचोड़ कर पीना पड़ा था.

साल 2019 में ही एक बापबेटी की तसवीर ने पूरी दुनिया को ?ाक?ार दिया था, जो नदी के किनारे पड़े हुए थे. वह बाप अपनी मासूम बच्ची को टीशर्ट में छिपाए हुए था.

बाद में पता चला कि वह शख्स एल सल्वाडोर का रहने वाला था, जो अपनी तकरीबन 2 साल की बेटी के साथ अमेरिका में घुसने की कोशिश कर रहा था. रिपोर्टों के मुताबिक, वह आदमी काफी समय से अमेरिका में शरण लेने की कोशिश कर रहा था, पर नाकाम होने के बाद उस ने नदी के रास्ते अमेरिका में घुसने की कोशिश की और यह हादसा हो गया.

अमेरिकी कस्टम ऐंड बौर्डर पैट्रोल के मुताबिक, साल 2018 में मैक्सिको के रास्ते गैरकानूनी तरीके से अमेरिका में घुसने की कोशिश में तकरीबन 9,000 भारतीय लोगों को पकड़ा गया था. साल 2017 के मुकाबले यह तादाद तकरीबन 3 गुना ज्यादा थी. इसी साल अमेरिका की दक्षिणपश्चिमी सीमा के रास्ते गैरकानूनी तरीके से देश में घुसते पकड़े जाने वालों में सब से बड़ा समुदाय भारतीयों का था.

जब ऐसे लोग पकड़े जाते हैं, तो अमेरिका में बसने के लिए तरहतरह की दलील देते हैं, जैसे अपने देश में वे भुखमरी के शिकार हैं या जाति और धर्म के नाम पर उन्हें सताया जाता है या फिर वहां राजनीतिक तौर पर उन पर जुल्म होते हैं.

लेकिन किसी देश में घुसना आसान काम नहीं है. ऐसा ही एक मामला 6 साल की गुरुप्रीत कौर के साथ हुआ था, जो एरिजोना के मरुस्थल में अपनी मां के साथ सीमा पार करते हुए प्यास से मर गई थी.

हरियाणा के फरीदाबाद जिले के गांव में रहने वाले एक नौजवान ने नाम और पता न छापने की शर्त पर बताया कि वह भी एक एजेंट के भरोसे मैक्सिको से अमेरिका में घुसा था. यह 2-3 साल पुरानी बात है और इस के लिए लाखों रुपए का खर्च भी हुआ था.

एजेंट ने पक्के कागज बनवाने का दावा किया था और अमेरिका में घुसने में कोई दिक्कत नहीं होगी, यह भी वादा किया था, पर अमेरिका में जाने के बाद वहां के एयरपोर्ट पर अफसरों को शक हो गया. नौकरी की आस लिए वहां पहुंचे उस नौजवान के कागजात में उन्हें कमी लगी और उसे पूछताछ के बाद एक ऐसे कैंप में, जहां 2,000 से ज्यादा ऐसे लोग थे, जो अमेरिका में घुसने में नाकाम रहे थे.

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उस कैंप में वैसे तो हर तरह की सुविधा थी, खानापीना भी ठीक था, पर तकरीबन 10 महीने वहां रहने के बावजूद उसे अपने घर वालों से बात करने की इजाजत नहीं थी. वहां कई देशों के नौजवान थे, जिन में से ज्यादातर अमेरिका में बसने के लिए अपने घर से निकले थे.

जब उस नौजवान को इस बात की आस खत्म हो गई कि अब वह अमेरिका में किसी तरह दाखिल नहीं हो सकता है तो उस ने वापस लौटने की अपील की, जो वहां से जुड़े जज ने मंजूर कर ली.

क्यों है विदेश का लालच

अगर कानूनी तरीके से किसी देश में जा कर बसना हो, तो बहुत से नियमकानूनों का पालन करना होता है, जो हर किसी के बूते की बात नहीं है और इसीलिए दलाल पैसे ले कर नौजवानों को विदेश भेजने के सब्जबाग दिखाते हैं, जो असलियत के आसपास भी नहीं होते हैं.

सवाल उठता है कि लोग अपनी जान जोखिम में डाल कर विदेश क्यों जाना चाहते हैं? बेरोजगारी इस की सब से बड़ी वजह है. साथ ही, अमेरिका जैसे अमीर देशों की चकाचौंध और डौलर में कमाई का लालच उन्हें वहां जाने को उकसाता है.

हरियाणा और पंजाब के बहुत से किसान अपनी कीमती जमीन की वजह से अमीर हो गए हैं. उन के बच्चे खेती करना नहीं चाहते हैं और पढ़ाईलिखाई में भी वे तीसमारखां नहीं होते हैं. लिहाजा, जमीन बेच कर विदेश में जाना उन्हें आसान और सस्ता सौदा लगता है.

अकेले अमेरिका में साल 2019 में  7,720, साल 2017 में 4,620, साल 2016 में 3,544, साल 2015 में 3,091 और साल 2014 में 1,663 भारतीय मूल के लोग घुसपैठ करते हुए पकड़े गए थे, जिन में महिलाएं और नाबालिग भी शामिल थे.

बहुत से लोग हैं, जो जानते हैं कि इस तरह की समस्याएं आ सकती हैं और बहुत से तो भुगत भी चुके होते हैं, पर फिर भी न जाने क्यों वे इसी उम्मीद में बारबार कोशिश करते रहते हैं कि दांव लगते ही वे अमेरिका में घुस ही जाएंगे.

इस के लिए बहुत से घरपरिवार अपनी जमीन गिरवी रख देते हैं, कई बार बेच भी देते हैं या नातेरिश्तेदारों से उधार या ब्याज पर कर्ज भी ले लेते हैं, पर विदेश जाने की अपनी इच्छा को जिंदा रखते हैं.

मिडिल ईस्ट देशों में भी भारतीयों के जाने का चसका देखा जा सकता है. वहां तो बहुत से शेखों के जोरजुल्म सह रही औरतें डिटेंशन कैंपों से ज्यादा बदहाली में जीती हैं.

साल 2018 की बात करें, तो दुबई की एक गैरसरकारी भारतीय संस्था ‘सरबत दा भला’ के मुताबिक, मिडिल ईस्ट देशों में 100 से ज्यादा पंजाबी महिलाएं अमीर शेखों की कैद में थीं, जो भारत लौटना चाहती थीं.

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ऐसी औरतें जालसाजी और लालची ट्रैवल एजेंटों के चंगुल में फंस कर वहां नरक से बदतर जिंदगी जी रही थीं. इन यातनाओं में मारपीट, यौन शोषण, बहुत ज्यादा काम करवाना या फिर काम के बदले कोई पैसा न देना भी शामिल है.

कहने का मतलब है कि यह ‘डंकी फ्लाइट’ ज्यादातर नौजवानों पर भारी पड़ती है और उन की जिंदगी को नरक बना देती है.

दो कदम तन्हा- भाग 1: अंजलि ने क्यों किया डा. दास का विश्वास

Writer- डा. पी. के. सिंह 

‘‘दास.’’ अपने नाम का उच्चारण सुन कर डा. रविरंजन दास ठिठक कर खड़े हो गए. ऐसा लगा मानो पूरा शरीर झनझना उठा हो. उन के शरीर के रोएं खड़े हो गए. मस्तिष्क में किसी अदृश्य वीणा के तार बज उठे. लंबीलंबी सांसें ले कर डा. दास ने अपने को संयत किया. वर्षों बाद अचानक यह आवाज? लगा जैसे यह आवाज उन के पीछे से नहीं, उन के मस्तिष्क के अंदर से आई थी. वह वैसे ही खड़े रहे, बिना आवाज की दिशा में मुड़े. शंका और संशय में कि दोबारा पीछे से वही संगीत लहरी आई, ‘‘डा. दास.’’

वह धीरेधीरे मुड़े और चित्रलिखित से केवल देखते रहे. वही तो है, अंजलि राय. वही रूप और लावण्य, वही बड़ी- बड़ी आंखें और उन के ऊपर लगभग पारदर्शी पलकों की लंबी बरौनियां, मानो ऊषा गहरी काली परतों से झांक रही हो. वही पतली लंबी गरदन, वही लंबी पतली देहयष्टि. वही हंसी जिस से कोई भी मौसम सावन बन जाता है…कुछ बुलाती, कुछ चिढ़ाती, कुछ जगाती.

थोड़ा सा वजन बढ़ गया है किंतु वही निश्छल व्यक्तित्व, वही सम्मोहन.  डा. दास प्रयास के बाद भी कुछ बोल न सके, बस देखते रहे. लगा मानो बिजली की चमक उन्हें चकाचौंध कर गई. मन के अंदर गहरी तहों से भावनाओं और यादों का वेग सा उठा. उन का गला रुंध सा गया और बदन में हलकी सी कंपन होने लगी. वह पास आई. आंखों में थोड़ा आश्चर्य का भाव उभरा, ‘‘पहचाना नहीं क्या?’’

‘कैसे नहीं पहचानूंगा. 15 वर्षों में जिस चेहरे को एक पल भी नहीं भूल पाया,’ उन्होंने सोचा.

‘‘मैं, अंजलि.’’

डा. दास थोड़ा चेतन हुए. उन्होंने अपने सिर को झटका दिया. पूरी इच्छा- शक्ति से अपने को संयत किया फिर बोले, ‘‘तुम?’’

‘‘हां, मैं. गनीमत है पहचान तो लिया,’’ वह खिलखिला उठी और

डा. दास को लगा मानो स्वच्छ जलप्रपात बह निकला हो.

‘‘मैं और तुम्हें पहचानूंगा कैसे नहीं? मैं ने तो तुम्हें दूर से पीछे से ही पहचान लिया था.’’

मैदान में भीड़ थी. डा. दास धीरेधीरे फेंस की ओर खिसकने लगे. यहां कालिज के स्टूडेंट्स और डाक्टरों के बीच उन्हें संकोच होने लगा कि जाने कब कौन आ जाए.

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‘‘बड़ी भीड़ है,’’ अंजलि ने चारों ओर देखा.

‘‘हां, इस समय तो यहां भीड़ रहती ही है.’’

शाम के 4 बजे थे. फरवरी का अंतिम सप्ताह था. पटना मेडिकल कालिज के मैदान में स्वास्थ्य मेला लगा था. हर साल यह मेला इसी तारीख को लगता है, कालिज फाउंडेशन डे के अवसर पर…एक हफ्ता चलता है. पूरे मैदान में तरहतरह के स्टाल लगे रहते हैं. स्वास्थ्य संबंधी प्रदर्शनी लगी रहती है. स्टूडेंट्स अपना- अपना स्टाल लगाते हैं, संभालते हैं. तरहतरह के पोस्टर, स्वास्थ्य संबंधी जानकारियां और मरीजों का फ्री चेकअप, सलाह…बड़ी गहमागहमी रहती है.

शाम को 7 बजे के बाद मनोरंजन कार्यक्रम होता है. गानाबजाना, कवि- सम्मेलन, मुशायरा आदि. कालिज के सभी डाक्टर और विद्यार्थी आते हैं. हर विभाग का स्टाल उस विभाग के एक वरीय शिक्षक की देखरेख में लगता है. डा. दास मेडिसिन विभाग में लेक्चरर हैं. इस वर्ष अपने विभाग के स्टाल के वह इंचार्ज हैं. कल प्रदर्शनी का आखिरी दिन है.

‘‘और, कैसे हो?’’

डा. दास चौंके, ‘‘ठीक हूं…तुम?’’

‘‘ठीक ही हूं,’’ और अंजलि ने अपने बगल में खड़े उत्सुकता से इधरउधर देखते 10 वर्ष के बालक की ओर इशारा किया, ‘‘मेरा बेटा है,’’ मानो अपने ठीक होने का सुबूत दे रही हो, ‘‘नमस्ते करो अंकल को.’’

बालक ने अन्यमनस्क भाव से हाथ जोड़े. डा. दास ने उसे गौर से देखा फिर आगे बढ़ कर उस के माथे के मुलायम बालों को हलके से सहलाया फिर जल्दी से हाथ वापस खींच लिया. उन्हें कुछ अतिक्रमण जैसा लगा.

‘‘कितनी उम्र है?’’

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‘‘यह 10 साल का है,’’ क्षणिक विराम, ‘‘एक बेटी भी है…12 साल की, उस की परीक्षा नजदीक है इसलिए नहीं लाई,’’ मानो अंजलि किसी गलती का स्पष्टीकरण दे रही हो. फिर अंजलि ने बालक की ओर देखा, ‘‘वैसे परीक्षा तो इस की भी होने वाली है लेकिन जबरदस्ती चला आया. बड़ा जिद्दी है, पढ़ता कम है, खेलता ज्यादा है.’’

बेटे को शायद यह टिप्पणी नागवार लगी. अंगरेजी में बोला, ‘‘मैं कभी फेल नहीं होता. हमेशा फर्स्ट डिवीजन में पास होता हूं.’’

डा. दास हलके से मुसकराए, ‘‘मैं तो एक बार एम.आर.सी.पी. में फेल हो गया था,’’ फिर वह चुप हो गए और इधरउधर देखने लगे.

कुछ लोग उन की ओर देख रहे थे.

‘‘तुम्हारे कितने बच्चे हैं?’’

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