शादी से पहले मुझे एक लड़की से प्यार था, उसके मुताबिक मैं उसकी बेटी का बाप हूं, मैं क्या करूं?

सवाल
मेरी शादी हो चुकी है. शादी से 6 साल पहले मुझे एक लड़की से प्यार था. उस लड़की की भी शादी हो चुकी है, फिर भी हम दोनों अभी भी एकदूसरे को चाहते हैं. उस लड़की की एक बेटी भी है. उस के मुताबिक उस की बेटी का बाप मैं हूं. मैं क्या करूं?

जवाब
आप अपनी प्रेमिका को समझा दें कि अगर बेटी आप की है, तो भी उस का खुलासा करने से नुकसान ही होगा. उस का पति उसे अपनी औलाद समझता रहे, इसी में भलाई है. इस खुलासे से आप की बीवी और प्रेमिका के पति को काफी तकलीफ होगी. लिहाजा, इसे राज ही रखें. हो सके तो प्रेमिका से कम से कम मिलें.

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बड़े काम की है सेक्सटिंग की कला

हम टेबल पर, बिस्तर पर, वौशरूम में, सार्वजनिक जगहों पर, मूवी थिएटर में, डिनर टेबल के नीचे सभी जगह तो करते हैं… शरारतभरी बात है ना? पर हम फोन के इस्तेमाल की बात कर रहे हैं. भई, जब तकनीक आपके पास है तो इसका इस्तेमाल दिलों को वाइब्रेट करने के लिए क्यों न किया जाए? और एक समय हम उस जगह भी तो जाते थे-जब सेक्सटिंग को साइबर सेक्स के नाम से जाना जाता था, वो अस्त-व्यस्त से चैट रूम्स, जहां लोग औनलाइन बड़े ही व्यस्त नजर आते थे-तब हम एज/सेक्स/लोकेशन की भाषा में बात करते थे.

हमें लगता है कि सेक्सटिंग कूल है, क्योंकि लोग इसे बार-बार पढ़ना चाहते हैं. पर सच्चाई ये भी है कि ये आसान और बहुत सुविधाजनक भी है. हम आपको इस कला के कुछ सामान्य नियमों का पालन करने कहेंगे.

साथी को जानें

क्या आप किसी ऐसे व्यक्ति के साथ सेक्सटिंग कर रही हैं, जिसे जानती हैं और जिसपर भरोसा कर सकती हैं? तो थम्स अप, आगे बढ़ने के लिए. यदि आप उसे नहीं जानती हैं तो सावधानीपूर्वक आगे बढ़ें. व्यक्तिगत जानकारियां न दें और तस्वीरें भेजने से बचें. टेलेग्राम जैसे ऐप का इस्तेमाल करें, जो आपके और उनके, दोनों ही ओर के सेक्स्ट को ‘सेव’ ना करने का विकल्प देता है.

चैट-अप लाइन तय करें

रियल लाइफ के लिए पिक-अप लाइन्स होती हैं तो आपके औनलाइन वर्जन के लिए चैट-अप लाइन क्यों न हो? ऐसी लाइन का चुनाव करें, जो आपके लिए सही हो, जो सेक्स्ट-स्टार्टर की तरह काम करे. सामनेवाले व्यक्ति की इसपर मिली प्रतिक्रिया आपको बताएगी कि आपको रोमांटिक गीत गाने हैं या अपने लिए किसी दूसरे चौकलेट केक की तलाश करनी है. हां, यदि वे रात 11 बजे के बाद आपके साथ सेक्सटिंग कर रहे हैं तो फिर चाहे जो भी बातें हो रही हों-आप उनकी नजरों में आ चुकी हैं.

स्पष्ट रहें

केवल लिखे हुए शब्दों के माध्यम से आपको अस्पष्ट व सांकेतिक और स्पष्ट व ग्रैफिक होने की पतली-सी रेखा के बीच अंतर रखना है. थंब रूल ये है कि जितना हौट आपका ऐक्शन होगा, उतना ही मुश्किल होगा सेक्सटिंग को समाप्त कर पाना. आपका सेक्स-टेंशन ऐसा होना चाहिए, जो उन्हें फोन से चिपके रहने पर मजबूर कर दे. यहां इमोजीज का इस्तेमाल न करें. शब्द और वाक्य यहां आपके दोस्त बनेंगे, इमोजीज पर्याप्त नहीं हैं.

अजीबोगरीब अब्रीविएशन्स से बचें

कुछ अब्रीविएशन्स आपकी बातों को अंदाजा तो दे देते हैं, लेकिन लोगों को पसंद नहीं आते. प्रसन्नता जैसे मनोभावों को जताना कठिन होता है, पर एलओएल या एलएमओज से बचें.

वैज्ञानिकता न बघारें

अपने नारीत्व का विवरण देने के लिए क्लीनिकल टर्म्स का इस्तेमाल करने से बचें.

सेक्सटिंग के आंकड़े

33% युवा वयस्क (20-26) कभी न कभी सेक्स्ट भेज चुके होते हैं. जुलाई 2011 में हुए एक सर्वे में सामने आया कि सोशल नेटवर्किंग और डेटिंग साइट्स पर मौजूद दो तिहाई महिलाओं ने कभी न कभी सेक्स्ट किया है, इनकी तुलना में यहां मौजूद केवल आधे पुरुषों ने ही सेक्स्ट किया है.

महिलाएं (48%), पुरुषों (45%) से ज़्यादा सेक्स्ट करती हैं, कुछ सर्वेज़ का कहना है. महिलाओं की तुलना में पुरुष सेक्सटिंग की पहल ज़्यादा करते हैं. आंकड़े बताते हैं कि 60% सेक्स्ट उस साथी को भेजे जाते हैं, जिसके साथ महिला/पुरुष रिश्ते में हैं और 33% संभावित बॉयफ्रेंड्स या गर्लफ्रेंड्स को.

मैं अपने बॉयफ्रेंड से शादी करना चाहती हूं पर मेरे घरवाले इस रिश्ते के लिए तैयार नहीं है, मैं क्या करूं?

सवाल

मेरी उम्र 20 साल है और एक कंपनी में काम करती हूं. मैं एक लड़के से प्यार करती हूं. वह भी मुझे बेहद चाहता है. मगर समस्या यह है कि मैं उच्च जाति की हूं और लड़का पिछड़ी जाति का घर वाले इस रिश्ते के लिए शायद ही तैयार हों. कृपया उचित सलाह दें?

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जवाब

आज के समय में अंतर्जातीय विवाह आम हैं. समाज का बड़ा वर्ग अब संकीर्ण विचारधारा से बाहर निकल कर ऐसे रिश्तों को अपना रहा है. जातिप्रथा, ऊंचनीच आदि सब बेकार की बातें हैं. बेहतर होगा कि आप अपने घर में
बातचीत चलाएं और मन की बात घर वालों को खुल कर बताएं. अगर वे नहीं मानते तो कोर्ट मैरिज कर सकती हैं.

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लड़के की उम्र अगर 21 साल और लड़की की उम्र 18 साल हो तो उन्हें आपसी रजामंदी से शादी करने से कोई नहीं रोक सकता.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 
सब्जेक्ट में लिखे…  सरस सलिल- व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

किस काम का हिंदू विवाह कानून

उत्तर प्रदेश के इटावा शहर में प्रवीण व नीलम का विवाह 1998 में हुआ जब नीलम 18 साल की थी. दोनों को एक बेटी भी हुई. फिर दोनों के बीच मतभेद खड़े हो गए और वे अलगअलग रहने लगे. तब 2009 में पति ने तलाक का मुकदमा पारिवारिक अदालत में डाला. होना तो यह चाहिए था कि पत्नी की जो भी वजहें रही हों, पति और पत्नी को जबरन ढोए जा रहे संबंधों से कानूनी मुक्ति दिला दी जानी चाहिए थी पर पारिवारिक अदालत ने ऐप्लिकेशन रद्द कर दी.

चूंकि साथ रहना संभव न था, इसलिए पति ने जिला अदालत का दरवाजा खटखटाया. जिला अदालत ने 3 साल इंतजार करा कर 2012 में तलाक मंजूर करने से इनकार कर दिया. नीलम अब 32 साल की हो चुकी थी.

प्रवीण उच्च न्यायालय पहुंचा. उच्च न्यायालय ने मई, 2013 में तलाक नामंजूर कर दिया, जबकि मामला शुरू हुए 15 साल गुजर चुके थे. दोनों जवानी भूल चुके थे.

प्रवीण अब सुप्रीम कोर्ट आया. समझौता वार्त्ता के दौरान प्रवीण ने क्व10 लाख पत्नी को देने की पेशकश की और क्व3 लाख का फिक्स्ड डिपौजिट करने का प्रस्ताव रखा, पर यह करतेकराते सुप्रीम कोर्ट में 6 साल लग गए.

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इस दौरान दोनों पक्षों ने कई मुकदमे शुरू कर दिए. 2009 में गुजारेभत्ते के लिए क्रिमिनल प्रोसीजर कोड के अंतर्गत जिला अदालत इटावा में एक मुकदमा दायर किया गया. 2009 में ही घरेलू हिंसा का एक और मुकदमा नीलम ने इटावा में दायर किया. एक दहेज के बारे में 2002 में केस दायर किया गया था. एक मामला इटावा में ही इंडियन पीनल कोड की धारा 406 में अमानत में खयानत यानी ब्रीच औफ ट्रस्ट पर दायर किया गया था.

यहां तक कि पति के खिलाफ डकैती तक का मामला दायर किया गया था कि वह 5 जनों के साथ घर लूटने आया था.

आंतरिक विवाद जो भी हों विवाह के मामले में इतनी मुकदमेबाजी आज आम हो गई है और इस में पिसती औरत ही है.

18 साल की लड़की, जिस की शादी 1998 में हुई हो, न जाने कितने सपने ले कर ससुराल आई होगी पर जो भी मतभेद हों, वे अगर हल नहीं होते तो अलग हो कर चाहे तलाकशुदा का तमगा लगाए घूमना पड़े पर 20 साल अदालतों के चक्कर तो नहीं लगाने पड़ने चाहिए.

लाखों की वकीलों की फीस के बदले क्व13 लाख मिले पर क्या ये काफी हैं? क्या यह जवानी की अल्हड़ता फिर आएगी जब बेटी खुद शादी के लायक हो रही है?

यह हिंदू विवाह कानून किस काम का जो औरतों को 20-30 साल इंतजार कराए और बिना तलाक के रखे? यह आतंक तीन तलाक से कम नहीं है, लेकिन हिंदू धर्माधीश इसे सिर पर पगड़ी और माथे पर तिलक मान कर चल रहे हैं.

औरतें उन के पैरों की जूतियां हैं, जो चरणामृत पीती हैं. विवाह तो धर्म के दुकानदारों के हिसाब से संस्कार है. कुंडलियां मिला कर होने वाला विवाह जिस में लड़की की रजामंदी नहीं ली जाती पहले सुधार मांगती है. मुसलिम औरतें कम से कम दासी नहीं हैं, यह निर्णय तो यही कहता है.

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सामाजिक दुर्दशा के लिए जिम्मेदार कौन धार्मिक कथाएं किस तरह दिमाग खराब करती हैं और किस तरह औरतों के अत्याचारों के लिए जिम्मेदार हैं, यह रामायण और महाभारत से साफ है. हजारों औरतों को देशभर में अपने पाकसाफ होने के सुबूत में हाथपैर जलाने पड़ते हैं. पति अगर आरोप लगा दे कि पत्नी की किसी से आशनाई चल रही है तो राम और सीता के प्रसंग का लाभ उठा कर घरवाले ही नहीं, बल्कि पूरा समाज औरत को अग्नि परीक्षा सी देने को मजबूर करता है, जिस में स्वाभाविक है वह दोषी पाई जाती है और सदा के लिए बदनाम हो जाती है.

इसी तरह युधिष्ठिर द्वारा द्रौपदी को जुए में हारने की कहानी इतनी बार कही जाती है कि आम लोगों में इसे सही मान कर अपनी पत्नी को दांव पर लगाने का हक सा मिल गया है. रामसीता के प्रदेश उत्तर प्रदेश में जौनपुर में एक पति ने एक बार नहीं 2 बार अपनी पत्नी को जुए में दांव पर लगा दिया और हार गया.

जाफराबाद में पुलिस स्टेशन में जुलाई 2019 में दर्ज रिपोर्ट के अनुसार एक नशेड़ी व जुआरी पति ने 2 दोस्तों के साथ जुआ खेलते हुए सबकुछ हार कर अपनी पत्नी को ही दांव पर लगा दिया. शायद उस के मन में बैठा होगा कि हारने पर कोई कृष्ण उस की पत्नी को भी बचा ही लेगा. अफसोस वह हार गया और दोनों दोस्तों ने उस की पत्नी का रेप किया, पति की इच्छा के हिसाब से.

नाराज पत्नी के पास घर छोड़ने के अलावा कोई चारा न था, क्योंकि पति ने तो धर्मनिष्ठ काम किया था, जो शायद स्वयं पत्नी की निगाह में अपराध न था. उस ने पहली बार न पुलिस में शिकायत की, न तलाक मांगा. वह घर छोड़ गई तो पति माफी मांगता पहुंचा. बेचारी हिंदू औरत उसे लौटना पड़ा, समाज का दबाव जो था. पति ने तो धर्म की मुहर लगा काम ही किया था न.

पति के सिर पर तो धर्म का भूत सवार था कि पत्नी उस की मिल्कीयत है, हाथ की घड़ी, पैरों के जूतों की तरह. उस ने उसे फिर धर्मराज युधिष्ठिर बन कर दांव पर लगा दिया. इस बार द्रौपदी नाराज हो गई. कोई कृष्ण नहीं आया बचाने के लिए तो पुलिस स्टेशन पहुंची.

अभियुक्तों को पकड़ लिया पर आगे होगा क्या? कुछ नहीं. औरत को झख मार कर लौटना पड़ेगा.

रामायण, महाभारत का नाम ले कर तो कहानियां रातदिन इतनी बार दोहराईर् जाती हैं कि औरतों को अपना पूरा जीवन सेवा और हुक्म मानने के लिए तैयार रहना पड़ता है. जब तलाक मांगो तब अदालतें भी नहीं देतीं. उन के दिमाग में भी बैठा है कि पति के बिना पत्नी कमजोर, असहाय है. इस सामाजिक दुर्दशा के लिए भाजपा सरकार तो कुछ न करेगी. औरतों को खुद ही आगे आना होगा पर वे आएंगी तो तब न जब उन्हें पूजापाठ, व्रतों, संतों की सेवा, तीर्थयात्राओं, जलाभिषेकों, मूर्तिपूजाओं से फुरसत मिले.

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बिजली मुफ्त औरतें मुक्त

दिल्ली में अरविंद केजरीवाल का 2 बत्ती, 1 टीवी, 1 पंखा, 1 फ्रिज, 1 कूलर, 1 कंप्यूटर के लायक 200 यूनिट तक की बिजली मुफ्त करने का फैसला चतुराईभरा है. 200 यूनिट तक का बिल अब माफ कर दिया गया है. शहर के

45 लाख उपभोक्ताओं को इस से लाभ होगा और बिजली का बिल भुगतान न होने के कारण बिजली इंस्पैक्टरों की धौंस का सामना नहीं करना पड़ेगा.

सरकारी आंकड़ों के हिसाब से वैसे भी 33% घरों में 200 यूनिट से कम बिजली खर्च होती है. अब तक लोग 200 यूनिट के क्व600-700 देते थे. इस से पहले खर्च क्व1,200 था जिस की खपत ज्यादा है, वे पक्की बात है कि अब कम बत्ती का इस्तेमाल कर के 200 यूनिट के नीचे रहना चाहेंगे. सब से बड़ी बात यह है जब बत्ती मुफ्त मिल रही है तो घर के सामने खुले तारों पर कांटा डाल कर बत्ती जलाने की आदत भी खत्म हो जाएगी.

इस पर खर्च क्व1,400 करोड़ तक आ सकता है पर 60,000 करोड़ के बजट में यह कोई खास नहीं. खासतौर पर तब जब सरकार को कम बिल भेजने पड़ेंगे. एक बिल छापने, भेजने, पैसा वसूल करने में ही 50 से 100 रुपए लग जाना मामूली बात है. बिजली दफ्तर जा कर बिल जमा कराने में शहरी गरीब जनता को न जाने कितना खर्च करना पड़ता है.

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जब सरकार जगहजगह वाईफाई फ्री कर ही रही है कि लोग मोबाइलों का इस्तेमाल कर के हर समय सरकार के फंदे में रहें तो गरीबों को यह छूट देना गलत नहीं है. गरीब औरतों के लिए यह वरदान है कि अब उन की बिजली कटेगी नहीं और वे न रातभर खुले में सोने को मजबूर होंगी और न उन के बच्चे रातभर पढ़ने से रह जाएंगे.

सरकारें बहुत पैसा वैसे भी जनहित के कामों के लिए खर्च करती हैं. हर शहर में पार्क बनते हैं पर पार्क में जाने के लिए पैसे नहीं लिए जाते. सड़कें, गलियां बनती हैं जिन पर चलने की फीस नहीं ली जाती. सस्ते सरकारी स्कूल, कालेज, विश्वविद्यालय हैं जहां बहुत कम पैसों में पढ़ाई होती है. बहुत अस्पतालों में तामझाम का पैसा न ले कर इलाज होता है.

जो लोग इसे टैक्सपेयर की जेब पर डाका मान रहे हैं यह भूल रहे हैं कि उन के अपने कर्मचारी अब ज्यादा सुरक्षित, सुखी और प्रोडक्टिव हो जाएंगे, क्योंकि वे अंधेरे के खौफ में न रहेंगे.

जनहित काम केवल कांवड़ यात्रा का नहीं होता, पटेल की मूर्ति का नहीं होता, मन की बात का जबरन प्रसारण नहीं होता, बिजलीपानी भी जरूरी है. साफ हवा की तरह गरीब औरतों के लिए थोड़ी सी बिजली मुफ्त हो तो एतराज नहीं. यह उन्हें कटने के खौफ से मुक्त रखेगा.

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दूसरी जाति में शादी, फायदे ही फायदे

किसी ब्राह्मण परिवार में पलाबढ़ा अर्जुन जाति के फर्क या भेदभाव को नहीं मानता था. अपनी पढ़ाई पूरी करतेकरते उसे एक दूसरी जाति की लड़की से प्यार हो गया. उस ने अपने परिवार को बताया, तो घर में कुहराम मच गया. अर्जुन के पिता ने डांटते हुए कहा, ‘‘तुम्हें ब्राह्मण लड़की से ही शादी  करनी है, नहीं तो हम तुम्हारे टुकड़ेटुकड़े कर देंगे.’’ अर्जुन ने अपने मातापिता को बहुत समझाया, पर किसी ने उस की एक न सुनी. उसे समझ आ गया कि परिवार का साथ नहीं मिलेगा और उन्हें एकदूसरे से दूर कर दिया जाएगा. अर्जुन उस लड़की रीता को ले कर मिरजापुर से दिल्ली आ गया, जहां वह कुछ दिन अपने दोस्त के घर रहा और वहीं उन्होंने आर्यसमाज रीति से शादी कर ली. उस के दोस्त ने उसे नौकरी भी दिलवा दी.

अर्जुन का कहना है, ‘‘सब को छोड़ कर हमें यहां आना पड़ा. मैं अब किसी को अपना पता भी नहीं दे सकता. अगर पता दे दिया, तो आज भी समस्या खड़ी हो सकती है. ‘‘मैं ने सरकारी और गैरसरकारी संस्थाओं से मदद चाही, पर किसी से कोई मदद नहीं मिली. ऐसा कोई कानून नहीं है, जो मेरे जैसे लोगों की मदद करे. हमारा कानून दूसरी जाति में शादी करने की इजाजत देता है, पर उन लोगों की हिफाजत नहीं कर पाता, जो अपनी जाति से बाहर शादी कर लेते हैं.

‘‘जाति और धर्म के नाम पर प्यार को कब तक दबाया जाता रहेगा  आजादी के इतने साल बाद भी यही सुनने को मिलता है कि ब्राह्मण लड़के को ब्राह्मण लड़की से ही शादी करनी है, नीची जाति की लड़की से नहीं. ‘‘जीवनसाथी चुनने का हक सब को मिलना चाहिए. धर्म और जातिवाद की इस सामाजिक बुराई ने कई जिंदगी बरबाद की हैं.’’

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दूसरी जाति में शादी करने का तो भारतीय समाज की एकता बढ़ाने में बड़ा योगदान हो सकता है. ऐसी शादियों से नुकसान तो कुछ है ही नहीं, फायदे ही फायदे हैं, जैसे:

* दूसरी जाति में शादी के चलन को अपना कर समाज में छोटी मानी जाने वाली जातियों को भी ऊपर उठने का मौका दिया जा सकता है.

* ऐसी कामयाब शादियां आने वाली पीढ़ी को भी धार्मिक पाखंडों और आडंबरों से छुटकारा दिलाने में मददगार होती हैं.

* दूसरी जाति में शादी करने वाले ही अपने समाज के साथसाथ दूसरे समाज के प्रति भी सब्र के साथ अपने विचार रखते हैं.

* सामाजिक विरोध का सामना करने के लिए ऐसे पतिपत्नी को बहुत मजबूत होना पड़ता है. एकदूसरे का साथ देते हुए जिंदगी में आगे बढ़ते हुए यह रिश्ता मजबूत होता चला जाता है. भारत को धर्मनिरपेक्ष बनाने के लिए समाज में ऐसी शादियां खुशी से स्वीकार कर लेनी चाहिए.

* लड़कालड़की दोनों ने अपनी मरजी से शादी की होती है, इसलिए वे रिश्ता निभाने में कोई भी कसर नहीं छोड़ते. दोनों ही यह सोचते हैं कि उन्हें ही एकदूसरे का साथ देना है. परिवार वालों से कोई उम्मीद नहीं होती और किसी को अपने फैसले का मजाक उड़ाने का मौका नहीं देना होता है. पतिपत्नी ज्यादा ईमानदारी से यह रिश्ता निभाने की कोशिश करते हैं.

* इन के बच्चे भी हर धर्म का आदर करना सीख जाते हैं. दोनों धर्मों के बुरे रीतिरिवाज छोड़ कर पतिपत्नी अपनी सुखी शादीशुदा जिंदगी के लिए नई दुनिया बसा कर केवल सुखदायी बातों पर ही ध्यान देते हैं.

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* समाज में फैले अंधविश्वास, पाखंड, आडंबर जैसी कुरीतियों को मिटाने के लिए ऐसी शादियां बड़ी फायदेमंद साबित होती हैं.

* सामाजिक भेदभाव, एकदूसरे के धर्म को नीचा दिखाना, यह सब रोकने के लिए समाज को दूसरी जाति में शादी स्वीकार करने में कोई हिचकिचाहट नहीं होनी चाहिए.

* दोनों धर्मों के त्योहारों का मजा ले कर जिंदगी में एक जोश सा बना रहता है, मिलजुल कर एकदूसरे के रंग में रंग कर जीने का मजा ही कुछ और होता है.

* आजकल के बच्चे तो गर्व से अपने दोस्तों को बताते हैं कि उन के मम्मीपापा ने दूसरी जाति में शादी की है. ऐसे नौजवान अपने मातापिता को आदर से देखते हैं. उन के मातापिता ने यह रिश्ता जोड़ने के लिए कितने सुखदुख झेले हैं, यह बात उन्हें भावनात्मक रूप से मजबूत बनाती है.

* जहां औनर किलिंग जैसी शर्मनाक बातें समाज को गिरावट की ओर ले जाती हैं, वहीं ऐसी शादियों के समर्थन में उठे कदम उम्मीद की किरण बन कर राह भी दिखाते हैं.

* बड़े शहरों में तो अब उतना विरोध नहीं दिखता, पर छोटे शहरों, कसबों में आज भी होहल्ला मचाया जाता है. धर्म की जंजीरों में जकड़े लोग दूसरे समुदाय को अच्छी नजर से देख ही नहीं पाते. हर धर्म अपने को ही अच्छा कहता है. ‘वसुधैव कुटुंबकम’ की भावना कहीं देखने को नहीं मिलती, फिर जब यह कहा जाता है कि छोटा शहर, छोटी सोच, तो ऐसे लोगों को बुरा भी बहुत लगता है, पर अपने को बदलने के लिए भी ये लोग कतई तैयार नहीं हैं.

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* दूसरी जाति में शादी करने वालों के बच्चों में भी दूसरों के मुकाबले ज्यादा मजबूत जींस होते हैं. ये बच्चे एक ही जाति के पतिपत्नी के बच्चों से ज्यादा होशियार होते हैं.

* ऐसी शादियों का एक बड़ा फायदा यह भी है कि दहेज प्रथा का यहां कोई वजूद नहीं रहता.

* जहां एक ओर अपनी जातबिरादरी में शादी तय करते समय लड़की की बोली लगाई जाती है, वहीं दूसरी तरफ ऐसी शादी सिर्फ प्यार, विश्वास और समर्पण पर टिकी होती है. दहेज, रुपएपैसे से इन्हें कोई मतलब नहीं होता. मिलजुल कर घर बसाते हैं. न कोई लालच, न किसी से कोई उम्मीद.

तो जब समाज की बेहतरी के लिए दूसरी जाति में शादी करने के इतने फायदे हैं, तो लोगों को एतराज क्यों है ? वैसे भी ‘जब मियां बीवी राजी तो क्या करेगा काजी’ की तर्ज पर प्यार करने वालों का साथ दे कर उन्हें सुखी शादीशुदा होने की शुभकामनाएं ही क्यों न दें. समाज से धार्मिक आडंबर, जातिवाद, पाखंड, अंधविश्वास, दहेज मिट जाएगा, तो भला तो सब का ही होगा न.

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दलित दूल्हा घोड़ी नहीं चढ़ेगा

गुरुवार. 13 दिसंबर, 2018. बरात पर पथराव व मारपीट. दलित दूल्हे को घोड़ी से उतारा गया. राजस्थान के अलवर जिले के लक्ष्मणगढ़ थाना इलाके के गांव टोडा में गुरुवार, 13 दिसंबर, 2018 को दलित दूल्हे को घोड़ी से उतारने और बरात पर पथराव व मारपीट करने का मामला सामने आया.

पुलिस से मिली जानकारी के मुताबिक, गांव टोडा के हरदयाल की बेटी विनिता की शादी के लिए पास के ही गांव गढ़काबास से बरात आई थी.

बरात ज्यों ही गांव में घुसी, राजपूत समाज के 2 दर्जन से भी ज्यादा लोग लाठियां व सरिए ले कर बरातियों पर टूट पड़े. इस दौरान दर्जनभर लोगों को गंभीर चोटें आईं.

बाद में सूचना मिलने पर मौके पर पहुंचे पुलिस प्रशासन ने दूल्हे की दोबारा घुड़चढ़ी करा कर शादी कराई.

शादियों के मौसम में तकरीबन हर हफ्ते देश के किसी न किसी हिस्से से ऐसी किसी घटना की खबर आ ही जाती है. इन घटनाओं में जो एक बात हर जगह समान होती है, वह यह कि दूल्हा दलित होता है, वह घोड़ी पर सवार होता है और हमलावर ऊंची जाति के लोग होते हैं.

दलित समुदाय के लोग पहले घुड़चढ़ी की रस्म नहीं कर सकते थे. न सिर्फ ऊंची जाति वाले बल्कि दलित भी मानते थे कि घुड़चढ़ी अगड़ों की रस्म है, लेकिन अब दलित इस फर्क को नहीं मान रहे हैं. दलित दूल्हे भी घोड़ी पर सवार होने लगे हैं.

यह अपने से ऊपर वाली जाति के जैसा बनने या दिखने की कोशिश है. इसे लोकतंत्र का भी असर कहा जा सकता है जिस ने दलितों में भी बराबरी का भाव पैदा कर दिया है. यह पिछड़ी जातियों से चल कर दलितों तक पहुंचा है.

ऊंची मानी गई जातियां इसे आसानी से स्वीकार नहीं कर पा रही हैं. उन के हिसाब से दूल्हे का घोड़ी पर सवार होना ऊंची जाति वालों का ही हक है और इसे कोई और नहीं ले सकता. वैसे भी जो ऊंची जातियां दलितों के घोड़ी चढ़ने पर हल्ला कर रही हैं, आजादी तक वे खुद घोड़ी पर चढ़ कर शादी नहीं कर सकती थीं.

आजादी के बाद पिछड़ी जातियों के जोतहारों को जमीनें मिल गईं और ऊंची जातियों के लोग गांव छोड़ कर शहर चले गए तो वे जातियां खुद को राजपूत कहने लगी हैं.

लिहाजा, वे इस बदलाव को रोकने की तमाम कोशिशें कर रही हैं. हिंसा उन में से एक तरीका है और इस के लिए वे गिरफ्तार होने और जेल जाने तक के लिए भी तैयार हैं.

देश में लोकतंत्र होने के बावजूद भी ऊंची जाति वालों में यह जागरूकता नहीं आ रही है कि सभी नागरिक बराबर हैं.

जब तक बराबरी, आजादी और भाईचारे की भावना के साथ समाज आगे बढ़ने को तैयार नहीं होगा, तब तक सामाजिक माहौल को बदनाम करने वाली इस तरह की घटनाएं यों ही सामने आती रहेंगी.

ऐसी घटनाएं हजारों सालों की जातीय श्रेष्ठता की सोच का नतीजा है जो बारबार समाज के सामने आता रहता है या यों कहें कि कुछ लोग आजादी समझ कर आगे बढ़ने की कोशिश करते हैं तो तथाकथित ऊंचे लोगों के अंदर का शैतान खुलेआम नंगा नाच करने को बाहर आ जाता है.

जिस राजस्थान को राजपुताना कहा जाता है वह रामराज्य का समानार्थी सा लगता है. दोनों का गुणगान तो इस तरह किया जाता है कि जैसे दुनिया में इन से श्रेष्ठ सभ्यता कहीं रही ही नहीं होगी, मगर जब इन दोनों की सचाई की परतें खुलती जाती हैं तो हजारों गरीब इनसानों की लाशों की सड़ांध सामने आने लगती है और वर्तमान आबोहवा को दूषित करने लगती है.

रामराज्य के समय के ऋषिमुनियों और राजपुताना के ठाकुरों व सामंतों में कोई फर्क नहीं दिखता. रामराज्य में औरतें बिकती थीं. राजा व ऋषि औरतों की बोली लगाते थे. राजपुताना के इतिहास में कई ऐसे किस्से हैं जहां शादी के पहले दिन पत्नी को ठाकुर के दरबार में हाजिरी देनी होती थी. सामंत कब किस औरत को पकड़ ले, उस के विरोध की कोई गुंजाइश ही नहीं रहती थी.

माली शोषण मानव सभ्यता के हर समय में हर क्षेत्र में देखा गया, मगर दुनिया में दास प्रथा से भी बड़ा कलंक ब्राह्मणवाद रहा है जिस में शारीरिक व मानसिक जोरजुल्म सब से ऊंचे पायदान पर रहा है.

जातियां खत्म करना इस देश में मुमकिन नहीं है. अगर कोई जाति खुद को श्रेष्ठ बता कर उपलब्ध संसाधनों पर अपने एकलौते हक का दावा करती है, तो वह कुदरत के इंसाफ के खिलाफ है. कोई जाति खुद को ऊंची बता कर दूसरी जाति के लोगों को छोटा समझती है, वही जातीय भेदभाव है, जो इस जमाने में स्वीकार करने लायक नहीं है.

सब जातियां बराबर हैं, सब जाति के इनसान बराबर हैं और मुहैया संसाधनों पर हर इनसान का बराबर का हक है, यही सोच भारतीय समाज को बेहतर बना सकती है.

दलितों में इस तरह सताए जाने के मामलों की तादाद बहुत ज्यादा है जो कहीं दर्ज नहीं होते, नैशनल लैवल पर जिन की चर्चा नहीं होती.

दरअसल, एक घुड़चढ़ी पर किया गया हमला सैकड़ों दलित दूल्हों को घुड़चढ़ी से रोकता है यानी सामाजिक बराबरी की तरफ कदम बढ़ाने से रोकता है.

भाजपा सरकार व पुलिस अगर दलितों को घोड़ी पर नहीं चढ़वा सकती तो इस परंपरा को ही समाप्त कर दे. पशुप्रेम के नाम पर किसी भी शादी में घोड़ी पर चढ़ना बंद करा जा सकता है.

सहारे की जरूरत करवाती है बुढ़ापे में शादी

उस समय सलोनी जायसवाल की उम्र करीब 45 साल थी. उन के पति की मृत्यु हो गई. उन्नाव की रहने वाली सलोनी के कोई संतान नहीं थी. पति के न रहने पर घरपरिवार का उपेक्षाभाव और भी ज्यादा बढ़ गया था. सलोनी को लग रहा था जैसे पति के साथ उन की खुशियां भी खत्म हो गईं. बच्चे होते तो शायद उन का सहारा मिलता.  परिवार और समाज की नजरों में विधवा किसी अभिशाप से कम नहीं होती है. उम्र के इस दौर में जीवनसाथी का साथ छूट जाना मौत से बदतर महसूस होने लगा था.

उपेक्षा के इसी भाव से दुखी सलोनी एकाकीपन का शिकार हो गईं. परिवार के लोग उन को बीमार मान कर उन से दूर रहने लगे. ऐसे में करीब 4 साल पहले सलोनी को सहारा दिया वीनस विकास संस्थान की डा. निर्मला सक्सेना ने.

वीनस विकास संस्थान लखनऊ के जानकीपुरम इलाके में एक वृद्धाश्रम चलाता है. डा. निर्मला सक्सेना को जब सलोनी की हालत का पता चला तो वे उन को अपने साथ लखनऊ ले आईं.  वृद्धाश्रम में कुछ दिनों तक अपनी ही उम्र की महिलाओं के साथ रह कर सलोनी को कुछ अच्छा महसूस होने लगा. उन की तबीयत भी मानसिक रूप से बेहतर होने लगी और वे खुश भी रहने का प्रयास करने लगीं. धीरेधीरे समय बीतने लगा. सलोनी को एक बार फिर मजबूत सहारे की तलाश होने लगी.

अपने मन की बात सलोनी ने डा. निर्मला सक्सेना से कही. शुरुआत में उन की बात को सुन कर सभी को थोड़ी हंसी आई. वृद्धाश्रम में काम करने वाले दूसरे लोगों ने तो मान लिया कि सलोनी की मानसिक हालत फिर से खराब होने लगी है. इस उम्र में कहीं कोई ऐसी बात करता है. लेकिन  डा. निर्मला सक्सेना को लगा कि सलोनी की इच्छा उचित है. वे इस प्रयास में लग गईं कि सलोनी को सदासदा के लिए अपनाने वाला कोई आगे आए.

उन की समझ में नहीं आ रहा था कि कैसे 60 साल की सलोनी के लिए दूल्हा खोजा जाए. उन्होंने अपने जानने वालों और वृद्धाश्रम में काम करने वालों को दूल्हा तलाश करने में जुटा दिया. 60 साल की दुलहन के लिए दूल्हा तलाश करना सरल काम नहीं था.  वृद्धाश्रम में काम करने वाले एक व्यक्ति कोे पता चला कि हरदोई जिले में कृष्ण नारायण गुप्ता रहते हैं. उन की उम्र 62 साल की है. उन की पत्नी की मौत  3 साल पहले हो चुकी है. उन के 3 बेटे और बहू हैं. वे अपनी मिठाई की दुकान चलाते हैं. वे शादी करना चाहते हैं. हरदोई में लोग उन को कान्हा सेठ के नाम से जानते हैं. इस बात का पता चलते ही डा. निर्मला सक्सेना ने हरदोई जा कर उन से बात की. वे उन के घरपरिवार के लोगों से मिलीं. बेटेबहू से बात की. किसी को भी इस शादी से कोई परेशानी नहीं होने वाली थी.

कान्हा सेठ भी सलोनी को अपनी पत्नी बनाने के लिए उत्साहित हो गए. वे समय तय कर के एक दिन सलोनी को देखने के लिए लखनऊ आ गए. सलोनी और कान्हा सेठ ने एकदूसरे को देखा और फिर तय हो गया कि अब बची जिंदगी वे एकसाथ काटेंगे. शादी की तारीख 24 फरवरी तय हो गई. अब शादी की तैयारी करने का जिम्मा डा. निर्मला सक्सेना पर आ पड़ा था. वे अपनी टीम और कुछ सामाजिक लोगों के साथ शादी की तैयारी करने में जुट गईं. अपनी शादी की बात सुनते ही सलोनी ने कहा कि वे अपना मेकअप किसी ब्यूटीपार्लर में ही कराएंगी.

फैशन डिजाइनर और ब्यूटीशियन रीमा श्रीवास्तव ने सलोनी का मेकअप किया और लहंगाचुनरी उपलब्ध कराई. मेकअप देख कर कोई कह नहीं सकता था कि सलोनी की उम्र 60 साल है.  24 फरवरी को सलोनी और कान्हा सेठ ने एकदूसरे को जयमाला पहना कर पतिपत्नी के रूप में कुबूल कर लिया. इस खुशी में दोनों ने सब से पहले एकदूसरे को रसगुल्ला खिलाया. शादी की खुशी में शामिल होने के लिए हेल्पेज इंडिया के डायरैक्टर ए के सिंह और उत्तर प्रदेश समाज कल्याण विभाग के लोग भी शामिल हुए. शादी के बाद कान्हा सेठ अपनी पत्नी सलोनी को ले कर अपने घर गए. वहां दोनों हंसीखुशी से अपना जीवन बिता रहे हैं.

शादी के बाद डा. निर्मला इस शादीशुदा जोडे़ से मिलने के लिए हरदोई उन के घर गईं जहां सलोनी अपने मायके जैसे वृद्धाश्रम को याद कर रही थी.  दरअसल, सभी को अपने जीवन में एक सहारे की जरूरत होती है और यह सहारा जीवनसाथी के रूप में ही हो सकता है.

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