जूलियट की अनोखी मुहब्बत : कैसे प्यार में पड़ा जय

जय अपने घूमनेफिरने के शौक को पूरा करने के लिए गाइड बन गया था. उस ने इतिहास औनर्स से ग्रेजुएशन की थी. उस के पास अपने पुरखों की खूब सारी दौलत थी.

जय के पिता एक किसान थे. पूरे इलाके में सब से ज्यादा जमीन उन्हीं के पास थी. उन्होंने खेती की देखभाल के लिए नौकर रखे हुए थे. जय 3 बहनों में अकेला भाई था. तीनों बहनों की नामी खानदान में शादी हुई थी. जय की मां एक घरेलू औरत थी.

भारत के बहुत से ऐतिहासिक पर्यटक  स्थलों के मुलाजिम, वहां के दुकानदार और तमाम लोग जय को पहचानते थे. इस बार जय गाइड के रूप में बोधगया  गया हुआ था. विदेशी पर्यटकों में उस की मुलाकात जूलियट और उस की मां से हुई.

जूलियट की उम्र 19 साल थी. वह अपनी मां के साथ ताजमहल देखने आई थी. जूलियट और उस की मां को जय का जानकारी देने का तरीका बहुत पसंद आता है, इसलिए उन्होंने उसे अपना पर्सनल गाइड बना लिया. पहली ही नजर में जूलियट को जय का कसरती बदन भा गया और वह उस के तीखे नैननक्श पर फिदा हो गई. जय दोपहर के भोजन के लिए भारतीय व्यंजन खिलाने के लिए उन्हें एक होटल में ले गया. जूलियट को खाना इतना तीखा लगा कि उस ने पानी पीने की जल्दी में गरमगरम सब्जी जय के ऊपर गिरा दी और फिर अपने रूमाल से बड़े प्यार और अपनेपन से साफ किया. अब जय भी जूलियट की तरफ खिंचने लगा.

जूलियट और उस की मां की ताजमहल देखने की बहुत इच्छा थी और जय का गांव आगरा में ताजमहल के पास ही था. बोधगया और एयरपोर्ट के रास्ते के बीच में बड़ी नदी पड़ती थी. बारिश की वजह से नदी अपने उफान पर थी. जय के बारबार मना करने के बावजूद नाविक ने ज्यादा मुसाफिर अपनी नाव में बिठा लिए. नाव बीच नदी में जा कर अपना कंट्रोल खोने लगी और नदी में पलट गई. इस वजह से बहुत से लोगों की जानें चली गईं.

इस भयानक हादसे का जूलियट की मां पर बहुत बुरा असर पड़ा और उन्होंने उसी समय अपने देश लौट जाने का फैसला ले लिया. पर इस हादसे के बाद जय जूलियट की निगाह में उस का असली हीरो बन गया. वह उसे मन ही मन अपना सबकुछ मानने लगी और उस की दीवानी हो गई. पर मां की जिद के आगे झुक कर जूलियट को वापस अपने देश लौट जाना पड़ा. पर अपने घर लौटने के बाद भी जूलियट दिन में एक बार जय को फोन जरूर करती थी.

एक रात जय अपने घर की छत पर बैठा हुआ था. गुलाबी मौसम था. जय की छत पर गमलों में फूलों के पौधे लगे हुए थे. उन फूलों की खुशबू चारों तरफ फैल रही थी. उसी समय जूलियट का फोन आ गया. उस दिन जय सुबह से ही रोमांटिक था. वह फोन पर जूलियट के बालों, होंठों और रंगरूप की बहुत तारीफ करने लगा और फिर हिम्मत कर के अपने प्यार का इजहार कर दिया.

जूलियट तो प्यार के ये खूबसूरत शब्द सुनने के लिए कब से बेकरार थी. वह बिना सोचेसमझे जय के प्रस्ताव को अपना लेती है. फिर उन दोनों के प्यार का सिलसिला फोन पर शुरू हो जाता है. दोनों रोजाना फोन पर घंटों प्यार की बातें किया करते थे. उन्हीं दिनों एक बड़े घर से जय की शादी का रिश्ता आया. जय के ससुर ने जय के पिताजी से यह वादा किया था कि जय की शादी के बाद वे आगरा शहर की 10,000 गज जमीन जय के नाम कर देंगे.

जय जूलियट से प्यार करता था और उसी से शादी करना चाहता था, इसलिए उस ने शादी से साफ इनकार कर दिया. इस बात से नाराज जय के पिताजी ने परिवार वालों को अपना घर छोड़ने की धमकी दी, इसलिए जय की मां और तीनों बहनें बहुत घबरा गईं और उन्होंने जय पर दबाव डाल कर उसे शादी करने के लिए मजबूर कर लिया.

जय ने उन के प्यार और दुख को समझ कर अपना मन मार कर हां कह दी, पर जूलियट और अपने संबंध के बारे में अपनी मां और बहनों को भी बता दिया, फिर फोन कर के जूलियट को अपने घर की सारी समस्या समझा दी. जय का फोन सुनने के बाद जूलियट ने अपनी मां को बताया कि वह जय से बहुत प्यार करती है और वह उसी समय भारत आने का फैसला लेती है.

जय जूलियट और उस की मां को एयरपोर्ट से सीधे अपने घर ले कर आया. वहां उस की शादी की तैयारियां बहुत जोरशोर से चल रही थीं. शादी बहुत धूमधाम और शानोशौकत से होने वाली थी.

जूलियट से मिलने के बाद जय की मां और उस की तीनों बहनों को जूलियट का स्वभाव इतना मीठा और सुंदर लगा कि वे भी जूलियट को पसंद करने लगीं. जय के पिता को भी जूलियट बहुत अच्छी लड़की लगी. शादी के रीतिरिवाज शुरू हो गए थे. जूलियट को हलदी और गीतों की रस्म बहुत पसंद आई और उस की आंखों से आंसू बह निकले, क्योंकि वह बारबार यही सोच रही थी कि काश, वह जय की दुलहन होती.

शादी का दिन आ गया और जय की शादी भी हो गई. जूलियट की मां को भारतीय शादी के रीतिरिवाज और खानपान बहुत पसंद आया, पर उन्हें अपनी बेटी के दुख का एहसास भी था. उन्हें भी जय बहुत पसंद था. जय की बरात जिस दिन वापस आती है, जूलियट उसी दिन दुखी मन से अपनी मां के साथ अपने देश लौट जाने का फैसला लेती है. जय बहुत गुजारिश कर के जूलियट को रोक लेता है. जय उन से कहता है, ‘‘मैं जिंदगीभर आप लोगों को भूल नहीं सकता. मेरे घर के दरवाजे आप लोगों के लिए हमेशा खुले रहेंगे. मैं गाइड का काम छोड़ दूंगा. मेरी आखिरी इच्छा आप लोगों को ताजमहल दिखाने की है.’’

जूलियट और उस की मां जय के साथ ताजमहल देखने के लिए तैयार हो जाते हैं. आज ही के दिन जय की सुहागरात थी, पर जय जूलियट और उस की मां को ताजमहल दिखाने के लिए घर से निकल जाता है.

जय की मां और बहनें जूलियट और उस की मां को बहुत से उपहार देती हैं. उन्हें ताजमहल घुमाने के बाद जय दोपहर को एक रैस्टोरैंट में ले कर जाता है. जूलियट को फिर खाना बहुत तीखा लगता है. वह हड़बड़ाहट में फिर उसी तरह गरम सब्जी जय पर गिरा देती है.

दोबारा वही घटना होने पर वे दोनों हंसने लगते हैं. फिर उन की आंखों में आंसू आ जाते हैं.

जय जूलियट को छोटा सा खूबसूरत ताजमहल उपहार में देता है. जूलियट  की मां को वह भारत की ऐतिहासिक चीजें उपहार में देता है.

जूलियट एयरपोर्ट पर बारबार पीछे मुड़मुड़ कर जय को देखती है, फिर ‘बायबाय’ कर के अपनी मां के साथ अपने देश चली जाती है. इस तरह जूलियट का प्यार अधूरा रह जाता है.

पहचान: लता और मंगेश को करीब देख गुजरिया ने क्या किया?

चिलचिलाती धूप में रिकशा एक झांके के साथ एक खूबसूरत मकान के सामने ठहर गया. लता रिकशे से उतर कर मकान के अंदर जाने लगी कि तभी रिकशे वाले ने पुकारा, ‘‘मेम साहब, आप ने अभी मेरे पैसे नहीं दिए.’’

लता ने पलट कर देखा और झोंपती सी बोली, ‘‘ओह सौरी, मैं जल्दी में थी,’’ और पर्स से कुछ पैसे निकाल कर रिकशे वाले को दिए.

रिकशे वाला उसे देखते हुए बोला, ‘‘मेम साहब, गरमी बहुत है. थोड़ा पानी मिल जाता तो…’’ लता ने कहा, ‘‘हांहां, क्यों नहीं. अंदर आ जाओ.’’

वह रिकशे से उतर गया. लता आगेआगे और रिकशे वाला पीछेपीछे घर के भीतर चला गया. वह फ्रिज से पानी निकालने लगी.

रिकशे वाला बड़े ध्यान से घर देखता हुआ बोला, ‘‘मेम साहब, बड़ा सुंदर घर है आप का.’’

लता ने उसे पानी की एक बोतल पकड़ाई और गिलास थमाते हुए बोली, ‘‘यह लो और पानी लो.’’

रिकशे वाला पानी पी रहा था. लता उसे एकटक देख रही थी. वह तकरीबन 30-35 साल के आसपास का होगा. लंबीचौड़ी कदकाठी, चेहरे पर हलकी मूंछें और सिर पर घने बाल.

रिकशे वाले ने पानी पी कर लता को बोतल वापस की, तो लता बोली, ‘‘आओ, मैं तुम्हें अपना पूरा घर दिखाती हूं.’’

रिकशे वाला ‘जी’ कहते हुए लता के पीछेपीछे हो लिया.

‘‘यह देखो रसोईघर है.’’

रिकशे वाले ने कहा, ‘‘वाह…’’

लता बोली, ‘‘और यह बाथरूम.’’

इस के बाद लता ने शावर खोल कर दिखाया, तो वह मुसकरा उठा. शावर की बौछार से थोड़ा बदन लता का और थोड़ा बदन रिकशे वाले का भीग गया. वह सिहर कर पीछे हट गया.

लता ने अजीब नजरों से उसे देखा. कुछ पल के लिए वे दोनों ठिठक से गए, फिर लता ने खामोशी तोड़ी, ‘‘आओ, अब उधर चलें…’’ और वह उसे एक खूबसूरत हाल की ओर ले गई.

रिकशे वाला बड़े ध्यान से सब देख रहा था कि अचानक उस की नजर एक तसवीर पर टिक कर रह गई.

लता ने उस की ओर देखते हुए पूछा, ‘‘क्या हुआ?’’

रिकशे वाले ने कहा, ‘‘आप का यह फोटो बड़ा वो है.’’

लता ने पूछा, ‘‘वो मतलब…?’’

वह थोड़ा शरमाते हुए बोला, ‘‘जिसे कहते हैं सक्सी.’’

लता ठहाका मार कर हंस पड़ी, फिर बोली, ‘‘सक्सी नहीं… सैक्सी.’’

रिकशे वाले ने कहा, ‘‘हां, वही बात मैडम. हम ज्यादा पढ़ेलिखे तो हैं नहीं.’’

तभी लता ने आंखों में खुमारी लाते हुए पूछा, ‘‘वैसे, तुम्हारा नाम क्या है?’’

‘‘जी, मंगेश.’’

‘‘तो मंगेश, मैं सिर्फ फोटो में ही सैक्सी लगती हूं… ऐसे नहीं?’’ कहते हुए लता ने उस की बांहें थाम लीं.

मंगेश एकदम से हकलाने लगा,

‘‘म… मैडम…’’

‘‘बोलो मंगेश… क्या मैं ऐसे सैक्सी नहीं लगती?’’ कहते हुए लता ने अपनी साड़ी का आंचल नीचे गिरा दिया और उसे बिस्तर पर धकेल दिया.

मंगेश संभलते हुए बोला, ‘‘मेम साहब, मेरी सवारियां आती होंगी. मुझे जाने दीजिए अब.’’

लता ने रिकशे वाले के करीब बैठ कर अपनी बांहें उस की कमर के इर्दगिर्द कर लीं और बोली, ‘‘कितनी सवारियां आएंगी दिनभर में? कितना पैसा कमा लोगे तुम?’’

मंगेश बोला, ‘‘यही कोई 8 से 10 सवारियां. पूरे दिन में तकरीबन 500 रुपए कमा लूंगा.’’

‘‘मैं तुम्हें 1,000 रुपए दूंगी. तुम कहीं मत जाओ. आज तुम देखो कि मैं सैक्सी दिखती ही नहीं… सैक्सी हूं भी,’’ इतना कह कर लता ने मंगेश का हाथ मजबूती से पकड़ लिया.

मंगेश सहमा सा हाथ छुड़ाते हुए बोला, ‘‘नहीं मेम साहब…’’

लता दांत पीसते हुए बोली, ‘‘जैसा कह रही हूं वैसा करो, वरना अभी पुलिस बुलाती हूं कि तुम ने पानी पीने के बहाने घर में घुस कर मेरे साथ छेड़छाड़ की है.’’

यह सुन कर मंगेश सहम गया. लता ने उसे बिस्तर पर लिटा दिया और बैडरूम का दरवाजा अंदर से बंद कर दिया.

आधा घंटे बाद मंगेश थकाथका सा बाहर निकला. उस की मुट्ठी में 1,000 रुपए थे. रास्ता सुनसान था. जेठ की गरमी के चलते लोग अपनेअपने घरों में दुबके पड़े थे. कुछ दूरी पर एक परचून की दुकान थी. उस पर भी जो लड़का बैठा था, वह अधसोया सा था.

मंगेश ने एक बार चोर निगाहों से हर तरफ देखा, फिर रिकशे पर बैठ कर वहां से निकल गया.

आते वक्त लता ने उस से कहा था, ‘तुम रोज यहीं आ जाया करो. तुम्हें दिनभर की कमाई भी मिल जाएगी और धूप में यहांवहां थकना भी नहीं पड़ेगा.’

अगले दिन मंगेश संकोच में कहीं बाहर नहीं गया. उस के दिमाग में पिछले दिन की सारी बातें चल रही थीं. एकएक सीन याद आ रहा था, जबकि पत्नी गुजरिया कई बार कह चुकी थी, ‘‘काम पर नहीं जाना हैं क्या? राशन भी खत्म हो गया है.’’

मंगेश अलसाते हुए बोला, ‘‘सब हो जाएगा, तुम चिंता न कर…’’ और फिर आंखें बंद कर के कुछ सोचने लगा.

अगले दिन मंगेश कुछ सहमा सा लता के पास गया. वह उसे देख कर खुश हो गई और बोली, ‘‘अरे, कहां चले गए थे? तुम कल क्यों नहीं आए? बैठो, मैं तुम्हें कुछ दिखाती हूं,’’ कहते हुए वह कमरे की तरफ जाने लगी.

मंगेश बैठने लगा कि तभी लता रुक कर बोली, ‘‘सुनो, तुम भी इधर ही चले आओ.’’

यह सुन कर मंगेश कांप गया. वह ठिठकते हुए उठा और लता के पीछेपीछे चला गया.

लता ने एक कुरसी की ओर इशारा करते हुए कहा, ‘‘बैठो.’’

मंगेश बैठ गया. इतने में लता ने अलमारी खोली. उस में से 2 पैकेट निकाले और उस की तरफ बढ़ा दिए.

मंगेश ने पैकेट ले लिए और उन्हें खोलने लगा, फिर हैरत से बोला, ‘‘अरे मेम साहब, इतने कीमती कपड़े…’’

लता बोली, ‘‘अरे कीमती क्या, बस ऐसे ही हैं…’’ फिर उस से कपड़े ले कर वह समेटते हुए बोली, ‘‘अब घर ले जा कर देखना अच्छी तरह से. चलो, अब कुछ काम कर लें…’’

इतना सुनते ही मंगेश का चेहरा उतर गया, मगर वह मजबूर सा बैठा रहा. लता ने आगे बढ़ कर दरवाजा बंद कर दिया.

अब यह रोज का काम हो गया था. मंगेश की रोजाना 1,000 रुपए की आमदनी हो जाती थी.

एक दिन मंगेश ने लता से पूछा, ‘‘मेम साहब, आप का परिवार और बच्चे कहां हैं?’’

लता ने एकदम सपाट सा जवाब दिया, ‘‘बच्चे नहीं हैं. पति सारा दिन औफिस में रहते हैं और शाम को वापस आते हैं. तुम ने क्यों पूछा वैसे?’’

मंगेश बोला, ‘‘बस, ऐसे ही.’’

लता ने कहा, ‘‘मेरा पति सिर्फ पैसे कमाने के लायक है… सुना तुम ने… औरत के लायक नहीं…’’

मंगेश ने उसे ऊपर से नीचे तक देखा और बोला, ‘‘आह… वे आप जैसी खूबसूरत पत्नी को भोग भी नहीं पा रहे हैं…’’ लता चुप रही.

गुजरिया कई दिनों से देख रही थी कि मंगेश सिर्फ 2-3 घंटे के लिए बाहर जाता है और अच्छाखासा पैसा कमा लाता है. वह कहीं कोई नंबर दो का काम तो नहीं करने लगा?

गुजरिया ने एक दिन पूछा, ‘‘मुनिया के बापू, तुम 2-4 घंटे में इतना पैसा कैसे कमा लाते हो… एकसाथ इतनी दिहाड़ी कैसे मिल जाती है?’’

मंगेश हंस कर पीढ़े पर बैठते हुए बोला, ‘‘सब तुम लोगों के भाग्य से आता है, इतना समझ लो.’’

गुजरिया ने आंखें तरेर कर उसे देखा, मगर बोली कुछ नहीं. यह बात उसे हजम नहीं हुई.

दूसरे दिन जब अपना रिकशा ले कर मंगेश घर से चला, तो गुजरिया भी दूसरे रिकशे वाले को बोल कर उस के पीछेपीछे चल दी. कई चौराहे और गलियां पार करते हुए आखिरकार मंगेश का रिकशा एक मकान के सामने ठहरा.

गुजरिया ने भी अपना रिकशा काफी दूरी पर रुकवा लिया, उसे पैसे दिए और वहीं खड़ी हो गई दीवार की ओट में.

गुजरिया ने देखा कि मकान का गेट खुला है और उस का पति अंदर दाखिल हो गया है. परचून की दुकान खुली थी. लड़का बैठा इधरउधर देख रहा था कि तभी गुजरिया वहां पहुंची और बोली, ‘‘भैया, यह घर किस का है?’’

दुकान वाला बोला, ‘‘रमेश बाबू का है. वे टैलीफोन दफ्तर में जेई हैं. वे बेचारे औफिस में खटते हैं और उन की बीवी यहां मजे करती है.’’

गुजरिया ने पूछा, ‘‘मतलब…?’’

दुकान वाला बोला, ‘‘दिख नहीं रहा सामने रिकशा. रिकशे वाले के हाथ मोती लग गया है. हम लोग तो वहां फटक भी नहीं पाते…’’

गुजरिया फौरन वापस हो ली और रिकशा कर के टैलीफोन दफ्तर पहुंची. वहां रमेश बाबू का केबिन पता किया और जल्दी से वहां पहुंची.

गुजरिया ने अंदर आने की इजाजत मांगी, तो रमेश बाबू ने शीशे से बाहर देखा और हुड़क दिया, ‘‘जाओ, अपना काम करो. ये भिखमंगे यहां भी पीछा नहीं छोड़ते.’’

लेकिन, गुजरिया दरवाजे पर ‘खटखट’ करती रही. आखिरकार वे झल्ला कर अपनी कुरसी से उठे और झटके से दरवाजा खोला.

गुजरिया ने हाथ जोड़ कर नमस्ते किया, लेकिन उन्होंने उसे नजरअंदाज कर आवाज लगाई, ‘‘चौकीदार, ये किसकिस को आने देते हो यहां… ये भिखमंगों का अड्डा नहीं है, समझे…’’

चौकीदार गुजरिया की बांहें पकड़े खींच रहा था, तभी वह उस का हाथ झटकते हुए रमेश बाबू की ओर चिल्लाई, ‘‘बाबूजी, हमारे कपड़े गंदे हैं, लेकिन मन नहीं गंदा है…

‘‘जा कर अपने घर की गंदगी देखो एक बार. तुम को अपनी गंदगी का अंदाजा ही नहीं, जिसे गले से लगाए फिरते हो.’’

यह सुन कर रमेश बाबू सन्न रह गए. वे मुड़े और बोले, ‘‘चौकीदार, छोड़ दो इसे.’’

गुजरिया तीर की तरह केबिन में उन के पीछेपीछे आ गई और बोली, ‘‘साहब, इसी समय मेरे साथ चलिए.’’

रमेश बाबू कांपती सी आवाज में बोले, ‘‘कहां?’’

गुजरिया ने कहा, ‘‘आप के घर.’’

रमेश बाबू चिल्लाए, ‘‘तुम्हारा दिमाग खराब है क्या? जाओ, अपना काम करो.’’

गुजरिया ने हाथ जोड़ दिए और बोली, ‘‘चलिए बाबूजी, बहुत जरूरी है. मेरे लिए न सही तो अपने लिए चलिए.’’

रमेश बाबू ने लता को फोन करना चाहा, तो गुजरिया बोली, ‘‘नहीं बाबूजी, बात खराब हो जाएगी. बिना बताए चलिए, देर मत कीजिए.’’

रमेश बाबू ने एक गहरी निगाह से उसे देखा, फिर उठ गए और पीछेपीछे गुजरिया. उन्होंने अपनी कार निकाली. पीछे गुजरिया बैठ गई.

कुछ ही देर में रमेश बाबू अपने घर के सामने थे. बाहरी गेट की एक चाभी उन के पास रहती थी. उन्होंने गेट खोला और दबे कदमों से बैडरूम की ओर गए.

बैडरूम का दरवाजा हलका सा बंद था. वे दोनों तेजी से अंदर घुसे. वहां का सीन देख कर गुजरिया तेजी से चीख ही पड़ी, ‘‘तू यहां अपना मुंह काला करा रहा है…’’

सैक्स में डूबे लता और मंगेश उन को देख कर हड़बड़ा गए. रमेश बाबू ने बढ़ कर लता को कई थप्पड़ जड़े. गुजरिया ने मंगेश को कई थप्पड़ लगाए.

मंगेश ने गुजरिया को धकेल दिया, तो वह चिल्लाई, ‘‘एक तो तू हम सब को हराम की कमाई खिलाता रहा, ऊपर से चिल्लाता है… बेहया,’’ फिर वह रमेश बाबू से बोली, ‘‘बाबूजी, पुलिस बुलाओ… इस को इस का अंजाम भुगतना पड़ेगा. अब इस का और हमारा साथ खत्म…’’

रमेश बाबू गुस्से से थरथरा रहे थे. वे फोन मिलाने लगे कि मंगेश ने उन का गला दबोच लिया. रमेश बाबू के गले से ‘गोंगों’ की आवाज निकलने लगी. गुजरिया उन्हें छुड़ा रही थी.

मंगेश ने लात मार कर गुजरिया को अलग किया. रमेश बाबू के गले पर उस की पकड़ कसती जा रही थी.

लता ने जल्दीजल्दी कपड़े पहन लिए थे. उस ने रमेश बाबू की हालत देखी, तो हड़बड़ाहट में बड़ा सा गुलदान उठा कर मंगेश के सिर पर दे मारा. वह चीख कर वहीं ढेर हो गया.

तब तक पड़ोसियों ने पुलिस बुला ली थी. लता को गिरफ्तार कर लिया गया. वह रमेश बाबू से हाथ जोड़ते हुए बोली, ‘‘रमेश… बचा लो मुझे…’’

रमेश बाबू ने नफरत से मुंह घुमा लिया और गुजरिया से बोले, ‘‘तुम ने सही कहा था. साफसुथरे कपड़ों में भी घिनौने और नीच लोग रहते हैं… माफ करना बहन. मुझे अच्छेबुरे की पहचान ही नहीं थी.’’

अपने ही “मासूम” की बलि….

अगर आज ऐसा होता है तो इसका मतलब यह है कि आज भी हम सैकड़ो साल पीछे की जिंदगी जी रहे हैं. जहां अपने अंधविश्वास में आकर बलि चढ़ा दी जाती थी, अपने बच्चों को या किसी मासूम को. बलि चढ़ाना तो अंधविश्वास की पराकाष्ठा ही है.

छत्तीसगढ़ के बलरामपुर जिले में शख्स ने अपने चार वर्षीय बेटे की बेरहमी से गला रेंतकर हत्या कर दी. घटना की वजह अंधविश्वास बताया गया है. शख्स की मानसिक स्थिति कुछ दिनों से ठीक नहीं थी. एक रात उसने परिवारजनों से कहा – “सुनो सुनो! मै किसी की बलि दे दूंगा.”

उसकी बात पर किसी ने तवज्जो नहीं दिया लगा कि यह मानसिक सन्निपात में कुछ का कुछ बोल रहा है.
एक रात उसने चाकू से एक मुर्गे को काटा फिर अपने मासूम बेटे का गला काट दिया. यह उद्वेलित करने वाला मामला शंकरगढ़ थानाक्षेत्र का है. हमारे संवाददाता को पुलिस ने बताया -शंकरगढ़ थानाक्षेत्र अंतर्गत ग्राम महुआडीह निवासी कमलेश नगेशिया (26 वर्ष) दो दिनों से पागलों की तरह हरकत कर रहा था. उसने परिवारजनों के बीच कहा – उसके कानों में अजीब सी आवाज सुनाई दे रही है, उसे किसी की बलि चढ़ाने के लिए कोई बोल रहा है.

एक दिन वह कमलेश चाकू लेकर घूम रहा था एवं उसने परिवारजनों से कहा कि आज वह किसी की बलि लेगा. उसकी मानसिक स्थिति को देखते हुए परिवारजनों ने उसे नजरअंदाज कर दिया था . मगर रात को खाना खाने के बाद कमलेश नगेशिया की पत्नी अपने दोनों बच्चों को लेकर कमरे में सोने चली गई. कमलेश के भाईयों के परिवार बगल के घर में रहते हैं, वे भी रात को सोने चले गए.

देर रात कमलेश ने घर के आंगन में एक मुर्गे का गला काट दिया. फिर कमरे में जाकर वह अपने बड़े बेटे अविनाश (4) को उठाकर आंगन में ले आया. उसने बेरहमी से अपने बेटे अविनाश का चाकू से गला काट दिया. अविनाश की मौके पर ही मौत हो गई. सुबह करीब चार बजे जब कमलेश की पत्नी की नींद खुली तो अविनाश बगल में नहीं मिला. उसने कमलेश से बेटे अविनाश के बारे में पूछा तो उसने पत्नी को बताया कि उसने अविनाश की बलि चढ़ा दी है.

घटना की जानकारी मिलने पर घर में कोहराम मच गया. सूचना पर शंकरगढ़ थाना प्रभारी जितेंद्र सोनी के नेतृत्व में पुलिस टीम मौके पर पहुंची. पुलिस ने आरोपी को हिरासत में ले लिया . बच्चे के शव को पंचनामा पश्चात् पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया . थाना प्रभारी जितेंद्र सोनी ने बताया – परिजनों से पूछताछ कर उनका बयान दर्ज किया गया है. आरोपी दो दिनों से ही अजीब हरकत कर रहा था. पहले वह ठीक था. एक शाम परिवारजनों के सामने उसने किसी की बलि चढ़ाने की बात कही थी, लेकिन परिवारजनों ने उसे गंभीरता से नहीं लिया. मामले में पुलिस ने धारा 302, 201 का अपराध दर्ज किया है. मामले की जांच की जा रही है.

इस घटनाक्रम में परिजनों ने समझदारी से काम लिया होता और इसकी शिकायत पहले ही पुलिस में की होती या फिर उस व्यक्ति को मानसिक चिकित्सालय भेज दिया गया होता तो मासूम बच्चे की जिंदगी बच सकती थी. मासूम की बाली के इस मामले में सबसे अधिक दोषी मां का वह चेहरा भी है जो दोनों बच्चों को लेकर कमरे में सो रही होती है और पति एक बच्चे को उठाकर ले जाता है.

एक पुलिस अधिकारी के मुताबिक गांव देहात में इस तरह की घटनाएं घटित हो जाती है, इसका दोषी जहां परिवार होता है वही आसपास के रहवासी भी दोषी हैं मगर पुलिस सिर्फ एक हत्यारे पर कार्रवाई करके मामले को बंद कर देती है.

कुल मिलाकर के ऐसे घटनाक्रम सिर्फ एक खबर के रूप में समाज के सामने आते है और फिर समाज सुधारक भूल जाते है कुल मिला करके आगे पाठ पीछे सपाट की स्थिति .यह एक बड़ी ही सोचनीय स्थिति है. इस दिशा में अब सरकार के पीछे-पीछे दौड़ने या यह सोचने से की सरकार कुछ करेगी यह अपेक्षा छोड़ कर हमें स्वयं आगे आना होगा ताकि फिर आगे कोई ऐसी घटना घटित ना हो.

क्या कभी सुना है Ice Apple का नाम, गरमियों में ही इसे क्यों खाया जाता है

इन दिनों गरमियों को मौसम चल रहा है. ऐसे में जरूरी है कि हम अपने खानपान का खास ध्यान रखें. जिससे आपके शरीर में फूर्ती आएं और आपका शरीर गरमी से लड़ने की भी ताकत रखें, तो इसके लिए जरूरी है कि आप ताड़गोला खाना बिलकुल न भूलें. जी हां, ताड़गोला जिसे अग्रेंजी में Ice Apple के नाम से जाना जाता है.  Ice Apple

आइस एप्पल में फाइबर प्रोटीन विटामिन-ए विटामिन-के जैसे पोषक तत्व पाए जाते हैं. जो शरीर को स्वस्थ रखने में मदद करते हैं. यह फल शरीर में पानी की कमी को दूर करता है. इसे खाने से इम्यून सिस्टम भी मजबूत होता है. ये भारत के दक्षिणी हिस्सों में काफी मशहूर है. हालांकि इसे खाने के फायदों के साथ साथ इसके कुछ नुकसान भी है जिनके बारे में आज हम आपको बताएंगे.

आइस एप्पल के फायदे

  • शरीर को करता है हाइड्रेटेड
  • डायबिटीज में पहुंचाता है फायदा
  • मोटापा करता है कम
  • प्रेग्नेंसी में है फायदेमंद
  • स्किन को बनाता है ओर भी बेहतर
  • पेट के लिए आइस एप्पल फायदेमंद है
  • उल्टी के इलाज में देता है फायदा

आइस एप्पल के कई फायदे है लेकिन अगर आप इसका सही तरीके से सेवन नहीं करते है और अधिक मात्रा में खा लेते है तो इसके नुकसान भी होते है.

  • ज्यादा पकें हुए आइस एप्पल से खाने से पेट में दर्द के परेशानी हो जाती है.
  • अगर पाचन क्रिया कमजोर है तो आइस एप्पल नहीं खाने चाहिए
  • ज्यादा मात्रा में खाने से पेट में दर्द और एठन की परेशानी हो सकती है
  • अगर आप प्रेग्नेंट है तो आपको इसका सेवन सिर्फ डॉक्टर की सलाह लेकर करना चाहिए

निक्की तंबोली ने ब्लैक ड्रेस में कराया रिवीलिंग फोटोशूट, लोगों ने किया ट्रोल

बिग बौस 14 में निक्की तंबोली ने खूब धमाल मचाया था, जिसके बाद वे सभी की नजरों में आ गई थी, उनका बोल्ड लुक लोगों को खूब पसंद आया था वही, शो के बाद निक्की कभी सोशल मीडिया पर दिखाई देती है तो कभी किसी खास इवेंट में, जहां वे मीडिया की लाइमलाइट में आ जाती है. हाल ही में निक्की ने एक बार फिर एक अवॉर्ड फंक्शन में पहुंची सभी के निगाहे अपने ऊपर टिका ली हैं.

 

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जी हां, निक्की तंबोली हाल मं एक अवार्ड फंक्शन में पहुंची जहां वे ब्लैक कलर की ड्रेस में नजर आई. निक्की तंबोली को देखकर उनके फैंस खुशी से पागल हो गए है. लोग उनको देख ट्रोल भी करने लगे. वही, अब निक्की की ये फोटोज सोशल मीडिया पर खूब धड़ल्ले से वायरल हो रही है.

बता दें कि निक्की तंबोली ने पैपराजी के सामने एक से बढ़कर एक पोज दिए और उनकी तमाम फोटोज क्लिक हुईं. निक्की तंबोली ने किलर स्माइल पास करते हुए पोज दिया. निक्की तंबोली की तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल होते ही उनके चाहने वाले तमाम फैंस आहें भर रहे हैं. ब्लैक ड्रेस में निक्की तंबोली ने कर्वी फिगर जमकर फ्लॉन्ट किया है. फैंस अपनी पसंदीदा एक्ट्रेस निक्की तंबोली की तस्वीरों को पसंद कर रहे हैं और प्यारे कमेंट कर रहे हैं.

 

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निक्की तंबोली की फैंस जहां उनकी तारीफ कर रहे हैं.  वहीं, निक्की तंबोली को सोशल मीडिया पर तमाम यूजर्स ने जमकर ट्रोल भी कर रहे हैं. निक्की तंबोली को लेकर एक यूजर ने लिखा है, ‘ऐसी आउटफिट में तो पूरा शरीर दिख रहा है.’ एक यूजर ने लिखा है, ‘कुछ तो शर्म कर लो निक्की तंबोली खुद से भी अपनी फोटोज शेयर करती रहती हैं. निक्की तंबोली अक्सर बोल्ड फोटोशूट कराती हैं और अपनी झलक फैंस को दिखाती रहती हैं. बता दें कि निक्की तंबोली साउथ की तमाम फिल्मों में नजर आ चुकी हैं.

News Kahani: सियासत, सत्ता और समझदारी

एक तो तेज गरमी का मौसम, उस पर बारिश का डर. हाल ही में सरपंच बनी संगीता यह सोचसोच कर परेशान थी कि आज चुनाव प्रचार के सिलसिले में सत्ता पार्टी के जिलाध्यक्ष रामप्रकाश के साथ घर से बाहर निकले या नहीं?

दरअसल, उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गांव रूपपुर में इस बार सरपंच का पद दलित महिला के लिए रिज्वर्ड था. संगीता अभी 28 साल की थी और राजनीति में भी दिलचस्पी रखती थी. पति पवन ने बढ़ावा दिया तो वह सरपंच पद के लिए खड़ी हो गई.

जिलाध्यक्ष रामप्रकाश ऊंची जाति का था और गांव में उस का दबदबा था. इलाके के एमपी साहब से उस का काफी मिलनाजुलना था. उस ने संगीता को जिताने में काफी अहम रोल निभाया था और अब वह लोकसभा चुनाव में संगीता के साथ इधर से उधर घूमता था.

‘‘सुनो…’’ संगीता ने अपने पति पवन से कहा, ‘‘मुझे बाहर बड़ी सड़क तक छोड़ आओ. वहां से मैं रामप्रकाशजी के साथ एमपी साहब के घर चली जाऊंगी. आज बहुत ज्यादा काम है, इसलिए मना नहीं कर सकती.’’

पवन सो रहा था. उस ने बिना आंखें खोले ही कहा, ‘‘तुम अपना खुद देख लो. मुझे नींद आ रही है,’’ फिर वह करवट बदल कर दोबारा सो गया.

इतने में जिलाध्यक्ष रामप्रकाश का फोन आ गया, ‘कहां हो सरपंचजी? मैं बड़ी रोड पर खड़ा हूं. हमें पहले ही देर हो गई है. एमपी साहब नाराज हो जाएंगे.’

‘‘क्या बताऊं रामप्रकाशजी, मैं तो तैयार बैठी हूं, पर आज पवन मुझे छोड़ने नहीं आ रहे हैं. आप ही कुछ कीजिए,’’ संगीता ने अपनी समस्या बताई.

‘ठीक है, तुम घर के बाहर तक आओ, मैं लेने आ जाता हूं,’ इतना कह कर रामप्रकाश ने फोन काट दिया.

थोड़ी देर में ही वे दोनों एमपी साहब के घर की तरफ रवाना हो गए. आज संगीता ने साड़ी बांधी थी. वह जवान तो थी ही, दिखने में भी खूबसूरत थी. गोरी देह, अच्छे नैननैक्श, घने काले बाल और कद भी ठीकठाक ही था. कोई कह नहीं सकता था कि उस की 5 साल की एक बेटी भी है, जिस की देखभाल सास ही करती थी.

रामप्रकाश 40 साल का हट्टाकट्टा मर्द था. उस के परिवार में पत्नी गोमती और 2 बच्चे थे. वह राजनीति में आगे बढ़ना चाहता था और इसीलिए वह एमपी साहब से मिलने का कोई मौका नहीं छोड़ता था.

चूंकि चुनाव नजदीक थे, इसलिए दिनभर की भागादौड़ी में दिन बीतने का पता ही नहीं चला. शाम के 5 बजने वाले थे, पर अब तक तो मौसम भी पलटी मार चुका था.

‘‘जल्दी चलो रामप्रकाशजी, कहीं बारिश शुरू हो गई तो दिक्कत हो जाएगी. मेरी बेटी की तबीयत भी ढीली है,’’ संगीता ने आसमान की तरफ देखते हुए कहा.

‘‘तुम चिंता मत करो, हम समय से घर पहुंच जाएंगे. आज मैं खुश हूं, क्योंकि एमपी साहब हमारे काम से संतुष्ट हैं,’’ रामप्रकाश ने मोटरसाइकिल स्टार्ट करते हुए कहा.

लेकिन मौसम को कुछ और ही मंजूर था. अभी वे थोड़ी ही दूर आए थे कि एकदम से घनघोर बारिश होने लगी. बारिश इतनी ज्यादा तेज थी कि रामप्रकाश को आगे सड़क पर कुछ नहीं दिखाई दे रहा था. वे दोनों पानी से तर हो गए थे.

‘‘अब क्या होगा? लगता नहीं कि यह बारिश जल्दी रुक जाएगी…’’ संगीता को चिंता होने लगी.

रामप्रकाश ने कहा, ‘‘यहीं आगे ही खेतों में मेरे एक दोस्त का ट्यूबवैल है. वहां बारिश से बचने का इंतजाम होगा,’’ फिर रामप्रकाश ने एक खेत की तरफ मोटरसाइकिल मोड़ दी. गन्ने के खेतों के बीच से वे दोनों ट्यूबवैल तक जा पहुंचे.

वहां एक टूटाफूटा कमरा भी बना हुआ था. वे दोनों उस में चले गए. भीतर एक छोटी सी पुरानी खाट थी और कोने में फूस रखा था. संगीता पानी से तर हो चुकी थी. गीली साड़ी में उस की देह फूट रही थी. उस ने ?ि?ाकते हुए कोने में जगह ली और कांपते हुए अपने कपड़े सुखाने की नाकाम कोशिश की.

रामप्रकाश सम?ा गया था कि संगीता को ठंड लग रही है. उस ने अपनी परवाह न करते हुए थोड़ा फूस और कुछ सूखी लकडि़यां जमा कीं और आग जला दी. उस कमरे में रोशनी होने से पता चला कि वहां कोई चादर वगैरह नहीं थी.

रामप्रकाश ने वह खाट उठाई और सीधी खड़ी कर दी और बोला, ‘‘संगीता, तुम इस की आड़ में अपने कपड़े ठीक से सुखा लो.’’

पहले तो संगीता को ?ि?ाक हुई, पर वह बहुत ज्यादा गीली थी, तो उस ने अपनी साड़ी खोल दी और आग की आंच में उसे सुखाने लगी.

रामप्रकाश ने खाट की आड़ में से देखा कि संगीता पेटीकोट और ब्लाउज में अपनी साड़ी सुखा रही थी. एक पल को तो वह बेचैन हो गया, पर फिर उस ने पूछा, ‘‘संगीता, तुम्हारी बेटी का क्या नाम है?’’

संगीता बोली, ‘‘महिमा.’’

‘‘अरे वाह, बहुत बढि़या नाम है. मेरी बेटी का नाम रोशनी है. बड़ी ही होनहार है. 10वीं जमात में पढ़ती है. अपनी मां के काम में हाथ बंटाती है’’ रामप्रकाश जैसे अपनी बेटी की याद में खो गया.

‘‘बेटियां होती ही अपने बाप की लाड़ली हैं. पवन भी महिमा के बगैर नहीं रह पाते हैं,’’ संगीता ने कहा, ‘‘लेकिन, फिलहाल तो इस बारिश का क्या करें… समय बीत रहा है और हम यहां फंस गए हैं,’’ संगीता बोली.

रामप्रकाश ने घड़ी देखी. शाम के 7 बजने वाले थे. पर बारिश तो रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी. उसे भी चिंता हो रही थी. उस ने बात पलटते हुए पूछा, ‘‘तुम आगे क्या करना चाहती हो? हम इतने दिनों से एकसाथ काम कर रहे हैं, पर कभी एकदूसरे के बारे में ज्यादा पूछा नहीं.’’

तब तक संगीता के कपड़े कुछ हद तक सूख गए थे. वह खाट की ओट से बाहर आ गई. अब कपड़े सुखाने की बारी रामप्रकाश की थी.

‘‘मैं तो अपने गांव के लिए अच्छे काम करना चाहती हूं. अपने समाज की लड़कियों को पढ़ने की प्रेरणा देना चाहती हूं. महिमा को बड़ी अफसर बनाना चाहती हूं,’’ संगीता ने बताया.

‘‘बहुत अच्छी बात है. पढ़ेलिखे जनप्रतिनिधियों की इस देश को जरूरत है. तुम कामयाब रहो. जितना हो सकेगा, मैं तुम्हारी मदद करूंगा.’’

उन दोनों को घर पहुंचने में रात के 10 बज गए थे. पवन की मां ने दरवाजा खोला और जब संगीता के साथ रामप्रकाश को देखा, तो वे जलभुन गईं.

पवन का मिजाज भी ठीक नहीं था. उस ने कड़े शब्दों में कह दिया, ‘‘आज के बाद तुम रामप्रकाश के साथ कहीं नहीं जाओगी. आज रात में 10 बजे आई हो, कल क्या पता पूरी रात उस के साथ काली करो.’’

‘‘पर, हम दोनों बारिश में फंस गए थे,’’ संगीता ने अपनी बात रखी.

इस पर सास भी तिलमिला गईं, ‘‘पवन जो कह रहा है, वही कर. बहुत हो गई सरपंची. हम किसकिस का मुंह बंद करते फिरेंगे.’’

संगीता ने कुछ नहीं कहा और अपने कमरे में चली गई.

उधर, रामप्रकाश के घर में तो बवाल ही मच गया. गोमती को संगीता फूटी आंख नहीं भाती थी और आज इस बारिश में दोनों का एकसाथ होना गोमती के कान खड़े कर गया.

‘‘तुम बात का बतंगड़ बना रही हो. जो भी मैं ने तुम्हें बताया, वही सौ फीसदी सच है,’’ रामप्रकाश अपनी सफाई दे रहा था.

‘‘मुझे कुछ नहीं सुनना. भले ही अखबार तुम खरीदते हो, पर पढ़ती मैं भी हूं,’’ गोमती ने तेवर दिखाते हुए कहा, ‘‘तुम से ज्यादा दीनदुनिया की खबर मुझे रहती है. देश में चुनावी माहौल है और दिल्ली में एक नामचीन औरत के साथ हुई बदसुलूकी पर तुम मर्दों की जबान को लकवा मार जाता है.’’

‘‘तुम किस खबर की बात कर रही हो?’’ राम प्रकाश ने झंझला कर पूछा.

‘‘स्वाति मालीवाल के साथ जो कांड हुआ है, वह किसी से नहीं छिपा है. अंदरखाते जो हुआ है, वह तो स्वाति मालीवाल और विभव कुमार ही जानें, पर अगर स्वाति मालीवाल की बातों में जरा सा भी दम है, तो तुम भी संभल जाओ. यह जो तुम उस कलमुंही सरपंच के पल्लू से बंधने की कोशिश कर रहे हो न, किसी दिन वही तुम्हारे लत्ते उतरवा देगी सरेआम. फिर न कहना कि बताया नहीं था,’’ गोमती के तेवर ही अलग थे.

‘‘अच्छा बताओ कि स्वाति मालीवाल ने क्या बयान दिया है?’’ रामप्रकाश ने गोमती से पूछा.

‘‘इस में क्या बड़ी बात है. अखबार की छपी खबर चीखचीख कर बता रही है कि स्वाति मालीवाल ने कहा कि मैं कैंप दफ्तर के अंदर गई. सीएम के पीए विभव कुमार को फोन किया, लेकिन मैं अंदर नहीं जा सकी. फिर मैं ने उन के मोबाइल नंबर पर एक मैसेज भेजा था. हालांकि, कोई जवाब नहीं आया.

‘‘इस के बाद स्वाति मालीवाल ने बताया कि मैं उन के आवास परिसर में गई, जहां मैं अकसर जाती थी. वहां विभव कुमार मौजूद नहीं थे, इसलिए मैं ने आवास परिसर में एंट्री की और वहां मौजूद कर्मचारियों को जानकारी दी कि मैं यहां सीएम से मिलने के लिए आई हूं.

‘‘ये सब बातें एफआईआर में लिखी गई हैं. स्वाति मालीवाल ने आगे कहा कि मुझे बताया गया कि वे घर में मौजूद हैं और मुझे ड्राइंगरूम में इंतजार करने के लिए कहा है. मैं ड्राइंगरूम में गई और सोफे पर बैठ गई और उन से मिलने का इंतजार किया.

‘‘इस के बाद स्वाति मालीवाल ने बताया कि मुझे पता चला कि सीएम मिलने के लिए आ रहे हैं, लेकिन अचानक पीए विभव कुमार कमरे में घुस आए. उन्होंने बिना किसी उकसावे के चिल्लाना शुरू कर दिया. मुझे गालियां भी दीं. मैं स्तब्ध रह गई. इतना ही नहीं, मुझे थप्पड़ मारना शुरू कर दिया. जब मैं लगातार चिल्लाती रही, तो मुझे कम से कम 7 से 8 बार थप्पड़ मारे. मैं वहां मदद के लिए भी चिल्लाई थी. जानबूझ कर मेरी शर्ट ऊपर खींची.

‘‘स्वाति मालीवाल ने आगे बताया कि मैं ने उन से बारबार कहा कि मैं मासिक धर्म के दौर से गुजर रही हूं, कृपया मुझे जाने दें, लेकिन जाने नहीं दिया. फिर मैं वहीं बैठ गई. मैं ड्राइंगरूम के सोफे पर गई और हमले के दौरान जमीन पर गिरे अपने चश्मे को उठाया. इस के बाद 112 नंबर पर फोन किया और पुलिस को सूचना दी.’’

‘‘तुम ने स्वाति मालीवाल का पक्ष तो बता दिया, पर आम आदमी पार्टी तो इसे साजिश बता रही है. स्वाति मालीवाल वाले मामले में आप नेता और दिल्ली सरकार में मंत्री आतिशी ने पत्रकारों के सामने सीएम हाउस का पक्ष रखा.

‘‘आतिशी ने इस साजिश के पीछे भारतीय जनता पार्टी का हाथ बताया है. उन्होंने कहा कि स्वाति मालीवाल झूठ बोल रही हैं. सीएम केजरीवाल के पीए विभव कुमार पर झूठे आरोप लगाए जा रहे हैं. मुख्यमंत्री केजरीवाल घटना वाले दिन वहां पर नहीं थे. अब बताओ कि कौन सच बोल रहा है और कौन झूठ?

‘‘वैसे भी खबरों के मुताबिक, मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के साथ स्वाति मालीवाल की पहले से कोई मुलाकात तय नहीं थी. स्वाति जिस चोट की बात कह रही हैं, वह कहीं दिख नहीं रही.’’

गोमती भी कहां चुप रहने वाली थी, ‘‘ऐसा है तो राष्ट्रीय महिला आयोग ने स्वाति मालीवाल के मामले में अरविंद केजरीवाल के निजी सचिव विभव कुमार को क्यों नोटिस जारी किया था?

‘‘विभव कुमार को शुक्रवार, 17 मई, 2024 को सुबह 11 बजे कमीशन के सामने पेश होने के लिए कहा गया था, लेकिन वे एनसीडब्ल्यू के सामने पेश नहीं हुए.

‘‘एनसीडब्ल्यू की चीफ रेखा शर्मा ने बीबीसी संवाददाता दिलनवाज पाशा को बताया था कि आज विभव कुमार को दूसरा समन भेजा गया है. अगर वे नहीं आते हैं, तो उन्हें बुलाने के लिए पुलिस की मदद ली जाएगी.

‘‘रेखा शर्मा ने यह भी बताया कि महिला आयोग की टीम विभव कुमार के घर नोटिस देने के लिए गई थी, लेकिन वे घर पर नहीं थे.

‘‘रेखा शर्मा ने पत्रकारों से यह भी कहा कि विभव कुमार की पत्नी ने नोटिस लेने से मना कर दिया. मेरी टीम आज पुलिस के साथ उन के घर फिर से गई और अगर वे एनसीडब्ल्यू के सामने पेश नहीं हुए, तो हम खुद वहां जा कर जांच करेंगे.

‘‘इतना ही नहीं, रेखा शर्मा ने स्वाति मालीवाल का पक्ष लेते हुए कहा कि मैं स्वातिजी से ट्विटर पर कह रही थी कि वे अपनी आवाज उठाएं, लेकिन मुझे लगता है कि वे पार्टी नेता के घर में हुई घटना की वजह से सदमे में हैं. एक सांसद, जो हमेशा महिलाओं के मुद्दे उठाती रही हैं, उन्हें पीटा गया है.’’

‘‘इस खबर से तुम क्या साबित करना चाहती हो?’’ रामप्रकाश ने सवाल किया.

‘‘यही कि तुम उस सरपंच को ज्यादा भाव मत दो और उस के ज्यादा करीब मत रहो,’’ गोमती ने कहा.

‘‘पर, मेरे और संगीता के बीच ऐसा कुछ भी नहीं है. हम सरकारी काम के सिलसिले में आपस में मिलते हैं और एमपी साहब के प्रचार का काम करते हैं. उन का हाथ सिर पर रहेगा, तभी तो हमें भी थोड़ी मलाई खाने को मिलेगी.’’

‘‘मुझे नहीं चाहिए ऐसी मलाई, जिस में किसी पराई औरत की गंध शामिल हो,’’ गोमती का गुस्सा सातवें आसमान पर था, ‘‘और अब तो मेरी इस समस्या का हल तुम्हारे एमपी साहब के घर से ही मिलेगा. हम चारों कल ही उन के घर जाएंगे और मैं फरियाद करूंगी कि मुझे सरपंच के भूत से नजात दिलाएं.’’

उधर संगीता के घर का भी यही हाल था. वह भले ही गांव की सरपंच बन गई थी, पर अब भी घर पर उस की दो कौड़ी की हैसियत थी. पवन भी गोमती की तरह यह मान बैठा था कि रामप्रकाश और संगीता काम के बहाने अपनी ही कामवासना का गेम खेल रहे हैं.

पवन खाना खाने बैठा ही था कि संगीता के मोबाइल फोन की घंटी बजी. रामप्रकाश का फोन था. वह उस का नाम देख कर कुढ़ गया.

संगीता ने फोन उठाया, तो उधर से आवाज आई, ‘आज तो गजब हो गया. हम दोनों के घर देर से आने के चलते गोमती ने घर सिर पर उठा लिया है. वह नहीं मान रही है कि हम दोनों बारिश में फंस गए थे. अब हमें अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए एमपी साहब के घर जाना होगा. कल तुम तैयार रहना. पवन को भी मना लेना’

फोन कट गया. संगीता ने पवन की ओर देखा और बोली, ‘‘कल हमें एमपी साहब के घर जाना है.’’

‘‘क्यों? अब रामप्रकाश ने कौन सा प्रपंच रचा है?’’ पवन तो जैसे भरा बैठा था.

‘‘अब यह तो कल ही पता चलेगा,’’ इतना कह कर संगीता रसोईघर में चली गई.

अगले दिन दोपहर के 2 बज रहे थे. वे चारों एमपी साहब के घर पर थे. पर उस समय एमपी साहब घर पर नहीं थे. लोकसभा चुनाव के प्रचार के लिए दौरे पर थे. रामप्रकाश को थोड़ी निराशा हुई, पर जब एमपी साहब की पत्नी कुसुम देवी ने बाहर बैठक में आ कर रामप्रकाश की नमस्ते ली, तो रामप्रकाश का जी हलका हो गया. वह उन्हें थोड़ा अलग ले गया और अपनी समस्या बताई.

कुसुम देवी ने उन चारों को बिठाया और अपने नौकर से कह कर चाय मंगवाई, फिर उन्होंने गोमती से पूछा, ‘‘तुम्हें अपने पति पर यकीन नहीं है क्या?’’

गोमती पहले तो सकपका गई, फिर बोली, ‘‘ऐसा नहीं है, पर जब लोगों में कानाफूसी बढ़ जाती है, तो आंखों देखी मक्खी भी तो निगली नहीं जाती न.’’

‘‘अच्छा तो तुम लोगों ने यह मान लिया है कि रामप्रकाश और संगीता का ज्यादा घूमनाफिरना यह साबित करता है कि इन दोनों के बीच कोई नाजायज रिश्ता है’’

पवन कुछ नहीं बोला, पर उसे भी यही लगता था कि संगीता और रामप्रकाश में कुछ तो खिचड़ी पक रही है और ये दोनों घर से बाहर जा कर रंगरलियां मनाते हैं. संगीता को उस की चुप्पी अखर रही थी.

‘‘तुम लोगों की गलती नहीं है. पहले मैं भी एमपी साहब के दिनभर घर से बाहर रहने और तमाम मर्दऔरतों के मिलने के चलते परेशान रहती थी. मुझे लगता था कि ये राजनीति कम और ऐयाशी ज्यादा करते हैं, पर फिर समझ आने लगा कि दुनियाभर में बहुत से ऐसे काम हैं, जहां कोई मर्द हो या औरत, उसे परिवार से कट कर लोगों के बीच जाना ही पड़ता है. वहां तरहतरह की फितरत के मर्दऔरत से उन का वास्ता पड़ता है और बहुत बार तो अकेलेपन में उन में नजदीकियां भी बढ़ जाती हैं और इसे टाला नहीं जा सकता.

‘‘हमारा तो समाज ही ऐसा है कि औरतों को किसी पराए मर्द की नजदीकी के चलते गलत मान लिया जाता है. संगीता गांव की सरपंच है और रामप्रकाश हमारी पार्टी के जिलाध्यक्ष. चुनाव के दिनों में किसी भी नेता को ऐसे लोगों से बहुत काम पड़ता है. लिहाजा, इन्हें इधर से उधर दौड़ाया जाता है. न दिन देखा जाता और न ही रात.’’

‘‘लेकिन मैडम, इस में घर वाले क्या करें? हमें तो दुनिया को जवाब देना पड़ता है न,’’ पवन बोला.

‘‘तुम्हारी बात सही है, पर हमारे देश में तो सदियों से ऐसा होता आया है कि गलती चाहे मर्द की क्यों न हो, गाज तो औरत पर ही गिरती है. ‘महाभारत’ का वह किस्सा ही ले लो, जब विचित्रवीर्य की शादी कराने के लिए भीष्म ने काशीराज की 3 बेटियों का वाराणसीपुरी की स्वयंवर सभा से हरण कर लिया था,’’ कुसुम देवी ने कहा.

‘‘क्या किस्सा था यह?’’ रामप्रकाश ने पूछा.

‘‘उन तीनों लड़कियों का नाम अंबा, अंबिका और अंबालिका था. अंबा ने जब सुना कि भीष्म अपने छोटे भाई विचित्रवीर्य से उस की शादी कराना चाहते हैं, तो उस ने कहा कि वह राजा शाल्व को मन ही मन अपना पति मान चुकी है, तो भीष्म ने उसे शाल्व के यहां जाने की इजाजत दे दी और बाकी दोनों बहनों अंबिका और अंबालिका को विचित्रवीर्य की पत्नी के रूप में सौंप दिया. लेकिन शादी के 7 साल बाद ही विचित्रवीर्य नहीं रहे,’’ कुसुम देवी ने बताया.

‘‘मेरा कहने का मतलब यह है कि हमारे समाज में औरतों और लड़कियों से उन के मन की बात न तो जानी जाती है और न ही समझ जाती है. अब जब वे अपनी मरजी से घर से बाहर निकलने लगी हैं, तब भी उन्हें अच्छी नजर से नहीं देखा जाता है.

‘‘मेरा कहा मानो तो अपने दिमाग से यह बात बिलकुल निकाल दो कि संगीता और रामप्रकाश में कुछ गलत चल रहा है, तभी तुम चारों अपने परिवार को सही ढंग से संभाल पाओगे. अगर मैं एमपी साहब पर शक करती रहूंगी, तो वे कभी भी राजनीति में आगे नहीं बढ़ पाएंगे.’’

इतने में नौकर सब के लिए चाय ले आया. कुसुम देवी ने सब के साथ चाय पी. बाद में बैठक में लगे ठहाकों से ऐसा लग रहा था कि उन चारों की समस्या का हल मानो निकल आया है.

पकड़ौआ ब्याह : भाभी से कैसा परदा

ट्रेन पूरी स्पीड से भागी जा रही थी. ट्रेन के उस एसी कोच में सन्नाटा पसरा था. पराग के सामने वाली सीट पर भी कोई नहीं था. ऊपर की बर्थ पर एक बुजुर्ग बैठे थे, जो बीचबीच में ऊपर की बर्थ से नीचे उतर कर अपना नीचे रखा सूटकेस खोल कर देख लेते थे, फिर ऊपर की बर्थ पर जा कर लेट जाते थे.

पराग ने उस बुजुर्ग को नीचे वाली बर्थ पर आने को कहा, लेकिन उन का कहना था कि उन की बर्थ ऊपर वाली है. वे ऊपर ही रहेंगे. नीचे की बर्थ का पैसेंजर आ गया, तो फिर उठना पड़ेगा.

पराग ने फिर दोबारा नहीं कहा. वह जानता था कि पैसेंजर को आना होता तो अब तक आ गया होता. खैर, वह फिर अपना लैपटौप खोल कर बैठ गया.

तकरीबन 25 साल का पराग दिल्ली मैट्रो रेल में नौकरी करता था. सालभर पहले ही उस की नौकरी लगी थी. लेकिन अब वह दिल्ली मैट्रो रेल की नौकरी छोड़ने वाला था, क्योंकि दिल्ली की ही एक अच्छी कंपनी में उसे आटोमोटिव इंजीनियर की नौकरी मिल गई थी.

थोड़ी देर में ही लैपटौप बंद कर पराग खिड़की से बाहर देखने लगा. अगस्त का महीना था. हलकीहलकी फुहार थी. हरियाली की चादर चारों ओर थी. कुदरत मानो मुसकरा रही थी. छोटेछोटे टीले ऊंचेनीचे छोटे से पहाड़, जगहजगह तालाबों में पानी भरा था.

ऐसा ही खुशनुमा मौसम था, जब पराग की मुलाकात गोमती से हुई थी. गोमती अब 23 साल की होगी. गोमती उस के गांव की लड़की. गांव की मिट्टी सी सौंधीसौंधी खुशबू उस के पूरे शरीर से उठती हुई महसूस होती.

पराग आज भी वह 2 साल पहले की बारिश का दिन नहीं भूलता, जब गांव के पेड़ों पर सावन के ?ाले डल गए थे. गोमती अपने घर के बाहर बगीचे के झूले में झाला झूल रही थी. नीले रंग के सलवारसूट में लंबी लहराती चोटी, उस पर बारिश की फुहारें… सूट भीग कर

उस के शरीर से चिपक गया था, जिस से उस का शरीर किसी अजंता की मूरत सा दिख रहा था.

पराग का दिल पहली बार इतनी जोर से धड़का था. उसे अपने दिल की धड़कन की आवाज सुनाई देने लगी थी. पराग ने बारिश से बचने के लिए कुछ नहीं लिया था. न रेनकोट, न ही छाता. उसे हलकी फुहार में भीगना पसंद था.

भीगे हाथों से ही गोमती ने घर की डोरबैल दबा दी थी. गोमती के पापा गांव के जमींदार थे. नाम था तेजबहादुर. जैसे ही उन्होंने पराग को देखा, खुश हो गए.

‘‘आओ, पराग बेटा.’’

पराग बोला, ‘‘अंकलजी, मैं भीगा हुआ हूं, अंदर नहीं आऊंगा. अम्मां ने मखाने की खीर और आलू की पूरियां भेजी हैं,’’ पराग अपने साथ लाया टिफिन तेजबहादुर को थमा ही रहा था कि गोमती वहां आ गई और तेजबहादुर से टिफिन ले कर अंदर जाने लगी.

‘‘अरी, कपड़े तो बदल ले पहले, खीर कहां भागी जा रही है?’’ बेटी का उतावलापन देख तेजबहादुर हंस दिए. वे जानते थे कि पराग की अम्मां जब भी मखाने की खीर बनाती हैं, उन के घर जरूर पहुंचाती हैं.

पराग फिर वापस घर लौट आया था, लेकिन उस दिन लगा था जैसे दिल वहीं गोमती के पास छोड़ आया है. वह बचपन से गोमती को देखता आ रहा है. कालेज की पढ़ाई के लिए ही वह गांव से बाहर गया था, लेकिन इस नजर से उस ने गोमती को नहीं देखा था.

पराग जब वापस घर आया था, तो अम्मां ने उसे खोयाखोया सा देख कर अनेक सवाल किए थे. खीर खातेखाते भी भीगी गोमती दिख रही थी, तो खीर का चम्मच मुंह के बजाय कपड़ों पर गिर पड़ा था. अम्मां जोर से हंसने लगी थीं. बापू भी हंस दिए थे. बड़े भाई अनुराग ने भांप लिया था कि कुछ तो बात है. छोटा भाई गुमसुम है.

बड़े भाई अनुराग ने एक दिन पराग से पूछ ही लिया था. पराग ने उन्हें अपने दिल की बात बता दी थी.

‘‘अरे वाह, यह तो अच्छी बात है. तू गांव में रहता तो बापू से बात करते, पर तू ठहरा शहरी बाबू, नौकरी करने शहर जाएगा,’’ अनुराग भैया ने कहा.

‘‘भैया, वह तो मैं करूंगा ही. मेरा सपना है, शहर में नौकरी करना,’’ पराग बोला.

‘‘तो फिर एक काम कर कि गांव में तब तक रुक जा, जब तक गोमती के दिल की बात भी न जान ले,’’ अनुराग भैया ने कहा.

यह सुन कर पराग खुश हो गया. कुछ दिन बाद पराग को पता चला कि गोमती की एक बड़ी बहन भी है, जो ज्यादातर घर पर ही रहती है. उस के पैर में थोड़ी सी लंगड़ाहट है और नाम रेवती है. पर पराग को गोमती से मतलब था. उस ने गोमती से मिलने का समय भी मांग लिया था.

दूसरे दिन तालाब के मंदिर के पास शाम ढले गोमती इंतजार करती मिली.

वह आज साड़ी में थी. कमर तक चोटी किसी नागिन सी लग रही थी. हलकी पीली साड़ी में उस का रंग बादामी लग रहा था. छोटी सी बिंदी खूबसूरत लग रही थी. नाक में छोटी सी नथ थी. पराग तो मानो उस मुलाकात में पगला सा गया था, जब वह सिमट कर उस की बांहों में आई थी.

‘‘कुछ बोलोगे भी या यों ही बुत बन कर खड़े रहोगे?’’

‘‘क्या कहूं…’’ पराग की आवाज लरज रही थी, फिर भी वह बोला, ‘‘गोमती, हम गांव में साथ ही रहते हैं. एकदूसरे को पसंद भी करते हैं. क्यों न हम जीवनसाथी भी बन जाएं?’’

‘‘बात तो ठीक है तुम्हारी, पर तुम को शहर में जाना है. हमारे घर वाले कैसे मानेंगे?’’ गोमती बोली.

‘‘तो क्या हुआ… शहर में नौकरी लगेगी, तो हम शहर में रहेंगे. गांव में आतेजाते रहेंगे,’’ पराग ने समझाया. फिर वे काफी देर तक वहां रहे और आगे भी मिलते रहे.

एकदम से ट्रेन रुक गई और पराग अपने खयालों से बाहर निकल आया. देखा कि स्टेशन आ गया है. अब यहां से कुछ ही घंटे में बस से अपने गांव पहुंच जाएगा.

जब बस रुकी, तो गांव रतिहानी आ चुका था. अब बस 10 मिनट का रास्ता था. जगहजगह कीचड़ और गड्ढों से बचता हुआ पराग घर पहुंचा. उस ने घर के बड़े गेट को खोला ही था कि पूरा घर लाइट से जगमगा गया. उसी का इंतजार हो रहा था.

भैया, बापू, अम्मां, सब दौड़े चले आए. भाभी गुड़ और पानी ले आईं. पराग ने गुड़ खा कर पानी पिया, फिर कपड़े बदलने चला गया. देर रात हो गई थी, सब अपनेअपने कमरों में चले गए.

सुबह तेज बारिश थी. पराग देर तक सोता रहा. भैया भी खेतों में नहीं गए थे. भाभी 2-3 बार आवाज दे चुकी थीं.

जब पराग उठा, तो सुबह के 9 बज रहे थे. पराग उठ कर किचन में ही चला गया. अरमान भैया ने पराग को देखा, तुरंत ही चाय का कप पकड़ा दिया.

पराग ने चाय जल्दी खत्म की और नहाधो कर अनुराग भैया के साथ नाश्ता करने बैठ गया. नाश्ते के बाद दोनों भाई कमरे में बंद हो गए. भाभी भी कमरे में चली आईं, तो पराग एकदम चुप हो गया.

‘‘भाभी से कैसा परदा, जानते हैं हम गोमती के बारे में,’’ कह कर भाभी जोर से हंस दीं.

‘‘तू बता, गोमती से तो बात होती होगी?’’ भैया ने पूछा.

‘‘हां भैया, होती है.’’

दोनों भाई बड़ी देर तक बतियाते रहे.

दूसरे दिन गांव के दोस्त मिलने आए, पर पराग बेताब था गोमती से मुलाकात करने के लिए. शाम को मिलना तय था. आज मौसम खुला था. जैसे ही दोस्त गए, पराग अपने कमरे में गया, जल्दी से कपड़े बदले.

पराग बाहर आ कर मोटरसाइकिल स्टार्ट कर ही रहा था कि बापू अचानक सामने से आते दिखे, ‘‘कहां चल दिए शहरी बाबू?’’

‘‘बापू, थोड़ा गांव का चक्कर लगाने जा रहा हूं,’’ पराग बोला.

‘‘बाद में चक्करवक्कर लगा लेना, अभी मौसम खराब है.’’

‘‘बारिश बंद है बापू,’’ पराग प्यार से बोला.

‘‘जवान लड़के को क्यों डांट रहे हो?’’ अम्मां उन दोनों की बातें सुनतेसुनते बाहर आईं.

‘‘जाने दो, थोड़ी देर में आ जाएगा,’’ अम्मां ने बेटे की तरफदारी की.

‘‘बेवकूफ हो तुम, नौकरी लगने बाद पहली बार घर आया है, आराम करे,’’ बापू गुस्सा हुए.

‘‘बापू, बस थोड़ी देर में आता हूं,’’ पराग बोला.

‘‘एक काम कर, जाना ही है तो भाई को साथ ले जा,’’ बापू बोले.

पराग को गुस्सा आ गया, ‘‘बापू, मैं बड़ा हो गया हूं, भैया के साथ जाऊंगा?’’

‘‘बापू सही बोल रहे हैं. मैं भी साथ चलता हूं,’’ भैया अंदर आतेआते बोले.

‘‘भैया, आप भी…’’ पराग गुस्साया.

‘‘चल, आ जा,’’ कहते हुए भैया मोटरसाइकिल पर बैठ गए.

मजबूरन पराग को मोटरसाइकिल स्टार्ट करनी पड़ी. थोड़ी दूर जा कर पराग मोटरसाइकिल रोकते हुए बोला, ‘‘भैया, पता है आप को कि मैं गोमती से मिलने जा रहा हूं.’’

‘‘तो क्या हुआ? मैं थोड़ी दूरी पर रहूंगा. तू मिल लेना,’’ भैया बोले.

‘‘भैया, ऐसे मजा नहीं आएगा,’’ पराग बोला.

‘‘तो क्या करूं?’’ भैया बोले.

‘‘तब तक आप किसी दोस्त के पास हो लो,’’ पराग बोला.

‘‘कहीं कोई बात हो गई तो बापू मेरे पैर तोड़ देंगे,’’ भैया अनुराग ने कहा.

‘‘भैया, क्या मैं बच्चा हूं? क्या ऊंचनीच होगी?’’ पराग बोला.

‘‘अच्छाअच्छा ठीक है, पर ध्यान रखना अपना,’’ कहतेकहते भैया वहां से चले गए.

यह सुन कर पराग हंस दिया, फिर उस ने अपनी मोटरसाइकिल तालाब की तरफ मोड़ दी.

इतने में पराग का मोबाइल फोन बज उठा. मजबूरन उसे रुकना पड़ा. देखा तो गोमती का नाम चमक रहा था.

‘‘कहां अटक गए? मैं इंतजार कर रही हूं,’’ गोमती की आवाज नाराजगी से भरी थी.

‘‘मैं बस पहुंच ही रहा हूं. रास्ते में हूं,’’ पराग बोला.

‘‘मां ने कुछ सामान लाने को कहा था. तुम से मिल कर फिर बाजार जाऊंगी,’’ गोमती बोली.

‘‘छोटा सा बाजार है. पहले हम दोनों मोटर साइकिल से घूमेंगे, फिर तुम को बाजार के नजदीक छोड़ दूंगा.’’

‘‘ठीक है,’’ फिर गोमती बोली, ‘‘घर कब आओगे पापा से बात करने?’’

‘‘भैया को सब पता है. भैया पापा को समझ कर साथ लाएंगे. अच्छा फोन काटो, मिल कर बात करेंगे,’’ इतना कह कर पराग मोबाइल अपनी जेब में रखने लगा कि इतने में उस के सिर पर किसी ने चोट की और उस का चेहरा पूरे कपड़े से ढक दिया गया. हाथ एकदम से पीछे बांध दिए गए.

यह सब इतना अचानक हुआ कि पराग संभल नहीं पाया. वह चिल्लाने लगा. उस के चिल्लाने पर उस का मुंह भी बांध दिया गया.

पराग को एक दिशा में ले जाया जाने लगा. तकरीबन 10 मिनट बाद गाड़ी को रोक दिया गया, फिर दोनों कंधों से पकड़ कर उसे दरवाजे से बाहर धकेल दिया गया.

थोड़ी दूर चलने के बाद पराग की आंखों की पट्टी खोल दी गई. पीछे बंधे हाथ भी खोल दिए गए. जब उस ने अपनेआप को संभाला तो देखा कि सामने 2-3 आदमी खड़े थे. सभी के चेहरे ढके हुए थे और हाथों में बंदूकें थीं.

‘‘पराग बाबू, जल्दी कपड़े बदलो. उतारो यह शर्ट.’’

फिर पराग को शादी के कपड़े पहनाए गए. सिर पर चमकीली पगड़ी रख दी गई.

पराग सम?ा गया कि वह पकड़ौआ गैंग का शिकार बन गया है. गोमती इंतजार करतेकरते चली गई होगी.

‘‘मैं पुलिस में रिपोर्ट करूंगा,’’ पराग ने आवाज को कड़क बनाते हुए कहा.

‘‘वह भी कर लेना, पहले शादी कर लो,’’ एक आदमी बोला.

पराग को पकड़ कर शादी के मंडप में बिठा दिया गया. वहां पहले से लाल जोड़े में सजी दुलहन बैठी थी.

‘‘मैं इस को शादी नहीं मानता. मैं पढ़ालिखा हूं,’’ पराग ने हिम्मत की.

‘‘पढ़ेलिखे हो, इसलिए उठवाए गए हो पराग बाबू,’’ एक आवाज ने चौंका दिया. सामने देखा तो गोपाल काका थे.

‘‘गोपाल काका आप…?’’ पराग के चेहरे पर हैरानी थी.

‘‘हां बेटा, पर यहां गलत कुछ भी नहीं हो रहा है, बस तुम शांत रहो.’’

‘‘यह जुल्म है,’’ पराग गिड़गिड़ाया.

‘‘कोई जुल्म नहीं है. पंडितजी, आप मंत्र पढ़ो,’’ काका बोले.

मुश्किल से आधे घंटे में शादी के मंत्र पढ़ कर पंडित ने फेरे करवा दिए. गोपाल काका वहां काम में हाथ बंटवा रहे थे, इसलिए उन का चेहरा ढका नहीं था, बाकी लोगों के चेहरे ढके थे.

‘‘चलो, खड़े हो जाओ,’’ पंडित के इतना कहते ही पराग दुलहन के साथ खड़ा हो गया.

‘‘चलो, पैर छुओ इन के,’’ गोपाल काका ने कहा.

पराग ने देखा कि सामने एक चेहरा ढका आदमी था. पास ही एक औरत भी अपना चेहरा ढके हुए खड़ी थी. पराग उन के पैरों में झुक गया. उन दोनों ने पराग के सिर पर हाथ रखा. पराग को उस की दुलहन के साथ वापस कार में बिठा दिया गया. कार चल पड़ी.

तकरीबन आधे घंटे बाद कार गांव के अंदर दाखिल होने लगी. कार पराग के घर के सामने जा कर रुक गई.

‘‘चलो, उतरो जल्दी,’’ साथ आए आदमी ने कहा.

बाहर पराग अनुराग भैया और बापू परेशान घूम रहे थे कि कार को रुकते देख तुरंत नजदीक आए. बापू का गुस्सा हद पर था.

‘‘मैं ने बोला था कि अकेले मत जाओ, भैया को ले कर जाओ. ज्यादा होशियार बन रहे थे, अब भुगतो.’’

पराग बोला, ‘‘बापू, मैं इस शादी को नहीं मानता.’’

‘‘अब तो मानना पड़ेगा बेटा,’’ बापू बोले, ‘‘अब कुछ नहीं हो सकता.’’

‘‘पराग की मां, आरती की थाली ले आओ और बहू को अंदर ले जाओ.’’

पराग की मां आरती की थाली ले कर आईं और उन दोनों को अंदर ले गईं.

पराग गुस्से में था. उस ने गले की माला निकाल कर तोड़ दी और बड़े भैया के गले लग कर रोने लगा.

थोड़ी देर के बाद पराग बाहर आंगन में चला गया और वहां बिछी खाट पर सो गया. दुलहन अकेली कमरे में उस का इंतजार करती रही.

‘‘अरे वीरभद्र बाबू, कहां हो भई…’’ जोरजोर से दरवाजा खटखटाने की आवाज आई.

‘‘बापू तो सुबहसुबह खेतों की तरफ निकल गए थे,’’ बड़े भैया अनुराग बोले.

इतने में पराग के बापू भी बाहर से आते दिखे. पराग जाग तो गया था, पर सिर पर चादर ओढ़े सुन रहा था.

‘‘कहां सुबहसुबह शोर मचा हुआ है,’’ सोचते हुए पराग ने चादर के अंदर ही मोबाइल फोन देखा. सुबह के साढ़े 9 बज रहे थे.

‘‘अभी यों ही पड़ा रहता हूं. शोर कम हो जाए, तब उठूंगा. सारी रात टैंशन में था,’’ पराग ने सोचा.

‘‘अरे, जमींदार बाबू, आप…’’ पराग के बापू की आवाज में हैरानी थी.

‘‘अरे भई, लड्डू खाओ. अब हम समधी हैं,’’ तेजबहादुर की ऊंची आवाज गूंजी और यह कहतेकहते लड्डू पराग के बापू के मुंह में ठूंस दिया.

यह सुनते ही पराग के दिल की धड़कन तेज होने लगी. मतलब, तेजबहादुर बापू के समधी तो क्या घूंघट में गोमती है? वह समझ नहीं पाया.

मां खुशी से चिल्ला पड़ीं, ‘‘पराग, ओ पराग.’’

बापू और तेजबहादुर घर के अंदर बैठक में आ गए.

अब पराग ने सोचा कि उसे उठना चाहिए, क्योंकि बैठक से खुशियों भरे ठहाकों की आवाज आ रही थी.

पराग तुरंत उठा और तकरीबन दौड़ता हुआ अपने कमरे से बाहर आया. उस ने सोचा कि पहले फ्रैश हो ले, घर में देर तक बातें चलेंगी.

पराग नहाधो कर निकला ही था, तभी पीछे से किसी ने उसे अपनी बांहों में कस लिया. उस के दिल की धड़कन तेज होने लगी. वह पलटा, गोमती सामने थी. तुरंत ही उस ने अपने गीले होंठ गोमती के प्यासे होंठों पर रख दिए. उसे लगा कि उसे उस की मंजिल मिल गई है.

तभी गोमती ने खुद को छुड़ाया और तुरंत ही बैठक में चली गई. पराग खुश हो गया. उस ने अपनी पसंद की सब से प्यारी शर्ट पहनी. हलकी खुशबू वाला परफ्यूम लगा कर वह भी बैठक में आ गया.

गरमागरम पकौड़ों का दौर चल रहा था. पराग के आते ही बैठक में मानो जान पड़ गई.

‘‘आओ बेटा,’’ तेजबहादुर बोले.

‘‘इन के पैर छुओ बेटा, ये तुम्हारे ससुर हैं,’’ बापू खुश हो कर बोले.

पराग ने ?ाक कर पैर छू लिए. वह सम?ा गया कि गोमती से उस की शादी कर दी गई है. गोमती भी वहीं बैठी थी और तिरछी नजरों से उसे देख कर मुसकराए जा रही थी.

तभी अंदर से हलकी गुलाबी साड़ी में लिपटी घूंघट किए बहू आई. मां ने उसे अंदर वाले कमरे में ही बिठा दिया.

पराग का सिर चकरा उठा. इस का मतलब घूंघट में दुलहन कोई दूसरी है, क्योंकि गोमती तो सामने है.

गोमती की बहन रेवती पराग की पत्नी हुई. पराग अपने बड़े भैया को इशारा करता हुआ अंदर चला गया. बड़े भैया जल्दी से अंदर चले आए.

‘‘बोल, क्या हुआ?’’ भैया ने पूछा.

‘‘भैया, मुझे बचा लो. मैं इस शादी को नहीं मानता. गोमती के पापा से बात कर के मेरी शादी गोमती से करवा दो. प्लीज भैया.’’

‘‘देख पराग, जो हुआ सो हुआ, अब कुछ नहीं हो सकता,’’ भैया बोले.

‘‘भैया, आप तो मेरी फीलिंग को समझ,’’ पराग गिड़गिड़ाया.

‘‘देख, एक काम कर,’’ भैया सोचते  हुए बोले.

‘‘क्या…?’’ पराग थोड़ा उतावलेपन से बोला.

‘‘तू गोमती से मुलाकात कर ले आज ही, अगर वह राजी है, तो मैं तेरी शादी गोमती से करवा देता हूं, वहीं तेरे शहर दिल्ली में… बोल? जरूरत पड़ने पर कानून का सहारा लेंगे.’’

‘‘हां, यह हो सकता है,’’ पराग खुश हो गया. उस ने मोबाइल से मैसेज कर दिया कि आज शाम 6 बजे पीपल के पेड़ के नीचे मिलो.

गोमती का मैसेज तुरंत आ गया, ‘क्यों नहीं.’

शाम को सूरज की सुनहरी किरणें तालाब के पानी में चमक रही थीं. पीपल के चबूतरे पर बैठी गोमती पराग का इंतजार कर रही थी.

पराग के आते ही गोमती उस से लिपट गई. पराग ने भी बेताबी से उसे अपने में समेट लिया. गोमती ने पराग की शर्ट के बटनों से खेलते हुए कहा, ‘‘पराग, अब हम हमेशा साथ रहेंगे. कोई हमें अलग नहीं कर सकता.’’

‘‘हां गोमती…’’ पराग ने गोमती के बिखरे बालों को सहलाते हुए कहा, ‘‘गोमती, हम दोनों शादी कर

लेते हैं.’’

‘‘क्या… शादी?’’ गोमती अचानक चौंक गई.

‘‘इस में चौंकने की क्या बात है?’’ पराग ने सवाल किया.

‘‘शादी की क्या जरूरत है?’’ गोमती बोली, ‘‘समय ने हमें मिला तो दिया, चाहे किसी भी रूप में, तुम मेरे जीजू हुए. हमें यों भी कोई मिलने से नहीं रोक सकता.’’

‘‘अरे…’’ पराग हैरान था.

‘‘सही तो है… हम सबकुछ कर सकते हैं और करेंगे भी. मैं तो खुश हूं. सुहागरात भी मनाएंगे आज ही.’’

‘‘पागल तो नहीं हो गई हो गोमती, दिमाग ठिकाने पर है तुम्हारा? मैं ने तुम से प्यार किया है. अभी तक रेवती का तो घूंघट उठा कर उस का चेहरा भी नहीं देखा है.’’

‘‘तो फिर हम क्या करें पराग? तुम बताओ?’’ गोमती बोली.

‘‘तुम राजी हो तो सारी बातें घर वालों को बता देते हैं. हो सकता है कि तुम्हारे और मेरे पापा मान जाएं,’’ पराग ने समझाया. गोमती चुप रही.

‘‘हम कानून की भी मदद ले सकते हैं,’’ पराग ने दोबारा कोशिश की.

‘‘नहीं पराग, ऐसा नहीं हो पाएगा. पापा नहीं मानेंगे,’’ गोमती बोली, ‘‘इस गांव की प्रथा ही है, कोई अच्छी नौकरी वाला लड़का मिल गया तो ठीक, नहीं तो पकड़ौआ ब्याह कर देते हैं, अपहरण कर के. तुम ऐसे भोले बन रहे हो, जैसे जानते ही नहीं हो,’’ गोमती रूठने वाले अंदाज में बोली.

‘‘पता है, लेकिन गाज मुझ पर ही गिरेगी, यह पता नहीं था,’’ पराग दुखी था, ‘‘हम कानून की मदद ले कर भी इस समस्या का हल कर सकते हैं गोमती,’’ पराग बोला, ‘‘तुम भी प्यार करती हो न मुझ से?’’

‘‘प्यार करती हूं, पर क्या हम बिना शादी किए जिस्मानी रिश्ता नहीं बनाए रख सकते?’’ गोमती बोली.

‘‘नहीं गोमती, मैं तुम से शादी करना चाहता हूं. दिल पर बोझ नहीं होना चाहिए. यह रेवती के साथ नाइंसाफी होगी.’’

‘‘जिसे तुम ने देखा नहीं, उस के साथ कैसी नाइंसाफी?’’ गोमती बोली.

‘‘मैं आखिरी बार पूछ रहा हूं गोमती, क्या चाहती हो तुम?’’ पराग ने पूछा.

‘‘तुम्हारी बनी रहना चाहती हूं,’’ कह कर गोमती पराग के सीने से लिपट गई.

पराग फिर बेबस हो गया. उस ने हाथ आगे नहीं बढ़ाया. गोमती को सीने से लिपटा रहने दिया.

‘‘क्या हुआ पराग? प्यार करो न,’’ गोमती ने कहा, ‘‘हम दोनों सभी सीमाएं तोड़ कर एक हो जाएं,’’ गोमती की सांसें तेज होने लगी थीं.

‘‘मुझे ऐसा प्यार नहीं चाहिए. मैं वापस जा रहा हूं,’’ कहतेकहते पराग मोटरसाइकिल की तरफ बढ़ने लगा, तभी गोमती ने उस का हाथ पकड़ कर अपनी ओर खींचा.

‘‘गोमती, अब भी मौका है, सोच लो,’’ पराग बोला,

‘‘नहीं पराग, इतनी परेशानियों, लड़ाई झगड़े, कानून, पुलिस के लफड़े में नहीं फंसना मुझे.’’

पराग ने कोई जवाब नहीं दिया और मोटरसाइकिल स्टार्ट कर दी. पराग ने भैया को फोन कर दिया.

‘‘क्या हुआ पराग? क्या जवाब दिया गोमती ने?’’ भैया अनुराग ने पूछा.

‘‘भैया, आप सही बोले थे. मैं अपनी दुलहन रेवती को ले कर दिल्ली जाऊंगा. मांबापू को भी बता देना,’’ पराग की मोटरसाइकिल हवा से बातें करने लगी.

प्रेमी ने प्रेग्नेंट किया, अबॉर्शन कराया, अब मेरी कहीं ओर शादी हो रही है, घबरा रही हूं

सवाल

मैं 24 साल की हूं और जल्दी ही मेरी शादी होने वाली है. लेकिन एक साल पहले तक मेरा एक लड़के से प्यार का चक्कर चल रहा था और हम दोनों के बीच जिस्मानी रिश्ता बन गया था. तब मैं पेट से हो गई थी, पर प्रेमी ने शादी करने से मना कर दिया, तो मैं ने वह बच्चा गिरवा दिया और उस लड़के से रिश्ता भी तोड़ दिया.

अब चूंकि मांबाप मेरी शादी कराना चाहते हैं, तो मुझे समझ नहीं आ रहा है कि मैं क्या करूं? अगर मेरी ससुराल वालों को मेरे चक्कर के बारे में पता चल गया तो…? इस बात से मुझे तनाव रहने लगा है. क्या करूं?

जवाब

मजा कब सजा बन जाए, कहा नहीं जा सकता, लेकिन आप बेवजह डरें नहीं. अपने उस दगाबाज प्रेमी से बिलकुल भी रिश्ता न रखें और बच्चा गिराते वक्त के डाक्टरी परचे वगैरह हों, तो उन्हें जला कर राख कर दें. पूरी ईमानदारी और विश्वास से नई जिंदगी में दाखिल हों. अपनी फिटनैस और सेहत पर ध्यान दें. वक्त के साथसाथ सब ठीक हो जाता है.

बलि और हैवानियत का गंदा खेल

हमारे देश में सैकड़ों सालों से अंधविश्वास चला आ रहा है. दिमाग में कहीं न कहीं यह झूठ घर करा दिया गया है कि अगर गड़ा हुआ पैसा हासिल करना है, तो किसी मासूम की बलि देनी होगी. जबकि हकीकत यह है कि यह एक ऐसा झूठ है, जो न जाने कितनी किताबों में लिखा गया है और अब सोशल मीडिया में भी फैलता चला जा रहा है.

ऐसे में कमअक्ल लोग किसी की जान ले कर रातोंरात अमीर बनना चाहते हैं. मगर पुलिस की पकड़ में आ कर जेल की चक्की पीसते हैं और ऐसा अपराध कर बैठते हैं, जिस की सजा तो मिलनी ही है.

सचाई यह है कि यह विज्ञान का युग है. अंधविश्वास की छाई धुंध को विज्ञान के सहारे साफ किया जा सकता है, मगर फिर अंधविश्वास के चलते एक मासूम बच्चे की जान ले ली गई.

देश के सब से बड़े धार्मिक प्रदेश कहलाने वाले उत्तर प्रदेश के इटावा जिले में एक तथाकथित तांत्रिक ने2 नौजवानों के साथ मिल कर एक 8 साल के मासूम बच्चे की गला रेत कर हत्या कर दी थी और तंत्रमंत्र का कर्मकांड किया गया था. उस बच्चे की लाश को गड्डा खोद कर छिपा दिया गया था.

ऐसे लोगों को यह लगता है कि अंधविश्वास के चलते किसी की जान ले कर के वे बच जाएंगे और कोई उन्हें पकड़ नहीं सकता, मगर ऐसे लोग पकड़ ही लिए जाते हैं. इस मामले में भी ऐसा ही हुआ.

अंधविश्वास के मारे इन बेवकूफों को लगता है कि ऐसा करने से जंगल में कहीं गड़ा ‘खजाना’ मिल जाएगा, मगर आज भी ऐसे अनपढ़ लोग हैं, जिन्हें लगता है कि जादूटोना, तंत्रमंत्र या कर्मकांड के सहारे गड़ा खजाना मिल सकता है.

समाज विज्ञानी डाक्टर संजय गुप्ता के मुताबिक, आज तकनीक दूरदराज के इलाकों तक पहुंच चुकी है और इस के जरीए ज्यादातर लोगों तक कई भ्रामक जानकारियां पहुंच जाती हैं. मगर जिस विज्ञान और तकनीक के सहारे नासमझी पर पड़े परदे को हटाने में मदद मिल सकती है, उसी के सहारे कुछ लोग अंधविश्वास और लालच में बलि प्रथा जैसे भयावाह कांड कर जाते हैं, जो कमअक्ली और पढ़ाईलिखाई की कमी का नतीजा है.

डाक्टर जीआर पंजवानी के मुताबिक, कोई भी इनसान इंटरनैट पर अपनी दिलचस्पी से जो सामग्री देखतापढ़ता है, उसे उसी से संबंधित चीजें दिखाई देने लगती हैं, फिर पढ़ाईलिखाई की कमी और अंधश्रद्धा के चलते, जिस का मूल लालच है, अंधविश्वास के जाल में लोग उल?ा जाते हैं और अपराध कर बैठते हैं.

सामाजिक कार्यकर्ता सनद दास दीवान के मुताबिक, अपराध होने पर कानूनी कार्यवाही होगी, मगर इस से पहले हमारा समाज और कानून सोया रहता है, जबकि आदिवासी अंचल में इस तरह की वारदातें होती रहती हैं. लिहाजा, इस के लिए सरकार को सजग हो कर जागरूकता अभियान चलाना चाहिए.

हाईकोर्ट के एडवोकेट बीके शुक्ला ने बताया कि एक मामला उन की निगाह में ऐसा आया था, जिस में एक मासूम की बलि दी गई थी. कोर्ट ने अपराधियों को सजा दी थी.

दरअसल, इस की मूल वजह पैसा हासिल करना होता है. सच तो यह है कि लालच में आ कर पढ़ाईलिखाई की कमी के चलते यह अपराथ हो जाता है.

लोगों को यह सम?ाना चाहिए कि किसी भी अपराध की सजा से वे किसी भी हालत में बच नहीं सकते और सब से बड़ी बात यह है कि ऐसे अपराध करने वालों को समाज को भी बताना चाहिए कि उन के हाथों से ऐसा कांड हो गया और उन्हें कुछ भी नहीं मिला, उन के हाथ खाली के खाली रह गए.

काले धन का नया झांसा

भारत में लोकसभा चुनाव का प्रचार जब अपनी हद पर था, तो 6 मई, 2024 को देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हैदराबाद में कहा था, ‘‘मैं भ्रष्टाचार से लूटे गए गरीबों के धन को वापस करने के बारे में कानूनी सलाह ले रहा हूं. मेरा ध्यान मेरे लिए इस्तेमाल किए जाने वाले अपशब्दों पर नहीं, बल्कि उन गरीब लोगों पर है, जिन का धन लूटा गया है. इस के लिए कानूनी सलाह ली जा रही है कि वह धन गरीबों को वापस कैसे किया जा सकता है.’’

दरअसल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह कहते हुए सीधेसीधे यह बात मान ली है कि दुनिया की 5वीं बड़ी अर्थव्यवस्था बनने के बाद भी देश में इफरात से गरीब और गरीबी है.

दूसरी बात यह कि 8 नवंबर, 2016 को नोटबंदी के फैसले के समय नरेंद्र मोदी की ही की गई यह घोषणा भी खोखली निकली कि इस से देश में काला धन खत्म हो जाएगा.

इसी से जुड़ी तीसरी अहम बात यह कि 10 साल में काले धन को बंद करने के लिए कुछ नहीं कर पाए हैं, उलटे, यह दिनोंदिन बढ़ ही रहा है. इस के लिए उन्होंने जो कुछ कर रखा है, वह अभी किसी को नजर नहीं आएगा. हां, जिस दिन जनता उखाड़ फेंकेगी, उस दिन जोजो सामने आएगा, उस की भी कल्पना हर कोई नहीं कर सकता.

चौथी और असल बात यह थी कि 80 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन और दूसरी योजनाओं के जरीए इमदाद देने के बाद भी भाजपा को उम्मीद के मुताबिक वोट और सीटें नहीं मिल रही हैं, इसलिए वोटों के लिए वही लालच दिया जा रहा है, जो आज से 10 साल पहले दिया गया था कि देश में इतना काला धन है कि उसे पकड़ कर हरेक के खाते में 15-15 लाख डाल दूंगा.

नरेंद्र मोदी के इस ?ांसे से लोगों को कोई खास खुशी नहीं हुई, क्योंकि वे एक बार नहीं, बल्कि कई बार ऐसे धोखे पिछले 10 साल में खा चुके हैं.

इत्तिफाक से इसी दिन झारखंड के ग्रामीण विकास मंत्री आलमगीर के पीएस संजीव लाल के नौकर जहांगीर आलम के यहां से तकरीबन 35 करोड़ रुपए की नकदी बरामद हुई थी, जिसे चारा बना कर जनता के सामने उन्होंने पेश किया कि इस पैसे पर पहला हक तुम्हारा है, जो तुम्हें दिया भी जा सकता है, लेकिन इस के लिए जरूरी है कि मुझे तीसरी बार प्रधानमंत्री बनाओ.

अब इस इत्तिफाक में लोग भाजपा सरकार का यह रोल भी देख रहे हैं कि कहीं यह उस का ही कियाधरा तो नहीं. वजह, आजकल सबकुछ मुमकिन है और चुनाव जीतने के लिए नेता किसी भी हद तक जा सकते हैं. यह पैसा ईमान का था या बेईमानी का, इस बारे में कोई भी दावे से कुछ नहीं कह सकता. इस में हैरानी की एकलौती बात यह है कि इसे संभाल कर कमरे में रखा गया था यानी इसे कभी न कभी खर्च किया जाता, जिस से यह बाजार में आता.

मंदिरों में तो जाम है पैसा

जो नकदी झारखंड से बरामद हुई, वह उन पैसों के आगे कुछ नहीं है, जो मंदिरों में जाम पड़ा है. तथाकथित भ्रष्टाचार का पैसा अगर गरीबों का है, तो मंदिरों में सड़ रहा खरबों रुपया किस का है, प्रधानमंत्री कभी इस पर क्यों नहीं बोलते? क्या यह पैसा भी लूट का नहीं, जो लोकपरलोक सुधारने व मोक्षमुक्ति वगैरह के नाम पर पंडेपुजारियों द्वारा झटका जाता है? यह पैसा क्यों गरीबों में नहीं बांट दिया जाता, जिस के लिए किसी कानूनी सलाह की भी जरूरत नहीं?

गरीबों के लिए दुबलाए जा रहे प्रधानमंत्री चाहें तो एक झटके में देश से गरीबी दूर हो सकती है, उन्हें बस मंदिरों का पैसा गरीबों में बांटे जाने का हुक्म देना भर है, लेकिन वे ऐसा करेंगे नहीं, क्योंकि सत्ता गरीबों के वोट से ही मिलती है.

एक दफा लोकतंत्र खत्म हो जाए, संविधान मिट जाए, लेकिन गरीबी पर आंच नहीं आनी चाहिए. जवाहरलाल नेहरू से ले कर इंदिरा गांधी और अटल बिहारी वाजपेयी से ले कर मनमोहन सिंह की सरकारों ने भी गरीबी दूर करने की सिर्फ बातें की थीं, गरीबी हटाओ के लुभावने नारे दिए थे, लेकिन इसे दूर करने को कुछ ठोस नहीं किया था. यही नरेंद्र मोदी कर रहे हैं.

फंडा बहुत सीधा है कि जब तक धर्म और धर्मस्थल हैं, तब तक गरीबी दूर नहीं हो सकती. इन के चलते गरीब निकम्मा, निठल्ला और भाग्यवादी बना रहता है. वह मेहनत भी कामचलाऊ करता है और जब पेट पीठ से चिपकने लगता है, तो सरकार अपने गोदामों के शटर उठा देती है, जिस से वह भूखा न मरे.

देश के लिए तो वह किसी काम का नहीं, लेकिन धर्म के लिए उसे जिंदा रखा जाता है. वैसे भी मंदिरों के पैसों पर हक भाजपा का ही है, जिसे सलामत रखने की बाबत वह पंडेपुजारियों को पगार और कमीशन देती है, एवज में भगवान के ये एजेंट भाजपा के लिए वोटों की दलाली करते हैं. इन के कोई उसूल नहीं होते. एक वक्त में यही काम ये लोग कांग्रेस के लिए भी करते थे. इन का भगवान सिर्फ बिना मेहनत से आया पैसा होता है, जो इन दिनों मोदी सरकार उन्हें दरियादिली से दिला रही है.

जब पैसे वालों को तसल्ली हो जाती है कि गरीब हैं और गरीबी किसी सरकार की देन नहीं, बल्कि इन के पिछले जन्मों के पापों का फल है, तो वह दान की, पूजापाठ की तादाद बढ़ा देता है, ताकि अगले जन्म में वह गरीबी में पैदा न हो.

ऐसे में छापों के पैसों से गरीबी दूर करने का झांसा देना एक बड़ी चालाकी है. बात तो तभी बन सकती है, जब मंदिरों के खजानों का मुंह गरीबों के लिए खोल दिया जाए.

देश के मंदिरों के पैसे की थाह लेना आसान नहीं है, लेकिन यह हर कोई जानता है कि उन में अथाह धन है. हाल तो यह है कि एक अकेले तिरुपति मंदिर की जायदाद से ही गरीबी दूर हो सकती है. कुबेर के इस रईस मंदिर के ट्रस्ट के मुताबिक, बैंकों में 16,000 करोड़ रुपए की एफडी हैं, जिन का ब्याज ही करोड़ों में होता है. देशभर में मंदिर ट्रस्ट की 960 प्रोपर्टी हैं, जिन की कीमत भी अरबों रुपए में है.

मंदिर के पास 11 टन सोना है और तकरीबन ढाई टन सोने के गहने हैं. साल 2022-23 में ही जमा पैसे पर 3,100 करोड़ रुपए ब्याज में मिले थे और रोज करोड़ों का चढ़ावा बदस्तूर आ ही रहा है.

अगर इस में अयोध्या, काशी, शिरडी, वैष्णो देवी, उज्जैन सहित चारों धामों का भी पैसा मिला दिया जाए, तो देश में अमीरों की भरमार हो जाएगी. लेकिन फिर वे भाजपा को वोट नहीं देने वाले, क्योंकि फिर उन्हें धर्म की जरूरत नहीं रह जाएगी और भाजपा को इस के सिवा कुछ और आता नहीं, जो पूरे चुनाव प्रचार में मुसलिमों का डर दिखाते रामश्याम और राधेराधे करती रही. उस का मकसद पंडेपुजारियों की आमदनी पक्की करना है.

पब्लिक मीटिंगों में विपक्षियों को कोसते रहना नरेंद्र मोदी की कोई सियासी मजबूरी नहीं, बल्कि चालाकी है कि ये अगर सत्ता में आए, तो मुफ्त की तगड़ी कमाई वाला धर्म और मंदिर खत्म कर देंगे, फिर सब बैठ कर चिमटा हिलाते रहना. अगर इस पैसे की, इस सनातनी सिस्टम की हिफाजत चाहते हो, तो मुझे वोट दो, मैं गरीबी बनाए रखूंगा, यह मेरी गारंटी है.

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