एक तो तेज गरमी का मौसम, उस पर बारिश का डर. हाल ही में सरपंच बनी संगीता यह सोचसोच कर परेशान थी कि आज चुनाव प्रचार के सिलसिले में सत्ता पार्टी के जिलाध्यक्ष रामप्रकाश के साथ घर से बाहर निकले या नहीं?

दरअसल, उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गांव रूपपुर में इस बार सरपंच का पद दलित महिला के लिए रिज्वर्ड था. संगीता अभी 28 साल की थी और राजनीति में भी दिलचस्पी रखती थी. पति पवन ने बढ़ावा दिया तो वह सरपंच पद के लिए खड़ी हो गई.

जिलाध्यक्ष रामप्रकाश ऊंची जाति का था और गांव में उस का दबदबा था. इलाके के एमपी साहब से उस का काफी मिलनाजुलना था. उस ने संगीता को जिताने में काफी अहम रोल निभाया था और अब वह लोकसभा चुनाव में संगीता के साथ इधर से उधर घूमता था.

‘‘सुनो…’’ संगीता ने अपने पति पवन से कहा, ‘‘मुझे बाहर बड़ी सड़क तक छोड़ आओ. वहां से मैं रामप्रकाशजी के साथ एमपी साहब के घर चली जाऊंगी. आज बहुत ज्यादा काम है, इसलिए मना नहीं कर सकती.’’

पवन सो रहा था. उस ने बिना आंखें खोले ही कहा, ‘‘तुम अपना खुद देख लो. मुझे नींद आ रही है,’’ फिर वह करवट बदल कर दोबारा सो गया.

इतने में जिलाध्यक्ष रामप्रकाश का फोन आ गया, ‘कहां हो सरपंचजी? मैं बड़ी रोड पर खड़ा हूं. हमें पहले ही देर हो गई है. एमपी साहब नाराज हो जाएंगे.’

‘‘क्या बताऊं रामप्रकाशजी, मैं तो तैयार बैठी हूं, पर आज पवन मुझे छोड़ने नहीं आ रहे हैं. आप ही कुछ कीजिए,’’ संगीता ने अपनी समस्या बताई.

‘ठीक है, तुम घर के बाहर तक आओ, मैं लेने आ जाता हूं,’ इतना कह कर रामप्रकाश ने फोन काट दिया.

थोड़ी देर में ही वे दोनों एमपी साहब के घर की तरफ रवाना हो गए. आज संगीता ने साड़ी बांधी थी. वह जवान तो थी ही, दिखने में भी खूबसूरत थी. गोरी देह, अच्छे नैननैक्श, घने काले बाल और कद भी ठीकठाक ही था. कोई कह नहीं सकता था कि उस की 5 साल की एक बेटी भी है, जिस की देखभाल सास ही करती थी.

रामप्रकाश 40 साल का हट्टाकट्टा मर्द था. उस के परिवार में पत्नी गोमती और 2 बच्चे थे. वह राजनीति में आगे बढ़ना चाहता था और इसीलिए वह एमपी साहब से मिलने का कोई मौका नहीं छोड़ता था.

चूंकि चुनाव नजदीक थे, इसलिए दिनभर की भागादौड़ी में दिन बीतने का पता ही नहीं चला. शाम के 5 बजने वाले थे, पर अब तक तो मौसम भी पलटी मार चुका था.

‘‘जल्दी चलो रामप्रकाशजी, कहीं बारिश शुरू हो गई तो दिक्कत हो जाएगी. मेरी बेटी की तबीयत भी ढीली है,’’ संगीता ने आसमान की तरफ देखते हुए कहा.

‘‘तुम चिंता मत करो, हम समय से घर पहुंच जाएंगे. आज मैं खुश हूं, क्योंकि एमपी साहब हमारे काम से संतुष्ट हैं,’’ रामप्रकाश ने मोटरसाइकिल स्टार्ट करते हुए कहा.

लेकिन मौसम को कुछ और ही मंजूर था. अभी वे थोड़ी ही दूर आए थे कि एकदम से घनघोर बारिश होने लगी. बारिश इतनी ज्यादा तेज थी कि रामप्रकाश को आगे सड़क पर कुछ नहीं दिखाई दे रहा था. वे दोनों पानी से तर हो गए थे.

‘‘अब क्या होगा? लगता नहीं कि यह बारिश जल्दी रुक जाएगी…’’ संगीता को चिंता होने लगी.

रामप्रकाश ने कहा, ‘‘यहीं आगे ही खेतों में मेरे एक दोस्त का ट्यूबवैल है. वहां बारिश से बचने का इंतजाम होगा,’’ फिर रामप्रकाश ने एक खेत की तरफ मोटरसाइकिल मोड़ दी. गन्ने के खेतों के बीच से वे दोनों ट्यूबवैल तक जा पहुंचे.

वहां एक टूटाफूटा कमरा भी बना हुआ था. वे दोनों उस में चले गए. भीतर एक छोटी सी पुरानी खाट थी और कोने में फूस रखा था. संगीता पानी से तर हो चुकी थी. गीली साड़ी में उस की देह फूट रही थी. उस ने ?ि?ाकते हुए कोने में जगह ली और कांपते हुए अपने कपड़े सुखाने की नाकाम कोशिश की.

रामप्रकाश सम?ा गया था कि संगीता को ठंड लग रही है. उस ने अपनी परवाह न करते हुए थोड़ा फूस और कुछ सूखी लकडि़यां जमा कीं और आग जला दी. उस कमरे में रोशनी होने से पता चला कि वहां कोई चादर वगैरह नहीं थी.

रामप्रकाश ने वह खाट उठाई और सीधी खड़ी कर दी और बोला, ‘‘संगीता, तुम इस की आड़ में अपने कपड़े ठीक से सुखा लो.’’

पहले तो संगीता को ?ि?ाक हुई, पर वह बहुत ज्यादा गीली थी, तो उस ने अपनी साड़ी खोल दी और आग की आंच में उसे सुखाने लगी.

रामप्रकाश ने खाट की आड़ में से देखा कि संगीता पेटीकोट और ब्लाउज में अपनी साड़ी सुखा रही थी. एक पल को तो वह बेचैन हो गया, पर फिर उस ने पूछा, ‘‘संगीता, तुम्हारी बेटी का क्या नाम है?’’

संगीता बोली, ‘‘महिमा.’’

‘‘अरे वाह, बहुत बढि़या नाम है. मेरी बेटी का नाम रोशनी है. बड़ी ही होनहार है. 10वीं जमात में पढ़ती है. अपनी मां के काम में हाथ बंटाती है’’ रामप्रकाश जैसे अपनी बेटी की याद में खो गया.

‘‘बेटियां होती ही अपने बाप की लाड़ली हैं. पवन भी महिमा के बगैर नहीं रह पाते हैं,’’ संगीता ने कहा, ‘‘लेकिन, फिलहाल तो इस बारिश का क्या करें… समय बीत रहा है और हम यहां फंस गए हैं,’’ संगीता बोली.

रामप्रकाश ने घड़ी देखी. शाम के 7 बजने वाले थे. पर बारिश तो रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी. उसे भी चिंता हो रही थी. उस ने बात पलटते हुए पूछा, ‘‘तुम आगे क्या करना चाहती हो? हम इतने दिनों से एकसाथ काम कर रहे हैं, पर कभी एकदूसरे के बारे में ज्यादा पूछा नहीं.’’

तब तक संगीता के कपड़े कुछ हद तक सूख गए थे. वह खाट की ओट से बाहर आ गई. अब कपड़े सुखाने की बारी रामप्रकाश की थी.

‘‘मैं तो अपने गांव के लिए अच्छे काम करना चाहती हूं. अपने समाज की लड़कियों को पढ़ने की प्रेरणा देना चाहती हूं. महिमा को बड़ी अफसर बनाना चाहती हूं,’’ संगीता ने बताया.

‘‘बहुत अच्छी बात है. पढ़ेलिखे जनप्रतिनिधियों की इस देश को जरूरत है. तुम कामयाब रहो. जितना हो सकेगा, मैं तुम्हारी मदद करूंगा.’’

उन दोनों को घर पहुंचने में रात के 10 बज गए थे. पवन की मां ने दरवाजा खोला और जब संगीता के साथ रामप्रकाश को देखा, तो वे जलभुन गईं.

पवन का मिजाज भी ठीक नहीं था. उस ने कड़े शब्दों में कह दिया, ‘‘आज के बाद तुम रामप्रकाश के साथ कहीं नहीं जाओगी. आज रात में 10 बजे आई हो, कल क्या पता पूरी रात उस के साथ काली करो.’’

‘‘पर, हम दोनों बारिश में फंस गए थे,’’ संगीता ने अपनी बात रखी.

इस पर सास भी तिलमिला गईं, ‘‘पवन जो कह रहा है, वही कर. बहुत हो गई सरपंची. हम किसकिस का मुंह बंद करते फिरेंगे.’’

संगीता ने कुछ नहीं कहा और अपने कमरे में चली गई.

उधर, रामप्रकाश के घर में तो बवाल ही मच गया. गोमती को संगीता फूटी आंख नहीं भाती थी और आज इस बारिश में दोनों का एकसाथ होना गोमती के कान खड़े कर गया.

‘‘तुम बात का बतंगड़ बना रही हो. जो भी मैं ने तुम्हें बताया, वही सौ फीसदी सच है,’’ रामप्रकाश अपनी सफाई दे रहा था.

‘‘मुझे कुछ नहीं सुनना. भले ही अखबार तुम खरीदते हो, पर पढ़ती मैं भी हूं,’’ गोमती ने तेवर दिखाते हुए कहा, ‘‘तुम से ज्यादा दीनदुनिया की खबर मुझे रहती है. देश में चुनावी माहौल है और दिल्ली में एक नामचीन औरत के साथ हुई बदसुलूकी पर तुम मर्दों की जबान को लकवा मार जाता है.’’

‘‘तुम किस खबर की बात कर रही हो?’’ राम प्रकाश ने झंझला कर पूछा.

‘‘स्वाति मालीवाल के साथ जो कांड हुआ है, वह किसी से नहीं छिपा है. अंदरखाते जो हुआ है, वह तो स्वाति मालीवाल और विभव कुमार ही जानें, पर अगर स्वाति मालीवाल की बातों में जरा सा भी दम है, तो तुम भी संभल जाओ. यह जो तुम उस कलमुंही सरपंच के पल्लू से बंधने की कोशिश कर रहे हो न, किसी दिन वही तुम्हारे लत्ते उतरवा देगी सरेआम. फिर न कहना कि बताया नहीं था,’’ गोमती के तेवर ही अलग थे.

‘‘अच्छा बताओ कि स्वाति मालीवाल ने क्या बयान दिया है?’’ रामप्रकाश ने गोमती से पूछा.

‘‘इस में क्या बड़ी बात है. अखबार की छपी खबर चीखचीख कर बता रही है कि स्वाति मालीवाल ने कहा कि मैं कैंप दफ्तर के अंदर गई. सीएम के पीए विभव कुमार को फोन किया, लेकिन मैं अंदर नहीं जा सकी. फिर मैं ने उन के मोबाइल नंबर पर एक मैसेज भेजा था. हालांकि, कोई जवाब नहीं आया.

‘‘इस के बाद स्वाति मालीवाल ने बताया कि मैं उन के आवास परिसर में गई, जहां मैं अकसर जाती थी. वहां विभव कुमार मौजूद नहीं थे, इसलिए मैं ने आवास परिसर में एंट्री की और वहां मौजूद कर्मचारियों को जानकारी दी कि मैं यहां सीएम से मिलने के लिए आई हूं.

‘‘ये सब बातें एफआईआर में लिखी गई हैं. स्वाति मालीवाल ने आगे कहा कि मुझे बताया गया कि वे घर में मौजूद हैं और मुझे ड्राइंगरूम में इंतजार करने के लिए कहा है. मैं ड्राइंगरूम में गई और सोफे पर बैठ गई और उन से मिलने का इंतजार किया.

‘‘इस के बाद स्वाति मालीवाल ने बताया कि मुझे पता चला कि सीएम मिलने के लिए आ रहे हैं, लेकिन अचानक पीए विभव कुमार कमरे में घुस आए. उन्होंने बिना किसी उकसावे के चिल्लाना शुरू कर दिया. मुझे गालियां भी दीं. मैं स्तब्ध रह गई. इतना ही नहीं, मुझे थप्पड़ मारना शुरू कर दिया. जब मैं लगातार चिल्लाती रही, तो मुझे कम से कम 7 से 8 बार थप्पड़ मारे. मैं वहां मदद के लिए भी चिल्लाई थी. जानबूझ कर मेरी शर्ट ऊपर खींची.

‘‘स्वाति मालीवाल ने आगे बताया कि मैं ने उन से बारबार कहा कि मैं मासिक धर्म के दौर से गुजर रही हूं, कृपया मुझे जाने दें, लेकिन जाने नहीं दिया. फिर मैं वहीं बैठ गई. मैं ड्राइंगरूम के सोफे पर गई और हमले के दौरान जमीन पर गिरे अपने चश्मे को उठाया. इस के बाद 112 नंबर पर फोन किया और पुलिस को सूचना दी.’’

‘‘तुम ने स्वाति मालीवाल का पक्ष तो बता दिया, पर आम आदमी पार्टी तो इसे साजिश बता रही है. स्वाति मालीवाल वाले मामले में आप नेता और दिल्ली सरकार में मंत्री आतिशी ने पत्रकारों के सामने सीएम हाउस का पक्ष रखा.

‘‘आतिशी ने इस साजिश के पीछे भारतीय जनता पार्टी का हाथ बताया है. उन्होंने कहा कि स्वाति मालीवाल झूठ बोल रही हैं. सीएम केजरीवाल के पीए विभव कुमार पर झूठे आरोप लगाए जा रहे हैं. मुख्यमंत्री केजरीवाल घटना वाले दिन वहां पर नहीं थे. अब बताओ कि कौन सच बोल रहा है और कौन झूठ?

‘‘वैसे भी खबरों के मुताबिक, मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के साथ स्वाति मालीवाल की पहले से कोई मुलाकात तय नहीं थी. स्वाति जिस चोट की बात कह रही हैं, वह कहीं दिख नहीं रही.’’

गोमती भी कहां चुप रहने वाली थी, ‘‘ऐसा है तो राष्ट्रीय महिला आयोग ने स्वाति मालीवाल के मामले में अरविंद केजरीवाल के निजी सचिव विभव कुमार को क्यों नोटिस जारी किया था?

‘‘विभव कुमार को शुक्रवार, 17 मई, 2024 को सुबह 11 बजे कमीशन के सामने पेश होने के लिए कहा गया था, लेकिन वे एनसीडब्ल्यू के सामने पेश नहीं हुए.

‘‘एनसीडब्ल्यू की चीफ रेखा शर्मा ने बीबीसी संवाददाता दिलनवाज पाशा को बताया था कि आज विभव कुमार को दूसरा समन भेजा गया है. अगर वे नहीं आते हैं, तो उन्हें बुलाने के लिए पुलिस की मदद ली जाएगी.

‘‘रेखा शर्मा ने यह भी बताया कि महिला आयोग की टीम विभव कुमार के घर नोटिस देने के लिए गई थी, लेकिन वे घर पर नहीं थे.

‘‘रेखा शर्मा ने पत्रकारों से यह भी कहा कि विभव कुमार की पत्नी ने नोटिस लेने से मना कर दिया. मेरी टीम आज पुलिस के साथ उन के घर फिर से गई और अगर वे एनसीडब्ल्यू के सामने पेश नहीं हुए, तो हम खुद वहां जा कर जांच करेंगे.

‘‘इतना ही नहीं, रेखा शर्मा ने स्वाति मालीवाल का पक्ष लेते हुए कहा कि मैं स्वातिजी से ट्विटर पर कह रही थी कि वे अपनी आवाज उठाएं, लेकिन मुझे लगता है कि वे पार्टी नेता के घर में हुई घटना की वजह से सदमे में हैं. एक सांसद, जो हमेशा महिलाओं के मुद्दे उठाती रही हैं, उन्हें पीटा गया है.’’

‘‘इस खबर से तुम क्या साबित करना चाहती हो?’’ रामप्रकाश ने सवाल किया.

‘‘यही कि तुम उस सरपंच को ज्यादा भाव मत दो और उस के ज्यादा करीब मत रहो,’’ गोमती ने कहा.

‘‘पर, मेरे और संगीता के बीच ऐसा कुछ भी नहीं है. हम सरकारी काम के सिलसिले में आपस में मिलते हैं और एमपी साहब के प्रचार का काम करते हैं. उन का हाथ सिर पर रहेगा, तभी तो हमें भी थोड़ी मलाई खाने को मिलेगी.’’

‘‘मुझे नहीं चाहिए ऐसी मलाई, जिस में किसी पराई औरत की गंध शामिल हो,’’ गोमती का गुस्सा सातवें आसमान पर था, ‘‘और अब तो मेरी इस समस्या का हल तुम्हारे एमपी साहब के घर से ही मिलेगा. हम चारों कल ही उन के घर जाएंगे और मैं फरियाद करूंगी कि मुझे सरपंच के भूत से नजात दिलाएं.’’

उधर संगीता के घर का भी यही हाल था. वह भले ही गांव की सरपंच बन गई थी, पर अब भी घर पर उस की दो कौड़ी की हैसियत थी. पवन भी गोमती की तरह यह मान बैठा था कि रामप्रकाश और संगीता काम के बहाने अपनी ही कामवासना का गेम खेल रहे हैं.

पवन खाना खाने बैठा ही था कि संगीता के मोबाइल फोन की घंटी बजी. रामप्रकाश का फोन था. वह उस का नाम देख कर कुढ़ गया.

संगीता ने फोन उठाया, तो उधर से आवाज आई, ‘आज तो गजब हो गया. हम दोनों के घर देर से आने के चलते गोमती ने घर सिर पर उठा लिया है. वह नहीं मान रही है कि हम दोनों बारिश में फंस गए थे. अब हमें अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए एमपी साहब के घर जाना होगा. कल तुम तैयार रहना. पवन को भी मना लेना’

फोन कट गया. संगीता ने पवन की ओर देखा और बोली, ‘‘कल हमें एमपी साहब के घर जाना है.’’

‘‘क्यों? अब रामप्रकाश ने कौन सा प्रपंच रचा है?’’ पवन तो जैसे भरा बैठा था.

‘‘अब यह तो कल ही पता चलेगा,’’ इतना कह कर संगीता रसोईघर में चली गई.

अगले दिन दोपहर के 2 बज रहे थे. वे चारों एमपी साहब के घर पर थे. पर उस समय एमपी साहब घर पर नहीं थे. लोकसभा चुनाव के प्रचार के लिए दौरे पर थे. रामप्रकाश को थोड़ी निराशा हुई, पर जब एमपी साहब की पत्नी कुसुम देवी ने बाहर बैठक में आ कर रामप्रकाश की नमस्ते ली, तो रामप्रकाश का जी हलका हो गया. वह उन्हें थोड़ा अलग ले गया और अपनी समस्या बताई.

कुसुम देवी ने उन चारों को बिठाया और अपने नौकर से कह कर चाय मंगवाई, फिर उन्होंने गोमती से पूछा, ‘‘तुम्हें अपने पति पर यकीन नहीं है क्या?’’

गोमती पहले तो सकपका गई, फिर बोली, ‘‘ऐसा नहीं है, पर जब लोगों में कानाफूसी बढ़ जाती है, तो आंखों देखी मक्खी भी तो निगली नहीं जाती न.’’

‘‘अच्छा तो तुम लोगों ने यह मान लिया है कि रामप्रकाश और संगीता का ज्यादा घूमनाफिरना यह साबित करता है कि इन दोनों के बीच कोई नाजायज रिश्ता है’’

पवन कुछ नहीं बोला, पर उसे भी यही लगता था कि संगीता और रामप्रकाश में कुछ तो खिचड़ी पक रही है और ये दोनों घर से बाहर जा कर रंगरलियां मनाते हैं. संगीता को उस की चुप्पी अखर रही थी.

‘‘तुम लोगों की गलती नहीं है. पहले मैं भी एमपी साहब के दिनभर घर से बाहर रहने और तमाम मर्दऔरतों के मिलने के चलते परेशान रहती थी. मुझे लगता था कि ये राजनीति कम और ऐयाशी ज्यादा करते हैं, पर फिर समझ आने लगा कि दुनियाभर में बहुत से ऐसे काम हैं, जहां कोई मर्द हो या औरत, उसे परिवार से कट कर लोगों के बीच जाना ही पड़ता है. वहां तरहतरह की फितरत के मर्दऔरत से उन का वास्ता पड़ता है और बहुत बार तो अकेलेपन में उन में नजदीकियां भी बढ़ जाती हैं और इसे टाला नहीं जा सकता.

‘‘हमारा तो समाज ही ऐसा है कि औरतों को किसी पराए मर्द की नजदीकी के चलते गलत मान लिया जाता है. संगीता गांव की सरपंच है और रामप्रकाश हमारी पार्टी के जिलाध्यक्ष. चुनाव के दिनों में किसी भी नेता को ऐसे लोगों से बहुत काम पड़ता है. लिहाजा, इन्हें इधर से उधर दौड़ाया जाता है. न दिन देखा जाता और न ही रात.’’

‘‘लेकिन मैडम, इस में घर वाले क्या करें? हमें तो दुनिया को जवाब देना पड़ता है न,’’ पवन बोला.

‘‘तुम्हारी बात सही है, पर हमारे देश में तो सदियों से ऐसा होता आया है कि गलती चाहे मर्द की क्यों न हो, गाज तो औरत पर ही गिरती है. ‘महाभारत’ का वह किस्सा ही ले लो, जब विचित्रवीर्य की शादी कराने के लिए भीष्म ने काशीराज की 3 बेटियों का वाराणसीपुरी की स्वयंवर सभा से हरण कर लिया था,’’ कुसुम देवी ने कहा.

‘‘क्या किस्सा था यह?’’ रामप्रकाश ने पूछा.

‘‘उन तीनों लड़कियों का नाम अंबा, अंबिका और अंबालिका था. अंबा ने जब सुना कि भीष्म अपने छोटे भाई विचित्रवीर्य से उस की शादी कराना चाहते हैं, तो उस ने कहा कि वह राजा शाल्व को मन ही मन अपना पति मान चुकी है, तो भीष्म ने उसे शाल्व के यहां जाने की इजाजत दे दी और बाकी दोनों बहनों अंबिका और अंबालिका को विचित्रवीर्य की पत्नी के रूप में सौंप दिया. लेकिन शादी के 7 साल बाद ही विचित्रवीर्य नहीं रहे,’’ कुसुम देवी ने बताया.

‘‘मेरा कहने का मतलब यह है कि हमारे समाज में औरतों और लड़कियों से उन के मन की बात न तो जानी जाती है और न ही समझ जाती है. अब जब वे अपनी मरजी से घर से बाहर निकलने लगी हैं, तब भी उन्हें अच्छी नजर से नहीं देखा जाता है.

‘‘मेरा कहा मानो तो अपने दिमाग से यह बात बिलकुल निकाल दो कि संगीता और रामप्रकाश में कुछ गलत चल रहा है, तभी तुम चारों अपने परिवार को सही ढंग से संभाल पाओगे. अगर मैं एमपी साहब पर शक करती रहूंगी, तो वे कभी भी राजनीति में आगे नहीं बढ़ पाएंगे.’’

इतने में नौकर सब के लिए चाय ले आया. कुसुम देवी ने सब के साथ चाय पी. बाद में बैठक में लगे ठहाकों से ऐसा लग रहा था कि उन चारों की समस्या का हल मानो निकल आया है.

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