मैंने अपने बौयफ्रैंड के साथ सैक्स किया है. क्या इससे में प्रेग्नेंट हो जाऊंगी?

सवाल

मैं 21 साल लड़की हूं, मेरा एक बौयफ्रैंड है जिस के साथ मेरे फिजीकल रिलेशन भी हैं. हाल ही पीरिड्स में मैंने बौयफ्रैंड के साथ सैक्स किया. लेकिन हमने कोई प्रोटेक्शन नहीं अपनाया. अब मैं इस बात को ले कर परेशान हूं कि कहीं मैं प्रेग्नेंट न हो जाऊं. मैं यह जानना चाहती हूं कि क्या पीरियड्स के दौरान रिलेशन बनाने से प्रग्नेंसी ठहर सकती है.

जवाब

आमतौर पर पीरिड्स के दौरान फिजीकल रिलेशन बनाने पर प्रग्नेंसी नहीं ठहरती है. लेकिन, यह इस बात पर निर्भर करता है कि आप की पीरियड्स रैग्युलर है या नहीं. अगर पीरियड्स रैग्युलर हो तो गर्भ ठहरने की चांस कम होते है. लेकिन, गर्भ ठहरने की संभावना को पूरी तरह से नकारा भी नहीं जा सकता. अगर आप की माहवारी अनियमित हो और अंडाणु का विसर्जन अनियमित समय से हो जाए और उसी समय मासिकधर्म भी हो रहा है तो गर्भधारण की संभावना भी हो सकती है.

अगली बार ऐसा कुछ करने से पहले गर्भनिरोधक उपाय अवश्य अपना लें ताकि प्रैगनैंसी, एसटीडी और एड्स जैसी बीमारियों से बचाव हो सके. वैसे, वर्तमान स्थिति में आप का पीरियड्य सैक्स करने के बाद सामान्य हो चुका है तो घबराने की कोई बात नहीं है.

मामी ने अपनी भांजी से की शादी, तो एक लड़की ने लड़की पर लुटाया प्यार

कहते प्यार दीवाना, अंधा और परवाना होता है. जो ना समाज देखता है न घर न परिवार जिस पर दिल हार बैठे उसी से जिंदगी भर के लिए जुड़ गए. लेकिन जब प्यार लड़के और लड़की के बीच हो तो दुनिया सब्र करके बैठती है. कि दो प्यार करने वाले मिल गए. लेकिन जब बात आए कि एक लड़की ने लड़की से ब्याह रचा लिया. तो सबके मुंह खुले के खुले रह जाते है और ऐसा ही एक चौंका देने वाली शादी बिहार में हुई है. जहां एक मामी ने अपनी ही भांजी के साथ साथ फेरे ले लिए.

 

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बिहार के गोपालगंज में एक मामी व भांजी का प्यार इस कदर परवान चढ़ा कि दोनों ने एक साथ जीने व मरने की कसमें खा लीं. मामी और भांजी ने एक दूसरे के साथ शादी मंदिर में की. अनोखी शादी की चर्चा हर तरफ हो रही है. मामी-भांजी की शादी की खबर मिलते ही काफी संख्या में लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी. मामी और भांजी ने एक दूसरे को माला पहनाई और फिर सात फेरे लेने के बाद एक दूसरे के साथ जीने मरने की कसमें भी खाईं.

बता दें, कि दोनों महिला पहले से शादीशुदा हैं. बताया जा रहा है कि शोभा कुमारी और उनकी भांजी सुमन कुमारी दोनों शादीशुदा हैं. पिछले तीन साल से दोनों महिलाओं के बीच प्यार चल रहा था. सोमवार को घर से भागकर दोनों ने रीति रिवाजों के साथ शादी कर ली. शादी करनेवाली लड़की की मामी शोभा कुमारी ने बताया कि उनका अपनी ही भांजी के साथ पिछले तीन साल से अफेयर चल रहा था. इसके बाद उन लोगों ने आज एक दूसरे के साथ शादी करने का फैसला किया. बता दें इस अनोखी शादी का वीडियो बहुत वायरल हो रहा है. लेकिन इस शादी ने सबको चौंका कर रख दिया है, क्योंकि अबतक एक लड़की ने लड़की से शादी कर ली ये देखा जाता था, लेकिन एक मामी ने ही अपनी भांजी को जीवन भर का हमसफर चुन लिया. ये चौंका देने वाला था.

इससे पहले यूपी में दो लड़कियों ने आपस में शादी कर ली थी. यूपी के देवरिया में 2 लड़कियों ने आपस में शादी करने फैसला किया जो दोनो सहेलिया थी. देवरिया के चनुकी में स्थित आर्केस्ट्रा में काम करने वाली 2 लड़कियों ने समलैंगिक विवाह किया. ये दोनों लड़कियां 2 साल से एक दूसरे के साथ पति-पत्नी की तरह रहती है. दोनों लड़कियों ने मझौली राज में स्थित भगड़ा भवानी मंदिर में एक दूसरे के साथ शादी रचाई थी.

ऐसा ही एक मामला मध्यप्रदेश का भी सामने आया था. मध्यप्रदेश की एक लड़की राजस्थान के नागौर जिले के कस्बे लांडनू में रहने वाली अपनी दोस्त के घर अचानक पहुंच जाती है. वहां जाकर मध्यप्रदेश की लड़की खूब हल्ला करती है. जब उसने कहा कि वह अपनी दोस्त को मध्यप्रदेश ले जाने के लिए आई है और उससे शादी करेगी तो वहां हर कोई हैरान हो गया. जयपुर वाली लड़की के परिजन सकते में आ गए. मध्यप्रदेश की लड़की ने कहा कि वह उससे प्यार करती है और अब उससे शादी करना चाहती है.

इस मामले में आगे पता चला कि कुछ साल पहले दोनों लड़कियों की दोस्ती सोशल मीडिया पर हुई थी. जिसके बाद दोस्ती प्यार में बदल गई. अब दोनों ने एक दूसरे से शादी कर ली है.

टेढ़ा है पर मेरा है : नेहा की अग्निपरीक्षा

नेहा को सारी रात नींद नहीं आई. उस ने बराबर में गहरी नींद में सोए अनिल को न जाने कितनी बार निहारा. वह 2-3 चक्कर बच्चों के कमरे के भी काट आई थी. पूरी रात बेचैनी में काट दी कि कल से पता नहीं मन पर क्या बीतेगी. सुबह की फ्लाइट से नेहा की जेठानी मीना की छोटी बहन अंजलि आने वाली थी. नेहा के विवाह को 7 साल हो गए हैं. अभी तक उस ने अंजलि को नहीं देखा था. बस उस के बारे में सुना था.

नेहा के विवाह के 15 दिन बाद ही मीना ने ही हंसीहंसी में एक दिन नेहा को बताया था, ‘‘अनिल तो दीवाना था अंजलि का. अगर अंजलि अपने कैरियर को इतनी गंभीरता से न लेती, तो आज तुम्हारी जगह अंजलि ही मेरी देवरानी होती. उसे दिल्ली में एक अच्छी जौब का औफर मिला तो वह प्यारमुहब्बत छोड़ कर दिल्ली चली गई. उस ने यहीं हमारे पास लखनऊ में रह कर ही तो एमबीए किया था. अंजलि शादी के बंधन में जल्दी नहीं बंधना चाहती थी. तब मांजी और बाबूजी ने तुम्हें पसंद किया… अनिल तो मान ही नहीं रहा था.’’

‘‘फिर ये विवाह के लिए कैसे तैयार हुए?’’ नेहा ने पूछा था.

‘‘जब अंजलि ने विवाह करने से मना कर दिया… मांजी के समझाने पर बड़ी मुश्किल से तैयार हुआ था.’’

नेहा चुपचाप अनिल की असफल प्रेमकहानी सुनती रही थी. रात को ही अंजलि का फोन आया था. उस का लखनऊ तबादला हो गया था. वह सीधे यहीं आ रही थी. नेहा जानती थी कि अंजलि ने अभी तक विवाह नहीं किया है.

मीना ने तो रात से ही चहकना शुरू कर दिया था, ‘‘अंजलि अब यहीं रहेगी, तो कितना मजा आएगा नेहा, तुम तो पहली बार मिलोगी उस से… देखना, कितनी स्मार्ट है मेरी बहन.’’

नेहा औपचारिकतावश मुसकराती रही. अनिल पर नजरें जमाए थी. लेकिन अंदाजा नहीं लगा पाई कि अनिल खुश है या नहीं. नेहा व अनिल और उन के

2 बच्चे यश और समृद्धि, जेठजेठानी व उन के बेटे सार्थक और वीर, सास सुभद्रादेवी और ससुर केशवचंद सब लखनऊ में एक ही घर में रहते थे और सब

की आपस में अच्छी अंडरस्टैंडिंग थी. सब खुश थे, लेकिन अंजलि के आने की खबर से नेहा कुछ बेचैन थी.

अंजलि सुबह अपने काम में लग गई. मीना बेहद खुश थी. बोली, ‘‘नेहा, आज अंजलि की पसंद का नाश्ता और खाना बना लेते हैं.’’

नेहा ने हां में सिर हिलाया. फिर दोनों किचन में व्यस्त हो गईं. टैक्सी गेट पर रुकी, तो मीना ने पति सुनील से कहा, ‘‘शायद अंजलि आ गई, आप थोड़ी देर बाद औफिस जाना.’’

‘‘मुझे आज कोई जल्दी नहीं है… भई, इकलौती साली साहिबा जो आ रही हैं,’’ सुनील हंसा.

अंजलि ने घर में प्रवेश कर सब का अभिवादन किया. मीना उस के गले लग गई. फिर नेहा से परिचय करवाया. अंजलि ने जिस तरह से उसे ऊपर से नीचे तक देखा वह नेहा को पसंद नहीं आया. फिर भी वह उस से खुशीखुशी मिली.

जब अंजलि सब से बातें कर रही थी, तो नेहा ने उस का जायजा लिया… सुंदर, स्मार्ट, पोनीटेल बनाए हुए, छोटा सा टौप और जींस पहने छरहरी अंजलि काफी आकर्षक थी.

जब अनिल फ्रैश हो कर आया, तो अंजलि ने फौरन अपना हाथ आगे बढ़ाते हुए कहा, ‘‘हाय, कैसे हो?’’

अनिल ने हाथ मिलाते हुए कहा, ‘‘मैं ठीक हूं, तुम कैसी हो?’’

‘‘कैसी लग रही हूं?’’

‘‘बिलकुल वैसी जैसे पहले थी.’’

नेहा के दिल को कुछ हुआ, लेकिन प्रत्यक्षतया सामान्य बनी रही. सुभद्रादेवी और केशवचंद उस से दिल्ली के हालचाल पूछते रहे. मीना व अंजलि के मातापिता मेरठ में रहते हैं. नेहा के मातापिता नहीं हैं. एक भाई है जो विदेश में रहता है.

नाश्ता हंसीमजाक के माहौल में हुआ. सब अंजलि की बातों का मजा ले रहे थे. बच्चे भी उस से चिपके हुए थे. यश और समृद्धि थोड़ी देर तो संकोच में रहे, फिर उस से हिलमिल गए. नेहा की बेचैनी बढ़ रही थी. तभी अंजलि ने कहा, ‘‘दीदी, अब मेरे लिए एक फ्लैट ढूंढ़ दो.’’

मीना ने कहा, ‘‘चुप कर, अब हमारे साथ ही रहेगी तू.’’

सुनील ने भी कहा, ‘‘अकेले कहीं रहने की क्या जरूरत है? यहीं रहो.’’

सुनील और अनिल अपनेअपने औफिस चले गए. केशवचंद पेपर पढ़ने लगे. सुभद्रादेवी तीनों से बातें करते हुए आराम से बाकी काम में मीना और नेहा का हाथ बंटाने लगीं.

नेहा को थोड़ा चुप देख कर अंजलि हंसते हुए बोली, ‘‘नेहा, क्या तुम हमेशा इतनी सीरियस रहती हो?’’

मीना ने कहा, ‘‘अरे नहीं, वह तुम से पहली बार मिली है… घुलनेमिलने में थोड़ा समय तो लगता ही है न…’’

अंजलि ने कहा, ‘‘फिर तो ठीक है वरना मैं ने तो सोचा अगर ऐसे ही सीरियस रहती होगी तो बेचारा अनिल तो बोर हो जाता होगा. वह तो बहुत हंसमुख है… दीदी, अनिल अब भी वैसा ही है शरारती, मस्तमौला या फिर कुछ बदल गया है? आज तो ज्यादा बात नहीं हो पाई.’’

मीना हंसी, ‘‘शाम को देख लेना.’’

नेहा मन ही मन बुझती जा रही थी. लंच के बाद अपने कमरे में थोड़ा आराम करने लेटी तो विवाह के शुरुआती दिन याद आ गए. अनिल काफी सीरियस रहता था, कभी हंसताबोलता नहीं था. चुपचाप अपनी जिम्मेदारियां पूरी कर देता था. नवविवाहितों वाली कोई बात नेहा ने महसूस नहीं की थी. फिर जब मीना ने अनिल और अंजलि के बार में उसे बताया तो उस ने अपने दिल को मजबूत कर सब को प्यार और सम्मान दे कर सब के दिल में अपना स्थान बना लिया. अब कुल मिला कर उस की गृहस्थी सामान्य चल रही थी, तो अब अंजलि आ गई.

नेहा यश और समृद्धि को होमवर्क करवा रही थी कि अंजलि उस के रूम में आ गई.

नेहा ने जबरदस्ती मुसकराते हुए उसे बैठने के लिए कहा, तो वह सीधे बैड पर लेट गई. बोली, ‘‘नेहा, अनिल कब तक आएगा?’’

‘‘7 बजे तक,’’ नेहा ने संयत स्वर में कहा.

‘‘उफ, अभी तो 1 घंटा बाकी है… बहुत बोर हो रही हूं.’’

‘‘चाय पीओगी?’’ नेहा ने पूछा.

‘‘नहीं, अनिल को आने दो, उस के साथ ही पीऊंगी.’’

नेहा को अंजलि का अनिल के बारे में बात करने का ढंग अच्छा नहीं लग रहा था. लेकिन करती भी क्या. कुछ कह नहीं सकती थी.

अनिल आया, तो अंजलि चहक उठी फिर ड्राइंगरूम में सोफे पर अनिल के बराबर मे बैठ कर ही चाय पी. घर के बाकी सभी सदस्य वहीं बैठे हुए थे. अंजलि ने पता नहीं कितनी पुरानी बातें छेड़ दी थीं.

नेहा का उतरा चेहरा देख कर अनिल ने पूछा, ‘‘नेहा, तबीयत तो ठीक है न? बड़ी सुस्त लग रही हो?’’

‘‘नहीं, ठीक हूं.’’

यह सुन कर अंजलि ने ठहाका लगाया. बोली, ‘‘वाह अनिल, तुम तो बहुत केयरिंग पति बन चुके हो… इतनी चिंता पत्नी की? वह दिन भूल गए जब मुझे जाता देख कर आंहें भर रहे थे?’’

यह सुन कर सभी घर वाले एकदूसरे का मुंह देखने लगे.

तब मीना ने बात संभाली, ‘‘क्या कह रही हो अंजलि… कभी तो कुछ सोचसमझ कर बोला कर.’’

‘‘अरे दीदी, सच ही तो बोल रही हूं.’’

नेहा ने बड़ी मुश्किल से स्वयं को संभाला. दिल पर पत्थर रख कर मुसकराते हुए चायनाश्ते के बरतन समेटने लगी.

सब थोड़ी देर और बातें कर के अपनेअपने काम में लग गए. डिनर के समय भी अंजलि अनिलअनिल करती रही और वह उस की हर बात का हंसतेमुसकराते जवाब देता रहा.

अगले दिन अंजलि ने भी औफिस जौइन कर लिया. सब के औफिस जाने के बाद नेहा ने चैन की सांस ली कि अब कम से कम शाम तक तो वह मानसिक रूप से शांत रहेगी.

ऐसे ही समय बीतने लगा. सुबह सब औफिस निकल जाते. शाम को घर लौटने पर रात के सोने तक अंजलि अनिल के इर्दगिर्द ही मंडराती रहती. नेहा दिनबदिन तनाव का शिकार होती जा रही थी. अपनी मनोदशा किसी से शेयर भी नहीं कर पा रही थी. कुछ कह कर स्वयं को शक्की साबित नहीं करना चाहती थी. वह जानती थी कि उस ने अनिल के दिल में बड़ी मेहनत से अपनी जगह बनाई थी. लेकिन अब अंजलि की उच्छृंखलता बढ़ती ही जा रही थी. वह कभी अनिल के कंधे पर हाथ रखती, तो कभी उस का हाथ पकड़ कर कहीं चलने की जिद करती. लेकिन अनिल ने हमेशा टाला, यह भी नेहा ने नोट किया था. मगर अंजलि की हरकतों से उसे अपना सुखचैन खत्म होता नजर आ रहा था. क्या उस की घरगृहस्थी टूट जाएगी? क्या करेगी वह? घर में सब अंजलि की हरकतों को अभी बचपना है, कह कर टाल जाते.

नेहा अजीब सी घुटन का शिकार रहने लगी.

एक रात अनिल ने उस से पूछा, ‘‘नेहा, क्या बात है, आजकल परेशान दिख रही हो?’’

नेहा कुछ नहीं बोली. अनिल ने फिर कुछ नहीं पूछा तो नेहा की आंखें भर आईं, क्या अनिल को मेरी परेशानी की वजह का अंदाजा नहीं होगा? इतने संगदिल क्यों हैं अनिल? बच्चे तो नहीं हैं, जो मेरी मनोदशा समझ न आ रही हो… जानबूझ कर अनजान बन रहे हैं. नेहा रात भर मन ही मन घुटती रही. बगल में अनिल गहरी नींद सो रहा था.

एक संडे सब साथ लंच कर के थोड़ी देर बातें कर के अपनेअपने रूम में आराम

करने जाने लगे तो किचन से निकलते हुए नेहा के कदम ठिठक गए. अंजलि बहुत धीरे से अनिल से कह रही थी, ‘‘शाम को 7 बजे छत पर मिलना.’’

अनिल की कोई आवाज नहीं आई. थोड़ी देर बाद नेहा अपने रूम में आ गई. अनिल आराम करने लेट गया. फिर नेहा से बोला, ‘‘आओ, थोड़ी देर तुम भी लेट जाओ.’’

नेहा मन ही मन आगबबूला हो रही थी. अत: जानबूझ कर कहा, ‘‘बच्चों के लिए कुछ सामान लेना है… शाम को मार्केट चलेंगे?’’

‘‘आज नहीं, कल,’’ अनिल ने कहा.

नेहा ने चिढ़ते हुए पूछा, ‘‘आज क्यों नहीं?’’

‘‘मेरा मार्केट जाने का मूड नहीं है… कुछ जरूरी काम है.’’

‘‘क्या जरूरी काम है?’’

‘‘अरे, तुम तो जिद करने लगती हो, अब मुझे आराम करने दो, तुम भी आराम करो.’’

नेहा को आग लग गई. सोचा, बता दे उसे पता है कि क्या जरूरी काम है… मगर चुप रही. आराम क्या करना था… बस थोड़ी देर करवटें बदल कर उठ गई और वहीं रूम में चेयर पर बैठ कर पता नहीं क्याक्या सोचती रही. 7 बजे की सोचसोच कर उसे चैन नहीं आ रहा था… क्या करे, क्या मांबाबूजी से बात करे, नहीं उन्हें क्यों परेशान करे, क्या कहेगी अंजलि अनिल से, अनिल क्या कहेंगे… उस से बातें करते हुए खुश तो बहुत दिखाई देते हैं.

7 बजे के आसपास नेहा जानबूझ कर बच्चों को पढ़ाने बैठ गई. मांबाबूजी पार्क में टहलने गए हुए थे. मीना और सुनील अपने रूम में थे. उन के बच्चे खेलने गए थे. तनाव की वजह से नेहा ने यश और समृद्धि को खेलने जाने से रोक लिया था. बच्चों में मन बहलाने का असफल प्रयास करते हुए उस ने देखा कि अनिल गुनगुनाते हुए बालों में कंघी कर रहा है. उस ने पूछा, ‘‘कहीं जा रहे हैं?’’

‘‘क्यों?’’

‘‘बाल ठीक कर रहे हैं.’’

अनिल ने उसे चिढ़ाने वाले अंदाज में कहा, ‘‘क्यों, कहीं जाना हो तभी बाल ठीक करते हैं?’’

‘‘आप हर बात का जवाब टेढ़ा क्यों देते हैं?’’

‘‘मैं हूं ही टेढ़ा… खुश? अब जाऊं?’’

नेहा की आंखें भर आईं, कुछ बोली नहीं. यश की नोटबुक देखने लगी. अनिल सीटी बजाता हुआ रूम से निकल गया. 5 मिनट बाद नेहा बच्चों से बोली, ‘‘अभी आई, तुम लोग यहीं रहना,’’ और कमरे से निकल गई. अनिल छत पर जा चुका था. उस ने भी सीढि़यां चढ़ कर छत के गेट से अपना कान लगा दिया. बिना आहट किए सांस रोके खड़ी रही.

तभी अंजलि की आवाज आई, ‘‘बड़ी देर लगा दी?’’

‘‘बोलो अंजलि, क्या बात करनी है?’’

‘‘इतनी भी क्या जल्दी है?’’

नेहा को उन की बातचीत का 1-1 शब्द साफ सुनाई दे रहा था.

अनिल की गंभीर आवाज आई, ‘‘बात शुरू करो, अंजलि.’’

‘‘अनिल, यहां आने पर सब से ज्यादा खुश मैं इस बात पर थी कि तुम से मिल सकूंगी, लेकिन तुम्हें देख कर तो लगता है कि तुम मुझे भूल गए… मुझे तो उम्मीद थी मेरा कैरियर बनने तक तुम मेरा इंतजार करोगे, लेकिन तुम तो शादी कर के बीवीबच्चों के झंझट में पड़ गए. देखो, मैं ने अब तक शादी नहीं की, तुम्हारे अलावा कोई नहीं जंचा मुझे… क्या किसी तरह ऐसा नहीं हो सकता कि हम फिर साथ हो जाएं?’’

‘‘अंजलि, तुम आज भी पहले जैसी ही स्वार्थी हो. मैं मानता हूं नेहा से शादी मेरे लिए एक समझौता था, अपनी सारी भावनाएं तो तुम्हें सौंप चुका था… लगता था नेहा को कभी वह प्यार नहीं दे पाऊंगा, जो उस का हक है, लेकिन धीरेधीरे यह विश्वास भ्रम साबित हुआ. उस के प्यार और समर्पण ने मेरा मन जीत लिया. हमारे घर का कोनाकोना उस ने सुखशांति और आनंद से भर दिया. अब नेहा के बिना जीने की सोच भी नहीं सकता. जैसेजैसे वह मेरे पास आती गई, मेरी शिकायतें, गुस्सा, दर्द जो तुम्हारे लिए मेरे दिल में था, सब कुछ खत्म हो गया. अब मुझे तुम से कोई शिकायत नहीं है. मैं नेहा के साथ बहुत खुश हूं.’’

गेट से कान लगाए नेहा को अनिल की आवाज में सुख और संतोष साफसाफ महसूस हुआ.

अनिल आगे कह रहा था, ‘‘तुम भाभी की बहन की हैसियत से तो यहां आराम से रह सकती हो लेकिन मुझ से किसी भी रिश्ते की गलतफहमी दिमाग में रख कर यहां मत रहना… मेरे खयाल में तुम्हारा यहां न रहना ही ठीक होगा… नेहा का मन तुम्हारी किसी हरकत पर आहत हो, यह मैं बरदाश्त नहीं करूंगा. अगर यहां रहना है तो अपनी सीमा में रहना…’’

इस के आगे नेहा को कुछ सुनने की जरूरत महसूस नहीं हुई. उसे अपना मन पंख जैसा हलका लगा. आंखों में नमी सी महसूस हुई. फिर वह तेजी से सीढि़यां उतरते हुए मन ही मन यह सोच कर मुसकराने लगी कि टेढ़ा है पर मेरा है.

 

मैंने पड़ोस की औरत के साथ कई बार हमबिस्तरी की है. इससे एड्स का कोई डर तो नहीं.

सवाल
मैं 32 साल का हूं. मैंने पड़ोस की औरत के साथ हमबिस्तरी की है, पर डर है कि कहीं मुझे एड्स न हो जाए. वैसे, जिस्मानी संबंध बनाने के 5 दिन बाद मैंने जांच कराई, तो नतीजा निगेटिव रहा. औरत ने 10 दिन बाद जांच कराई, तो उस का नतीजा भी निगेटिव ही था. कोई डर तो नहीं है?

जवाब

एक ओर तो आप को जिस्मानी संबंधों का मजा चाहिए, वहीं दूसरी ओर मौत का डर भी है. आखिर ऐसा काम किया ही क्यों जाए, जिस में खौफ हो. वैसे, जांच रिपोर्टों के मुताबिक आप दोनों ही महफूज हैं, लेकिन यह खेल दूसरे तरीके से भी खतरनाक हो सकता है. औरत के पति को पता चलेगा, तो वह एड्स से भी ज्यादा दर्द देगा.

पीठ पीछे : दिनेश के सामने कैसा सच सामने आया

दिनेश हर सुबह पैदल टहलने जाता था. कालोनी में इस समय एक पुलिस अफसर नएनए तबादले पर आए हुए थे. वे भी सुबह टहलते थे. एक ही कालोनी का होने के नाते वे एकदूसरे के चेहरे पहचानने लगे थे. आज कालोनी के पार्क में उन से भेंट हो गई. उन्होंने अपना परिचय दिया और दिनेश ने अपना. उन का नाम हरपाल सिंह था. वे पुलिस में डीएसपी थे और दिनेश कालेज में प्रोफैसर.

वे दोनों इधरउधर की बात करते हुए आगे बढ़ रहे थे कि तभी सामने से आते एक शख्स को देख कर हरपाल सिंह रुक गए. दिनेश को भी रुकना पड़ा. हरपाल सिंह ने उस आदमी के पैर छुए. उस आदमी ने उन्हें गले से लगा लिया.

हरपाल सिंह ने दिनेश से कहा, ‘‘मैं आप का परिचय करवाता हूं. ये हैं रामप्रसाद मिश्रा. बहुत ही नेक, ईमानदार और सज्जन इनसान हैं. ऐसे आदमी आज के जमाने में मिलना मुश्किल हैं.

‘‘ये मेरे गुरु हैं. ये मेरे साथ काम कर चुके हैं. इन्होंने अपनी जिंदगी ईमानदारी से जी है. रिश्वत का एक पैसा भी नहीं लिया. चाहते तो लाखोंकरोड़ों रुपए कमा सकते थे.’’ अपनी तारीफ सुन कर रामप्रसाद मिश्रा ने हाथ जोड़ लिए. वे गर्व से चौड़े नहीं हो रहे थे, बल्कि लज्जा से सिकुड़ रहे थे.

दिनेश ने देखा कि उन के पैरों में साधारण सी चप्पल और पैंटशर्ट भी सस्ते किस्म की थीं. हरपाल सिंह काफी देर तक उन की तारीफ करते रहे और दिनेश सुनता रहा. उसे खुशी हुई कि आज के जमाने में भी ऐसे लोग हैं.

कुछ समय बाद रामप्रसाद मिश्रा ने कहा, ‘‘अच्छा, अब मैं चलता हूं.’’ उन के जाने के बाद दिनेश ने पूछा, ‘‘क्या काम करते हैं ये सज्जन?’’

‘‘एक समय इंस्पैक्टर थे. उस समय मैं सबइंस्पैक्टर था. इन के मातहत काम किया था मैं ने. लेकिन ऐसा बेवकूफ आदमी मैं ने आज तक नहीं देखा. चाहता तो आज बहुत बड़ा पुलिस अफसर होता लेकिन अपनी ईमानदारी के चलते इस ने एक पैसा न खाया और न किसी को खाने दिया.’’ ‘‘लेकिन अभी तो आप उन के सामने उन की तारीफ कर रहे थे. आप ने उन के पैर भी छुए थे,’’ दिनेश ने हैरान हो कर कहा.

‘‘मेरे सीनियर थे. मुझे काम सिखाया था, सो गुरु हुए. इस वजह से पैर छूना तो बनता है. फिर सच बात सामने तो नहीं कही जा सकती. पीठ पीछे ही कहना पड़ता है. ‘‘मुझे क्या पता था कि इसी शहर में रहते हैं. अचानक मिल गए तो बात करनी पड़ी,’’ हरपाल सिंह ने बताया.

‘‘क्या अब ये पुलिस में नहीं हैं?’’ दिनेश ने पूछा. ‘‘ऐसे लोगों को महकमा कहां बरदाश्त कर पाता है. मैं ने बताया न कि न किसी को घूस खाने देते थे, न खुद खाते थे. पुलिस में आरक्षकों की भरती निकली थी. इन्होंने एक रुपया नहीं लिया और किसी को लेने भी नहीं दिया. ऊपर के सारे अफसर नाराज हो गए.

‘‘इस के बाद एक वाकिआ हुआ. इन्होंने एक मंत्रीजी की गाड़ी रोक कर तलाशी ली. मंत्रीजी ने पुलिस के सारे बड़े अफसरों को फोन कर दिया. सब के फोन आए कि मंत्रीजी की गाड़ी है, बिना तलाशी लिए जाने दिया जाए, पर इन पर तो फर्ज निभाने का भूत सवार था. ये नहीं माने. तलाशी ले ली. ‘‘गाड़ी में से कोकीन निकली, जो मंत्रीजी खुद इस्तेमाल करते थे. ये मंत्रीजी को थाने ले गए, केस बना दिया. मंत्रीजी की तो जमानत हो गई, लेकिन उस के बाद मंत्रीजी और पूरा पुलिस महकमा इन से चिढ़ गया.

‘‘मंत्री से टकराना कोई मामूली बात नहीं थी. महकमे के सारे अफसर भी बदला लेने की फिराक में थे कि इस आदमी को कैसे सबक सिखाया जाए? कैसे इस से छुटकारा पाया जाए? ‘‘कुछ समय बाद हवालात में एक आदमी की पूछताछ के दौरान मौत हो गई. सारा आरोप रामप्रसाद मिश्रा यानी इन पर लगा दिया गया. महकमे ने इन्हें सस्पैंड कर दिया.

‘‘केस तो खैर ये जीत गए. फिर अपनी शानदार नौकरी पर आ सकते थे, लेकिन इतना सबकुछ हो जाने के बाद भी ये आदमी नहीं सुधरा. दूसरे दिन अपने बड़े अफसर से मिल कर कहा कि मैं आप की भ्रष्ट व्यवस्था का हिस्सा नहीं बन सकता. न ही मैं यह चाहता हूं कि मुझे फंसाने के लिए महकमे को किसी की हत्या का पाप ढोना पड़े. सो मैं अपना इस्तीफा आप को सौंपता हूं.’’ हरपाल सिंह की बात सुन कर रामप्रसाद के प्रति दिनेश के मन में इज्जत बढ़ गई. उस ने पूछा, ‘‘आजकल क्या कर रहे हैं रामप्रसादजी?’’

हरपाल सिंह ने हंसते हुए कहा, ‘‘4 हजार रुपए महीने में एक प्राइवेट स्कूल में समाजशास्त्र के टीचर हैं. इतना नालायक, बेवकूफ आदमी मैं ने आज तक नहीं देखा. इस की इन बेवकूफाना हरकतों से एक बेटे को इंजीनियरिंग की पढ़ाई बीच में छोड़ कर आना पड़ा. अब बेचारा आईटीआई में फिटर का कोर्स कर रहा है.

‘‘दहेज न दे पाने के चलते बेटी की शादी टूट गई. बीवी आएदिन झगड़ती रहती है. इन की ईमानदारी पर अकसर लानत बरसाती है. इस आदमी की वजह से पहले महकमा परेशान रहा और अब परिवार.’’ ‘‘आप ने इन्हें समझाया नहीं. और हवालात में जिस आदमी की हत्या कर इन्हें फंसाया गया था, आप ने कोशिश नहीं की जानने की कि वह आदमी कौन था?’’

हरपाल सिंह ने कहा, ‘‘जिस आदमी की हत्या हुई थी, उस में मंत्रीजी समेत पूरा महकमा शामिल था. मैं भी था. रही बात समझाने की तो ऐसे आदमी में समझ होती कहां है दुनियादारी की? इन्हें तो बस अपने फर्ज और अपनी ईमानदारी का घमंड होता है.’’ ‘‘आप क्या सोचते हैं इन के बारे में?’’

‘‘लानत बरसाता हूं. अक्ल का अंधा, बेवकूफ, नालायक, जिद्दी आदमी.’’ ‘‘आप ने उन के सामने क्यों नहीं कहा यह सब? अब तो कह सकते थे जबकि इस समय वे एक प्राइवेट स्कूल में टीचर हैं और आप डीएसपी.’’

‘‘बुराई करो या सच कहो, एक ही बात है. और दोनों बातें पीठ पीछे ही कही जाती हैं. सब के सामने कहने वाला जाहिल कहलाता है, जो मैं नहीं हूं. ‘‘जैसे मुझे आप की बुराई करनी होगी तो आप के सामने कहूंगा तो आप नाराज हो सकते हैं. झगड़ा भी कर सकते हैं. मैं ऐसी बेवकूफी क्यों करूंगा? मैं रामप्रसाद की तरह पागल तो हूं नहीं.’’

दिनेश ने उसी दिन तय किया कि आज के बाद वह हरपाल सिंह जैसे आदमी से दूरी बना कर रखेगा. हां, कभी हरपाल सिंह दिख जाता तो वह अपना रास्ता इस तरह बदल लेता जैसे उसे देखा ही न हो.

आजादी: राधिका का आखिर क्या था कुसूर

फैमिली कोर्ट की सीढि़यां उतरते हुए पीछे से आती हुई आवाज सुन कर वह ठिठक कर वहीं रुक गई. उस ने पीछे मुड़ कर देखा. वहां होते कोलाहल के बीच लोगों की भीड़ को चीरता हुआ नीरज उस की तरफ तेज कदमों से चला आ रहा था.

‘‘थैंक्स राधिका,’’ उस के नजदीक पहुंच नीरज ने अपने मुंह से जब आभार के दो शब्द निकाले तो राधिका का चेहरा एक अनचाही पीड़ा के दर्द से तन गया. उस ने नीरज के चेहरे पर नजर डाली. उस की आंखों में उसे मुक्ति की चमक दिखाई दे रही थी. अभी चंद मिनटों पहले ही तो एक साइन कर वह एक रिश्ते के भार को टेबल पर रखे कागज पर छोड़ आगे बढ़ गई थी.

‘‘थैंक्स राधिका टू डू फेवर. मुझे तो डर था कि कहीं तुम सभी के सामने सचाई जाहिर कर मुझे जीने लायक भी न छोड़ोगी,’’ राधिका को चुप पा कर नीरज ने आगे कहा.

राधिका ने एक बार फिर ध्यान से नीरज के चेहरे को देखा और बिना कुछ कहे आगे बढ़ गई. फैमिली कोर्ट के बाहर से रिकशा ले कर वह सीधे औफिस ही पहुंच गई. उस के मन में था कि औफिस के कामों में अपने को व्यस्त रख कर मन में उठ रही टीस को वह कम कर पाएगी. लेकिन वहां पहुंच कर भी उस का मन किसी भी काम में नहीं लगा. उस ने घड़ी पर नजर डाली. एक बज रहा था. औफिस में आए उसे अभी एक घंटा ही हुआ था. अपनी तबीयत ठीक न होने का बहाना कर उस ने हाफडे लीव को फुल डे सिकलीव में कन्वर्ट करवा लिया और औफिस से निकल कर सीधे घर जाने के लिए रिकशा पकड़ लिया.

सोसाइटी कंपाउंड में प्रवेश कर उस ने लिफ्ट का बटन दबाया, पर सहसा याद आया कि आज सुबह से बिजली बंद है और शाम 5 बजे के बाद ही सप्लाई वापस चालू होगी. बुझे मन से वह सीढि़यां चढ़ कर तीसरी मंजिल पर आई. फ्लैट नंबर सी-302 का ताला खोल कर अंदर से दरवाजा बंद कर वह सीधे जा कर बिस्तर पर पसर गई.

कुछ देर पहले बरस कर थम चुकी बारिश की वजह से वातावरण में ठंडक छा गई थी. लेकिन उस का मन अंदर से एक आग की तपिश से जला जा रहा था. नेहा अपने बौस के साथ बिजनैस टूर पर गई हुई थी और कल सुबह से पहले नहीं आने वाली थी वरना मन में उठ रही टीस उस के संग बांट कर अपने को कुछ हलका कर लेती. बैडरूम में उसे घबराहट होने लगी, तो वह उठ कर हौल में आ कर सोफे पर सिर टिका कर बैठ गई. उस की आंखों के आगे जिंदगी के पिछले 4 साल घूमने लगे…

‘चलो अच्छा ही है 2 दोस्तों के बच्चे अब शादी की गांठ से बंध जाएंगे तो दोस्ती अब रिश्तेदारी में बदल कर और पक्की हो जाएगी,’ राधिका के नीरज से शादी के लिए हां कहते ही जैसे पूरे घर में खुशियां छा गई थीं. राधिका के पिता ने अपने दोस्त का मुंह मीठा करवाया और गले से लगा लिया.

राधिका ने अपने सामने बैठे नीरज को चोरीछिपे नजरें उठा कर देखा. वह शरमाता हुआ नीची नजरें किए हुए चुपचाप बैठा था. न्यूजर्सी से अपनी पढ़ाई पूरी कर अभी कुछ महीने पहले ही आया नीरज शायद यहां के माहौल में अपनेआप को फिर से पूरी तरह से एडजस्ट नहीं कर पाया. यही सोच कर राधिका उस वक्त उस के चेहरे के भाव नहीं पढ़ पाई. अपने पापा के दोस्त दीनानाथजी को वह बचपन से जानती थी लेकिन नीरज से उस की मुलाकात इस रिश्ते की नींव बनने से पहले कभीकभी ही हुई थी. 12वीं पास करने के बाद नीरज 5 साल के लिए स्टूडैंट वीजा पर न्यूजर्सी चला गया था और जब वापस आया तो पहली ही मुलाकात में चंद घंटों की बातों के बाद उन की शादी का फैसला हो गया.

‘‘नीरज, मैं तुम्हें पसंद तो हूं न?’’ बगीचे में नीरज का हाथ थाम कर चलती राधिका ने पूछा.

‘‘हां. लेकिन क्यों ऐसा पूछ रही हो?’’ उस की बात का जवाब देते हुए नीरज ने पूछा.

‘बस ऐसे ही. अगले महीने हमारी शादी होने वाली है. पर तुम्हारे चेहरे पर कोई उत्साह न देख कर मुझे डर सा लगता है. कहीं तुम ने किसी दबाव में आ कर तो इस शादी के लिए हां नहीं की न?’ पास ही लगी बैंच पर बैठते हुए राधिका ने नीरज को देखा.

‘वैल. अपना बिजनैस सैट करने की थोड़ी टैंशन है. इसी उलझन में रहता हूं कि कहीं शादी का यह फैसला जल्दी तो नहीं ले लिया,’ कहते हुए नीरज ने अपनी पैंट की जेब से रूमाल निकाला और माथे पर उभर आई पसीने की बूंदों को पोंछ डाला.

‘इस में टैंशन लेने वाली बात ही क्या है? शादी तो समय पर हो ही जानी चाहिए. वैसे भी, जीने के लिए पैसा नहीं, अपने लोगों के पास होने की जरूरत होती है,’ कहती हुई राधिका ने नीरज के कंधे पर अपना सिर टिका दिया.

‘बात तो सच है तुम्हारी पर फिर भी हर वक्त एक डर सा बना रहता है,’ नीरज ने अपने हाथ में अभी भी रूमाल पकड़ रखा था.

‘छोड़ो भी अब यह डर और कोई रोमांटिक बात करो न मुझ से,’ कहती हुई राधिका ने आसपास नजर दौड़ाई. बगीचे में अधिकांश जोड़े अपनी ही मस्ती में खोए हुए थे. सहसा राधिका नीरज के और करीब आ गई और उस के हाथ की उंगलियां उस की छाती पर हरकत करने लगीं.

‘यह क्या हरकत है राधिका?’ कहते हुए नीरज ने एक झटके से राधिका को अपने से दूर कर दिया और अपनी जगह से खड़ा हो गया. राधिका के लिए नीरज का यह व्यवहार अप्रत्याशित था. वह नीरज की इस हरकत से सहम गई. तभी दरवाजे की घंटी बज उठी. राधिका अपनी यादों से बाहर निकल कर खड़ी हुई और दरवाजा खोला.

‘‘नेहा प्रधान हैं?’’

दरवाजे पर कूरियर वाला खड़ा था. ‘‘जी, इस वक्त वह घर पर नहीं है. लाइए मैं साइन कर देती हूं,’’ राधिका ने पैकेट लेने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाया.

पैकेट दे कर कूरियर वाला चला गया. दरवाजा बंद करती हुई राधिका ने पैकेट को देख कर उस के अंदर कोई पुस्तक होने का अंदाजा लगाया. नेहा अकसर कोई न कोई पुस्तक मंगाती रहती थी. उस ने पैकेट टेबल पर रख दिया और वापस सोफे पर बैठ गई.

4 वर्षों का साथ आज यों ही एक झटके में तो नहीं टूट गया था. उस के पीछे की भूमिका तो शायद शादी के पहले से ही बन चुकी थी. पर नीरज का मौन राधिका की जिंदगी भी दांव पर लगा गया. नीरज के बारे में और सोचते हुए उस का चेहरा तन गया.

‘नीरज,  तुम्हारे मन में आखिर चल क्या रहा है? हमारी शादी हुए एक महीने से ज्यादा हो गया और 10 दिनों के अच्छेखासे हनीमून के बाद भी तुम्हारे चेहरे पर नईनई शादी वाली खुशी नदारद सी है. बात क्या है? मुझ से तो खुल कर कहो,’ पूरे हनीमून के दौरान राधिका ने महसूस किया कि नीरज हमेशा उस से एक सीमित अंतर बना कर रह रहा है. रात के हसीन पल भी उसे रोमांचित नहीं कर पा रहे थे. वह, बस, शादी के बाद की रातों को एक जिम्मेदारी मान कर जैसेतैसे निभा ही रहा था. हनीमून से लौट कर आने के बाद राधिका के चेहरे पर अतृप्ति के भाव छाए हुए थे.

‘कुछ नहीं राधिका. मुझे लगता है हम ने शादी करने में जल्दबाजी कर दी है,’ राधिका की बात सुन कर नीरज इतना ही बोल पाया.

‘जनाब, अब ये सब बातें सोचने का समय बीत चुका है. बेहतर होगा हम मिल कर अपनी शादी का जश्न पूरे मन से मनाएं,’ राधिका ने नीरज की बात सुन कर कहा.

‘तुम नहीं समझ पाओगी राधिका और मैं तुम्हें अपनी समस्या समझ भी नहीं पाऊंगा,’ कह कर नीरज राधिका की प्रतिक्रिया की परवा किए बिना ही कमरे से बाहर चला गया.

अकेले बैठी हुई राधिका का मन बारबार पिछली बातों में जा कर अटक रहा था. लाइट भी नहीं थी जो टीवी औन कर अपना मन बहला पाती. तभी उस के मन में कुछ कौंधा और उस ने नेहा के नाम से अभी आया पैकेट खोल लिया. उस के हाथों में किसी नवोदित लेखक की पुस्तक थी. पुस्तक के कवर पर एक स्त्री की एक पुरुष के साथ हाथों में हाथ डाले हुए मनमोहक छवि थी और उस के ऊपर पुस्तक का शीर्षक छपा हुआ था- ‘उस के हिस्से का प्यार’. कहानियों की इस पुस्तक की विषय सूची पर नजर डालते हुए उस ने एक के बाद एक कुछ कहानियां पढ़नी शुरू कर दीं. बच्चे के यौन उत्पीड़न और फिर उस को ले कर वैवाहिक जीवन में आने वाली समस्या को ले कर लिखी गई एक कहानी पढ़ कर वह फिर से नीरज की यादों में खो गई.

उस दिन नीरज बेहद खुश था. वह घर खाने पर अपने किसी विदेशी दोस्त को ले कर आया था.

‘राधिका, 2 दिनों पहले मैं अपने जिस दोस्त की बात कर रहा था वह यह माइक है. न्यूजर्सी में हम दोनों रूममेट थे और साथ ही पढ़ते थे,’ नीरज ने राधिका को माइक का परिचय देते हुए कहा.

राधिका ने अपने पति की बाजू में खड़े उस श्वेतवर्णी स्निग्ध त्वचा वाले लंबे व छरहरे युवक पर नजर डाली. राधिका को पहली ही नजर में नीरज का यह दोस्त बिलकुल पसंद नहीं आया. उस का क्लीनशेव्ड नाजुक चेहरा और उस पर सिर पर थोड़े लंबे बालों को बांध कर बनाई गई छोटी सी चोटी देख कर राधिका को आश्चर्य हो रहा था कि ऐसा लड़का नीरज का दोस्त कैसे हो सकता है. नीरज तो खुद अपने पहनावे और लुक को ले कर काफी कौन्शियस रहता है. उस वक्त इस बात को नजरअंदाज कर वह इस बात पर ज्यादा कुछ न सोचते हुए खाना बनाने में जुट गई.

उसी रात नीरज ने जब राधिका से सीधेसीधे तलाक लेने की बात छेड़ी तो राधिका के पैरोंतले जमीन खिसक गई.

‘लेकिन बात क्या हुई नीरज? न हमारे बीच कोई झगड़ा है न कोई परेशानी. सबकुछ तो बराबर चल रहा है. कहीं तुम्हारा किसी के संग अफेयर तो…’ रिश्तों को बांधे रखने की दुहाई देते हुए सहसा उस का मन एक आशंका से भर गया.

‘अफेयर ही समझ लो. अब तुम से मैं आगे कुछ और नहीं छिपाऊंगा,’ कहते हुए नीरज चुप हो गया. राधिका ने नीरज के चेहरे को देखते हुए उस की आंखों में अजीब सी मदहोशी महसूस की.

‘तुम कहना क्या चाहते हो नीरज?’ राधिका नीरज की अधूरी छोड़ी बात पूरी सुनना चाहती थी. उस के बाद नीरज ने जो कुछ उस से कहा, उन में से आधी बात तो वह ठीक से सुन ही नहीं पाई.

‘तुम्हारे संग मेरी शादी मेरे लिए एक जुआ ही थी. मैं अपनी सारी जिंदगी इसी तरह कशमकश में गुजार देता पर अब यह कुछ नामुमकिन सा लगता है राधिका. बेहतर होगा हम अपनेअपने रास्ते अलगअलग ही तय करें,’ नीरज से शादी टूटने से पहले कहे गए आखिरी वाक्य उस के दिमाग में बारबार कौंधने लगे.

राधिका ने कमरे की लाइट बंद कर दी और चुपचाप लेट कर सारी रात अपनी बरबादी पर आंसू बहाती रही.

अब एक ही घर में नीरज के साथ रहते हुए वह अपनेआप को एक अजनबी महसूस कर रही थी. अपने मन की बात राधिका को जता कर जैसे नीरज के मन का भार हलका हो चुका था लेकिन राधिका जैसे मन पर एक अनचाहा भार ले कर जी रही थी. जब उस के मन का भार असहनीय हो गया तो वह नीरज के घर की दहलीज छोड़ कर अपने पिता के घर आ गई.

फिर जो हुआ वह आज के दिन में परिणत हो कर उस के सामने खड़ा था. कानूनी तौर पर वह भले ही नीरज से अलग हो चुकी थी लेकिन नीरज की सचाई और उस के द्वारा दी गई अनचाही पीड़ा अब भी उस के मन के कोने में कैद थी जिसे वह चाह कर भी किसी से बयान नहीं कर सकती थी. घर में बैठेबैठे अकेले घुटन होने से वह घर लौक कर बाहर निकल गई और एमजी रोड पर स्थित मौल में दिल बहलाने के लिए चक्कर लगाने लगी.

रात देर से नींद आने की वजह से सुबह उस की नींद देर से ही खुली. वैसे भी आज उस का वीकली औफ होने से औफिस जाने का कोई झंझट न था. उस ने उठ कर समाचार सुनने के लिए टीवी औन ही किया था कि डोरबेल बज उठी.

‘‘हाय राधिका. हाऊ आर यू?’’ दरवाजा खोलते ही नेहा राधिका से लिपट गई.

‘‘मैं ठीक हूं. तेरा टूर कैसा रहा?’’ राधिका के चेहरे पर एक फीकी सी मुसकान तैर गई.

‘‘बौस के साथ टूर हमेशा ही मजेदार रहता है. वैसे भी अब जिंदगी ऐसे मोड़ तक पहुंच गई है जहां से वापस लौटना संभव ही नहीं. यह टूर तो एक बहाना होता है एकांत पाने का,’’ कहती हुई नेहा सोफे पर पसर गई.

राधिका ने रिमोट उठा कर चुपचाप न्यूज चैनल शुरू कर दिया.

‘‘सुन, कल तेरी आखिरी सुनवाई थी न फैमिली कोर्ट में. क्या फैसला आया?’’ नेहा ने राधिका को अपने पास खींचते हुए उस से पूछा.

‘‘फैसला तो पहले से ही तय था. बस, साइन ही करने तो जाना था,’’ राधिका ने बुझेमन से जवाब दिया.

‘‘लेकिन तू ने अभी तक नहीं बताया कि आखिर ऐसा क्या हुआ जो तू ने नीरज से अलग होने का फैसला ले लिया?’’ पिछले एक साल से साथ रहने के बावजूद राधिका ने अपनी जिंदगी का एक अधूरा सच नेहा से अब तक छिपाए रखा था.

‘भारत की न्याय प्रणाली में एक ऐतिहासिक फैसला सैक्शन 377 के तहत अब गे और लैस्बियन संबंध वैध.’

तभी टीवी स्क्रीन पर आती ब्रैकिंग न्यूज देख कर राधिका असहज हो गई.

‘‘स्ट्रैंज,’’ नेहा ने न्यूज पर अपनी छोटी सी प्रतिक्रिया जताते हुए राधिका से फिर से पूछा, ‘‘तू ने बताया नहीं राधिका? कुछ कारण तो रहा होगा न?’’

‘‘बस, समझ ले कल उसे एक अनचाहे रिश्ते से कानूनीतौर पर मुक्ति मिली और आज उस मुक्ति की खुशी मनाने का मौका भी उसी कानून ने उसे दे दिया,’’ राधिका की नजरें अभी भी टीवी स्क्रीन पर जमी हुई थीं. लेकिन नेहा उस की नम हो चुकी आंखों में तैर रही खामोशी को पढ़ चुकी थी.

जातपांत : निर्मला से क्यों नाराज था उसका परिवार

निर्मला अपने पति राजन के साथ जिद कर के अपनी दादी के श्राद्ध में मायके आई थी. हालांकि राजन ने उसे बारबार यही कहा था कि बिन बुलाए वहां जाना ठीक नहीं है, फिर भी वह नहीं मानी और अपना हक समझते हुए वहां पहुंच ही गई.

निर्मला ने सोचा था कि दुख की इस घड़ी में वहां पहुंचने पर परिवार के सभी लोग गिलेशिकवे भूल कर उसे अपना लेंगे और दादी की मौत का दुख जताएंगे. पर उस का ऐसा सोचना गलत साबित हुआ.

सभी ने निर्मला को देख कर भी नजरअंदाज कर दिया, मानो वह कोई अजनबी हो.

इस के बावजूद भी निर्मला को उम्मीद थी कि परिवार वाले भले ही उसे नजरअंदाज करें, मां ऐसा नहीं कर सकतीं.

तभी निर्मला ने राजन की तरफ इस तरह देखा, मानो वह मां के पास जाने की उस से इजाजत ले रही हो. फिर वह अकेली ही मां की तरफ बढ़ गई.

उस समय निर्मला की मां औरतों के हुजूम में आगे बैठी हुई थीं. जब मां ने निर्मला को अपने करीब आते देखा, तो वे उठ कर तेजी से दूसरे कमरे में चली गईं.

मां के पीछेपीछे निर्मला भी वहां पहुंच गई और प्यार से बोली, ‘‘मां, यह सब कैसे हुआ? क्या दादी बहुत दिनों से बीमार थीं?’’

‘‘तुम से मतलब? आखिर तुम पूछने वाली होती कौन हो? चली जाओ यहां से. फिर कभी भूल कर भी इस घर की तरफ मत देखना, नहीं तो तुम मेरा मरा हुआ मुंह देखोगी,’’ गुस्से से चीखते हुए उस की मां बोलीं.

‘‘ऐसा न कहो, मां. नहीं तो मैं अनाथ हो जाऊंगी. आखिर तुम्हारा ही तो सहारा है मुझे. मां हो कर भी तुम मेरे मन की भावना को नहीं समझोगी, तो और कौन समझेगा?’’ रोते हुए निर्मला बोली.

‘‘नहीं समझना है मुझे. कुछ नहीं समझना,’’ चीखते हुए उस की मां ने कहा.

‘‘क्यों नहीं समझना है, मां? तुम्हें समझना ही पड़ेगा. अपनी बेटी के दुख को महसूस करना ही पड़ेगा. आखिर मेरा इतना ही कुसूर था न कि मैं ने राजन से सच्चा प्यार किया? उस से शादी की, जो हमारी बिरादरी का नहीं है?

‘‘लेकिन मां, तुम मुझे गौर से देखो कि मैं राजन के साथ कितनी खुश हूं. मुझे किसी बात का दुख नहीं है,’’ खुशी जताते हुए निर्मला ने कहा.

‘‘मुझे कुछ नहीं देखना है और न ही सुनना है, बस. तुम अभी और इसी समय उस राजन को ले कर यहां से चली जाओ, ताकि तुम्हारी दादी का श्राद्ध शांति से पूरा हो सके,’’ मां बोलीं.

‘‘हम यहां से चले जाएंगे, मां, रहने के लिए नहीं आए हैं. केवल दादी के श्राद्ध में आए हैं. बस, उसे पूरा हो जाने दो. क्योंकि दादी से मेरा और मुझ से उन का कितना गहरा लगाव था, यह तुम अच्छी तरह से जानती हो. मेरे बिना तो वे कुछ भी नहीं खातीपीती थीं,’’ सुबकते हुए निर्मला ने कहा.

‘‘इसीलिए तो तुम उस कलमुंहे राजन के साथ भाग गई और कोर्ट में जा कर शादी कर ली. तब तुम्हें दादी का इतना खयाल नहीं था, जबकि उन्होंने तुम्हारी याद में अपनी जान दे दी?’’

‘‘मुझे दादी का बहुत खयाल था, मां. परंतु मैं क्या करती, आप सभी तो मुझ से खफा थे. डर के चलते मैं नहीं आ सकी,’’ रोते हुए निर्मला ने कहा.

‘‘बड़ी आई डर वाली. जब इतना ही डर था, तो घर से कदम बाहर निकालते समय हजार बार सोचती? फिर भी कुछ नहीं सोचा.

‘‘अरे, क्या अपनी बिरादरी में लड़कों की कमी हो गई थी, जो उस नाशपीटे राजन के साथ भाग गई?’’ तीखी आवाज में उस की मां ने कहा.

मां के सवालों का जवाब देने के बजाय निर्मला ने कहा, ‘‘मां, मुझे जी भर कर कोस लो, लेकिन उन्हें कुछ न कहो, क्योंकि अब वे मेरे पति हैं.’’

‘‘तुम तो ऐसे कह रही हो, जैसे दुनिया में केवल एक तुम ही पति वाली हो, बाकी सब दिखावे वाली हैं,’’ खिल्ली उड़ाते हुए उस की मां बोलीं.

‘‘मां, मेरी अच्छी मां, तुम तो मुझे ऐसा न कहो. हर मांबाप का सपना होता है कि मेरी बेटी अच्छे घर में ब्याहे, सुखशांति से रहे. उन्हीं में से मैं एक हूं.

‘‘तुम्हें तो खुश होना चाहिए कि मैं ने अपने जीवनसाथी का खुद ही चुनाव कर तुम लोगों की परेशानी को दूर किया है. इस के बावजूद भी सभी की तरह तुम भी मुझे नजरअंदाज कर रही हो?’’ दुखी हो कर निर्मला ने कहा.

‘‘हां, तुम इसी काबिल हो, इसीलिए नहीं मिलेगा अब तुम्हें वह लाड़प्यार और अपनापन, जो कभी यहां मिला करता था…’’

निर्मला की मां की बातें अभी पूरी भी नहीं हो पाई थीं कि पिता, भाई, बहन व भाभी सभी वहां आ गए और गुस्से से निर्मला को घूरने लगे.

तभी उस के पिता दयाशंकर ने गुस्से में कहा, ‘‘कलंकिनी, मुझे तो तेरा नाम लेते हुए भी नफरत हो रही है. आखिर तुम ने मेरे घर में कदम रखने की हिम्मत कैसे की?’’

‘‘ऐसा न कहिए, पापा. आखिर इस घर से मेरा भी तो कोई रिश्ता है? उसी रिश्ते के वास्ते तो मैं यहां आई हूं. मुझे और मेरे पति को अपना लीजिए, पापा,’’ रोतेगिड़गिड़ाते हुए निर्मला ने कहा.

‘‘खबरदार, जो मुझे पापा कहा. तेरा पापा तो उसी दिन मर गया था, जिस दिन तू इस घर को छोड़ कर गई थी. रहा सवाल अपनाने का, तो यह हक अब तुम खो चुकी हो.’’

‘‘नहीं, पापा नहीं. ऐसा न कहो और ठंडे दिमाग से सोचो कि प्यार करना क्या कोई जुर्म है?

‘‘आखिर मैं भी तो बालिग हूं. जब मैं अपना भलाबुरा सोचसमझ सकती हूं, तो फिर मुझे फैसला लेने का हक क्यों नहीं है? और फिर चाहे बातें भविष्य की हों या जीवनसाथी चुनने की, लड़कियों को यह हक जरूर मिलना चाहिए,’’ थोड़ा खुश हो कर निर्मला ने कहा.

‘‘तू मुझे हक के बारे में समझा रही है? अगर तू इतनी ही समझदार होती, तो अपनी ही जाति के लड़के से शादी करती, न कि किसी दूसरी जाति के लड़के से,’’ निर्मला के पिता ने कहा.

‘‘दूसरी जाति के लड़के क्या इनसान नहीं होते? क्या उन में समझदारी नहीं होती? इस की मिसाल तो राजन ही हैं, जिन्होंने मुझे जिंदगी की सारी खुशियां दे रखी हैं, कोई कमी महसूस नहीं होने दी है उन्होंने. मैं इस तरह के जातपांत के भेदभाव को नहीं मानती, जो एक इनसान को दूसरे इनसान से अलग करता हो, आपस में दूरियां बढ़ाता हो…

‘‘मैं केवल इनसानियत की जात को जानती व मानती हूं,’’ निर्मला बोलती चली गई.

‘‘बस करो अपनी यह बकवास और उस राजन के साथ यहां से चलती बनो,’’ इस बार चीखते हुए निर्मला का भाई विशाल बोला.

‘‘भैया, मुझे जो चाहो कह लो, मैं सब बरदाश्त कर लूंगी. लेकिन उन के बारे में कुछ भी नहीं सुन सकती. क्योंकि एक पत्नी अपने सामने पति की बेइज्जती कभी बरदाश्त नहीं कर सकती.’’

‘‘अच्छा, तब तो मुझे तुम्हारे पति की बेइज्जती करनी ही होगी, वह भी तुम्हारे सामने,’’ नजरें तिरछी करते हुए विशाल बोला.

‘‘क्या…? यह तुम कह रहे हो? जबकि तुम भी किसी के पति हो और तुम्हारी पत्नी तुम्हारे सामने खड़ी है. महाभारत मचा दूंगी मैं यहां. तुम क्या समझते हो अपनेआप को कि वे तुम से कमजोर हैं?

‘‘वे जूडोकराटे में ब्लैकबैल्ट हैं और साथ ही पुलिस में भी हैं. उन से टकराना तुम्हें महंगा पड़ेगा, भैया.

‘‘हां, मैं यदि चाहूं, तो तुम्हारी पत्नी के सामने तुम्हारी बेइज्जती जरूर करवा सकती हूं, ताकि तुम बेइज्जती के दर्द को महसूस कर सको.

‘‘लेकिन, मैं इतनी बेवकूफ भी नहीं हूं कि तुम्हारी तरह कुछ करने से पहले कुछ सोचसमझ न सकूं. औरत हूं, इसलिए औरत का दर्द समझती हूं. लिहाजा, ऐसा कुछ नहीं करना चाहूंगी, जिस से कि भाभी के मन में दुख हो.’’

निर्मला की बातें सुन कर उस की भाभी सुबक पड़ी और उस ने आगे बढ़ कर निर्मला को गले लगा लिया.

‘‘माधुरी, यह तुम क्या कर रही हो? दूर हटो उस से. इस से हमारा कोई रिश्ता नहीं है,’’ चीखते हुए विशाल बोला.

‘‘रिश्ता है क्यों नहीं? खून का रिश्ता है हमारा, इसलिए अपनी बहन को अपना लीजिए. इस ने ठीक ही कहा है कि जातपांत कुछ नहीं होता. होती है तो केवल इनसानियत, और इनसानियत का रिश्ता,’’ निर्मला की तरफदारी लेते हुए उस की भाभी माधुरी ने कहा, मानो वह भी इनसानियत के रिश्ते को ही अहमियत दे रही हो.

लेकिन माधुरी की बातें सुन कर विशाल बौखला गया. वह गुस्से से बोला, ‘‘माधुरी, लगता है इस के साथसाथ तुम्हारा भी दिमाग खराब हो गया है, कहीं…’’

अभी विशाल अपनी बातें पूरी भी नहीं कर पाया था कि तभी वहां राजन आ गया और सूझबूझ का परिचय देते हुए गंभीरता से बोला, ‘‘निर्मला, अब चलो यहां से. बहुत हो चुकी तुम्हारी बेइज्जती. मैं अब और सहन नहीं कर सकता.

‘‘मैं ने सबकुछ सुन लिया है और जान लिया है कि ये लोग ऐसे पत्थरदिल इनसान हैं, जो जातपांत का ढोंग रच कर समाज को गंदा करते हैं.’’

‘‘आप बिलकुल ठीक कहते हैं. अब मुझे समझ में आया कि मैं ने यहां आ कर कितनी बड़ी भूल की है?

‘‘ले चलिए मुझे. अब एक पल भी मैं यहां रुकना नहीं चाहूंगी,’’ उठते हुए निर्मला बोली और अपने पति राजन का हाथ थाम कर घर से बाहर जाने लगी.

उस की छोटी बहन उर्मिला ने दौड़ कर निर्मला का हाथ थाम लिया और सिसकते हुए बोली, ‘‘दीदी, मत जाओ. मुझे छोड़ कर मत जाओ.’’

‘‘पगली, मैं कहां तुम्हें छोड़ कर जा रही हूं? हां, जातपांत और उन बुरे रिवाजों को छोड़ कर जा रही हूं, जिसे मां, पापा व भैया ने अपनी मुट्ठियों में जकड़ रखा है.

‘‘मैं यहां नहीं आऊंगी तो क्या हुआ, तुम तो अपनी दीदी के घर आ सकती हो?’’ निर्मला बोली.

‘‘जरूर आऊंगी दीदी,’’ उर्मिला ने खुश हो कर कहा.

‘‘मैं इंतजार करूंगी,’’प्यार से उस के सिर पर अपना हाथ फेरते हुए निर्मला ने कहा और अपने पति राजन के साथ घर से बाहर निकल गई.

गाने की वजह से वायरल हो रही नम्रता मल्ला की रही है विवादों से पुरानी रिश्तेदारी

भोजपुरा एक्ट्रेस नम्रता मल्ला की हमेशा अपने डांस और बोल्ड लुक को लेकर सुर्खियों में बनीं रहती है. नम्रता मल्ला अपने सेक्सी डांस के लिए काफी पौपुलर है. नम्रता मल्ला हाल ही में वायरल हो रहे डांस वीडियो को लेकर सुर्खियो में बनीं हुई है. एक्ट्रेस जितना अपने डांस को लेकर ट्रेंड करती है उतना ही अपने विवादों को लेकर भी बनीं रहती है. नम्रता को की बार विवादों के घेरे में आना पड़ता है. ऐसे कई कंट्रोवर्सी है जिन्हे लेकर वे सुर्खियों में रहती है.

 

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नम्रता मल्ला ने हाल ही में अपना सेक्सी वीडियो इंस्टाग्राम पर अपलोड किया है. जिसे देखकर उनके फैंस काफी गदगद हो रहे हैं. लाखों फैंस के दिलों पर राज करने वाली भोजपुरी एक्ट्रेस नम्रता मल्ला बेली डांस के लिए भी जानी जाती है. नम्रता अपने हौट फोटोस और सेक्सी वीडियो इंस्टाग्राम पर शेयर करती रहती हैं. इन सबके अलावा एक्ट्रेस को कभी कभी विवादों में भी आना पड़ता है.

भगवा रंग की पहनी बिकनी

भोजपुरी सिनेमा की सुपर हौट एक्ट्रेस और बिकिनी बेब यानी नम्रता मल्ला को एक बार कंट्रोवर्सी का सामना करना पड़ा जब उन्होंने सोशल मीडिया पर भगंवा रंग की बिकनी पहनी थी. नम्रता मल्ला ने अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर दीपिका के ‘बेशर्म रंग’ गाने में पहनी हुई बिकनी हूबहू कैरी की थी. जब से नम्रता ने भगवा रंग की बिकिनी पहनी, तब से विवाद थमने का नाम ही नहीं ले रहे. ऐसे में नम्रता ने भी सेम कलर की बिकिनी पहन कर फोटोशूट कराया. Bhojpuri

नम्रता मल्ला वीडियो में बिकिनी पहनकर समुद्र के किनारे लेटकर तो कभी बैठकर फोटोशूट करा रही हैं. वहीं बीच-बीच में समंदर की लहरें उन्हें भिगोती दिख रही हैं. इस दौरान वो बेहद ही बोल्ड एक्सप्रेशन देती दिख रही थी. इस पोस्ट के लिए उन्हे ट्रोल किय गया. एक ने लिखा, ‘इसने भी भगवा रंग की बिकिनी पहन लिया है बायकौट करो.’ वहीं एक लिखता है, ‘सभी को कौन्ट्रोवर्सी में आना है लगता है इसलिए यही रंग पसंद कर रहे हैं.’ एक ने लिखा, ‘ये क्या अब बायकौट गैंग कहा है.

लाल घाघरा पर हुआ था विवाद

भोजपुरी गाना लाल घाघरा जब आया तो उसके नाम पर भी काफी विवाद हुआ. इस गाने में नम्रता मल्ला और पवन सिंह ने किरादार निभाया था. इस गाने के नाम को लेकर काफी विवाद हुआ था. दरअसल, खेसारी लाल यादव की रीलीज हुई. डोली सजा के रखना में भी इस टाइटल का गाना यही रखा गया था. जो कि पवन सिंह के गाने से पहले रीलीज हुआ था. जिस पर नाम को लेकर विवाद शुरु हो गया था. हालांकि इस गानें को खूब पसंद किया जाने लगा.

दीपिका कक्कड़ से लेकर एक्टर अमन वर्मा है ऐसे टीवी स्टार्स जिनका आर्मी से है खास कनेक्शन

टीवी इंडस्ट्री के कई ऐसे एक्टर और एक्ट्रेस हैं, जिनका आर्मी बैकग्राउंड और आर्मी परिवार से खास रिश्ता है.ऐसे टीवी स्टार्स के बारे में बताने वाले जो भारतीय सेना के बैकग्राउंड से आते हैं और वैसा ही जज्बा रखते हैं. नकुल मेहता और दीपिका कक्कड़ के अलावा चलिए जानते हैं टीवी जगत के उन कुछ एक्टर और एक्ट्रेस के बारे में, जिनके परिवारवाले सीमा पर देश की रक्षा ही नहीं करते थे. बल्कि देश के नाम अपनी जान भी कुर्बान कर चुके हैं.

 

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ऐश्वर्या सखूजा

‘सास बिना ससुराल’ में टोस्टी के रोल से सभी का दिल जीतने वाली एक्ट्रेस एक आर्मी परिवार से हैं. उनके पिता सुधीर कुमार सखुजा भारतीय सेना में थे.

दीपिका कक्कड़

‘ससुराल सिमर का’ की अभिनेत्री भी एक आर्मी परिवार से हैं. उनके पिता एक आर्मी औफिसर थे.

फ्लोरा सैनी

साउथ इंडस्ट्री की लोकप्रिय और ‘स्त्री’ में अपने अभिनय से पूरे देश का दिल जीतने वाले अभिनेत्री अपनी बोल्ड भूमिका के लिए जानी जाती हैं. अभिनेत्री का जन्म एक आर्मी परिवार में हुआ था और उन्होंने अपनी शिक्षा आर्मी स्कूल से प्राप्त की. जेएस सैनी सेवानिवृत्त भारतीय सेना अधिकारी रहे हैं. Tv news

रणविजय सिंह

रणविजय अपने परिवार में एकमात्र ऐसे लड़के हैं जो भारतीय सेना में सेवा नहीं करते हैं बाकी उनके परिवार की छह पीढ़ियां भारतीय सेना में सेवा कर चुकी है. उनके पिता इकबाल सिंह सिंघा भारतीय सेना में थे जबकि उनके भाई हरमनजीत सिंह सिंघा इंडियन नेवी में सेवा करते हैं.

अमन वर्मा

अमन के पिता यतन कुमार वर्मा भी भारतीय सेना में थे. साल 2001 से 2004 के बीच एक गेम शो आता था ‘खुल जा सिम सिम’, जो काफी हिट था. इस शो को अमन वर्मा होस्ट करते थे, जो उस समय के एक बड़े टीवी स्टार थे.

राजीव खंडेलवाल

अपने लुक से सबको चौंका देने वाले एक्टर भी सेना की पृष्ठभूमि से ताल्लुक रखने वाले सेलेब्स में से एक हैं. उनके पिता कर्नल सी.एल. खंडेलवाल सेवानिवृत्त सैन्यकर्मी हैं.

नकुल मेहता

एक्टर अजमेर के राजपूत चौहान वंश के राजा पृथ्वीराज चौहान के वंशज हैं, लेकिन यह बात बहुत कम ही लोग जानते हैं कि उनके पिता प्रताप सिंह मेहता 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान आर्मी में थे, जबकि उनके परदादा लक्ष्मीलाल मेहता मेवाड़ क्षेत्र के सेना प्रमुख थे.

ख्वाब : प्रभा को क्यों थी फैशन से नफरत

कम्मो ने जब दोनों हाथ जोड़ कर होंठों पर भीनीभीनी हंसी बिखेरते हुए नमस्कार किया, तो जवाब देने के बजाय मैं उस के जिस्म को अपनी ललचाई आंखों से देखता ही रह गया.

‘‘चाय लीजिए,’’ कह कर वह दरवाजे पर झूलते रेशमी परदे को एक किनारे सरका कर कमरे में चली गई.

मेरे बदन में अजीब सी सिहरन पैदा हो गई. उस की सुरीली, मीठी आवाज सुन कर मेरे कानों में जैसे घंटियां बजने लगीं. चाय खत्म कर के मैखाने से निकले दीवानों की तरह अपने बेकाबू दिल को काबू में रखते हुए और अपनी जिंदगी को कोसते हुए मैं घर की तरफ चल दिया.

मैं ने सोचा, ‘काश, मेरी बीवी भी कम्मो जैसी नाजनखरे वाली चंचल और हसीन होती तो जीने का मजा कुछ और ही होता.’

‘मोहन ने क्लर्क होते हुए भी पहली बीवी को छोड़ कर अपनी मनपसंद लड़की से शादी की है. मैं तो कैशियर होते हुए भी पहली ही बीवी को अपना जीवनसाथी मान कर, समाज के सड़ेगले रिवाजों के दलदल में फंस कर जिंदगी की हकीकत से मुंह मोड़ चुका हूं.’

मेरी बीवी प्रभा को आजकल के फैशन से सख्त नफरत थी. वह थोड़े ही खर्च में अपना काम चला लेती. कहती, ‘‘अमीर बन कर गरीबी के दिनों को बिसारना नहीं चाहिए.’’

‘लेकिन, वक्त के साथ जिस में बदलाव नहीं आया, उस की भी कोई जिंदगी है,’ मैं रास्तेभर यही सोचता रहा.

प्रभा के लिए मेरे दिल में नफरत भर गई थी, इसलिए ठान लिया कि अब नई हसीन बीवी ला कर ही रहूंगा. मैं यह सब सोचसोच कर खुशी से झूमने लगा.

घर पहुंचने पर प्रभा जब पानी ले कर आ गई, तो मैं बंदूक से निकली गोली की तरह उस पर बरसने लगा. पर वह शांत बनी रही.

मैं बिस्तर पर जा कर लेट गया, तो उस ने मेरा पैर पकड़ते हुए पूछा, ‘‘तबीयत तो ठीक है न, जिस्म कुछ गरम लग रहा है?’’

मैं ने बिजली की तरह तड़कते हुए कहा, ‘‘तो क्या तुम समझती हो कि मैं ठंडा हो गया हूं?

‘‘तुम तो चाहती ही हो कि जल्दी से साथ छूटे और मौजमस्ती से जिंदगी गुजारूं. पैंशन तो मिलेगी ही.’’

शाम को जब प्रभा खाना ले कर आ गई, तो मैं ने बुराभला कहते हुए थाली फेंक दी, ‘‘तुम्हारे हाथ का बनाया हुआ खाना हम नहीं खाएंगे.’’

इस पर प्रभा दूसरे कमरे में जा कर रोने लगी. उस के दिल को जो चोट पहुंची थी, मुझे उस की कोई परवाह नहीं थी. मेरे दिल में बस एक ही धुन थी, नई हसीन बीवी लाने की. सोचतेसोचते न जाने कब नींद आ गई…

इसे संयोग ही समझिए कि मेरा तबादला शिवापुर हो गया. वहां पहुंच कर मैं ने अपने कुंआरे होने की खबर सब के कानों में डाल दी. कुछ ही दिनों के बाद मेरी शादी के लिए लौटरी के टिकट खरीदने वालों की तरह तमाम लोग तरहतरह से कोशिशें करने लगे. कोई अपनी लड़की की तसवीर दिखा कर खुश करने की कोशिश करता, तो कोई चाय पर बुलाता.

आखिरकार अपनी चाहत के मुताबिक एक खूबसूरत शशि नाम की कुंआरी लड़की को मैं ने अपनी बीवी बनाने का इरादा कर ही लिया. जल्दी ही शादी कर के शशि को अपने घर ले आया. शशि को पा कर जैसे मैं उड़नखटोले पर झूलने लगा.

दूसरे दिन शशि ने मुझ से लिपटते हुए कहा, ‘‘हमारी इच्छा है कि हम लोग शिमला चल कर किसी अच्छे से होटल में कुछ दिन खूब मौजमस्ती करें. आप का क्या इरादा है?’’

शशि जिन प्यारीप्यारी अदाओं के साथ अपनी बात कह रही थी, उस से मेरा सिर अपनेआप उस के कदमों में झुक गया. 15 दिनों तक शिमला में हम ने खूब रंगरलियां मनाईं.

शिमला से लौटने के बाद शशि ने कहा, ‘‘कोई अच्छा सा मकान ले लीजिए… इस में मेरा दम घुटता है.’’

मैं ने कुछ दिन पुराने घर में रहने के लिए कहा, तो वह नाराज हो गई. मरता क्या न करता. मजबूर हो कर एक अच्छा सा मकान किराए पर ले लिया.

एक दिन अचानक मेरी तबीयत खराब हो गई. जब मैं आराम करने के लिए घर आया, तो वहां ताला लटक रहा था. घंटेभर बाद 2 आटोरिकशा घर के बाहर आ कर रुके और उन में से शशि के साथ 5 और औरतें भी उतरीं.

मैं ने सवालिया निगाहों से शशि की ओर देखा, तो वह बोली, ‘‘मेरी सहेलियां आ गई थीं… इन्हीं को ले कर फिल्म देखने चली गई थी. घर बैठेबैठे जान निकल जाती है,’’ कहते हुए वह सहेलियों की खातिरदारी में जुट गई.

मैं चुप हो गया. उसी रात मैं बीमार हो गया. कमरे में पलंग पर पड़ापड़ा बुखार से तड़पता रहा. फिर प्रभा की सेवा को याद कर के मैं रो पड़ा. वह मेरे आने की आहट पाते ही सेवा की तैयारी में जुट जाती थी. अब सेवासत्कार की कौन कहे, शशि के हाथ से एक गिलास पानी के लिए भी तरस गया था. उस को तो घूमनेफिरने और दोस्तों की खातिरदारी से ही फुरसत नहीं थी.

रातभर मैं अपनी भूल पर पछताता रहा. सुबह के 8 बज गए, लेकिन शशि बिस्तर पर अभी करवटें बदल रही थी. मैं बुखार की तपिश में जल रहा था, पर करता भी क्या? मैं तो नकली नोट की तरह अपनी पहचान भी खो चुका था.

तूफान से टूटे फल की तरह मेरा मुरझाया चेहरा जब दफ्तर के लोगों ने देखा तो खूब मजाक किया. पर मैं अपनी ही कमजोरी समझ कर सिर नीचा किए अपने काम में जुट गया.

जब शादी हो गई तो बच्चे होना कोई हैरानी की बात नहीं, यानी एक प्यारा सा बेटा पा कर मैं खुशी से झूम उठा. पर, मेरे मन में एक बड़ी मुश्किल पैदा हो गई थी, क्योंकि शशि बच्चे की देखभाल नहीं करती थी. यहां तक कि उसे अपना दूध भी नहीं पिलाती थी. कहती, ‘‘बच्चे को अपना दूध पिलाने से मां में कमजोरी आ जाती है.’’

शशि के इस बुरे बरताव से मैं दुखी हो गया. उस का यह नजरिया मेरे जिस्म में जहर घोल रहा था. मैं ने उसे खूब जलीकटी सुनाई, तो उस ने मेरी खूब बेइज्जती की. मैं अपनी गलती महसूस कर रहा था. झगड़ा बढ़ जाने पर वह सामान ले कर जाने लगी, तो मैं ने कहा, ‘‘अपने लाड़ले के लिए तो रुक जाओ.’’

पर शशि ने जातेजाते कहा, ‘‘तुम्हारे लाड़ले से मेरा कोई वास्ता नहीं… अब मैं चली. तुम्हारे जैसे लोग मेरे पैरों की धूल चूमने के लिए मेरे आगेपीछे भंवरे की तरह मंडराते हैं.’’

मेरे पास कोई जवाब नहीं था. मेरा सबकुछ लुट चुका था. अब मौडर्न बीवी का नशा भी उतर चुका था.

मैं प्रभा का नाम ले कर जोर से चीख पड़ा…

तभी प्रभा मेरे सिर को सहलाती हुई दुखभरी आवाज में बोली, ‘‘क्या हो गया है?’’

‘‘प्रभा तुम… तुम यहीं हो?’’ मेरी बात सुन कर उस की आंखों से झरझर आंसू बहने लगे. शायद मुझे नींद आने के बाद रातभर जाग कर वह मेरी सेवा करती रही थी. मेरा सोया प्यार फिर से जाग उठा और मैं ने प्रभा को गले लगा लिया. फिर आंखें मलते हुए मैं ने कहा, ‘‘मैं एक बुरा ख्वाब देख रहा था.’’

सुबह हो चुकी थी. अचानक दरवाजा खटखटाने की आवाज आई. दरवाजा खोला तो मोहन बाबू को सामने पाया. मैं ने हैरानी से पूछा, ‘‘सुबहसुबह कैसे आना हुआ?’’

मोहन बाबू ने भरी आंखों से पूछा, ‘‘कम्मो यहां तो नहीं आई? शायद वह मुझे छोड़ कर कहीं चली गई है…’’

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