प्यार : निखिल अपनी पत्नी से क्यों दूर होने लगा था

कहने को निखिल मुझ से बहुत प्यार करते हैं. सभी कहते हैं कि निखिल जैसा पति संयोग से मिलता है. घर में सभी सुखसुविधाएं हैं. मैं जो चाहती हूं वह मुझे मिल जाता है लेकिन लोग यह क्यों नहीं समझते कि मैं इनसान हूं. मुझे घर में सजी रखी वस्तुओं से ज्यादा छोटेछोटे खुशी के पलों की जरूरत है.

शादी के इतने साल बाद भी मुझे यह याद नहीं पड़ता कि कभी निखिल ने मेरे पास बैठ कर मेरा हाथ पकड़ कर यह पूछा हो कि मेघा, तुम खुश तो हो या मैं तुम्हें उतना समय नहीं दे पाता जितना मुझे देना चाहिए लेकिन फिर भी मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं. निखिल और मुझ में हमेशा एक दूरी ही रही. मैं अपने उस दोस्त को निखिल में कभी नहीं देख पाई जो एक लड़की अपने पति में ढूंढ़ती है. मैं कभी अपने मन की बात निखिल से नहीं कह पाई. मुझे निखिल के रूप में हमसफर तो मिला लेकिन साथी कभी नहीं मिला. इतने अपनों के होते हुए भी आज मैं बिलकुल अकेली हूं. जिस रिश्ते में मैं ने प्यार की उम्मीद की थी, मेरे उसी रिश्ते में इतनी दूरी है कि एक समुद्र भी छोटा पड़ जाए. मैं अपने इस रिश्ते को कभी प्यार का नाम नहीं दे पाई. मेरे लिए वह बस, एक समझौता ही बन कर रह गया जिसे मुझे निभाना था…चाहे घुटघुट कर ही सही. मैं ने धीरेधीरे अपने हालात से समझौता करना सीख लिया था.

 

अपने आसपास से छोटीछोटी खुशियों के पल समेट कर उन्हीं को अपने जीने की वजह बना लिया था. मैं ने इस के लिए एक स्कूल में नौकरी कर ली थी, जहां बच्चों की छोटीछोटी खुशियों में मैं अपनी खुशियां भी ढूंढ़ लेती थी. बच्चों की प्यारी और मासूमियत भरी बातें मुझे जीने का हौसला देती थीं. किसी इनसान के पास अगर उस के अपनों का प्यार होता है तो वह बड़ी से बड़ी मुसीबत का सामना भी आसानी से कर लेता है, क्योंकि उसे पता होता है कि उस के अपने उस के साथ हैं. लेकिन उसी प्यार की कमी उसे अंदर से तोड़ देती है, बिखरने लगता है सबकुछ…मैं भी टूट कर बिखर रही थी लेकिन मेरे अंदर का टूटना व बिखरना किसी ने नहीं देखा. जिंदगी का यह सफर सीधा चला जा रहा था कि अचानक उस में एक मोड़ आ गया और मेरी जिंदगी ने एक नई राह पर कदम रख दिया. मेरे दिल की सूखी जमीन पर जैसे कचनार के फूल खिलने लगे और उसी के साथ मेरे अरमान भी महकने लगे. स्कूल में एक नए टीचर समीर की नियुक्ति हुई. वह विचारों से जितने सुलझे थे उन का व्यक्तित्व भी उतना ही आकर्षक था. उन से बात कर के दिल को न केवल बहुत राहत मिलती थी बल्कि वक्त का भी एहसास नहीं रहता था. समीर कहा करते थे कि इनसान जो चाहता है उसे हासिल करने की हिम्मत खुद उस में होनी चाहिए. एक दिन बातों ही बातों में समीर ने पूछ लिया, ‘मेघा, तुम इतनी अलगअलग सी क्यों रहती हो? किसी से ज्यादा बात भी नहीं करती हो. क्यों तुम ने अपने अंदर की उस लड़की को कैद कर के रखा है, जो जीना चाहती है? क्या तुम्हारा दिल नहीं करता कि उड़ कर उस आसमान को छू लूं…एक बार अपने अंदर की उस लड़की को आजाद कर के देखो, जिंदगी कितनी खूबसूरत है.’ समीर की बातें सुनने के बाद मुझे लगने लगा था कि मेरा भी कुछ अस्तित्व है और मुझे भी अपनी जिंदगी खुशियों के साथ जीने का हक है.

यों घुटघुट कर जीने के लिए मैं ने जन्म नहीं लिया है. इस तरह मुझे मेरे होने का एहसास दिया समीर ने और मुझे लगने लगा था जैसे मुझे वह दोस्त व साथी मिल गया है जिस की मुझे तलाश थी, जिसे मैं ने हमेशा निखिल में ढूंढ़ा लेकिन मुझे कभी नहीं मिला. मैं फिर से सपने देखना चाहती थी लेकिन मन में एक डर था कि यह सही नहीं है. समीर की आंखों में एक कशिश थी जो मुझे मुझ से ही चुराती जा रही थी. उन की आंखों में डूब जाने का मन करता था और मैं कहीं न कहीं अपने को बचाने की कोशिश कर रही थी लेकिन असफल होती जा रही थी. मन कह रहा था कि सभी पिंजरे तोड़ कर खुले आकाश में उड़ जाऊं पर इस दुनिया की रस्मोरिवाज की बेडि़यां, जिन में मैं इस कदर जकड़ी हुई थी कि उन्हें तोड़ने की हिम्मत नहीं थी मुझ में. मेरे अंदर एक द्वंद्व चल रहा था. दिल और दिमाग की लड़ाई में कभी दिल दिमाग पर हावी हो जाता तो कभी दिमाग दिल पर. कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करूं. समीर का बातें करतेकरते मेरे हाथ को पकड़ना, मुझे छूने की कोशिश करना, मुझे अच्छा लगता था. उन के कहे हर एक शब्द में मुझे अपनी जिंदगी आसान करने की राह नजर आती थी. मेरा मन करने लगा था कि मैं दुनिया को उन की नजरों से देखूं, उन के कदमों से चल कर अपनी राहें चुन लूं. भुला दूं कि मेरी शादी हो चुकी है. पता नहीं वह सब क्या था जो मेरे अंदर चल रहा था. एक अजीब सी कशमकश थी.

अपने अंदर की इस हलचल को छिपाने की मैं कोशिश करती रहती थी. डरती थी कि कहीं मेरे जज्बात मेरी आंखों में नजर न आ जाएं और कोई कुछ समझे, खासकर समीर को कुछ समझ में आए. समीर जब भी मेरे सामने होते थे तो मन करता था कि उन्हें अपलक देखती रहूं और यों ही जिंदगी तमाम हो जाए. उन की आंखों में डूब जाने का मन करता था. मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूं और क्या न करूं. दिमाग कहता था कि मुझे समीर से दूरी बना कर रखनी चाहिए और दिल उन की ओर खिंचता ही जा रहा था. दिमाग कहता था कि नौकरी ही छोड़ दूं और दिल मेरे कदमों को खुद ब खुद उस राह पर डाल देता था जो समीर की तरफ जाती थी. बहुत सोचने के बाद मैं ने दिमाग की बात मानने में ही भलाई समझी और फैसला किया कि अपने बढ़ते कदमों को रोक लूंगी. मैं ने समीर से कतराना शुरू कर दिया. अब मैं बस, काम की ही बात करती थी. समीर ने कई बार मुझ से बात करने की कोशिश की लेकिन मैं ने टाल दिया. वह परेशानी जो अब तक मैं ने अपने मन में छिपा रखी थी अब समीर की आंखों में दिखने लगी थी और मैं अपनेआप को यह कह कर समझाने लगी थी कि क्या हुआ अगर समीर मेरे पास नहीं हैं, कम से कम मेरे सामने तो हैं. क्या हुआ अगर हमसफर नहीं बन सकते, मगर वह मेरे साथ हमेशा रहेंगे मेरी यादों में…मेरे जीने के लिए तो इतना ही काफी है. मैं अपने विचारों में खोई समीर से दूर, बहुत दूर जाने के मनसूबे बना रही थी कि अगले दिन समीर स्कूल नहीं आए. मेरी नजरें उन्हें ढूंढ़ रही थीं लेकिन किसी से पूछने की हिम्मत नहीं थी क्योंकि जब अपने मन में ही चोर हो तो सारी दुनिया ही थानेदार नजर आने लगती है. किसी तरह वह दिन बीता पर घर आने के बाद भी अजीब सी बेचैनी छाई हुई थी.

अगले दिन भी समीर स्कूल नहीं आए और इसी तरह 4 दिन निकल गए. मेरी बेचैनी दिन पर दिन बढ़ती ही जा रही थी फिर बहुत हिम्मत कर के सोचा कि फोन ही कर लेती हूं. कुछ तो पता चलेगा. मैं ने फोन किया तो उधर से सीमा ने फोन उठाया. मैं ने उस से पूछा, ‘‘अरे, सीमा तुम, कब आईं होस्टल से?’’ ‘‘दीदी, मुझे तो आए 2 दिन हो गए,’’ सीमा ने बताया. ‘‘सब ठीक तो है न…समीरजी भी 4 दिन से स्कूल नहीं आ रहे हैं.’’ ‘‘दीदी, इसीलिए तो मैं यहां आई हूं. भैया की तबीयत ठीक नहीं है. उन्हें बुखार है और मेरी बातों का उन पर कोई असर नहीं हो रहा. न तो ठीक से कुछ खा रहे हैं और न ही समय पर दवा ले रहे हैं. मैं तो कहकह कर थक गई. आप ही आ कर समझा दीजिए न.’’ मैं सीमा को मना नहीं कर पाई और अगले दिन आने को कह दिया. अगले दिन समीर के घर जा कर घंटी बजाई तो सीमा ने ही दरवाजा खोला. मुझे देख कर वह बोली, ‘‘अंदर आइए न, मेघाजी, मैं तो आप का ही इंतजार कर रही थी.’’ ‘‘कैसी हो, सीमा,’’ मैं ने पूछा, ‘‘तुम्हारी पढ़ाई कैसी चल रही है.’’ ‘‘पढ़ाई तो ठीक चल रही है, मेघाजी,’’ सीमा बोली, ‘‘बस, समीर भैया की चिंता है. हम दोनों का एकदूसरे के सिवा है ही कौन और मैं तो होस्टल में रहती हूं और भैया यहां पर बिलकुल अकेले. जब से मैं घर आई हूं देख रही हूं कि भैया बहुत उदास रहने लगे हैं. आप ही देखो न कितना बुखार है लेकिन ढंग से दवा भी नहीं लेते. आप तो उन की दोस्त हैं, आप ही बात कीजिए, शायद उन की समझ में आ जाए.’’ मैं सीमा के साथ समीर के कमरे में गई तो वह लेटे हुए थे. बहुत कमजोर लग रहे थे. मैं ने माथे पर हाथ रखा तो बुखार अभी भी था. मैं ने सीमा से कुछ खाने के लिए और ठंडा पानी लाने के लिए कहा और समीर को बैठने में मदद करने लगी. सीमा खिचड़ी ले आई.

मैं खिलाने लगी तो समीर बच्चों की तरह न खाने की जिद करने लगे. मैं ने कहा, ‘‘समीरजी, आप अपना नहीं तो कम से कम सीमा का तो खयाल कीजिए… वह कितनी परेशान है.’’ खैर, उन्हें खिचड़ी खिला कर दवा दी और लिटा दिया. मैं माथे पर पानी की पट्टियां रखने लगी. कुछ देर बाद बुखार कम हो गया. समीर सो गए तो मैं ने सीमा से कहा, ‘‘सीमा, मैं जा रही हूं. तुम अपने भैया का ध्यान रखना. अगर हो सका तो मैं कल फिर आने की कोशिश करूंगी.’’ मैं घर आ गई लेकिन दिमाग में एक सवाल घूम रहा था कि क्या समीर की इस हालत की जिम्मेदार मैं हूं? क्या मेरी बेरुखी से वह इतने आहत हो गए कि उन की तबीयत खराब हो गई. मुझे ऐसा व्यवहार नहीं करना चाहिए था. ये बातें सोचतेसोचते न जाने कब मेरी आंख लग गई. फोन की घंटी की आवाज सुन कर मेरी नींद खुली. घड़ी में सुबह के 8 बज चुके थे. आज भी स्कूल की छुट्टी हो गई, यह सोचते हुए मैं ने फोन उठाया तो दूसरी तरफ सीमा थी. मैं ने उस से पूछा, ‘‘समीरजी की तबीयत कैसी है?’’ ‘‘मेघाजी, भैया ठीक हैं. बस, मुझे एक जरूरी काम से अपनी सहेली के साथ बाहर जाना है और भैया अभी इस लायक नहीं हैं कि उन्हें अकेला छोड़ा जा सके इसलिए आप की मदद की जरूरत है. क्या आप कुछ देर के लिए यहां आ सकती हैं?’’ मैं ने कहा, ‘‘ठीक है, मैं आती हूं,’’ और फोन रख दिया. मैं तैयार हो कर वहां पहुंची तो सीमा और उस की सहेली मेरा ही इंतजार कर रही थीं. वह मुझे थैंक्स कहती हुई चली गई. मैं ने समीर के कमरे में जा कर देखा तो वह सो रहे थे. मैं ड्राइंगरूम में आ कर सोफे पर बैठ गई और मेज पर रखी किताब के पन्ने पलटने लगी. थोड़ी देर बाद समीर के कमरे में कुछ आवाज हुई…मैं ने जा कर देखा तो समीर अपने बिस्तर पर नहीं थे. शायद बाथरूम में थे, मैं वहां से आ गई और रसोई में जा कर चाय का पानी चूल्हे पर रख दिया. चाय बना कर जब मैं बाहर आई तो समीर नहा चुके थे. उन की तबीयत पहले से ठीक लग रही थी लेकिन कमजोरी बहुत थी. मुझे देख कर वह चौंक गए. शायद उन्हें पता नहीं था कि मैं वहां पर हूं. ‘‘मेघाजी…आप, सीमा कहां है?’’ ‘‘उसे किसी जरूरी काम से जाना था, आप की तबीयत ठीक नहीं थी. अकेला छोड़ कर कैसे जाती इसलिए मुझे बुला लिया. आप चाय पीजिए, वह आ जाएगी.’’ ‘‘सीमा भी पागल है. अगर उसे जाना था तो चली जाती…आप को क्यों परेशान किया,’’ समीर बोले. मैं ने समीर की तरफ देखा और चुपचाप चाय का प्याला उन्हें थमा दिया.

हम खामोशी से चाय पीने लगे. कुछ भी कहने की हिम्मत न तो मुझ में थी और न शायद उन में. चाय पी कर मैं बर्तन रसोई में रखने के लिए उठी तो समीर ने मेरा हाथ पकड़ लिया. एक सिहरन सी दौड़ गई मेरे पूरे शरीर में. टे्र हाथ से छूट जाती अगर मैं उसे मेज पर न रख देती. मैं ने हाथ छुड़ाने की कोशिश की तो उन्होंने और कस कर मेरा हाथ पकड़ लिया और बोले, ‘‘मेघा, तुम ने मेरे लिए यह सबकुछ क्यों किया?’’ समीर के मुंह से अपने लिए पहली बार मेघाजी की जगह मेघा और आप की जगह तुम का उच्चारण सुन कर मैं चौंक गई. इस तरह से मुझे पुकारने का अधिकार उन्होंने कब ले लिया. मैं कुछ बोल ही नहीं पा रही थी कि उन्होंने फिर से पूछा, ‘‘मेघा, तुम ने मेरे सवालों का जवाब नहीं दिया. तुम ने मेरे लिए यह सब क्यों किया?’’ बहुत हिम्मत कर के मैं ने अपना हाथ छुड़ाया और कहा, ‘‘एक दोस्त होने के नाते मैं इतना तो आप के लिए कर ही सकती थी, इतना भी अधिकार नहीं है मेरा?’’ ‘‘पहले तुम यह बताओ कि क्या हमारे बीच अभी भी सिर्फ दोस्ती का रिश्ता है? मेघा, तुम्हारा अधिकार क्या है और कितना है इस का फैसला तो तुम्हें ही करना है,’’ समीर बोले. मैं ने अपनी नजरें उठाईं तो समीर मुझे ही देख रहे थे. कितना दर्द, कितना अपनापन था उन की आंखों में. दिल चाह रहा था कि कह दूं…समीर, मैं आप से बेइंतहा प्यार करती हूं…नहीं जी सकती मैं आप के बिना. अपने सभी जज्बात, सभी एहसास उन के सामने रख दूं…उन की बांहों में समा जाऊं और सबकुछ भुला दूं लेकिन होंठ जैसे सिल गए थे. बिना कुछ कहे ही हम एकदूसरे के जज्बात और हालात समझ रहे थे. मुझे भी यह एहसास हो चुका था कि समीर भी मुझे उतना ही प्यार करते हैं जितना मैं उन्हें करती हूं. वह भी अपने प्यार की मौन सहमति मेरी आंखों में पढ़ चुके थे और शायद उस अस्वीकृति को भी पढ़ लिया था उन्होंने. कुछ नहीं बोल पाए…हम बस, यों ही जाने कितनी देर बैठे रहे. फिर अचानक समीर ने मेरे चेहरे को अपने हाथों में लिया और मेरे माथे को चूम लिया. अब मैं खुद को रोक नहीं पाई और उन की बांहों में समा गई. कितनी देर हम रोते रहे मुझे नहीं पता. दिल चाह रहा था कि यह पल यहीं रुक जाए और हम यों ही बैठे रहें. फिर समीर ने कहा, ‘‘मेघा, तुम जहां भी रहो खुश रहना और एक बात याद रखना कि मुझे तुम्हारी आंखों में आंसू और उदासी अच्छी नहीं लगती.

मैं चाहे तुम्हारे पास न रहूं, लेकिन तुम्हारे साथ हमेशा रहूंगा. बहुत देर हो गई है, अब तुम जाओ.’’ मैं ने अपना बैग उठाया और वहां से अपने घर आने के लिए निकल पड़ी. इसी प्यार ने एक बार फिर मुझे नए मोड़ पर ला कर खड़ा कर दिया. मैं ने सोच लिया था कि अब मैं समीर से कभी नहीं मिलूंगी. आज तो उस तूफान को हम पार कर गए, खुद को संभाल लिया, लेकिन दोबारा मैं ऐसा शायद न कर पाऊं और मैं नहीं चाहती थी कि समीर के आगे कमजोर पड़ जाऊं. मैं अपने प्यार को अपना तो नहीं सकती थी लेकिन उसी प्यार को अपनी शक्ति बना कर अपने फर्ज के रास्ते पर कदम बढ़ा चुकी थी

मैं ने अगले दिन स्कूल में अपना इस्तीफा भेज दिया. मैं ने एक बार फिर प्यार और समझौते में से समझौते को चुन लिया. मेरे अंदर जो प्यार समीर ने जगाया वह एहसास, उन की कही हर एक बात, उन के साथ बिताए हर एक पल मेरी जिंदगी का वह अनमोल खजाना है, जो न तो कभी कोई देख सकता है और न ही मुझ से छीन सकता है. कितना अजीब सा एहसास है न यह प्यार, कब किस से क्या करवाएगा, कोई नहीं जानता. यह एहसास किसी के लिए जान देने पर मजबूर करता है तो किसी की जान लेने पर भी मजबूर कर सकता है. अब आप ही बताइए कि आप प्यार को किस तरह से परिभाषित करेंगे, क्योंकि मेरे लिए तो यह एक ऐसी पहेली है जो कम से कम मैं तो नहीं सुलझा पाई. मैं नहीं जानती कि मैं ने इतना प्यार करते हुए भी समीर को क्यों नहीं अपनाया और अपनी शादी के समझौते.

रक्षाबंधन के इस फेस्टिवल पर प्यारी बहन को दें यूनिक गिफ्ट 600 रुपए तक

रक्षाबंधन भाई-बहन का प्यारा सा पवित्र त्योहार है. जिस दिन बहनें अपने भाईयो को राखी बांध कर नसे अपनी रक्षा करने का वचन लेती है. साथ ही, भाईयों के लिए एक सवाल बना रहता है कि वह अपनी बहनों को क्यां गिफ्ट करें, क्योंकि बहनों को लिए सबसे खास इस त्योहार पर उनके लिए गिफ्ट होता है. ऐसे में जरूरी है कि आप अपनी बहन यूनिक, कम रेट में अच्छा गिफ्ट दे सकें तो आज हम इस आर्टिकल में ऐसे ही कुछ स्पेशल गिफ्ट के बारें में बताएंगे जो आप 600 रुपए तक अपनी बहन को दे सके.

 

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पर्सनल सेफ्टी अलार्म

यह एक छोटा सा अलार्म है, जो आपकी बहन की सेफ्टी के काफी काम आएगी. अगर आपकी बहन किसी खतरनाक जगह पर फंस जाएं तो आपकी बहन इस अलार्म को बजा सकती है. यह मुश्किल में आसपास के लोगों को बुलाने में काम आ सकता है. ये आपको 525 रुपय तक मिल जाएगा.

प्रेपर स्प्रे

हर महिला के पास पेपर स्प्रे जरूर होना चाहिए. इसे आत्मरक्षा स्प्रे भी कहते हैं. यह स्प्रे उन लड़कियों के काफी काम आता है, जो कि घर से बाहर रहती है. हर लड़की को अपने पर्स में पेपर स्प्रे रखना चाहिए ताकि जरूरत पड़ने पर इसका इस्तेमाल कर सकें. भाई अपनी बहन को पेपर स्प्रे गिफ्ट में दे सकते हैं. ये असानी से ओनलाइन मिल जाता है. जिसकी कीमत 150 रुपय से होती है.

ट्रैकिंग ऐप

अपनी बहन के फोन में मोबाइल में ट्रैकिंग ऐप्स इंस्टौल कर के भी आपको उसको एक गिफ्ट दें सकते है. अगर आपकी बहन ट्यूशन और कौलेज जाती है तो ये गिफ्ट देना एक अच्छी तरीका है.  इससे आप उनकी लोकेशन ट्रैक कर पाएंगे और इमरजेंसी में तुरंत मदद कर सकेंगे.

की-चेन

की-चेन में काफी सेफ्टी होती है. जैसे ग्लास ब्रेकर, सीट बेल्ट कटर और एक छोटा ब्लेड. इसे आसानी से बहन की चाबियों के साथ रखा जा सकता है जो इमरजेंसी में काम लाया जा सकता है.

मेकअप किट

लड़कियों को मेकअप का शौक होता है. ऐसे में अगर आप अपनी बहन के लिए रक्षाबंधन के इस त्यौहार को खास बनाना चाहते हैं तो उन्हें मेकअप कीट से जुड़ी चीजें जरूर गिफ्ट करे. आप अगर चाहें तो उनकी पसंदीदा लिपस्टिक शेड भी उन्हें गिफ्ट कर सकते हैं. आप अगर चाहें तो मेकअप से जुड़ी कुछ चीजों को एक बौक्स में सजाकर भी उन्हें गिफ्ट कर सकते हैं. इसके अलावा मार्केट में कई तरह के मेकअप किट मिलते है. आप मेकअप किट औनलाइन आर्डर भी कर सकते है.

Rakhi 2024: बिहार के सीएम नीतिश पेड़ को, तो ममता अमिताभ को बांधती है राखी!

रक्षाबंधन का त्योहार धूमधाम से मनाया जाता है. राखी भाई-बहनों में प्यार का प्रतीक होती है. इस मौके पर बहनें अपनी सभी भाईयों को राखी बांधती हैं और उनसे सदैव अपनी रक्षा का वचन लेती हैं. देशभर के आम लोगों की तरह ही रक्षा बंधन का रंग बौलीवुड से लेकर राजनीति में भी देखने को मिलता है. सभी बहनें अपने-अपने भाईयों को राखी बांधने के लिए इधर से उधर सफर करती है.

 

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राजनीति में बिहार के सीएम से लेकर बंगाल की सीएम ममता बनर्जी बड़े ही खास अंदाज में राखी मनाते नजर आते है. जिनकी राखी भी मीडिया की हेडलाइन में आ जाती है. इसके अलावा कांग्रेस पार्टी के राहुल गांधी भी अपनी बहन प्रिंयका को खास अंदाज में विश करना कभी नहीं भूलते है वे सोशल मीडाया के दौर में सोशल पोस्ट करके भी विश करते है.

ममता बनर्जी ने अमिताभ को बांधी राखी

आपको बता दें, कि बंगाल की सीएम ममता बनर्जी मुंबई में बौलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन के घर पहुंची. जी हां, ममता मुंहबोली भाई और बौलीवुड के शहंशाह अमिताभ बच्चन के घर ‘जलसा’ उन्हें राखी बांधने पहुंचीं थी. पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी विपक्षी दलों के गठबंधन में शामिल होने के किए लिए मुंबई गई थी. ऐसे में अभिनेता ने रक्षा बंधन के मौके पर ममता बनर्जी को अपने घर पर चाय के लिए इनवाइट किया था. अपने मुंहबोले भाई के बुलावे पर ममता बनर्जी उन्हें राखी बांधने पहुंच गई थी. जिसकी तस्वीरे भी सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुई थी.

बिहार सीएम के नीतिश कुमार ने बांधी थी पेड़ को राखी

इस त्योहार को बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार अलग ही ढंग से मनाते है. रक्षाबंधन पर वे पेड़ों को राखी बांधकर लोगों को पेड़ लगाने के साथ उनके संरक्षण का संकल्प दिलाया करते है. पटना की राजधानी वाटिका से इस कार्यक्रम की शुरुआत की गई. इस अवसर पर मुख्यमंत्री ने कहा कि पर्यावरण के प्रति जागरुकता लाने के लिए राखी बांधकर लोगों को पेड़ों की रक्षा का संकल्प दिलाया गया है. उन्होंने राज्य के लोगों से कम से कम एक पेड़ लगाने और उनकी रक्षा करने का संकल्प लेने को कहा था. नेताओं को भी पर्यावरण की रक्षा में योगदान करने की अपील की. नीतीश ने कहा कि बिहार से अलग झारखंड राज्य बनने के बाद यहां वनक्षेत्र कम हो गया है. इसलिए प्रमुख शहरों में सड़कों, तटबंधों के किनारे बड़े पैमाने पर पेड़ लगाये जायेंगे. इस अवसर पर उपस्थित बच्चियों और महिलाओं ने मुख्यमंत्री तथा उपमुख्यमंत्री को भी राखी बांधी थी.

राहुल गांधी बहन प्रियंका को करते है खास अंदाज में विश

कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने बहन प्रियंका गांधी वाड्रा को भी राखी खास अंदाज में विश करते है. वह इंस्‍टाग्राम पर प्रियंका के साथ अपनी कुछ पुरानी तस्‍वीरों को साझा करके विश करते है. साथ ही बेहद इमोशनल संदेश भी लिखते है. इस संदेश के साथ उन्‍होंने सभी देशवासियों को भी रक्षाबंधन की शुभकामनाएं दीं.

राहुल गांधी ने सोशल मीडिया पर अपनी और प्रिंयका की बचपन की फोटो शेयर की थी. उन्‍होंने बहन प्रियंका को हिंदी में संदेश भी लिखा था.

मैं पढ़ना चाहती हूं पर मेरे घरवाले खर्चा नहीं उठा सकते हैं, मैं क्या करूं?

सवाल

मैं एक 21 साल की लड़की हूं और पढ़ाई में बहुत अच्छी हूं. मेरे घर वाले भी मुझे आगे पढ़ाना चाहते हैं, पर वे इतना ज्यादा खर्च नहीं उठा सकते हैं. हमारे यहां ट्यूशन का भी ज्यादा स्कोप नहीं है और अगर मैं कोई नौकरी करती हूं, तो इस से मेरी पढ़ाई पर बुरा असर पड़ेगा. मैं क्या करूं?

जवाब

करना तो आप को ही कुछ पड़ेगा. हमा री सलाह यह है कि आप घर से ही कोई छोटामोटा बिजनैस शुरू करें, मसलन छोटा ब्यूटीपार्लर खोल लें, साड़ी बेचना शुरू कर दें, जो आप को थोक दुकानदार उधारी में दे सकते हैं. अचारपापड़ जैसे आइटम भी आजकल खूब बिकते हैं.

आप अपने आसपास देखेंगी तो ऐसे ढेर सारे काम दिख जाएंगे, जिन से ठीकठाक आमदनी हो जाती है और पढ़ाई पर भी बुरा असर नहीं पड़ेगा. अपने शहर के एनजीओ से भी संपर्क करें, जो पढ़ने के लिए गरीब बच्चों की मदद करते हैं.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 
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खास अंगों की साफसफाई, ध्यान रखें ये बातें

अब से तकरीबन 23 साल पहले जब दीपक कुशवाहा ने भोपाल के नजदीक बैरसिया कसबे में अपना जनरल स्टोर खोला था, तब दुकान में कहने भर को ही लेडीज आइटम हुआ करते थे, लेकिन दीपक की आधे से ज्यादा दुकान अब लेडीज आइटमों से भरी पड़ी है, जिन में सैनेटरी नैपकिन, हेयर रिमूवर, अंडरगारमैंट्स, क्रीम, पाउडर और तरहतरह के दूसरे आइटम ज्यादा हैं.

इस बदलाव की वजह बताते हुए दीपक कहते हैं, ‘‘शिक्षा और जागरूकता ज्यादा है, जो कसबाई और देहाती लड़कियों में मीडिया और इश्तिहारों के जरीए आई है.’’

कसबे के हाईस्कूल में दाखिले बढ़े, तो नएनए आइटमों की मांग आने लगी. फिर कालेज खुला तो लड़कियों की झिझक और दूर होने लगी. अब तो हालात ऐसे हैं कि लड़कियां खरीदारी में बिलकुल नहीं शरमाती हैं.

दीपक कुशवाहा की बातों पर गौर करें, तो कसबाई और देहाती लड़कियों में खूबसूरती और सेहत के प्रति जबरदस्त जागरूकता आई है और वे बाहरी के साथसाथ अंदरूनी साफसफाई की भी अहमियत समझने लगी हैं. इस बाबत उन्हें घरों से भी छूट मिली हुई है. इसी वजह के चलते कसबे में हर ब्रांडेड कंपनी का हेयर रिमूवर और सैनेटरी नैपकिन मिलते हैं, जिन्हें खरीदने के लिए आसपास के गांवों की लड़कियां भी इफरात से आती हैं.

लेकिन इन लड़कियों की एक बड़ी दिक्कत आज भी यह है कि इन्हें खास अंगों की साफसफाई के बारे में कोई पुख्ता जानकारी कहीं से नहीं मिलती. आधीअधूरी जानकारी के चलते वे कई बार परेशानियों से भी घिर जाती हैं. घर में मां या भाभी अकसर पुराने यानी अपने जमाने के उपाय बाताती हैं, जबकि अब दौर नए तौरतरीकों का है.

मिसाल प्राइवेट पार्ट के आसपास के बालों की सफाई का लें, तो लड़कियां अब हाईस्कूल में आतेआते हेयर रिमूवर का इस्तेमाल शुरू कर देती हैं. पहले इस के लिए ब्लेड और कैंची का इस्तेमाल ज्यादा होता था, हालांकि अभी भी होता है, पर न के बराबर. और जो लड़कियां इन का इस्तेमाल करती हैं, उन्हें यह ध्यान रखना चाहिए कि कभी भी पुराने ब्लेड का इस्तेमाल न करें. इस से इंफैक्शन का खतरा बढ़ जाता है.

आजकल बाजार में प्राइवेट पार्ट और बगलों के बालों को हटाने के लिए खास तरह के महीन ब्लेड वाले ब्रांडेड रेजर आ रहे हैं, इन का इस्तेमाल ज्यादा सुरक्षित रहता है.

तरीका जो भी अपनाएं, लेकिन बालों की समयसमय पर सफाई जरूरी है, क्योंकि इन्हीं बालों के ऊपर पसीना जमता है, जो बदबू की बड़ी वजह होता है.

हेयर रिमूवर के इस्तेमाल से बाल एक बार में पूरी तरह साफ हो जाते हैं. इस का इस्तेमाल करने से पहले इसे थोड़ी सी तादाद में हाथ पर कुछ देर लगाए रखना चाहिए. अगर जलन न पड़े तो इस का बेहिचक इस्तेमाल किया जा सकता है. इस के अलावा प्राइवेट पार्ट को रोजाना एक बार कुनकुने पानी से जरूर साफ करें. और हर बार पेशाब करने के बाद साफ पानी से इसे धो लेना चाहिए.

कोशिश यह होनी चाहिए कि प्राइवेट पार्ट को ज्यादा से ज्यादा सूखा रखा जाए. इस के लिए साफ कपड़े या टिशू पेपर से उसे पोंछ लेना चाहिए. इस से कई बीमारियों से बचाव होता है और बदबू भी नहीं आती.

बाल साफ करते रहने से पार्टनर को भी सैक्स में मजा आता है और वह अपने मनचाहे तरीके से प्यार करने में नहीं हिचकता. लेकिन प्राइवेट पार्ट पर कभी तेज खुशबू वाले परफ्यूम और साबुन का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए, इस से इंफैक्शन का खतरा बना रहता है.

माहवारी के 5 दिन भले ही तकलीफ वाले होते हों, लेकिन इन दिनों में खासतौर से एहतियात बरतना चाहिए. नैपकिन हर 4 घंटे बाद बदल लेना चाहिए, नहीं तो बदबू तो बढ़ती ही है साथ ही कई बीमारियों का भी डर बना रहता है. अंडरवियर भी इन दिनों में धो कर और सुखा कर ही पहनना चाहिए. सस्ते और लोकल सैनेटरी नैपकिन और अंडरगारमैंट्स के बजाय ब्रांडेड ही लेने चाहिए. ये भरोसेमंद भी होते हैं और अपना काम भी बेहतर तरीके से करते हैं.

दीपक की मानें, तो गांवों के हाट बाजारों में सस्ते के नाम पर लोकल नैपकिन और अंडरगारमैंट्स धड़ल्ले से बिकते हैं, लेकिन इन की न तो क्वालिटी अच्छी होती है और न ही नतीजे अच्छे मिलते हैं.

इन अंगों पर भी दें ध्यान

नाभि, स्तन, नितंब, जांघें और पीठ भी कम खास नहीं होते, जिन की साफसफाई पर लड़कियां कम ही ध्यान देती हैं. इन अंगों की साफसफाई अच्छे साबुन से हो जाती है. सेहत के अलावा ये अंग सैक्स में भी अहम रोल निभाते हैं, इसलिए इन को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए. कई लड़कियों की जांघों और नितंबों पर भी महीन बाल उग आते हैं जो हार्मोंस की गड़बड़ी के चलते मामूली बात है. इन बालों को भी रेजर या रिमूवर से हटा लेना चाहिए.

खास अंगों की साफसफाई को ले कर आ रही जागरूकता एक अच्छी बात है, जो लड़कियों को आत्मविश्वास से भरे रखती है. जरूरत इस बात की है कि यह जागरूकता घरघर पहुंचे.

नए तौरतरीकों और प्रोडक्ट्स की जानकारी के किए लड़कियों के लिए खासतौर से निकाली जाने वाली मैगजीन ‘गृहशोभा’ जरूर पढ़नी चाहिए. इस के उपयोगी लेख, फैशन, सेहत, खूबसूरती और सैक्स के अलावा जिंदगी के दूसरे अहम पहलुओं की पेचीदगियों से रूबरू कराते हुए न केवल सही रास्ता सुझाते हैं, बल्कि लड़कियों को नए जमाने से भी जोड़े रखते हैं.

जलन: क्यों प्रिया के मां बनने की खुशी कोई बांटना नही चाहता था

प्रिया बहुत खुश थी. उस ने कंफर्म कर लिया था कि वह मां बनने वाली है. इस खुशी के समाचार को अपने पति और घरवालों के साथ शेयर करने के बाद सब से पहले उस ने अपनी पक्की सहेली नेहा को फोन लगाया. नेहा और प्रिया बचपन से अपनी सारी खुशियां एकदूसरे से बांटती आई थीं. आज भी नेहा से बात कर वह इस खुशी को शेयर करना चाहती थी.

प्रिया ने फोन कर के नेहा को बताया, “यार नेहा, तू मौसी बनने वाली है.”

“मौसी?” अनजान बनते हुए नेहा ने पूछा.

“हां मौसी. अरे पगली, मैं मां बनने वाली हूं,” प्रिया ने उत्साहित स्वर में कहा.

मगर अपेक्षा के विपरीत नेहा ने बहुत ठंडा रिस्पौंस दिया, “ओ रियली, ग्रेट यार. मगर तेरी शादी को तो अभी चारपांच महीने भी नहीं हुए और तू …? ”

“हां यार, शायद फर्स्ट अटैम्प्ट में ही…,” कहते हुए वह शरमा गई.

“अच्छा है, तुझे मेरी तरह इंतजार नहीं करना पड़ेगा. मैं तो पिछले 4 साल से इंतजार में थी कि कब तुझे यह खुशखबरी सुनाऊं पर तू ने बाजी मार ली. वेरी गुड यार. अच्छा सुन, मैं बाद में फोन करती हूं तुझे. अभी जाना पड़ेगा. सासुमां बुला रही है,” बहाना बना कर नेहा ने फोन काट दिया.

नेहा के व्यवहार से प्रिया थोड़ी अचंभित हुई. फिर अपने मन को समझाया कि वाकई कोई जरूरी काम आ गया होगा, बाद में बात कर लेगी.

सहेली के बाद प्रिया ने अपनी बड़ी बहन को फोन लगाया. अपनी बहन के साथ भी प्रिया बहुत अटैच्ड थी. मगर बहन ने भी बहुत ठंडा रिस्पौंस दिया. उलटा, वह तो उसे डांटने ही लगी, “इतनी जल्दी करने की क्या जरूरत थी? अभी शादी को दिन ही कितने हुए हैं? थोड़ी जिंदगी जी कर तो देखती, घूमतीफिरती, ससुराल में ठीक से एडजस्ट हो जाती, वहां के तौरतरीके सीखती, तब जा कर बेबी प्लान करना था. मुझे देख, 3 साल हो गए, फिर भी बेबी नहीं किया. थोड़ी प्लानिंग से चलना पड़ता है और एक तू है कि अकल ही नहीं तुझे.”

“पर दीदी, बेबी तो जितनी जल्दी हो जाए उतना ही अच्छा है न. और फिर, जहां तक बात ससुराल में एडजस्ट करने की है, तो वह तो ऐसे भी प्रैग्नैंसी के इन महीनों में सब सीख ही जाऊंगी. वैसे भी सासुमां बहुत प्यार करती हैं. मुझे जो भी समझ नहीं आता, उन से पूछ लेती हूं.”

“मैं तो तेरे भले के लिए ही समझा रही थी पर बात तुझे समझ आती नहीं. अच्छा चल, मैं रखती हूं फोन. अब अपना ज्यादा ख़याल रखना होगा तुझे. अभी खुद को संभालना तो आया नहीं था, अब बच्चे की जिम्मेदारी और सिर पर ले ली,” कह कर बहन ने फोन काट दिया.

न कोई बधाई, न शुभकामना. बस, उलाहने मारना. बहन का यह रवैया महसूस कर वह बहुत देर तक गुमसुम बैठी रही. इस बातचीत के बाद तो उसे ऐसा लगने लगा था जैसे उस ने वाकई कोई गलती कर दी हो.

तब तक दूध का गिलास लिए सास कमरे में दाखिल हुईं और प्यार से बोलीं, “चल बहू, दूध पी ले. हमारा वारिस आने वाला है. उस का खयाल रख,” कह कर मुसकराती हुई वे चली गईं.

कुछ देर तक प्रिया दूध के गिलास की तरफ एकटक देखती रही. उस के दिमाग में बहन की बातें घूम रही थीं. तभी भाभी का फोन आ गया.

“बधाई हो प्रिया, मम्मीजी का फोन आया था. वे कह रही थीं कि तुम मां बनने वाली हो.”

“जी दीदी.”

“चल अच्छा है. मैं अब तक यह खुशी नहीं दे सकी. अब तू ही दे ले,” उदास स्वर में भाभी ने कहा.

प्रिया जल्दी से बोली, “दीदी, उदास क्यों होती हो? आप का ही बच्चा है यह भी.”

“अरे नहीं प्रिया, अपना तो अपना ही होता है. और फिर, मैं बड़ी बहू हूं. शादी के 4 साल होने वाले हैं. सब इस खुशी की बाट जोहते रह गए. पर मैं उन की यह इच्छा पूरी नहीं कर सकी. बच्चे के लिए कहांकहां नहीं गई. मंदिरों में जा कर मत्था टेका, बाबाओं के चरण पकड़े, मगर नतीजा कुछ भी नहीं निकला.”

भाभी की आवाज से ऐसा लग रहा था जैसे वे अभी रो देंगी. प्रिया कुछ कह नहीं पा रही थी. उस की खुशी किसी के दुख का कारण बन गई थी.

वह भाभी को सांत्वना देने लगी, “भाभी, आप दिल छोटा न करो. अभी समय ही कितना हुआ है? 4 साल कोई लंबा वक्त नहीं होता. आप बहुत जल्द मां बनोगी.”

” यह सब मन बहलाने की बातें होती हैं प्रिया. अच्छा चल, मैं फोन रखती हूं.”

प्रिया फोन की तरफ देखती हुई कुछ देर तक सोचती रही. उस के चेहरे पर खुशी के बजाय उदासी की रेखाएं घनीभूत हो गईं.

प्रिया की प्रैग्नैंसी का 8वां महीना चढ़ चुका था. इतने दिनों में भाभी, बहन या सहेली ने उसे बहुत कम फोन किया. कोई मिलने भी नहीं आई. कोविड का बहाना बना दिया. प्रिया फोन करती, तो तीनों का रिऐक्शन अलग होता. बहन उलाहने के रूप में बातें सुना देती. सहेली काम का बहाना बना कर जल्दी से फोन काट देती और भाभी अपना ही रोना ले कर बैठ जातीं. न तो किसी ने उस से मां बनने के पहलेपहले एहसास के बारे में पूछा और न ही उसे क्या खाना चाहिए या क्या करना चाहिए, इस पर ढंग से डिस्कशन किया या टिप्स दिए.

वह बहन या सहेली से कोई सवाल पूछती, तो वे सपाट सा जवाब दे देती, “मुझे क्या पता, मैं ने कौन से कई बच्चे पैदा कर लिए. डाक्टर से पूछ ले.”

प्रिया की इच्छा होती कि वह बच्चे के सुनहरे, प्यारे सपने उन के साथ शेयर करे. पर कुछ सोच कर ठहर जाती. प्रैग्नैंट होने की उस की खुशियां भी आधीअधूरी सी रह गई थीं.

उस दिन सुबहसुबह वह बालकनी पर खड़ी थी कि तभी उस के घर के आगे एक कैब आ कर रुकी. कैब में से मां को निकलता देख वह ख़ुशी से चीख पड़ी. मां के गले लग कर देर तक रोती रही.

मां ने उसे चुप कराते हुए पूछा, “इतने खुशी के पलों में रो क्यों रही है पगली?”

प्रिया कुछ कह नहीं सकी. उस के अंदर जो तकलीफ थी उसे कैसे बयां करती.

अगले 20- 25 दिन मां का साथ पा कर वह काफी खुश रही और फिर वह दिन भी आ गया जब डिलीवरी की मर्मांतक पीड़ा सहने के बाद नर्स ने उस की बांहों में उस का अंश थमाया. उस पल वह अपना सारा दर्द भूल गई थी. उस के हाथों में नन्हामुन्ना राजकुमार खिलखिला रहा था, किलकारियां मार रहा था. बेटे को गोद में उठाए जब उस ने अपने घर में प्रवेश किया तो उसे लगा जैसे सारा जहां उस की बांहों में सिमट आया हो.

बच्चे को देखने के लिए सब से पहले उस की बहन आई. मां के आगे बहन ने पहले की तरह कोई कड़वे वचन नहीं कहे. बस, देर तक बेबी को हाथों में लिए देखती रही. फिर मुसकरा कर बोली, “बिलकुल मुझ पर गया है.”

उस की बात सुन कर घर में सब हंसने लगे. प्रिया को भी यह बात बहुत प्यारी लगी. बहन ज्यादा देर तक रुकी नहीं. सुबह आई और शाम को निकल गई. करीब 10 दिन बच्चे और प्रिया की देखभाल कर मां भी अपने घर चली गई. इस बीच प्रिया की भाभी भी आ कर बच्चे को आशीर्वाद दे गई.

मां के जाने के बाद सासुमां उस का और बच्चे का पूरा खयाल रखने लगी. प्रैग्नैंसी और डिलीवरी के बाद वह काफी कमजोरी महसूस कर रही थी. उसे इस बात का भी दुख था कि उस की प्यारी सहेली बच्चे को देखने नहीं आई थी. उस ने तबीयत सही न होने का बहाना बना दिया था. वीडियो कौल पर ही उस ने बेबी को देख लिया था.

प्रिया का अकसर दिल करता कि बच्चे की प्यारीप्यारी हरकतों को अपनी सहेली या बहन से शेयर करे. उस के मन में ढेर सारी बातें थीं जिन्हें वह उन से डिस्कस करना चाहती थी. मगर उन की उदासीनता महसूस कर वह खामोश रह जाती. एक दिन हालचाल जानने के लिए प्रिया ने सहेली को फोन किया. थोड़ी देर दोनों के बीच नौर्मल बातचीत होती रही.

फिर जैसे ही उस ने बच्चे की बातें बतानी शुरू कीं, नेहा ने तुरंत बहाना बनाया, “यार, बहुत सिरदर्द हो रहा है मुझे. बाद में करती हूं तुझ से बात.”

इस एक छोटे से वाक्य ने प्रिया के दिल की उमंग और खुशियों पर फिर से पानी उड़ेल दिया. वह सोचने लगी कि यदि नेहा को अब तक बेबी नहीं हुआ तो भला इस में उस की क्या गलती है? वह क्यों अपनी खुशियों को एंजौय नहीं कर पा रही है? सच कहते हैं कि खुशियां तभी बढ़ती हैं जब उन्हें बांटा जाए, पर वह क्या करे जब कोई उस की खुशियों को बांटना ही नहीं चाहता. बहन भी तो अकसर ऐसे ही उस का दिल तोड़ देती है.

अभी 2 दिन पहले की बात थी. उस दिन प्रिया ने फोन कर के अपनी बहन को बताया था, “दीदी, पता है, आज मुझे मुन्ने ने पहली दफा मां कह कर पुकारा. बहुत खुश हूं मैं.”

“मां शब्द का मतलब समझती हो? मां सुन कर खुश होने के साथसाथ आने वाली जिम्मेदारियों के लिए भी तैयार होना पड़ता है. एक मां को बहुत सारे पापड़ बेलने पड़ते हैं, तब जा कर बच्चा बड़ा होता है. चल रखती हूं फोन.”

बहन का रिऐक्शन देख कर उस का सारा जोश ठंडा पड़ गया था. प्रिया की बहन वैसे तो पहले भी उस पर रोब झाड़ती थी मगर कभीकभी और साथ में बहनों के बीच मीठी चुहलबाजियां भी होती थीं. मगर जब से बच्चा हुआ था, प्रिया को लगने लगा था कि बहन उस से हमेशा तेवर में ही बात करती है. ऐसा जताती है जैसे उस ने बहुत बड़ी गलती कर दी हो. प्रिया समझती है कि साइकोलौजिकली बहन के दिल में बच्चा न होने की वजह से तकलीफ है और इसी तकलीफ को वह इस तरह प्रकट करती रहती है. मगर बहन इस बात को नहीं समझती थी कि ऐसे व्यवहार से प्रिया पर क्या गुजरती होगी.

धीरेधीरे बच्चा एक साल का हो गया. प्रिया के मन की कसक नहीं गई. उस की सब से प्यारी सहेली, सगी बहन और भाभी, तीनों ने एक बार मिलने आ कर, फिर न अपनी तरफ से कौल किया और न ही दोबारा मिलने आई थीं. आने की बात कहने पर बड़ी सहजता से तीनों कोविड-19 मुद्दा बना देतीं जबकि ऐसा नहीं था कि वे दूसरों के घर जाती नहीं थीं.

जब प्रिया का मन नहीं लगता था तो वह फोन लगा लेती थी. मगर उन का रिस्पौंस इतना ठंडा होता कि वह अंदर से टूट जाती. धीरेधीरे प्रिया ने भी उन्हें फोन करना छोड़ दिया.

कई दफा उसे ऐसा महसूस होता जैसे अपनों को ही उस की खुशी से जलन हो गई हो और वह इस जलन का उपचार भी नहीं जानती थी. न चाहते हुए भी इस का असर प्रिया के मन पर पड़ता जा रहा था और वह अकसर दुखी रहने लगी थी. पति और सास सवाल करते, तो वह सहज होने का नाटक करती और मुसकरा कर कहती कि ऐसी कोई बात नहीं. वह तो बहुत खुश है. वह ऊपर से मुसकरा रही होती मगर उस के दिल के अंदर गम का सागर लहरा रहा होता. अंदर ही अंदर यह गम उसे तकलीफ दे रहा था.

फिर एक दिन सुबहसुबह उस की बड़ी बहन की कौल आई. वह बहुत खुश थी, चहकती हुई बोली, “जानती है प्रिया, तू भी मौसी बनने वाली है. आज मुझे लग रहा है जैसे मैं आसमान में उड़ रही हूं. यह एहसास कितना खूबसूरत है, मैं बता नहीं सकती.”

“दीदी, मैं बहुत खुश हूं आप के लिए. कौंग्रैट्स,” प्रिया ने खुश हो कर कहा.

इस के बाद तो सुबहशाम हर रोज बहन का फोन आता. वह उस से अपनी खुशियां शेयर करती. धीरेधीरे प्रिया, जिसे अपनी खुशियां खुद तक सीमित रखना पड़ा था, भी खुलने लगी. उसे भी बहन के रूप में एक साथी मिल गया जिस से वह अपनी खुशियां शेयर कर सकती थी. दोनों एकदूसरे से बच्चे की बातें करतीं, भविष्य के सुनहरे सपने संजोतीं. प्रिया समझ गई थी कि वाकई खुशियां बांटने से बढ़ती हैं, मगर बांटने का मौका तब मिलता है जब सामने वाला भी उसी मैंटल स्टेटस में हो.

बबूल का पेड़: जब बड़ा भाई अपने छोटे भाई से पराया हुआ

कमरे में प्रवेश करते ही नीलम को अपने जेठजी, जिन्हें वह बड़े भैया कहती थी, पलंग पर लेटे हुए दिखाई दिए. नीलम ने आवाज लगाई, ‘‘भैया, कैसे हैं आप?’’

‘‘कौन है?’’ एक धीमी सी आवाज कमरे में गूंजी.

‘‘मैं, नीलम,’’ नीलम ने कहा.

बड़े भैया ने करवट बदली. नीलम उन को देख कर हैरान रह गई. क्या यही हैं वे बड़े भैया, जिन की एक आवाज से सारा घर कांपता था, कपड़े इतने गंदे जैसे महीनों से बदले नहीं गए हों, दाढ़ी बढ़ी हुई, जैसे बरसों से शेव नहीं की हो, शायद कुछ देर पहले कुछ खाया था जो मुंह के पास लगा था और साफ नहीं किया गया था. हाथपैर भी मैलेमैले से लग रहे थे, नाखून बढ़े हुए. उन को देख कर नीलम को उन पर बड़ा तरस आया. तभी नीलम का पति रमन भी कमरे में आ गया. बड़े भाई को इस दशा में देख कर रमन रोने लगा, ‘‘भैया, क्या मैं इतना पराया हो गया कि आप इस हालत में पहुंच गए और मुझे खबर भी नहीं की.’’

भैया से बोला नहीं जा रहा था. उन्होंने अपने दोनों हाथ जोड़ दिए और कहने लगे, ‘‘किस मुंह से खबर करता छोटे, क्या नहीं किया मैं ने तेरे साथ. फिर भी तू देखने आ गया, क्या यह कम है.’’

‘‘नहीं भैया, अब मैं आप को यहां नहीं रहने दूंगा. अपने साथ ले जाऊंगा और अच्छी तरह से इलाज करवाऊंगा,’’ रमन सिसकते हुए कह रहा था.

नीलम को याद आ रहे थे वे दिन जब वह दुलहन बन कर इस घर में आई थी. उस के मातापिता ने अपनी सामर्थ्य से ज्यादा दहेज दिया था लेकिन मनोहर भैया हमेशा उस का मजाक उड़ाते थे. उस के दहेज के सामान को देख कर रमन से कहते, ‘क्या सामान दिया है, इस से अच्छा तो हम लड़की को सिर्फ फूलमाला पहना कर ही ले आते.’

उन की शादी अमीर घर में हुई थी, लेकिन रमन की ससुराल उतनी अमीर नहीं थी. इसलिए वे हमेशा उस का मजाक उड़ाते थे. रोजरोज के तानों से नीलम को बहुत गुस्सा आता, पर रमन के समझाने पर वह चुप रह जाती. फिर भी बड़े भैया के लिए उस के दिल में गांठ पड़ ही गई थी. उन से भी ज्यादा तेज उन की पत्नी शालू थी जो बोलती कम थी पर अंदर ही अंदर छुरियां चलाने से बाज नहीं आती थी.

मातापिता की मृत्यु के बाद घर में मनोहर भैया की ही चलती थी. सब कुछ उन से पूछ कर होता था. एक तो मनोहर बड़े थे, दूसरे, वे एक अच्छी कंपनी में अच्छे पद पर थे. उन की शादी भी पैसे वाले घर में हुई थी जबकि रमन न सिर्फ छोटा था बल्कि एक छोटी सी दुकान चलाता था. उस की शादी एक साधारण घर में हुई थी. उस की घरेलू स्थिति ठीक नहीं थी. रमन को इन सब बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता था, वह न सिर्फ अपने बड़े भाई को बहुत प्यार करता था बल्कि उन की हर बात को मानना अपना कर्तव्य भी समझता था. मनोहर अपने छोटे भाई को वह प्यार नहीं देते थे जिस का वह हकदार था, बल्कि हमेशा उस की बेइज्जती करने के बहाने ढूंढ़ते रहते. वे हमेशा यह जतलाना चाहते थे कि घर में सिर्फ वे ही श्रेष्ठ हैं और बाकी सब बेवकूफ हैं.

‘‘नीलम, कहां खो गईं. चलो, भैया का सामान पैक करो, इन को हम अपने साथ ले जाएंगे,’’ रमन की आवाज सुन कर नीलम वापस वर्तमान में आ गई.

‘‘भैया, प्रिया नहीं आती क्या आप से मिलने?’’ नीलम ने पूछा.

‘‘आती है कभीकभी, लेकिन वह भी क्या करे. उस की अपनी गृहस्थी है. हमेशा तो मेरे पास नहीं रह सकती न,’’ भैया रुकरुक कर बोल रहे थे.

‘‘और राजू और पल्लवी कहां हैं?’’ नीलम ने पूछा.

‘‘राजू तो औफिस गया होगा और पल्लवी शायद किसी ‘किटी पार्टी’ में गई होगी,’’ भैया शर्मिंदा से लग रहे थे.

नीलम को इसी तरह के किसी जवाब की उम्मीद थी. उसे अच्छी तरह याद है वह दिन जब उस की छोटी बहन सीढि़यों से गिर गई थी तो वह हड़बड़ाहट में बिना किसी को बताए अपनी मां के घर चली गई थी. बस, इतनी सी बात पर मनोहर भैया ने बखेड़ा खड़ा कर दिया था कि ऐसा भी किसी भले घर की बहू करती है क्या कि किसी को बगैर बताए मायके चली जाए.

उन दिनों भैया ही सारा घर संभालते थे. रमन भी अपनी सारी कमाई भैया के हाथ में दे देता था और कभी भी नहीं पूछता था कि भैया उन पैसों का क्या करते हैं जबकि भैया सब से यही कहते फिरते थे कि छोटे का खर्च तो वही चलाते हैं. छोटे की तो बिलकुल भी कमाई नहीं है.

नीलम की सारी अच्छाइयां, सारी पढ़ाईलिखाई, सारे गुण सिर्फ एक कमी के नीचे दब कर रह गए कि एक तो उस का मायका गरीब था, दूसरे, पति की कमाई भी साधारण थी. सारे रिश्तेदारों, दोस्तों में शालू और मनोहर नीलम और रमन को नीचा दिखाने का प्रयास करते. नीलम को अपनी इस स्थिति से बहुत कोफ्त होती पर वह चाह कर भी कुछ नहीं कर सकती थी क्योंकि रमन उसे कुछ भी बोलने नहीं देता था.

एक बड़े पेड़ के नीचे जिस तरह एक छोटा पौधा पनप नहीं सकता वैसी ही कुछ स्थिति रमन की थी. पिता की मृत्यु के बाद मनोहर घर के मुखिया तो बन गए लेकिन उन्होंने रमन को सिर्फ छोटा भाई समझा, बेटा नहीं. बड़े भाई का छोटे भाई के प्रति जो फर्ज होता है वह उन्होंने कभी नहीं निभाया.

नीलम समझ नहीं पाती थी कि क्या करे? वैसे वह बहुत समझदार और शांत स्वभाव की थी, लेकिन कभीकभी शालू और मनोहर के तानों से इतनी दुखी हो जाती कि उसे लगता कि वह रमन को ही छोड़ दे. रमन का चुप रहना उसे और परेशान कर जाता, लेकिन रमन को छोड़ना तो इस समस्या का हल नहीं था. रमन तो बहुत अच्छा था. बस, उस की एक ही कमजोरी थी कि वह बड़े भाई की हर अच्छी या बुरी बात मानता था और आंख बंद कर उन पर विश्वास भी करता था.

रमन के इसी विश्वास का मनोहर ने हमेशा फायदा उठाया. उस ने पुश्तैनी मकान भी अपने नाम करवा लिया और एक दिन नीलम और रमन को अपने ही घर से जाने को कह दिया.

इतना कुछ होने पर भी रमन कुछ नहीं बोला और अपनी 4 साल की बेटी और पत्नी को ले कर चुपचाप घर से निकल पड़ा. उस दिन नीलम को अपने पति की कायरता पर बहुत गुस्सा आया, लेकिन जब रमन ही कुछ करने को तैयार नहीं था तो वह क्या कर सकती थी, पर मन ही मन उस ने सोच लिया था कि वह इस घर में अब कभी वापस नहीं आएगी और इस घर से बाहर रह कर ही अपनी और अपने परिवार की एक पहचान बनाएगी.

अब नीलम की अग्निपरीक्षा शुरू हो गई थी. घर में पैसों की तंगी बनी रहेगी, यह तो नीलम को मालूम था क्योंकि संयुक्त परिवार में बहुत से ऐसे खर्चे होते हैं जिन का पता नहीं चलता, लेकिन एकल परिवार में उन खर्चों को निकालना मुश्किल हो जाता है. फिर भी नीलम ने हार नहीं मानी और जुट गई अपना एक समर्थ संसार बनाने में. सुबह मुंहअंधेरे उठ कर घर का कामकाज करती, उस के बाद कई बच्चों को घर पर बुला कर ‘ट्यूशन’ पढ़ाती और फिर रमन के साथ दुकान पर चली जाती.

नीलम के अंदर दुकान चलाने की गजब की क्षमता थी जो शायद अभी तक उस के अंदर सुप्त पड़ी थी. उस ने अपने मीठे व्यवहार, ईमानदारी और मेहनत से न सिर्फ अपनी दुकान को बढ़ाया बल्कि रमन का आत्मविश्वास बढ़ाने में भी उस का साथ दिया.

बड़े भाई से अलग रह कर रमन को भी एहसास हो गया था कि वह कितना बुद्धू था और बड़े भाई ने उस का कितना फायदा उठाया.

मनोहर ने सोचा था कि रमन कभी भी घर से नहीं जाएगा और अगर जाता है तो जाते वक्त उस के आगे हाथ जोड़ कर गिड़गिड़ाएगा या फिर नीलम ही कुछ भलाबुरा कहेगी पर वह हैरान था कि दोनों ने कुछ भी नहीं कहा बल्कि चुपचाप एकदूसरे का हाथ पकड़ कर घर से चले गए. वैसे भी वे रमन से चिढ़ते थे कि उस की पत्नी हमेशा उस का कहना मानती थी जबकि वह इतना समर्थ भी नहीं था और एक उन की पत्नी शालू है, जिस ने उन का जीना मुश्किल किया हुआ था. हर वक्त उसे कुछ न कुछ चाहिए. उस की फरमाइशें खत्म होने का नाम ही नहीं लेती थीं.

मनोहर ने रमन को घर से तो निकाल दिया पर उन के अंदर आत्मग्लानि का भाव पैदा हो गया था. एक दिन रात को शराब के नशे में धुत्त हो कर मनोहर ने रमन को फोन किया, ‘चल छोटे, घर आजा, भूल जा सब कुछ.’ लेकिन नीलम और रमन ने सोच लिया था कि अब उस घर में वापस नहीं जाना है. अब मनोहर को एक नया बहाना मिल गया था अपनेआप को बहलाने का कि उस ने तो उन दोनों को वापस बुलाया था पर वे ही वापस नहीं आए और गाहेबगाहे वे अपने रिश्तेदारों को कहने लगे कि वे दोनों अपनी मरजी से घर छोड़ कर गए हैं. नीलम तो हमेशा से ही रमन को उन से दूर करना चाहती थी, पर अंदर की बात तो कोई भी नहीं जानता था कि यह सब कियाधरा मनोहर का ही है.

रमन और नीलम ने दिनरात मेहनत की. धीरेधीरे उन की दुकान एक अच्छे ‘स्टोर’ में बदल गई थी. अब उस ‘स्टोर’ की शहर में एक पहचान बन गई थी. रमन और नीलम का जीवनस्तर भी ऊंचा हो गया था. उन के बच्चे शहर के अच्छे स्कूलों में पढ़ने लगे थे. अब मनोहर उन से नजदीकियां बढ़ाने की कोशिश करते पर वे दोनों तटस्थ रहते.

रमन के घर छोड़ने के बाद दोनों भाइयों का आमनासामना बहुत ही कम हुआ था. एक बार मनोहर के बेटे राजू की शादी में वे मिले थे, तब रमन ने महसूस किया था कि बड़े भाई की अब घर में बिलकुल भी नहीं चलती है. जो कुछ भी हो रहा था, वह बच्चों की मरजी से ही हो रहा था. बड़े भाई के बच्चे भी उन पर ही गए थे. वे बिलकुल ही स्वार्थी निकले थे. दूसरी मुलाकात मनोहर की बेटी प्रिया की शादी में हुई थी. बड़े भैया को अनेक रोगों ने घेर लिया था. वे बहुत ही कमजोर हो गए थे. तब भी उन को देख कर रमन को बहुत दुख हुआ था पर उस वक्त वह कुछ नहीं बोला था, लेकिन शालू भाभी के जाने के बाद तो जैसे भैया बिलकुल ही अकेले पड़ गए थे. उन का खयाल रखने वाला कोई भी नहीं था. शालू जैसी भी थी, पर अपने पति का तो खयाल रखती ही थी. राजू को अपने काम और क्लबों से ही फुरसत नहीं थी. वैसे भी उसे पिता के पास बैठ कर उन का हाल जानने में कोई दिलचस्पी नहीं थी. अगर वह अपने पिता का ध्यान नहीं रख सकता था तो पल्लवी को क्या पड़ी थी इन सब बातों में पड़ने की? वह भी ससुर का बिलकुल ध्यान नहीं रखती थी.

एकएक बात रमन के दिमाग में चलचित्र की तरह घूम रही थी. पुरानी घटनाओं का क्रम जैसे ही खत्म हुआ तो रमन बोला, ‘‘बड़े भैया, कल ही किसी से पता चला था कि आप गुसलखाने में गिर गए हैं. मुझ से रहा नहीं गया और आप का हाल पूछने चला आया.’’

रमन का दिल रोने लगा कि खामखां ही वह इतने दिनों तक भैया से नाराज रहा और उन की खबर नहीं ली, लेकिन अब वह उन को अपने साथ जरूर ले जाएगा, लेकिन बड़े भैया ने जाने से इनकार कर दिया, ‘‘मुझे माफ कर दे छोटे, सारी जिंदगी मैं ने सिर्फ तेरा मजाक उड़ाया है और अब जब मैं बिलकुल ही मुहताज हो चुका हूं और मेरे अपने मुझे बोझ समझने लगे हैं, इस वक्त मैं तेरे ऊपर बोझ नहीं बनना चाहता.’’

‘‘नहीं भैया, ऐसा मत कहो. क्या मैं आप का अपना नहीं, मैं ने आप को अपना भाई नहीं बल्कि पिता माना है और एक बेटे का कर्तव्य है कि वह अपने पिता की सेवा करे, इसलिए आप को मेरे साथ चलना ही पड़ेगा,’’ रमन ने विनती की.

तभी नीलम भी बोल पड़ी, ‘‘भैया, आप को हमारे साथ चलना ही पड़ेगा, हम आप को इस तरह छोड़ कर नहीं जा सकते.’’

अब तक पल्लवी भी घर पहुंच चुकी थी. उस ने चाचा और चाची को देख कर इस तरह व्यवहार किया जैसे वह उन दोनों को जानती ही नहीं. उस को इस बात की भी चिंता नहीं थी कि दुनियादारी के लिए ही कुछ दिखावा कर दे. उस का व्यवहार इस बात की गवाही दे रहा था कि अगर मनोहर को कोई अपने साथ ले जाता है तो उसे कोई परवा नहीं है. अभी तक मनोहर को आशा थी कि शायद पल्लवी उसे कहीं भी जाने नहीं देगी और उसे रोक लेगी, पर उस की बेरुखी देख कर मनोहर भैया उठ खड़े हुए, ‘‘चल छोटे, मैं तेरे साथ ही चलता हूं, लेकिन उस से पहले तुझे मेरा एक काम करना पड़ेगा.’’

‘‘वह क्या, भैया?’’ रमन ने पूछा.

‘‘तुझे एक वकील लाना पड़ेगा क्योंकि मैं यह बंगला तेरे नाम करना चाहता हूं जो धोखे से मैं ने अपने नाम करवा लिया था,’’ मनोहर ने कहा.

‘‘लेकिन मुझे यह घर नहीं चाहिए भैया, मेरे पास सब कुछ है,’’ रमन ने कहा.

‘‘मैं जानता हूं छोटे, तेरे पास सब कुछ है लेकिन जिंदगी ने मुझे यह सबक सिखाया है कि किसी से भी धोखे से ली हुई कोई भी वस्तु सदैव दुख ही देती है. मैं इतने सालों तक चैन से नहीं सो पाया और अब चैन से सोना चाहता हूं इसलिए मुझे मना मत कर और अपना हक वापस ले ले.’’

यह सब सुन कर पल्लवी के तो होश उड़ गए. उसे लगता था कि उस के ससुर का तो कोई अपना है ही नहीं, जो उन्हें अपने साथ ले जाएगा, और इतना बड़ा बंगला सिर्फ उस के हिस्से ही आएगा. लेकिन ससुर की बात सुन कर उसे लगा कि इतना बड़ा घर उस के हाथ से निकल गया है. उस ने फटाफट बहू होने का फर्ज निभाया. उस ने मनोहर को रोकने की कोशिश की, पर मनोहर ने कहा, ‘‘नहीं बहू, अब नहीं, अब मैं नहीं रुक सकता. तुम ने और मेरे बेटे ने मुझे बिलकुल ही पराया कर दिया है. इस बूढ़े और लाचार इंसान को अब अपने मतलब के लिए इस घर में रखना चाहते हो. नहीं, इस घर में तड़पतड़प कर मरने से अच्छा है मैं अपने भाई के साथ कुछ दिन जी लूं, लेकिन फिर भी मैं कहता हूं कि इस में तुम्हारी गलती कम है क्योंकि मैं ने ही बबूल का पेड़ बोया है तो आम की उम्मीद कहां से करूं.’’

कुछ देर बाद नीलम और रमन मनोहर को ले कर अपने घर जा रहे थे और पल्लवी पछता रही थी कि उस ने अपने ससुर को नहीं रोका जिन के जाने से इतना बड़ा घर हाथ से निकल गया.

चलो एक बार फिर से : अमित का नेहा के लिए प्यार

‘कुछ तो था हमारे दरमियां… आज भी तुम्हें देख कर दिल की बस्ती में हलचल हो गई है…’

नेहा को देखते ही यह शायरी अमित के होठों पर खुद ब खुद आ गई थी. वही खुले लंबे बाल, बड़ीबड़ी झील सी गहरी आंखें, माथे पर लंबी सी बिंदिया और आंखों में कितने ही सवाल…अपनी साड़ी का पल्लू संभालती हुई नेहा मुड़ी तभी दोनों की नजरें टकरा गई थीं.

अमित एकटक उसे ही निहारता रह गया. नेहा की आंखों ने भी पल भर में उसे पहचान लिया था. अमित कुछ कहना चाहता था मगर नेहा ने खुद को संभाला और निगाहें फेर लीं.

अमित को लगा जैसे एक पल में मिली हुई खुशी अगले ही पल छिन गई हो. नेहा ने चोर नजरों से फिर उसे देखा. अमित अबतक उसी की तरफ देख रहा था.

“हैलो नेहा” अमित से रहा नहीं गया और वह उस के पास पहुंच गया.

“हैलो कैसे हो ?” धीमे स्वर में नेहा ने पूछा.

“जैसा छोड़ कर गई थीं.” अमित ने जवाब दिया तो नेहा ने एक भरपूर निगाह उस पर डाली और हौले से मुस्कुराती हुई बोली, “ऐसा तो नहीं लगता. थोड़े तंदुरुस्त हो गए हो.”

“अच्छा” अमित हंस पड़ा.

दोनों करीब 4 साल बाद एकदूसरे से मिले थे. 4 साल पहले ऐसे ही स्टेशन पर नेहा को गाड़ी में बिठा कर अमित ने विदा किया था. नेहा उस की जिंदगी से दूर जा रही थी. अमित उसे रोकना चाहता था मगर दोनों का ईगो आड़े आ गया था. वह गई तो मायके थी पर दोनों को ही पता था कि वह हमेशा के लिए जा रही है. लौट कर नहीं आएगी और फिर 2 महीने के अंदर ही तलाक के कागजात अमित के पास पहुंच गए. एक लंबी अदालती कार्यवाही के बाद दोनों की जिंदगी के रास्ते अलग हो गए.

“चाय पीओगी या कॉफी ?” पुरानी यादों का साया परे करते हुए अमित ने पूछा था.

“हां कॉफी पी लूंगी. तुम तो चाय पियोगे न. बट आई विल प्रेफर कॉफी.”

“ऑफकोर्स. अभी लाता हूं.”

नेहा अमित को जाता हुआ पीछे से देर तक देखती रही. तलाक के बाद उस ने शादी कर ली थी पर अमित अब तक अकेला था. वह नेहा को अपने दिलोदिमाग से निकाल नहीं सका था. शायद यही हालत नेहा की भी थी. मगर शादी के बाद प्राथमिकताएं बदल जाती हैं और वैसा ही नेहा के साथ भी हुआ था.

“और बताओ कैसी हो? सब कैसा चल रहा है? ”

अमित चाय और कॉफी ले आया था. नेहा के पास बैठते हुए उस ने पूछा तो एक लंबी सांस ले कर नेहा बोली,” सब ठीक ही चल रहा है. बस आजकल अपनी तबीयत को ले कर थोड़ी परेशान रहती हूं.”

“क्यों क्या हुआ तुम्हें?” चिंतित स्वर में अमित ने पूछा.

“कुछ नहीं बस अस्थमा से थोड़ी प्रॉब्लम हो रही है. सांस की तकलीफ रहती है.”

“आजकल तो वैसे भी कोरोना फैल रहा है. तुम्हें तो फिर अपना खास ख्याल रखना चाहिए.”

“हां वह तो रखती हूं. बस 2 दिन का देहरादून में काम है और फिर वापस नागपुर लौटना है. सुजय अभी नागपुर में ही शिफ्टेड है न.”

“अच्छा. मैं भी दिल्ली काम से आया था. मुझे भी वापस कोटा जाना है.*

“मेरी ट्रेन सुबह 6.40 की है. अमित जरा तुम देखो न, ट्रेन कब आएगी? स्टेशन मास्टर से पूछ कर बताओ न जरा. ट्रेन टाइम पर है या लेट है?”

“हां अभी पूछता हूं.” कह कर अमित चला गया.

पूछताछ करने पर पता चला कि लॉकडाउन हो गया है और इस वजह से ट्रेनें रद्द हो गई हैं. नेहा घबरा गई.
“अब क्या होगा ट्रेन कब चलेगी?”

“देखो नेहा. अभी तो यही पता चल रहा है कि 31 मार्च तक ट्रेनें रद्द कर दी गई हैं. सब कुछ बंद है. लौकडाउन में ट्रेनों के परिचालन पर पाबंदी लग गई है.”

“अरे अब मैं कहां जाऊंगी? ऐसा कैसे हो गया? होटल खुले हैं या नहीं?”

नेहा घबरा गई थी. उसे शांत कराते हुए अमित बोला,” नेहा परेशान मत हो. मेरे कजिन ब्रदर का घर है यहां. वह आजकल मुंबई में जॉब कर रहा है. इसलिए घर की चाबी मुझे दी हुई है. मुझे अक्सर यहां आना पड़ता है तो मैं उसी घर में ठहर जाता हूं. डोंट वरी. तुम भी मेरे साथ चलो. अभी तुम्हें वहीं ठहरा देता हूं. इतना तो विश्वास कर ही सकती हो मुझ पर. ”

“ओके डन. चलो.” नेहा अमित के साथ चल दी.

अमित उसे ले कर कजिन के घर पहुंचा. एक बेडरूम के इस घर में बाहर बड़ी सी बालकनी और झूला भी था. अच्छाखासा लौन था. गलियारे में सुंदर पेड़पौधे भी लगे हुए थे. घर छोटा मगर काफी खूबसूरत था.

अमित के घर पहुंच कर नेहा ने सारी बातें अपने वर्तमान पति यानि सुजय को बता दीं. परेशानी के वक्त पुराने पति की मदद लेने और उस के घर पर ठहरने के फैसले को सुजय ने पॉजिटिव वे में लिया और उस के सुरक्षित होने की खबर पर खुशी जाहिर की.

“गुड. थैंक्स अमित.” नेहा ने घर का मुआयना करते हुए कहा

” चलो तुम फ्रेश हो जाओ. मैं खाना बनाता हूं. तुम मेरी गेस्ट हो ना.”

“अच्छा तो अब तुम बनाओगे खाना? जब हम साथ थे तब तो कभी किचन में झांकते भी नहीं थे.”

“वक्त और परिस्थितियां बहुत कुछ सिखा देती हैं नेहा मैडम. आप हमारे हाथ का खाना खा कर देखना. उंगलियां चाटती रह जाओगी.”

“क्या बात है. बातें बनाना तो तुम्हें खूब आता है.” न चाहते हुए भी नेहा की जुबान पर पुरानी यादों की तल्खी आ ही गई थी.

तुरंत बात सुधारती हुई बोली,” वैसे अमित काफी अच्छे बदलाव नजर आ रहे हैं तुम में.”

“थैंक्यू” अमित मुस्कुरा कर काम में लग गया. वाकई उस ने बहुत स्वादिष्ट खाना बनाया था.

नेहा ने स्वाद से खाना खाया. थोड़ी देर बातचीत करते हुए पुरानी यादें ताजा करने के बाद सोने की बारी आई. बेडरूम एक ही था. अमित ने बेड की तरफ इशारा करते हुए कहा,” नेहा तुम आराम से सो जाओ यहां.”

“तुम कहां सोओगे?”

“मेरा क्या है? मैं बैठक में सोफे पर एडजस्ट हो जाऊंगा.”

“ओके”

नेहा आराम से बैड पर लुढ़क गई. बहुत नींद आ रही थी उसे. थकी हुई भी थी फिर भी रात भर करवटें बदलती रही. मन के आंगन में पुरानी यादें, कुछ कड़वी और कुछ मीठी, घेरा डाले जो बैठी थीं. अमित का भी यही हाल था. सुबह 8 बजे नेहा की नींद टूटी. बाहर आई तो देखा कि अमित नहाधो कर नाश्ता बना रहा है.

“क्या बात है. आई एम इंप्रैस्ड. पूरी गृहिणी बन गए हो.”

“घरवाली छोड़ कर चली जाए तो यही हाल होता है मैडम जी.”

अमित ने माहौल को हल्का बनाते हुए कहा. नेहा लौन में टहलने लगी तभी अमित चाय ले कर आ गया. नेहा ने चाय पीते हुए कहा,” अमित मुझे अजीब लग रहा है. सारे काम तुम कर रहे हो. देखो कहे देती हूं. दोपहर का खाना मैं बनाऊंगी और रात का भी. तुम केवल बर्तन साफ कर देना.”

“जैसी आप की आज्ञा मोहतरमा.” हंसते हुए अमित बोला.

इस तरह दोनों मिल कर लौकडाउन के इस समय में एकदूसरे की सहायता करते हुए वक्त बिताने लगते हैं. अमित जितना संभव होता सारे काम खुद करता. उसे नेहा की तबीयत को ले कर चिंता रहती थी. झाड़ू पौंछा या सफाई का काम नेहा को छूने भी नहीं देता.

एक दिन सुबहसुबह नेहा की तबीयत ज्यादा ही खराब हो गई. नेहा ने बताया कि उस का इनहेलर नहीं मिल रहा है. अमित उसी वक्त बाजार भागा. बड़ी मशक्कत के बाद उसे एक मेडिकल शॉप खुली मिली. वहीं से इनहेलर और जरूरी दवाइयां खरीद कर भागाभागा घर लौटा. इस समय एकएक पल महत्वपूर्ण था. नेहा की तबीयत काफी बिगड़ रही थी. मगर समय पर इनहेलर मिल जाने से वह बेहतर महसूस करने लगी.

तब तक अमित ने जल्दी से एक बाउल में पानी गर्म किया और उस में लैवेंडर ऑयल की 5-6 बूंदें डालीं. इसे वह नेहा के पास ले आया और 5 -10 मिनट तक स्टीम लेने को कहा. इस से नेहा को काफी आराम मिला.

अब अमित ने एक गिलास गर्म पानी में शहद मिला कर उसे धीरेधीरे पीने को कहा. कुल मिला कर नेहा की तबीयत में काफी सुधार आ गया. अमित ने प्यार से नेहा का माथा सहलाते हुए कहा,” आज के बाद तुम्हें रोज शहद या हल्दी डाल कर गर्म पानी पीना है. इस से तुम्हें आराम मिलेगा.”

उस दिन नेहा को महसूस हुआ कि अमित वाकई उस से प्यार करता है और अलग हो कर भी वह दिल से उस से जुड़ा हुआ है. यह बात उस ने शिद्दत से महसूस की.

वह अमित के पास आ कर बैठ गई और उस के हाथों को थामते हुए बोली,” मैं अपना अतीत पूरी तरह भूल जाना चाहती हूं. आज से मैं केवल तुम्हारे साथ बिताए हुए ये खूबसूरत और प्यारे लम्हे याद रखूंगी. रियली आई मीन इट.”

“नेहा कौन कहता है कि एक्स हसबैंडवाइफ दोस्त नहीं हो सकते. अब तुम तो जिंदगी में आगे बढ़ चुकी हो. हमारा पुराना रिश्ता तो अब जुड़ नहीं सकता. फिर भी दोस्ती का एक नया रिश्ता तो हम बना ही सकते हैं न.”

उस दिन पहली बार दोनों गले लग कर खुशी के आंसू रोए थे.

अगले दिन सुबह नेहा एक फूल ले कर अमित के पास पहुंची.

“यह क्या है?” वह अचकचाया.

“फूल है गुलाब का.”

” वह तो है मगर इस नाचीज पर आज इतनी मेहरबान क्यों?”

“क्यों कि आज ही हम पहली दफा मिले थे. ईडियट भूल गए तुम?” शरारत से देखते हुए नेहा बोली.

“ओह याद आया. रियली मैं सरप्राइज्ड हूं. तुम्हें आज का दिन याद रह गया?”

“हां चलो, आज का दिन कुछ खास मनाते हैं.”

“फाइन ”

फिर दोनों ने मिल कर घर में एक शानदार डेट ऑर्गेनाइज की. घर को फूलों से सजाया. बरामदे में टेबल और कुर्सी लगा कर दोनों ने लंच किया. एकदूसरे की पसंद के कपड़े पहने. लंच में एकदूसरे की पसंद की चीजें ही ऑर्डर कीं गई. एक आर्डर करता और दूसरा किचन से सामान ले कर आता. दोनों ने पहली मुलाकात याद करते हुए एकदूसरे के लिए गाने गाए. शायरियां सुनाईं. गिफ्ट का आदानप्रदान किया. मजेदार बातें कीं और फिर एक खुशनुमा शाम का वादा कर एकदूसरे से विदा ली.

यह सब दोनों ने इतने मजे लेते हुए और फ्रेंडली अप्रोच के साथ किया कि उन के लिए यह डेट यादगार बन गई.

रात में नेहा ने अमित को अपने पास ही सो जाने का न्योता दिया और बोली,” आज मैं एक खूबसूरत भूल करना चाहती हूं . बस केवल आज के लिए अपने हस्बैंड को चीट करूंगी अपने दोस्त की खातिर.”

“तुम तो बड़ी पाप पुण्य की बातें करती थीं कि विवाह के बाद परपुरुष को देखने पर भी नर्क मिलता है या सती सावित्री ही आदर्श होती है वगैरह-वगैरह.” अमित बोला.

नेहा मुंह बिचकाकर बोली, “वे सब पाखंड तो मैं अपनी मौसी से सीख कर आई थी. पता  है उन्होंने मां को ही चूना लगा डाला था. उनका पैसा एक ऐसी जमीन में लगवा दिया था जो थी ही नहीं और सिर्फ कागज थे. बचपन से हम समझते थे कि वे सुबह तीन घंटे पूजा करतीं हैं तो सही ही होंगीं. उन्होंने मां का वह कागजी हिस्सा भी बेच कर पैसे बेटे बहू को दे दिए. मां बहुत रोई थीं. तब से मैंने फैसला कर लिया कि इस झूठ फरेब में नहीं पड़ूंगी और अपनी शर्तों पर अपनी समझ से जिऊंगी.”

“काश तुम्हें यह समझ पहले होती” कहता हुआ अमित कपड़े फेंकते हुए नेहा के साथ बिस्तर पर लेट गया.

दोनों की जिंदगी में लौकडाउन का वह पूरा दिन उम्र भर के लिए यादगार बन गया था. पुरानी गलतफहमियां और कड़वाहट दूर हो गई थीं. एकदूसरे के ऊपर अधिकार न होते हुए भी वे एकदूसरे के लिए कुछ भी करने को तैयार थे. एक अलग सा कंफर्ट लेवल था जिस ने तकलीफ के उन दिनों को भी नए रंग में रंग दिया था.

सबक: क्यों शिखा की शादीशुदा जिंदगी में जहर घोल रही थी बचपन की दोस्त

अपनेमंगेतर रवि के दोस्त मयंक की सगाई के मौके पर शिखा पहली बार नेहा से मिली थी. कुछ ही देर में नेहा के मुंह से उस ने बहुत सी ऐसी बातें सुनीं, जिन से साफ जाहिर हो गया कि वह उसे फूटी आंख नहीं भा रही थी.

शिखा को पता था कि वह अच्छी डांसर नहीं है, लेकिन उसे डांस करने में बहुत मजा आता था. रवि के साथ कुछ देर डांस करने के बाद जब वह अपनी परिचित महिलाओं के पास गपशप करने पहुंची, तब नेहा ने बुरा सा मुंह बना कर टिप्पणी की, ‘‘डांस में जोश के साथसाथ ग्रेस भी नजर आनी चाहिए, नहीं तो इंसान जंगली सा नजर आता है.’’

फिर कुछ देर बाद उस ने शिखा की फिगर को निशाना बनाते हुए कहा, ‘‘शिखा, तुम मेरी बात का बुरा मत मानना, पर आजकल जो जीरो साइज का फैशन चल रहा है, वह मेरी समझ से तो बाहर है. फैशन अपनी जगह है पर प्रेमी या पति के हिस्से में प्यार करते हुए सिर्फ हड्डियों का ढांचा आए, यह उस बेचारे के साथ नाइंसाफी होगी या नहीं?’’

नेहा की इस बात को सुन कर सब औरतें खूब हंसी. शिखा ने कुछ तीखा जवाब देने से खुद को रोक लिया. अपने दिमाग पर बहुत जोर डालने के बाद भी शिखा की समझ में नहीं आया कि नेहा क्यों उस के साथ ऐसा गलत सा व्यवहार कर रही है.

शिखा ने एकांत में जा कर आखिरकार रवि से पूछ ही लिया, ‘‘अतीत में तुम्हारे नेहा से कैसे संबंध रहे हैं?’’

‘‘ठीक रहे हैं, पर तुम यह सवाल क्यों पूछ रही हो?’’ उन्होंने ध्यान से शिखा के चेहरे को पढ़ना शुरू कर दिया.

‘‘क्योंकि मुझे लग रहा है कि नेहा जानबूझ कर मेरे साथ बेढंगा सा व्यवहार कर रही है. चूंकि आज हम पहली बार मिले हैं, इसलिए मेरी किसी गलती के कारण उस के यों नाराज नजर आने का सवाल ही नहीं उठता. आर यू श्योर कि किसी पुरानी अनबन के कारण वह आप से नाराज नहीं चल रही है?’’

‘‘नहीं, मेरे साथ कभी उस का झगड़ा नहीं हुआ है.’’

‘‘फिर क्या कारण हो सकता है, जो वह मुझ से इतनी खुंदक खा रही है?’’

‘‘इंसान का मूड सौ कारणों से खराब हो जाता है. तुम बेकार की टैंशन क्यों ले रही हो, यार? चलो, तुम्हें टिक्की खिलाता हूं.’’

‘‘वह मेरा पार्टी का सारा मजा किरकिरा कर रही है.’’

‘‘तो चलो उस से झगड़ा कर लेते हैं,’’ रवि कुछ चिड़ उठे थे.

‘‘तुम नाराज मत होओ. मैं उस की बातों पर ध्यान देना बंद कर देती हूं,’’ उस का मूड ठीक करने को शिखा फौरन मुसकरा उठी.

‘‘यह हुई न समझदारी की बात,’’ रवि ने प्यार से उस का गाल थपथपाया और फिर हाथ पकड़ कर टिक्की वाले स्टाल की तरफ बढ़ चला.

शिखा नेहा के गलत व्यवहार के बारे में सबकुछ भूल ही जाती अगर उस ने  कुछ देर बाद उन दोनों को बाहर बगीचे में बहुत उत्तेजित व परेशान अंदाज में बातें करते खिड़की से न देख लिया होता.

वह उन की आवाजें तो नहीं सुन सकती थी पर उन के हावभाव से अंदाज लगाया कि रवि उसे कुछ समझने की कोशिश कर रहा था और वह बड़ी अकड़ से अपनी बात कह रही थी. उत्तेजित लहजे में बोलते हुए नेहा रवि के ऊपर हावी होती नजर आ रही थी, इस बात ने शिखा के मन में खलबली सी मचा दी.

अपने मन की चिंता को काबू में रखते हुए वह मयंक के पास पहुंची और गंभीर लहजे में बोली, ‘‘आप मुझे 1 बात सचसच बताओगे, मयंक भैया?’’

‘‘बिलकुल बताऊंगा,’’ मयंक ने मुसकरा कर जवाब दिया.

‘‘आप तो जानते ही हो कि मैं रवि को अपनी जान से ज्यादा चाहती हूं.’’

‘‘यह मुझे अच्छी तरह से मालूम है.’’

‘‘नेहा से आज मैं पहली दफा मिली हूं. वह मुझ से अकारण क्यों चिड़ी हुई है और बातबात में मुझे सब के सामने शर्मिंदा करने की कोशिश क्यों कर रही है, मेरे इन सवालों का जवाब तुम दो, प्लीज.’’

शिखा को बहुत संजीदा देख मयंक ने कोई कहानी गढ़ने का इरादा त्याग दिया. वह शांत खड़ी हो कर उन के बोलने का इंतजार कर रही थी.

कुछ देर बाद उस ने धीमी आवाज में शिखा को बताया, ‘‘नेहा कालेज में हमारे साथ पढ़ती थी. रवि और वह कभी एकदूसरे को बहुत चाहते थे. फिर उस के मातापिता की रजामंदी न होने से वे शादी नहीं कर पाए थे.

‘‘अमीर पिता की बेटी नेहा की शादी भी बड़े अच्छे घर में हुई है, पर अपने पति के साथ उस के संबंध अच्छे नहीं चल रहे हैं. लेकिन तुम किसी बात की चिंता मत करो. मैं तुम्हें विश्वास दिलाता हूं कि रवि के मन में अब उस के लिए कोई आकर्षण मौजूद नहीं है.’’

‘‘लेकिन नेहा के मन में रवि के लिए अभी भी आकर्षण मौजूद है, नहीं तो मैं उस की आंखों में क्यों चुभती?’’ नेहा के मन में गुस्सा बढ़ने लगा था.

‘‘मुझे एक बात बताओ. रवि के प्यार के ऊपर तुम्हें पूरा विश्वास है न?’’

‘‘अपने से ज्यादा विश्वास करती हूं मैं उन पर, लेकिन…’’

‘‘लेकिन को गोली मारो और मुझे बताओ कि जब रवि के प्यार पर तुम्हें पूरा विश्वास है, तो फिक्र किस बात की कर रही हो?’’

‘‘जो बीज भविष्य में बड़ी सिरदर्दी का पेड़ बनने की संभावना रखता हो, क्या उसे शुरू में ही नष्ट कर देना समझदारी नहीं होगी?’’

‘‘यह बात तो ठीक है, पर तुम करने क्या जा रही हो?’’

‘‘तुम्हारी पार्टी में कोई बखेड़ा खड़ा नहीं करूंगी, देवरजी. मैं नेहा को ऐसा सबक सिखाना चाहती हूं कि वह भविष्य में कभी मुझ से पंगे लेने की जुर्रत न करे. तुम तो बस मेरा परिचय उस के पति से करा दो, प्लीज.’’

शिखा की बात को सुन मयंक की आंखों से चिंता के भाव तो कम नहीं हुए पर वो नेहा के पति विवेक के साथ उस का परिचय कराने को साथ चल पड़ा था.

आकर्षक युवतियों के लिए पुरुषों के मन को प्रभावित करना ज्यादा मुश्किल नहीं होता है. शिखा ने विवेक की जिंदगी के बारे में जानने को थोड़ी सी दिलचस्पी दिखाई, तो बहुत जल्दी वो दोनों बहुत अच्छे मित्रों की तरह से हंसनेबोलने लगे थे.

‘‘मेरे पति कहीं नजर नहीं आ रहे हैं और मेरा दिल आइसक्रीम खाने को कर रहा है,’’ करीब 15 मिनट की जानपहचान के बाद शिखा की इस इच्छा को सुनते ही विवेक की आंखों में जो चमक पैदा हुई वह इस बात का प्रतीक थी कि उस का जादू विवेक पर पूरी तरह से चल गया है.

‘‘अगर तुम्हें ठीक लगे तो मेरे साथ आइसक्रीम खाने चलो,’’ उस ने फौरन साथ चलने का प्रस्ताव शिखा के सामने रख दिया.

‘‘आप चलोगे मेरे साथ?’’

‘‘बड़ी खुशी से.’’

‘‘यों मेरे साथ अकेले बाहर घूमने जाने से कहीं आप की पत्नी नाराज तो नहीं हो जाएंगी?’’ यह पूछते हुए शिखा बड़ी अदा से मुसकराई.

‘‘उसे मैं ने इतना सिर नहीं चढ़ाया हुआ है कि इतनी छोटी बात को ले कर मुझ से झगड़ा करे.’’

‘‘फिर भी हमें बिना मतलब किसी का दिल नहीं दुखाना चाहिए. आप बाहर मेरी कार नंबर 4678 के पास मेरा इंतजार करोगे, प्लीज. मैं 2 मिनट के बाद बाहर आती हूं.’’

‘‘जैसी तुम्हारी मरजी,’’ कह हौल के मुख्य द्वार की तरफ चल पड़ा.

विवेक  जैसे ही शिखा की नजरों से ओझल हुआ तो वह तेज चाल से कुछ दूर  खड़ी नेहा से मिलने चल पड़ी.

पास पहुंच कर शिखा ने उस का हाथ पकड़ा और उसे उस की सहेलियों से कुछ दूर ले आई. फिर उस के कान के पास मुंह ले जा कर उस ने हैरान नजर आ रही नेहा को कठोर लहजे में धमकी दी, ‘‘मुझे तुम्हारे और रवि के बीच कालेज में रहे पुराने इश्क के चक्कर के बारे में सबकुछ पता लग गया है. तुम अभी भी उस के साथ चक्कर चालू रखना चाहती हो, यह भी मुझे पता है. आज तुम ने सब के सामने जो मुझे बेइज्जत करने की बारबार कोशिश करी है, उस के लिए मैं तुम्हें सजा जरूर दूंगी.’’

‘‘मैं विवेक के साथ बाहर घूमने जा रही हूं और रास्ते में उसे तुम्हारी चरित्रहीनता के बारे में सब बता कर उस की नजरों में तुम्हारी छवि बिलकुल खराब कर दूंगी. तुम तो मेरे और रवि के बीच कबाब में क्या हड्डी बनती, मैं ही तुम्हारे विवाहित जीवन की सारी खुशियां नष्ट कर देती हूं,’’ उसे धमकी देने के बाद शिखा गुस्से से कांपने का अभिनय करती हुई मुख्य दरवाजे की तरफ चल पड़ी.

नेहा ने शिखा को घबराहट और डर से कांपती आवाज में पुकार कर रोकने की कोशिश करी, पर उस ने मुड़ कर नहीं देखा.

हौल से बाहर आ कर शिखा दाईं तरफ कुछ फुट दूर एक झड़ी के पीछे छिप कर बैठ गई. वहां से उसे दरवाजा साफ नजर आ रहा था.

रवि और नेहा मुश्किल से 2 मिनट बाद बेहद घबराए हुए दरवाजे से बाहर आए. जब शिखा या विवेक उन्हें कहीं नहीं नजर आए, तो वे आपस में बातें करने लगे.

‘‘शिखा तो कहीं दिखाई नहीं दे रही है,’’ रवि बहुत परेशान नजर आ रहा था.

‘‘उसे ढूंढ़ कर विवेक से बातें करने से रोको, नहीं तो वह मुझे कभी चैन से जीने नहीं देगा,’’ नेहा की आवाज डर के मारे कांप रही थी.

‘‘जब वह कहीं दिखाई ही नहीं दे रही है, तो मैं उसे रोकूं कैसे?’’ विवेक चिड़ उठा.

‘‘तुम ने उसे हमारे प्रेम के बारे में कुछ बताया ही क्यों?’’

‘‘मैं पागल हूं जो उसे तुम्हारे बारे में कुछ बताऊंगा?’’

‘‘फिर उस ने मुझ से क्या यह झूठ बोला है कि वह हमारे बारे में सबकुछ जान गई है?’’

‘‘हो सकता है किसी और ने उसे सब बता दिया हो, पर मुझे यह बताओ कि तुम आज बेकार ही उस के साथ चिड़ और नाराजगी से भरा गलत व्यवहार कर उसे क्यों छेड़ रही थी?’’

‘‘क्योंकि यह सच है कि वह घमंडी लड़की तुम्हारी भावी जीवनसंगिनी के रूप में मुझे रत्तीभर पसंद नहीं आई है.’’

‘‘तुम्हें अपनी यह राय अपने तक रखनी चाहिए थी. तुम्हारेमेरे बीच जो प्यार का रिश्ता हमेशा के लिए खत्म हो चुका है, उस के आधार पर तुम्हें किसी कमअक्ल स्त्री की तरह शिखा से खुंदक नहीं खानी चाहिए थी,’’ रवि ने उसे फौरन डांटा तो मेरे मन ने इसे रवि की नेहा में कोई दिलचस्पी न होने का सुबूत मान कर बड़ी राहत महसूस करी.

‘‘तुम उसे रोकने के बजाय मुझे लैक्चर मत दो, तुम्हें पता नहीं कि विवेक का गुस्सा कितना तेज है. शिखा की बातें सुनने के बाद वह गुस्सैल इंसान मुझे ताने देदे कर मार डालेगा. कितनी पागल और बेवकूफ है यह शिखा. उस के लिए ये सब खेल होगा, पर मेरी तो जिंदगी बरबाद हो जाएगी.’’

वह अचानक रोने लगी तो मैं ने उन के सामने आने का यही मौका उचित समझ.

अपने छिपने की जगह से बाहर आते हुए ही मैं ने नेहा को सख्त लहजे में चेतावनी देनी शुरू कर दी, ‘‘अगर तुम में थोड़ी सी भी बुद्धि है तो आज की इस घटना को, अपने मन के डर और इस वक्त अपनी आंखों से बहते इन आंसुओं को कभी मत भूलना. रवि की बातों से यह साफ जाहिर हो रहा है कि उसे तुम से किसी तरह का कोई वास्ता नहीं रखना है. तुम भी कभी उस के साथ गलत नीयत के साथ मुलाकात करने की कोशिश मत करना. तुम मेरी कुछ बातें इस वक्त कान खोल कर सुन लो. जो बीत गया है उसे भूलो और वर्तमान की तुलना अतीत से कर अपना मन मत दुखाओ. रवि और मैं कुछ ही दिनों बाद शादी कर के नई शुरुआत करने जा रहे हैं. अपने विवाहित जीवन के दुखों को दूर करने के लिए अगर तुम ने मेरे रवि को गुमराह कर हमारे रास्ते में दिक्कत खड़ी करने की कभी कोशिश करी, तो बहुत पछताओगी.’’

मेरी चेतावनी के जवाब में बहुत डरी हुई नेहा के मुंह से एक शब्द भी नहीं निकला. कुछ देर पहले उस में नजर आ रही सारी अकड़ छूमंतर हो गई थी.

मैं ने बड़े अधिकार से रवि का हाथ पकड़ा और उसे साथ ले कर अंदर हौल की तरफ चल पड़ी. मुझे पक्का विश्वास था कि नेहा भविष्य में मेरे भावी जीवनसाथी के साथ किसी तरह का संपर्क बनाने की जुर्रत कभी नहीं करेगी.

किसान नेता Rakesh Tikait को खाना खिला रही पोती का वीडियो वायरल, दादू नंबर 1

किसान नेता Rakesh Tikait को खाना खिला रही पोती का वीडियो वायरल, पोतेपोती है खास प्यार
राकेश टिकैत का नाम ही किसान आंदोलन के दिनों से चर्चा में रहता आया है. कभी यह जोरदार भाषणों से रैलियों को संबोधित करते नजर आते हैं, तो कभी सरकार की किसान नीतियों पर बहस करते दिखते हैं. ऐसे कद्दावर नेता का एक वीडियो वायल हो रहा है, जिसमें वह अपने घर की एक छोटी सी बच्ची के हाथों से खाना खाते दिख रहे हैं. उनकी ऐसी सौफ्ट छवि को शायद ही किसी ने देखा होगा क्योंकि उनकी इमैज हमेशा से एक फायर ब्रांड नेता की रही है. राकेश टिकैत के इस वीडियो को देखने वाले में से एक सोशल मीडिया यूजर ने लिखा है कि यह दादापोती का प्यार है, तो किसी ने लिखा है कि चौधरी राकेश सिंह टिकैत के परिवार पर सदैव ईश्वर की कृपा बनी रहे.

 

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पोते को भी दुलारने का वीडियो वायरल

किसान नेता के रूप में मशहूर राकेश टिकैत ने एमए तक की स्टडी की है. ऐसा भी कहा जाता है कि उनके पास वकालत की भी डिग्री है. इन दिनों वे भारतीय किसान यूनियन के नेता के तौर पर भी जाने जाते हैं. राकेश टिकैत को सोशल मीडिया प्लैटफौर्म पर पोते के साथ खेलते हुए देखा जा सकता है. इस प्लेटफौर्म पर वे अकसर रैलियों और भाषणों की वीडियो डालते रहते हैं, लेकिन कुछ वीडियोज ऐसे हैं, जिसमें पोतेपोती के लिए उनका दुलार साफ नजर आता है. इससे पहले भी उनका एक वीडियो वायरल हुआ था जिस में वे अपने पोते को गन्ने का जूस पिलाते हुए दिख रहे थे. उनके पोते को यूजर्स फ्यूचर चौधरी साहब का नाम दे रहे हैं.

टिकैत कैसे बने किसान नेता

राकेश टिकैत के बारे में कहा जाता है कि साल 1985 में दिल्ली पुलिस में कौंस्टेबल के पद पर काम कर रहे थे. उसके बाद वे सब-इंसपैक्टर बने. लेकिन अपने पिता महेंद्र सिंह टिकैत को किसान आंदोलन में साथ देने के लिए उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी और आंदोलन में शामिल हो गए, उसी समय से वे किसान नेता के तौर पर किसानों की आवाज को उठाते रहते हैं. साल 2017 में राकेश टिकैत ने एक बार मुजफ्फरनगर से निर्दलीय चुनाव लड़ा लेकिन वे बुरी तरह हार गए. उन्होंने राष्ट्रीय लोकदल के टिकट से साल 2014 में भी चुनाव लड़ा लेकिन इसमें भी सफलता उनके हाथ नहीं लगी. भले ही वह किसानों के बड़े नेता है लेकिन आज भी प्रत्यक्ष राजनीति से दूर हैं

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