मेरे पति पीरियड्स के दौरान सेक्स करने की जिद करते हैं, मैं क्या करूं?

सवाल

मेरी उम्र 27 वर्ष है. अभी नईनई शादी हुई है. पति मेरा पूरा ध्यान रखते हैं. पीरियड्स के दौरान भी सैक्स करने की जिद करते हैं लेकिन मैं उस दौरान सैक्स करते समय सहज नहीं रहती. संक्रमण का डर लगा रहता है, कहीं गर्भ न ठहर जाए यह भी चिंता रहती है. कृपया मेरी इस आशंका का समाधान करें.

जवाब

सैक्स विशेषज्ञों का कहना है कि पीरियड्स के दौरान सैक्स करने में कोई समस्या नहीं है.
पीरियड्स सैक्स में किसी प्रकार के एसटीडी और संक्रमण से बचने के लिए कंडोम का इस्तेमाल करना चाहिए. जहां तक गर्भ ठहरने की बात है तो इस दौरान यौन संबंध बनाने से गर्भवती हो सकती हैं. दरअसल एक महिला के शरीर में शुक्राणु 5 दिनों तक जीवित रह सकता है और पीरियड्स के दौरान निकलने वाला खून इस में बाधा नहीं बनता. इस दौरान गर्भधारण की आशंका कम हो सकती है, मगर शून्य नहीं. इसलिए पीरियड्स के दौरान सुरक्षित सैक्स कीजिए. पति से इस बारे में खुल कर बात करें. आप की असहजता बात करने से दूर हो सकती है.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 
सब्जेक्ट में लिखे…  सरस सलिल- व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

पति-पत्नी: इस बेवफाई की वजह क्या है

तनाव ने हमारी रोजमर्रा की जिंदगी में अपना स्थायी बसेरा बना लिया है और इस के चलते आज दुनिया के दूसरे तमाम देशों के साथसाथ भारत में भी औरतें और लड़कियां अपनी सैक्स जिंदगी को ले कर चिंता से घिर चुकी हैं.

दरअसल, आज एक तरफ देश अपनी आजादी के 75 सालों का महोत्सव मना रहा है, वहीं दूसरी तरफ ‘सैक्स’ शब्द का उच्चारण करना ही हमारे पारंपरिक समाज में गलत माना जाता रहा है.

उर्फी जावेद और पूनम पांडेय के बदनदिखाऊ कपड़ों पर बेहूदा बातें कही जाती हैं, पर जब उन के फोटो सोशल मीडिया पर आते हैं, तो लोग अकेले में अपनी आंखें सेंकने से बाज नहीं आते हैं. पर मजाल है कि कोई लड़की सैक्स पर अपने मन की बात कह सके कि उसे अपने पार्टनर से आखिर चाहिए क्या?

गांवदेहात की औरतों की हालत तो और भी ज्यादा बुरी है. वहां तो सैक्स का मतलब है मर्द की मनमानी और औरत की चुप्पी. सिसकी लेना भी सजा की तरह है, तभी तो आज के दौर में औरतें अपनी सैक्स इमेज से ले कर सैक्स के जोश, चरम संतुष्टि तक को ले कर समस्याग्रस्त रहने लगी हैं. इतनी ज्यादा कि वे डिप्रैशन में चली जाती हैं.

यह बड़े दुख और हैरत की बात है कि आजादी के इतने साल बाद भी भारत जैसे परंपरागत देश में सैक्स या औरत और मर्द के नाजुक अंगों संबंधी किसी भी मुद्दे पर बातचीत करने की तकरीबन मनाही है. औरतों की तो जबान ही सिल दी जाती है. तो क्या यह गूंगापन औरतों को बेवफाई करने पर मजबूर कर सकता है?

बिलकुल कर सकता है. आज ऐसी खबरों से मीडिया अटा पड़ा है कि 2 बच्चों की मां अपने प्रेमी के संग भागी. पति के काम पर जाते ही पत्नी अपने प्रेमी को घर पर बुला लेती थी. बहुत सी बार तो इस तरह के मामले खुलने पर मर्डर जैसा खतरनाक अपराध भी हो जाता है.

पहली नजर में ऐसा लगता है कि हमारा समाज एक ऐसा समाज है, जहां नौजवान यह सोचसोच कर बड़े होते हैं कि सैक्स करना एक ऐसा काम है, जो सिर्फ शादीशुदा जोड़ों की जिंदगी का हिस्सा है और शादी के बाद किसी पराए से नजदीकियों को हमारे समाज में अच्छा नहीं समझा जाता है, लेकिन आप को यह जान कर हैरानी होगी कि बेवफाई के मामले में शादीशुदा भारतीय औरतें देश में मर्दों के मुकाबले आगे हैं. यह खुलासा एक विदेशी ऐक्स्ट्रा मैरिटल डेटिंग एप ‘ग्लीडन’ द्वारा कराए गए एक सर्वे से हुआ है.

इस सर्वे के मुताबिक, 53 फीसदी भारतीय पत्नियों ने शादी के बाद पराए मर्दों से सैक्स संबंधों में शामिल होने की बात मानी है, जबकि ऐसे मर्दों का आंकड़ा 43 फीसदी पाया गया है.

इस सर्वे से यह भी खुलासा हुआ कि भारतीय औरतें शादी के बाद पराए मर्द से संबंधों को ले कर, खासतौर से जब इस में रोमांस भी घुला हो, तो काफी खुली सोच रखती हैं.

इस सर्वे में दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, बैंगलुरु, हैदराबाद, कोलकाता, पुणे और अहमदाबाद जैसे बड़े भारतीय शहरों की 25 से 50 साल की उम्र की शादीशुदा औरतों को शामिल किया गया था.

इस सर्वे से यह भी पता चला है कि भारत में तकरीबन 50 फीसदी शादीशुदा लोगों ने अपने जीवनसाथी के अलावा किसी दूसरे के साथ सैक्स संबंध होने की बात स्वीकार की है.

ऐसी औरतें, जो अपने पति के अलावा किसी दूसरे मर्द के साथ नियमित रूप से सैक्स संबंध बना कर रखती हैं, उन मर्दों से आगे हैं, जो शादी के बाद किसी पराई औरत के साथ रिश्ते निभा रहे हैं.

इस सर्वे से सब से हैरान करने वाली जो बात सामने आई है, वह यह कि बहुत से भारतीयों का मानना है कि कोई भी इनसान एक समय में 2 अलगअलग लोगों के प्यार में पड़ सकता है.

भारतीय समाज के इस दिलचस्प पहलू को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है कि यहां 46 फीसदी लोगों का मानना है कि आप जिस इनसान से प्यार करते हैं, उसी को प्यार में धोखा भी दे सकते हैं. शायद यही वजह है कि भारतीय अपने पार्टनर की बेवफाई का राज खुलने पर उसे माफ करने को तैयार हैं.

इस सर्वे से यह भी उजागर हुआ है कि 37 फीसदी लोग अपने पार्टनर को बिना कुछ सोचेसमझे माफ कर देंगे, जबकि 40 फीसदी उस हालत में माफ करने के लिए तैयार हैं, बशर्ते हालात इस गुनाह को हलका बनाने वाले हों. इसी तरह सर्वे की रिपोर्ट से यह भी सामने आया है कि लोग चाहते हैं कि उन के पार्टनर भी उन्हें भेद खुलने पर माफ कर दें.

इस सर्वे के मुताबिक, ऐसी शादीशुदा औरतों का फीसदी 40 तक है, जो किसी ऐसे मर्द के साथ नियमित रूप से सैक्स संबंध रखती हैं, जो उन का पति नहीं है, जबकि केवल 26 फीसदी मर्द ही किसी दूसरी औरत के साथ शारीरिक स्तर पर नियमित संबंध रखते हैं.

भारत में तकरीबन 50 फीसदी शादीशुदा मर्दों ने यह स्वीकार किया है कि वे अपने जीवनसाथी के अलावा किसी दूसरे के साथ भी सैक्स संबंध रख चुके हैं, जबकि 10 में से 5 मर्द कैजुअल सैक्स या वन नाइट स्टैंड में शामिल रहे हैं.

भारत में औरतों को रोजमर्रा की जिंदगी में काफी बेइज्जती और शर्मिंदगी उठानी पड़ती है, फिर वह चाहे सड़कोंचौराहों की बात हो या बिस्तर पर, इसी के चलते वे अकसर अपनी सैक्सुएलिटी को ले कर खुलापन नहीं रख पातीं. लेकिन अब औनलाइन दुनिया में सक्रियता बढ़ने से वे भी खुल रही हैं और खुद को जाहिर भी कर पा रही हैं.

इस सर्वे में यह तो बता दिया गया है कि शादीशुदा औरतें भी पराए मर्द के साथ संबंध बनाने में कोई गुरेज नहीं करती हैं, पर इस बेवफाई की वजह क्या है? क्या पति की उम्र का फर्क इस बेवफाई को बढ़ावा देता है?

आज से कुछ साल पहले तक ऐसा खूब होता था, जब शादी के समय लड़के और लड़की की उम्र में काफी फर्क हो जाता था. लड़की 22 की, तो लड़का

32 का. कुछ साल तक तो ऐसी शादी में कोई अड़चन नहीं आती थी, पर बाद में लड़की का किसी हमउम्र लड़के की तरफ खिंचाव होना नौर्मल बात होती थी.

पैसा भी इस बेवफाई में काफी अहम रोल निभाता है. बहुत सी औरतों को पैसे की इतनी ज्यादा चाहत हो जाती है कि उन्हें अपने पति की कमाई कम लगने लगती है. फिर वे कोई ऐसा पार्टनर तलाश करने लगती हैं, जो उन के खर्चे बिना किसी बहस के उठा सके और यह काम तो कोई आशिक ही कर सकता है.

पतिपत्नी की कलह भी औरत को पति से बेवफाई करने पर मजबूर कर सकता है. पति कितना भी रईस क्यों न हो, पर अगर वह औरत को अपने पैर की जूती समझ कर उस पर जुल्म करे, तो औरत का किसी पराए मर्द की तरफ जाना बहुत आसान हो जाता है. वह खुद पर हुए जुल्म का बदला किसी दूसरे मर्द के साथ हमबिस्तर हो कर देने में अपनी जीत समझती है.

बहुत से मामलों में पति की बेवफाई भी औरत को वैसा ही करने पर मजबूर कर देती है. जब पति उस के होते हुए किसी दूसरी पर बेसब्रे सांड़ की तरह लाइन मारे तो वह भी खूंटा तुड़ाई गाय बन जाती है.

इस के अलावा अगर पति अपनी पत्नी से दूर रहता है या औरत की उस की ससुराल में बेइज्जती होती है या फिर उन के विचार सिरे से नहीं मिलते हैं,

तब भी औरत बेवफाई की राह पर चल पड़ती है. इतना ही नहीं, जब से बाजार में गर्भनिरोधक सामान की भरमार हुई है, तब से औरतों को नाजायज रिश्ता बनाने में आसानी हुई है.

लेकिन ऐसी बातें जब तक छिपी रहती हैं, तब तक तो मजा देती हैं पर खुलने पर जिंदगी को जहन्नुम बनाने में देर नहीं लगाती हैं.

दर्द कवि फुंदीलालजी का: फिर न मिल सका अवार्ड

सुबह के 7 बजे होंगे जब हम अपनी सैर खत्म कर के घर को लौट रहे थे. तभी लुंगीबनियान में दूध की थैलियां घर ले जाते कवि श्री फुंदीलालजी से मुलाकात हो गई. वैसे तो उन के चेहरे पर नूर कभीकभार ही झलकता था यानी कि तब, जब किसी पत्रपत्रिका में उन की कोई रचना छपती थी, लेकिन आज उन का चेहरा कुछ ज्यादा ही बेनूर दिख रहा था.

हमें याद आया कि पिछले साल भी राज्य सरकार द्वारा घोषित साहित्य पुरस्कारों की लिस्ट में उन का नाम नदारद था, तब भी उन के चेहरे पर कई दिनों तक मुर्दनी छाई हुई थी.

वैसे, पिछले साल ही क्या, साल दर साल उन का नाम पुरस्कारों की लिस्ट से नदारद ही रहता है, हालांकि अपने साले की प्रिंटिंग प्रैस से उन के आधा दर्जन कविता संग्रह आ चुके हैं.

नमस्ते करने के साथ हम ने पूछा, ‘‘आप की तबीयत तो ठीक है न? चेहरा एकदम उदास लग रहा है.’’
‘‘ठीक है, लेकिन पता नहीं क्यों एसिडिटी बहुत हो रही है. पेट में जलन है कल से. थोक में दवा खा चुके हैं, लेकिन ठीक होने का नाम ही नहीं ले रही है,’’ वे बोले.

फिर अचानक उन्होंने हम से पूछा, ‘‘पता चला आप को कि अपनी गली के कवि फलांजी को ‘साहित्यश्री पुरस्कार’ मिला है?’’

‘‘हां, अच्छा लिखते हैं वे, फिर पिछले साल उन का उपन्यास काफी चर्चा में भी रहा था,’’ हम ने कहना चाहा.

‘‘अरे, काहे का अच्छा लिखता है…’’ इस बार उन्होंने उस साहित्यकार के नाम के साथ कई असंसदीय शब्दों का इस्तेमाल करते हुए कहा, ‘‘जानते भी हैं कि कुछ संपादकों से उस की दोस्तीयारी है और कुछेक से रिश्तेदारी है. सो, उस ने अपने उपन्यास की तारीफें छपवा ली हैं.

‘‘सुना तो यह भी है कि पुरस्कार समिति में उस के साले का भी दखल है, सो पुरस्कार तो उसे मिलना ही था.’’

‘‘लेकिन पिछले साल का पड़ोसी प्रदेश का पुरस्कार भी तो…’’ हम ने उन्हें समझाना चाहा.
‘‘वही तो, जुगाड़ लगाना कोई उस से सीखे,’’ फुंदीलालजी कुढ़ते हुए बोले.

‘‘आज बंगलादेश से क्रिकेट मैच है अपना,’’ हम ने मुद्दा बदलने की गरज से कहा, मगर उन का ‘जिया जले… जान जले… पुरस्कारों की लिस्ट तले’ खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा था, सो वे बोले, ‘‘आज अपने प्रदेश के पुरस्कार भी घोषित हुए हैं और उस के कविता संग्रह को भी…’’ वे फिर कुछ असंसदीय शब्द हमारे कान में उड़ेलते हुए बोले.

‘‘होता है फुंदीलालजी, फिर अभी आप ने बताया तो कि पुरस्कार समिति में उन के साले का दखल है,’’ हम ने उन्हें फौरी राहत पहुंचाने की गरज से कहा, ताकि उन की एसिडिटी कुछ कम हो.

‘‘पुरस्कार समिति के शर्माजी और दुबेजी से तो हमारी भी अच्छी बनती है. अभी पिछले महीने ही हम किसी काम से उन की कालोनियों में गए थे, तब अपनी किताब दोनों को दे आए थे, मगर हमें क्या पता था कि किताब के साथ…’’ उन्होंने बात आधी छोड़ दी.

‘‘सीने में जलन, आंखों में तूफान सा क्यों है…’ यह गजल शायद उन्हीं की तरह किसी पुरस्कार वंचित कवि के लिए लिखी गई होगी,’ हमारे दिमाग में अचानक यह खयाल आया.

हम समझ नहीं पा रहे थे कि पुरस्कार से वंचित किसी कवि को दिलासा कैसे दी जाए, सो हम ने पिछले दिनों उन के द्वारा सोशल मीडिया पर हमें भेजी किसी अनियतकालीन पत्रिका में छपी उन की रचना की बात छेड़ी और कहा, ‘‘बढि़या रचना थी आप की.’’

‘‘आप जैसे कदरदान हमारी रचनाओं की तारीफ करते हैं, हमारे लिए तो यही राज्य पुरस्कार और यही ज्ञानपीठ पुरस्कार है…’’ वे कुछकुछ राहत महसूस करते हुए बोले, ‘‘बहुत दिनों बाद मिले आप, वैसे किसी अपने से बात कर लो तो बहुत अच्छा लगता है.’’

‘‘जी, वह तो है,’’ हमें अच्छा लगा कि हमारे शाब्दिक मरहम से वे अपने दुख से उबर रहे थे.
‘‘लेकिन इतना अच्छा लिखने के बाद भी पुरस्कार दूसरे ले जाते हैं, तब तकलीफ तो होती ही है न,’’ वे फिर पुरस्कार न मिलने के दुख के सागर में गोता खाने लगे थे.

तभी हमारी कालोनी के गुप्ताजी और श्रीवास्तवजी वहां से गुजरे, जिन्हें फुंदीलालजी ने रोक लिया और कहा, ‘‘आप को पता चला कि अपनी गली के उस फलां को ‘साहित्यश्री पुरस्कार’ मिला है…’’

फुंदीलालजी को रोने के लिए नए कंधे मिल गए थे, सो हम ने मन ही मन गुप्ताजी और श्रीवास्तवजी से कहा कि ‘अब तुम्हारे हवाले पुरस्कार वंचित कवि साथियो’… और फिर हम वहां से खिसक लिए.

 

विकास और विनाश : कौन था एड्स का मरीज

विकास था विवेक और विचार का एक प्रकाश पुंज. जैसे उस के विचार, वैसे ही उस के संस्कार. जब संस्कार वैसे हों, तो उस के बरताव में झलकना लाजिमी है.

विकास की दिनचर्या नपीतुली थी. भगवत प्रेमी, शुद्ध शाकाहार. रोजाना सुबह के जरूरी काम पूरे करने के बाद मंदिर में पूजाअर्चना करना.

विकास का मनोयोग उस के मनोभोग से हमेशा ऊपर रहा, इसीलिए संतमहात्माओं के सत्संग और उन के प्रवचन सुन कर उस ने अपने संयुक्त परिवार में एकांत ध्यानयोग को चुन लिया. अपनी शांति के साथसाथ पूरी दुनिया की शांति की कामना करने वाला 7 साल का बालक आज 17 साल का हो गया.

विकास बालिग होने में एक साल दूर था, पर वह अपनी कर्तव्यनिष्ठा के लिए मशहूर था. बाहरी दुनिया से सरोकार के बगैर भीतरी दुनिया में रमा हुआ बालक रोजाना सुबह घर से मंदिर तक की दूरी पैदल ही तय करता. रास्ते में झाड़ियों से जंगल में हलकीफुलकी उठने वाली हलचल भी उस के ध्यान को नहीं भेद पाती.

वह विकास इसलिए था, क्योंकि उस ने अपनी इंद्रियों को वश में कर के ब्रहृचर्य के विकास में सबकुछ लगा दिया था. उस की निगाहें पाक हो गई थीं, विवेक जाग चुका था और मन शांत और स्वच्छ.

पर यह क्या. आज मंदिर जाने के रास्ते मे विकास की नजर चकरा क्यों गई? उस ने रुक कर  झाड़ियों की ओर देखा. एक जोड़ा इश्क में डूबा एकदूसरे का दीदार कर रहा था. उस ने यह घटना अपनी जिंदगी में पहली बार देखी थी.

विकास ने अपनी आंखों को सम झाया, ‘चलो, मुझे उधर नहीं देखना चाहिए. यह मेरी नजरों का वहम भी हो सकता है,’ ऐसा विचार कर के उस ने अपने कदम मंदिर की ओर बढ़ा दिए.

अगले दिन सुबह जब विकास घर से मंदिर की ओर चला, तो बरबस उसी जगह पर  झाड़ियों के बीच जोड़े को फुसफुसाते हुए देखा. इस बार वह अपनी नजर को न समझा पाया, क्योंकि उस पर उस की बुद्धि हावी हो चुकी थी. उस ने खुद से कहा, ‘जरा, चल कर देखते हैं.’

विकास  झाड़ी के थोड़ा पास गया, तो देखा कि एक लड़का एक लड़की के साथ जिस्मानी संबंध बना रहा था.

विकास ने दोबारा खुद को सम झाया, ‘यह क्या देख रहा हूं?’ उस का मन चुप था, पर बुद्धि बोल रही थी, ‘यही तो दुनिया है. कलियुग का प्यार है, जिस में मजा है,’ उस की बुद्धि ने विचार को कुरेदा. उस ने जैसेतैसे अपने पैरों को मंदिर की ओर बढ़ाया.

जब विकास घर लौटा, तो उस का मन चंचल हो उठा. उस की बुद्धि ने उस के विचार को आह में बदल दिया.  झाडि़यों के सीन उस की आंखों के आगे आने लगे. उस की सारी इंद्रियां ढीली पड़ने लगीं. ब्रह्मचर्य बस में न रहा.

विकास सोचने लगा, ‘क्या है इस दुनिया में? मौजमस्ती ही तो है. वह भी तो इनसान था और मैं भी तो इनसान हूं, तो यह बंधन कैसा?’

अगले दिन विकास पक्का मन कर के मंदिर की ओर चला. इस बार उस ने खुद को रोका ही नहीं और उस ओर मोड़ लिया, जहां पिछले दिन वह जोड़ा जिस्मानी संबंध बनाने में रमा था.

वह जोड़ा आज भी वहीं था. एकाएक अपने सामने विकास को देख कर दोनों अलगअलग दिशा की ओर भागे.

तभी विकास ने दौड़ कर उस लड़की का हाथ पकड़ लिया और बोला, ‘‘यह जो तुम उस लड़के के साथ मस्ती कर रही हो, क्या मेरे साथ करोगी?’’

लड़की ने हंस कर जवाब दिया, ‘‘क्यों नहीं…’’

इस के बाद वह लड़की विकास के साथ जिस्मानी संबंध बनाने लगी. विकास को इस में काफी मजा आने लगा. अब वह हर रोज घर से मंदिर की ओर निकलता, पर मंदिर न जा कर झाड़ियों में उस लड़की के साथ जिस्मानी संबंध बनाता.

लड़की पेशे से धंधेवाली थी. उसे रोज पैसे चाहिए थे और विकास को मजा.

विकास ने उस लड़की के चक्कर में घर का काफी सारा पैसा बरबाद कर दिया. संयुक्त परिवार के दूसरे सदस्यों को यह बात पसंद नहीं आई, तो उन्होंने गुस्से में विकास के मातापिता को परिवार से अलग कर दिया और मातापिता ने विकास को अपने से.

आज विकास का सबकुछ लुट चुका था. अब वह सड़क पर आ चुका था. वह लड़की तो कई लोगों से जिस्मानी संबंध बनाने के चलते एड्स की बीमारी से मर गई और विकास अब एड्स का मरीज बन कर तड़प रहा है. लोग अब उसे विकास के नाम से नहीं, बल्कि विनाश के नाम से पुकारते हैं.

बाइक, बस और मेट्रो में खुल्लमखुल्ला चोंच लड़ाना पड़ा भारी, कपलपुलिस आमनेसामने

हमारी तेजतर्रार और हमेशा जगी रहने वाली दुनिया में, एक चीज ऐसी है जो कभी आराम नहीं करती, सोशल मीडिया. यह सोशल मीडिया का जादू ही है कि वह आप को दुनिया की हर जानकारी से ले कर, चुटकी में सब कुछ परोस देता है. लेकिन, जहां यह प्लेटफौर्म ज्ञान का भंडार है, वहीं यह प्राइवेट मोमेंट्स को कैप्चर, टेलीकास्ट और वायरल भी कर सकता है.

 

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अब आप सोच रहे होंगे कि ये कौन सी ‘सोशल हरकतें’ हैं, तो भई, ये हरकतें हैं पब्लिक प्लेस पर कपल्स के बीच होने वाली ‘खुल्लमखुल्ला आशिकी’. भारत के यूथ की बात करें तो ये देश का सब की प्रौब्लम हैं ही, साथ ही ‘प्राइवेट मोमेंट्स को पब्लिक प्लेस पर लाना’ इन की नई हौबी बन चुकी है.

जहां कभी पार्क और गार्डन ही प्रेमी जोड़ियों के मिलने का ठिकाना हुआ करते थे, वहीं अब मेट्रो, बस, औटो और ओला ऊबर इन की ‘रोमांटिक प्लेस’ बन गई हैं. आप सोच रहे होंगे कि “अरे, इस में नया क्या है?” लेकिन जनाब, ये प्रेम की पेंगें अब सोशल मीडिया की सुर्ख़ियों का नया सितारा बन चुकी हैं.

मेट्रो में मस्ती, पुलिस की गस्ती

दिल्ली मेट्रो, जहां एक ओर लोगों के लिए सस्ती और सुविधाजनक सवारी है, वहीं कुछ कपल्स के लिए ये ‘रोमांस का रूम’ बन चुकी है. सोशल मीडिया पर कहा जा रहा है कि दिल्ली की मेट्रो ‘ओयो रूम’ बन चुकी है. Society

हाल ही में वायरल हुए एक वीडियो में देखा गया कि एक कपल मेट्रो की सीट पर बैठा इतना मगन था कि आसपास बैठे लोगों का भी ख्याल नहीं किया. पहले हाथ पकड़ना, फिर गले लगा, और आखिर में पब्लिक के सामने ही किस किया. भई मामला यहीं नहीं रुका, आगे वो हुआ जिसे सेंसर कहा जाता है– ऐसा लगा मानो मेट्रो के कोच का टिकट नहीं, बल्कि प्यार का परमिट लिया हो.

जब बीच सड़क बनी लव लेन

सोशल मीडिया पर फेमस होने की होड़ में लोग न जाने क्याक्या कर गुजरते हैं. बाइक पर स्टंट करना, हाईवे पर चलती गाड़ियों में रोमांस करना, यह सब तो पुरानी बात हो गई. अब तो लोग बीच सड़क पर भी ‘लव स्टोरी’ शूट करने लगे हैं. हाल ही में एक वीडियो वायरल हुआ जिस में एक कपल बाइक पर जा रहा था और पीछे बैठी लड़की ‘राइड’ से ज़्यादा ‘राइडर’ का आनंद ले रही थी. यह आनंद इतना बढ़ गया कि ड्राइवर साहब ने बीच सड़क पर बाइक चलातेचलाते अपनी मोहतरमा को किस कर डाला. किस भी कतई जानलेवा. अगर बाइक का हैंडल इधरउधर होता तो किस जानलेवा होती ही.

पार्क में प्यार, पब्लिक में तकरार

सोशल मीडिया ट्रेंड्स की बात करें, तो यह किसी जंगल की आग से कम नहीं. कब, कौन सी वीडियो वायरल हो जाए, कोई नहीं जानता. इसी कड़ी में एक वीडियो तेजी से वायरल हो रही है, जिस में एक कपल पार्क की हरी घास पर प्यार की बारिश कर रहा था. खुलेआम एकदूसरे को किस करते और लिपटालिपटी करते ये प्रेमी जोड़ा न जाने क्या सोच रहा था, लेकिन वीडियो वायरल होते ही लोगों में गुस्सा भड़क गया. और क्यों न हो, आखिरकार ये पब्लिक प्लेस जो है, कोई बेडरूम तो नहीं.

बस में प्यार की बेबसी

पार्क, मेट्रो, और बाइक के बाद अब बारी आती है बसों की. सार्वजनिक स्थलों पर प्यार का प्रदर्शन अब बसों तक भी पहुंच चुका है. हाल ही में वायरल हुए एक वीडियो में एक कपल बस की पिछली सीट पर ऐसे लिपटा हुआ था, मानो वह उन की निजी जगह हो. लोग बैठेबैठे देख रहे थे, लेकिन इन कपल्स को इन सब से कोई फर्क नहीं पड़ा. सोशल मीडिया पर यह वीडियो वायरल होने के बाद पुलिस को भी हरकत में आना पड़ा.

पब्लिक में पिंग, प्राइवेट में पुलिस की रिंग

बात सिर्फ मेट्रो, बस, या बाइक तक सीमित नहीं है. यह ‘प्राइवेट पब्लिक रोमांस’ आजकल की युवा पीढ़ी का नया ‘ट्रेंड’ बन गया है. लेकिन हकीकत यह है कि यह प्यार का प्रदर्शन अकसर भारी पड़ता है. आखिरकार, सार्वजनिक स्थलों पर इस तरह की हरकतें न सिर्फ अश्लीलता को बढ़ावा देती हैं, बल्कि यह कानूनी रूप से भी अपराध है. चाहे दिल्ली की मेट्रो हो, मुंबई की लोकल, या फिर किसी शहर का पार्क – ‘रोमांस’ करने के लिए सही जगह का चुनाव करना न सिर्फ आप के रिश्ते बल्कि समाज के लिए भी बेहतर है.

सैक्स में युवती भी बन जाए कभी युवक

सैक्स की इच्छा युवक व युवती दोनों की होती है. पर देखा यह गया है कि युवक ही इस की शुरूआत करते हैं पर यदि युवती सैक्स की शुरुआत करे तो युवक को भरपूर आनंद मिलता है लेकिन समस्या यह है कि सैक्स की पहल करे कौन? इस बारे में किए गए एक शोध में पता चला है कि तकरीबन 80 प्रतिशत युवक सैक्स की शुरुआत और इच्छा जाहिर करते हैं. 10 प्रतिशत ऐसे युवक भी हैं जो सैक्स की इच्छा होने पर भी बिस्तर पर पहुंच कर युवती की इच्छाअनिच्छा जाने उस पर टूट पड़ते हैं. कई इस दुविधा में रहते हैं कि पहल करें या न करें.

सैक्स की इच्छा

सैक्स युवकयुवती का सब से निजी मामला है. दोनों आपसी सहमति से इस का मजा लेते हैं. इस मामले में देखा गया है कि सैक्स की पहल युवक ही करते हैं. इस का मतलब यह नहीं कि युवतियों में सैक्स की इच्छा नहीं होती या वे सैक्स संबंध के लिए उत्सुक नहीं रहतीं.

सच तो यह है कि हमारे देश (मुसलिम देशों में भी) में युवतियों के दिमाग में बचपन से ही यह बात भर दी जाती है कि सैक्स अच्छी बात नहीं होती. इस से बचना चाहिए. अपने प्रेमी के सामने भी कभी सैक्स की इच्छा जाहिर नहीं करनी चाहिए. न ही खुद इस की पहल करनी चाहिए. यह बात उन के दिमाग में इस कदर बैठ जाती है कि प्रेम के बाद वे अपने प्रेमी से इस बारे में बात नहीं कर पाती और न ही खुल कर इच्छा जाहिर कर पाती हैं.

एक महत्त्वपूर्ण बात और है, सबकुछ भूल कर साहस के साथ यदि कोई युवती अपने प्रेमी से सैक्स की पहल कर दे तो उस के लिए आफत आ सकती है, क्योंकि उस का प्रेमी उसे खाईखेली समझ सकता है. इसी भय से सैक्स की इच्छा होते हुए भी युवती इस की पहल नहीं करती. यह बात सच है कि युवकों में युवतियों के सैक्स की पहल को ले कर गलत धारणा है कि जो युवती सैक्स की पहल करती है वह खेलीखाई होती है. देश में आज भी सैक्स को बुराई ही समझा जाता है इसलिए भी युवतियां अपनी ओर से पहल करने से कतराती हैं जबकि विदेशों की युवतियां बराबर शरीक होती हैं.

कनाडा के एक मनोचिकित्सक डा. भोजान ने हाल ही में सैक्स की पहल को ले कर औनलाइन सर्वे करवाया, जिस में यह पता करना था कि सैक्स को ले कर युवक और युवतियों का नजरिया क्या है. अधिकतर युवतियां सैक्स को भरपूर ऐंजौय करना तो चाहती हैं, पर सैक्स की पहल उन के ऐंजौय में आड़े आती है. इच्छा होने पर भी वे पहल नहीं कर पातीं और अनिच्छा होने पर मना भी नहीं कर पाती हैं. डा. भोजान का कहना है, युवतियों को सैक्सुअली ऐक्टिव बनाने के लिए उन में इमोशंस की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है. सैक्स का आनंद वे तभी उठा पाती हैं.

मजेदार बात यह है कि सैक्स की पहल को ले कर युवकों का नजरिया काफी बदला है. अब युवक भी चाहता है कि उस की पार्टनर सैक्स के बारे में उस से खुल कर बात करे. उस से सैक्स की इच्छा जाहिर करे.

यह जान कर अधिकतर युवतियों को विश्वास नहीं होगा कि औनलाइन सर्वे में पता चला है कि युवक अपने मन में युवती की तरफ से पहल की चाह संजोए रहते हैं, लेकिन उन की चाह बहुत कम ही पूरी हो पाती है. युवतियों द्वारा पहल न करने की वजह से मजबूरन युवकों को अपनी तरफ से पहल करनी पड़ती है.

युवती करे पहल

जब सैक्स की चाह युवती और युवक दोनों में समान होती है तो ऐसे में सिर्फ युवक ही सैक्स की पहल क्यों करें? युवतियों को भी कभीकभी सैक्स की पहल करनी चाहिए ताकि वे सैक्स को अपनी तरह से ऐंजौय कर सकें.

सर्वे में यह भी पता चला है कि युवतियों को ले कर उन की सोच बदल रही है. युवक भी यह बात समझने लगे हैं कि सैक्स की इच्छा सिर्फ उन में ही नहीं युवतियों में भी होती है. ऐसे में युवती अपने पति से सैक्स की पहल करती है तो इस में बुराई क्या है? सर्वे में अनेक युवकों का कहना था कि अपनी पार्टनर की ओर से की गई पहल उन की रगरग में जबरदस्त जोश भर देती है.

डा. भोजान कहते हैं कि युवक के जोश का युवती के सैक्सुअल सैटिस्फैक्शन से सीधा संबंध होता है. मतलब अपनी ओर से की गई पहल का फायदा उन्हें सीधे तौर पर मिलता है.

युवतियों को अब जान लेना चाहिए कि जमाना बदल गया है. दुनिया भर के युवकों की सोच भी बदल रही है. अपनी झिझक और डर को दूर कर बेझिझक हो कर आप भी कभीकभी युवक बन जाएं और सैक्स ऐंजौय करें.

यहां कुछ तरीके बताए जा रहे हैं, जिन्हें अपना कर आप पार्टनर को सैक्स के लिए उत्साहित कर सकती हैं.

आत्मविश्वास लाएं :

सब से पहले अपने अंदर आत्मविश्वास लाएं, ताकि बेझिझक सैक्स की पहल कर सकें.

मूड बनाएं :

अपने पार्टनर के मूड को देखें और उस के साथ प्यार भरी बातें करें. आप की बातें ऐसी होनी चाहिए कि इस में तैरते हुए सैक्स में डूब जाएं. लव मेकिंग के दौरान खुल कर सैक्स की बातें करें. यदि आप शर्मीली हैं तो डबल मीनिंग वाले नौटी जोक्स उन पलों का मजा बढ़ा देंगे.

तारीफ करें :

आज की रात आप खुद ही लगाम थामिए. सब से पहले उन की तारीफ की झड़ी लगा दें. फिर कान में फुसफुसा कर  अचानक किस कर उन्हें हैरान करें. कान में की गई फुसफुसाहट उन की रगों में खून का लावा भर देगी. जब हर कहीं ऐक्सपैरिमैंट की बहार चल रही है तब सैक्स लाइफ में इसे क्यों न आजमाएं.

छेड़छाड़ करें :

लव मेकिंग के लिए छेड़छाड़ को मामूली क्रिया न समझें. अपनी ओर से पहल करते हुए पार्टनर के साथ छेड़छाड़ करें. इस दौरान कमरे की लाइट धीमी कर दें. साथ में हलका रोमांटिक हौट म्यूजिक बजा दें. कमरे की धीमी लाइट में आंखों की पुतलियां फैल जाती हैं, जिस से रोमांस हार्मोंस शरीर में तेजी से बढ़ने लगता है. साथ में हौट म्यूजिक. इस पल के लिए पूरी रात भी आप के लिए कम पड़ेगी.

आकर्षक लगें :

सैक्स की इच्छा अपने पार्टनर से जाहिर करनी है तो अट्रैक्टिव व सैक्सी मेकअप करें. फिर देखें बैडरूम में अपनी बोल्ड ब्यूटी को देख कर उन्हें आज की रात का प्लान समझते देर नहीं लगेगी.

माहौल बनाएं :

अपने आसपास का माहौल खुशबूदार व रोमांटिक बनाएं. इस के लिए बेहद हौट म्यूजिक बजाएं. रोमांटिक सौंग गुनगुनाएं. तेज परफ्यूम का छिड़काव करें. ऐेसे माहौल में उन के अंदर आग भड़काने में देर नहीं लगेगी. आप के शरीर की भीनीभीनी खुशबू और गरम सांसें उन को बेचैन करने के लिए काफी हैं. क्यों न उन की पसंद की खुशबू का इस्तेमाल कर उन्हें कहर ढाने के लिए मजबूर कर दें.

खुलापन लाएं :

अपने पार्टनर पर खुल कर प्यार लुटाएं. किस करें, गले लगें, बांहों में जकड़ लें. आहें या सिसकियां भरें, ब्लाउज या ब्रा के बटन लगाने या खोलने के बहाने उन्हें अपने पास बुलाएं, टौवेल में उन के सामने हाजिर हो जाएं. आप के खुलेपन को देख कर आप की भावनाओं को वे बड़ी आसानी से समझ जाएंगे. मूड न होने पर भी उन का मूड बन जाएगा.

सैक्सी लौंजरी :

लौंजरी, नाइटी या अंडरगारमैंट की खूबी को ऐसे मौके पर इस्तेमाल करें. इन्हें खरीदते वक्त खासकर इस के फैब्रिक पर ध्यान दें. महीन, मुलायम और फिसलन वाले फैब्रिक हो, जिन पर हाथ फेरते ही उन के हाथ खुदबखुद फिसलने लगेंगे. इस के आकार और रंग का भी ध्यान रखें. यह आप की नहीं उन की पसंद की हो.

हौलेहौले :

यदि आप रात को कुछ खास बनाना चाहती हैं तो देर न करें. उन के बैडरूम में आते ही उन के नजदीक जा कर प्यार जताएं. एकएक कर उन के कपड़े उतारना शुरू करें. आप का बदला रूप देख कर वे ऐक्साइट हो जाएंगे. उन्हें हौट होने में देर नहीं लगेगी. यह उन्हें शारीरिक रूप से ही नहीं मानसिक रूप से भी उत्तेजित करता है.

पोर्न ट्रंप :

अगर आप सचमुच में सैक्स के क्लाइमैक्स को ऐंजौय करना चाहती हैं तो पोर्न को ट्रंप कार्ड की तरह इस्तेमाल करें. उन के सामने पोर्न फिल्म, साइट, मैगजीन या अन्य सामग्री ले कर बैठ जाएं. फिर देखें उन में कैसे जोश भरता है.

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मेरे पति मेरी मौसेरी बहन के साथ काफी खुल कर बातें करने लगे हैं, मैं क्या करूं?

सवाल
मेरे पति काफी गंभीर और स्वयं में सीमित रहने वाले इंसान हैं. वे मेरे और अपनी बहन के सिवा अन्य महिला या लड़की से बात नहीं करते. मगर कुछ दिनों से देख रही हूं कि वे मेरी मौसेरी बहन के साथ काफी खुल कर बातें करने लगे हैं. उस का नाम सुनते ही उन की आंखों में चमक आ जाती है. मेरी यह बहन 10 दिनों के लिए मेरे घर आई थी. अब वह मोबाइल पर इन के संपर्क में रहती है. मैं क्या करूं? अपने रिश्ते के प्रति असुरक्षा महसूस हो रही है.

जवाब
सब से पहले तो आप मन से यह फितूर निकाल दें कि आप के पति का अपनी मौसेरी बहन से अफेयर चल रहा है. संभव है उन दोनों का स्वभाव एकसा हो या दोनों के बीच बातचीत का कोई कौमन विषय हो.

आप का अपने पति के साथ रिश्ता कैसा है? यदि आप दोनों एकदूसरे को समझते हैं और प्यार करते हैं तो फिर रिश्तों में थोड़ी ढील छोड़ी जा सकती है. पति आप के सिवा किसी से बात करते हैं, सिर्फ इस बात पर चिंता करना मुनासिब नहीं. अपने पति का दिल प्यारप्यार में टटोलिए और समझने की कोशिश कीजिए कि उन के दिल में उस लड़की का स्थान क्या है.

यदि वाकई उन दोनों के बीच कोई रिश्ता पनप रहा है तो उस पर विराम लगाने का प्रयास करना होगा. आप को अपनी मौसेरी बहन से बात करनी होगी. वह न माने तो मौसामौसी से बात कर उस की जल्द से जल्द शादी करवा दें ताकि वह अपनी जिंदगी में व्यस्त हो जाए. इधर, अपने पति के साथ आप अपने रिश्ते को मजबूत बनाने का प्रयास करें.

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जब आपका प्रेमी सहेली के साथ पकड़ा जाए

आशा और सुरेश का एक साल पहले अफेयर शुरू हुआ था. आशा ने सुरेश के साथ जीनेमरने की जाने कितनी कसमें खाईं, साथ रहने के सपने देखे लेकिन उस के ये सपने तब धराशायी हो गए जब एक दिन वह अपने रूम में कालेज से जल्दी आ गई और दरवाजा खोलते ही अपनी रूममेट और सब से अच्छी सहेली रोमा को अपने ही बौयफ्रैंड सुरेश के साथ हमबिस्तर पाया. यह उस की वही सहेली थी जो इन दोनों के प्यार की गवाह थी और उन के बीच होने वाली हर छोटीबड़ी बात जानती थी. यह सिर्फ आशा की ही कहानी नहीं है बल्कि यह अकसर सुनने में आता है कि एक सहेली ने दूसरी सहेली के बौयफ्रैंड को छीन लिया या अपना बना लिया.

वैसे तो ऐसा करना गलत है, लेकिन अगर ऐसा हो भी गया है तो रोनेधोने से काम नहीं चलेगा, बल्कि समझदारी से काम लेते हुए इस सिचुएशन को हैंडल करने की जरूरत है. आइए, जानें इस सिचुएशन से कैसे निकलें बाहर :

प्रेमी की असलियत सामने आई

 यह तो अच्छी बात है कि प्रेमी की पोल आप के सामने जल्दी ही खुल गई वरना ये सब आप के घर में पता चल जाता तब आप उन की नजरों में भी गिर जातीं. अभी तो बात सहेली के सामने ही है और वह भी कोई आप की सगी नहीं है बल्कि उस ने तो आप की पीठ पीछे वार किया है, आप के प्रेमी को अपना बना कर. अच्छा हुआ, उस के करैक्टर के बारे में पहले ही पता चल गया. जो लड़का आप की सहेली पर बुरी नजर रख सकता है कल वह आप की बहन के साथ क्या करता, आप सोच भी नहीं सकतीं.

सहेली भी धोखेबाज निकली

 वह सहेली चाहे बरसों से आप की कितनी भी अच्छी दोस्त क्यों न रही हो, लेकिन अब आप के साथ उस ने जो किया उस के बाद आप की जिंदगी में उस की कोई जगह नहीं होनी चाहिए. ऐसी दोस्त बनाने से अच्छा है आप अकेली ही रह लें.

जिंदगी का बड़ा सबक सीख लिया

 इस रिलेशनशिप से आप जिंदगी का गहरा सबक लें. अब आप आगे जो भी कदम उठाएंगी सोचसमझ कर ही उठाएंगी. यह गम लंबे समय तक तंग करेगा लेकिन आप को इस से लड़ कर बाहर आने की हिम्मत लानी होगी, इस से आप को जीवन में आए दुखों से लड़ने की ताकत मिलेगी.

पढ़ाई पर ध्यान लगाएं

 इस हादसे से आप अपना एक नुकसान कर चुकी हैं, अब पढ़ाई में पिछड़ कर दूसरा नुकसान न करें. अपने जीवन में सब से ज्यादा अहमियत पढ़ाई को ही दें, इस से अपनी स्टै्रंथ बना लें और ध्यान से पढ़ाई करने में जुट जाएं.

आप बदनाम होने से बच गईं

 प्रेमी की फितरत ही धोखा देने की थी, तभी तो उस ने आप को चीट किया. एक तरह से देखा जाए तो अच्छा ही हुआ. ऐसे दोगले इंसान से आप को जल्दी छुटकारा मिल गया, वह भी अपना कोई नुकसान किए बिना. वह लड़का सही नहीं था. हो सकता है कि वह आगे चल कर आप को ब्लैकमेलिंग आदि के जाल में फंसाने की कोशिश करता. ऐसे लोगों से दूर होना ही बेहतर है.

ध्यान दें

परदे में रहने दो

जी हां, हर बात सहेली को बताई जाए यह जरूरी तो नहीं. अपने और प्रेमी के बीच की बातों को सहेली के साथ डिसकस करना ठीक नहीं. फिर चाहे वह कितनी भी अच्छी क्यों न हो या कितनी ही गहरी मित्र क्यों न हो. आप की बातों और प्रेमी की इतनी तारीफ से हो सकता है कि सहेली का मन पलट जाए और वह प्रेमी की तरफ आकर्षित हो कर उसे फंसाने में लग जाए. ऐसे में प्रेमी के साथसाथ सहेली से भी आप को हाथ धोना पड़ सकता है.

ब्रेकअप का रोना न रोती रहें

 जिन लोगों को इस रिलेशनशिप के बारे में पता था उन्हें हर बार यही बात कह कर न पकाएं. आप दुनिया में पहली नहीं हैं जिस का ब्रेकअप हुआ है, ऐसा कर के आप खुद को हंसी और बेचारगी का पात्र बना लेंगी. यह आप का गम है और इसे अकेले ही भूलना होगा.

विश्वास करना न छोड़ें

माना यह थोड़ा मुश्किल है, लेकिन अगर एक सहेली ने पीठ पीछे धोखा दिया है तो इस का मतलब यह कतई नहीं है कि आप अपनी सारी सहेलियों से मुंह मोड़ कर अकेली हो जाएंगी. अपनी बाकी सहेलियों के टच में रहें.

बच के रहना रे बाबा

आप ने किसी एक से नहीं बल्कि अपने दो अजीजों से धोखा खाया है. इस का मतलब चूक कहीं न कहीं आप से भी हुई है, जो आप ने अपनी जिंदगी में ऐेसे प्रेमी और सहेली को जगह दी इसलिए इस से सीख लें व जांचपरख कर ही किसी से रिलेशन बनाएं.

किसी भी युवक को बौयफ्रैंड बनाने से पहले उस के बारे में अच्छी तरह से तहकीकात कर लें. अगर थोड़ा भी शक हो तो उस के साथ रिलेशनशिप बनाने की जरूरत नहीं है.

अपारदर्शी सच: किस रास्ते पर चलने लगी तनुजा

रात के 11 बज चुके थे. तनुजा की आंखें नींद और इंतजार से बोझिल हो रही थीं. बच्चे सो चुके थे. मम्मीजी और मनीष लिविंगरूम में बैठे टीवी देख रहे थे. तनुजा का मन हो रहा था कि मनीष को आवाज दे कर बुला ले, लेकिन मम्मी की उपस्थिति के लिहाज के चलते उसे ठीक नहीं लगा. पानी पीने के लिए किचन में जाते हुए उस ने मनीष को देखा पर उन का ध्यान नहीं गया. पानी पी कर भी अतृप्त सी वह वापस कमरे में आ गई.

बिस्तर पर बैठ कर उस ने एक नजर कमरे पर डाली. उस ने और मनीष ने एकदूसरे की पसंदनापसंद का खयाल रख कर इस कमरे को सजाया था.

हलके नीले रंग की दीवारों में से एक पर खूबसूरत पहाड़ी, नदी से गिरते झरने और पेड़ों की पृष्ठभूमि से सजी पूरी दीवार के आकार का वालपेपर. खिड़कियों पर दीवारों से तालमेल बिठाते नैट के परदे, फर्श से छत तक की अलमारियां, तरहतरह के सौंदर्य प्रसाधनों से भरी अंडाकार कांच की ड्रैसिंगटेबल, बिस्तर पर साटन की रौयल ब्लू चादर और टेबल पर सजा महकते रजनीगंधा के फूलों का गुलदस्ता. उसे लगा, सभी मनीष का इंतजार कर रहे हैं.

तनुजा की आंख खुली, तब दिन चढ़ आया था. उस का इंतजार अभी भी बदन में कसमसा रहा था. मनीष दोनों हाथ बांधे बगल में खर्राटे ले कर सो रहे थे. उस का मन हुआ, उन दोनों बांहों को खुद ही खोल कर उन में समा जाए और कसमसाते इंतजार को मंजिल तक पहुंचा दे. लेकिन घड़ी ने इस की इजाजत नहीं दी. फुरफुराते एहसासों को जूड़े में लपेटते वह बाथरूम चली गई.

बेटे ऋषि व बेटी अनु की तैयारी करते, सब का नाश्ताटिफिन तैयार करते, भागतेदौड़ते खुद की औफिस की तैयारी करते हुए भी रहरह कर एहसास कसमसाते रहे. उस ने आंखें बंद कर जज्बातों को जज्ब करने की कोशिश की, तभी सासुमां किचन में आ गईं. वह सकपका गई. उस ने झटके से आंखें खोल लीं और खुद को व्यस्त दिखाने के लिए पास पड़ा चाकू उठा लिया पर सब्जी तो कट चुकी थी, फिर उस ने करछुल उठा लिया और उसे खाली कड़ाही में चलाने लगी. सासुमां ने चश्मे की ओट से उसे ध्यान से देखा.

कड़ाही उस के हाथ से छूट गई और फर्श पर चक्कर काटती खाली कड़ाही जैसे उस के जलते एहसास उस के जेहन में घूमने लगे और वह चाह कर भी उन्हें थाम नहीं पाई.

एक कोमल स्पर्श उस के कंधों पर हुआ. 2 अनुभवी आंखों में उस के लिए संवेदना थी. वह शर्मिंदा हुई उन आंखों से, खुद को नियंत्रित न कर पाने से, अपने यों बिखर जाने से. उस ने होंठ दबा कर अपनी रुलाई रोकी और तेजी से अपने कमरे में चली गई.

बहुत कोशिश करने के बावजूद उस की रुलाई नहीं रुकी, बाथरूम में शायद जी भर रो सके. जातेजाते उस की नजर घड़ी पर पड़ी. समय उस के हाथ में न था रोने का. तैयार होतेहोते तनुजा ने सोते हुए मनीष को देखा. उस की बेचैनी से बेखबर मनीष गहरी नींद में थे.

तैयार हो कर उस ने खुद को शीशे में निहारा और खुद पर ही मुग्ध हो गई. कौन कह सकता है कि वह कालेज में पढ़ने वाले बच्चों की मां है? कसी हुई देह, गोल चेहरे पर छोटी मगर तीखी नाक, लंबी पतली गरदन, सुडौल कमर के गिर्द लिपटी साड़ी से झांकते बल. इक्कादुक्का झांकते सफेद बालों को फैशनेबल अंदाज में हाईलाइट करवा कर करीने से छिपा लिया है उस ने. सब से बढ़ कर है जीवन के इस पड़ाव का आनंद लेती, जीवन के हिलोरों को महसूस करते मन की अंगड़ाइयों को जाहिर करती उस की खूबसूरत आंखें. अब बच्चे बड़े हो कर अपने जीवन की दिशा तय कर चुके हैं और मनीष अपने कैरियर की बुलंदियों पर हैं. वह खुद भी एक मुकाम हासिल कर चुकी है. भविष्य के प्रति एक आश्वस्ति है जो उस के चेहरे, आंखों, चालढाल से छलकती है.

मनीष उठ चुके थे. रात के अधूरे इंतजार के आक्रोश को परे धकेल एक मीठी सी मुसकान के साथ उस ने गुडमौर्निंग कहा. मनीष ने एक मोहक नजर उस पर डाली और उठ कर उसे बांहों में भर लिया. रीढ़ में फुरफुरी सी दौड़ गई. कसमसाती इच्छाएं मजबूत बांहों का सहारा पा कर कुलबुलाने लगीं. मनीष की आंखों में झांकते हुए तपते होंठों को उस के होंठों के पास ले जाते शरारत से उस ने पूछा, ‘‘इरादा क्या है?’’ मनीष जैसे चौंक गए, पकड़ ढीली हुई, उस के माथे पर चुंबन अंकित करते, घड़ी की ओर देखते हुए कहा, ‘‘इरादा तो नेक ही है, तुम्हारे औफिस का टाइम हो गया है, तुम निकल जाना.’’ और वे बाथरूम की तरफ बढ़ गए.

जलते होंठों की तपन को ठंडा करने के लिए आंसू छलक पड़े तनुजा के. कुछ देर वह ऐसे ही खड़ी रही उपेक्षित, अवांछित. फिर मन की खिन्नता को परे धकेल, चेहरे पर पाउडर की एक और परत चढ़ा, लिपस्टिक की रगड़ से होंठों को धिक्कार कर वह कमरे से बाहर निकल गई.

करीब सालभर पहले तक सब सामान्य था. मनीष और तनुजा जिंदगी के उस मुकाम पर थे जहां हर तरह से इतमीनान था. अपनी जिंदगी में एकदूसरे की अहमियत समझतेमहसूस करते एकदूसरे के प्यार में खोए रहते.

इस निश्चितता में प्यार का उछाह भी अपने चरम पर था. लगता, जैसे दूसरा हनीमून मना रहे हों जिस में अब उत्सुकता की जगह एकदूसरे को संपूर्ण जान लेने की तसल्ली थी. मनीष अपने दम भर उसे प्यार करते और वह पूरी शिद्दत से उन का साथ देती. फिर अचानक यों ही मनीष जल्दी थकने लगे तो उसी ने पूरा चैकअप करवाने पर जोर दिया.

सबकुछ सामान्य था पर कुछ तो असामान्य था जो पकड़ में नहीं आया था. वह उन का और ध्यान रखने लगी. खाना, फल, दूध, मेवे के साथ ही उन की मेहनत तक का. उस की इच्छाएं उफान पर थीं पर मनीष के मूड के अनुसार वह अपने पर काबू रखती. उस की इच्छा देखते मनीष भी अपनी तरफ से पूरी कोशिश करते लेकिन वह अतृप्त ही रह जाती.

हालांकि उस ने कभी शब्दों में शिकायत दर्ज नहीं की, लेकिन उस की झुंझलाहट, मुंह फेर कर सो जाना, तकिए में मुंह दबा कर ली गई सिसकियां मनीष को आहत और शर्मिंदा करती गईं. धीरेधीरे वे उन अंतरंग पलों को टालने लगे. तनुजा कमरे में आती तो मनीष कभी तबीयत खराब होने का बहाना बनाते, कभी बिजी होने की बात कर लैपटौप ले कर बैठ जाते.

कुछकुछ समझते हुए भी उसे शक हुआ कि कहीं मनीष का किसी और से कोई चक्कर तो नहीं है? ऐसा कैसे हो सकता है जो व्यक्ति शाम होते ही उस के आसपास मंडराने लगता था वह अचानक उस से दूर कैसे होने लगा? लेकिन उस ने यह भी महसूस किया कि मनीष

अब भी उस से प्यार करते हैं. उस की छोटीछोटी खुशियां जैसे सप्ताहांत में सिनेमा, शौपिंग, आउटिंग सबकुछ वैसा ही तो था. किसी और से चक्कर होता तो उसे और बच्चों को इतना समय वे कैसे देते? औफिस से सीधे घर आते हैं, कहीं टूर पर जाते नहीं.

शक का कीड़ा जब कुलबुलाता है तब मन जितना उस के न होने की दलीलें देता है उतना उस के होने की तलाश करता. कभी नजर बचा कर डायरी में लिखे नंबर, तो कभी मोबाइल के मैसेज भी तनुजा ने खंगाल डाले पर शक करने जैसा कुछ नहीं मिला.

उस ने कईकई बार खुद को आईने में निहारा, अंगों की कसावट को जांचा, बातोंबातों में अपनी सहेलियों से खुद के बारे में पड़ताल की और पार्टियों, सोशल गैदरिंग में दूसरे पुरुषों की नजर से भी खुद को परखा. कहीं कोई बदलाव, कोई कमी नजर नहीं आई. आज भी जब पूरी तरह से तैयार होती है तो देखने वालों की नजर एक बार उस की ओर उठती जरूरी है.

हर ऐसे मौकों पर कसौटी पर खरा उतरने का दर्प उसे कुछ और उत्तेजित कर गया. उस की आकांक्षाएं कसमसाने लगीं. वह मनीष से अंतरंगता को बेचैन होने लगी और मनीष उन पलों को टालने के लिए कभी काम में, कभी बच्चों और टीवी में व्यस्त होने लगे.

अधूरेपन की बेचैनी दिनोंदिन घनी होती जा रही थी. उस दिन एक कलीग को अपनी ओर देखता पा कर तनुजा के अंदर कुछ कुलबुलाने लगा, फुरफुरी सी उठने लगी. एक विचार उस के दिलोदिमाग में दौड़ कर उसे कंपकंपा गया. छी, यह क्या सोचने लगी हूं मैं? मैं ऐसा कभी नहीं कर सकती. मेरे मन में यह विचार आया भी कैसे? मनीष और मैं एकदूसरे से प्यार करते हैं, प्यार का मतलब सिर्फ यही तो नहीं है. कितना धिक्कारा था तनुजा ने खुद को लेकिन वह विचार बारबार कौंध जाता, काम करते हाथ ठिठक जाते, मन में उठती हिलोरें पूरे शरीर को उत्तेजित करती रहीं.

अतृप्त इच्छाएं, हर निगाह में खुद के प्रति आकर्षण और उस आकर्षण को किस अंजाम तक पहुंचाया जा सकता है, वह यह सोचने लगी. संस्कारों के अंकुश और नैसर्गिक प्यास की कशमकश में उलझी वह खोईखोई सी रहने लगी.

उस दिन दोपहर तक बादल घिर आए थे. खाना खा कर वह गुदगुदे कंबल में मनीष के साथ एकदूसरे की बांहों में लिपटे हुए कोई रोमांटिक फिल्म देखना चाहती थी. उस ने मनीष को इशारा भी किया जिसे अनदेखा कर मनीष ने बच्चों के साथ बाहर जाने का प्रोग्राम बना लिया. वे नासमझ बन तनुजा से नजरें चुराते रहे, उस के घुटते दिल को नजरअंदाज करते रहे. वह चिढ़ गई. उस ने जाने से मना कर दिया, खुद को कमरे में बंद कर लिया और सारा दिन अकेले कमरे में रोती रही.

तनुजा ने पत्रपत्रिकाएं, इंटरनैट सब खंगाल डाले. पुरुषों से जुड़ी सैक्स समस्याओं की तमाम जानकारियां पढ़ डालीं. परेशानी कहां है, यह तो समझ आ गया लेकिन समाधान? समाधान निकालने के लिए मनीष से बात करना जरूरी था. बिना उन के सहयोग के कोई समाधान संभव ही नहीं था. बात करना इतना आसान तो नहीं था.

शब्दों को तोलमोल कर बात करना, एक कड़वे सच को प्रकट करना इस तरह कि वह कड़वा न लगे, एक ऐसी सचाई के बारे में बात करना जिसे मनीष पहले से जानते हैं कि तनुजा इसे नहीं जानती और अब उन्हें बताना कि वह भी इसे जानती है, यह सब बताते हुए भी कोई आक्षेप, कोई इलजाम न लगे, दिल तोड़ने वाली बात पर दिल न टूटे, अतिरिक्त प्यारदेखभाल के रैपर में लिपटी शर्मिंदगी को यों सामने रखना कि वह शर्मिंदा न करे, बेहद कठिन काम था.

दिन निकलते गए. कसमसाहटें बढ़ती गईं. अतृप्त प्यास बुझाने के लिए वह रोज नए मौकेरास्ते तलाशती रही. समाज, परिवार और बच्चे उस पर अंकुश लगाते रहे. तनुजा खुद ही सोचती कि क्या इस एक कमी को इस कदर खुद पर हावी होने देना चाहिए? तो कभी खुद ही इस जरूरी जरूरत के बारे में सोचती जिस के पूरा न होने पर बेचैन होना गलत भी तो नहीं. अगर मनीष अतृप्त रहते तो क्या ऐसा संयम रख पाते? नहीं, मनीष उसे कभी धोखा नहीं देते या शायद उसे कभी पता ही नहीं चलने देते.

निशा उस की अच्छी सहेली थी. उस से तनुजा की कशमकश छिपी न रह सकी. तनुजा को दिल का बोझ हलका करने को एक साथी तो मिला जिस से सहानुभूति के रूप में फौरीतौर पर राहत मिल जाती थी. निशा उसे समझाती तो थी पर क्या वह समझना चाहती है, वह खुद भी नहीं समझ पाती थी. उस ने कई बार इशारे में उसे विकल्प तलाशने को कहा तो कई बार इस के खतरे से आगाह भी किया. कई बार तनुजा की जरूरत की अहमितयत बताई तो कई बार समाज, संस्कार के महत्त्व को भी समझाया. तनुजा की बेचैनी ने उस के मन में भी हलचल मचाई और उस ने खुद ही खोजबीन कर के कुछ रास्ते सुझाए.

धड़कते दिल और डगमगाते कदमों से तनुजा ने उस होटल की लौबी में प्रवेश किया था. साड़ी के पल्लू को कस कर लपेटे वह खुद को छिपाना चाह रही थी पर कितनी कामयाब थी, नहीं जानती. रिसैप्शन पर बड़ी मुश्किल से रूम नंबर बता पाई थी. कितनी मुश्किल से अपने दिल को समझा कर वह खुद को यहां तक ले कर आई थी. खुद को लाख मनाने और समझाने पर भी एक व्यक्ति के रूप में खुद को देख पाना एक स्त्री के लिए कितना कठिन होता है, यह जान रही थी.

अपनी इच्छाओं को एक दायरे से बाहर जा कर पूरा करना कितना मुश्किल होता है, लिफ्ट से कमरे तक जाते यही विचार उस के दिमाग को मथ रहे थे. कमरे की घंटी बजा कर दरवाजा खुलने तक 30 सैकंड में 30 बार उस ने भाग जाना चाहा. दिल बुरी तरह धड़क रहा था. दरवाजा खुला, उस ने एक बार आसपास देखा और कमरे के अंदर हो गई. एक अनजबी आवाज में अपना नाम सुनना भी बड़ा अजीब था. फुरफुराते एहसास उस की रीढ़ को झुनझुना रहे थे. बावजूद इस के, सामने देख पाना मुश्किल था. वह कमरे में रखे एक सोफे पर बैठ गई, उसे अपने दिमाग में मनीष का चेहरा दिखाई देने लगा.

क्या वह ठीक कर रही? इस में गलत क्या है? आखिर मैं भी एक इंसान हूं. अपनी इच्छाएं, अपनी जरूरतें पूरी करने का हक है मुझे. मनीष को पता चला तो?

कैसे पता चलेगा, शहर के इस दूसरे कोने में घरऔफिस से दसियों किलोमीटर दूर कुछ हुआ है, इस की भनक तक इतनी दूर नहीं लगेगी. इस के बाद क्या वह खुद से नजरें मिला पाएगी? यह सब सोच कर उस की रीढ़ की वह सनसनाहट ठंडी पड़ गई, उठ कर भाग जाने का मन हुआ. वह इतनी स्वार्थी नहीं हो सकती. मनीष, मम्मी, बच्चे, जानपहचान वाले, रिश्तेदार सब की नजरों में वह नहीं गिर सकती.

वेटर 2 कौफी रख गया. कौफी की भाप के उस पार 2 आंखें उसे देख रही थीं. उन आंखों की कामुकता में उस के एहसास फिर फुरफुराने लगे. उस ने अपने चेहरे से हो कर गरदन, वक्ष पर घूमती उन निगाहों को महसूस किया. उस के हाथ पर एक स्पर्श उस के सर्वांग को थरथरा गया. उस ने आंखें बंद कर लीं. वह स्पर्श ऊपर और ऊपर चढ़ते बाहों से हो कर गरदन के खुले भाग पर मचलने लगा. उस की अतृप्त कामनाएं सिर उठाने लगीं. अब वह सिर्फ एक स्त्री थी हर दायरे से परे, खुद की कैद से दूर, अपनी जरूरतों को समझने वाली, उन्हें पूरा करने की हिम्मत रखने वाली.

सहीगलत की परिभाषाओं से परे अपनी आदिम इच्छाओं को पूरा करने को तत्पर वह दुनिया के अंतिम कोने तक जा सकने को तैयार, उस में डूब जाने को बेचैन. तभी वह स्पर्श हट गया, अतृप्त खालीपन के झटके से उस ने आंखें खोल दीं. आवाज आई, ‘कौफी पीजिए.’

कामुकता से मुसकराती 2 आंखें देख उसे एक तीव्र वितृष्णा हुई खुद से, खुद के कमजोर होने से और उन 2 आंखों से. होटल के उस कमरे में अकेले उस अपरिचित के साथ यह क्या करने जा रही थी वह? वह झटके से उठी और कमरे से बाहर निकल गई. लगभग दौड़ते हुए वह होटल से बाहर आई और सामने से आती टैक्सी को हाथ दे कर उस में बैठ गई. तनुजा बुरी तरह हांफ रही थी. वह उस रास्ते पर चलने की हिम्मत नहीं जुटा पाई.

दोनों ओर स्थितियां चरम पर थीं. दोनों ही अंदर से टूटने लगे थे. ऐसे ही जिए जाने की कल्पना भयावह थी. उस रात तनुजा की सिसकियां सुन मनीष ने उसे सीने से लगा लिया. उस का गला रुंध गया, आंसू बह निकले. ‘‘मैं तुम्हारा दोषी हूं तनु, मेरे कारण…’’

तनु ने उस के होंठों पर अपनी हथेली रख दी, ‘‘ऐसा मत कहो, लेकिन मैं करूं क्या? बहुत कोशिश करती हूं लेकिन बरदाश्त नहीं कर पाती.’’

‘‘मैं तुम्हारी बेचैनी समझता हूं, तनु,’’ मनीष ने करवट ले कर तनुजा का चेहरा अपने हाथों में ले लिया, ‘‘तुम चाहो तो किसी और के साथ…’’ बाकी के शब्द एक बड़ी हिचकी में घुल गए.

वह बात जो अब तक विचारों में तनुजा को उकसाती थी और जिसे हकीकत में करने की हिम्मत वह जुटा नहीं पाई थी, वह मनीष के मुंह से निकल कर वितृष्णा पैदा कर गई.

तनुजा का मन घिना गया. उस ने खुद ऐसा कैसे सोचा, इस बात से ही नफरत हुई. मनीष उस से इतना प्यार करते हैं, उस की खुशी के लिए इतनी बड़ी बात सोच सकते हैं, कह सकते हैं लेकिन क्या वह ऐसा कर पाएगी? क्या ऐसा करना ठीक होगा? नहीं, कतई नहीं. उस ने दृढ़ता से खुद से कहा.

जो सच अब तक संकोच और शर्मिंदगी का आवरण ओढ़े अपारदर्शी बन कर उन के बीच खड़ा था, आज वह आवरण फेंक उन के बीच था और दोनों उस के आरपार एकदूसरे की आंखों में देख रहे थे. अब समाधान उन के सामने था. वे उस के बारे में बात कर सकते थे. उन्होंने देर तक एकदूसरे से बातें कीं और अरसे बाद एकदूसरे की बांहों में सो गए एक नई सुबह मेें उठने के लिए.

बट स्टिल आई लव हिम

‘‘बटस्टिल आई लव हिम, बट स्टिल आई लव हिम, बट आई…’’  मंजू के ये शब्द तीर की तरह मेरे कानों में चुभ रहे थे. मैं यह सोच कर हैरान थी कि शहर की जानीमानी डाक्टर मंजू सिंह, जो प्रतिदिन न जाने कितने लोगों के दुखदर्द मिटाती है, खुद कितने गहरे दर्द में डूबी है और उस से उबरना भी नहीं चाहती है. पुरानी यादों के पन्ने

1-1 कर के मेरी आंखों के सामने फड़फड़ाने लगे…

हम दोनों बचपन की गहरी सखियां, एक ही महल्ले में रहती थीं तथा ही कक्षा में पढ़ती थीं. हमारी मित्रता उस दिन हुई जब बस में एक बड़ी दीदी ने मुझे सीट से उठा दिया और स्वयं उस पर बैठ गई.

यह देख मंजू उन से भिड़ गई, ‘‘दीदी, आप ने उस की सीट ले ली. वह इतना भारी बैग टांग कर कैसे खड़ी रहेगी?’’

दीदी के धमकाने पर उस ने कंडक्टर से शिकायत कर के मुझे मेरी सीट दिलवा कर ही दम लिया और फिर हम मित्रता की डोर से ऐसे बंधे जो समय के साथ और मजबूत हो गई.

इस घटना के बाद से हम बच्चों के बीच मंजू दबंग गर्ल के नाम से मशहूर हो गई. वह स्कूल की हर गतिविधि में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेती. उस की संगत के प्रभाव से मुझे भी

कुछ अवसर प्राप्त हो जाते थे. अपने नैसर्गिक सौंदर्य, नेतृत्व क्षमता, अभिनय कौशल व वाकपटुता से वह सब की चहेती थी. जो उस से ईर्ष्या करते थे, वे भी मन ही मन उस की प्रशंसा करते थे.

फर्स्ट ईयर तक पहुंचतेपहुंचते न जाने कितने लड़के उस पर जान छिड़कने लगे. हर कोई उसे अपनी गर्लफ्रैंड बनाने के लिए आतुर रहता पर वह किसी को घास नहीं डालती.

मैं उसे छेड़ती, ‘‘मंजू, क्या तुझे कोई

भी पसंद नहीं आता? किसी का तो दिल रख लिया कर.’’

वह मुझे समझाती, ‘‘प्यारव्यार के लिए तो सारी जिंदगी पड़ी है, मुझे तो पापा की तरह प्रसिद्ध डाक्टर बनना है.’’

हम दोनों साथसाथ पढ़ते. कभी वह मेरे घर आ जाती, कभी मैं उस के घर चली जाती. हम दोनों को संयोगवश एक ही मैडिकल कालेज में प्रवेश भी मिल गया. वहां पहुंचते ही वह सभी शिक्षकों व जूनियरसीनियर विद्यार्थियों की लाडली बन गई.

कालेज के वार्षिकोत्सव में मंजू राधा बनी और सुधीर कृष्ण. सुधीर में न जाने कैसा सम्मोहन था कि मंजू उस की ओर खिंचती चली गई. मैं उस का प्यार व समय बंट जाने पर स्वयं को जितना अकेला महसूस कर रही थी, उस से अधिक चिंता मुझे इस बात की थी कि जब उस के घर वालों को पता चलेगा तो क्या होगा. सुधीर यादव था और वह परंपरावादी क्षत्रिय परिवार की.

जब तक कालेज में थे किसी को कुछ नहीं पता चला पर एमबीबीएस पूरा होने के बाद जब उस के विवाह की चर्चा शुरू हुई तब मंजू ने डरतेडरते मां को सुधीर के बारे में बताया. उस के बाद तो मानों घर में विस्फोट हो गया. सब ने उसे समझाने का बहुत प्रयास किया पर उस ने दृढ़तापूर्वक अपना निर्णय सुना दिया कि वह शादी करेगी तो सिर्फ सुधीर से वरना जीवन भर विवाह नहीं करेगी.

सारे प्रयास विफल होने के बाद उस के पापा ने एक सादे विवाह समारोह में उसे बिदा कर उस से सदा के लिए मुंह मोड़ लिया. मां कभीकभी हालचाल पूछ लेती थी. मैं भी एक एनआरआई से विवाह होने के बाद आस्ट्रेलिया चली गई पर हम सदैव फेसबुक, व्हाट्सऐप से संपर्क में बने रहते.

मैं जब भी इंडिया आती उस से जरूर मिलती. वह भी 2 बार आस्ट्रेलिया घूमने आई.

15 वर्ष कब बीत गए पता ही नहीं चला. जब मैं इंडिया आई तो हर बार की तरह इस बार भी मां व परिवार के अन्य लोगों से मिलने के बाद कानपुर से सीधे मुंबई उस के पास पहुंची. मंजू और सुधीर के स्वागत में इस बार पहले जैसा उत्साह व गर्मजोशी नजर नहीं आई. सुधीर आवश्यक काम बता कर बाहर चला गया तो मनीष भी अपने कुछ जानपहचान वालों से मिलने चले गए.

उस के चेहरे पर छाई उदासीनता का कारण जानने के लिए जब मैं ने उसे कुरेदा तो थोड़ी नानुकुर के बाद उस के सब्र का बांध टूट गया. वह मेरे गले लग फफकफफक कर बच्चों की तरह रो पड़ी.

थोड़ा दिल हलका होने के बाद उस ने मुझे बताया, ‘‘सुधीर का उस के नर्सिंगहोम की एक नर्स के साथ अफेयर चल रहा है. पहले तो पूछने पर कहता था कि मैं बेवजह उस पर शक करती हूं पर अब वह ढीठ हो गया है. कहता है कि, तुम्हें जो करना है कर लो, जहां जाना है जाओ, पर मैं उसे नहीं छोड़ सकता.’’

यह सुन कर तो जैसे मुझ पर वज्रपात ही हो गया. मुझे कालेज का वह जमाना याद

आ गया कि कैसे सुधीर मंजू से दोस्ती करने के लिए दीवानों की तरह उस के पीछेपीछे घूमता रहता था और किस प्रकार से मंजू ने सब का विरोध सह कर उस से विवाह किया था.

मैं ने उसे समझाया कि यदि वह शहर का प्रतिष्ठित चाइल्ड स्पैशलिस्ट है तो तू भी प्रसिद्ध गाइनोकोलौजिस्ट. तू पढ़ीलिखी, आत्मनिर्भर नारी है, तेरी समाज में अलग पहचान है, तू अपनी

व अपने बच्चों की देखभाल करने में सक्षम है.

तू ऐसे बेवफा, चरित्रहीन इंसान को छोड़ क्यों

नहीं देती?

वह रोते हुए बोली, ‘‘मम्मीपापा से दूर हो कर मैं ने जीवन में अपनों के प्यार एवं संरक्षण का महत्त्व जाना. आज भी मेरा मन मायके जाने को तरसता है. मायके के दरवाजे मेरे लिए बंद नहीं हैं, पर मेरी भूल मेरे स्नेह पर ज्यादा भारी पड़ती है. पापा के आशीर्वाद के लिए उठे हाथ मेरे सिर तक पहुंचतेपहुंचते रुक जाते हैं. मां के आलिंगन में भी वह गरमाहट महसूस नहीं होती जो प्रांजू को गले लगाते समय होती है. अपना घर अब मुझे अपना नहीं लगता. तुझे याद है न पापा ने कैसे धूमधाम से प्रांजू की शादी की थी.

घर व संपत्ति का बंटवारा करते समय मां ने मुझे बुलाया और कहा, ‘‘पापा अपनी संपत्ति तुम दोनों बहनों के बीच बांटना चाहते हैं, आ जाओ.’’

मैं ने मां से कहा, ‘‘मुझे कुछ नहीं चाहिए. बस मुझे अपना आशीर्वाद दे दो. पर मां के बहुत जोर देने पर मैं कानपुर चली गई. वहां पहुंच कर देखा पापा ने वह नर्सिंगहोम, जिस में वे अपनी जगह सदा अपनी डाक्टर बेटी को बैठा हुआ देखना चाहते थे, वह घर जिस से मेरी यादें जुड़ी थीं, सब प्रांजू व देवेश के नाम कर दिया था. मुझे उन्होंने कैश, जेवर व प्लाट्स दिए थे. यह देख मैं अपने कमरे की दीवारों से चिपक कर फूटफूट कर रोई थी. मन में आया कि कह दूं कि पापा मुझे कुछ नहीं चाहिए. बस आप मेरे पहले वाले पापा बन कर मुझे गले लगा लो, अपनी मंजू को माफ कर दो.

‘‘जड़ से विच्छिन्न शाखा के समान स्वयं को अकेला महसूस कर रही थी. फिर सोचा दोष तो मेरा ही है. मैं ने ही उन के मानसम्मान, भरोसे और सपनों को धूमिल किया था. भौतिक संपदा तो उन्होंने बराबर बांटी पर स्नेह नहीं. श्वेता, तू नहीं जानती कि अपनों से अलग होना व उन की उपेक्षा सहना कितनी पीड़ा पहुंचाता है.

‘‘सुधीर मुझ से प्यार नहीं करता, वह मेरे साथ रहना भी नहीं चाहता पर मैं उस के बिना नहीं रह सकती. आई हैव लौस्ट माई लव बट स्टिल आई लव हिम, बट स्टिल आई लव हिम. उस के बिना मैं जी नहीं पाऊंगी. उसे अपने बच्चों के साथ हंसताखेलता देख कर, उन की परवाह करते देख कर ही मैं खुश हो लेती हूं. अपना न होते हुए भी अपना होने के एहसास के साथ जी लेती हूं,’’ कहने के बाद वह मेरे कांधे पर सिर रख कर बच्चों की तरह फूटफूट कर रोने लगी.

हम ने सुधीर को समझाने की कोशिश की पर वह न समझा. मैं दुखी मन से अपने घर लौट आई, पर उस के ये शब्द अब भी मेरे कानों को पिघला रहे हैं, ‘‘बट स्टिल आई लव हिम, बट स्टिल आई लव हिम…’’

आभास: शारदा को कैसे हुआ गलती का एहसास

‘‘ओ  ह मम्मी, भावुक मत बनो, समझने की कोशिश करो,’’ दूसरी तरफ की आवाज सुनते ही शारदा के हाथ से टेलीफोन का चोंगा छूट कर अधर में झूल गया. कानों में जैसे पिघलता सीसा पड़ गया. दिल दहला देने वाली एक दारुण चीख दीवारों और खिड़कियों को पार करती हुई पड़ोसियों के घरों से जा टकराई. सब चौंक पड़े और चीख की दिशा की ओर दौड़ पड़े.

‘‘क्या हुआ, बहनजी?’’ किसी पड़ोसी ने पूछा तो शारदा ने कुरसी की ओर इशारा किया.

‘‘अरे…कैसे हुआ यह सब?’’

‘‘कब हुआ?’’ सभी चकित से रह गए.

‘‘अभीअभी आए थे,’’ शारदा ने रोतेरोते कहा, ‘‘अखबार ले कर बैठे थे. मैं चाय का प्याला रख कर गई. थोड़ी देर में चाय का प्याला उठाने आई तो देखा चाय वैसी ही पड़ी है, ‘अखबार हाथ में है. सो रहे हो क्या?’ मैं ने पूछा, पर कोई जवाब नहीं, ‘चाय तो पी लो’, मैं ने फिर कहा मगर बोले ही नहीं. मैं ने कंधा पकड़ कर झिंझोड़ा तो गरदन एक तरफ ढुलक गई. मैं घबरा गई.’’

‘‘डाक्टर को दिखाया?’’

‘‘डाक्टर को ही तो दिखा कर आए थे,’’ शारदा ने रोते हुए बताया, ‘‘1-2 दिन से कह रहे थे कि तबीयत कुछ ठीक नहीं है, कुछ अजीब सा महसूस हो रहा है. डाक्टर के पास गए तो उस ने ईसीजी वगैरह किया और कहा कि सीढि़यां नहीं चढ़ना, आप को हार्ट प्रौब्लम है.

‘‘घर आ कर मुझ से बोले, ‘ये डाक्टर लोग तो ऐसे ही डरा देते हैं, कहता है, हार्ट प्रौब्लम है. सीढि़यां नहीं चढ़ना, भला सीढि़यां चढ़ कर नहीं आऊंगा तो क्या उड़ कर आऊंगा घर. हुआ क्या है मुझे? भलाचंगा तो हूं. लाओ, चाय लाओ. अखबार भी नहीं देखा आज तो.’

‘‘अखबार ले कर बैठे ही थे, बस, मैं चाय का प्याला रख कर गई, इतनी ही देर में सबकुछ खत्म…’’ शारदा बिलख पड़ीं.

‘‘बेटे को फोन किया?’’ पड़ोसी महेशजी ने झूलता हुआ चोंगा क्रेडल पर रखते हुए पूछा.

‘‘हां, किया था.’’

‘‘कब तक पहुंच रहा है?’’

‘‘वह नहीं आ रहा,’’ शारदा फिर बिलख पड़ीं, ‘‘कह रहा था आना बहुत मुश्किल है, यहां इतनी आसानी से छुट्टी नहीं मिलती. दूसरे, उस की पत्नी डैनी वहां अकेली नहीं रह सकती. यहां वह आना नहीं चाहती क्योंकि यहां दंगे बहुत हो रहे हैं. मुसलमान, ईसाई कोई भी सुरक्षित नहीं यहां. कोई मार दे तो मुसीबत. बिजलीघर में कर दो सब, वहां किसी की जरूरत नहीं, सबकुछ अपनेआप ही हो जाएगा.’’

‘‘और कोई रिश्तेदार है यहां?’’

‘‘हां, एक बहन है,’’ शारदा ने बताया.

‘‘अरे, हां, याद आया. परसों ही तो मिल कर आए थे सुहासजी उन से. कह रहे थे कि यहां मेरी दीदी है, उन से ही मिल कर आ रहा हूं. आप उन का पता बता दें तो हम उन्हें खबर कर दें,’’ शर्मा जी ने कहा.

वहां फौरन एक आदमी दौड़ाया गया. सब ने मिल कर सुहास के पार्थिव शरीर को जमीन पर लिटा दिया. आसपास की और महिलाएं भी आ गईं जो शारदा को सांत्वना देने लगीं.

तभी रोतीबिलखती सुधा दीदी आ पहुंचीं.

‘‘हाय रे, भाई रे…क्या हुआ तुझे, परसों ही तो मेरे पास आया था. भलाचंगा था. यह क्या हो गया तुझे एक ही दिन में. जाना तो मुझे था, चला तू गया, मेरे से पहले ही सबकुछ छोड़छाड़ कर…हाय रे, यह क्या हो गया तुझे…’’

बहुत ही मुश्किल से सब ने उन्हें संभाला. उन्होंने अपनी तीनों बहनों, सरोज, ऊषा, मंजूषा व अन्य सब रिश्तेदारों के पते बता दिए. फौरन सब को सूचना दे दी गई. थोड़ी ही देर में सब आ पहुंचे.

काफी देर तक कुहराम मचा रहा, फिर सब शांत हो गए पर शारदा रोए ही जा रही थीं.

सुधा दीदी कितनी ही देर तक शारदा के चेहरे की ओर एकटक देखती रहीं. शारदा के चेहरे पर 22 वर्ष पुराना मां का चेहरा उभर आया, जब बाबूजी गुजरे थे और उन्होंने बंगलौर फोन किया था, ‘बाबूजी नहीें रहे, फौरन आ जाओ.’

‘पर ये तो दौरे पर गए हुए हैं, कैसे आ सकते हैं एकदम सब?’ शारदा ने बेरुखी से कहा था.

‘तुम उस के दफ्तर फोन करो, वह बुला देंगे.’

‘किया था पर उन्हें कुछ मालूम नहीं कि वह कहां हैं.’

‘ऐसा कैसे है, दफ्तर वालों को तो सब पता रहता है कि कौन कहां है.’

‘वहां रहता होगा पता, यहां नहीं,’ शारदा ने तीखे स्वर में कहा था.

‘मुझे दफ्तर का फोन नंबर दो, मैं वहां कांटेक्ट कर लूंगी.’

‘मेरे पास नहीं है नंबर…’ कह कर शारदा ने रिसीवर पटक दिया था.

ऐसे समय में भी शारदा ऐसा व्यवहार करेगी, कोई सपने में भी नहीं सोच सकता था. आखिरकार चाचाजी ने ही सब क्रियाकर्म किए. इस ने जैसा किया वैसा ही अब इस के आगे आया.

यह तो शुरू से ही परिवार से कटीकटी रही थी. हम 4 बहनें थीं, भाई एक ही था, बस. कितना चाव था इस का सब को कि बहू आएगी घर में, रौनक होगी. सब के साथ मिलजुल कर बैठेगी.

अम्मां तो इसे जमीन पर पैर ही ना रखने दें, हर समय ऊषा, मंजूषा से कहती रहतीं, ‘जा, अपनी भाभी के लिए हलवा बना कर ले जा…हलवाई के यहां से गरमगरम पूरियां ले आओ नाश्ते के लिए… भाभी से पूछ ले, ठंडा लेगी या गरम…भाभी के नहाने की तैयारी कर दे… गुसलखाना अच्छी तरह साफ कर देना…’

शाम को कभी गरमगरम इमरती मंगातीं तो कभी समोसे मंगातीं, ‘जा अपनी भाभी के लिए ले जा,’ पर भाभी की तो भौं तनी ही रहतीं हरदम.

एक दिन बिफर ही पड़ीं दोनों, ‘हम नहीं जाएंगी भाभी के पास. झिड़क पड़ती हैं, कहती हैं ‘कुछ नहीं चाहिए मुझे, ले जाओ यह सब…’

सरोज ने मां से 1-2 बार कहा भी, ‘क्या जरूरत है इतना सिर चढ़ाने की, रहने दो स्वाभाविक तरीके से. अपनेआप खाएपीएगी जब भूख लगेगी, तुम क्यों चिंता करती हो बेकार…’

‘अरे, कौन सी 5-7 बहुएं आएंगी. एक ही तो है, उसी पर अपना लाड़चाव पूरा कर लूं.’

पर इस ने तो उन के लाड़चाव की कभी कद्र ही न जानी, न ही ननदें कभी सुहाईं. आते ही यह तो अलग रहना चाहती थी. इत्तिफाकन सुहास की बदली हो गई और बंगलौर चली गई, सब से दूर…

ऊषा, मंजूषा की शादियों में आई थी बिलकुल मेहमान की तरह.

न किसी से बोलनाचालना, न किसी कामधंधे से ही मतलब. कमरे में ही बैठी रही थी अलगथलग सब से, गुमसुम बिलकुल…और अभी भी ऐसी बैठी है जैसे पहचानती ही न हो. चलो, नहीं तो न सही, हमें क्या, हम तो अपने भाई की आखिरी सूरत देखने आए थे…देख ली…अब हम काहे को आएंगे यहां…

‘‘राम नाम सत्य है…राम नाम सत्य है…’’ की आवाज से दीदी की तंद्रा टूटी. अर्थी उठ गई. हाहाकार मच गया. सब अरथी के पीछेपीछे चल पड़े. आज मां के घर का यह संपर्क भी खत्म हो गया.

औरत कितनी भी बड़ी उम्र की हो जाए, मां के घर का मोह कभी नहीं टूटता, नियति ने आज वह भी तुड़वा दिया. कैसा इंतजार रहता था राखीटीके का, सुबह ही आ जाता था और सारा दिन हंसाहंसा कर पेट दुखा देता था. ये तीनों भी यहां आ जाती थीं मेरे पास ही.

अरथी के पीछेपीछे चलते हुए वह फिर फूट पड़ीं, ‘‘अब कहां आनाजाना होगा यहां…जिस के लिए आते थे, वही नहीं रहा…अब रखा ही क्या है यहां…’’

अचानक उन की नजर शारदा पर पड़ी, जो अरथी के पीछेपीछे जा रही थी. उस के चेहरे पर मेकअप की जगह अवसाद छाया हुआ था, आंखों का आईलाइनर आंसुओं से धुल चुका था. होंठों पर लिपस्टिक की जगह पपड़ी जमी थी. ‘सैट’ किए बाल बुरी तरह बिखर कर रह गए थे, मुड़ीतुड़ी सफेद साड़ी, बिना बिंदी के सूना माथा, सूनी मांग…रूखे केश और उजड़े वेश में उस का इस तरह वैधव्य रूप देख कर दीदी का दिल बुरी तरह दहल उठा. रंगत ही बदल गई इस की तो जरा सी देर में. कैसी सजीसजाई दुलहन के वेश में आई थी 35 साल पहले, कितना सजाती थी खुद को और आज…आज सुहास के बिना कैसी हो गई. आज रहा ही कौन इस का दुनिया में.

मांबाप तो बाबूजी से पहले चल बसे थे, एक बहन थी वह शादी के दोढाई साल बाद अपने साल भर के बेटे को ले कर ऐसी बाजार गई, सो आज तक नहीं लौटी. एक भाई है, वह किसी माफिया गिरोह से जुड़ा है. कभी जेल में, कभी बाहर. एक ही एक बेटा है, वह भी इस दुख की घड़ी में मुंह फेर कर बैठ गया. उन्हें उस पर बहुत तरस आया, ‘बेचारी, कैसी खड़ी की खड़ी रह गई.’

अरथी को गाड़ी में रख दिया गया. गाड़ी धीरेधीरे चलने लगी और कुछ ही देर में आंखों से ओझल हो गई.

गाड़ी के जाने के बाद शारदा का मन बेहद अवसादग्रस्त हो गया.

जब हम दुख में होते हैं तो अपनों का सान्निध्य सब से अधिक चाहते हैं, पर ऐसे दुखद समय में भी अपनों का सान्निध्य न मिले तो मन बुरी तरह टूट जाता है. अकेलापन, बेबसी बुरी तरह मन को सालने लगती है.

यही हाल उस समय शारदा का हो रहा था. बारबार उसे अपने बेटे की याद आ रही थी कि काश, इस घड़ी में वह उस के पास होता. उसे गले लगा कर रो लेती. कुछ शांति मिलती, कितनी अकेली है आज वह, न मांबाप, न भाईर्बहन. कोई भी तो नहीं आज उस का जो आ कर उस के दुख में खड़ा हो. नीचे धरती, ऊपर आसमान, कोई सहारा देने वाला नहीं.

बेटे के शब्द बारबार कानों से टकरा कर उस के दिल को बुरी तरह कचोट रहे थे, जिसे जिंदगी भर अपने से ज्यादा चाहा, जिस के कारण उम्र भर किसी की परवा नहीं की, उसी ने आज ऐसे दुर्दिनों में किनारा कर लिया, मां के लिए जरा सा भी दर्द नहीं. बाप के जाने का जरा भी गम नहीं, जैसे कुछ हुआ ही न हो.

कैसी पत्थर दिल औलाद है. जब अपनी पेटजाई औलाद ही अपनी न बनी तो और कौन बनेगा अपना. सासननदें तो भला कब हुईं किसी की, वे तो उम्र भर उस के और सुहास के बीच दीवार ही बनी रहीं. सुहास तो सदा अपनी मांबहनों में ही रमा रहा. उस की तो कभी परवा ही नहीं की. इस कारण सदैव सुहास और उस के बीच दूरी ही बनी रही.

अब भी तो देखो, एक शब्द भी नहीं कहा किसी ने…सुहास के सामने ही कभी अपनी न बनी, तो अब क्या होगी भला. कैसे रहेगी वह अकेली जीवन भर?  न जाने कितनी पहाड़ सी उम्र पड़ी है, कैसे कटेगी? किस के सहारे कटेगी? उसे अपने पर काबू नहीं हो पा रहा था.

दूसरी ओर बेटे की बेरुखी साल रही थी. उसे लगा जैसे वह एक गहरे मझधार में फंसी बारबार डूबउतरा रही है. कोई उसे सहारा देने वाला नहीं कि किनारे आ जाए. क्या करे, कैसे करे?

उस ने तो कभी सोचा भी न था कि ऐसा बुरा समय भी देखना पड़ेगा. वह वहीें सीढि़यों की दीवार का सहारा ले कर बिलख पड़ी जोरजोर से.

सामने से उसे सुधा दीदी, सरोज, ऊषा, मंजूषा आती दिखाई दीं. उन्होंने उसे चारों ओर से घेर लिया और सांत्वना देने लगीं, ‘‘चुप कर शारदा, बहुत रो चुकी. वह तो सारी उम्र का रोना दे गया. कब तक रोएगी…’’ कहतेकहते सुधा दीदी स्वयं रो पड़ीं और तीनों बहनें भी शारदा के गले लग फफक पड़ीं, सब का दुख समान था. अत: जीवन भर का सारा वैमनस्य पल भर में ही आंसुओं में धुल गया.

‘‘हाय, क्या हाल हो गया भाभी का,’’ ऊषा, मंजूषा ने उस के गले लगते हुए कहा.

‘‘मैं क्या करूं, दीदी? कैसे करूं? कहां जाऊं?’’ शारदा ने बिलखते हुए कहा.

‘‘तू धीरज रख, शारदा, जाने वाला तो चला गया, अब लौट कर तो आएगा नहीं,’’ सुधा दीदी ने उसे प्यार से सीने से लगाते हुए कहा.

‘‘पर मैं अकेली कैसे रहूंगी, सारी उम्र पड़ी है. वह तो मुझे धोखा दे गए बीच में ही.’’

‘‘कौन कहता है तू अकेली है, वह नहीं रहा तो क्या, हम 4 तो हैं तेरे साथ. तुझे ऐसे अकेले थोड़े ही छोडे़ंगे. चलो, घर में चलो.’’

वे चारों शारदा को घर में ले आईं, ऊषा, मंजूषा ने सारा घर धो डाला. सरोज ने उस के नहाने की तैयारी कर दी. तब तक सुधा दीदी उस के पास बैठी उस के आंसू पोंछती रहीं.

थोड़ी ही देर में सब नहा लिए, ऊषा, मंजूषा चाय बना लाईं. नहा कर, चाय पी कर शारदा का मन कुछ शांत हुआ. उस वक्त शारदा को वे चारों अपने किसी घनिष्ठ से कम नहीं लग रही थीं, जिन्होंने उसे ऐसे दुख में संभाला.

उसे लगा, जिन्हें उस ने सदा अपने और सुहास के बीच दीवार समझा, असल में वह दीवार नहीं थी, वह तो उस के मन का वहम था. उस के मन के शीशे पर जमी ईर्ष्या की गर्द थी. आज वह वहम की दीवार गहन दुख ने तोड़ दी. मन के शीशे पर जमी ईर्ष्या की गर्द आंसुओं में धुल गई.

बेटा नहीं आया तो क्या, उस की 4-4 ननदें तो हैं, उस के दुख को बांटने वाली. वे चारों उसे अपनी सगी बहन से भी ज्यादा लग रही थीं, आज दुख की घड़ी में वे ही चारों अपनी लग रही थीं. आज पहली बार उस के मन में उन चारों ननदों के प्रति अपनत्व का आभास हुआ.

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