अकरोना बाबा का मायाजाल

‘‘आ प गांव वालों के सारे कष्ट दूर करने आ रहे हैं अकरोना बाबा. कल से गांव के स्कूल के मैदान में सुबह 10 बजे से कथा शुरू होगी,’’ एक मोटा सा आदमी एक दाढ़ी वाले बाबा का फोटो लगा कर रिकशे पर बैठा पूरे गांव में घूमघूम कर मुनादी कर रहा था.

‘‘याद रहे… अकरोना बाबा की कथा में सब को नहाधो कर आना है. लोग सामाजिक दूरी के साथ बैठेंगे. सब से जरूरी बात यह कि अकरोना बाबा की कथा में आप सब लोगों को मास्क मुफ्त में बांटे जाएंगे…’’

‘मुफ्त मिलेगा’ के नाम पर कई गांव वालों के कान खड़े हो गए थे.

‘‘आप सब लोगों को बता दें, जो लोग अकरोना बाबा की कथा में आएंगे, उन को कोरोना वायरस का संक्रमण नहीं सताएगा… बोलो अकरोना बाबा की जय.’’

‘‘अरे भैया… बाबा की कथा में हम लोगों को मुफ्त में क्या मिलेगा?’’ एक ने दूसरे से पूछा.

‘‘अरे पांडे यार… तुम भी एकदम बुड़बक ही हो… मास्क यानी मुंह को ढकने वाली चीज… जैसे हमारे पास होता है न यह गमछा… बस… उसी का शहरी रूप है मास्क…’’ दूसरे ने ज्ञान बघारा.

‘‘हां, पर वे मुफ्त में दे रहे हैं… तब तो हम बाबाजी का आशीर्वाद लेने जरूर जाएंगे.’’

पूरे गांव में अकरोना बाबा के चर्चे छाए हुए थे और हर कोई बाबा को ले कर उतावला हो गया था.

‘‘पर, बाबा का नाम तो बड़ा अजीब ?है,’’ एक गांव वाले ने चर्चा छेड़ी.

‘‘हां… हां क्यों नहीं… अरे, उन के बारे में मैं ने सुना है कि उन का जन्म ही कोरोना नामक विषाणु रूपी राक्षस को मारने के लिए हुआ है.

‘‘अरे, मैं ने तो उन की बहुत सी कथाएं सुनी हैं. और तो और मैं तो उन से मिल भी चुका हूं,’’ एक नौजवान ने शेखी बघारते हुए कहा.

‘‘वाह भैया, तुम तो बड़े किस्मत वाले हो… तनिक हमारा भी जुगाड़ लगवाओ,’’ दूसरा गांव वाला मिन्नतें करने लगा.

‘‘हांहां, तुम को भी मिलवा ही देंगे, पर जरा कथा शुरू तो होने दो,’’ शेखी बघारने वाला लड़का शान से अकड़ा हुआ था.

शाम तक गांव के हर घर में अकरोना बाबा की ही बातें हो रही थीं और लोग अकरोना बाबा को देखने

के लिए बड़े उतावले हो रहे थे.

अगले दिन के सूरज उगने के साथ ही गांव में पानी का खर्चा अचानक से बढ़ गया था. हर घर में सभी लोगों का नहानाधोना चल रहा था, क्योंकि आज सभी को अकरोना बाबा के प्रवचन सुनने जाना था.

स्कूल के अहाते में एक तरफ 3 कारें खड़ी थीं, जो देखने में बहुत महंगी लग रही थीं.

अकरोना बाबा के आने का समय 10 बजे था, पर वे किसी बड़े नेता की तरह 12 बजे आए.

लंबी दाढ़ी, एक सफेद सा चोंगा, होंठों पर मुसकान और हाथों में सोने का ब्रैसलैट पहने हुए अकरोना बाबा का जलवा देखते ही बनता था.

बाबा ने मंच पर आते ही कहा, ‘‘भक्तजनो, आज पूरी दुनिया में कोरोना नामक बीमारी फैल रही है. लाखों लोग इस बीमारी की चपेट में आ गए हैं…पर, आप सब लोगों को इस बीमारी से डरने की कोई जरूरत नहीं है, क्योंकि आप लोग मेरी शरण में आ गए हैं.

‘‘वैसे मैं बता दूं कि आप लोगों के गांव में एक चुड़ैल की प्यासी आत्मा घूम रही है. वह कभी भी किसी के सिर पर सवार हो सकती है, पर जो मेरी शरण में आएगा वह महफूज रहेगा,’’ बाबा बोले जा रहे थे और भक्त मोहित हो कर सुन रहे थे.

तभी बाबा के समर्थकों ने जयकारा लगाया, ‘‘बोलो अकरोना बाबा की जय.’’

जयकारे के साथ ही भीड़ में से एक गांव वाला निकला और मंच के पास जा कर 100 रुपए का एक नोट चढ़ा दिया.

‘‘सुनें… एक बात अच्छी तरह से समझ लें… ये बाबा सब जानते हैं और ऐसे लोग पैसे को हाथ भी नहीं लगाते. वैसे भी नोटों को छूने में इस समय हमारे देश की सरकार भी एहतियात बरतने को कह रही है, इसलिए मेरा आप लोगों से कहना है कि अगर कुछ चढ़ाना चाहें

तो वह या तो सोने की हो या चांदी की कोई चीज… कृपया रुपयापैसा चढ़ा कर स्वामीजी की बेइज्जती न करें.

उस के बाद स्वामीजी ने कोई भजन शुरू कर दिया. इस की धुन पर सभी गांव वाले मस्त हो कर नाचने लगे.

जब सब गांव वाले नाचनाच कर थक गए, तो उन सब को एकएक मास्क यह कह कर दिया गया कि यह अकरोना बाबा का प्रसाद है.

अकरोना बाबा के एक चेले ने घोषणा की, ‘‘जिन लोगों की कोई पारिवारिक, सामाजिक या आर्थिक समस्या?है, तो वे अपना समय ले लें.’’

दुनिया में शायद ही कोई ऐसा आदमी हो, जिस को कोई समस्या न हो, इसलिए बाबा के शिविर में तो अपनी समस्याओं का समाधान पाने वालों

का तांता लगने लगा.

अकरोना बाबा वैसे तो सब की समस्याएं सुनते थे, पर महिला भक्तों पर कृपा थोड़ी ज्यादा ही बरसती थी.

‘‘अकरोना बाबा की जय हो,’’ एक बहुत खूबसूरत औरत ने प्रवेश किया.

‘‘कहो ठकुराइन, क्या बात है?’’ बाबा ने आंखें बंद किए हुए ही कहा.

‘‘क्या बताऊं बाबाजी, मेरे कंधों में दर्द रहता है… कोई उपाय बताइए.’’

‘‘तुम पिछले जन्म में किसी राज्य की राजकुमारी थी और तुम ने लुटेरों के चंगुल से बचने के लिए वह खजाना कहीं गाड़ दिया था… उस खजाने का बोझ अब भी तुम्हारे कंधों पर है, उसे हटाना होगा,’’ अकरोना बाबा ने कहा.

‘‘पर, कैसे बाबा?’’

‘‘हमें वह खजाना ढूंढ़ना होगा,’’ बाबा ने कहा.

‘‘पर खजाना मिलेगा कहां बाबा?’’

‘‘खजाना तुम्हारे घर में ही है… हमें वहीं आ कर खुदाई करनी होगी. और क्योंकि तुम राजकुमारी थी, इसलिए तुम्हें हमारे काम में सहयोग भी देना होगा,’’ अकरोना बाबा ने कहा.

‘‘मैं तैयार हूं बाबा,’’ ठकुराइन बोलीं.

अगले दिन सुबह ठकुराइन के घर पूजा होनी थी. अकरोना बाबा ने इसे बेहद राज रखने को कहा था, सिर्फ बाबा और उस के 2 साथी ही वहां पहुंचे थे.

‘‘भाई, हमारे साथ पूजा में सिर्फ राजकुमारी… मेरा मतलब है कि ठकुराइन ही रहेंगी. किसी को कोई एतराज तो नहीं? क्यों ठाकुर?’’ अकरोना बाबा ने उन की ओर देखते हुए कहा.

‘‘अरे नहीं… नहीं, बाबाजी… हमें कोई दिक्कत नहीं है. बस हमारी पत्नी के कंधे का दर्द दूर होना चाहिए.’’

‘‘जरूर दूर होगा,’’ बाबा ने हुंकार भरी.

पूजा शुरू हुई. उस कमरे में अकरोना बाबा ने ठकुराइन से ध्यान लगाने को कहा. ठकुराइन ने ऐसा ही किया. अकरोना बाबा एक मंत्र पढ़ रहा था कि अचानक से ठकुराइन बेहोश हो कर गिर गईं. क्योंकि आग से उठता हुआ धुआं नशीला था.

फिर क्या था, ठकुराइन के गिरते ही अकरोना बाबा अपने असली रंग में आ गया. उस ने ठकुराइन के साथ उसी बेहोशी में बलात्कार किया और उस के फोटो भी उतारे.

बेचारी ठकुराइन को जब होश आया तब तक बहुत देर हो चुकी थी. वे किसी से कुछ कह भी नहीं सकती थीं. और अगर बाबा की करतूत अपने पति को भी बतातीं तो भी उन की शादीशुदा जिंदगी को खतरा हो सकता था, इसलिए सब आगापीछा सोच कर वे चुप ही रहीं.

अब तक अकरोना बाबा समझ चुका था कि ठकुराइन अपना मुंह नहीं खोलेंगी, इसलिए उस ने फिर से एक नाटक खेला. कमरे का दरवाजा खोल कर ठाकुर को एक मिट्टी की हांड़ी दिखाई और बोला, ‘‘राजकुमारी ने खजाना तो सोने के घड़े में छिपाया था, पर किसी बेकुसूर को सजा देने के चलते राजकुमार को पाप मिला और राजकुमारी का वह खजाना अपनेआप मिट्टी में बदल गया… और अब कुछ नहीं हो सकता.’’

‘‘कोई बात नहीं अकरोना बाबा, आप ने इन को इतना टाइम दिया, यही हमारे लिए बहुत बड़ी बात है… आप का बहुत शुक्रिया है,’’ ठाकुर ने कहा.

अब अकरोना बाबा ने गांव में भोलीभाली जनता को बेवकूफ बनाना शुरू कर दिया और जब गांव के बाकी लोगों ने जाना कि बाबा प्रवचन करने के साथसाथ समस्याएं भी सुलझाते हैं, तो अकरोना बाबा के पास लोगों की भीड़ बढ़ने लगी.

और अब तो कभी हरिया, कभी किसना, तो कभी राघव, तो कभी मंगलू जैसे लोग बाबा के पास अपनी समस्या का इलाज कराने जाने लगे.

जिस तरह से अकरोना बाबा ने ठकुराइन के साथ किया, कुछ वैसा ही वह मंगलू के घर पर करने वाला था. उस बंद कमरे में मंगलू की पत्नी के अलावा बाबा और उस के 2 चेले थे.

मंगलू और उस के परिवार की आर्थिक समस्या सही करने के लिए अकरोना बाबा मंत्र पढ़ रहा था.

मंगलू की पत्नी अभी बेहोश नहीं हुई थी और बाबा ज्यादा ही उतावला हो रहा था. अकरोना बाबा मंगलू की पत्नी की पीठ सहलाने लगा और धीरेधीरे उस के हाथ मंगलू की पत्नी के सीने की तरफ बढ़ने लगे.

मंगलू की पत्नी अकरोना बाबा की नीयत भांप गई और उस का विरोध कर के बाहर निकल आई. उस ने शोर मचा कर सब को इकट्ठा कर लिया.

वह जोरजोर से कहने लगी, ‘‘देखो…देखो यह ढोंगी बाबा… यह मेरे साथ छेड़छाड़ करने की कोशिश कर रहा है… देखो देखो.’’

मंगलू की पत्नी के इस तरह चीखने पर उस का पति व आसपास के लोग जमा हो गए, वे सभी उस की बातों को सुन ही रहे थे कि अंदर के कमरे से अकरोना बाबा मुसकराते हुए बाहर निकला और बोला, ‘‘देखो गांव वालो, मैं ने तुम लोगों को तो बहुत पहले ही उस चुड़ैल की आत्मा के बारे में बता दिया था… देखो, आज उसी चुड़ैल की आत्मा इस औरत के अंदर आ गई है और हमारे पास इसे सजा देने का मौका भी है… इसे मेरे शिविर में ले चलो… हम सब मिल कर इसे सजा देंगे.’’

मंगलू की पत्नी चीखती रह गई थी, पर उस गांव में भला उस की सुनने वाला कौन था. गांव के लोग तो उसे चुड़ैल समझ कर मारने पर आमादा थे.

अब मंगलू की पत्नी अकरोना बाबा के चंगुल में थी.

अकरोना बाबा आया और बोला ‘‘क्या फायदा मिला तुझे… देख लिया न, तेरे ही लोग तुझे यहां छोड़ कर गए हैं मेरे लिए… अगर तू चुपचाप रहती तो इतना नाटक नहीं करना पड़ता… तू भी खुश रहती और मैं भी खुश रहता… अब अपनी नासमझी का अंजाम भुगत.’’

और उस के बाद अकरोना बाबा और उस के चेलों ने जी भर कर उस के जिस्म से कई दिनों तक अपनी प्यास बुझाई.

अकरोना बाबा का परदा सब गांव वालों की आंखों पर पड़ चुका था. बाबा औरतों और लड़कियों के जिस्म से तो खेलता ही था, उन के पैसे भी मार रहा था.

धीरेधीरे अकरोना बाबा ने पूरे गांव पर अपने छोटेमोटे चमत्कार या हाथ की सफाई दिखा कर गांव वालों के मन में जगह बना ली थी और गांव वाले उसे पूजने लगे थे.

बाबा की नजर जिस लड़की या औरत पर पड़ जाती, उसे वह किसी पूजा या अनुष्ठान के बहाने अपनी हवस का शिकार बनाने की कोशिश करता और अगर वह विरोध करती तो उसे प्यासी चुड़ैल बता कर अपनी हवस का शिकार भी बनाता.

गांव की कुछ औरतों ने जोरजुल्म सहने के बाद भी जब इस बाबा की पोल खोलने की कोशिश की तो अकरोना बाबा ने गांव वालों को बताया कि ये प्यासी चुड़ैल हैं और अगर इन्हें मारा नहीं गया तो ये गांव वालों के बच्चों को ही खाने लगेंगी, इसलिए बहुत सी औरतों को तो गांव के कुछ दबंग, ऊंची जाति और पैसे वाले लोगों ने पेड़ के तने से बांध कर मारा, इतना मारा जब तक कि वे मर नहीं गईं.

एक दिन की बात है. अकरोना बाबा के पास एक जोड़ा आया और चांदी की भेंट चढ़ाई.

‘‘बाबा के चरणों में हमारा प्रणाम.’’

‘‘हां… कल्याण हो तुम लोगों का… पर देखने में तुम लोग तो इस गांव के नहीं लगते,’’ अकरोना बाबा बोला.

‘‘बाबाजी ने सही पहचाना, हम लोग पास के गांव से आए हैं और हमारी समस्या यह है कि मेरी बीवी को बच्चा नहीं ठहरता और इसीलिए हम शादी के कई साल बाद भी बेऔलाद हैं.’’

उस आदमी ने हाथ जोड़ कर अकरोना बाबा से विनती की.

बाबा ने औरत की नब्ज टटोली. थोड़ी देर मौन रहने के बाद वह बोला, ‘‘खेत में खाली हल चलाने से फसल अच्छी नहीं होती… बीज अच्छा हो तो ही अच्छी फसल मिलती है…

‘‘और तुम्हारे माथे की रेखाएं बता रही हैं कि तुम ने पिछले जन्म में किसी बच्चे को मारा है, इसीलिए उस जन्म की सजा तुम्हें इस जन्म में मिल रही?है.

‘‘चलो, कोई बात नहीं है, अब तुम सही जगह पर आ गए हो. अब तुम्हारे सारे कष्ट दूर हो जाएंगे…

‘‘हां, पर हमें संतान प्राप्ति तंत्रमंत्र करना होगा और हो सकता है कि उस बच्चे की आत्मा तुम्हारे पति पर आ जाए, तो होशियार रहना… घबराना बिलकुल मत. और हमारा अनुष्ठान आज रात को ही शुरू हो जाएगा.’’

वे औरतों के आश्रम में ही रुक गए थे. बाबा की तरह उन्हें भी शाम होने का बेसब्री से इंतजार था.

शाम हुई, तो उस जोड़े को एक कमरे में ले जाया गया. वहां अकरोना बाबा सिर्फ एक लंगोटी बांधे आंखें बंद किए बैठा था.

‘‘इस अनुष्ठान में सिर्फ औरत ही बैठेगी… मर्द को बाहर जाना होगा,’’ अकरोना बाबा ने कहा और उस की आज्ञा मान कर उस औरत के साथ आया आदमी बाहर आ कर बैठ गया.

अकरोना बाबा ने अनुष्ठान शुरू किया और पता नहीं क्या बुदबुदाने लग गया.

कुछ देर बाद अकरोना बाबा ने उस आई हुई औरत का हाथ पकड़ लिया. औरत ने कोई विरोध नहीं किया.

‘‘बाबाजी, मुझे आप के बारे में सब पता है. दरअसल, मेरी एक सहेली भी आप से यही वाला अनुष्ठान कराने आई थी और इसी तरह आप ने उसे बच्चा पैदा करने वाली कृपा की थी और जिस का मजा मेरी सहेली को भी आया था, इसलिए मेरे साथ आप को कोई नाटक करने की जरूरत नहीं है.’’

‘‘अरे वाह, तुम तो बहुत समझदार निकली, तो फिर आओ हम आराम से बिस्तर पर लेट कर जिस्मानी मजा लेते हैं,’’ बाबा ने कहा.

‘‘जिस्मानी मजा, पर वह क्यों?’’ उस औरत ने पूछा.

‘‘अरे, अभी तो तुम ने ही कहा था कि तुम मेरा तरीका जानती हो. तब तो तुम यह भी जानती होगी कि मैं औरत के साथ जबरन जिस्मानी रिश्ता बनाता हूं. अगर वे नानुकुर करती हैं तो मैं उन को चुड़ैल की आत्मा घोषित कर देता हूं. और फिर मुझे कुछ भी करने की जरूरत नहीं पड़ती, बाकी का काम उस के गांव वाले खुद ही कर डालते हैं…’’ हंसने लगा था अकरोना बाबा, क्योंकि उस ने अपना राज खुद ही खोल दिया था.

‘‘बस, अब तेरा खेल खत्म हुआ… अकरोना बाबा,’’ उस औरत ने अपने बैग से पिस्तौल निकालते हुए कहा.

‘‘क्या मतलब? कौन हो तुम?’’

‘‘मैं एक पुलिस इंस्पैक्टर हूं…’’

‘‘और यह मेरी साथी है,’’ बाहर बैठा हुआ वह आदमी अंदर आते हुए बोला.

‘‘हां तो तुम पुलिस हो… तो मैं क्या करूं… मैं ने किया क्या है,’’ अकरोना बाबा ने कहा.

‘‘औरतों के रेप के आरोप में हम तुम्हें गिरफ्तार करते हैं. हमें कई बार तुम्हारे खिलाफ गुमनाम फोन द्वारा शिकायतें मिल रही थीं, पर सुबूत की कमी में हम कुछ कर नहीं पा रहे थे और इसीलिए हम ने यह प्लान बनाया.

‘‘और हम ने तुम्हारी इस दाढ़ी के पीछे छिपे चेहरे को भी पहचान लिया है. तुम एक शातिर ठग विजय हो जो जेल से भाग कर अपना वेश बदल

कर यह काम करने लगा था,’’ इंस्पैक्टर ने कहा.

‘‘पर, सुबूत क्या है तुम लोगों के पास?’’ अकरोना बाबा चीख रहा था.

‘‘सारा सुबूत इस के अंदर है,’’ उस महिला इंस्पैक्टर ने अपने बैग में छिपा एक खुफिया कैमरा दिखाते हुए कहा.

‘‘और मेरे उकसाने पर तुम ने खुद ही अपनी सारी बातें मुंह से उगली है, अब बाकी की जिंदगी जेल में कैदियों का कोरोना भगाने में लगाना,’’ महिला इंस्पैक्टर ने अकरोना बाबा को हथकड़ी पहनाते हुए कहा.

और इस तरह से एक ठग, जो अकरोना बाबा बना फिरता था, पहुंच गया सलाखों के पीछे. सही कहा गया है कि बुरे काम का बुरा नतीजा.

सुरक्षाबोध: कहानी नए प्यार की

लड़के ने लड़की को मैसेज किया सुंदर से गुलाब के फूल के साथ, जिस की पंखुडि़यों पर ओस की बूंदें थीं. उस के हाथ जुड़े हुए थे और उस पर लिखा था, ‘‘बीते साल में हम से कोई गलती हुई हो तो माफ कीजिएगा. यह साथ नए वर्ष में भी बना रहे.’’

उस मैसेज को पढ़ कर लड़की ने हंसते हुए अनेक इमोजी दाग दिए.

‘‘अरे, ऐसा तो मैं ने कुछ नहीं कहा कि इतना हंसा जाए,’’ बेचारा हैरान सा हो कर रह गया. अभी सोच ही रहा था कि उधर से हंसी वाले इमोजी की एक कतार और टपक पड़ी. अगले दिन जब मुलाकात हुई तो उस ने पूछ ही लिया, ‘‘भला ऐसा क्या था मेरे मैसेज में जो तुम को हंसी आ गई, जोक तो नहीं भेजा था मैं ने.’’

लड़की फिर भी लगातार हंसे जा रही थी. उस ने थोड़ा झुक कर पेट पकड़ लिया था और दोहरी हुई जा रही थी. लड़की की विस्मय से आंखें फटी जा रही थीं.

‘‘तुम ने जोक नहीं सुनाया, यह तो सही है मगर तुम ने माफी किस बात की मांगी, यह तो बताओ,’’ लड़की ने कहा.

‘‘ऐसे ही, जानेअनजाने गलती हो जाती है. बस, इसीलिए मैं ने इंसानियत के नाते माफी मांग ली.’’

18 साल की वह लड़की देखने में पूरी तरह मौडर्न कही जा सकती थी. मिनी स्कर्ट के साथ पिंक स्लीवलैस टौप उस पर खूब फब रहा था. कंधे तक कटे बाल उस पर बहुत सूट कर रहे थे. आंखों में लगे मोटेमोटे काजल ने उन्हें और बड़ा बना दिया था. वह इतनी अदा से बोल रही थी कि लड़के की नजर उस के चेहरे से हट ही नहीं रही थी. लड़का कुछ कम स्मार्ट हो, ऐसा नहीं था. अच्छाखासा कद, चौड़े कंधे, स्टाइलिश बाल, उसे देख कर कोई भी लड़की उस पर फिदा हो सकती थी.

वे दोनों दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ते थे. कालेज औफ कैंपस था. आसपास का माहौल भी ऐसा था कि बिगड़े और कुछ लफंगे लड़के ही नजर आते थे. कालेज में सुबह से शाम तक हलचल रहती थी और किसी न किसी बात पर होहल्ला भी होता रहता था.

वे दोनों कैंटीन में थे. लड़की चल कर बड़ी टेबल तक पहुंच गई. लड़का भी उस के पीछेपीछे चला जा रहा था जैसे सूई के पीछे धागा. लड़की ने टेबल पर अपना पर्स उलट दिया, छोटेछोटे कई सामान गिर पड़े, ब्रेसलेट, ईयर रिंग, रूमाल आदि. उस ने ब्रेसलेट हाथ में उठाया और लड़के की नाक के पास ले गई. लड़के को लगा था माथे पर मारेगी तो थोड़ा पीछे हटा, लेकिन, लड़की नहीं मानी, वह उतना ही आगे झुक गई.

‘‘यह ब्रेसलेट मुझे उस ने दिया,’’ लड़की ने कहा.

‘‘हकलाते हुए उस ने बोला, ‘‘किस ने?’’

‘‘वह जो फर्स्ट रौ में सब से लास्ट में बैठता है.’’

‘‘अच्छाअच्छा वह तो…’’ लड़के ने राहत की सांस ली. लेकिन अगले ही पल लड़की ने परफ्यूम उठा लिया और दाएंबाएं शीशी नचाने लगी. पास आते हुए बोली, ‘‘यह मुझे उस ने दिया.’’

‘‘किस ने?’’ लड़का फिर घबरा गया उसे समझ नहीं आ रहा था कि उस की सांस क्यों तेज चल रही है.

‘‘वही जिस के बाजू पर टैटू है,’’ लड़की बोली, ‘‘और कुछ कहा भी, सुनना चाहोगे?’’

लड़का हकलाने लगा था, ‘‘हां, ब…ब… बताओ… क क क्या कहा था उस ने?’’

‘‘न्यू ईयर गिफ्ट जानेमन,’’ लड़की ने बताया.

लड़के की आंखों की पुतलियां फैल गईं, ‘‘उस ने ऐसा कहा?’’

लड़की अब एक के बाद एक आइटम उठाउठा कर लड़के की आंखों के सामने नचा रही थी और देने वाले का बखान भी कर रही थी.

फिर, लड़की एकदम गंभीर हो गई.

‘‘तुम लड़के क्या समझते हो? मित्रता क्या है?’’

लड़का मौन था. जैसे सांप सूंघ गया हो. उसे लड़की की ओर देखने के अलावा कुछ और सूझ नहीं रहा था. न सूझने के कारण ही वह अवाक था. ऐसा लगने लगा जैसे उस की आंखें 2 बटन की तरह लड़की के चेहरे पर टांक दी गई थीं.

लड़की अब तटस्थ हो चली थी, ‘‘तुम लड़के हम से मित्रता करते ही क्यों हो? क्योंकि यह एक अच्छा टाइमपास है?’’ उस ने अपना मुंह दूसरी ओर घुमा लिया.

‘‘नहीं, ऐसा नहीं है,’’ लड़का मुश्किल से बस इतना ही बोल पाया.

‘‘तो फिर बताओ,’’ लड़की अब काफी नजदीक आ गई थी. उस का चेहरा फिर लड़के के चेहरे के बिलकुल सामने था जैसे कि उस की आंखें लड़के की आंखों में कूदी जा रही थीं.

‘‘तुम ने कभी इन सब को रोका क्यों नहीं, तुम तो जानते थे कि ये सब मुझे तंग करते हैं या नहीं, जानते थे. बोलो?’’ उस के हाथ से चुटकी बजी.

‘‘हां, थोड़ा तो…’’ लड़के ने जवाब दिया.

‘‘तो फिर?’’ लड़की ने उसे घूरते हुए कहा.

‘‘सौरी,’’ लड़का झिझकते हुए बोला.

‘‘सौरी क्यों बोल रहे हो,’’ लड़की ने आश्चर्य से उस की ओर देखते हुए कहा.

‘‘मुझे इन सब के बारे में पता नहीं था लेकिन जब मैं उन सब को तुम्हारी तरह देखता, तो मुझे लगता था जैसे तुम्हें यह अटैंशन अच्छी लगती है.’’

‘‘क्या, सच में?’’

‘‘हां, पर सच अब जान पाया हूं और गलती का एहसास हो रहा है.’’

लड़के को फिर से कुछ सूझ नहीं रहा था. कुछ न सूझने की यह बीमारी उस की एकदम नई थी. बेचारा सही अर्थों में मिट्टी का माधो हो गया था. वैसे लड़का था मेधावी. हमेशा मैरिट लिस्ट में रहता था. स्कूल के दिनों में ऐथलीट भी रहा. लेकिन इधर कालेज में आने के बाद किताबी कीड़ा हो गया था. पिता की बेकरी शौप पर भी कभीकभी बैठ लेता था. ग्राहकों से मिठयामिठया कर बोलता. वैसे कोई ऐब नहीं था लड़के में. बस, दिन में 2-4 मैसेज वह लड़की को कर ही देता था. उस का हालचाल पूछता, गुडमौर्निंग और गुडनाइट के अलावा फलानेढिमकाने दिवस की शुभकामनाएं देता रहता और हां, उस की डीपी को एकांत में जूम कर के देखा करता.

शायद लड़का लड़की को मन ही मन चाहता था पर बेचारा बोलने से घबरा जाता. उसे लगता, कहीं जितनी बात होती है वह भी बंद न हो जाए.

इधर लड़की को भी लड़के की संजीदगी पसंद थी. लड़की के सामने आने पर वह मुसकरा कर रह जाता, कभीकभी हाय बोलता. कभी अधिक बात नहीं करता था. यही उस की एक बात थी जो लड़की को अच्छी लगती थी. वह चाहती थी इस घोंचू से कुछ कहे, मगर क्यों कहे, क्या उसे खुद नहीं दिखाई देता?

जब परफ्यूम वाले लड़के ने परफ्यूम गिफ्ट किया था और जानेमन कहा था तो सातों समंदर उस के अंदर खौल पड़े थे, फिर भी वह ऊपर से शांत पानी थी. लहर का कोई निशान नहीं. निर्भया के साथ क्या हुआ इधर हैदराबाद में वेटेरिनरी डाक्टर का भी कैसा हाल हुआ था. उन्नाव में भी… तभी उसे उस लड़की का चेहरा याद आ गया. वह किसी से मदद नहीं मांग सकती. हां, यह लड़का है न, कुछ और नहीं तो कम से कम उस के साथ चल तो सकता है, उन से बात कर सकता है समझा सकता है. लेकिन लड़के ने ऐसा कुछ नहीं किया. वह किसी तरह व्हाट्सऐप नंबर पा गया था और इतने में ही खुश था. लड़की ने लंबी सांस ली और बताया, ‘‘मैं अब क्लासेस अटैंड नहीं करूंगी.’’

‘‘क्यों?’’ लड़के ने पूछा.

‘‘डर लगता है कहीं मैं भी… निर्भया…डाक्टर… उन्नाव… समझ गए न? मुझे इस माहौल में डर लगता है कभीकभी.’’

‘‘चुप,’’ न जाने कैसे लड़के का हाथ लड़की के मुंह तक चला गया. लड़की की आंखों में 2 बूंदें आंसू की छलक आई थीं. इस बार सातों समंदर में एकसाथ ज्वार आया था.

‘‘मैं वादा करता हूं,’’ लड़का अब तक स्वयं को संतुलित कर चुका था. ‘‘तुम्हारी सुरक्षा अब मेरी जिम्मेदारी है. तुम्हें अकेला नहीं छोड़ूंगा. तुम्हें अब से कोई तंग नहीं करेगा,’’ कहते हुए लड़का एक समझदार वयस्क की तरह पेश आ रहा था.

लड़की अब सुबकने लगी थी. उस ने लड़के का हाथ अपने मुंह से हटा दिया, ‘‘मगर वे तुम्हें कुछ करेंगे तो नहीं? झगड़ा मत करना प्लीज’’ लड़की को अब एक अलग तरह का डर सताने लगा था.

‘‘मैं ऐसा कुछ नहीं करूंगा,’’ उस ने लड़की का हाथ अपने हाथ में ले लिया, ‘‘मैं सिर्फ और सिर्फ तुम्हारे साथ रहूंगा, देखूंगा तुम्हें कोई तंग न करे, तुम्हें अकेला नहीं छोड़ूंगा, बस.’’

‘‘सच?’’ लड़की खुश थी. उस ने लड़के के कंधे को अपने सिर से हलका धक्का दिया, ‘‘जाओ, अब माफ किया.’’

‘‘हैं?’’ लड़का फिर हैरान था.

‘‘नए साल में अगर मुझ से कोई गलती हो गई हो तो प्लीज मुझे माफ करना. यह साथ यों ही बना रहे,’’ कहते हुए लड़की के मुंह से फूल और सितारे झड़ रहे थे जो सीधे धरती से आकाश तक फैल गए थे. लड़का लड़की को खुश देख कर खुश था.

पत्नी बनने की जिद ने करवाया कत्ल

11 दिसंबर, 2016 की बात है. उत्तर प्रदेश के जिला शिकोहाबाद के थाना मक्खनपुर के 2 कांस्टेबल क्षेत्र में रात्रि गश्त पर निकले थे, तभी उन्होंने मक्खनपुर गांव के ही एक अधबने मकान से जबरदस्त धुआं उठते देखा. वे दोनों उस मकान में घुसे तो प्लास्टिक की बोरियों में आग लगी देखी. उन्होंने इस की सूचना थानाप्रभारी देवेंद्र सिंह और अग्निशमन दल को फोन कर के दे दी.

कुछ ही देर में थानाप्रभारी वहां पहुंच गए. उन्होंने जब गौर किया तो उन्हें इंसान के पैर दिखे जिन में बिछुए थे. वह समझ गए कि यह किसी महिला की लाश है. तब तक अग्निशमन दल की टीम भी वहां आ चुकी थी. टीम ने जब आग बुझाई तो वहां वास्तव में एक महिला की लाश निकली. वह लाश झुलस चुकी थी. फिर भी चेहरा इतना तो बचा था कि उस की शिनाख्त हो सकती थी.

गांव के जो लोग वहां इकट्ठे थे, उन से लाश की शिनाख्त कराई तो इकबाल ने उस की पुष्टि अपनी भाभी नरगिस के रूप में की. उस ने बताया कि भाई महबूब की मौत के बाद यह रशीद के साथ रहती थी. रशीद शिकोहाबाद के रुकुनपुरा का रहने वाला था और शिकोहाबाद शहर में संदूक बनाने का काम करता था. प्रारंभिक पूछताछ में पुलिस को काफी जानकारी मिल चुकी थी, इसलिए पुलिस ने मौके की जरूरी काररवाई पूरी कर के लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया.

अज्ञात हत्यारे के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर पुलिस ने रशीद की तलाश में उस के रुकुनपुरा स्थित घर पर दबिश दी पर वह घर पर नहीं मिला. शिकोहाबाद में जो उस की संदूक की दुकान थी, वह भी बंद मिली. इस से पुलिस को उस पर पूरा शक होने लगा.

रशीद के जो भी ठिकाने थे, पुलिस ने उन सभी जगहों पर उसे तलाशा पर उस का पता नहीं चला. उस ने अपना मोबाइल फोन भी बंद कर रखा था. ऐसे में थानाप्रभारी ने सादे कपड़ों में एक कांस्टेबल को उस के घर पर नजर रखने के लिए लगा दिया.

करीब 15 दिन बाद आखिर एक मुखबिर की सूचना पर पुलिस ने रशीद को शिकोहाबाद के बसस्टैंड से हिरासत में ले लिया. वह वहां दिल्ली जाने वाली बस का इंतजार कर रहा था. थाने ला कर जब उस से नरगिस की हत्या के सिलसिले में पूछताछ की गई तो उस ने स्वीकार कर लिया कि उस के सामने हालात ऐसे बन गए थे, जिस से उसे उस की हत्या करने के लिए मजबूर होना पड़ा. इस के बाद उस ने उस की हत्या की जो कहानी बताई, वह इस प्रकार निकली—

नरगिस पश्चिम बंगाल के रहने वाले सलीम की बेटी थी. सलीम मेहनतमजदूरी कर के जैसेतैसे परिवार का पालनपोषण कर रहे थे. आज भी ऐसे युवक, जिन की किसी वजह से शादी नहीं हो पाती है, वे पश्चिम बंगाल, बिहार और उड़ीसा जैसे राज्यों का रुख करते हैं. इन राज्यों के कुछ करीब अभिभावक अपनी बेटी के भविष्य को देखते हुए बेटियों का हाथ उन युवकों के हाथ में दे देते हैं. वे बाकायदा सामाजिक रीतिरिवाज से शादी करते हैं. इसी तरह नरगिस की शादी भी उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद के रामगढ़ के रहने वाले महबूब से हुई थी.

महबूब का अपना निजी घर था, जहां वह अपने 5 भाइयों के साथ रहता था. कालांतर में उस के 3 बड़े भाई मुंबई चले गए. घर में वह और उस का छोटा भाई इकबाल ही रह गया था. दोनों भाई मजदूरी कर के अपना घर चला रहे थे. नरगिस के आ जाने से उन्हें समय पर पकीपकाई रोटी मिल जाती थी. समय बीतता गया और नरगिस 4 बच्चों की मां बन गई.

नरगिस पति के साथ खुश थी. मांबाप के घर गरीबी के अलावा कुछ नहीं था पर यहां पति और देवर अपनी कमाई ला कर उस के हाथ पर रखते तो वह खुश हो जाती. उस ने भी अपनी जिम्मेदारी से घरगृहस्थी को अच्छे से संभाल लिया था.

महबूब मजदूरी कर के जब घर लौटता तो वह थकामांदा होता था. लेकिन पिछले कुछ दिनों से उस की तबीयत खराब रहने लगी थी. वह शारीरिक रूप से भी कमजोर हो गया था. उसे सांस फूलने की शिकायत हो गई थी. इस की वजह से उस का काम पर जाना भी मुश्किल हो गया था. फिर एक दिन ऐसा आया कि उस ने खाट पकड़ ली. इस के बाद वह फिर उठ नहीं सका.

पति के बीमार होने के बाद नरगिस परेशान रहने लगी. देवर जो कमा कर लाता, उस से घर का खर्च ही चल पाता था. पैसे के अभाव में वह पति का इलाज तक नहीं करा पा रही थी. फिर मजबूरी में उस ने चूड़ी के कारखाने में काम करना शुरू कर दिया. धीरेधीरे गृहस्थी की गाड़ी फिर पटरी पर आ गई पर महबूब को बीमारी ने बुरी तरह जकड़ लिया और इलाज के अभाव में एक दिन उस की मौत हो गई.

पति का साया सिर से उठने के बाद नरगिस बुरी तरह टूट गई और बुरे दिनों में देवर इकबाल ने भी उस का साथ छोड़ दिया. नरगिस को बच्चों की चिंता खाए जा रही थी. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. इसी बीच एक दिन उस की मुलाकात रशीद नाम के एक आदमी से हुई. रशीद रुकुनपुरा थाना शिकोहाबाद का रहने वाला था और मक्खनपुर में संदूक बनाने का काम करता था.

रशीद के साथ नरगिस की मुलाकात तब हुई जब वह अपनी एक पड़ोसन के लिए संदूक खरीदने उस की दुकान पर गई थी. रशीद को अचानक नरगिस अच्छी लगने लगी थी. वह उस से बात करना चाहता था पर उस दिन साथ में दूसरी औरत होने की वजह से बात नहीं कर सका. लेकिन बातचीत कर के उसे पता लग गया था कि वह फिरोजाबाद के रामगढ़ थाने के पास की गली में रहती है.

नरगिस को देखने के बाद रशीद के दिल में खलबली मच गई थी. वह उस से मिलना चाहता था, इसलिए एक दिन वह दुकान बंद कर के थाना रामगढ़ के नजदीक पहुंच कर आसपास के लोगों से नरगिस के बारे में पूछने लगा. लेकिन कोई उसे कुछ नहीं बता पाया. फिर अचानक उसे गली की नुक्कड़ पर नरगिस मिल गई.

नरगिस ने उसे देखा तो कहा, ‘‘अरे, तुम यहां कैसे?’’

‘‘अपने किसी दोस्त से मिलने आया था.’’ रशीद ने बहाना बनाया.

नरगिस ने उसे अपने घर चलने को कहा तो वह उस के साथ चल दिया.

नरगिस के घर पहुंच कर रशीद ने उस के हालात का जायजा लिया. उस के प्रति सहानुभूति दिखाई तो नरगिस के दिल में रुका हुआ लावा भी फूट पड़ा. उस ने बताया कि शौहर की मौत के बाद जिंदगी बहुत मुश्किल हो गई है. रशीद ने महसूस किया कि नरगिस को भी किसी मर्द के सान्निध्य की जरूरत है. इसी का उस ने फायदा उठाने का फैसला लिया. पर नरगिस का दिल टटोलना भी जरूरी था, लिहाजा उस दिन वह कुछ ही देर में फिर से मिलने का वादा कर के चला आया. उस ने नरगिस को अपना मोबाइल नंबर दे दिया और कहा जब भी किसी चीज की जरूरत हो, वह उस से बेझिझक कह सकती है.

नरगिस को भी एक दोस्त की जरूरत थी, अत: धीरेधीरे वे दोनों मोबाइल पर दिल की बातें करने लगे. रशीद जब नरगिस के घर जाता तो बच्चों के लिए कुछ खानेपीने की चीजें भी ले जाता. इस से नरगिस के बच्चे भी उस के साथ घुलमिल गए थे. बातचीत के दौरान नरगिस को यह जानकारी हो गई थी कि रशीद शादीशुदा ही नहीं, 2 बच्चों का बाप भी है.

लेकिन उसे तो एक सहारे की जरूरत थी इसलिए उस का रशीद के प्रति झुकाव बढ़ता गया. एक दिन नरगिस देर शाम को उस की दुकान पर आई. कुछ देर बाद जब वह जाने लगी तो रशीद ने उस का हाथ पकड़ लिया और आई लव यू कहते हुए अपने मन की बात कह डाली. नरगिस ने उसे घूर कर देखा और तमक कर बोली, ‘‘कुछ देर बाद तुम घर आ जाना. मैं खाना बना कर रखूंगी. तभी बात करेंगे.’’ इस के बाद वह चली गई.

रशीद का दिल बल्लियों उछल रहा था. नरगिस जैसी हसीन औरत का सामीप्य जो उसे मिलने वाला था. उस समय वह भूल गया कि शिकोहाबाद में उस की पत्नी और बच्चे भी हैं. रशीद ने उस दिन अन्य दिनों की अपेक्षा पहले ही दुकान बंद कर दी. फिर कुछ देर इधरउधर टहलता रहा. हलका अंधेरा होने पर उस ने नरगिस के घर का रुख कर दिया. जब वह उस के घर पहुंचा तो देखा कि उस के बच्चे सो चुके थे और वह उस का इंतजार कर रही थी.

औपचारिक बातचीत के बाद नरगिस ने खाना लगा दिया. रशीद ने नरगिस को भी साथ बैठा कर खाना खिलाया. खाना खाने के बाद वह उसे कमरे में ले आई. अब कमरे में रशीद और नरगिस के अलावा तनहाई थी जो उन्हें कोई गुनाह करने को उकसा रही थी. उस रात उन्होंने अपनी हसरतें पूरी कीं. रात काली और लंबी जरूर थी लेकिन उन के लिए खुशनुमा थी. सुबह रशीद ने चलते समय कुछ रुपए नरगिस के हाथ में रखते हुए कहा, ‘‘ये खर्चे के लिए हैं.’’ फिर बोला, ‘‘तुम खाना बहुत अच्छा बनाती हो.’’ नरगिस भी हंसते हुए बोली, ‘‘आज से तुम्हें ये खाना रोज मिलेगा.’’

रशीद चला गया पर नरगिस का अधूरापन पूरा कर गया था. वह खुश थी. उसे एक सहारा मिल गया था. शाम को उस ने खाना बनाया और टिफिन ले कर रशीद की दुकान पर पहुंच गई. उसे देखते ही रशीद बोला, ‘‘अरे तुम यहां, मैं तो अपने घर शिकोहाबाद जाने वाला था.’’

‘‘हां, चौंक क्यों रहे हो. जब रोज शाम का खाना तुम्हें यहीं मिल जाया करेगा. तब शिकोहाबाद जा कर क्या करोगे.’’ वह बोली.

इस के बाद नरगिस का रशीद की दुकान पर आनाजाना होने लगा. रशीद को जब रोजाना ही शाम का खाना मिलने लगा तो उस ने शिकोहाबाद में अपने घर जाना बंद कर दिया. कई दिनों तक वह घर नहीं गया तो उस की पत्नी सलमा को चिंता होने लगी. उस ने पति को फोन किया तो रशीद ने दुकान पर काम ज्यादा होने का बहाना कर दिया.

फिर एक दिन रशीद नरगिस को बताए बिना अपने घर चला गया. नरगिस जब खाना ले कर उस की दुकान पर पहुंची तो दुकान का ताला बंद देख कर उस ने रशीद को फोन मिलाया. तब उसे उस के घर जाने की जानकारी मिली. अगले दिन रशीद आया तो नरगिस ने उस से शिकायत की.

उस ने रशीद से कहा कि उस का रोजरोज दुकान पर आना ठीक नहीं है. उस ने उसे मक्खनपुर में ही किराए का कमरा लेने की सलाह दी. रशीद को उस की सलाह उचित लगी. इसलिए उस ने मक्खनपुर में किराए का कमरा ले लिया. अब नरगिस वहीं शाम का खाना ले कर पहुंच जाती और फिर सारी रात प्रेमी के आगोश में होती थी. करीब 6 महीने तक उन दोनों के बीच गुपचुप तरीके से संबंध बने रहे. कभीकभी नरगिस यह सोच कर डरती थी कि कहीं रशीद उसे छोड़ न दे.

उस का रशीद पर कोई कानूनी हक तो था नहीं, जो वह उस पर अधिकार जताती. वह रशीद के मन की बात टटोलना चाहती थी. एक दिन बातों ही बातों में नरगिस ने उस की पत्नी सलमा के बारे में कुछ कह दिया तो रशीद भड़क उठा. नरगिस को लगा कि अभी सही वक्त नहीं आया है. रशीद को अपना बनाने में कुछ वक्त देना होगा और कुछ ऐसा करना होगा जिस से वह पत्नी को छोड़ उसी का हो जाए.

वक्त आगे बढ़ रहा था पर नरगिस के गलीमोहल्ले वालों में नरगिस और रशीद के संबंधों की बात फैल गई थी. इकबाल चूंकि रिक्शा चला कर देर रात को लौटता था इसलिए उसे भाभी के बारे में कुछ भी पता नहीं था. एक दिन एक पड़ोसी ने उस से कहा, ‘‘इकबाल, तुम अपनी भाभी पर नजर रखो. कहीं किसी दिन वह बच्चों को छोड़ कर भाग गई तो बच्चे तुम्हारे गले पड़ जाएंगे.’’ यह सुन कर इकबाल चिंतित हो उठा. उस ने उस पड़ोसी से पूछताछ की तो उसे भाभी की सच्चाई पता चली.

यह बात इकबाल को पसंद नहीं आई. उस ने नरगिस को समझाने की कोशिश की तो नरगिस ने घूर कर उस की ओर देखते हुए कहा, ‘‘भाई की मौत के बाद तुम ने कभी जानने की कोशिश की कि मैं किस हाल में रहती हूं, बल्कि घर की जिम्मेदारी उठाने के बजाय तुम ने मुझे अकेला छोड़ दिया. बेहतर यही है कि तुम मेरी जिंदगी में टांग मत अड़ाओ.’’

इकबाल के पास इसका कोई जवाब नहीं था. अब नरगिस के मन में एक ही ख्वाहिश थी और वह यह थी कि रशीद की रखैल से अब बीवी कैसे बने. वह रशीद को बताती कि उस के मोहल्ले वाले और देवर उस के खिलाफ हो रहे हैं. तब रशीद उसे समझाता कि जमाना तो कुछ न कुछ कहता ही है. हमें जमाने से लड़ना थोड़े ही है. रशीद की बातों से नरगिस को समझ में आने लगा था कि वह उसे सिर्फ इस्तेमाल कर रहा है. वह रिश्ते के प्रति गंभीर नहीं है और न ही उस का उस से निकाह करने का ही कोई इरादा है. इधर रशीद सोच रहा था कि वह नरगिस से मोहब्बत करता है और बदले में उस का खर्चा उठाता है. इतना ही बहुत है. दोनों के बीच की कशमकश रिश्ते में खटास ला रही थी. अब तो नरगिस उसे शिकोहाबाद जाने से भी रोकती थी.

इसी बीच रशीद की बीवी को भनक लग गई कि उस के शौहर ने फिरोजाबाद में भी कोई औरत रखी हुई है. यह जानकारी मिलते ही सलमा परेशान हो गई और एक दिन जब रशीद घर आया तो उस ने साफ कह दिया कि वह अपने मायके चली जाएगी और मांबाप को सब कुछ बता देगी. सलमा की इस धमकी से रशीद परेशान हो गया. वह दो नावों पर सवार था. अब उसे डूबने से डर लगने लगा. नरगिस इतनी करीब आ चुकी थी कि उसे छोड़ना भी मुश्किल था. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. इधर नरगिस ने भी तय कर लिया कि वह सलमा को रशीद की जिंदगी से निकाल देगी. एक दिन उस ने रशीद से साफसाफ कह दिया, ‘‘बहुत हो गया. अब तुम्हें फैसला करना ही होगा.’’

‘‘कैसा फैसला?’’ रशीद चौंकते हुए बोला.

‘‘आखिर मैं कब तक तुम्हारी रखैल बन कर रहूंगी. सलमा को तलाक दो और मुझ से निकाह करो.’’ नरगिस अपनी बातों पर जोर देते हुए बोली. रशीद को नरगिस की यह बात इतनी बुरी लगी कि उस ने उस के गाल पर एक तमाचा जड़ दिया और कहा, ‘‘आगे से कभी सलमा को तलाक देने की बात मुंह से मत निकालना.’’

नरगिस को भी गुस्सा आ गया. वह बोली, ‘‘तुम ने मुझे मारने की हिम्मत की. अब मैं भी बताती हूं कि या तो मुझ से निकाह करो वरना मैं कुछ भी कर सकती हूं.’’

रशीद नरगिस की धमकी से डर गया कि कहीं यह उस के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज न करा दे. वह किसी चक्कर में नहीं पड़ना चाहता था. इसलिए उस ने अपना व्यवहार सामान्य कर के उसे समझाया. पर मन ही मन उस ने उस से छुटकारा पाने का फैसला कर लिया. वह इस का उपाय ढूंढने लगा. रशीद ने अब नरगिस से मिलनाजुलना कम कर दिया. वह दुकान बंद कर के किराए के कमरे पर आने के बजाए शिकोहाबाद स्थित अपने घर चला जाता था. नरगिस के पूछने पर कोई न कोई बहाना बना देता था. नरगिस रशीद को खोना नहीं चाहता थी क्योंकि वह घर चलाने के पैसे जो देता रहता था.

नरगिस से अवैध संबंधों की बात रशीद की ससुराल तक पहुंच गई थी. अब रशीद को बदनामी से भी डर लगने लगा. वह समझ गया कि इस की वजह से समाज और रिश्तेदारी में उस की बेइज्जती हो सकती है इसलिए नरगिस नाम के कांटे को जीवन से जल्द निकालने का उस ने फैसला ले लिया. इस के बाद किसी न किसी बात को ले कर उस का नरगिस से झगड़ा होने लगा.

तनाव की वजह से उस का धंधा भी चौपट हो चुका था. जिस मकान को उस ने नरगिस को किराए पर दिलाया था, वहां के आसपड़ोस वालों को भी दोनों के झगड़े की जानकारी हो चुकी थी, पर कोई भी उन के मामले में दखल नहीं देता था. जिस मकान में नरगिस रहती थी, वह अधबना था. मकान मालिक वहां नहीं रहता था.

12 दिसंबर, 2016 को दुकान बंद कर के रशीद नरगिस के पास कमरे पर पहुंचा. खाना खाने के बाद नरगिस ने पूछा, ‘‘तुम ने फैसला कर लिया?’’ ‘‘कैसा फैसला? देखो नरगिस, मैं तुम जैसी औरत के लिए अपने बीवीबच्चों को हरगिज नहीं छोड़ सकता.’’ वह दृढ़ता से बोला.

‘‘मुझ जैसी औरत….आखिर तुम कहना क्या चाहते हो? पहले तो बड़ीबड़ी बातें करते थे. इस का मतलब यह हुआ कि अब तक तुम केवल मेरा इस्तेमाल कर रहे थे. ठीक है, अब देखना मैं क्या करती हूं.’’ कह कर जैसे ही वह उठने लगी, रशीद ने उसे धक्का दे कर गिरा दिया और झट से उस के सीने पर बैठ गया.

वह उस का गला तब तक दबाए रहा जब तक वह मर नहीं गई. कुछ ही देर में नरगिस की लाश सामने थी और जुनून उतर चुका था. पुलिस का डर उसे सताने लगा था. लाश ठिकाने लगाने के लिए वह उसे अधबने कमरे में ले गया और उस पर वहां मौजूद प्लास्टिक की बोरियां डाल कर आग लगा दी. इस के बाद वह वहां से फरार हो गया.

कुछ देर बाद गश्ती सिपाही वहां से गुजर रहे थे तो मकान से धुआं निकलता देख वे मकान के अंदर चले गए. तब मामला दूसरा ही सामने आया.

रशीद से पूछताछ कर पुलिस ने उसे 28 दिसंबर, 2016 को न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. पुलिस मामले की तफ्तीश कर रही है.?

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

साइबर ठगी का शिकार हुआ शिवम, 8-9 लाख का बैंक खाते से हुआ फ्रौड

मध्य प्रदेश के जिला नरसिंहपुर का गोटेगांव कस्बा जिस का नाम श्रीधाम है, शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती की तपोस्थली के रूप में पूरे देश में जाना जाता है. 9 मई, 2023 की बात है. श्रीधाम रेलवे स्टेशन से चंद कदमों की दूरी पर ही पुलिस स्टेशन गोटेगांव में टीआई हिमलेंद्र पटेल अपने कक्ष में बैठे एक पुराने केस की फाइल पलट रहे थे, तभी एक 20-21 साल के नवयुवक ने उन के कमरे के सामने दस्तक देते हुए कहा, “सर, क्या मैं अंदर आ सकता हूं?”

“हां, आ जाइए.” टीआई ने कहा.

वह युवक कमरे में दाखिल हुआ और टीआई के इशारे पर कुरसी पर बैठ गया.

“बोलो क्या काम है?” फाइल से नजरें हटाते हुए टीआई बोले.

“सर, मेरा नाम शिवम कहार है. मेरे पिताजी सुनील कहार इस दुनिया में नहीं हैं. मैं बैलहाई इलाके में रहता हूं. सर, मेरे साथ बैलहाई में रहने वाले कमलेश पटेल और उस के साथियों ने मारपीट की है, मैं इस की रिपोर्ट लिखाने आया हूं.” घबराते हुए युवक बोला.

“आखिर मारपीट की कोई वजह भी तो होगी, राह चलते कोई किसी के साथ भला मारपीट क्यों करेगा?” टीआई पटेल ने उस से पूछा.

“सर, वजह कोई खास नहीं, पैसों के लेनदेन की वजह से कहासुनी हुई तो कमलेश और उस के दोस्त ब्रजेश, छोटू और अमन हाथापाई पर उतर आए.” शिवम ने बताया.

“किस तरह का लेनदेन था? क्या तुम ने उन लोगों से पैसे उधार लिए थे? उधारी का पैसा देने में कोताही कर रहे होगे?” टीआई पटेल सख्त हो कर बोले.

“नहीं सर, मैं ने किसी से पैसे उधार नहीं लिए थे. मुझे पैसों की जरूरत थी तो मैं ने अपने बैंक का एटीएम कार्ड और मोबाइल सिम कमलेश पटेल को दिया था. जब मैं ने अपने अकाउंट की डिटेल निकलवाई तो मुझे पता चला कि इस में 8-9 लाख रुपए का लेनदेन हुआ है. जब मैं ने कमलेश से अपना एटीएम वापस मांगा तो वह गालियां देने लगा. तभी उस के दोस्त भी वहां आ गए और सभी ने मिल कर मुझे खूब पीटा.” शिवम रोते हुए बोला.

टीआई हिमलेंद्र पटेल ने शिवम कहार की शिकायत नोट करते हुए इस की जांच के लिए अधीनस्थ स्टाफ को निर्देशित कर दिया.

ठगों ने शिवम के खाते में की 8-9 लाख की ट्रांजैक्शन

गोटेगांव में रहने वाले 21 साल के शिवम कहार की रिपोर्ट की जांच करने पर पता चला कि कमलेश पटेल निवासी गोटेगांव द्वारा लोन दिलाने एवं सिबिल स्कोर अच्छा करने का लालच दे कर शिवम से यूनियन बैंक औफ इंडिया और एक्सिस बैंक में खाते खुलवाए गए थे. बाद में कमलेश ने शिवम का खाता नंबर, एटीएम कार्ड और पिन ले कर उस के एक्सिस बैंक के खाते से 8-9 लाख रुपए का ट्रांजैक्शन कमलेश पटेल और उस के साथियों द्वारा मिल कर किया गया था.

पुलिस थाना गोटेगांव में शिवम कहार की रिपोर्ट पर कमलेश और उस के साथियों के खिलाफ भादंवि की धारा 420, 467, 120बी का अपराध दर्ज कर विवेचना में लिया गया. इस मामले की सूचना एसपी अमित कुमार को मिली तो उन्होंने आरोपियों की पतासाजी एवं गिरफ्तारी के लिए एडिशनल एसपी सुनील शिवहरे के निर्देशन और एसडीओपी (गोटेगांव) भावना मरावी की अध्यक्षता में विशेष पुलिस टीम गठित की गई.

पुलिस टीम आरोपियों की तलाश में जुट गई और स्थानीय मुखबिरों को भी सक्रिय कर दिया. जानकारी एकत्रित की गई. पुलिस टीम ने रिपोर्टकर्ता शिवम कहार से एक बार फिर पूछताछ की तो उस ने अपने साथ हुई धोखाधड़ी की जो कहानी बताई, उस से पुलिस अधिकारियों के होश उड़ गए.

दोस्त के जरिए ठग गैंग से हुआ संपर्क

बैलहाई आजाद वार्ड, गोटेगांव का रहने वाला शिवम कहार कुल जमा नौवीं जमात तक पढ़ा है. शिवम के पिता की साल 2020 में कोरोना से मौत हो गई थी. घर में मां और छोटी बहन को पालने की जिम्मेदारी उसी के कंधों पर आ गई थी. भाईबहन दोनों ही अविवाहित हैं. पिछले 3 सालों से वह चायनाश्ते की दुकान पर काम कर रहा है.

5 महीने पहले दिसंबर, 2022 में शिवम की मम्मी की तबीयत खराब हुई तो वह अपने दोस्त सरदार पटेल वार्ड में रहने वाले जय मुडिय़ा के पास पहुंच कर बोला, “यार जय, घर में मम्मी की तबीयत खराब है और मेरे पास उन की दवाइयों के लिए पैसे भी नहीं है. कुछ रुपए मुझे उधार दे दे, मैं जल्द तुझे लौटा दूंगा.”

“मेरे भाई, तुझे तो पता है कि मेरी माली हालत इतनी अच्छी नहीं है कि तुझे रुपए उधार दे सकूं. लेकिन एक शख्स है जो तुझे रुपए उधार दे सकता है.” जय ने शिवम को समस्या का हल बताते हुए कहा.

“बता यार कौन है वो, जो मुझे इस बुरे वक्त में रुपए उधार दे सकता है?” शिवम उतावला हो कर बोला.

“2-3 महीने पहले मुझे भी पैसों की जरूरत थी, तब मेरा संपर्क गोटेगांव के एक लडक़े से हुआ था जिस का नाम कमलेश पटेल है. उस ने मुझ से बैंक का एटीएम कार्ड, बैंक से लिंक सिम कार्ड लिया था. इस के एवज में उस ने मुझे 3 हजार रुपए दिए थे.

तभी उस ने कहा था कि यदि किसी और को पैसे कमाने हो तो उस से भी बैंक अकाउंट मांग लेना.” जय ने पूरी बात शिवम को समझाते हुए कहा.

“लेकिन इस में कोई गड़बड़ तो नहीं होगी?” आशंका जताते हुए शिवम ने पूछा.

“काहे की गड़बड़… हमारे अकाउंट में कहां के लाख रुपए जमा हैं.” भरोसा दिलाते हुए जय बोला.

जय ने शिवम की तसल्ली के लिए स्पीकर औन कर के कमलेश से बात की.

जय ने पूछा, “कमलेश भाई मेरा एक दोस्त शिवम है, जो अपना अकाउंट आप को देना चाहता है, लेकिन वह जानना चाहता है कि आप इस अकाउंट का क्या उपयोग करते हो?”

इस पर कमलेश ने फोन पर ही बताया, “मैं इस तरह कई लोगों से खाते ले कर आगे दूसरे व्यक्तियों को भेजता हूं. वे लोग इन

खातों में 3-4 लाख रुपए ओटीपी और लिंक के माध्यम से जमा कराते हैं. इस के बाद एटीएम और सिम के जरिए रुपए अकाउंट से निकाल लेते हैं. कुछ समय बाद फिर बैंक अकाउंट का उपयोग बंद कर देते हैं.”

साइबर कैफे वाला भी शामिल था ठग गैंग में

जय मुडिय़ा और कमलेश पटेल की बातों पर भरोसा करते हुए शिवम ने जय की मार्फत अपना यूनियन बैंक औफ इंडिया का एटीएम कार्ड व खाते से जुड़ा सिम कार्ड कमलेश को दे दिया. कमलेश से इस के बदले में उसे 2 हजार रुपए मिल गए. करीब 10 दिनों बाद शिवम के पास कमलेश पटेल का फोन आया.

उस ने जय का हवाला देते हुए बताया कि जो एटीएम कार्ड और सिम उस ने दिया है, वह सही ढंग से काम नहीं कर रहा है. उस ने दूसरा एटीएम जारी कराने और अकाउंट से दूसरा मोबाइल नंबर भी रजिस्टर्ड करवाने के लिए कहा.

इस काम के लिए कमलेश ने उसे रिपटा के पास साइबर पौइंट दुकान पर भेजा, जहां उस दुकानदार ने उस के नाम पर दूसरी सिम एक्टिवेट कर खुद रख ली और नंबर दे कर उसे बैंक खाते में लिंक कराने के लिए कहा.

साइबर पौइंट संचालक के कहे अनुसार शिवम ने बैंक जा कर अपने अकाउंट से नया मोबाइल नंबर लिंक करा कर दूसरा एटीएम कार्ड जारी करवा लिया और उसी साइबर पौइंट वाली दुकान के संचालक को दे दिया.

इस के एक सप्ताह बाद फिर कमलेश का फोन आया. उस ने शिवम से कहा, “और रुपयों की जरूरत हो तो दूसरे बैंक का एटीएम कार्ड और दूसरा सिम कार्ड लिंक करा कर दे सकते हो.”

कमलेश की बातों से शिवम के मन में लालच आ गया. कमलेश के कहे अनुसार शिवम ने एक्सिस बैंक का एटीएम कार्ड साइबर पौइंट दुकान पर दे दिया और दूसरी सिम भी लिंक करा दी. लेकिन इस बार दुकानदार ने 2 हजार रुपए नहीं दिए. इस के कुछ दिन बाद उस ने बैंक जा कर वह एटीएम कार्ड ब्लौक करा दिया. जब शिवम ने कमलेश से रुपए न मिलने की शिकायत की तो इस के बाद कमलेश ने संपर्क करना बंद कर दिया.

8 मई को वह कमलेश को दिए गए एक्सिस बैंक खाते की डिटेल पता करने बैंक गया तो पता चला कि उस के खाते में 9 लाख रुपए से अधिक का लेनदेन हुआ है. उस के खाते से लगातार लेनदेन किया जा रहा था, जबकि उस ने खाता खुलवाने के बाद खुद कभी एक भी रुपया जमा नहीं किया था. इस बात का उलाहना जब शिवम ने कमलेश और उस के साथियों को दिया तो वे हाथापाई पर उतर आए.

साइबर ठगों तक पहुंच गई पुलिस

शिवम की बात सुन कर पुलिस समझ गई कि यह एक गैंग है जो सुनियोजित तरीके से धंधा कर रहा है. पुलिस टीम को अब उस गैंग तक पहुंचना था. पुलिस ने जब जांच आगे बढ़ाई तो पता चला कि कमलेश पटेल ने इस तरह की डील और भी कई लोगों के साथ की हुई है. एसडीओपी भावना मरावी और गोटेगांव टीआई हिमलेंद्र पटेल ने जब इस की कडिय़ां जोड़ीं तो एक बड़े साइबर ठग गिरोह की जानकारी सामने आई.

जांच के दौरान पता चला कि शिवम जैसे ही कई लोगों के साथ कमलेश पटेल और उस की गैंग ने बैंक अकाउंट में धोखाधड़ी की है. पुलिस ने जब एकएक कर के 35 बैंक खातों की डिटेल खंगाली तो पता चला कि पिछले 5 महीने के दौरान इन बैंक खातों में मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, तेलंगाना, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा आदि राज्यों के लोगों के साथ धोखाधड़ी कर करोड़ों रुपयों का लेनदेन किया गया है.

बैंक अकाउंट को किराए पर लेने वाला यह गिरोह गोटेगांव और आसपास के लोगों को यह बोल कर बैंक खाते खुलवाते थे कि वे उन्हें आसानी से लोन दिलवाएंगे. इस के लिए उन का सिबिल स्कोर बढ़ाएंगे, जिस से ज्यादा लोन मिल सके. इस के लिए वे लोगों के बैंक पासबुक, एटीएम कार्ड और खाते से लिंक मोबाइल का सिम कार्ड खुद रख लेते थे.

फिर यह लोग ऐसे बैंक अकाउंट आकाश राजपूत नाम के ठग को बेचते थे. आकाश इन बैंक खातों को जामताड़ा, पश्चिम बंगाल, दिल्ली के साइबर फ्रौड करने वाले गिरोह को बेच देता था. ज्यादातर खाताधारकों को यह पता ही नहीं चलता था कि उन के खातों में लाखों का लेनदेन किया जा रहा है.

डिजिटल टेक्नोलौजी के दौर में देश में साइबर क्राइम जिस तेजी से बढ़ रहे हैं, पुलिस के सामने चुनौतियां भी बढ़ी हैं. पढ़ेलिखे नौजवानों को सरकार नौकरी नहीं दे पा रही. ऐसे में युवा पीढ़ी अपराध की ओर बढ़ रही है. साइबर क्राइम की घटनाएं केवल अब बड़े शहरो में ही नहीं, छोटेछोटे गांवकस्बों में तेजी से बढ़ रही हैं.

मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले में साइबर क्राइम का यह अनूठा मामला था, जिस में साइबर ठग बैंक अकाउंट को किराए पर दे कर उन अकाउंट में करोड़ों रुपए का लेनदेन करते थे.

मध्य प्रदेश के तमाम लोगों के अकाउंट ले रखे थे किराए पर

साइबर ठगों को किराए पर बैंक अकाउंट उपलब्ध कराने वाले इस गैंग ने नरसिंहपुर, बैतूल, जबलपुर समेत दूसरे शहरों के लोगों को टारगेट कर रखा था. इस के पहले मध्य प्रदेश के ग्वालियर, शिवपुरी और गुना में यह गैंग पुलिस के हत्थे चढ़ चुका था.

पुलिस ने जिन साइबर ठगी करने वाले लोगों को हिरासत में लिया है, उन में से एक आकाश सिंह राजपूत गैंग का सरगना है.

27 साल का आकाश गोसलपुर जबलपुर का रहने वाला है. उस के खिलाफ हिमाचल प्रदेश के शिमला, राजस्थान, मध्य प्रदेश सहित अन्य राज्यों में साइबर फ्रौड और अन्य मामलों के 25 अपराध दर्ज हैं. जबलपुर पुलिस उसे जिलाबदर कर चुकी है.

ग्रेजुएट आकाश ने साइबर ठगी से एक महीने में 20 लाख रुपए कमीशन के जरिए कमाए थे. उस के पास से जब्त की गई कार इसी रकम से खरीदी गई थी.

दूसरा आरोपी शिवम उर्फ ब्रजेश राजपूत का काम लोगों से बैंक खाता खुलवाना था. वह पशु चिकित्सालय गोटेगांव के सामने रहता है और साइबर कैफे चलाता है. कैफे में आने वाले कम उम्र के लडक़ों को वह रुपयों का लालच दे कर बैंक में अकाउंट खुलवाता था. फिर अकाउंट का एटीएम कार्ड और सिम कार्ड को अपने पास रख कर युवाओं को 2-3 हजार रुपए दे देता था. इस के खिलाफ मारपीट के मामले भी दर्ज हैं.

पकड़ा गया एक आरोपी अश्विन पटेल गोटेगांव के कुम्हड़ाखेड़ा का रहने वाला है, जो आकाश का खास साथी है. यह बैंक खाता नंबर, पैसे, फरजी सिम आदि पहुंचाने कई बार पश्चिम बंगाल के हावड़ा जा चुका है. इसे इस ठगी के नेटवर्क के बारे में काफी कुछ पता है. अनिल उर्फ छोटू पटेल गोटेगांव के बैलहाई का रहने वाला है, जो लोगों के बैंक खाते खुलवाता था और उन की डिटेल्स आकाश और अश्विन को देता था.

वाट्सऐप ग्रुप में बोली लगती थी बैंक अकाउंट की

एक और आरोपी आजाद वार्ड गोटेगांव का रहने वाला अमन गोरिया है, जिस का काम भी बैंक खातों की व्यवस्था करना था. यह लोगों को उन का सिबिल स्कोर बेहतर बनाने का झांसा देता था तथा बैंक से लोन दिलाता था. पकड़ा गया छठवां आरोपी अवधेश उर्फ राणा राजपूत गोटेगांव के समीप गांव गोहचर का रहने वाला है. राणा भी ग्रामीणों के बीच जा कर लोन दिलाने का झांसा दे कर बैंक खाते खुलवाता था.

जीतने का लालच देते हैं और फिर लौटरी का अमाउंट ट्रांसफर करने के नाम पर लोगों के बैंक खाते की सीक्रेट डिटेल्स जैसे- कार्ड नंबर, सीवीवी कोड, ओटीपी आदि हासिल कर के उन के बैंक खाते में मौजूद सारे पैसे उड़ा लेते हैं.

ऐसे धोखेबाजों और साइबर फ्रौड से बचे रहने के लिए सरकार लगातार लोगों को जागरूक करती रहती है. लोगों को यह बात ध्यान में रखनी चाहिए कि कोई भी अनजान व्यक्ति आप के बैंक अकाउंट की डिटेल के लिए फोन, एसएमएस या ईमेल करे तो इसे इग्नोर कर दें. इस के बावजूद भी यदि कोई साइबर फ्रौड का शिकार हो तो सब से पहले बैंक को सूचना दे कर नजदीकी पुलिस स्टेशन में अपनी शिकायत अवश्य दर्ज कराएं.

—भावना मरावी

एसडीओपी (गोटेगांव) नरसिंहपुर

प्यार में चली ऐसी चाल कि बना दिया खून

बिल्हौर मार्ग पर एक कस्बा है ककवन. इसी कस्बे से सटा एक गांव है नदीहा धामू. यहीं पर रामदयाल गौतम अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी कुसुमा के अलावा 2 बेटे सर्वेश, उमेश तथा 2 बेटियां राधा व सुधा थीं. रामदयाल गांव का संपन्न किसान था. उस का बेटा सर्वेश गांव में डेयरी चलाता था. संपन्न होने के कारण जातिबिरादरी में रामदयाल की हनक थी.

रामदयाल की छोटी बेटी सुधा 10वीं कक्षा में पढ़ रही थी, जबकि बड़ी बेटी ने 12वीं पास कर के पढ़ाई छोड़ दी थी. रामदयाल उसे पढ़ालिखा कर मास्टर बनाना चाहता था, लेकिन राधा के पढ़ाई छोड़ देने से उस का यह सपना पूरा नहीं हो सका. पढ़ाई छोड़ कर वह मां के साथ घरेलू काम में मदद करने लगी थी.

गांव के हिसाब से राधा कुछ ज्यादा ही सुंदर थी. जवानी में कदम रखा तो उस की सुंदरता में और निखार आ गया. उस का गोरा रंग, बड़ीबड़ी आंखें और कंधों तक लहराते बाल, हर किसी को अपनी ओर आकर्षित कर लेते थे. अपनी इस खूबसूरती पर राधा को भी नाज था.

यही वजह थी कि जब कोई लड़का उसे चाहत भरी नजरों से देखता तो वह इस तरह घूरती मानो खा जाएगी. उस की इन खा जाने वाली नजरों से ही लड़के डर जाते थे.लेकिन आलोक राजपूत राधा की इन नजरों से जरा भी नहीं डरा था. वह राधा के घर से कुछ ही दूरी पर रहता था. आलोक के पिता राजकुमार राजपूत प्राइमरी स्कूल में अध्यापक थे. लेकिन रिटायर हो चुके थे. उन की एक बेटी तथा एक बेटा आलोक था. बेटी का वह विवाह कर चुके थे.

पिता के रिटायर हो जाने के बाद घरपरिवार की जिम्मेदारी आलोक पर आ गई थी. बीए करने के बाद वह नौकरी की तलाश में था. लेकिन जब नौकरी नहीं मिली तो उस ने अपनी खेती संभाल ली थी. इस के अलावा उस ने घर में किराने की दुकान भी खोल ली थी. इस से उसे अतिरिक्त आमदनी हो जाती थी.

राधा के भाई सर्वेश की आलोक से खूब पटती थी. आसपड़ोस में रहने की वजह से दोनों का एकदूसरे के घर भी आनाजाना था. आलोक जब भी सर्वेश के घर आता था, राधा उसे घर के कार्यों में लगी नजर आती थी. वैसे तो वह उसे बचपन से देखता आया था, लेकिन पहले वाली राधा में और अब की राधा में काफी फर्क आ गया था.

पहले जहां वह बच्ची लगती थी, अब वही जवान होने पर ऐसी हो गई थी कि उस पर से नजर हटाने का मन ही नहीं होता था.एक दिन आलोक राधा के घर पहुंचा तो सामने वही पड़ गई. उस ने पूछा, ‘‘सर्वेश कहां है?’ ‘‘मम्मी और भैया तो कस्बे में गए हैं. कोई काम था क्या?’’ राधा बोली.

‘‘नहीं, कोेई खास काम नहीं था. बस ऐसे ही आ गया था. सर्वेश आए तो बता देना कि मैं आया था.’’‘‘बैठो, भैया आते ही होंगे.’’ राधा ने कहा तो आलोक वहीं पड़ी चारपाई पर बैठ गया.  आलोक बैठा तो राधा रसोई की ओर बढ़ी. उसे रसोई की ओर जाते देख आलोक ने कहा, ‘‘राधा, चाय बनाने की जरूरत नहीं है. मैं चाय पी कर आया हूं.’’

‘‘कोई बात नहीं, मैं ने अपने लिए चाय भी चढ़ा रखी है. उसी में थोड़ा दूध और डाल देती हूं.’’ कह कर राधा रसोेई में चली गई.थोड़ी देर बाद वह 2 गिलासों में चाय ले आई. एक गिलास उस ने आलोक को थमा दिया, तो दूसरा खुद ले कर बैठ गई. चाय पीते हुए आलोक ने कहा, ‘‘राधा, बुरा न मानो तो मैं एक बात कहूं.’’

‘‘कहो.’’ उत्सुक नजरों से देखते हुए राधा बोली.‘‘अगर तुम जैसी खूबसूरत और ढंग से घर का काम करने वाली पत्नी मुझे मिल जाए तो मेरी किस्मत ही खुल जाए.’’ आलोक ने कहा.आलोक की इस बात का जवाब देने के बजाय राधा उठी और रसोई में चली गई. उसे इस तरह जाते देख आलोक को लगा, वह उस से नाराज हो गई है, इसलिए उस ने कहा, ‘‘राधा लगता है मेरी बात तुम्हें बुरी लग गई. मेरी बात का कोई गलत अर्थ मत लगाना. मैं ने तो यूं ही कह दिया था.’’

इतना कह आलोक वहां से चला गया. लेकिन इस के बाद वह जब भी सर्वेश के घर जाता, मौका मिलने पर राधा से 2-4 बातें जरूर करता. उन की इस बातचीत पर घरवालों को कोई ऐतराज भी न था. क्योंकि मोहल्ले के नाते रिश्ते में दोनों भाईबहन लगते थे. गांवों में तो वैसे भी रिश्तों को काफी अहमियत दी जाती है.

लेकिन आलोक और राधा रिश्तों की मर्यादा निभा नहीं पाए. मेलमुलाकात और बातचीत से आलोक के दिलोदिमाग पर राधा की खूबसूरती और बातव्यवहार का ऐसा असर हुआ कि वह उसे अपनी जीवनसंगिनी बनाने के सपने देखने लगा. लेकिन अपने मन की बात वह राधा से कह नहीं पाता था.

वह सोचता था कि कहीं राधा बुरा मान गई और उस ने यह बात घर वालों से बता दी तो वह मुंह दिखाने लायक नहीं रह जाएगा. लेकिन यह उस का भ्रम था. राधा के मन में भी वही सब था, जो उस के मन में था.जब दोनों ओर ही चाहत के दीए जल रहे हों तो मौका मिलने पर उस का इजहार भी हो जाता है. ऐसा ही राधा और आलोक के साथ भी हुआ. फिर एक दिन उन्होंने अपने मन की बात जाहिर भी कर दी.

दोनों के बीच प्यार का इजहार हो गया तो उन का प्यार परवान चढ़ने लगा. आए दिन होने वाली मुलाकातों ने दोनों को जल्द ही करीब ला दिया. वे भूल गए कि उन का रिश्ता नाजुक है. आलोक राधा के प्यार के गाने गाने लगा. इस तरह दोनों मोहब्बत की नाव में सवार हो कर काफी आगे निकल गए.

राधा और आलोक के बीच नजदीकियां बढ़ीं तो मनों में शारीरिक सुख पाने की कामना भी पैदा होने लगी. इस के बाद मौका मिला तो दोनों सारी मर्यादाएं तोड़ कर एकदूसरे की बांहों में समा गए. इस के बाद तो उन्हें जब भी मौका मिलता, अपनी हसरतें पूरी कर लेते.

इस का नतीजा यह निकला कि कुछ दिनों बाद ही दोनों गांव वालों की नजरों में आ गए. उन के प्यार के चर्चे पूरे गांव में होने लगे. उड़तेउड़ते यह खबर राधा के पिता रामदयाल के कानों में पड़ी तो सुन कर उस के पैरों तले से जमीन खिसक गई. उसे एकाएक विश्वास नहीं हुआ कि आलोक उस की इज्जत पर हाथ डाल सकता है. वह तो उसे अपने बेटों की तरह मानता था.यह सब जान कर उस ने राधा पर तो पाबंदी लगा ही दी, साथ ही आलोक से भी कह दिया कि वह उस के घर न आया करे.

बात इज्जत की थी, इसलिए राधा के भाई सर्वेश को दोस्त की यह हरकत अच्छी नहीं लगी. उस ने आलोक को समझाया ही नहीं, धमकी भी दी कि अगर उस ने अब उस की बहन पर नजर डाली तो वह भूल जाएगा कि वह उस का दोस्त है. इज्जत के लिए वह किसी भी हद तक जा सकता है.

इस के बाद उस ने राधा की पिटाई भी की और उसे समझाया कि उस की वजह से गांव में सिर उठा कर चलना दूभर हो गया है. वह ठीक से रहे अन्यथा अनर्थ हो जाएगा.

रामदयाल जानता था कि बात बढ़ाने पर उसी की बदनामी होगी, इसलिए बात बढ़ाने के बजाय वह पत्नी व बेटों से सलाह कर के राधा के लिए लड़के की तलाश करने लगा. इस बात की जानकारी राधा को हुई तो वह बेचैन हो उठी.

एक शाम वह मौका निकाल कर आलोक से मिली और रोते हुए बोली, ‘‘घर वाले मेरे लिए लड़का ढूंढ रहे हैं. जबकि मैं तुम्हारे अलावा किसी और से शादी नहीं करना चाहती.’’ ‘‘इस में रोने की क्या बात है? हमारा प्यार सच्चा है, इसलिए दुनिया की कोई ताकत हमें जुदा नहीं कर सकती.’’ राधा को रोते देख आलोक भावुक हो उठा. वह राधा के आंसू पोंछ उस का चेहरा हथेलियों में ले कर उसे विश्वास दिलाते हुए बोला, ‘‘तुम मुझ पर भरोसा करो, मैं तुम्हारे साथ हूं. मेरे रोमरोम में तुम्हारा प्यार रचा बसा है. तुम्हें क्या लगता है कि तुम से अलग हो कर मैं जी पाऊंगा, बिलकुल नहीं.’’

उस की आंखों में आंखें डाल कर राधा बोली, ‘‘मुझे पता है कि हमारा प्यार सच्चा है, तुम दगा नहीं दोगे. फिर भी न जाने क्यों मेरा दिल घबरा रहा है. अच्छा, अब मैं चलती हूं. कोई खोजते हुए कहीं आ न जाए.’’

‘‘ठीक है, मैं कोई योजना बना कर तुम्हें बताता हूं.’’ कह कर आलोक अपने घर की तरफ चल पड़ा तो मुसकराती हुई राधा भी अपने घर चली गई.रामदयाल राधा के लिए लड़का ढूंढढूंढ कर थक गया, लेकिन कहीं उपयुक्त लड़का नहीं मिला. इस से राधा के घर वाले परेशान थे, वहीं राधा और आलोक खुश थे. इस बीच घर वाले थोड़ा लापरवाह हो गए तो वे फिर से चोरीछिपे मिलने लगे थे.

एक दिन सर्वेश ने खेतों पर राधा और आलोक को हंसीमजाक करते देख लिया तो उस ने राधा की ही नहीं, आलोक की भी पिटाई की. इसी के साथ धमकी भी दी कि अगर फिर कभी उस ने दोनों को इस तरह देख लिया तो अंजाम अच्छा न होगा.सर्वेश ने आलोक की शिकायत उस के घर वालों से की तो घर वालों ने उसे भरोसा दिया कि वे आलोक को समझाएंगे. इस के बाद सर्वेश घर आ गया. इधर शाम को आलोक घर पहुंचा तो पिता राजकुमार ने टोका, ‘‘सर्वेश उलाहना देने आया था. तुम्हारी शिकायत कर रहा था कि तुम उस की बहन के पीछे पड़े हो. सच्चाई क्या है?’’

‘पिताजी, मैं और राधा एकदूसरे से प्यार करते हैं और शादी करना चाहते हैं.’  ‘‘तुम्हारा दिमाग फिर गया है क्या? जो उस लड़की से शादी करना चाहते हो. क्या तुम्हें मालूम नहीं कि राधा दूसरी जाति की है और हम राजपूत हैं. यदि तुम ने उस से ब्याह रचाया तो समाज में हम मुंह दिखाने लायक नहीं बचेंगे. बिरादरी के लोग हमारा हुक्कापानी बंद कर देंगे. इसलिए कान खोल कर सुन लो, उस लड़की से तुम्हारा रिश्ता हरगिज नहीं हो सकता. भूल जाओ उसे.’’ राजकुमार ने कहा.

पिता की फटकार और स्पष्ट चेतावनी से आलोक परेशान हो उठा. उस का एक दोस्त छोटू उर्फ नीलू था. उस ने इस बारे में छोटू से बात की तो उस ने उस के पिता की बात को जायज ठहराया और राधा से संबंध तोड़ लेने का सुझाव दिया.आलोक ने अपनी मां का दिल टटोला तो उस ने भी साफ कह दिया कि जिस दिन राधा की डोली उस के घर आएगी, उसी दिन उस की अर्थी उठेगी.

मां की इस धमकी से आलोक कांप उठा. उस पर सवार राधा के प्यार का भूत उतरने लगा. मातापिता और दोस्त की नसीहत उसे भली लगने लगी. अत: उस ने निश्चय किया कि वह राधा से दूरी बनाएगा और प्यारमोहब्बत की बात नहीं करेगा. अब उस ने राधा से ब्याह रचाने की बात दिमाग से निकाल दी.

इस के बाद जब कभी आलोक का सामना राधा से होता, तो वह उस से बेमन से मिलता. बेरुखी से बात करता. न होंठों पर मुसकराहट, न चेहरे पर दमक होती. राधा नजदीकियां बढ़ाने की पहल करती, तो वह मना कर देता.फोन पर भी उस ने बात करना एक तरह से बंद ही कर दिया था. राधा दस बार फोन करती तो वह मुश्किल से एक बार रिसीव करता, उस पर भी ज्यादा बात न करता और फोन कट कर देता.

आलोक के इस रूखे व्यवहार से राधा परेशान हो उठी. उसे शक होने लगा कि आलोक किसी दूसरी लड़की के चक्कर में तो नहीं पड़ गया. अत: वह आलोक पर शादी के लिए दबाव डालने लगी. वह जब भी मिलती या फोन पर बात करती तो शादी की ही बात करती. इधर कुछ समय से राधा आलोक को धमकाने भी लगी थी कि यदि उस ने शादी नहीं की तो वह पुलिस में उस की शिकायत कर देगी, तब उसे जेल भी हो सकती है.

24 अगस्त, 2020 की शाम 4 बजे राधा घर से गायब हो गई. वह देर शाम तक घर वापस नहीं लौटी तो रामदयाल को चिंता हुई. उस ने अपने बेटे सर्वेश व उमेश को साथ लिया और रात भर उस की खोज करता रहा.

लेकिन राधा का कुछ भी पता न चला. रामदयाल को शक हुआ कि कहीं आलोक उसे भगा तो नहीं ले गया. वह आलोक के घर पहुंचा, तो आलोक घर पर ही मिला.26 अगस्त की सुबह गांव का ही किसान विमल अपने खेत पर पानी लगाने पहुंचा तो उस ने अपने खेत की मेड़ के पास पीपल के पेड़ के नीचे राधा का शव देखा. उस ने खबर राधा के घर वालों को दी. उस के बाद तो रामदयाल के घर में रोनापीटना शुरू हो गया.

घर के सभी लोग घटनास्थल पहुंच गए. लाश मिलते ही आलोक का परिवार घर से गुपचुप तरीके से फरार हो गया.रामदयाल गौतम ने थाना ककवन पुलिस को सूचना दी तो थानाप्रभारी अमित कुमार मिश्रा पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. उन की सूचना पर एसपी केशव कुमार चौधरी तथा एएसपी अनूप कुमार आ गए.

पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया. उस के गले में दुपट्टा था. इस से अंदाजा लगाया गया कि राधा की हत्या दुपट्टे से गला घोंट कर की गई होगी. उस की उम्र 19 वर्ष के आसपास थी.

घटनास्थल पर मृतका का पिता रामदयाल तथा भाई सर्वेश मौजूद थे. पुलिस अधिकारियों ने उन दोनों से पूछताछ की तो सर्वेश ने उन्हें बताया कि उस की बहन की हत्या गांव के आलोक व उस के दोस्त छोटू ने की है.

पूछताछ के बाद पुलिस अधिकारियों ने राधा के शव को पोेस्टमार्टम हेतु माती स्थित अस्पताल भिजवा दिया तथा थानाप्रभारी अमित मिश्रा को आदेश दिया कि वह मुकदमा दर्ज कर आरोपियों को शीघ्र गिरफ्तार करें.

आदेश पाते ही अमित कुमार मिश्रा ने मृतका के भाई सर्वेश की तहरीर पर भादंवि की धारा 302/201 के तहत आलोक व छोटू के खिलाफ रिपोेर्ट दर्ज कर ली और उन्हें गिरफ्तार करने में जुट गए. इस के लिए उन्होंने मुखबिरों को भी लगा दिया.

29 अगस्त, 2020 की रात 10 बजे अमित कुमार मिश्रा ने मुखबिर की सूचना पर आलोक व छोटू को ककवन मोड़ से गिरफ्तार कर लिया. उन्हें थाना ककवन लाया गया. थाने पर जब दोनों से पूछताछ की गई तो उन्होंने राधा की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया.

पूछताछ में आलोक ने बताया कि राधा उस पर शादी का दबाव बना रही थी, जबकि वह राधा से शादी नहीं करना चाहता था. उस ने जब पुलिस में शिकायत दर्ज करने की धमकी दी, तो उस ने राधा को ही मिटाने की योजना बनाई. इस में उस ने अपने दोस्त छोटू को शामिल कर लिया.

योजना के तहत उस ने 24 अगस्त की शाम 4 बजे राधा को खेतों पर बुलाया फिर उसी के दुपट्टे से उस का गला घोंट दिया.

30 सितंबर, 2020 को पुलिस ने अभियुक्त आलोक राजपूत व छोटू को कानपुर देहात की माती कोर्ट में पेश किया, जहां से दोनों को जिला जेल भेज दिया गया.

‘सिंघम अगेन’ है सभी सीरीज का बाप, 1 नंवबर को सिनेमाघरों में लेगी धांसू एंट्री

सिंघम फिल्म का तीसरा पार्ट अब जल्द लोगों को देखने को सिंघम अगेन के नाम से मिलेगा जो जल्द ही सिनेमाघरों में 1 नंवबर को रिलीज होने के बाद लगेगी. फिल्म का ट्रैलर आउट हो चुका है. इस फिल्म में पहले बनी सिंघम सीरीज की मूवीज से ज्यादा मस्ती, एक्शन, रोमांस देखने को मिलने वाला है. यह एक एक्शन, थ्रिलर और रोमांस से भरपूर फिल्म है. फिल्म में कई सारे एक्टर्स और एक्ट्रेसैस हैं. इन्हें साथ में देखना भी जबरदस्त एक्सपीरियंस साबित होगा.

 

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लेकिन सिंघम अगेन से पहले भी इस मूवी की दो सीरीज पहले आ चुकी है जिनके बारे में आज यहां बात करेंगे. किस सिंघम ने बौक्स औफिस पर क्या कमाल दिखाया या इस सीरीज की किस मूवी को लोगों का सबसे ज्यादा प्यार मिला.

इन सितारो से भरी है फिल्म ‘सिंघम अगेन’

इस एक्शन पैक्ड एक्शन मूवी में अजय देवगन, करीना कपूर, अक्षय कुमार, दीपिका पादुकोण, टाइगर श्राफ, अर्जुन कपूर, जैकी श्राफ सभी अपने धांसू स्टाइल और परफौर्मेंस के साथ नजर आएंगे.

फिल्म ‘सिंघम अगेन’ की कहानी

सिंघम अगेन की कहानी को राम, सीता और रावण से कनेक्ट करने की कोशिश की गई है. ट्रेलर की शुरुआत में भी दिखाया गया था कि अजय देवगन और करीना कपूर के साथ उनका बेटा है, जो कहता है कि सीता के लिए राम हजारों किलोमीटर दूर लंका चले गए थे. इस सीन को मूवी का आधार बनाया गया है और इस सीन को करीना कपूर की किडनैपिंग से जोड़ने का काम किया गया है . कहानी के मुताबिक, सिंघम अगेन में अजय देवगन यानी बाजीराव सिंघम अपनी पत्नी के करीना के लिए विलेन अर्जुन कपूर से लड़ते दिखाई देंगे. इस वजह से रोहित शेट्टी की मूवीज वाले एक्शन के सभी दांवपेंच नजर आएंगे.

फिल्म ‘सिंघम अगेन’ का बजट

सिंघम अगेन का बजट 350 करोड़ रुपये से ज्यादा का बताया जा रहा है. लेकिन यहां हम सिर्फ सिंघम अगेन का जिक्र नहीं करेंगे बल्कि अजय देवगन की उस फिल्म का जिक्र करेंगे जिसका बजट कभी सिर्फ 70 करोड़ रुपये था लेकिन इसने बौक्स औफिस पर 343 करोड़ रुपये का कलेक्शन किया था. जिसकी ताबड़तोड़ कमाई की वजह से ही सिंघम के ओर सीरीज देखने को मिल रहे है.

‘सिंघम’ सीरीज की पहली मूवी

सिंघम सिनेमा पर एक सक्सेसफुल मूवी रही है. पहली सिंघम साल 2011 में आई थी. जो पर्दे पर हिट साबित हुई थी. अपने बजट से ज्यादा की कमाई कर फिल्म दूसरी सीरीज बनाने पर आई थी. हालांकि पहली फिल्म सिंघम मलयाली फिल्म की कहानी पर बनी थी. इस फिल्म की कहानी शिवगढ़ (गोवा-महाराष्ट्र सीमा पर एक शहर) के ईमानदार डीसीपी बाजीराव सिंघम पर केंद्रित थी . इस फिल्म का निर्देशन रोहित शेट्टी ने किया था, इसमें अजय देवगन, काजल अग्रवाल और प्रकाश राज अहम रोल में नजर आए थे.

सिंघम फिल्म की कहानी

फ़िल्म की शुरुआत एक ईमानदार पुलिस अफसर राकेश कदम (सुधांशु पांडे) की आत्महत्या करने से होती है क्योंकि उसपर रिश्वत लेने का झूठा आरोप राजनेता जयकांत शिकरे (प्रकाश राज) ने लगाया गया था जो गोवा का एक गुंडा राजनेता है. कदम की पत्नी मेघा कदम (सोनाली कुलकर्णी) इस बात का बदला लेने की कसम खाती है. इस फिल्म का बजट जिसे अजय देवगन की वो फिल्म जिसने 70 करोड़ के बजट में कमाए थे 343 करोड़. फिल्म की सक्सेस के बाद ही फिल्म की बाकी दो सीरीज आई. सिंघम रिटर्न्स और सिंघम अगेन.

‘सिंघम रिटर्न्स’

जब फिल्म सिंघम सुपरहिट साबित हुई. उसके बाद फिल्म की दूसरी सीरीज सिंघम रिटर्न्स बनी. ये एक भारतीय एक्शन फिल्म रही. इसका निर्देशन भी रोहित शेट्टी ने ही किया. यह फिल्म साल 2011 में आई सिंघम नामक सीरीज की दूसरी मूवी है, इसके लीड एक्टर अजय देवगन थे जो इस फिल्म के सह-निर्माता भी रहे, इनके साथ एक्ट्रैस करीना कपूर खान भी थी.

यह फिल्म 15 अगस्त 2014 स्वतंत्रता दिवस के मौके पर रिलीज हुई. यह फिल्म दर्शकों के अनुसार खूब धमाल मचा रही थी. इसने दुनिया भर में करीब 90-100 करोड़ रुपये की कमाई की थी.

फिल्म सिंघम रिटर्न्स की कहानी

2011 की सुपरहिट सिंघम के ही बाद, ईमानदार और निडर बाजीराव सिंहम डीसीपी मुंबई पुलिस बनकर मुंबई लौटता है. जिसके बाद सिंघम रिटर्न्स में कहानी मारधाड़ में तक हो जाती है. इस फिल्म में सिंघम की ही सेना का एक पुलिस कांस्‍टेबल मरा हुआ मिलता है और उसके ऊपर गैरकानूनी रूप से पैसे रखने का आरोप लगता है और भ्रष्‍ट करार दिया जाता है. इसी कहानी का पर्दाफाश करने के लिए राजनीति तरीके से काला बाजारी करने वाले को पकड़ने के लिए एक नई खोज शुरू की जाती है. पूरी कहानी काला बजारी और भ्रष्ट लोगों की खोज पर बनीं है.

ब्यूटीशियन का कोर्स किया है, गांव में रहती हूं जौब करना चाहती हूं पर घरवाले शादी के बाद कहते है?

सवाल

मैं 23 साल की हूं और उत्तर प्रदेश के एक गांव में रहती हूं. मैं गांव की जिंदगी से अब ऊब चुकी हूं और किसी बड़े शहर में जा कर नौकरी या अपना कामधंधा शुरू करना चाहती हूं.

मैं ने अपने कसबे से ब्यूटीशियन का कोर्स किया है और इसी फील्ड में आगे बढ़ना चाहती हूं, पर मेरे घर वाले शादी करने पर जोर दे रहे हैं और बोलते हैं कि अपने पति के घर जा कर कुछ भी कर लेना, पर अभी नौकरी की सोचना भी मत. पर क्या गारंटी है कि मेरे ससुराल वाले मुझे काम करने की इजाजत देंगे?

इन्हीं सब बातों से मेरा मन करता है कि घर से भाग जाऊं और किसी बड़े शहर में जा कर अपने सपने पूरे करूं. क्या ऐसा करना सही होगा?

जवाब

नहीं, यह सही नहीं होगा. भागना आप की समस्या का हल नहीं, क्योंकि अभी आप ने गांव के बाहर की दुनिया देखी नहीं है कि वहां पगपग पर आप जैसी लड़कियों के इंतजार में दलाल और लुटेरे बैठे हैं.

आप गांव में ही रह कर अपने ब्यूटीपार्लर का कारोबार बढ़ाएं. शहरों में तो गलीगली छोटेबड़े ब्यूटीपार्लर हैं, जिन्हें चलाने वाली ज्यादातर औरतें जैसेतैसे गुजारा कर पा रही हैं. अकसर बड़े शहरों में जा कर सपने टूट जाते हैं, पूरे नहीं हो पाते. घुटन वहां की जिंदगी में भी कम नहीं है, जो चमकदमक के चलते नजर नहीं आती. जब भी, जहां भी शादी की बात चले, तो साफतौर पर लड़के और उस के घर वालों को बता दें कि आप यह बिजनैस करेंगी. मुमकिन है कि वे तैयार हो जाएं, क्योंकि आजकल हर किसी को कमाऊ बहू चाहिए.

पिछला प्रेम और सेक्स

‘लव, सैक्स और धोखा’ यह सिर्फ फिल्मी लफ्फाजी नहीं, आजकल युवाओं की जिंदगी इन्हीं 3 शब्दों के इर्दगिर्द है. रिश्तों की जरूरत को न समझने की आदत अब हमारे जीवन का हिस्सा बन रही है, जिस से रिश्ते कमजोर हो रहे हैं.

प्रेम, विछोह और पुनर्मिलन के परंपरागत कौन्सैप्ट से दूर रंगीन परदे पर अब लव, सैक्स और धोखे का तड़का ही ज्यादा नजर आता है. आजकल इंस्टैंट लव और उस के बाद इंस्टैंट सैक्स नैटफ्लिक्स, प्राइम वीडियो के जरखरीद प्लेटफौर्मों का ट्रैंड बन गया है.

प्रेम आधारित शो में वासना, कामुकता, स्वार्थ और धोखे का रंग ज्यादा नजर आता है. उन में समर्पण, विश्वास, संयम, प्रेम जैसी भावनाएं नहीं बल्कि बिंदासपन हावी है.

हिंदी सिनेमा ने प्यार पर आधारित बेहतरीन फिल्में दी हैं. ‘मुगलेआजम’, ‘पाकीजा’, ‘लैला मजनू’, ‘सोनी महिवाल’ जैसी फिल्मों को याद करिए. उस परंपरा से बिलकुल अलहदा आज की फिल्में या धारावाहिक प्यार और सैक्स की सीमाओं को तोड़ते नजर आते हैं.

प्यार का अर्थ है सैक्स और तृप्ति, जो बैडरूम की सीमा से बाहर भी कहीं भी हो सकता है. अब हर शो में कन्फ्यूज्ड प्रेमियों की कहानी परोसी जा रही है, जो तार्किक रूप से रिश्तों के साथ इंसाफ नहीं कर पाती. असलियत यह है कि आज की फिल्में व शो रिश्तों को ज्यादा छिछला बना रहे हैं. ये प्यार और सैक्स जैसी बेशकीमती भावना को बहुत हलका कर रहे हैं.

‘मनमरजियां’ ऐसी हिंदी फिल्म थी जिस में प्यार की कहानी टिंडर और फेसबुक से शुरू हुई थी. उस के बाद प्रेमीप्रेमिका छिपछिप कर मिलने लगते हैं. उन का मिलन अपनी सारी हदें लांघ जाता है. विवाहपूर्व शारीरिक संबंधों पर दोनों को कोई एतराज नहीं, बल्कि वे इसे ही प्यार समझते हैं. लड़की के परिवार वाले उसे रंगेहाथों पकड़ भी लेते हैं, लेकिन प्यार को हलके में लेने वाले, गैरजिम्मेदार और लापरवाह लड़के के लिए शादी कर के जिम्मेदारी लेना एक आफत होती है. इस तरह के लड़के कहते हैं कि प्यार के लिए शादी की क्या जरूरत. मगर लड़कियां आज भी प्रेमी से कमिटमैंट चाहती हैं. कमिटमैंट पर वे उस के साथ भागने को भी तैयार हो जाती हैं.

लड़कियों को जब एहसास होता है कि प्रेमी जिम्मेदार साथी बनने के लायक नहीं है क्योंकि उस की जेब खाली है और भविष्य में उसे जीवनयापन के लिए क्या करना है, इस की भी कोई रूपरेखा उस ने तैयार नहीं की है, तो उसे छोड़ कर उन्हें वापस लौटना पड़ता है.

इस के बाद उन के जीवन पर काला धब्बा पड़ा रहता है. उन्हें अपनी गलती का एहसास रहता है. उन्हें किसी भी नए जने से मिलने में हिचकिचाहट होती है. जिस रिश्ते में सीमाओं की गरिमा और परिवार की इज्जत की कोई परवा न हो और लड़की बिंदास जीवन जीने की आदी हो तो वह हमेशा उसी मोल्ड में वापस जाने को बेचैन रहती है जिस में पहला प्रेमी मिला था. परिवार तो साथ देते ही हैं चाहे उन की संतान कैसी भी हो.

शारीरिक सुख पाने की हवस में लड़की की आंखों पर ऐसा परदा पड़ जाता है कि वह अपने प्रेमी की असलियत नहीं समझ पाती.उस में इंसान की परख करने की क्षमता नहीं रहती है. वह बारबार नए आदमी के साथ हमबिस्तर होती है, वह भी खुलेआम. जबकि, लड़का उस से शादी कर के परिवार की जिम्मेदारी उठाने के लिए तैयार नहीं है और जो व्यक्ति उस से शादी कर के जिम्मेदारी उठाने को तैयार है, यानी पुराने साथी के प्रति भी वह वफादार नहीं रह पाती है.

हालांकि उस की और उस के प्रेमी के बीच शारीरिक संबंधों की जानकारी होने पर ‘कोई बात नहीं’ कह कर वह स्वीकार कर ले मगर जिस वफादारी की उसे अपने साथी से उम्मीद हो, वह उस पर भी खरा न उतरे तो जिंदगी फिर एक बो  झ बन जाती है.

लड़कियों को ध्यान रखना चाहिए कि जिस के लिए प्यार का मतलब सिर्फ सैक्स है, वह उन के मतलब का नहीं. जिम्मेदारी लेना, रिश्तों को निभाना उस के बस में होना चाहिए. ऐसे लड़के कम होते हैं जो बेवफाई देख कर भी खामोशी ओढ़े रहें, उस के खून में जैसे कोई गरमी ही न हो, जैसे उस की रीढ़ की हड्डी न हो. दब्बू और कायर प्रेमी, जो अपनी प्रेमिका की तमाम गलत हरकतें देखते हुए भी खामोशी ओढ़े रहें, कम ही होते हैं. हर हाल में माफ करने और उस के साथ रहने को लालायित प्रेमी भी नहीं मिलते, याद रखें.

हमारे पुराण ऐसी कहानियों से भरे हैं जिन में ऋषिमुनि शारीरिक मिलन की बेताबी के आगे जगह और वक्त भी नहीं देखते, पर उस का खमियाजा ही लड़कियां भोगती रही हैं. आज भी वह बात बेटों में मौजूद है और ऐसे लड़कों की कमी नहीं. उन का प्रेम शारीरिक संबंध बनाने भर पर खत्म होता है.

प्रेमी महज डीजे है, जिस की कोई स्थायी कमाई नहीं है. बस ‘खाओ, खेलो’ के सिद्धांत पर चलने वाले लक्ष्यहीन और लापरवाह प्रेमी बहुत हैं. फिर भी उन्हें प्रेमिकाएं मिल जाती हैं. यहां तक कि उन्हें अपनी दूसरी प्रेमी के सामने प्यार का इजहार करने में कोई डर,  ि झ  झक या शर्मिंदगी नहीं होती. ऐसी लड़कियां भी कम नहीं हैं जो स्वार्थी हों और सिर्फ अपने मन की करने में विश्वास रखती हों, जिन्हें अपने परिवार की इज्जत की कोई परवा न हो. उन के आगे लौजिक की कोई लाइन नहीं खिंची है. उन्हें, दरअसल, लड़कों की परख नहीं है. यही वजह है कि वे बारबार अपने प्रेमियों से धोखा खाती हैं पर बारबार उन के साथ हमबिस्तर भी होती हैं क्योंकि उन्हें वही मोमैंट अच्छे लगते हैं.

कितनी ही लड़कियां प्रेमी के चक्कर से नहीं छूटना चाहतीं. वे चोरीछिपे मिलती रहती हैं और शारीरिक संबंध बनाती रहती हैं चाहे दूसरा प्रेमी भी हो या शादी हो गई हो. दरअसल, उन्हें ट्रौफी गर्ल, जो ड्राइंगरूम की शोभा बनती है, रैस्तरां में दूसरे लड़कों में ईर्ष्या पैदा करती हैं, बनना अच्छा लगता है और वे इसे मानती हैं कि जीवन सफल हो गया. प्यार की जटिलताओं को सम  झने में सैक्स का तड़का ठीक नहीं, इस से जीवन स्थिर नहीं होता.

आज ऐसे परिवारों की गिनती बढ़ती जा रही है जहां परिवार के बुजुर्ग अपनी मनमरजी करने वाली बेटी या बेटे के कारण बारबार निराश व अपमानित होते हैं. अनिश्चितता से घिरी एक लड़की, जो सैक्स और प्रेम में विभेद न जाने, जिस के लिए परिवार की इज्जत और जिम्मेदारी कोई माने नहीं रखती है,  कितनी दूर तक जीवन के पक्के रिश्ते को निभा पाएगी, यह सवाल उठ खड़ा हो जाता है.

एक नए समाज की शुरुआत तो हो गई है. पर न मर्ज पता है, न इलाज. अब यह आम है, बस इसे स्वीकार कर लो. इस के परिणाम की चिंता न करो. पतिपत्नी बन जाओ तो कैसे तनाव से दिन गुजरेंगे, तलाक होंगे, बच्चे भटकेंगे आदि की चिंता युवाओं को नहीं है. यह गलती है, भटकाव है क्योंकि आज की थोड़ी सेफ जिंदगी में भी जवानी 40-50 में ढलने लगेगी ही. उस के बाद के सालों में क्या होगा, यह 15-20 साल वालों को आज एहसास नहीं है.

सजा ए मौत : क्या हत्यारे को मिल पाई फांसी

‘हत्यारे को फांसी दो… फांसी दो… फांसी दो…’ भीड़ में लगातार नारे बुलंद हो रहे थे. ऐसा लग रहा था कि लोगों में गुस्सा बढ़ता ही जा रहा था?

थाने के सामने प्रदर्शन होते देख वहां पत्रकारों की फौज जमा हो गई थी, जिस में प्रिंट मीडिया के कई पत्रकार धड़ाधड़ प्रदर्शनकारियों के फोटो खींच रहे थे, तो इलैक्ट्रौनिक मीडिया के बहुत से पत्रकार विजुअल ले कर माइक आईडी लगा कर प्रदर्शनकारियों के बयान ले रहे थे. कुछ पत्रकारों का कैमरा उस की ओर भी घूमता दिखाई दे रहा था.

जान मोहम्मद हंगामा देख कर थाने के गेट के सामने ही खड़ा हो कर प्रदर्शनकारियों को हैरानी से देख रहा था. प्रदर्शनकारियों के हंगामे की खबर सुन कर किसी भी अनहोनी के डर को ले कर एसपी साहब के आदेश पर सिक्योरिटी के नजरिए से कई थानों की पुलिस उस के थाने पर भेज दी गई थी.

‘‘जान मोहम्मद, तुम्हारी एक नादानी की वजह से आज यह हंगामा हो रहा है. तुम्हें कितनी बार सम?ाया है कि तुम एक तो मुसलिम हो और साथ ही, तुम ज्यादा ईमानदार और इमोशनल हो कर ड्यूटी मत किया करो, लेकिन तुम मानते ही नहीं. देख लिया इस का नतीजा.

अब भुगतो,’’ जान मोहम्मद का दारोगा साथी फिरोज उस से नाराजगी जाहिर करते हुए बोला.

फिरोज की बात को सुन कर जान मोहम्मद खामोश ही रहा. वह अच्छी तरह जानता था कि यह हंगामा उसी के लिए हो रहा है. सुबह से ही इस छोटे से कसबे में कर्फ्यू लगने जैसा माहौल हो गया था. एक पनवाड़ी की दुकान भी नहीं खुली हुई थी कि कोई पान भी खरीद कर खा ले. पूरे कसबे में घूमघूम कर इन प्रदर्शनकारियों ने ही दुकानदारों से बोल कर दुकानें बंद करा दी थीं.

जान मोहम्मद यह तो समझ गया था कि यह सब उस विधायक नेतराम के इशारों पर हो रहा है, वरना एक अपराधी की मौत पर यह सब नहीं हो रहा होता, बल्कि लोग खुशियां मना रहे होते. प्रदर्शनकारियों को समझाने के लिए थाने पर ड्यूटी कर रहे उस के सभी सहयोगी लगातार कोशिश कर रहे थे, लेकिन वे लोग मान ही नहीं रहे थे.

‘‘आप सभी लोग शांत हो जाएं. बस, कुछ ही देर में एसपी साहब पहुंच रहे हैं. वे आप से बात करेंगे. आप सभी लोग तब तक सभागार में जा कर बैठें,’’

तभी सिपाही बलवंत ने बाहर आ कर प्रदर्शनकारियों से कहा.

‘‘हत्यारे को फांसी दो…’’ तभी प्रदर्शनकारियों की भीड़ में से एक आवाज दोबारा हवा में गूंज उठी.

जान मोहम्मद ने देखा कि सामने संदीप खड़ा था. उसे समझ नहीं आ रहा था कि समय बदलने के साथसाथ इनसान की सोच क्या से क्या हो गई है. पैसों के आगे लोगों की सोचनेसमझाने की ताकत खत्म हो जाती है और फिर उन को जिस तरह से चाहो, इस्तेमाल कर लो. वह यह बात बखूबी सम?ा रहा था कि पैसे के लालच के आगे भीमा जैसे अपराधी को हीरो बनाने में ये सब कोई कसर नहीं छोड़ रहे थे.

पुलिस की ट्रेनिंग में अकसर जहां उन को ईमानदारी से अपने फर्ज को अंजाम देना सिखाया जाता था, वहीं इस के अलावा अकसर सम?ाया जाता था कि अपराधी एक दीमक की तरह होता है, उसे अगर समय रहते खत्म न करो, तो वह समाज को अंदर से खोखला बना देता है और 2 दिन पहले उस ने भी यही किया था. एक अपराधी का ऐनकाउंटर कर समाज को खोखला होने से बचा लिया था.

जान मोहम्मद को अचरज हो रहा था कि कुछ महीने पहले ही संदीप की बहन के साथ उसी अपराधी ने रेप जैसी घिनौनी हरकत की थी और आज वही संदीप अपराधी भीमा की मौत को ले कर प्रदर्शन कर रहा था.

यही नहीं, प्रदर्शनकारियों की उस भीड़ में वे चेहरे ही उसे ज्यादा दिखाई दे रहे थे, जिन्हें भीमा सब से ज्यादा परेशान करता था.

जब से जान मोहम्मद इस कसबे में पोस्टिंग हो कर आया था, तभी से उस ने कसबे में अपराधियों के हौसले पस्त कर दिए थे और कसबे में अपराध न के बराबर हो गए थे, क्योंकि उस ने ज्यादातर अपराधियों को जेल की हवा खिला दी थी, तो कुछ अपराधी उस के खौफ से कसबे से भागने पर मजबूर हो गए थे.

और हां, कुछ लोग ऐसे भी थे, जिन्होंने मामले को निबटाने को ले कर जान मोहम्मद को रिश्वत देनी चाही थी, पर उन्हें भी उस ने अच्छा सबक सिखाया था, जिस के चलते वह अब कुछ लोगों की आंखों में कांटे की तरह चुभने लगा था.

जान मोहम्मद को इतना समय हो गया था पुलिस की ड्यूटी करते हुए, लेकिन आज तक उस की वरदी पर रिश्वत खाने जैसा भद्दा दाग नहीं लगा था. जहां उस के साथी छोटेमोटे झगड़े निबटाने के एवज में भी मोटी रकम दोनों पक्षों से वसूल करते थे. एक वह था, जो छोटेमोटे झगड़ों को आपस में ही समझाबुझा कर निबटा देता था. गंभीर मामलों में वह बहुत ही सख्त रहता था और आरोपियों पर कड़ी कार्यवाही करता था.

‘यार जान मोहम्मद, तुम ज्यादा ईमानदार न बना करो, क्योंकि आजकल ईमानदारी में कुछ नहीं मिलता. हमें देखो… मोटा पैसा भी कमाते हैं और साहब लोगों की ज्यादा झिकझिक भी नहीं सुननी पड़ती…’ एक बार जब जान मोहम्मद ने पड़ोसियों के आपसी झगड़े को बिना कुछ लिएदिए ही निबटा दिया था, तो यह देख कर उस के साथी दारोगा विजय ने उस से कहा था.

लेकिन जान मोहम्मद चुप ही रहा था. कुछ लोग उसे वैसे भी ‘सनकी दारोगा’ कहने लगे थे, जिस के चलते उस के ज्यादातर तो ट्रांसफर ही होते रहे थे. पहले उस की पोस्टिंग शहर के थाने में हुई थी.

हर रोज की तरह जान मोहम्मद उस दिन भी अपने औफिस में बैठा हुआ था कि तभी किसी अनजान नौजवान का उस के पास फोन आया कि कुछ गुंडे एक लड़के की बेरहमी से पिटाई कर रहे हैं. उस ने उस नौजवान से जगह का नाम पूछा और फौरन 2 सिपाहियों के साथ मौके पर जा पहुंचा.

जान मोहम्मद के पहुंचते ही उन लोगों ने उस लड़के को पीटना बंद कर दिया, लेकिन तब तक उस की मौत हो चुकी थी.

जान मोहम्मद ने देखा, यह वही लड़का राहुल था, जो हर समय लोगों की मदद करता नजर आता था. राहुल की पिटाई होते देख कर भी कोई उस की मदद करने नहीं आया था.

जान मोहम्मद राहुल की लाश को कब्जे में ले कर पोस्टमार्टम के कागजात तैयार कर सभी आरोपियों को गिरफ्तार कर थाने ले आया था. बाद में उसे पता चला कि वे सभी आरोपी किसी बड़े नेता के गुंडे थे.

जान मोहम्मद के सीनियर दारोगा साथी ने उसे आरोपियों को छोड़ने के लिए कहा था, वरना बेवजह ही उस का ट्रांसफर यहां से कहीं दूर कर दिया जाएगा, लेकिन उस ने आरोपियों को छोड़ने से मना कर दिया और जल्द ही राहुल के परिवार द्वारा मिली तहरीर के आधार पर सभी आरोपियों पर हत्या का मुकदमा दर्ज कर कागजी कार्यवाही भी पूरी कर दी.

लेकिन, जान मोहम्मद आरोपियों को जेल भेजने की कवायद पूरी करता, इस के पहले ही उस का ट्रांसफर इस छोटे से कसबे पलिया में कर दिया गया था.

यहां आ कर भी जान मोहम्मद ने अपराध को काबू में करने के लिए अहम रोल निभाया था, लेकिन अपराध और अपराधियों के लिए इतना सख्ती बरतने के बावजूद अभी भी विधायक नेतराम का दायां हाथ भीमा जैसा खतरनाक अपराधी उस की पकड़ से दूर था. उस ने कई बार भीमा को गिरफ्तार करने की सोचा था, लेकिन उस के खिलाफ कोई भी मामला नहीं मिल पाया था.

अभी हाल ही में जान मोहम्मद ने रेप जैसे संगीन मामले में भीमा को गिरफ्तार भी किया था. राधेश्याम नाम के एक आदमी की बेटी के साथ भीमा ने घर में घुस कर रेप किया था, जिस की तहरीर भीमा के खिलाफ थाने में दी गई थी.

जान मोहम्मद को भीमा को गिरफ्तार किए कुछ ही समय हुआ था कि उस के पास साहब लोगों के फोन आने शुरू हो गए और उसे मजबूरी में भीमा को छोड़ना पड़ा था. यहीं नहीं, पीड़िता द्वारा की गई शिकायत को भी चंद घंटे में वापस करा लिया गया था और जब शिकायत वापस लेने आए राधेश्याम से उस ने मना किया था, तो उस के सीनियर दारोगा ने उसे बताया कि विधायक नेतराम ने मामले को लेदे कर निबटा लिया है.

यह सुन कर जान मोहम्मद हैरान रह गया, लेकिन 2 दिन बाद ही उसे सूचना मिली कि राधेश्याम की बेटी ने खुदकुशी कर ली है.

इस कांड के बाद न जाने क्यों विधायक नेतराम के प्रति जान मोहम्मद का गुस्सा बढ़ता जा रहा है कि भीमा जैसे अपराधियों का वह साथ दे रहा था. उसे तो यह समझ नहीं आ रहा था कि ये कैसे नेता हैं, जो एक वोट लेने के लिए जनता से बड़ेबड़े दावे करते हैं और जिस जनता के दिए हुए वोटों से चुने जाते हैं, उसी जनता को बाद में कुछ नहीं समझाते हैं, क्योंकि राजनीति का दंश जान मोहम्मद के पूरे परिवार ने भी झोला था.

जब जान मोहम्मद छोटा ही था कि एक जमीनी झगड़े में उस के अम्मीअब्बू और बड़ी बहन की हत्या करा दी गई थी, लेकिन कुछ नेता उस के परिवार की हत्या करने वालों को बहुत ही सफाई से बचा ले गए थे. मुकदमे में धाराएं इतनी हलकी करा दी गई थीं कि 3-4 महीने में ही सब की जमानत हो गई थी.

अम्मीअब्बू के इंतकाल के बाद जान मोहम्मद को रफीक चाचा ने पालपोस कर बड़ा किया था. वह बड़ा हो कर पुलिस अफसर बनना चाहता था, जिस से कि वह अपराध और अपराधी को खत्म कर सके और उस के इस सपने को पूरा करने के लिए उस के चाचा ने पूरा जोर लगा दिया था. पढ़ाई में पैसा कम पड़ा, तो चाचा ने अपनी जमीन भी बेच दी थी.

जब जान मोहम्मद पुलिस अफसर बना तो महकमे में फैले भ्रष्टाचार को देख कर उसे एक बार लगा कि शायद उस ने नौकरी जौइन कर के गलत किया है, लेकिन उसे अपने वादे को पूरा करना था और इस के लिए उसे वरदी पहनना जरूरी था.

ड्यूटी जौइन करने के बाद जान मोहम्मद अपना फर्ज बखूबी निभाने लगा. जल्द ही उस कीचर्चा दूरदूर तक होने लगी और अपराधी तो जैसे उस के नाम से कांप से जाते थे. उस की कड़ी कार्यवाही को देखते हुए शासन के आदेश पर उस का ट्रांसफर जल्द ही एक थाने से दूसरे थाने पर कर दिया जाता था, जिस के चलते आज वह पलिया कसबे में पहुंचा था.

अभी 2 दिन पहले ही जान मोहम्मद के मुखबिर ने सूचना दी थी कि भीमा एक लड़की के साथ जबरदस्ती करने की कोशिश कर रहा है. यह सुन कर उस का खून खौल उठा और वह सिपाहियों के साथ गाड़ी ले कर मौके पर पहुंच गया.

जान मोहम्मद ने देखा कि भीमा कसबे की ही एक 17-18 साल की लड़की को उठा लाया था. यह देख कर उस ने भीमा को लड़की को छोड़ने के लिए कहा, लेकिन भीमा के मना करने पर उस ने गुस्से में आ कर भीमा को अपनी पिस्तौल से गोली मार दी, जिस से उस की मौके पर ही मौत हो गई थी.

भीमा की जान मोहम्मद द्वारा ऐनकाउंटर किए जाने की खबर कुछ पलों में ही कसबे में आग की तरह फैल गई. तभी से विधायक के इशारे पर यह सब बवाल होना शुरू हो गया था.

‘‘जय हिंद सर,’’ तभी किसी की आवाज पर जान मोहम्मद की सोच भंग हो गई. उस ने देखा कि एसपी साहब पहुंच गए थे, जिन को देख कर सिपाही कुलदीप ने सैल्यूट किया था.

जान मोहम्मद ने भी एसपी साहब को देख कर तुरंत ही सैल्यूट किया. एसपी साहब ने उसे एक नजर देखा और सभागार की ओर बढ़ गए.

एसपी साहब को देख कर जान मोहम्मद को सुकून मिला था कि वे जायज ही फैसला करेंगे, क्योंकि उन के बारे में अकसर यह कहा जाता था कि वे अपराधियों के प्रति काफी कठोर हैं, उन्हें अपराध और अपराधियों से सख्त नफरत है.

‘‘सर, आप को सस्पैंड कर दिया गया है और आप पर हत्या का मुकदमा भी दर्ज कर दिया गया है,’’ कुछ देर के बाद सिपाही बलवंत ने आ कर जान मोहम्मद को बताया.

यह सुन कर जान मोहम्मद को ऐसा लगा कि उसे अपने फर्ज की कीमत चुकानी पड़ी है और उसे सजा ए मौत दी जा रही है.

बस, और नहीं : क्या रीमा कभी समझ पाई शादीशुदा जिंदगी को

रीमा के ब्याह को 2 साल होने जा रहे थे, लेकिन आज तक वह खुद को इस सोच से बाहर नहीं निकाल पाई थी कि आखिर उस का पति रोशन उस से प्यार करता भी है या नहीं या फिर सिर्फ प्यार और पति धर्म निभाने की महज ऐक्टिंग ही करता है, क्योंकि अगर रोशन सचमुच उस से प्यार करता, तो कभी भी वह छोटीछोटी बातों पर उसे खरीखोटी नहीं सुनाता, जराजरा सी बात पर वह अपना आपा नहीं खोता.

कभीकभार की बात होती तो शायद रीमा के मन में यह विचार आता ही नहीं, लेकिन अब आएदिन गालीगलौज, लड़ाई?ागड़ा यह सब तो रोशन की आदत में ही शुमार हो गया था.

अपने पति से प्यार पाने की चाह में रीमा ने क्याकुछ नहीं किया. उस ने वह सब किया, जो अकसर ज्यादातर पत्नियां कभी खुशी से, तो कभी मजबूरी में किया करती हैं.

रीमा ने भी घर की सुखशांति, पति का प्यार और अपनी शादीशुदा जिंदगी को खुशहाल बनाने के लिए पूजा, हवन, व्रत जिस ने जो कहा, जैसा करने को कहा, इन 2 सालों में वह सारे जतन कर डाले, लेकिन नतीजा ज्यों का त्यों ही बना रहा. रोशन के बरताव में रत्तीभर भी कोई बदलाव नहीं हुआ.

अलबत्ता, समय के साथसाथ रोशन का बरताव रीमा के संग और ज्यादा खराब होने लगा था. रीमा भी इसे अपनी किस्मत मान कर सम?ाता करती चली जा रही थी. वह रोशन के जोरजुल्म को चुपचाप सहती जा रही थी.

आमतौर पर देखा गया है कि हर दुख, जोरजुल्म सहने के बाद भी औरतें अपने पति के खिलाफ आवाज नहीं उठाती हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि ऐसा करने से उन का बसाबसाया घर टूट जाएगा, उन की जगहंसाई होगी और इस समाज में उन का इज्जत से जीना दूभर हो जाएगा.

रीमा पढ़ीलिखी और कामकाजी होने के बावजूद इसी सोच के तले दबी हुई थी और यही वजह थी कि वह रोशन की जीवनसंगिनी और बराबर की हकदार होने के बावजूद रोशन के लिए पैर की जूती से ज्यादा कुछ नहीं थी.

रोशन का जब मन करता, वह रीमा पर चीखनेचिल्लाने लगता. यहां तक कि कभीकभार वह हाथ चलाने से भी गुरेज न करता, लेकिन इतना था कि हाथापाई के दौरान अगर कभी रीमा को चोट लग जाती या कभी अचानक उस की तबीयत खराब हो जाती, तो वह रीमा को फौरन डाक्टर के पास ले कर जाता, उस की मरहमपट्टी कराता, उस का पूरा इलाज कराता. रीमा का पूरा खयाल रखता.

इसे देख कर आसपड़ोस के लोग कहते, ‘रीमा का पति भले ही गुस्से वाला है, लेकिन रीमा का कितना ध्यान रखता है, उस से कितना प्यार करता है.’

आसपास के लोगों की बातें सुन कर रीमा खुद भी यह मान बैठती कि उस का पति चाहे उस पर कितना भी जुल्म क्यों न करता हो, पर खयाल भी तो वही रखता है. उस से प्यार भी करता है.

रीमा के मन में जब भी ऐसे विचार आते, तब उस का दिमाग उस से कहता, ‘तेरा पति तु?ो से कैसा प्यार करता है? उस का जब जी चाहता है, गालीगलौज करता है, मारतापीटता है. रात को तेरा मन रहे या न रहे, पर वह अपनी मर्दानगी तुझ पर दिखाता है, तु?ो नोंचताखसोटता है.

‘छि:… क्या इसे ही प्यार कहते हैं. अगर यही प्यार है तो वह तु?ो प्यार न करे, वही अच्छा है. प्यार करना और खयाल रखना दोनों अलगअलग है…’

रीमा के दिल और दिमाग के सामने यह सवाल फन फैलाए खड़ा हो जाता कि उस का पति उस से प्यार करता भी है या नहीं?

आज सुबहसुबह घर के सारे काम निबटा कर रीमा आईने के सामने खड़ी स्कूल जाने के लिए तैयार हो रही थी कि अचानक रोशन उस के सामने आ खड़ा हुआ और उस पर चिल्लाने लगा, ‘‘तुम स्कूल में बच्चों को पढ़ाने जाती हो या फैशन परेड में… या फिर अपने जिस्म की नुमाइश करने? इतना ज्यादा चेहरे को लीपपोत कर और बनठन कर स्कूल जाने की जरूरत ही क्या है? किस को दिखाने के लिए यह सारा ताम?ाम है?’’

रोशन से यह सब सुन कर रीमा कुछ सम?ा ही नहीं पाई कि वह क्या कहे. वह तो रोज ऐसे ही तैयार होती है, फिर आज ऐसा क्या हो गया?

रीमा शांत भाव से बोली, ‘‘क्यों, क्या हुआ…? मैं तो रोज ऐसे ही स्कूल जाती हूं.’’

रीमा का इतना कहना था कि रोशन उस पर भड़क गया और रीमा के सिर के बालों को अपनी मुट्ठी में लेते हुए बोला, ‘‘वही तो मैं कह रहा हूं कि तुम रोज इतना मेकअप कर के स्कूल क्यों जाती हो?’’

रीमा खुद को छुड़ाते हुए बोली, ‘‘अरे, कैसी बातें करते हैं? मैं ने कहां मेकअप किया है. वर्क प्लेस में थोड़ा तो प्रैजेंटेबल दिखना पड़ेगा न. ऐसे ही मुंह उठा कर तो मैं स्कूल नहीं जा सकती न.’’

रोशन शायद रीमा से यही सुनना चाहता था, क्योंकि रीमा के ऐसा कहते ही रोशन बोला, ‘‘अगर वर्क प्लेस में प्रैजेंटेबल दिखना जरूरी है, तो तुम नौकरी छोड़ क्यों नहीं देती हो? मैं अच्छाखासा कमाता हूं, तो तुम्हें नौकरी करने की क्या जरूरत है?’’

शादी के बाद से ही रोशन लगातार इसी बात पर जोर दे रहा था कि रीमा अपनी नौकरी छोड़ दे, लेकिन रीमा अपनी जिद पर अड़ी हुई थी कि वह किसी भी हालत में नौकरी नहीं छोड़ेगी. आज इसी बात को ले कर दोनों के बीच फिर ?ागड़ा छिड़ गया और रोशन गालीगलौज पर उतर आया था.

स्कूल के लिए देरी हो रही थी, इसलिए रीमा इस समय बेकार के ?ागड़े में पड़ कर अपना समय खराब नहीं करना चाहती थी और रोशन के हाथों को ?ाटक कर वह घर से स्कूल के लिए निकल गई. रोशन चिल्लाता रह गया.

सारे रास्ते रीमा का मन बस उसे यही सम?ाने में लगा हुआ था कि आखिर उस की नौकरी कौन सी सरकारी है? वह प्राइवेट स्कूल में एक टीचर ही तो है, फिर घर की शांति और पति से बढ़ कर नौकरी थोड़े होती है. वह नौकरी छोड़ क्यों नहीं देती? वह क्यों बेकार में नौकरी करने की हठ पकड़े हुए है? नौकरी थोड़े ही घर पर आएदिन हो रहे ?ागड़ों पर रोक लग जाएगी और वह सुकून से जिंदगी जी पाएगी.

बारबार रीमा का मन नौकरी छोड़ने का कर रहा था, इसलिए हार कर रीमा ने नौकरी से इस्तीफा देने का मन बना लिया. उस ने सोचा कि अगर नौकरी छोड़ने से घर की शांति, मन का सुकून और पति का प्यार सब मिल सकता है, तो हायहाय कर के नौकरी करने का क्या फायदा?

नौकरी से इस्तीफा देने का फैसला ले कर रीमा स्कूल पहुंची. जब वह स्टाफरूम पहुंची, तो उस ने पाया कि सभी टीचर अपनीअपनी क्लास लेने जा चुके हैं. केवल रीमा की पक्की सहेली श्रावणी बैठी हुई थी, क्योंकि उस का क्लास ब्रेक था.

रीमा को देखते ही श्रावणी को यह सम?ाने में समय नहीं लगा कि रीमा का अपने पति के संग ?ागड़ा हुआ है.

रीमा के बैठते ही श्रावणी बोली, ‘‘चेहरे पर बारह क्यों बजे हैं? आज फिर हो गया क्या पति से ?ागड़ा?’’

श्रावणी के ऐसा कहने पर लंबी सांसें लेते हुए रीमा बोली, ‘‘अब मैं तु?ो क्या बताऊं यार, आज फिर रोशन बेवजह मु?ा पर नाराज होने लगे, गालीगलौज करने लगे और मेरे बालों को पकड़ कर

इतना जोर से खींचा कि अब तक मेरे सिर में दर्द हो रहा है. मैं तो सम?ा ही नहीं पाती हूं कि आखिर रोशन मु?ा से चाहते क्या हैं?

‘‘लेकिन, अब मैं ने भी सोच लिया है कि इस रोजरोज के ?ां?ाट से छुटकारा पाने का बस एक ही रास्ता है कि मैं यह नौकरी ही छोड़ दूं. कम से कम रोशन से मेरा रिश्ता तो सुधर जाएगा.’’

रीमा की बातें सुन कर श्रावणी ने अपना सिर पकड़ लिया और उसे डांटते हुए बोली, ‘‘तेरा दिमाग तो ठिकाने पर है न… नौकरी छोड़ने की बात तेरे दिमाग में आई तो आई कैसे… और, तु?ो क्या लगता है कि तू नौकरी छोड़ देगी, तो तेरा पति तु?ो गाली देना बंद कर देगा? तु?ो पीटना छोड़ देगा? तू अपने पति की प्रेमिका बन जाएगी?

‘‘ऐसा कुछ भी नहीं होगा. अभी भी समय है कि अपनी आंखें खोल. अपने साथ हो रही इस नाइंसाफी के खिलाफ आवाज उठा. इस तरह कब तक तू अपने पति के हाथों की कठपुतली बनी रहेगी?’’

श्रावणी के इतना सब कहने के बावजूद रीमा पर इस का कोई असर नहीं हुआ और वह अपनी शादीशुदा जिंदगी को बचाए रखने के लिए नौकरी छोड़ने के लिए तैयार थी.

असल में रीमा के दिलोदिमाग में अपनी मां की कही वे बातें बैठी हुई थीं, जो सालों से सुनती आ रही थी, ‘‘अपने घरपरिवार के लिए औरत को सबकुछ सहना ही पड़ता है. घर उसी औरत का बनता है, जो अपनी खुशियों को छोड़ कर हर तरह के दुखों और मुसीबतों को सहती है.’’

रीमा पढ़ीलिखी, कामकाजी और अपने पैरों पर खड़ी होने के बावजूद सदियों से खींची गई उस लक्ष्मण रेखा को लांघ नहीं पा रही थी, जो समाज द्वारा केवल और केवल औरत को अपने काबू में रखने के लिए बनाई गई थी.

शाम को जब रीमा घर पहुंची, तो रोशन शराब के नशे में चूर उस के स्कूल से लौटने का इंतजार कर रहा था, क्योंकि रीमा सुबह उस का हाथ ?ाटक कर जो घर से निकल गई थी.

रीमा के घर के भीतर आते ही रोशन उस पर भड़क उठा, उसे भलाबुरा कहने लगा और गंदीगंदी गालियां देने लगा.

कुछ देर तक तो रीमा सुनती रही, लेकिन जब उस के बरदाश्त से बाहर हो गया, तो वह भी पलट कर जवाब देने लगी और दोनों के बीच ?ागड़ा बढ़ता चला गया. तभी अचानक रोशन रीमा को उस के बालों से पकड़ कर खींचता हुआ घर के आंगन में ले आया, उसे भद्दी और गंदी गालियां देने लगा, जिसे सुन कर आसपड़ोस के लोग वहां इकट्ठा हो गए, जिन में कुछ बड़ी, तो कुछ छोटी लड़कियां भी थीं.

कुछ ही देर बाद देखते ही देखते रोशन ने अपनी बैल्ट निकाल ली और रीमा को पीटने लगा, जिसे देख कर वहां खड़ी लड़कियां सहम गईं. उन की आंखों में डर साफ नजर आ रहा था.

यह देख कर अचानक रीमा ने रोशन के हाथों से बैल्ट छीन ली और रोशन पर पलटवार कर दिया, क्योंकि रीमा वहां पर खड़ी डरीसहमी लड़कियों के सामने यह उदाहरण पेश नहीं करना चाहती थी कि पति चाहे जो करे, सहना करना पत्नी का धर्म है.

रोशन की पिटाई होते देख वहां जमा छोटीबड़ी लड़कियों की आंखों में चमक आ गई और कुछ ऐसी औरतें जो मर्दों के जुल्म के खिलाफ आवाज उठाने में खुद को कमजोर पाती थीं, के होंठों पर भी दबी हुई मुसकान उभर आई.

कई मर्दऔरत ऐसे भी वहां मौजूद थे, जो रीमा की इस हरकत पर बुदबुदा रहे थे, कानाफूसी कर रहे थे, रीमा को बेशर्म और न जाने क्याक्या कह रहे थे, लेकिन रीमा उन सभी की परवाह किए बगैर आज अपने पति रोशन के जोरजुल्म के खिलाफ पूरे दमखम के साथ खड़ी थी.

साथ ही साथ, रीमा अब यह फैसला भी ले चुकी थी कि वह रोशन के लिए, अपने घरपरिवार को एकतरफा बचाने की जद्दोजेहद और समाज द्वारा बनाए गए दकियानूसी नियमों को बस और नहीं सहेगी और न ही इन सभी के लिए अपनी नौकरी छोड़ेगी. वह अब दुनिया को एक मजबूत औरत बन कर दिखाएगी.

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