बिल्हौर मार्ग पर एक कस्बा है ककवन. इसी कस्बे से सटा एक गांव है नदीहा धामू. यहीं पर रामदयाल गौतम अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी कुसुमा के अलावा 2 बेटे सर्वेश, उमेश तथा 2 बेटियां राधा व सुधा थीं. रामदयाल गांव का संपन्न किसान था. उस का बेटा सर्वेश गांव में डेयरी चलाता था. संपन्न होने के कारण जातिबिरादरी में रामदयाल की हनक थी.
रामदयाल की छोटी बेटी सुधा 10वीं कक्षा में पढ़ रही थी, जबकि बड़ी बेटी ने 12वीं पास कर के पढ़ाई छोड़ दी थी. रामदयाल उसे पढ़ालिखा कर मास्टर बनाना चाहता था, लेकिन राधा के पढ़ाई छोड़ देने से उस का यह सपना पूरा नहीं हो सका. पढ़ाई छोड़ कर वह मां के साथ घरेलू काम में मदद करने लगी थी.
गांव के हिसाब से राधा कुछ ज्यादा ही सुंदर थी. जवानी में कदम रखा तो उस की सुंदरता में और निखार आ गया. उस का गोरा रंग, बड़ीबड़ी आंखें और कंधों तक लहराते बाल, हर किसी को अपनी ओर आकर्षित कर लेते थे. अपनी इस खूबसूरती पर राधा को भी नाज था.
यही वजह थी कि जब कोई लड़का उसे चाहत भरी नजरों से देखता तो वह इस तरह घूरती मानो खा जाएगी. उस की इन खा जाने वाली नजरों से ही लड़के डर जाते थे.लेकिन आलोक राजपूत राधा की इन नजरों से जरा भी नहीं डरा था. वह राधा के घर से कुछ ही दूरी पर रहता था. आलोक के पिता राजकुमार राजपूत प्राइमरी स्कूल में अध्यापक थे. लेकिन रिटायर हो चुके थे. उन की एक बेटी तथा एक बेटा आलोक था. बेटी का वह विवाह कर चुके थे.