जिगोलो: देह धंधे में पुरुष भी शामिल

देह व्यापार का एक बाजार ऐसा भी है, जहां के सैक्सवर्कर औरतें नहीं बल्कि मर्द होते हैं. जिन्हें जिगोलो कहा जाता है. उन्हें यौन पिपासा से भरी औरतों को हर तरह से खुश करना होता है. आजकल जिगोलो की मांग लगातार बढ़ती जा रही है. इस धंधे में मोटी कमाई तो होती ही है साथ ही…

भरे बदन वाली एक अधेड़ महिला कमसिन दिखने की अदाओं के साथ ड्राइंगरूम में खड़ी थी. वहीं कुछ दूसरी महिलएं सिगरेट का धुंआ उड़ाती कुछ दूरी बना कर सोफे पर क्रास टांगों के साथ बैठी थीं. सभी के बीच अपनेअपने सैक्स अपील वाले यौवन को दर्शाने की होड़ सी दिख रही थी.

इसी बीच बलिष्ठ चुस्त टीशर्ट और टाइट पाजामे में एक युवक वहां आया. वहां वह सिर्फ उसी माहिला को पहचानता था, जो खड़ी थी. वह महिला उस के पास आई और बोली, ‘‘तुम को मालूम है कि तुम कहां खड़े हो. यहां जिस्म का बाजार लगता है.’’

यह सुनते ही युवक चौंक पड़ा,‘‘क्या?’’

महिला उस की कान के पास मुंह लगा कर बोली, ‘‘यहां तुम मेरे रिश्तेदार नहीं, केवल एक मर्द हो. नीले, गुलाबी बल्बों की रोशनी में तुम्हें अपनी अदाएं बिखेरनी हैं. बैठी महिलाओं को अट्रैक्ट करना है. बदले में तुम्हें ये अमीर महिलाएं मुहमांगी कीमत देंगी. आज तुम एक बिकाऊ मर्द होे, देखती हूं तुम्हारी कौन कितनी बोली लगाती है…’’

युवक चुपचाप महिला की बातें सुनता रहा. उस ने इसी क्रम में कुछ हिदायतें भी दीं. बोली, ‘‘तुम्हें यहां सभी के चेहरे पर सैक्स के भूख की एक ललक साफ तौर पर दिख रही होगी. याद रखना ये ललक जब तक दिखती रहेगी तब तक तुम्हारी मांग बनी रहेगी.’’

‘‘जी भाभी,’’ युवक बोला.

‘‘नहींनहीं, यह नाम नहीं, यहां मैं तुम्हारी मैडम हूं, मैडम एम.’’

‘‘जी समझ गया.’’ युवक बोला.

‘‘आओ, तुम्हारा सभी से परिचय करवाती हूं. उन की तारीफ मैडम के साथ एक अक्षर जोड़ कर करना.’’ कहती हुई मैडम एम ने पास बैठी महिला की ओर इशारा किया, ‘‘ये हैं मैडम एस… और ये हुई मैडम डी, ये हैं मैडम एक्स, वाई और…’’

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इस तरह से मैडम एम ने युवक का हाथ पकड़ कर वहां बैठीं 8 महिलाओं से उस का परिचय करवा दिया. फिर सब की ओर मुखातिब हो कर बोली, ‘‘मैडमों, अब खेल शुरू किया जाए, जिसे जो ड्रिंक लेना है, प्लीज किचन से जा कर ले सकती हैं…सेल्फ सर्विस है…ग्लास खाली होने पर उसे भरने के लिए ये है ही…’’ युवक की ओर उंगली उठाती हुई बोली.

 

मैडम एम ने सेंटर टेबल के नीचे से रिमोट निकाला और धीमी चल रही म्यूजिक की वौल्यूम बढ़ा दी. म्यूजिक तेज होते ही कइयों के पैरों की थिरकन बढ़ गई, जबकि कुछ महिलाएं बैठेबैठे ही अपने हाथों को नृत्य की मुद्रा में लहराने लगीं. एक महिला सोफे से उठी और कमर को डांस के मोड में लचकाती हुई किचन की तरफ बढ़ गई.

इस तरह से मर्द वेश्यावृत्ति के लिए छोटी सी मंडी सज गई, जिसे अज्ञात महिला की देखरेख में आयोजित किया गया था. ऐसा वह हर सप्ताह के वीकेंड पर करती थी.

अमीर घरों की औरतें ग्राहक हुआ करती थीं. वे हर सप्ताह कुछ नया पाने की ललक लिए आती थीं और आधी रात तक मौजमजा करती थीं.

इस मंडी के लिए हर बार किसी नए मर्द की तलाश की जाती थी. उसे बदले में अच्छी रकम मिल जाती थी. उस रोज मैडम एम यानी मालती को कोई युवक नहीं मिल पाया था. वह इस के लिए शनिवार की सुबह तक बहुत बेचैन थी.

उसी दौरान पीजी में रहने वाला उस के दूर के एक रिश्तेदार ने फोन पर अपनी समस्या बताई. पढ़ाई का खर्च निकालने के लिए उस ने कहीं पार्टटाइम जौब दिलवाने की रिक्वेस्ट की.

थोड़ी देर सोचने के बाद मालती ने उसे ही जिगोलो बनने के लिए राजी कर उसी शाम सजने वाली देह की मंडी में बुला लिया. साथ ही युवक से कुछ वादे भी लिए.

दिल्ली में अपने दम पर पढ़ाई का खर्च निकालना मुश्किल हो रहा था. उसे कोचिंग के लिए मोटी रकम की भी जरूरत थी. मालती का प्रस्ताव सुन कर उसे लगा कि उस का जमीर मर रहा है.

फिर उस के मन में अपने परिवार का भी खयाल आया, जहां कोई सोच भी नहीं सकता कि वह ऐसा भी कर सकता है. उस ने पैसे की जरूरत पूरी करने के लिए अपना जमीर बेच डाला.

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युवक मालती से केवल इतना पूछ पाया, ‘‘मुझे कब तक रुकना होगा, पढ़ाई भी करनी है.’’

इस का जवाब मालती ने दे दिया. वह खुश हो गई उसे एक नया माल… एक नया छैला मिल गया था. अब उसे ग्राहकों की बुकिंग नहीं लौटानी पड़ेगी. इसी के साथ मालती ने उस की कुछ तसवीरें मंगवाईं.

तसवीर की मांग पर युवक सोच में पड़ गया कि कोई रिश्तेदार देख लेगा तो उस के भविष्य का क्या होगा. इस की चिंता भी मालती ने दूर कर दी. तुरंत अपने फ्लैट पर बुलाया. चेहरे की पहचान छिपा कर अपने मोबाइल से कुछ तसवीरें खींच लीं.

पहले दाईं तरफ से, फिर बाईं तरफ से और उस के बाद सामने से

तसवीर खींची गई. सभी तसवीरें अंडरगारमेंट में थीं. युवक को उस की 3 आकर्षक फोटो दिखा कर बाकी डिलीट कर दी गईं. उन में युवक को पहचानना मुश्किल था.

उस के सामने तसवीरों को वाट्सऐप पर भेज दिया गया. तसवीरों के साथ लिख दिया गया, ‘‘नया माल है, रेट ज्यादा लगेगा. कम पैसे का चाहिए तो दूसरे को भेजती हूं.’’

एक से बढ़ कर एक खूसबूरत महिलाएं युवक की बोली लगाने लगीं, जो अंत में 5 हजार रुपए में तय हुई. इस में युवक को क्लाइंट के लिए सब कुछ करना था.

इस बारे में युवक ने अपना अनुभव शेयर करते हुए नाम नहीं उजागर करने की शर्त पर बताया, ‘‘मैं जिंदगी में पहली बार ये करने जा रहा था. बिना प्यार, इमोशंस के कैसे करता. एक अंजान के साथ करना होगा, यह सोच कर मेरा दिमाग चकरा रहा था.’’

उस ने आगे बताया, ‘‘वो शायद 32-34 साल की शादीशुदा महिला थी. बातें शुरू हुईं और उस ने कहा कि वह गलत जगह फंस चुकी है. पति गे है. वह अमरीका में रहता है. तलाक दे नहीं सकती. फिर एक तलाकशुदा औरत से कौन शादी करेगा. मेरा भी अलगअलग चीजों का मन होता है, बताओ क्या करूं.’’

उस के बाद महिला ने हिंदी गाने लगवाए और डांस करने लगी. थोड़ी देर में शुरू किया. हम दोनों डाइनिंग रूम से बैडरूम गए. अब तक उस ने मुझ से प्यार से बात की थी. काम जैसे ही खत्म हुआ, पैसे दे कर बोली, ‘‘चल कट ले, निकल यहां से.’’

उस ने मुझे टिप भी दी. मैं ने उस से कहा, ‘‘मैं ये सब पैसों की मजबूरी की वजह से कर रहा हूं.’’

उस ने कहा, ‘‘तेरी मजबूरी को तेरा शौक बना दूंगी.’’

मेरी मजबूरी जो दिल्ली से सैकड़ों किलोमीटर दूर मेरे घर से शुरू हुई थी. मेरी लोअर मिडिल क्लास फैमिली को मैं अनलकी लगता था, क्योंकि मेरे जन्म के बाद ही पिता की नौकरी चली गई. वक्त के साथ ये दूरियां बढ़ती गईं.

मेरा सपना एमबीए करने का था लेकिन इंजीनियरिंग करने को मजबूर किया गया. नौकरी नहीं लगी. फिर कंपटीशन की तैयारी कर दी. उस के लिए अतिरिक्त खर्च से मैं परेशान रहने लगा.

उन्हीं दिनों डिफेंस कालोनी में रहने वाली दूर की रिश्तेदार के बारे में मालूम हुआ. उन से मिला. वह तलाकशुदा महिला निकली, लेकिन अपने दम पर छोटा सा बुटीक चला रही थी. पति अपने मातापिता के साथ बंगलुरु में शिफ्ट हो चुका था, उस से कोई बच्चा नहीं था.

हर छोटीबड़ी परेशानी में वह मेरा आत्मविश्वास बढ़ा देती थी. उस ने कई बार डिप्रेशन से बाहर निकाला था. हालांकि मुझे इंटरनेट पर मेल एस्कार्ट यानी जिगोलो के बारे में थोड़ीबहुत जानकारी थी.

ऐसा फिल्मों में देखा था. कुछ वैसी वेबसाइट्स के बारे में भी जानकारी थी. जहां जिगोलो बनने के लिए प्रोफाइल बनाई जा सकती थी. संयोग कहें

या फिर मेरी किस्मत कि मैं जिस्म की बोली लगने वाली महिलाओं के बीच आ गया था.

उस रात मैं ने जिगोलो बनने की परीक्षा अच्छे नंबरों से पास कर ली. ऐसा मैडम एम ने आधी रात को मेरी पीठ थपथापते हुए कहा. मैं वहीं थका हुआ सो गया. सुबह कालबैल की आवाज से नींद खुली.

दरवाजे पर मालती को मुसकराते हुए देखा. मैं झेंप गया और फ्रैश होने के लिए बाथरूम में घुस गया.

उस के बाद मैं दुविधा से घिर गया. यह कहें मैं 2 विचारों की दहलीज पर खड़ा था. एक, दहलीज से पीछे हट कर सुसाइड कर लूं. दूसरा, दहलीज के पार जा कर जिगोलो बन जाऊं.

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अंतत: मैं ने दहलीज को लांघने का फैसला कर लिया. मैं जिन औरतों से मिला, उन में शादीशुदा तलाकशुदा, विधवा और सिंगल लड़कियां भी शामिल थीं.

इन में से ज्यादातर के लिए मैं एक इंसान नहीं माल था. जब तक उन की इच्छाएं पूरी न हो जातीं, सब अच्छे से बात करतीं. कहती कि मैं अपने पति को तलाक दे कर तुम्हारे साथ रहूंगी. लेकिन बैडरूम में बिताए कुछ वक्त के बाद सारा प्यार खत्म हो जाता.

सुनने को मिलता, ‘‘चल निकल यहां से. पैसा उठा और भाग.’’

और कई बार गालियां भी सुनने को मिलतीं. ये सोसाइटी हम से मजे भी लेती है और हम ही को प्रास्टीट्यूट कह कर गालियां भी देती है.

एक बार एक पतिपत्नी ने साथ में बुलाया. पति सोफे पर बैठा शराब पीते हुए हमें देखता रहा. मैं उसी के सामने पलंग पर उस की पत्नी के साथ था. ये काम दोनों की रजामंदी से हो रहा था. शायद दोनों की ये कोई डिजायर रही हो.

इसी बीच 50 साल से ज्यादा उम्र की महिला भी मेरी क्लाइंट बनी. वह मेरी जिंदगी का सब से अलग अनुभव था. पूरी रात वह बस मुझ से बेटाबेटा कह कर बात करती रहीं. बताती रहीं कि कैसे उन का बेटा और परिवार उन की परवाह नहीं करता. वे उन से दूर रहते हैं.

वो मुझ से भी बोलीं, ‘‘बेटा, इस धंधे से जल्दी निकल जाओ, सही नहीं है ये सब.’’

उस रात हमारे बीच सिवाय बातों के कुछ नहीं हुआ. सुबह उन्होंने बेटा कहते हुए मुझे तय रुपए भी दिए. मुझे वाकई उस महिला के लिए दुख हुआ.

फिर एक रोज जब मैं ने शराब पी हुई थी और जिंदगी से थकान महसूस कर रहा था, मैं ने मां को फोन किया. उन्हें गुस्से में कहा, ‘‘तुम पूछती थी न कि अचानक ज्यादा पैसे क्यों भेजने लगे. मां मैं धंधा करता हूं… धंधा.’’

वो बोलीं, ‘‘चुप कर. शराब पी कर कुछ भी बोलता है तू.’’ यह कह कर मां ने फोन रख दिया.

मैं ने मां को अपना सच बताया था लेकिन उन्होंने मेरी बात को अनसुना कर दिया. मेरे भेजे पैसे वक्त से घर पहुंच रहे थे न… मैं उस रात बहुत रोया. क्या मेरी वैल्यू बस मेरे पैसों तक ही थी? इस के बाद मैं ने मां से कभी ऐसी कोई बात नहीं की.

मैं इस धंधे में बना रहा, क्योंकि मुझे इस से पैसे मिल रहे थे. मार्केट में मेरी डिमांड थी. लगा कि जब तक कोलकाता में नौकरी करनी पड़ेगी और एमबीए में एडमिशन नहीं ले लूंगा, तब तक ये करता रहूंगा. लेकिन इस धंधे में कई बार अजीब लोग मिलते हैं. शरीर पर खरोंच छोड़ देते थे.

ये निशान शरीर पर भी होते थे और आत्मा पर भी. और इस दर्द को दूसरा जिगोलो ही समझ पाता था, सोसाइटी चाहे जैसे देखे, इस प्रोफेशन में जाने का मुझे कोई अफसोस नहीं है. हां, अतीत के बारे में सोचूं तो कई बार चुभता तो है. ये एक ऐसा चैप्टर है, जो मेरे मरने के बाद भी कभी नहीं बदलेगा.

यह एक ऐसा व्यवसाय है जिस में जोरजबरदस्ती नहीं बल्कि स्वेच्छा से लोग शामिल होते हैं और इन की खरीदफरोख्त भी स्वेच्छा से ही की

जाती है. यानी कि यह पुरुष वेश्यावृत्ति औरतों की वेश्यावृत्ति की तरह तकलीफदेह नहीं है.

यूं तो यह बेहद संभ्रांत परिवार की औरतों का महंगा शौक है जो मुंबई, चेन्नई, कोलकाता और दिल्ली जैसे महानगर में तेजी से फलफूल रहा है.

इस में लड़कियों की वेश्यावृत्ति की तरह से इस पेशे में धकेला नहीं जाता, बल्कि लड़के खुद अपनी स्वेच्छा से अपने शौक को पूरा करने के लिए, कभीकभी मस्ती करने के लिए या बेरोजगार होने की हालत में इसे रोजगार की तरह अपना लेते हैं.

रात 10 बजे से सुबह 4 बजे तक जिगोलो की मंडियां सजती हैं और बड़ीबड़ी लग्जरी कारों में संभ्रांत कहे जाने वाले परिवारों से औरतें, लड़कियां और उम्रदराज औरतें भी अपने लिए जिगोलो नामक खिलौना चुनती हैं.

रात भर या फिर घंटे के हिसाब से उस से खेलती हैं और सुबह की रोशनी के पहले ही वापस अपने घर को चली जाती हैं.

कभीकभी शहर से बाहर आउटहाउस पर जाने का भी इंतजाम होता है. लेकिन इन्हें पाना सब के बस की बात नहीं है. यह 3 हजार से ले कर 8 हजार तक के मिलते हैं, एक रात में 8 हजार तक की कमाई की वजह से यह फायदेमंद सौदा बन चुका है. ऐसे लोगों की धमक छोटे शहरों तक में हो चुकी है.

गठीला शरीर ,फर्राटेदार अंगरेजी और लिंग के साइज से ही उस की कीमत तय होती है. उन के गले में खास पहचान देने वाला पट्टा लगा होता है, जो उस के सैक्सी होने के बारे में बताता है.

किसी पब में, डिस्को में और बड़े होटलों में जिगोलो अकसर मिलते हैं. इस में काम करने वाले 18 साल के लड़के से ले कर 50 साल के पुरुष भी हो सकते हैं.

यह कहें कि अब इस बारे में लोगों को बहुत जानकारी है. दिल्ली के कई पौश इलाके पुरुष वेश्यावृति के लिए कुख्यात कहे जा सकते हैं.

इस में रुचि रखने वाली रईस तबके की औरतों के अलावा गे समुदाय के लोग भी होते हैं. इन के खरीददार अथाह पैसा रखने वाली वे औरतें होती हैं, जिन की शारीरिक जरूरतें पूरी नहीं हो पाती हैं. उन के लिए अधिक समय तक सैक्स को दबा कर रखना आसान नहीं होता या इन में वैसी औरतें भी होती हैं, जो चेंज में विश्वास करती हैं.

यह किसी मजबूरीवश नहीं सिर्फ मजे के लिए किया जाने वाला महंगा शौक है. शराब पीना, सिगरेट पीना और फिर जिगोलो संग कामाग्नि को बुझाना, यह फैशन सा बन गया है.

हैरत की बात तो यह है कि ऐसी महिलाएं अपने निजी शौक की पूर्ति के लिए 2 हजार से 20 हजार रुपए न्यौछावर कर देती हैं.

मर्दों की मंडी में पुरुषों के जिस्म की नुमाइश होती है. औरतें इन्हें छू कर और परख कर अपने लिए पसंद करती हैं और फिर कुछ घंटे शराब सिगरेट और मदहोशी के नशे में बिता कर मुंह अंधेरे ही वापस सफेद उजाले में आने के लिए तैयार हो जाती हैं.

कुछ घंटे के लिए 3 हजार रुपए देने को तैयार हो जाती हैं. एक मर्द सेक्स वर्कर पर औसतन 12 से 15 हजार रुपए तक लुटाना आम बात मानी जाती है.

कई बार बड़ेबड़े हाई क्लास के अड्डे में जिगोलो महिलाओं के बीच अपनी नुमाइश करते हैं. वहां जो सैक्स संबंध बनाते हैं उस के पैसे मिलते हैं. यह जिगोलो पर निर्भर करता है कि वह कितना अपने क्लाइंट को संतुष्ट कर पाता है.

ऐसे में किसी महिला को कोई जिगोलो पसंद आ जाता है तो वह उस की बोली लगा कर पूरी रात के लिए अपने साथ ले जाती है.

जिगोलो को तलाशने से ले कर उस के नुमाइश के ठिकाने बनाने के काम में बिचौलिए की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है. उन की बदौलत जिगोलो से ले कर महिला ग्राहक तक की सभी जानकारी गुप्त बनी रहती है.

इस काम को करने वाले अधिकतर कम उम्र के लड़के ही होते हैं. यानी 18 से 30 वर्ष के जिन की डिमांड भी ज्यादा रहती है. जिगोलो को जो पैसा मिलता है, उस का 20 प्रतिशत कमीशन एजेंट या बिचौलिए को देना होता है.

यानी कि जिगोलो बनने के लिए 2500 से 3000 रुपए तक चुका कर बाकायदा रजिस्ट्रेशन करवाना होता है. उस के बाद ट्रेनिंग देनी होती है. ट्रेनिंग के दौरान उन्हें खास किस्म के पहनावे से ले कर चलनेफिरने, उठनेबैठने के ढंग और एक सीमा तक यौनांगों के साथ अश्लील हरकत करना आदि सिखाया जाता है.

उन्हें यह भी सिखाया जाता है कि वे किस तरह से किसी महिला के सामने ज्यादा समय तक टिके रह सकते हैं.

उन्हें स्ट्रिपर की भी अच्छीखासी ट्रेनिंग दी जाती है. वे अपनी नुमाइश के दौरान जैसेजैसे कपड़े उतारते जाते हैं, वैसेवैसे सामने बैठी महिलाओं की कामाग्नि भड़कती चली जाती है.

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बताते हैं जिगोलो में हर पेशे से जुड़े लोग होते हैं. वे जिम की बदौलत तराशे हुए बदन को खूबसूरती के साथ प्रदर्शित करते हैं, जिन्हें देख कर महिला की आह निकल पड़ती है. कई बार अपने प्रोफेशन में यह अच्छे कौन्टैक्ट्स पाने के लिए भी इस काम को करते हैं.

वैसे लोग सड़क किनारे कुछ इलाके की चर्चित बाजारों के पास खड़े हो जाते हैं. लग्जरी गाडि़यां रुकती हैं और सौदा तय होने पर अपने क्लाइंट के पास पहुंच जाते हैं.

होटलों में यह काम थोड़ा आसान हो जाता है, क्योंकि वहां उन्हीं के कमरों में इस काम को अंजाम दिया जाता है.  ऐसे कई लोग एक अलग से पहनावे और परफ्यूम लगाए रेस्टोरेंट में बैठ कर ग्राहक के बिचौलिए का इंतजार करते हैं.

जिगोलो के धंधे में उतरने वाले शुरू में भले ही अपनी जरूरतों को पूरी करने के लिए ऐसा करते हैं, लेकिन बाद में उन्हें लत लग जाती है. इस पेशे में आने वाले मनोरंजन और मौडलिंग के पेशे के लोग आसानी से घुलमिल जाते हैं.

मौत के पंजे में 8 घंटे

3 दोस्तों का सामना जब रात में बाघबाघिन के जोड़े से हुआ, तब उन का दिल दहल गया. जान बचाने के लिए एक पेड़ पर चढ़ गया, जबकि 2 दोस्त उन का निवाला बनने से नहीं बच पाए.

8 घंटे तक मौत के जबड़े में उन के रहने की रोमांच से भरी यह कहानी बहुत कुछ सीख देती है… कंधई लाल ने बड़ी मिन्नतों के बाद खास दोस्त विकास उर्फ दिक्षु को अपने साथ ससुराल चलने के लिए

तैयार किया. विकास को पता था कि उस के ससुराल जाने का मतलब था रात को वहीं ठहरना, जो वह नहीं चाहता था.

‘‘अरे किस सोच में पड़ गया. वहां 1-2 घंटे का ही काम है. जल्दी लौट आएंगे. मुझे जाना बहुत जरूरी है इसलिए कह रहा हूं.’’ कंधई ने उस की चिंता दूर की.

‘‘देखो कंधई, तुम्हारी ससुराल जाने का रास्ता बड़ा खतरनाक है, इसलिए तो चिंता करनी पड़ती है.’’ विकास बोला.

‘‘कुछ नहीं होगा मेरे दोस्त. अच्छा, एक काम कर, मेरी मोटरसाइकिल खराब हो गई है, कोई इंतजाम कर दे यार,’’ कंधई ने एक और आग्रह किया.

‘‘उस की चिंता मत कर. सोनू से कह कर अपने भाई की मोटरसाइकिल मांग लेता हूं. लेकिन हां, हमें आधे घंटे के भीतर निकलना होगा. तभी हम लोग जलालपुर समय रहते पहुंच पाएंगे और अंधेरा होने से पहले लौट भी आएंगे.’’ विकास बोला.

फिर विकास ने उसी समय सोनू को फोन कर उस की मोटरसाइकिल मांगी. यह बात 11 जुलाई की है. कुछ देर में ही सोनू अपने भाई की मोटरसाइकिल ले कर आ गया. तीनों दोस्त बाइक से शाहजहांपुर जिले के थाना पुवायां के गांव जलालपुर के लिए दिन के 11 बजे चल दिए.

तीनों दोस्तों में 35 वर्षीय कंधई लाल, 22 वर्षीय सोनू व 23 वर्षीय विकास उत्तर प्रदेश के पीलीभीत जिले के दियोरिया के निवासी थे. वे अकसर हरियाणा और दूसरे जगहों पर एक साथ काम करने आतेजाते रहते थे.

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दियोरिया से जलालपुर करीब 20 किलोमीटर की दूरी पर है. मोटरसाइकिल के लिए यह दूरी कोई अधिक नहीं थी, लेकिन रास्ता पीलीभीत टाइगर रिजर्व के जंगलों के बीच से गुजरता था, इसलिए सुनसान और खतरनाक माना जाता था.

तीनों दोस्त हंसतेबतियाते सुनसान सड़क पर चले जा रहे थे. रास्ता कब तय हो गया, इस का उन्हें पता ही नहीं चला.

कंधई के ससुराल में उन के दोनों दोस्त काफी दिनों बाद गए थे, इस कारण उन की खूब आवभगत हुई. मिलनेमिलाने और बातचीत में समय का पता ही नहीं चला. शाम ढलने लगी, तब तक वे जलालपुर में ही जमे रहे.

देखते ही देखते शाम के साढ़े 7 बज गए. विकास ने कंधई से कहा कि जल्दी चलो जंगल का रास्ता है देर करना ठीक नहीं है. उस के बाद साढ़े 7 बजे तक तीनों दोस्त बाइक से दियोरिया के लिए निकल पड़े.

उन की बाइक जब दियोरिया मार्ग पर टूटे पुल के पास पीलीभीत टाइगर रिजर्व की वन चौकी बैरियर पर पहुंची, तब तक रात के साढ़े 8 बज चुके थे.

उन्होंने वहां तैनात वनकर्मी हरिराम से बैरियर खोलने के लिए कहा. किंतु हरिराम ने जंगल के घुंघचाई-दियोरिया मार्ग से रात के समय जाने से मना कर दिया. क्योंकि अंधेरा होने पर टाइगर घने जंगल से निकल कर सड़क पर घूमते दिखते हैं, इसलिए वनकर्मी बैरियर लगा कर सड़क बंद कर देते हैं. लेकिन वे लोग हरिराम से जबरदस्ती बैरियर खुलवाने की जिद करने लगे.

हरिराम ने उसे मिले आदेश के बारे में बताया कि जंगल के रास्ते से रात को जाना मना है. उस ने उन्हें समझाया कि इस क्षेत्र में रात के समय बाघ सड़क पर आ जाते हैं. इसी कारण शाम 7 बजे से सुबह 5 बजे तक जंगल के इस रास्ते को बंद कर दिया जाता है.

कंधई ने हरिराम से विनती करते हुए कहा कि उन का घर पहुंचना जरूरी है. इस पर हरिराम ने कहा कि आप सभी यहां रुक कर थोड़ा और इंतजार करें. कुछ और राहगीरों के आ जाने पर रास्ता खोल सकता हूं. आप सभी इकट्ठे निकल जाना.

हरिराम की बात पर वे कुछ देर रुके जरूर, लेकिन किसी और के नहीं आने पर उन्होंने जबरन बैरियर को खुलवाया और निकल गए.

कुछ मिनटों में ही उन की बाइक वन चौकी से लगभग एक किलोमीटर आगे जंगल के रास्ते पर खन्नौत नदी के टूटे पुल के पास पहुंच गई थी. वहां तक तो सब कुछ ठीकठाक था, उन्होंने अपनी सुरक्षा के लिए बाइक की हेडलाइट बंद कर दी थी. सड़क के खंभों पर लगी साधारण लाइटों के सहारे रास्ते पर बगैर कोई आवाज के आगे बढ़ रहे थे.

तभी बाइक पर पीछे बैठे विकास ने रास्ते के एक साइड में 2 बाघ बैठे देखे. अचानक उस के मुंह से चीख निकल गई. बाइक सोनू चला रहा था, कंधई बीच में बैठा था. सोनू ने बाइक धीमी कर दी. इस पर कंधई चीखता हुआ बोला, ‘‘अरे बाइक तेजी से निकाल ले.’’

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उन्हें बाघ के पास से ही हो कर निकलना था. मौत को साक्षात सामने देख कर सोनू के होश उड़ गए. डर से सभी की सिट्टीपिट्टी गुम हो गई थी. इसी घबराहट में सोनू बाइक नहीं संभाल पाया.

बाइक तेज आवाज के साथ गिर गई. अभी वे बचने की सोचते, इस से पहले ही एक बाघ ने बाइक पर छलांग लगा दी. उस के पंजे की खरोंच सोनू को लगी. सब से पीछे विकास हेलमेट लगाए बैठा हुआ था, वह छिटक कर दूर जा गिरा था.

तब तक दूसरा बाघ विकास पर हमला कर चुका था. सोनू और कंधई झट से उठे और जान बचा कर रोड की तरफ भागे. पहले वाला बाघ उन के पीछे दौड़ा, जबकि दूसरे बाघ ने विकास के सिर पर पंजा और मुंह से हमला कर दिया.

वह हेलमेट पहने था, इसलिए बच गया और गड्ढे में जा गिरा. इसी बीच सोनू और कंधई भागते हुए उधर ही आ गए. दोनों बाध उन के पीछे पड़ गए. तभी विकास को मौका मिल गया. वह गड्ढे से तुरंत बाहर निकला और लपक कर एक पेड़ पर चढ़ गया.

एक बाघ ने सोनू को जबड़े से पकड़ लिया था. बाघ ने उसे ऊपर की ओर उठा लिया था. उस की मौत हो गई थी. इस की विकास ने एक झलक भर देखी. वहीं दूसरा बाघ कंधई की ओर दौड़ा. अपनी जान बचाने के लिए कंधई पेड़ पर चढने लगा.

वह करीब 6 फीट ऊंचाई तक ही चढ़ पाया था कि बाघ ने जमीन से पेड़ पर चढ़ते हुए कंधई पर छलांग लगा दिया. इस झपट्टे में कंधई गिर गया. फिर वह उठ नहीं पाया. वह बेजान हो गया था. निश्चित तौर पर उस की मौत हो चुकी थी.

बाघों का खूंखार रूप बहुत करीब से देखा

कुछ पल में ही सोनू और कंधई जमीन पर बेजान गिरे हुए थे. एक बाघ कंधई को खींच कर झाडियों के बीच ले गया. जबकि सोनू वहीं पड़ा रहा, किंतु उस के शरीर में जरा भी हलचल नहीं हो रही थी. वह मर चुका था.

यह खौफनाक मंजर पेड़ पर चढ़े विकास की आंखों के सामने था. उस की घिग्घी बंध गई थी. दहशत में उस ने आंखें बंद कर लीं. उसे लगा अब उस के मरने की बारी है. वह चुपचाप पेड़ पर बैठा रहा. दोनों बाघ पूरी रात वहीं चहलकदमी करते रहे.

सुबह लगभग 4 बजे के करीब दोनों बाघ जंगल के अंदर चले गए. जब वे काफी समय तक वापस नहीं लौटे तब विकास की जान में जान आई.

थोड़ी देर बाद कुछ लोग उधर से गुजरे. विकास ने आवाज दे कर उन्हें अपने पास बुलाया. उन से रात की घटना की आपबीती बताई. उन्होंने हिम्मत बंधाई. तब विकास पेड़ से नीचे उतरा. वह भय से कांप रहा था. विकास उन्हीं के साथ अपने घर आ गया.

विकास ने जंगल में हुई इस खौफनाक घटना की बात घर वालों को बताई. सोनू और कंधई के घर में तो कोहराम मच गया. जिस ने भी घटना के बारे में सुना, वह विकास के घर की ओर दौड़ पड़ा. उधर रात में हुई इस घटना की जानकारी वनकर्मियों ने सुबह अपने अधिकारियों को दी.

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दर्दनाक मंजर

कुछ देर में ही घटनास्थल पर घुंघचाई पुलिस चौकी के इंचार्ज प्रमोद नेहवाल, पूरनपुर कोतवाली के प्रभारी निरीक्षक हरीश वर्धन सिंह, सीओ लल्लन सिंह तथा टाइगर रिजर्व के फील्ड डायरेक्टर जावेद अख्तर, पीलीभीत टाइगर रिजर्व के डिप्टी डायरेक्टर नवीन खंडेलवाल भी अपनी टीम के साथ पहुंच गए. उन के साथ मृतकों के परिजन भी थे.

वनकर्मियों के साथ ही ग्रामीणों ने जंगल में मृतकों की तलाश की. सोनू का शव घटनास्थल के पास पड़ा मिला, जबकि कंधई के शव को बाघ घटनास्थल से लगभग 400 मीटर दूर ले गया था.

कंधई की आधी खाई लाश भी मिल गई. बाघों ने कंधई के शरीर का निचला हिस्सा खा लिया था, केवल धड़ से ऊपर का हिस्सा बचा था. सोनू के गले व सिर पर बाघ के पंजों व दांतों के निशान थे. खून बह कर शर्ट पर जम गया था. उन के परिजनों का रोरो कर बुरा हाल था.

डिप्टी डायरेक्टर नवीन खंडेलवाल के अनुसार, चलती बाइक पर टाइगर हमला नहीं करता है. टाइगर को देख कर बाइक सवार के रुकने पर ही वह हमला करता है. जब डर से युवकों की बाइक गिर गई थी, तब बाघ ने हमला कर दिया होगा.

उन का कहना था कि उन के स्टाफ ने रात को जंगल से जाने से मना किया था, फिर भी वे जंगल की तरफ गए थे. पुलिस ने दोनों लाशों का पंचनामा तैयार कर उन्हें पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया.

अगर कोई बाघ किसी इंसान पर हमला कर उस का मांस खा ले और बारबार ऐसी परिस्थितियां बने तो उस के आदमखोर बनने की आशंका रहती है.

बाघ स्वभाव के मुताबिक किसी इंसान पर हमला कर उसे कुछ दूर खींच ले जाता है. अपने शिकार का मांस एक बार में नहीं खाता, बल्कि कुछ मांस खाने के बाद बाघ वहीं आसपास छिप कर आराम करने लगता है.

भूख लगने पर वह अपने उसी शिकार के पास खाने के लिए जाता है. बाघ को जब दोबारा अपना शिकार नहीं मिलता है, तब वह भूख मिटाने के लिए किसी वन्यजीव का शिकार करता है.

इंसानों पर बाघ के हमले की घटना को रोकने के लिए घटना के बाद उस स्थल पर कैमरे लगाए जाते हैं, जिस से बाघ की गतिविधियों पर नजर रखी जा सके.

तराई के जिले में बाघ संरक्षण के लिए दशकों से कार्य कर रही अंतरराष्ट्रीय संस्था विश्व प्रकृति निधि (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ) के वरिष्ठ परियोजना अधिकारी नरेश कुमार के अनुसार एक बार किसी इंसान का मांस खा लेने से कोई बाघ आदमखोर नहीं हो जाता. किंतु बारबार इंसानों पर हमला कर के उस का मांस खाने लगे तो फिर वह आदमखोर हो जाता है.

पीलीभीत टाइगर रिजर्व के डिप्टी डायरेक्टर नवीन खंडेलवाल के अनुसार, 2 लोगों की जान जाने के बाद घटनास्थल के आसपास 20 कैमरे लगा दिए गए. साथ ही पैदल और बाइक सवारों को जंगल के रास्ते से प्रवेश पर रोक लगा दी गई है. चारपहिया वाहन के आनेजाने की छूट दी गई.

तीनों दोस्त साथ मेहनतमजदूरी करते थे. वे मजदूरी करने के लिए हरियाणा जाने की योजना बना रहे थे. इस को ले कर कंधई अपनी ससुराल वालों से मिलने गया था. बाघ के हमले का शिकार हुए सोनू अपने 3 भाइयों में दूसरे नंबर पर था. वह अविवाहित था.

घटना के अगले दिन ही उस की शादी तय होनी थी. लड़की वाले रिश्ता तय करने आने वाले थे. उस की मौत से परिवार में पिछले कई दिनों से चल रहा हंसीखुशी का माहौल गम में बदल गया. जबकि कंधई लाल 3 भाइयों में सब से बड़ा था. उस के परिवार में पत्नी के अलावा 3 बेटे और 3 बेटियां हैं.

कांप उठता है घटना को याद कर के

इस घटना से कुछ देर पहले रात करीब 8 बजे कनपारा निवासी सत्यपाल अपनी पत्नी सोमवती के साथ बाइक से जंगल के इसी रास्ते से निकला था. सत्यपाल के अनुसार वह पत्नी के साथ बरेली इलाके के एक धार्मिक स्थल पर प्रसाद चढ़ा कर लौट रहे थे.

घटनास्थल के पास सड़क किनारे बैठे बाघ को नहीं देख पाए. जैसे ही बाइक बाघ के पास पहुंची, बाघ को देख उन्होंने बाइक की रफ्तार बढ़ा दी. बाघ ने उन की बाइक का कुछ दूरी तक पीछा भी किया, लेकिन वे बच गए.

विकास ने पेड़ पर चढ़ कर अपनी जान तो बचा ली. मगर उस के चेहरे पर साथियों की मौत और बाघ का खौफ साफ झलक रहा था. मौत के मंजर का आंखों देखा हाल बताते हुए वह अब भी कांप जाता है.

उस ने बताया, ‘‘बिजली सी कौंधी और धम्म की आवाज के साथ दोनों बाघ हम पर टूट पड़े. दोनों दोस्तों को बाघों ने उस की आंखों के सामने दबोच कर मार डाला. दिल दहला देने वाली घटना थी.

‘‘बाघ ने मेरे सिर पर पंजा मारा और मेरा सिर अपने मुंह में ले लिया. बाघ के जबड़े में मेरा सिर आ गया था लेकिन हेलमेट ने जान बचा ली. इस बीच बाघ मुझे छोड़ कर दोस्तों का पीछा करने लगा. दिमाग ने थोड़ा काम किया और लपक कर मैं एक पेड़ पर चढ़ गया.

‘‘करीब 8 घंटे पेड़ पर डरासहमा बैठा रहा. करीब एक घंटे बाद एक बाघ ने पेड़ पर चढ़ने की कोशिश की, लेकिन वह सफल नहीं हुआ. पूरी रात दोनों बाघ दहाड़ते रहे.

‘‘मुझे लग रहा था कि मैं बच नहीं पाऊंगा. मगर मेरी एक तरकीब काम आ गई. इस दौरान मौका पा कर मैं पेड़ पर ऊंचाई पर चढ़ गया. पूरी रात दहशत में गुजारी. इस बीच दोनों बाघ मुझे निवाला बनाने के लिए पेड़ के नीचे मंडराते रहे. यकीन नहीं हो रहा कि मैं जिंदा बच गया.

‘‘घर पहुंचने की जल्दी में हम ने वनकर्मी की बात नहीं मानी और जंगल के रास्ते पर आगे बढ़ गए.’’

विकास उस भयावह रात को याद करते हुए कहता है कि दोनों बाघ मेरी स्मृति में हमेशा जिंदा रहेंगे. इस धरती पर जब तक मैं जीवित रहूंगा, उन की दहाड़ मेरे कानों को सुनाई देती रहेगी.

365 पत्नियों वाला रंगीला राजा भूपिंदर सिंह

राजाओंमहाराजाओं के पराक्रम के किस्सों से इतिहास भरा पड़ा है. लेकिन ऐसे भी तमाम राजामहाराजा हुए हैं, जिन की रंगीनमिजाजी और शौक की चर्चा कर के आज भी लोग दांतों तले अंगुली दबा लेते हैं.

दरअसल देश की सत्ता जब अंगरेजों के पास आई तो इन राजाओं के पास केवल लगान वसूली का काम रह गया. लगान वसूल कर अंगरेजों का हिस्सा पहुंचा कर बाकी बची रकम से ये केवल अपने शौक पूरे करने के अलावा अय्याशी करते थे.

इन के शौक और अय्याशी भी किसी सनक की ही तरह होती थी. वैसे तो विलासिता पसंद राजाओंमहाराजाओं की हमारे यहां कमी नहीं रही, जो काफी अय्याश भी रहे थे. उन्हीं में एक नाम पटियाला के महाराजा भूपिंदर सिंह का भी है.

पटियाला की बात चलते ही तुरंत पटियाला पैग की याद आ जाती है. जंबो पैग यानी पटियाला पैग. जंबो पैग की ही तरह पटियाला के महाराजा का परिवार भी जंबो था. सोच कर आप को हंसी भी आ जाए और कंपा भी दे, इस तरह का परिवार था पटियाला के महाराजा का.

आज एक पत्नी और एक या 2 बच्चों के साथ रहना मुश्किल हो रहा है. ऐसे में रोज के हिसाब से एक रानी यानी 365 रानियों के साथ जीवन कैसे गुजरेगा, यह सोच कर दिमाग चकरा जाता है. फिर भी रंगीनमिजाज लोगों को एक की अपेक्षा कई पत्नियों को संभाल लेने की कला अच्छी तरह आती है.

पटियाला के महाराजा भूपिंदर सिंह को भी यह कला अच्छी तरह आती थी. वह बहुत ही रंगीले इंसान थे. पावर करप्ट वाली अंगरेजों की युक्ति यहां पूरी तरह फिट बैठती थी.

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12 अक्तूबर, 1891 को पैदा हुए भूपिंदर सिंह. सामान्य बच्चा जिस उम्र में गली में मिट्टी में खेलने जाने लगता है, उसी उम्र में भूपिंदर सिंह महाराजा रजिंदर सिंह की मौत के बाद राजा बन गए थे. 9 साल की उम्र में ही पटियाला की बागडोर संभालने वाले राजा भूपिंदर सिंह ने पटियाला पर 38 साल राज किया था.

हालांकि औपचारिक तौर पर राज्य की कमान उन्होंने 18 साल की उम्र में संभाली थी. 28 साल राज करने के बाद 23 मार्च, 1938 को मात्र 47 साल की उम्र में उन का निधन हो गया था.

भारत में उन दिनों तमाम रजवाड़े थे. राजाओं की रंगीनमिजाजी के तमाम किस्से सुनने को मिलते रहते हैं. तमाम राजाओं की रंगीनमिजाजी पर किताब भी लिखी गई है.

भूपिंदर सिंह के दीवान जरमनी दास ने भी ‘महाराजा’ नामक एक किताब लिखी है, जिस में पटियाला के महाराजा की रंगीनमिजाजी का पूरा उल्लेख किया गया है.

उन्होंने महाराजा भूपिंदर सिंह के जीवन पर जो किताब लिखी है, उस पर काफी विवाद रहा है. लेकिन इस बात पर सभी एकमत रहे हैं कि महाराजा भूपिंदर सिंह भव्य और विलासिता भरा जीवन जीते थे.

इस किताब में जिस भवन का उल्लेख है, वह लीलाभवन अपने नाम के अनुसार ही लीला यानी रंगरलियों के लिए प्रसिद्ध था.

ऐसा नियम था कि इस महल में कोई कपड़ा पहन कर नहीं जा सकता था. मतलब वहां लोग बिना कपड़ों के यानी नग्न जाते थे. पटियाला के भूपिंदरनगर से जाने वाली सड़क पर बारहदरी बाग के नजदीक यह महल बना है. कपड़ा उतार कर जिस महल में प्रवेश मिलता हो, उस महल की रंगीनमिजाजी यानी इश्कमिजाजी के बारे में क्या कहा जा सकता है. इस महल में एक खास कमरा था, जिस का नाम प्रेम मंदिर रखा गया था.

प्रेम तो एक इबादत माना जाता है, ऐसे में लीलाभवन में प्रेम मंदिर का होना कोई आश्चर्य की बात नहीं है. लीलाभवन के इस प्रेम मंदिर की दीवारों पर चारों तरफ ऐसे चित्रों की भरमार थी, जिस में महिलापुरुष कामवासना में लिप्त दिखाई देते थे.

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इस कमरे में महाराजा भूपिंदर सिंह के अलावा किसी अन्य पुरुष को जाने की अनुमति नहीं थी. हां, अगर राजा की इच्छा हो तो दूसरे किसी पुरुष को प्रवेश मिल सकता था. पर ज्यादातर राजा ही अय्याशी में रचेबसे रहते थे तो दूसरे को जाने का मौका कहां से मिलता. प्रेम मंदिर के उस कमरे में भोगविलास की सारी सुविधाएं उपलब्ध रहती थीं.

इस महल में एक ऐसा तालाब था, जिस में एक साथ 150 लोग स्नान कर सकते थे. इसी महल में राजा पार्टियां देते थे, जिस में जानीमानी महिलाओं और कुछ खास लोगों को निमंत्रण मिलता था.

सभी लोग एक साथ तालाब में स्नान करते, तैरते और अय्याशी करते. यहां खुलेआम अय्याशी होती थी. महाराज इस तरह की पार्टियों में सभी के सामने अपनी प्रेमिकाओं से इश्क फरमाते थे.

राजा भूपिंदर सिंह साल में एक बार बिना कपड़ों के सिर्फ हीरों का हार पहन कर हाथी पर सवार हो कर निकलते थे. तब लोग उन की जयजयकार करते थे. लोगों का मानना था कि राजा की ताकत उन्हें बुरी तापती से बचा सकती है.

रंगीनमिजाज महाराजा भूपिंदर सिंह ने वैसे तो 10 शादियां की थीं. लेकिन इन 10 रानियों के अलावा 365 अन्य महिलाएं रानी की हैसियत से महाराज से मिला करती थीं. महाराज ने  इन सभी रानियों के रहने के लिए पटियाला में भव्य महल बनवाए थे, जिन में भोगविलास की सारी सुविधाएं उपलब्ध रहती थीं.

उस समय लोग स्वास्थ्य के प्रति इतना जागरूक नहीं थे, पर महाराजा भूपिंदर सिंह ने हर रानी के स्वास्थ्य की देखभाल के लिए राउंड द क्लाक देशीविदेशी विशेषज्ञ चिकित्सक रख रखे थे.

ये चिकित्सक रानियों के रूटीन जांच और सेहत के अन्य मामलों पर ध्यान रखते थे. ये विशेषज्ञ रानियों के स्वास्थ्य पर ही नहीं, उन की हेयर स्टाइल से ले कर नाकनक्श तक आधुनिक और खूबसूरत रहे, इस का भी खयाल रखते थे. इस के लिए महाराजा प्लास्टिक सर्जन की भी मदद लेते थे.

‘महाराजा’ किताब में दी गई जानकारी के अनुसार महाराजा की शादी की हुई 10 रानियों से 88 संतानें हुईं. पर उन में से केवल 53 संतानें ही जीवित रहीं.

365 रानियां हों तो किस के साथ रहना है, यह भी एक बड़ा सवाल है. पर भूपिंदर सिंह ने इस का हल निकाल लिया था. राजा के महल में रात को 365 फानस जलते थे.

इन तमाम फानस पर एकएक रानी का नाम लिखा था. इन में से जो फानस सवेरे सब से पहले बुझ जाता था और उस पर जिस रानी का नाम लिखा होता था, इस का मललब था कि राजा रात उसी रानी के निवास में गुजारेंगे.

उस समय महाराजा भूपिंदर सिंह अय्याशी के लिए ही नहीं, संपत्ति के लिए भी खूब जाने जाते थे. उन के पास ऐसी अनेक चीजें थीं, जिन के कारण वह दुनिया में मशहूर थे. वह अपने खास और अलग अंदाज के लिए जाने जाते थे. वह अपना जीवन भी खास और अलग अंदाज से जीते थे.

वह जिस थाली में खाना खाते थे, उस की कीमत करीब 17 करोड़ थी. उन के सभी बरतनों पर सोने या चांदी की परत चढ़ी हुई थी. राजा का यह डिनर सेट लंदन की कंपनी गोल्डस्मिथ्स एंड सिल्वरस्मिथ्स ने तैयार किया था.

उन के पास दुनिया भर में मशहूर पटियाला हार था, यह हार आभूषण बनाने के लिए विश्वप्रसिद्ध कंपनी कार्टियर ने बनाया था. इस हार में 2900 से अधिक हीरे लगे थे. इस में उस समय का दुनिया के सब से बड़े हीरों में सातवें नंबर का हीरा जड़ा था. इस की कीमत 166 करोड़ थी.

यह हार 1948 में पटियाला के शाही खजाने से चोरी हो गया था. फिर कई सालों बाद अलगअलग हिस्सों में कई स्थानों से बरामद हुआ था. पर इसे गायब करने वाले का पता आज तक नहीं चला है.

उन के पास 44 कारों का पूरा एक काफिला था, जिन में से 20 रोल्स रायस कारें थीं, जिन में से 20 कारें रोज के काम में लगी रहती थीं.

भारत में भूपिंदर सिंह ऐसे पहले व्यक्ति थे, जिन के पास अपना विमान था. 1910 में उन्होंने ब्रिटेन से वह विमान खरीदा था और उस के लिए पटियाला में रनवे भी बनवाया था. उन्होंने विमान खरीदने से पहले चीफ इंजीनियर को स्पौट स्टडी करने के लिए यूरोप भेजा था. उस के बाद विमान खरीदा था.

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यह पटियाला पैग भी भूपिंदर सिंह की ही देन है. आज भी शराब के शौकीन पटियाला पैग लगाने के लिए आतुर होते हैं. इस दुनिया को पटियाला पैग भेंट करने वाले भूपिंदर सिंह अपनी 365 रानियों के साथ किस तरह रहते रहे होंगे, यह आज भी रहस्य है.

अंधविश्वास: अजब अजूबे रंग !

अंधविश्वास चाहे जैसा भी हो हमारे विवेक शील मनुष्य होने पर एक प्रश्न चिन्ह लगाता है.यह समय और समाज पर प्रश्न चिन्ह है. इसके बावजूद अंधविश्वास की अजब गजब हरकतें देखने को मिलती है जो यह बताती है कि आज 21 वी शताब्दी में भी लोगों के जेहन में किस तरह अशिक्षा और पिछड़ापन समाया हुआ है. जिसे दूर करने की आवश्यकता है.

अंधविश्वास कुछ ऐसे होते हैं कि जिसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते अब आप ही सोचिए
अगर किसी शख्स की करंट (बिजली) से मौत हो जाये और अगर उसे कीचड़ से लपेट दिया तो उसका जीवन लौट आएगा? डूबने से किसी की मौत के बाद उसे उल्टा लटका दिया जाए और यह माना जाए कि यह जीवित हो जाएगा तो क्या यह मानसिक दिवालियापन और अंधविश्वास की पराकाष्ठा नहीं है.

लोगों में आज भी अंधविश्वास कुछ ऐसा कूट कूट कर भरा हुआ है कि यह देखकर आश्चर्य होता है कि दुनिया जब चांद सितारों तक पहुंच गई है जब रोबोट सब कुछ नियंत्रित करने के लिए बन कर तैयार हैं, आज भी हमारे देश में अंधविश्वास की घटनाएं घटित हो रही है जो यह बता रही हैं कि पिछड़ापन और कमजोर सोच किस तरह हमारे देश के लोगों को घुन की तरह खा रही है.

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 करंट से मौत के बाद, कीचड़

मध्यप्रदेश के धार जिले  में महू से लगे सागौर के मोतीनगर में दो व्यक्ति करंट की चपेट में आ गए. एक की मौत हो गई गई, जबकि दूसरा झुलस गया. घायल शख्स को लोग अस्पताल ले गए जबकि मृतक को कीचड़ में लपेट दिया गया. परिवार के सदस्यों का मनना था कि शायद ऐसा करने से फिर से सांसें चलने लगेंगी. इसी दौरान बात पुलिस तक पहुंची और वह आ पहुंची. पुलिस ने मृतक के साथ परिजनों का कु कृत्य देखा तो परिजनों को समझाया, कहा- यह अंधविश्वास है। इससे सांसें नहीं लौटेगी.

इस पर परिजनों ने पुलिस की बात मानने से इनकार कर दिया और गिड़गिड़ा कर के कहने लगे कि साहब आप देख लेना यह जिंदा हो जाएगा.

पुलिस के लाख समझाने के बाद भी परिजन अपनी बात पर अड़े रहे मामला मानवीय संवेदना का था इसलिए पुलिस को भी इंतजार करना पड़ा और समय सीमा समाप्त होने के बाद भी मृतक जिंदा नहीं हुआ तो परिजनों के चेहरे लटक गए.

इसके  बाद पुलिस ने मृतक को पोस्टमार्टम के लिए हॉस्पिटल भेज दिया.

पुलिस ने हमारे संवाददाता को बताया मोतीनगर में भागीरथ शंकरलाल का मकान बन रहा था उसके मकान के ऊपर से 11 केवी लाइन गुजर रही है.यहां जाकुखेड़ी निवासी मजदूर सलमान (30) पुत्र जब्बार पटेल व इरफान (30) उर्फ गट्टा पुत्र साबिर पटेल टेप से बिजली की लाइन की दूरी की नाप रहे थे. इसी दरमियान  करंट की चपेट में आकर हादसे का शिकार हो गए. करंट से सलमान की मौत हो गई, वहीं इरफान गंभीर घायल हो गया .

और शुरू हो गया अंधविश्वास

करंट से मौत के बाद मृतक के परिजन भी आ पहुंचे, किसी ने उन्हें सलाह दी कि सावन भादो का महीना है ऐसे में अगर किसी करंट या बिजली से मृत व्यक्ति को कीचड़ में कुछ समय के लिए दबा दिया जाए तो वह जिंदा हो जाता है. इस बात को मृतक के परिजनों ने मान लिया और तुरंत मृतक को कीचड़ में ले गए. आनन-फानन में मृतक सलमान को कीचड़ में रखकर  उसके ऊपर ढेर सारी कीचड़ डाल दी गई और इंतजार किया जाने लगा कि अब चमत्कार होगा सलमान फिर से जिंदा हो जाएगा.

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बीच सड़क पर अंधविश्वास का नाटक देख कर कुछ लोगों ने प्रशासन के पास इसकी शिकायत की थोड़ी ही देर बाद पुलिस पहुंची और सारा नजारा देखने के बाद भी परिजनों को समझाने का प्रयास किया गया मगर वे नहीं माने और अपनी बात पर टिके हुए थे. मामला चूंकि अनोखा और अजूबे से भरा हुआ था ऐसे में स्थानीय मीडिया भी घटनास्थल पर पहुंची और सब कुछ रिकॉर्ड में आता चला गया.

यहां उल्लेखनीय है कि आसपास के लोगों ने घायल इरफान को  इलाज के लिए अस्पताल ले गए, लेकिन सलमान को परिजन ने उसे जीवित करने के  नाम पर  कीचड़ लपेट अंधविश्वास का परिचय देते रहे. संवाददाता के अनुसार थाना प्रभारी राजेंद्रसिंह भदौरिया जब घटना स्थल पहुंचे‌ और भारी मशक्कत के बीच शव को पोस्टमार्टम के लिए भेजा. उन्होंने बताया मृतक सलमान के दो बच्चे हैं.

दूसरी तरफ बिजली कंपनी के  जूनियर इंजीनियर इम्तियाज खान  के मुताबिक कुछ लोग 11 केवी लाइन के नीचे मकान बना रहे हैं, जो अपने आप में अपराधिक कृत्य है लोगों को यह समझना चाहिए कि हम अपनी जान से न खेलें और अवैध निर्माण ना करें.

विदेश में नौकरी का चक्कर: 300 बेरोजगार, बने शिकार

विदेश में नौकरी दिलाने के नाम पर बेरोजगार नौजवानों को ठगने का सिलसिला लगातार जारी है. बिहार की राजधानी पटना समेत गांवदेहात के इलाकों तक  में ठगी करने वाले एजेंटों ने जाल फैला रखा है. जीवीएम मैन पावर नामक कंपनी पिछले कई महीनों से पटना में लोगों को विदेश भेजने के नाम पर 12,000 से 17,000 रुपए और पासपोर्ट भी जमा कर रही थी.

जांच के दौरान यह पता चला कि इस कंपनी का कहीं कोई रजिस्ट्रेशन नहीं है. इस कंपनी ने पटना के अलावा विशाखापट्टनम और गुडगांव में भी औफिस खोल रखा था. पटना के नियोजन भवन में बने इमिग्रेशन औफिस में इस कंपनी के खिलाफ 100 लोग शिकायत दर्ज करा चुके हैं. बिहार और झारखंड के तकरीबन 300 नौजवानों ने विदेश जाने के नाम पर पैसे और पासपोर्ट दिए.

औरंगाबाद जिले के मुसलिमाबाद के बाशिंदे 35 साल के मोहम्मद अरमान ने बताया, ‘‘मुझे गांव के ही एक लड़के ने इस कंपनी के बारे में बताया था. मैं ने कंपनी के औफिस जा कर बात की. उस ने 17,000 रुपए की मांग की और पासपोर्ट जमा कर लिया.  ‘‘मुझे औफिस स्टाफ द्वारा बताया गया कि अबुधाबी की एडनाक और नैशनल पैट्रोलियम कौंट्रैक्टिंग कंपनी में काम मिलेगा. मैं ने दोबारा औफिस में जा कर पैसे जमा कर दिए.  ‘‘एक महीने के अंदर उस ने वीजा आने का आश्वासन दिया.

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बोला कि और लड़के जाना चाहते हैं तो उन लोगों को भी लेते आइएगा. 20 दिनों के बाद जब औफिस गए तो मालूम हुआ कि वे लोग यहां से फरार हो गए हैं.’’ यह कंपनी बिहार और झारखंड के 300 से ज्यादा नौजवानों से पैसा और पासपोर्ट ले कर फरार हो चुकी है. एक साल के अंदर इस तरह के कई मामले सामने आ चुके हैं. जालसाजी करने वाले लोगों को सजा नहीं मिल पा रही है. इस की वजह से उन लोगों का मनोबल बढ़ता जा रहा है.  विदेश में नौकरी के नाम पर झांसा दे कर लोगों को ठगने वालों पर नकेल कस पाना आसान काम नहीं है. ठगी के मामले दब कर रह जा रहे हैं. जो मामले सामने आ रहे हैं, उन में थाने में एफआईआर दर्ज करना मुश्किल हो रहा है.

पटना के विदेश मंत्रालय के दफ्तर के जरीए दर्ज होने वाले मामलों में अभी तक कुछ खास नहीं हो पाया है. पटना में ही ठगी के 4-5 मामले उजागर हो चुके हैं. इन में किसी भी कुसूरवार की गिरफ्तारी या दूसरी तरह की कोई कार्यवाही नहीं हो पाई है. ठगी के शिकार नौजवान थाना, कोर्टकचहरी का दरवाजा लगातार खटखटा रहे हैं.  पटना में पृथ्वी इंटरनैशनल और गल्फ इंटरनैशनल के खिलाफ भी मामला दर्ज हो चुका है. इसी तरह बिहार के सिवान, गोपालगंज, मोतिहारी, झारखंड के रांची, जमशेदपुर, कोडरमा में नौकरी के लिए विदेश भेजने के  नाम पर फर्जीवाड़े के मामले दर्ज किए जा चुके हैं.

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जालसाजी करने वाले पुलिस प्रशासन की पकड़ से दूर हैं. श्रम संसाधन मंत्री जीवेश मिश्रा ने जीवीएम कंपनी द्वारा ठगी के शिकार हुए नौजवानों की पूरी डिटेल मांगी है. मंत्री ने आरोपियों पर कार्यवाही किए जाने की बात कही है. फर्जी एजेंटों का जाल बिहार और झारखंड के कई जिलों समेत गांवदेहात के इलाकों में फर्जी एजेंटों का नैटवर्क है. मामला खुले नहीं, इसलिए इश्तिहार जारी करने के बजाय गांवों में एजेंट भेजे जाते हैं. इन के जरीए बेरोजगार नौजवानों को फंसा कर उन से पैसे और पासपोर्ट ले लिया जाता है. क्यों जाते हैं लोग विदेश देश में रोजगार नहीं मिलने और विदेश में ज्यादा पैसे मिलने की वजह से यहां के बेरोजगार नौजवान विदेश में जाना चाहते हैं.

उचित सलाह और सही जानकारी नहीं मिलने की वजह से वे ठगी के शिकार हो जाते हैं.  जालसाजी करने वाले लोगों पर कार्यवाही नहीं हो पाती है, इस की वजह से वे लोग कंपनी का नाम बदल कर अलगअलग जगहों पर औफिस खोल कर बेशुमार पैसे फर्जी ढंग से कमा रहे हैं. भारतीय युवा मंच के अध्यक्ष शहबाज मिनहाज ने बताया कि इस तरह के फर्जी जालसाज गिरोहों को कड़ी से कड़ी सजा नहीं मिली तो उन का नैटवर्क और बढ़ता रहेगा और बेरोजगार नौजवान ठगी के शिकार होते रहेंगे.

बुनियादी हक: पीने का साफ पानी

हरियाणा के सोनीपत जिले का सिसाना गांव दिल्ली से ज्यादा दूर नहीं है. आज भले ही वहां घरघर सरकारी टोंटियां लग चुकी हैं, पर मेरा आंखों देखा पीने के पानी  की समस्या को भयावह कर देने वाला अनुभव रहा है. कुछ साल पहले तक वहां की औरतों और लड़कियों, यहां तक कि मर्दों की भी एक बड़ी समस्या थी, दूर से पीने का पानी ढोना.

एक घड़ा पानी लाने मेंआधा घंटा.  सोचिए कि टंकी भरने में कितने घंटे बरबाद होते होंगे. तब वहां की लड़कियों की शादी ऐसी जगह करने की सोची जाती थी कि वे भविष्य में सिर पर पानी ढोतेढोते बाकी की जिंदगी न गुजार दें. देश में अभी भी हालात नहीं बदले हैं. कितनी हैरत और दुख की बात है कि इस साल 15 अगस्त के मौके पर सरकार द्वारा ‘अमृत महोत्सव’ मनाया गया और देश की ज्यादातर जनता दो घूंट पीने के पानी को तरस रही है.

‘विश्व जल दिवस’ पर द इंस्टीट्यूशन औफ इंजीनियर्स में आयोजित गोष्ठी में निदेशक, भूगर्भ जल विभाग के प्रतीक रंजन चौरसिया ने कहा कि साल 2025 तक लोग जल संकट से जूझ रहे होंगे. पीने के पानी के लिए लोगों को भटकना पड़ेगा.  अभी भी पूरी दुनिया में तकरीबन  15 फीसदी से ज्यादा लोगों को साफ पानी पीने के लिए नहीं मिल पा रहा है. प्रदूषित पानी पीने से हर साल लोगों की मौतें सामने आती हैं.  जिस देश में कभी नदियों का बड़ा नैटवर्क रहा हो, उस देश में जल संकट बड़ी समस्या है. इस के नियंत्रण के लिए तुरंत ठोस कदम उठाए जाने की जरूरत है.  इस गोष्ठी के मुख्य वक्ता प्रोफैसर जमाल नुसरत ने कहा कि पानी का संकट नहीं है. समस्या जल प्रबंधन की है.

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भूगर्भ जल के दोहन को रोकना होगा. ऐसा नहीं कर पाए तो सतह का पानी खत्म होते ही नदियां, तालाब और मौजूदा कुएं सूख जाएंगे. इस के बाद के भयावह हालात की कल्पना हम खुद कर सकते हैं. ऐसे लोगों की चिंता जायज है, तभी तो भारतीय जनता पार्टी की सरकार अपने भविष्य के चुनावों में जनता से जुड़ी कल्याणकारी योजनाओं पर फोकस कर के लोगों के वोट पाना चाहती है. इस में पीने के पानी की समस्या को दूर करने वाली जल संरक्षण और हर घर पेयजल जैसी योजनाओं पर फोकस किया जा रहा है.  पर क्या केवल लाल किले की प्राचीर से घोषणाओं को याद दिला देने से वे पूरी हो सकती हैं? यह सवाल पूछने की वजह यह है कि उत्तर प्रदेश के बरेली में जमीन के अंदर 80 फुट नीचे के पानी में ईकोलि बैक्टीरिया मिला है, जो कई खतरनाक बीमारियों को फैलाता है.

दिल्ली में जमीनी पानी का स्तर हर साल 2 मीटर नीचे गिर रहा है. माहिरों का कहना है कि अगर जल्द ही इस पर गंभीरता से विचार नहीं किया गया, तो आने वाले समय में हालात बद से बदतर हो जाएंगे. क्या है हर घर जल योजना जब मोदी सरकार साल 2019 के लोकसभा चुनाव में दोबारा सत्ता में आई थी, तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जल संरक्षण और पेयजल आपूर्ति के लिए   3 लाख करोड़ से ज्यादा की योजना का ऐलान किया था, जिस के तहत साल 2024 तक सभी घर तक पानी की पाइपलाइन और नल से पानी पहुंचाने का टारगेट रखा गया है.  इस योजना के पीछे सोच यह है कि साल 2023 तक सरकार के जरीए  20 करोड़ आदर्श गांव बन जाएं.  पर क्या यह सब करना इतना आसान है?

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बिलकुल नहीं. वजह, गरीबी की मार झेल रहे भारत में आज भी बहुत से लोगों ने शौचालय की तरह सप्लाई का नल नहीं देखा है.  एक रिपोर्ट के मुताबिक, देश की तकरीबन 20 करोड़ आबादी पानी के दूसरे स्रोत पर निर्भर है. बिहार और उत्तर प्रदेश में, जहां तरक्की के नए ढोल पीटे जा रहे हैं, वहां आज भी 5 फीसदी घरों में नल का कनैक्शन है. वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले 20 सालों में सूखे की वजह से भारत में 3 लाख से ज्यादा किसानों ने खुदकुशी की और हर साल साफ पीने के पानी की कमी के चलते 2 लाख लोगों की मौत हो रही है. मौजूदा दौर में भारत में जहां शहरों में गरीब इलाकों में रहने वाले 9.70 करोड़ लोगों को पीने का साफ पानी नहीं मिल पाता है, वहीं गांवदेहात के इलाकों में  70 फीसदी लोग प्रदूषित पानी पीने को मजबूर हैं.

तकरीबन 33 करोड़ लोग बहुत ज्यादा सूखे वाली जगहों पर रहने को मजबूर हैं. जल संकट की इस बदहाली से देश की जीडीपी में तकरीबन 6 फीसदी का नुकसान होने का डर है. देश के तमाम राज्यों की राजधानियां और दूसरे बड़े शहर तो इतने ज्यादा पत्थरदिल हो गए हैं कि वहां बारिश का पानी जमीन से ज्यादा गटर में चला जाता है. हरियाणा के अंबाला शहर का भूजल स्तर 10 मीटर नीचे जा चुका है. कई जगह तो हैवी मोटर तक नहीं खींच पा रही है पानी, बढ़वानी पड़ रही बोरिंग की पाइपलाइन. हरियाणा और पंजाब के किसानों को यह हिदायत दी गई है कि वे धान की खेती न कर के दूसरी फसलों पर फोकस करें, ताकि पानी की बचत हो सके.  हरियाणा में ‘फसल विविधीकरण योजना’ के तहत धान के बजाय पानी की बचत करने वाली फसलों की बिजाई करने पर प्रति एकड़ 7,000 रुपए प्रोत्साहन राशि दी जाएगी.

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जब हालात इतने खतरनाक हों, तो ऐसे में इस तरह की कल्याणकारी योजनाओं का भविष्य अधर में लटका ही नजर आता है, क्योंकि नीति आयोग  की रिपोर्ट की मानें तो देश में 60 करोड़ से ज्यादा लोग भयंकर जल संकट का सामना कर रहे हैं. अगले 10 साल में पानी की मांग दोगुना बढ़ने का अंदाजा है, जबकि इस के लिए मौजूदा स्रोत में  5 फीसदी की कमी आ जाएगी.  जमीनी पानी गर्त में जा रहा है और आसमानी पानी का कोई ठिकाना नहीं है. ऊपर से कोरोना महामारी, जिस ने देश को पंगु बना दिया है.

शर्मनाक: पकड़ौआ विवाह- बंदूक की नोक पर शादी

कहते हैं कि शादी ऐसा लड्डू है, जो खाए वह पछताए और जो न खाए वह भी पछताए. लेकिन वहां आप क्या करेंगे, जहां जबरन गुंडई से आप की मरजी के खिलाफ आप के मुंह में यह लड्डू ठूंसा जाने लगे? हम बात कर रहे हैं ‘पकड़ौवा विवाह’ की, जो बिहार के कुछ जिलों में आज भी हो रहे हैं.

22 साल के शिवम का सेना के टैक्निकल वर्ग में चयन हो गया था और वह 17 जनवरी को नौकरी जौइन करने वाला था. हमेशा की तरह एक सुबह जब वह अपने कुछ दोस्तों के साथ सैर पर निकला, तभी कार में सवार कुछ लोगों ने उसे अगवा कर लिया.

शिवम के दोस्तों ने बताया कि उन पांचों लोगों के हाथों में हथियार थे, इसलिए वे कुछ कर नहीं पाए.

शिवम को अगवा कर के वे बदमाश एक मंदिर में ले गए और जबरन उस की शादी एक लड़की से करा दी. शादी की तसवीरें सोशल मीडिया पर भी वायरल हुई थीं.??

क्या है ‘पकड़ौवा विवाह’

बिहार में इसे ‘पकड़वा’ या ‘पकड़ौवा विवाह’ या फिर ‘फोर्स्ड मैरिज’ भी कहते हैं. इस में लड़के का अपहरण कर के मारपीट और डराधमका कर उसे शादी करने के लिए मजबूर किया जाता है.

इस शादी में कम पढ़ेलिखे, नाबालिग से ले कर नौकरी करने वाले नौजवानों का अपहरण कर जबरन शादी करा दी जाती है. कुछ साल पहले इसी मुद्दे पर एक फिल्म ‘जबरिया जोड़ी’ भी बनी थी.

बिहार में बंदूक की नोक पर शादी कराना कोई बड़ी बात नहीं है. यह तो बहुत ही पुरानी परंपरा है. साल 1980 के दशक में उत्तरी बिहार में खासतौर पर बेगूसराय में ‘पकड़ौवा विवाह’ के मामले खूब सामने आए थे और आज भी इस तरह की शादियां हो रही हैं. बता दें कि ऐसी शादी कराने वाला एक गैंग होता है.

कैसे काम करता है गैंग

1980 के दशक में बिहार में कई ऐसे गैंग बनाए गए थे, जिन की शादी के सीजन में काफी डिमांड रहती थी. ये गिरोह लड़की के लिए सही लड़के की तलाश करते थे और मौका देख कर उसे अगवा कर बंदूक की नोक पर शादी कराते थे. शादी के बाद लड़के के घर वालों पर लड़की को बहू के तौर पर स्वीकारने के लिए दबाव बनाते थे.

बिहार के नालंदा जिले के एक बुजुर्ग रामकिशोर सिंह की शादी भी आज से तकरीबन 40 साल पहले अपहरण कर के ही हुई थी. रामकिशोर का कहना है कि  ऐसी शादी में न दहेज देने की चिंता होती है और न ही ज्यादा खर्चे की.

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हालांकि यह सब करना अपराध की श्रेणी में आता है, लेकिन इस मामले में पुलिस की भूमिका बहुत ही सीमित है. राज्य पुलिस मुख्यालय इसे आपराधिक से ज्यादा सामाजिक समस्या के रूप में देखता है. राज्य के अपर पुलिस महानिदेशक गुप्तेशर पांडेय कहते हैं कि जबरन होने वाली शादियों को भी बाद में सामान्य शादियों की तरह ही सामाजिक मान्यता मिलती रही है. इस में पुलिस की भूमिका काफी सीमित है.

पुलिस महकमे के अफसरों का भी मानना है कि ऐसे में लड़के के परिवार वाले तो अपहरण का मामला थाने में दर्ज करवाते हैं, लेकिन जब पता चलता है कि शादी के लिए अगवा किया गया है तो कार्यवाही में ढिलाई दे दी जाती है, क्योंकि किसी लड़की की शादी तो नेक काम है. कई मामले की जांच होतेहोते दोनों पक्ष समझौता कर चुके होते हैं. ऐसे में पुलिस के पास भी करने के लिए ज्यादा कुछ नहीं होता है.

ऐसी शादी में ऐसे लड़के पहले से ही निशाने पर होते हैं, जो अपनी ही जाति के होते हैं. यह शादी किसी पंडित द्वारा तय नहीं कराई जाती है, बल्कि कभीकभी लड़के का कोई अपना सगा ही होता है, जो धोखे से उसे मंडप तक ले जाता है.

‘पकड़ौवा विवाह’ में आननफानन ही मंडप तैयार कर लड़की को दुलहन की तरह तैयार कर उस की मांग किडनैप किए लड़के से भरवा दी जाती है. ऐसी शादी के लिए न तो लड़का मानसिक रूप से तैयार होता है और न ही लड़की.

एक औरत बताती है कि जब वह  15 साल की थी, तब जबरन उस की शादी करवा दी गई. मरजी पूछना तो दूर की बात है, उस 15 साल की बच्ची को यह तक पता नहीं था कि आज उस की शादी होने वाली है. मांबाप लड़की को ले जा कर मंडप में बैठा देते हैं और कुछ ही मिनटों में एक अनजान शख्स, जिसे उस ने देखा तक नहीं है, उस का पति बन जाता है.

उस औरत ने आगे बताया कि उसे गुस्सा आता था कि मेरे साथ यह क्या हो गया. पति ने 3 साल तक उसे नहीं स्वीकारा. लड़के का कहना था वह फांसी लगा कर मर जाएगा, पर इस शादी को नहीं स्वीकारेगा.

लड़के का यह भी कहना था कि जिस लड़की को वह जानता तक नहीं, उसे उस से रिश्ता नहीं रखना. उसे उस लड़की से कोई मतलब नहीं. उसे पढ़लिख कर अपनी जिंदगी बनानी है. लेकिन फिर बाद में सुलहसफाई के लिए पंचायत बैठी, तब जा कर लड़की को ससुराल विदा करा कर ले जाया गया.

‘‘तब मैं 7वीं क्लास में पढ़ती थी, जब मेरा ‘पकड़ौवा विवाह’ करा दिया गया था,’’ यह कहना है 48 साल की मालती का, जो अब 3 बच्चों की मां है और उस के सभी बच्चों की भी शादी हो चुकी है.

उस समय को याद कर के मालती आगे बताती है कि रोजाना की तरह उस दिन भी वह रसोई में खाना पकाने में अपनी मां की मदद कर रही थी, तभी मां ने उसे उठाते हुए कहा कि ये कपड़े लो और जा कर जल्दी से तैयार हो जाओ. आज तुम्हारी शादी है.

कुछ ही मिनटों में एक लड़के से उस की शादी करा दी गई. उसे नहीं पता था कि जिस लड़के को उस के घर वालों ने पूरे दिन घर में बंद रखा था, उसी से उस की शादी करा दी जाएगी.

लेकिन फिर वह जो बताती है, किसी यातना से कम नहीं है. मालती कहती है कि गुस्से से खार खाए पति और उस के घर वाले सालों तक उसे विदा करा कर नहीं ले गए.

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लेकिन फिर सामाजिक दबाव में आ कर उन्हें उसे विदा करा कर ले जाना पड़ा. लेकिन आज तक मालती को अपने पति से वह प्यार और इज्जत नहीं मिली, जो एक पत्नी को अपने पति से मिलनी चाहिए.

मालती कहती है कि वह निर्दोष थी, लेकिन अपने मातापिता की गलती की सजा वह आज तक भुगत रही है.

पति और ससुराल वाले ताना मारते थे कि बिना दहेज के मुसीबत पल्ले बांध दी गई. लेकिन हैरत तो इस बात की होती है कि जिस मालती के पति ने कभी उसे स्वीकार नहीं किया, तो क्या दहेज मिल जाने से उसे स्वीकार कर लेता?

सच तो यही है कि ‘पकड़ौवा विवाह’ की सब से बड़ी वजह दहेज प्रथा ही है. ‘पकड़ौवा विवाह’ में दूल्हे की हालत का अंदाजा आप 27 साल के प्रमोद की बातचीत से लगा सकते हैं.

प्रमोद का कहना है कि उस के एक दोस्त ने ही धोखे से उस का अपहरण करवाया और फिर बंदूक की नोक पर मंडप तक ले गया. न चाहते हुए भी उसे उस लड़की से शादी करनी पड़ी, जिसे वह जानता तक नहीं था.

इस शादी को अमान्य घोषित करवाने के लिए उस ने लड़ाई भी लड़ी. लेकिन आखिरकार थोपी गई उस शादी को उसे मानना ही पड़ा. आज भी जब अपनी पत्नी को देखता है, तो वह डरावना सच उसे याद आने लगता है.

हमारे देश में विवाह जैसी संस्था आज भी मजबूत है. अगर एक बार लड़कालड़की की शादी हो जाए तो बड़ी मुश्किल से टूटती है. यही वजह है कि लड़की वाले ऐसी ओछी हरकतें करने से बाज नहीं आते हैं. सोचते हैं कि लड़की ससुराल में टिक गई तो ठीक, वरना  देखा जाएगा.

क्यों धकेलते हैं दलदल में

पटना यूनिवर्सिटी में समाजशास्त्र की प्रोफैसर रही भारती एस. कुमार कहती हैं कि यह सामंती सोच समाज की देन है. बिहार में सामाजिक दबाव इतना ज्यादा है कि लड़की के परिवार वाले इसी कोशिश में रहते हैं कि कैसे जल्द से जल्द अपनी जाति में बेटी की शादी करा कर अपने सिर का बोझ उतार लें. लेकिन इस बेमेल शादी का बुरा असर पतिपत्नी पर जिंदगीभर देखने को मिलता है.

कहींकहीं तो लड़की जिंदगीभर सताए जाने की शिकार होती है. वे कहती हैं कि ऐसी शादी वही मांबाप करवाते हैं, जिन के पास बेटी को देने के लिए दहेज नहीं होता.

लेकिन हैरानी की बात यह है कि जब लड़का लड़की को अपनाने से इनकार कर देता है तो फिर उसी शादी को वह दहेज के साथ स्वीकार भी कर लेता है मानो दहेज और शादी का एक चक्रव्यूह हो, जिस से निकलने का कोई सिरा नहीं है.

‘पकड़ौवा विवाह’ का शिकार हुए नवादा जिले के संतोष कुमार ने फिल्म कलाकार आमिर खान के टैलीविजन शो ‘सत्यमेव जयते’ और अभिताभ बच्चन के शो ‘कौन बनेगा करोड़पति’ में बताया था कि उन की भी जबरन शादी कराई गई थी. लेकिन आज वे अपनी पत्नी के साथ खुश हैं.

वहीं बेगूसराय के रहने वाले और इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी कर लौटे अनीश कहते हैं कि ‘पकड़ौवा विवाह’ को सामाजिक मंजूरी नहीं मिलनी चाहिए. किसी लड़के का अपहरण कर उस की शादी किसी से भी करा दी  जाए, तो क्या उस के खिलाफ नहीं बोलना चाहिए?

अनीश का कहना है कि इस का विरोध न केवल लड़के को, बल्कि लड़की को भी करना चाहिए, क्योंकि नाइंसाफी दोनों के साथ हुई होती है.

मकसद क्या है

हमारे समाज में दहेज लेना और देना दोनों ही कानूनी जुर्म हैं, लेकिन फिर भी दहेज का लेनदेन हो रहा है. यह कुप्रथा आज भी चली आ रही है. लोग आपसी सहमति से दहेज का लेनदेन कर रहे हैं.

समाज की अलगअलग जातियों के हिसाब से लड़के की काबिलीयत और पद के हिसाब से हर किसी का एक अघोषित ‘मार्केट रेट’ होता है. जो लड़की वाले इस रेट के हिसाब से शादी के लिए लड़के वालों की डिमांड पूरी करने की हैसियत रखते हैं, उन की लड़की की शादी तो आराम से हो जाती है, लेकिन जिन की दहेज देने की हैसियत नहीं होती, वे ऐसे ही रास्ते अपनाते हैं.

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ऐसे होता है ‘पकड़ौवा विवाह’

लड़की वाले लड़के को अगवा करने से पहले उसे टारगेट कर के रखते हैं. उस की बहुत सी बातों पर गौर किया जाता है, जैसे कि लड़के वाले लड़की वालों की तुलना में ज्यादा पैसे वाले हों. लड़का काबिल तो हो ही, साथ ही उस में अपनी भावी पत्नी का भरणपोषण करने की ताकत भी हो.

अगर लड़का अपनी जाति से हो तो और भी अच्छा. वैसे, ज्यादातर कोशिश यही होती है कि लड़का अपनी ही जाति का होना चाहिए.

शादी के बाद लड़की का उस घर में गुजारा हो सके, इस बात का भी ध्यान रखा जाता है.

लड़के के साथ क्या होता है

पहले तो लड़के के बारे में अच्छे से जानकारी हासिल कर ली जाती है कि लड़का कब और कहां आताजाता है. उस के बाद आसानी से उसे अगवा कर लिया जाता है. कई बार इस काम के लिए लड़की वाले प्रोफैशनल गुंडों को भी इस्तेमाल करते हैं.

वे बताते हैं कि अगर लड़का आने से आनाकानी करे, तो हलकी धुनाई कर दी जाए, पर ध्यान रहे कि लड़के का अंग भंग नहीं होना चाहिए. फिर लड़के को पकड़ कर एक कमरे में बंद कर दिया जाता है और आननफानन में मंडप सजा कर शादी करवा दी जाती है.

शादी के बाद दूल्हे को वे लोग कुछ दिन अपने घर पर ही रखते हैं, ताकि लड़का और लड़की आपस में मिल सकें. फिर लड़के को उस के घर भेजते समय धमकी देते हैं कि जल्द ही वह लड़की को विदा करा कर ले जाए वरना ठीक नहीं होगा.

लेकिन ऐसी शादियां अब कहींकहीं पर अमान्य होने लगी है. पेशे से इंजीनियर विनोद की शादी ऐसे ही जबरन करवा दी गई थी, जिस का वीडियो भी वायरल हुआ था. लेकिन विनोद ने यह ‘पकड़ौवा विवाह’ मानने से साफ इनकार कर दिया था. उस का कहना था कि अगर कोई मेरी शादी भैंस से करवा दे तो क्या मैं उसे अपनी पत्नी मान लूंगा?

विनोद आपबीती बताते हुए कहते हैं कि लड़की वालों ने उन्हें 2 दिन तक कमरे में बंद रखा और जबरन लड़की को अपनाने के लिए मजबूर करते रहे. विनोद के घर वाले पुलिस के पास मदद के लिए गिड़गिड़ाए भी, लेकिन पुलिस वालों ने उन की कोई मदद नहीं की, बल्कि कहा कि आप के बेटे का अपहरण नहीं हुआ है, शादी ही तो हुई है.

मतलब, पुलिस की नजर में यह शादी सही थी. पुलिस ने यह भी कहा कि ये खतरनाक लोग हैं, इसलिए तुम अब लड़की को ले कर अपने घर चले जाओ, क्योंकि शादी तो हो ही गई है.

विनोद का कहना है कि पुलिस पूरी तरह से लड़की वालों से मिली होती है, इसलिए वह कोई एफआईआर दर्ज नहीं करती. लड़की वालों का मन इसलिए बढ़ा हुआ है, क्योंकि पुलिस इन के साथ है. यह तो कोर्ट का शुक्र है कि मुझे कुछ राहत मिली, नहीं तो मेरा जीना मुश्किल हो गया था.

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पटना के एएन सिन्हा संस्थान के निदेशक रह चुके डीएम दिवाकर का कहना है कि ‘पकड़ौवा विवाह’ का इतिहास 100 साल से भी ज्यादा पुराना है. लेकिन अभी इस में उछाल आने की 4 खास वजहें हैं. पहली तो पूंजी के दबाव में दहेज का विकराल रूप, दूसरी लड़कियों का पढ़ालिखा न होना, तीसरी गैरकृषि व्यवसाय में दूल्हे की चाहत लगातार बढ़ रही है और चौथी यह है कि सामाजिक तानेबाने में जातीय जकड़ अभी भी कायम है.

साल 2019 में कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाते हुए ‘पकड़ौवा विवाह’ को गैरकानूनी करार दिया. मतलब यह कि अब ऐसी शादी को कानूनी मंजूरी नहीं मिलेगी. लेकिन विनोद के ‘पकड़ौवा विवाह’ के मामले में कोर्ट फैसला इसलिए ले पाई, क्योंकि अपील करने वाले के पास मजबूत सुबूत था.

‘पकड़ौवा विवाह’ के मामले में  आप की शादी जबरन करवाई गई, यह साबित करने की जिम्मेदारी लड़के के ऊपर होती है.

पटना की परिवार कोर्ट में सालों से प्रैक्टिस कर रही एडवोकेट विभा कुमारी बताती हैं कि ‘पकड़ौवा विवाह’ को अमान्य घोषित करवाने के मामले बहुत ही कम आते हैं.

‘पकड़ौवा विवाह’ के आंकड़े

साल 2018 में ‘पकड़ौवा विवाह’ के 4,301 मामले दर्ज हुए थे, जबकि मई, 2019 तक 2,005 मामले दर्ज हो चुके थे. इस से पहले के सालों में भी ऐसी शादी के मामले लगातार बढ़ रहे हैं.

बिहार पुलिस हैडक्वार्टर के आंकड़ों के मुताबिक, साल 2014 में 2,526 मामले, 2015 में 3,000 मामले और साल 2016 में 3,070 और नवंबर, 2017 में 3,405 ‘पकड़ौवा विवाह’ के लिए अपहरण हुए थे.

राष्ट्रीय क्राइम रिकौर्ड ब्यूरो, 2015 की रिपोर्ट भी कहती है कि बिहार में  18 से 30 साल के नौजवानों का सब से ज्यादा अपहरण हुआ है. देश में इस उम्र के नौजवानों का अपहरण का तकरीबन 16 फीसदी है.

पुलिस आंकड़ों के मुताबिक, शादी के लिए अपहरण के 2,370 मामले जनवरी से सितंबर तक दर्ज किए गए थे और उन में से 1,804 मामले केवल लौकडाउन के महीनों में दर्ज किए गए.

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और भी लड़ रहे हैं लड़ाई

शेखपुरा जिले के रवींद्र कुमार झा ने बताया कि उन के 15 साल के बेटे की शादी साल 2013 में जबरन 11 साल की बच्ची से करा दी गई थी. उन्होंने इस शादी को मानने से इनकार कर दिया तो लड़की वालों ने उन के परिवार पर दहेज प्रताड़ना (498ए) का केस कर दिया. बाद में एंटीसिपेटरी बेल के बाद वह शादी अमान्य घोषित करवाई गई.

बोकारो में नौकरी करने वाले विनोद का पूरा परिवार पटना में रहता है.  4 भाईबहनों में से सिर्फ 2 की शादी हो पाई है. वे कहते हैं कि अपनी छोटी बहन की शादी के लिए जहां भी जाते हैं, सब यही कहते हैं कि ये लोग तो मुकदमे  में फंसे हुए हैं तो फिर रिश्ता कैसे हो सकता है.

‘पकड़ौवा विवाह’ में बेटी की जबरदस्ती शादी कर के मांबाप अपने सिर से बोझ तो उतार लेते हैं और दहेज व शादी के खर्चे से भी बच जाते हैं, लेकिन वे यह नहीं सोचते कि इस बेमेल शादी का बुरा असर पतिपत्नी पर जिंदगीभर पड़ेगा, उस की भरपाई कौन करेगा? लड़के के दिल में हमेशा एक टीस उठेगी कि उस के साथ धोखा हुआ है.

मिसाल: रूमा देवी- झोंपड़ी से यूरोप तक

फैशन शो यानी तरहतरह के कपड़ों को नए अंदाज में पेश करने का जरीया. इसी तरह का एक फैशन शो चल रहा था, जिस में अनोखी कढ़ाई से सजे कपड़े पहन कर फैशनेबल मौडल रैंप पर आ कर सधी चाल में चल रही थीं.

आखिर में इन कपड़ों की डिजाइन तैयार करने वाली राजस्थानी अंदाज में सजीधजी मुसकराते हुए एक औरत स्टेज पर आई. यह वही औरत थी रूमा देवी, जिस ने अपनी क्षेत्रीय कला को मौडर्न रूप दे कर दुनियाभर में नाम दिलाया है.

रूमा देवी का जन्म नवंबर,1988 में राजस्थान के जिले बाड़मेर के एक छोटे से गांव रातवसर में एक सामान्य परिवार में हुआ था. उन के पिता का नाम खेतारम तो मां का नाम इमरती देवी था.

जब रूमा देवी 5 साल की थीं, तभी उन की मां की मौत हो गई थी. मां की मौत के बाद पिता ने दूसरी शादी कर ली.

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सौतेली मां के साथ रहने के बजाय रूमा देवी अपने चाचा के साथ रहने लगीं. 7 बहनों और एक भाई में रूमा देवी सब से बड़ी थीं.

राजस्थान में तब पीने के पानी की बड़ी किल्लत थी. रूमा देवी ने वे दिन भी देखे हैं, जब पीने के लिए पानी  10 किलोमीटर दूर बैलगाड़ी से लाया जाता था.

8वीं जमात पास करने के बाद रूमा देवी की पढ़ाई छुड़वा दी गई. स्कूल छूटने के बाद वे अपनी चाची के साथ घरगृहस्थी के कामकाज सीखते हुए घर के कामों में मदद करने लगीं.

17 साल की ही छोटी उम्र में रूमा देवी की शादी बाड़मेर के ही गांव बेरी के रहने वाले टिकूराम से कर के उन्हें ससुराल भेज दिया गया.

टिकूराम नशामुक्ति संस्थान, जोधपुर के साथ मिल कर काम करते हैं. उसी छोटी उम्र में रूमा देवी ने एक बेटे को जन्म दिया, पर उन का मासूम बेटा उचित इलाज न मिलने की वजह से महज 48 घंटे बाद ही काल के गाल समा गया.

इस आघात से निकलना रूमा देवी के लिए आसान नहीं था, पर उन के घर की माली हालत काफी खराब थी, इसलिए उन्होंने घर से कुछ ऐसा करने के बारे में विचार किया, जिस से वे भी चार पैसे कमा कर घर वालों की मदद कर सकें.

रूमा देवी की दादी ने उन्हें कसीदाकारी की कला सिखाई थी. अपने बेटे की मौत के शोक में दिन काट रही रूमा देवी के मन में अपनी इस कला के जरीए आजीविका चलाने का विचार आया. उन्होंने परिवार वालों को बताया. पहले तो उन्होंने विरोध किया, पर किसी तरह राजी कर के रूमा देवी ने घर में ही हाथ द्वारा सिलाई कर के एक हैंडबैग बनाना शुरू किया.

रूमा देवी द्वारा बनाए गए पहले हैंडबैग को बेच कर कुल 70 रुपए की कमाई हुई. इस 70 रुपए से उन्होंने आगे के सफर के लिए कुशन, धागा, कपड़ा और प्लास्टिक का रैपर जैसा सामान खरीदा.

उन्हीं की तरह की दूसरी औरतें भी कुछ कमाई कर सकें, यह सोच कर रूमा देवी ने इस काम के लिए आसपड़ोस की दूसरी औरतों को साथ लेने का निश्चय किया.

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रूमा देवी द्वारा तैयार किए गए स्थानीय ‘महिला बाल विकास’ की  10 औरतों ने 100-100 रुपए जमा कर के अपने काम के लिए जरूरी सामान मंगाया. एक सैकंडहैंड सिलाई मशीन खरीदी.

दसों औरतों ने अलगअलग काम बांट लिए. उन्होंने खास शैली के बाड़मेरी कढ़ाई से सजे हैंडबैग, कुशन कवर, साड़ी और परदे बना कर उन्हें बेचना शुरू किया.

बाकी सहयोगी औरतों को काम मिलता रहे, इस के लिए रूमा देवी ने साल 2008 में बनी और विक्रम सिंह द्वारा चलाई जा रही संस्था ‘ग्रामीण विकास एवं चेतना संस्थान’ से संपर्क किया. यह संस्था राजस्थान हस्तशिल्प उत्पादों द्वारा औरतों को आत्मनिर्भर बनाती है.

साल 2008 में रूमा देवी इस संस्था से जुड़ीं. इस संस्था से रूमा देवी को  3 दिनों का काम मिला. रूमा देवी और उन के साथ काम करने वाली औरतों में काम करने का इतना जोश था कि 3 दिनों का काम उन्होंने एक ही दिन में पूरा कर डाला. इस तरह उन्हें ज्यादा से ज्यादा काम मिलता गया और वे उसे समय से पहले कर के देती रहीं.

रूमा देवी ने संस्था से जुड़ कर उस के लिए हस्तशिल्प के नए डिजाइन तैयार किए. तैयार सामान की बाजार में मांग बढ़ाई, इसीलिए साल 2010 में संस्थान की कमान रूमा देवी को सौंप दी गई. उन्हें संस्था का अध्यक्ष बना दिया गया. इस संस्था का हैड औफिस बाड़मेर में ही है.

रूमा देवी के घर चार पैसे आने लगे, तो वे बाड़मेर के दूसरे गांवों में रहने वाली औरतों को अपने पैरों पर खड़ा करने का निश्चय किया. इस के लिए रूमा देवी ने खुद गाड़ी में बैठ कर दूरदूर तक गांवों  में जा कर वहां रहने वाली औरतों से मिलना शुरू किया.

राजस्थान के गांवदेहात के इलाके में लोग दूरदूर अलगअलग छोटेछोटे घर बना कर रहते हैं, इसलिए रूमा देवी पूरे दिन घूमतीं तो 4-6 परिवारों से ही मुलाकात होती.

रूमा देवी खुद औरत थीं. उन का घर से निकलना किसी को पसंद नहीं था. उन के घर से बाहर जाने पर लोग तरहतरह की बातें करते, ताने मारते, फिर भी हालात से हारे बगैर उन्होंने औरतों और उन के घर वालों को समझाते हुए  75 गांवों की तकरीबन 22,000 औरतों को अपने साथ काम करने के लिए बढ़ावा दिया.

आज रूमा देवी की कोशिशों से ये औरतें अपने परिवार की माली तौर पर मदद कर रही हैं. इन औरतों द्वारा अलगअलग तरह के कपड़ों पर खास तरह के पैचवर्क और कढ़ाई कर के दुपट्टा, कुरती और साड़ी, परदों को सजाया जाता है. उन के बिकने पर जो फायदा होता है, सीधे वह इन औरतों को मिलता है.

आज इस संस्था से जुड़ी औरतों के कामकाज का सालाना टर्नओवर करोड़ों रुपए का है. रूमा देवी द्वारा की गई कोशिशों को साल 2018 में औरतों के लिए सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘नारी शक्ति पुरस्कार’ से नवाजा गया.

15 व 16 फरवरी, 2020 को अमेरिका में आयोजित 2 दिवसीय हार्वर्ड इंडिया कौंफ्रैंस में भी रूमा देवी को बुलाया गया था. तब वहां उन्हें हस्तशिल्प उत्पाद प्रदर्शित करने के साथसाथ हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के बच्चों को पढ़ाने का भी मौका मिला. इस के अलावा रूमा देवी को ‘कौन बनेगा करोड़पति’ में अमिताभ बच्चन के सामने हौट सीट पर बैठने का मौका मिल चुका है.

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साल 2016-17 में जरमनी में दुनिया का सब से बड़ा ट्रेड फेयर लगा था. उस में शामिल होने के लिए तकरीबन 15 लाख रुपए फीस लगती थी. पर रूमा देवी की टीम को उस ट्रेड फेयर में मुफ्त में बुलाया गया था.

साल 2019 में जब रूमा देवी को ‘फैशन डिजाइनर औफ द ईयर’ घोषित किया गया, तो उन्होंने कहा कि हर महिला में एक खास काबिलीयत होती है. अपनी खूबी की पहचान कर के उसे बाहर लाएं. रूमा देवी पर हाल में एक किताब भी लिखी गई है, जिस का नाम है ‘हौसले का हुनर’.

विवेक सागर प्रसाद: गांव का खिलाड़ी बना ओलंपिक का हीरो

‘पढ़ोगेलिखोगे बनोगे नवाब, खेलोगेकूदोगे तो होगे खराब’… इस लोकोक्ति को मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले के छोटे से गांव चांदौन के खिलाड़ी विवेक सागर प्रसाद ने टोक्यो ओलिंपिक खेलों में अर्जेंटीना के खिलाफ गोल दाग कर सच साबित कर दिया है.

टोक्यो ओलिंपिक में 29 जुलाई, 2021 का दिन विवेक सागर प्रसाद के नाम रहा. अर्जेंटीना से मुकाबले में भारतीय हौकी टीम को हर हाल में जीत की दरकार थी. टोक्यो ओलिंपिक में सुबह 6 बजे से जैसे ही अर्जेंटीना और भारत के बीच मुकाबला शुरू हुआ, भारतीय टीम ने दबदबा बना कर 3 गोल कर दिए. विवेक सागर प्रसाद ने भारतीय टीम की ओर से गोल दाग कर देश की जीत तय कर दी.

5 अगस्त, 2021 को टोक्यो ओलिंपिक में हुए हौकी मैच में भारतीय पुरुष हाकी टीम ने शानदार प्रदर्शन करते हुए जरमनी की टीम को 5-4 से मात दे कर कांस्य पदक अपने नाम कर लिया. जैसे ही भारत को मैडल मिलने का रास्ता साफ हुआ, तो टीम में मध्य प्रदेश से नुमांइदगी कर रहे विवेक सागर प्रसाद का पूरा गांव खुशी से  झूम उठा.

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विवेक के भाई विद्या सागर बताते  हैं कि मैच के आखिरी 6 सैकंड तक पूरा परिवार दिल थाम कर बैठा रहा. जैसे ही मैच खत्म हुआ, पिता रोहित सागर और मां कमला देवी की आंखों से आंसू आ गए. विद्या सागर ने सुबह जीत के बाद विवेक से बात की तो विवेक ने टोक्यो से वीडियो कालिंग कर अपने भाई को मैडल दिखाया.

विवेक सागर के पिता रोहित प्रसाद सरकारी प्राइमरी स्कूल गजपुर में शिक्षक हैं. मां कमला देवी गृहिणी और बड़ा भाई विद्या सागर सौफ्टवेयर इंजीनियर है. इस के अलावा 2 बहनें पूनम और पूजा हैं. पूनम की शादी हो चुकी है और पूजा पढ़ाई कर रही है.

जीत के बाद विवेक सागर प्रसाद के गांव में दीवाली सा माहौल बन गया. गांव के नौजवान, बच्चे, महिलाएंपुरुष हाथ मे तिरंगा ले कर ढोल की थाप के साथ  झूम उठे. घर पर विवेक के पिता रोहित प्रसाद, मां कमला प्रसाद और भाई विद्यासागर भी जम कर नाचे. पूरा गांव उन्हें बधाई देने घर पर आ गया. पिता इतने खुश थे कि गांव में मिठाई बंटवाने के लिए बाहर आ गए.

जिला हौकी संघ के सदस्यों ने भी विजय जुलूस निकाल कर टीम इंडिया की जीत का जश्न मनाया. विवेक के पिता रोहित प्रसाद ने कहा कि आज विवेक ने पूरी दुनिया में देश का नाम रोशन कर दिया है.

इटारसी के और्डिनैंस फैक्टरी निवासी खिलाड़ी सोनू अहिरवार ने पहली बार विवेक को हौकी खेलने के लिए प्रेरित किया था. विवेक की उम्र जब 8 साल की थी, तब सोनू ने उसे हौकी की स्टिक ला कर दी थी.

विवेक सागर प्रसाद के लिए इस मुकाम को पाना आसान नहीं था. विवेक सागर के प्रारंभिक कोच गजेंद्र पटेल ने बताया कि पहले विवेक क्रिकेट खेलता था. उन्होंने क्रिकेट मैदान में उस की फुरती और स्टैमिना देखते हुए हौकी टीम में शामिल कराने का प्रयास किया.

विवेक सागर प्रसाद के पिता रोहित प्रसाद उस के हौकी खेलने के शुरू से ही खिलाफ रहे, लेकिन तकरीबन 10 साल पहले एक मैच में लोगों ने उस के खेल की जम कर तारीफ की और उस मैच में विवेक को 500 रुपए के इनाम के साथ लोगों की वाहवाही मिली, तो उस के बाद पिता रोहित प्रसाद ने फिर कभी विवेक को हौकी खेलने से नहीं रोका.

12 साल की उम्र में विवेक सागर प्रसाद जब अकोला में एक टूर्नामैंट खेल रहे थे, तभी मशहूर हौकी खिलाड़ी अशोक ध्यानचंद की उन नजर पड़ी और उन्होंने विवेक की प्रतिभा को पहचान लिया.

अशोक ध्यानचंद ने विवेक सागर का नामपता लिया और फिर अपने पास अकादमी में बुला लिया. विवेक सागर प्रसाद ने बताया कि कुछ दिनों तक उन्होंने मुझे अपने घर में ही ठहराया था.

विवेक सागर प्रसाद का चयन मध्य प्रदेश हौकी अकादमी में 2012-13 में हुआ था. विवेक के खेल में अशोक ध्यानचंद की कोचिंग से खेल में निखार आया. उन्होंने मध्य प्रदेश हौकी अकादमी में 30 महीने तक कोचिंग ली. वहां से वे आगे की कोचिंग के लिए हौकी अकादमी दिल्ली चले गए.

विवेक सागर प्रसाद भी ऐसे खिलाडि़यों में से एक हैं, जिन्होंने अपने ऊपर आई बाधा को हौसले से पार कर लिया. साल 2015 में प्रैक्टिस के दौरान विवेक की गरदन की हड्डी टूट गई थी. दवाओं की हैवी डोज से उन की आंतों में छेद हो गया था और वे 22 दिनों तक जिंदगी और मौत से जू झते रहे. आखिरकार उन्होंने जिंदगी का मैच जीत लिया. इस के बाद जूनियर हौकी टीम की मलयेशिया में कप्तानी की और ‘मैन औफ द सीरीज’ पर कब्जा जमा लिया.

बातचीत में विवेक सागर प्रसाद बताते हैं कि किस तरह शुरुआती दौर में वे इटारसी के सीनियर प्लेयर को हौकी खेलता देखते थे, तो उन के मन में भी हौकी खेलने का विचार आता था.

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हौकी के प्रति जब विवेक सागर प्रसाद का लगाव बढ़ा, इस के बाद सीनियरों से हौकी स्टिक और दोस्तों से जूते मांग कर मिट्टी वाले ग्राउंड में प्रैक्टिस करने लगे.

भारतीय पुरुष हौकी टीम ने जरमनी को टोक्यो ओलिंपिक खेलों के कांस्य पदक मैच में 5-4 से शिकस्त दे कर  41 साल बाद पदक जीता.

भारत ने इस से पहले साल 1980 में मास्को ओलिंपिक में गोल्ड मैडल जीता था. भारतीय टीम की इस ऐतिहासिक जीत से पूरे देश में खुशी का माहौल है.

विवेक सागर प्रसाद ने ओलिंपिक तक का यह सफर इटारसी के पास के छोटे से गांव चांदौन से शुरू किया. उन्होंने अनेक नैशनल और इंटरनैशनल लैवल की प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया और लगातार अच्छे प्रदर्शन के बल पर भारतीय टीम में अपना स्थान बनाया.

विवेक सागर प्रसाद के यहां तक पहुंचने की कहानी भी किसी फिल्मी पटकथा से कम नहीं है. विवेक सागर प्रसाद का परिवार शीट की छत वाले घर में रहता है. मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री ने जब उन्हें बतौर एक करोड़ रुपए इनाम देने की घोषणा की, तो इस पर विवेक का कहना है कि वे इस पैसे से अपनी मां के लिए आलीशान मकान बना कर देंगे.

विवेक सागर प्रसाद के पिता बताते हैं कि वे तो विवेक को हमेशा से इंजीनियर बनाना चाहते थे, लेकिन उसे तो हौकी प्लेयर ही बनना था.

विवेक की मां कमला देवी बताती हैं कि बेटे की पिटाई नहीं हो, इसलिए कई बार उस के पिता से  झूठ बोलना पड़ा. वह घर नहीं आता तो वे कह देतीं कि वह सब्जी लेने गया है, फिर चुपके से बहन पूजा दूसरे दरवाजे से घर में बुला लेती.

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भाई विद्यासागर के मुताबिक, जब दोस्तों ने कहा कि विवेक टैलेंटेड है और खूब आगे जाएगा, तो उन्होंने अपने पापा को हौकी खेलने के लिए मनाया.

गांव की मिट्टी में पलाबढ़ा नौजवान विवेक सागर प्रसाद आज हीरो बन कर उभरा है. विवेक सागर प्रसाद की लगन, मेहनत और जुनून ने यह साबित कर दिया है कि हौसले बुलंद हों तो कुछ भी नामुमकिन नहीं है.

पोंगापंथ: खरीदारी और अंधविश्वास

कुछ लोग शनिवार के दिन नए जूते पहनने या खरीदने को अच्छा नहीं मानते हैं. अब ऐसे लोगों से पूछें कि क्या जूते की दुकानें शनिवार को बंद रहती हैं या वहां कोईर् खरीदारी नहीं होती? जूते खरीदने हों तो उस के लिए कोई दिन अच्छा या बुरा नहीं होता.

इसी तरह एक अंधविश्वास यह भी है कि शनिवार को तेल नहीं खरीदना चाहिए, फिर चाहे वह मूंगफली का हो या सरसों का या फिर सोयाबीन का. समझ में नहीं आता कि इस दिन खरीदे गए तेल में क्या जहर घुल जाता है? क्या शनिवार को खरीदे गए तेल में बना भोजन स्वादिष्ठ नहीं होता?

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होटल, ढाबे और ठेले वाले क्या दिन देख कर तेल खरीदते हैं? क्या इस दिन तेल मिलें बंद रहती हैं या उन में उत्पादन नहीं होता? जब शनिवार को तेल बन सकता है, तो खरीदने में क्या दिक्कत है?

एक रिवाज यह भी है कि शनिवार को नमक नहीं खरीदना चाहिए, क्योंकि इस से आदमी कर्जदार होता है. कर्जदार कर्ज लेने से होता है, नमक खरीदने से नहीं. वैसे भी नमक इतना महंगा नहीं है कि एक किलो नमक खरीदने के लिए किसी को कर्ज लेना पड़े. नमक तो खाने में इस्तेमाल होने वाली एक चीज है, उसे किसी भी दिन खरीद सकते हैं.

शनिवार को लोहा या लोहे से बनी चीजें खरीदने को भी अपशकुन माना जाता है. कहा जाता है कि इस दिन कैंची तक नहीं खरीदनी चाहिए.

लोहा खरीदने में शकुनअपशकुन का बंधन क्यों? लोहे से बनी छोटी आलपिन या कील से ले कर घर बनाने में काम आने वाले सरिए वगैरह खरीदने से कोई फर्क नहीं पड़ता है.

कुछ लोग शनिवार के दिन किसी भी तरह का ईंधन जैसे लकड़ी, कंडे, गैस सिलैंडर वगैरह तक खरीदना अच्छा नहीं समझते हैं. पता नहीं, इन्हें खरीदने से परिवार पर कौन सी बड़ी मुसीबत आ जाएगी? यह सब अंधविश्वास है.

हमारे यहां खास मौकों पर खास चीजें खरीदने को शुभ माना जाता है. किसी खास दिन जैसे धनतेरस को सोना, चांदी या बरतन खरीदने का अंधविश्वास?है. बहुत से लोग तो अपनी हैसियत से बाहर जा कर इस दिन खरीदारी करते हैं, जिस से उन का बजट गड़बड़ा जाता है.

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बरतन हो या सोनाचांदी, धनतेरस पर ही क्यों खरीदें? जब जरूरत हो तब क्यों नहीं? क्या धनतेरस को खरीदने पर दुकानदार कोई छूट देता है?

इसी तरह कुछ खास दिनों पर गाड़ी खरीदना शुभ माना जाता है. जब गाड़ी (दोपहिया या चारपहिया) खरीदनी ही है तो उस के लिए इंतजार क्यों? जब जरूरत हो, जेब में पैसा हो, खरीदना चाहिए.

ऐसा नहीं है कि किसी खास दिन गाड़ी लेने से ही वह फलदायी होती है. पर गाड़ी बेचने वालों के यहां उस खास दिन खरीदारों की भीड़ देखी जा सकती है. कुछ को तो अपनी पसंद का रंग या मौडल तक नहीं मिलता है. इस के बावजूद भी उन्हें समझौता करना पड़ता है.

इसी तरह कुछ खास मौकों पर बहीचौपड़े या रजिस्टर वगैरह खरीदना शुभ माना जाता है. हैरत की बात तो यह है कि कंप्यूटर के जमाने में इन की जरूरत ही नहीं रह गई है, तो भी कारोबारी अंधविश्वास के चलते बहीचौपड़े खरीदते हैं और जो सालभर धूल खाते रहते हैं. अंधविश्वास की खातिर इन्हें खरीदने की क्या तुक है?

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