सेनेटाइजर ही पिला दिया दबंगों ने, कठघरे में खड़ा दबंग

दबंगों को यह जरा भी रास नहीं आया कि कोई उस की तौहीन कर दे. इसी तौहीन की वजह से दबंगों ने मिल कर एक शख्स की पहले पिटाई की और फिर उस के बाद जबरन उसे सेनेटाइजर पिलाने की घटना सामने आई.

यह ताजा मामला रामपुर जिले के मुतियापुर गांव का है. गांव के प्रधान ने अपने गांव में सैनिटाइजर के छिड़काव के लिए युवक को बुलाया और उसी के मुंह में सैनिटाइजर का स्प्रे कर दिया, जिस से उस युवक की इलाज के दौरान मौत हो गई.

रामपुर जिले के भोट थाना क्षेत्र में सेनेटाइजर कर रहे एक युवक कुंवर पाल की गांव के ही दूसरे शख्स से झड़प हो गई. जब कुंवर पाल सैनिटाइजर स्प्रे कर रहा था तब पास से गुजर रहे एक शख्स के पैर पर सैनिटाइजर स्प्रे चला गया, जिस के बाद दोनों में झड़प हो गई. दूसरे शख्स ने कुंवर पाल को गालीगलौज देना शुरू कर दी.

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कुछ ही देर में कुछ और लोग वहां पहुंच गए और दूसरे युवक के साथ मिल कर सैनिटाइजर का स्प्रे कुंवर पाल के मुंह में उड़ेल दिया.

हालत बिगड़ने पर वहां मौजूद लोग उसे अस्पताल ले गए, जहां से उसे हायर सेंटर रेफर किया गया. यहां इलाज के दौरान 17 अप्रैल की दोपहर कुंवर पाल की मौत हो गई.

फिलहाल, पुलिस ने एक अज्ञात व 4 अन्य के खिलाफ धारा 147, 323 व 304 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया.

मृतक कुंवर पाल के भाई महेश पाल ने आरोप लगाते हुए कहा कि 14 अप्रैल की सुबह 7 बजे पड़ोसी गांव के प्रधान ने हमारे गांव से 2 लड़के दवा छिड़कने के लिए बुलाए थे. दवा छिड़कने के दौरान कुछ दवा पास से गुजर रहे युवक के पैरों पर चली गई जिस के बाद उन की आपस में झड़प हो गई और छिड़काव कर रहे कुंवर पाल के मुंह में सैनिटाइजर स्प्रे कर दिया, जिस से उस की हालत बिगड़ गई.

17 अप्रैल की दोपहर इलाज के दौरान कुंवर पाल की मौत हो गई.

वहीं भोट क्षेत्राधिकारी अशोक पांडे ने बताया कि मुतियापुरा गांव के प्रधान इंद्रपाल हैं. भाई महेश पाल ने कहा कि उस के भाई कुंवर पाल को इंद्रपाल सेनेटाइजर दवा का छिड़काव करने के लिए ले गए थे और छिड़काव करते समय स्प्रे इंद्रपाल के ऊपर पड़ गया.

इंद्रपाल ने जानबूझ कर उस के भाई कुंवर पाल के मुंह में दवा डाल दी. महेश पाल की शिकायत पर मुकदमा दर्ज कर लिया गया.

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वहीं एएसपी अरुण कुमार कहते हैं, ‘मृतक के भाई ने हमें घटना के बारे में सूचना दी. उस ने बताया कि जब मृतक 14 अप्रैल को गांव में सेनेटाइजेशन करने गया था तो कुछ बदमाशों ने उसे पीटा था. लोगों ने युवक को रामपुर के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया, जहां से डाक्टरों ने रेफर कर दिया. फिर उसे मुरादाबाद जिले के टीएमयू अस्पताल में भर्ती कराया गया. यहां 17 अप्रैल को उस की मौत हो गई.

भाई महेश पाल कुछ भी आरोप लगाए, पर इन दबंगों के खिलाफ मामला तो कोर्ट ही तय करेगा कि गलती किस की है.

जरा सी बात पर दबंगों का इतना बखेड़ा खड़ा करना कि जान ही चली जाए, कोई हैरानी की बात नहीं, पर यह इस बात पर निर्भर है कि इन दबंगों की दबंगई का फैसला कोर्ट किस तरह करती है. क्या ये बाहर निकल पाएंगे या जेल ही इन का भविष्य होंगी, कहना मुश्किल है.

19 दिन 19 कहानियां : कातिल बहन की आशिकी

इस साल गणतंत्र दिवस की बात है. अन्य शहरों की तरह इस मौके पर उत्तर प्रदेश के इटावा शहर में भी स्कूल, कालेज, व्यापारिक प्रतिष्ठान व मुख्य चौराहों पर राष्ट्रीय ध्वज फहराया जा रहा था. शहर का ही सराय एसर निवासी श्याम सिंह यादव भी अपने स्कूल में मौजूद था और बच्चों के रंगारंग कार्यक्रम को तन्मयता से देख रहा था. श्याम सिंह यादव एक प्राइवेट स्कूल में वैन चालक था. वैन द्वारा सुबह के समय बच्चों को स्कूल लाना फिर छुट्टी होने के बाद उन्हें उन के घर छोड़ना उस का रोजाना का काम था.

स्कूल में चल रहे सांस्कृतिक कार्यक्रम समाप्त होने के बाद श्याम सिंह ने स्कूल के बच्चों को घर छोड़ा, फिर वैन को स्कूल में खड़ा कर के वह दोपहर बाद अपने घर पहुंचा. घर में उस ने इधरउधर नजर दौड़ाई तो उसे बड़ी बेटी पूजा तो दिखाई पड़ी, लेकिन छोटी बेटी दीपांशु उर्फ रचना दिखाई नहीं दी. रचना को घर में न देख कर श्याम सिंह ने पूजा से पूछा, ‘‘पूजा, रचना घर में नहीं दिख रही है. कहीं गई है क्या?’’

‘‘पापा, रचना कुछ देर पहले स्कूल से आई थी, फिर सहेली के घर चली गई. थोड़ी देर में आ जाएगी.’’ पूजा ने बताया.

श्याम सिंह ने बेटी की बात पर यकीन कर लिया और चारपाई पर जा कर लेट गया. लगभग एक घंटे बाद उस की नींद टूटी तो उसे फिर बेटी की याद आ गई. उस ने पूजा से पूछा, ‘‘बेटा, रचना आ गई क्या?’’

‘‘नहीं पापा, अभी तक नहीं आई.’’ पूजा ने जवाब दिया.

‘‘कहां चली गई जो अभी नहीं आई.’’ श्याम सिंह ने चिंता जताते हुए कहा.

इस के बाद वह घर से निकला और पासपड़ोस के घरों में रचना के बारे में पूछा. लेकिन रचना का पता नहीं चला. फिर उस ने रचना के साथ पढ़ने वाली लड़कियों से उस के बारे में जानकारी जुटाई तो पता चला कि रचना आज स्कूल गई ही नहीं थी.

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श्याम सिंह का माथा ठनका. क्योंकि पूजा कह रही थी कि रचना स्कूल से वापस आई थी. श्याम सिंह के माथे पर चिंता की लकीरें खिंचने लगीं. उस के मन में तरहतरह के विचार आने लगे. श्याम सिंह की पत्नी सर्वेश कुमारी अपने बेटे विवेक के साथ कहीं रिश्तेदारी में गई हुई थी. श्याम सिंह ने रचना के गुम होने की जानकारी पत्नी को दी और तुरंत घर वापस आने को कहा.

शाम होतेहोते 17 वर्षीय दीपांशी उर्फ रचना के गुम होने की खबर पूरे मोहल्ले में फैल गई. कई हमदर्द लोग श्याम सिंह के साथ रचना की खोज में जुट गए. जब कोई जवान लड़की घर से गायब हो जाती है तो तमाम लोग तरहतरह की कानाफूसी करने लगते हैं. श्याम सिंह के पड़ोस की महिलाएं भी कानाफूसी करने लगीं.

श्याम सिंह ने लोगों के साथ तमाम संभावित जगहों पर बेटी को तलाशा, लेकिन उस का कुछ पता नहीं चला. इटावा के रेलवे स्टेशन, रोडवेज व प्राइवेट बसअड्डे पर भी रचना को ढूंढा गया. लेकिन उस का कहीं कोई पता नहीं लगा.

जब रचना का कुछ भी पता नहीं चला, तब श्याम सिंह थाना सिविल लाइंस पहुंचा. उस ने वहां मौजूद ड्यूटी अफसर आर.पी. सिंह को अपनी बेटी दीपांशी उर्फ रचना के गुम होने की जानकारी दी. थानाप्रभारी ने दीपांशु उर्फ रचना की गुमशुदगी दर्ज कर ली. इस के बाद उन्होंने इटावा जिले के सभी थानों में रचना के गुम होने की सूचना हुलिया तथा उम्र के साथ प्रसारित करा दी.

बड़ी बेटी पर हुआ शक

रात 10 बजे तक श्याम सिंह की पत्नी सर्वेश कुमारी बेटे के साथ अपने घर पहुंच गई. पतिपत्नी ने सिर से सिर जोड़ कर परामर्श किया तो उन्हें बड़ी बेटी पूजा पर शक हुआ. उन्हें लग रहा था कि रचना के गुम होने का रहस्य पूजा के पेट में छिपा है. इसलिए श्याम सिंह ने पूजा से बड़े प्यार से रचना के बारे में पूछा.

लेकिन जब पूजा ने कुछ नहीं बताया तो श्याम सिंह ने उस की पिटाई की. इस के बाद भी पूजा ने अपनी जुबान नहीं खोली. रात भर श्याम सिंह व सर्वेश कुमारी परेशान होते रहे. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर रचना कहां गुम हो गई.

अगले दिन 27 जनवरी की सुबह गांव के कुछ लोग तालाब की तरफ गए तो उन्होंने तालाब के किनारे पानी में एक बोरी पड़ी देखी. बोरी को कुत्ते पानी से बाहर निकालने की कोशिश कर रहे थे. बोरी को देखने से लग रहा था कि उस में किसी की लाश है.

यह तालाब श्याम सिंह के घर के पिछवाड़े था, इसलिए बहुत जल्द उसे भी तालाब में संदिग्ध बोरी पड़ी होने की जानकारी मिल गई. खबर पाते ही वह तालाब किनारे पहुंच गया. उस ने बोरी पर एक नजर डाली फिर तमाम आशंकाओं के बीच बदहवास हालत में थाना सिविल लाइंस पहुंचा. थानाप्रभारी जे.के. शर्मा को उस ने तालाब किनारे मुंह बंद बोरी पड़ी होने की सूचना दी और आशंका जताई कि उस में कोई लाश हो सकती है.

सूचना मिलने पर थानाप्रभारी जे.के. शर्मा पुलिस टीम के साथ सराय एसर गांव के उस तालाब के किनारे पहुंचे, जहां संदिग्ध बोरी पड़ी थी. उन्होंने 2 सिपाहियों की मदद से बोरी को तालाब से बाहर निकलवाया. बोरी का मुंह खुलवा कर देखा गया तो उस में एक लड़की की लाश निकली.

लाश बोरी से निकाली गई तो उसे देखते ही श्याम सिंह फफक कर रो पड़ा. लाश उस की 17 वर्षीय बेटी दीपांशी उर्फ रचना की थी. रचना की लाश मिलने की खबर पाते ही उस की मां सर्वेश कुमारी रोतीबिलखती तालाब किनारे पहुंच गई.

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इधर थानाप्रभारी जे.के. शर्मा ने रचना की लाश मिलने की सूचना पुलिस अधिकारियों को दी तो कुछ देर में एसएसपी अशोक कुमार त्रिपाठी तथा एडीशनल एसपी डा. रामयश सिंह घटनास्थल पर आ गए. पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया और मृतका के पिता श्याम सिंह से इस बारे में पूछताछ की.

श्याम सिंह ने पुलिस अधिकारियों को बताया कि रचना की हत्या का राज उन की बड़ी बेटी पूजा के पेट में छिपा है जो इस समय घर में मौजूद है. अगर उस से सख्ती से पूछताछ की जाए तो सारी सच्चाई सामने आ जाएगी.

अपनी ही बेटी पर छोटी बेटी की हत्या का आरोप लगाने की बात सुन कर एसएसपी त्रिपाठी भी चौंके. उन्होंने पूछा, ‘‘बड़ी बहन अपनी छोटी बहन की हत्या आखिर क्यों कराएगी?’’

‘‘साहब, मेरी बड़ी बेटी के लक्षण ठीक नहीं हैं. हो सकता है इस हत्या में पड़ोस का अनिल और उस का दोस्त अवध पाल भी शामिल रहे हों.’’ श्याम सिंह ने बताया.

श्याम सिंह की बातों से एसएसपी को मामला प्रेम प्रसंग का लगा. अत: उन्होंने थानाप्रभारी को निर्देश दिया कि वह डेडबौडी को पोस्टमार्टम हाउस भिजवाने के बाद आरोपियों को हिरासत में ले कर उन से पूछताछ करें. इस के बाद थानाप्रभारी जे.के. शर्मा ने मौके की काररवाई पूरी करने के बाद रचना का शव पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया.

फिर उन्होंने महिला पुलिस के सहयोग से मृतका की बड़ी बहन पूजा यादव को हिरासत में ले लिया. इस के अलावा आरोपी अनिल व उस के दोस्त अवध पाल को भी सरैया चुंगी के पास से पकड़ लिया गया.

थाने में एडीशनल एसपी डा. रामयश सिंह की मौजूदगी में पुलिस ने सब से पहले श्याम सिंह की बड़ी बेटी पूजा यादव से पूछजाछ शुरू की. शुरू में तो पूजा अपनी बहन की हत्या से इनकार करती रही लेकिन जब थोड़ी सख्ती की गई तो उस ने बताया कि छोटी बहन रचना से उस का झगड़ा हुआ था. झगडे़ के बाद उस ने कमरा बंद कर फांसी लगा ली थी. इस से वह बुरी तरह डर गई. इसलिए शव को उस ने बोरी में भरा और साइकिल पर लाद कर घर से थोड़ी दूर स्थित तालाब में फेंक आई.

थानाप्रभारी जे.के. शर्मा ने अवध पाल से पूछताछ की तो उस ने पूजा से प्रेम संबंधों को तो स्वीकार कर लिया, पर हत्या व लाश ठिकाने लगाने में शामिल होने से साफ मना कर दिया. अनिल ने भी वारदात में शामिल होने से इनकार किया. उस ने कहा कि अवध पाल उस का दोस्त है. अवध पाल व पूजा की दोस्ती को मजबूत करने में उस ने बिचौलिए की भूमिका निभाई थी. लेकिन रचना की हत्या के बारे में उसे कोई जानकारी नहीं है.

पूजा के इस कथन पर पुलिस को यकीन तो नहीं हुआ, फिर भी जांच करने के लिए पुलिस पूजा के घर पहुंची. पुलिस ने कमरे में लगे पंखे को देखा, उस पर धूल जमी थी और उस के ब्लेड जैसे के तैसे थे. रस्सी या दुपट्टा भी नहीं मिला. कमरे में पुलिस को कोई ऐसा सबूत नहीं था, जिस से साबित होता कि रचना ने फांसी लगाई थी.

पुलिस को लगा कि पूजा बेहद शातिर है. वह पुलिस से झूठ बोल रही है. लिहाजा महिला पुलिसकर्मियों ने पूजा से सख्ती से पूछताछ की तो जल्द ही उस ने सच्चाई उगल दी. उस ने स्वीकार कर लिया कि उस ने ही अपनी बहन रचना की हत्या कर डेडबौडी खुद ही तालाब में फेंकी थी. पूजा से पूछताछ के बाद उस की छोटी बहन की हत्या की जो कहानी सामने आई, चौंकाने वाली निकली—

उत्तर प्रदेश के इटावा शहर के सिविल लाइंस थाना क्षेत्र में एक गांव है सराय एसर. शहर से नजदीक बसे इसी गांव में श्याम सिंह यादव अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी सर्वेश कुमारी के अलावा एक बेटा था विवेक तथा 2 बेटियां थीं पूजा और दीपांशी उर्फ रचना. श्याम सिंह यादव शहर के एक प्राइवेट स्कूल में वैन चलाता था. स्कूल से मिलने वाले वेतन से उस के परिवार का भरणपोषण हो रहा था.

श्याम सिंह के बच्चों में पूजा सब से बड़ी थी. चेहरेमोहरे से वह काफी सुंदर थी. पूजा जैसेजैसे सयानी होने लगी, उस के रूपलावण्य में निखार आता गया. उस के हुस्न ने बहुतों को दीवाना बना दिया था. अवध पाल भी पूजा का दीवाना था.

अवध पाल ने पूजा पर डाले डोरे

अवध पाल यादव, सरैया चुंगी पर रहता था. उस के भाई वीरपाल की दूध डेयरी थी. अवध पाल भी भाई के साथ दूध डेयरी पर काम करता था. अवध पाल का एक दोस्त अनिल यादव था जो सराय एसर में रहता था. अनिल, पूजा के परिवार का था और पूजा के घर के पास ही रहता था. अवध पाल का अनिल के घर आनाजाना था. उस के यहां आतेजाते ही अवध पाल की नजर पूजा पर पड़ी थी. वह उसे मन ही मन चाहने लगा था.

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अवध पाल भाई के साथ खूब कमाता था, इसलिए वह खूब बनठन कर रहता था. अवध पाल जिस चाहत के साथ पूजा को देखता था, उसे पूजा भी समझती थी. उस की नजरों से ही वह उस के मन की बात भांप चुकी थी. धीरेधीरे पूजा भी उस की दीवानी होने लगी. उस के मन में भी अवध पाल के प्रति आकर्षण पैदा हो गया.

पूजा पंचशील इंटर कालेज में पढ़ती थी. इसी कालेज में उस की छोटी बहन दीपांशी उर्फ रचना भी पढ़ती थी. पूजा इंटरमीडिएट की छात्रा थी जबकि दीपांशी 10वीं में पढ़ रही थी. पूजा घर से पैदल ही स्कूल जाती थी.

अवध पाल ने जब से पूजा को देखा था, तब से उस ने उसे अपने दिल में बसा लिया था. पूजा के स्कूल आनेजाने के समय वह उस के पीछेपीछे स्कूल तक जाता था. पूजा भी उसे कनखियों से देखती रहती थी.

पूजा की इस अदा से अवध पाल समझ गया कि पूजा भी उसे चाहने लगी है. दोनों के दिलों में प्यार की हिलोरें उमड़ने लगीं. प्यार के समंदर को भला कौन बांध कर रख सका है. वैसे भी कहते हैं कि जहां चाह होती है, वहां राह निकल ही आती है.

अवध पाल को पीछे आते देख कर एक दिन पूजा ठिठक कर रुक गई. उस का दिल जोरों से धड़क रहा था. पूजा के अचानक रुकने से अवध पाल भी चौंक कर ठिठक गया. आखिर उस से रहा नहीं गया और वह लंबेलंबे डग भरता हुआ पूजा के सामने जा कर खड़ा हो गया.

‘‘तुम आजकल मेरे पीछे क्यों पड़े हो?’’ पूजा ने माथे पर त्यौरियां चढ़ा कर अवध पाल से पूछा.

‘‘तुम से एक बात कहनी थी पूजा.’’ अवध पाल ने झिझकते हुए कहा.

‘‘बताओ, क्या कहना चाहते हो?’’ पूजा ने उस की आंखों में देखते हुए पूछा.

तभी अवध पाल ने अपनी जेब से कागज की एक परची निकाली और पूजा को थमा कर बोला, ‘‘घर जा कर इसे पढ़ लेना, सब समझ में आ जाएगा.’’

मन ही मन मुसकराते हुए पूजा ने वह कागज ले लिया और बिना कुछ बोले अपने घर चली गई. हालांकि पूजा को इस बात का अहसास था कि उस परची में क्या लिखा होगा, फिर भी वह उसे पढ़ कर अपने दिल की तसल्ली कर लेना चाहती थी. घर पहुंच कर पूजा ने अपने कमरे में जा कर अवध पाल का दिया हुआ कागज निकाल कर पढ़ा. उस पर लिखा था, ‘मेरी प्यारी पूजा, आई लव यू. मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं. तुम्हें देखे बगैर मुझे चैन नहीं मिलता. इसीलिए अकसर स्कूल तक तुम्हारे पीछे आता हूं. तुम अगर मुझे न मिली तो मैं जिंदा नहीं रह पाऊंगा. तुम्हारा और सिर्फ तुम्हारा अवध पाल सिंह.’

पत्र पढ़ कर पूजा के दिल के तार झनझना उठे. उस की आकांक्षाओं को पंख लग गए. उस दिन पूजा ने उस पत्र को कई बार पढ़ा. पूजा के मन में सतरंगी सपने तैरने लगे थे. उसी दिन रात को पूजा ने अवध पाल के नाम एक पत्र लिखा.

पत्र में उस ने सारी भावनाएं उड़ेल दीं, ‘प्रिय अवध पाल, मैं भी तुम से इतना प्यार करती हूं जितना कभी किसी ने नहीं किया होगा. कह इसलिए नहीं सकी कि कहीं तुम बुरा न मान जाओ. तुम्हारे बिना मैं भी जीना नहीं चाहती. मैं तो चाहती हूं कि हर समय तुम्हारी बांहों के घेरे में बंधी रहूं. तुम्हारी पूजा.’

उस दिन मारे खुशी के पूजा को नींद नहीं आई. अगली सुबह वह कालेज जाने के लिए घर से निकली तो अवध पाल उसे पीछेपीछे आता दिखाई दिया. दोनों की नजरें मिलीं तो वे मुसकरा दिए. पूजा बेहद खुश नजर आ रही थी. सावधानी से पूजा ने अपना लिखा खत जमीन पर गिरा दिया और आगे चली गई.

पीछेपीछे चल रहे अवध पाल ने इधरउधर देखा और उस पत्र को उठा कर दूसरी तरफ चला गया. एकांत में जा कर उस ने पूजा का पत्र पढ़ा तो खुशी से झूम उठा. जो हाल पूजा के दिल का था, वही अवध पाल का भी था. पूजा ने पत्र का जवाब दे कर उस का प्यार स्वीकार कर लिया था.

शुरू हो गई प्रेम कहानी

दोपहर बाद जब कालेज की छुट्टी हुई तो पूजा ने गेट पर अवध पाल को इंतजार करते पाया. एकदूसरे को देख कर दोनों के दिल मचल उठे. वे दोनों एक पार्क में जा पहुंचे.

पार्क के सुनसान कोने में बैठ कर दोनों ने अपने दिल का हाल एकदूसरे को कह सुनाया. पार्क में कुछ देर प्यार की अठखेलियां कर के दोनों घर लौट आए. दोनों के बीच प्यार का इजहार हुआ तो मानो उन की दुनिया ही बदल गई. फिर दोनों अकसर मिलने लगे.

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पूजा और अवध पाल के दिलोदिमाग पर प्यार का ऐसा जादू चढ़ा कि उन्हें एकदूजे के बिना सब कुछ सूनासूना लगने लगा. जब भी मौका मिलता, दोनों एकांत में साथ बैठ कर अपने ख्वाबों की दुनिया में खो जाते. इसी प्यार के चलते दोनों ने साथसाथ जीनेमरने की कसमें भी खा लीं. एक बार मन से मन मिले तो फिर तन मिलने में भी देर नहीं लगी.

पूजा और अवध पाल ने लाख कोशिश की कि उन के प्रेम संबंधों का पता किसी को न चले. लेकिन प्यार की महक को भला कोई रोक सका है. एक दिन पूजा की छोटी बहन दीपांशी उर्फ रचना ने पूजा और अवध पाल को रास्ते में हंसीठिठोली करते देख लिया. रास्ते में तो उस ने कुछ नहीं कहा, लेकिन घर आ कर उस ने पापा और मम्मी के कान भर दिए.

कुछ देर बाद पूजा कालेज से घर आई तो मांबाप की त्यौरियां चढ़ी हुई थीं. श्याम सिंह ने गुस्से में उस से पूछा, ‘‘रास्ते में किस के साथ हंसीठिठोली कर रही थी? कौन है वह, जो हमारी इज्जत को नीलाम करना चाहता है? सचसच बता वरना…’’

पिता का गुस्सा देख कर पूजा सहम गई. वह जान गई कि उस के प्यार का भांडा फूट गया है, इसलिए झूठ बोलने से कुछ नहीं होगा. अत: वह सिर झुका कर बोली, ‘‘पापा, वह लड़का है अवध पाल. सरैया चुंगी में रहता है. वह अपने बड़े भाई वीरपाल के साथ डेयरी चलाता है. हम दोनों एकदूसरे से प्यार करते हैं और शादी करना चाहते हैं.’’

पूजा की बात सुनते ही श्याम सिंह का गुस्सा सीमा लांघ गया. उस ने पूजा की जम कर पिटाई की और उसे हिदायत दी कि आइंदा वह अवध पाल से न मिले. पूजा की मां सर्वेश कुमारी ने भी उसे खूब समझाया. पूजा पर लगाम कसने के लिए सर्वेश ने उस का कालेज जाना बंद करा दिया, साथ ही उस पर निगरानी भी रखने लगी. पूजा पर निगाह रखने के लिए श्याम सिंह और उस की पत्नी ने छोटी बेटी रचना को भी लगा दिया. पूजा जब भी कालेज जाने की बात कहती तो रचना उस के साथ होती और उस की हर गतिविधि पर नजर रखती.

पाबंदी लगी तो पूजा व अवध पाल का मिलनाजुलना बंद हो गया. इस से दोनों परेशान रहने लगे. अवध पाल ने अपनी परेशानी अपने दोस्त अनिल को बताई और इस मामले में मदद मांगी. अनिल रचना का नातेदार था और पास में ही रहता था. वह दोनों के प्यार से वाकिफ था, सो मदद करने को राजी हो गया.

इस के बाद अवध पाल ने अनिल को एक मोबाइल फोन दे कर कहा, ‘‘दोस्त, तुम पूजा के पड़ोसी हो. पूजा तुम्हारे परिवार की है. तुम उस के घर वालों पर नजर रखो और जब भी पूजा घर में अकेली हो तो उसे फोन दे कर मेरी बात करा दिया करना.’’

इस के बाद अनिल पूजा और अवध पाल के प्यार का राजदार बन गया. पूजा जब भी घर में अकेली होती तो अनिल उसे मोबाइल दे कर अवध पाल से बात करा देता. प्यार भरी बातें करने के बाद पूजा अनिल को मोबाइल वापस कर देती. कभीकभी पूजा बहाना कर के अनिल के घर चली जाती और मोबाइल से देर तक प्रेमी अवध पाल से बतिया कर वापस आ जाती.

परंतु पूजा और अवध पाल का मोबाइल पर बतियाना ज्यादा समय तक राज न रह सका. एक रोज रचना ने पूजा को बतियाते सुन लिया. यही नहीं, उस ने अनिल को मोबाइल वापस करते भी देख लिया. इस की जानकारी उस ने मांबाप को दी तो पूजा की पिटाई हुई.

इस के बाद तो यह सिलसिला बन गया. रचना जब भी पूजा को बतियाते हुए देख लेती तो मांबाप को बता देती. फिर उस की पिटाई होती. पूजा अब रचना को अपने प्यार का दुश्मन समझने लगी थी. वह प्रतिशोध की आग में जल रही थी.

24 जनवरी, 2019 को श्याम सिंह की पत्नी बेटे विवेक के साथ किसी काम से चरुआभानी, मैनपुरी रिश्तेदारी में चली गई. इस की जानकारी अनिल को हुई तो वह पूजा और अवध पाल का मिलाप कराने का प्रयास करने लगा, लेकिन रचना की कड़ी निगरानी की वजह से वह मिलाप न करा सका.

गुस्सा बना रचना की मौत की वजह

26 जनवरी, 2019 को गणतंत्र दिवस था. लगभग साढ़े 7 बजे श्याम सिंह यादव अपनी ड्यूटी चला गया. श्याम सिंह के जाने के बाद अनिल पूजा के घर पहुंच गया और उसे मोबाइल दे गया. कुछ देर बाद रचना भी किसी काम से पड़ोसी के घर चली गई. इसी बीच पूजा को मौका मिल गया और वह मोबाइल पर प्रेमी अवध पाल से बतियाने लगी.

पूजा, प्रेमी से रसभरी बातें कर ही रही थी कि रचना आ गई. उस ने मोबाइल पर बहन द्वारा बात करने का विरोध किया और धमकी देते हुए कहा कि आने दो पापा को तुम्हारे प्यार का भूत न उतरवाया तो मेरा नाम रचना नहीं.

रचना की धमकी से पूजा का गुस्सा सातवें आसमान पर जा पहुंचा और दोनों में कहासुनी होने लगी. इसी कहासुनी के बीच रचना ने पूजा के हाथ से मोबाइल छीन कर जमीन पर पटक दिया, जिस से वह टूट गया. इस के अलावा उस ने ऐसे गंदे शब्दों का प्रयोग किया, जिस से पूजा का गुस्सा और बढ़ गया. वह नफरत की आग में जल उठी.

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पूजा ने लपक कर रचना के गले में पड़ा स्कार्फ दोनों हाथों से पकड़ा और पूरी ताकत से उसे खींचने लगी. नफरत की आग में जल रही पूजा भूल गई कि जिस का वह गला कस रही है, वह उस की छोटी बहन है. पूजा के हाथ तभी ढीले हुए जब रचना की आंखें फट गईं और वह जमीन पर गिर पड़ी.

पूजा को यकीन नहीं हो रहा था कि उस की छोटी बहन की सांसें थम गई हैं. वह उसे हिलानेडुलाने लगी. नाम ले कर पुकारने लगी, ‘‘उठो रचना, उठो. मुझे माफ कर दो.’’

लेकिन रचना कैसे उठती. उस की तो दम घुटने से मौत हो चुकी थी. पूजा कुछ देर तक लाश के पास बैठी पछताती रही. फिर पकड़े जाने के डर से वह घबरा गई. पुलिस से बचने के लिए उस ने गले में लिपटा स्कार्फ निकाला और बक्से में छिपा दिया. फिर रचना के शव को प्लास्टिक की बोरी में तोड़मरोड़ कर भरा और बोरी का मुंह बंद कर दिया.

घर के पिछवाड़े कुछ ही कदम की दूरी पर तालाब था. घर के कमरे का एक दरवाजा इसी तालाब की ओर खुलता था. पूजा ने दरवाजा खोला, आवाजाही की टोह ली और फिर शव को साइकिल पर लाद कर तालाब किनारे फेंक दिया. फिर दरवाजा बंद कर साइकिल जहां की तहां खड़ी कर दी. टूटे मोबाइल को उस ने कबाड़ में फेंक दिया और घर साफसुथरा कर दिया.

दोपहर बाद जब श्याम सिंह घर आया तो उसे रचना नहीं दिखी. तब उस ने पूजा से पूछा. पूजा ने उसे गुमराह कर दिया. श्याम सिंह देर रात तक रचना की खोज में जुटा रहा. जब वह नहीं मिली तब वह वह थाना सिविल लाइंस चला गया और पुलिस जांच के बाद प्यार में बाधक बनी छोटी बहन की बड़ी बहन द्वारा हत्या किए जाने की सनसनीखेज घटना सामने आई.

पूजा से पूछताछ के बाद पुलिस ने 28 जनवरी, 2019 को उसे इटावा की अदालत में रिमांड मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया, जहां से उसे जिला कारागार भेज दिया गया. अनिल व अवध पाल के खिलाफ पुलिस को कोई साक्ष्य नहीं मिला, जिस से उन्हें छोड़ दिया गया.

-कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

क्या कसूर था उन मासूमों का ?

उत्तर प्रदेश के भदोही जनपद के गोपीगंज कोतवाली क्षेत्र के जहांगीराबाद की ये घटना है जो सामने आई है, इस घटना ने लोगों को झकझोर कर रख दिया है. जो भी सुनेगा उसका कलेजा कांप जाएगा ये सोचकर ही भला कोई मां ऐसा कैसे कर सकती है? अब जरा आप भी जानिए कि आखिर ऐसा क्या हुआ.

गंगा घाट पर एक महिला ने अपने पांच बच्चों को गंगा में फेंक दिया. उन बच्चों को अभी भी पुलिस स्थानीय गोताखोरों के द्वारा ढ़ूढ रही है. सबसे आश्चर्य की बात तो ये है कि महिला खुद तैरक बाहर आ गई लेकिन बच्चों का कुछ भी अता-पता नहीं चल पाया. महिला ने बताया कि उसका पति से झगड़ा हुआ था, जिसकी वजह से उसने अपने पांचों बच्चों को गंगा में फेंक दिया. जहांगीराबाद गांव की रहने वाली महिला का नाम मंजू यादव है. शायद इसीलिए इसे कलयुग कहा गया है क्योंकि आप खुद सोचिए कि भला पति से झगड़े में उन बच्चों का क्या दोष था?

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ये घटना शनिवार देर रात की है जब उस महिला का अपने पति से किसी बात पर झगड़ा हुआ और फिर वो महिला अपने बच्चों को लेकर जहांगीराबाद गंगा घाट पर पहुंची, जहां उसने सभी बच्चों को गंगा में फेंक दिया. इन बच्चों की पहचान वंदना (12), रंजना (10), पूजा (6), शिव शंकर (8) और संदीप (5) के रूप में हुई है. महिला मंजू यादव ने बताया कि पहले उसने तीन बच्चों को गंगा में फेंका उसके बाद उसने अपने अन्य दो बच्चों को भी गंगा में फेंक दिया और फिर वह अपने घर चली आई.भला ये कैसी मां है जिसने अपने ही हांथों से अपने बच्चों को मौत के मुंह में डाल दिया अरे जब मारना ही था तो पैदा क्यों किया लेकिन कौन समझाए इस कलयुगी मां को.

पुलिस  का कहना है कि वो अभी भी बच्चों की तलाश कर रही है क्योंकि शव मिले नहीं हैं. हालांकि महिला के पति ने साफ-साफ किसी भी झगड़े के होने से इंकार किया है और कहा कि हमारा कोई झगड़ा नहीं हुआ था पता नहीं इसने ऐसा कदम क्यों उठाया. बात जो भी हो लेकिन इन सब में उन मासूमों की जान चली गई जिनका कोई कसूर नहीं था. उन्होंने कभी सोचा भी नहीं होगा कि उनकी मां कुछ ऐसा करेगी उनके साथ और दो बच्चे तो इतने छोटे थें कि उन्हें तो कुछ पता भी नहीं होगा कि उनके साथ क्या हुआ. किस तरह से तड़प रहे होंगे वो सोचकर ही रूह कांप जाती है हाय रे मां ये तूने क्या कर डाला कैसे अपने ही हांथों से अपने बच्चों को मार डाला.

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आशिक बन गया ब्लैकमेलर

कभी दोस्ती तो कभी तथाकथित प्यार के झांसे में आ कर कई लड़कियां ब्लैकमेलरों के चक्कर में फंस जाती हैं. मतलब शरीर ही नहीं, उन से पैसे भी मांगे जाते हैं.

‘‘तुझे क्या लगता है कि आत्महत्या कर लेने से तेरी समस्या दूर हो जाएगी?’’

‘‘समस्या दूर हो या न हो, लेकिन मैं हमेशा के लिए इस दुनिया से दूर हो जाऊंगी. तू नहीं जानती नेहा मेरा खानापीना, सोना यहां तक कि पढ़ना भी दूभर हो गया है. हर वक्त डर लगा रहता है कि न जाने कब उस का फोन आ जाए और वह मुझे फिर अपने कमरे में बुला कर…’’ कहते हुए रंजना (बदला नाम) सुबक उठी तो उस की रूममेट नेहा का कलेजा मुंह को आने लगा. उसे लगा कि वह अभी ही खुद जा कर उस कमबख्त कलमुंहे मयंक साहू का टेंटुआ दबा कर उस की कहानी हमेशा के लिए खत्म कर दे, जिस ने उस की सहेली की जिंदगी नर्क से बदतर कर दी है.

अभीअभी नेहा ने जो देखा था, वह अकल्पनीय था. रंजना खुदकुशी करने पर आमादा हो आई थी, जिसे उस ने जैसेतैसे रोका था लेकिन साथ ही वह खुद भी घबरा गई थी. उसे इतना जरूर समझ आ गया था कि अगर थोड़ा वक्त रंजना से बातचीत कर गुजार दिया जाए तो उस के सिर से अपनी जिंदगी खत्म कर लेने का खयाल उतर जाएगा. लेकिन उस की इस सोच को कब तक रोका जा सकता है. आज नहीं तो कल रंजना परेशान हो कर फिर यह कदम उठाएगी. वह हर वक्त तो रूम पर रह नहीं सकती.

रंजना को समझाने के लिए वह बड़ेबूढ़ों की तरह बोली, ‘‘इस में तेरी तो कोई गलती नहीं है, फिर क्यों किसी दूसरे के गुनाह की सजा खुद को दे रही है. यह मत सोच कि इस से उस का कुछ बिगड़ेगा, उलटे तेरी इस बुजदिली से उसे शह और छूट ही मिलेगी. फिर वह बेखौफ हो कर न जाने कितनी लड़कियों की जिंदगी बरबाद करेगा, इसलिए हिम्मत कर के उसे सबक सिखा. यह बुजदिली तो कभी भी दिखाई जा सकती है. जरा अंकलआंटी के बारे में सोच, जिन्होंने बड़ी उम्मीदों और ख्वाहिशों से तुझे यहां पढ़ने भेजा है.’’

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रंजना पर नेहा की बातों का वाजिब असर हुआ. उस ने खुद को संभालते हुए कहा, ‘‘फिर क्या रास्ता है, वह कहने भर से मानने वाला होता तो 3 महीने पहले ही मान गया होता. जिस दिन वह तसवीरें और वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल कर देगा, उस दिन मेरी जिंदगी तो खुद ही खत्म हो जाएगी. जिन मम्मीपापा की तू बात कर रही है, उन पर क्या गुजरेगी? वे तो सिर उठा कर चलने लायक तो क्या, कहीं मुंह दिखाने लायक भी नहीं रहेंगे.’’

‘‘एक रास्ता है’’ नेहा ने मुद्दे की बात पर आते हुए कहा, ‘‘बशर्ते तू थोड़ी सी हिम्मत और सब्र से काम ले तो यह परेशानी चुटकियों में हल हो जाएगी.’’ माहौल को हलका बनाने की गरज से नेहा ने सचमुच चुटकी बजा डाली.

‘‘क्या, मुझे तो कुछ नहीं सूझता?’’

‘‘कोड रेड पुलिस. वह तुझे इस चक्रव्यूह से ऐसे निकाल सकती है कि सांप भी मर जाएगा और लाठी भी नहीं टूटेगी.’’

कोड रेड पुलिस के बारे में रंजना ने सुन रखा था कि पुलिस की एक यूनिट है जो खासतौर से लड़कियों की सुरक्षा के लिए बनाई गई है और एक काल पर आ जाती है. ऐसे कई समाचार उस ने पढ़े और सुने थे कि कोड रेड ने मनचलों को सबक सिखाया या फिर मुसीबत में पड़ी लड़की की तुरंत मदद की.

रंजना को नेहा की बातों से आशा की एक किरण दिखी, लेकिन संदेह का धुंधलका अभी भी बरकरार था कि पुलिस वालों पर कितना भरोसा किया जा सकता है और बात ढकीमुंदी रह पाएगी या नहीं. इस से भी ज्यादा अहम बात यह थी कि वे तसवीरें और वीडियो वायरल नहीं होंगे, इस की क्या गारंटी है.

इन सब सवालों का जवाब नेहा ने यह कह कर दिया कि एक बार भरोसा तो करना पड़ेगा, क्योंकि इस के अलावा कोई और रास्ता नहीं है. मयंक दरअसल उस की बेबसी, लाचारगी और डर का फायदा उठा रहा है. एक बार पुलिस के लपेटे में आएगा तो सारी धमाचौकड़ी भूल जाएगा और शराफत से फोटो और वीडियो डिलीट कर देगा, जिन की धौंस दिखा कर वह न केवल रंजना की जवानी से मनमाना खिलवाड़ कर रहा था, बल्कि उस से पैसे भी ऐंठ रहा था.

कलंक बना मयंक

20 वर्षीय रंजना और नेहा के बीच यह बातचीत बीती अप्रैल के तीसरे सप्ताह में हो रही थी. दोनों जबलपुर के मदनमहल इलाके के एक हौस्टल में एक साथ रहती थीं और अच्छी फ्रैंड्स होने के अलावा आपस में कजिंस भी थीं.

रंजना यहां जबलपुर के नजदीक के एक छोटे से शहर से आई थी और प्रतिष्ठित परिवार से थी. आते वक्त खासतौर से मम्मी ने उसे तरहतरह से समझाया था कि लड़कों से दोस्ती करना हर्ज की बात नहीं है, लेकिन उन से तयशुदा दूरी बनाए रखना जरूरी है.

बात केवल दुनिया की ऊंचनीच समझाने की नहीं, बल्कि अपनी बड़ी हो गई नन्हीं परी को आंखों से दूर करते वक्त ढेरों दूसरी नसीहतें देने की भी थी कि अपना खयाल रखना. खूब खानापीना, मन लगा कर पढ़ाई करना और रोज सुबहशाम फोन जरूर करना, जिस से हम लोग बेफिक्र रहें.

यह अच्छी बात थी कि रंजना को बतौर रूममेट नेहा मिली थी, जो उन की रिश्तेदार भी थी. जबलपुर आ कर रंजना ने हौस्टल में अपना बोरियाबिस्तर जमाया और पढ़ाईलिखाई और कालेज में व्यस्त हो गई. मम्मीपापा से रोज बात हो जाने से वह होम सिकनेस का शिकार होने से बची रही. जबलपुर में उस की जैसी हजारों लड़कियां थीं, जो आसपास के इलाकों से पढ़ने आई थीं, उन्हें देख कर भी उसे हिम्मत मिलती थी.

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मम्मी की दी सारी नसीहतें तो उसे याद रहीं लेकिन लड़कों वाली बात वह भूल गई. खाली वक्त में वह भी सोशल मीडिया पर वक्त गुजारने लगी तो देखते ही देखते फेसबुक पर उस के ढेरों फ्रैंड्स बन गए. वाट्सऐप और फेसबुक से भी उसे बोरियत होने लगी तो उस ने इंस्टाग्राम पर भी एकाउंट खोल लिया.

इंस्टाग्राम पर वह कभीकभार अपनी तसवीरें शेयर करती थी, लेकिन जब भी करती थी तब उसे मयंक साहू नाम के युवक से जरूर लाइक और कमेंट मिलता था. इस से रंजना की उत्सुकता उस के प्रति बढ़ी और जल्द ही दोनों में हायहैलो होने लगी. यही हालहैलो होतेहोते दोनों में दोस्ती भी हो गई. बातचीत में मयंक उसे शरीफ घर का महसूस हुआ तो शिष्टाचार और सम्मान का पूरा ध्यान रखता था. दूसरे लड़कों की तरह उस ने उसे प्रपोज नहीं किया था.

मयंक बुनने लगा जाल

20 साल की हो जाने के बाद भी रंजना ने कोई बौयफ्रैंड नहीं बनाया था, लेकिन जाने क्यों मयंक की दोस्ती की पेशकश वह कुबूल कर बैठी, जो हौस्टल के रूम से बाहर जा कर भी विस्तार लेने लगी. मेलमुलाकातों और बातचीत में रंजना को मयंक में किसीतरह का हलकापन नजर नहीं आया. नतीजतन उस के प्रति उस का विश्वास बढ़ता गया और यह धारणा भी खंडित होने लगी कि सभी लड़के छिछोरे टाइप के होते हैं.

मयंक भी जबलपुर के नजदीक गाडरवारा कस्बे से आया था. यह इलाका अरहर की पैदावार के लिए देश भर में मशहूर है. बातों ही बातों में मयंक ने उसे बताया था कि पढ़ाई के साथसाथ वह एक कंपनी में पार्टटाइम जौब भी करता है, जिस से अपनी पढ़ाई का खर्च खुद उठा सके.

अपने इस बौयफ्रैंड का यह स्वाभिमान भी रंजना को रिझा गया था. कैंट इलाके में किराए के कमरे में रहने वाला मयंक कैसे रंजना के इर्दगिर्द जाल बुन रहा था, इस की उसे भनक तक नहीं लगी.

दोस्ती की राह में फूंकफूंक कर कदम रखने वाली रंजना को यह बताने वाला कोई नहीं था कि कभीकभी यूं ही चलतेचलते भी कदम लड़खड़ा जाते हैं. इसी साल होली के दिनों में मयंक ने रंजना को अपने कमरे पर बुलाया तो वह मना नहीं कर पाई.

उस दिन को रंजना शायद ही कभी भूल पाए, जब वह आगेपीछे का बिना कुछ सोचे मयंक के रूम पर चली गई थी. मयंक ने उस का हार्दिक स्वागत किया और दोनों इधरउधर की बातों में मशगूल हो गए. थोड़ी देर बाद मयंक ने उसे कोल्डड्रिंक औफर किया तो रंजना ने सहजता से पी ली.

रंजना को यह पता नहीं चला कि कोल्डड्रिंक में कोई नशीली चीज मिली हुई है, लिहाजा धीरेधीरे वह होश खोती गई और थोड़ी देर बाद बेसुध हो कर बिस्तर पर लुढ़क गई. मयंक हिंदी फिल्मों के विलेन की तरह इसी क्षण का इंतजार कर रहा था. शातिर शिकारी की तरह उस ने रंजना के कपड़े एकएक कर उतारे और फिर उस के संगमरमरी जिस्म पर छा गया.

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कुछ देर बाद जब रंजना को होश आया तो उसे महसूस हुआ कि कुछ गड़बड़ हुई है. पर क्या हुई है, यह उसे तब समझ में नहीं आया. मयंक ने ऐसा कुछ जाहिर नहीं किया, जिस से उसे लगे कि थोड़ी देर पहले ही उस का दोस्त उसे कली से फूल और लड़की से औरत बना चुका है. दर्द को दबाते हुए लड़खड़ाती रंजना वापस हौस्टल आ कर सो गई.

कुछ दिन ठीकठाक गुजरे, लेकिन जल्द ही मयंक ने अपनी असलियत उजागर कर दी. उस ने एक दिन जब ‘उस दिन’ का वीडियो और तसवीरें रंजना को दिखाईं तो उसे अपने पैरों के नीचे से जमीन खिसकती नजर आई. खुद की ऐसी वीडियो और फोटो देख कर शरीफ और इज्जतदार घर की कोई लड़की शर्म से जमीन में धंस जाने की दुआ मांगने लगती. ऐसा ही कुछ रंजना के साथ हुआ.

दोस्त नहीं, वह निकला ब्लैकमेलर

वह रोई, गिड़गिड़ाई, मयंक के पैरों में लिपट गई कि वह यह सब वीडियो और फोटो डिलीट कर दे. लेकिन मयंक पर उस के रोनेगिड़गिड़ाने का कोई असर नहीं हुआ. तुम आखिर चाहते क्या हो, थकहार कर उस ने सवाल किया तो जवाब में ऐसा लगा मानो सैकड़ों प्राण, अजीत, रंजीत, प्रेम चोपड़ा और शक्ति कपूर धूर्तता से मुसकरा कर कह रहे हों कि हर चीज की एक कीमत होती है जानेमन.

यह कीमत थी मयंक के साथ फिर वही सब अपनी मरजी से करना जो उस दिन हुआ था. इस के अलावा उसे पैसे भी देने थे. अब रंजना को समझ आया कि उस का दोस्त या आशिक जो भी था, ब्लैकमेलिंग पर उतारू हो आया है और उस की बात न मानने का खामियाजा क्याक्या हो सकता है, इस का अंदाजा भी वह लगा चुकी थी.

मरती क्या न करती की तर्ज पर रंजना ने उस की शर्तें मानते हुए उसे शरीर के साथसाथ 10 हजार रुपए भी दे दिए. लेकिन उस ने उस की तसवीरें और वीडियो डिलीट नहीं किए. उलटे अब वह रंजना को कभी भी अपने कमरे पर बुला कर मनमानी करने लगा था. साथ ही वह उस से पैसे भी झटकने लगा था.

रंजना चूंकि जरूरत से ज्यादा झूठ बोल कर मम्मीपापा से पैसे नहीं मांग सकती थी, इसलिए एक बार तो उस ने मम्मी की सोने की चेन चुरा कर ही मयंक को दे दी.

रंजना 3 महीने तक तो चुपचाप मयंक की हवस पूरी कर के उसे पैसे भी देती रही, लेकिन अब उसे लगने लगा था कि वह एक ऐसे चक्रव्यूह में फंस गई है, जिस से निकलना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है. ऐसे में उस ने अपनी जिंदगी खत्म करने का फैसला ले लिया.

नेहा अगर वक्त रहते न बचाती तो वह अपने फैसले पर अमल भी कर चुकी होती. लेकिन नेहा ने उसे न केवल बचा लिया, बल्कि मयंक को भी उस के किए का सबक सिखा डाला.

नेहा ने कोड रेड पुलिस टीम को इस ब्लैकमेलिंग के बारे में जब विस्तार से बताया तो टीम ने रंजना को कुछ इस तरह समझाया कि वह आश्वस्त हो गई कि उस की पहचान भी उजागर नहीं होगी और वे फोटो व वीडियो भी हमेशा के लिए डिलीट हो जाएंगे. साथ ही मयंक को उस के जुर्म की सजा भी मिलेगी.

कोड रेड की इंचार्ज एसआई माधुरी वासनिक ने रंजना को पूरी योजना बताई, जिस से मय सबूतों के उसे रंगेहाथों धरा जा सके. इतनी बातचीत के बाद रंजना का खोया आत्मविश्वास भी लौटने लगा था.

योजना के मुताबिक फुल ऐंड फाइनल सेटलमेंट के लिए 26 अप्रैल को रंजना ने मयंक को भंवरताल इलाके में बुलाया. सौदा 20 हजार रुपए में तय हुआ. उस वक्त सुबह के कोई 6 बजे थे, जब मयंक पैसे लेने आया. कोड रेड के अधिकारी पहले ही सादे कपड़ों में चारों तरफ फैल गए थे.

माधुरी वासनिक फोन पर रंजना के संपर्क में थीं. जैसे ही मयंक रंजना के पास पहुंचा तो पुलिस वालों ने उसे चारों तरफ से घेर लिया. शुरू में तो वह माजरा समझ ही नहीं पाया और दादागिरी दिखाने लगा. लेकिन जैसे ही उसे पता चला कि सादा लिबास में ये लोग पुलिस वाले हैं तो उस के होश फाख्ता हो गए. जल्द ही वह सच सामने आ गया जो मयंक के कैमरे में कैद था.

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मयंक का मोबाइल देखने के बाद जब इस बात की पुष्टि हो गई कि रंजना वाकई ब्लैकमेल हो रही थी तो बहुत देर से उस का इंतजार कर रहे पुलिस वालों ने उस की सड़क पर ही तबीयत से धुनाई कर डाली. पुलिस ने उसे कई तमाचे रंजना से भी पड़वाए, जिन्हें मारते वक्त उस के चेहरे पर प्रतिशोध के भाव साफसाफ दिख रहे थे.

तमाशा देख कर भीड़ इकट्ठी होने लगी तो पुलिस वाले मयंक को जीप में बैठा कर थाने ले गए और उस पर बलात्कार और ब्लैकमेलिंग का मामला दर्ज कर के उसे हवालात भेज दिया.

फिल्म अभी बाकी है

ब्लैकमेलिंग की एक कहानी का यह सुखद अंत हर उस लड़की के नसीब में नहीं होता जो किसी मयंक के जाल में फंसी छटपटा रही होती है और थकहार कर खुदकुशी करने के अलावा उसे कोई रास्ता नजर नहीं आता.

इस मामले से यह तो सबक मिलता है कि लड़कियां अगर हिम्मत से काम लें और पुलिस वालों के साथसाथ घर वालों को भी सच बता दें, तो बड़ी मुसीबत से बच सकती हैं. नेहा की दिलेरी और समझ रंजना के काम आई, इस से लगता है कि सहेलियों को भी भरोसे में ले कर ब्लैकमेलरों को सबक सिखाया जा सकता है.

ऐसी हालत में आत्महत्या करना समस्या का समाधान नहीं है. समाधान है ब्लैकमेलर्स को उन की मंजिल हवालात और अदालत का रास्ता दिखाना. मगर इस के पहले यह भी जरूरी है कि अकेले रह रहे लड़कों पर भरोसा कर के उन से अकेले में न मिला जाए.

छत्तीसगढ़: तंत्र मंत्र के संजाल मे फैलता अंधेरा

देश में किस तरह युवा अंधविश्वास और तंत्र-मंत्र के फेर में, आज भी पड़कर अपना एवं अपने आसपास के लोगों के लिए खतरा बने हुए हैं. इसकी ज्वलंत सच्चाई छत्तीसगढ़ के सरगुजा अंचल के गांव में देखने को मिलती है,  जहां युवक ने अंधविश्वास के भंवर जाल में फंस कर  कई लोगों की नृशंस हत्या कर दी, और खुद भी अपना जीवन बर्बाद कर लिया.

छत्तीसगढ़ के  सरगुजा जिला के सीतापुर थाना क्षेत्र के गांव में एक युवक ने  तंत्र  मंत्र के फेर  मे टांगिया  से अपनी मां सहित पड़ोस में रहने वाले तीन लोगों की हत्या कर  दी और जेल चला गया. इसके अलावा युवक ने पड़ोस में बंधे 3 मवेशियों व 7 मुर्गों को भी तंत्र मंत्र की त्रासदी मे डूब मार डाला. छत्तीसगढ़ में फैले अंधविश्वास और तंत्र मंत्र की यह एक  नजीर है.दरअसल, युवक लंबे समय  से कथित  रूप से तंत्र साधना   मे रत था. बीते शनिवार की रात  तंत्र साधना के बाद वह अपनी मां सहित पड़ोस में रहने वाले तीन  लोगों की भी हत्या कर दी. युवक हत्या करने के पश्चात साधना का मद उतरने पर भागने की कोशिश कर रहा था, लेकिन पड़ोसियों ने उसे घेर लिया.  पुलिस मौके पर पहुंची और रात को ही आरोपी  युवक को गिरफ्तार कर लिया.

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अंधविश्वास का  संजाल 

तंत्र मंत्र और अंधविश्वास के  संजाल में फंस कर आदमी किस कदर हैवान बन जाता है यह घटना बताती है. इस लोमहर्षक घटना की सूचना मिलते ही सरगुजा पुलिस अधीक्षक  आशुतोष सिंह रात को ही  घटनास्थल पहुंच गये . अब आपको बताते हैं युवक हत्यारा कौन था उसके हाथों कौन अंधविश्वास की भेंट चढ़ गया – देवगढ़ सरना पारा निवासी ईश्वर पैकरा (35 वर्ष ) शनिवार,4 अप्रेल  की रात करीब 11 बजे तंत्र साधना के बाद अपनी 70 वर्षीय मां मनबसिया पैकरा की हत्या करने के बाद पड़ोसी 55 वर्षीय राजकुमार पैकरा, 50 वर्षीय मोहन राम बारगाह, 70 वर्षीय बुजुर्ग जबर साय पर टांगी से मार मार कर  हत्या कर दी. गांव के कुछ लोग बताते हैं की युवक की मानसिक स्थिति खराब   थी. युवक प्रारंभ से ही अंधविश्वास में डूबा रहता था और तंत्र मंत्र क्रियाएं किया करता था यही कारण है कि कुछ अध कचरे ज्ञान के कारण उक्त युवक ने  अपनी मां और बुजुर्गों के  साथ-साथ मवेशियों और मुर्गियों को भी मार डाला.

कब पहुंचेगी शिक्षा की रोशनी

गांव वालों ने बताया कि युवक तंत्र विद्या करता था यही नही  वह  हाल ही में  संपन्न पंचायत चुनाव मे पंच पद हेतु चुनाव में  खड़ा हुआ था, लेकिन हार गया था.

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युवक ने सीधे-सीधे अंधविश्वास और तंत्र-मंत्र के चक्कर में अपनी मां व अन्य 3 लोगों को मारा.  युवक  जिस कमरे में  रहता  था वहां तंत्र साधना करता था, पुलिस को वहां  सिंदूर, गुलाल बिखरे हुए मिला . इस संपूर्ण घटनाक्रम को देखकर यही कहा जा सकता है कि जब दुनिया विकास की विज्ञान की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रही है छत्तीसगढ़ और देश के अनेक गांव ऐसे भी हैं जहां आज भी अंधविश्वास का अंधेरा फैला हुआ है जिसे दूर करना एक बहुत बड़ी चुनौती है.

नरमुंड का रहस्य

मुरादाबाद आगरा राष्ट्रीय राजमार्ग पर एक गांव है शिमलाठेर, जो थाना कुंदरकी के अंतर्गत आता है. 9 सितंबर, 2017 को इसी गांव के रहने वाले 2 भाई लक्ष्मण और ओमकार अपने भतीजे शिवम के साथ अपने खेत में पानी लगाने पहुंचे. उन्हें दिन में ही पानी लगाना था, लेकिन दिन में बिजली नहीं थी, इसलिए वे रात में गए थे. रात होने की वजह से वे टौर्च भी ले गए थे.

वे खेत पर पहुंचे तो उन्हें कुछ आहट सी सुनाई दी. टौर्च की रोशनी में उन्होंने देखा तो वहां 4 आदमी खड़े थे. उन के हाथों में हथियार थे. उन्होंने गांव के ही बबलू को बांध कर बैठा रखा था. बबलू संपन्न आदमी था. उन्हें समझते देर नहीं लगी कि ये बदमाश हैं. डर के मारे वे जाने लगे तो एक बदमाश ने उन पर टौर्च की रोशनी डालते हुए चेतावनी दी, ‘‘अगर भागे तो गोलियों से छलनी कर दिए जाओगे. जहां हो, वहीं रुक जाओ.’’

तीनों निहत्थे थे, इसलिए अपनीअपनी जगह खड़े हो गए. बदमाश उन को वहीं ले आए, जहां बबलू बंधा बैठा था. उन्होंने उन्हें भी बांध कर बबलू के साथ बैठा दिया. बदमाशों ने बबलू के साथ मंत्रणा कर के लक्ष्मण को खोल दिया. 3 बदमाश लक्ष्मण को ले कर चले गए और एक राइफलधारी बदमाश बंधे हुए लोगों के पास चौकसी से खड़ा रहा.

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कुछ देर बाद वह लक्ष्मण को ले कर लौटा तो उन में से एक ने कहा, ‘‘लड़का तो अच्छा है.’’

इस के बाद बदमाशों ने आपस में कुछ बातें की और वही 3 बदमाश उसे फिर से ले कर जंगल में चले गए. करीब 20 मिनट बाद वे लौटे तो उन के साथ लक्ष्मण नहीं था. उन में से एक बदमाश ने कहा, ‘‘काम हो गया.’’

बदमाश के मुंह से यह बात सुन कर ओमकार और शिवम घबरा गए. लक्ष्मण को ले कर उन के दिमाग में तरहतरह के खयाल उठने लगे.

इस के बाद बदमाशों ने बबलू, ओमकार और शिवम की तलाशी ली. उन के पास जो मिला, उसे ले कर उन बदमाशों ने तीनों को औंधे मुंह लिटा कर उन के ऊपर चादर डाल कर धमकी दी कि वे अपनी खैर चाहते हैं तो इसी तरह पड़े रहें. डर की वजह से वे उसी तरह पड़े रहे.

जब उन्हें लगा कि बदमाश चले गए हैं तो बबलू ने चादर हटा कर इधरउधर देखा. वहां कोई नहीं दिखा तो उस ने ओमकार और शिवम से कहा, ‘‘लगता है, वे चले गए.’’

जब मिली लक्ष्मण की सिरकटी लाश

किसी तरह बबलू ने अपने हाथ खोल कर उन दोनों के हाथ भी खोले. इस के बाद सभी तेजी से गांव की ओर भागे. गांव जा कर उन्होंने बताया कि बदमाशों ने उन्हें बंधक बना कर लूट लिया और लक्ष्मण को अपने साथ ले गए हैं. उन के इतना कहते ही गांव में शोर मच गया. लाठीडंडा व अन्य हथियार ले कर गांव वाले खेतों की तरफ दौड़ पड़े.

सब लक्ष्मण और बदमाशों को खोजने लगे. थोड़ी देर में एक खेत के पुश्ते पर गड्ढे में लक्ष्मण की सिरकटी लाश मिल गई. इस की सूचना बबलू ने वहीं से फोन द्वारा थाना कुंदरकी को दे दी. उस समय थानाप्रभारी धीरज सिंह सोलंकी हाईवे पर गश्त पर थे. सूचना मिलते ही वह घटनास्थल पर पहुंच गए. उन्होंने इस वारदात की जानकारी एसएसपी प्रीतिंदर सिंह, एसपी (देहात) उदयशंकर सिंह, सीओ (बिलारी) अर्चना सिंह को दे दी.

लक्ष्मण की हत्या की बारे में पता चलने पर उस के घर में कोहराम मच गया था. उस की पत्नी अमरवती और दोनों बच्चे बिलख रहे थे. एसएसपी के निर्देश पर रात में ही घटनास्थल के आसपास सघन चैकिंग अभियान शुरू कर दिया गया, लेकिन न बदमाशों का सुराग मिला और न ही लक्ष्मण का सिर.

सवेरा होने पर पुलिस ने घटनास्थल की जरूरी काररवाई पूरी कर के लाश को पोस्टमार्टम के लिए मुरादाबाद भिजवा दिया. हालांकि बबलू लक्ष्मण के घर वालों के दुख में शरीक हो कर हर काम में बढ़चढ़ कर भाग ले रहा था, लेकिन उन्हें यही लग रहा था कि लक्ष्मण की हत्या में बबलू का हाथ है, क्योंकि वह उन से अदावत रखता था.

जैसेजैसे आसपास के गांवों में बदमाशों द्वारा शिमलाठेर गांव के लक्ष्मण का सिर काट कर ले जाने वाली बात पता चली, वे घटनास्थल की तरफ चल पड़े.

वहां पहुंच कर पता चला कि इस घटना के विरोध में लोग शिमलाठेर गांव में जमा हो रहे हैं तो वे भी वहीं चले गए. लक्ष्मण के घर के सामने इकट्ठा लोगों का पुलिस के प्रति गुस्सा बढ़ता जा रहा था. लक्ष्मण का सिर न मिलने से लोगों का गुस्सा फूट पड़ा और उन्होंने मुरादाबादआगरा राजमार्ग पर जाम लगा दिया.

कुछ ही देर में राजमार्ग के दोनों तरफ कई किलोमीटर लंबा जमा लग गया. सूचना मिलने पर थाना पुलिस के अलावा सीओ अर्चना सिंह भी वहां पहुंच गईं. उन्होंने भीड़ को समझाने की कोशिश की, पर लोग वहां से नहीं हटे. तब एसएसपी प्रीतिंदर सिंह और एसपी (देहात) उदयशंकर सिंह भी वहां पहुंच गए. एसएसपी ने प्रदर्शनकारियों से कहा कि पुलिस को कुछ समय दो, लक्ष्मण का सिर व कातिल जल्द से जल्द पकड़े जाएंगे.

उन के समझाने के बाद उत्तेजित लोगों ने जाम खोल दिया. 10 सितंबर को पोस्टमार्टम के बाद लक्ष्मण का शव उस के घर वालों को सौंप दिया गया तो उसी दिन उन्होंने उस का अंतिम संस्कार कर दिया. उस समय भारी संख्या में पुलिस भी मौजूद थी.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बताया गया था कि लक्ष्मण का सिर किसी तेज धारदार हथियार से एक ही झटके में काटा गया था. मरने से पहले उस ने बचाव के लिए संघर्ष किया था, क्योंकि उस की कलाइयों पर गहरे चोट के निशान थे.

मृतक के भाई ओमकार की तहरीर पर पुलिस ने गांव के ही बबलू और 4 अज्ञात लोगों के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 201, 34 के तहत रिपोर्ट दर्ज कर ली. अगले दिन यह मामला अखबारों की सुर्खियों में आया तो इलाके में सनसनी फैल गई.

उधर एसपी देहात उदयशंकर सिंह व सीओ अर्चना सिंह जंगलों में सर्च औपरेशन चला कर लक्ष्मण का सिर ढूंढ रहे थे. जब सफलता नहीं मिली तो एसएसपी प्रीतिंदर सिंह ने सीओ अर्चना की अध्यक्षता में एक पुलिस टीम का गठन कर दिया.

टीम में थानाप्रभारी धीरज चौधरी, एसआई राजेश कुमार पुंडीर, ऋषि कपूर, कांस्टेबल अफसर अली, मोहम्मद नासिर, केशव त्यागी, कपिल कुमार, वेदप्रकाश दीक्षित के अलावा सर्विलांस टीम के एसआई नीरज शर्मा, कांस्टेबल अजय, राजीव कुमार, रवि कुमार, चंद्रशेखर आदि को शामिल किया गया था. एसओजी को भी टीम के साथ लगा दिया गया था. टीम का निर्देशन एसपी (देहात) उदयशंकर सिंह कर रहे थे.

चूंकि रिपोर्ट बबलू के नाम दर्ज थी, इसलिए पूछताछ के लिए उसे थाने ले आया गया. पूछताछ में वह खुद को बेकसूर बताने के अलावा यह भी कह रहा था कि वह दिशामैदान के लिए गया था, तभी बदमाशों ने उसे बंधक बना लिया था. उस ने बताया कि बदमाश उस की जेब से 3 हजार रुपए निकाल ले गए हैं. जब बबलू से कोई क्लू नहीं मिला तो पुलिस ने उसे घर भेज दिया.

सर्विलांस से पकड़े गए लक्ष्मण के हत्यारे

पुलिस का पहला काम लक्ष्मण का सिर ढूंढना था. अपने स्तर से वह सिर तलाश रही थी. पीडि़त परिवार के दबाव में पुलिस बबलू को जब थाने बुलाती, कोई न कोई राजनैतिक रसूख वाला उस की हिमायत में थाने पहुंच जाता. पुलिस ने उस से सख्ती से भी पूछताछ की, पर रोरो कर वह खुद को निर्दोष बताता रहा.

इस के बाद उसे इस हिदायत के साथ छोड़ दिया गया कि वह गांव में ही रहेगा और जब भी जरूरत पड़ेगी, उसे थाने आना पड़ेगा. बबलू ने पूरे गांव व पुलिस से कहा था, ‘‘अगर लक्ष्मण की हत्या में मेरा हाथ पाया जाए तो मुझे सरेआम फांसी पर लटका देना. यह बात सभी जानते हैं कि मैं ने इस परिवार की कितनी मदद की है.’’

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पुलिस ने बबलू का फोन सर्विलांस पर लगा रखा था. पिछले एक महीने में उस ने जिनजिन नंबरों पर बात की थी, वे सभी सर्विलांस पर थे. जांच में पता चला कि घटना से पहले बबलू के मोबाइल पर छंगा उर्फ अकबर, निवासी इमरतपुर ऊधौ, थाना मैनाठेर से बात हुई थी. पुलिस ने मुखबिर के द्वारा छंगा के बारे में पता कराया तो जानकारी मिली कि वह घर पर नहीं है.

इस हत्याकांड को 27 दिन हो चुके थे, परंतु लक्ष्मण का सिर नहीं मिला था. पुलिस की हिदायत की वजह से बबलू सतर्क था. वह कहीं आताजाता भी नहीं था.

6 अक्तूबर, 2017 को बबलू ने किसी से फोन पर कहा कि वह गांव शिमलाठेर के बाहर अमरूद के बगीचे में आ जाए, वहीं बात करेंगे. यह बात सर्विलांस टीम को पता चल गई. थानाप्रभारी ने मुखबिर से गांव के बाहर की अमरूद की बाग के बारे में पूछा और उस पर नजर रखने को कहा.

मुखबिर की सूचना पर पुलिस ने गांव शिमलाठेर के बाहर अमरूद के बाग में दबिश दे कर वहां से बबलू के अलावा 3 अन्य लोगों को हिरासत में ले लिया, जबकि 3 लोग भाग गए. हिरासत में लिए गए लोगों को थाने ला कर पूछताछ की गई तो उन्होंने अपने नाम शबाबुल निवासी इमरतपुर ऊधौ, फरीद निवासी लालपुर गंगवारी और गुलाम नबी निवासी डींगरपुर बताया.

उन्होंने बताया कि फरार होने वाले छंगा उर्फ अकबर, राशिद निवासी इमरतपुर ऊधौ और पिंटू उर्फ बिंटू निवासी दौलतपुर थे. उन सभी से पुलिस ने सख्ती से पूछताछ की तो न सिर्फ उन्होंने लक्ष्मण की हत्या का अपराध स्वीकार किया, बल्कि उन की निशानदेही पर एक जगह गड्ढे में दबाया हुआ लक्ष्मण का सिर भी बरामद कर लिया. उस पर उन्होंने ऐसा कैमिकल लगा रखा था, जिस से वह करीब एक महीने तक जमीन में दबा रहने के बावजूद खराब नहीं हुआ था. लक्ष्मण की हत्या की उन्होंने जो कहानी बताई, वह चौंकाने वाली थी.

उत्तर प्रदेश के जनपद मुरादाबाद से कोई 18 किलोमीटर दूर है थाना कुंदरकी. इसी थाने के गांव शिमलाठेर में बबलू अपने परिवार के साथ रहता था. वह संपन्न आदमी था. उस के पास 4 ट्रैक्टर और 6 ट्रक हैं. वह टै्रक्टरों से खेतों की जुताई करता है और ट्रकों से मुरादाबाद के रेलवे माल गोदाम में आने वाले सीमेंट को अलगअलग गोदामों तक पहुंचवाता था. इस सब से उसे अच्छी कमाई हो रही थी.

लक्ष्मण का छोटा भाई टिंकू बबलू के ट्रक पर पल्लेदारी करता था. वह मेहनती और ईमानदार था. बबलू उस पर बहुत विश्वास करता था, जिस की वजह से उस का बबलू के घर भी आनाजाना था. बबलू अपने कामधंधे में व्यस्त रहता था, इसलिए बबलू की पत्नी कमलेश टिंकू से ही घर के सामान मंगाती थी. ऐसे में ही कमलेश के टिंकू से संबंध बन गए.

हालांकि दोनों की स्थिति में जमीनआसमान का अंतर था. कमलेश के सामने टिंकू की कोई औकात नहीं थी. इस के बावजूद कमलेश का टिंकू पर दिल आ गया था. शुरू में तो उन के संबंधों पर किसी को शक नहीं हुआ. लेकिन ऐसे संबंधों में कितनी भी सावधानी बरती जाए, देरसवेर उजागर हो ही जाते हैं. कमलेश और टिंकू के संबंधों की बात भी गांव में फैल गई.

3 लाख रुपए में टिंकू की मौत का सौदा

बबलू गांव का रसूखदार व्यक्ति था. टिंकू की वजह से उस की गांव में अच्छीखासी बदनामी हो रही थी. इसलिए उस ने तुरंत टिंकू को पल्लेदारी से हटा दिया. इस के बाद टिंकू का कमलेश के घर आनाजाना बंद हो गया. कमलेश किसी भी हाल में टिंकू को छोड़ना नहीं चाहती थी. लिहाजा फोन पर संपर्क कर के वह टिंकू को अपने खेतों पर बुला लेती. बबलू ने पत्नी को भी समझाया, पर वह नहीं मानी. इस पर बबलू ने टिंकू को ठिकाने लगवाने की ठान ली.

बबलू के गांव के नजदीक ही इमरतपुर ऊधौ गांव है. इसी गांव में अकबर उर्फ छंगा रहता था. वह वहां का माना हुआ बदमाश था. कई थानों में उस के खिलाफ दरजन भर मामले दर्ज थे. बबलू ने उस से बात कर 3 लाख रुपए में टिंकू की हत्या का सौदा कर डाला.

छंगा का एक भतीजा शबाबुल सुपारी किलर था. उस पर भी 10-12 केस चल रहे थे. छंगा ने शबाबुल से बात की. वह मुरादाबाद के जयंतीपुर में अपनी 2 बीवियों के साथ रहता था. उसे अपना मकान बनाने के लिए पैसों की जरूरत थी, इसलिए वह 2 लाख रुपए में टिंकू की हत्या करने को राजी हो गया.

चूंकि शबाबुल पेशेवर अपराधी था, इसलिए उसी बीच लालपुर गंगवारी के फरीद और डींगरपुर के गुलाम नबी ने शबाबुल से किसी नवयुवक के कटे हुए सिर की डिमांड की. इस के लिए उन्होंने शबाबुल को 2 लाख रुपए भी दे दिए. वह नरमुंड उन्हें सालिम के मार्फत दिल्ली के सीलमपुर में रहने वाले एक बड़े तांत्रिक महफूज आलम के पास पहुंचाना था. फरीद संपेरा और तांत्रिक है.

महफूज आलम ने नरमुंड पहुंचाने पर गुलाब नबी और सालिम को 20 लाख रुपए देने की बात कही थी. पर इन दोनों ने शबाबुल से 2 लाख रुपए में ही सौदा कर लिया था. तांत्रिक महफूज उस नरमुंड का क्या करता, यह किसी को पता नहीं था.

शबाबुल को दोहरा फायदा उठाने का मौका मिल गया था. उसे टिंकू की हत्या 2 लाख रुपए में करनी थी. उस का सिर काट कर गुलाम नबी को देना था यानी एक तीर से उस के 2 शिकार हो रहे थे.

इस तरह टिंकू की हत्या से 4 लोगों को फायदा हो रहा था. पहला फायदा बबलू को था, क्योंकि उस की पत्नी से उस के अवैध संबंध थे. दूसरा फायदा छंगा को था, जिस ने 3 लाख रुपए में टिंकू की हत्या की बात तय कर के 2 लाख रुपए में अपने भतीजे को कौन्ट्रैक्ट दे दिया था. तीसरा फायदा शबाबुल को था, जिसे टिंकू की हत्या पर 2 लाख रुपए छंगा से मिलने थे और 2 लाख नरमुंड देने पर फरीद से मिलने थे. चौथा और सब से बड़ा फायदा गुलाब नबी और सालिम को था, क्योंकि उन्हें दिल्ली के तांत्रिक महफूज आलम से नरमुंड पहुंचाने पर 20 लाख रुपए मिलने थे और उन्होंने 2 लाख में शबाबुल से बात कर ली थी. उन्हें 18 लाख रुपए बच रहे थे.

इस के बाद बबलू टिंकू की हर गतिविधि पर नजर रखने लगा. उसे कहीं से पता चल गया था कि 9 सितंबर की रात टिंकू अपने खेत में पानी लगाने जाएगा. यह बात उस ने छंगा को बता दी. छंगा ने शबाबुल को सूचित कर दिया. पूरी योजना बना कर छंगा, शबाबुल, फरीद, गुलाब नबी और बबलू टिंकू के खेत के पास पहुंच गए. रास्ते में उन्होंने ठेके से शराब खरीदी. बबलू के अलावा उन सब ने खेत के किनारे बैठ कर शराब पी. योजना के अनुसार उन्होंने बबलू के हाथ बांघ कर वहीं बैठा दिया.

9 सितंबर, 2017 की शाम को खाना खाने के बाद यादराम ने अपने दोनों बेटों लक्ष्मण और ओमकार को खेत में पानी लगाने को कहा. क्योंकि उस दिन उन का तीसरा बेटा टिंकू डीसीएम गाड़ी में तोरई भर कर दिल्ली की आजादपुर मंडी गया था. लक्ष्मण और ओमकार अपने चचेरे भाई शिवम को भी साथ ले गए थे. वे अपने साथ टौर्च भी ले गए थे.

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जब वे खेत पर पहुंचे तो उन्हें वहां 4 बदमाश मिले और बबलू उन के पास बैठा था. उस के हाथ पीछे की ओर बंधे थे. बदमाशों ने धमकी दे कर उन तीनों को भी बांध दिया. बबलू ने देखा कि उन तीनों में टिंकू नहीं है तो वह चौंका, क्योंकि उसी की हत्या के लिए तो उस ने यह ड्रामा रचा था. बदमाशों ने बबलू के साथ मंत्रणा की. बबलू ने जब देखा कि खेल बिगड़ रहा है तो उस ने बदमाशों को बता दिया कि इन में से जो बीच में है, उसी का काम तमाम कर दिया जाए. बीच में लक्ष्मण था.

इस के बाद एक बदमाश ने लक्ष्मण के हाथ खोल दिए और 3 लोग शबाबुल, फरीद और गुलाम नबी लक्ष्मण को अंधेरे में अपने साथ ले गए. छंगा राइफल लिए बाकी के पास खड़ा रहा. करीब 5 मिनट बाद वे लक्ष्मण को ले कर वापस आ गए. उन्होंने बबलू से फिर बात की और कहा कि लड़का अच्छा है. बबलू ने उन से कहा कि कोई बात नहीं, इसी का काम कर दो. तब शबाबुल, फरीद व गुलाम नबी लक्ष्मण को फिर जंगल में ले गए.

तीनों ने लक्ष्मण को जमीन पर गिरा दिया. लक्ष्मण जान पर खेल कर उन से भिड़ गया. पर वह अकेला तीनों का मुकाबला नहीं कर सका. लिहाजा बदमाशों ने उसे फिर नीचे गिरा दिया. वह उठ न सके, इस के लिए फरीद ने उस के पैर पकड़े और गुलाम नबी ने सिर के बाल पकड़ लिए. तभी शबाबुल ने फरसे से एक ही वार में उस का सिर धड़ से अलग कर दिया. लक्ष्मण चिल्ला भी न सका. उस का सिर कलम कर के वे उन बंधकों के पास आ कर बोले, ‘‘काम हो गया.’’

यह काम करने में उन्हें केवल 20 मिनट लगे थे. इस के बाद वे बंधकों को उलटा लिटा कर उन के ऊपर चादर डाल कर चले गए. वह चादर ओमकार अपने साथ घर से लाया था. शबाबुल ने लक्ष्मण का सिर गुलाम नबी तांत्रिक के हवाले कर दिया. गुलाम नबी ने कैमिकल का लेप लगा कर उस के सिर को डींगरपुर के जंगल में एक बेर के पेड़ के नीचे दबा दिया था.

करीब आधे घंटे बाद ओमकार, बबलू और शिवम ने किसी तरह खुद को खोला और तेजी से गांव की तरफ भागे. उन के शोर मचाने पर गांव वाले जंगल की तरफ बदमाशों की तलाश में निकले. जंगल में लक्ष्मण की लाश मिलने पर बबलू ने ही कुंदरकी पुलिस को फोन कर के सूचना दी थी.

इतनी बड़ी घटना को अंजाम देने के बाद भी बबलू लक्ष्मण की अंतिम क्रिया तक में साथ रहा. सभी कर्मकांडों में उस ने अपना सहयोग दिया. लक्ष्मण की चिता के फूल चुनने के समय भी वह उस के घर वालों के साथ था.

गिरफ्तार किए गए अभियुक्तों से पूछताछ कर पुलिस ने उन की निशानदेही पर फरसा भी बरामद कर लिया. अभियुक्तों की निशानदेही पर पुलिस ने 2 अन्य अभियुक्तों इमरतपुर ऊधौ के राशिद और सालिम को भी गिरफ्तार कर लिया था. सालिम पूर्व ग्रामप्रधान था. इन सभी से पूछताछ के बाद उन्हें न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया गया.

फरार अभियुक्तों की तलाश में पुलिस ने कई स्थानों पर दबिशें डालीं, पर पुलिस को सफलता नहीं मिल सकी. इसी बीच अभियुक्त छंगा उर्फ अकबर ने 12 अक्तूबर, 2017 को मुरादाबाद की कोर्ट में आत्मसमर्पण कर दिया. पुलिस ने कोर्ट में दरख्वास्त दे कर छंगा को पुलिस रिमांड पर लिया और पूछताछ कर के जेल भेज दिया था.

इस के अलावा पुलिस सीलमपुर दिल्ली के तांत्रिक महफूज आलम को भी तलाश रही थी, जिस ने 20 लाख रुपए में नरमुंड लाने की बात डींगरपुर के तांत्रिक गुलाम नबी से तय की थी. महफूज की गिरफ्तारी के बाद ही यह पता चल सकेगा कि तांत्रिक 20 लाख रुपए में उस कटे हुए सिर को खरीद कर क्या करता? पुलिस जब तांत्रिक के दिल्ली ठिकाने पर पहुंची तो वह फरार मिला. लोगों ने बताया कि महफूज तांत्रिक के पास देश के अलगअलग राज्यों से ही नहीं, बल्कि अरब के शेख भी आते थे.

इस से पुलिस को शक है कि कहीं तांत्रिक ने इस से पहले तो नरमुंड के लिए किसी की हत्या तो नहीं कराई थी. बहरहाल, पुलिस फरार अभियुक्तों की तलाश कर रही है.

कालाधन रोकने के लिए नोटबंदी कानून

मारे देश में न्यायपालिका का बुनियादी सिद्धांत है कि सौ अपराधी छूट जाएं, लेकिन एक भी निरपराध को सजा न हो. यह मुहावरा कानून के क्षेत्र में बहुत सुननेपढ़ने को मिलता है, लेकिन क्या वास्तविकता में ऐसा है? देखा जाए तो इस सिद्धांत के विपरीत सरकार द्वारा बनाए गए कानून ही कितने निरपराधियों को अपराधी घोषित कर के उन्हें दंड का भागी बना देते हैं, जिस के परिणामस्वरूप बेगुनाहों को कितनी मानसिक, आर्थिक और सामाजिक यातनाओं से गुजरना पड़ता है, यह सिर्फ भुक्तभोगी ही बता सकता है.

आइए, जानते हैं किन कानूनों के तहत निरपराधियों को बिना किसी अपराध के अपराधियों के समान दंड भुगतना पड़ा.

8 नवंबर, 2016 की रात 8 बजे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अचानक राष्ट्र को संबोधन कर के कालेधन पर नियंत्रण करने के उद्देश्य से पूरे देश में 500 और 1000 रुपए के नोटों को बंद करने का ऐलान किया था. इस की वजह से अरबों निरपराधों को सजा भुगतनी पड़ी.

प्रधानमंत्री ने स्वयं स्वीकार किया है कि देश में 5 लाख के अंदर ही ऐसे लोग होंगे, जिन के पास कालाधन है. फिर उन लोगों पर सीधी काररवाई न कर के ऐसा करने से निर्दोष जनता को भी इन के लपेटे में आ कर इस का खामियाजा भुगतना पड़ा. इस के तहत देश के प्रत्येक नागरिक को मानसिक, शारीरिक और आर्थिक यंत्रणा से गुजरना पड़ा, यह सर्वविदित है. इस के कुछ उदाहरण हैं

घोषणा के तुरंत बाद ही बैंकों के बाहर लोगों की लंबीलंबी कतारें लग गईं. सागर जिले में नोट बदलने के लिए बैंक की कतार में लगे सेवानिवृत्त कर्मचारी विनोद पांडेय (70 साल) चक्कर खा कर गिर पड़े. उन्हें हार्टअटैक की गंभीर हालत में अस्पताल ले जाया गया, जहां चिकित्सकों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया.

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मुरैना जिले में नए नोट के अभाव में दवा न खरीद पाने की वजह से एक महिला ने फांसी लगा कर जान दे दी. इसी तरह न जाने कितने लोग समय से पैसा न मिलने से डाक्टर को दिखाने अस्पताल नहीं जा सके. अस्पताल से भी दवा न मिलने की वजह से उन्होंने दम तोड़ दिया.

भोपाल में 13 नवंबर, 2016 की शाम रातीबड़ शाखा के 45 साल के वरिष्ठ कैशियर पुरुषोत्तम व्यास बैंक के काउंटर पर कैश गिन रहे थे. इसी दौरान अचानक वह टेबल पर बेहोश हो कर गिर गए. काम का अधिक बोझ होने की वजह से दिल का दौरा पड़ने से उन की मौत हो गई. उस दिन नोटबंदी की वजह से रविवार को भी बैंक खुले थे. सुबह से ही बैंक के बाहर लंबीलंबी लाइनें लगी थीं.

बुलंदशहर, खुर्जा कोतवाली नगर क्षेत्र में रिक्शा चलाने वाला एक युवक 500-500 के 4 नोट बदलने के लिए बैंक के 4 दिनों से चक्कर लगा रहा था. बैंक की लाइन में लगने के बाद भी न तो नोट ही बदले जा सके और न ही वह रिक्शा चला सका. घर में पैदा हुए आर्थिक संकट से मजबूर हो कर उस ने फांसी लगा कर आत्महत्या कर ली.

बरनाला में नोटबंदी का असर शादियों पर भी देखने को मिला. शादीविवाहों के सीजन में ज्वैलरी, मैरिज पैलेस, होटल, कपड़े की दुकानों, ब्यूटीपार्लर व कैटरिंग की बहुत डिमांड होती है. विवाह वाले घर में खुशी का माहौल होता है और इस खुशी में लोग ज्यादा से ज्यादा पैसे खर्च करते हैं. परंतु 5001000 रुपए की नोटबंदी ने विवाहों का पूरा मजा ही किरकिरा कर दिया.

ये नोटबंदी नहीं, कामबंदी थी, भुखमरी जैसे हालात थे.कई कारखाना मालिकों का कहना था कि कारीगरों को वेतन देने के लिए उन के पास पैसे कम पड़ रहे थे. नतीजतन कारीगरों की छंटनी हुई या फिर उन्हें छुट्टी पर भेजा गया. कारीगरों को दिहाड़ी मिलने में दिक्कत तो हो ही रही थी, साथ ही अगर कोई काम दे भी दे तो मजदूरी 500 और 1000 के पुराने नोटों में दे रहा था.

मजदूरों का कहना था कि सरकार को इस फैसले पर अमल करने से पहले उन के बारे में सोचना चाहिए था. ज्यादातर मजदूरों का अपना बैंक खाता नहीं था और वे इस के लिए भी दूसरों पर निर्भर थे. वे डाकघरों के जरिए अपना पैसा घर भेजते थे.

महिलाओं के लिए दहेज उत्पीड़न विरोधी एकाधिकार कानून

सरकार द्वारा बनाए गए दहेज उत्पीड़न विरोधी कानून की धारा 498ए के तहत किसी विवाहित महिला के मजिस्ट्रैट जज के सामने इतना कहने मात्र से कि उसे ससुराल वालों ने दहेज के लिए प्रताडि़त किया है या किसी प्रकार की यातना दी है तो बिना किसी जांचपड़ताल के ही महिला की ससुराल वालों को तुरंत जेल में डाल दिया जाएगा.

धारा 498ए निर्दोष वरपक्ष के लोगों को परेशान करने का सब से आसान तरीका है. अनेक मामलों में पति के साथसाथ उस के अशक्त दादादादी, विदेश में दशकों से रहने वाली उन की बहनों तक को भी गिरफ्तार किया गया है. इस कानून का पत्नियों द्वारा जम कर दुरुपयोग किया जा रहा है. असंतुष्ट पत्नियां इसे कवच के बजाय अपने पतियों के विरुद्ध हथियार के रूप में इस्तेमाल करती हैं. यह वरपक्ष के लोगों को डराने वाला शस्त्र बन गया है. इस के कुछ उदाहरण देखें

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के जानकीपुरम सेक्टर-सी के रहने वाले पुष्कर सिंह को दहेज कानून की धारा 498, 323 और 508 के तहत जेल जाना पड़ा. उन की पत्नी विनीता ने शादी के 2 साल बाद उन के परिवार के खिलाफ दहेज के रूप में 14 लाख रुपए मांगने का झूठा मुकदमा दर्ज कराया था. इस मुकदमे के चलते उन का पूरा परिवार तबाह हो गया. आर्थिक तंगी के शिकार हो गए. उन का मकान तक बिक गया, जिस की वजह से 6 फरवरी, 2008 को पुष्कर ने फांसी का फंदा गले में डाल कर खुदकुशी कर ली.

मुंबई के किशोर वर्मा की शादी दिल्ली की मीरा से सन 2011 में हुई थी. शादी के कुछ दिनों बाद ही मीरा ने किशोर से दिल्ली में रहने की जिद की. उन के न मानने पर विनीता ने पति और उस के घर वालों पर दहेज उत्पीड़न का झूठा मुकदमा दर्ज करा दिया. मुकदमा वापस लेने के लिए मीरा 25 लाख रुपए मांग रही थी.

महिलाओं के लिए बलात्कार विरोधी एकाधिकार कानून

बलात्कार मामले में भी स्त्रियों का एकाधिकार कानून होने के कारण उन के द्वारा कितने ही बेगुनाहों पर झूठे आरोप लगा कर उन्हें दंड के साथसाथ मानसिक रूप से प्रताडि़त किया गया.

अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश निवेदिता अनिल शर्मा ने रेप केस के एक आरोपी को बरी करते हुए कहा भी है कि महिलाओं की सुरक्षा के लिए जो कानून बना है, उन में से कुछ का महिलाओं द्वारा अपने स्वार्थ के लिए दुरुपयोग हो रहा है. कुछ उदाहरण इस तरह हैं

सौफ्टवेयर कर्मचारी आलोक वर्मा का कहना है कि वह देश के नए बलात्कार विरोधी कानून के बेगुनाह पीडि़त हैं. 29 साल के आलोक को तब अपनी नौकरी गंवानी पड़ी, जब उन की प्रेमिका के मातापिता ने उन के खिलाफ यौन उत्पीड़न का झूठा आरोप दर्ज करा दिया. उन्हें नई नौकरी मिलने में महीनों लग गए और उन की प्रतिष्ठा पर जो दाग लगा, वह अब तक नहीं छूटा है. आज भी उसे के पिता का सिर शर्म से झुका है.

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बुरहानपुर जिले के परेठा गांव के 38 साल के जनशिक्षक रामलाल अखंडे पर गांव की एक महिला ने बलात्कार का झूठा मामला दर्ज करा दिया था. आरोप लगने के बाद रामलाल के लिए सब कुछ बदल गया. उन्हें जो लोग सम्मान से देखा करते थे, उन की ही नजरों में अब उन के लिए घृणा टपक रही थी.

8 अप्रैल, 2016 आकाश ने हाल ही में अपनी कंपनी शुरू की थी. बड़े जतन से वह अपने सपने को पूरा करने की कोशिश कर रहे थे. अपने सभी कर्मचारियों को आकाश परिवार के सदस्य की तरह मानते थे. लेकिन अचानक कुछ ऐसा हुआ, जिस ने आकाश के कैरियर और प्रतिष्ठा को बरबाद कर के रख दिया. औफिस की एक महिला कर्मचारी ने आकाश पर बलात्कार का आरोप लगा दिया. दरअसल, वह लड़की आकाश को पसंद करती थी. आकाश के मना करने पर उसे पाने की चाहत में उस लड़की ने यह घिनौना कदम उठाया.

संदेह के आधार पर गिरफ्तारी

कानून के अनुसार, यदि पुलिस को किसी पर शक हो कि उस ने गंभीर अपराध, जैसे कि हत्या, यौन अपराध, दंगाफसाद इत्यादि को अंजाम दिया है तो ऐसे व्यक्ति को केवल शक के आधार पर बिना वारंट के गिरफ्तार किया जा सकता है, क्योंकि इस प्रकार के अपराध में पुलिस द्वारा तुरंत काररवाई करनी जरूरी होती है. इस मामले में पुलिस मजिस्ट्रैट की आज्ञा के बिना ही चार्ज ले सकती है.

इस कानून के तहत पुलिस ने अपना काम जल्दी समाप्त करने के लिए या वास्तविक अपराधी द्वारा मोटी रकम मिलने के कारण निरपराध लोगों को अपराधी घोषित कर के गिरफ्तार करने का कार्य किया है, जो उस के स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का हनन है. बाद में उसे इतनी शारीरिक यंत्रणा दी जाती है कि वह निरपराधी होते हुए भी अपराध कबूल कर लेता है, इस का ज्वलंत उदाहरण है

16 सितंबर, 2017 गुरुग्राम रायन इंटरनैशनल स्कूल में प्रद्युम्न हत्याकांड के कुछ ही घंटे बाद हरियाणा पुलिस ने शक के आधार पर बस कंडक्टर अशोक को आरोपी बना दिया था. उसे हिरासत में इतनी शारीरिक यंत्रणा दी गई कि वह हत्या का जुर्म कबूल करने के लिए मजबूर हो गया. लेकिन कुछ दिनों बाद अशोक ने कहा कि उसे फंसाया जा रहा है. उस ने हत्या नहीं की है. वकील ने भी पुलिस पर अशोक को टौर्चर करने और हिरासत के दौरान नशे के इंजेक्शन देने का दावा किया है.

उधर हरियाणा पुलिस की इस काररवाई पर प्रद्युम्न के घर वालों को भरोसा नहीं था, इसलिए उन्होंने सीबीआई जांच की मांग की. 15 सितंबर को केस सीबीआई को सौंप दिया गया. हत्याकांड के ठीक 2 महीने बाद सीबीआई ने उसी स्कूल में पढ़ने वाले सीनियर छात्र को आरोपी बताया. सीबीआई के मुताबिक, आरोपी छात्र ने एग्जाम और पीटीएम टलवाने के लिए प्रद्युम्न की हत्या की थी.

गनीमत रही कि इस हत्या की जांच सीबीआई के पास चली गई, वरना बेचारा कंडक्टर बेगुनाह हो कर भी जिंदगी भर जेल में सड़ता रहता. उस का परिवार जिल्लत की जिंदगी जीने को मजबूर हो जाता. दूसरी ओर असली आरोपी मजे से स्कूल जाता और फिर ऐसी किसी घटना को अंजाम देता.

यह मामला बहुत गंभीर है. हर मामले में तो सीबीआई जांच होती नहीं. कानून के रखवाले ही बिक जाएंगे तो फिर इंसाफ कहां से मिलेगा? इस में सरकार द्वारा शक के आधार पर गिरफ्तारी कानून पर प्रश्नचिह्न खड़ा होता है. दुख इस बात का है कि ऐसे कितने ही केस होंगे, जिन में पुलिस की गलती या फिर लालच की सजा की कीमत किसी बेगुनाह ने जेल में जिंदगी बिता कर चुकाई होगी. यह कैसा कानून है कि करे कोई और भरे कोई.

न्याय मिलने में विलंब

निरपराधी को संदेह के आधार पर गिरफ्तार कर के कारावास में डाल दिया जाता है, फिर न्याय मिलने में इतना विलंब हो जाता है कि तब तक बेगुनाह व्यक्ति की मानसिक, शारीरिक और आर्थिक स्थिति तहसनहस हो चुकी होती है.

कारावास से निकलने के बाद वह लाखों लोगों के सवालों के घेरे में आ जाता है और सामान्य जीवन जीने में उसे सालों लग जाते हैं. आरुषि हत्याकांड के निरपराधी तलवार दंपति इस का ज्वलंत उदाहरण हैं.

आरुषि हत्याकांड में आरुषि के मातापिता राजेश और नूपुर तलवार को सीबीआई कोर्ट ने 26 नवंबर, 2013 में उम्रकैद की सजा सुनाई थी. इस के बाद से ही वे गाजियाबाद की डासना जेल में बंद थे, लेकिन तलवार दंपति की याचिका पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 12 अक्तूबर, 2017 गुरुवार को 9 साल पुराने आरुषि-हेमराज हत्याकांड में उन्हें निर्दोष बता कर तत्काल रिहा करने का आदेश दे दिया.

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कोर्ट के सामने सीबीआई उन्हें अपराधी साबित नहीं कर पाई. जस्टिस पी.के. नारायण ने फैसला सुनाते हुए कहा, ‘किसी को केवल शक के आधार पर हत्यारा कह देना गलत है. सीबीआई के पास ऐसा कोई ठोस सबूत नहीं है, जिस की वजह से तलवार दंपति की याचिका रद्द की जा सके. इसीलिए उन्हें बरी किया जाता है.

अब सवाल यह उठता है कि यदि तलवार दंपति अपराधी नहीं हैं तो उन्हें न्याय मिलने में विलंब होने के कारण लगभग 4 सालों तक जेल की यातना क्यों सहनी पड़ी? जिस से उन को मानसिक, शारीरिक और आर्थिक यंत्रणा से गुजरना पड़ा. एक तो उन्हें बेटी को खोने का दुख, ऊपर से हत्या का लांछन झेलने के दुख ने उन्हें जीते जी मार दिया.

एक प्रतिष्ठित डाक्टर दंपति बेटी की हत्या के इतने सालों बाद की प्रक्रिया से प्रभावित हो कर दोबारा से पहले जैसा जीवन पुनर्स्थापित कर पाएंगे? सरकार के पास इस का जवाब क्या है?

हमारे देश के अंधे कानून की नीति से जनता का विश्वास उठ गया है, इसीलिए सही अपराधी को सजा देने के लिए बहुत से लोग कानून को हाथों में ले कर स्वयं ही उसे सजा देने पर मजबूर हो जाते हैं. इस पर बहुत सारी फिल्में बनी हैं, लेकिन सरकार के कानों पर जूं तक नहीं रेंगती.

कई बार तो यह देखा गया है कि कई निरपराधी हत्या के झूठे आरोप में उम्रकैद की सजा काटने के बाद जेल से बाहर आ कर असली अपराधी की हत्या कर देता है और कानून से पूछता है कि क्या उसे इस अपराध की दोबारा सजा मिल सकती है?

क्या उस निरपराध को कानून उस की जेल में बीती जिंदगी वापस लौटा सकता है? कानून हमारे मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए बनाए गए हैं, लेकिन जब रक्षक ही भक्षक बन जाएं तो हमारी सुरक्षा की जिम्मेदारी कौन लेगा? आखिर कब इस अंधे कानून का

अंत होगा और निरपराध को सुरक्षा प्रदान होगी? ?

लापता क्रिप्टोकरेंसी की लुटेरी महारानी

बिटकौइन के मुकाबले नई क्रिप्टोकरेंसी वनकौइन इजाद कर धोखाधड़ी करने वाली बुल्गारिया की एक संभ्रांत महिला रुजा इग्नातोवा पर चार बिलियन डालर घोटाले का आरोप है. वह दुनिया भर के दर्जनों देशों के लोगों से लाखों-करोड़ों रुपे, डौलर, यूरो या पौंड की मुद्राओं में पैसे बटोर कर फरार हो चुकी है. डिजिटल जमाने की इस ठगी के शिकार होने वालों में भारतीय भी हैं. अमेरिका समेत भारत की पुलिस को भी उसकी तलाश है.

दिल्ली के कनाट प्लेस इलाके में एक कैंटिन चलाने वाला 25 वर्षीय रामनरेश अप्रैल 2015 में बिहार से आया था. मैट्रिक पास ग्रामीण युवक को उसके ही गांव के जान-पहचान वाले की मदद से कैंटिन में हेल्पर का काम मिल गया था. वह अधिक से अधिक पैसा कमाना चाहता था. इसके लिए  किसी भी तरह का काम करने को इच्छुक था. उसे कोई भी मोटा-महीन काम करने से जरा भी संकोच नहीं था. एक दिन उसे पार्ट टाइम पैसा कमाने के बारे में जानकारी मिली. कैंटिन में अक्सर चाय पीने आने वाले एक युवक ने उसे औनलाइन मल्टी लेवल मार्केटिंग बिजनेस और क्रिप्टोक्वाइन के बारे में समझाया कि कैसे वह उसके जरिए डाॅलर में पैसे कमाकर रातोंरात अमीर बन सकता है. इसके लिए तीन तरह के स्कीमों में 4000, 6000 या फिर 8000 रुपये नगद का भुगतान कर एक मल्टीनेशनल कंपनी के वेबपोर्टल का मेंबर बनना था.

मेंबर बनते ही उसके नाम से खुले आईडी अकाउंट में क्रमशः 50, 75 या 100 डौलर आ जाने वाले थे. वह रकम तब डालर के रुपये में वैल्यू के हिसाब से जमा की गई राशि से कुछ अधिक ही  थी. उसने तुरंत दो मेंबरशिप ले ली. एक अपनी और दूसरी पत्नी के नाम आईडी बना डाले. बदले में उसे जमा की गई रकम के कमीशन के चेक भी मिल गए. उसे कंपनी के हजारों करोड़ डौलर से अधिक मल्टीनेशनल बिजनेस से जुड़े विभिन्न देशों के हजारों लोगों की मोटी आमदनी के बारे बताया गया. साथ ही समय-समय पर महंगी गाड़ियां, बाइक, फ्लैट या इलेक्टाॅनिक गजेट व घरेलू सामानों के उपहार मिलने की भी बात कही गई. यह सब उसके लिए किसी सपने से कम नहीं था. इसे पाने के लिए वह जीतोड़ मेहनत करने से पीछे नहीं हटने वाला था.

वह कंपनी के नियम और शर्तों का पालन करते हुए ज्यादा से ज्यादा लोगों को मेंबर बनाने में जुट गया. हर नए मेंबर से उसे कमीशन की आमदनी होने लगी. वह कमीशन की राशि काटकर कंपनी के पोर्टल पर पैसे जमा कर दिया करता था. कंपनी द्वारा होने वाली उसकी आमदनी का शुरूआती जरिया यही था. अतिरिक्त मोटी आमदनी के लिए तबतक इंतजार करना था, जबतक कि उसके आईडी आकाउंट में 500 डालर जमा नहीं हो जाते. वह बड़ी राशि सीधे उसके बैंक आउंट में ट्रांस्फर होने वाले थे. मेंबरशिप का पैसे जमा करते ही आईडी अकाउंट में 72 घंटे के भीतर आमदनी की राशि जुड़ने लगी. वह उन पैसों का अपने बैंक खाते में ट्रांस्फर होने का इंतजार करने लगा. बताया गया था कि टैक्स कटकर आमदनी की रकम स्वतः उसके खाते में आ जाएगी.

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रामनरेश को आनलाइन काम करने की एक छोटी ट्रेनिंग मिली, लेकिन पोर्टल में दिए गए नियम और शर्तें अंग्रेजी में होने के कारण ठीक से नहीं समझ पाया. इसकी उसने जरूरत भी नहीं समझा और अपने दोस्त की बातों पर भरोसा कर कंपनी का सेल्स एजेंट बन गया. इस काम में दोस्त को सीनियर मानकर उसके बताए तरीके पर मेंबर बनाने लगा.

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कुछ महीने में ही रामनरेश ने 200 से अधिक मेंबर बना लिए. सीनियर से मिली जानकारी के हिसाब से उसकी आईडी के खाते में 500 डालर से अधिक आ जाने चाहिए थे, जो 325 पर आकर ही अटक गया था. इस बारे में उसे सीनियर से पूछने पर मालूम हुआ कि ऐसा उसके द्वारा चेन सिस्टम के पिरामिड रूल को फाॅलो नहीं करने के कारण हुआ.

मल्टी लेवल मार्केटिंग यानी कि एमएलएम के अनुसार उसकी आईडी के दोनों साइड से मेंबर बनने चाहिए थे. उसे बनाए मेंबर पर भी मेंबरशिप के लिए दबाव बनाना चाहिए था. खैर, उसे पोजेटिव बने रहकर मेंबरशिप पर ध्यान देना होगा. फिलहाल उसे कमीशन की ही आमदनी होने वाली है. एक डांट के साथ आश्वासन भी मिला कि उसकी मेहनत बेकार नहीं जाएगी. काफी कम समय में टार्गेट पूरा करने पर वह कंपनी द्वारा दिल्ली के किसी फाईव स्टार होटल में सम्मानित किया जा सकता है. हो सकता है लैपटाॅप, एप्पल का स्मार्टफोन या बाईक गिफ्ट में मिले. वह खुश हो गया और नए जोश के साथ मेंबर बढ़ाने में जुट गया.

करीब डेढ़ साल गुजर गए. अमीर बनने का सपना संजोए रामनरेश के बैंक खाते में न तो एक रुपया ट्रांसफर हुआ, और न ही उसे कोई गिफ्ट मिला. धीरे-धीरे मेंबर बनने भी बंद हो गए. कमीशन की आय तक रूक गई. एक दिन उसे पता चला कि वेबसाइट ही ब्लाॅक हो गई है. उसके जैसे हजारों लोगों के पैसे डूब गए. उस दौरान उसने करीब 10 लाख रुपये कंपनी को दे दिए थे. उसे घर बैठे पार्ट टाइम बिजनेस बताने वाला दोस्त दूसरी कंपनी की मार्केटिंग में लग गया था. हालांकि रामनरेश घाटे में नहीं रहा. उसने भी इस दौरान तीन लाख रुपये के करीब कमाई कर ली थी.

फरीदाबाद के रहने वाले अखिलेश को भी ऐसी ही मार्केटिंग का बेहद कड़वा अनुभव है. उसे बड़ा नुकसान उठाना पड़ा. कंपनी के नाम अलग थे. बदले हुए नियम और शर्तों के मुताबिक मेंबरशिप की राशि के बराबर सोने के सिक्के मिलने थे. उसने अधिक कमीशन पाने के लिए अपने पैसे लगाकर दर्जनों मेंबर बनाए. अपनी चेन पूरी करने की लालच में करीब 15 लाख रुपये कंपनी को दे दिए. बाद में पता चला कि सिक्के असली नहीं थे, बल्कि वर्चुअल करेंसी काॅइन थी. नतीजा उसके हाथ कुछ नहीं आया और पोर्टल की साइट ही बंद हो गई.

देशभर में अखिलेश और रामनरेश जैसे ठगे जाने वालों की फेहरिश्त लंबी है. वे शहरों-महानगरों के अलावा गांव-कस्बे तक हो सकते हैं. सभी ‘कौईन’ को डाॅलर और फिर रुपया में बदलने के चक्कर में अपने और दूसरों के लाखो रुपये गंवा चुके हैं. बाद में पता चला कि उनकी सारी कमाई एक विदेशी महिला ने हड़प ली है. क्रिप्टोकरेंसी की वर्चुअल करेंसी का खेल उसी ने खेला था. इतना ही नहीं उसने ’वनकौइन’ के नाम से फर्जी डिजिटल करेंसी तक इजाद कर ली थी. उसके द्वारा लोगों को डौलर, पौंड, यूरो या रुपे में निवेशकर मोटा मुनाफा कमाने के सपने दिखाए गए थे. उसने विभिन्न देशों में इसके प्रमोटर बना लिए थे, जो वेबपोर्टलों के जरिए एमएलएम के हिस्सेदार थे.

वह महिला है बुल्गारिया की 36 वर्षीया डा. रुजा इग्नातोवा, जो खुद को क्रिप्टोकरेंसी की महारानी कहा करती थीं. उसने लोगों को यह कहकर धोखा दिया था कि उन्होंने डिजिटल करेंसी या कहें वर्चुअल करेंसी ‘बिटकौइन’ के मुकाबले वनकौइन के नाम से एक नई क्रिप्टोकरेंसी ईजाद की है. यही नहीं, उसने लोगों को इस करेंसी में लाखों करोड़ों डाॅलर और यूरो करेंसी निवेश करने के लिए भी राजी कर लिया था. फिर अचानक गायब हो गईं. उसे अंतिम बार एक सार्वजनिक कार्यक्रम के दौरान मई 2017 में देखा गया था.

रुजा ने फर्जी डिजिटल करेंसी बनाकर ये काम आखिर किया कैसे? वह अचानक कहां गायब हो गई? इन दिनों कहां छिपी है? ये सवाल किसी गहरे रहस्य से कम नहीं हैं. उसे तलाशने की कोशिश विदेशी मीडिया के अलावा कई देशों की पुलिस भी कर रही है. यहां तक कि भारतीय पुलिस भी उसे पोंजी स्कीम चलाने के अपराध का अभियुक्त बना चुकी है. उसके खिलाफ आरोप पत्र तैयार किया गया है. उसपर 11 जुलाई 2017 से ही डिजिटल मुद्रा निवेश योजना की धोखाधड़ी का आरोप लगा हुआ है. नवी मुंबई पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा द्वारा लगाई गई चार्जशीट में वनकाॅइन से जुड़े दर्जनों प्रमोटर शामिल हैं. पुलिस उनपर नकेल कसने की कोशिश में है. यह पहल तब हुई थी जब मुंबई पुलिस ने अप्रैल 2017 में एक प्रमोशन प्रोग्राम के दौरान ऐसे ही एक ग्रुप को गिरफ्तार किया था.

भारत दुनिया भर के कई देशों में से एक है, जिसमें कानून प्रवर्तक एजेंसियां वनकॅाइन के खिलाफ जांच में जुटी है. आरोपी रुजा को सार्वजनिक तौर पर मकाऊ में देखा गया था. तब वहां उसका भव्य जन्म दिन मनाया गया था. मुंबई पुलिस इस मामले में जांच के परिणाम स्वरूप करीब 30 लोगों को आरोपी बना चुकी है. हालांकि जांचकर्ताओं को इसमें शामिल कुछ लोगों के साथ धोखाधड़ी के बारे में बात करने में मुश्किल आ रही है. कारण सभी पोंजी स्कीम के तहत आते हैं. एक सीनियर कानून प्रवर्तक अधिकारी के अनुसार इस तरह की स्कीम में निवेशक अपराधियों के साथ-साथ पीड़ित भी बन जाते हैं. इसलिए उनपर कार्रवाई करना आसान नहीं होता है.

क्रिप्टोकरेंसी की महारानी रुजा का जाल

बात जून 2016 के शुरुआती दिनों की है. एक बिजनेस वुमन डॉक्टर रुजा इग्नातोवा लंदन के मशहूर वेम्बली अरेना में अपने हजारों चाहने वालों के सामने स्टेज पर नमूदार हुई थी. तब लोग उसकी खूबसूरती और लटके-झटके को हसरत भरी निगाहों से देखते ही रह गए. उसने हमेशा की तरह महंगा बॉलगाउन पहन रखा था. कानों में हीरे के लंबे-लंबे झूलते हुए झुमके चमक बिखेर रहे थे. होठों पर चटख सुर्ख लिपस्टिक लगी थी. इस लुक में उसकी उम्र का अंदाजा लगाना सहज नहीं था कि वह 36 साल की है. उसकी एक-एक चाल, बोलने की शैली और अदाओं से संभ्रांतता झलक रही थी.   वह पूरे जोश में थी. हाथ में माइक थामे स्टेज पर झूमती हुई अपने चाहने वालों को रुजा ने इस आयोजन का खास मकसद बताया था. उसने छोटे से अभिभाषण में वनकाॅइन की खूबियां गिनावाते हुए कहा था कि उसने एक ऐसी डिजिटल करेंसी इजाद की है, जो बहुत जल्द ही दुनिया की सबसे बड़ी क्रिप्टोकरेंसी बनने वाली है. आने वाले दिनों में सारी दुनिया में हर कोई इसी वर्चुअल करेंसी के सहारे पैसे का भुगतान करेगा. औनलाइन ट्रांजेक्शन में वहकाॅइन का ही सिक्का चलेगा, क्योंकि यह काफी सुरक्षित और आसानी से इस्तेमाल की जाने वाली करेंसी है.

उपस्थित लोग उसकी बातों पर आखिर क्यों नहीं भरोसा करते? उसने दावे के साथ कहा था कि भले ही दुनिया की पहली क्रिप्टोकरेंसी बिटकॉइन भले ही आज सबसे ज्यादा जानी-पहचानी जाती हो, लेकिन अब इससे अच्छी नई करेंसी वनकाॅइन आ गई है. इसके आगे बिटकाॅइन नहीं टिकने वाली है. रुजा ने समझाया था कि वनकौइन, बिटकौइन की खामियों को खत्म करने वाली अद्भुत डिजिटल करेंसी है. आने वाले दिनों में कोई भी बिटकौइन का जिक्र तक नहीं करेगा. इसका प्रमाण है कि दुनिया भर में लोग वनकॉइन को एक नई क्रांति मान कर इसमें पैसा लगा रहे थे.

इस लुभावने दावे का जबरदस्त असर हुआ. रुजा की सभी तरह की मीडिया में जबरदस्त तारीफ हुई. उसने जैसा चाहा था वैसा ही परिणाम आया. इस बारे में बीबीसी को मिले दस्तावेजों के मुताबिक 2016 के पहले छह महीने में ही ब्रिटेन के नागरिकों ने वनकौइन में करीब 3 करोड़ यूरो का निवेश कर दिया था. इसमें 20 लाख यूरो तो महज एक हफ्ते में ही निवेश किए जा चुके थे. रुजा ने वनकौइन को लेकर वेम्बले में हुए भव्य कार्यक्रम के बाद तो जैसे निवेश के लिए लोगों को एक तरह से राजी करते हुए जाल बिछाकर दाना डाल दिया था.

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प्राप्त जानकारी के अनुसार अगस्त 2014 से मार्च 2017 के बीच दुनिया भर के कई देशों से करीब चार अरब यूरो का निवेश वनकौइन में किया गया था. इसमें भारत, पाकिस्तान, नेपाल, बांग्ला देश और ब्राजील, दक्षिण अफ्रीकी देशों से लेकर हौन्गकौन्ग, नौर्वे, क्यूबा, यमन यहां तक कि फिलस्तीन जैसे देशों के नागरिक भी शामिल थे. हैरत की बात यह थी कि वनकॉइन में धड़ाधड़ निवेश कर रहे लोग इससे की जा रही धोखाधड़ी से अनभिज्ञ थे.

बिटकौइन बनाम वनकौइन 

कुछ लोग काफी समय से एक ऐसी करेंसी विकिसत करने की कोशिश में लगे थेे, जिस पर किसी सरकार की पाबंदी नहीं हो. इसी सिलसिले में डिजिटल करेंसी बिटकाॅइन इजाद किया गया. इसे सुरक्षित होने और इसमें किसी भी तरह की जालसाजी की संभावना नहीं पाए जाने के प्रति लोगों को आश्वस्त किया गया. टेक्नोलौजी के जमाने में एक खास तरह के डेटाबेस पर आधारित बिटकौइन ने लोगों के इस डर को खत्म कर दिया था.

करेंसी की दुनिया में तकनीकी तौर पर इसे ब्लौकचेन कहते हैं. ये एक बड़ी सी डायरी की तरह होता है. एक ब्लौकचेन उसके मालिक के पास होता है, लेकिन इससे अलग इस ब्लॉकचेन की कई कौपी होती हैं. हर बार जब भी किसी और को एक भी बिटकौइन भेजा जाता है, तो इसका लेखा-जोखा सभी बिटकॉइन मालिकों के पास मौजूद बिटकौइन रिकौर्ड बुक में दर्ज हो जाता है. इस रिकौर्ड में कोई भी किसी भी तरह का बदलाव नहीं कर सकता. यहां तक कि इस ब्लौकचेन का मालिक या फिर इस रिकॉर्ड बुक को तैयार करने वाला भी इसमें कोई बदलाव नहीं कर सकता.

इसके पीछे जटिल गणित काम करता है, जिसे हर कोई आसानी से नहीं समझ सकता है. इस कारण इसे पूरी तरह से सुरक्षित समझना एक भूल हो सकती है. इसकी खामियां भी है. इसकी न केवल कौपी हो सकती है, बल्कि इसे हैक भी किया जा सकता है. या फिर इनका दो बार इस्तेमाल तक हो सकता है. इन खामियों के बावजूद कारोबार की दुनिया में बिटकौइन एक तरह की क्रांतिकारी डिजिटल करेंसी मानी गई, जिसके इस्तेमाल की मान्यता भारत में भी है. हालांकि इसे प्रतिबंधित कर दिया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने 4 मार्च को इसके इस्तेमाल की कानूनी मान्यता दे दी है. इस तहर के क्रिप्टोकरेंसी में तमाम बैंकों और राष्ट्रीय मुद्रा को पीछे छोड़ने की क्षमता के कारण इसकी बदौलत निवेशकों को फोन पर ही बैंकिंग की सुविधा मिलने लगी. कारोबारियों को किसी भी करेंसी में पैसे के  लेन-देन की सहुलियत मिल गई. इस पंक्ति के लिखे जाने तक एक बिटकौइन की कीमत 5,11,272 रुपया थी. डा. रुजा ने इसी मौके को भुनाने का मन बनाया था और लोगों को सपने बेचने की योजना बना डाली.

इसके लिए रुजा की कंपनी को एक ऐसे शख्स की तलाश थी, जो ब्लौकचेन तैयार कर सके. उनकी कंपनी ने ब्लौकचेन बनाने में माहिर एक साफ्टवेयर डेवलपर ब्योन बियर्क से संपर्क किया. अक्टूबर 2016 में बियर्क के पास एक फोन आया. फोन करने वाले ने इन्हें नौकरी की पेशकश की. इस ऑफर में बियर्क को रहने के लिए घर, कार और सालाना ढाई लाख पौंड की तनख्वाह का प्रस्ताव दिया गया. फोन करने वाले ने अपनी कंपनी के बारे में बताया कि ये पूर्वी यूरोपीय देश बुल्गारिया की एक क्रिप्टोकरेंसी स्टार्ट-अप है. कंपनी को एक तजुर्बेकार टेक्निकल चीफ की जरूरत है.

ब्योर्न बियर्क उस नौकरी की पेशकश करने वाले से जब पूछा कि कंपनी में उसका काम क्या होगा, तब जवाब मिला कि कंपनी के लिए ब्कौचेन तैयार करनी है. कपंनी के कार्य के बारे में बताया गया कि वह एक क्रिप्टोकरेंसी कंपनी है, जो पिछले कुछ ही समय से काम कर रही है. कंपनी का नाम वनकॉइन बताया गया. यह सुनते ही ब्योर्न बियर्क ने नौकरी की ये पेशकश ठुकरा दी.

उन्हीं दिनों गलास्गो की रहने वाली जेन मेकएडम को उसके एक दोस्त ने वनकाॅइन के बारे में बताया. जेन ने अपना कंप्यूटर ऑन किया और दोस्त द्वारा भेजे गए एक लिंक पर क्लिक कर वनकौइन के औनलाइन वेबिनार सेमिनार को देखा. करीब सवा घंटे के वीडियो में उसने क्रिप्टोकरेंसी के बारे में जाना. साथ ही वह डा. रुजा के व्यक्तित्व से काफी प्रभावित हो गई. उसने महसूस किया कि उसकी भी किस्मत बदल सकती है. सेमिनार में सभी लोग बहुत खुश थे. सभी अपने अनुभव सुनाते हुए एक ही बात बता रहे थे कि कैसे उनकी किस्मत बदल सकती है. वीडियो में यह भी कहा गया कि वह बहुत खुशकिस्मत हैं कि उसे इससे जुड़ने का अवसर मिला है.

औनलाइन सेमिनार में डा. रुजा के बारे में जबरदस्त तरीके से बताया गया था. रुजा ने औक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की थी. उन्होंने कोन्सतान्ज से पीएच-डी की डिग्री हासिल की थी. उन्होंने मैकिन्से एंड कंपनी में मैनेजमेंट सलाहकार के तौर पर काम भी किया था. सबसे बड़ी बात यह थी कि इस सेमिनार को जानी-मानी पत्रिका दी इकॉनोमिस्ट द्वारा आयोजित किया गया था, जिसमें  डॉ. रुजा को कंफ्रेंस के जरिए ऑनलाइन दिखाया गया था.

वीडियो देखने के बाद जेन डॉ.रुजा के सशक्त महिला के किरदार से बेहद प्रभावित हो गई थी. यहां तक कि उसने तुरंत वनकॉइन में एक हजार यूरो निवेश करने का फैसला भी कर लिया था. ये बहुत ही आसान था. इसके लिए आॅनलाइन एक वनकॉइन टोकन खरीदने की जरूरत थी, जो  वनकॉइन करेंसी में बदल जाएगा और आईडी अकाउंट में आ जाएगा. उन्हें बताया गया कि एक दिन ऐसा आएगा जब जेन अपने खरीदे गए वनकॉइन को यूरो और पाउंड में तब्दील कर देगी, जो जमा की गई रकम से कहीं ज्यादा होगी. जेन मैकएडम को लगा कि ये तो पैसे कमाने का शानदार और आसान तरीका है. इस बेहतरीन क्रिप्टोकरेंसी में निवेश के लिए शायद एक हजार यूरो कम हैं. यह उसकी जिंदगी में काफी बदलाव लाने का मौका मिला है.

उत्साही जेन को देख कर प्रमोटर ने बताया कि सबसे छोटा पैकेज 140 यूरो का था. लेकिन, उनके पास तो एक लाख 18 हजार यूरो तक के पैकेज भी हैं. यानी वह छप्परफाड़ मुनाफा कमा सकती है. एक हफ्ते बाद ही जेन मैकएडम ने पांच हजार यूरो का टाइकून पैकेज खरीद लिया. जल्द ही ऐसा समय भी आया जब जेन ने न केवल अपने दस हजार यूरो वनकॉइन में लगा ही दिए, बल्कि अपने दोस्तों और परिवार के सदस्यों के भी करीब ढाई लाख यूरो का निवेश इस नई क्रिप्टोकरेंसी में कर दिया था.

उसके बाद वह बार-बार वनकॉइन की वेबसाइट देखने लगी. जैसे ही उनके वनकाॅइन की कीमत बढ़ती, वह जबरदस्त खुशी महसूस करती. जल्द ही जेन के वनकॉइन की कीमत एक लाख पाउंड पहुंच गई. यानी उनके निवेश से दस गुना ज्यादा रिटर्न मिलने वाला था. इस रकम को देख कर जेन छुट्टियों पर जाने और ढेरसारी शॉपिंग करने की योजनाएं बनाई. उसी साल के आखिर में एक अजनबी ने इंटरनेट के माध्यम से जेन मैकएडम से संपर्क किया. उसने कहा कि वह लोगों की मदद करना चाहता है. उसने जेन से यह भी कहा कि उसने वनकॉइन के बारे में गहराई से पड़ताल की है और अब उनलोगों से बात करना चाहता है, जिन्होंने  इसमें निवेश किया है.

जेन ने बड़ी अनिच्छा से उस व्यक्ति से स्काइप के जरिए बात करने के लिए हामी भरी. उनकी बातचीत सहजता और शांतिपूर्ण ढंग से शुरू हुई, लेकिन बहुत जल्द ही वे एक-दूसरे पर तीखी टिप्पणियां करने लगे, जो चिल्लाने के मुकाबले से कम नहीं थे. हालांकि उस अजनबी से हुई बातचीत ने जेन की जिंदगी को एक नई दिशा में मोड़ दिया. अजनबी का नाम टिमोथी करी था. वह बिटकॉइन में दिलचस्पी रखने वाला व्यक्ति था. वह क्रिप्टोकरेंसी की जमकर वकालत करता था. उसका कहना था कि वनकॉइन की वजह से क्रिप्टोकरेंसी बदनाम हो जाएंगी. यही कारण था कि उसने जेन मैकएडम को दो टूक शब्दों में कहा था कि वनकॉइन असल में एक घोटाला है. उसने काफी कड़े शब्दों में गाली देते हुए कहा था कि यह दुनिया का सबसे बड़ा घोटाला है. यही नहीं उसने ये भी कहा कि वह इस बात को साबित भी कर सकता है. इस पर जेन भड़क गई थी और उन्होंने तीखे लहजे में कहा,‘‘ ठीक है, फिर तुम मुझे साबित कर के दिखाओ.’’

उसके बाद कुछ हफ्तों तक टिमोथी करी ने जेन को डिजिटल करेंसी के बारे में ढेर सारी जानकारियां भेजी. उन्हें बताया कि क्रिप्टोकरेंसी कैसे काम करती है. टिमोथी ने इस संबंध में जेन को कई लिंक, लेख, यू-ट्यूब वीडियो और दूसरी सामग्री भेजे. टिमोथी ने जेन का संपर्क क्रिप्टोकरेंसी के एक्सपर्ट ब्योर्न बियर्क से कराया. ब्योर्न एक ब्लॉकचेन के डेवेलपर हैं. उन्होंने ही जेन को बताया कि वनकॉइन के पास कोई ब्लॉकचेन नहीं है.

जेन मैकएडम अब अपने पैसे डूबने की आशंका से डर गई थी. उन्हें टिमोथी की भेजी सारी जानकारी पढ़ने-सुनने और समझने में करीब तीन महीने का समय लग गया. क्रिप्टोकरेंसी की तमाम जानकारियां मिलने के बाद जेन ने अपने वनकॉइन ग्रुप के लीडर से पूछा कि क्या वनकाॅइन की कोई ब्लॉकचेन है? या फिर नहीं है. शुरू में तो उसे ये बताया गया कि उसे इस बारे में जानने की जरूरत ही नहीं है, लेकिन, जब जेन ने जोर देकर ये बात जाननी चाही, तो उसे आखिर में इसकी हकीकत का पता चला. इस सच के बारे में जेन को अप्रैल 2017 में एक वॉयसमेल के जरिए मालूम हुआ. वह वाॅयस मेल था-‘‘ ठीक है… जेन! वे ये जानकारी लोगों को नहीं देना चाहते, क्योंकि इस बात का डर है कि जहां पर ब्लॉकचेन को रखा गया है, उसे कोई खतरा नहीं हो. इसके अलावा, एक एप्लिकेशन के तौर पर इसे किसी सर्वर की जरूरत नहीं है…. … तो, हमारी ब्लॉकचेन तकनीक असल में एक एसक्यूएल सर्वर है, जिसका अपना डेटाबेस है.’’

इस जानकारी के मिलने पर जेन को टिमोथी और ब्योर्न बियर्क की मदद से यह भी मालूम हुआ कि कोई मानक एसक्यूएल सर्वर डेटाबेस के आधार पर असल में कोई क्रिप्टोकरेंसी विकसित ही नहीं की जा सकती. क्योंकि इस डेटाबेस का मैनेजर कभी भी इसके भीतर जाकर बदलाव कर सकता है. यह जानकारी जेन के लिए सदमे जैसी थी. उन्होंने बताया कि ‘‘मैंने तो ऐसा सोचा ही नहीं था. ये क्या हो गया?… और मेरे पांव सुन्न हो गए. मैं जमीन पर गिर पड़ी.’’

जेन, टिमोथी और ब्योर्न की सभी बातों का एक ही मतलब था कि वनकॉइन की वेबसाइट पर बढ़ रहे नंबरों का कोई मतलब नहीं था. वे केवल आंकड़े भर थे, जिन्हें वनकॉइन का कोई कर्मचारी कहीं दूर बैठकर कंप्यूटर पर टाइप कर रहा था. जेन और उन के दोस्तों, परिजनों ने अपनी पैसे की फिक्र को दूर करने के बजाय, अपनी सारी रकम, यानी करीब ढाई लाख यूरो वनकॉइन में झोंक दिए थे.

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लापता हो गई रुजा

जेन मैकएडम भले ही वनकाॅइन के जरिए ठगी की कड़वी सच्चाई को जान चुकी थी, लेकिन वनकॉइन के अधिकतर निवेशकों को इसकी हकीकत के बारे में नहीं मालूम था. दूसरी तरफ वनकॉइन की मार्केटिंग के लिए डॉ. रुजा पूरी दुनिया की सैर कर रही थीं. वह पूरी दुनिया में सपने बेचकर पैसा कमाने में लगी हुई थी. मकाऊ से लेकर दुबई और सिंगापुर तक. उन्हें देखने के लिए बड़े-बड़े स्टेडियम भर जाते थे. उसका आकर्षण ही ऐसा था कि नए-नए निवेशक वनकॉइन में पैसे लगाने के लिए तुरंत तैयार हो जाते थे. यह कहें कि वनकॉइन का तेजी से विस्तार हो रहा था. रुजा अपनी इस कमाई से नई-नई संपत्तियां खरीद रही थी. उन्होंने बुल्गारिया की राजधानी सोफिया और काला सागर के किनारे स्थित शहर सोजोपोल में लाखों डॉलर की संपत्ति खरीदी थी. अपने खाली समय में में रुजा अपनी महंगी और आलीशान याट, द डेविना में बड़ी-बड़ी दावतें देती थीं. जुलाई 2017 में हुई ऐसी ही एक पार्टी में अमरीकी पॉप स्टार बेब रेक्चा ने भी एक निजी कार्यक्रम पेश किया था.

रुजा की बेहद कामयाबी का राज जल्द ही लोगों की निगाह में आ गया. हजारों निवेशकों को उसके द्वारा किए गए निवेश को लेकर चिंता गहराने लगी. नतीजा वनकॉइन के साम्राज्य में मुश्किलों का तूफान उमड़ने लगा. वनकॉइन के क्वाइन को असली नकदी में बदलने के लिए एक एक्सचेंज खोलने का वादा किया गया था. लेकिन, उसमें बार-बार देर हो रही थी. यूरोपीय निवेशकों की चिंताएं बढ़ने का यही कारण भी था.

पुर्तगाल की राजधानी लिस्बन में रुजा को अक्टूबर 2017 में एक कार्यक्रम में आना था. लेकिन, समय की बेहद पाबंद डॉ. रुजा नहीं आईं. इस सम्मेलन में शामिल हुए एक प्रतिनिधि ने बताया कि वह रास्ते में हैं. जबकि किसी को भी उसके बारे नहीं पता था कि वह कहां है. आयोजक और दूसरे प्रतिनिधियों द्वारा उसे बार-बार फोन कॉल किए जा रहे थे. मैसेज भेजे जा रहे थे. उन्हें कोई जवाब नहीं मिल पा रहा था. सोफिया स्थित वनकॉइन के मुख्यालय , जहां पर उनकी मौजूदगी लोगों में एक खौफ पैदा करती थी, के अधिकारियों को भी नहीं पता था कि रुजा कहां हैं? कुल मिलाकर डॉ. रुजा गायब हो गई थीं. कुछ लोगों को ये डर था कि या तो रुजा को बैंकों ने अगवा कर लिया है, या फिर उसे मार दिया गया है. उन्हें बताया गया था कि क्रिप्टोकरेंसी की इस क्रांति से बैंकों को ही सब से ज्यादा खतरा है. जबकि हकीकत ये थी कि डॉ. रुजा अंडरग्राउंड हो गई थीं.

डा.रुजा के अंडरग्राउंड होने की वजह थी उसके खिलाफ एफबीआई को मिली शिकायतें. एफबीआई के दस्तावेजों के अनुसार लिस्बन के सम्मेलन में नहीं शामिल होने के मात्र दो हफ्ते बाद रुजा रियान एयर की एक फ्लाइट से सोफिया से एथेंस के लिए रवाना हुई थी. उसके बाद उसके बारे में कोई जानकारी नहीं मिली. वह आखिरी बार था, जब रुजा को किसी ने देखा या उसके बारे में सुना था.

मल्टी लेवल मार्केटिंग की काली दुनिया

यह सारा मामला मल्टी लेवल मार्केटिंग की काली दुनिया से जुड़ा हुआ है. इंटरनेट के आने से इसका फैलाव काफी दूर-दूर तक हो चुका है. नेटवर्किंग और टेक्नोलाॅजी ने सारी बाध्यताएं खत्म कर दी है. जेना की तरह इगोर अल्बर्ट्स भी वनकाॅइन से जुड़े रहे हैं. वे मल्टी लेवल मार्केटिंग के धुरंधर माने जाते हैं. इस धंधे में उसने काफी धन कमाया है. वे नीदरलैंड के एम्सटर्डम के बाहरी हिस्से में स्थित बेहद पॉश इलाके में एक विशाल मकान में रहते हैं. उनकी कोठी के सामने 10 फुट ऊंचा लोहे का फाटक लगा है. इस पर इगोर और उनकी पत्नी एंड्रिया का नाम खुदा हुआ है. साथ ही लिखा है, ‘पता नहीं कौन सा ख्वाब पूरा हो.’ कोठी के बाहर महंगी कारें मासेराती और एस्टन मार्टिन खड़ी रहती है. यह सब उसने मल्टी लेवल मार्केटिंग से ही अर्जित की है. एक समय में इगोर अल्बर्ट्स की परवरिश एक गरीब मुहल्ले में हुई थी. उस के बाद वे नेटवर्क मार्केटिंग या मल्टीलेवल मार्केटिंग के कारोबार से जुडकर खूब कमाई की. ढेर सारे पैसे कमाए. उसका दावा है कि उसने पिछले तीस सालों में मल्टी लेवल मार्केटिंग से करीब 10 करोड़ यूरो कमाए हैं.

मल्टी लेवल मार्केटिंग के काम करने का तरीका अनोखा है, जिसे गैरकानूनी करार नहीं दिया जा सका है. इसकी शुरूआत सामान्यतः हेल्थ-वेल्थ सुधारने वाली विटामिन या दूसरी हर्बल की दवाइयों से हुई. उसे सीधे बेचने के बजाय पहले दो लोगों को बेची जाती है. बिक्री से मार्केटिंग कंपनी और उत्पादक को मुनाफे के कुछ पैसे मिल जाते हैं. फिर दोनों व्यक्ति मार्केटिंग की चेन बनते हैं. वे जो भी बेचते हैं, उसका एक हिस्सा कंपनी को मिल जाता है. वे टीम की डाउनलाइन कहलाते हैं. इसी तरह से दोनों दो-दो और लोगों को अपने साथ जोड़ते हैं. फिर ये चारों भी अपने साथ दो-दो और लोगों को जोड़ लेते हैं. इस तरह से ये कड़ी बढ़ती चली जाती है. बहुत जल्द ही ये सिलसिला काफी बड़ा बन जाता है. उदाहरण के तौर पर वह इतना बड़ा बन सकता है कि 25-30 कड़ियों बाद दिल्ली जैसे महानगर के हजारों नागरिक दवाई की गोलियां बेचते नजर आ सकते हंै. इस सिलसिला या डाउनलाइन को शुरू करने वाले को सभी की बिक्री में से एक हिस्सा मिलता रहता है.

मल्टी लेवल मार्केटिंग अवैध नहीं मान गई है. इस धंधे में एमवे और हर्बालाइफ जैसी बड़ी कंपनियां इसी कारोबारी तरीके से अपने कारोबार का विस्तार कर चुकी है. परंतु हां, मल्टीलेवल मार्केटिंग विवादास्पद भी है. क्योंकि, आम-तौर पर बहुत कम लोग ही सारा मुनाफा हड़प लेते हैं. बहुतों को नुकसान होता है और वे हाथ मलते रह जाते हैं. ऐसी मार्केटिंग में मुनाफे के बड़े-बड़े वादे किए जाते हैं और अधिकाधिक बिक्री का दबाव बनाया जाता है. यही इसकी बदनाम का कारण भी है. कई मामले में जब सारा पैसा केवल दूसरे लोगों को इस कड़ी से जोड़ कर ही कमाया जाता है, तो ये अवैध हो जाता है. इसे ही पिरामिड योजना के नाम से जाना जाता है.

इगोर अल्बट्र्स जब मई 2015 में ऐसी ही एक मार्केटिंग के तौर स्थापित हो चुके थे, तब उन्हें दुबई में वनकॉइन के एक कार्यक्रम में आमंत्रित किया गया था. दुबई में इगोर की मुलाकात काफी  लोगों से हुई थी. सभी नई डिजिटल करेंसी से काफी धन कमाने का इरादा रखते थे. वहीं डॉ. रुजा ने भी इगोर को प्रभावित किया. वहां वह एक राजकुमारी के लिबास में शामिल हुई थीं. उन्होंने लोगों को एक वित्तीय क्रांति के सपने दिखाए. इगोर को रुजा की स्कीम पसंद आई और नए मिशन की तैयारी में जुट गया. उन्होंने अपनी सेल्स टीम को निर्देश दिया कि उसके द्वारा किए जा रहे काम को रोककर केवल वनकॉइन बेचना शुरू करे. इगोर अपनी टीमों के साथ दीवानों की तरह काम करते हुए पहले महीने में ही शून्य से 90 हजार यूरो की रकम बना ली.

रुजा को इगोर जैसे मार्केटिंग करने वालों की ही तलाश रहती थी, ताकि उसे बड़ी-बड़ी डाउनलाइन या टीमों वाले मल्टीलेवल मार्केटिंग के कारोबारियों को अपने धंधे में शामिल कर सके.   उनके जरिए रुजा के लिए फर्जी सिक्के की मार्केटिंग करना और उसको बेच पाना बहुत आसान था. इस योजना के बारे में एफबीआई ने दावा किया है कि रुजा कुछ खास लोगों के बीच ही मल्टी लेवल मार्केटिंग से गठजोड़ करती थी. उसकी वनकॉइन की कामयाबी का यही राज था. ये केवल एक फर्जी क्रिप्टोकरेंसी भर नहीं थी, बल्कि पुराने तौर-तरीके वाली पिरामिड योजना थी. इसका उत्पाद   वनकॉइन का फर्जी डिजिटल सिक्का था.

बहुत जल्द ही इगोर अल्बर्ट्स वनकॉइन बेचकर हर महीने दस लाख यूरो से भी अधिक कमाई करने लगा. जल्द ही वह नेटवर्क मार्केटिंग का सबसे बड़ा उत्पाद बन गया. इस बारे में इगोर अल्बर्ट्स  का कहना है कि बहुत कम समय में यह लोकप्रिय हो गया. कोई और कंपनी तो इसके आस-पास भी नहीं पहुंच सकी. इगोर अल्बर्ट्स पत्नी एंड्रिया सिम्बाला के साथ मिलकर वनकॉइन बेचे. उन्होंने जो कमाई की उसका 60 फीसद हिस्सा नकद में भुगतान किया गया. अंतिम दिनों में ये रकम हर महीने करीब बीस लाख यूरो के आस-पास थी. बाकी का भुगतान उन्हें वनकॉइन के तौर पर किया जा रहा था. इगोर ने बिल गेट्स से भी धनी बनने का गणित बिठाया था. इसके लिए उसने एंड्रिया से 10 करोड़ सिक्के जुटाने के लिए कहा था. क्योंकि 10 करोड़ सिक्के 10 करोड़ यूरो में तब्दील होने वाले थे. खैर इगोर का भी यह सपना जेना की तरह चूर हो गया.

इगोर ने भी कंपनी से ब्लॉकचेन होने का सबूत मांगा था. उन्हें भी कोई सबूत मिला और दिसंबर 2017 में उसने वनकॉइन का साथ छोड़ दिया. इस मामले में इगोर खुद को मुजरिम नहीं मानता, क्योंकि उन्होंने इतने सारे लोगों को ऐसे सिक्के में निवेश करने के लिए राजी किया, जो असल में था ही नहीं. जबकि इसके जरिए खूब पैसा भी कमाया. इसके विपरीत  जेन के दिल पर बहुत बड़ा बोझ है, क्योंकि उन्होंने वनकॉइन बेच कर मात्र तीन हजार यूरो ही कमाए. इनमे 1800 यूरो उन्हें नकद मिले. इस रकम को भी उन्होंने वनकॉइन खरीदने में खर्च कर दिए. भारत में ऐसी मार्केटिंग करने वालों को तो पता ही नहीं होता है कि उसका सरगना कौन है. वे इगोर या उसके नीचे काम करने वाले सेल्स के लोगों से जुड़े होते हैं. उनकी वेबसाइटें खुलती-बंद होती रहती हैं. लोग जितना कमाते हैं उतना ही दूसरों का पैसा गंवा देते हैं.

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वनकाॅइन की कार्पोरेट बुनावट

वनकॉइन की कॉरपोरेट बुनावट जितनी पेचीदा थी, रुजा उतनी ही निर्भिक. उसने बुल्गारिया की राजधानी सोफिया के बीचो-बीच एक विशाल संपत्ति खरीदी थी. तकनीकी रूप से इस संपत्ति पर वन प्रॉपर्टी नाम की कंपनी का मालिकाना हक था. वन प्रॉपर्टी की मालिक एक और कंपनी थी, जिसका नाम रिस्क लिमिटेड था. इस रिस्क लिमिटेड की मालकिन रुजा थीं. जबकि उन्होंने ये कंपनी पनामा के रहने वाले किसी गुमनाम व्यक्ति के नाम कर दी थी. मजे की बात ये है कि कंपनी तो पनामा के उस अनजान शख्स के नाम हो गई, मगर इसका प्रबंधन पेरागॉन नाम की कंपनी के पास था. पेरागॉन की मालकिन एक और कंपनी थी, जिसका नाम था आर्टेफिक्स. उसकी मालकिन रुजा की मां वेस्का थीं. फिर 2017 में आर्टेफिक्स को 20 साल के आस-पास की उम्र के एक अनजान शख्स को बेच दिया गया था. एक फ्रेंच पत्रकार मैक्सिम ग्रिम्बर्ट ने कई महीनों तक वनकॉइन की कॉरपोरेट संरचना को समझने की कोशिश की. उन्होंने इससे जुड़ी अधिक से अधिक कंपनियों के नाम और बैंक के खातों का पता लगाने की कोशिश की. रुजा के आसानी से छिप जाने या लापता होने के लिए इतना ही काफी है. इस मामले की तह में जाने के प्रयास में जुटे बीबीसी के पत्रकार और मनीलैंड के विशेषज्ञों के अनुसार अक्सर ऐसे फर्जीवाड़े करने वाले ब्रितानी कंपनियों को ही तरजीह देते हैं. क्योंकि उन्हें खड़ी करना आसान होता है और वो कानूनी रूप से वैध भी लगती हैं.

बहरहाल, अमेरिका के डिपार्टमेंट ऑफ जस्टिस का दावा है कि उसके पास इस घोटाले का पूर्वी यूरोप के संगठित आपराधिक गिरोहों के अहम लोगों और रुजा के भाई कॉन्सटैंटिन इग्नातोव से ताल्लुक के सबूत हैं. रुजा के लापता होने के बाद वनकॉइन को चलाने का काम उसके भाई कॉन्सटैंटिन ने अपने हाथ में ले लिया था. कॉन्सटैंटिंन इग्नातोव 6 मार्च 2019 को वनकाॅइन से जुड़ी कुछ बैठकों में शामिल होने के लिए अमेरिका आया था. उस दिन वह लॉस एंजेलेस हवाई अड्डे पर मौजूद था. हवाई अड्डे पर बुल्गारिया वापस जाने की फ्लाइट पकड़ने का इंतजार कर रहा था. उसके विमान पर सवार होने से पहले ही एफबीआई के एजेंटों ने उसे अपनी गिरफ्त में ले लिया. उसपर वनकॉइन के फर्जीवाड़े के आरोप लगाए गए. उसी समय अमरीकी अधिकारियों ने डॉक्टर रुजा पर उन की गैरमौजूदगी में डिजिटल फर्जीवाड़े, सुरक्षा के फर्जीवाड़े और मनी लॉन्डरिंग के अभियोग भी लगाए. हैरत की बात यह है कि रुजा के भाई की गिरफ्तारी और उसके फरार घोषित होने के बावजूद वनकॉइन के काम का सिलसिला जारी है. वनकॉइन के दफ्तर में चहल-पहल बनी हुई है.

Best of Manohar Kahaniya: हवस की खातिर मिटा दिया सिंदूर

ढेलाणा गांव के बहुचर्चित संतोष हत्याकांड की अदालत में करीब 2 साल तक चली सुनवाई के बाद  माननीय न्यायाधीश ने 10 जुलाई, 2017 को फैसला सुनाने का दिन मुकर्रर कर दिया. लिहाजा उस दिन जोधपुर के अपर सेशन न्यायाधीश नरेंद्र सिंह मालावत की अदालत दर्शकों से खचाखच भरी हुई थी.

जज साहब के अदालत में बैठने के बाद लोग आपस में कानाफूसी करने लगे. जज साहब ने अपने सामने रखे फैसले के नोट्स व्यवस्थित किए तो फुसफुसाहटें थम गईं और अदालत में एक पैना सन्नाटा छा गया. सभी के दिमाग में एक ही सवाल घूम रहा था कि पता नहीं रामेश्वरी और उस के प्रेमी भोम सिंह को क्या सजा मिलेगी.

इन दोनों ने जिस तरह का अपराध किया था, उसे देखते हुए लोग चाह रहे थे कि उन्हें फांसी होनी चाहिए. आखिर रामेश्वरी और भोम सिंह ने ऐसा कौन सा अपराध किया था, जिस की सजा को जानने के लिए तमाम लोग अदालत में समय से पहले ही पहुंच गए थे. यह जानने के लिए हमें घटना की पृष्ठभूमि में जाना होगा.

राजस्थान के जिला जोधपुर के लोहावट थाने में 12 फरवरी, 2015 को कुनकुनी दोपहरी में अच्छीखासी गहमागहमी थी. एडिशनल एसपी सत्येंद्रपाल सिंह एसडीएम राकेश कुमार के साथ थाने के दौरे पर थे. उस समय दोनों अधिकारी थाने में एक जरूरी मीटिंग ले रहे थे. मीटिंग इलाके में बढ़ती आपराधिक वारदातों को ले कर बुलाई गई थी.

मीटिंग में सीओ सायर सिंह तथा लोहावट के थानाप्रभारी निरंजन प्रताप सिंह भी मौजूद थे. मीटिंग के दौरान ही थाने के बाहर हो रहे शोर की ओर अचानक अधिकारियों का ध्यान गया. शोर थमने के बजाय तेज होता जा रहा था. एडिशनल एसपी ने थानाप्रभारी को शोर के बारे में पता लगाने का इशारा किया. थानाप्रभारी तुरंत यह कहते हुए बाहर की तरफ लपके, ‘‘सर, मैं पता करता हूं.’’

कुछ ही मिनटों में थानाप्रभारी बड़ी अफरातफरी में लौट आए. उन्होंने बताया, ‘‘सर, बाहर सुतारों की बस्ती के कुछ लोग हैं, जो किसी के कत्ल की रिपोर्ट लिखाने आए हैं. जब उन्हें कुछ देर इंतजार करने को कहा तो वे बुरी तरह उखड़ गए. वे मीटिंग से पहले रिपोर्ट लिखाने की मांग कर रहे हैं.’’

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थानाप्रभारी की बात सुनने के बाद एडिशनल एसपी के चेहरे पर उत्सुकता जाग उठी. सहमति जानने के लिए उन्होंने एसडीएम राकेश कुमार की ओर देखा और फिर थानाप्रभारी से बोले, ‘‘ठीक है, उन में से 1-2 खास लोगों को बुला लाओ.’’

थानाप्रभारी भीड़ में से एक आदमी को बुला लाए. एएसपी ने उस अधेड़ शख्स को कुरसी पर बैठने का इशारा किया. उस के बैठने के बाद उन्होंने पूछा, ‘‘बताओ, क्या मामला है?’’

उस आदमी ने अपना नाम कैलाश बता कर बोला कि वह ढेलाणा गांव की सुतार बस्ती में रहता है. उस के घर के पास ही उस के चाचा संतोष का मकान है, जहां वह अपनी पत्नी रामेश्वरी और 3 बेटियों व एक बेटे के साथ रहते थे. चाची रामेश्वरी उर्फ बीबा के नाजायज संबंध गांव के ही भोम सिंह के साथ हो गए थे. इस की जानकारी संतोष को भी थी.

6 फरवरी से चाचा संतोष रहस्यमय तरीके से गायब हैं. चाचा के खून से सने अधजले कपड़े ग्रेवल रोड के पास पड़े हैं. इस से मुझे लगता है कि चाची ने भोम सिंह के साथ मिल कर चाचा की हत्या कर लाश को कहीं ठिकाने लगा दिया है.

एएसपी सत्येंद्रपाल सिंह कुछ देर तक फरियादी को इस तरह देखते रहे, जैसे उस की बातों की सच्चाई जानने का प्रयास कर रहे हों. इस के बाद एसडीएम राकेश कुमार से निगाहें मिला कर अपने मातहतों की तरफ देखते हुए बोले, ‘‘चलो, ग्रेवल रोड की ओर चल कर देखते हैं.’’

लगभग आधे घंटे में ही एएसपी पूरे अमले के साथ कैलाश द्वारा बताई गई जगह पर पहुंच गए. कैलाश ने हाथ का इशारा करते हुए कहा, ‘‘साहब, वो देखिए, वहां पड़े हैं कपड़े.’’

एएसपी समेत पुलिस अधिकारियों ने आगे बढ़ कर नजदीक से देखा तो उन्हें यकीन आ गया कि कैलाश ने गलत नहीं कहा था. वास्तव में ग्रेवल रोड की ढलान पर खून सने अधजले कपड़े पड़े थे. खून आलूदा कपड़ों से जाहिर था कि मामला हत्या का न भी था तो जहमत वाला जरूर था.

पुलिस को देख कर वहां गांव वालों की भीड़ लगनी शुरू हो गई. एएसपी ने थानाप्रभारी से कपड़ों को सील करने के आदेश दिए. इस के बाद कैलाश को करीब बुला कर तसल्ली करनी चाही, ‘‘तुम पूरे यकीन के साथ कैसे कह सकते हो कि ये कपड़े तुम्हारे चाचा संतोष के ही हैं?’’

‘‘साहब, आप एक बार रामेश्वरी और भोम सिंह से सख्ती से पूछताछ करेंगे तो हकीकत सामने आ जाएगी. दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा.’’ कैलाश ने हाथ जोड़ कर विनती के स्वर में कहा, ‘‘आप रामेश्वरी की बेटियों से पूछताछ करेंगे तो इस मामले में और ज्यादा जानकारी मिल सकती है.’’

थाने पहुंच कर एएसपी ने रामेश्वरी और उस की बेटियों मनीषा, भावना और अंकिता को थाने बुलवा लिया. पुलिस ने रामेश्वरी को अलग बिठा कर उस की बेटियों से पूछताछ की तो उन्होंने अपने पिता की नृशंस हत्या किए जाने का आंखों देखा हाल बयां कर दिया. उन्होंने बताया कि पापा की हत्या मम्मी और भोम सिंह ने की थी. तीनों बहनों की बात सुन कर सभी अधिकारी सन्न रह गए.

रामेश्वरी थाने में ही बैठी थी. एएसपी के आदेश पर थानाप्रभारी भोम सिंह के घर पहुंच गए. वह घर पर ही मिल गया. वह उसे गिरफ्तार कर के थाने ले आए. थाने में रामेश्वरी और उस के बच्चों को देख कर उस के चेहरे का रंग उड़ गया. वह समझ गया कि इन लोगों ने पुलिस को सब कुछ बता दिया होगा, इसलिए उस ने पुलिस पूछताछ में सारी कहानी बयां कर दी. उस ने बताया कि उसी ने तलवार से काट कर संतोष की हत्या की थी. भोम सिंह से पूछताछ के बाद हत्या की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी—

संतोष कुमार लकड़ी के इमारती काम का हुनरमंद कारीगर था. इस छोटी सी ढाणी में या आसपास उसे उस के हुनर के अनुरूप मजदूरी नहीं मिल पाती थी, इसलिए 2 साल पहले वह एक जानकार के बुलाने पर मुंबई चला गया था, जहां उसे अच्छाखासा काम मिल गया था.

संतोष के परिवार में पत्नी रामेश्वरी के अलावा 3 बेटियां और एक बेटा था. बेटा सब से छोटा था, जबकि बड़ी बेटी मनीषा 13 साल की है, भावना 10 साल की और अंकिता 8 साल की. संतोष काम के सिलसिले में ज्यादातर घर से बाहर ही रहता था.

इसी दौरान गांव के ही 28 साल के भोम सिंह के साथ 50 साल की रामेश्वरी का चक्कर चल गया. उस का रामेश्वरी के यहां आनाजाना बढ़ गया. भोम सिंह एक आवारा युवक था, इसलिए रामेश्वरी के ससुराल वालों ने उस के बारबार घर आने पर आपत्ति जताई. मोहल्ले के लोग भी तरहतरह की बातें करने लगे.

डर की वजह से कोई भी सीधे भोम सिंह से कहने की हिम्मत नहीं कर पाता था. संतोष कुमार जब मुंबई से लौटा, तब उसे लोगों के द्वारा पत्नी के कदम बहक जाने की जानकारी मिली. नतीजा यह हुआ कि संतोष ने रामेश्वरी की जम कर खबर ली.

इत्तफाक से भोम सिंह एक दिन ऐसे वक्त में रामेश्वरी से मिलने उस के घर आ टपका, जब घर में संतोष मौजूद था. संतोष तो पहले ही उस से खार खाए बैठा था. उस ने भोम सिंह को बुरी तरह आड़े हाथों लिया और उसे चेतावनी दे दी कि आइंदा वह इस घर की ओर रुख करेगा तो अच्छा नहीं होगा.

अच्छीखासी लानतमलामत होने के बावजूद भी भोम सिंह ने उस के घर आना न छोड़ा और न ही रामेश्वरी ने उसे घर आने से मना किया. संतोष की मजबूरी थी कि वह ज्यादा दिन छुट्टी नहीं ले सकता था और मुंबई में रिहायशी दिक्कत के कारण परिवार को साथ नहीं ले जा सकता था. लिहाजा उस की समझ में नहीं आ रहा था कि अब वह क्या करे.

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एक बार संतोष ने पत्नी और भोम सिंह को फिर रंगेहाथों पकड़ लिया. लेकिन भोम सिंह फुरती से वहां से भाग गया. जातेजाते वह कह गया कि वह इस बेइज्जती का बदला ले कर रहेगा.

फरवरी, 2015 में संतोष मुंबई से घर लौटा. उस के आने के बाद रामेश्वरी की इश्क की उड़ान में व्यवधान पैदा हो गया. रास्ते में रोड़ा बने पति से छुटकारा पाने के बारे में उस ने प्रेमी से बात की. फिर दोनों ने संतोष को ठिकाने लगाने की योजना बना ली. उन्होंने तय कर लिया कि इस बार वे संतोष को ठिकाने लगा कर ही रहेंगे.

योजना के अनुसार 6 फरवरी, 2015 की आधी रात को भोम सिंह छिपतेछिपाते संतोष के घर पहुंच गया. उस समय संतोष गहरी नींद में सो रहा था, जबकि रामेश्वरी प्रेमी के आने के इंतजार में जाग रही थी. उसी समय भोम सिंह ने सोते संतोष के ऊपर तलवार से वार कर दिया.

संतोष की मर्मांतक चीख सुन कर तीनों बेटियां हड़बड़ा कर उठ बैठीं. वे भाग की भीतरी चौक में पहुंचीं और जो भयानक नजारा देखा तो उन्हें जैसे काठ मार गया. भोम सिंह उन के पिता पर तलवार से वार कर रहा था और वह गिरतेपड़ते छोड़ देने की मिन्नतें कर रहे थे. लेकिन उस शैतान का दिल नहीं पसीजा.

रामेश्वरी पास में खड़ी सब कुछ देख रही थी. मनीषा ने पिता को बचाने की कोशिश की तो भोम सिंह ने धमका कर उसे परे धकेल दिया और कहा कि अगर किसी को भी बताया तो तीनों को तलवार से काट देगा.

संतोष की हत्या के बाद भोम सिंह ने उस के कपड़े उतार दिए और लाश एक पौलीथिन में लपेट कर बोरी में भर दी. बाद में उस बोरी को एक ड्रम में डाल कर कमरे में रख दी.

इस के बाद भोम सिंह चला गया. अगले दिन रात को वह बैलगाड़ी ले कर आया, तब रामेश्वरी और भोम सिंह ने मिल कर ड्रम को गाड़ी में डाला. वे लाश को शिवपुरी रोड पर घने जंगल में दफन कर आए. रामेश्वरी ने घर लौटने के बाद रात को पति के खून सने कपड़े चूल्हे में डाल कर जलाने की कोशिश की, लेकिन कपड़े खून से गीले होने के कारण पूरी तरह से जल नहीं पाए. फिर 11 फरवरी की रात को रामेश्वरी अधजले कपड़ों को ग्रेवल रोड पर फेंक आई.

बाद में वह शोर मचाने लगी कि मेरे भरतार (पति) के खून सने कपड़े ग्रेवल रोड पर पड़े हैं, लेकिन उन का कहीं पता नहीं चल रहा है. उस की चीखपुकार सुन कर अड़ोसीपड़ोसी भी आ गए. उसी दौरान संतोष का भतीजा कैलाश भी आ गया. उस ने ग्रेवल रोड पर चाचा के खून सने अधजले कपड़े देखे तो उसे शक हो गया.

इस से पहले कैलाश व अन्य पड़ोसियों को संतोष कई दिनों तक दिखाई नहीं दिया तो पड़ोसियों ने भी रामेश्वरी से पूछा. पर रामेश्वरी ने यह कह कर टाल दिया कि यहीं कहीं होंगे. पर उस के जवाब से कोई संतुष्ट नहीं था. बच्चों ने बताया कि डर की वजह से उन्होंने भी मुंह नहीं खोला.

भोम सिंह और रामेश्वरी से पूछताछ के बाद पुलिस ने उन की निशानदेही पर संतोष की लाश और तलवार बरामद कर ली. पुलिस ने सारे सबूत जुटा कर दोनों अभियुक्तों के खिलाफ भादंवि की धारा 450, 302, 201, 120बी के तहत मुकदमा दर्ज कर उन्हें जेल भेज दिया.

पुलिस ने फोरैंसिक एक्सपर्ट की रिपोर्ट व अन्य साक्ष्यों के अलावा निर्धारित समय में आरोपपत्र तैयार कर कोर्ट में पेश कर दिया. करीब 2 सालों तक अदालत में केस की सुनवाई चली. तमाम साक्ष्य पेश करने के साथ गवाह भी पेश हुए. 10 जुलाई, 2017 को न्यायाधीश नरेंद्र सिंह मालावत ने केस का फैसला सुनाने का दिन निश्चित किया.

सजा सुनाने के पहले माननीय न्यायाधीश नरेंद्र सिंह ने कहा कि अभियोजन पक्ष प्रत्यक्षदर्शी साक्ष्यों, परिस्थितिजन्य साक्ष्यों एवं बरामदगियों से इस घटना की कड़ी से कड़ी जोड़ने में सफल रहा है. इसी प्रकार घटना से ताल्लुक रखती फोरैंसिक रिपोर्ट में मकतूल की पत्नी अभियुक्ता रामेश्वरी के कपड़ों पर पाए गए खून के छींटे भी मकतूल संतोष कुमार के खून से मिलते पाए गए.

ऐसी स्थिति में अभियुक्तों का बचाव संभव नहीं है. एक पल रुकते हुए विद्वान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘मौकाएवारदात पर मौजूद मकतूल की तीनों बेटियां अंकिता, भावना और मनीषा प्रत्यक्षदर्शी थीं.

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‘‘अंकिता और भावना ने अभियोजन पक्ष की कहानी की पूरी तस्दीक की है, इसलिए बचाव पक्ष की इस दलील पर घटना को झूठा नहीं माना जा सकता कि अभियोजन पक्ष ने मनीषा को पेश नहीं किया. लड़कियां मुलजिम भोम सिंह की इस धमकी से बुरी तरह डरी हुई थीं. उन्होंने पुलिस के आने के बाद ही मुंह खोला.’’

विद्वान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘कोर्ट इस सच्चाई से वाकिफ है कि पोस्टमार्टम की रिपोर्ट में मकतूल की मौत की वजह सिर तथा शरीर के अन्य हिस्सों पर घातक चोटें आना बताया गया है. वारदात में इस्तेमाल की गई तलवार की बरामदगी भी मुलजिम के कब्जे से होना उस के आपराधिक षडयंत्र को पुख्ता करती है.

‘‘हालांकि यह मामला विरल से विरलतम की श्रेणी में नहीं आता, किंतु ऐसे गंभीर अपराध की दोषसिद्धि में अपराधियों को कोई रियायत देना उचित नहीं है. इसलिए तमाम सबूतों और गवाहों के बयान के आधार पर अदालत मृतक की पत्नी रामेश्वरी और उस के प्रेमी भोम सिंह को दोषी मानते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाती है.’’

सजा सुनाए जाने के बाद पुलिस ने दोनों मुजरिमों को अपनी कस्टडी में ले लिया. अदालत में मौजूद लोगों और मृतक की बेटियों ने इस सजा पर तसल्ली व्यक्त की.

जब सुहागरात पर आशिक ने भेज दिया बीवी का एमएमएस

कर्नाटक की राजधानी बैंगलुरु में एक अजीबोगरीब मामला सामने आया है. वह भी ऐसा कि खुद पुलिस भी नहीं समझ पा रही है कि कौन सी धाराएं लगाएं और कौन सी नहीं.

मामला बैंगलुरु के सुब्रमण्यम नगर की है जहां राशिद के साथ अमीना (दोनों बदले हुए नाम) का निकाह बड़ी धूमधाम से हुआ.

सगाई पिछले साल जून में ही हुई थी. राशिद जहां निजी कंपनी में काम करता है, वहीं अमीना सरकारी मुलाजिम है.

बीवी ने दिया धोखा!

राशिद ने जानकारी देते हुए बताया,”शादी को ले कर मैं ने ढेर सारे सपने संजो रखे थे. इस शादी में मैं ने लगभग 9 लाख रूपए खर्च किए थे. सगाई में लगभग डेढ़ लाख रुपए खर्च हुए थे. इस शादी में दुल्हन और दूल्हे यानी बरातीघराती में सैकड़ों लोग शामिल हुए थे. बढ़िया खानापीना हुआ था.

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“खूबसूरत बीवी के साथ आम दूल्हे की तरह मैं भी सुहागरात मनाने को ले कर बेचैन था. मगर सुहागरात के ऐन पहले मेरे फेसबुक के मैसेंजर पर एक वीडियो क्लिप आया, जिसे देख कर मेरे होश उङ गए.”

राशिद ने आगे बताया,”उस शख्स ने वीडियो क्लिप के साथ अपना नंबर भी शेयर किया था. जब मैं ने उस के मोबाइल पर फोन किया तो उस ने अपना नाम शकील (बदला नाम) बताया और कहा कि वह और अमीना पिछले 7-8 सालों से रिलेशनशिप में थे. अमीना ने मुझे धोखा दिया है.”

क्या था वीडियो में

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार शकील ने जो वीडियो राशिद को भेजी थी, उस में दोनों अंतरंग पलों में साथ थे. कोई जोरजबरदस्ती नहीं थी, जबकि दोनों ओरल सैक्स करते हुए भी दिख रहे थे.

उस शख्स ने राशिद को यह भी बताया कि दोनों की सगाई के बाद भी अमीना उस के पास नियमित रूप से आती थी और दोनों बराबर सैक्स करते रहे हैं.

उलझ चुका है मामला

उधर मामले ने दूसरा रूप ले लिया. कहते हैं पुरूष चाहे जितनी बेवफाई कर ले पर बीवी की बेवफाई वह बरदाश्त नहीं कर पाता.

राशिद ने परेशान हो कर पुलिस में शिकायत दर्ज कराई.

उस ने पुलिस को बताया कि उसे अमीना और शकील के बीच व्हाट्सऐप चैटिंग के दौरान बातचीत के स्क्रीनशौट्स भी हाथ लगे हैं, जिस में काफी अंतरंग बातचीत की गई है. एक मैसेज में अमीना बताती है कि वह शकील को बेहद पसंद करती है. उस के घर वाले भी उसे पसंद करते हैं.

पुलिस ने की काररवाई

फोटो और वीडियो की जांच के बाद पुलिस ने जब शकील को गिरफ्तार किया तो उस ने अपना और अमीना के बीच पिछले 7-8 सालों से चल रहे संबंधों की बात कुबूल कर ली.

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राशिद के बयान को आधार मान कर पुलिस ने आईपीसी की धारा 406 और 506 के तहत मामला दर्ज कर तफ्तीश शुरू कर दी है.

मामले का खुलासा होने के बाद मीडिया से बातचीत में पुलिस ने बताया,”यह काफी पेचिदा मामला है. प्राप्त वीडियो और फोटो को आधार मान कर यह साबित करना होगा कि अमीना ने राशिद को धोखा दिया है. इस के लिए हम कानूनी सलाहकार की मदद ले रहे हैं.”

बीवी और घर वालों की धमकी

उधर अमीना के घर वाले और खुद अमीना ने राशिद को धमकी दी है. अमीना ने तो आत्महत्या तक करने की धमकी दी है और एक नोट लिखा है कि उस के साथ ज्यादती की गई है, जिस के कुसूरवार राशिद और उस के परिवार वाले हैं.

दांव पर जिंदगी

मामले की पङताल में भले ही पुलिस जुटी है पर इस प्रकरण से एकसाथ 3 परिवार की प्रतिष्ठा के साथसाथ जिंदगियां भी दांव पर है. यों तो आरोप की सचाई सामने आने के बाद ही यह तय हो पाएगा कि कानून में ऐसे अपराध के लिए क्या सजा है और दोनों की शादी पर इस का क्या प्रभाव पङेगा पर इतना तो तय है कि जिस ने वीडियो क्लिप भेजा वह और लङकी जिस ने शादी से पहले संबंध बनाए यह गलती कर दी या फिर किसी ने जानबूझ कर वीडियो बना लिया, जो कानूनन अपराध भी है.

इसलिए बेहतर यही है कि सैक्स संबंध बनाते समय विशेष सतर्कता बरती जाए.

सावधान रहें

सेक्स पार्टनर अंतरंग पलों को अपने मोबाइल में कैद न करें न करने दें क्योंकि आगे चल कर ऐसे संबंधों में या तो धोखा देने की गुंजाइश रहती है या फिर ऐसे वीडियो क्लिप्स आसानी से वायरल भी हो जाते हैं. कई तो पोर्न साइट पर अपलोड कर दिए जाते हैं. इसलिए खुद को महफ़ूज रखने के लिए सतर्क रहें और सोचसमझ कर आगे बढ़ें.

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