मध्य प्रदेश में कांग्रेस की कबड्डी

कबड्डी का खेल बड़ा ही दिलचस्प होता है. इस में कौन किस की टांग लाइन तक खींच रहा है, इस का सटीक अंदाजा तो कई बार रैफरी भी लगाने में गच्चा खा जाता है, तो मैदान से दूर खड़े दर्शकों की बिसात ही क्या, जो धूल फांकते किसी के आउट होने या पकड़े जाने पर तालियां पीटते रहते हैं.

आधी दौड़ और आधी कुश्ती के मिश्रण वाले इस देहाती खेल को मध्य प्रदेश के बड़ेबड़े कांग्रेसी इन दिनों पूरे दिलोदिमाग से खेल रहे हैं और जनता आंखें मिचमिचाते हुए इंतजार कर रही है कि कोई फैसला हो तो घर को जाए.

वैसे, नियमों और कायदेकानूनों के हिसाब से तो कबड्डी में 2 ही टीमें होनी चाहिए, लेकिन मध्य प्रदेश कांग्रेस का हाल जरा सा अलग है. यहां कांग्रेस की 3 टीमें एकदूसरे से भिड़ रही हैं और उस से भी ज्यादा दिलचस्प बात यह है कि कौन सा खिलाड़ी किस टीम से खेल रहा है, इस का अतापता भी किसी को नहीं है. फिर यह तय कर पाना तो और भी मुश्किल काम है कि कौन किस की टांग खींच रहा है.

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लेकिन, इन तमाम गफलतों के बाद भी खेल जारी है और राह चलते लोग तमाशा देखते ताजा गड्ढों में गिर रहे हैं. मनोरंजन का कोई दूसरा साधन उन के पास है भी नहीं, क्योंकि अघोषित बिजली कटौती के चलते घरों में टैलीविजन बंद पड़े हैं और पत्नियां भी अंबानी के ‘जियो’ की कृपा से मायके वालों और सहेलियों से चैटिंग करने में बिजी हैं.

इन तीनों टीमों में से पहली टीम के कैप्टन घोषित मुख्यमंत्री और विधायक दल द्वारा पूरे विधिविधान से चुने गए कमलनाथ हैं, वहीं दूसरी टीम की कैप्टनशिप मुख्यमंत्री रह चुके दिग्विजय सिंह के पास है, जो घोषित तौर पर कांग्रेस विधायक दल द्वारा न चुने गए मुख्यमंत्री हैं और तीसरी टीम के उस्ताद चिकनेचुपड़े चेहरे वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया हैं जो घोषित टीम के कैप्टन बनतेबनते रह गए थे, लेकिन लाइन में अभी भी लगे हैं, पर दिक्कत यह है कि न कोई छींक रहा है और न कोई छीका टूट रहा है.

सियासी उठापटक के लिए पहचाने जाने वाले दिग्विजय सिंह ने कुछ दिन पहले मंत्रियों को एक चिट्ठी लिखी थी, जिस में उन के द्वारा तबादलों के लिए की गई सिफारिशों पर कार्यवाही का हिसाब मांगा गया था.

इस धोबीपछाड़ दांव से कई मंत्री सही में घबरा उठे थे कि क्या जवाब दें. और मूल सवाल कहीं हिस्साबांटी का तो नहीं कि अच्छा, सारा का सारा खुद ही हजम कर गए और जिन मुलाजिमों और अफसरों से हम ने पेशगी ले रखी है, उन की फाइलें दबा गए.

अब सच जो भी हो, चिट्ठी का वाजिब असर हुआ और उन की टीम के मंत्री ब्योरा ले कर उन के बंगले पर पहुंच गए और एनओसी हासिल कर ली.

टीम नंबर 1 और टीम नंबर 3 के मंत्री यह कहते हुए बिदक गए कि आप होते कौन हैं हम से हिसाब मांगने वाले… एक युवा खिलाड़ी उमर सिंघार ने तो सीधे सोनिया गांधी को चिट्ठी लिख डाली कि टीम नंबर 2 के कैप्टन बेवजह टीम नंबर 1 यानी असली टीम के मुखिया बनने की कोशिश कर रहे हैं, जिन्हें जनता यानी दर्शकों ने तकरीबन 15 साल पहले ही फाउल पर फाउल करने के चलते खेल से बाहर कर दिया था.

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चूंकि वे पकड़े जाने से बचने के लिए बदन पर सरसों का तेल लगाए रहते हैं, इसलिए उन के खिलाफ ऐक्शन लिया जाए, जिस से असली टीम बेहिचक खेल कर जनता का मनोरंजन कर सके. आखिर विधानसभा की 114 सीटें कबड्डी खेलने के लिए ही तो मिली हैं, नहीं तो जनता का टाइम पास कैसे होगा.

जैसा कि पुराना व पुश्तैनी कांग्रेसी रिवाज है, राष्ट्रीय टीम की अध्यक्ष जिन्हें पहले से ही स्कोर और नतीजा मालूम था, चुप रहीं और चश्मा पोंछते हुए कंप्यूटर स्क्रीन पर अपने ‘स्वाभिमान

से संविधान यात्रा’ वाले प्रोजैक्ट का गुणाभाग लगाते हुए उस का रूट देखते हुए सोचती रहीं कि इन 3 राज्यों से कब, क्यों और कैसे कांग्रेस की जड़ें उखड़ी थीं और क्या अब भी ऐसा कोई टोटका है, जिसे आजमा कर नवहिंदुत्व का चक्रव्यूह बेधा जा सके.

अपने अभिमन्यु ने तो कुरुक्षेत्र छोड़ दिया है, लेकिन वे नहीं छोड़ सकतीं क्योंकि तेजी से देशभर के दलितों को हिंदू बना कर छला जा रहा है और यहां ये आपस में ही लड़ेमरे जा रहे हैं. जिन्हें अपने प्रदेश की परवाह नहीं, वे देश की परवाह क्या खाक करेंगे.

इस अनदेखी से भले ही तीनों टीमों के कप्तानों को ज्ञान प्राप्त हो गया है कि आलाकमान तो पहले से ही दुखी है, उसे और दुखी करना बेवकूफी की हद ही होगी.

लिहाजा, अब कबड्डी धीरेधीरे खेली जाए और लाइन छू कर वापस आ जाने का स्टाइल अपनाया जाए, क्योंकि बात अगर बढ़ी तो अब दूर तलक नहीं जा पाएगी और जनता बजाय तालियां पीटने के मुक्के मारने लगेगी. फिर सालोंसाल तक कबड्डी खेलने के लिए सत्ता का मैदान सपनों में भी नहीं मिलेगा, इसलिए बेहतरी इसी में है कि तीनों टीमों के कैप्टन पैवेलियन वापस लौट कर पंजा लड़ा कर मसला हल कर लें.

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‘प्रधानमंत्री आवास योजना’: गरीबों के लिए बनी मुसीबत

गरीबों को लगा था कि उन का पक्का मकान बनाने का सपना पूरा हो जाएगा. पर सरकार का एक कार्यकाल खत्म होतेहोते योजना की कछुआ चाल, नेताओं और अफसरों द्वारा किए गए भ्रष्टाचार ने साबित कर दिया कि साल 2022 तक देश के सभी गरीबों को पक्का मकान देने का मोदी सरकार का वादा पूरा होने वाला नहीं है.

देश में गरीबों को मकान देने के लिए पहले ‘इंदिरा आवास योजना’ चलती थी, जिस का साल 2015 में नाम बदल कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘प्रधानमंत्री आवास योजना’ रख दिया था और ऐलान किया था कि साल 2022 तक सभी के सिर पर छत होगी. इस के लिए यह भी योजना बनी थी कि सरकारी विभागों से घर बना कर देने के बजाय खुद जरूरतमंद के खाते में पैसे जमा कराया जाए.

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‘प्रधानमंत्री आवास योजना’ के तहत गांवदेहात के इलाकों में एक लाख, 60 हजार की रकम और शहरी इलाकों में 2 लाख, 40 हजार की रकम सीधे जरूरतमंद के बैंक खाते में जमा करने का काम किया गया था. इस रकम से एक कमरा, एक रसोई, एक स्टोररूम का नक्शा भी दिया गया था.

पर हुआ यह कि जिन लोगों के पास पहले से मकान थे, उन्हें रकम मिल गई और जो लोग बिना छत के प्लास्टिक की पन्नी तान कर अपना आशियाना बना कर रह रहे थे, उन्हें पक्का मकान देने के बजाय झुनझुना पकड़ा दिया गया.

ग्राम पंचायतों के सरपंच, सचिव और नगरपालिकाओं की अध्यक्ष, सीएमओ की मिलीभगत से जरूरतमंदों से 10,000 से 20,000 रुपए ले कर योजना की रकम की बंदरबांट कुछ इस तरह हुई कि बिना नक्शे और बिना सुपरविजन के योजना की रकम खर्च कर ली गई.

‘प्रधानमंत्री आवास योजना’ के तहत साल 2022 तक देश में सभी लोगों को छत देने की बात कही जा रही है. इस के लिए लक्ष्य और उस के पूरा होने के आंकड़े भी पेश किए जा रहे हैं, लेकिन हकीकत देख कर आप दंग रह जाएंगे.

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मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले की नगरपरिषद साईंखेड़ा के वार्ड नंबर 14 के लाभार्थी हरिगोपाल श्रीवास्तव की दास्तान ‘प्रधानमंत्री आवास योजना’ की असलियत को उजागर करती है.

हरिगोपाल श्रीवास्तव को मई, 2018 में पक्का घर बनाने के लिए पहली किस्त के रूप में एक लाख की रकम मिली थी. उन्होंने अपने कच्चा मकान तोड़ कर जून महीने में ही पक्का मकान बनाने का काम शुरू कर दिया था. एक महीने में एक लाख रुपए खर्च कर छत तक का काम पूरा हो गया था, लेकिन दूसरी किस्त की रकम उन्हें नहीं दी गई.

हरिगोपाल श्रीवास्तव के परिवार के लोग पूरी बरसात, ठंड और भीषण गरमी में प्लास्टिक की पन्नी तान कर अपना गुजारा कर रहे हैं, लेकिन एक साल के बाद भी उन्हें दूसरी किस्त की रकम नहीं मिली है.

हरिगोपाल श्रीवास्तव ने कई बार इस की शिकायत सरकारी अफसरों के साथसाथ चुने हुए जनप्रतिनिधियों से की, मगर कोई समाधान नहीं निकला. परेशान हो कर जब उन्होंने एसडीएम, गाडरवारा को अनशन पर बैठने की अर्जी दी, तो उन्हें इस की भी इजाजत नहीं दी गई.

नगरपरिषद के अधिकारी विधानसभा और लोकसभा चुनाव की आचार संहिता का बहाना बना कर इसी तरह अनेक लोगों को दूसरी किस्त की रकम देने में आनाकानी कर रहे हैं. वोट का सौदा करने वाली सरकार के नुमाइंदे भी अब चुप्पी साध कर बैठे हैं.

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खिरका टोला वार्ड नंबर 8 के दीपक कुशवाहा और बासुदेव अहिरवार बताते हैं कि उन्हें भी जून, 2018 में पहली किस्त की रकम मिल चुकी है, पर दूसरी किस्त की रकम के लिए नगरपरिषद के अधिकारी और पार्षद और रुपयों की मांग कर रहे हैं. पीडि़त परिवार के छोटेछोटे बच्चों ने पूरी गरमी खुले आसमान के नीचे बिताई है और अब बरसात का मौसम है. ऐसे में उन की मुश्किलें और ज्यादा बढ़ गई हैं.

जनता की सेवा के लिए चुने गए पार्षद दूसरी किस्त दिलाने के लिए दलाली कर लाभार्थियों से 10,000 से ले कर 20,000 रुपए की रकम खुलेआम मांग रहे हैं. जो लोग पैसे दे देते हैं, उन्हें दूसरी किस्त का पैसा आसानी से मिल जाता है.

इन की बल्लेबल्ले

‘प्रधानमंत्री आवास योजना’ का फायदा किसी को मिला हो या न मिला हो, पर ग्राम पंचायतों के सरपंच सचिव की दुकानदारी खूब चल निकली है.

सरपंच सचिव ने गरीबों को रकम दिलाने के एवज में पैसे वसूल तो किए ही हैं, साथ ही मिल कर गांवगांव में अपनी ईंट, गिट्टी, लोहा, सीमेंट की दुकानें खोल ली हैं. अगर इन की दुकान से सामान खरीदा तो समय पर किस्त मिल जाती है, नहीं तो सालों दूसरी किस्त की रकम नहीं मिलती है. कई सरपंचों ने नेताओं के इशारों पर गांव की रेत खदानों पर गैरकानूनी कब्जा कर के करोड़ों रुपए की रेत साफ कर दी है. गांवदेहात के इलाकों में 500 रुपए प्रति ट्रौली मिलने वाली रेत आज 2,000 रुपए प्रति ट्रौली मिल रही है.

मध्य प्रदेश में सरपंच सचिव द्वारा किए भ्रष्टाचार का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि नरसिंहपुर जिले की हीरापुर ग्राम पंचायत के सचिव भागचंद कौरव के घर आयकर विभाग द्वारा जून, 2019 में मारे गए छापे के दौरान आमदनी से ज्यादा 2 करोड़ रुपए की जायदाद का खुलासा हुआ है.

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गांवदेहात के लोग बताते हैं कि ‘प्रधानमंत्री आवास योजना’ के आने से घरघर पक्के मकान बनने से गांव की नदियों की रेत बहुत महंगी हो गई है. जिला प्रशासन के अधिकारी ट्रैक्टरट्रौली जब्त कर उन्हें परेशान करते हैं, जबकि रेत से भरे भारीभरकम डंपर रातदिन शहरों के लिए गैरकानूनी रेत सप्लाई कर रहे हैं. योजना का सुपरविजन कर रहे इंजीनियर मकान के वैल्युएशन के नाम पर लोगों से 10,000 रुपए की वसूली कर रहे हैं.

दूसरा पहलू यह भी

‘प्रधानमंत्री आवास योजना’ में अकेले नेता, अधिकारी, कर्मचारी ही गड़बड़झाला नहीं कर रहे हैं, बल्कि जनता भी पीछे नहीं है. सरकार मकान बनाने के लिए गरीबों के खाते में पैसे डाल रही है, लेकिन लोग पैसा ले कर उसे दूसरे कामों में खर्च कर लेते हैं. किसी ने उस पैसे से मोटरसाइकिल खरीद ली है तो कोई दूसरी पत्नी ले आया. मकान के नाम पर कहीं पत्थरों का टीला है तो कहीं झोंपडि़यां. किसी ने पैसे बीमारी पर खर्च कर लिए तो कोई शराब और जुए में उड़ा गया.

बांसखेड़ा गांव के मिहीलाल का घर ऐसा है जिन्हें पहली किस्त नवंबर, 2017 में मिली थी और 10 दिन के अंदर ही सारे पैसे निकाल लिए गए. घर बनाने के नाम पर एक ईंट भी नहीं रखी गई.

अब सरकारी अधिकारी मुकदमा दर्ज कराने की धमकी दे रहे हैं तो उन का कहना है कि पैसे रखे हैं, लेकिन ईंटभट्ठों व रेत खनन पर रोक होने के चलते वे मकान नहीं बना पा रहे हैं.

होशंगाबाद जिले के बारछी गांव के चंदन नौरिया के 3 बेटे हैं. तीनों को अलगअलग ‘प्रधानमंत्री आवास योजना’ का पैसा मिल गया. 2 बेटों के पैसों से मकान बना लिया तो तीसरे बेटे के पैसे में मोटरसाइकिल और दूसरा सामान खरीद लिया, जबकि गांव में कटिंगदाढ़ी बना कर अपनी आजीविका चलाने वाले कमलेश को ‘प्रधानमंत्री आवास योजना’ का पैसा नहीं मिला है. वे खपरैल के कच्चे मकान में अपने बूढ़े मांबाप समेत 7 सदस्यों के परिवार के साथ रह रहे हैं.

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इसी तरह रायसेन जिले के पटना गांव के अरविंद ने अपना पक्का मकान बनाने के लिए पुराने खपरैल के मकान को तोड़ दिया था. यह सोच कर वे किराए के मकान में रहने लगे थे कि 4 महीने बाद अपने मकान में वापस रहने लगेंगे, लेकिन उन्हें भी सालभर बीत जाने के बाद दूसरी किस्त का पैसा नहीं मिला है और उन का पैसा किराए के मकान में खर्च हो रहा है.

लोगों का मानना है कि ‘प्रधानमंत्री आवास योजना’ के जमीनी हकीकत पर सही न उतरने से प्रधानमंत्री की यह योजना कामयाब होती नजर नहीं आ रही है. अगर सरकार एक से नक्शे और डिजाइन के मुताबिक गरीबों को मकान तैयार कर के देती तो उन्हें पक्के मकान भी मिल जाते और सरकारी पैसे की बंदरबांट भी न होती.

पौलिटिकल राउंडअप: ‘आप’ ने पसारे पैर

सभाजीत सिंह ने शिक्षा के बाजारीकरण के खिलाफ लंबे समय तक आंदोलन चलाया है और शिक्षा के अधिकार कानून के तहत गरीब बच्चों के दाखिले को ले कर छेड़े गए आंदोलन पर कई सामाजिक संगठनों ने उन्हें सम्मानित भी किया है.

जावड़ेकर की ‘मैं हूं न’

दिल्ली. अरविंद केजरीवाल के चुनावी वादों और ऐलानों से भारतीय जनता पार्टी में खलबली मची हुई है. इस से उन की आपसी खींचतान भी सामने आ रही है. बौखलाहट में नेता अलगअलग बयान दे रहे हैं. पूर्व प्रदेश अध्यक्ष विजय गोयल का एक कार्यक्रम तक रद्द करा दिया गया.

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इसी सिलसिले में बुधवार, 28 अगस्त को दिल्ली विधानसभा चुनावों के लिए भाजपा की तरफ से नए बने प्रभारी केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा, ‘मैं सब संभाल लूंगा.’

यह कहना जितना आसान लग रहा है उतना ही करना मुश्किल होगा, क्योंकि फिलहाल भाजपा अरविंद केजरीवाल के तोहफों वाले सियासी गणित में फंस कर रह गई है.

‘इंदिरा कैंटीन’ के बहाने

बैंगलुरु. कांग्रेस के सिद्धारमैया ने 15 अगस्त, 2017 को ‘इंदिरा कैंटीन’ योजना चलाई थी और आज बैंगलुरु में 173 ‘इंदिरा कैंटीन’ और 18 ‘मोबाइल इंदिरा कैंटीन’ काम कर रही हैं जिन में 5 रुपए में नाश्ता और 10 रुपए में दोपहर और रात का खाना मिलता है.

कांग्रेस सरकार गई तो अब इस योजना पर बंद होने के काले बादल मंडराने लगे हैं जबकि 28 अगस्त को कर्नाटक के नए मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा ने कहा

कि राज्य सरकार की ‘इंदिरा कैंटीन’ बंद करने की कोई योजना नहीं है लेकिन वे उस के काम करने के तरीके की जांच कराना चाहते हैं.

इस से पहले एक रिपोर्ट आई थी जिस में कहा गया था कि पिछली सरकार की पसंदीदा योजना बंद होने के कगार पर है क्योंकि न तो राज्य सरकार ने और न ही वृहद बैंगलुरु महानगरपालिका ने कैंटीन के लिए बजट आवंटित किया है.

मुख्यमंत्री ने बताया कि ऐसी कुछ रिपोर्टें हैं जिन के मुताबिक कई जगह पर बढ़ा कर बिल दिखाया गया. रिकौर्ड में 100 लोगों को दिखाया गया, जबकि 1,000 लोगों का खाना वहां था.

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भाजपा अध्यक्ष की बदजबानी

कोलकाता. पश्चिम बंगाल में भाजपा के अध्यक्ष दिलीप घोष के पुलिस वालों और तृणमूल कार्यकर्ताओं को पीटने संबंधी बयान के बाद कोलाघाट पुलिस स्टेशन में मामला दर्ज किया गया.

पूर्वी मेदिनीपुर जिले के मेचेडा में 26 अगस्त की रात पार्टी के एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए दिलीप घोष ने कहा था, ‘तृणमूल के गुंडों और पुलिस वालों से डरने की जरूरत नहीं है. राज्य के विभिन्न हिस्सों में भाजपा कार्यकर्ताओं पर अकसर हमले होते हैं. दोषियों को पकड़ने की जगह पुलिस फर्जी मामलों में हमारे लड़कों को फंसा रही है…

‘अगर आप पर हमला होता है तो तृणमूल के कार्यकर्ताओं और पुलिस वालों को पीट दीजिए. डरने की जरूरत नहीं. कोई भी दिक्कत होगी तो हम हैं न, सब संभाल लेंगे. अगर पूर्व गृह मंत्री पी. चिदंबरम को जेल भेजा जा सकता है तो तृणमूल के ये नेता तो हमारे लिए मच्छर, कीड़ेमकोड़े की तरह हैं.’

हर गांव के नेता के लिए यह संदेशा है कि जाओ, भाजपा के पांव पकड़ो.

मनोहर का सियासी दांव

चंडीगढ़. विधानसभा चुनाव नजदीक आते ही मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने पांसा फेंक दिया है. उन्होंने 30 अगस्त को हरियाणा में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए नई योजना शुरू की है जिस में उन लोगों को 6,000 रुपए हर साल दिए जाएंगे, जिन की सालाना आमदनी 1.80 लाख रुपए से कम है और 2 हैक्टेयर से कम जोतभूमि है. इस योजना को ‘मुख्यमंत्री परिवार समृद्धि योजना’ नाम दिया गया है.

इस के साथ ही परिवार के सदस्य जीवन बीमा या दुर्घटना बीमा या प्रधानमंत्री मानधन योजना के तहत पैंशन के भी लाभपात्र होंगे.

केपी यादव के बेहूदा बोल

गुना. मध्य प्रदेश की गुना संसदीय सीट से भाजपा सांसद केपी यादव ने महिला कलक्टर के खिलाफ बेहूदा टिप्पणी करते हुए उन्हें चाटुकार बोला और कहा कि कलक्टर सांसदों से मिलने के लिए गांवगांव जाती थीं और उन के चरण चुंबन करती थीं.

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याद रहे कि केपी यादव ने इस साल लोकसभा चुनाव में गुना से कांग्रेस के उम्मीदवार ज्योतिरादित्य सिंधिया के खिलाफ जीत दर्ज की थी.

केपी यादव पहले कांग्रेस में ही थे और ज्योतिरादित्य सिंधिया के सहयोगी रह चुके हैं. पिछले उपचुनाव में अनदेखी का आरोप लगा कर वे कांग्रेस छोड़ कर भाजपा में शामिल हो गए थे.

नीतीश बोले जींसटीशर्ट नहीं

पटना. बिहार सरकार ने सचिवालय में काम करने वाले अफसरों और मुलाजिमों के लिए एक फरमान जारी किया है जिस के तहत वे अब दफ्तर में जींसटीशर्ट पहन कर नहीं आ सकेंगे. उन के तड़कभड़क रंगों वाले कपड़ों के पहनने पर भी रोक लगाई गई है.

राज्य सरकार के अवर सचिव शिव महादेव प्रसाद की ओर से जारी आदेश में कहा गया है कि पदाधिकारी और कर्मचारी औफिस संस्कृति के खिलाफ कैजुअल ड्रैस पहन कर दफ्तर नहीं आएंगे. उन्हें फौर्मल ड्रैस पहन कर ही आना होगा.

सुप्रिया ने जताई चिंता

नासिक. राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की नेता सुप्रिया सुले ने कहा है कि अपने भंडार से सरकार को नकदी देने का भारतीय रिजर्व बैंक का फैसला संकेत देता है कि देश की माली हालत अच्छी नहीं है.

भारतीय रिजर्व बैंक ने 26 अगस्त को सरकार को 1.76 लाख करोड़ रुपए का लाभांश और अधिशेष भंडार देने को मंजूरी दी थी. इस से वित्तीय घाटे के बढ़े बिना ही अर्थव्यवस्था को मंदी से उबारने में मोदी सरकार को मदद मिलेगी.

इसी मुद्दे को ले कर केंद्र सरकार पर हमला करते हुए सुप्रिया सुले ने कहा, ‘यह दिखाता है कि देश की अर्थव्यवस्था अच्छी नहीं है. विभिन्न औद्योगिक इकाइयां बंद हो चुकी हैं और बेरोजगारी बढ़ रही है.’

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गहलोत की इच्छा

बाड़मेर. राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने सरकारी मैडिकल कालेज के लोकार्पण समारोह में कहा कि सरकार राज्य के हर जिले में मैडिकल कालेज खोलना चाहती है ताकि आधुनिक चिकित्सा सुविधाओं का फायदा जनता को मिल सके.

फिलहाल जैसलमेर, सिरोही, करौली और नागौर जैसे विकासशील जिलों में जल्दी ही मैडिकल कालेज खोलने के प्रयास किए जा रहे हैं.

याद रहे कि एक अस्पताल 8-10 साल में ही बन पाता है. आज कह दो, देखा जाएगा.

गरीबों के अजीब मंदिर

एक विधवा को सुबह देखने से हमारा दिन खराब हो जाता है. हम सारी दकियानूसी बातों, परंपराओं, कुप्रथाओं का समर्थन करते हुए विश्व गुरु बनने का जो सपना देख रहे हैं, शायद वह खयालीपुलाव है या फिर आसमान के चांदसितारे तोड़ लाने की बातें.

हम आप को भारत के कुछ अजीबोगरीब मंदिरों के बारे में बताना चाहेंगे. लाखों की तादाद में लोग इन मंदिरों में माथा टेकते हैं और मन्नतें मानते हैं, जबकि इन मंदिरों को बनाने में चालाक किस्म के पंडेपुजारियों का हाथ रहता है.

मंदिर का झूठा गुणगान करने में इन की ही जातबिरादरी के लोग होते हैं. उन को पता होता है कि इन मंदिरों से हमारी बिरादरी वालों को फायदा होगा, बाकी लोग तो बेवकूफ बनेंगे.

इन मंदिरों में पुजारी सवर्ण जाति के ब्राह्मण पंडे ही होते हैं और मंदिर की मूर्ति का झूठा यशोगान कर के वे आम लोगों से ठगी करते रहते हैं. सरकार भी इन मंदिरों को इसलिए बढ़ावा देती रहती है कि इस देश की आम जनता में वैज्ञानिक सोच का विकास नहीं हो और वह मंदिरमसजिद में उलझी रहे.

चूतड़ टेका मंदिर

गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा के तकरीबन बीच में हनुमान का एक मंदिर है, जिस का नाम है चूतड़ टेका मंदिर. यहां पर परिक्रमा करने वाले लोगों को चूतड़ टेकना अनिवार्य माना जाता है.

कितना हास्यास्पद लगता है इस मंदिर में चूतड़ टेकना. अगर कोई सभ्य देश का नागरिक इस तरह का मंजर देखे तो पहली नजर में वह चूतड़ टेकने वाले को पागल ही समझेगा. इस मंदिर में पढ़ेलिखे और अनपढ़ सभी लोग आते हैं.

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बीड़ी बाबा का मंदिर

बिहार के भभुआ जिले के तहत अघौरा जाने वाले रास्ते में मुख्य सड़क के किनारे बीड़ी वाले बाबा का मंदिर है, जहां लोग चढ़ावे के रूप में बीड़ी चढ़ाते हैं और बीड़ी पीते भी हैं.

पूछने पर पता चला कि यहां एक बाबा थे जो बीड़ी पीने के शौकीन थे. उन की मौत हो जाने के बाद लोगों ने खुद ही मंदिर बनवाया और बीड़ी चढ़ाना शुरू कर दिया.

भूतना मेला

बिहार के औरंगाबाद जिले के तहत अमजेर शरीफ, मनोरा शरीफ, शिहुली वगैरह जगहों पर भूतना मेला लगता है, जहां भूतप्रेत से तथाकथित ग्रसित लोग अंधभक्ति का शिकार हो कर लोग आते हैं. इन मेलों में ज्यादातर वैसे लोग आते हैं जिन के कोई औलाद नहीं होती है.

इन मेलों में ज्यादातर हिस्टीरिया रोग से पीडि़त लोग आते हैं. मुरगे और बकरे की यहां पर कुरबानी दी जाती है.

इस मजार पर जमीन से संबंधित विवाद है और स्थानीय जमीन मालिक और सरकार के बीच मुकदमा चल रहा है. सब से बड़ी बात यह है कि साल में यहां पर 2 बार भूतना मेला लगता है. लाखों रुपए की इस से आमदनी है. अभी सरकार के अधीन है. इस का फायदा सरकार भी उठा रही है.

सिगरेट वाले बाबा

इंदौर में एक ऐसा मंदिर है, जहां सिगरेट चढ़ाई जाती है. इस मंदिर में आने वाला हर श्रद्धालु हारफूल, प्रसाद और अगरबती के साथ सिगरेट भी लाता है.

सिगरेट के हर डब्बे पर लिखा हुआ रहता है कि सिगरेट पीना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है, वहीं इस मंदिर में लोग सिगरेट चढ़ा कर एक धार्मिक और सामाजिक मान्यता दे रहे हैं, जो गलत है.

लंबे अंग वाले इलोजी

राजस्थान में इलोजी का मंदिर है. यहां कोई मूंछ रखे हुए देवता हैं. लंबा अंग, नंगधड़ंग. औरतमर्दों दोनों में प्रिय. मर्द इन के जैसा अंग चाहते हैं, काम शक्ति चाहते हैं और बेशक औरतें भी. दूल्हा नईनवेली दुलहन को अपने साथ ले जा कर दर्शन करता है. दुलहन इस का आलिंगन करती है. ब्याहता औरतें भी उस के अंग को छूती हैं और बेटे की प्राप्ति की कामना करती हैं.

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इस मंदिर में आने वाले लोगों को अंधविश्वासी कहा जाए या फिर और कुछ? समाज में कुछ इस तरह की परंपराएं चल पड़ती हैं कि पीढ़ी दर पीढ़ी लोग उन्हें मानते चले आ रहे हैं. लोग वैज्ञानिक आधार पर कोई बात समझने के लिए तैयार नहीं होते हैं. लोग यही बोलते देखे जाते हैं कि बापदादा करते थे, हम लोग भी कर रहे हैं.

वीजा वाले हनुमानजी

अहमदाबाद के इस चमत्कारिक हनुमानजी के मंदिर में लोग विदेश जाने के लिए भगवान से वीजा दिलाने की प्रार्थना करते हैं. मान्यताओं में आस्था रखने वाले लोग बड़ी तादाद में यहां आते हैं और कनाडा, आस्ट्रेलिया, अमेरिका, यूरोप जाने के लिए भगवान से वीजा मांगते हैं.

सोचने वाली बात है कि अगर हम पासपोर्ट नहीं बनवाएंगे, वीजा के लिए कोई कोशिश नहीं करेंगे तो क्या इस मंदिर में माथा टेकने से वीजा मिल जाएगा? सारी कोशिश करने के बाद यहां अर्जी लगाते हैं और वीजा मिल जाता है तो अपनी मेहनत पर विश्वास न कर के इस मंदिर पर विश्वास करते हैं और दूसरे को भी बता कर इस ढकोसले को बढ़ावा देते हैं.

कुतिया महारानी मां मंदिर

बुंदेलखंड क्षेत्र के झांसी जनपद में रेवन और ककवारा गांवों के बीच लिंक रोड पर कुतिया महारानी मां का एक मंदिर है, जिस में काली कुतिया की मूर्ति है.

झांसी के मऊरानीपुर के गांव रेवन और ककवारा के बीच 3 किलोमीटर का फासला है. इन दोनों गांवों को आपस में जोड़ने वाले लिंक रोड के बीच सड़क किनारे एक चबूतरा बना है. इस चबूतरे पर एक छोटा सा मंदिरनुमा मठ बना हुआ है. इस मंदिर में काली कुतिया की मूर्ति है. मूर्ति के बाहर लोहे की जालियां लगाई गई हैं, ताकि कोई इस मूर्ति को नुकसान न पहुंचा सके.

जिंदा कुतिया को तो दरवाजे पर से मार कर भगा देते हैं, लेकिन घोर अंधविश्वासी लोग कुतिया महारानी की पूजा करते हैं.

बुलेट बाबा का मंदिर

जयपुर, राजस्थान के पाली इलाके में एक ऐसा मंदिर है जहां भगवान नहीं बल्कि बुलेट की पूजा होती है. लड्डुओं की जगह शराब चढ़ाई जाती है. लोगों का मानना है कि ऐसा करने से हादसा नहीं होता है और यहां के बाबा उन की हिफाजत करते हैं.

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सती माता के चौरे

वैसे तो पूरे देश में, लेकिन खास राजस्थान में आप को बहुत से मंदिर मिल जाएंगे, सती माता के मंदिर पर बाकायदा मेले लगते हैं. सुना तो यही है कि बेचारी औरत को जबरदस्ती नशा पिलाया जाता था और फिर भीड़ उसे ठेलतीठालती पति की चिता तक ले जाती थी. उस की चीखें ढोलनगाड़ों के शोर में दबा दी जाती थीं और जिंदा जला दिया जाता था. फिर शुरू होती थी उस की पूजा.

राजस्थान में झुंझुनूं नामक जगह पर हर साल सती माता का बहुत बड़ा मंदिर है, मेला लगता है. इन सती मंदिरों का महिमामंडन करना घोर अनर्थ है. किसी न किसी रूप में इन मंदिरों में सती की पूजा कर हम सती प्रथा को बढ़ावा दे रहे हैं. इन मंदिरों पर सरकार को तत्काल रोक लगानी चाहिए.

डकैत ददुआ का मंदिर

पाठा की सरजमीं पर तकरीबन 40 साल से भी ज्यादा लंबे समय तक आतंक का दूसरा नाम रहे दस्यु सम्राट ददुआ की मूर्ति का अनावरण धाता, फतेहपुर में कर दिया गया. अब वे मरणोपरांत भगवान की श्रेणी में आ गए हैं, जबकि अपने संपूर्ण जीवनकाल में ददुआ का दूसरा मतलब दहशत ही था.

कितना हास्यास्पद लगता है एक डकैत की पूजा करना. क्या हमारे आदर्श यही डकैत थे?

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सियासी समोसे से लालू गायब

इस के सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के जेल में बंद होने की वजह से पार्टी बिखरने के कगार पर है और लालू प्रसाद यादव के दोनों लाड़ले उन की सियासी विरासत को संभालने में फिलहाल तो नाकाम साबित हो रहे हैं.

कभी बिहार की राजनीति की धुरी रहे लालू प्रसाद यादव जानते हैं कि साल 2020 में होने वाला बिहार विधानसभा चुनाव उन के लिए आरपार की लड़ाई साबित होगा. इस के लिए वे अपनी पार्टी को नई सजधज के साथ उतारने की कवायद में जुट गए हैं, पर उन की सब से बड़ी लाचारी है कि वे रांची जेल में बंद हैं. इतना ही नहीं, चारा घोटाला

में कुसूरवार ठहराए जाने की वजह से वे साल 2024 तक चुनाव नहीं लड़ सकते हैं.

लालू प्रसाद यादव की गैरमौजूदगी में उन के लाड़ले बेटे तेजस्वी यादव की अगुआई में लोकसभा 2019 का चुनाव लड़ा गया और वे पूरी तरह से नाकाम रहे.

इस लोकसभा चुनाव में लालू प्रसाद यादव की पार्टी राजद को एक भी सीट पर जीत नहीं मिली. लालू प्रसाद यादव की बेटी मीसा भारती भी पाटलिपुत्र से चुनाव हार गईं.

साल 1997 में राष्ट्रीय जनता दल के बनने के बाद ऐसा पहली बार हुआ है कि लोकसभा चुनाव में इस पार्टी की मौजूदगी जीरो है.

साल 1997 में नई पार्टी राजद बनाने के बाद लालू प्रसाद यादव ने पूरे दमखम के साथ 1998 का लोकसभा चुनाव लड़ा था, जिस में पार्टी को 17 सीटें हासिल हुई थीं. उस के बाद से लोकसभा में राजद की लगातार दमदार मौजूदगी री है. फिलहाल तो लालू प्रसाद यादव के लिए राहत की बात यह है कि 243 सीट वाली बिहार विधानसभा में उन की पार्टी राजद के 81 विधायक हैं और राजद ही विधानसभा में सब से बड़ी पार्टी है. जद (यू) के 71, भाजपा के 53 और कांग्रेस के 27 विधायक हैं.

विधानसभा में सब से बड़ी पार्टी होने के बाद भी पिछले लोकसभा चुनाव में राजद का खाता नहीं खुल सका. इस की सब से बड़ी वजह बिहार के सियासी अखाड़े से लालू यादव की गैरमौजूदगी होना रही.

बिहार में ज्यादातर नेताओं के बेटे अपने पिता लालू यादव की सियासी विरासत को संभालने और बाप जैसा रसूख पाने में नाकाम ही रहे हैं.

बिहार के पहले मुख्यमंत्री रहे श्रीकृष्ण सिंह के बेटे स्वराज सिंह और शिवशंकर सिंह विधायक तो बने, पर अपने पिता के कद को हासिल नहीं कर सके.

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समाजवादी नेता और राज्य के धाकड़ मुख्यमंत्री रहे कर्पूरी ठाकुर के बेटे रामनाथ ठाकुर कई बार विधायक और मंत्री तो बने, पर नेतागीरी के मामले में पिता जैसी ऊंचाई नहीं पा सके.

मुख्यमंत्री रहे चंद्रशेखर सिंह की बीवी तो सांसद बनीं, पर उन के बेटे राजनीति में कुछ नहीं कर सके. रेल मंत्री रहे ललित नारायण मिश्रा के बेटे विजय कुमार मिश्रा भी अपने पिता के बराबर की लकीर भी नहीं खींच सके.

भागवत झा आजाद के बेटे कीर्ति आजाद और जगदेव प्रसाद के बेटे नागमणि आज तक पिता के नाम पर ही राजनीति कर रहे हैं. वे अपना खास वजूद बनाने में नाकाम ही रहे हैं.

कांग्रेस के दिग्गज नेता राजेंद्र सिंह के बेटे समीर सिंह और बुद्धदेव सिंह के बेटे कुणाल सिंह ने कई बार विधानसभा का चुनाव लड़ा, पर जीत नहीं पाए. ‘शेरे बिहार’ कहे जाने वाले रामलखन सिंह यादव के बेटे प्रकाश चंद्र पिता जैसी हैसियत पाने को तरसते ही रह गए.

लालू प्रसाद यादव की बात करें तो 5 जुलाई, 1997 को जनता दल से अलग हो कर उन्होंने नई पार्टी राष्ट्रीय जनता दल बनाई थी. उस के बाद साल 2005 तक बिहार पर राजद ने राज किया था. वे 2 दशकों तक बिहार में सरकार और सियासत की धुरी रहे, ऐसे में उन का सत्ता से दूर होना पार्टी के लिए परेशानी का सबब बन गया है.

गौरतलब है कि जनवरी, 1996 में 950 करोड़ रुपए के चारा घोटाले का भंडाफोड़ हुआ था. इस घोटाले की जांच का जिम्मा सीबीआई को सौंपा गया था. 17 साल तक की जांच और अदालती सुनवाई के बाद लालू प्रसाद यादव समेत पहले के मुख्यमंत्री और जद (यू) नेता जगन्नाथ मिश्र जो अब नहीं रहे, जद (यू) सांसद जगदीश शर्मा, राजद विधायक आरके राणा समेत 32 आरोपियों को सजा मिली है.

सत्ता और लगातार मिलती कामयाबी ने लालू प्रसाद यादव को बौरा भी दिया था. उन के बदलते तेवरों की वजह से उन के कई भरोसेमंद साथी एकएक कर उन का साथ छोड़ने लगे.

पहली बार उन की पार्टी राजद को सब से बड़ा झटका फरवरी, 2014 में लगा था, जब उन की पार्टी के 13 विधायकों ने उन्हें ‘बायबाय’ कर दिया था और सब उन के प्रतिद्वंद्वी रहे नीतीश कुमार के खेमे में जा बैठे थे.

सम्राट चौधरी, राघवेंद्र प्रताप सिंह, ललित यादव, रामलषण राम, अनिरुद्ध कुमार, जावेद अंसारी जैसे कद्दावर नेताओं ने लालू प्रसाद यादव का साथ छोड़ दिया था. इन नेताओं का आरोप था कि लालू प्रसाद यादव ने राजद को कांग्रेस की बी टीम बना कर रख दिया है.

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इस झटके से लालू प्रसाद यादव उबर भी नहीं पाए थे कि उन के सब से भरोसेमंद सिपहसालार और आंखकान माने जाने वाले रामकृपाल यादव ने उन की ‘लालटेन’ छोड़ कर भाजपा का ‘कमल’ थाम लिया था. उस के बाद दानापुर के कद्दावर नेता श्याम रजक भी उन का साथ छोड़ नीतीश कुमार की पार्टी में शामिल हो गए थे.

लालू प्रसाद यादव की सब से बड़ी कमजोरी यह रही है कि पार्टी के ऊंचे पदों पर वे अपने परिवार के लोगों को ही बिठाना चाहते हैं.

साल 1997 में जब चारा घोटाले में मामले में लालू यादव पहली बार जेल गए थे तो अपनी पत्नी राबड़ी देवी को रसोईघर से निकाल कर मुख्यमंत्री की कुरसी पर बिठा दिया था. उस के बाद वे जेल से ही राजपाट चलाते रहे.

अब कुछ महीने पहले जब चारा घोटाले पर अंतिम फैसला आने की सुगबुगाहट चालू हुई तो पार्टी के बड़े नेताओं के बजाय अपने बेटे तेजस्वी यादव और तेजप्रताप यादव को आगे ला कर खड़ा कर दिया.

पिछले लोकसभा चुनाव में भी पाटलिपुत्र सीट से अपनी बड़ी बेटी मीसा भारती को चुनाव मैदान में उतारा था और उस बाद भी वे चुनाव हार गईं.

पटना यूनिवर्सिटी के प्रोफैसर राजीव रंजन कहते हैं कि बिहार की राजनीति में अब लालू प्रसाद यादव को फिर जीरो से शुरुआत करने की जरूरत होगी.

साल 1990 के विधानसभा चुनाव के समय जन्म लेने वाले बच्चे आज वोटर बन चुके हैं और वे अपने कैरियर के साथ नए बिहार का सपना भी देखबुन रहे हैं. नीतीश कुमार के 19 सालों के काम के सामने सामाजिक न्याय के मसीहा लालू प्रसाद यादव कमजोर नजर आने लगे हैं.

बदलते बिहार और नौजवान वोटरों के मनमिजाज को लालू प्रसाद यादव और उन के लाल अब तक भांप नहीं सके हैं. वे अभी भी सामाजिक न्याय, आरक्षण और लालटेन जैसे चुक गए नारों की ही रट लगाते रहते हैं. समय के साथ उन्होंने न खुद की सोच को बदला और न ही वे नए सियासी नारे ही पढ़ पाए हैं.

गौरतलब है कि बिहार में अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित 38 सीटों के अलावा 60 ऐसी विधानसभा सीटें भी हैं जहां दलित निर्णायक स्थिति में हैं, क्योंकि वहां उन की आबादी 16 से 30 फीसदी है.

राज्य के 38 जिलों व 40 लोकसभा सीटों और 243 विधानसभा सीटों पर जीत उसी की होती है, जो बिहार की कुल 119 जातियों में से ज्यादा को अपने पक्ष में गोलबंद करने में कामयाब हो जाता है.

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लालू प्रसाद यादव माय समीकरण (मुसलिमयादव) के बूते बिना कुछ काम किए 15 सालों तक बिहार पर राज करते रहे थे. नीतीश कुमार बारबार तरक्की का नारा लगाते रहे हैं, पर चुनाव के समय उन के इस नारे पर जातिवाद ही हावी होता रहा है. टिकट के बंटवारे में हर दल यही देखता है कि उन का उम्मीदवार किस जाति का है और जिस क्षेत्र से वह चुनाव लड़ रहा है, वहां कौनकौन सी जातियों के वोट उसे मिल सकेंगे. बिहार की कुल आबादी 10 करोड़, 50 लाख है और 6 करोड़, 21 लाख वोटर हैं. इन में 27 फीसदी  अतिपिछड़ी जातियां, 22.5 फीसदी पिछड़ी जातियां, 17 फीसदी महादलित, 16.5 फीसदी मुसलिम, 13 फीसदी अगड़ी जातियां और 4 फीसदी अन्य जातियां हैं.

वंचित मेहनतकश मोरचा के अध्यक्ष किशोरी दास कहते हैं कि जाति के नाम पर पिछड़ों और दलितों के केवल वोट ही लिए गए हैं, उन्हें आज तक किसी भी सियासी दल या सरकार ने कुछ नहीं दिया.

बिहार राज्य की राजनीति सामाजिक समीकरण से नहीं, बल्कि जातीय समीकरण से चलती रही है. हर दल का जातीय समीकरण है. कांग्रेस सवर्ण, मुसलिम और दलित वोट को गोलबंद करने में लगी रही है तो लालू प्रसाद यादव मुसलिमों और यादवों के बूते राजनीति चमकाते रहे हैं.

नीतीश कुमार कुर्मी, कुशवाहा, दलित और महादलित के वोट पाते रहे हैं, वहीं रामविलास पासवान दुसाध और महादलितों की बात करते रहे हैं. भाजपा अगड़ी जातियों के साथ वैश्यों और पिछड़ी जातियों को लुभाती रही है.

लालू प्रसाद यादव की ही बात करें तो वे भी हमेशा से पोंगापंथ के जाल में उलझे रहे हैं. पिछड़ों और दलितों को आवाज देने का दावा करने वाले लालू प्रसाद यादव भी चुनाव में जीत के लिए जनता से ज्यादा मंदिर और मजार पर यकीन करते रहे हैं.

चारा घोटाला में फंसने और उस के बाद उस मामले में आरोप साबित होने के बाद से लालू प्रसाद यादव अपनी जिंदगी की सब से बड़ी सियासी और कानूनी मुश्किलों से जूझते रहे हैं. वे चारा घोटाला मामले में जेल में बंद हैं और उन की पार्टी का वजूद खतरे में है.

लालू प्रसाद यादव की सब से बड़ी गलती यही रही है कि उन्होंने अपनी पार्टी में दूसरे नेताओं को ताकतवर नहीं बनाया, ताकि पार्टी हमेशा उन की मुट्ठी में रहे. अपनी पार्टी के एक से 10वें नंबर तक केवल लालू प्रसाद यादव ही रहे. अब जब वे जेल गए हैं तो उन्हें अपनी इस गलती का अहसास हो रहा है, पर अब कुछ किया नहीं जा सकता है.

राष्ट्रीय जनता दल में रघुवंश प्रसाद सिंह, जगदानंद सिंह, अब्दुलबारी सिद्दीकी जैसे कई धाकड़ और असरदार नेता हैं, पर लालू प्रसाद यादव ने कभी उन्हें आगे बढ़ने नहीं दिया. उन की हालत ऐसी कर के रखी कि लालू प्रसाद यादव के बगैर वे बेजार साबित हों. अब जो हालात पैदा हुए हैं, उन में पार्टी के विधायकों को एकजुट रखना सब से बड़ी चुनौती है.

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लालू प्रसाद यादव के स्टाइल की ठेठ गंवई सियासत की कमी बिहार को खल रही है. बिना किसी लागलपट के अपनी धुन में अपने मन की बात और भड़ास मौके बे मौके कह देने वाले लालू प्रसाद यादव के बगैर बिहार का राजनीतिक गलियारा सूना पड़ गया है.

राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव अकसर हंसीमजाक में कहते थे कि जब तक समोसे में आलू रहेगा, तब तक बिहार की राजनीति में लालू रहेगा. आज बिहार के सियासी समोसे से गायब लालू प्रसाद यादव झारखंड की जेल में बंद हैं, जिस से निश्चय ही पटना से ले कर दिल्ली तक के सियासी समोसे का मजा किरकिरा हो चुका है.

बदहाल सरकारी अस्पताल

गांवदेहात के तमाम इलाकों से राजधानी पटना तक के सरकारी अस्पतालों में इलाज का सही इंतजाम नहीं है. जिला अस्पताल या ब्लौक अस्पताल तो इन गरीबों को बड़े अस्पतालों में रैफर कर देते हैं, जबकि इन के पास राजधानी के अस्पतालों में जाने के लिए भाड़ा तक नहीं होता. मजबूर हो कर ऐसे लोग सूद पर या जेवर गिरवी रख कर इन सरकारी अस्पतालों में इलाज कराते हैं.

औरंगाबाद जिले के कंचननगर के बाशिंदे 25 साला जयप्रकाश का पूरा शरीर लुंज हो गया था. इलाज के लिए आसपड़ोस के लोगों ने चंदा जमा कर उसे एम्स अस्पताल, दिल्ली भिजवाया. एक महीने तक जांच होने पर भी बीमारी का पता नहीं चल सका और जयप्रकाश लौट कर अपने गांव चला आया.

अमीर तबके के लोग तो देशविदेश तक में अपना इलाज करा रहे हैं, पर गरीबों के लिए सरकारी इलाज भी मजाक बन कर रह गया है. सरकारी अस्पतालों में जचगी के लिए आई औरतों को कोई न कोई बहाना बना कर प्राइवेट अस्पतालों में आपरेशन से बच्चा पैदा करने के लिए मजबूर किया जाता है.

सरकारी अस्पताल के बहुत से मुलाजिमों का इन प्राइवेट अस्पतालों से कमीशन बंधा हुआ है और यह खेल पूरे बिहार में बिना डर के खुलेआम चल रहा है.

गरीबों का इलाज

अगर अमीर लोग भी सरकारी अस्पतालों में इलाज कराने के लिए जाते हैं तो उन का खासा खयाल रखा जाता है. पटना पीएमसीएच जैसे अस्पताल में भी जिन लोगों की पैरवी होती है, उन पर खासा ध्यान दिया जाता है. गरीबों की न तो कोई पैरवी होती है, न ही वे ज्यादा पैसा खर्च कर पाते हैं.

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जांच के नाम पर प्राइवेट और सरकारी अस्पताल के डाक्टरों का कमीशन बंधा हुआ है. जिस जांच का कोई मतलब नहीं होता है, वह भी कमीशन के फेर में कराई जाती है.

प्रदेश का सूरतेहाल

100 कुपोषित जिलों में से 18 जिले बिहार के हैं. इन जिलों में गोपालगंज, औरंगाबाद, मुंगेर, नवादा, बांका, जमुई, शेखपुरा, पश्चिमी चंपारण, दरभंगा, सारण, रोहतास, अररिया, सहरसा, नालंदा, सिवान, मधेपुरा, भागलपुर और पूर्वी चंपारण शामिल हैं.

11 जिलों में औसत से कम लंबाई के बच्चे हैं. उन जिलों में जमुई, मुंगेर, पटना, बक्सर, दरभंगा, खगडि़या, बेगूसराय, अररिया, रोहतास, मुजफ्फरपुर और सहरसा में ठिगनेपन की समस्या है.

सेहत का मतलब शारीरिक और मानसिक रूप से सेहतमंद होना है, लेकिन दोनों लैवलों पर बिहार की हालत ज्यादा चिंताजनक है. गरीबों की जबान पर एक नाम है पटना का पीएमसीएच सरकारी अस्पताल. बिहार के किसी कोने में भी गरीबों को अगर कोई गंभीर बीमारी होती है तो लोग सलाह देते हैं कि पटना पीएमसीएच में चले जाओ. लेकिन बहुत से मरीज यहां आ कर भी बुरी तरह फंस जाते हैं.

इस अस्पताल में बिहार के कोनेकोने से मरीज आते हैं. उन्हें यह यकीन होता है कि यहां अच्छा इलाज होगा, लेकिन यहां भी घोर बदइंतजामी है.

इस अस्पताल में 1,675 बिस्तर हैं लेकिन मरीजों की तादाद दोगुनी है. इमर्जैंसी में 100 से बढ़ा कर 200 बिस्तर किए गए हैं लेकिन स्टाफ की तादाद नहीं बढ़ाई गई है. ओपीडी में तकरीबन रोजाना 1,500 से ले कर 2,500 तक मरीज आते हैं.

इस अस्पताल में 1,258 नर्सों की जगह 1,018 नर्स बहाल हैं. 27 ओटी असिस्टैंट में से महज 19 ही बहाल हैं. 28 ड्रैसर में से महज 11 ही बहाल हैं. 37 फार्मासिस्ट की जगह 31 हैं. 21 लैब टैक्निशियन की जगह 14 हैं.

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ब्लड बैंक में 6 मैडिकल अफसरों में से महज 2 ही बहाल हैं. सैंट्रल इमर्जैंसी के लिए 25 डाक्टरों का कैडर बनना था जो आज तक नहीं बना है.

मर्द डाक्टरों से जचगी

बिहार के गांवदेहात के क्षेत्रों से ले कर शहर तक के सरकारी अस्पतालों में महिला डाक्टरों की कमी है. इस राज्य में 68 फीसदी महिला डाक्टरों के पद खाली हैं. स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ के 533 फीसदी पद स्वीकृत हैं. इन में से महज 167 पद ही भरे गए हैं और 366 पद खाली हैं. संविदा पर नियुक्ति के लिए राज्य स्वास्थ्य समिति ने 88 महिला डाक्टरों की नियुक्ति की जिस में से महज 48 लोगों ने योगदान किया.

बेगूसराय, जहानाबाद, वैशाली, कैमूर, सारण वगैरह जगहों के पीएचसी में मर्द डाक्टरों द्वारा एएनएम का सहारा ले कर जचगी कराने का सिलसिला जारी है. ऐसे डाक्टरों से औरतों का शरमाना लाजिमी है, पर मजबूरी में वे उन्हीं से जचगी करा रही हैं.

बिहार प्रदेश छात्र राजद के प्रभारी राहुल यादव का कहना है कि स्वास्थ्य सूचकांक के सर्वे में बिहार सब से निचले पायदान पर है. स्वास्थ्य सेवाएं बढ़ने के बजाय इस राज्य में उस की लगातार गिरावट जारी है.

भारत और राज्य सरकार का सेहत से जुड़ा खर्च दुनिया में सब से कम है. बिहार देश में सब से कम खर्च करने वाला राज्य है जो राष्ट्रीय औसत से भी एकतिहाई कम खर्च करता है.

पिछले 12 सालों से सत्ता पर काबिज नीतीश सरकार का ध्यान शायद इस ओर नहीं है. ऐसा लगता है कि हमारा देश और राज्य दुनिया में ताल ठोंक कर परचम लहरा रहा है, लेकिन सचाई कुछ और ही है.

बिहार की सरकार स्वास्थ्य पर खर्च 450 रुपए प्रति व्यक्ति सालाना करती है, जबकि एक बार की डाक्टर की फीस 500 रुपए है. बिहार का हर दूसरा बच्चा कुपोषण का शिकार है.

सरकार की उदासीनता की वजह से स्वास्थ्य सुविधाएं इस राज्य के गरीबों की जेब पर भारी पड़ती जा रही हैं और इलाज के लिए लोग घरखेत तक बेचने के लिए मजबूर हैं.

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डाक्टर जब मरीज के परिवार वालों को बोलता है कि 4 लाख रुपए जमा करो या फिर मरीज को मरने के लिए अपने घर ले जाओ, उस समय उन पर क्या गुजरती है, यह सोच कर कलेजा मुंह को आ जाता है. कभीकभार ऐसा भी होता है कि जमीनजायदाद बेचने के बाद भी मरीज की मौत हो जाती है. उस के बाद उस का परिवार सड़क पर आ जाता है.

सच तो यह है कि तरक्की का जितना भी ढोल पीट लिया जाए लेकिन सेहत के मामले में बिहार पूरी तरह फिसड्डी साबित हो चुका है.

अनंत सिंह सरकारी फंदे में

ललन सिंह को लोकसभा चुनाव में चुनौती देना बाहुबली विधायक अनंत सिंह यानी ‘छोटे सरकार’ को महंगा पड़ गया है. उन के पीछे पूरा सरकारी कुनबा पड़ गया है, जिस से उन की मुश्किलों का कोई अंत होता नहीं दिख रहा है.

साल 2015 में हुए बिहार विधानसभा चुनाव के समय से ही नीतीश कुमार और अनंत सिंह के बीच ठनी हुई है. मोकामा से जब जनता दल (यूनाइटेड) ने अनंत सिंह को टिकट नहीं दिया तो उन्होंने 2 सितंबर, 2015 को जद (यू) से नाता तोड़ कर निर्दलीय चुनावी अखाड़े में कूद कर जद (यू) के उम्मीदवार नीरज कुमार को पटकनी दी थी. अनंत सिंह ने साल 2005 और साल 2010 का विधानसभा चुनाव जद (यू) के टिकट पर ही लड़ा और जीता था.

‘सरकार’ से पंगा लेना ‘छोटे सरकार’ को अब काफी महंगा पड़ने वाला है. उन के बाढ़ के लदमां के पुश्तैनी घर पर 16 अगस्त की सुबह 4 बजे पुलिस ने छापा मारा था. पुलिस को सूचना मिली थी कि विधायक और उन के समर्थक घर में छिपा कर रखे गए गैरकानूनी हथियारों को हटाने वाले हैं.

अनंत सिंह के घर की घेराबंदी कर छापामारी की गई. उन के घर से एक एके-47 रायफल, 2 हैंड ग्रैनेड और 26 कारतूस (7.62 एमएम) बरामद किए गए थे. एके-47 को प्लास्टिक के साथ कार्बन से पैक कर के रखा गया था.

कार्बन से पैक करने का मतलब है कि गाड़ी की जांच के दौरान एके-47 रायफल पुलिस और मैटल डिटैक्टर की पकड़ में नहीं आए.

घर के खपरैल वाले कमरे में संदूक के पीछे बड़ी ही चालाकी के साथ उसे छिपा कर रखा गया था. बरामद हैंड ग्रैनेड ऐक्सप्लोसिव-36 का है. एके-47 रायफल असैंबल की हुई?है.

पुलिस का मानना है कि जबलपुर और्डिनैंस फैक्टरी से एके-47 के पार्ट्स चोरी हुए थे. चोरों ने उसे मुंगेर में असैंबल किया था. छापामारी के बाद बाढ़ थाने में विधायक समेत कई अज्ञात लोगों पर केस दर्ज किया गया था.

अनंत सिंह और उन के गुरगों पर आर्म्स ऐक्ट, यूएपीए (अनलौफुल ऐक्टिविटीज प्रिवैंशन ऐक्ट) और विस्फोटक पदार्थ ऐक्ट की धाराएं लगाई गई हैं.

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यूएपीए साल 1967 में बना था. इस ऐक्ट की धारा 13 का आरोपित आरोपपत्र के 180 दिनों तक नजरबंद और 30 दिनों तक पुलिस की हिरासत में रखा जा सकता है. प्रतिबंधित हथियारों को रखने, इस्तेमाल करने और एक जगह से दूसरी जगह ले जाने वाले के खिलाफ इस ऐक्ट का इस्तेमाल किया जाता है.

इसी साल जुलाई माह में इस ऐक्ट की कई धाराओं में संशोधन किया गया है, जिस के तहत किसी को आतंकवादी भी करार दिया जा सकता है.

अनंत सिंह का कहना है कि उन्हें बेवजह परेशान करने की नीयत से यह छापेमारी की गई है. जिस घर में छापा मारा गया है, वहां कोई नहीं रहता है. पुलिस ने उन्हें फंसाने के लिए उन के घर में एके-47 रायफल रख दी है. सरकार के इशारे पर उन के पुश्तैनी घर को तोड़ा जा रहा है. बिना किसी कुर्की और वारंट के घर को खोदा जा रहा है.

गौरतलब है कि कुख्यात भोला सिंह और उस के भाई मुकेश सिंह की हत्या की साजिश रचने के मामले की एक आडियो क्लिप पुलिस के हाथ लगी थी. उस में अनंत सिंह बड़े और कुछ छोटे हथियारों के बारे में बात कर रहे थे. आडियो को सुनने के बाद से ही पुलिस हथियारों की खोज में लगी हुई थी.

आडियो क्लिप में इस बात का भी जिक्र है कि एके-47 रायफल भोला सिंह और उस के भाई की हत्या के लिए मंगाई गई थी.

आडियो क्लिप पुलिस के हाथ लगने के बाद ही अनंत सिंह और उन के गुरगे सतर्क हो गए थे और हथियारों को छिपा कर रख दिया था. आडियो की आवाज से अनंत सिंह की आवाज का मिलान करने के लिए पुलिस उन की आवाज भी रैकौर्ड करा चुकी है.

17 अगस्त को पुलिस ने अनंत सिंह की गिरफ्तारी के लिए कोर्ट में अर्जी दी. उन पर यूएपीए की धारा-13, विस्फोटक ऐक्ट 3/4, आर्म्स ऐक्ट की धारा-25 (1-ए), 25 (1-एए), 25 (1-बी), 26/35 के अलावा आईपीसी की धारा 414, 120 बी के तहत बाढ़ थाने में केस दर्ज किया गया है.

बाढ़ थाने के थानेदार संजीत कुमार के बयान पर केस दर्ज किया गया है. केस का आईओ एएसपी लिपि सिंह को बनाया गया है. पुलिस ने अनंत सिंह के पुश्तैनी गांव के मकान के केयरटेकर सुनील राम को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया है.

अनंत सिंह पर पहले से ही बिहार और झारखंड के अलगअलग थानों में 53 आपराधिक मामले दर्ज हैं. इन में हत्या, हत्या की कोशिश, हत्या के लिए अपहरण, गैरकानूनी तरीके से हथियार और विस्फोटक सामान रखने के मामले शामिल हैं.

साल 2015 में जब नीतीश कुमार ने लालू प्रसाद यादव के साथ मिल कर सरकार बनाई थी तो उस समय भी अनंत सिंह को सरकारी आफत का सामना करना पड़ा था. उस समय उन्हें जेल की सलाखों के पीछे भेजना राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव की बहुत बड़ी सियासी चाल थी. अनंत सिंह को गिरफ्तार करा कर लालू प्रसाद यादव ने नीतीश कुमार से कई सालों पुराना बदला भी साध लिया था.

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साल 2005 में सत्ता में आने के बाद नीतीश कुमार ने लालू प्रसाद यादव के करीबी बाहुबली नेता शहाबुद्दीन को जेल में ठूंस दिया था. शहाबुद्दीन आज तक जेल से बाहर नहीं निकल सके हैं.

17 जून, 2015 को बाढ़ में 4 लड़कों के अपहरण और उन में से एक पवन यादव उर्फ पुटुस यादव की हत्या के मामले में अनंत सिंह 24 जून को जेल में ठूंस दिए गए थे. उस समय भी उन के घर की छापेमारी में इंसास रायफल की 6 मैगजीन, खून से सने कपड़े, बुलेटप्रूफ जैकेट वगैरह सामान बरामद किया गया था.

साल 2004 में जब एसटीएफ ने अनंत सिंह के गांव लदमां में छापा मारा था तो इन के गुरगों ने गोलीबारी शुरू कर दी थी, जिस में एसटीएफ के एक जवान की मौत हो गई थी. उस समय भी पुलिस ने अनंत सिंह के घर से ढेर सारे हथियार, कारतूस और गोलाबारूद बरामद किया था.

गौरतलब है कि अनंत सिंह के पनपने में नीतीश कुमार का बहुत बड़ा हाथ रहा है. वे नीतीश कुमार के लिए भीड़ और वोट जुटाने का काम करते थे और चुनाव में हर तरह से मदद करते थे.  पर अब मामला उलट गया है.

पर याद रहे कि भूमिहार जाति से ताल्लुक रखने वाले अनंत सिंह की अपनी जाति और अपने चुनाव क्षेत्र मोकामा में रौबिनहुड जैसी इमेज है. नीतीश कुमार को अगामी चुनावी में भूमिहार वोट का नुकसान हो सकता है.

गौरतलब है कि राज्य में भूमिहारों के 2.9 फीसदी वोट हैं. जमीन के मामले में मजबूत और दबंग भूमिहार जाति के बीच नीतीश कुमार को ले कर काफी नाराजगी है.

‘मगहिया डौन’ और मोकामा

पटना शहर से 90 किलोमीटर दूर बसी मोकामा नगरपालिका पटना जिले में ही आती है. 57 साल के बाहुबली नेता अनंत सिंह 3 बार मोकामा के विधायक रह चुके हैं. साल 2005 में पहली बार उन्होंने जद (यू) के टिकट से मोकामा विधानसभा सीट से चुनाव जीता था. साल 2010 में हुए विधानसभा चुनाव में भी उन्होंने जीत हासिल की थी. उस के बाद साल 2015 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने जद (यू) से नाता तोड़ कर निर्दलीय चुनाव लड़ा था और जद (यू) के उम्मीदवार नीरज कुमार को हराया था.

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मर्सडीज बैंज कार और बग्घी के शौकीन अनंत सिंह ‘मगहिया डौन’ के नाम से भी जाने जाते हैं. उन का दावा है कि वे अपने क्षेत्र में 10,000 से ज्यादा गरीब लड़कियों की शादी करा चुके हैं.

गहरी पैठ

दिल्ली में तुगलकाबाद के एक मंदिर को ले कर जमा हुए दलितों के समाचारों को जिस तरह मीडिया ने अनदेखा किया और जिस तरह दलित नेता मायावती ने पहले इस आंदोलन का समर्थन किया और फिर हाथ खींच लिए, साफ करता है कि दलितों के हितों की बात करना आसान नहीं है. ऊंची जातियों ने पिछले 5-6 सालों में ही नहीं 20-25 सालों में काफी मेहनत कर के एक ऐसी सरकार बनाई है जिस का सपना वे कई सौ सालों से देखते रहे हैं और वे उसे आसानी से हाथ से निकलने देंगे, यह सोचना गलत होगा.

दलित नेताओं को खरीदना बहुत आसान है. भारतीय जनता पार्टी, कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, कम्यूनिस्ट पार्टी, तृणमूल कांग्रेस, राष्ट्रीय जनता दल आदि में दलित हैं पर उन के पास न तो कोई पद है और न उन की चलती है. कांशीराम के कारण पंजाब और उत्तर प्रदेश में दलित समर्थक बहुजन समाज पार्टी ने अपनी जगह बनाई पर उस में जल्दी ही ऊंची जातियों की घुसपैठ इस तरह की हो गई कि वह आज ऊंची जातियों का हित देख रही है, दलितों का नहीं.

दलितों की समस्याएं तुगलकाबाद का मंदिर नहीं हैं. वे तो कदमकदम पर समस्याओं से घिरे हैं. उन पर हर रोज अत्याचार होते हैं. उन्हें पढ़नेलिखने पर भी सही जगह नहीं मिलती. ऊंची जातियां उन्हें हिकारत से देखती हैं. उन को जम कर लूटा जाता है. उन का उद्योगों, व्यापारों, कारखानों में सही इस्तेमाल नहीं होता. उन्हें पहले शराब का चसका दिया हुआ था अब धर्म का चसका भी दे दिया गया है. उन्हें भगवा कपड़े पहनने की इजाजत दे कर ऊंची जातियों के मंदिरों में सेवा का मौका दे दिया गया है पर फैसलों का नहीं.

हर समाज में कमजोर वर्ग होते ही हैं. गरीब और अमीर की खाई बनी रहती है. इस से कोई समाज नहीं बच पाया. कम्यूनिस्ट रूस भी नहीं. वहां भी कमजोर किसानों को बराबरी की जगह नहीं मिली. पार्टी और सरकार में उन लोगों ने कब्जा कर लिया था जिन के पुरखे जार राजाओं के यहां मौज उड़ाते थे. कम्यूनिज्म के नाम पर उन्हें बराबरी का ओहदा दे दिया गया पर बराबरी तो जेलों में ही मिली.

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आज भारत में संविधान के बावजूद धर्मजनित एक व्यवस्था बनी हुई है, कायम है और अब फलफूल रही है. दिल्ली का आंदोलन इसी का शिकार हुआ. इसे दबाना पुलिस के बाएं हाथ का काम रहा क्योंकि इस में हल्ला ज्यादा था. पुलिस ने पहले उन्हें खदेड़ा और फिर जैसा हर ऐसी जगह होता है, उन्हें हिंसा करने का मौका दे कर 100-200 को पकड़ लिया. उन के नेता को लंबे दिनों तक पकड़े रखा जाएगा. दलितों का यह आंदोलन ऐसे ही छिन्नभिन्न हो जाएगा जैसे 20-25 साल पहले महेंद्र सिंह टिकैत का किसान आंदोलन छिटक गया था.

जब तक ऊंचे ओहदों पर बैठे दलित आगे नहीं आएंगे और अपना अनुभव व अपनी ट्रेनिंग पूरे समाज के लिए इस्तेमाल न करेंगे, चाहे चुनाव हों या सड़कों का आंदोलन, वे सफल न हो पाएंगे. हां, दलितों को भी इंतजार करना होगा. फिलहाल ऊंची जातियों को जो अपनी सरकार मिली है वह सदियों बाद मिली है. दलितों को कुछ तो इंतजार करना होगा, कुछ तो मेहनत करनी होगी. कोई समाज बिना मेहनत रातोंरात ऊंचाइयों पर नहीं पहुंच सकता.

देशभर में पैसे की भारी तंगी होने लगी है. यह किसी और का नहीं, सरकार के नीति आयोग के वाइस चेयरमैन राजीव कुमार का कहना है. पिछले 70 सालों में ऐसी हालत कभी नहीं हुई जब व्यापारियों, उद्योगों, बैंकों के पास पैसा न हो. हालत यह है कि अब किसी को किसी पर भरोसा नहीं है. सरकार के नोटबंदी, जीएसटी और दिवालिया कानून के ताबड़तोड़ फैसलों से अब देश में कोई कहीं पैसा लगाने को तैयार ही नहीं है और देश बेहद मंदी में आ गया है.

राजीव कुमार ने यह पोल नहीं खोली कि पिछले 2-3 दशकों में जिस तरह पैसा धर्म के नाम पर खर्च किया गया है वह अब हिसाब मांग रहा है. पिछले 5-7 सालों में तो यह खर्च कई गुना बढ़ गया है क्योंकि पहले यह पैसा लोग खुद खर्च करते थे पर अब सरकार भी खर्च करती है.

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कश्मीर में ऐक्शन से पहले सरकार को अमरनाथ यात्रा पर गए लोगों को निकालना पड़ा. हजारों को लौटना पड़ा. पर ये लोग क्या देश को बनाने के लिए गए थे? देश तो खेतों, कारखानों, बाजारों से बनता है. जब आप किसानों को खेतों में मंदिरों को बनवाने को कहेंगे, कारखानों में पूजा करवाएंगे, बाजारों में रामनवमी और हनुमान चालीसा जुलूस निकलवाएंगे तो पैसा खर्च भी होगा, कमाई भी कम होगी ही.

जो समाज निकम्मेपन की पूजा करता है, जो समाज काम को निचले लोगों की जिम्मेदारी समझता है, जो समाज मुफ्तखोरी की पूजा करता है, वह चाहे जितने नारे लगा ले, जितनी बार चाहे ‘जय यह जय वह’ कर ले भूखों मरेगा ही. चीन में माओ ने यही किया था और बरसों पूरी कौम को भूखा मरने पर मजबूर किया था. जब चीन कम्यूनिज्म के पाखंड के दलदल से निकला तो ही चमका.

भारत का गरीब आज काम के लिए छटपटा रहा है. पहली बार उस ने सदियों में आंखें खोली हैं. उसे अक्षरज्ञान मिला है. उसे समझ आया है कि काम की कीमत केवल आधा पेट भरना नहीं, उस से कहीं ज्यादा है. धर्म के नाम पर उस का यह सपना तोड़ा जा रहा है और नतीजा यह है कि वह फिर लौट रहा है दरिद्री की ओर और साथ में पूरे बाजार को डुबा रहा है.

सरकार की कोई भी स्कीम काम करने का रास्ता नहीं बना रही है. सब रुकावटें डाल रही हैं. कश्मीर के नाम पर देश का अरबों रुपया हर रोज बरबाद हो रहा है. अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट दिनोंदिन खर्च कर रहा है. बड़ी मूर्तियां बनाई जा रही हैं. कारखाने न के बराबर लग रहे हैं. उलटे छंटनी हो रही है. पहले अमीरों के उद्योग गाडि़यों के कारखानों में छंटनी हुई अब बिसकुट बनाने वाले भी छंटनी कर रहे हैं. नीति आयोग के राजीव कुमार में इतनी हिम्मत कैसे आ गई कि उन्होंने सरकार की पोल खोल दी. अब उन की छुट्टी पक्की पर जो उन्होंने कहा वह तो हो ही रहा है. अमीरों के दिन तो खराब होंगे पर गरीब भुखमरी की ओर बढ़ चलें तो बड़ी बात न होगी.

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धारा 370: किस तरफ चली कांग्रेस की धारा

कश्मीर में धारा 370 के हटने से वहां के लोगों का कितना भला या बुरा होगा, यह कहना अभी जल्दबाजी होगी लेकिन कांग्रेस की धारा किस तरफ जा रही है, यह बड़ी चिंता की बात है. उस के नेता एक सुरताल में कतई नहीं दिख रहे हैं.

राहुल गांधी ने अध्यक्ष पद को छोड़ कर और किसी गैर गांधी परिवार वाले को इस की कमान सौंपने का जो सपना देश की जनता को दिखाया था वह सोनिया गांधी को फिर से अंतरिम अध्यक्ष चुन कर तोड़ दिया गया है, जबकि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सोच से लबरेज भारतीय जनता पार्टी मजबूत होती जा रही है.

शनिवार, 10 अगस्त, 2019 को कांग्रेस हैडक्वार्टर में दिनभर मचे घमासान में अध्यक्ष का फैसला नहीं हो सका था. राहुल गांधी को मनाने की पुरजोर कोशिश हुई, पर वे अध्यक्ष न बनने पर अड़े रहे. इस के बाद कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में सोनिया गांधी को पार्टी का अंतरिम अध्यक्ष चुन लिया गया और राहुल गांधी का लंबित चल रहा इस्तीफा भी स्वीकार कर लिया गया.

आज से कई साल पहले भारत की ज्यादातर जनता इस तरह की खबरों पर इतना ज्यादा ध्यान नहीं देती थी, लेकिन राजनीति से जुड़े लोग या विपक्षी दलों वाले ऐसे फेरबदल पर पैनी नजर रखते थे. चूंकि अभी कांग्रेस विपक्ष में है और राहुल गांधी किसी भी तरह से अपनी पार्टी में नई जान नहीं फूंक पा रहे थे इसलिए लोकसभा चुनाव में मिली हार के बाद उन्होंने तकरीबन ऐलान कर दिया था कि अगला अध्यक्ष कोई गैर कांग्रेसी होगा, ताकि जनता यह भरम अपने दिल से निकाल दे कि कांग्रेस का मतलब गांधीनेहरू परिवार ही है.

पर अफसोस, ऐसा हो न सका. पहले तो लोगों ने सोचा कि क्या पता राहुल गांधी ही अपनी जिद छोड़ देंगे या फिर वे प्रियंका गांधी के नाम पर सहमत हो जाएंगे. कुछ के दिमाग में यह भी चल रहा था कि शायद कांग्रेस किसी युवा चेहरे को जनता के सामने ले आए, पर जब कहीं कोई बात नहीं बनी तब सोनिया गांधी को कांटों का हार पहना दिया गया.

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कभी इंदिरा गांधी को ले कर हवा बनाई गई थी कि ‘इंदिरा इज इंडिया’ और अब आज ऐसा ही कुछ सोनिया गांधी के अंतरिम अध्यक्ष बनने के बाद महसूस हुआ है. लेकिन यह बात कांग्रेस के दोबारा फलनेफूलने में बड़ी बाधा साबित हो सकती है.

ऐसा कहने की एक बहुत बड़ी और खास वजह है. अभी जब भारतीय जनता पार्टी की केंद्र सरकार ने जम्मूकश्मीर से धारा 370 को हटाया तो इस ज्वलंत मसले पर भी कांग्रेस बंटी हुई दिखाई दी.

गुलाम नबी आजाद ने इस मुद्दे पर बड़ी बेबाकी से अपनी राय रखी थी और लगा था कि कांग्रेस अब इस मसले को हवा दे कर लोगों को यह बताने में कामयाब हो जाएगी कि जबरदस्ती के थोपे गए इस फैसले पर वह जनता के साथ है.

लेकिन बाद में इसी पार्टी के नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया समेत कई दूसरे नेताओं जैसे जनार्दन द्विवेदी, भुबनेश्वर कलिता, दीपेंद्र हुड्डा, मिलिंद देवड़ा, कर्ण सिंह और रंजीता रंजन ने धारा 370 पर केंद्र सरकार के फैसले का समर्थन कर दिया था.

ज्योतिरादित्य सिंधिया ने ट्वीट कर के कहा था कि जम्मूकश्मीर और लद्दाख को ले कर उठाए गए कदम और भारत देश में उन के पूरी तरह से एकीकरण का समर्थन करता हूं. संवैधानिक प्रक्रिया का पूरी तरह से पालन किया जाता तो बेहतर होता.

कुछ साल पहले तक सोनिया गांधी के बेहद करीबी माने जाने वाले जनार्दन द्विवेदी ने तो दो हाथ आगे बढ़ कर इस मुद्दे पर कहा, ‘मैं ने राम मनोहर लोहियाजी के नेतृत्व में राजनीति शुरू की थी. वे हमेशा इस धारा के खिलाफ थे. आज इतिहास की एक गलती को सुधार लिया गया है.’

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भुबनेश्वर कलिता को कश्मीर मुद्दे को ले कर ह्विप जारी करना था लेकिन उन्होंने इस्तीफा दे दिया और कहा कि सचाई यह है कि देश का मिजाज पूरी तरह से बदल चुका है और यह ह्विप देश की जन भावना के खिलाफ है.

भुबनेश्वर कलिता ने जवाहरलाल नेहरू का भी जिक्र किया और कहा कि पंडितजी तो खुद धारा 370 के खिलाफ थे और उन्होंने कहा था कि एक दिन घिसतेघिसते यह खत्म हो जाएगी. आज कांग्रेस की विचारधारा से ऐसा लगता है कि पार्टी खुदकुशी करना चाहती है और मैं इस का भागीदार नहीं बनना चाहता हूं.

ज्योतिरादित्य सिंधिया की तरह राहुल गांधी के बेहद करीब माने जाने वाले हरियाणा के युवा कांग्रेसी नेता दीपेंद्र हुड्डा ने धारा 370 के मुद्दे पर कांग्रेस को गच्चा दे दिया. उन्होंने जम्मूकश्मीर से धारा 370 हटाने और राज्य को 2 केंद्रशासित प्रदेश के रूप में बांटने के सरकार के कदम का समर्थन करते हुए कहा कि यह फैसला देश की अखंडता और जम्मूकश्मीर के हित में है. हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि यह उन की निजी राय है.

कांग्रेस नेता और पूर्व सांसद रंजीता रंजन ने कहा कि कांग्रेस पार्टी विपक्ष में है लेकिन विपक्ष में होने का मतलब यह नहीं है कि सरकार के हर फैसले का विरोध किया जाए. धारा 370 को हटना ही चाहिए. यह तो पहले से तय था कि धारा 370 को हटाना है. आज अगर उसे हटा दिया गया है तो यह सही फैसला है.

कांग्रेस नेता कर्ण सिंह ने धारा 370 के हटाए जाने पर कहा कि निजी तौर पर मैं इस फैसले के विरोध में नहीं हूं. इस के कई फायदे हैं. हालांकि, मैं इस को ले कर संसद द्वारा अचानक लिए गए फैसले से हैरान हूं. इस का अलगअलग लैवलों पर असर होगा, मेरी पूरे हालात पर नजर है. लद्दाख को केंद्रशासित प्रदेश का दर्जा दिए जाने का मैं स्वागत करता हूं.

साल 1965 में मैं ने खुद भी राज्य के पुनर्गठन की बात कही थी. नए परिसीमन के बाद पहली बार जम्मूकश्मीर रीजन में राजनीतिक शक्ति का सही से बंटवारा होगा.

युवा कांग्रेस नेता मिलिंद देवड़ा ने इस मुद्दे पर कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि धारा 370 को उदार बनाम रूढि़वादी बहस में तबदील कर दिया गया. कांग्रेस पार्टी को अपनी विचारधारा से अलग हट कर इस पर चर्चा करनी चाहिए कि भारत की अखंडता और जम्मूकश्मीर में शांति बहाली कश्मीरी युवाओं को नौकरी और कश्मीरी पंडितों के न्याय के लिए बेहतर क्या है.

भारत पर इतने साल राज करने वाली कांग्रेस की इतनी बुरी हालत कभी नहीं हुई थी. अब जब भाजपा अपना राष्ट्रवादी एजेंडा देश पर थोप देना चाहती है तब अगर इस पार्टी के नेता यों अपने निजी विचार लोगों के सामने रखेंगे तो सोशल मीडिया के इस जमाने में कांग्रेस को और ज्यादा रसातल में जाने से कोई नहीं बचा पाएगा.

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नेताओं में विचारों की यह फूट सोनिया गांधी और राहुल गांधी के माथे पर चिंता की लकीरें बढ़ा रही है. सब से अहम सवाल तो यह है कि जो युवा नेता जैसे ज्योतिरादित्य सिंधिया, मिलिंद देवड़ा, दीपेंद्र हुड्डा राहुल गांधी के साथ जुड़ कर ताकतवर हो रहे थे, क्या वे उन के इस्तीफे के बाद कमजोर तो नहीं पड़ गए हैं या वे अपनेअपने राज्य के लोगों को यह समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि देशहित से जुड़े धारा 370 के मुद्दे पर वे जनता की भावनाओं का सम्मान करते हैं, ताकि उन की सियासी जमीन न सरक जाए?

कांग्रेस के साथ दिक्कत यह रही कि जम्मूकश्मीर पुनर्गठन बिल पर वह भाजपा को दमदार तरीके से घेर न सकी. गुलाम नबी आजाद और शशि थरूर ने जरूर पार्टी के विचारों को जनता के सामने रखा था और जता दिया था कि देशभक्ति के नाम पर सरकार की मनमानी नहीं चलेगी, पर कांग्रेस के ही नेता अधीर रंजन चौधरी ने इसे भारत का आंतरिक मामला न कहते हुए पूरा खेल ही बिगाड़ दिया जिस से जनता को पता चलता कि क्यों कांग्रेस इस मसले पर अपना विरोध जाहिर कर रही है.

इस सब में एक बात और बेहद जरूरी है कि अब राहुल गांधी के भविष्य का क्या होगा? जो नेता उन के अध्यक्ष बनने के बाद हाशिए पर चले गए थे, वे सोनिया गांधी के दोबारा मजबूत होने से मन ही मन खुश हो रहे होंगे कि उन को अब दोबारा तवज्जुह मिलने लगेगी. अब तो राहुल गांधी के इस तरह अपने पद को छोड़ने के बाद उन की वापसी की राह भी मुश्किल हो जाएगी.

इस का सब से बड़ा फायदा अब प्रियंका गांधी को मिल सकता है, क्योंकि सोनिया गांधी के पास अब विकल्प के रूप में सिर्फ वे ही कांग्रेस का नया चेहरा बचती हैं. अगर सोनिया गांधी ज्यादा समय तक इसी तरह अंतरिम अध्यक्ष पद पर बनी रहीं तो फिर प्रियंका गांधी के लिए कांग्रेस की कमान संभालने में और ज्यादा आसानी रहेगी.

वैसे, अपने एक इंटरव्यू में कांग्रेस नेता शशि थरूर ने बताया कि किस तरह उन्होंने सुझाव दिया है कि चुनाव से कांग्रेस का अध्यक्ष तय किया जाए. उन्होंने इंगलैंड की कंजर्वेटिव पार्टी का उदाहरण देते हुए कहा कि उस की हालत हमारी पार्टी की हालत से भी कमजोर थी. उस हालत में उन्होंने जब चुनाव किया तो उस प्रक्रिया से लोगों के मन में भी कंजर्वेटिव पार्टी को ले कर दिलचस्पी जगी. कांग्रेस में भी ऐसा ही किया जाएगा तो पूरे देश का ध्यान कांग्रेस पर होगा कि कौन जीत रहा है, कौन हार रहा है. कार्यकर्ताओं को भी लगेगा कि अध्यक्ष उन्होंने तय किया है और इस से उन्हें मोटिवेशन मिलेगा.

इस के अलावा पिछले कुछ समय से कांग्रेस में जो गलतियां हुई हैं, उन से इस के नेताओं ने कोई खास सबक लिया नहीं है. उन्होंने सरकार के खिलाफ तो बहुतकुछ कहा, पर वे जनता तक अपना संदेश पहुंचाने में ज्यादा कामयाब नहीं रहे, जबकि भारतीय जनता पार्टी आज के समय में बहुत ज्यादा प्रोफैशनल हो चुकी है. उस के कार्यकर्ता बहुत ज्यादा संगठित हैं. मजबूत सोशल मीडिया सेल है. फंड भी बहुत ज्यादा बढ़ गया है. नरेंद्र मोदी अपनी मार्केटिंग बड़े जबरदस्त तरीके से करते हैं.

कांग्रेस ने इन बातों को हलके में लिया, जबकि उसे भी यह सब करना चाहिए था, लेकिन शायद कांग्रेस को लगा कि उसे मार्केटिंग की जरूरत नहीं है, क्योंकि उस की जनता में बहुत ज्यादा पैठ है और लोग नरेंद्र मोदी को जुमलेबाज समझ कर इन लोकसभा चुनावों में नकार देंगे, पर ऐसा हो न सका.

अब भारतीय जनता पार्टी ने जम्मूकश्मीर से धारा 370 हटा कर यह जताने की कोशिश की है कि वह जो कहती है, कर के दिखाती है. यह मुद्दा अब कांग्रेस से हैंडल नहीं हो पा रहा है, क्योंकि उस के कई नेता इस फैसले के पक्ष में दिखाई दिए हैं.

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कोढ़ पर खाज तो यह है कि कांग्रेस की इस सियासी बेमेल खिचड़ी को सोशल मीडिया भी चटकारे लेले कर खा रहा है. लोगों को भाजपा से उतना प्रेम नहीं है, जितनी कोफ्त कांग्रेस की वैचारिक टूट से हो रही है. मणिशंकर अय्यर और दिग्विजय सिंह जैसे दिग्गजों का मीडिया के सामने बचकाना रुख अपनाना जनता को कतई रास नहीं आ रहा है. कांग्रेस को इस का सब से ज्यादा नुकसान उन जगहों पर उठाना पड़ सकता है जहां आने वाले समय में राज्यों के विधानसभा चुनाव होने हैं.

लालबहादुर शास्त्री के बेटे और कांग्रेसी नेता अनिल शास्त्री ने धारा 370 को ध्यान में रखते हुए कांग्रेस को चेताते हुए कहा, ‘कांग्रेस को अवश्य ही लोगों के मन को भांपना चाहिए और फिर कोई रुख अख्तियार करना चाहिए. इस मुद्दे पर लोग पूरी तरह से सरकार के साथ हैं. हम ने मंडल (कमीशन) का विरोध किया और उत्तर प्रदेश व बिहार को गंवा दिया और अब भारत को खोने का खतरा मोल नहीं लेना चाहिए.’

अनिल शास्त्री की यह देश गंवाने की चिंता जायज भी है क्योंकि अगर भाजपा अगले कुछ साल और इसी तरह देश पर राज करती रही तो वह राष्ट्रभक्ति के नाम पर ऐसेऐसे बड़े फैसले ले लेगी जो जनता को दिवास्वप्न में रखेंगे और जब तक जनता जागेगी तब तक चिडि़या खेत चुग चुकी होगी. शायद तब तक कांग्रेस की सियासी जमीन भी बंजर हो चुकी होगी, इसलिए कांग्रेस को अपने भीतर लगा यह आपातकाल जल्दी ही हटाना होगा.

ममता की ओर झुकते नीतीश?

इस बीच ऐसी अटकलें भी तेज हुई थीं कि नीतीश कुमार पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी सरकार की बहुत ज्यादा बुराई करने को ले कर अजय आलोक से नाराज थे.

अजय आलोक ने पार्टी की राज्य इकाई के प्रमुख वशिष्ठ नारायण सिंह को संबोधित करते हुए अपने इस्तीफे में लिखा था, ‘मैं आप को पत्र लिख कर यह सूचित कर रहा हूं कि मैं पार्टी प्रवक्ता के पद से इस्तीफा दे रहा हूं क्योंकि मुझे लगता है कि मैं पार्टी के लिए अच्छा काम नहीं कर रहा हूं. मैं यह अवसर देने के लिए आप का और पार्टी का धन्यवाद करता हूं लेकिन कृपया मेरा इस्तीफा स्वीकार करें.’

बता दें कि अपने एक ट्वीट में अजय आलोक ने पहले भी जद (यू) के उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर की कंपनी के ममता बनर्जी के लिए चुनाव प्रचार की कमान संभालने पर सवाल उठाए थे.

अजय आलोक पटना के मशहूर डाक्टर गोपाल प्रसाद सिन्हा के बेटे हैं. आलोक अपने कालेज के दिनों से राजनीति में सक्रिय थे. उन्होंने साल 2012 में जद (यू) को जौइन किया था.

सांसद के घर कुर्की का आदेश

वाराणसी. इन लोकसभा चुनावों में उत्तर प्रदेश की घोसी लोकसभा सीट से बहुजन समाज पार्टी के नेता अतुल राय सांसद बने थे, लेकिन लोकसभा चुनाव के दौरान एक छात्रा ने उन पर यह कहते हुए रेप का आरोप लगाया था कि अतुल ने उसे अपनी पत्नी से मिलाने के लिए अपने आवास पर बुलाया था और इस के बाद रेप किया था.

उस पीडि़ता का कहना है कि अतुल राय ने उसे जान से मारने की धमकी भी दी, जबकि अतुल राय का कहना है कि वह छात्रा उन के औफिस आ कर चुनाव लड़ने के नाम पर चंदा लेती थी और चुनाव में उम्मीदवार बनने के बाद उन्हें ब्लैकमेल करने की कोशिश की गई.

छात्रा के आरोप के बाद न्यायिक मैजिस्ट्रेट ने अतुल राय की गिरफ्तारी के आदेश दे दिए थे. वे जमानत के लिए हाईकोर्ट तक गए, लेकिन उन्हें जमानत नहीं मिली, तो वे फरार हो गए जिस के चलते 14 जून को पुलिसप्रशासन ने उन के घर पर कुर्की का नोटिस लगा दिया.

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बिजली के बहाने भिड़ंत

भोपाल. मध्य प्रदेश में बिजली की कटौती को ले कर विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी के एक नेता का सोशल मीडिया पर लंगर डाल कर बिजली गुल करने वाले लड़कों की भरती का इश्तिहार सामने आने से कांग्रेस और उस में तकरार और ज्यादा बढ़ गई.

दरअसल, दमोह जिले के मीडिया प्रभारी मनीष तिवारी ने 12 जून को सोशल मीडिया पर एक पोस्ट डाला था, ‘विज्ञापन-बिजली गोल कराने वाले लड़कों की आवश्यकता है. नोट-लंगर डालने में ऐक्सपर्ट हों. संपर्क करें बीजेपी दमोह.’

इस मसले पर प्रदेश कांग्रेस कमेटी अध्यक्ष के मीडिया समन्वयक नरेंद्र सलूजा ने कहा, ‘प्रदेश में भाजपा के लोग बिजली गुल कराने की एक बड़ी साजिश चला रहे हैं. बिजली गुल कराने के लिए टीम लगाई जा रही है.’

 राजस्थान कांग्रेस में रार

जयपुर. राजस्थान में सत्ता का सुख भोग रही कांग्रेस पार्टी में खेमेबंदी अब खुल कर सामने आ रही है. इस खेमेबाजी की एक तरफ वहां के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत हैं, तो दूसरी तरफ उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट.

दरअसल, दौसा जिले के भंडाना इलाके में मंगलवार, 11 जून को सचिन पायलट के पिता व केंद्रीय मंत्री रह चुके राजेश पायलट की पुण्यतिथि पर कराई गई एक प्रार्थना सभा में सरकार के 15 मंत्रियों समेत 62 विधायक पहुंचे थे, लेकिन मुख्यमंत्री नहीं आए थे. उन्होंने ट्विटर के जरीए राजेश पायलट को श्रद्धांजलि दी थी.

इस के ठीक एक दिन बाद जब अशोक गहलोत जयपुर में एमएसएमई के एक पोर्टल की शुरुआत कर रहे थे तो कई बड़े मंत्री जयपुर में होने के बावजूद वहां नहीं गए थे.

कैप्टन ने कन्नी काटी

चंडीगढ़. पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुआई में शनिवार, 15 जून को हुई नीति आयोग की बैठक में भाग लेने नहीं गए.

कैप्टन अमरिंदर सिंह के बैठक में शामिल न होने की वजह उन का बीमार होना बताई गई, जबकि वे पूरा एक हफ्ता हिमाचल प्रदेश में अपने फार्महाउस पर छुट्टियां बिता कर पंजाब लौटे थे.

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के बाद कैप्टन अमरिंदर सिंह देश के ऐसे दूसरे मुख्यमंत्री थे जो इस खास बैठक में शामिल होने नहीं गए.

गरमाई धरने की सियासत

बैंगलुरु. जेएसडब्लू जमीन सौदे में धांधली का आरोप लगाते हुए कर्नाटक भाजपा के अध्यक्ष और मुख्यमंत्री रह चुके बीएस येदियुरप्पा और दूसरे नेताओं ने 14 जून को बैंगलुरु में पूरी रात धरनाप्रदर्शन किया जिस से एचडी कुमारस्वामी की राज्य सरकार कठघरे में आ गई.

यह मामला जेएसडब्लू स्टील कंपनी की बेल्लारी में 3,667 एकड़ जमीन की बिक्री का है. भाजपा ने आरोप लगाया कि जेएसडब्लू को सस्ती दर पर जमीन अलौट करने का फैसला सरकार ने जानबूझ कर किया है. ऐसा कर के सरकार अपनी झोली भरने का काम करना चाहती है, क्योंकि उसे राज्य में अपनी सरकार गिरने का डर है.

केजरीवाल ने उठाया मुद्दा

नई दिल्ली. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने 15 जून को नीति आयोग की बैठक में दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने का मुद्दा उठाया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई इस बैठक में उन्होंने कहा, ‘दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया जाए जिस का वादा सालों से किया जा रहा है लेकिन लगातार केंद्र सरकारें इनकार करती रही हैं.’

आम आदमी पार्टी ने हालिया लोकसभा चुनाव में भी दिल्ली को पूर्ण राज्य बनाने का मुद्दा उठाया था. उस का कहना है कि केंद्र की दखलअंदाजी की वजह से वह अपनी योजनाओं को असरदार तरीके से लागू करने में कामयाब नहीं हो पा रही?है.

 मूर्ति पर हुई गिरफ्तारी

हैदराबाद. मंगलवार, 17 जून को कांग्रेस के सांसद रह चुके 2 बड़े नेताओं वी. हनुमंथा राव, हर्ष कुमार और उन के समर्थकों को तब गिरफ्तार कर लिया गया जब वे शहर के पंजागुट्टा चौराहे पर भीमराव अंबेडकर की मूर्ति लगाने की कोशिश कर रहे थे.

दरअसल, अप्रैल महीने में ग्रेटर हैदराबाद  नगरनिगम ने ‘अंबेडकर जयंती’ से एक दिन पहले ‘जय भीम सोसाइटी’ द्वारा अंबेडकर की मूर्ति को स्थापित किए जाने के बाद उस जगह से हटा दिया था. बाद में वह मूर्ति टूटीफूटी हालत में कूड़े में मिली थी, जिस का दलित संगठनों ने कड़ा विरोध जताया और इस के जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कार्यवाही की मांग की.

ग्रेटर हैदराबाद नगरनिगम के अधिकारियों ने कहा कि मूर्ति को बिना इजाजत लिए लगाया गया था, इसलिए हटा दिया गया.

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नेता के सामने पी लिया जहर

मुंबई. 15 जून को महाराष्ट्र के ऊर्जा राज्यमंत्री एमएम येरावर के सामने एक किसान ने जहर पी कर जान देने की कोशिश की. दरअसल, बुलढाणा में एक कार्यक्रम के दौरान ऊर्जा राज्यमंत्री मंच पर मौजूद थे, तभी ईश्वर खारटे नाम के एक किसान ने वहां सब के सामने कीटनाशक पी कर जान देने की कोशिश की.

अस्पताल ले जाए गए ईश्वर खारटे का आरोप है कि उस के दादा ने साल 1980 में बिजी के कनैक्शन के लिए अर्जी लगाई थी पर उन्हें अब तक कनैक्शन नहीं मिला है, जबकि संबंधित अधिकारी का कहना है कि ईश्वर खारटे ने बकाया जमा नहीं किया है, इसलिए उन्हें कनैक्शन नहीं मिला है.              द्य

 

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