उन की औरतों को नंगा किया जाता था, उन को देह व्यापार में धकेला जाता था, उन से गुलामों से बदतर काम कराया जाता था. मुसलमानों के साथ यह व्यवहार न मुसलमानों के राज में हो पाया था, न ब्रिटिश राज में. मुसलिम राजाओं के और ब्रिटिशों के जमाने में भी पिछड़े व दलित ही शिकार हो रहे थे.

1947 के बाद भक्तों की बन आई. शुरू में उन्होंने मंदिरों को बनवाया. हर छोटा मंदिर बड़ा बन गया है. दलितों और पिछड़ों को छोटे देवता, जो आमतौर पर बड़े देवताओं के दास, वाहक या किसी और तरह पैदा हुए बच्चे थे, पकड़ा दिए गए और उन से दुश्मनी कम हो गई. उन की जगह मुसलमानों में दुश्मन खोजा गया जो पाकिस्तान बनाने के लिए जिम्मेदार थे. भक्त यह भूल जाते हैं कि अगर भारत के टुकड़े नहीं हुए होते तो पूरे हिंदुस्तान की करीब 160-170 करोड़ जनता में 60 करोड़ मुसलमान होते. लेकिन भक्तों को सच की फिक्र कहां होती है. वे तो झूठों पर जिंदा रहते हैं.

बाबरी मसजिद की पूरी नौटंकी मुसलमानों को देश का दुश्मन बनाने के लिए रची गई और उस में दलितों और पिछड़ों ने भी आहुति दे डाली कि शायद इस से उन को ऊंचा स्थान मिल जाए. लेकिन न 1998 से 2004 तक और न 2014 से अब तक के भक्तों के राज में दलितों और पिछड़ों को राज में बराबर का हिस्सेदार बनाया जा रहा है. उन से दुश्मनी है पर उस पर परदा डाला हुआ है. छिपेतौर पर आरक्षण की जम कर खिंचाई होती है. दलितों को मारापीटा जाता है.

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