कैसे सच होगा: “हाथी मेरा साथी”

परिणाम स्वरूप हाथी को जंगल में असुविधा हो रही है. क्योंकि आम आदमी जंगल में मकान बनाकर गांव पर गांव बसाता चला जा रहा है.

इस रिपोर्ट के लेखक स्वयं ऐसी जगह रहते हैं, जहां अक्सर हाथी सड़कों पर घूमते रहते हैं.
इस रिपोर्ट में हम आपको बताने जा रहे हैं कि इस तरह मनुष्य और हाथी का द्वंद बढ़ता चला जा रहा है और उसे किस तरह रोका जा सकता हैं क्योंकि पृथ्वी पर सभी यानी मनुष्य और वन्य जीवों का सहअस्तित्व जरूरी है. ऐसे में क्या होना चाहिए की हाथियों की मौत जो लगातार चिंता का सबब बनी हुई है वही मनुष्य की हाथियों के जद में आने से हो रही मौत भी रूकनी चाहिए.

हाथियों के जीवन को निकट से देखने वाले वन्य प्रेमी और अधिकारियों के मतानुसार
हाथियों के लिए डरावने शब्दों का उपयोग किया जाता है जब कभी हाथी गांव अथवा शहर आ जाते हैं तो उन्हें देखने के लिए भीड़ उमड़ पड़ती है हाथियों को छेड़ा जाता है और तत्व की आवाज निकाल कर उन्हें परेशान किया जाता है इससे मानव हाथी द्वन्द बढ़ जाता है.भारत सरकार ने इस हेतु एक गाइडलाइन जारी की है. मगर उसे अनदेखा किया जाता है इसी तरह मीडिया में भी हाथी के लिए ऐसे शब्दों का उपयोग किया जाता है जो आपत्तिजनक है.

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गजराज के लिए मीडिया यह करें और यह ना करें

हाथियों के लिए अक्सर अखबार व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में उपयोग हो रहे डरावने शब्दों के उपयोग बंद कराने के लिए भारत सरकार पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने देश के सत्रह प्रोजेक्ट एलीफेंट राज्यों के मुख्य वन जीव संरक्षकों को पत्र भेजकर अपने अपने प्रदेश में मीडिया के साथ सहयोग कर उचित कदम उठाने को कहा है. ताकि मीडिया हाथियों के लिए उचित एवं सौम्य शब्दों का उपयोग करे. क्योंकि अनुसंधान में यह बातें बारंबार आई है कि मीडिया द्वारा वन्य प्राणी हाथियों के लिए ऐसे शब्दों का प्रयोग किया जाता है जिससे आम लोगों में उनके प्रति दुराग्रह और कठोर भाव उत्पन्न हो जाता है. इसे रोकने के लिए वन मंत्रालय ने एक पहल की है और मीडिया से उपेक्षा की जा रही है कि मनुष्य और वन्यजीवों के बीच सम्बन्ध बनाने का काम करें ऐसी खबरें और रिपोर्टिंग नहीं आनी चाहिए जिससे हाथियों को नुकसान है क्योंकि देखा जाता है कि अक्सर बिजली लगाकर की या जहर खिलाकर के हाथियों को मारा जा रहा है.

वन्यजीव प्रेमी नितिन सिंघवी ने भारत सरकार को पत्र लिखकर आशंका जताई थी कि जिस प्रकार हाथियों के लिए डरावने शब्दों का उपयोग मीडिया में हो रहा है उस से आने वाली पीढ़ी हाथियों को उसी प्रकार दुश्मन मानने लगेगी. जैसे कि मानव अमूनन सांपों को दुश्मन मान लेता है और देखते ही मारने का प्रयत्न करता है. जबकि 95 प्रतिशत सांप तो जहरीले ही नहीं होते परंतु इसलिए मार दिए जाते हैं कि हमें बचपन से यही सिखाया जाता है कि साँप खतरनाक होते हैं. नितिन सिंघवी के मुताबिक
हाथियों के , साथ भी यही होगा. जबकि हम सबको हाथियों के साथ रहना सीखना पड़ेगा.

प्रेस और जनता की निगाह में हाथी!

हाथियों के व्यवहार के संदर्भ में मीडिया में जो भाषा पढ़ने को मिल रही है वह आपत्तिजनक है आप भी देखिए जैसे उत्पाती, हत्यारा हाथी , हिंसक , पागल, बिगड़ैल हाथी , गुस्सैल,दंतैल और दल से भगाया हुआ, हाथी ने मौत के घाट उतारा, सिरदर्द बना हुआ है हाथी, यहां जान का दुश्मन है हाथी इत्यादि शब्दों का प्रयोग होता है. जबकि हाथी ही एक मात्र ऐसा वन्य प्राणी है जिसके लिए दुनिया में सबसे अच्छे शब्दों जैसे कि मैजेस्टिक, रीगल, महान, जेंटल, डिग्निफाइड जीव, आला दर्जे का जीव जैसे शब्दों का उपयोग होता है. हाथी को दुनिया के सभी धर्मों में पवित्र प्राणी माना गया है. भारतीय शास्त्रों में हाथी को पूजना गणेश जी को पूजना माना जाता है, हाथी को शुभ शकुन वाला एव लक्ष्मी दाता माना गया है.भारत में राष्ट्रीय वन्य जीव बोर्ड की स्थाई समिति की 13 अक्टूबर, 2010 को हुई बैठक में हाथियों को राष्ट्रीय धरोहर घोषित करा है.

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वन्य प्रेमियों का संदेश

जहां एक तरफ आपकी और मनुष्य का द्वंद जारी है वहीं सरंक्षण अभियान भी छोटे ही पैमाने पर सही लेकिन सतत चलता रहता है इसका एक उदाहरण है वन्यजीव प्रेमी नितिन सिंघवी. जिन्होंने हाथियों के लिए जहां सरकार को लगातार पत्र लिखे हैं वहीं उच्च न्यायालय तक दस्तक दी है.

हमारे संवाददाता से चर्चा में उन्होंने बताया वर्तमान में पदस्थ एवं पूर्व मे पदस्थ प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यप्राणी) छत्तीसगढ़ को उन्होंने व्यक्तिगत रूप से मिलकर सुझाव दिया था कि नकारात्मक शब्दों को प्रकाशित नहीं किया जाना चाहिए इस हेतु मीडिया को सुझाव दिया जा सकता है, परंतु ऐसा लगा कि मानव हाथी द्वंद के प्रति वे चिंतित नहीं है. अतः मजबूर होकर उन्होंने भारत सरकार को सुझाव प्रेषित किया था. परिणाम स्वरूप वन मंत्रालय के उच्च अधिकारियों ने देशभर के सभी हाथी विचरण क्षेत्र के राज्यों को इस हेतु निर्देशित किया है.

सामाजिक कार्यकर्ता घनश्याम तिवारी के अनुसार हाथी और मनुष्य का साथ पूरा काल से चला आ रहा है और चलता रहेगा ऐसे में मीडिया के द्वारा उपयोग किए जा रहे शब्दों को सोच समझकर के प्रयोग करने की आवश्यकता है और इस हेतु लगातार प्रयास जारी है.

टोक्यो पैरालिंपिक 2020: कल तक अनजान, आज हीरो

भारत जैसे देश में जहां खेलों को सरकारी नौकरी पाने का जरीया माना जाता है, वहां खेल के प्रति इज्जत और खेल प्रेमी बहुत कम ही हैं. उन के लिए वही खिलाड़ी बड़ा है, जो ओलिंपिक खेलों में मैडल जीते.

इस बार के मेन टोक्यो ओलिंपिक खेलों में नीरज चोपड़ा ने भाला फेंक खेल इवैंट में सोने का तमगा क्या जीता, वे रातोंरात हीरो बन गए. राखी सावंत भी बीच सड़क पर लकड़ी को भाला बना कर फेंकती नजर आईं.

चूंकि नीरज चोपड़ा देखने में हैंडसम हैं, लंबेचौड़े हैं, तो वे जवान लड़कियों के क्रश बन गए. इस सब में खेल कहीं खो गया और वह सारी मेहनत भी जो नीरज चोपड़ा ने कई साल से एक गुमनाम खिलाड़ी की तरह की थी.

अब उन खिलाडि़यों की बात करते हैं, जो शरीर से कमतर होते हैं, पर मन से ताकतवर और जिन्हें सरकार ‘दिव्यांग’ कहती है. चूंकि इस बार के ओलिंपिक खेलों में भारत ने 7 तमगे जीत कर 48वां नंबर पाया था, तो टोक्यो में हुए पैरालिंपिक खेलों पर भी लोगों की नजर थी, जिन में ‘दिव्यांग’ खिलाड़ी हिस्सा लेते हैं.

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24 अगस्त, 2021 से 5 सितंबर, 2021 तक चले दिव्यांग खिलाडि़यों के इस विश्व खेल में भारतीय खिलाडि़यों  ने शानदार प्रदर्शन किया और कुल  19 तमगे जीते.

इस बार कुल 54 खिलाड़ी टोक्यो पैरालिंपिक में हिस्सा लेने गए थे, जिन में से कामयाब खिलाडि़यों ने 19 तमगे जीते. इन में 5 सोने के तमगे, 8 चांदी के तमगे और 6 कांसे के तमगे शामिल थे. भारत का रैंक 24वां रहा, जो अपनेआप में रिकौर्ड है.

मैडल जीतने की शुरुआत टेबल टैनिस खिलाड़ी भाविनाबेन पटेल ने की थी. उन्होंने भारत के लिए चांदी का तमगा जीता था, जबकि इस खेल में चीन, जापान जैसे देशों का दबदबा ज्यादा है.  29 अगस्त, 2021 को भाविनाबेन पटेल ने टेबल टैनिस क्लास 4 इवैंट के महिला एकल फाइनल में चीन की ?ाउ यिंग से मुकाबला किया, पर 7-11, 5-11, 6-11 की शिकस्त के साथ उन्हें चांदी के तमगे से संतोष करना पड़ा.

34 साल की भाविनाबेन पटेल गुजरात के मेहसाणा की रहने वाली हैं. यहां तक पहुंचने के लिए उन्हें कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा है. महज एक साल की उम्र में उन्हें पोलियो हो गया था. भाविनाबेन पटेल के पिता हंसमुख पटेल ने बेटी के पैरालिंपिक के लिए ठीक से ट्रेनिंग दिलाने के लिए अपनी दुकान बेचने का फैसला किया था. जैसा हर जगह होता है, सरकार की सहायता तो नाम की थी.

इस के बाद एथलैटिक्स में दूसरा तमगा आया. 29 अगस्त, 2021 को ऊंची कूद टी 47 इवैंट में भाग लेने वाले निषाद कुमार ने 2.06 मीटर की ऊंची छलांग लगाने के साथ चांदी का तमगा अपने नाम किया.

हिमाचल प्रदेश के अंब शहर के निषाद कुमार के पिता किसान हैं. जब निषाद 8 साल के थे, तब उन का दायां हाथ खेत पर घास काटने वाली मशीन से कट गया था. इस के बाद उन की मां ने ही उन्हें हौसला दिया था. पिता ने भी उन्हें यह महसूस नहीं होने दिया कि वे दिव्यांग हो गए हैं. हमारे देश में तो इस तरह के लोगों को पाप का भागी ही माना जाता रहा है.

मैडल जीतने के बाद निषाद कुमार बोले थे कि अगर वे अपनी दिव्यांगता या गरीबी के बारे में सोचते रहते तो यकीनन आज पैरालिंपिक में चांदी का तमगा नहीं जीत पाते.

इस के बाद देश को पहला सोने का तमगा मिला. 30 अगस्त, 2021 को जयपुर की रहने वाली पैराशूटर अवनि लेखड़ा ने महिलाओं के 10 मीटर एयर राइफल स्टैंडिंग एसएच 1 इवैंट में यह तमगा जीता. उन्होंने फाइनल मुकाबले में 249.6 अंक हासिल किए और वर्ल्ड रिकौर्ड की बराबरी की.

अवनि लेखड़ा साल 2012 में अपने पिता के साथ जयपुर से धौलपुर जा रही थीं, तो एक सड़क हादसे में वे दोनों घायल हो गए थे. पिता प्रवीण लेखड़ा तो कुछ समय बाद ठीक हो गए, पर अवनि रीढ़ की हड्डी में चोट लगने के चलते खड़े होने और चलने में नाकाम हो गईं.

इस के बाद अवनि लेखड़ा बहुत निराशा से भर गईं और अपनेआप को कमरे में बंद कर लिया, पर बाद में मातापिता की कोशिशों और अभिनव बिंद्रा की जीवनी से प्रेरणा ले कर वे निशानेबाजी करने लगीं.

30 अगस्त, 2021 को ही योगेश कथुनिया ने पुरुष डिस्कस थ्रो एफ 56 इवैंट में चांदी का तमगा जीता. उन्होंने अपना बैस्ट थ्रो 44.38 मीटर का किया.

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3 मार्च, 1997 को जनमे योगेश कथुनिया जब 8 साल के थे, तभी उन्हें लकवा हो गया था. काफी इलाज के बाद उन के हाथों ने तो काम करना शुरू कर दिया, लेकिन पैर वैसे ही रहे. हालांकि, वे ह्वीलचेयर से अपने पैरों पर आ गए थे.

योगेश कथुनिया को एक बार पैरिस में होने वाली ओपन ग्रांप्री चैंपियनशिप में जाना था. इस के लिए टिकट और दूसरे खर्चों के लिए उन्हें 86,000 रुपए की जरूरत थी. पर, घर में पैसे की तंगी पहले से ही थी. इस के बाद योगेश के एक दोस्त सचिन ने उन की मदद की और वहां जा कर उन्होंने सोने का तमगा जीता था. कोई मंदिर, कोई खाप, कोर्ट, बड़ी कंपनी उन की मदद के लिए नहीं आई.

30 अगस्त, 2021 को ही भारत के देवेंद्र ?ा?ाडि़या ने पुरुषों के जैवलिन थ्रो एफ 46 इवैंट में चांदी का तमगा हासिल किया. उन्होंने 64.35 मीटर भाला फेंक कर यह कारनामा किया.

देवेंद्र ?ा?ाडि़या एकलौते पैरालिंपिक एथलीट हैं, जिन के नाम पुरुष भाला फेंक में 2 सोने के तमगे हैं. उन्होंने अपना पहला सुनहरी तमगा साल 2004 में एथेंस पैरालिंपिक में और दूसरा साल 2016 में रियो पैरालिंपिक में जीता था.

देवेंद्र ?ा?ाडि़या जब 8 साल के थे, तब करंट लगने के चलते उन का हाथ बुरी तरह से जख्मी हो गया था. जब उन्होंने अपने स्कूल में भाला फेंकना शुरू किया, तो उन्हें लोगों के ताने ?ोलने पड़े, मगर उन्होंने हार नहीं मानी.

40 साल के देवेंद्र ?ा?ाडि़या का जन्म राजस्थान के एक साधारण किसान परिवार में हुआ था. उन के पिता किसान हैं और उन की मां गृहिणी हैं. उन के पिता राम सिंह ने दूर रहते हुए भी उन्हें खेत की ताजा दाल और गेहूं भेजा था, ताकि वे सेहतमंद रह कर प्रैक्टिस करते रहें.

इतना ही नहीं, इसी इवैंट में भारत के सुंदर सिंह गुर्जर ने कांसे का तमगा जीता. 25 साल के सुंदर सिंह गुर्जर ने साल 2015 में एक हादसे में अपना बायां हाथ गंवा दिया था. दरअसल, अपने एक दोस्त के घर पर काम करने के दौरान वे टिन की चादर पर गिर गए थे. इस से उन के बाएं हाथ की हथेली कट गई थी.

सुंदर सिंह गुर्जर का जन्म राजस्थान के करौली जिले में हुआ था. जब वे छोटे थे, तो पढ़ाई में उन का मन नहीं लगता था. वे 10वीं जमात में फेल हो गए थे. तब उन के एक टीचर ने खेलों में जाने को कहा था.

30 अगस्त, 2021 को भारत का दूसरा सोने का तमगा आया. सुमित अंतिल ने पुरुषों के भाला फेंक एफ 64 इवैंट में वर्ल्ड रिकौर्ड के साथ यह तमगा जीता. उन्होंने 68.55 मीटर का थ्रो करते हुए इतिहास रचा.

7 जून, 1998 को पैदा होने वाले सुमित अंतिल ने 6 साल पहले हुए एक सड़क हादसे में अपना एक पैर गंवा दिया था. इस के बावजूद उन्होंने हर हालात का डट कर सामना किया. उन के पिता भी नहीं थे और 3 बेटियों और सुमित को पालना मां के लिए आसान नहीं था.

सुमित पहलवान बनना चाहते थे, पर हादसे के बाद लगे नकली पैर और भाला फेंक खिलाड़ी नीरज चोपड़ा के हौसला बढ़ाने से उन्होंने यह कारनामा किया.

31 अगस्त को भारतीय निशानेबाज सिंहराज अधाना ने पी 1 पुरुष 10 मीटर एयर पिस्टल एसएच 1 इवैंट में कांसे का तमगा जीता.

जन्म से पोलियोग्रस्त सिंहराज अधाना मूलरूप से फरीदाबाद के तिगांव निवासी हैं. परिवार ने तमाम तरह की मुश्किलों का सामना कर उन्हें इस मुकाम तक पहुंचाया है.

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सिंहराज अधाना की जिंदगी में एक ऐसा समय भी आया था, जब उन की पत्नी कविता ने अपने गहने गिरवी रख कर उन्हें खेल के लिए बढ़ावा दिया था.

रियो पैरालिंपिक में सोने का तमगा जीतने वाले मरियप्पन थंगवेलु ने  31 अगस्त, 2021 को हाई जंप के टी 42 वर्ग में 1.86 मीटर की छलांग के साथ चांदी का तमगा जीता.

मरियप्पन थंगवेलु का जन्म तमिलनाडु के सेलम जिले से तकरीबन 50 किलोमीटर दूर पेरिअवाडागमपत्ती गांव में हुआ था. पिता उन के बचपन में ही परिवार को छोड़ कर कहीं चले गए थे. अब परिवार की जिम्मेदारी उन की मां पर थी, जिन की रोज की आमदनी महज 100 रुपए थी.

5 साल के मरियप्पन थंगवेलु एक दिन सुबह अपने स्कूल जा रहे थे कि तभी किसी शराब पिए हुए बस चालक ने उन्हें टक्कर मार दी. इस से घुटने के नीचे का पैर काटना पड़ा.

मरियप्पन थंगवेलु की मां के पास इतने पैसे भी नहीं थे कि वे उन का अच्छा इलाज करा सकें. उन्होंने इस के लिए बैंक से 3 लाख रुपए का लोन लिया था.

इसी इवैंट में बिहार के मोतिहारी  में पैदा हुए शरद कुमार ने 1.83 मीटर की छलांग के साथ कांसे का तमगा अपने नाम किया. जब वे महज 2 साल के थे, तब डाक्टर ने उन्हें गलत इंजैक्शन दे दिया था, जिस से वे पोलियो से ग्रसित हो गए थे. मांबाप ने उन्हें दूर दार्जिलिंग के बोर्डिंग स्कूल में भेज दिया था, जिस की फीस वे रिश्तेदारों से उधार मांग कर भरा करते थे.

3 सितंबर, 2021 को महज 18 साल के प्रवीण कुमार ने हाई जंप टी 44 इवैंट में 2.07 मीटर की छलांग लगाते हुए चांदी का तमगा जीता. उन्होंने एशियन रिकौर्ड भी बनाया. वे उत्तर प्रदेश के नोएडा के रहने वाले हैं. उन का एक पैर सामान्य रूप से छोटा है, लेकिन इसी को उन्होंने अपनी ताकत बनाया और नया इतिहास रच दिया.

शुरू में प्रवीण कुमार ने वौलीबाल खेलना शुरू किया था, पर बाद में उन्होंने हाई जंप में अपना कैरियर बनाना चाहा. जब वे 16 साल के थे, तो उस दौरान उन्हें ऊंची कूद करने का जुनून चढ़ गया था, जिस के बाद वे स्कूल की तरफ से जिला स्तर पर भी खेले.

पैराशूटर अवनि लेखड़ा ने  3 सितंबर, 2021 को हुए महिलाओं के 50 मीटर राइफल  3 पोजिशन एसएच 1 इवैंट में 445.9 पौइंट के साथ कांसे का तमगा जीता. इस से पहले उन्होंने 10 मीटर राइफल में सोने का तमगा हासिल किया था.

3 सितंबर, 2021 को तीरंदाज हरविंदर सिंह ने पुरुषों के व्यक्तिगत रिकर्व इवैंट में भारत को कांसे का तमगा दिलाया. उन्होंने रोमांचक शूट औफ मैच में दक्षिण कोरिया के एमएस किम को  6-5 से हराया. वे पैरालिंपिक में तमगा जीतने वाले पहले भारतीय तीरंदाज बने.

हरियाणा के कैथल गांव के मध्यम तबके के किसान परिवार के हरविंदर सिंह जब डेढ़ साल के थे, तो उन्हें डेंगू हो गया था और स्थानीय डाक्टर ने एक इंजैक्शन लगाया, जिस का गलत असर पड़ा और तब से उन के पैरों ने ठीक से काम करना बंद कर दिया.

हरविंदर सिंह वर्तमान में पंजाब यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र की पढ़ाई कर रहे हैं.

4 सितंबर, 2021 को निशानेबाज मनीष नरवाल ने भारत की ?ाली में तीसरा सोने का तमगा डाला. उन्होंने निशानेबाजी के मिक्स्ड 50 मीटर पिस्टल इवैंट में 218.2 स्कोर किया.

मनीष नरवाल का जन्म 17, अक्तूबर 2001 में हरियाणा के फरीदाबाद में हुआ था. दाहिने हाथ में जन्मजात बीमारी के साथ पैदा हुए मनीष नरवाल को फुटबाल खेलने का काफी शौक था, लेकिन शारीरिक कमी के चलते वे प्रोफैशनल फुटबालर नहीं बन पाए. पिता दिलबाग के दोस्तों ने मनीष नरवाल को निशानेबाजी में कैरियर बनाने की राय दी, जिस के बाद उन्होंने साल 2016 में फरीदाबाद में ही निशानेबाजी की शुरुआत की.

इसी इवैंट में सिंहराज अधाना ने 216.7 अंक बना कर चांदी का तमगा अपने नाम किया. इस से पहले वे भारत के लिए कांसे का तमगा भी जीत चुके थे.

4 सितंबर, 2021 को बैडमिंटन में प्रमोद भगत ने पुरुष के एसएल 3 वर्ग में सोने का तमगा जीत कर इतिहास रच दिया. उन्होंने ब्रिटेन के डेनियल बेथेल को फाइनल मुकाबले में हराया.

प्रमोद भगत का जन्म ओडिशा के बरगढ़ जिले के अट्ताबीर गांव में 4 जून, 1989 को हुआ था. उन्हें बचपन से ही खेल में बहुत दिलचस्पी थी, पर बचपन में ही वे पोलियो के शिकार हो गए. उन्हें बैडमिंटन खेल में काफी दिलचस्पी थी और पैसों की कमी के चलते वे एक शटल खरीद कर उस से कई दिनों तक खेलते थे.

प्रमोद भगत के पिता खेल को पसंद नहीं करते थे. लिहाजा, प्रमोद दिन में पढ़ाई करते थे और रात में चोरीछिपे बैडमिंटन की प्रैक्टिस करते थे.

4 सितंबर, 2021 को मनोज सरकार ने बैडमिंटन में कांसे का तमगा जीता. उन्होंने जापान के दैसुके फुजिहारा को सीधे सैटों में 22-20 और 21-13 से हराया. मनोज सरकार ने एसएल 3 वर्ग में यह मैच जीता.

उत्तराखंड के मनोज सरकार जब डेढ़ साल के थे, तो उन्हें तेज बुखार आया था. एक ?ालाछाप से इलाज कराया गया. इस इलाज का उन पर बुरा असर पड़ा और दवा खाने के बाद उन के पैर में कमजोरी आ गई.

लोगों को बैडमिंटन खेलता देख मनोज ने भी परिवार से रैकेट खरीदने की मांग की, लेकिन रैकेट खरीदने के लिए परिवार के पास पैसे नहीं थे. मां जमुना ने खेतों में काम कर पैसे जुटाए और बेटे के लिए बैडमिंटन रैकेट खरीदा.

5 सितंबर, 2021 को नोएडा के डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट और बैडमिंटन खिलाड़ी सुहास यथिराज पुरुष एकल एसएल 4 क्लास बैडमिंटन इवैंट के फाइनल मुकाबले में फ्रांस के लुकास माजूर से 21-15, 17-21, 15-21 से हार गए. उन्हें चांदी के तमगे से ही संतोष करना पड़ा.

सुहास यथिराज का जन्म कर्नाटक के शिमोगा में हुआ था. जन्म से ही दिव्यांग सुहास की बचपन से ही खेल के प्रति बेहद दिलचस्पी थी. इस के लिए उन्हें पिता और परिवार का भरपूर साथ मिला.

सुहास यथिराज की शुरुआती पढ़ाई गांव में हुई थी. इस के बाद उन्होंने नैशनल इंस्टीट्यूट औफ टैक्नोलौजी से कंप्यूटर साइंस में इंजीनियरिंग की. साल 2005 में पिता की मौत के बाद वे टूट गए थे. इस के बाद उन्होंने ठान लिया था कि उन्हें आईएएस बनना है और वे बने भी, लेकिन अपना बैडमिंटन के प्रति लगाव नहीं छोड़ा.

इस खेल महाकुंभ के आखिरी दिन  5 सितंबर, 2021 को बैडमिंटन खिलाड़ी कृष्णा नागर ने पुरुष एकल एसएच 6 वर्ग के फाइनल मुकाबले में हौंगकौंग के चू मान काई को हरा कर सोने का तमगा अपने नाम किया.

कृष्णा नागर का जन्म 12 जनवरी, 1999 को जयपुर में हुआ था. 2 साल की उम्र में उन के बौनेपन का पता चला था. उन्हें समाज में आसानी से स्वीकार नहीं किया जाता था और लोग उन के छोटे कद का मजाक उड़ाते थे.

फिर कृष्णा नागर ने अपनी कमजोरी को ताकत बनाया और बैडमिंटन खेलना शुरू किया. बाद में कोच गौरव खन्ना ने उन के खेल को निखारा और इस मुकाम तक पहुंचाने में मदद की.

टोक्यो पैरालिंपिक में भारतीय दिव्यांग खिलाडि़यों ने अपने खेल जज्बे से यह साबित कर दिया है कि वे भी किसी से कम नहीं हैं. उन्होंने खेल को अपनाने के लिए बहुत पापड़ बेले हैं. उन्होंने अपनी शारीरिक कमियों पर जीत हासिल की, समाज की टोकाटोकी को नजरअंदाज किया, अपने खेल पर  फोकस किया और कड़ी मेहनत से यह मुकाम हासिल किया.

इन खिलाडि़यों को मिलने वाली सरकारी मदद पर भारतीय पैरालिंपिक संघ की अध्यक्ष दीपा मलिक ने बताया, ‘‘भारत सरकार ने 17 करोड़ रुपए पैरा खिलाडि़यों की ट्रेनिंग, विदेशी दौरे और दूसरी सुविधाएं देने में खर्च किए हैं. अब जिस चीज की सब से ज्यादा जरूरत है, वह है अच्छे कोच और अच्छी ट्रेनिंग की सुविधाएं.’’

केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार इन खिलाडि़यों की जीत का सेहरा अपने सिर बांधना चाहती है, पर उस की दी गई सुविधाएं ऊंट के मुंह में जीरा हैं. सरकार को ध्यान रखना चाहिए कि ये साधारण खिलाड़ी नहीं हैं. ये तन के साथसाथ मन की कमियों से भी जू?ा रहे होते हैं. इन को खेल की सुविधाएं देने के साथसाथ मानसिक ताकत भी चाहिए, तभी इन से सीख ले कर दूसरे ‘दिव्यांग’ बच्चे भी खेलों को अपनाने की सोचेंगे.

वैसे, यह उन बच्चों के लिए अपनेआप में नई राह है, जो ‘दिव्यांग’ होने के चलते खुद को नकारा मान लेते हैं. बहुत से तो भीख मांगने की राह पर निकल पड़ते हैं. पर अगर उन के घर वाले थोड़ा ध्यान दें, तो वे भी कल के ‘तमगावीर’ हो सकते हैं.

बहरहाल, इन खिलाडि़यों की इस ऐतिहासिक जीत से हर कोई प्रेरणा ले सकता है कि शारीरिक कमी आप की राह में तब तक रोड़ा नहीं बन सकती है, जब तक आप मानसिक तौर पर मजबूत हैं. इस लिहाज से इन खिलाडि़यों की यह उपलब्धि शानदार है.

सब से बड़ी बात यह है कि ये सारे खिलाड़ी उस वर्ग से आते हैं, जिन्हें जरा सी सुविधाएं देने पर ऊंची जातियों के लोगों की छातियों पर सांप लोटने लगते हैं. आजकल वे इन लोगों को मंदिरों में बहलाफुसला कर ले जा रहे हैं ताकि हिंदूमुसलिम खेल में उन का साथ दें. यह बहुत बड़ी बात है कि गरीब घरों से आने वाले ये वंचित, ओबीसी या एससी खिलाड़ी हर तरह का अभाव ?ोल कर देश का नाम ऊंचा कर रहे हैं.

जागरूकता: रेप करना महंगा पड़ता है

‘बड़ेबड़े पहुंच रखने वाले लोग भी अपना बचाव नहीं कर पा रहे हैं. अगर ऐसे आरोप सही न भी हों, फिर भी आरोपी को बहुत तरह के दर्द सहने ही पड़ जाते हैं. लंबे समय तक जेल में रहना पड़ता है. जमानत मुश्किल से मिलती है और जमानत के लिए बड़ी कोर्ट में जाना पड़ता है, जहां वकील की फीस देने में ही आरोपी बरबाद हो जाता है.

‘रेप के मामलों में अगर कोर्ट कोई गलत लगने वाला फैसला सुना दे तो भी जनता उस की खिंचाई करने लगती है. यही नहीं, निचली अदालतों के फैसले पलटने में बड़ी कोर्ट देर नहीं लगाती. वह अब जज के खिलाफ टिप्पणी करने में भी कोई संकोच नहीं करती है. ऐसे कई मामले प्रकाश में आए हैं. नागपुर का मामला सभी ने देखा.’

यह कहना है उत्तर प्रदेश की अपर महाधिवक्ता रह चुकी इलाहाबाद हाईकोर्ट में सीनियर क्रिमिनल एडवोकेट सुनीति सचान का.

नागपुर में पास्को ऐक्ट के तहत मामले की सुनवाई करते हुए वहां की नागपुर हाईकोर्ट की जज ने कहा था कि ‘जब तक स्किन से स्किन का सीधा टच न हो, तब तक यौन उत्पीड़न नहीं माना जाएगा.’’

इस फैसले के आधार पर 39 साल के आरोपी सतीश को 12 साल की लड़की के यौन उत्पीड़न मामले में पास्को के कड़े कानून से बाहर कर दिया गया.

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इस फैसले की हर जगह खिंचाई होने लगी. सुप्रीम कोर्ट ने पूरे मामले को अपने संज्ञान में लिया. इस फैसले पर पहले स्टे दे दिया गया. सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर हुई और महाराष्ट्र सरकार को नोटिस जारी किया गया. सुप्रीम कोर्ट ने फैसला बदला. ऐसे में अब कोर्ट बहुत सचेत हो कर काम करने लगी है.

निर्भया कांड के बाद महिलाओं के खिलाफ अपराध को ले कर कानून में कड़े नियम बनाए गए हैं, जिन में न केवल रेप की परिभाषा बदली गई है, बल्कि सजा को भी दोगुना कर दिया गया है. रेप करने वाला आरोपी अगर नाबालिग है, तब भी उस के लिए किसी भी तरह से बचाव का रास्ता बंद कर दिया गया है. पुलिस से ले कर कोर्ट तक ऐसे मामलों को तेजी से निबटाने लगी है.

उत्तर प्रदेश में महिला अपराधों के बाद सजा पाने वाले अपराधियों की सजा सब से ज्यादा है. प्रदेश में तकरीबन 55 फीसदी ऐसे अपराधी हैं, जिन्हें अब तक सजा मिल चुकी है.

उत्तराखंड और राजस्थान में भी  यही हाल है. यहां 50 फीसदी और  45.5 फीसदी महिला अपराधों में सजा मिल चुकी है. रेप और महिलाओं के खिलाफ होने वाले दूसरे मामलों में पुलिस से ले कर कोर्ट तक अब मामले जल्दी निबटाने लगी हैं. ऐसे अपराधों में अब जमानत बहुत मुश्किल से मिल रही है. महिलाओं को कानूनी मदद देने के लिए एक विशेष हैल्पलाइन भी बनाई  गई है.

रेप की शिकार महिलाओं को कानूनी मदद भी मिलने लगी है. उन्नाव का कुलदीप सेंगर का मामला हो या हाथरस कांड या स्वामी चिन्मयानंद का मामला हो. आसाराम तक को रेप के आरोप में जेल जाना पड़ा है.

बड़े मामलों के अलावा तमाम छोटे मामले हैं, जहां रेप करना महंगा पड़ा है. कानूनी लड़ाई में जमीनजायदाद बिकने लगी है. मुकदमा दर्ज होने के बाद आरोपी को जेल जाना ही पड़ता है. वहां सालोंसाल अपनी सुनवाई के इंतजार में कट जा रहे हैं. ऐसे में साफ है कि रेप करना महंगा पड़ने लगा है.

बलात्कार के मामलों को ‘सम्मान’ से जोड़ा

फैमिली कोर्ट की सीनियर एडवोकेट मोनिका सिंह कहती हैं, ‘‘निर्भया केस के बाद कानून में कड़ा बदलाव किया गया है. इसे काफी सख्त बनाया गया, है, जिस की वजह से रेप करना महंगा पड़ना लगा है.’’

बलात्कार के मामलों में सजा की अवधि को दोगुना तक बढ़ा कर 20 साल किया गया है. पहले बलात्कार के मामले दर्ज नहीं होते थे, पर अब ज्यादातर मामले दर्ज होने लगे हैं. बलात्कार के मामलों को ‘सम्मान’ से जोड़ कर देखा जाता है. इस के चलते रजामंदी से अंतर्धार्मिक या अंतर्जातीय संबंधों को ‘बलात्कार’ का रूप दे दिया जाता है.

इस के चलते बचाव के लिए हत्या जैसे अपराध बढ़ने लगे हैं. लंबे समय तक मुकदमों की सुनवाई चलती है. किसी मामले में तब तक आरोप मुक्त नहीं किया जाता है, जब तक आरोप तय नहीं किए गए हों. वहीं कुछ मामलों में आरोपियों को तब बरी किया जाता है, जब मुकदमे की सुनवाई पूरी हो जाती है. साल 2020 में बलात्कार के 1,60,642 मामले लंबित थे.

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समाजसेवी सुमन सिंह रावत कहती हैं, ‘‘बलात्कार का अपराध पूरे समाज को हिला चुका है. बलात्कार की शिकार लड़कियां और महिलाएं ही नहीं, बल्कि दुधमुंही बच्चियां तक हो रही हैं. बलात्कार के बाद उन की हत्याएं तक करा दी जा रही हैं.

‘‘ऐसी बहुत सी घटनाएं सामने आ चुकी हैं. कड़े कानून के बाद भी जिस तरह का असर दिखना चाहिए था, वह अभी उतना नहीं दिख रहा है. हालांकि पहले से ज्यादा सुधार हुआ है.’’

साल 2020 में एक स्टडी में पाया गया कि फास्ट ट्रैक कोर्ट हकीकत में तेज हैं, लेकिन वे बहुत ज्यादा मामले नहीं संभाल पाते हैं.

फास्ट ट्रैक कोर्ट अभी भी औसतन 8.5 महीने केस निबटाने में लेते हैं, जो 4 गुना से ज्यादा हैं. ऐसे में फास्ट ट्रैक का फायदा नहीं मिल रहा है. रेप मामलों की सुनवाई बहुत ही कम समय में होनी चाहिए.

रेप में बदल गई ‘सहमति’ की परिभाषा

सीनियर एडवोकेट शिवा पांडेय कहती हैं, ‘‘रेप के अपराध में आईपीसी की धारा 375 और 376 के तहत सजा तय की जाती है. धारा 375 में कहा गया है कि रेप ऐसा अपराध है, जिस में संभोग के साथ स्त्री की सहमति पर प्रश्न होता है. संभोग की परिभाषा भी इस धारा के तहत बताई गई है. किसी समय लिंग का योनि में प्रवेश संभोग माना जाता था, पर आज इस में बदलाव किया गया है.’’

कोई आदमी किसी महिला की योनि, उस के मुंह, मूत्र मार्ग या गुदा में अपना लिंग किसी भी स्तर पर प्रवेश करता है या उस से ऐसा अपने किसी अन्य व्यक्ति के साथ कराता है या किसी महिला की योनि, मूत्र मार्ग या गुदा में ऐसी कोई वस्तु या शरीर का कोई भाग जो लिंग न हो किसी भी सीमा तक प्रवेश करता है या उस से ऐसा अपने किसी अन्य व्यक्ति के साथ कराता है, वह रेप माना जाता है.

बदले गए कानून में सैक्स की परिभाषा भी बदल गई है. इस में महिलाओं को काफी अधिकार दिए गए हैं. योनि पर मुंह तक लगाने या फिर उंगली तक डालने को रेप माना जाएगा और इस प्रकार का सैक्स करना ही अपराध नहीं है, बल्कि ऐसा सैक्स करवाना भी अपराध है.

अगर लड़की की उम्र 18 साल से कम है, तब पास्को ऐक्ट के तहत मुकदमा चलता है, जो और भी गंभीर माना जाता है.

अगर किसी महिला की मरजी से सैक्स हुआ हो तो भी कानून यह देखता है कि यह मरजी कैसे हासिल की गई थी. यह सहमति डराधमका कर, नशा दे कर, पति होने का विश्वास दिला कर या फिर विकृत मन स्त्री से या फिर सहमति दे पाने में असमर्थ स्त्री से ली गई है, तो ऐसी सहमति से हुए संभोग को रेप ही माना जाता है.

नाबालिग लड़की के संबंध में, जो 18 साल से कम है, उस के साथ भी सैक्स को रेप ही माना गया है, भले ही सैक्स के लिए उस की स्पष्ट सहमति रही हो. सहमति के होने के बाद भी अभियुक्त रेप के दोषी माने जाएंगे.

उत्तर प्रदेश में रेप के मामलों से जुड़ी एक रिपोर्ट से पता चलता है कि रेप के 57 फीसदी मामले ऐसे होते हैं, जिन में किसी पीडि़ता को शादी का झांसा दे कर बलात्कार किया गया हो.

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रेप के 37 फीसदी मामलों में बलात्कार करने वाला पीडि़ता का कोई रिश्तेदार या जानने वाला ही होता है.  6 फीसदी रेप आरोपी ऐसे होते हैं, जिन से कि पीडि़ता अनजान हो.

सख्ती के बाद भी नहीं घट रहे रेप

नैशनल क्राइम रिकौर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट कहती है कि भारत में साल 2020 में औसतन हर रोज 91 महिलाओं ने बलात्कार की शिकायत दर्ज कराई थी.

साल 2018 में महिलाओं ने तकरीबन 33,356 बलात्कार के मामलों की रिपोर्ट दर्ज की थी. साल 2017 में बलात्कार के 32,559 मामले दर्ज किए गए थे, तो साल 2016 में यह संख्या 38,947 थी.

जेल भेजने के बाद दोषियों को सजा देने की दर सिर्फ 27 फीसदी है. साल 2017 में दोषियों को सजा देने की दर  32 फीसदी थी, वहीं साल 2020 में यह दर 45 फीसदी तक पहुंच चुकी थी.

एनसीआरबी के आंकड़े बताते हैं कि हत्या, अपहरण और महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों में पिछले साल के मुकाबले बढ़ोतरी हुई है.

साल 2018 के आंकड़ों के मुताबिक, देश में हर दिन औसतन तकरीबन 80 लोगों की हत्या के मामले दर्ज हुए. इस के साथ ही 289 अपहरण और 91 मामले दुष्कर्म के आए. साल 2002-2017 के बीच भारत में कुल 4,15,786 मामले बलात्कार के दर्ज हुए.

बीते 17 सालों में हर घंटे औसतन  3 महिलाओं के साथ रेप के मामले दर्ज हुए. महिलाओं के खिलाफ हिंसा को कई बार कम गंभीरता से लिया जाता है और पुलिस ऐसे मामलों की जांच में संवेदनशीलता की कमी दिखाती है.

200 हल्ला हो: दलित समाज का धधकता लावा

हम सब ने बचपन में एक कहानी जरूर सुनी होगी, शेर और खरगोश की. एक शेर का जंगल में आतंक था. चूंकि वह उस जंगल का राजा था, तो बिना वजह दूसरे जानवरों को मार देता था. इस से उस की प्रजा बहुत दुखी थी. सब ने मिल कर शेर के सामने प्रस्ताव रखा कि रोजाना कोई एक जानवर उस के पास भेज दिया जाएगा, ताकि उस की भूख मिट जाए और जंगल में शांति भी  बनी रहे.

शेर ने वह प्रस्ताव मान लिया और उस दिन के बाद से जंगल में खूनखराबा बंद हो गया. पर क्या जो अब सही लग रहा था, वह सच भी था? नहीं. लिहाजा, यह बात छोटे से खरगोश के दिमाग में बैठ गई कि वह बिना प्रतिरोध किए शेर का निवाला नहीं बनेगा और हो सके तो शेर को ही निबटा कर जंगल को उस के खौफ से आजाद कराएगा.

ऐसा हुआ भी. उस खरगोश ने अपनी चालाकी से शेर को यह जता दिया कि उस जंगल में दूसरा शेर आ चुका है और एक कुएं में छिपा है.

अपने दंभ में भरा शेर खरगोश की चाल में फंस गया और अपनी परछाईं को दूसरा शेर समझ कर कुएं में कूद गया और डूब कर मर गया.

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हिंदी फिल्म ‘200 हल्ला हो’ देख कर मुझे अचानक यह शेर और खरगोश की कहानी याद आई. इस फिल्म का जालिम शेर कोई बल्ली चौधरी है, जो एक दलित बस्ती पर एकछत्र राज करता है. वह किसी का भी दिनदहाड़े मर्डर करने से नहीं चूकता है.

एक दलित औरत उस के खिलाफ कुछ बोल देती है, तो वह बीच बस्ती में पहले उस का रेप करता है, फिर चाकुओं से गोद देता है. इस के बाद तो उस का खौफ हद पर होता है. इतना ज्यादा कि वह जिस जवान लड़की या औरत पर अपना हाथ रख देता, वह निरीह जानवर की तरह खुद उस की मांद में जा कर खुद को सौंप देती है.

इस सब जुल्म के बावजूद बस्ती वालों को उम्मीद होती है कि एक दिन सबकुछ सही होगा और उन की जिंदगी खुशियों से भर जाएगी या फिर शायद वे इसे अपनी नियति मान लेते हैं कि चलो, कोई नहीं, इज्जत ही तो गई है, जिंदगी तो बची है. जी लो किसी तरह.

पर अचानक एक दिन 200 औरतें कोर्ट में घुस कर दिनदहाड़े 70 से भी ज्यादा बार उस बल्ली चौधरी को चाकू वगैरह से बड़े ही बेरहम तरीके से जान से मार देती हैं.

ऐसा करने से पहले वे परदा की हुई औरतें पूरे कोर्ट रूम में लाल मिर्च पाउडर फेंकती हैं, ताकि बाकी सब की आंखें बंद हो जाएं और कोई भी उन्हें देख न सके.

वे सब बल्ली चौधरी से इतनी ज्यादा नफरत करती हैं कि उस की मर्दानगी की निशानी को भी काट डालती हैं.

वह कौन सा खरगोश था, जिस ने उन दलित औरतों में इतना ज्यादा जुनून और जज्बा भर दिया था कि अभी नहीं तो कभी नहीं? इस फिल्म में यह किरदार हीरोइन ने निभाया है, जो कई साल से इस बस्ती से बाहर थी, पढ़ीलिखी और होनहार थी, तभी तो उस के परिवार और बस्ती वाले नहीं चाहते थे कि वह दोबारा इस दलदल में धंसे.

पर ऐसा हो नहीं पाता है. वह बस्ती में लौटती है, अपनी एक सहेली पर बल्ली चौधरी का जुल्म देखती है और पुलिस में चली जाती है.

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इस के बाद बल्ली चौधरी उस को सबक सिखाने घर आता है, पर आतंकी शेर भूल जाता है कि अदना से खरगोश को भी अपनी जान प्यारी है और वह अकेली लड़की उस के गैंग पर भारी पड़ती है. इस से बस्ती वाले भी जोश में आ जाते हैं और बल्ली चौधरी व उस के गुरगों की खूब मरम्मत करते हैं.

इतना ही नहीं, बल्ली चौधरी के खिलाफ एकसाथ 40 एफआईआर दर्ज होती हैं. पर वह तो ताकत के नशे में चूर था, इसलिए पुलिस कस्टडी में होने के बावजूद वह सब बस्ती वालों को कोर्ट परिसर में देख लेने की धमकी देता है. बस, यहीं वे सब औरतें समझ जाती हैं कि इस जानवर को हलाल करना ही पड़ेगा. ऐसा होता भी है और बाद में उन औरतों को सुबूतों की कमी में छोड़ भी दिया जाता है.

इस फिल्म की कहानी को एक सच्ची घटना पर आधारित बताया गया है. नागपुर शहर की बैकग्राउंड पर बनी इस फिल्म में अमोल पालेकर ने एक रिटायर्ड दलित जज का किरदार अदा किया है. हीरोइन रिंकू राजगुरु हैं, जो अपनी दलित बस्ती में बदले की चिनगारी भरती हैं.

पर इस फिल्म की सब से बड़ी खासीयत यह है कि इस में दलित औरतों की आज की हालत को बड़ी ही बारीकी से दिखाया गया है. वे सामाजिक ढांचे में सब से निचले पायदान पर खड़ी हैं. उन की समस्याओं के जरीए दलित समाज की बदहाली का बेबाक बखान किया गया है.

वे ही नहीं, बल्कि अमोल पालेकर, जो एक रिटायर्ड जज हैं और संविधान को सर्वोच्च स्थान देते हैं, खुद ‘सैलिब्रेटी दलित जज’ के टैग से जूझ रहे होते हैं. रिटायर होने के बाद भी समाज उन्हें इज्जत देता है, पर उन की जाति न जाने क्यों उन का पीछा नहीं छोड़ पाती है.

वे मौब लिंचिंग को गलत मानते हैं, पर साथ ही सवाल भी उठाते हैं कि ऐसी क्या मजबूरी रही होगी कि उन औरतों ने कोर्ट परिसर में ही एक आदमी का कोल्ड ब्लडेड मर्डर कर दिया? वे उसे मर्डर नहीं, बल्कि ‘मृत्युदंड’ की संज्ञा देते हैं.

इतना ही नहीं, जब उन की इस केस से संबंधित कमेटी को भंग करने की बात आती है, तो वे कोई सवालजवाब नहीं करते हैं, बल्कि जिस डायरी में अपने फाउंटेन पैन से नोट लिख रहे होते हैं, उस की निब को डायरी पर ही तोड़ देते हैं. ठीक वैसे ही जैसे किसी जज ने किसी आरोपी को मृत्युदंड देने के बाद अपनी कलम तोड़ दी हो.

इस पूरी फिल्म में बल्ली चौधरी के जरीए भारतीय पुरुषवादी और जातिवादी सोच का घिनौना रूप भी दिखाया है. यह किरदार नफरत के लायक है और अपने अहंकार में इतना ज्यादा डूबा हुआ है कि पूरी बस्ती उस के लिए कीड़ेमकोड़े से ज्यादा कुछ नहीं है. वह औरतों को अपने बाप का माल समझता है और कोई राजामहाराजा न होते हुए भी बर्बर है.

बल्ली चौधरी जातिवाद का ऐसा आईना है, जहां भरे शहर में दलित समाज को उस की औकात दिखाई जाती है. अगर उस बस्ती से बाहर कहीं चले गए तो आप की जान बच गई, वरना आप कहीं के नहीं रहेंगे. गरीब दलित ही क्यों, खुद जज बने अमोल पालेकर एक जगह बाबा साहब अंबेडकर के फोटो के सामने कहते हैं कि दलित का कहीं घर नहीं है.

इस के अलावा फिल्म में पुलिस का भी दोहरा चरित्र दिखाया गया है कि कैसे भी केस निबटा कर मामला खत्म करो और अपनी गरदन बचाओ. देश की हकीकत भी ऐसी ही है. पुलिस गरीब की हिमायती कभी नहीं दिखती है.

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यही वजह है कि अच्छे पढ़ेलिखे लोग भी थाने जा कर एफआईआर दर्ज कराने से पहले कई बार सोचते हैं. जब शहरों, महानगरों का यह हाल है, तो गांवदेहात और कसबाई इलाकों में क्या होता होगा, इस का सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है.

यही वजह है कि अखबारों में रोज रेप, छेड़छाड़, एसिड अटैक की खबरें भरी पड़ी रहती हैं, पर हम उन्हें ऐसे नजरअंदाज कर देते हैं, जैसे जिन पर यह जुल्म हुआ है, वे इनसान ही नहीं हैं.

नतीजतन, आज भी दलितों को अगड़ों के साथ कुरसी पर बैठने नहीं दिया जाता है. सरकारी दफ्तरों तक में ऊंची जाति के चपरासी निचली जाति के बड़े अफसरों को पानी तक नहीं पूछते हैं. निचलों को मंदिर में घुसने तक नहीं दिया जाता है. उन्हें उन के देवीदेवता थमा दिए गए हैं. शादी में घोड़ी पर नहीं बैठने नहीं दिया जाता है.

दलित औरतों और लड़कियों पर होने वाले जोरजुल्म के मामले तो रोजाना बढ़ रहे हैं. बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के गृह राज्य गुजरात में बीते 10 सालों के दौरान हुए अपराध के आंकड़ों से पता चलता है कि हर 4 दिन में अनुसूचित जाति की एक औरत के साथ रेप होता है.

साल 2019 में पूरे देश में दलित महिलाओं के बलात्कार के 2,369 अपराध घटित हुए, जिन में से अकेले उत्तर प्रदेश में रेप के 466 मामले दर्ज हुए, जो राष्ट्रीय स्तर

पर कुल अपराध का 19.6 फीसदी है.

एनसीआरबी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2019 में बिहार में दलित अत्याचार के मामलों में 7 फीसदी का इजाफा हुआ. साल 2018 में 42,792 मामले दलित अत्याचार से जुड़े सामने आए, तो साल 2019 में इन की संख्या बढ़ कर 45,935 हो गई. यही नहीं, साल 2019 में 3,486 रेप के ऐसे मामले आए, जिन में पीडि़ता दलित समाज से थीं.

पूरे देश में कमोबेश ऐसे ही हालात हैं और शासनप्रशासन लीपापोती में लगा रहता है. 200 औरतों द्वारा किसी वहशी को यों मौत के घाट उतारना भी समस्या का हल नहीं है, पर अगर पानी सिर से ऊपर चला जाए तो ऐसा हल्ला हो ही जाता है, जो बेहद दुखद है और समाज की कड़वी सचाई भी.

बेटी: प्रेरणादायी जन्मोत्सव!

आज के समय में भी, जब समाज में, बेटियों को बोझ माना और समझा जाता है. कोई एक शख्स ऐसा भी हो सकता है जो बेटी के जन्म को उत्सव में बदल दे, यही नहीं, इस संदेश और  उत्सव में सभी शहर वासियों को भी शामिल कर ले तो यह एक मिसाल बन जाती है.

एक पानी पुरी बेचने वाले एक साधारण से व्यक्ति  ने एक ऐसा  काम कर दिखाया है जिसकी मिसाल दूसरी शायद ही आपने सुनी और देखी हो.

‘आइए! आज आपको हम मिलाते हैं एक ऐसे शख्स से जिसने बेटी के जन्म को एक उत्सव बना दिया और समाज को एक बड़ा संदेश दिया .   आंचल गुप्ता ने  यह  महसूस किया कि इतने लंबे समय से वह एक बेटी की कामना कर रहा था, तो क्यों न मैं इस खुशी मैं लोगों को शामिल कर लूं और उसने परिवार की सलाह पर  एक दिन के लिए अपने दुकान में पानीपुरी मुफ्त खिलाने  का निर्णय लिया.

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और विगत  सितंबर के पहले पखवाड़े में बारह तारीख को दोपहर 1 बजे से शाम 6 बजे तक अपनी दुकान पर आने वाले सभी ग्राहकों को मुफ्त में पानीपुरी खिलाते रहे.यही नहीं उन्होंने ज्यादा से ज्यादा लोग पानीपुरी खा सकें, बेटी के जन्मोत्सव में भाग लें इसके लिए 10 स्टॉल लगाए थे. पांच घंटे के दौरान उन्होंने लोगों को लगभग 50 हजार पानीपुरी खिलाई.

यह संपूर्ण प्रसंग मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल के बाहर  अब देश में चर्चा का विषय बन गया है. और लोगों को प्रेरणा दे रहा है कि बेटी का जन्म भी जन्मोत्सव हो सकता है. लोगों की सोच बदलने का यह अनूठा प्रयास एक तरह से स्वमेव‌ आयोजित हो गया.

अनोखी का अनोखा जन्मोत्सव

देश का हृदय कहे जाने वाले मध्य प्रदेश के भोपाल  के कोलार रोड पर रहने वाले अंचल गुप्ता के घर जब एक बेटी ने जन्म लिया, तो परिजनों ने बेटी का नाम- ‘अनोखी’ रखा.और  अनोखी का जन्म कुछ इस अंदाज में मनाया गया जो आज देश भर में चर्चा का विषय बन गया है. उनका एक दो वर्ष का बेटा भी है. बेटे के बाद जब बेटी आई, तो पिता आंचल गुप्ता  ने परिवार और आम लोगों के साथ अपनी खुशी‌ कुछ ऐसे  बांटी की आज देश और समाज में एक अनोखा संदेश बन गई. उन्होंने  बेटी के जन्म पर लोगों को  पानीपुरी मुफ्त में खिलाई लोगों को अपनी खुशी में शामिल किया. लोग जब पूछते की क्या बात है? तो वह बड़े ही गर्व के साथ बताते कि वे एक बेटी के पिता बन गए हैं.

कोलार भोपाल में आंचल गुप्ता बीते 14 साल से पानीपुरी का व्यवसाय कर रहे हैं. सामान्य दिनों में करीब 5 हजार पानीपुरी की बिक्री करते हैं. अंचल गुप्ता ने बताया  विवाह के बाद बेटी की चाहत थी लेकिन पहले बेटे का जन्म हुआ, अब दो  साल बेटी की किलकारी भी घर में गूंज उठी.  इसलिए उन्होंने यह खुशी सभी के साथ मनाने का निर्णय लिया.

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लड़कियों के प्रति आज भी भेदभाव होता है…

समाज में लड़कियों के प्रति भी आज भी अलग नजरिया रखा जाता है.पहले जन्म ही न हो ऐसा प्रयास किया जाता है. और आगे उन्हें तमाम तरह की हिदायत दी जाती है, यहां मत जाओ, वहां मत जाओ. इतना ही नहीं बल्कि अगर कभी लड़के या लड़की दोनों में किसी एक की शिक्षा रोकनी है तो ऐसे में लड़कियों की शिक्षा रोक दी जाती है. कभी गरीबी  में कभी अभाव में मजबूरी में लड़कियों की पढ़ाई बीच में ही रोक दी जाती है.

सच यह है कि सरकार कितना भी ढिंढोरा पीट ले महिलाओं की स्थिति आज भी दोयम दर्जे की है.इस संवाददाता ने जब कुछ लड़कियों से चर्चा की तो चर्चा में शामिल सभी लड़कियों ने यह इच्छा व्यक्त की कि वे आगे बढ़ना चाहती हैं कोई डॉक्टर तो कोई इंजीनियर, वकील एवं कोई अन्य विशेष गतिविधियां में नाम पैदा करना चाहती है.

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दरअसल, जब तक हमारे देश में  महिलाओं को देखने का नजरिया नहीं बदलता तब तक किसी सुधार की गुंजाइश कम  है.

युवा सामाजिक कार्यकर्ता सोनाली मंदिर वार के मुताबिक उन्होंने लगातार युवतियों से परिचर्चा की है, यह माना है कि आमतौर पर लड़कियों को बंधनों में रहना पड़ता है और भी स्वेच्छा की उड़ान नहीं भर पाती या फिर ब्यूटी पार्लर जैसा नाम भी करने से पहले उन्हें कई समस्याएं का सामना करना पड़ता है. भोपाल के आंचल गुप्ता ने जो संदेश आज समाज को दिया है वह अनोखा तो है ही प्रेरणा प्रद भी है.

अंधविश्वास: पिछड़े हो रहे पाखंड के शिकार

कोरोना ने यह बात तो साबित कर दी है कि यह बीमारी मठ, मंदिरमसजिद, मजारों, गिरिजाघरों वगैरह में हाथपैर पटकने से भागने वाली नहीं है. इस के बावजूद लोग धर्म के नाम पर हो रहे पाखंड से बच नहीं पा रहे हैं.

यही वजह है कि कोरोना को सोशल डिस्टैंसिंग, फेस मास्क और दूसरे तमाम सुरक्षा उपायों से दूर रखने के बजाय झाड़फूंक, पूजापाठ, हवनयज्ञ का सहारा लिया जा रहा है.

हमारे देश में पाखंड की अमरबेल इस कदर फैल चुकी है कि समाज को सभ्य और पढ़ालिखा बनाने के बजाय उसे माली तौर पर खोखला बनाने का काम किया जा रहा है. धार्मिक आडंबरों और समाज में फैले पाखंड के जिम्मेदार वही पंडेपुजारी, मौलवी, पादरी ज्यादा हैं, जिन की दुकान इन पाखंडों के बलबूते चल रही है.

धर्म के ठेकेदार परजीवी की तरह समाज से मिली दानदक्षिणा से जिंदगी की तमाम सुखसुविधाओं को भोग कर हरेभरे रहते हैं.

दरअसल, पाखंड का सीधा संबंध जाति व्यवस्था से है. लोगों को मनुवादी व्यवस्था के मुताबिक ब्राह्मण, बनिया, क्षत्रिय और शूद्र जातियों में बांट कर कुछ पढ़ेलिखे ब्राह्मणों ने खुद को भगवान मान लिया और शूद्र कहे जाने वाले दलितपिछड़ों को गुलाम बना लिया.

अपनेआप को श्रेष्ठ समझने वाले पंडेपुजारियों ने ही जाति के नाम पर लोगों को एक नहीं होने दिया और खुद बिना मेहनत किए दानदक्षिणा के बल पर समाज पर हुकूमत चलाते रहे. यही वजह है कि आज भी गांवकसबों में ब्राह्मणों के घर पैदा होने वाले बिना पढ़ेलिखे, शराब पीने वालों को भी दूसरी जाति के लोगों द्वारा ‘पांवलागी’ (पैर छूने का सम्मान) की जाती है और दलितपिछड़ों के घर के पढ़ेलिखे लोगों को हिकारत की नजर से देखा जाता है.

दरअसल, दलितपिछड़े वर्ग के लोग जितना पाखंड को मानते हैं, उतने ही वे जाति व्यवस्था के शिकार होते हैं. जाति व्यवस्था से उपजे इस पाखंड की बानगी का अंदाजा फिल्म कलाकार आशुतोष राणा की आपबीती से आसानी से लगाया जा सकता है.

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हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में अपनी अलग पहचान बना चुके आशुतोष राणा एक किस्सा सुनाते हैं कि जब उन्हें स्कूलकालेज के दिनों में ऐक्टिंग का शौक चढ़ा था तो उन्होंने छोटे से कसबे गाडरवारा में होने वाली रामलीला में ऐक्टिंग करने की ठान ली थी. वहां उन्होंने देखा कि रामलीला में भी राम, लक्ष्मण, सीता, भरत, शत्रुघ्न जैसे किरदारों के लिए ब्राह्मण बच्चों को ही चुना जाता था. अच्छी संवाद अदायगी और ऐक्टिंग के बाद भी उन्हें रावण जैसे किरदार दिए जाते थे.

जब टैलीविजन की पहुंच घरघर तक नहीं थी, तब गांवकसबों में मनोरंजन के साधन रामलीला और रासलीला जैसे धार्मिक आयोजन ही होते थे. इन आयोजनों के कर्ताधर्ता, महंत, सूत्रधार, डायरैक्टर भी ब्राह्मण वर्ग के पंडेपुजारी ही होते थे. राम, लक्ष्मण, सीता, कृष्ण, बलराम, राधा बने ब्राह्मण बच्चों के पैर छुए जाते थे और चढ़ावे के नाम पर पैसे वसूले जाते थे.

कम पढ़ेलिखे दलित और पिछड़े लोगों को बताया जाता था कि इन भगवान के चरणों में चढ़ावा चढ़ाने से तुम्हारे सारे पाप धुल जाएंगे और तुम्हें पुण्य मिलेगा और वे ऐसा करते भी थे.

मध्य प्रदेश के आदिवासी अंचलों में रहने वाले दलितों को आज भी छुआछूत का सामना करना पड़ता है, इस के बावजूद वे पंडेपुजारियों के झांसे में आ कर पूजापाठ के पाखंड से दूर नहीं हो पा रहे हैं. गांवकसबों में आज भी ऐसे पंडे, बाबा, मौलवी, फकीर मौजूद हैं, जो तंत्रमंत्र, झाड़फूंक के नाम पर दलितों को लूटने का काम कर रहे हैं.

सितंबर, 2020 में मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले की परासिया विधानसभा के सित्ताढाना गांव में एक दलित लड़की गीता ने अंधविश्वास के चलते नाग से शादी रचाई और पंडितों ने बाकायदा फेरे करा कर दानदक्षिणा हासिल कर ली. दलितपिछड़ों द्वारा पंडितपुरोहितों को आज भी बुद्धिमान माना जाता है, पर ये लोग दलितपिछड़ों को सही राह दिखाने के बजाय पाखंड में उलझा कर रखना चाहते हैं.

पाखंड तरहतरह के

हिंदू पंचांग के हिसाब से 3 साल में एक वार एक माह बढ़ जाता है, जिसे  ‘अधिक मास’, ‘मल मास’ और कहींकहीं ‘पुरुषोत्तम मास’ भी कहा जाता है. इस महीने में सूरज निकलने के पहले नदीतालाब में स्नान, दानदक्षिणा और पूजापाठ के बहाने ये पंडित अपनी दुकान चला कर समाज को पाखंड के दलदल में ही फंसे रहने की सीख दे रहे हैं.

सावन के महीने में होने वाली कांवड़ यात्रा को पंडेपुजारियों ने ही शुरू किया था, लेकिन अब उन्होंने इसे आमदनी का जरीया बना लिया है. पंडों ने लोगों के मन में यह बात बिठा दी है कि कांवड़ यात्रा निकाल कर शिव मंदिर में जलाभिषेक करने से सारे दुख दूर हो जाते हैं. अब हालात ये हैं कि मध्यमवर्गीय पिछड़े वर्ग के नौजवान ही कांवड़ यात्रा निकाल रहे हैं.

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दलितपिछड़े, गरीब, मजदूरों के घरों की औरतें और लड़कियां पैसे वाले लोगों के घरों में चौकाबरतन, साफसफाई कर के घर चला रही हैं. पिता मजदूरी या अपना पुश्तैनी कामधंधा कर के परिवार चला रहा है और जवान बेटा भगवा गमछा पहन कर धर्म की रक्षा करने के लिए कांवड़ यात्रा में लगा है.

पंडेपुजारियों की इस लूट का नमूना बरसात के दिनों में पड़ने वाले तीजत्योहार और उन में होने वाले पूजापाठ से लगाया जा सकता है.

हरछठ पूजा, हरितालिका, ऋषि पंचमी, संतान सप्तमी, महालक्ष्मी पूजन और पितृ पक्ष और दुर्गा पूजा जैसे अवसरों पर ये पंडेपुरोहित पूजापाठ और कर्मकांड के बहाने लोगों को दानपुण्य की अहमियत बताते हुए स्वर्ग की टिकट बुक करा कर अपनी झोली भरते हैं.

दलितपिछड़ों को वैसे तो ये अछूत मानते हैं, पर उन से मिलने वाली दानदक्षिणा को सिरआंखों पर लगाते हैं.

विज्ञान के युग में भी हमारा समाज धार्मिक ढोंग, पाखंड और अंधविश्वास की बेडि़यों में जकड़ा हुआ है. पैसों के लोभी और गुमराह करने वाले मुल्लाओं, पंडितों, बाबाओं द्वारा इस ढंग से ढोंग और आडंबरों का जाल बिछाया गया है कि कमजोर और पिछड़े इन के जाल में आसानी से फंस ही जाते हैं.

पाखंड और अंधविश्वास के शिकार कम पढ़ेलिखे दलित और पिछड़े होते हैं, ऐसा भी नहीं है. धर्म और आस्था के नाम पर पढ़ेलिखे और पैसे वाले भी इस पोंगापंथ का शिकार होते हैं.

अगस्त, 2020 में नरसिंहपुर जिले के नादिया बिलहरा गांव में अपना आश्रम बना कर रहने वाले बाबा के चमत्कारों की शिकार आसपास के गांवों की औरतें हो गईं. संतान सुख पाने, भूतप्रेत बाधा से नजात पाने और पति की नशे की लत छुड़ाने वाली समस्याओं को ले कर धर्मदेव नाम का बाबा औरतों को  5 मंगलवार तक अपने आश्रम में  बुलाता था.  पूजापाठ और तंत्रमंत्र के नाम पर वह उन का यौन शोषण कर के बेहूदा वीडियो बनाता था. वह वीडियो वायरल करने की धमकी दे कर उन के साथ दुष्कर्म करता रहा था. कुछ जवान लड़कियों के वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद हुई शिकायत में पुलिस ने धर्मदेव को गिरफ्तार  किया था.

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चमत्कारी बाबाओं, संतमहात्माओं और आधुनिक युग के भगवानों द्वारा महिलाओं के यौन शोषण की दर्जनों घटनाओं के बाद भी लोग सबक लेने के बजाय उन के चमत्कारी पाखंड के पीछे दौड़ रहे हैं.

समाज में फैले इस पाखंड के खेल के कुसूरवार केवल ये बाबा, मुल्ला या पंडे नहीं हैं, बल्कि हमारा यह भटका हुआ समाज है, जो किरदारों की जगह चमत्कारों से भगवान को पहचानने की गलती करता है. इसी वजह से हमारे देश में कभी गणेश प्रतिमा दूध पीती है, तो कभी महुआ के पेड़ से चिपकने से रोगों का इलाज किया जाता है.

कोरोना जैसी महामारी के दौर में धर्म की दुहाई देने वाले ठेकेदारों ने लोगों को बीमारी के प्रति सचेत करने के बजाय अपने फायदे के लिए लोगों को पाखंड का रास्ता दिखाया. यही वजह रही है कि पंडेपुजारी मंदिरों के ताले खुलवाने में कामयाब हो गए और ढोंगी बाबाओं ने कोरोना का इलाज शुरू कर दिया. मुंह पर मास्क लगाने की जगह बाबा हाथ चूम कर बीमारियों को भगाने का पाखंड फैलाते रहे.

पाखंड और अंधविश्वास को बढ़ावा देने में जनता की चुनी हुई सरकारों ने भी खासा रोल निभाया है. देश के प्रधानमंत्री जब खुद कोरोना भगाने के लिए ताली और थाली बजा कर और दीया जलाने की अपील करते हों, तो जनता का अंधविश्वासी होना लाजिमी है.

समाज भले ही सभ्यता का लबादा ओढ़ कर अपनेआप को आधुनिक समझने लगा हो, पर आज के वैज्ञानिक युग में भी आदमी पंडेपुजारियों द्वारा फैलाए गए मायाजाल से बाहर नहीं निकल पाया है.

समाज में फैली कुरीतियों और अंधविश्वास पर भाषण देने वाला शख्स भी इन से अछूता नहीं रहता. ऐसे लोग आस्था के कारण नहीं, बल्कि धार्मिक भय की वजह से ऐसी बेढंगी परंपराओं को मानते हैं. धर्म का डर दिखा कर तथाकथित पुरोहित तो लूटखसोट करते ही हैं.

एक तरफ विज्ञान और टैक्नोलौजी की उपलब्धियों का तेजी से प्रसार हो रहा है, तो वही दूसरी तरफ जनमानस में वैज्ञानिक नजरिए के बजाय अंधविश्वास, कट्टरपंथ, पोंगापंथ, रूढि़यां और परंपराएं तेजी से पैर पसार रही हैं. वैश्वीकरण के प्रबल समर्थक और उस से सब से ज्यादा फायदा उठाने वाले शिक्षित मध्यमवर्गीय लोग ही भारतीय संस्कृति की रक्षा के नाम पर दकियानूसी परंपराओं व मान्यताओं को महिमामंडित कर रहे हैं.

वैज्ञानिक नजरिए, तर्कशीलता, प्रगतिशीलता और धर्मनिरपेक्षता की जगह अंधश्रद्धा, संकीर्णता और असहिष्णुता को बढ़ावा दिया जा रहा है. आधुनिक शिक्षित मध्यम वर्ग का यह आचरण निम्नमध्यम वर्गीय परिवारों के लिए आदर्श बन जाता है और समाज में फैली इन कुप्रथाओं को बल मिलता रहता है.

मौजूदा समय में यह बात हर पढ़ेलिखे को समझनी चाहिए कि बीते सालों में हुए चमत्कारों की हकीकत विज्ञान से जुड़ी हुई है.

वास्तव में कल का चमत्कार आज का विज्ञान ही है. अंधविश्वास और धार्मिक आडंबरों के नाम पर हमें लूटने वाले पंडेपुजारी माली तौर पर कमजोर तो बना ही रहे हैं, हमारी सोचनेसमझने की ताकत को भी कमजोर कर रहे हैं. पढ़ेलिखे लोगों को वैज्ञानिक सोच विकसित करनी होगी और दलितपिछड़ों को धर्म के ठेकेदारों के चंगुल से छूटना होगा, तभी हम तरहतरह के पाखंडों से बच सकते हैं.

शिल्पा- राज कुंद्रा : अपराध और भगवान

फिल्म अभिनेत्री शिल्पा शेट्टी का वैष्णो देवी जाना एक साथ कई प्रश्न खड़े कर देता है. हाल ही में पति राज कुंद्रा पर पोर्नोग्राफी के गंभीर आरोप लगे, वह जेल में हैं.

अब शिल्पा भक्ति में लवलीन हो गई है, सवाल है ऐसा क्यों होता है कि जब भी कोई मनुष्य अपराध के आरोपों से घिर जाता है पुलिस कानून के शिकंजे में फंस जाता है तो उसे और परिजनों को भगवान याद आता है?

या फिर गलत तरीके से कमाए गए पैसों से कहीं कोई मंदिर बनवा देता है. और समझता है कि प्रायश्चित हो गया, मुझे मुक्ति मिल गई?

समाज में यह मानसिकता बेहद घातक है और एक तरफ से अपराध करने की अप्रत्यक्ष रूप से छुट देता है. अर्थात पहले तो आप खुब अपराध करिए जितना हो सके दोनों हाथों से लूटिए और जब पुलिस पकड़ ले या फिर आत्मग्लानि हो तो भगवान की शरण में चले जाओ!

यह मानसिकता जाने कब से चली आ रही है और जाने कब खत्म होगी. आज हमारे इस लेख का विषय यही है कि ऐसी मानसिकता को आपके समक्ष उद्घाटित करते हुए यह प्रयास किया जाए की समाज में चल रही यह मनोवृत्ति खत्म होनी चाहिए. क्योंकि किसी भी दृष्टि से यह उचित नहीं है समाज में इसे प्रश्रय नहीं मिलना चाहिए.यह एक ऐसा घातक मनोविकार है जिसका कोई ओर छोर भी नहीं है. मगर हम यह कह सकते हैं कि इस मनो वृत्ति को जाने कब से समाज और परिवार का एक तरह से समर्थन मिला हुआ है. जिसके कारण यह बढ़ती चली जा रही है. और एक नासूर बन चुकी है जिसका खत्म होना बहुत आवश्यक है.

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शिल्पा शेट्टी का व्यवहार

पुलिस ने शिल्पा शेट्टी के पति राज कुंद्रा पर आरोप लगाया और गिरफ्तार किया तो शिल्पा शेट्टी का व्यवहार देखने लायक था वह एक पत्नी होने के नाते निसंदेह सब कुछ जानती होंगी की सच क्या है और झूठ क्या है. मगर उन्होंने सार्वजनिक रूप से यही कहा कि उनके पति श्रीमान राज कुंद्रा ऐसा कभी नहीं कर सकते उन्हें फंसाया गया है.

लाख टके का सवाल यही है कि राज कुंद्रा जैसे एक शख्स को जो एक सेलिब्रिटी का पति है जिसकी अपनी एक अहमियत है, वजूद है उसे भला कोई कैसे और क्यों फंसा सकता है?

इस मामले में जिस तरीके से बयान आए कई लड़कियों ने खुल कर के राज कुंद्रा की असलियत को बताना शुरू किया तो फिर बाकी बचा क्या रह गया.

और जैसा कि हमेशा होता रहा है अगर कोई हमारा परिजन अपराधिक कृत्य में पाया जाता है तो हम आमतौर पर उसके पक्ष में खड़े रहते हैं, यही काम शिल्पा शेट्टी ने भी किया . मगर इससे समाज में है जिस विकृति को बढ़ावा मिल रहा है वह कैसे खत्म होगी.

धन संपत्ति की लालच में लोग कानून को अपने हाथ में लेकर के किस तरह से फिल्मी दुनिया की आड़ में रुपए बनाने का खेल करते हैं यह कुछ-कुछ राज कुंद्रा मामले में देश देख रहा है.

शिल्पा शेट्टी ने अपना कथित धर्म निभाया है यह कहा जा सकता है. लेकिन समाज का और देश का धर्म क्या है क्या कोई परिजन अपराध करने लगे तो उसका बचाव करना और उसे कानून से बचा कर ले आना ही मानव धर्म है?

निसंदेह यह गलत होगा और गलत है. मगर समाज में जब हमारे आसपास यही हो रहा है जब देश दुनिया के बड़े लोग यही कर रहे हैं तो फिर कानून का राज कहां है. क्या इस तरीके से कानून को मानवता को धत्ता नहीं बताया जा रहा है.

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कोई सांई बाबा, कोई वैष्णो देवी

राज कुंद्रा के खिलाफ मुंबई क्राइम ब्रांच ने 1500 पन्नों की चार्जशीट दायर कर दी है. आरोप पत्र में अभीनेत्री शिल्पा शेट्टी के बयान को भी दर्ज किया गया है. ऐसा लग रहा है जब राज कुंद्रा बुरी तरह फंस गए हैं तो मुश्किल हालात में शिल्पा को वैष्णो देवी के दर्शन के‌ लिए पहुंच गई. राज कुंद्रा 19 जुलाई से कथित रूप से पोर्नोग्राफी मामले जेल में बंद हैं.

अक्सर देखा गया है कि जब कोई कानून के फंदे में फंसता है तो बचने के लिए न किसी देवी देवता के शरण में पहुंच जाता है. आम तौर पर हम देखते हैं कि यही कारण होता है कि देश के बहुचर्चित मंदिरों में करोड़ों रूपए का चढ़ावा पहुंचता है मंदिर करोड़ों रुपए के ट्रस्ट बनते जा रहे हैं. और आम गरीब आदमी को दो वक्त का भोजन भी नहीं मिलता. यह एक बहुत बड़ा सच है यह मानसिकता देश, मानवता के लिए अपराध भी है और घातक भी.

जिगोलो: देह धंधे में पुरुष भी शामिल

देह व्यापार का एक बाजार ऐसा भी है, जहां के सैक्सवर्कर औरतें नहीं बल्कि मर्द होते हैं. जिन्हें जिगोलो कहा जाता है. उन्हें यौन पिपासा से भरी औरतों को हर तरह से खुश करना होता है. आजकल जिगोलो की मांग लगातार बढ़ती जा रही है. इस धंधे में मोटी कमाई तो होती ही है साथ ही…

भरे बदन वाली एक अधेड़ महिला कमसिन दिखने की अदाओं के साथ ड्राइंगरूम में खड़ी थी. वहीं कुछ दूसरी महिलएं सिगरेट का धुंआ उड़ाती कुछ दूरी बना कर सोफे पर क्रास टांगों के साथ बैठी थीं. सभी के बीच अपनेअपने सैक्स अपील वाले यौवन को दर्शाने की होड़ सी दिख रही थी.

इसी बीच बलिष्ठ चुस्त टीशर्ट और टाइट पाजामे में एक युवक वहां आया. वहां वह सिर्फ उसी माहिला को पहचानता था, जो खड़ी थी. वह महिला उस के पास आई और बोली, ‘‘तुम को मालूम है कि तुम कहां खड़े हो. यहां जिस्म का बाजार लगता है.’’

यह सुनते ही युवक चौंक पड़ा,‘‘क्या?’’

महिला उस की कान के पास मुंह लगा कर बोली, ‘‘यहां तुम मेरे रिश्तेदार नहीं, केवल एक मर्द हो. नीले, गुलाबी बल्बों की रोशनी में तुम्हें अपनी अदाएं बिखेरनी हैं. बैठी महिलाओं को अट्रैक्ट करना है. बदले में तुम्हें ये अमीर महिलाएं मुहमांगी कीमत देंगी. आज तुम एक बिकाऊ मर्द होे, देखती हूं तुम्हारी कौन कितनी बोली लगाती है…’’

युवक चुपचाप महिला की बातें सुनता रहा. उस ने इसी क्रम में कुछ हिदायतें भी दीं. बोली, ‘‘तुम्हें यहां सभी के चेहरे पर सैक्स के भूख की एक ललक साफ तौर पर दिख रही होगी. याद रखना ये ललक जब तक दिखती रहेगी तब तक तुम्हारी मांग बनी रहेगी.’’

‘‘जी भाभी,’’ युवक बोला.

‘‘नहींनहीं, यह नाम नहीं, यहां मैं तुम्हारी मैडम हूं, मैडम एम.’’

‘‘जी समझ गया.’’ युवक बोला.

‘‘आओ, तुम्हारा सभी से परिचय करवाती हूं. उन की तारीफ मैडम के साथ एक अक्षर जोड़ कर करना.’’ कहती हुई मैडम एम ने पास बैठी महिला की ओर इशारा किया, ‘‘ये हैं मैडम एस… और ये हुई मैडम डी, ये हैं मैडम एक्स, वाई और…’’

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इस तरह से मैडम एम ने युवक का हाथ पकड़ कर वहां बैठीं 8 महिलाओं से उस का परिचय करवा दिया. फिर सब की ओर मुखातिब हो कर बोली, ‘‘मैडमों, अब खेल शुरू किया जाए, जिसे जो ड्रिंक लेना है, प्लीज किचन से जा कर ले सकती हैं…सेल्फ सर्विस है…ग्लास खाली होने पर उसे भरने के लिए ये है ही…’’ युवक की ओर उंगली उठाती हुई बोली.

 

मैडम एम ने सेंटर टेबल के नीचे से रिमोट निकाला और धीमी चल रही म्यूजिक की वौल्यूम बढ़ा दी. म्यूजिक तेज होते ही कइयों के पैरों की थिरकन बढ़ गई, जबकि कुछ महिलाएं बैठेबैठे ही अपने हाथों को नृत्य की मुद्रा में लहराने लगीं. एक महिला सोफे से उठी और कमर को डांस के मोड में लचकाती हुई किचन की तरफ बढ़ गई.

इस तरह से मर्द वेश्यावृत्ति के लिए छोटी सी मंडी सज गई, जिसे अज्ञात महिला की देखरेख में आयोजित किया गया था. ऐसा वह हर सप्ताह के वीकेंड पर करती थी.

अमीर घरों की औरतें ग्राहक हुआ करती थीं. वे हर सप्ताह कुछ नया पाने की ललक लिए आती थीं और आधी रात तक मौजमजा करती थीं.

इस मंडी के लिए हर बार किसी नए मर्द की तलाश की जाती थी. उसे बदले में अच्छी रकम मिल जाती थी. उस रोज मैडम एम यानी मालती को कोई युवक नहीं मिल पाया था. वह इस के लिए शनिवार की सुबह तक बहुत बेचैन थी.

उसी दौरान पीजी में रहने वाला उस के दूर के एक रिश्तेदार ने फोन पर अपनी समस्या बताई. पढ़ाई का खर्च निकालने के लिए उस ने कहीं पार्टटाइम जौब दिलवाने की रिक्वेस्ट की.

थोड़ी देर सोचने के बाद मालती ने उसे ही जिगोलो बनने के लिए राजी कर उसी शाम सजने वाली देह की मंडी में बुला लिया. साथ ही युवक से कुछ वादे भी लिए.

दिल्ली में अपने दम पर पढ़ाई का खर्च निकालना मुश्किल हो रहा था. उसे कोचिंग के लिए मोटी रकम की भी जरूरत थी. मालती का प्रस्ताव सुन कर उसे लगा कि उस का जमीर मर रहा है.

फिर उस के मन में अपने परिवार का भी खयाल आया, जहां कोई सोच भी नहीं सकता कि वह ऐसा भी कर सकता है. उस ने पैसे की जरूरत पूरी करने के लिए अपना जमीर बेच डाला.

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युवक मालती से केवल इतना पूछ पाया, ‘‘मुझे कब तक रुकना होगा, पढ़ाई भी करनी है.’’

इस का जवाब मालती ने दे दिया. वह खुश हो गई उसे एक नया माल… एक नया छैला मिल गया था. अब उसे ग्राहकों की बुकिंग नहीं लौटानी पड़ेगी. इसी के साथ मालती ने उस की कुछ तसवीरें मंगवाईं.

तसवीर की मांग पर युवक सोच में पड़ गया कि कोई रिश्तेदार देख लेगा तो उस के भविष्य का क्या होगा. इस की चिंता भी मालती ने दूर कर दी. तुरंत अपने फ्लैट पर बुलाया. चेहरे की पहचान छिपा कर अपने मोबाइल से कुछ तसवीरें खींच लीं.

पहले दाईं तरफ से, फिर बाईं तरफ से और उस के बाद सामने से

तसवीर खींची गई. सभी तसवीरें अंडरगारमेंट में थीं. युवक को उस की 3 आकर्षक फोटो दिखा कर बाकी डिलीट कर दी गईं. उन में युवक को पहचानना मुश्किल था.

उस के सामने तसवीरों को वाट्सऐप पर भेज दिया गया. तसवीरों के साथ लिख दिया गया, ‘‘नया माल है, रेट ज्यादा लगेगा. कम पैसे का चाहिए तो दूसरे को भेजती हूं.’’

एक से बढ़ कर एक खूसबूरत महिलाएं युवक की बोली लगाने लगीं, जो अंत में 5 हजार रुपए में तय हुई. इस में युवक को क्लाइंट के लिए सब कुछ करना था.

इस बारे में युवक ने अपना अनुभव शेयर करते हुए नाम नहीं उजागर करने की शर्त पर बताया, ‘‘मैं जिंदगी में पहली बार ये करने जा रहा था. बिना प्यार, इमोशंस के कैसे करता. एक अंजान के साथ करना होगा, यह सोच कर मेरा दिमाग चकरा रहा था.’’

उस ने आगे बताया, ‘‘वो शायद 32-34 साल की शादीशुदा महिला थी. बातें शुरू हुईं और उस ने कहा कि वह गलत जगह फंस चुकी है. पति गे है. वह अमरीका में रहता है. तलाक दे नहीं सकती. फिर एक तलाकशुदा औरत से कौन शादी करेगा. मेरा भी अलगअलग चीजों का मन होता है, बताओ क्या करूं.’’

उस के बाद महिला ने हिंदी गाने लगवाए और डांस करने लगी. थोड़ी देर में शुरू किया. हम दोनों डाइनिंग रूम से बैडरूम गए. अब तक उस ने मुझ से प्यार से बात की थी. काम जैसे ही खत्म हुआ, पैसे दे कर बोली, ‘‘चल कट ले, निकल यहां से.’’

उस ने मुझे टिप भी दी. मैं ने उस से कहा, ‘‘मैं ये सब पैसों की मजबूरी की वजह से कर रहा हूं.’’

उस ने कहा, ‘‘तेरी मजबूरी को तेरा शौक बना दूंगी.’’

मेरी मजबूरी जो दिल्ली से सैकड़ों किलोमीटर दूर मेरे घर से शुरू हुई थी. मेरी लोअर मिडिल क्लास फैमिली को मैं अनलकी लगता था, क्योंकि मेरे जन्म के बाद ही पिता की नौकरी चली गई. वक्त के साथ ये दूरियां बढ़ती गईं.

मेरा सपना एमबीए करने का था लेकिन इंजीनियरिंग करने को मजबूर किया गया. नौकरी नहीं लगी. फिर कंपटीशन की तैयारी कर दी. उस के लिए अतिरिक्त खर्च से मैं परेशान रहने लगा.

उन्हीं दिनों डिफेंस कालोनी में रहने वाली दूर की रिश्तेदार के बारे में मालूम हुआ. उन से मिला. वह तलाकशुदा महिला निकली, लेकिन अपने दम पर छोटा सा बुटीक चला रही थी. पति अपने मातापिता के साथ बंगलुरु में शिफ्ट हो चुका था, उस से कोई बच्चा नहीं था.

हर छोटीबड़ी परेशानी में वह मेरा आत्मविश्वास बढ़ा देती थी. उस ने कई बार डिप्रेशन से बाहर निकाला था. हालांकि मुझे इंटरनेट पर मेल एस्कार्ट यानी जिगोलो के बारे में थोड़ीबहुत जानकारी थी.

ऐसा फिल्मों में देखा था. कुछ वैसी वेबसाइट्स के बारे में भी जानकारी थी. जहां जिगोलो बनने के लिए प्रोफाइल बनाई जा सकती थी. संयोग कहें

या फिर मेरी किस्मत कि मैं जिस्म की बोली लगने वाली महिलाओं के बीच आ गया था.

उस रात मैं ने जिगोलो बनने की परीक्षा अच्छे नंबरों से पास कर ली. ऐसा मैडम एम ने आधी रात को मेरी पीठ थपथापते हुए कहा. मैं वहीं थका हुआ सो गया. सुबह कालबैल की आवाज से नींद खुली.

दरवाजे पर मालती को मुसकराते हुए देखा. मैं झेंप गया और फ्रैश होने के लिए बाथरूम में घुस गया.

उस के बाद मैं दुविधा से घिर गया. यह कहें मैं 2 विचारों की दहलीज पर खड़ा था. एक, दहलीज से पीछे हट कर सुसाइड कर लूं. दूसरा, दहलीज के पार जा कर जिगोलो बन जाऊं.

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अंतत: मैं ने दहलीज को लांघने का फैसला कर लिया. मैं जिन औरतों से मिला, उन में शादीशुदा तलाकशुदा, विधवा और सिंगल लड़कियां भी शामिल थीं.

इन में से ज्यादातर के लिए मैं एक इंसान नहीं माल था. जब तक उन की इच्छाएं पूरी न हो जातीं, सब अच्छे से बात करतीं. कहती कि मैं अपने पति को तलाक दे कर तुम्हारे साथ रहूंगी. लेकिन बैडरूम में बिताए कुछ वक्त के बाद सारा प्यार खत्म हो जाता.

सुनने को मिलता, ‘‘चल निकल यहां से. पैसा उठा और भाग.’’

और कई बार गालियां भी सुनने को मिलतीं. ये सोसाइटी हम से मजे भी लेती है और हम ही को प्रास्टीट्यूट कह कर गालियां भी देती है.

एक बार एक पतिपत्नी ने साथ में बुलाया. पति सोफे पर बैठा शराब पीते हुए हमें देखता रहा. मैं उसी के सामने पलंग पर उस की पत्नी के साथ था. ये काम दोनों की रजामंदी से हो रहा था. शायद दोनों की ये कोई डिजायर रही हो.

इसी बीच 50 साल से ज्यादा उम्र की महिला भी मेरी क्लाइंट बनी. वह मेरी जिंदगी का सब से अलग अनुभव था. पूरी रात वह बस मुझ से बेटाबेटा कह कर बात करती रहीं. बताती रहीं कि कैसे उन का बेटा और परिवार उन की परवाह नहीं करता. वे उन से दूर रहते हैं.

वो मुझ से भी बोलीं, ‘‘बेटा, इस धंधे से जल्दी निकल जाओ, सही नहीं है ये सब.’’

उस रात हमारे बीच सिवाय बातों के कुछ नहीं हुआ. सुबह उन्होंने बेटा कहते हुए मुझे तय रुपए भी दिए. मुझे वाकई उस महिला के लिए दुख हुआ.

फिर एक रोज जब मैं ने शराब पी हुई थी और जिंदगी से थकान महसूस कर रहा था, मैं ने मां को फोन किया. उन्हें गुस्से में कहा, ‘‘तुम पूछती थी न कि अचानक ज्यादा पैसे क्यों भेजने लगे. मां मैं धंधा करता हूं… धंधा.’’

वो बोलीं, ‘‘चुप कर. शराब पी कर कुछ भी बोलता है तू.’’ यह कह कर मां ने फोन रख दिया.

मैं ने मां को अपना सच बताया था लेकिन उन्होंने मेरी बात को अनसुना कर दिया. मेरे भेजे पैसे वक्त से घर पहुंच रहे थे न… मैं उस रात बहुत रोया. क्या मेरी वैल्यू बस मेरे पैसों तक ही थी? इस के बाद मैं ने मां से कभी ऐसी कोई बात नहीं की.

मैं इस धंधे में बना रहा, क्योंकि मुझे इस से पैसे मिल रहे थे. मार्केट में मेरी डिमांड थी. लगा कि जब तक कोलकाता में नौकरी करनी पड़ेगी और एमबीए में एडमिशन नहीं ले लूंगा, तब तक ये करता रहूंगा. लेकिन इस धंधे में कई बार अजीब लोग मिलते हैं. शरीर पर खरोंच छोड़ देते थे.

ये निशान शरीर पर भी होते थे और आत्मा पर भी. और इस दर्द को दूसरा जिगोलो ही समझ पाता था, सोसाइटी चाहे जैसे देखे, इस प्रोफेशन में जाने का मुझे कोई अफसोस नहीं है. हां, अतीत के बारे में सोचूं तो कई बार चुभता तो है. ये एक ऐसा चैप्टर है, जो मेरे मरने के बाद भी कभी नहीं बदलेगा.

यह एक ऐसा व्यवसाय है जिस में जोरजबरदस्ती नहीं बल्कि स्वेच्छा से लोग शामिल होते हैं और इन की खरीदफरोख्त भी स्वेच्छा से ही की

जाती है. यानी कि यह पुरुष वेश्यावृत्ति औरतों की वेश्यावृत्ति की तरह तकलीफदेह नहीं है.

यूं तो यह बेहद संभ्रांत परिवार की औरतों का महंगा शौक है जो मुंबई, चेन्नई, कोलकाता और दिल्ली जैसे महानगर में तेजी से फलफूल रहा है.

इस में लड़कियों की वेश्यावृत्ति की तरह से इस पेशे में धकेला नहीं जाता, बल्कि लड़के खुद अपनी स्वेच्छा से अपने शौक को पूरा करने के लिए, कभीकभी मस्ती करने के लिए या बेरोजगार होने की हालत में इसे रोजगार की तरह अपना लेते हैं.

रात 10 बजे से सुबह 4 बजे तक जिगोलो की मंडियां सजती हैं और बड़ीबड़ी लग्जरी कारों में संभ्रांत कहे जाने वाले परिवारों से औरतें, लड़कियां और उम्रदराज औरतें भी अपने लिए जिगोलो नामक खिलौना चुनती हैं.

रात भर या फिर घंटे के हिसाब से उस से खेलती हैं और सुबह की रोशनी के पहले ही वापस अपने घर को चली जाती हैं.

कभीकभी शहर से बाहर आउटहाउस पर जाने का भी इंतजाम होता है. लेकिन इन्हें पाना सब के बस की बात नहीं है. यह 3 हजार से ले कर 8 हजार तक के मिलते हैं, एक रात में 8 हजार तक की कमाई की वजह से यह फायदेमंद सौदा बन चुका है. ऐसे लोगों की धमक छोटे शहरों तक में हो चुकी है.

गठीला शरीर ,फर्राटेदार अंगरेजी और लिंग के साइज से ही उस की कीमत तय होती है. उन के गले में खास पहचान देने वाला पट्टा लगा होता है, जो उस के सैक्सी होने के बारे में बताता है.

किसी पब में, डिस्को में और बड़े होटलों में जिगोलो अकसर मिलते हैं. इस में काम करने वाले 18 साल के लड़के से ले कर 50 साल के पुरुष भी हो सकते हैं.

यह कहें कि अब इस बारे में लोगों को बहुत जानकारी है. दिल्ली के कई पौश इलाके पुरुष वेश्यावृति के लिए कुख्यात कहे जा सकते हैं.

इस में रुचि रखने वाली रईस तबके की औरतों के अलावा गे समुदाय के लोग भी होते हैं. इन के खरीददार अथाह पैसा रखने वाली वे औरतें होती हैं, जिन की शारीरिक जरूरतें पूरी नहीं हो पाती हैं. उन के लिए अधिक समय तक सैक्स को दबा कर रखना आसान नहीं होता या इन में वैसी औरतें भी होती हैं, जो चेंज में विश्वास करती हैं.

यह किसी मजबूरीवश नहीं सिर्फ मजे के लिए किया जाने वाला महंगा शौक है. शराब पीना, सिगरेट पीना और फिर जिगोलो संग कामाग्नि को बुझाना, यह फैशन सा बन गया है.

हैरत की बात तो यह है कि ऐसी महिलाएं अपने निजी शौक की पूर्ति के लिए 2 हजार से 20 हजार रुपए न्यौछावर कर देती हैं.

मर्दों की मंडी में पुरुषों के जिस्म की नुमाइश होती है. औरतें इन्हें छू कर और परख कर अपने लिए पसंद करती हैं और फिर कुछ घंटे शराब सिगरेट और मदहोशी के नशे में बिता कर मुंह अंधेरे ही वापस सफेद उजाले में आने के लिए तैयार हो जाती हैं.

कुछ घंटे के लिए 3 हजार रुपए देने को तैयार हो जाती हैं. एक मर्द सेक्स वर्कर पर औसतन 12 से 15 हजार रुपए तक लुटाना आम बात मानी जाती है.

कई बार बड़ेबड़े हाई क्लास के अड्डे में जिगोलो महिलाओं के बीच अपनी नुमाइश करते हैं. वहां जो सैक्स संबंध बनाते हैं उस के पैसे मिलते हैं. यह जिगोलो पर निर्भर करता है कि वह कितना अपने क्लाइंट को संतुष्ट कर पाता है.

ऐसे में किसी महिला को कोई जिगोलो पसंद आ जाता है तो वह उस की बोली लगा कर पूरी रात के लिए अपने साथ ले जाती है.

जिगोलो को तलाशने से ले कर उस के नुमाइश के ठिकाने बनाने के काम में बिचौलिए की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है. उन की बदौलत जिगोलो से ले कर महिला ग्राहक तक की सभी जानकारी गुप्त बनी रहती है.

इस काम को करने वाले अधिकतर कम उम्र के लड़के ही होते हैं. यानी 18 से 30 वर्ष के जिन की डिमांड भी ज्यादा रहती है. जिगोलो को जो पैसा मिलता है, उस का 20 प्रतिशत कमीशन एजेंट या बिचौलिए को देना होता है.

यानी कि जिगोलो बनने के लिए 2500 से 3000 रुपए तक चुका कर बाकायदा रजिस्ट्रेशन करवाना होता है. उस के बाद ट्रेनिंग देनी होती है. ट्रेनिंग के दौरान उन्हें खास किस्म के पहनावे से ले कर चलनेफिरने, उठनेबैठने के ढंग और एक सीमा तक यौनांगों के साथ अश्लील हरकत करना आदि सिखाया जाता है.

उन्हें यह भी सिखाया जाता है कि वे किस तरह से किसी महिला के सामने ज्यादा समय तक टिके रह सकते हैं.

उन्हें स्ट्रिपर की भी अच्छीखासी ट्रेनिंग दी जाती है. वे अपनी नुमाइश के दौरान जैसेजैसे कपड़े उतारते जाते हैं, वैसेवैसे सामने बैठी महिलाओं की कामाग्नि भड़कती चली जाती है.

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बताते हैं जिगोलो में हर पेशे से जुड़े लोग होते हैं. वे जिम की बदौलत तराशे हुए बदन को खूबसूरती के साथ प्रदर्शित करते हैं, जिन्हें देख कर महिला की आह निकल पड़ती है. कई बार अपने प्रोफेशन में यह अच्छे कौन्टैक्ट्स पाने के लिए भी इस काम को करते हैं.

वैसे लोग सड़क किनारे कुछ इलाके की चर्चित बाजारों के पास खड़े हो जाते हैं. लग्जरी गाडि़यां रुकती हैं और सौदा तय होने पर अपने क्लाइंट के पास पहुंच जाते हैं.

होटलों में यह काम थोड़ा आसान हो जाता है, क्योंकि वहां उन्हीं के कमरों में इस काम को अंजाम दिया जाता है.  ऐसे कई लोग एक अलग से पहनावे और परफ्यूम लगाए रेस्टोरेंट में बैठ कर ग्राहक के बिचौलिए का इंतजार करते हैं.

जिगोलो के धंधे में उतरने वाले शुरू में भले ही अपनी जरूरतों को पूरी करने के लिए ऐसा करते हैं, लेकिन बाद में उन्हें लत लग जाती है. इस पेशे में आने वाले मनोरंजन और मौडलिंग के पेशे के लोग आसानी से घुलमिल जाते हैं.

मौत के पंजे में 8 घंटे

3 दोस्तों का सामना जब रात में बाघबाघिन के जोड़े से हुआ, तब उन का दिल दहल गया. जान बचाने के लिए एक पेड़ पर चढ़ गया, जबकि 2 दोस्त उन का निवाला बनने से नहीं बच पाए.

8 घंटे तक मौत के जबड़े में उन के रहने की रोमांच से भरी यह कहानी बहुत कुछ सीख देती है… कंधई लाल ने बड़ी मिन्नतों के बाद खास दोस्त विकास उर्फ दिक्षु को अपने साथ ससुराल चलने के लिए

तैयार किया. विकास को पता था कि उस के ससुराल जाने का मतलब था रात को वहीं ठहरना, जो वह नहीं चाहता था.

‘‘अरे किस सोच में पड़ गया. वहां 1-2 घंटे का ही काम है. जल्दी लौट आएंगे. मुझे जाना बहुत जरूरी है इसलिए कह रहा हूं.’’ कंधई ने उस की चिंता दूर की.

‘‘देखो कंधई, तुम्हारी ससुराल जाने का रास्ता बड़ा खतरनाक है, इसलिए तो चिंता करनी पड़ती है.’’ विकास बोला.

‘‘कुछ नहीं होगा मेरे दोस्त. अच्छा, एक काम कर, मेरी मोटरसाइकिल खराब हो गई है, कोई इंतजाम कर दे यार,’’ कंधई ने एक और आग्रह किया.

‘‘उस की चिंता मत कर. सोनू से कह कर अपने भाई की मोटरसाइकिल मांग लेता हूं. लेकिन हां, हमें आधे घंटे के भीतर निकलना होगा. तभी हम लोग जलालपुर समय रहते पहुंच पाएंगे और अंधेरा होने से पहले लौट भी आएंगे.’’ विकास बोला.

फिर विकास ने उसी समय सोनू को फोन कर उस की मोटरसाइकिल मांगी. यह बात 11 जुलाई की है. कुछ देर में ही सोनू अपने भाई की मोटरसाइकिल ले कर आ गया. तीनों दोस्त बाइक से शाहजहांपुर जिले के थाना पुवायां के गांव जलालपुर के लिए दिन के 11 बजे चल दिए.

तीनों दोस्तों में 35 वर्षीय कंधई लाल, 22 वर्षीय सोनू व 23 वर्षीय विकास उत्तर प्रदेश के पीलीभीत जिले के दियोरिया के निवासी थे. वे अकसर हरियाणा और दूसरे जगहों पर एक साथ काम करने आतेजाते रहते थे.

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दियोरिया से जलालपुर करीब 20 किलोमीटर की दूरी पर है. मोटरसाइकिल के लिए यह दूरी कोई अधिक नहीं थी, लेकिन रास्ता पीलीभीत टाइगर रिजर्व के जंगलों के बीच से गुजरता था, इसलिए सुनसान और खतरनाक माना जाता था.

तीनों दोस्त हंसतेबतियाते सुनसान सड़क पर चले जा रहे थे. रास्ता कब तय हो गया, इस का उन्हें पता ही नहीं चला.

कंधई के ससुराल में उन के दोनों दोस्त काफी दिनों बाद गए थे, इस कारण उन की खूब आवभगत हुई. मिलनेमिलाने और बातचीत में समय का पता ही नहीं चला. शाम ढलने लगी, तब तक वे जलालपुर में ही जमे रहे.

देखते ही देखते शाम के साढ़े 7 बज गए. विकास ने कंधई से कहा कि जल्दी चलो जंगल का रास्ता है देर करना ठीक नहीं है. उस के बाद साढ़े 7 बजे तक तीनों दोस्त बाइक से दियोरिया के लिए निकल पड़े.

उन की बाइक जब दियोरिया मार्ग पर टूटे पुल के पास पीलीभीत टाइगर रिजर्व की वन चौकी बैरियर पर पहुंची, तब तक रात के साढ़े 8 बज चुके थे.

उन्होंने वहां तैनात वनकर्मी हरिराम से बैरियर खोलने के लिए कहा. किंतु हरिराम ने जंगल के घुंघचाई-दियोरिया मार्ग से रात के समय जाने से मना कर दिया. क्योंकि अंधेरा होने पर टाइगर घने जंगल से निकल कर सड़क पर घूमते दिखते हैं, इसलिए वनकर्मी बैरियर लगा कर सड़क बंद कर देते हैं. लेकिन वे लोग हरिराम से जबरदस्ती बैरियर खुलवाने की जिद करने लगे.

हरिराम ने उसे मिले आदेश के बारे में बताया कि जंगल के रास्ते से रात को जाना मना है. उस ने उन्हें समझाया कि इस क्षेत्र में रात के समय बाघ सड़क पर आ जाते हैं. इसी कारण शाम 7 बजे से सुबह 5 बजे तक जंगल के इस रास्ते को बंद कर दिया जाता है.

कंधई ने हरिराम से विनती करते हुए कहा कि उन का घर पहुंचना जरूरी है. इस पर हरिराम ने कहा कि आप सभी यहां रुक कर थोड़ा और इंतजार करें. कुछ और राहगीरों के आ जाने पर रास्ता खोल सकता हूं. आप सभी इकट्ठे निकल जाना.

हरिराम की बात पर वे कुछ देर रुके जरूर, लेकिन किसी और के नहीं आने पर उन्होंने जबरन बैरियर को खुलवाया और निकल गए.

कुछ मिनटों में ही उन की बाइक वन चौकी से लगभग एक किलोमीटर आगे जंगल के रास्ते पर खन्नौत नदी के टूटे पुल के पास पहुंच गई थी. वहां तक तो सब कुछ ठीकठाक था, उन्होंने अपनी सुरक्षा के लिए बाइक की हेडलाइट बंद कर दी थी. सड़क के खंभों पर लगी साधारण लाइटों के सहारे रास्ते पर बगैर कोई आवाज के आगे बढ़ रहे थे.

तभी बाइक पर पीछे बैठे विकास ने रास्ते के एक साइड में 2 बाघ बैठे देखे. अचानक उस के मुंह से चीख निकल गई. बाइक सोनू चला रहा था, कंधई बीच में बैठा था. सोनू ने बाइक धीमी कर दी. इस पर कंधई चीखता हुआ बोला, ‘‘अरे बाइक तेजी से निकाल ले.’’

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उन्हें बाघ के पास से ही हो कर निकलना था. मौत को साक्षात सामने देख कर सोनू के होश उड़ गए. डर से सभी की सिट्टीपिट्टी गुम हो गई थी. इसी घबराहट में सोनू बाइक नहीं संभाल पाया.

बाइक तेज आवाज के साथ गिर गई. अभी वे बचने की सोचते, इस से पहले ही एक बाघ ने बाइक पर छलांग लगा दी. उस के पंजे की खरोंच सोनू को लगी. सब से पीछे विकास हेलमेट लगाए बैठा हुआ था, वह छिटक कर दूर जा गिरा था.

तब तक दूसरा बाघ विकास पर हमला कर चुका था. सोनू और कंधई झट से उठे और जान बचा कर रोड की तरफ भागे. पहले वाला बाघ उन के पीछे दौड़ा, जबकि दूसरे बाघ ने विकास के सिर पर पंजा और मुंह से हमला कर दिया.

वह हेलमेट पहने था, इसलिए बच गया और गड्ढे में जा गिरा. इसी बीच सोनू और कंधई भागते हुए उधर ही आ गए. दोनों बाध उन के पीछे पड़ गए. तभी विकास को मौका मिल गया. वह गड्ढे से तुरंत बाहर निकला और लपक कर एक पेड़ पर चढ़ गया.

एक बाघ ने सोनू को जबड़े से पकड़ लिया था. बाघ ने उसे ऊपर की ओर उठा लिया था. उस की मौत हो गई थी. इस की विकास ने एक झलक भर देखी. वहीं दूसरा बाघ कंधई की ओर दौड़ा. अपनी जान बचाने के लिए कंधई पेड़ पर चढने लगा.

वह करीब 6 फीट ऊंचाई तक ही चढ़ पाया था कि बाघ ने जमीन से पेड़ पर चढ़ते हुए कंधई पर छलांग लगा दिया. इस झपट्टे में कंधई गिर गया. फिर वह उठ नहीं पाया. वह बेजान हो गया था. निश्चित तौर पर उस की मौत हो चुकी थी.

बाघों का खूंखार रूप बहुत करीब से देखा

कुछ पल में ही सोनू और कंधई जमीन पर बेजान गिरे हुए थे. एक बाघ कंधई को खींच कर झाडियों के बीच ले गया. जबकि सोनू वहीं पड़ा रहा, किंतु उस के शरीर में जरा भी हलचल नहीं हो रही थी. वह मर चुका था.

यह खौफनाक मंजर पेड़ पर चढ़े विकास की आंखों के सामने था. उस की घिग्घी बंध गई थी. दहशत में उस ने आंखें बंद कर लीं. उसे लगा अब उस के मरने की बारी है. वह चुपचाप पेड़ पर बैठा रहा. दोनों बाघ पूरी रात वहीं चहलकदमी करते रहे.

सुबह लगभग 4 बजे के करीब दोनों बाघ जंगल के अंदर चले गए. जब वे काफी समय तक वापस नहीं लौटे तब विकास की जान में जान आई.

थोड़ी देर बाद कुछ लोग उधर से गुजरे. विकास ने आवाज दे कर उन्हें अपने पास बुलाया. उन से रात की घटना की आपबीती बताई. उन्होंने हिम्मत बंधाई. तब विकास पेड़ से नीचे उतरा. वह भय से कांप रहा था. विकास उन्हीं के साथ अपने घर आ गया.

विकास ने जंगल में हुई इस खौफनाक घटना की बात घर वालों को बताई. सोनू और कंधई के घर में तो कोहराम मच गया. जिस ने भी घटना के बारे में सुना, वह विकास के घर की ओर दौड़ पड़ा. उधर रात में हुई इस घटना की जानकारी वनकर्मियों ने सुबह अपने अधिकारियों को दी.

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दर्दनाक मंजर

कुछ देर में ही घटनास्थल पर घुंघचाई पुलिस चौकी के इंचार्ज प्रमोद नेहवाल, पूरनपुर कोतवाली के प्रभारी निरीक्षक हरीश वर्धन सिंह, सीओ लल्लन सिंह तथा टाइगर रिजर्व के फील्ड डायरेक्टर जावेद अख्तर, पीलीभीत टाइगर रिजर्व के डिप्टी डायरेक्टर नवीन खंडेलवाल भी अपनी टीम के साथ पहुंच गए. उन के साथ मृतकों के परिजन भी थे.

वनकर्मियों के साथ ही ग्रामीणों ने जंगल में मृतकों की तलाश की. सोनू का शव घटनास्थल के पास पड़ा मिला, जबकि कंधई के शव को बाघ घटनास्थल से लगभग 400 मीटर दूर ले गया था.

कंधई की आधी खाई लाश भी मिल गई. बाघों ने कंधई के शरीर का निचला हिस्सा खा लिया था, केवल धड़ से ऊपर का हिस्सा बचा था. सोनू के गले व सिर पर बाघ के पंजों व दांतों के निशान थे. खून बह कर शर्ट पर जम गया था. उन के परिजनों का रोरो कर बुरा हाल था.

डिप्टी डायरेक्टर नवीन खंडेलवाल के अनुसार, चलती बाइक पर टाइगर हमला नहीं करता है. टाइगर को देख कर बाइक सवार के रुकने पर ही वह हमला करता है. जब डर से युवकों की बाइक गिर गई थी, तब बाघ ने हमला कर दिया होगा.

उन का कहना था कि उन के स्टाफ ने रात को जंगल से जाने से मना किया था, फिर भी वे जंगल की तरफ गए थे. पुलिस ने दोनों लाशों का पंचनामा तैयार कर उन्हें पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया.

अगर कोई बाघ किसी इंसान पर हमला कर उस का मांस खा ले और बारबार ऐसी परिस्थितियां बने तो उस के आदमखोर बनने की आशंका रहती है.

बाघ स्वभाव के मुताबिक किसी इंसान पर हमला कर उसे कुछ दूर खींच ले जाता है. अपने शिकार का मांस एक बार में नहीं खाता, बल्कि कुछ मांस खाने के बाद बाघ वहीं आसपास छिप कर आराम करने लगता है.

भूख लगने पर वह अपने उसी शिकार के पास खाने के लिए जाता है. बाघ को जब दोबारा अपना शिकार नहीं मिलता है, तब वह भूख मिटाने के लिए किसी वन्यजीव का शिकार करता है.

इंसानों पर बाघ के हमले की घटना को रोकने के लिए घटना के बाद उस स्थल पर कैमरे लगाए जाते हैं, जिस से बाघ की गतिविधियों पर नजर रखी जा सके.

तराई के जिले में बाघ संरक्षण के लिए दशकों से कार्य कर रही अंतरराष्ट्रीय संस्था विश्व प्रकृति निधि (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ) के वरिष्ठ परियोजना अधिकारी नरेश कुमार के अनुसार एक बार किसी इंसान का मांस खा लेने से कोई बाघ आदमखोर नहीं हो जाता. किंतु बारबार इंसानों पर हमला कर के उस का मांस खाने लगे तो फिर वह आदमखोर हो जाता है.

पीलीभीत टाइगर रिजर्व के डिप्टी डायरेक्टर नवीन खंडेलवाल के अनुसार, 2 लोगों की जान जाने के बाद घटनास्थल के आसपास 20 कैमरे लगा दिए गए. साथ ही पैदल और बाइक सवारों को जंगल के रास्ते से प्रवेश पर रोक लगा दी गई है. चारपहिया वाहन के आनेजाने की छूट दी गई.

तीनों दोस्त साथ मेहनतमजदूरी करते थे. वे मजदूरी करने के लिए हरियाणा जाने की योजना बना रहे थे. इस को ले कर कंधई अपनी ससुराल वालों से मिलने गया था. बाघ के हमले का शिकार हुए सोनू अपने 3 भाइयों में दूसरे नंबर पर था. वह अविवाहित था.

घटना के अगले दिन ही उस की शादी तय होनी थी. लड़की वाले रिश्ता तय करने आने वाले थे. उस की मौत से परिवार में पिछले कई दिनों से चल रहा हंसीखुशी का माहौल गम में बदल गया. जबकि कंधई लाल 3 भाइयों में सब से बड़ा था. उस के परिवार में पत्नी के अलावा 3 बेटे और 3 बेटियां हैं.

कांप उठता है घटना को याद कर के

इस घटना से कुछ देर पहले रात करीब 8 बजे कनपारा निवासी सत्यपाल अपनी पत्नी सोमवती के साथ बाइक से जंगल के इसी रास्ते से निकला था. सत्यपाल के अनुसार वह पत्नी के साथ बरेली इलाके के एक धार्मिक स्थल पर प्रसाद चढ़ा कर लौट रहे थे.

घटनास्थल के पास सड़क किनारे बैठे बाघ को नहीं देख पाए. जैसे ही बाइक बाघ के पास पहुंची, बाघ को देख उन्होंने बाइक की रफ्तार बढ़ा दी. बाघ ने उन की बाइक का कुछ दूरी तक पीछा भी किया, लेकिन वे बच गए.

विकास ने पेड़ पर चढ़ कर अपनी जान तो बचा ली. मगर उस के चेहरे पर साथियों की मौत और बाघ का खौफ साफ झलक रहा था. मौत के मंजर का आंखों देखा हाल बताते हुए वह अब भी कांप जाता है.

उस ने बताया, ‘‘बिजली सी कौंधी और धम्म की आवाज के साथ दोनों बाघ हम पर टूट पड़े. दोनों दोस्तों को बाघों ने उस की आंखों के सामने दबोच कर मार डाला. दिल दहला देने वाली घटना थी.

‘‘बाघ ने मेरे सिर पर पंजा मारा और मेरा सिर अपने मुंह में ले लिया. बाघ के जबड़े में मेरा सिर आ गया था लेकिन हेलमेट ने जान बचा ली. इस बीच बाघ मुझे छोड़ कर दोस्तों का पीछा करने लगा. दिमाग ने थोड़ा काम किया और लपक कर मैं एक पेड़ पर चढ़ गया.

‘‘करीब 8 घंटे पेड़ पर डरासहमा बैठा रहा. करीब एक घंटे बाद एक बाघ ने पेड़ पर चढ़ने की कोशिश की, लेकिन वह सफल नहीं हुआ. पूरी रात दोनों बाघ दहाड़ते रहे.

‘‘मुझे लग रहा था कि मैं बच नहीं पाऊंगा. मगर मेरी एक तरकीब काम आ गई. इस दौरान मौका पा कर मैं पेड़ पर ऊंचाई पर चढ़ गया. पूरी रात दहशत में गुजारी. इस बीच दोनों बाघ मुझे निवाला बनाने के लिए पेड़ के नीचे मंडराते रहे. यकीन नहीं हो रहा कि मैं जिंदा बच गया.

‘‘घर पहुंचने की जल्दी में हम ने वनकर्मी की बात नहीं मानी और जंगल के रास्ते पर आगे बढ़ गए.’’

विकास उस भयावह रात को याद करते हुए कहता है कि दोनों बाघ मेरी स्मृति में हमेशा जिंदा रहेंगे. इस धरती पर जब तक मैं जीवित रहूंगा, उन की दहाड़ मेरे कानों को सुनाई देती रहेगी.

365 पत्नियों वाला रंगीला राजा भूपिंदर सिंह

राजाओंमहाराजाओं के पराक्रम के किस्सों से इतिहास भरा पड़ा है. लेकिन ऐसे भी तमाम राजामहाराजा हुए हैं, जिन की रंगीनमिजाजी और शौक की चर्चा कर के आज भी लोग दांतों तले अंगुली दबा लेते हैं.

दरअसल देश की सत्ता जब अंगरेजों के पास आई तो इन राजाओं के पास केवल लगान वसूली का काम रह गया. लगान वसूल कर अंगरेजों का हिस्सा पहुंचा कर बाकी बची रकम से ये केवल अपने शौक पूरे करने के अलावा अय्याशी करते थे.

इन के शौक और अय्याशी भी किसी सनक की ही तरह होती थी. वैसे तो विलासिता पसंद राजाओंमहाराजाओं की हमारे यहां कमी नहीं रही, जो काफी अय्याश भी रहे थे. उन्हीं में एक नाम पटियाला के महाराजा भूपिंदर सिंह का भी है.

पटियाला की बात चलते ही तुरंत पटियाला पैग की याद आ जाती है. जंबो पैग यानी पटियाला पैग. जंबो पैग की ही तरह पटियाला के महाराजा का परिवार भी जंबो था. सोच कर आप को हंसी भी आ जाए और कंपा भी दे, इस तरह का परिवार था पटियाला के महाराजा का.

आज एक पत्नी और एक या 2 बच्चों के साथ रहना मुश्किल हो रहा है. ऐसे में रोज के हिसाब से एक रानी यानी 365 रानियों के साथ जीवन कैसे गुजरेगा, यह सोच कर दिमाग चकरा जाता है. फिर भी रंगीनमिजाज लोगों को एक की अपेक्षा कई पत्नियों को संभाल लेने की कला अच्छी तरह आती है.

पटियाला के महाराजा भूपिंदर सिंह को भी यह कला अच्छी तरह आती थी. वह बहुत ही रंगीले इंसान थे. पावर करप्ट वाली अंगरेजों की युक्ति यहां पूरी तरह फिट बैठती थी.

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12 अक्तूबर, 1891 को पैदा हुए भूपिंदर सिंह. सामान्य बच्चा जिस उम्र में गली में मिट्टी में खेलने जाने लगता है, उसी उम्र में भूपिंदर सिंह महाराजा रजिंदर सिंह की मौत के बाद राजा बन गए थे. 9 साल की उम्र में ही पटियाला की बागडोर संभालने वाले राजा भूपिंदर सिंह ने पटियाला पर 38 साल राज किया था.

हालांकि औपचारिक तौर पर राज्य की कमान उन्होंने 18 साल की उम्र में संभाली थी. 28 साल राज करने के बाद 23 मार्च, 1938 को मात्र 47 साल की उम्र में उन का निधन हो गया था.

भारत में उन दिनों तमाम रजवाड़े थे. राजाओं की रंगीनमिजाजी के तमाम किस्से सुनने को मिलते रहते हैं. तमाम राजाओं की रंगीनमिजाजी पर किताब भी लिखी गई है.

भूपिंदर सिंह के दीवान जरमनी दास ने भी ‘महाराजा’ नामक एक किताब लिखी है, जिस में पटियाला के महाराजा की रंगीनमिजाजी का पूरा उल्लेख किया गया है.

उन्होंने महाराजा भूपिंदर सिंह के जीवन पर जो किताब लिखी है, उस पर काफी विवाद रहा है. लेकिन इस बात पर सभी एकमत रहे हैं कि महाराजा भूपिंदर सिंह भव्य और विलासिता भरा जीवन जीते थे.

इस किताब में जिस भवन का उल्लेख है, वह लीलाभवन अपने नाम के अनुसार ही लीला यानी रंगरलियों के लिए प्रसिद्ध था.

ऐसा नियम था कि इस महल में कोई कपड़ा पहन कर नहीं जा सकता था. मतलब वहां लोग बिना कपड़ों के यानी नग्न जाते थे. पटियाला के भूपिंदरनगर से जाने वाली सड़क पर बारहदरी बाग के नजदीक यह महल बना है. कपड़ा उतार कर जिस महल में प्रवेश मिलता हो, उस महल की रंगीनमिजाजी यानी इश्कमिजाजी के बारे में क्या कहा जा सकता है. इस महल में एक खास कमरा था, जिस का नाम प्रेम मंदिर रखा गया था.

प्रेम तो एक इबादत माना जाता है, ऐसे में लीलाभवन में प्रेम मंदिर का होना कोई आश्चर्य की बात नहीं है. लीलाभवन के इस प्रेम मंदिर की दीवारों पर चारों तरफ ऐसे चित्रों की भरमार थी, जिस में महिलापुरुष कामवासना में लिप्त दिखाई देते थे.

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इस कमरे में महाराजा भूपिंदर सिंह के अलावा किसी अन्य पुरुष को जाने की अनुमति नहीं थी. हां, अगर राजा की इच्छा हो तो दूसरे किसी पुरुष को प्रवेश मिल सकता था. पर ज्यादातर राजा ही अय्याशी में रचेबसे रहते थे तो दूसरे को जाने का मौका कहां से मिलता. प्रेम मंदिर के उस कमरे में भोगविलास की सारी सुविधाएं उपलब्ध रहती थीं.

इस महल में एक ऐसा तालाब था, जिस में एक साथ 150 लोग स्नान कर सकते थे. इसी महल में राजा पार्टियां देते थे, जिस में जानीमानी महिलाओं और कुछ खास लोगों को निमंत्रण मिलता था.

सभी लोग एक साथ तालाब में स्नान करते, तैरते और अय्याशी करते. यहां खुलेआम अय्याशी होती थी. महाराज इस तरह की पार्टियों में सभी के सामने अपनी प्रेमिकाओं से इश्क फरमाते थे.

राजा भूपिंदर सिंह साल में एक बार बिना कपड़ों के सिर्फ हीरों का हार पहन कर हाथी पर सवार हो कर निकलते थे. तब लोग उन की जयजयकार करते थे. लोगों का मानना था कि राजा की ताकत उन्हें बुरी तापती से बचा सकती है.

रंगीनमिजाज महाराजा भूपिंदर सिंह ने वैसे तो 10 शादियां की थीं. लेकिन इन 10 रानियों के अलावा 365 अन्य महिलाएं रानी की हैसियत से महाराज से मिला करती थीं. महाराज ने  इन सभी रानियों के रहने के लिए पटियाला में भव्य महल बनवाए थे, जिन में भोगविलास की सारी सुविधाएं उपलब्ध रहती थीं.

उस समय लोग स्वास्थ्य के प्रति इतना जागरूक नहीं थे, पर महाराजा भूपिंदर सिंह ने हर रानी के स्वास्थ्य की देखभाल के लिए राउंड द क्लाक देशीविदेशी विशेषज्ञ चिकित्सक रख रखे थे.

ये चिकित्सक रानियों के रूटीन जांच और सेहत के अन्य मामलों पर ध्यान रखते थे. ये विशेषज्ञ रानियों के स्वास्थ्य पर ही नहीं, उन की हेयर स्टाइल से ले कर नाकनक्श तक आधुनिक और खूबसूरत रहे, इस का भी खयाल रखते थे. इस के लिए महाराजा प्लास्टिक सर्जन की भी मदद लेते थे.

‘महाराजा’ किताब में दी गई जानकारी के अनुसार महाराजा की शादी की हुई 10 रानियों से 88 संतानें हुईं. पर उन में से केवल 53 संतानें ही जीवित रहीं.

365 रानियां हों तो किस के साथ रहना है, यह भी एक बड़ा सवाल है. पर भूपिंदर सिंह ने इस का हल निकाल लिया था. राजा के महल में रात को 365 फानस जलते थे.

इन तमाम फानस पर एकएक रानी का नाम लिखा था. इन में से जो फानस सवेरे सब से पहले बुझ जाता था और उस पर जिस रानी का नाम लिखा होता था, इस का मललब था कि राजा रात उसी रानी के निवास में गुजारेंगे.

उस समय महाराजा भूपिंदर सिंह अय्याशी के लिए ही नहीं, संपत्ति के लिए भी खूब जाने जाते थे. उन के पास ऐसी अनेक चीजें थीं, जिन के कारण वह दुनिया में मशहूर थे. वह अपने खास और अलग अंदाज के लिए जाने जाते थे. वह अपना जीवन भी खास और अलग अंदाज से जीते थे.

वह जिस थाली में खाना खाते थे, उस की कीमत करीब 17 करोड़ थी. उन के सभी बरतनों पर सोने या चांदी की परत चढ़ी हुई थी. राजा का यह डिनर सेट लंदन की कंपनी गोल्डस्मिथ्स एंड सिल्वरस्मिथ्स ने तैयार किया था.

उन के पास दुनिया भर में मशहूर पटियाला हार था, यह हार आभूषण बनाने के लिए विश्वप्रसिद्ध कंपनी कार्टियर ने बनाया था. इस हार में 2900 से अधिक हीरे लगे थे. इस में उस समय का दुनिया के सब से बड़े हीरों में सातवें नंबर का हीरा जड़ा था. इस की कीमत 166 करोड़ थी.

यह हार 1948 में पटियाला के शाही खजाने से चोरी हो गया था. फिर कई सालों बाद अलगअलग हिस्सों में कई स्थानों से बरामद हुआ था. पर इसे गायब करने वाले का पता आज तक नहीं चला है.

उन के पास 44 कारों का पूरा एक काफिला था, जिन में से 20 रोल्स रायस कारें थीं, जिन में से 20 कारें रोज के काम में लगी रहती थीं.

भारत में भूपिंदर सिंह ऐसे पहले व्यक्ति थे, जिन के पास अपना विमान था. 1910 में उन्होंने ब्रिटेन से वह विमान खरीदा था और उस के लिए पटियाला में रनवे भी बनवाया था. उन्होंने विमान खरीदने से पहले चीफ इंजीनियर को स्पौट स्टडी करने के लिए यूरोप भेजा था. उस के बाद विमान खरीदा था.

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यह पटियाला पैग भी भूपिंदर सिंह की ही देन है. आज भी शराब के शौकीन पटियाला पैग लगाने के लिए आतुर होते हैं. इस दुनिया को पटियाला पैग भेंट करने वाले भूपिंदर सिंह अपनी 365 रानियों के साथ किस तरह रहते रहे होंगे, यह आज भी रहस्य है.

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