खतरनाक मंसूबे की चपेट में नीलम

4अप्रैल, 2019 गुरुवार का दिन था. सुबह के लगभग साढ़े 4 बजे थे. सिपाही नीलम शर्मा की सुबह 5 बजे से दोपहर एक बजे तक मथुरा के श्रीकृष्ण जन्मस्थान पर ड्यूटी थी. नीलम ने तैयार हो कर अपना लंच बौक्स पिट्ठू बैग में रखा और दामोदरपुरा के मुख्यद्वार पर प्याऊ के पास पहुंच गई. यहीं पर रोजाना उसे लेने के लिए पुलिस की बस आती थी. प्याऊ के पास खड़ी हो कर वह स्टाफ की बस का इंतजार करने लगी. बस आने के लगभग 5 मिनट पहले एक कार नीलम शर्मा से लगभग 200 मीटर की दूरी पर आ कर रुकी. उस समय नीलम का ध्यान अपनी बस के आने की तरफ था. अचानक आगे बढ़ी कार नीलम के पास आई. झटके से रुकी कार से उतर कर एक युवक तेजी से नीलम की ओर बढ़ा. जबकि कार में बैठे अन्य युवकों ने कार स्टार्ट रखी.

कार से उतरे युवक ने नीलम से कुछ बात की, इस के बाद उस ने नीलम के ऊपर तेजाब फेंक दिया. नीलम ने अपना बैग उस के मुंह पर मारा तो वह फुरती से कार में जा कर बैठ गया. कार वहां से कुछ दूर जा कर खड़ी हो गई.

अचानक हुए एसिड अटैक से झुलसी 26 वर्षीय नीलम घबरा गई. वह तेजाब की जलन से तड़पने लगी. उस ने शोर मचाया. मदद के लिए वह इधरउधर भागने लगी. जो भी उसे मिला, उस ने उसी से मदद की गुहार लगाई.

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इस बीच अखबार के एक हौकर ने महिला सिपाही को बचाने का प्रयास किया. तभी हमलावरों ने उन दोनों पर कार चढ़ाने की कोशिश की. लेकिन हौकर महिला सिपाही को ले कर एक तरफ हट गया, जिस से दोनों बच गए. हौकर ने उस कार पर पत्थर भी फेंके पर कार रुकी नहीं, तेज गति से चली गई.

रोतेबिलखते वह सिपाही एक दुकान के आगे गिर गई और दर्द की वजह से चीखने लगी. तेजाब से नीलम के कपड़े भी जल गए थे. यह देख दुकानदार ने मौर्निंग वाक पर निकली महिलाओं को बुलाया और उन की चुन्नी से नीलम को ढंका. उसी समय किसी ने इस घटना की जानकारी फोन द्वारा पुलिस को दे दी.

नीलम ने किसी तरह अपनी सहकर्मी सिपाही नीतू को फोन कर दिया था. थोड़ी देर में पुलिस मौके पर पहुंच गई और नीलम को जिला अस्पताल में भरती करा दिया.

जानकारी मिलते ही एसएसपी सत्यार्थ अनिरुद्ध पंकज, एसपी (सिटी) राजेश कुमार सिंह, एसपी (क्राइम) अशोक कुमार मीणा, एसपी (सुरक्षा) ज्ञानेंद्र कुमार सिंह भी अस्पताल पहुंच गए. फोरैंसिक टीम ने भी घटनास्थल पर पहुंच कर साक्ष्य जुटाए. यह घटना विश्वप्रसिद्ध धार्मिक नगरी मथुरा में घटी थी.

नीलम पिछले एक साल से थाना सदर बाजार क्षेत्र के दामोदरपुरा में प्रधान सुरेंद्र सिंह के यहां अपनी सहकर्मी नीतू के साथ रह रही थी. नीलम के मकान मालिक सुरेंद्र सिंह भी नीतू के साथ अस्पताल पहुंच गए.

महिला सिपाही नीलम पर एसिड अटैक की घटना से पुलिस महकमे में हड़कंप मच गया. पूछताछ में नीलम ने पुलिस को बताया कि इस वारदात को संजय नाम के युवक ने अपने साथियों के साथ अंजाम दिया था.

वह संजय को पहले से जानती थी. नीलम ने सदर बाजार थाने में संजय सिंह उर्फ बिट्टू निवासी नेमताबाद, खुर्जा (बुलंदशहर) व सोनू सहित 4 लोगों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दी. भादंवि की धारा 326(ए), 332 व 506 के तहत मुकदमा दर्ज कर पुलिस हमलावरों की तलाश में जुट गई.

नीलम की हालत थी नाजुक

जिला अस्पताल के डाक्टरों ने बताया कि नीलम तेजाब से लगभग 45 फीसदी झुलस गई है. एसिड से उस का चेहरा, एक आंख, हाथ व शरीर के अन्य हिस्से जल गए थे. नीलम की नाजुक हालत को देखते हुए उसी दिन शाम को उसे आगरा के सिकंदरा क्षेत्र स्थित सिनर्जी अस्पताल रेफर कर दिया गया. एसपी (सिटी) राजेश कुमार सिंह खुद उसे ले कर सिनर्जी अस्पताल में भरती कराने पहुंचे.

सिनर्जी अस्पताल के डाक्टर नीलम के इलाज में जुट गए. उन्होंने बताया कि नीलम की हालत स्थिर बनी हुई है. जब नीलम के घर वालों को बेटी के साथ घटी दिल दहलाने वाली घटना की जानकारी मिली तो उन के होश उड़ गए. वे भी सीधे सिनर्जी अस्पताल पहुंच गए.

आगरा के सिनर्जी अस्पताल में भरती नीलम इस हादसे से बेहद डरी हुई थी. कहने को अस्पताल में पर्याप्त सुरक्षा लगाई गई थी लेकिन पीडि़ता के परिजनों ने पुलिस अधिकारियों से और कड़ी सुरक्षा की मांग की. उन्हें डर था कि फरार संजय उसे जिंदा नहीं छोड़ेगा.

इस पर एसएसपी ने पीडि़ता व उस के घर वालों को हरसंभव सुरक्षा देने का वायदा किया. घर वालों के अलावा अन्य किसी को भी अस्पताल में पीडि़ता से मिलने पर रोक लगा दी गई.

महिला सिपाही पर एसिड अटैक की यह दुस्साहसिक घटना पुलिस के लिए सिरदर्द बन गई थी. हर कोई पुलिस की कार्यशैली पर सवाल खड़े कर रहा था. इलैक्ट्रौनिक और प्रिंट मीडिया में यह खबर सुर्खियां बन गई थीं. इस से पुलिस की किरकिरी हो रही थी.

अभियुक्तों के फरार होने को ले कर उस दिन सोशल मीडिया पर भी सवाल खड़े होते रहे. लोगों का कहना था कि जब पुलिस वाले ही सुरक्षित नहीं रहेंगे तो भला आम आदमी का क्या होगा.

उत्तर प्रदेश पुलिस के मुखिया ओ.पी. सिंह ने मथुरा के एसएसपी सत्यार्थ अनिरुद्ध पंकज से महिला कांस्टेबल नीलम शर्मा पर हुए एसिड अटैक की पूरी जानकारी ली. उन्होंने निर्देश दिए कि हमलावरों को तत्काल गिरफ्तार किया जाए. इस एसिड अटैक के लिए जिम्मेदार कहीं भी हों, उन्हें ढूंढ निकाला जाए.

मथुरा में पुलिसकर्मी नीलम पर हुए एसिड अटैक के बाद महिला संगठनों के साथसाथ छात्राओं ने भी आक्रोश व्यक्त किया. वात्सल्य पब्लिक स्कूल, राधाकुंड, चरकुला ग्लोबल पब्लिक स्कूल और गौड़ शिक्षा निकेतन में शिक्षिकाओं एवं छात्रछात्राओं ने पीडि़ता के शीघ्र स्वस्थ होने की कामना की.

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उन्होंने एसिड फेंकने वाले दोषी लोगों को फांसी देने की मांग की. वहीं आगरा के सिनर्जी अस्पताल में भरती नीलम को देखने के लिए महिला शांति सेना की सदस्याएं पहुंची. संरक्षिका कुंदनिका शर्मा ने आरोपियों को शीघ्र पकड़ने व कड़ी सजा दिलाने की मांग की.

पकड़ा गया मुख्य आरोपी

एसएसपी सत्यार्थ अनिरुद्ध पंकज ने आरोपियों को पकड़ने के लिए अलगअलग थानों के तेजतर्रार पुलिस अफसरों की 5 पुलिस टीमें बनाईं. ये टीमें मथुरा के अलावा खुर्जा और बुलंदशहर जा कर आरोपियों को तलाशने लगीं. इस बीच पुलिस को हमलावरों की कार नंबर डीएल 2पीए8381 घटनास्थल से कुछ दूर लावारिस हालत में खड़ी मिली. कार पुलिस ने जब्त कर ली. पुलिस टीम ने अगले दिन 5 अप्रैल को शाम 5 बजे मुखबिर की सूचना पर एक आरोपी सोनू को गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में उस ने बताया कि नीलम शर्मा के ऊपर तेजाब संजय सिंह ने डाला था. सोनू की निशानदेही पर रात करीब 11 बजे घटना के मुख्य आरोपी संजय सिंह को मुठभेड़ के बाद यमुनापार इलाके के राया रोड स्थित राधे कोल्डस्टोरेज के पास से गिरफ्तार कर लिया गया.

मुठभेड़ के दौरान संजय के बाएं पैर में गोली लग गई थी. पुलिस ने इलाज के लिए उसे अस्पताल में भरती करा दिया था. संजय के कब्जे से पुलिस ने एक तमंचा और एक बाइक बरामद की. पुलिस ने संजय सिंह से जब सख्ती से पूछताछ की तो सिपाही नीलम शर्मा पर एसिड अटैक करने की जो कहानी सामने आई, वह प्यार की चाशनी में डूबी हुई निकली—

नीलम शर्मा मूलरूप से उत्तर प्रदेश के जिला बुलंदशहर की कोतवाली शिकारपुर के गांव आंचरू कलां की रहने वाली थी. उस के पिता का नाम सुंदरलाल शर्मा था. जबकि मुख्य आरोपी संजय सिंह खुर्जा में एक कंप्यूटर सेंटर चलाता था. जब नीलम पढ़ाई कर रही थी, तब उस का संजय सिंह की दुकान पर आनाजाना लगा रहता था.

संजय और नीलम की मुलाकात कंप्यूटर सेंटर में हुई जो बाद में दोस्ती में बदल गई थी. दोस्त बन जाने के बाद दोनों फोन पर भी बातें करने लगे. दोस्ती बढ़ी तो संजय नीलम को एकतरफा प्यार करने लगा, जबकि नीलम

उसे केवल अपना दोस्त ही समझती थी.

एक दिन संजय ने अपने मन की बात नीलम के सामने जाहिर कर दी तो नीलम ने उसे झिड़क दिया और उस से दूरी बना ली. इस पर संजय ने इस बारे में नीलम के घर वालों से बात की. चूंकि संजय उन की बिरादरी का नहीं था, इसलिए नीलम के पिता सुंदरलाल शर्मा ने नीलम की शादी संजय से करने को मना कर दिया.

इस के बाद नीलम की सन 2016 में उत्तर प्रदेश पुलिस में कांस्टेबल के पद पर नौकरी लग गई. नौकरी लगने के बाद भी संजय ने उसे परेशान करना बंद नहीं किया. और कोई रास्ता न देख नीलम ने अपना फोन नंबर बदल दिया. लेकिन इस के बावजूद संजय ने उसे ढूंढ निकाला और परेशान करने लगा.

संजय लगातार उस पर शादी के लिए दबाव डाल रहा था. इस से परेशान हो कर नीलम के घर वालों ने उस की शादी कहीं दूसरी जगह तय कर दी.यह बात संजय को बुरी लगी. उसे लगने लगा कि उस की प्रेमिका अब किसी और की हो जाएगी.

सन 2017 में नीलम की पोस्टिंग मथुरा में हो गई. कुछ दिनों वह पुलिस लाइन में रही, इस के बाद सन 2018 में उस की तैनाती श्रीकृष्ण जन्मस्थली की सुरक्षा में हो गई. इस पर नीलम मथुरा के दामोदरपुरा में प्रधान सुरेंद्र सिंह के यहां किराए पर रहने लगी. उस ने अपनी बैचमेट और सहेली नीतू को भी उस कमरे में अपने साथ रख लिया था.

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पुलिस द्वारा की गई पूछताछ में संजय सिंह ने बताया कि वह नीलम से प्यार करता था. उस से उस की पिछले 10 सालों से जानपहचान थी. वह उस से शादी करना चाहता था, लेकिन उस ने बात तक करनी बंद कर दी थी. जब उसे पता चला कि नीलम की शादी कहीं और तय हो गई है, तब उस ने तय कर लिया था कि वह अपनी प्रेमिका को किसी और की हरगिज नहीं होने देगा.

खतरनाक इरादे

उस की शादी रोकने के लिए उस ने नीलम के ऊपर तेजाब डालने का फैसला कर लिया. इस काम के लिए उस ने अपने दोस्तों हिमांशु ठाकुर, बौबी, किशन शर्मा और सोनू को भी तैयार कर लिया. ये सब उस की प्रेम कहानी को जानते थे.

सब से पहले इन लोगों ने नीलम के आनेजाने के मार्ग की रेकी की. इस से पता लग गया कि उस की ड्यूटी श्रीकृष्ण जन्मस्थली की सुरक्षा पर लगी है और वह सुबह पैदल ही दामोदरपुरा के प्याऊ पर पहुंचती है. वहां से वह पुलिस की बस में बैठ कर जाती है.

उन्होंने प्याऊ के पास ही योजना को अंजाम देने का फैसला कर लिया. यह भी तय कर लिया था कि यदि नीलम बच गई तो उसे गोली मार देंगे. और अगर उस के साथ उस की सहेली नीतू हुई तो उसे भी जिंदा नहीं छोड़ेंगे.

सभी ने बौबी की कार से घटना को अंजाम देने की बात तय कर ली. योजना बनाने के बाद संजय ने खुर्जा में पाहसू रोड स्थित दुकानदार पुनीत शर्मा के यहां से तेजाब खरीद लिया. फिर 4 अप्रैल, 2019 की सुबह उन्होंने वारदात को अंजाम दे दिया.

संजय की निशानदेही पर पुलिस ने तेजाब विक्रेता पुनीत शर्मा को भी गिरफ्तार कर लिया. इस के बाद पुलिस ने संजय सिंह, सोनू और पुनीत शर्मा को कोर्ट में पेश कर संजय का रिमांड मांगा. गोली लगने की वजह से संजय अस्पताल में भरती था. अदालत ने पुलिस की मांग मंजूर कर सोनू और पुनीत शर्मा को जेल भेज दिया और गोली से घायल संजय को पुलिस कस्टडी में सौंप दिया.पुलिस को अभी कई आरोपी गिरफ्तार करने थे. संजय की निशानदेही पर 6 अप्रैल को पुलिस ने बौबी और किशन शर्मा को गोकुल बैराज मोड़ से गिरफ्तार कर लिया. शाम 6 बजे के करीब वे दोनों मथुरा आए हुए थे. पुलिस के अनुसार, उन का अपराध इसलिए भी गंभीर हो गया क्योंकि उन्होंने संजय को रोकने के बजाए उकसाया था.

पुलिस ने दोनों आरोपियों से पूछताछ कर रविवार को जेल भेज दिया. एसिड अटैक के अब तक 5 आरोपी गिरफ्तार किए जा चुके थे. अभी एक आरोपी हिमांशु ठाकुर पुलिस की गिरफ्त से दूर था. पुलिस को 9 अप्रैल, 2019 को पता चला कि फरार आरोपी हिमांशु मथुरा आ रहा है. इस के बाद स्वाट टीम प्रभारी राजीव कुमार, थाना सदर बाजार प्रभारी लोकेश भाटी और छाता कोतवाली प्रभारी हरवेंद्र मिश्रा ने घेराबंदी कर के गोकुल बैराज पर उसे पकड़ने की कोशिश की, लेकिन वह फायर कर के बाइक से भागने लगा. उसे पकड़ने के लिए पुलिस ने भी गोली चलाई. गोली उस की दाहिनी टांग में लगी थी. घायल आरोपी वहीं गिर गया. इस के बाद पुलिस ने उसे हिरासत में लेने के बाद जिला अस्पताल में भरती करा दिया.

अपराध में हिमांशु भी था बराबर का हिस्सेदार

हिमांशु की सीधे हाथ की अंगुलियां तेजाब से जल गई थीं. पुलिस ने उस के पास से बाइक व तमंचा भी बरामद कर लिया. पूछताछ में उस से काम की कई बातें पता चलीं. हिमांशु को भी अदालत में पेश किया गया, जहां से उसे 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

उधर मुख्य आरोपी संजय सिंह जिस की बाईं टांग में गोली लगी थी, उस का औपरेशन किया गया. उसे 2 यूनिट खून भी चढ़ाया गया.

प्रैस कौन्फ्रैंस में एसएसपी ने बताया कि आरोपी संजय ने जबरन शादी के लिए इस घटना को अंजाम दिया था. महिला पुलिसकर्मी पर एसिड अटैक की दिल दहला देने वाली घटना में शामिल सभी 6 आरोपी गिरफ्तार कर लिए गए.

इन में से 4 को जेल भेज दिया गया, जबकि 2 घायल आरोपी अस्पताल में भरती हैं, जहां उन का उपचार चल रहा है. सभी पर एनएसए भी लगाया जाएगा. एसिड अटैक से घायल महिला पुलिसकर्मी नीलम की हरसंभव सहायता की जाएगी.

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Best of Crime Stories : कामुक तांत्रिक और शातिर बेगम

मध्य प्रदेश के जिला देवास की एक तहसील है खातेगांव, जहां से 5-7 किलोमीटर दूर स्थित है गांव सिराल्या. इसी गांव में रूप सिंह पत्नी मीराबाई और एकलौती बेटी सत्यवती के साथ झोपड़ी बना कर रहता था. रूप सिंह को कैंसर होने की वजह से उस के इलाज से ले कर पेट भरने और तन ढकने तक की जिम्मेदारी मीराबाई उठा रही थी.

आदमी कितना भी गरीब क्यों न हो, जान पर बन आती है तो सब कुछ दांव पर लगा कर जान बचाने की कोशिश करता है. मीराबाई भी खानेपहनने से जो बच रहा था, पति रूप सिंह के इलाज पर खर्च कर रही थी. लेकिन उस की बीमारी मीराबाई की कमाई लील कर भी कम होने के बजाय बढ़ती जा रही थी.

जब सारी जमापूंजी खर्च हो गई और कोई फायदा नहीं हुआ तो रूप सिंह दवा बंद कर के तंत्रमंत्र से अपनी जीवन की बुझती ज्योति को जलाने की कोशिश करने लगा. वह एक मुसीबत से जूझ ही रहा था कि अचानक एक और मुसीबत उस समय आ खड़ी हुई, जब जुलाई, 2016 के आखिरी सप्ताह में एक दिन उस की 16 साल की बेटी सत्यवती अचानक गायब हो गई. एकलौती होने की वजह से सत्यवती ही मीराबाई और रूप सिंह के लिए सब कुछ थी.

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उस के अलावा पतिपत्नी के पास और कुछ नहीं था. इसलिए बेटी के गायब होने से दोनों परेशान हो उठे. रूप सिंह बीमारी की वजह से लाचार था, इसलिए मीराबाई अकेली ही बेटी की तलाश में भटकने लगी. जब बेटी का कहीं कुछ पता नहीं चला तो आधी रात के आसपास वह रोतीबिलखती थाना खातेगांव जा पहुंची.

मीराबाई ने पूरी बात ड्यूटी अफसर को बताई तो उन्होंने तुरंत इस बात की जानकारी थानाप्रभारी तहजीब काजी को दे दी. वह तुरंत थाने आ पहुंचे और मीराबाई को शांत करा कर पूरी बात बताने को कहा.

मीराबाई ने जवानी की दहलीज पर खड़ी अपनी बेटी सत्यवती के लापता होने की पूरी बात तहजीब काजी को बताई तो उन्हें समझते देर नहीं लगी कि सत्यवती भले ही नाबालिग थी, लेकिन इतनी छोटी भी नहीं थी कि उस के गायब होने के पीछे किसी बुरी घटना की आशंका न हो, जबकि आजकल तो लोग दूधपीती बच्चियों को भी नहीं छोड़ रहे हैं.

तहजीब काजी को प्रेमप्रसंग को ले कर सत्यवती के भाग जाने की आंशका थी. लेकिन जब इस बारे में उन्होंने मीराबाई से पूछताछ की तो उन की यह आशंका निराधार साबित हुई, क्योंकि मीराबाई का कहना था कि सत्यवती की न तो गांव के किसी लड़के से दोस्ती थी और न ही किसी लड़के का उस के घर आनाजाना था.

बस, एक राशिद बाबा का उस के घर आनाजाना था. यही वजह थी कि गांव वालों ने उस के परिवार का सामाजिक बहिष्कार कर रखा था. लेकिन नेमावर के रहने वाले राशिद बाबा पांचों वक्त नमाजी और पक्के मजहबी हैं, इसलिए उन पर शंका नहीं की जा सकती. फिर वह सत्यवती के दादा की उम्र के भी हैं. इसलिए मासूम बच्ची पर नीयत खराब कर के वह अपना बुढ़ापा क्यों बेकार करेंगे.

बहरहाल, सत्यवती की उम्र को देखते हुए उस की तलाश करना जरूरी था. इसलिए तहजीब काजी पूछताछ करने के लिए रात में ही मीराबाई के गांव जा पहुंचे, जहां उन्हें चौकाने वाली बात यह पता चली कि राशिद बाबा के आनेजाने से लगभग पूरा गांव रूप सिंह से नाराज था. इस की वजह यह थी कि एक तो वह दूसरे मजहब का था, जो गांव वालों को पसंद नहीं था, इस के अलावा वह तंत्रमंत्र करता था, जिस से गांव वाले उस से डरते थे.

राशिद के तांत्रिक होने की जानकारी होते ही तहजीब काजी को उसी पर शक हुआ. क्योंकि पुलिस की अब तक की नौकरी से उन्हें यह अच्छी तरह पता चल चुका था कि तंत्रमंत्र कुछ नहीं है, सिर्फ मन का वहम है. इसलिए जो लोग खुद को तांत्रिक होने का दावा करते हैं, सीधी सी बात है कि वे बहुत ही शातिर किस्म के होते हैं.

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तांत्रिकों द्वारा महिलाओं और मासूम लड़कियों के यौनशोषण की घटनाएं आए दिन सामने आती रहती हैं. यही सब सोच कर तहजीब काजी को राशिद बाबा पर शक हुआ. उन्होंने तुरंत एसपी शशिकांत शुक्ला और एएसपी राजेश रघुवंशी को घटना के बारे में बता कर दिशानिर्देश मांगे.

अधिकारियों के आदेश पर समय गंवाए बगैर वह 15 किलोमीटर दूर स्थित राशिद के घर जा पहुंचे, लेकिन वह घर पर नहीं मिला. इस से उन का शक और बढ़ गया. घर वालों से पूछताछ कर के वह वापस आ गए.

तहजीब काजी सत्यवती की तलाश में तत्परता से जुट गए थे. उन्होंने अपने मुखबिरों को भी राशिद बाबा की तलाश में लगा दिया था. उन की इस सक्रियता का ही नतीजा था कि अगले दिन नेमावर की ही रहने वाली कमला सत्यवती को ले कर थाने आ पहुंची.

कमला ने बताया कि किसी बात को ले कर कल मीराबाई ने सत्यवती को डांट दिया था, जिस से नाराज हो कर यह उस के पास आ गई थी. सुबह उसे पता चला कि इसे पुलिस खोज रही है तो वह इसे ले कर इस के घर पहुंचाने आ गई.

बेटी को देख कर मीराबाई तो सब भूल गई, लेकिन तहजीब काजी को याद था कि पूछताछ में मीराबाई ने सत्यवती के साथ डांटडपट वाली बात से मना करते हुए कहा था कि वही तो उस की सब कुछ है, इसलिए उस ने या उस के पति ने इसे डांटनेडपटने की कौन कहे, इस की तरफ कभी अंगुली तक उठा कर बात नहीं की.

इसीलिए तहजीब काजी को लगा कि कमला सत्यवती को ले कर आई है, यह तो ठीक है, लेकिन जो बता रही है, वह झूठ है. क्योंकि कमला जिस अंदाज में बात कर रही थी, उस से उन्होंने अनुमान लगाया कि यह काफी शातिर किस्म की औरत है. वह समझ गए कि मामला कुछ और ही है.

तहजीब काजी जानते थे कि यह औरत सच्चाई बता नहीं सकती, इसलिए उन्होंने सत्यवती से सच्चाई जानने की जिम्मेदारी एसआई रविता चौधरी को सौंप दी.

एसआई रविता चौधरी थानाप्रभारी के मकसद को भली प्रकार समझ रही थीं, इसलिए उन्होंने जल्दी ही बातों ही बातों में सत्यवती का विश्वास जीत कर उस से सचसच बताने को कहा तो उस ने कमला और राशिद बाबा की जो सच्चाई बताई, उसे सुन कर सभी हक्केबक्के रह गए.

मीराबाई को तो भरोसा ही नहीं हो रहा था कि जिस राशिद बाबा को वह भला आदमी समझ कर पूज रही थी, वही उस की बेटी को गंदा कर रहा था. सत्यवती के बयान से साफ हो गया था कि राशिद बाबा के जुर्म में कमला भी बराबर की हकदार थी, इसलिए पुलिस ने उसे तो गिरफ्तार कर ही लिया, उस की निशानदेही पर राशिद बाबा को भी गिरफ्तार कर लिया गया.

पकड़े जाने के बाद राशिद ने दीनईमान की बातों में उलझा कर तहजीब काजी को प्रभावित करने की काफी कोशिश की, लेकिन उन्होंने राशिद और कमला के खिलाफ दुष्कर्म एवं धोखाधड़ी का मामला दर्ज कर उन्हें अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

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राशिद, उस की सहयोगी कमला और सत्यवती के बयान के आधार पर तंत्रमंत्र के नाम पर सत्यवती के यौनशोषण की जो कहानी उभर कर सामने आई, वह इस प्रकार थी—

नेमावर के अपने घर में साइकिल सुधारने और छोटीमोटी जरूरत के सामानों की दुकान चलाने वाला राशिद बाबा जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही कामुक और शातिर प्रवृत्ति का हो गया था. उस का निकाह जल्दी हो गया था, परंतु बीवी के आ जाने के बाद भी उस की आदत में कोई सुधार नहीं हुआ था.

कहा जाता है कि राशिद के मन में किशोर उम्र की लड़कियों के प्रति अजीब सी चाहत थी, इसलिए उम्र बढ़ने पर भी वह लड़कियों को हसरत भरी नजरों से देखता रहता था. दुकान पर आने वाली लड़कियों से भी वह छेड़छाड़ करता रहता था. यही वजह थी कि गांव की कुछ आवारा किस्म की औरतों से उस के संबंध बन गए थे. उन्हीं में एक कमला भी थी.

कमला राशिद के पड़ोस में ही रहती थी. कहा जाता है कि राशिद के संबंध कमला से तो थे ही, उस के माध्यम से उस ने कई अन्य औरतों से भी संबंध बनाए थे. लेकिन बढ़ती उम्र की वजह से अब औरतें उस के पास आने से कतराने लगी थीं.

इस से परेशान राशिद को अखबारों से ऐसे तांत्रिकों के बारे में पता चला, जो तंत्रमंत्र की ओट में महिलाओं का यौनशोषण करते थे. उस ने वही तरीका अपनाने की ठान कर कमला से बात की तो वह उस का साथ देने को राजी हो गई. राशिद जानता था कि तांत्रिक बनने में डबल फायदा है. एक तो नईनई औरतें अय्याशी के लिए मिलेंगी, दूसरे कमाई भी होगी.

इस के बाद पूरी योजना बना कर उस ने दाढ़ी बढ़ा ली और पांचों वक्त का नमाजी बन गया. इस के अलावा यहांवहां से कुछ तंत्रमंत्र सीख कर वह तांत्रिक बन गया. इस में कमला ने उस का पूरा साथ दिया. अगर वह मदद न करती तो शायद राशिद की तंत्रमंत्र की दुकान इतनी जल्दी न जम पाती.

दरअसल, कमला ने ही गांव की औरतों में यह बात फैला दी कि राशिद बाबा को रूहानी ताकत ने तंत्रमंत्र की शक्ति दी है, इसलिए उन की झाड़फूंक से बड़ी से बड़ी समस्या और बड़ी से बड़ी बीमारी दूर हो जाती है. अगर इस तरह की बातें फैलानी हों तो औरतों की मदद ले लो, फिर देखो इस तरह की बात फैलते देर नहीं लगेंगी.

राशिद के मामले में भी यही हुआ था. कमला ने नमकमिर्च लगा कर देखतेदेखते राशिद को आसपास के गांवों में बड़ा तांत्रिक के रूप में घोषित कर दिया. फिर क्या था, राशिद बाबा के यहां अपनी समस्याओं के हल और बीमारियों के इलाज के लिए औरतों की भीड़ लगने लगी.

राशिद ने तो योजना बना कर ही काम शुरू किया था. उस ने अपनी तंत्रमंत्र की दुकान कुछ इस तरह जमाई कि उस के पास समस्या ले कर आने वाली महिलाओं से पहले कमला बात करती थी, उस के बाद कमला उस की पूरी बात राशिद बाबा को बता देती थी.

समस्या ले कर आई महिला राशिद बाबा के सामने जाती थी तो वह उस के बिना कुछ कहे ही उस की समस्या के बारे में बता देता था. गांव की भोलीभाली औरतें समझ नहीं पातीं कि बाबा को यह बात कमला ने बताई होगी. वे तो बाबा को अंतरयामी मान कर उन के चरणों में गिर जाती थीं.

बाबा उन की पीठ पर हाथ फेर कर उन्हें ढेरों आशीर्वाद देता. जबकि असलियत में शातिर राशिद आशीर्वाद देने के बहाने वह अपनी ठरक मिटा रहा होता था.

इस दौरान वह महिला के हावभाव पर पूरी नजर रखता था. इसी पहले स्पर्श में वह समझ जाता था कि किस महिला के साथ कैसे पेश आना है. जो महिला उस के चंगुल में फंस सकती थी, उस के लिए वह कमला को इशारा कर देता था. कमला उस औरत को धीरेधीरे बाबा की विशेष सेवा के लिए राजी कर लेती थी. इस तरह कमला की मदद से राशिद बाबा की दुकानदारी बढि़या चल रही थी, साथ ही उसे अय्याशी के लिए नईनई औरतें भी मिल रही थीं.

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राशिद पैसा भी कमा रहा था और मौज भी कर रहा था. कमला को भी इस का फायदा मिल रहा था, इसलिए वह आसपास के गांवों में ऐसी महिलाओं पर नजर रखती थी, जो किसी न किसी परेशानी में होती थीं. वह ऐसी औरतों को पकड़ती थी, जो बाबा पर पैसा भी लुटा सकें और जरूरत पड़ने पर बाबा को मौज भी करा सकें.

कमला को जब मीराबाई के पति रूप सिंह की बीमारी के बारे में पता चलने के साथ यह भी पता चला कि उस के घर युवा हो रही बेटी भी है तो वह मीराबाई से मिली और उसे राशिद बाबा के बारे में खूब बढ़ाचढ़ा कर बताया.

मीराबाई परेशान तो थी ही, उस ने कमला के पैर पकड़ कर कहा कि अगर वह उस के पति की बीमारी ठीक करवा दे तो वह जिंदगी भर उस का एहसान मानेगी. कमला ने उसे भरोसा दिलाया कि वह बाबा से रूप सिंह की बीमारी ठीक करवा देगी.

इस के बाद कमला बाबा को ले कर अगले ही दिन मीराबाई के घर आ पहुंची. दुर्भाग्य से जिस समय राशिद मीराबाई के घर पहुंचा, सत्यवती सजीधजी कहीं जाने को तैयार थी. उसे देखते ही राशिद की नीयत डोल गई. उस ने मीराबाई और रूप सिंह से मीठीमीठी बातें कर के तंत्रमंत्र का नाटक करते हुए कहा कि साल भर में वह उस की बीमारी ठीक कर देगा. लेकिन इस के लिए उसे उस के यहां से दवा ला कर खानी होगी.

रूप सिंह तो चलफिर नहीं सकता था, मीराबाई उस की देखाभाल में लगी रहती थी, इसलिए तय हुआ कि सत्यवती हर सप्ताह बाबा के यहां दवा लेने जाएगी. इस के अलावा जरूरत पड़ने पर बाबा खुद आ कर रूप सिंह की झाड़फूंक कर देगा.

सत्यवती हर सप्ताह दवा के लिए नेमावर जाने लगी. राशिद बाबा ने कमला की मदद से सत्यवती पर जाल फेंकना शुरू कर दिया. उस ने सत्यवती से कहा कि उस की सरकारी अफसरों से अच्छी जानपहचान है. अगर वह चाहे तो वह उस की सरकारी नौकरी ही नहीं लगवा सकता, बल्कि अच्छे लड़के से उस की शादी भी करवा सकता है. शादी की बात सुन कर सत्यवती लजाई तो बाबा ने हंस कर उसे सीने से लगा लिया और आशीर्वाद देने के बहाने कभी पीठ तो कभी कंधे पर हाथ फेरने लगा.

सत्यवती के कंधे से सरक कर राशिद बाबा का हाथ कब नीचे आ गया, सत्यवती को पता ही नहीं चला. इसी तरह एक दिन उस ने पूजा के नाम पर उसे निर्वस्त्र कर के उस के साथ जबरदस्ती शारीरिक संबंध बना डाला. वह रोने लगी तो राशिद ने उसे धमकी दी कि अगर उस ने इस बारे में किसी को कुछ बताया या दवा लेने नहीं आई तो वह अपने तंत्रमंत्र से न केवल उस के पिता की जान ले लेगा, बल्कि उस के शरीर में कोढ़ भी पैदा कर देगा.

मासूम सत्यवती को राशिद ने तो डराया ही, कमला ने भी कसर नहीं छोड़ी. उस ने सत्यवती से कहा कि बाबा ने उस के साथ जो किया है, उस से उस की किस्मत खुल गई है. बाबा जल्दी ही उस की सरकारी नौकरी लगवा देगा. उस के पिता भी एकदम ठीक हो जाएंगे. उस ने भी यह बात किसी को बताने से मना किया.

पिता की मौत और खुद को कोढ़ हो जाने के डर से सत्यवती ने बाबा के पाप को मां से छिपा लिया तो राशिद बाबा की हिम्मत बढ़ गई. सत्यवती जब भी उस के यहां दवा लेने आती, कमला की मदद से वह उस से अपनी हवस मिटाता.

बाबा की यह पाप लीला न जाने कब तक चलती रहती. लेकिन बरसात में बाबा का रंगीन मन कुछ ज्यादा ही मचल उठा. कमला को भेज कर उस ने चुपचाप सत्यवती को बुला लिया. सत्यवती घर में बता कर नहीं आई थी, इसलिए मांबाप परेशान हो उठे.

इधरउधर तलाशने पर सत्यवती नहीं मिली तो मीराबाई पुलिस तक पहुंच गई. उस के बाद तांत्रिक राशिद बाबा की पोल खुल गई. राशिद बाबा की सारी हकीकत सामने आने के बाद थानाप्रभारी तहजीब काजी ने उसे और उस की सहयोगी कमला को अदालत में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया.  ?

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. सत्यवती बदला हुआ नाम है.

सोने के लालच की “फांस”

अक्सर हम सुर्खियों में देखते हैं सोना देने, दिलाने की लालच में किस तरह ठगी  हो जाती है. मगर इसके बावजूद लोग आज भी सोने की पीली धातु की चमक में आकर ठगी का शिकार हो रहे हैं. छत्तीसगढ़ की स्टील सिटी कहे जाने वाले भिलाई एवं आदिवासी जिले जशपुर  में दो बड़ी सनसनीखेज घटना घटित हुई है. जो यह दर्शाता  है कि देश में आज भी सोने का लालच किस तरह बुरी बला बना हुआ है.

भिलाई शहर  स्थित एक हार्डवेयर व्यापारी को लालच में फांस कर एक व्यक्ति ने सोने का ऐसा झांसा दिया की वह दिन दहाड़े लुट गया. एक  व्यक्ति 2जून  को  नकली सोना थमाकर व्यापारी से 5 लाख रुपये लेकर फरार हो गया. दरअसल,  नंदिनी रोड में हुई इस घटना के बाद  छावनी पुलिस ने धारा 420,34 के तहत अपराध भी  कायम कर लिया है. ठगी के शिकार हुए निर्मल  जैन (53 वर्ष ) शांति नगर का रहवासी है.  निर्मल को  एक अनजान शख्स ने महिला सहयोगी के साथ मिल जाल मे फंसा ठगी का शिकार बनाया. इस वारदात को अंजाम देने से पहले आरोपी ने व्यापारी निर्मल कुमार जैन पर पेशेवर ठग की तर्ज पर पहले दाना डाला.

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कथित आरोपी 20 मई को निर्मल की दुकान पर प्लायी  क्रय करने  पहुंचा. इस दौरान रुपये कम होने का हवाला देकर उसने एक चांदी का सिक्का सामने रख दिया. निर्मल ने कहा,- यह तो प्लायी की कीमत से काफी महंगा है. तब उस शख्स ने संजीदगी से  कहा  कि उसके पास बहुत  सा  सोना है, जिसे वह बाजार रेट से कम में निकालना  चाहता है. शख्स की बातों से प्रभावित निर्मल जैन ने सोना देखने के बाद सौदा करने हामी भर दी.  दूसरी  बार 22 मई को वह अनजान शख्स एक सोने का चेन लेकर निर्मल की दुकान पर फिर से पहुंचा. इस बार उसके साथ एक महिला भी थी.आदिनाथ सेल्स एजेंसी के संचालक को विश्वास में लेकर ठग ने पांच लाख रुपये  लेकर चलता बना.

सोने की लालच बनी  बला

भिलाई छावनी  मामले के जांच अधिकारी विनय बघेल  बताते हैं  करुणा हॉस्पिटल के पास  सुपेला शांति नगर सड़क-3 क्र्वाटर- 238 निवासी निर्मल जैन (53 वर्ष) की नंदनी रोड में आदिनाथ सेल्स एजेन्सी के संचालक है कोरोना काल के संक्रमण समय मे  20 मई को सुबह 10 बजे उनकी दुकान आया और अपनी मोहक बातों में फंसा कर ठग ने  विश्वास में ले लिया. ठग ने निर्मल का भरोसा जीतने के लिए उसे 4 दाना सोने की चेन से तोड़कर उसी के सामने  रख  दिया. ठग ने कहा कि इसकी पहले जांच करा लीजिए. इसके बाद खरीदना. निर्मल जैन ने सोने के दाना को निकट के  राधा ज्वेलर्स  में चेक कराया. चारों दाना पक्का गोल्ड था. ठग पर निर्मल का भरोसा पक्का हो गया. अज्ञात  ठग ने कहा कि उसके पास बहुत चांदी और सोना है जो  वह निकालना चाहता है.

2 जून को पीतल धातु में सोने का पानी चढ़ाकर वह ले आया.  और निर्मल जैन से  5 लाख नकद ले लिए. दोनों के बीच 7 लाख 50 हजार में सौदा हुआ था . निर्मल ने उसे पांच लाख रुपए नकद दिया.बाकि 2.50 लाख बाद में देने की बात तय हुई . ठग राजी खुशी  उसकी बात पर सहमत हो गया.पांच लाख रुपए  लेकर चलता बना. शाम को जब निर्मल ने जब सोना की जांच कराई को वह पीतल का निकला तो मानो उसके होश उड़ गए .

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महिला थी ठग की साथी

भिलाई शहर में हुई ठगी से सनसनी का माहौल निर्मित हो गया. एक शिक्षित उच्च वर्गीय शख्स  को ठगे जाने की मिश्रित प्रतिक्रिया हुई. यह तथ्य भी सामने आया कि ठग के साथ एक खूबसूरत महिला थी. उसके रूप लावण्य में फंसकर जैन साहब ठगी का शिकार हो गए! इसी तरह छत्तीसगढ़ के जशपुर में थाना बगीचा अंतर्गत एक गांव की सरपंच जो पूर्व में शिक्षिका थी  लाखों रुपए लाल सोना प्राप्त करने के लिए लुटा बैठी. छत्तीसगढ़ पुलिस इस मामले की भी तत्परता से जांच कर रही है.

प्रतीक्षा की गलती

यशवंत की जगह कोई दूसरा होता तो सुहागरात को ही प्रतिक्षा की कामेच्छाओं के वेग को समझ जाता, लेकिन यशवंत को इस बात का अहसास तक नहीं हुआ. पत्नी की खूबसूरती ने उसे कुछ भी सोचनेसमझने का मौका नहीं दिया, दिमाग कुंद हो गया था उस का.

सुहागरात को यशवंत कमरे में पहुंचा तो प्रतीक्षा पलंग पर लेटी थी. उस की आहट पाते ही उस ने सिर उठा कर दरवाजे की ओर देखा. पति को आया देख वह उठ कर बैठ गई और साड़ी के पल्लू को घूंघट बना कर मुंह ढक लिया.

मिलन की उमंगों से भरा यशवंत अपनी दुलहन प्रतीक्षा के पास जा बैठा. उसे उन शादीशुदा दोस्तों की बातें याद आ रही थी, जिन्होंने उसे सुहागरात को बीवी का तनमन जीतने का हुनर सिखाया था. उसे दोस्तों की पहली टिप्स याद आई. जब तुम दुलहन का घूंघट उठाओगे, तब उस के गाल शर्म से गुलाबी हो जाएंगे. उस के होठों पर मुसकान तो रहेगी, मगर लाज से नजरें झुक जाएंगी. हालांकि सुहागरात का यह दूसरा अनुभव था यशवंत का, फिर भी वह प्रतीक्षा के सामने पहली बार बने दूल्हे की तरह व्यवहार कर रहा था.

यशवंत ने उंगलियों से साड़ी का किनारा पकड़ा और अपनी दुलहन का घूंघट उलट दिया. चेहरे की दमक तो सामने आ गई, लेकिन न तो लाज से दुलहन की नजरें झुकीं और न होठों पर सौम्य मुसकान आई. कुछ देर तक वह यशवंत की आंखों में देखती रही, फिर खिलखिला कर हंसने लगी. हतप्रभ यशवंत प्रतीक्षा का मुंह ताकता रह गया.

पति के भावों को समझने की कोशिश करते हुए प्रतीक्षा शोखी से बोली, ‘‘ऐ ऐसे क्यों देख रहे हो, मैं पागल नहीं हूं.’’

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‘‘तुम हंस क्यों रही हो?’’ कुछ नहीं सूझा तो हैरानपरेशान यशवंत ने सवाल किया, ‘‘दूल्हा घूंघट उठाए तो इस तरह नहीं हंसना चाहिए.’’

‘‘यह क्या बात हुई’’ प्रतीक्षा की हंसी घट कर मुसकान में तबदील हो गई. ‘‘सुहागरात को दुलहन पति के लिए निर्वस्त्र हो सकती है, मगर हंस नहीं सकती. मैं हंस दी तो कौन सा पाप हो गया?’’

‘‘पाप तो नहीं हुआ,’ यशवंत ने धीमे से मुंह खोला, ‘‘लेकिन दुलहनें इस तरह नहीं हंसा करतीं.’’

‘‘मैं पुराने जमाने की नहीं, इक्कीसवी सदी की दुलहन हूं’’ प्रतीक्षा का लहजा बेबाक था, ‘‘मैं जानती हूं कि तुम मेरे पास क्यों आए हो. मैं जानती हूं कि तुम मेरे साथ क्याक्या करने वाले हो. मेरे मातापिता जानते हैं कि आज की रात दूल्हादुलहन कैसे खेलेंगे. तुम्हारे घर वालों ने तुम्हें मेरे पास खेलने के लिए ही भेजा है. सब जानते हैं कि आज क्या होगा, फिर मैं क्यों लाज का आडंबर करूं.’’

यशवंत हैरत से प्रतीक्षा का मुंह देखता रह गया. प्रतीक्षा अपनी रौ में बोली, ‘‘मैं जिंदगी के हर पल को शिद्दत से जीना चाहती हूं. आज रात हमारी देहों का मिलन होना है. लाज संकोच के बजाय अगर सबकुछ हंसीखुशी हो तो उस का आनंद ही निराला होगा.’’ वह यशवंत की आंखों में देखते हुए मुसकराई. ‘‘होगा न?’’

यशवंत प्रतीक्षा के तर्कों से प्रभावित हुआ. सोचा, नए जमाने की लड़कियां शर्म की गुडि़यां थोड़े ही बनेंगी. पुराने जमाने की बात अलग थी, जब लड़कियां स्त्रीपुरूष के अंतरंग संबंध से अंजान होती थीं. शादी के पहले भावी दुलहनों को रिश्ते की भाभियां समझाती थीं कि सुहागरात को दूल्हादुल्हन के बीच क्या होता है. अब तो फिल्मों, केबल और इंटरनेट सब कुछ सिखा देते हैं. लड़केलड़कियों को होश संभालते ही इस सब की समझ आने लगती है. यही सब सोच कर यशवंत के होठों पर मुसकान आ गई.

‘‘तुम सही कहती हो प्रतीक्षा, एक घंटे बाद हमें बेशर्म होना है तो क्यों न पहले ही शर्म का लबादा उतार कर खूंटी पर टांग दें. मिलन का आनंद दूना हो जाएगा.’’

‘‘तो फिर दूर क्यों हो, करीब आओ.’’ प्रतीक्षा ने मुसकरा कर बांहे फैला दी. यशवंत सारी बातें भूल कर प्रतीक्षा की बांहों में समा गया. 40 वर्षीय प्रतीक्षा फतेहपुर जनपद के दुर्गा कालोनी, हरिहरगंज की रहने वाली थी. उस की मां का नाम कमला और पिता का नाम चंद्रभान था. चंद्रभान विकास भवन में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी थे. प्रतीक्षा के अलावा उन की कोई संतान नहीं थी.

प्रतीक्षा मांबाप की एकलौती संतान थी. इसलिए न तो उस के कहीं घूमने पर पाबंदी थी, और न ही उसे किसी चीज के लिए तरसना पड़ता था. फरमाइश करते ही मनचाही चीज हाजिर हो जाती थी. संभवत: परिवार में मिली आजादी का ही नतीजा था कि प्रतीक्षा जीवन के हर पल को खुल कर और मस्ती से जीने की आदी हो गई थी.

मांबाप भी प्रतीक्षा के खुल कर मस्ती से जीने के अंदाज को जानते थे. इसलिए जब वह जवान हुई तब उन्हें डर सताने लगा कि कहीं प्रतीक्षा जवानी को भी खुल कर एंजौय न करने लगे. यह अलग बात थी कि प्रतीक्षा ने न किसी से प्रेमिल संबंध बनाया, न किसी को अपने यौवन का अनमोल तोहफा दिया. उस ने अपना कौमार्य पति की अमानत समझ कर सहेजे रखा. हां, उस की यह तमन्ना जरूर थी कि शादी के बाद का जीवन वह खुल कर मस्ती से जीएगी और इस की शुरुआत वह सुहागरात से ही कर देगी.

क्रांतिकारी विचारधारा की पुत्री को मातापिता अधिक दिनों तक घर में बैठाए रखने के पक्ष में नहीं थे. जवानी का क्या भरोसा, कब बहक जाए. लेकिन सोचने भर से सब काम नहीं हो जाते. प्रतीक्षा के लिए कई रिश्ते देखे गए लेकिन बात नहीं बनी. शायद समय और किस्मत को कुछ और ही मंजूर था.

बीतते समय के साथ प्रतीक्षा की उम्र बढ़ती जा रही थी, लेकिन कहीं भी उस का रिश्ता नहीं हो पा रहा था. ऐसे में उस के मांबाप को चिंता सताने लगी. जवान बेटी को अधिक दिनों तक घर में नहीं बैठाया जा सकता, लोग तरहतरह की बातें बनाने लगते हैं.

फतेहपुर के थाना हुसैनगंज क्षेत्र के गांव चांदपुर में भवानी शंकर सिंह रहते थे. वह एक स्कूल में अध्यापक थे. इस के साथ ही खेतीबाड़ी का काम भी करते थे. परिवार में पत्नी शिवरानी देवी और 3 बेटे थे. कालिका, रवींद्र और यशवंत. बेटे जवान हो गए तो उन्होंने अपनी जमीनजायदाद का बराबरबराबर बंटवारा कर दिया. बड़े बेटे कालिका का विवाह करने के बाद 1994 में भवानी शंकर दुनिया से चल बसे. रवींद्र शिक्षा पूरी करने के बाद सरकारी स्कूल में अध्यापक हो गया. सन 2000 में विवाह के बाद वह फतेहपुर शहर में शिफ्ट हो गया था.

सब से छोटा यशवंत सरल स्वभाव का था. बीएससी करने के बाद वह गांव में ही खेती करने लगा. 2003 में उस का विवाह फतेहपुर के मलौली थाना क्षेत्र की कुर्रा कनक गांव निवासी गुड्डन से हुआ. गुड्डन ने 2 बेटों को जन्म दिया लेकिन दूसरे बच्चे की डिलीवरी के समय उस की मृत्यु हो गई. गुड्डन की मौत के बाद दोनों बच्चों को उन की नानी अपने साथ ले गई.

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2013 में चंद्रभान अपनी बेटी प्रतीक्षा का रिश्ता ले कर आए तो यशवंत के घर वाले मना नहीं कर पाए क्योंकि यशवंत के सामने लंबी जिंदगी पड़ी थी. बिना हमसफर के जिंदगी काटना मुश्किल था.

शादी तय हो जाने के बाद दोनों का विवाह हो गया. प्रतीक्षा सुर्ख जोड़े में मायके से ससुराल आ गई. ससुराल में दूल्हादुलहन के मिलन की पहली रात थी, अरमानों की रात सुहागरात. सुहागशैया पर यशवंत के घूंघट उठाते ही जिस तरह प्रतीक्षा खुलेपन से पेश आई, उस से यशवंत स्तब्ध रह गया. यह अलग बात है कि प्रतीक्षा ने उसे गलत सोचने नहीं दिया. उस ने यशवंत को विश्वास दिला दिया कि वह इक्कीसवीं सदी की औरत है, बिंदास जिंदगी के हर पल का आनंद ले कर शिद्दत से जीने वाली.

नई और पुरानी का फर्क

यशवंत को भी अलग अनुभव हुआ. पहली पत्नी गुड्डन पुराने ढर्रे पर चलने वाली ठेठ परिवारिक युवती थी. उस के साथ यशवंत ने वहीं अनुभव किया था जो वह सोच रहा था. लेकिन प्रतीक्षा के साथ उसे एक अलग ही अनुभव मिला.

जो युवती पहली रात को खुल कर खेल सकती थी, वह आगामी रातों में क्या गजब करेगी कहना मुश्किल था. यही सोच कर सशवंत के मन में संदेह का कीड़ा कुलबुलाने लगा. वह सोचने लगा कि प्रतीक्षा शायद ऐसा अनुभव मायके से ले कर आई है. यशवंत ने उसे कटघरे में खड़ा भी किया, मगर उस का जवाब था कि वह जीवन के हर पल को आनंद से जीने की आदी है. खुलापन उस के जीने का अंदाज है, चरित्रहीनता का प्रमाण नहीं.

यशवंत उस समय तो चुप रहा, पर प्रतीक्षा की तरफ से उस का मन साफ नहीं हुआ. यशवंत ने किसी तरह प्रतीक्षा के मायके से जानकारी जुटाई तो उस पर उंगली उठाने लायक कोई बात पता नहीं चली. इस से यशवंत ने मान लिया कि प्रतीक्षा तबियत से शौकीन जरूर है, पर उस का चरित्र बेदाग है.

यह प्रतीक्षा का शौक ही था कि वह एक रात भी न तो यशवंत से अलग रहती थी और न उसे अलग सोने देती थी. फलस्वरूप प्रतीक्षा ने 5 वर्ष पूर्व एक पुत्र को जन्म दिया, जिस का नाम यतेंद्र रखा गया. उस के कुछ बड़ा होने पर दोनों ने उसे अच्छे स्कूल में पढ़ाने के लिए उस के नाना के घर भेज दिया.

यशवंत की यह दूसरी शादी थी, उस की उम्र भी 40 के पार हो गई थी. अब उस में इतना दमखम नहीं रह गया था कि हर रोज प्रतीक्षा के बिस्तर का साथी बन कर रास रचाए. दूसरी ओर प्रतीक्षा को काफी देर से पुरूष सुख मिलना शुरू हुआ था, बढ़ती उम्र के साथ उस की कामेच्छाएं भी बढ़ गई थीं.

रात को यशवंत जब उस के पास नहीं आता तो वह झुंझला जाती. इस बात को ले कर दोनों में काफी बहस भी होती. प्रतीक्षा जिस तरह सुहागरात में यशवंत पर हावी हुई थी, उसी तरह समय के साथसाथ उस की जिंदगी पर भी हावी होती चली गई. उस के गलत व्यवहार के कारण ही यशवंत के भाई और परिवार उन दोनों से दूर हो गए थे. वे लोग उन से किसी तरह का संबंध नहीं रखते थे. यशवंत कभीकभी चोरीछिपे अपने भाइयों से बात कर लेता था.

दूसरी ओर प्रतीक्षा ने शादी से पहले तक अपने यौवन को किसी के हवाले नहीं किया था, अब वह पति की बेरुखी के चलते अपने यौवन के खजाने को दूसरों पर लुटाने को अमादा थी. यशवंत के ठंडेपन के चलते वह अपनी मर्यादा की सीमा को भी लांघने को तैयार थी. लेकिन इस के लिए उसे उपयुक्त साथी की जरूरत थी.

नवंबर 2018 में यशवंत के बड़े भाई कालिका की मुत्यु हो गई. उस की तेरहवीं में खाना बनाने के लिए एक व्यक्ति से बात की गई. पेसा वगैरह तय हो जाने के बाद उसे खाना बनाने का काम दे दिया गया. खाना बनाने के लिए आए कारीगरों में 30 वर्षीय संग्राम सिंह भी था. संग्राम सिंह फतेहपुर के थाना मलवां के गांव नसीरपुर बेलवारा निवासी कुंवर बहादुर सिंह का बेटा था. जो अविवाहित था.

खाना बनाने के दौरान संग्राम प्रतीक्षा के संपर्क में आया. प्रतीक्षा ने कुंवारे खूबसूरत जवान संग्राम को देखा तो वह उसे मन भा गया. कभी कोई सामान देने तो कभी खाना कैसे बनाना है, को ले कर प्रतीक्षा उसे अपने पास बुलाती और रिझाने की कोशिश करती.

प्रतीक्षा की चालढाल और उस की हरकतों से संग्राम को भी समझते देर नहीं लगी कि वह उस पर डोरे डाल रही है. संग्राम खुद से 10 साल बड़ी प्रतीक्षा की खूबसूरती पर फिदा हो गया. जब शिकार खुद शिकार होने को तैयार था तो शिकारी क्यों चिंता करता.

दोनों में हंसीमजाक, चुहलबाजियां हुई लेकिन लोगों की नजरों से बच कर. संग्राम जब अपना काम निपटा कर जाने लगा तो प्रतीक्षा की नजरों में बेचैनी झलकने लगी, जिसे संग्राम ने अच्छी तरह समझ लिया था. वह प्रतीक्षा से बोला, ‘‘अब हमारी इतनी जानपहचान तो हो ही गई है कि आगे भी मिलते रहें.’’

संग्राम खेलने के लिए कूदा प्रतीक्षा की पिच पर

प्रतीक्षा ने मुसकरा कर संग्राम को हरी झंडी दे दी. यशवंत के गांव चांदपुर से संग्राम के गांव की दूरी महज 8 किलोमीटर थी. उस दिन के बाद से संग्राम अपनी बाइक से प्रतीक्षा से मिलने आने लगा.

जब वह आता तो यशवंत खेतों पर होता. घर में प्रतीक्षा अकेली रहती थी. बारबार मिलते रहने से उन के बीच की झिझक खत्म होती गई. झिझक खत्म होते ही दोनों एकदूसरे से बेशर्मी से पेश आने लगे. उन के बीच अश्लील मजाक भी होने लगे.

एक दिन ऐसे ही अश्लील मजाक के दौरान संग्राम ने प्रतीक्षा को दबोच लिया. घबराने का नाटक करते हुए बोली, ‘‘यह क्या कर रहे हो संग्राम?’’

जबकि मन ही मन वह संग्राम की इस हरकत से खुश थी. संग्राम ने उस के नाटक को भांप लिया था, क्योंकि वह यह सब दिखावे के लिए कर रही थी. संग्राम ने प्रतीक्षा को और ज्यादा कसके दबोचते हुए कहा, ‘‘मैं तो वही कर रहा हूं, जो तुम चाहती हो.’’

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‘‘मैं ऐसा चाहती हूं, यह मैं ने तुम से कहा?’’

‘‘हर बात जुबां से ही नहीं कही जाती, आंखों भी बहुत कुछ बता देती हैं. मुझे तुम्हारी खूबसूरत आंखों ने बता दिया कि तुम्हें मेरे प्यार की बेहद जरूरत है.’’

‘‘अच्छा जी, मेरी आंखों ने तुम्हें सब कुछ बता दिया. जब बता ही दिया तो मेरी देह की किताब के पन्ने भी खोल कर पढ़ लो.’’

प्रतीक्षा बेचैन हो कर संग्राम के बदन से लिपट गई. इस के बाद संग्राम ने उस की देह की किताब का एकएक पन्ना खोल कर ऐसा पढ़ा कि प्रतीक्षा उस की दीवानी हो गई. उस दिन के बाद तो यह सिलसिला ही बन गया.

29 जनवरी, 2020 की सुबह साढ़े 9 बजे प्रतीक्षा घर से निकल कर चीखनेचिल्लाने लगी. उस की चीखपुकार सुन कर गांव के लोग घर के सामने इकट्ठा हो गए. प्रतीक्षा ने बताया कि कुछ बदमाशों ने घर में घुस कर उस के पति यशवंत की हत्या कर दी है. लगभग 10 बजे प्रतीक्षा ने 112 नंबर पर काल कर के पुलिस को घटना की सूचना दी. चूंकि घटनास्थल थाना हुसैनगंज क्षेत्र में आता था, सो कंट्रोल रूप से इस घटना की सूचना हुसैनगंज थाने को दे दी गई.

सूचना पा कर इंसपेक्टर निशिकांत राय पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. मृतक यशवंत के शरीर, सिर व गले पर किसी तेज धारदार हथियार के निशान थे. प्रतीक्षा से पूछताछ की गई तो उस ने कुछ लोगों द्वारा घर में घुस कर यशवंत को मारने की बात बताई.

प्रतीक्षा की बातें इंसपेक्टर राय के गले से नहीं उतर रही थीं. एक तो सुबह कोई घर में नहीं घुस सकता था. ऐसा होता तो हत्यारों के आते जाते या शोर मचने पर पड़ोसियों को पता चल जाता.

दूसरे बदमाशों ने यशवंत की तो हत्या कर दी थी, लेकिन प्रतीक्षा को छोड़ दिया, उसे एक खरोंच तक नहीं आई थी. इस से इंसपेक्टर निशिकांत राय का शक प्रतीक्षा पर ही गया. फिलहाल उन्होंने यशवंत की लाश को पोस्टमार्टम के लिए मौर्चरी भेज दिया.

मौके पर आए यशवंत के भाई रविंद्र और पड़ोसियों से पूछताछ के बाद इंसपेक्टर राय का शक प्रतीक्षा पर और गहरा हो गया.

रविंद्र ने अपनी लिखित तहरीर में प्रतीक्षा और उस के प्रेमी संग्राम सिंह पर हत्या का शक जताया था. रविंद्र की तहरीर मिलने के बाद इंसपेक्टर निशिकांत राय ने थाने में प्रतीक्षा और संग्राम सिंह के विरूद्ध भादवि की धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया.

गिरफ्तार हुई प्रतीक्षा

31 जनवरी को इंसपेक्टर राय ने प्रतीक्षा को घर से गिरफ्तार कर लिया. महिला कांस्टेबल की उपस्थिति में जब उस से कड़ाई से पूछताछ की गई तो उस ने यशवंत की हत्या का जुर्म स्वीकार कर लिया. इस हत्या में उस का साथ उस के प्रेमी संग्राम सिंह ने दिया था.

प्रतीक्षा ने बताया कि जब उस के संग्राम से नाजायज संबंध बने, तो फिर बेरोकटोक जारी रहे. लेकिन ऐसा कब तक चलता. लोगों की नजरों में उन के नाजायज संबंध छिपे नहीं रह सके. गांव में तरहतरह की बातें होने लगीं. यशवंत के कानों तक भी प्रतीक्षा की बेवफाई के किस्से पहुंच गए.

इस के बाद उस के और प्रतीक्षा के बीच काफी तीखी बहस होने लगी. लेकिन उस बहस का कोई नतीजा नहीं निकला, क्योंकि प्रतीक्षा पर उस का कोई असर नहीं हुआ था. यशवंत को उस के अवैध रिश्ते के बारे में पता चलने के बाद प्रतीक्षा संग्राम से खुल कर मिलने लगी. वह यशवंत की उपस्थित में भी आने लगा. वह पूरेपूरे दिन यशवंत के घर में पड़ा रहता.

यशवंत खून का घूंट पी कर रह जाता. जब उस से बर्दाश्त नहीं होता तो वह उन दोनों से भिड़ जाता था. लेकिन दोनों के सामने उस की एक नहीं चलती थी.

मिलन में यशवंत के बारबार व्यवधान डालने से प्रतीक्षा और संग्राम परेशान हो गए. इसलिए दोनों ने यशवंत नाम के कांटे को हमेशा के लिए हटाने का फैसला कर लिया.

28/29 जनवरी, 2020 की रात यशवंत के खाने में प्रतीक्षा ने कोई नशीला पदार्थ मिला दिया. खाना खाने के बाद यशवंत बेसुध हो कर बिस्तर पर लेट गया. संग्राम देर रात प्रतीक्षा के पास पहुंचा और बेसुध पड़े यशवंत पर कुल्हाड़ी से ताबड़तोड़ कई प्रहार कर दिए.

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यशवंत चीखचिल्ला भी न सका, उस ने दम तोड़ दिया. इस के बाद संग्राम वहां से चला गया. सुबह साढ़े 9 बजे प्रतीक्षा ने चीखचिल्ला कर बदमाशों द्वारा यशवंत को मार देने की झूठी कहानी लोगों को सुनाई, लेकिन वह अपने को बचाने में सफल नहीं हो सकी.

पुलिस ने प्रतीक्षा की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त कुल्हाड़ी बरामद कर ली. फिर कानूनी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद उसे न्यायालय में पेश कर के जेल भेज दिया गया. पुलिस के दबाव के चलते संग्राम सिंह ने न्यायालय में आत्मसमर्पण कर दिया.

-कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Best of Crime Stories : देवर को खेत में लाई भाभी

भाभी और देवर का रिश्ता हमेशा से पवित्र माना गया है, कहा जाता है कि देवर के लिए भाभी मां के समान होती है. लेकिन हाल ही में राजस्थान के श्रीगंगानगर से सबको हैरान कर देने वाले मामला सामने आया है. जिसने भाभी-देवर के पवित्र रिश्ते को शर्मसार करके रख दिया है. इस चौंकाने वाले मामले से पूरा गांव सकते में है.

स्थानीय लोगों के बताए अनुसार उन्होंने भरी दोपहर में पास ही के एक खेत में एक महिला और दो युवकों को आपत्तिजनक हालत में झाड़ियों के बीच पकड़ा. लोगों ने तुरंत पुलिस को इस बारे में खबर दी. पुलिस ने मौके से तीनों को गिरफ्तार कर लिया है.

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पुलिस के अनुसार पकड़े गए आरोपियों के नाम संजय कुमार और राजू हैं. पुलिस को उनके पास से शराब की बोतल और कंडोम मिले है. पकड़े जाने के दौरान महिला ने संजय को अपना देवर बताया और महिला ने पुलिस को बताया कि वह अपनी मर्जी से उसके साथ आई है.

पुलिस की मानें तो महिला काफी नशे में थी. वहीं दोनों युवकों ने भी शराब या किसी अन्य प्रकार का नशा किया हुआ था. पुलिस ने महिला का मेडिकल करवाकर उसके परिजनों को सौंप दिया है. इस घटना के बाद स्थानीय लोगों में काफी गुस्सा है.

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मोहब्बत बनी मौत का कारण

लखनऊ के वजीरगंज मोहल्ले की रहने वाली नूरी का असली नाम शनाया था. लेकिन वह देखने में इतनी सुंदर थी कि लोगों ने प्यार से उस का नाम नूरी रख दिया था. नूरी केवल चेहरे से ही नहीं, अपने स्वभाव से भी बहुत प्यारी थी. वह अपनी बातों से सभी का मन मोह लेती थी. एक बार जो उस के करीब आता था, वह हमेशा के लिए उस का हो जाता था.

नूरी के परिवार में उस के पिता मोहम्मद असलम, मां और भाईबहन थे. नूरी पढ़ीलिखी थी. वह स्कूटी चलाती थी और अपने घरपरिवार की मदद के लिए बाहर भी जाती थी. अपने काम के लिए वह किसी पर निर्भर नहीं थी. उस का यह अंदाज लोगों को पसंद आता था. मोहल्ले के कई लड़के उसे अपनी तरफ आकर्षित करना चाहते थे.

वजीरगंज लखनऊ के मुसलिम बाहुल्य इलाकों में से एक है. यहां की आबादी काफी घनी है. लेकिन लखनऊ के कैसरबाग और डौलीगंज जैसे खुले इलाकों से जुड़े होने के कारण वजीरगंज का बाहरी इलाका काफी साफसुथरा और खुलाखुला है. सिटी रेलवे स्टेशन, कैसरबाग बस अड्डा, मैडिकल कालेज के करीब होने के कारण यहां बाहरी लोगों का आनाजाना भी बना रहता है. ऐतिहासिक रूप से भी वजीरगंज लखनऊ की काफी मशहूर जगह है.

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यहीं पर नूरी की मुलाकात सुलतान से हुई. जिस तरह से नूरी अपने नाम के अनुसार सुंदर थी, उसी तरह सुलतान भी अपने नाम के हिसाब से दबंग था. लड़कियों को प्रभावित कर लेना उस की खूबी थी. उस की इसी खूबी के चलते नूरी जल्दी ही उस से प्रभावित हो गई.

हालांकि नूरी और सुलतान की उम्र में अच्छाखासा फासला था. 20 साल की नूरी को सलमान खान जैसी बौडी रखने वाला सुलतान मन भा गया. घर वालों की मरजी के खिलाफ जा कर नूरी ने सुलतान के साथ निकाह कर लिया.

शादी के बाद दोनों के संबंध कुछ दिन तक बहुत मधुर रहे. प्रेमी से पति बने सुलतान को नूरी में अब पहले जैसा आकर्षण नजर नहीं आ रहा था. इस की वजह यह थी कि सुलतान को नईनई लड़कियों का शौक था. नूरी को भी अब सुलतान की सच्चाई का पता चल गया था. उसे समझ में आ गया था कि उस ने जल्दबाजी में गलत फैसला कर लिया था, लेकिन अब वह कुछ नहीं कर सकती थी.

सेक्स रैकेट चलाता था सुलतान

नूरी को पता चला कि सुलतान लड़कियों को अपने जाल में फंसा कर उन से शारीरिक संबंध बनाता था. इस के बाद वह लड़कियों के सहारे नशे के साथसाथ सैक्स रैकेट भी चलाता था. यही उस का पेशा था, जिसे वह मोहब्बत समझी थी. नूरी पूरी तरह सतर्क थी, इस कारण सुलतान उस का बेजा इस्तेमाल नहीं कर पाया.वह अपराधी प्रवृत्ति का था, जेल आनाजाना उस के लिए मामूली बात थी.

यह पता चलने पर नूरी को निराशा हुई और अपने फैसले पर बुरा भी लगा. लेकिन अब समय निकल चुका था. नूरी पूरी तरह से सुलतान के कब्जे में थी. दूसरी तरफ उस के परिवार ने भी उस से संबंध खत्म कर दिए थे. हमेशा खुश रहने वाली नूरी के चेहरे की चमक गायब हो चुकी थी. उसे अपने फैसले पर पछतावा हो रहा था.

सुलतान जब भी जेल में या घर से बाहर रहता था, उस के घर सुलतान की बहन फूलबानो और बहनोई शबाब अहमद उर्फ शब्बू का आनाजाना बना रहता था. शब्बू का स्वभाव भी सुलतान जैसा ही था.

वह हरदोई जिले के संडीला का रहने वाला था. उस के खिलाफ संडीला कोतवाली में 8, लखनऊ की महानगर कोतवाली में 2 और मलीहाबाद कोतवाली में 2 मुकदमे दर्ज थे. अब वह चौक इलाके में रहता था. जरूरत पड़ने पर वह वजीरगंज में सुलतान के घर भी आताजाता था.

सुलतान का रिश्तेदार होने के कारण किसी को कोई शक भी नहीं होता था. सुलतान अकसर जेल में रहता या फरार होता तो शब्बू उस के घर आता और नूरी की मदद करता था. नूरी की सुंदरता से वह भी प्रभावित था.

नूरी के प्रति शब्बू के लगाव को बढ़ता देख सुलतान की बहन फूलबानो को बुरा लगता था. उस ने कई बार पति को मना भी किया कि अकेली औरत के पास जाना ठीक नहीं है. मोहल्ले वाले तरहतरह की बातें बनाते हैं. पर शब्बू को इन बातों से कोई मतलब नहीं था. कई बार जब फूलबानो ज्यादा समझाने लगती तो शब्बू उस से मारपीट करता था.

कुछ समय तक तो फूलबानो ने इस बात का जिक्र अपने भाई सुलतान से नहीं किया, पर धीरेधीरे वह अपने भाई को सब कुछ बताने लगी. बहन को दुखी देख सुलतान ने अपनी पत्नी नूरी से बात कर के शब्बू से दूरी बनाने के लिए कहा. नूरी ने उसे बताया कि शब्बू खुद उस के घर आताजाता था. अपराध जगत से जुड़ा होने के कारण सुलतान को लगने लगा कि शब्बू ऐसे मानने वाला नहीं है.

दूसरी तरफ सुलतान की बहन फूलबानो इस सब के लिए अपने पति शब्बू से ज्यादा भाभी नूरी को जिम्मेदार मानती थी. फूलबानो को नूरी की खूबसूरती से भी जलन होती थी. वह अपने भाई को बारबार समझाती थी कि नूरी ही असल फसाद की जड़ है. जब तक वह रहेगी, कोई बात नहीं बनेगी.

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हत्या की बनाई योजना

शब्बू सुलतान की मदद भी करता था और उस की बहन फूलबानो का पति भी था. ऐसे में वह उस से दूरी नहीं बना सकता था. फूलबानो अब नूरी के खिलाफ अपने पति को भी यह कह कर भड़काने लगी कि नूरी के दूसरे पुरुषों से भी संबंध हैं.

इसी बात को मुद्दा बना कर फूलबानो और सुलतान शब्बू पर नूरी को रास्ते से हटाने का दबाव बनाने लगे. पत्नी और साले के दबाव में शब्बू ने नूरी को रास्ते से हटाने के लिए ऐसी योजना बनाई, जिस से नूरी रास्ते से भी हट जाए और किसी पर कोई आंच भी न आए.

24 फरवरी, 2020 को सुलतान को जेल से पेशी पर कचहरी आना था. फूलबानो और शब्बू के साथ चिकवन टोला का रहने वाला जुनैद भी उन के साथ हो लिया. जब चारों लोग घर से निकले तो शब्बू और जुनैद पल्सर बाइक से और फूलबानो व नूरी स्कूटी से कचहरी जाने के लिए निकले.

दोपहर 2 बजे तक ये लोग कचहरी में सुलतान से मिले और फिर नूरी को मारने के इरादे से इधरउधर सुरक्षित जगह की तलाश करने लगे. शब्बू को मलीहाबाद इलाके की पूरी जानकारी थी. उस ने नूरी की हत्या के लिए वही जगह चुनी. इधरउधर घूमने के बाद चारों लोग देर शाम फरीदीपुर गांव पहुंचे. रात 8 बजे सन्नाटे का लाभ उठाते हुए तीनों ने चाकू से नूरी का गला रेत दिया.

नूरी की हत्या आत्महत्या लगे, इस के लिए उस के शव को पास के रेलवे ट्रैक पर फेंक दिया गया, ताकि ट्रेन की चपेट में आने के बाद यह आत्महत्या सी लगे. नूरी की स्कूटी, मोबाइल और चाकू ले कर ये लोग संडीला भाग गए. इधर रात को ट्रेन के चालक ने जब रेलवे लाइन पर शव पड़ा देखा तो उस ने स्टेशन मास्टर मलीहाबाद को सूचना दी.

स्टेशन मास्टर ने इंसपेक्टर मलीहाबाद सियाराम वर्मा और सीओ मलीहाबाद सैय्यद नइमुल हसन को ट्रैक पर लाश पड़ी होने की जानकारी दी. पुलिस ने अब काररवाई के साथसाथ सब से पहले शव की शिनाख्त के लिए प्रयास किया तो पता चला शव वजीरगंज की रहने वाली नूरी का है.

उस के पिता मोहम्मद असलम ने अज्ञात लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया. पुलिस छानबीन में लग गई. पुलिस ने जब नूरी के मोबाइल की काल डिटेल्स निकाल कर छानबीन की तो उसे संडीला के रहने वाले शब्बू के खिलाफ सबूत मिल गए.

आरोपी चढ़े हत्थे

ऐसे में पुलिस ने पहले शब्बू, बाद में उस की पत्नी फूलबानो व जुनैद को पकड़ लिया. पता चला कि नूरी की हत्या इन तीनों ने ही की थी. पुलिस को गुमराह करने के लिए तीनों लोगों ने अपने मोबाइल घर पर छोड़ दिए थे, जिस से उन की लोकेशन नूरी के साथ न मिले.

सीओ नइमुल हसन ने बताया कि घटना में शामिल जुनैद उर्फ रउफ की बाइक रिपेयरिंग की दुकान है. हत्या के बाद इन लोगों ने नूरी की स्कूटी के कई टुकड़े कर के इधरउधर कर दिए थे. शब्बू ने नूरी के मोबाइल फोन के सिम और बैटरी को निकाल कर इधरउधर फेंक दिया था. पुलिस ने इन की निशानदेही पर यह सब सामान बरामद कर लिया.

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पुलिस के मुताबिक सुलतान अपनी पत्नी नूरी को रास्ते से हटाना चाहता था. इस की वजह उस के अवैध संबंध बताए जा रहे थे. सुलतान और उस की बहन फूलबानो को लगता था कि नूरी और शब्बू के संबंध थे, परेशानी की एक वजह यह भी थी. इस काम में शब्बू और उस के साथी जुनैद को भी साथ देना पड़ा.

पुलिस ने फूलबानो, शब्बू और जुनैद के खिलाफ हत्या का मुकदमा कायम कर तीनों को जेल भेज दिया. नूरी के पति को हत्या की साजिश रचने का आरोपी माना गया. इस तरह मलीहाबाद पुलिस ने ब्लाइंड मर्डर का खुलासा कर के बता दिया कि अपराधी कितनी ही होशियारी क्यों न दिखा ले, अपराध सिर चढ़ कर बोलता है. नूरी ने जिसे मोहब्बत समझा था, उस सुलतान में कई कमियां थीं, जिन के चलते नूरी को उस की मोहब्बत रास नहीं आई.

-कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

जीवन की चादर में छेद: भाग 1

उत्तर प्रदेश के बदायूं शहर के सिविल लाइंस इलाके में एक स्कूल है होली चाइल्ड. निशा इसी स्कूल में पढ़ाती थी. उस का पति राजकुमार पादरी था और उस की पोस्टिंग बदायूं जिला मुख्यालय से लगभग 23 किलोमीटर दूर वजीरगंज की एक चर्च में थी. चर्च में जब ज्यादा काम रहता था तो राजकुमार रात में वहीं रुक जाता था.

निशा को स्कूल की बिल्डिंग में ही रहने के लिए कमरा मिला हुआ था, जहां पर वह पति राजकुमार और 2 बेटियों रागिनी व तमन्ना के साथ रहती थी.

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राजकुमार और निशा की मुलाकात लखनऊ में पादरी के काम की ट्रेनिंग के दौरान हुई थी, जोकि वीसीसीआई संस्था द्वारा अपने धर्म प्रचारकों को दी जाती है. कुछ मुलाकातों के बाद दोनों एकदूसरे को पसंद करने लगे.

निशा मूलरूप से गोरखपुर जिले की रहने वाली थी. उस के पिता दयाशंकर पादरी थे. निशा की बड़ी बहन शारदा की शादी बरेली निवासी रघुवीर मसीह के बेटे दिलीप के साथ हुई थी. इसी के चलते बहन के देवर राजकुमार से निशा की नजदीकियां बढ़ने लगीं. दोनों जानते थे कि घर वालों को इस रिश्ते से कोई ऐतराज नहीं होगा, अत: दोनों ने अपनी पसंद की बात अपने परिवार वालों को बता दी थी.

राजकुमार ने लखनऊ में अपनी ट्रेनिंग पूरी कर ली लेकिन किन्हीं कारणों से निशा को ट्रेनिंग बीच में ही छोड़ देनी पड़ी. राजकुमार बरेली निवासी रघुवीर मसीह का बेटा था. रघुवीर मसीह पुलिस विभाग में वायरलैस मैसेंजर के पद पर बदायूं में तैनात था.

सन 2014 में पारिवारिक सहमति से राजकुमार और निशा का विवाह हो गया. रघुवीर मसीह के 4 बेटे और 2 बेटियां थीं. सब से बड़ा बेटा रवि था, जिस की शादी बाराबंकी निवासी अनुराधा से हुई थी. दूसरा दिलीप था, जिस की शादी निशा की बड़ी बहन शारदा से हुई थी. उस से छोटा राजकुमार था और सब से छोटा राहुल.

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राजकुमार की पहली पोस्टिंग कासगंज जिले के सोरों कस्बे में नवनिर्मित चर्च में हुई थी. इसी बीच राजकुमार की शादी हो गई और रघुवीर मसीह ने कोशिश कर के राजकुमार का तबादला कासगंज से वजीरगंज करवा दिया.

शादी के बाद कुछ समय तो अच्छा कटा. राजकुमार की मां आशा मसीह ने नवविवाहिता बहू निशा को हाथोंहाथ लिया, पर निशा को राजकुमार के घर का माहौल रास नहीं आया. इसलिए उस ने पति से कहा कि वह घर में बैठ कर वक्त बरबाद नहीं करना चाहती.

निशा इंटरमीडिएट पास थी और उस की अंगरेजी भाषा पर अच्छी पकड़ थी. वह सोचती थी कि किसी भी इंग्लिश स्कूल में उसे नौकरी मिल सकती है.

नौकरी करने वाली बात निशा ने पति और सासससुर से बताई तो उन्हें इस पर कोई ऐतराज नहीं हुआ. निशा को इजाजत मिल गई और थोड़ी कोशिश से निशा को होली चाइल्ड स्कूल में नौकरी मिल गई.

कालांतर में निशा 2 बेटियों की मां बनी, जिन के नाम रागिनी और तमन्ना रखे गए. अब उन का छोटा सा खुशहाल परिवार था. वे स्कूल परिसर में स्थित कमरे में रहते थे. राजकुमार और निशा का दांपत्य जीवन काफी सुखद था. किन्हीं खास मौकों पर वे लोग बरेली चले जाते थे.

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बदलने लगी निशा की सोच

सब कुछ ठीक चल रहा था, पर वक्त कब करवट ले लेगा, इस का आभास किसी को नहीं था. स्कूल की नौकरी करतेकरते निशा को लगने लगा था कि राजकुमार से शादी करना उस के जीवन की सब से बड़ी भूल थी. वह अच्छाखासा कमा लेती है. अगर उस ने शादी की जल्दबाजी न की होती तो उसे कोई पढ़ालिखा अच्छा पति मिलता और वह ऐश करती.

ऐसे विचार मन में आते ही उस का दिल बेचैन होने लगा. जितना उसे मिला था, उस से उसे संतोष नहीं था. उस की कुछ ज्यादा पाने की चाहत बढ़ रही थी.

कहते हैं, अकसर ज्यादा पाने की चाह में लोग बहुत कुछ गंवा देते हैं. निशा का भी यही हाल था. अब धीरेधीरे राजकुमार और निशा के जीवन में तल्खियां बढ़ने लगीं. निशा छोटीछोटी बातों को ले कर मीनमेख निकालती और उस से झगड़ा करने की कोशिश करती.

सीधेसादे राजकुमार को हैरानी होती थी कि निशा को आखिर हो क्या गया है. एक दिन निशा ने कहा, ‘‘तुम क्या थोड़ी और पढ़ाई नहीं कर सकते थे? कम से कम मेरी तरह इंटर तो पास कर लेते. पढ़ेलिखे होते तो तुम्हारा दिमाग भी खुला होता.’’

‘‘मैं ज्यादा पढ़ालिखा न सही, पर अपने काम में तो परफैक्ट हूं. लोगों को अपने धर्म का ज्ञान बेहतर तरीके से देता हूं. हालांकि मैं केवल हाईस्कूल पास हूं लेकिन मैं ने यह ठान लिया है कि अपनी बेटियों को खूब पढ़ाऊंगा.’’ राजकुमार बोला.

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‘‘बेटियों की फिक्र तुम छोड़ो. यह सब मुझे सोचना है कि उन के लिए क्या करना है.’’ निशा ने पति की बात काटते हुए कहा.

राजकुमार तर्क कर के बात बढ़ाना नहीं चाहता था. इसलिए वह पत्नी के पास से उठ गया. दोनों बेटियों को साथ ले कर वह यह सोच कर घर से बाहर निकल गया कि थोड़ी देर में निशा का गुस्सा शांत हो जाएगा.

थोड़ी देर बाद जब वह घर पहुंचा तो निशा नार्मल हो चुकी थी. राजकुमार ने राहत की सांस ली. निशा ने राजकुमार का खाना लगा दिया, तभी स्कूल का चपरासी 20 वर्षीय अर्जुन आया और वह निशा को चाबियां देते हुए बोला, ‘‘मैडम, मैं ने बाकी ताले बंद कर दिए हैं. आप केवल बाहरी गेट का ताला लगा लेना, मैं घर जा रहा हूं.’’

‘‘अर्जुन, बैठो, चाय पी कर जाना.’’ निशा ने कहा.

निशा के कई बार कहने पर अर्जुन कुरसी पर बैठ गया. अर्जुन बाबा कालोनी निवासी ओमेंद्र सिंह का बेटा था. वह स्कूल में चपरासी था और उस का छोटा भाई किरनेश स्कूल के प्रिंसिपल के घर का नौकर था.

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कुछ देर में निशा चाय बना कर ले आई. चाय पी कर अर्जुन चला गया. लेकिन राजकुमार के दिल में कुछ खटकने लगा. उस ने निशा से कहा, ‘‘मुझे इस अर्जुन की आदतें कुछ अच्छी नहीं लगतीं. वैसे भी ये स्कूल का चपरासी है और तुम टीचर, तुम्हें अपने स्टैंडर्ड का ध्यान रखना चाहिए.’’

निशा ने तुनक कर कहा, ‘‘मैं ने ऐसा क्या कर दिया जो तुम मेरे स्टैंडर्ड को कुरेद रहे हो.’’

राजकुमार ने कोई जवाब नहीं दिया. वह बात को बढ़ाना नहीं चाहता था. लेकिन उस दिन के बाद निशा का ध्यान अर्जुन पर टिक गया. जब वह अकेली होती तो अचानक अर्जुन उस के जेहन में आ बैठता.

निशा के दिल के दरवाजे पर दस्तक दी अर्जुन ने

कुछ दिनों बाद राजकुमार की तबीयत खराब हो गई. वह कभीकभी 2 दिन तक चर्च में ही रुक जाता और बदायूं नहीं आ पाता था. इस अकेलेपन ने निशा को गुमराह कर दिया. अर्जुन एक स्वस्थ और स्मार्ट युवक था. वैसे भी निशा के साथ वह घुलनेमिलने लगा था. अब राजकुमार की गैरमौजूदगी में वह निशा के कमरे में आ जाता और उस की बेटियों के लिए खानेपीने की चीजें ले आता था.

निशा के मन में अर्जुन अपनी जगह बनाने लगा था. निशा भी अर्जुन के बारे में सोचती रहती थी. वह उस की मजबूत बांहों में समाने के लिए बेताब रहने लगी थी. उधर अर्जुन निशा को चाहता तो था लेकिन निशा के पति की वजह से पहल करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था.

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कहा जाता है कि फिसलन की ओर बढ़ने वाले कदम आसानी से दलदल तक पहुंच जाते हैं. यही निशा के साथ हुआ. एक दिन शाम को निशा के पास राजकुमार का फोन आया. उस ने कहा कि वह आज रात को घर नहीं आ पाएगा. इस फोन काल ने निशा के दिल में हलचल मचा दी. उस के दिल की धड़कनें बढ़ गईं.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

कहानी सौजन्य-मनोहर कहानियां

जीवन की चादर में छेद: भाग 3

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अर्जुन के चले जाने के बाद राजकुमार ने निशा को जम कर लताड़ा. निशा उस के पैरों में गिर कर अपनी गलती की माफी मांगने लगी, पर राजकुमार के तेवर सख्त थे. उस ने  कह दिया कि अब हम यहां नहीं रहेंगे. राजकुमार ने पिता को फोन पर सारी बातें बता दीं और कहा कि अब हम बरेली में नेकपुर स्थित अपने घर में रहेंगे.

पति का फैसला सुन कर निशा परेशान हो गई. वह किसी भी हालत में बदायूं को छोड़ना नहीं चाहती थी. अत: उस ने तय कर लिया कि वह पति नाम के इस कांटे को अपनी जिंदगी से उखाड़ फेंकेगी.

अगले दिन राजकुमार वजीरगंज चला गया. निशा ने मौका मिलते ही अर्जुन को एकांत में बुला कर कहा, ‘‘अगर मुझे चाहते हो तो तुम्हें राजकुमार को रास्ते से हटाना होगा.’’

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अर्जुन का दिल तेजी से धड़कने लगा क्योंकि ऐसा तो उस ने कभी सोचा ही नहीं था.

उसे चुप देख निशा बोली, ‘‘हां, मैं ठीक ही कह रही हूं. आज राजकुमार जब घर आएगा तो तुम घर आ कर उस से अपनी गलती की माफी मांगना और उस का विश्वास जीतना. इस के आगे क्या करना है, मैं बाद में बताऊंगी.’’

अर्जुन ने ऐसा ही किया. राजकुमार जब घर पहुंचा तो अर्जुन उस के घर चला गया. उसे देखते ही राजकुमार उस पर भड़का तो अर्जुन ने उस से अपनी गलती पर अफसोस जताते हुए माफी मांग ली. सीधेसादे राजकुमार ने उसे माफ कर दिया और कहा कि अब वैसे भी हमें यहां नहीं रहना है.

माफी मांग कर काट दी जीवन की डोर

पर अर्जुन के दिल में राजकुमार के प्रति क्या था, यह बात राजकुमार नहीं जानता था. राजकुमार मौत की दस्तक को सुन ही नहीं पाया था. 15 जून, 2019 को अपनी योजना के मुताबिक अर्जुन अपनी बाइक पर आया. उस ने राजकुमार से कहा, ‘‘चलिए, मछली लेने चलते हैं.’’

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राजकुमार भी माहौल का तनाव कम करना चाहता था. वह अर्जुन को माफ कर चुका था.

साजिश से अनजान राजकुमार अर्जुन के साथ बाइक पर बैठ गया. अर्जुन बाइक को इधरउधर घुमाता रहा. फिर बाइक मझिया गांव के सुनसान इलाके में ले गया और बोला, ‘‘अब बाइक आप चलाओ, मैं पीछे बैठता हूं.’’

राजकुमार ने ड्राइविंग सीट संभाली. दोनों शर्की रेलवे स्टेशन से कुछ ही दूरी पर पहुंचे थे कि बाइक पर पीछे बैठे अर्जुन ने जेब से तमंचा निकाला और राजकुमार के सिर पर गोली मार दी. राजकुमार का बैलेंस बिगड़ा और वह बाइक समेत जमीन पर गिर गया. राजकुमार खून से लथपथ था. अब योजना के मुताबिक राजकुमार को रेलवे ट्रैक पर डालना था ताकि उस की मौत ट्रेन एक्सीडेंट लगे.

अर्जुन चाहता था ट्रेन एक्सीडेंट समझा जाए

खून से लथपथ राजकुमार को अर्जुन ने रेलवे ट्रैक पर डाल दिया. उस के कपडे़ भी खून से लथपथ थे. रेलवे लाइन पर पड़ा राजकुमार तड़प रहा था. वह अभी जिंदा था पर अर्जुन ने जो सोचा था, हो नहीं सका. कासगंज से बरेली जाने वाली ट्रेन तब तक गुजर गई थी. अब सुबह 5 बजे से पहले वहां से कोई गाड़ी निकलने वाली नहीं थी.

अर्जुन ने बाइक स्टार्ट की और घर आ गया. उस ने खून सने कपड़े उतारे. कपड़ों पर लगा खून देख कर घर वाले सन्न रह गए. उन्होंने अर्जुन से जब सख्ती से पूछताछ की तो पता चला कि अर्जुन ने राजकुमार का कत्ल कर दिया है.

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अर्जुन ने अपने कपड़े धो डाले और घर वालों से सख्त लहजे में कहा कि कोई भी अपना मुंह नहीं खोलेगा. उस ने निशा को काम हो जाने की खबर फोन पर दे दी.

रात जैसेतैसे गुजर गई. सुबह मार्निंग वाक पर निकले लोगों ने रेलवे ट्रैक पर लाश देखी तो किसी ने इस की सूचना रेलवे पुलिस को दे दी. पुलिस वहां आ गई और लोगों से लाश की शिनाख्त कराने की कोशिश की. पर उस की शिनाख्त नहीं हो पाई. सिविल लाइंस थाने की पुलिस भी वहां पहुंच गई.

उधर राजकुमार को 15 जून को बरेली जाना था, यह बात उस ने फोन पर अपने पिता रघुवीर को बता दी थी, लेकिन वह रात में घर नहीं पहुंचा तो घर वाले परेशान हो गए.

इधर थाना सिविल लाइंस के थानाप्रभारी ओ.पी. गौतम, सीओ राघवेंद्र सिंह राठौर और एसपी (सिटी) जितेंद्र कुमार श्रीवास्तव भी मौके पर पहुंच गए थे. फोरैंसिक टीम भी जांच के लिए पहुंच गई थी. जांच में पुलिस को मृतक की जेब से 100 रुपए का एक नोट और एक परची मिली. पुलिस ने जरूरी काररवाई कर के लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी.

17 जून को लाश का फोटो अखबारों में छपा तो रघुवीर के एक रिश्तेदार जे.पी. मसीह ने उन्हें फोन कर के पूछा कि राजकुमार कहां है? रघुवीर ने कहा कि राजकुमार को बरेली आना था, पर आया नहीं है.

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सब जगह फोन कर लिया, पर उस का कुछ पता नहीं है. तब जे.पी. मसीह अखबार ले कर रघुवीर के घर पहुंच गए और उन्हें अखबार दिखाया. अखबार में अपने बेटे की लाश का फोटो देख कर रघुवीर की आंखों से आंसू निकल आए. वह परेशान हो गए तभी उन के पास पुलिस कंट्रोल रूम से भी फोन आ गया.

रघुवीर अपने रिश्तेदारों के साथ पोस्टमार्टम हाउस पहुंच गए और लाश की शिनाख्त बेटे राजकुमार के रूप में कर दी. निशा भी किसी से खबर पा कर घडि़याली आंसू बहाती हुई पोस्टमार्टम हाउस पहुंची. वह वहां इस तरह से रो रही थी, जैसे उस का सब कुछ लुट गया हो.

पोस्टमार्टम के बाद लाश बरेली ला कर उस का अंतिम संस्कार कर दिया गया. निशा के हावभाव देख कर रघुवीर की समझ में कुछकुछ आ रहा था. उन्हें शक था कि उन के बेटे की हत्या निशा ने कराई होगी. क्योंकि उसे रंगेहाथ पकड़ने पर राजकुमार ने उस की शिकायत अपने पिता से कर दी थी.

रघुवीर ने जांच अधिकारी के सामने अपनी पुत्रवधू और अर्जुन के नाजायज संबंधों का खुलासा कर दिया था. पुलिस ने अर्जुन को हिरासत में ले लिया. अर्जुन ने अपने हाथ पर ब्लेड से निशा का नाम लिख रखा था.

पुलिस ने निशा और अर्जुन को आमनेसामने बैठा कर पूछताछ की तो दोनों एकदूसरे पर इलजाम लगाने लगे. उन की दीवानेपन आशिकी की हवा निकल चुकी थी. दोनों ने ही अपना जुर्म स्वीकार कर लिया. अब दोनों को जेल जाने का डर सता रहा था.

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पुलिस ने भादंवि की धारा 302, 201 के तहम मुकदमा दर्ज कर के उन से विस्तार से पूछताछ की और कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया.

रागिनी और तमन्ना ने मांबाप दोनों को खो दिया था. राजकुमार की मां आशा मसीह ने कहा कि उसे तो विश्वास ही नहीं हो रहा कि उन की बहू उन के सीधेसादे बेटे को मरवा सकती है. अब इस उम्र में उन्हें अपने बेटे की बच्चियों की परवरिश के लिए जीना होगा.

निशा के पिता दयाशंकर और मां गीता को बेटी के इस गुनाह पर अफसोस होता है. उन्होंने तो कभी कल्पना भी नहीं की थी कि निशा ऐसा भी कर सकती है. काश, राजकुमार मौत की दस्तक को सुन पाता तो उसे अपनी जान से हाथ न धोना पड़ता.

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कहानी सौजन्य-मनोहर कहानियां

जीवन की चादर में छेद: भाग 2

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निशा के दिमाग में अर्जुन घूम रहा था. उस ने कमरे से बाहर निकल कर देखा तो उस समय अर्जुन स्कूल के अपने काम निपटा कर घर जाने की तैयारी कर रहा था. तभी निशा ने उसे आवाज दे कर बुलाया, ‘‘अर्जुन, तुम कमरे में आओ, कुछ बात करनी है.’’

अर्जुन कमरे में आ गया. निशा उस के लिए चाय बना कर ले आई. निशा ने चाय का प्याला उस की ओर बढ़ाते हुए कहा, ‘‘अर्जुन, आज रात राजकुमार घर नहीं आएगा. अकेले में मुझे डर लगेगा, तुम आज रात यहीं रुक जाओ, जिस से मेरा भी मन लगा रहेगा.’’

अर्जुन ने गहरी नजर से निशा को देखा. उसे निशा का अंदाज कुछ अजीब सा लगा. उस की चुप्पी देख कर निशा ने पूछा, ‘‘कुछ परेशानी है क्या?’’

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‘नहीं मैडम, ऐसी कोई बात नहीं है. मैं सोच रहा हूं कि अगर साहब को पता चला तो पता नहीं वो मेरे बारे में क्या सोचेंगे, वह तो वैसे भी मुझे पसंद नहीं करते.’’

‘‘तुम उन की चिंता मत करो. तुम्हें मैं तो पसंद करती हूं न.’’ निशा ने मुसकराते हुए कहा तो अर्जुन की भावनाओं में जैसे तूफान उठने लगा. उस ने उसी समय जेब से मोबाइल निकाला और अपने घर फोन कर के बता दिया कि स्कूल में कुछ काम होने की वजह से वह आज घर नहीं आ पाएगा.

इस के बाद अर्जुन उस के कमरे में बैठ गया. निशा ने खाना बनाने की तैयारी शुरू कर दी. तब तक अर्जुन उस के दोनों बच्चों के साथ खेलने लगा. खाना बनने के बाद निशा ने बच्चों को पहले खाना खिलाया और उन्हें सुला दिया.

फिर निशा ने अपना और अर्जुन का खाना लगाया. खाना खातेखाते अर्जुन उस के खाने की तारीफ करते हुए बोला, ‘‘मैडम, आप खाना बहुत अच्छा बनाती हैं.’’

‘‘खाना बनाना ही नहीं, मैं बहुत से काम बहुत अच्छे से करती हूं.’’ कह कर निशा हंसने लगी. फिर उस ने एक प्रश्न किया, ‘‘अर्जुन, तुम ने अभी तक शादी क्यों नहीं की?’’

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अर्जुन निशा को गौर से देखते हुए बोला, ‘‘रिश्ते तो कई आए थे मैडम, लेकिन जब से आप को देखा है मेरा इरादा बदल गया है.’’

‘‘क्या मतलब?’’ निशा ने चौंकते हुए पूछा.

‘‘मतलब यह कि मुझे आप जैसी स्मार्ट जीवनसाथी की जरूरत है.’’

निशा की चाहत बन गया अर्जुन

अर्जुन की बात सुन कर निशा मन ही मन खुश हुई कि इस का मतलब वह उसे पहले से ही चाहता है. निशा कुछ नहीं बोली बल्कि मुसकराने लगी. खाना खाते हुए दोनों इसी तरह की बातें करते रहे.

खाना खाने के बाद निशा ने अर्जुन का बिस्तर जमीन पर लगाते हुए कहा कि वह यहां आराम कर सकता है. इस के बाद रसोई का काम खत्म कर के वह भी आ गई.

उस ने चटाई बिछा कर अपना बिस्तर भी जमीन पर लगा लिया. धीरेधीरे रात गहराती जा रही थी और वहां भी कुछ ऐसा होने वाला था, जो किसी के लिए बरबादी ला सकता था.

निशा की आंखों में नींद नहीं थी. उस ने अर्जुन की तरफ देखा तो वह भी करवटें बदल रहा था. उस ने पूछा, ‘‘अर्जुन, नींद नहीं आ रही क्या?’’

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‘‘हां, नींद नहीं आ रही. पर सोच रहा हूं कि आप के पति तो अकसर वजीरगंज में ही रुक जाते हैं, फिर आप ने आज मुझे यहां क्यों रोका है?’’

निशा ने हंसते हुए कहा, ‘‘तुम क्या सचमुच अनाड़ी हो या अनजान बनने का नाटक कर रहे हो. मैं ने तुम्हारी आंखों में कुछ खास देखा था, वही पिछले कई दिनों से मुझे परेशान कर रहा है. अर्जुन भूख अकसर 2 लोगों को एकदूसरे के करीब ले आती है.’’

‘‘यह क्या कह रही हैं आप?’’ अर्जुन बोला.

‘‘ठीक ही कह रही हूं. मैं तुम से प्यार करने लगी हूं अर्जुन.’’

अर्जुन को जैसे करंट सा लगा, पर उसे विश्वास नहीं हो रहा था. निशा ने आगे बढ़ कर अर्जुन का हाथ पकड़ा और कहा, ‘‘डरो मत अर्जुन, मैं सचमुच तुम्हें चाहती हूं और यह कोई गुनाह नहीं है. मैं अपने पति से तंग आ चुकी हूं.’’

अर्जुन फिसलन की कगार पर खड़ा था. निशा के स्पर्श से वह दलदल में जा गिरा. शादीशुदा और 2 बच्चों की मां ने उसे एक ऐसे दलदल में खींच लिया, जिस के अंदर जाना तो आसान था पर बाहर आने का कोई रास्ता नहीं था.

उस दिन के बाद रिश्तों की दिशा और दशा ही बदल गई. अपनी तबाही से बेखबर राजकुमार अगले दिन घर आ गया. राजकुमार की बरबादी की नींव रखी जा चुकी थी. बीवी ने बेवफाई करने के लिए कमर कस ली थी. अब आए दिन वह पति से झगड़ने लगी. राजकुमार भी महसूस कर रहा था कि स्कूल का चपरासी अर्जुन अब पहले की तरह उस की इज्जत नहीं करता.

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एक दिन वह जब वजीरगंज से लौटा तो उस ने अर्जुन को कमरे में चारपाई पर पसरा हुआ देखा. यह देख कर राजकुमार का माथा गरम हो गया. वह बोला, ‘‘अर्जुन, तुम यहां क्या कर रहे हो? लगता है, तुम अपनी औकात भूल रहे हो. मेरी गैरमौजूदगी में तुम्हें यहां आने की जरूरत नहीं है.’’

उस समय तो अर्जुन वहां से चला गया. उस ने खुद को अपमानित महसूस किया और तय किया कि राजकुमार को सबक सिखाएगा.

राजकुमार के तेवर देख कर निशा भी डर गई थी. राजकुमार ने कहा, ‘‘निशा, यह अर्जुन मुझे बिलकुल भी पसंद नहीं है. तुम इस से दूर ही रहो. देखो, मैं सोच रहा हूं कि अपना तबादला बरेली में ही करा लूं. पापा भी रिटायर हो गए हैं, अपना मकान भी उन्होंने बना लिया है. फिर तुम्हें भी बरेली में कहीं नौकरी मिल ही जाएगी.’’

‘‘देखो, अर्जुन इसी स्कूल में काम करता है. तुम्हारे जाने के बाद वह मार्केट से घर की जरूरत का सामान भी ला देता है. तुम खामख्वाह उस पर गरम हो रहे थे. देखो, हमें यहां कमरा मिला हुआ है. यहां कोई परेशानी भी नहीं है. और फिर यह बात तुम जानते हो कि मैं जौइंट फैमिली में नहीं रह सकती.’’ निशा ने पति को समझाया.

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‘‘इस मामले में मैं घर वालों से बात करूंगा.’’ कह कर राजकुमार बाथरूम चला गया.

राजकुमार अनभिज्ञ था पत्नी के संबंधों से

राजकुमार को अभी तक यह पता नहीं था कि अर्जुन और उस की पत्नी निशा के बीच किस तरह के संबंध हैं. पिछले 6 महीने से वह महसूस कर रहा था कि निशा बदल रही है.

कहते हैं कि इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपता. निशा और अर्जुन के संबंधों की असलियत भी सामने आ ही गई. उस दिन अर्जुन घर जाने ही वाला था कि राजकुमार का पत्नी के पास फोन आ गया कि वह आज रात को घर नहीं आएगा.

यह खबर सुन कर निशा खुश हुई. उस ने अर्जुन को बुला कर कहा, ‘‘आज रात फिर अपनी ही है क्योंकि राजकुमार आज भी नहीं आएगा. ऐसा करो कि तुम नहाधो कर फ्रैश हो जाओ. तब तक मैं तुम्हारे लिए चाय बनाती हूं.’’

निशा ने गैस पर चाय चढ़ा दी. अर्जुन भी फ्रैश होने के लिए बाथरूम में घुस गया. फ्रैश होने के बाद वह निशा के साथसाथ चाय पीने लगा. चाय की चुस्कियां लेते हुए वह बोला, ‘‘ऐसा आखिर कब तक चलेगा, हमें कुछ करना ही होगा.’’

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‘‘हां करेंगे.’’ कहते हुए निशा ने कहा, ‘‘अभी तो इन पलों को जिओ, जो हमें मिल रहे हैं.’’

इस के बाद दोनों मौजमस्ती में लीन हो गए. अर्जुन इस बात से बेखबर था कि उस ने बाहरी गेट बंद नहीं किया था. तभी अचानक दबेपांव राजकुमार वहां आ गया. बीवी को अर्जुन की बाहों में देख कर वह आगबबूला हो गया. उस ने अर्जुन की टांग पकड़ कर खींची और उसे कई तमाचे जड़ दिए.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

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