उम्मीद: आम घरों की लड़कियों को इस अंदाज में मिली आजादी

सरकार इस बार आजादी के 75 साल का जश्न मना रही है. इन 75 सालों में देश में काफी बदलाव हुआ है, जो काफी हद तक देश को आगे बढ़ाने में मददगार साबित हुआ है. इस में गांवदेहात और शहरों की आम लड़कियों की पढ़ाईलिखाई ने उन्हें आगे बढ़ने के कई मौके दिए हैं, पर अगर गौर से देखा जाए तो आज भी ऐसी लड़कियां अपनी बात कहने में झिझकती हैं. उन्हें अपने छिपे हुनर को दिखाने का ज्यादा मौका नहीं मिला है.

लेकिन जब से लोगों की जिंदगी में स्मार्ट फोन ने अपनी दखलअंदाजी बढ़ाई है और सोशल मीडिया हम पर हावी हुआ है, तब से गांवदेहात और शहरों के गरीब नौजवानों खासकर लड़कियों के मानो अरमानों को नए पंख लग गए हैं. इस में ‘टिकटौक’, ‘यूट्यूब’, ‘इंस्टाग्राम’ और सोशल मीडिया के दूसरे तमाम साधनों ने बहुत बड़ा रोल निभाया है. एक उदाहरण से इस बात को समझते हैं. वायरल हुए एक वीडियो में एक लड़की चूल्हे पर रोटी पकाते हुए दिखाई दे रही थी. वह कोई खास पकवान नहीं बना रही थी, बल्कि उस लड़की को लोगों ने इसलिए देखा क्योंकि वह बला की खूबसूरत थी, साथ ही उस की मासूमियत भी खास थी और लोग उसे फिल्म की हीरोइन तक बता रहे थे.

वह वीडियो इतना ज्यादा वायरल हुआ कि लड़की अचानक से फेमस हो गई. अगर उस वीडियो को ध्यान से देखें, तो वह लड़की एक खुली जगह पर बैठी थी, जो किसी गांव का इलाका लग रहा था और पीछे कुत्ते तक घूमते दिखाई दे रहे थे. बिना नहाए, मैलेकुचैले कपड़े पहने कुछ बच्चे किसी पाइप पर उलटे लटके हुए थे. और ज्यादा पीछे देखें तो घर भी कच्चेपक्के से थे, मतलब ठेठ देहाती इलाका. रानू मंडल का नाम भला कौन भूल सकता है, जो अपनी सुरीली आवाज से रातोंरात स्टार बन गई थीं. हुआ यों था कि पश्चिम बंगाल के एक रेलवे प्लेटफार्म पर रानू मंडल के गाने वाला वीडियो एक शख्स ने सोशल मीडिया पर वायरल कर दिया था. उस वीडियो को कुछ ही घंटों में दुनियाभर के लोगों ने देखा था. बहुत से लोग तो रानू मंडल को लता मंगेशकर की दूसरी आवाज तक कहने लगे थे. बात यहीं खत्म नहीं हुई थी. इस के बाद रानू मंडल हिंदी फिल्म इंडस्ट्री तक पहुंच गई थीं और संगीतकार व गायक हिमेश रेशमिया के साथ एक फिल्म में अपनी आवाज भी दी थी. कल तक आम घर की लड़की अंजलि अरोड़ा, जो आज अपने डांस वीडियो से बड़ी सैलेब्रिटी बन चुकी है और कंगना राणावत के टैलीविजन शो ‘लौकअप’ में भी आ चुकी है, ने एक अखबार को दिए इंटरव्यू में बताया,

‘‘रिएलिटी शो मेरे लिए एक सपना था, क्योंकि मैं ने कभी नहीं सोचा था कि मुझे कभी भी इस तरह की मशहूरी मिलेगी, जैसी हासिल की है. ‘टिकटौक’ से ‘लौकअप’ तक का सफर मेरे लिए आसान नहीं था. ‘‘जब मैं ‘टिकटौक’ के लिए वीडियो बनाती थी, तो मेरे रिश्तेदार कहते कि यह वीडियो में डांस कर के नाक कटा रही है.’’ अंजलि अरोड़ा के शुरुआती वीडियो में उन के घर या आसपास के इलाके को देख कर लगता था कि भले ही वे दिल्ली में रहती हैं, पर वह कोई पौश एरिया नहीं है, लेकिन ‘टिकटौक’ में हिंदी गानों पर डांस करने वाली अंजलि के आज इंस्टाग्राम पर एक करोड़ से ज्यादा फौलोअर्स हैं. इतना ही नहीं, बहुत सी गरीब घर की लड़कियां, जिन के यहां ढंग का रहनसहन नहीं है, दो वक्त की रोटी का जुगाड़ भी मुश्किल से होता है और वे अंजलि अरोड़ा की तरह सोशल मीडिया से पैसे भी नहीं कमा रही हैं, फिर भी अपना हुनर दिखाने का कोई मौका नहीं छोड़ती हैं. वे रूपरंग की कैसी भी हों, पर उन में कैमरे के आगे अपना हुनर दिखाने का जो हौसला है, वह गजब का है. कुछ लड़कियां या ब्याहता औरतें तो बोल्ड भी बहुत हैं. बिना चेहरा छिपाए वे किसी भी भाषा के गाने पर सजधज कर अपनी देह दिखाते हुए खूब मटकती हैं, फिर चाहे उन के नाजुक अंगों के दर्शन ही क्यों न हो जाएं.

कुछ लोग इसे बेशर्मी भी कह सकते हैं, पर अगर उन वीडियो को ध्यान से देखें तो पता चलता है कि उन्होंने कितनी ज्यादा मेहनत की और शायद कईकई बार रिहर्सल भी की होती है. यही वजह है कि ऐसी लड़कियों या औरतों की देखादेखी बड़ेबड़े सैलेब्रिटी भी ‘कच्चा बादाम’ जैसे गानों पर वीडियो बना रहे हैं. हरियाणा की सपना चौधरी के कूल्हे मटकाते डांस को पहले सामाजिक नजरिए से अच्छा नहीं माना जाता था, पर आज की तारीख में हरियाणा तो छोडि़ए, बड़े से बड़े मैट्रो शहर की शादी में उन का मशहूर गाना ‘तेरी आंख्या का यो काजल…’ खूब बजता है और उस पर लोग जम कर डांस करते हैं.

लड़कियों की इज्जत पर भारी प्यार

एकसाथ 2 लोगों से प्यार होना बड़ी बात नहीं है. प्यार… दुनिया का सब से खूबसूरत शब्द है. जब यह होता है तो सबकुछ सुंदर और अच्छा लगने लगता है. और जब नहीं होता तो सबकुछ हो कर भी दुनिया उदास व बेरंग नजर आती है. यह स्थिति प्यार होने और न होने की है, लेकिन तब क्या होगा जब 2 लोगों से एकसाथ प्यार हो जाए और दोनों में से आप किसी से अलग नहीं होना चाहें? इस सवाल को सुन कर आप के मन में सवाल आया होगा कि क्या 2 लोगों से एकसाथ प्यार होना मुमकिन है? तो इस का जवाब हां है.

आज के दौर में लव ट्राएंगल के किस्से काफी बढ़ गए हैं. पिछले कुछ सालों में लव ट्राएंगल की लोकप्रियता बढ़ी है. यह तब होता है जब आप अपने वर्तमान पार्टनर से खुश नहीं होते और प्यार व इमोशनली सपोर्ट के लिए किसी और को खोजने लगते हैं. ऐसी स्थिति में आकर्षण होना लाजिमी है. जब यह होता है तो लव ट्राएंगल कहा जाता है, लेकिन इसी ट्राएंगल में लड़कियां बुरी तरह फंस जाती हैं.

कुछ दिनों पहले रोहतक में एक लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार और उस के बाद उस की निर्ममता से जो हत्या हुई, उस की जैसेजैसे परतें खुल रही हैं वे बहुत ही भयानक हैं. बलात्कारी और हत्यारे कोई और नहीं बल्कि लड़की का पुराना प्रेमी और उस के दोस्त ही हैं, जिन्होंने सोनीपत से जबरदस्ती उस का अपहरण किया. उस के बाद उस के साथ सामूहिक बलात्कार, फिर उस की निर्ममता से हत्या कर दी.

उस के हर अंग को बुरी तरह से कुचल दिया. उस के बाद उस की बौडी को झाडि़यों में फेंक दिया. जहां उस को कुत्ते खाते रहे. लड़की को ईंट से बुरी तरह कुचला गया, उस को गाड़ी से भी कुचला गया. उस के गुप्तांग में लोहे की छड़ घुसेड़ दी गई. यह अमानवीयता की हद है. अब वह लड़का कहता है कि वह उस लड़की से बहुत प्यार करता था. उस से शादी करना चाहता था, लेकिन जब लड़की ने शादी से मना कर दिया तो उस ने ऐसा किया.

प्यार का जादू

ऐसा जरूरी नहीं कि जिसे हम प्यार करें वह भी बदले में हमें प्यार दे. हम जिसे प्यार करते हैं अगर  वह भी हमें प्यार करे तो वे दोनों लव कपल कहलाते हैं, पर ऐसा न हुआ तो इसे हम एकतरफा प्यार कहते हैं. दिल टूटना, सपने टूटना आदि एकतरफा प्यार की निशानियां हैं.

संसार में ऐसा कोई नहीं जो प्यार के जादू से वंचित हो. प्यार एक नशे की तरह है जिस के बिना जिंदगी संभव नहीं. प्यार का जादू सिर चढ़ कर बोलता है और हां, प्यार का नाम सुनते ही न जाने हमारे दिल को क्या हो जाता है कि वह बीते हुए कल की तरफ या फिर आने वाले कल को  हसीन पलों में संजोए रखता है.

आज आप उम्र के उस कगार पर खड़े हैं जब प्यार का नशा अपनेआप ही चढ़ जाता है. जी हां, 16 साल की उम्र ऐसी ही होती है. कोई भी अनजान अपना सा लगने लगता है, जिस को सिर्फ देख कर ही दिल को सुकून मिलता है.

लड़कों के साथ ऐसा कई बार होता है. वे जिस लड़की को पसंद करते हैं वह उन के बारे में वैसा नहीं सोचती है. जिस के कारण वह उन के प्यार को स्वीकार नहीं कर पाती है और लड़कों को उस की न का सामना करना पड़ता है. ऐसे में लड़कों के लिए इस स्थिति का सामना करना मुश्किल हो जाता है. कई बार वे कुछ गलत कदम भी उठा लेते हैं जो दोनों के लिए बहुत नुकसानदेह हो जाता है. ऐसे में लड़कों व लड़कियों दोनों को संयम से काम लेना चाहिए.

न सुनने के लिए भी रहें तैयार

आप जब किसी से अपने दिल की बात कहते हैं तो ‘हां’ की उम्मीद के साथसाथ उस की ‘न’ सुनने के लिए भी तैयार रहना चाहिए. जब आप ने उसे अपनी भावनाओं के बारे में बता दिया तो आप का इजहार करने का काम खत्म हो गया. अब इस के आगे आप कुछ नहीं कर सकते. आप को हमेशा मानसिक रूप से तैयार रहना होगा कि अगर सामने वाला आप के प्यार को अस्वीकार भी कर देगा तो आप टूटेंगे नहीं.

आप किसी से प्यार करते हैं तो इस में बुराई नहीं है, लेकिन अपने प्यार का नकारात्मक प्रभाव अपनी पढ़ाई या कैरियर पर न पड़ने दें. यह आप के जीवन को बरबाद कर देगा. किसी के इनकार के बाद भी आप के जीवन में बहुतकुछ है जिसे आप पा सकते हैं. उस में आप की कोई गलती नहीं थी, इसलिए जितनी जल्दी हो सके उसे भूल जाएं, क्योंकि वह आप के बिना ज्यादा खुश है. वह आप को नहीं चाहती.

अगर आप उस की ‘न’ सुनने के बावजूद उस पर अपना प्यार थोपेंगे तो यह उस की भी खुशियां छीन लेगा. इसलिए उस के रास्ते से हट जाएं इस में ही आप दोनों खुश रहेंगे.

सही कदम उठाएं

किसी के बहकावे में आ कर कोई भी गलत कदम न उठाएं. इस से आप को कुछ हासिल नहीं होने वाला. इस से लोग आप पर हंसेंगे. आप के जीवन पर भी इस का बुरा प्रभाव पड़ सकता है. इसलिए इस घनचक्कर से निकलने की कोशिश करें. प्यार के अलावा भी आप के जीवन में बहुतकुछ है. इन सब को भुलाने के लिए खुद को काम में, पढ़ाई में या दोस्तों के साथ व्यस्त रखें.

समय हर जख्म को भर देता है. कुछ समय के बाद आप जिंदगी में नई शुरुआत कर पाएंगे. जिसे आप पसंद करते हैं उस के प्रति अपने मन में कोई मैल न रखें, न ही उस से बदला लेने की सोचें और न ही उस की जिंदगी को बरबाद करने की कोशिश करें.

अकसर लड़के प्यार में ‘न’ सुनने के तुरंत बाद किसी से भी प्यार करने के चक्कर में पड़ जाते हैं. यह पूरी तरह से भावुकता में लिया गया गलत फैसला है. ऐसे में खुद को थोड़ा समय दें और सोचसमझ कर किसी नए रिश्ते की शुरुआत करें.

सिर्फ इसलिए क्योंकि आप को अपना प्यार नहीं मिला, आप भी किसी और के साथ ऐसा करें, यह ठीक नहीं है. असल जिंदगी में फिल्मी तरीके न अपनाएं क्योंकि फिल्मों की कहानी काल्पनिक होती है जो जिंदगी की वास्तविकता से हमेशा मेल नहीं खाती है. गम दूर करने के नाम पर कभी नशे का सहारा न लें. यह आप की जिंदगी को बरबाद कर देगा.

त्रिकोणीय प्रेम से रहें दूर

दिल पर किसी का वश नहीं चलता. यह बहुत चंचल है, लेकिन कभीकभी यह चंचलता हमें ऐसी मुसीबत में डाल देती है जिसे हम जान कर भी अनदेखा कर देते हैं. त्रिकोणीय प्रेम का एक कारण यह भी होता है कि जब आप का अपने रिश्ते पर से भरोसा उठ जाता है और आप एक नए रिश्ते में बंधने की कोशिश करते हैं, जब ऐसे मुश्किल हालात सामने होते हैं तो यह समझ पाना मुश्किल हो जाता है कि यह प्यार है या महज आकर्षण.

प्यार एक भावनात्मक रिश्ता

कोई कैसे अपने भावनात्मक रिश्तों के साथ खिलवाड़ कर सकता है. ऐसे ही रिश्तों की वजह से आज हमारे देश में लिवइन रिलेशन बढ़ता जा रहा है. सदियों से चली आ रही परंपराओं के अनुसार भी यह गलत है, क्योंकि एक रिश्ते के होते हुए दूसरा रिश्ता बनाना गुनाह है. भारत में इस तरह की परंपरा कभी नहीं रही, लेकिन अब यह हो रहा है. जिसे झुठलाया नहीं जा सकता.

यह मुमकिन है कि हम एक समय में 2 लोगों के प्रति एकजैसी भावनाएं महसूस करें, लेकिन जिंदगी भर दोनों रिश्तों का एकसाथ निभा पाना मुश्किल है. समय रहते अगर इसे सुलझाया नहीं गया तो आगे जा कर आप एक बड़ी मुसीबत में पड़ सकते हैं. दरअसल, त्रिकोणीय प्रेम केवल एक आकर्षण के अलावा और कुछ भी नहीं है. इसलिए इस के चक्कर में न ही फंसे तो ज्यादा अच्छा है.

सोच बदलने की जरूरत

सवाल यह है कि अगर मामूली सा भी लड़के को किसी लड़की से कभी प्यार हो जाता है तो वह बलात्कार तो दूर की बात है, उस की मरजी के बिना उस को छूता भी नहीं है. हत्या करना तो दूर, उस को खरोंच भी नहीं आने देना चाहता. क्या कोई सच्चा प्रेमी अपनी प्रेमिका के साथ ऐसा करेगा. चाहे वह एकतरफा ही प्यार क्यों न हो, वह ऐसा कभी भी नहीं करेगा. अगर कोई भी सिरफिरा प्रेमी ऐसा करता है तो वह मानसिक रूप से बीमार है. उस का इलाज तो मनोचिकित्सक ही कर सकता है.

लेकिन ऐसी घटनाएं दिनोदिन क्यों बढ़ रही हैं, इस के पीछे कारण क्या है. इस का सब से बड़ा बुनियादी कारण है पुरुषवादी सोच जो महिला को दोयम दर्जे का मानती है. जो मानती है कि महिला पुरुष से कमजोर है, महिला का रक्षक पुरुष होता है, महिला को पतिव्रता होना चाहिए, महिला को पुरुष की सत्ता के अधीन रहना चाहिए, महिला को घर में चूल्हेचौके तक सीमित रहना चाहिए, बाहर निकलेगी तो ये घटनाएं होंगी ही.

पिछले दिनों राष्ट्रीय पार्टी के एक नेता ने बयान भी दिया था कि गाड़ी बाजार में आएगी तो ऐक्सीडैंट तो होगा ही. इसलिए तो 70 साल आजादी के बाद भी लड़कियां अपने को गुलाम महसूस कर रही हैं. इसी सोच को आज बदलने की जरूरत है.

प्यार की आखिरी मंजिल

यही प्रश्न हर प्रेमी से है, क्या प्यार की आखिरी मंजिल शादी है? अगर किसी कारण से शादी न हो तो आप उसे मार देंगे? आप उस से सामूहिक बलात्कार करेंगे? आप उस के चेहरे पर तेजाब डाल देंगे? अगर प्यार की आखिरी मंजिल सिर्फ शादी है तो आप उस से प्यार नहीं करते बल्कि उस पर कब्जा जमाना चाहते हैं. उसे आप अपना गुलाम बनाना चाहते हैं. उस पर आप अपना एकाधिकार चाहते हैं. वह किस से बात करे, कहां बैठे, कहां जाए, क्या खाए, क्या पहने, ये सब आप तय करना चाहते हैं.

यह प्यार नहीं गुलामी है. अगर वह आप की गुलामी का विरोध करे, आप के एकाधिकार का विरोध करे तो आप उस को सजा दोगे.

यह आप की दबंगई नहीं तो और क्या है. क्या अपनी जिंदगी के फैसले खुद लेना अपराध है? इस में रूढि़वादी मातापिता भी साथ नहीं देते. अब तो हालात ये हैं कि अगर किसी लड़की ने प्यार करने की गलती की तो उस का अपने शरीर पर भी अधिकार नहीं रह जाता. उस का अपने दिमाग पर भी कोई अधिकार नहीं रहता. अगर वह अपनी जिंदगी के फैसले खुद लेगी तो उस को इस की सजा भुगतनी पड़ेगी. यह सजा कभी मांबाप की तरफ से तो कभी प्रेमी की तरफ से मिलेगी. इसलिए अब प्रेम करना भी जान को जोखिम में डालना है.

प्यार का मतलब जानें

आज के युवक की नजर में प्यार का मतलब है कि वह लड़की सिर्फ उस के लिए बनी है. उस पर सिर्फ उन का हक है. उस को वह अच्छी लगती है. उस का चेहरा देखे बिना नींद नहीं आती है. उस का चेहरा दुनिया में सब से सुंदर है, लेकिन उस बेहतरीन जिस्म को, चेहरे को जब वह हासिल नहीं कर पाता तो वह उसे चाकू से गोद देता है, चेहरे को तेजाब से जला देता और उस के गुप्तांग में लोहे की छड़ घुसेड़ देता है.

ऐसा कैसे करते हैं युवक, कोई भी अपने सब से प्यारे व करीबी इंसान को ऐसे कैसे नष्ट कर सकता है. इस का मतलब वे प्यार नहीं करते. यह प्यार नहीं हवस है. आप प्यार करते समय तो एकदूसरे के लिए चांदतारे तोड़ने की बात करते हो, लेकिन लड़की ने एक इनकार क्या किया आप ने चांदतारों की जगह लड़की के शरीर को ही ईंटों से तोड़ दिया, गाड़ी से कुचल दिया.

वाह, क्या यही प्यार है. जिस ने आप को उस चर्मसुख की अनुभूति करवाई तुम ने उसी को लोहे की छड़ से गोद दिया. क्या किसी भी लड़की के इनकार की इतनी भयंकर सजा हो सकती है. अगर यही सजा वह लड़की तुम्हें दे तो कैसा रहेगा.

धर्म के नाम पर इस देश में सब चलता है

भागवत कथा और सत्संग के कार्यक्रम अकसर यहां वहां होते रहते हैं. इस तरह के कार्यक्रमों में लोगों की भारी तादाद को देख कर कई टैलीविजन चैनल सिर्फ इसी काम के लिए खुल चुके हैं. उन पर सुबह से ले कर शाम तक सिर्फ भक्ति से भरे कार्यक्रम ही दिखाए जाते हैं. मेरे मिलने वाले एक दोस्त के घर में उन की माताजी को इस तरह के कार्यक्रम देखने का बड़ा शौक है. जब मेरा उन के घर जाना हुआ, तो उस वक्त भी उन के यहां टीवी पर भागवत कथा का प्रसारण चल रहा था.

बड़ेबड़े गुच्छेदार बालों वाले एक बाबा भागवत कथा सुना रहे थे. उन का पूरा माथा हलदी और चंदन से बुरी तरह पुता हुआ था. साथ ही, गले में रुद्राक्ष की डिजाइनर माला भी. एक माला उन के हाथ में भी लिपटी हुई थी, जिसे वे अपने पैर छूने वाले भक्त के सिर पर छुआ देते थे.

मेरे दोस्त का पूरा परिवार एक जगह बैठ कर यह कार्यक्रम देख रहा था. देख क्या रहा था, बल्कि उन्हें दिखाया जा रहा था. उस की माताजी सब को जबरदस्ती बिठा कर कार्यक्रम दिखा रही थीं.

दरअसल, उन्हें एक दिन टैलीविजन पर ही किसी बाबा ने बता दिया था कि लोग अगर सत्संग और भागवत कथा अपनी आने वाली पीढ़ी को नहीं दिखाएंगे, तो हिंदू धर्म बरबाद हो जाएगा. साथ ही, यह धर्म दूसरे धर्मों का गुलाम हो जाएगा.

उसी दिन से दोस्त की माताजी ने पूरे परिवार को भागवत कथा दिखानी शुरू कर दी. सब देख रहे थे, तो मुझे भी वही देखना पड़ा. भागवत कथा कहने वाले बाबाजी का नाम बड़ा लंबा था. वे अपने प्रवचन में कह रहे थे, ‘‘देखिए, आज के लोगों का सोचना है कि ‘हम दो हमारे दो, बाकी हों तो कुएं में फेंक दो’. यानी आज के मांबाप एक या 2 बच्चों से ज्यादा करने के बारे में सोचते ही नहीं हैं. बच्चों को जन्म देने वाली मां भी ऐसा नहीं सोचती…’’

बाबाजी इतने पर ही नहीं रुके. वे आगे बोले, ‘‘सच्चा मां धर्म सिर्फ 1-2 बच्चों से नहीं, बल्कि कम से कम 10 बच्चों को जन्म देने से निभता है. है कोई ऐसी औरत, जिस के 10 बच्चे हों? अगर है, तो हाथ उठाए, हम उसे सम्मानित करेंगे.’’

बाबाजी बोल रहे थे और उन के सामने बैठी हजारों की भीड़ उन्हें सुन रही थी. टैलीविजन पर देख रहे लाखों लोग अलग से थे.

तभी भीड़ में से एक औरत ने अपना हाथ उठा दिया. बाबाजी ने खुशी के साथ प्रवचन दिया, ‘‘देख लो, हजारों की भीड़ में बस एक औरत है, जिस ने अपना मां होने का सच्चा धर्म निभाया है.‘‘आइए माई, आप मंच पर आइए. मैं खुद आप को शाल ओढ़ा कर सम्मानित करूंगा.’’बाबाजी ने खुद उठ कर उस औरत को शाल ओढ़ा कर सम्मानित किया. भीड़ में बैठी औरतें अपनी तकदीर को कोस उठीं. सोच रही होंगी कि काश, आज उन के 10 बच्चे होते, तो बाबाजी ने उन्हें भी सम्मानित किया होता. वे देशभर में टैलीविजन पर दिखाई दे रही होतीं.

मेरे लिए यह एकदम से हैरानी की बात थी. जहां एक ओर आबादी पर लगाम लगाए जाने के लिए कोशिशें की जा रही हों, वहीं यह सब होना वाकई में हैरत में डालने वाला था. रोजाना टैलीविजन पर चलने वाले लाखोंकरोड़ों रुपए के इश्तिहार और जगहजगह पर बने परिवार नियोजन केंद्र तो ठीक बाबाजी के कहने का उलटा करते नजर आते हैं.

सरकार नसबंदी कराने पर हर आदमी को कुछ पैसे भी प्रोत्साहन के रूप देती है, जिस से आबादी काबू में रह सके. अगर हर एक औरत 10 बच्चों को जन्म देने लगे, तो आबादी का आंकड़ा क्या होगा?

बहरहाल, उस औरत को सम्मानित करने के बाद बाबाजी ने फिर से प्रवचन देना शुरू कर दिया. वे कह रहे थे, ‘‘आजकल एक और बात बड़े जोरों पर चलन में है कि घर में लोगों से पूछ कर खाना बनाया जाता है. उन से पूछा जाता है कि तुम आज कितनी रोटी खाओगे? यह प्रथा एकदम गलत है.

‘‘किसी भी घर में ऐसा नहीं होना चाहिए. हर घर में रोज खाने में कम से कम 8-10 रोटियां फालतू बनानी चाहिए, जिस से अगर कोई साधु या मेहमान आ जाए, तो उसे भोजन दिया जा सके.

इस तरह फालतू खाना बनाने से कोई नुकसान नहीं होता, बल्कि बरकत होती है यानी कभी घर में किसी चीज की कमी नहीं रहती.’’

भीड़ में बैठे सभी लोग इस बात से सहमत थे, क्योंकि यह बात उन के पूज्य बाबाजी ने कही थी. लेकिन वहीं दूसरी ओर यह भी कहा जा रहा था कि खाना कम से कम बिगाड़ें, क्योंकि आंकड़ों के हिसाब से अकेले भारत में ही 20 करोड़ से ज्यादा लोग रोजाना भूखे पेट सो जाते हैं. कुपोषण के चलते भारत में तकरीबन 42 फीसदी बच्चे उम्र के हिसाब से सही वजन के नहीं हैं.

भुखमरी मापने वाले ग्लोबल हंगर इंडैक्स यानी जीएचआई ने साल 2011-13 की अपनी रिपोर्ट में भारत को 63वें नंबर पर रखा है, जबकि श्रीलंका 43वें, पाकिस्तान 57वें, बंगलादेश 58वें नंबर पर है. चीन छठे नंबर पर है.

भारत को इस इंडैक्स ने ‘अलार्मिंग कैटीगरी’ में रखा है. लिस्ट में भयानक गरीबी झेलने वाले इथियोपिया, सूडान, कांगो, नाइजर, चाड व दूसरे अफ्रीकी देश शामिल हैं.

दुनिया में भूख से पीडि़त लोगों की कुल तादाद 84 करोड़, 20 लाख है. इन में से 21 करोड़ यानी तकरीबन एकचौथाई लोग अकेले भारत में हैं. भारत की हालत पहले से भले ही बेहतर हुई है, लेकिन विकसित देशों की बात जाने भी दें, तो पाकिस्तान और बंगलादेश से ज्यादा भुखमरी हमारे देश में है.

कहने को तो हम चांद से भी आगे निकल कर मंगल तक की यात्रा तय करने के सपने देख रहे हैं, पर सचाई यह है कि आज भी पूरी दुनिया में 75 फीसदी लोगों के पास दो वक्त की रोटी और तन ढकने के लिए एक अदद कपड़ा नहीं है.

फिर बाबाजी क्यों ऐसी बातें कर रहे थे? वे अपना उल्लू सीधा करने के चक्कर में देश को किस दिशा में ले जाना चाहते थे? कम से कम धर्म के नाम पर तो ऐसा नहीं होना चाहिए.

लेकिन बाबाजी को इन सब बातों से क्या मतलब. वे न तो ज्यादा पढ़ेलिखे थे और न ही गरीबी से पीडि़त या भूखे. वे तो चाहते थे कि देश में गरीबी बनी रहे, जिस से उन के मानने वालों की ज्यादा से ज्यादा तादाद रहे, क्योंकि गरीब आदमी दुखों से उबरने के लिए ऐसे बाबाओं के पास ही भागता है और फिर वे ही अंधविश्वासों और धर्म का हवाला दे कर उसे और ज्यादा गरीबी, भुखमरी की ओर धकेल देते हैं.

तीर्थ दर्शन और पाखंड

पंडेपुजारी पुराणों के हवाले से कहते फिरते हैं कि तीर्थों के दर्शनों के बड़े फायदे है और उन के दर्शन से ही पाप धुल जाते हैं और आदमी औरत का मन साफ हो जाता है.

ऋषिकेश, मथुरा, वाराणसी, नासिक, उज्जैन, गुरुवयार जैसे तीर्थों में रहने वाले जानते हैं कि उन के शहरों में किस तरह लूटपाट होती है. जो भक्त दिमाग और आंख बंद कर के आते हैं वे अक्सर लूट का शिकार होते हैं.

इसी तरह के एक तीर्थ प्रयागराज जिस का पहले नाम इलाहाबाद था, एक पति ने अपनी पत्नी को हथौड़े से मार दिया और फिर शव को वहीं छोड़ कर खुद पुलिस थाने में जा कर अपने को हवाले कर दिया. मामला कोई छोटी बात थी, न दहेज की, न सासससुर की, न दूसरी प्रेमिका या दूसरे प्रेमी की. पत्नी की उम्र सिर्फ 24 साल थी और शादी 14 साल की उम्र में ही हो गई थी और 3 बच्चे भी थे.

छुटपन में शादी, एक नहीं 3 बच्चे, पैसे की कमी, गुस्सा क्या नहीं था इन दोनों में बिना यह सोचे की 3 छोटे बच्चों का क्या होगा, आदमी ने औरत पर हथौड़ा चला दिया. इलाहाबाद यानी प्रयागराज का वह उपदेशों से भरा माहौल किस काम का रहा है कि न तो 14 साल की उम्र में शादी रोक न पाया, न छोटी सी लडक़ी को 3-3 की मां बनने से रोक पाया.

इतने पंड़ो, कथावाचकों की भीड़ का क्या फायदा हुआ कि आगापीछा सोचे बिना छोटी सी बात पर हथौड़े चल गए. गंगा का पानी क्यों नहीं इन के मन को साफ कर पाया जिस का गुणगान रातदिन कथाओं में भी सुना जाता है और अब टीवी, मोबाइलों पर मौजूद है.

‘‘तीर्थराज्य प्रयाग ऐसे राज्य हैं जिन के दर्शन से चारों पुरुषार्थ, धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष मिलते हैं. बहुत पैसा मिलता है, घरपरिवार सुखी रहता है, बदन मजबूत व निरोगी रहता है.’’ इस तरह की बात प्रयागराज यानी इलाहाबाद के बारे में आज भी मोबाइल पर एकदम मिल जाती है. महाभारत, रामायण, रामचरितमानस और पुराणों का हवाला देकर बारबार कहा जाता है कि इलाहाबाद यानी प्रयागराज से बढ़ कर तीर्थ नहीं है. प्रयागराज की मिट्टी को छूने से ही पाप खत्म हो जाते है.

यह तो अचंभे की बात है न कि इसी इलाहाबाद में एक मर्द ने अपनी औरत को हथौड़े से मार डाला. प्रयागराज तीर्थ ने उस का दिमाग क्यों नहीं ठीक किया. और फिर वह थाने गया. आखिर प्रयागराज में थाने का क्या काम? इलाहाबाद तो मुसलमान नाम है, वहां तो सब खूनखराबा होते हो तो बड़ी बात नहीं पर नाम बदलने ही यह तीर्थ आखिर सारे गुनाहों से दूर क्यों नहीं हो गया कि पुलिस मौजूद रहती हैं.

असल में धर्म, पूजापाठ, रीतिरिवाज, दान किसी को सुधारते नहीं हैं. छोटीछोटी बातों पर झगड़े कराने में तो हर धर्म सब से अब्वल रहता है. हर धर्म एक तरफ भक्त से वसूलने में लगा रहता है और इसलिए वसूल पाने वालों को बचाता है तो दूसरी ओर भक्तों को बहकाता है. उसे बहकने में हथौड़े चलते हैं.

मासूम बेटियों की गुहार, बाबुल अभी न करना ब्याह

गीता की शादी जबरन एक अधेड़ आदमी के साथ की जा रही थी. गीता के मांबाप भी उस पर शादी का दबाव बना रहे थे. मांबाप ने 50 हजार रुपए में उस का सौदा उत्तर प्रदेश के एक अधेड़ कारोबारी से तय कर दिया था.

नवादा जिले के रजौली थाने के धमनी गांव की यह घटना है. इस बात की भनक लगने पर मुखिया और सरपंच गीता के घर पहुंच गए और उस के बाप को फटकार लगाने लगे.

विवाद बढ़ता देख कारोबारी अपने आदमियों के साथ भाग निकला. शिकायत मिलने के बाद भी पुलिस ने कारोबारी को पकड़ने में चुस्ती नहीं दिखाई. रजौली थाने के एसएचओ अवधेश कुमार ने यह कह कर पल्ला झाड़ लिया कि इस बारे में लिखित शिकायत मिलने पर ही कार्यवाही होगी.

गीता की मौसी उत्तर प्रदेश में रहती है और उसी ने अधेड़ कारोबारी को शादी के लिए तैयार किया था. 18 अप्रैल, 2017 को शादी कराने के लिए सभी लोग मंदिर की ओर निकलने की तैयारी में थे. इसी बीच मुखिया और सरपंच के हल्ला मचाने से गांव के तमाम लोग वहां जुट गए.

बिहार के नवादा जिले के कौवाकोल गांव की रहने वाली सुगंधा (बदला नाम) की शादी 13 साल की उम्र में कर दी गई थी. तब वह जानती भी नहीं थी कि शादी किस चिडि़या का नाम है.

आज 22 साल की सुगंधा का यह हाल है कि उस के 3 बच्चे हो गए हैं और वह जिस्मानी रूप से इतनी कमजोर है कि ठीक से चलफिर भी नहीं पाती है.

देशभर में बाल विवाह का चलन तेजी से बढ़ता जा रहा है. बाल विवाह होने वाले देशों में भारत 11वें नंबर पर है. इस मामले में भारत बहुत पिछड़े अफ्रीकी देशों इथियोपिया व लीबिया के साथ खड़ा है.

भारत के तमाम राज्यों में बाल विवाह के मामलों में बिहार सब से आगे है. यह हैरानी की बात है कि राज्य की 69 फीसदी लड़कियों की शादी 18 साल से कम उम्र में ही कर दी जाती है.

बिहार के पश्चिमी चंपारण, कैमूर, रोहतास, मधेपुरा, गया, नवादा और वैशाली जिलों में सब से ज्यादा बाल विवाह हो रहे हैं.

राष्ट्रीय विवाह सैंपल सर्वे के मुताबिक, देशभर में 22 से 24 साल की उम्र वर्ग की 47.4 फीसदी औरतें ऐसी हैं, जिन की शादी 18 साल से कम उम्र में ही कर दी गई. इन में से 56 फीसदी औरतें गांवों की और 29 फीसदी औरतें शहरी इलाकों की हैं.

बिहार में 69 फीसदी लड़कियों की शादी 18 साल से कम उम्र में कर के मांबाप अपने बोझ को हटा डालते हैं. वहीं राजस्थान में 65.2 फीसदी, आंध्र प्रदेश में 54.8 फीसदी, पश्चिम बंगाल में 54 फीसदी, असम में 38.6 फीसदी, तमिलनाडु में 23.3 फीसदी व गोवा में 12.1 फीसदी लड़कियों की शादी बहुत छोटी उम्र में ही कर दी जाती है.

बिहार भले ही हर मामले में पिछड़ा हो, लेकिन बाल विवाह के मामले में देश के सारे राज्यों को पछाड़ दिया है. पश्चिमी चंपारण में 80 फीसदी लड़कियों की शादी कम उम्र में कर दी जाती है. नवादा में 73 फीसदी, रोहतास और कैमूर में 70 फीसदी, मधेपुरा में 66 फीसदी व वैशाली में 61.6 फीसदी लड़कियों को 18 साल से कम उम्र में ही ब्याह कर मांबाप अपनी जिम्मेदारी से नजात पा लेना मानते हैं. पटना जिले में 40 फीसदी लड़कियां बाल विवाह की शिकार बनती हैं.

बिहार की समाज कल्याण मंत्री मंजू वर्मा कहती हैं कि औरतों के पढ़नेलिखने और जागरूक होने से ही बाल विवाह पर रोक लग सकती है. इस कुप्रथा को खत्म करने के लिए कानून से ज्यादा समाज के सहयोग की जरूरत है.

यह सही है कि समाज में बड़ी तादाद में बाल विवाह हो रहे हैं, लेकिन समय से उन की सूचना नहीं मिलने की वजह से कानून कुसूरवारों पर कोई कार्यवाही नहीं कर पाता है.

डाक्टर किरण शरण बताती हैं कि कम उम्र में शादी होने से लड़कियां दिमागी और जिस्मानी रूप से कच्ची होती हैं. उन्हें न तो सैक्स के बारे में कुछ पता होता और न ही परिवार की जिम्मेदारियों की ही जानकारियां होती हैं. कम उम्र में मां बन जाने से जच्चा और बच्चा दोनों की जान के लिए खतरा होता है.

लड़कियों में जागरूकता के बगैर बाल विवाह पर रोक मुमकिन नहीं है. खुद को बाल विवाह की शिकार होने से बचाने वाली कुछ लड़कियां इस की जीतीजागती मिसाल हैं.

नेहरू युवा केंद्र से जुड़ी कटिहार की आरती, नारी शक्ति फाउंडेशन की सदस्य गया की राधिका, नवादा की रूबी और प्रमिला ने बताया कि उन्होंने किस तरह से खुद को बाल विवाह से बचाया.

राधिका ने बताया कि जब उस के पिता ने 15 साल की उम्र में ही उस की शादी तय कर दी, तो उस ने महिला संगठनों को बता दिया. इस से उस की शादी रुक गई.

प्रमिला ने बताया कि वह पढ़ना चाहती थी, पर उस के मांबाप उस की शादी करने पर उतारू थे. उस ने यह बात अपने स्कूल के मास्टर को बताई. मास्टर ने उस के मांबाप को समझाया और कानूनी कार्यवाही करने की चेतावनी दी. उस के बाद ही उस के पिता ने उस की शादी की जिद छोड़ी.

समाजसेवी आलोक कुमार कहते हैं कि बाल विवाह के मामलों में अकसर यही देखा गया है कि अनपढ़ और गरीब लोगों को कुछ रुपयों का लालच दे कर उन की लड़की से शादी कर उन्हें दूसरे राज्यों में ले जाया जाता है. उस के बाद उन का शोषण शुरू हो जाता है.

क्या हैं बाल विवाह रोकने के कानून

बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम, 2006 की धारा-2 के तहत 21 साल से कम उम्र के लड़के और 18 साल से कम उम्र की लड़की को नाबालिग माना गया है. इस कानून के तहत बाल विवाह को गैरकानूनी करार दिया गया है. बाल विवाह की इजाजत देने, शादी तय करने, शादी करवाने या शादी समारोह में हिस्सा लेने वालों को सजा दिए जाने का नियम है.

कानून की धारा-10 के मुताबिक, बाल विवाह कराने वाले को 2 साल तक साधारण कारावास या एक लाख रुपए के जुर्माने की सजा दी जा सकती है. वहीं धारा-11 कहती है कि बाल विवाह को बढ़ावा देने या उस की इजाजत देने वालों को 2 साल तक का कठोर कारावास और एक लाख रुपए जुर्माने की सजा हो सकती है.

तेजस्वी यादव बिहारियों को देंगे नौकरी

महागठबंधन 2 की सरकार ने कहा है कि वह बिहार में 20 लाख नौकरियां देगी. तेजस्वी यादव का वादा कितना चलता है या चल सकता है, यह पूरे शक में है. बिहार की सरकार के पास 20 लाख और लोगों को नौकरियां देना नामुमकिन है क्योंकि सरकार के खजाने में इतना पैसा है ही नहीं. फक्कड़ सरकार तो वैसे ही भीख का कटोरा ले कर केंद्र सरकार के सामने खड़ी रहती है या बैंकों से उधार लेती रहती है.
असलियत यह है कि जनता को सम?ा दिया गया है कि नौकरी वह है जिस में ऊंचे पंडों, पादरियों की तरह काम करना न पड़े और बातों से ऐशोआराम मिल जाए.

यह सिर्फ सरकारी नौकरी में हो सकता है जहां वेतन पैंशन की तरह मिलता है और दिन पान खाने में, चुगली करने में, घूमनेफिरने या रिश्वतें बटोरने में बीतता है. काम होता है तो रुपए में 10 पैसे. बाकी 90 पैसे बटोरने के लिए जो मेहनत करनी पड़ती है, उसे नौकरी कहना चाहें तो कह लें पर है वह लूट ही.

तेजस्वी यादव अगर 20 लाख नौकरियां देने वाले हैं तो सम?ा लें कि 20 लाख और लुटेरों को बिहार के सिर पर बैठाया जाएगा. बिहारियों के लिए राज्य छोड़ कर जाना इसीलिए चालू रहेगा क्योंकि नौकरियां कुछ को मिल गईं तो दूसरों की जाएंगी.
सरकार कई बार कहती है कि उस ने खेतों से होती सीधी सड़क बना कर जौब क्रिएट की, नौकरियां दीं जिन्होंने सड़क बनाई. पर ऐसा कुछ नहीं हुआ. बस किसानों की जमीन हथियाई गई, सड़क के किनारों की जमीनें दिए मुआवजे से ज्यादा दाम पर बेची गईं, ठेकेदारों की चांदी हुई, टोल जमा करने वालों को मोटा कमीशन मिला और आम जनता को वह रास्ता भी नहीं मिला, जो उन की जमीन पर बना था.

जेसीबी के कारखाने ने हजारों नौकरियां दीं, यह अंगरेज प्राइम मिनिस्टर बोरिस जौनसन ने भारत आ कर जेसीबी फैक्टरी में कहा था पर यह जेसीबी भारत में जुल्म की निशानी बन चुकी है. आज इसे नफरत से देखा जाने लगा है. यह धौंस की निशानी है. जेसीबी नौकरियां नहीं देती, यह नौकरीपेशा लोगों के सिर से छत हटाने के लिए जानी जाने लगी है. देश की आनबानशान तिरंगे में जब किसी अपने का शव आए तो पता नहीं रहता कि तिरंगे को प्यार करें या उस से नफरत.

जौब देने के नाम पर हजारों तरह के टैक्स लगाए जाते हैं. कुछ राज्यों में नौकरियां शराब की बिक्री पर लगे टैक्स पर टिकी हैं. बढ़ते जीएसटी की वजह सरकारी नौकरी में लगे लोगों के सुख हैं. ईकौमर्स ने हजारों को नौकरियां दी हैं जो घरघर सामान पहुंचा रहे हैं पर लाखों छोटे दुकानदारों की दुकानें बंद करा दीं. यह कैसी नौकरी पैदा करने की खेती है? मंदिरों में पूजा के फूल उगाने के लिए गेहूं के खेत इस्तेमाल करना एकदम बेवकूफी और पागलपन है और सरकारें इसी में लगी हैं.

तेजस्वी यादव का वादा कोरा रह जाएगा यह तो पक्का है पर नरेंद्र मोदी के 2 करोड़ की नौकरियों के पक्के वादे से तो कम ही है. नरेंद्र मोदी तो वादों से मुकर जाने के लिए अब जाने जाते ही हैं. 

पाबिबेन रबारी : एक जुझारू औरत की दिलचस्प कहानी

एक जुझारू औरत की दिलचस्प कहानी एक औरत चाहे तो क्या नहीं कर सकती है और बात जब अपने काम के प्रति समर्पण की हो तो इस का कोई तोड़ नहीं, यह बात पाबिबेन रबारी ने सच कर दिखाई है. उन्होंने इस बात को गलत साबित कर दिया है कि पढ़ाईलिखाई और पैसे के बिना इनसान कुछ नहीं कर सकता. अगर इनसान में कुछ करगुजरने का जज्बा हो,

तो गरीबी के बीच पल कर भी वह अपनी मंजिल तक पहुंच सकता है, रास्ते के हर पत्थर को ठोकर मारते हुए आगे निकल सकता है. पाबिबेन रबारी ने एक कारीगर के तौर पर रबारी समुदाय की खत्म हो रही पारंपरिक कढ़ाईबुनाई कला को न सिर्फ बचाया, बल्कि दुनिया में उसे एक नई पहचान भी दिलाई और खुद को एक मजबूत औरत के तौर पर स्थापित भी किया. यही वजह है कि आज वे इंटरनैट पर छाई हुई हैं. पूरी दुनिया में उन की एक अलग पहचान है. पेश हैं, पाबिबेन रबारी से हुई बातचीत के खास अंश : आप अपने बचपन के बारे में कुछ बताइए? मेरा जन्म मुंद्रा तालुका के कुकड़सर गांव में साल 1984 में हुआ था.

हमारे रबारी समाज का मूल काम भेड़बकरियां चराना है. लिहाजा, मेरे पापा भी भेड़बकरियां चराते थे. तब हम 2 बहनें थीं और तीसरी बहन मां के पेट में थी. एक दिन जब मेरे पापा भेड़बकरियों को पानी पिलाने के लिए कुएं से पानी भरने लगे, तो उन का पैर फिसल गया और कुएं में गिरने से उन की मौत हो गई. दूसरी बार परिवार पर दुखों का पहाड़ तब टूट पड़ा, जब 2 महीने बाद घर में तीसरी भी बेटी ही आई. आज भले ही लोगों की सोच बदल रही है और बेटियों को महत्त्व दिया जाने लगा है,

पर उस जमाने में बेटियों का कोई मोल नहीं था. बेटों को ही सबकुछ समझा जाता था, इसलिए लोगों को बेटा तो चाहिए ही था. आप के पापा के गुजर जाने के बाद आप की मां ने आप तीनों बहनों को कैसे संभाला? पापा के गुजर जाने के बाद हमारे पास आजीविका का कोई साधन नहीं था, इसलिए मां लोगों के घरों में काम करने लगीं और साथ में मजदूरी भी. उस समय मैं घर पर रह कर अपनी छोटी बहनों का ध्यान रखती थी. बाकी बच्चों को स्कूल जाते देख कर क्या आप का मन नहीं करता था? मुझे पढ़नेलिखने का बहुत शौक था. मां से जिद की कि मुझे भी पढ़ना है,

तो वे मुझे स्कूल भेजने लगीं. मैं अपनी छोटी बहनों को साथ ले कर स्कूल जाती थी, लेकिन उस समय न तो मेरे पास स्कूल की यूनिफार्म थी, न किताबें थीं और न ही पैरों में चप्पल, लेकिन मन में उत्साह था कि मैं स्कूल पढ़ने जा रही हूं. हमारे गांव में तब 4 जमात तक ही स्कूल था. पास के गांव में एक स्कूल था, जहां शिक्षा मुफ्त में मिलती थी. लेकिन उतनी दूर पैदल जाना मुश्किल था. मां के पास उतने पैसे नहीं होते थे कि रिकशा कर दें. पर मैं जिद करने लगी कि मुझे आगे और पढ़ना है, लेकिन मां कहने लगीं कि जो तेरे नसीब में था पढ़ लिया. अब आ कर मेरे काम में हाथ बंटा. मां के काम का बोझ हलका करने के लिए मैं बड़े घरानों में पानी भरने का काम करने लगी,

जिस से मुझे रोजाना एक रुपया मिलता था. इस तरह से मेरी पढ़ाई छूट गई. आप ने एंब्रोइडरी का काम कैसे सीखा? हमारे समाज में शिक्षा से ज्यादा इस इस काम को महत्त्व दिया जाता है, इसलिए 7 से 13 साल की लड़कियां एंब्रोइडरी सीखने लगती हैं. इस तबके में जब बेटी बड़ी होती है, तो उसे खुद ही अपने दहेज का सामान जुटाना पड़ता है. कोईकोई ही अपने बेटियों को दहेज में फ्रिज, टीवी देते हैं, पर हमारे में एंब्रोइडरी का सामान देने का रिवाज है. जो पैसे वाले मांबाप होते हैं, वे अपनी बेटियों को यह सामान खरीद कर दे देते हैं, ताकि बेटी घर में बैठी न रह जाए, लेकिन जिन लड़कियों के मांबाप गरीब होते हैं और बेटी को हाथ की कढ़ाई का काम नहीं आता, तो वह 30-35 साल तक मांबाप के घर कुंआरी बैठी रह जाती थी.

अपने बनाए सामान को बाजार में उतारने का आइडिया आप के दिमाग में कैसे आया? एक बार ऐसे ही मेरे मन में खयाल आया कि अपना बनाया इतना सुंदर सामान हम घर में इस्तेमाल करते हैं और जब हम में इतनी अच्छी कला है, तो क्यों न एक बार मार्केट में ट्राई करूं. यही सोच कर मैं ने इसे बाजार में उतारा. क्या आप ने इस काम की ट्रेनिंग भी ली है? नहीं, कहीं से भी ट्रेनिंग नहीं ली है. पर मैं बाहर जा कर सीखना चाहती थी, क्योंकि मुझे और ज्यादा सीखने का शौक था. लेकिन मां कहने लगीं कि अब जाने दो, बेकार में लोग बातें बनाएंगे. आप ने अपने काम को लोगों तक कैसे पहुंचाया? कच्छ में पहले छोटीछोटी संस्थाएं थीं. वे हम से काम करवा कर माल ले जाते और बदले में हमें मजदूरी देते थे.

कोई व्यापारी भी हम से हमारा माल खरीद कर अपने नाम से बेचता था. बहुत सालों तक यों ही चलता रहा. लेकिन मन में एक बात खटकती रहती थी कि हमारी मेहनत का न तो ठीक से पैसा मिल रहा है, न ही वैल्यू. हमें हमारी कला की कोई पहचान नहीं मिल रही थी. हमारे बनाए सामान या तो किसी बड़े ब्रांड के नाम पर बिकता है या कोई व्यापारी इसे बेचता है. हमारा तो कहीं जिक्र भी नहीं करते थे ये लोग. आज कारीगर को नाम, पैसा, वैल्यू सब मिल रहा है, पर उस जमाने में ऐसा नहीं था. मेहनत हमारी होती थी और नाम किसी और का. आप की शादी कब हुई और आप के पति ने कितना सहयोग किया? साल 2003 में मेरी शादी हुई थी और साल 2005 में मैं अपनी ससुराल आई थी. मेरे पति भेड़बकरियां चराते थे.

वे उन्हें एक जगह से दूसरी जगह जाते थे. मैं भी उन के साथ जाने लगी, लेकिन मुझे यह काम मुश्किल लगता था, क्योंकि हमारा कोई स्थायी ठिकाना नहीं था, इसलिए मैं ने अपने पति को समझाया और हम वापस कच्छ आ गए. वहां पति किराने की दुकान पर काम करने लगे और मैं कढ़ाईबुनाई का काम करने लगी. एक दिन मेरे पति लक्षमन भाई बोले कि तेरे में इतना हुनर है, तो क्यों नहीं तू गांव की औरतों को भी यह काम सिखाती है. इस से उन्हें रोजगार मिलेगा और तेरा भी इस में भला होगा. फिर क्या सोचा आप ने? फिर मैं नीलेश भाई से मिली. वे पढ़ेलिखे और इन सब चीजों में ऐक्सपर्ट थे. नीलेश भाई के साथ बैग के सैंपल बना कर जब मैं दुकान में दिखाने गई, तो उन्हें हमारा काम पसंद आया और तुरंत उन्होंने मुझे 70,000 रुपए का और्डर दे दिया. यह मेरा पहला और्डर था. खुशी के मारे मेरे आंसू गिर पड़े थे.

आप के बनाए हर सामान पर ‘पाबि बैग’ लिखा होता है. इस की कोई खास वजह? यह मेरा ही नाम है. मेरे मन में एक बात आई थी कि बिना मार्केटिंग के मेरा सामान कैसे बिकेगा? कोई नाम तो होना चाहिए न, सो मैं ने नीलेश भाई से बात की और कहा कि सब से पहले मेरा ब्रांड बना दो. बहुत सोचविचार के बाद मैं ने हमारे ब्रांड का नाम ‘पाबि डौट कौम’ रखा. आज मेरे साथ 300 औरतें और लड़कियां काम करती हैं. हमारे ब्रांड को अब देश के अलावा विदेशों से भी बड़ेबड़े और्डर मिलते हैं. जब लोग आप के काम की तारीफ करते हैं, तब आप को कैसा लगता है? अपनी तारीफ सुन कर अच्छा तो बहुत लगता है,

लेकिन जब लोग कहते हैं कि बिना पढ़ालिखा इनसान कुछ नहीं कर सकता, तो बुरा लगता है. मेरा मानना है कि अगर मन में हौसला है तो इनसान कुछ भी कर सकता है. कितने ऐसे भाईबहन हैं, जो पढ़लिख कर सरकारी नौकरी की तलाश में भटक रहे हैं. छोटी नौकरी वे करना नहीं चाहते, क्योंकि उन्हें शर्म आती है. लेकिन काम करने में कैसी शर्म. कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता. काम तो काम होता है. देश की घरेलू औरतों और लड़कियों को आप क्या संदेश देना चाहेंगी? मैं तो यही संदेश देना चाहती हूं कि कोई भी काम छोटा नहीं होता. अपने खाली समय में कुछ न कुछ जरूर सीखिए. अपना हुनर बाहर निकालिए और यह मत सोचिए कि लोग क्या कहेंगे या यह काम आप से नहीं हो पाएगा. बस, जरूरत है तो आत्मविश्वास की.

आप ने कई अवार्ड जीते हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों भी आप को अवार्ड मिला है. उस के बारे में कुछ बताइए. अवार्ड तो मुझे बहुत सारे मिले हैं. पहला ‘स्वयंसिद्ध अवार्ड’ मुझे गुजरात सरकार ने दिया था. उस के बाद मुझे ‘जानकी देवी बजाज पुरस्कार’ से भी सम्मानित किया गया. दिल्ली में एग्जीबिशन के दौरान भी मुझे पुरस्कार मिला था. साल 2016 में ‘महिला दिवस’ पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों भी मुझे एक अवार्ड मिल चुका है.

पति ने किया पत्नी का मर्डर

मियांबीवी के झगड़े आम हैं पर कभी कभार हत्या में भी तबदील हो जाते हैं. दिल्ली में एक मैकेनिक का घर बेचने को ले कर हो रहे झगड़े में मर्द ने औरत पर किसी तेज चीज से हमला कर दिया और शायद यह एहसास होने पर कि कुछ गलत हो गया हैउस ने खुद को भी घायल कर दिया. दोनों की अपने बड़े बच्चों के सामने मौत हो गई.

 

कूएं में कूद जाऊंगीआग लगा लूंगीजहर पी लूंगाघर छोड़ कर भाग जाऊंगा जैसे बोल अक्सर मियांबीवी के झगड़ों में झल्ला कर बोले जाते हैं. मर्द और औरत में कौन सही है कौन गलतइस का फैसला नहीं होता. झगड़ा तो किस की चलेगी पर होता है. पहले हमेशा मर्दों की चलती रही है पर अब औरतें भी बराबर होने लगी हैं.

यह बात दूसरी कि आम आदमी को पट्टी पढ़ाई जाती है कि औरत पैर की जूती हैवहीं रखो. यही सीख जो मांबाप देते हैंपंडेपादरी देते हैंसमाज देता हैरिश्तेदार देते हैंझगड़ों को मारपीट की हद तक ले जाते हैं.

जिस भी बात पर 2 जनों की राय एक न हो वहां कौन सही है कौन गलत का पूरा फैसला कभी नहीं हो सकता. हर मामले के कई पहलू होते हैं और हरेक अपनी समझ से अपना मन बनाता है. अच्छे पतिपत्नी के होते हैं जो एकदूसरे की पूरी तरह सुनते हैं और बिना अकड़ लाए तय करते हैं कि क्या सही हैक्या गलत है. अगर पतिपत्नी में से कोई तीसरे से चिपक भी रहा है तो मरनामारना कोई तरीका नहीं है. आज किसी को मार कर उस की लाश को निपटाना आसान नहीं है. अगर बच्चे हो तो मारने वाला भी जेल में रहता है तो बच्चों की देखभालके लिए कोई बचता नहीं. तीसरे के साथ जुड़ाव होने पर घर से अलग होना सब से सही है.

हमारे समाज में पतिपत्नी झगड़े मारपीट में इसलिए ज्यादा तबदील होते हैं कि यहां शादी को तोडऩा आसान नहीं है. अगर झगड़े के बाद आदमी या औरत कुछ दिन अपना अकेले का घर बना सकते हों तो उन्हें जल्दी ही एहसास हो जाए कि वजह कुछ भी रही होवे एकदूसरे के बिना अधूरे हैं. इस के लिए जरूरी है कि मर्द और औरत का हमेशा बाहर काम करते रहें और अपने पैरों पर खड़े हों.

दूसरी जरूरत हो कि कानून यह मजबूर करे कि कोई मकानमालिक अकेले आदमी या अकेली औरत के मकान किराए पर देने से मना न करेगा. चाहे मकान बड़ा हो या छोटी खोलीआजकल अकेलों को घर मिलना मुश्किल होता जा रहा है.

मुश्किल यह है कि सरकारें तो धर्मङ्क्षहदूमुसलिममूॢतयोंनारों में इतनी लगी हैं कि समाज की सब से बड़ी जरूरतघरसुखी घरपर उन का कोई ध्यान नहीं है.

कौमनवैल्थ गेम्स, 2022 : ऐसे निखरे हैं भारत के ये ‘कुंदनवीर’

‘कुंदनवीर’ भारत में जब कोई खिलाड़ी किसी इंटरनैशनल खेल इवैंट में मैडल जीतता है, तभी उस की कुछ पूछ होती है. परिवार वाले और कुछ संगीसाथी एयरपोर्ट पर ढोलनगाड़ों से उस का स्वागत करते हैं, नेता उस में अपनी जाति ढूंढ़ कर अपनी ही वाहवाही करते हैं और जनता सोशल मीडिया पर चंद अच्छीबुरी बातें लिख कर आगे निकल लेती है. फिर अगले कुछ साल के लिए उन्हें भुला दिया जाता है. दुख और हैरत की बात यह है कि इक्कादुक्का को छोड़ कर कोई भी ऐसे खिलाडि़यों की जद्दोजेहद के बारे में सपने में भी नहीं सोच पाता है.

हां, टांगखिंचाई करने में कोई पीछे नहीं रहता. हाल ही में इंगलैंड के बर्मिंघम में कौमनवैल्थ गेम्स हुए थे. 8 अगस्त, 2022 को जब ये गेम्स खत्म हुए, तब तक भारत ने 22 गोल्ड मैडल, 16 सिल्वर मैडल, 23 ब्रौंज मैडल जीत लिए थे और वह आस्ट्रेलिया, इंगलैंड और कनाडा के बाद चौथे नंबर पर रहा था. भारत की झोली में कुल 61 मैडल आए. मैडल का रंग कोई भी रहा हो, पर जिस खिलाड़ी ने उसे अपने गले में पहनने का गौरव हासिल किया, वह उस की सालों की कड़ी मेहनत का मीठा फल था. अगर सिर्फ गोल्ड मैडल जीतने वालों पर नजर डालें तो पता चलता है कि उन में से ज्यादातर खिलाड़ी ऐसे थे, जिन्होंने अपने हौसले, जज्बे और कड़ी मेहनत से साबित कर दिया कि भले ही गरीबी आप की राह में रोड़ा बन कर खड़ी हो जाए, पर अगर खुद पर भरोसा हो तो कोई भी बाधा पार करना मुश्किल नहीं है.

22 गोल्ड मैडल जीतने वाले इन ‘कुंदनवीर’ खिलाडि़यों के बारे में जान कर आप को यह बात समझ में आ जाएगी : मीराबाई चानू साल 2022 के कौमनवैल्थ गेम्स में 49 किलोग्राम भारवर्ग में गोल्ड मैडल जीतने वाली इस जीवट महिला का जन्म 8 अगस्त, 1994 को भारत के मणिपुर राज्य की राजधानी इंफाल के नांगोपोक इलाके में हुआ था. एक नामचीन दैनिक अखबार (हिंदुस्तान) की खबर के मुताबिक, जब मीराबाई चानू अपने घर में जलाने के लिए लकड़ी लाती थीं, तो अपने भाई से भी ज्यादा वजन उठा लेती थीं. उस समय उन की उम्र महज 12 साल की ही थी. यह देखने के बाद मातापिता ने उन की इस प्रतिभा को पहचाना और उन्हें खेल में आगे बढ़ने को कहा. निजी जिंदगी में सिर पर लकड़ी ढोने और वेटलिफ्टिंग खेल में वजन उठाने में जमीनआसमान का फर्क होता है.

आज मुसकराती हुई मीराबाई चानू जब पोडियम पर गोल्ड मैडल को चूमती हैं, तो शायद ही किसी को उन के उस दर्द का एहसास होता होगा, जो उन्होंने यहां तक पहुंचने के लिए सहा है. मीराबाई चानू चर्चा में तब आई थीं, जब उन्होंने 2014 ग्लासगो कौमनवैल्थ गेम्स में 48 किलोग्राम भारवर्ग में सिल्वर मैडल जीता था. इस के बाद 2020 टोक्यो ओलिंपिक गेम्स में 49 किलोग्राम भारवर्ग में उन्होंने सिल्वर मैडल जीत कर भारत का मान पूरी दुनिया में बढ़ाया था. जेरेमी लालरिनुंगा महज 19 साल के जेरेमी लालरिनुंगा ने भारत को वेटलिफ्टिंग खेल के 67 किलोग्राम भारवर्ग में गोल्ड मैडल दिलाया, लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि वे अपने कैरियर की शुरुआत में एक मुक्केबाज बनना चाहते थे.

उन्होंने 4 साल तक मुक्केबाजी भी की, लेकिन छोटी कदकाठी का होने के चलते उन्होंने वेटलिफ्टिंग में आने का फैसला लिया. मिजोरम के रहने वाले जेरेमी लालरिनुंगा के पिता अपने समय के मुक्केबाज रहे हैं, लेकिन बाद में उन्होंने 8 लोगों के परिवार का भरणपोषण करने के लिए पीडब्लूडी महकमे में नौकरी करना स्वीकार किया था. जेरेमी लालरिनुंगा ने बताया, ‘‘मैं ने अपने गांव की एसओएस अकादमी में वेटलिफ्टिंग कैरियर की शुरुआत की थी. वहां कोच मुझ से बांस लाने को कहते थे और धीरेधीरे उठाने को कहते थे. वे बांस 5 मीटर लंबे और 20 मिलीमीटर चौड़े थे. उन पर कोई भार नहीं था, लेकिन वजन की तुलना में एक स्टिक उठाना असल में मुश्किल था, क्योंकि आप को यह जानना होगा कि इसे कैसे संतुलित किया जाए. ‘‘मैं ने दिनरात अभ्यास किया, बांस की बल्लियां उठा कर संतुलन बनाने की कला सीखी. इस के बाद मुझ से वेट लिफ्ट करने को कहा गया.’’ अचिंता शेउली 20 साल की उम्र के इस होनहार लड़के ने 73 किलोग्राम भारवर्ग में रिकौर्ड 313 भार उठा कर इतिहास रचा और गोल्ड मैडल अपने नाम किया. लेकिन इस मुकाम तक पहुंचने के लिए उन्हें बेहद ही मुश्किल सफर तय करना पड़ा है.

एक बड़े अखबार (इंडियन ऐक्सप्रैस) के मुताबिक, परिवार के हालात खराब होने की वजह से अंचिता शेउली को अच्छी डाइट नहीं मिलती थी और वे कई बार बीमार हो जाते थे. अंचिता शेउली के परिवार के एक सदस्य ने इस अखबार से बात करते हुए बताया, ‘‘हम उस की ज्यादा मदद नहीं कर पाते थे. जब वह नैशनल के लिए गया तो हम ने उसे 500 रुपए दिए थे और वह बेहद खुश था. जब वह पुणे में था, तो अपनी ट्रेनिंग का खर्चा उठाने के लिए किसी लोडिंग कंपनी में काम करता था.’’ लवली चौबे, नयन मोनी सैकिया, पिंकी और रूपा रानी तिर्की भारत के लिए एक अजूबे खेल लौन बाल्स में गोल्ड मैडल हासिल करने वाली इन 4 महिलाओं की जितनी तारीफ की जाए, कम है. 42 साल की लवली चौबे झारखंड के रांची से आती हैं.

एक मिडिल क्लास फैमिली की लवली चौबे के पिता कोल इंडिया में मुलाजिम थे, जो अब रिटायर हो चुके हैं, जबकि उन की माता घरेलू औरत हैं. लवली चौबे अभी झारखंड पुलिस में सिपाही हैं. उन्होंने साल 2008 में पहली बार लौन बाल्स नैशनल्स में हिस्सा लिया था और गोल्ड मेडल जीता था. वे इस टीम की लीडर हैं असम के गोलाघाट में जनमी नयन मोनी सैकिया एक किसान की बेटी हैं. साल 2008 में उन्होंने वेटलिफ्टिंग में अपने प्रोफैशनल कैरियर की शुरुआत की थी, लेकिन पैर में लगी चोट की वजह से उन्हें यह खेल छोड़ना पड़ा. साल 2011 से ही वे असम के जंगल महकमे में नौकरी करती हैं. दिल्ली में जनमी पिंकी ने दिल्ली यूनिवर्सिटी से स्पोर्ट्स डिगरी हासिल की है. वे दिल्ली के ही एक स्कूल में बतौर फिजिकल ऐजूकेशन टीचर के तौर पर काम करती हैं. दिल्ली पब्लिक स्कूल में जहां वे पढ़ाती हैं, उन्हें वहां पर ही लौन बाल्स के बारे में सब से पहले जानकारी मिली थी.

यहां कौमनवैल्थ गेम्स, 2010 के लिए इस को तैयार किया गया था. इसी के बाद पिंकी की दिलचस्पी इस खेल में आई और आज वे कौमनवैल्थ गेम्स में गोल्ड मैडल विजेता हैं. झारखंड के रांची से ताल्लुक रखने वाली रूपा रानी तिर्की राज्य सरकार में जिला स्पोर्ट्स अफसर हैं. वे भारत के लिए 3 कौमनवैल्थ गेम्स में हिस्सा ले चुकी हैं. जनवरी महीने में उन की शादी को एक महीना ही हुआ था, जब उन्हें कैंप के लिए बुला लिया गया था. उन के पति रोड कंस्ट्रक्शन के काम में हैं. सुधीर लाठ कौमनवैल्थ गेम्स में पैरा पावरलिफ्टिंग की हैवीवेट कैटेगरी में गोल्ड मैडल जीत कर इतिहास रचने वाले सुधीर लाठ बचपन में ही महज 5 साल की उम्र में पोलियो का शिकार हो गए थे. कुछ साल तो ऐसे ही बीत गए, लेकिन बाद में उन्होंने खुद को फिट रखने के लिए पावरलिफ्टिंग शुरू की. इस खेल ने उन्हें हौसला दिया और धीरेधीरे यह खेल उन के लिए नई जिंदगी बन गया. सुधीर लाठ 4 भाइयों में एक हैं. उन के पिता सीआईएसएफ जवान राजबीर सिंह अब इस दुनिया में नहीं हैं.

भाइयों के साथ परिवार में मां व चाचा हैं. सुधीर लाठ अपना दमखम बनाए रखने के लिए रोजाना 5 लिटर दूध के साथ ही चने व बादाम खाते हैं. बजरंग पूनिया इस भारतीय पहलवान ने कौमनवैल्थ गेम्स के 65 किलोग्राम भारवर्ग में कनाडा के लचलान मैकनीला को हरा कर गोल्ड मैडल जीता. बजरंग पूनिया के पिता और भाई भी पहलवानी करते थे, लेकिन घर की माली हालत ठीक न होने के चलते केवल बजरंग को ही पहलवानी में आगे बढ़ाया गया, पर पिता के पास बेटे को घी खिलाने के पैसे नहीं होते थे. लिहाजा, बस का किराया बचा कर उन के पिता अब साइकिल से चलने लगे थे. जो पैसे बचते, उसे वे अपने बेटे की डाइट पर खर्च करते थे. साक्षी मलिक इस महिला पहलवान पर सब की नजरें टिकी थीं. खुद साक्षी मलिक के लिए भी यह फाइनल मुकाबला खुद को बेहतर साबित करने का एक बेहतरीन मौका था. ऐसा हुआ भी और साक्षी मलिक ने 62 किलोग्राम भारवर्ग के फाइनल में कनाडा की एना गोडिनेज गोंजालेज को बाय फाल के जरीए 4-4 से मात दी. पहले 3 मिनटों में 4 अंकों से पिछड़ रही 29 साल की साक्षी मलिक ने अगले 3 मिनट की शुरुआत में ही टेकडाउन से 2 अंक लिए और फिर बेहतरीन दांव लगाते हुए कनाडाई खिलाड़ी को पिन कर गोल्ड मैडल जीत लिया.

बाद में साक्षी मलिक ने कहा, ‘‘इस कौमनवैल्थ गेम को मैं आखिरी सोच कर लड़ी थी. साथ ही, खुद को मोटिवेट करने के लिए अभ्यास करती थी और कभी भी नैगेटिव नहीं सोचती थी.’’ दीपक पूनिया भारत के इस दमदार पहलवान ने 86 किलोग्राम भारवर्ग में पाकिस्तान के मुहम्मद इनाम को हरा कर गोल्ड मैडल जीता. हरियाणा के झज्जर जिले के गांव छारा में एक सामान्य परिवार से आने वाले दीपक पूनिया अपने गांव में और आसपास स्थानीय कीचड़ कुश्ती को देखते हुए बड़े हुए. उन के पिता और दादा अपने समय के स्थानीय पहलवान थे, इसलिए दीपक को भी महज 4 साल की उम्र से ही अखाड़े में उतार दिया गया था.

दीपक पूनिया के पिता सुभाष एक साधारण किसान हैं. उन्होंने अपने बेटे को खेतीबारी के साथसाथ दूध बेच कर एक अव्वल दर्जे का पहलवान बनाया है. रवि कुमार दहिया भारत के इस स्टार पहलवान ने फ्रीस्टाइल 57 किलोग्राम भारवर्ग के फाइनल में नाइजीरिया के एबिकेवेनिमो विल्सन को 10-0 से हरा कर गोल्ड मैडल अपने नाम किया. टोक्यो ओलिंपिक गेम्स में सिल्वर मैडल जीतने वाले पहलवान रवि कुमार दहिया के पिता राकेश दहिया के पास खुद की 4 बीघा जमीन है. साथ ही, वे 20 एकड़ जमीन पट्टे पर ले कर खेती करते हैं और परिवार का पालनपोषण करते हैं. खेतों में काम करने वाले राकेश दहिया रोजाना गांव नाहरी से तकरीबन 70 किलोमीटर दूर दिल्ली के छत्रसाल स्टेडियम में बेटे के लिए दूधमक्खन ले कर जाते थे. वे रोजाना सुबह साढ़े 3 बजे उठ जाते थे और 5 किलोमीटर पैदल चल कर रेलवे स्टेशन पहुंचते थे. दिल्ली के आजादपुर स्टेशन पर उतर कर 2 किलोमीटर का रास्ता पैदल तय कर वे छत्रसाल स्टेडियम में पहुंचते थे.

विनेश फोगाट एक ऐसी महिला पहलवान, जिस ने लगातार 3 कौमनवैल्थ गेम्स में गोल्ड मैडल जीत कर नया इतिहास बनाया है. उन्होंने महिलाओं के 53 किलोग्राम भारवर्ग में फाइनल मुकाबले में श्रीलंका की चामोडया केशानी को 4-0 से हराया. 24 अगस्त, 1994 को जनमी विनेश फोगाट ‘द्रोणाचार्य अवार्ड’ विजेता महावीर फोगाट की भतीजी और इंटरनैशनल पहलवान गीता फोगाट व बबीता फोगाट की चचेरी बहन हैं. महावीर फोगाट के भाई राजपाल यानी विनेश फोगाट के पिता की एक हादसे में मौत हो गई थी. इस के बाद महावीर फोगाट ने ही अपनी बेटियों के साथ विनेश और उन की बहन प्रियंका को अपनाया और उन्हें पहलवानी की ट्रेनिंग दी.

चरखी दादरी जिले के गांव बलाली की रहने वाली विनेश फोगाट की मां प्रेमलता को बच्चेदानी का कैंसर था. उसी समय रोडवेज विभाग में चालक प्रेमलता के पति राजपाल फोगाट की मौत हो गई थी. इस सब के बावजूद प्रेमलता ने विनेश को इस मुकाम तक पहुंचाया और आज खुद भी कैंसर से जंग जीत कर उन का हौसला बढ़ा रही हैं. नवीन मलिक कौमनवैल्थ गेम्स में सोनीपत के गांव पुगथला के रहने वाले नवीन मलिक ने 74 किलोग्राम भारवर्ग में गोल्ड मैडल जीत कर इतिहास रचा है. 3 साल की उम्र से पहलवानी सीख रहे नवीन मलिक ने फिलहाल 12वीं जमात के एग्जाम दिए हैं. उन के पिता किसान हैं और खुद भी पहलवानी करते थे, इसलिए उन्होंने अपने दोनों बेटों को पहलवानी की राह पर आगे बढ़ाया. नवीन मलिक के पिता धर्मपाल रोजाना नवीन के लिए घर से दूध ले कर जाते थे.

गांव से गाड़ी से गन्नौर जाते और वहां से ट्रेन से और फिर पैदल 10 किलोमीटर चल कर नवीन के अखाड़े में पहुंचते थे. जब नवीन मलिक अभ्यास करते थे, तो उस समय आधुनिक उपकरण कम ही थे. ऐसे में अपनी कलाई को मजबूत करने के लिए उन्होंने सीमेंट को बालटी में भर दिया था, जिस के सूखने के बाद उस से देशी जुगाड़ तैयार किया था. भाविना हसमुखभाई पटेल इन्होंने पैरा टेबल टैनिस महिला वर्ग 3-5 इवैंट में गोल्ड मैडल जीत कर इतिहास रचा है. गुजरात के मेहसाणा जिले के वडनगर इलाके के एक छोटे से गांव में 6 नवंबर, 1986 को भाविना का जन्म हुआ था. महज एक साल की उम्र में उन्हें पोलियो हो गया था. परिवार की माली हालत इतनी अच्छी नहीं थी कि उन का इलाज कराया जा सके. गरीबी और पोलियो से जूझने के बावजूद भाविना ने कभी हार नहीं मानी. इस के बाद उन्होंने शौक और मनोरंजन के लिए टेबल टैनिस खेलना शुरू कर दिया.

ह्वीलचेयर पर बैठ कर टेबल टैनिस खेलते हुए उन्होंने इस में कैरियर बनाने की सोची, जिस में वे कामयाब हुईं. नीतू गंघास 21 साल की नीतू गंघास हरियाणा के भिवानी इलाके की रहने वाली हैं. उन्होंने मिनिमम वेट 45-48 किलोग्राम भारवर्ग के फाइनल में वर्ल्ड चैंपियनशिप 2019 की ब्रौंज मैडल विजेता रेस्जटान डेमी जैड को हरा कर गोल्ड मैडल अपने नाम किया. युवा भारतीय मुक्केबाज नीतू गंघास ने इस गोल्ड मैडल को अपने पिता जय भगवान को समर्पित किया, जिन्होंने अपनी बेटी के सपने को पूरा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी. हरियाणा सचिवालय के कर्मचारी जय भगवान 2 बार की विश्व युवा चैंपियन नीतू को ट्रेनिंग देने के लिए पिछले 3 साल से अवैतनिक अवकाश पर हैं. अमित पंघाल भारतीय मुक्केबाज अमित पंघाल ने 48-51 किलोग्राम भारवर्ग में इंगलैंड के कियारन मैकडोनाल्ड को 5-0 से हरा कर गोल्ड मैडल जीता. अमित पंघाल का जन्म हरियाणा के रोहतक के मायाना गांव में 16 अक्तूबर, 1995 को हुआ था. इन के पिता का नाम विजेंद्र सिंह है,

जो एक किसान हैं. इन के बड़े भाई का नाम अजय है, जो खुद भी बौक्सिंग करने का शौक रखते हैं और इन के भाई ने अमित को बौक्सिंग करने के लिए प्रेरित किया, जिस से इन्हें बचपन से ही मुक्केबाजी का माहौल मिला. एल्डोस पौल पुरुषों के ट्रिपल जंप में एल्डोस पौल ने इतिहास रच दिया और वे कौमनवैल्थ गेम्स के ट्रिपल जंप इवैंट में भारत के लिए गोल्ड मैडल जीतने वाले पहले एथलीट बन गए. उन्होंने 17.03 मीटर लंबी छलांग लगाई और गोल्ड मैडल पक्का कर लिया. 7 नवंबर, 1996 को केरल के एर्नाकुलम में जनमे एल्डोस पौल ने बहुत छोटी उम्र में मां को खो दिया था. इस के बाद उन की दादी मरियम्मा ने ही उन्हें संभाला था. एल्डोस पौल बचपन में एथलीट बनने का सपना बिलकुल नहीं देखते थे. हां,

उन की कदकाठी एथलीट बनने के लिए अच्छी थी और वे फिट भी थे, लेकिन कोटामंगलम के मशहूर एमए कालेज में एडमिशन लेने के बाद एल्डोस पौल ने एथलैटिक्स में हाथ आजमाया, क्योंकि यह कालेज अपने ट्रैक ऐंड फील्ड कल्चर के लिए काफी मशहूर है. निखत जरीन वर्ल्ड चैंपियन भारतीय मुक्केबाज निखत जरीन ने महिला 50 किलोग्राम भारवर्ग मैच में बेलफास्ट की कार्ली मेकनौल को 5-0 से मात देते हुए कौमनवैल्थ गेम्स का गोल्ड मैडल अपने नाम किया. निखत जरीन का जन्म 14 जून, 1996 को तेलंगाना के निजामाबाद में हुआ था. उन के पिता का नाम मोहम्मद जमील अहमद है, जो खाड़ी देशों में एक सेल्सपर्सन थे और निखत के कैरियर के चलते अपनी नौकरी छोड़ कर वापस निजामाबाद आ गए थे. निखत जरीन की मां का नाम परवीन सुलताना है. निखत की 4 बहनें हैं, जिन में से बड़ी बहन अंजुम मीनाजी और उन से छोटी बहन अफनान जरीन दोनों डाक्टर हैं,

जबकि छोटी बहन बैडमिंटन खेलती हैं. अचंत शरत कमल भारत के इस दिग्गज टेबल टैनिस खिलाड़ी ने बर्मिंघम कौमनवैल्थ गेम्स में पुरुष एकल, पुरुष टीम इवैंट और मिक्स्ड डबल्स में गोल्ड मैडल जीता. अचंत शरत कमल का जन्म 12 जुलाई, 1982 को चेन्नई, तमिलनाडु में हुआ. इन के पिता श्रीनिवास राव और चाचा मुरलीधर राव ने अपने शुरुआती दिनों में टेबल टैनिस खेला था और फिर उन्होंने कोचिंग में हाथ आजमाया. अचंत शरत कमल ने 4 साल की उम्र में यह खेल खेलना शुरू किया था और 15 साल की उम्र में उन्हें एक मुश्किल फैसला करना पड़ा. इस दौरान वे या तो अपनी पढ़ाई जारी रख सकते थे या खेल में अपना कैरियर बना सकते थे. अब या तो उन के पास इंजीनियर बनने का मौका था या एक खिलाड़ी. आखिर में उन्होंने टेबल टैनिस को चुना. श्रीजा अकुला अचंत शरत कमल के साथ इस कौमनवैल्थ गेम्स का मिक्स्ड डबल गोल्ड मैडल जीतने वाली श्रीजा अकुला का जन्म 31 जुलाई, 1998 को हैदराबाद में हुआ था. वे न केवल टेबल टैनिस में ही अच्छी हैं, बल्कि स्कूल की भी टौपर रह चुकी हैं. साल 2017 में उन्होंने 12वीं जमात के इम्तिहान में 96 फीसदी अंक हासिल किए थे और रिजल्ट आने के कुछ ही दिन बाद वे वर्ल्ड टूर इंडिया ओपन के अंडर-21 वर्ग के क्वार्टर फाइनल में पहुंच गई थीं.

श्रीजा अकुला ने हैदराबाद के बदरुका कालेज से ग्रेजुएशन किया है. वे पढ़ाई की इतनी शौकीन हैं कि खेल प्रतियोगिताओं के लिए देशदुनिया में भले ही कहीं भी जाएं, किताबें साथ ले जाती हैं. पीवी सिंधु शीर्ष भारतीय बैडमिंटन खिलाड़ी पीवी सिंधु ने ब्रिटेन के बर्मिंघम में चल रहे कौमनवैल्थ गेम्स में कनाडा की मिशेल ली को हरा कर गोल्ड मैडल पर अपनी मुहर लगा दी थी. 5 जुलाई, 1995 को आंध्र प्रदेश की राजधानी हैदराबाद में पीवी सिंधु का जन्म हुआ था. उन के मातापिता पी. विजया और पीवी रमन्ना भी वौलीबाल के इंटरनैशनल खिलाड़ी रहे हैं. पीवी सिंधु बचपन के दिनों में रोजाना 56 किलोमीटर तक की दूरी अपने घर से कोचिंग कैंप आने तक के लिए तय करती थीं. वे रोजाना सुबह एकेडमी जाने के लिए 3 बजे उठती थीं, क्योंकि एकेडमी में सैशन साढ़े 4 बजे से शुरू होता था. वे वापस आते ही साढ़े 8 बजे स्कूल जाती थीं और वहां से आते ही फिर से एकेडमी के लिए जाना होता था. लक्ष्य सेन कौमनवैल्थ गेम्स 2022 के पुरुष सिंगल्स बैडमिंटन फाइनल में भारत के लक्ष्य सेन ने मलयेशिया के जे. योंग के खिलाफ शानदार प्रदर्शन करते हुए पहला गेम गंवाने के बावजूद आखिरी 2 सैट जीत कर मैच अपने नाम किया और अपने पहले कौमनवैल्थ गेम्स में गोल्ड मैडल जीत कर नया इतिहास रचा. उत्तराखंड के अल्मोड़ा में जनमे लक्ष्य सेन को बैडमिंटन विरासत में मिला है. उन के दादा सीएल सेन को अल्मोड़ा में ‘बैडमिंटन का भीष्म पितामह’ कहा जाता है.

लक्ष्य के पिता डीके सेन नैशनल लैवल पर बैडमिंटन खेल चुके हैं और कोच भी हैं. लक्ष्य सेन के बड़े भाई चिराग सेन भी बैडमिंटन खिलाड़ी हैं. पिता डीके सेन ने अपने दोनों बेटों को बेहतर बैडमिंटन खिलाड़ी बनाने के लिए अल्मोड़ा तक छोड़ दिया था और उन्हें ले कर बैंगलुरु चले गए थे. सात्विक साईंराज रंकीरेड्डी और चिराग शेट्टी बर्मिंघम कौमनवैल्थ गेम्स में बैडमिंटन में पुरुष युगल में सात्विक साईंराज रंकीरेड्डी और चिराग शेट्टी की जोड़ी ने गोल्ड मैडल अपने नाम किया. देश को पहली बार पुरुष डबल्स में गोल्ड मैडल मिला है. इस जोड़ी ने इंगलैंड के बेन लेन और सीन वेंडी की जोड़ी को हराया था. सात्विक साईंराज रंकीरेड्डी ने अपने पिता विश्वनाथम रंकीरेड्डी से प्रेरणा लेते हुए 6 साल की उम्र में बैडमिंटन खेलना शुरू कर दिया था. उन के पिता भी स्टेट लैवल के बैडमिंटन खिलाड़ी रह चुके हैं और उन के भाई रामचरण रंकीरेड्डी भी एक पेशेवर बैडमिंटन खिलाड़ी हैं. सात्विक साईंराज रंकीरेड्डी ने एक इंटरव्यू में बताया था, ‘‘शुरुआत के समय में अकादमी की फीस ज्यादा थी और प्रायोजकों के बिना अपने दम पर टूर्नामैंट खेलना मेरे मातापिता के लिए एक मुश्किल समय था, लेकिन उन्होंने किसी तरह से इस तरह के मुद्दों के बारे में मुझे कभी नहीं बताया. ‘‘जब मैं ने भारत में टूर्नामैंट जीतना शुरू किया, तो वे खुद अंदर ही अंदर चुप रहे और मेरे लिए संघर्ष करते रहे, फिर अकादमी ने मुझ से आधी फीस देने को कहा…’

’ चिराग चंद्रशेखर शेट्टी का जन्म 4 जुलाई, 1997 को मुंबई में हुआ था. चिराग के पिता का नाम चंद्रशेखर शेट्टी और मां का नाम सुजाता शेट्टी है. चिराग की बहन आर्या शेट्टी भी एक बैडमिंटन खिलाड़ी हैं. चिराग शेट्टी ने कम उम्र में ही बैडमिंटन खेलना शुरू किया था और अपने स्कूल में पढ़ाई के दौरान वे वहां के बैडमिंटन चैंपियन भी बने. चिराग शेट्टी के कैरियर की शुरुआत उदय पवार एकेडमी से हुई थी. उस के बाद अपने खेल को बेहतर बनाने के लिए वे गोपीचंद एकेडमी में एडमिशन लेने हैदराबाद चले गए थे.

बरातों में नागिन डांस का चलन

शहर की सड़कों पर बरातों का निकलना आम बात है. इन की वजह से सड़क संकरी हो जाती है और सड़कों पर जाम लगने लगता है. यदि बरात चौराहे पर हो तो फिर चारों तरफ के रास्तों पर लंबा जाम लग जाता है. राहगीर हौर्न बजाते रह जाते हैं जबकि लोग नाचने में मगन रहते हैं. मेरे शहर की बरातों का तो क्या कहना, बरातियों का जोश देखते ही बनता है. बरात में नागिन डांस मुख्य आकर्षण का केंद्र रहता है. इस डांस के लिए बरातियों में बड़ा जोश दिखाई देता है. कुछ युवा तो इस डांस के लिए जम कर प्रैक्टिस भी करते हैं.

नागिन डांस करने वाला एक बराती रूमाल का एक छोर मुंह में दबा कर और दूसरा छोर हाथ में पकड़ कर सपेरा बन जाता है और बीन बजाने का अभिनय करता है जबकि दूसरा बराती नागिन की तरह डोलता है और बीचबीच में नागिन की तरह फुंफकारता भी है.

कपड़ों की परवा किए बिना दोनों नागिन की धुन पर डांस करतेकरते सड़क पर लेट भी जाते हैं. यह तो एक उदाहरण है जो सड़कों पर निकलने वाली बरातों का आम नजारा पेश करता है. इस तरह के कई और डांस हैं जो बरात के चिरपरिचित हिस्सा हैं.

बरात में दूल्हे के दादादादी, नानानानी, मातापिता, चाचाचाची, भाईबहन, जीजाबहन से ले कर सारे करीबी और दूर के रिश्तेदारों को एकएक कर के डांस करने के लिए जबरदस्ती पकड़ कर लाया जाता है. कुछ तो डांस करने के इच्छुक ही रहते हैं. दूल्हे के मित्रगण बरात में डांस करने के लिए शराब का सेवन भी करते हैं और इस बाबत दूल्हे से पहले ही कमिटमैंट कर उचित राशि प्राप्त कर ली जाती है. अब तो बरात में महिलाएं भी डांस करने में पीछे नहीं हैं. वे भी बढ़चढ़ कर हिस्सा ले रही हैं.

इतने सारे लोग जब एक बरात का हिस्सा बनेंगे तो बरात को गंतव्य तक पहुंचने में समय तो लगेगा ही. जिस का खमियाजा सड़क पर चलने वाले राहगीरों को उठाना पड़ेगा. इन सब बातों से बरातियों को कोई लेनादेना नहीं. उन्हें तो बस अपना उत्साह दिखाना है. कुछ ऐसे भी राहगीर देखने को मिल जाएंगे जिन्हें डांस करने का बड़ा शौक होता है. वे भी इन बरात में अपनी नृत्यकला का प्रदर्शन करने से नहीं चूकते.

लेकिन बड़े दुख के साथ इन बरातियों को यह बताना पड़ेगा कि अब वे बरात में नागिन डांस नहीं कर पाएंगे क्योंकि इस डांस के कारण ही बरात को विवाहस्थल तक पहुंचने में विलंब होता है और सड़कों पर यातायात भी बाधित हो जाता है.

बरातियों पर जुर्माना

इसलिए मेरे प्रदेश के एक जिले के स्थानीय जिला प्रशासन ने निर्णय लिया है कि यातायात में बाधा बनने वाली इन बरातों के विरुद्ध कार्यवाही करने हेतु अब दूल्हे के घर वालों को बरात निकालने से पहले निकटतम थानों में जा कर इस की जानकारी देनी होगी कि बरात कहां से निकलेगी और कहां जा कर समाप्त होगी. इस दौरान आने वाली सूचनाओं के आधार पर ही यातायात और थाने की पुलिस बरातियों का मार्ग तय कर के देगी. जो बराती इस का पालन नहीं करेंगे उन बरातियों पर जुर्माना लगाया जाएगा.

ऐसे में लगता है कि आगे चल कर बरात को ज्यादा समय तक सड़कों पर विचरण करने पर भी प्रतिबंध लगेगा. जिस बरात में डांस करने का बरातियों को इंतजार रहता है, उस बरात का तो प्रशासन ने कबाड़ा ही कर दिया. अब तो बरात ऐसी लगेगी जैसे कोई मौन जुलूस जा रहा है.

मध्य प्रदेश के जबलपुर शहर में एक बैंड पार्टी काफी मशहूर है. वह विदेशों में भी अपने बैंड का प्रदर्शन कर चुकी है. यही नहीं, कुछ फिल्मों में भी यह बैंड पार्टी नजर आई है. दूल्हा अपनी शादी में इसी बैंड पार्टी की मांग करता है. यदि इस बैंड की बुकिंग नहीं हो पा रही है तो घर वाले शादी की तारीख आगे बढ़ाने का भी मन बना लेते हैं.

बरात कब निकलेगी, यह तो बैंड पार्टी पर निर्भर रहता है क्योंकि शहर में अच्छी बैंड पार्टियां कम होने के कारण ये बैंड 2 शिफ्ट में काम करते हैं. एक शिफ्ट शाम को 7 बजे से और दूसरी रात 9 बजे से. बराती भी यह पता लगा लेते हैं कि बैंड किस टाइम का है, उसी हिसाब से घर से निकलते हैं.

बैंड पार्टी में 2 व्यक्ति तो डमी होते हैं जो कोई वाद्ययंत्र नहीं बजाते मात्र न्योछावर में लुटाए जा रहे रुपयों को हथियाने का काम करते हैं. मुंह में नोट फंसा कर, हाथों में नोट थाम कर डांस करने वालों से नोट कैसे प्राप्त करने हैं, वे बखूबी जानते हैं. इन बरातों में कुछ जेबकतरे भी शामिल हो जाते हैं.

बरात में दूल्हा चाहे घोड़ी पर बैठा हो या बग्घी पर या कार में, उस का पूरा ध्यान अपने बरातियों पर रहता है कि कौन डांस कर रहा है और कौन नहीं कर रहा है.

कुछ रसूखदार अपनी आन, बान और शानोशौकत दिखाने के लिए जम कर हवाई फायर करते हैं. बरात में बिंदास बंदूकें दागी जाती हैं. अपनी खुशी जाहिर करने के लिए खुलेआम बंदूकें और पिस्तौल का इस्तेमाल कर बरात की शोभा बढ़ाई जाती है. चाहे किसी की जान चली जाए, इन्हें कोई परवा नहीं.

अकसर वरमाला के समय हवाई फायर किए जाते हैं, जिस के कारण कभीकभी लोगों की जानें भी चली जाती हैं. इस पर तो पहले से ही प्रतिबंध है, फिर भी पुलिस वाले इन्हें क्यों नहीं रोक पाते  यह सोचने की बात है.

बेवजह फुजूलखर्ची

इतने सारे प्रतिबंधों के साथ अगर बरात निकलती है तो बरातियों को क्या मजा आएगा. शहर में एक बार बहुत बड़ा भूकंप आया था. उस वर्ष शहर की जनता ने सार्वजनिक दुर्गा उत्सव समितियों के पदाधिकारियों से निवेदन किया था कि भूकंप से हुई बरबादी के कारण इस वर्ष दशहरा मितव्ययिता के साथ मनाया जाए, यानी जो भी चंदा इकट्ठा हो, उस में से कुछ हिस्सा शहर के विकास में लगा दिया जाए.

लेकिन समितियों के इन पदाधिकारियों का यह कहना था कि दशहरा साल में एक बार ही आता है, उसे भी हम अच्छे से न मनाएं, संभव नहीं है. हम तो हर साल की तरह ही दशहरा मनाएंगे. यही सिद्धांत बरात पर भी लागू होता है. लड़का एक बार ही दूल्हा बनता है और एक ही बार बरात निकलती है. सो, बरात का जो उत्साह है उस में कमी नहीं की जा सकती.

ऐसे में यदि बरात शीघ्रता से और किस मार्ग से निकलेगी, यह स्थानीय यातायात और थाने की पुलिस तय करेगी तो कहां तक उचित है. बरातियों की खुशियों का दमन किया जा रहा है. बरात तो हम निकाल रहे हैं, बरात का सारा खर्च हम उठा रहे हैं लेकिन बरात निकलेगी तो यातायात और थाने की पुलिस की सलाह पर. जैसा वे कहेंगे वैसा ही करना पड़ेगा.

बरात को विवाहस्थल तक पहुंचने में यदि समय लग रहा है तो ये लोग बरातियों को दौड़ाने पर मजबूर कर सकते हैं. यदि कुछ ज्यादा ही कठोर कानून बना दिए  और पालन न करने पर पता लगा दूल्हे और बरातियों को जेल ही जाना पड़ जाएगा.

शहरवासी हर त्योहार बड़े उत्साह के साथ मनाते हैं. दशहरा का चलसमारोह तो ऐतिहासिक होता ही है, अब गणेशोत्सव भी धूमधाम से मनाया जाता है. इन दोनों चलसमारोहों में बैंड की धुनों पर समितियों के सदस्य नाचते और नागिन डांस करते हुए नजर आ जाएंगे. चाहे वह चलसमारोह हो या बरात, नृत्यकला का प्रदर्शन विशेष आकर्षण का केंद्र रहता है. ऐसे में यदि चलसमारोह या बरात को गंतव्य तक जल्द पहुंचने पर प्रशासन द्वारा दबाव बनाया जाता है, तो शहर की इन प्रतिभाओं का क्या होगा  नृत्य करने की इस परंपरा को लोग भूल ही जाएंगे.

नागिन डांस ने तोड़ी शादी

देश में हर शादी बिना नागिन डांस के पूरी नहीं होती. लेकिन किसी को नागिन डांस से इतनी एलर्जी भी हो सकती है कि वह बरात ही लौटा दे तो सुन कर ताज्जुब होगा. बात अजीब है, लेकिन सच भी. उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में 29 जून, 2017 को अनुभव मिश्र की बरात प्रियंका त्रिपाठी के घर गई.

जब अनुभव मिश्र की बरात प्रियंका त्रिपाठी के घर पहुंची तो सभी बराती डांस कर रहे थे. जोश में दूल्हा भी बैंडबाजे की धुन पर नागिन डांस करने लगा. डांस में चूर हो कर वह यहांवहां गिर रहा था, इसलिए जब फेरे पड़ने की बारी आई तो दुलहन ने पिता से कहा कि वह शादी नहीं करेगी क्योंकि दूल्हा शराबी है.

लड़की के पिता प्रमोद त्रिपाठी ने इस मामले में लड़की का साथ दिया. पुलिस और पंचायत के हस्तक्षेप के बाद मामला दहेज वापस करने पर शांत हुआ.

नागिन डांस करने के बाद दूल्हे का नशा जब कम हुआ तो उस ने लड़की को काफी मनाया लेकिन तब तक दुलहन अपना मूड बना चुकी थी. बेचारे दूल्हे को बिन दुलहन खाली हाथ लौटना पड़ा. नागिन डांस की कीमत अनुभव को यों चुकानी पड़ेगी, किसी ने सोचा न था.

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