महाराष्ट्र: शरद पवार ने उतारा भाजपा का पानी

कोई नैतिकता, कोई आदर्श, कोई नीति और सिद्धांत नहीं है. जी हां! एक ही दृष्टि मे यह स्पष्ट होता चला गया की महाराष्ट्र में किस तरह मुख्यमंत्री पद और सत्ता के खातिर देश के कर्णधार, आंखो की शरम भी नहीं रखते.

इस संपूर्ण महाखेल मे एक तरह से भारतीय जनता पार्टी के वर्तमान शीर्षस्थ  मुखिया, प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी और गृहमंत्री अमित शाह का शरद पवार ने अपनी सधी हुई चालो से देश के सामने पानी उतार दिया है और क्षण-क्षण की खबर रखने वाली मीडिया विशेषता: इलेक्ट्रौनिक मीडिया सब कुछ समझ जानकर के भी सच को बताने से गुरेज करती रही है.

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नि:संदेह सत्तासीन मोदी और शाह को यह शारदीय करंट कभी भुला नहीं जाएगा क्योंकि अब जब अजित पवार उप मुख्यमंत्री की शपथ अधारी गठबंधन मे भी ले रहे हैं तो यह दूध की तरह साफ हो जाता है की शरद पवार की सहमति से ही अजीत पवार ने देवेंद्र फडणवीस के साथ खेल खेला था.

भूल गये बहेलिए को !

बचपन में एक कहानी, हम सभी ने पढ़ी है, किस तरह एक बहेलिया पक्षी को फंसाने के लिए दाना देता है और लालच में आकर पक्षी बहेलीए के फंदे में फंस जाता है महाराष्ट्र की राजनीतिक सरजमी में भी विगत दिनों यही कहानी एक दूसरे रूपक मे, देश ने देखी. पक्षी तो पक्षी है, उसे कहां बुद्धि होती है. मगर, हमारे देश की राजनीतिक पार्टियां और उनके सर्वे सर्वा भी ‘पक्षी’ की भांति जाल में फंस जाएंगे, तो यह शर्म का विषय है. शरद पवार नि:संदेह राजनीतिक शिखर पुरुष है और यह उन्होंने सिध्द भी कर दिया.

इस मराठा क्षत्रप में सही अर्थों में नरेंद्र मोदी और अमित शाह की युति को धोबी पछाड़ मारी है.

शरद पवार जानते थे की अमित शाह बाज नहीं आएंगे और सत्ता सुंदरी से परिणय के पूर्व या बाद में बड़ा  खेल खेलेंगे, इसलिए उन्होंने सधी हुई चाल से भतीजे  अजीत पवार को 54 विधायकों के लेटर के साथ फडणवीस के पास भेजा. जानकार जानते हैं की जैसे बहेलिए ने पक्षी फंसाने दाने फेंके थे और पक्षी फस गए थे देवेंद्र फडणवीस और सत्ता की मद में आकर भाजपा का शीर्ष नेतृत्व उस जाल में फस गया. देश ने देखा की कैसे शरद पवार की पॉलिटेक्निकल गेम में फंसकर बड़े-बड़े नेताओं का पानी उतर गया.

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इतिहास में हुआ नाम दर्ज

महाराष्ट्र के राज्यपाल के रूप में भगत सिंह कोशियारी और देवेंद्र फडणवीस का इस तरह महाराष्ट्र की राजनीति और इतिहास में एक तरह से नाम दर्ज हो गया. यह साफ हो गया कि 5 वर्षों तक महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रहे देवेंद्र फडणवीस कितने सत्ता के मुरीद हैं की उन्होंने रातों-रात सरकार बनवाने में थोड़ी भी देर नहीं की और जैसी समझदारी की अपेक्षा थी वह नहीं दिखाई.

देश ने पहली बार देखा एक मुख्यमंत्री कैसे 26/11 के शहीदों की शहादत के कार्यक्रम मे अपने उपमुख्यमंत्री अजीत पवार का इंतजार पलक पावडे बिछा कर कर रहे हैं. सचमुच सत्ता की चाहत इंसान से क्या कुछ नहीं करा सकती. इस तरह महाराष्ट्र के सबसे अल्प समय के मुख्यमंत्री के रूप में देवेंद्र फडणवीस का नाम दर्ज हो गया. मगर जिस तरह उनकी भद पिटी वह देश ने होले होले मुस्कुरा कर देखी.

मराठा क्षत्रप शरद भारी पड़े

महाराष्ट्र के राजनीतिक परिदृश्य में शरद पवार की धमक लगभग चार दशकों से है. यही कारण है की देश भर में शरद पवार की ठसक देखते बनती है. उन्हें काफी सम्मान भी मिलता है. क्योंकि शरद पवार कब क्या करेंगे कोई नहीं जानता. राजनीति की चौपड़ पर अपनी सधी हुई चाल के कारण वे एक अलग मुकाम रखते हैं.

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सन 78′ में जनता सरकार के दरम्यान 38 वर्षीय शरद पवार ने राजनीति का सधा हुआ  दांव चला था की मुख्यमंत्री बन गए थे. उन्होंने इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, जैसी शख्सियतो के साथ राजनीति की क, ख, ग खेली और सोनिया गांधी के रास्ते के पत्थर बन गए थे समय बदला दक्षिणपंथी विचारधारा को रोकने उन्होंने कांग्रेस के साथ नरम रुख अख्तियार किया है और एक अजेय योद्धा के रूप में विराट व्यक्तित्व के साथ मोदी के सामने खड़े हो गए हैं देखिए आने वाले वक्त में क्या वे विपक्ष के सबसे बड़े नेता पसंदीदा विभूति बन कर प्रधानमंत्री पद के दावेदार भी बनेंगे या फिर…

हे राम! देखिए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की दो नावों की सवारी

छत्तीसगढ़ में कांग्रेस, भाजपा के पद चिन्हों पर चलने को आतुर दिखाई दे रही है. शायद यही कारण है कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की कैबिनेट ने भाजपा के राम राम जाप को बड़ी शिद्दत के साथ अंगीकार करने में कोताही नहीं की है. और यह जाहिर करना चाहती है, कि राम तो हमारे हैं और हम राम के हैं. कांग्रेस सरकार को, राम मय दिखाने की सोच के तहत, छत्तीसगढ़  सरकार ने  “राम के वनगमन पथ” को सहेजते हुए इन स्थलों का पर्यटन की दृष्टि से विकसित किए जाने का ऐलान किया है, जो इसी सोच का सबब है.

21 नवंबर 2019  को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की अध्यक्षता में हुई मंत्रीपरिषद की बैठक में जो  निर्णय लिया गया, वह एक तरह से भाजपा के बताए  पद चिन्हों  पर चलना है.संपूर्ण कवायद पर निगाह डालें तो पहली ही दृष्टि में यह स्पष्ट हो जाता है कि भूपेश बघेल सरकार की सोच कैसी पंगु है. सबसे बड़ी बात यह है कि भगवान राम करोड़ों वर्ष पूर्व हुए थे. यह मान्यताएं हैं की छत्तीसगढ़ जो कभी  “दंडकारण्य” था, यहां से राम ने गमन किया था. दरअसल, यह सिर्फ और सिर्फ किवंदती एवं मान्यताएं हैं. इसका कोई वैज्ञानिक आधार अभी तक जाहिर नहीं हुआ है. ऐसे में क्या यह  सारी कवायद लकीर का फकीर बनना नहीं होगा. इसके अलावा भी अन्य कई पेंच है जिसका सटीक जवाब कांगेस के पास नहीं होगा, देखिए यह खास  रिपोर्ट-

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 राम के संदर्भ में मान्यताएं बनी आधार

आइए, अब जानते हैं, क्या है  मान्यताएं और “श्रीराम का वनगमन पथ” ….कहा जाता है छत्तीसगढ़ का इतिहास प्राचीन है. त्रेतायुगीन छत्तीसगढ़ का प्राचीन नाम दक्षिण कौसल एवं दण्डकारण्य के रूप में विख्यात था. दण्डकारण्य में भगवान श्रीराम के वनगमन यात्रा की पुष्टि वाल्मीकि रामायण से होती है. शोधकर्ताओं की शोध किताबों से प्राप्त जानकारी अनुसार प्रभु श्रीराम द्वारा अपने वनवास काल के 14 वर्षों में से लगभग 10 वर्ष का समय छत्तीसगढ़ में व्यतीत किया गया था.

छत्तीसगढ़ के लोकगीत में माता सीता जी की पहचान कराने की मौलिकता एवं वनस्पतियों के वर्णन मिलते हैं.  श्रीराम द्वारा उत्तर भारत से दक्षिण में प्रवेश करने के बाद छत्तीसगढ़ में विभिन्न स्थानों पर चैमासा व्यतीत करने के बाद दक्षिण भारत में प्रवेश किया गया था. अतः छत्तीसगढ़ को दक्षिणापथ भी कहा जाता है. मान्यता है छत्तीसगढ़ में कोरिया जिले के भरतपुर तहसील में नदी से होकर जनकपुर नामक स्थान से लगभग 26 किलोमीटर की दूरी पर स्थित सीतामढ़ी पर चैका नामक स्थल से  श्रीराम ने छत्तीसगढ़ में प्रवेश किया.

इस राम वनगमन पथ के विषय पर शोध का कार्य राज्य में स्थित संस्थान छत्तीसगढ़ स्मिता प्रतिष्ठान रायपुर द्वारा किया गया है। स्थानीय साहित्यकार मनु लाल यादव द्वारा रामायण किताब का प्रकाशन किया गया तथा इसी विषय पर छत्तीसगढ़ पर्यटन में राम वनगमन पथ के नाम से पुस्तक का प्रकाशन किया गया है. श्रीराम ने छत्तीसगढ़ में 10 वर्षों के वनगमन के दौरान लगभग 75 स्थलों का भ्रमण किया था तथा इनमें 51 स्थान ऐसे हैं जहां  श्रीराम ने भ्रमण के दौरान कुछ समय व्यतीत किया था.

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अब इस सब को लेकर के सरकार द्वारा योजना बनाई जा रही है कि लोग आ कर प्रभु राम का वन गमन क्षेत्र का भ्रमण करेंगे जो सीधे-सीधे उन क्षेत्रों के प्राकृतिक और नैसर्गिक भाव को सरकार द्वारा  विकृत  करना  ही होगा. अच्छा हो, प्राचीन मान्यता के अनुरूप जैसी स्थिति है, वही बनी रहे, वहां किसी भी तरह की छेड़-छाड़, नव निर्माण भारतीय पुरातत्व अधिनियम के तहत भी अवैध माना जाएगा.

 भूपेश बघेल भी जपने लगे राम राम!

शायद कांग्रेस पार्टी ने यह मान लिया है कि जिस तरह भाजपा ने राम राम जप कर राष्ट्रीय स्तर पर अपनी नैया पार लगाई, अब कांग्रेस को भी ऐसा ही करना होगा. अब विकास  का मुद्दा महत्वहीन हो चुका है,अब तो कुर्सी पाना है, तो बस राम राम जप लो. आगामी समय में छत्तीसगढ़ में नगरीय निकाय चुनाव एवं पंचायत चुनाव हैं. ऐसे में राम गमन के मसले को बेतरह से उठाना यह इंगित करता है कि भूपेश सरकार भी छत्तीसगढ़ की आवाम को भगवान राम के नाम पर आकर्षित करना चाहती है. और अपना वोट बैंक और भी ज्यादा मजबूत बनाने के लिए प्रयत्नशील है.

यह होगी विकास की योजना 

छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा  राम वनगमन पथ को पर्यटन की दृष्टि से विकसित किए जाने की कार्य योजना का आगाज कर दिया गया है.इसका उद्देश्य राज्य में आने वाले पर्यटकों के साथ-साथ प्रदेश के लोगों को भी इन राम वनगमन मार्ग स्थलों से परिचित कराना है. इन स्थलों का भ्रमण करने के दौरान पर्यटकों को सुविधा हो सके, इस लिहाज से योजना तैयारी की जा रही है.

राज्य सरकार द्वारा बजट उपलब्ध कराया जाएगा. साथ ही भारत सरकार के पर्यटन मंत्रालय की योजनाओं से भी राशि प्राप्त करने का प्रयास किया जाएगा.इन स्थलों का राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रचार प्रसार भी किया जाएगा. पहुंच मार्ग के साथ पर्यटक सुविधा केंद्र, इंटरप्रिटेशन सेंटर, वैदिक विलेज, पगोड़ा, वेटिंग शेड, पेयजल व शौचालय आदि मूलभूत सुविधाएं विकसित की जाएंगी. बताया गया है विकास कार्य शुभारंभ चंद्रपुरी में स्थित माता कौशल्या के मंदिर से किया जाएगा.

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विकास योजना तैयार करने के पूर्व विशेषज्ञों का एक दल सर्वे करेगा. इस तरह भूपेश बघेल ने एक तरह से इस संपूर्ण परियोजना को हरी झंडी दे दी है मगर यह धरातल पर कब कैसे उतरेगा इस पर एक बड़ा प्रश्न चिन्ह है क्योंकि सरकारी योजनाएं कागजों पर और अखबारों की सुर्खियों में तो आकर्षित करती हैं मगर हकीकत में उनकी दशा बहुत दयनीय होती है इसका सच जानना हो तो डॉक्टर रमन के कार्यकाल के पर्यटन विकास के ढोल को देखना समझना काफी होगा करोड़ों, अरबों रुपए कि कैसे बंदरबांट बात हो गई और फाइलें बंद पड़ी हैं .

हास्यास्पद पहल- 11 लाख का पुरस्कार!

राम गमन और भगवान राम के नाम पर आप कुछ भी कर ले, सब माफ है. शायद यही सोच भाजपा के बाद अब कांग्रेस भी अपनाती चली जा रही है.

अब वह प्रगतिशील महात्मा  गांधी और जवाहरलाल  नेहरू की कांग्रेस नहीं है. आज की कांग्रेस शायद संघ की हिंदुत्ववादी सोच के पीछे चलने वाली दकियानूसी कांग्रेस बन चुकी है. यही कारण है कि कांग्रेस के पूर्व विधायक और दूधाधारी मठ के प्रमुख महंत राम सुंदर दास ने इसी तारतम्य में यह घोषणा कर दी है कि माता कौशल्या का जन्मदिन की गणना करके जो बताएगा, उसे वह स्वयं अपनी ओर से 11 लाख रुपए का पुरस्कार,सम्मान राशि देंगे.

यही नहीं, भूपेश बघेल के नेतृत्व में कौशल्या माता के मंदिर का जीर्णोद्धार का काम भी शुरू हो गया है. क्योंकि उसके लिए पैसा सरकार नहीं दे सकती, सुप्रीम कोर्ट की बंदिशें है, इसलिए विधायकों ने दो लाख  बीस हजार रुपए मुख्यमंत्री को अपनी ओर से दिया है की मंदिर बनवाया जाए! अर्थात सीधी सी बात है जो काम भाजपा नहीं कर सकी जो काम हिंदुत्ववादी संगठन नहीं कर सके, अब वह अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ता करेंगे और यह संदेश देंगे की, हे जनता!आओ हम भी राम भक्त हैं, हमने भी माता कौशल्या का मंदिर बनाया है, हमें भी वोट दो.

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चाहे कुपोषण में बच्चे मरते रहे, आंगनबाड़ियों में स्कूलों में पहुंचने वाला भोजन, खाद्यान्न की लूट चलती रहे, सफाई ना हो, सड़कें न बने, बिजली पैदा ना हो, मगर वोट हमें  ही देना. अगर भूपेश बघेल सरकार और कांग्रेस पार्टी को यह लगता है कि राम नाम जपने से कांग्रेस पार्टी का और प्रदेश का कल्याण हो जाएगा तो राम वन गमन के प्रपंच से अच्छा होगा क्यों न छत्तीसगढ़ का नाम ही बदल दिया जाए और प्राचीन “दंडकारण्य”  रख दिया जाए. इससे कांग्रेस पार्टी की साख और बढ़ जाएगी कि देखो इनमे  भगवान राम के प्रति कितनी श्रद्धा आ गई है!

एक-एक कर बिखरता जा रहा एनडीए गठबंधन, 1999 में पहली बार देश में बनाई थी सरकार

महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन चल रहा है. जबकि जनता ने शिवसेना और बीजेपी के गठबंधन को पूर्ण बहुमत दिया. लेकिन सीएम पद की खींचतान के बीच महाराष्ट्र की जनता को इनाम स्वरूप राष्ट्रपति शासन मिल गया जबकि जनता का इसमे कोई दोष नहीं है. राजनीति के इतिहास में जाकर खोजना होगा कि आखिरकार गठबंधन की राजनीति का सूर्योदय कब हुआ और आखिरकार क्या ये वही एनडीए है जिसने कभी 24 दलों के साथ मिलकर सरकार बनाई थी और सफलतापूर्वक पांच साल भी पूरे किए थे.

देश में गठबंधन की राजनीति 1977 में ही शुरू हो गई थी, जब इंदिरा गांधी के खिलाफ सभी पार्टियों ने मिलकर चुनाव लड़ा था और इंदिरा गांधी को सत्ता से हटा दिया था. इस गठबंधन ने इंदिरा को कुर्सी से हटा दो दिया लेकिन गठबंधन सरकार चलाने में असफल रहे और 1980 में दोबारा इंदिरा प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में वापिस काबिज हो गईं.

गठबंधन को सफल राजनीति करने के मामले में सबसे पहले नाम आता है पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का. वाजपेयी ने 24 दलों को साथ लाकर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन यानी एनडीए बनाया और पांच साल तक सरकार चलाई. अटल की यह उपलब्धि इसलिए भी खास थी क्योंकि उनसे पहले कोई भी गठबंधन सरकार पांच साल का अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाई थी.

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उन 24 दलों में कुछ प्रमुख पार्टियों के नाम में यहां लेना चाहूंगा. जनता दल (यूनाइटेड), शिवसेना, तेलगू देशम पार्टी, एआईडीएमके या अन्नाद्रमुक, अकाली दल. ये वो सहयोगी थे जिन्होंने बीजेपी को समर्थन दिया था और पहली बार 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में पांच साल गठबंधन हुआ था. लेकिन अब वक्त कुछ बदल गया. एनडीए के ज्यादातर सहयोगी उससे दूर होते जा रहे हैं.

इसका प्रमुख कारण है सत्ता का एकाधिकार. 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी ने सभी सहयोगियों को समान अधिकार दिए और सभी की बात सुनी. 2004 में हुए चुनावों में बीजेपी को हार का मुंह देखना पड़ा. उसके बाद सबसे बड़ा राजनीतिक बदलाव तब आया जब 2014 में बीजेपी पूर्ण बहुमत से सत्ता पर काबिज हुई. देखते ही देखते कई राज्यों में बीजेपी की सरकार बनती चली गई. नॉर्थ ईस्ट में कभी भाजपा एक-एक सीट को मोहताज रहती थी लेकिन बाद में वहां भी सरकार बनाई.

आखिरकार क्यों एनडीए लगातर बिखरता जा रहा है

मेरे अनुसार दो बातें हो सकती हैं. पहली बात बीजेपी का बढ़ता जनाधार जिसकी वजह से बीजेपी को ये लगता है कि वो बिना की सहयोगी के भी चुनाव जीत  सकती है और  सरकार बना सकती है. दूसरी बात बीजेपी को अब गठबंधन पसंद ही नहीं है. क्योंकि उसमें दूसरे दल का भी बराबर से दखल होता है. शिवसेना इसका जीता जागता उदाहरण है.

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बीजेपी-शिवसेना सबसे पक्के दोस्त माने जाते थे. लेकिन राजनीतिक लालच से दोनों को जुदा कर दिया है. शिवसेना को लग रहा था कि बीजेपी को अगर दोबारा चांस मिला था राज्य से उसकी सियासी जड़ें समाप्त हो जाएंगी. शिवसेना अपनी सियासी जमीन को किसी भी कीमत पर खोना नहीं चाहती थी इसी वजह से शिवसेना ने ऐसी मांग रख दी जो बीजेपी को नागवार गुजरी.

बिहार में जनता दल (युनाइटेड)

एनडीए में शामिल दूसरी पार्टी जद(यू) है. यहां भी बीजेपी और जदयू के बीच सब कुछ अच्छा नहीं चल रहा है. एकबार तो दोनों का गठबंधन टूट भी चुका था और नीतीश कुमार ने अपने धुर विरोधी लालू प्रसाद यादव से हाथ मिलाया और सरकार का गठन किया लेकिन ये बेमेल जोड़ी नहीं चल सकी और नीतीश कुमार ने बीजेपी से हाथ मिला ही लिया. लेकिन अब क्या हो रहा है. बेगूसराय से भाजपा सांसद गिरिराज सिंह समय-समय पर नीतीश कुमार को घेरते रहते हैं. नीतीश की पार्टी के भी कई नेता बीजेपी पर अपना गुस्सा जाहिर करते रहते हैं. दोनों के बीच मनमुटाव चर रहा है. जनता दल बीजेपी से अपनी नाराजगी भी व्यक्त कराती रहती है.

अब यहां हम बात कर लेते हैं झारखंड की. यहां पर भाजपा आजसू के साथ मिलकर चुनाव लड़ रही है.  सीटों के बंटवारे के मसले पर भाजपा के बैकफुट पर न आने के बाद पार्टी से जुड़े सूत्र इस सवाल का जवाब हां में दे रहे हैं. राज्य की कुल 81 सीटों में भाजपा अब तक 71 सीटों पर उम्मीदवार उतार चुकी है. सिर्फ 10 सीटें छोड़कर भाजपा ने गेंद आजसू के पाले में डाल रखी है.

अगर इन सीटों पर आजसू ने रुख साफ नहीं किया तो भाजपा अपने दम पर सभी सीटों पर लड़ने की तैयारी में है. भाजपा को लगता है कि चुनाव पूर्व गठबंधन से ज्यादा बेहतर है जरूरत के हिसाब से चुनाव बाद गठबंधन करना.

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2014 में भाजपा को सबसे ज्यादा 37 सीटें मिलीं थीं. भाजपा ने स्थिर सरकार देकर जनता के दिल में जगह बनाई है. भाजपा मजबूत है और अकेले लक्ष्य हासिल कर सकती है.” झारखंड में सहयोगी आजसू ने कुल 19 सीटें मांगीं थीं, जबकि पिछली बार भाजपा ने उसे आठ सीटें दीं थीं, जिसमें से उसे पांच सीटों पर जीत मिली थी.

भाजपा को लगा कि महाराष्ट्र की तरह अगर झारखंड में भी उसने गठबंधन में अधिक सीटों पर समझौता किया तो फिर मुश्किल हो सकती है. चुनावी नतीजों के बाद जब शिवसेना साथ छोड़ सकती है तो फिर झारखंड में सहयोगी दल आजसू भी आंख दिखा सकती है.

इसी वजह से पार्टी ने पिछली बार से दो ज्यादा यानी अधिकतम 10 सीट ही आजसू को ऑफर की है. यही वजह है कि भाजपा ने 10 सीटें फिलहाल छोड़ी हैं. मगर आजसू ने भी सीटों के बंटवारे पर झुकने का फैसला नहीं किया. नतीजा रहा कि आजसू ने भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मण गिलुवा के खिलाफ भी चक्रधरपुर से अपना प्रत्याशी उतार दिया.

भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और राज्य के विधानसभा चुनाव प्रभारी ओम माथुर सीटों के बंटवारे और गठबंधन के भविष्य की गेंद फिलहाल आजसू के पाले में डाल चुके हैं. पत्रकारों से बातचीत में वह कह चुके हैं, “भाजपा ने कुछ सीटें छोड़ी हैं, अब हम आजसू के रुख का इंतजार कर रहे हैं.”

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कमलेश तिवारी हत्याकांड खुलासे से खुश नहीं परिवार

लखनऊ में हिंदू समाज पार्टी के नेता कमलेश तिवारी की हत्या के बाद शुरुआती जांच में पुलिस ने मामले को निजी दुश्मनी से जोड़ा था. उस समय कमलेश तिवारी की मां कुसुमा देवी ने भी सीतापुर के भाजपा नेता शिवकुमार गुप्ता पर इस हत्या की साजिश रचने का आरोप लगाया था. लेकिन अचानक हत्या वाली जगह पर गुजरात के सूरत की धरती मिठाई शौप की आधा किलो काजू बरफी की 650 रुपए की रसीद और उस दुकान का कैरी बैग मिलने के बाद जांच का रुख बदल गया.

जिस रसीद को पुलिस अपनी जांच का आधार बना कर आगे बढ़ी, वह 16 अक्तूबर, 2019 की थी. 16 अक्तूबर को सूरत से चल कर 17 अक्तूबर की रात में आरोपी लखनऊ कैसे पहुंचे, यह पुलिस को पक्के तौर पर नहीं पता है. सूरत से लखनऊ आने वाली रेलगाड़ी उस दिन लेट थी.

यही नहीं, खुद कमलेश तिवारी ने इस हत्याकांड से कुछ दिन पहले अपने एक बयान में कहा था कि योगी सरकार उन की सिक्योरिटी हटा कर उन के ऊपर हमला करने वालों को मदद देने का काम कर रही है. मरने वाले कमलेश तिवारी और उन की मां कुसुमा देवी के बयान के बाद भी प्रदेश पुलिस ने बयान की दिशा में जांच को एक कदम आगे बढ़ाने लायक नहीं सम झा.

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उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने कमलेश तिवारी की हत्या के पहले भले ही उन की सिक्योरिटी में कटौती की हो, पर हत्या के बाद उन के परिवार को 15 लाख रुपए नकद और सीतापुर में एक मकान देने के साथ उन के परिवार को ऐसी सिक्योरिटी दी कि खुद परिवार के लोग खुल कर बोल नहीं पा रहे हैं.

लखनऊ के जिला प्रशासन ने कमलेश तिवारी की मां, पत्नी और बेटों को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मिलवाने का काम किया.

मुख्यमंत्री से मिलने के बाद भी मां कुसुमा देवी संतुष्ट नहीं थीं. उन का कहना था कि उन्हें सरकार की मदद नहीं चाहिए. पत्नी किरन ने 15 लाख रुपए का चैक अफसरों से लिया जरूर है, पर वे इस राहत से खुश नहीं थीं. यही नहीं, किरन तिवारी ने अपने पति कमलेश तिवारी द्वारा बनाई गई हिंदू समाज पार्टी के अध्यक्ष पद को खुद संभाल लिया.

किरन तिवारी ने कहा कि हिंदू समाज को जगाने का जो काम उन के पति ने शुरू किया था, अब वे खुद उस को आगे बढ़ाने का काम करेंगी.

उत्तर प्रदेश पुलिस ने 48 घंटे के अंदर कमलेश तिवारी हत्याकांड को सुल झाने का दावा भले ही किया हो, पर खुद कमलेश तिवारी का परिवार इस खुलासे से रजामंद नजर नहीं आ रहा है.

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ऐसे बढ़ी परेशानी

हिंदू समाज पार्टी के अध्यक्ष कमलेश तिवारी की हत्या को उत्तर प्रदेश की सरकार भले ही धार्मिक कट्टरपन से जोड़ कर देख रही हो, लेकिन कमलेश तिवारी का परिवार इस खुलासे से खुश नहीं है. ऐसे में यह सवाल बारबार उठ रहा है कि परिवार के सीधे आरोप लगाने के बाद भी पुलिस जांच के लिए आरोपी नेता से पूछताछ करने को भी तैयार नहीं है, जबकि वह नेता भाजपा से जुड़ा हुआ बताया जाता है.

असल में इस की एक बड़ी वजह हिंदू राजनीति में कमलेश तिवारी का बढ़ता कद मानी जा रही है.

50 साल के कमलेश तिवारी खुद की पहचान हिंदूवादी नेता के तौर पर बनाए रखना चाहते थे. इस वजह से दिसंबर, 2015 में उन्होंने मुसलिम पैगंबर हजरत मोहम्मद को निशाने पर लिया था.

दिसंबर, 2015 में कमलेश तिवारी ने ऐलान किया था कि वे हजरत मोहम्मद पर एक फिल्म बनाएंगे, जिस में उन के चरित्र को उजागर किया जाएगा. तब कमलेश तिवारी ने हजरत मोहम्मद के बारे में कई और एतराज जताने वाली बातें कही थीं.

इस के बाद पूरी दुनिया के मुसलिमों ने कमलेश तिवारी का तीखा विरोध किया था. सहारनपुर के रहने वाले मुसलिम मौलाना मुफ्ती नवीम काजमी और इमाम मौलाना अनवारूल हक द्वारा कमलेश तिवारी का सिर काट कर लाने वाले को डेढ़ करोड़ रुपए और हीरों का इनाम देने का वादा किया गया था. इस बात का वीडियो भी पूरे सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था.

मुसलिम समाज का जिस तरह कमलेश तिवारी को ले कर बड़े लैवल पर विरोध शुरू हुआ तो उसी की प्रतिक्रिया में हिंदुओं में उन का समर्थन शुरू हो गया. कमलेश तिवारी को पता था कि उन की कही बातों की कड़ी प्रतिक्रिया होगी, जिस के चलते उन की कट्टर हिंदूवादी नेता की इमेज बन सकेगी. वे अपनी इस योजना में कामयाब हो गए थे.

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उस समय की अखिलेश सरकार ने कमलेश तिवारी को राष्ट्रीय सुरक्षा कानून  (रासुका) के तहत गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था. जेल में कमलेश तिवारी को इस बात का मलाल हो रहा था कि हिंदू महासभा के लोग उन की मदद को नहीं आए.

अब तक कमलेश तिवारी सोशल मीडिया पर कट्टरवादी हिंदू का चेहरा बन कर उभर चुके थे. सोशल मीडिया पर उन के चाहने वाले बढ़ चुके थे.

जेल से बाहर आने के बाद अखिलेश सरकार ने 12-13 सिपाहियों का एक सिक्योरिटी दस्ता कमलेश तिवारी की हिफाजत में लगा दिया था. ऐसे में अब कमलेश तिवारी बड़े हिंदूवादी नेता के रूप में उभरने लगे थे. उन का कद बढ़ने से हिंदू महासभा में उन को ले कर मतभेद शुरू हो गए थे. तब कमलेश तिवारी ने खुद की एक पार्टी हिंदू समाज बना कर प्रदेश में हिंदू राजनीति को धार देनी शुरू की थी.

बढ़ता गया विरोध

जैसेजैसे हिंदू राजनीति में कमलेश तिवारी का कद बढ़ रहा था, हिंदूवादी लोग ही उन का विरोध करने लगे थे.

कमलेश तिवारी ने अपने कैरियर की शुरुआत हिंदू महासभा से की थी. वे इस के प्रदेश अध्यक्ष भी बने थे. कमलेश तिवारी ने हिंदू महासभा प्रदेश कार्यालय के इलाके खुर्शीदबाग का नाम बदल कर ‘वीर सावरकर नगर’ रखा था.

वे नाथूराम गोडसे को अपना आदर्श मानते थे. उन के घर पर नाथूराम गोडसे की तसवीर लगी थी. उन की सीतापुर के अपने गांव में नाथूराम गोडसे के नाम पर मंदिर बनाने की योजना थी. हिंदूवादी लोगों ने ही इस का विरोध शुरू कर दिया था.

कमलेश तिवारी मूल रूप से सीतापुर जिले के संदना थाना क्षेत्र के पारा गांव के रहने वाले थे. साल 2014 में उन्होंने अपने गांव में नाथूराम गोडसे का मंदिर बनाने का काम शुरू किया, तो वहां पर उन का विरोध तेज हो गया. ऐसे में वे मंदिर की नींव नहीं रख पाए.

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कमलेश तिवारी पारा गांव छोड़ कर परिवार के साथ महमूदाबाद रहने चले गए थे. उन के पिता देवी प्रसाद

उर्फ रामशरण महमूदाबाद कसबे के रामजानकी मंदिर में पुजारी थे. कमलेश यहीं पारा गांव में नाथूराम गोडसे का मंदिर बनाना चाहते थे. 30 जनवरी, 2015 को उन को मंदिर की नींव रखनी थी.

महमूदाबाद में कमलेश तिवारी के पिता रामशरण, मां कुसुमा देवी, भाई सोनू और बड़ा बेटा सत्यम तिवारी रहते हैं.

कमलेश तिवारी हिंदू महासभा के जिस प्रदेश कार्यालय से संगठन का काम देखते थे, वहीं वे खुद भी सपरिवार रहने लगे. कमलेश के बढ़ते कद को कम करने के लिए उन को हिंदू महासभा के प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाया भी गया था.

इस के बाद कमलेश तिवारी अपनी ‘हिंदू समाज पार्टी’ के प्रचारप्रसार में लग गए थे. अपनी कट्टर छवि को निखारने के लिए वे ज्यादा समय भगवा कपड़े ही पहनने लगे थे.

वहीं दूसरी ओर सोशल मीडिया पर धार्मिक कट्टरपन के अपने बयानों से वे चर्चा में आने लगे थे, जिस से उन की अपनी इमेज बनने लगी थी. हिंदू समाज पार्टी को तमाम लोग धन और बल से मदद भी करने लगे थे. उत्तर प्रदेश के बाहर कई प्रदेशों में हिंदू समाज पार्टी का संगठन बनने लगा था. कई प्रदेशों में रहने वाले लोग भी पार्टी के साथ काम करने को तैयार होने लगे थे.

हिंदू समाज पार्टी को सब से ज्यादा समर्थन गुजरात से मिला था. वहां पर कमलेश तिवारी ने पार्टी संगठन का गठन कर जैमिन बापू को प्रदेश अध्यक्ष भी बना दिया था.

भगवा राजनीति का भय

उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार बनने के बाद योगी आदित्यनाथ प्रदेश में हिंदुत्व का चेहरा बन कर उभरे थे. एक तरफ जहां पूरा प्रदेश हिंदू राजनीति को ले कर योगी आदित्यनाथ के पीछे खड़ा था, वहीं कमलेश तिवारी उन की खिलाफत करते रहते थे. ये लोग हिंदू राजनीति के नाम पर केवल सत्ता हासिल करना चाहते थे.

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कमलेश तिवारी राम मंदिर पर भाजपा की राजनीति से खुश नहीं थे. इस के बाद उन्होंने अयोध्या को अपनी राजनीति का केंद्र बना कर आगे बढ़ना शुरू किया. राम मंदिर पर वे भारतीय जनता पार्टी के कट्टर आलोचक बन गए. साल 2019 के लोकसभा चुनाव में वे अयोध्या से लोकसभा का चुनाव भी लड़े थे. इस चुनाव में उन को करारी हार का सामना करना पड़ा था.

हिंदू समाज पार्टी की मीटिंग में ‘2022 में एचएसपी की सरकार’ के नारे लगने लगे थे. हिंदू समाज पार्टी को गति देने के लिए कमलेश तिवारी ने देश के आर्थिक हालात, पाकिस्तान में हिंदुओं पर अत्याचार, पश्चिम बंगाल में हिंदुओं की हत्या, नए मोटर कानून में बढ़े जुर्माने का विरोध, जीएसटी जैसे मुद्दों पर भाजपा की आलोचना करनी शुरू कर दी थी. इन मुद्दों को ले कर वे प्रदेश की राजधानी लखनऊ में धरनाप्रदर्शन भी देने लगे थे.

कमलेश तिवारी अपनी पार्टी का एक बड़ा राष्ट्रीय अधिवेशन कराने की योजना में थे. इस बहाने वे अपनी पार्टी की ताकत का प्रदर्शन करना चाहते थे.

हिंदू राजनीति में कमलेश तिवारी का बढ़ता कद भाजपा सरकार को चुभने लगा था. योगी सरकार ने कमलेश तिवारी की सिक्योरिटी में कटौती कर उन के कद को छोटा करने का काम किया. अब 13 सिपाहियों के सिक्योरिटी दस्ते की जगह केवल 2 सिपाही ही रखे गए. वे सिपाही भी मनमुताबिक सिक्योरिटी करते थे. वारदात वाले दिन भी सिक्योरिटी वाले उन के पास नहीं थे.

कमलेश तिवारी के लगातार कहने के बावजूद भी उन की सिक्योरिटी मजबूत नहीं की गई थी. इस पर कमलेश तिवारी ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर खुला आरोप भी लगाया था कि वे चाहते हैं कि मैं मार दिया जाऊं. इस के बाद भी कमलेश तिवारी की बात नहीं सुनी गई.

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कमलेश तिवारी की हत्या के बाद गुजरात एटीएस ने बताया कि वहां पहले भी कमलेश तिवारी पर हमले की बात आतंकवाद फैलाने वालों ने कबूल की थी.

सवाल उठता है कि जब गुजरात एटीएस और उत्तर प्रदेश की इंटैलिजैंस को यह जानकारी थी, तो कमलेश तिवारी को सिक्योरिटी क्यों नहीं दी गई.

मां की नाराजगी

उत्तर प्रदेश सरकार कमलेश तिवारी की जिस बात को पहले नहीं मान रही थी, हत्या के बाद उसी बात को कबूल कर उन की मां कुसुमा देवी की बात मान कर उन के आरोप की जांच तक नहीं करना चाहती है.

पुलिस ने पहले कमलेश तिवारी की बात नहीं मानी. इस के बाद उन की हत्या हो गई. अब कमलेश तिवारी की मां कुसुमा देवी की बात नहीं मान रही है जिस से उन की हत्या का खुलासा शक के घेरे में है. इस से पुलिस के काम करने के तरीके पर सवाल उठते हैं.

पुलिस मानती है कि कमलेश तिवारी की हत्या 34 साल के अशफाक शेख और 27 साल के मोईनुद्दीन पठान ने उन का धार्मिक कट्टरपन से भरा भाषण सुन कर की है. पुलिस ने इस की कड़ी से कड़ी मिला दी है. हत्या के 48 घंटे के अंदर उत्तर प्रदेश और गुजरात पुलिस ने उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान और नेपाल सीमा तक जांच कर ली, पर लखनऊ से 90 किलोमीटर दूर सीतापुर की तरफ जाने की तकलीफ नहीं उठाई.

पूरे मामले को देख कर ऐसा लगता है कि जैसे पुलिस ने पहले कमलेश तिवारी हत्याकांड में अपनी कहानी बना ली. इस के बाद एकएक कर वह उस के किरदार फिट करती गई.

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पुलिस एक तरफ यह कहती है कि हत्यारों ने बड़ी योजना बना कर काम किया, वहीं दूसरी तरफ उस के पास इस बात का कोई ठोस जवाब नहीं है कि ऐसे मास्टरमाइंड हत्यारे वारदात वाली जगह पर सूरत की मिठाई शौप की रसीद और बैग सुबूत के तौर पर छोड़ने की गलती कैसे कर गए?

वहीं दूसरी तरफ पुलिस कहती है कि हत्यारे बेहद शातिर थे. साथ ही, वह यह भी कहती है कि अपने ही वार से हत्यारे घायल हो गए थे. उन के हाथों में चोट लग गई थी.

पुलिस कहती है कि वारदात में पूरी साजिश पहले से तैयार थी, वहीं पुलिस यह भी कहती है कि हत्यारों के पास पैसे खत्म हो गए थे. इस की वजह से वे पकड़ में आ गए.

पुलिस के खुलासे में ऐसे कई छेद हैं जिन के जवाब नहीं मिल रहे हैं. पुलिस के खुलासे से जनता को भले ही राहत मिली हो, पर कमलेश तिवारी की मां कुसुमा देवी खुद खुश नहीं हैं. वे इंसाफ न मिलने की दशा में खुद तलवार उठाने तक की बात कह रही हैं.

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धान खरीदी के भंवर में छत्तीसगढ़ सरकार!

छत्तीसगढ़ की राजनीतिक फिजा में आज सिर्फ एक ही मुद्दा है धान खरीदी और किसान का. छत्तीसगढ़ की सत्ता में वापसी के लिए कांग्रेस ने जो मास्टर स्ट्रोक चला था वह अब धीरे-धीरे कांग्रेस और भूपेश सरकार के लिए बढ़ते सर दर्द और ब्लड प्रेशर का हेतु बन रहा है. कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव से पूर्व धान की खरीदी 2500 रूपये क्विंटल खरीदने और कर्जा मुआफी का वादा किया था. किसानों की कृपा से छत्तीसगढ़ में यह कार्ड चल गया और भूपेश बघेल की सरकार बहुत ताकत के साथ बन गई 67 विधायक चुन लिए गए मगर एक वर्ष बाद जब पुन: खरीफ फसल का समय आया है तो भूपेश सरकार के हाथ पांव फूलने लगे हैं और मुख्यमंत्री प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी से रियायते चाहते हैं.

भूपेश बघेल ने मुख्यमंत्री बनते ही जो वादा किया था उसे पूरा करने का ऐलान कर दिया किसानों की जेबें भर गई यही नहीं किसानों को किया गया असीमित कर्जा भी उन्होंने भामाशाह की तरह माफ कर दिया जबकि मध्यप्रदेश में ऐसा नहीं हुआ. छत्तीसगढ़ की आर्थिक स्थिति इन्हीं कारणों से बदतर होती चली गई कर्ज पर कर्ज लेकर भूपेश सरकार एक खतरनाक ‘भंवर’ मे फंसती दिखाई दे रही है. जिसका अंजाम क्या होगा यह मुख्यमंत्री के रूप में एक कुशल रणनीतिक होने के कारण या तो प्रदेश को उबार ले जाएंगे अथवा छत्तीसगढ़ की आने वाले समय में बड़ी दुर्गति होगी यह बताएगा.

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मोदी सरकार से अपेक्षा !

भूपेश बघेल की सरकार किसानों से धान 2500 रूपये क्विंटल में खरीदने को कटिबद्ध है क्योंकि पीछे हटने का मतलब किसानों का रोष और छवि खराब होने की चिंता है .ऐसे में दो ही रास्ते हैं एक छत्तीसगढ़ सरकार शुचिता बरते, सादगी के साथ सिर्फ किसानों के हित साधती रहे और दूसरे दिगर विकास के कामों में ब्रेक लगा दे या फिर केंद्र के समक्ष हाथ पसारे.

भूपेश बघेल की शैली भीख मांगने यानी हाथ पसारने की कभी नहीं रही. भूपेश बघेल को एक आक्रमक छत्तीसगढ़ के चीते के स्वभाव वाला राजनीतिक माना गया है. ऐसे में उनकी सरकार मोदी सरकार के समक्ष हाथ पसारने की जगह सीना तान कर खड़ी हो गई है और केंद्र सरकार से मांग की जा रही है केंद्र को चेतावनी दी जा रही है की धान खरीदी में सहायता करो. छत्तीसगढ़ के एक मंत्री जयसिंह अग्रवाल ने मोदी सरकार को चेतावनी दी केंद्र धान नहीं खरीदेगी तो हम छत्तीसगढ़ से होने वाले कोयले का परिवहन बंद कर देंगे .इस आक्रमकता  से यह दूध की तरह साफ हो चुका है कि भूपेश सरकार, नरेंद्र दामोदरदास मोदी के समक्ष झुकने को तैयार नहीं बल्कि झुकाने की ख्यामख्याली पाले हुए हैं.

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आज होगा आमना सामना

भूपेश बघेल को 14 जनवरी को देश के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से मिलने का समय मिला था. छत्तीसगढ़ सरकार ने पूरी तैयारी कर रखी थी की दिल्ली पहुंचकर राष्ट्रपति से मिल केंद्र सरकार को घेरेगे और प्रदेश की जनता के मध्य यह संदेश प्रसारित होगा की केंद्र छत्तीसगढ़ की उपेक्षा कर रही है. मगर ऐन मौके पर चाल पलट गई. राष्ट्रपति भवन से 13 नवंबर की रात को संदेश आ गया की राष्ट्रपति महोदय से मुलाकात को निरस्त कर दिया गया है.

भूपेश बघेल सरकार नरेंद्र मोदी से मिलना चाहती थी मगर प्रधानमंत्री कार्यालय से भी लाल झंडी दिखाई दे रही है ऐसे में भूपेश बघेल स्वयं अपने चुनिंदा मंत्रियों के साथ केंद्रीय खाद्य मंत्री रामविलास पासवान व केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर से मिलकर आग्रह करेंगे की 85 लाख मैट्रिक टन धान खरीद पर केंद्र समर्थन मूल्य प्रदान करें । 32 लाख मैट्रिक धान का एफ सी  आई गोदाम में रखने की अनुमति दी जाए और समर्थन मूल्य पर बोनस पर केंद्र की लगी रोक को थिथिल किया जाए.

राजनीतिक प्रशासनिक चातुर्य की कमी  !

संपूर्ण प्रकरण पर दृष्टिपात करें तो स्पष्ट हो जाता है की भूपेश बघेल सरकार में जहां राजनीतिक चातुर्य की कमी है वहीं प्रशासनिक दक्षता जैसी दिखाई देनी चाहिए वह भी दृष्टिगोचर नहीं हो रही है. किसानों के खातिर तलवार भांजने वाली छत्तीसगढ़ सरकार यह कैसे भूल गई की विधानसभा में 68 सीटों का तोहफा देने वाली जनता और किसानों ने लोकसभा चुनाव में भूपेश बघेल की ऊंची ऊंची हांकने की हवा निकाल दी और बमुश्किल 11 में 9 सीटों पर दावा करने वाली कांग्रेस को 2 सीटें ही मिल पाई.

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किसानों का संपूर्ण कर्जा माफी करना भी भूपेश सरकार के गले का फंदा बन गया. अगरचे मध्य प्रदेश की कमलनाथ सरकार से थोड़ा सबक सिखा होता तो प्रदेश की आर्थिक स्थिति डांवाडोल नहीं होती .वहीं केंद्र सरकार को आंख दिखाने की हिमाकत छत्तीसगढ़ सरकार को उल्टी न पड़ जाए. डॉक्टर रमन सिंह पूर्व मुख्यमंत्री कहते हैं,- केंद्र से सम्मान और विनय के साथ आग्रह करने की जगह जैसे भूपेश बघेल दो-दो हाथ करने का बॉडी लैंग्वेज दिखा रहे हैं यह गरिमा के अनुकूल नहीं है.

छत्तीसगढ़ के मंत्री, धान खरीदी के मुद्दे पर केंद्र को झुकाना चाहते हैं और केंद्र सरकार, भूपेश बघेल को धान के मुद्दे पर निपटाना चाहती है.! देखिए इस सोच में कौन कहां गिरता है और कहां उखडता है.

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DCP किरण बेदी! के समय भी यही हाल था जो आज दिल्ली पुलिस और वकीलों के बीच है

नई दिल्ली: तीस हजारी कोर्ट का तमाशा पूरी दुनिया ने देखा. लोगों ने देखा कि कैसे कानून के रखवाले और संविधान के रक्षक दोनों कैसे जूझ रहे हैं. हालांकि आम आदमी को लूटने में दोनों ही माहिर होते हैं. हमने तो एक कहावत भी सुनी थी कि काले, सफेद, और खाकी वालों के दर्शन न हीं हो तो बेहतर है.

ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है. इससे पहले भी दिल्ली में वकील और पुलिस आमने-सामने आ चुके हैं लेकिन तब दिल्ली में डीसीपी थीं किरण बेदी. वही किरण बेदी जिन्हें ‘क्रेन बेदी’ भी कहा जाता है. दिल्ली के अलावा चेन्नई में भी वकील और पुलिस आमने-सामने आई थी.

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तीस हजारी कोर्ट में पुलिस और वकीलों की बीच हुई हिंसक झड़प के बाद अब पुलिसकर्मी विरोध प्रदर्शन पर उतर आए हैं. कमिश्नर की अपील के बाद भी मंगलवार को पुलिसकर्मियों ने पुलिस हेडक्वार्टर के बाहर विरोध प्रदर्शन करते हुए नारेबाजी की.

दिल्ली पुलिस (Delhi Police) के जवानों ने दिल्ली पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक (Amulya Patnaik IPS) के सामने ‘हमारा सीपी(कमिश्नर) कैसा हो, किरण बेदी (Kiran Bedi) जैसा हो’ के नारे लगे. किरण बेदी ने ऐसा क्या किया जिसके कारण आज पुलिस कमिश्नर के सामने उनके जैसा कमिश्नर के नारे लगने लगे.

यह घटना 17 फरवरी 1988 की है. इस दिन डीसीपी किरण बेदी के दफ्तर में वकील पहुंचे हुए थे. इस बीच किसी बात पर बहस हो गई जो झड़प में बदल गई, इस दौरान बेकाबू भीड़ के कारण हालात ऐसे हो गए कि किरण बेदी को लाठीचार्ज कराना पड़ा. इस असर यह हुआ कि वकीलों ने दिल्ली की सभी अदालतों को बंद करा दिया. हालांकि इसके बाद भी एक न्यायाधीश ऐसे थे, जिन्होंने अपनी अदालत को खोले रखा और फैसले सुनाए.

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बवाल वाले दिन 17 फरवरी 1988 को याद करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश एस.एन. ढींगरा ने  बताया था कि उस दिन डीसीपी दफ्तर में वकीलों की वजह से हालात बेकाबू हो गए थे, ऐसे में नौबत लाठीचार्ज तक आ पहुंची थी. उन्होंने कहा कि जब तक हालात बेकाबू न हो कोई पुलिस अधिकारी लाठीचार्ज नहीं कराता. आखिर वह बैठे-बिठाए मुसीबत क्यों मोल लेना चाहेगा.

अब इस लड़ाई में दिल्ली पुलिस रिटायर्ड गजटेड औफिसर एसोसियेशन ने भी बुधवार को छलांग लगा दी. इसकी पुष्टि तब हुई जब एसोसियेशन के अध्यक्ष पूर्व आईपीएस और प्रवर्तन निदेशालय सेवा-निवृत्त निदेशक करनल सिंह ने दिल्ली के उप-राज्यपाल और पुलिस आयुक्त को पत्र लिखा. पत्र में जिम्मेदारी वाले पदों पर मौजूद दोनो ही शख्शियतों से आग्रह किया गया है कि अब तक हाईकोर्ट में जो कुछ हुआ है दिल्ली पुलिस उसे लेकर सुप्रीम कोर्ट में जाने का विचार गंभीरता से करे.

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सेक्स स्कैंडल में फंसे नेता और संत

इस कड़ी में नया नाम मुमुक्षु आश्रम के अधिष्ठाता, राम मंदिर के आंदोलनकारी, केंद्र में गृह राज्यमंत्री और सांसद रह चुके स्वामी चिन्मयानंद का है.

इन्हीं स्वामी चिन्मयानंद के ऊपर यौन शोषण और बलात्कार का आरोप लगाया गया है. ऐसे आरोप लगने वाले संतों में आसाराम बापू, नित्यानंद, राम रहीम के साथसाथ नेताओं में उत्तर प्रदेश से भाजपा विधायक कुलदीप सेंगर, समाजवादी पार्टी में मंत्री रहे गायत्री प्रसाद प्रजापति, बहुजन समाज पार्टी के नेता पुरुषोत्तम द्विवेदी के अलावा अमरमणि त्रिपाठी और आनंदसेन जैसे कई नाम शामिल हैं.

इन सभी संतों और नेताओं में स्वामी चिन्मयानंद का नाम सब से चौंकाने वाला है क्योंकि वे नेता और संत दोनों रहे हैं और राम जन्मभूमि आंदोलन से जुड़े रहे हैं.

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शाहजहांपुर के मुमुक्षु आश्रम को मोक्ष मिलने की जगह बताया जाता है. शाहजहांपुर में यह आश्रम धार्मिक आस्था का एक बड़ा केंद्र माना जाता है. यह आश्रम शाहजहांपुर रेलवे स्टेशन से महज 3 किलोमीटर और बसअड्डे से तकरीबन 2 किलोमीटर दूर है.

शाहजहांपुरबरेली हाईवे पर मुमुक्षु आश्रम तकरीबन 21 एकड़ जमीन पर बना है. इस के परिसर में ही इंटर कालेज से ले कर डिगरी कालेज तक 5 शिक्षण  संस्थान चलते हैं.

मुमुक्षु आश्रम का दायरा शाहजहांपुर के बाहर दिल्ली, हरिद्वार, बद्रीनाथ और ऋषिकेश तक फैला है.

मुमुक्षु आश्रम की ताकत का ही फायदा ले कर साल 1985 के बाद स्वामी चिन्मयानंद ने धर्म के साथसाथ अपनी राजनीतिक ताकत बढ़ाई थी. वे 3 बार सांसद और एक बार केंद्र सरकार में गृह राज्यमंत्री बने. दूसरों को मोक्ष देने का दावा करने वाला मुमुक्षु आश्रम स्वामी चिन्मयानंद को मोक्ष की जगह जेल के पीछे भेजने का जरीया बन गया.

स्वामी सुखदेवानंद ला कालेज में कानून की पढ़ाई करने वाली 24 साल की एक लड़की ने जब मुमुक्षु आश्रम के अधिष्ठता स्वामी चिन्मयानंद के खिलाफ यौन शोषण और बलात्कार का आरोप लगाया, तो पूरा देश सन्न रह गया. लेकिन बाद में स्वामी चिन्मयानंद ने यौन शोषण और बलात्कार का आरोप लगाने वाली लड़की के खिलाफ 5 करोड़ रुपए की रंगदारी मांगने का मुकदमा दर्ज कर उसे जेल भिजवा दिया.

नग्नावस्था में लड़की से मसाज कराते वीडियो के सामने आने पर खुद स्वामी चिन्मयानंद ने जनता से कहा था कि वे अपनी इस हरकत पर शर्मिंदा हैं.

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स्वामी चिन्मयानंद ने धर्म के सहारे अपनी राजनीति शुरू की थी. वे राम मंदिर आंदोलन के दौरान देश के उन प्रमुख संतों में शामिल थे, जो मंदिर बनवाने की राजनीति कर रहे थे. भाजपा ने स्वामी चिन्मयानंद को 3 बार लोकसभा का टिकट दे कर सांसद बनाया और अटल सरकार में मंत्री बनने का मौका भी दिया.

स्वामी चिन्मयानंद उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले के परसपुर क्षेत्र के त्योरासी गांव में साल 1947 में जनमे थे. उन का असली नाम कृष्णपाल सिंह है. साल 1967 में 20 साल की उम्र में संन्यास लेने के बाद वे हरिद्वार पहुंच गए. वहां उन का नाम स्वामी चिन्मयानंद हो गया.

तथाकथित संत होने के साथसाथ स्वामी चिन्मयानंद ने जेपी आंदोलन में भाग लिया. इमर्जैंसी में वे जेल गए. जनता पार्टी की सरकार बनी तो चिन्मयानंद शाहजहांपुर आ गए और स्वामी सुखदेवानंद के साथ रहने लगे.

स्वामी सुखदेवानंद की भारतीय जनता पार्टी के नेता लाल कृष्ण आडवाणी से जानपहचान थी. यहीं चिन्मयानंद की मुलाकात भी उन से होती थी. राजनीति में दिलचस्पी रखने के चलते चिन्मयानंद उन के बेहद करीब हो गए.

‘सुखदेवानंद आश्रम’ की कुरसी पर चिन्मयानंद के बैठने के बाद वे उत्तर प्रदेश में प्रमुख संत नेता के रूप में उभरने लगे. यहीं से वे विश्व हिंदू परिषद के संपर्क में भी आ गए.

यही वह समय था, जब विश्व हिंदू परिषद उत्तर प्रदेश में राम मंदिर को ले कर आंदोलन चला रही थी. उस के लिए मठ, मंदिर और आश्रम में रहने वाले संत मठाधीश बहुत खास हो गए थे.

विश्व हिंदू परिषद के अघ्यक्ष रहे अशोक सिंघल ने उत्तर प्रदेश में जिन आश्रम के लोगों को राम मंदिर आंदोलन से जोड़ा, उन में गोरखपुर जिले के गोरखनाथ धाम के महंत अवैद्यनाथ और शाहजहांपुर के स्वामी चिन्मयानंद और अयोध्या के महंत परमहंस दास प्रमुख थे.

विश्व हिंदू परिषद ने जब ‘राम जन्मभूमि मुक्ति संघर्ष समिति’ का गठन किया तो स्वामी चिन्मयानंद को उस का राष्ट्रीय संयोजक बनाया गया.

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बचाव के लिए वीडियो

पीडि़त लड़की ला कालेज में एलएलएम यानी मास्टर औफ ला की पढ़ाई कर रही थी. वह यहीं होस्टल में रहती थी. होस्टल में रहने के दौरान ही स्वामी चिन्मयानंद की उस पर निगाह पड़ी. पढ़ाई के साथसाथ उसे कालेज में ही नौकरी भी दे दी गई थी.

लड़की सामान्य कदकाठी और गोरे रंग की थी. कालेज में पढ़ने वाली दूसरी लड़कियों की तरह उसे भी स्टाइल के साथ सजसंवर कर रहने की आदत थी. स्वामी चिन्मयानंद ने कई बार उस के जन्मदिन की पार्टी में भी हिस्सेदारी की थी.

लड़की की स्वामी चिन्मयानंद के करीबी होने की अपनी अलग कहानी है. पीडि़त लड़की का कहना है कि उसे योजना बना कर फंसाया गया. वह कहती है कि जब वह होस्टल में रहने आई तो एक दिन नहाते समय चोरी से उस का वीडियो बना लिया गया. इस के बाद उस वीडियो को वायरल कर के बदनाम करने की धमकी दे कर स्वामी चिन्मयानंद ने उस के साथ बलात्कार किया. इस बलात्कार की भी वीडियो बनाई गई. इस के बाद उस के शोषण का सिलसिला चल निकला.

स्वामी चिन्मयानंद को मसाज कराने का बेहद शौक था. मसाज के दौरान ही वे कई बार सेक्स भी करते थे. अपने शोषण से परेशान लड़की ने अब इस तरह के वीडियो को बनाने का काम शुरू किया.

पीडि़त लड़की ने स्वामी चिन्मयानंद के तमाम वीडियो पुलिस को सौंपे हैं. इन में से 2 वीडियो वायरल भी हो गए. इन वीडियो में चिन्मयानंद नग्नावस्था में लड़की से मसाज कराते हुए देखे जाते हैं. इस में वे लड़की से बात कर रहे हैं. स्वामी खुद पूरी तरह से नग्नावस्था में हैं. लड़की से संबंध की बातें करते भी सुने जाते हैं. उन की आपसी बातचीत से ऐसा लग रहा है, जैसे उन दोनों के बीच यह सामान्य घटना है.

पीडि़त लड़की ने मसाज वाले ये दोनों वीडियो अपने चश्मे में लगे खुफिया कैमरे से तैयार किए थे. खुद को फ्रेम में रखने के लिए वह अपना चश्मा मेज पर उतार कर रखती थी, जिस से स्वामी चिन्मयानंद के साथ वह भी कैमरे में दिख सके. यह चश्मा लड़की ने औनलाइन शौपिंग से मंगवाया था.

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आरोप में घिरी सरकार

स्वामी चिन्मयानंद और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बीच गहरा रिश्ता है. 1980 के दशक में राम मंदिर आंदोलन के दौरान स्वामी चिन्मयानंद और योगी आदित्यनाथ के गुरु महंत अवैद्यनाथ ने मंदिर बनवाने के लिए कंधे से कंधा मिला कर काम किया था. दोनों ने मिल कर ‘राम जन्मभूमि मुक्ति संघर्ष समिति’ बनाई थी. ऐसे में उन के बीच एक करीबी रिश्ता था.

अटल सरकार में मंत्री पद से हटने के बाद ही स्वामी चिन्मयानंद का राजनीतिक रसूख हाशिए पर सिमट गया था. साल 2017 में जब उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार बनी और योगी आदित्यनाथ प्रदेश के मुख्यमंत्री बने तो स्वामी चिन्मयानंद का रसूख काफी बढ़ गया था. मुमुक्षु आश्रम का दरबार सत्ता का एक केंद्र बन गया था.

स्वामी चिन्मयानंद पर शोषण और बलात्कार का आरोप लगने के बाद जिस तरह से पीडि़त लड़की के खिलाफ रंगदारी मांगने और उस को पकड़

कर जेल में भेजा गया. उस के बाद विरोधी दल उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ स्वामी चिन्मयानंद को बचाने के आरोप लगाने लगे.

समाजवादी पार्टी की नेता रिचा सिंह एक प्रतिनिधिमंडल के साथ शाहजहांपुर जेल में रंगदारी मांगने के आरोप में बंद आरोपी लड़की से मिलने गईं. जेल प्रशासन ने उन को मिलने नहीं दिया. इस बात के विरोध में सपा नेता जेल के गेट पर ही धरना देने लगे.

प्रतिनिधिमंडल में सपा नेता रिचा सिंह के साथ साबिया मोहानी, नाहिद लारी खान, निधि यादव, खुशनुमा, रेखा उपाध्याय प्रमुख थीं. सपा नेता पीडि़त लड़की के परिवार से मिले. परिवार के लोगों का दर्द सुन कर सपा नेताओं ने आरोप लगाया कि एक तरफ बलात्कार व शोषण के आरोपी स्वामी चिन्मयानंद को इलाज के नाम पर अस्पताल में रखा गया, वहीं रंगदारी के फर्जी मुकदमे में लड़की को जेल भेज दिया गया.

समाजवादी पार्टी ही नहीं, ‘एडवा’ की नेताओं ने भी उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में गांधी प्रतिमा के पास धरना दिया.

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‘एडवा’ की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सुभाषिनी अली ने कहा कि पीडि़ता के बयान में बलात्कार का आरोप लगाने के बाद भी केस को कमजोर करने के लिए स्वामी चिन्मयानंद के खिलाफ जांच करने वाली एसआईटी ने बलात्कार का मुकदमा न दर्ज कर धारा 376 सी का मुकदमा लिखा है.

सुभाषिनी अली ने कहा कि सरकार किस तरह से स्वामी चिन्मयानंद को बचाने का काम कर रही है, यह दोनों मुदकमों में सम झा जा सकता है. कानून कहता है कि 7 साल से कम सजा के मामले में गिरफ्तारी जरूरी नहीं होती. रंगदारी के मामले में 3 साल की सजा का प्रावधान है. इस के बाद भी बलात्कार का आरोप लगाने वाली लड़की को जेल भेज दिया गया.

‘एडवा’ नेताओं में सीमा कटियार, सुमन सिंह, सीमा राणा, नीलम तिवारी और सुधा सिंह शामिल रहीं.

कांग्रेस ने भी लखनऊ से शाहजहांपुर तक ‘न्याय यात्रा’ का आयोजन किया, पर सरकार ने कांग्रेस नेताओं को ‘न्याय यात्रा’ नहीं निकालने दी.

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पानी पानी नीतीश, आग लगाती भाजपा

इस वजह से राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन में काफी अजीबोगरीब हालत पैदा हो गई है. अगले साल बिहार विधानसभा का चुनाव है और नीतीश कुमार पर हमला कर भाजपाई नए राजनीतिक समीकरण गढ़ने की ओर इशारा कर रहे हैं.

भाजपा के अंदरखाने की मानें तो भाजपा आलाकमान इस बार नीतीश कुमार की बैसाखी के बगैर अकेले ही विधानसभा चुनाव लड़ने का माहौल बना रहा है और इस काम के लिए गिरिराज सिंह जैसे मुंहफट नेताओं को आगे कर रखा है.

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ऐसे में नीतीश कुमार के सामने बड़े अजीब हालात पैदा हो गए हैं. अगर भाजपा उन से दामन छुड़ा लेती है, तो उन के सामने दूसरा सियासी विकल्प क्या होगा? क्या वे दोबारा लालू प्रसाद यादव की लालटेन थामेंगे? कांग्रेस की हालत ऐसी नहीं है कि उस से हाथ मिला कर जद (यू) को कोई फायदा हो सकेगा. हमेशा किसी न किसी के कंधे का सहारा ले कर 15 साल तक सरकार में बने रहने वाले नीतीश कुमार क्या अकेले विधानसभा चुनाव में उतरने की हिम्मत दिखा पाएंगे?

नीतीश कुमार की इसी मजबूरी का फायदा भारतीय जनता पार्टी अगले विधानसभा चुनाव में उठाना चाहती है. कई मौकों पर कई भाजपा नेता कह चुके

हैं कि साल 2020 के विधानसभा चुनाव में राजग के मुखिया को बदलने की जरूरत है. इस बार भाजपा के किसी नेता को मुख्यमंत्री बनाया जाए. इस से जद (यू) के अंदर उबाल पैदा हो गया था.

हालांकि भाजपा नेता और राज्य के उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने यह कह कर मामले को ठंडा कर दिया था कि जब कैप्टन ही अच्छी तरह से कप्तानी कर रहा हो और चौकेछक्के लगा रहा हो तो कैप्टन बदलने की जरूरत नहीं होती है.

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6 अक्तूबर, 2019 को भाजपा की राजनीति कुछ दिलचस्प अंदाज में नजर आई. कुलमिला कर हालत ‘नीतीश से मुहब्बत, नीतीश से ही लड़ाई’ वाली रही. बारिश के पानी में पटना के डूबने के मसले पर भाजपा और जद (यू) के कई नेताओं के बीच जबानी जंग तेज होती गई थी.

एक ओर जहां भाजपा के नेता पटना को डूबने से बचाने के मामले में नीतीश कुमार को पूरी तरह से नाकाम बता रहे थे, वहीं दूसरी ओर ऐसे में एक बार फिर सुशील कुमार मोदी ढाल ले कर नीतीश कुमार के बचाव में उतर पड़े.

उन्होंने आपदा से निबटने के लिए नीतीश कुमार की जम कर तारीफ की और उन के दोबारा जद (यू) अध्यक्ष बनने पर बधाई भी दी.

वहीं भाजपा के कुछ नेता दबी जबान में कहते हैं कि सुशील कुमार मोदी 3 दिनों तक खुद ही राजेंद्र नगर वाले अपने घर में 7-8 फुट से ज्यादा पानी में फंसे रहे. नीतीश कुमार ने उन की कोई खोजखबर तक नहीं ली.

जब भाजपा के कुछ नेताओं ने सुशील कुमार मोदी को ले कर हल्ला मचाया, तब पटना के जिलाधीश लावलश्कर के साथ ट्रैक्टर और जेसीबी ले कर मोदी के घर पहुंचे और डिप्टी सीएम का रैस्क्यू आपरेशन किया.

जद (यू) के राष्ट्रीय महासचिव केसी त्यागी कहते हैं कि भाजपा के कुछ नेता मुख्यमंत्री पर राष्ट्रीय जनता दल से ज्यादा तीखा हमला कर रहे हैं. हमारे घटक दल ही विरोधी दल की तरह काम कर रहे हैं. इस से सरकार और गठबंधन दोनों की फजीहत हो रही है.

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मुंबई महानगरपालिका का बजट 70,000 करोड़ रुपए का है और हर साल बारिश के मौसम में पानी जमा होता है. चेन्नई, हैदराबाद, बैंगलुरु और मध्य प्रदेश में भी भारी पानी जमा हुआ. आपदा के इस माहौल में साथ मिल कर काम करने के बजाय कुछ भाजपा नेता बयानबाजी करने में लगे रहे.

गौरतलब है कि पटना नगरनिगम का इलाका 109 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है. इस की आबादी 17 लाख है. नगरनिगम का सालाना बजट 792 करोड़ रुपए का है और 75 वार्ड हैं.

बारिश का पानी जमा होने को ले कर सत्ताधारी दलों के नेता आपस में उलझे रहे और सचाई यह सामने आई कि पटना के सारे नाले जाम पड़े थे और पटना नगरनिगम नालों के नक्शे की खोज में लगा हुआ था. नालों का नक्शा ही निगम को नहीं मिला, जिस से सफाई को ले कर अफरातफरी का माहौल बना रहा और जनता गले तक पानी में डूबती रही.

दरअसल, पटना नगरनिगम के नालों को बनाने का जिम्मा किसी एक एजेंसी के पास नहीं है. शहरी विकास विभाग, बुडको, नगरनिगम, राज्य जल पर्षद और सांसदविधायक फंड से यह काम कराया जाता रहा है. जिसे जितने का ठेका मिला, उसे बना कर चलता बना. नगरनिगम ने भी उस से नालों की पूरी जानकारी ले कर रिकौर्ड में नहीं रखा.

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भाजपा सांसद गिरिराज सिंह के नीतीश कुमार पर हमलावर होते ही जद (यू) के कई नेता उन पर तीर दर तीर चलाने लगे. जद (यू) के मुख्य प्रवक्ता संजय सिंह कहते हैं कि गिरिराज सिंह डीरेल हो गए हैं. वे नीतीश कुमार के पैरों की धूल के बराबर भी नहीं हैं. अगर जद (यू) नेताओं का मुंह खुल गया, तो गिरिराज सिंह पानीपानी हो जाएंगे.

भवन निर्माण मंत्री अशोक चौधरी कहते हैं कि गिरिराज सिंह का राजनीतिक आचरण कभी ठीक नहीं रहा है और वे अंटशंट बयान देने के आदी हैं. उन्हें कोई सीरियसली लेता भी नहीं है.

गिरिराज सिंह कहते हैं कि पटना एक हफ्ते तक पानी में डूबा रहा और नीतीश कुमार के अफसर भाजपा नेताओं का फोन नहीं उठाते थे. पटना के जिलाधीश तक ने फोन रिसीव नहीं किया और न ही कौल बैक किया. इस से यह साफ है कि अफसरों को मुख्यमंत्री ने निर्देश दिया है कि किस का फोन उठाना?है, किस का नहीं. ताली सरदार को मिली है तो गाली भी सरदार को ही मिलेगी, इस बात को नीतीश कुमार को नहीं भूलना चाहिए.

शाहनवाज हुसैन कहते हैं कि गिरिराज सिंह के बयान को तोड़मरोड़ कर पेश किया जा रहा है. उन की चिंता है कि जद (यू) के साथ भाजपा भी सरकार में है. ऐसे में भाजपा को भी जनता के सवालों का जवाब देना होगा.

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गिरिराज सिंह से पूछा गया था कि नीतीश कुमार पिछले 15 सालों से सत्ता में हैं, तो क्या जिम्मेदारी नहीं लेनी चाहिए? तो उन का जवाब था कि बिलकुल लेनी चाहिए. इसी बात का बतंगड़ बना दिया गया है और कहा जा रहा है कि राजग टूटने के कगार पर है.

सूचना एवं जनसंपर्क मंत्री नीरज कुमार राजग में खींचतान की बात को खारिज करते हुए कहते हैं कि बिहार में कुदरती आपदा आई है, ऐसे में राजनीतिक आपदा का कयास लगाना बेमानी है. राजग में टूट की बात करने वाले दिन में सपना देख रहे हैं. राजग अटूट है. वैसे भी गिरिराज सिंह जैसे नेताओं की बयानबाजी का कोई सियासी असर नहीं होता है.

पटना की जनता एक हफ्ते तक पानी में फंसी परेशान रही और नीतीश सरकार के नगर विकास मंत्री सुरेश शर्मा अपनी जवाबदेही से बचने की कवायद में लगे रहे. उन की बात सुनेंगे तो हंसी भी आएगी और गुस्सा भी.

मंत्री महोदय बड़ी ही मासूमियत से कहते हैं कि पटना में जलजमाव के लिए पटना नगरनिगम के पहले के कमिश्नर अनुपम कुमार सुमन जबावदेह हैं. वे किसी की बात ही नहीं सुनते थे. मुख्यमंत्री से भी इस की शिकायत कई दफा की गई थी. अनुपम कुमार सुमन की लापरवाही और मनमानी की वजह से ही पटना की बुरी हालत हुई है. विभाग की ओर से अनुपम कुमार सुमन पर कार्यवाही की सिफारिश की जाएगी.

सियासी गलियारों में चर्चा गरम है कि नीतीश कुमार ने जानबूझ कर पटना को पानी में डूबने दिया. वे भाजपा नेताओं को उन की औकात बताना चाहते थे और जनता के सामने उन्हें नीचा दिखाने की साजिश रची गई.

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पटना की 2 लोकसभा सीट और 14 विधानसभा सीटों में से 7 पर भाजपा का कब्जा है. पटना शहरी इलाकों में भाजपा का दबदबा होने की वजह से  ही नीतीश कुमार ने इन इलाकों पर ध्यान नहीं दिया. नीतीश कुमार के मन में हमेशा यह चिढ़ रहती है कि पटना की जनता उन की पार्टी को तवज्जुह नहीं देती है. कई भाजपाई नेता दबी जबान में यह कह रहे हैं कि पटना को जानबूझ कर डुबोया गया. मेन नालों को जहांतहां जाम कर के रख दिया गया था. पंप हाउसों की मोटर खराब थी. जब मौसम विभाग ने बारिश को ले कर रेड अलर्ट जारी किया था तो पंप हाउस की मोटर को ठीक क्यों नहीं कराया गया?

पटना साहिब के सांसद रविशंकर प्रसाद कहते हैं कि पटना के ड्रेनेज सिस्टम, पंप हाउस जैसे बुनियादी मसलों पर पहले से पूरी तैयारी होती और मौनीटरिंग का इंतजाम होता तो इतनी बुरी हालत नहीं होती. सांसद अश्विनी चौबे कहते हैं कि पटना की तबाही के लिए लालफीताशाही जिम्मेदार है.

पटना के एक हफ्ते तक बारिश के पानी में डूबने का मामला शांत होता नहीं दिख रहा है. इस मसले को जिंदा रख कर भाजपा मजबूत सियासी फायदा उठाने की कवायद में लगी हुई है. इस साल के आम चुनाव में बड़ी जीत मिलने के बाद से ही भाजपा बिहार में भी ‘एकला चलो रे’ का माहौल बनाने में लगी हुई है.

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पटना में भारी जल जमाव के बाद भाजपा ने खुल कर इस कोशिश को तेज कर दिया है. ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या पटना के डूबने के बाद अब नीतीश कुमार की राजनीति के भी डूबने के आसार हैं?

रावण वध में हुआ राजग की एकता का वध? 

भाजपा और जद (यू)  के बीच तनातनी पूरी तरह से खुल कर तब सामने आ गई, जब 8 अक्तूबर को दशहरे के मौके पर पटना के गांधी मैदान में होने वाले रावण दहन कार्यक्रम में भाजपा का एक भी नेता नहीं पहुंचा.

14 सालों के राजग के शासन में पहली बार ऐसा हुआ. इस मसले को ले कर जद (यू) खासा नाराज है कि भाजपा नेताओं ने मुख्यमंत्री के प्रोटोकौल का उल्लंघन किया है.

जद (यू) के विधान पार्षद रणवीर नंदन कहते हैं कि अगर भाजपा नेताओं के मन कोई छलकपट है, तो वह किसी गलतफहमी में न रहें. विधानसभा चुनाव में जनता उन्हें करारा जवाब देगी.

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भाजपा आपदा के मौके पर भी सियासी फायदा उठाने की जुगत में है, वहीं भाजपा नेताओं का कहना है कि रावण वध कार्यक्रम से ज्यादा जरूरी जलजमाव में फंसी जनता को राहत पहुंचाना था और भाजपा उसी में मसरूफ रही.

पटना साहिब के सांसद रविशंकर प्रसाद कहते हैं कि इस साल जनता की परेशानियों को देखते हुए उन्होंने दशहरा नहीं मनाया और न ही किसी आयोजन में हिस्सा लिया. पटना के सातों शहरी विधानसभा क्षेत्र का विधायक जनता की सेवा का हवाला दे कर कन्नी कटाता रहा.

भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल ने इस मामले में किसी तरह की राजनीति से इनकार करते हुए कहा है कि भाजपा और जद (यू) के बीच किसी भी तरह का मतभेद नहीं है. राजग अटूट है.

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मोदी को आंख दिखाते, चक्रव्यूह में फंसे भूपेश बघेल!

छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के सत्तासीन होने के बाद परिस्थितियां बदल गई हैं. विधानसभा चुनाव के परिणाम स्वरुप मुख्यमंत्री के रूप में भूपेश बघेल ने छत्तीसगढ़ की कमान संभाल ली और इसके साथ ही शुरू हो गया छत्तीसगढ़ सरकार का केंद्र सरकार के साथ आंख मिचौली का खेल. भूपेश बघेल बारंबार एहसास कराते हैं कि वे प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी और केंद्र सरकार की परवाह नहीं करते.

मौके मिलते ही  उनके सामने  सीना तान कर खड़े हो जाते हैं. और फिर जब हकीकत का एहसास होता है तो हाथ जोड़ मुस्कुराते हुए गुलाब पेश करते हैं . यही सब कुछ इन दिनों धान खरीदी की महत्वाकांक्षी योजना के संदर्भ में भी दिखाई दे रहा है. छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार यह वादा करके सत्तासीन हुई थी किसानों से 25 सौ रुपए प्रति क्विंटल धान खरीदी जाएगी.

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इस बिना पर सत्ता पर कांग्रेस भाग्यवश काबिज भी हो गई. मगर इसके चलते छत्तीसगढ़ सरकार की आर्थिक हालत खस्ता हो चुकी है, अब नवंबर में धान खरीदी का आगाज होना था प्रत्येक वर्ष 1 नवंबर अथवा 15 नवंबर से धान खरीदी प्रारंभ हो जाया करती थी. मगर सरकार के संशय के कारण विपरीत स्थितियों के कारण, भूपेश सरकार ने पहली बार धान खरीदी को एक माह आगे बढ़ाते हुए 1 दिसंबर से खरीदी करने का ऐलान किया है. जिससे यह स्पष्ट हो जाता है कि सरकार की हालत कितनी पतली हो चली है.

भूपेश सरकार अब केंद्र सरकार के समक्ष अनुनय विनय  कर रही है कि प्रभु हमारी रक्षा करो…!

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मंत्री आए सामने! दिखे चिंतातुर…

धान खरीदी के मसले पर आयोजित मंत्रिमंडल की उपसमिति की बैठक में 15 नवंबर से प्रस्तावित धान खरीदी के तय समय को बदल दिया गया. अब धान खरीदी का आगाज़  1 दिसंबर से होगी. इस बार 85 लाख मीट्रिक टन धान खरीदी का लक्ष्य रखा गया है.

बैठक के बाद खाद्य  मंत्री अमरजीत भगत और वन मंत्री मो. अकबर ने ने कहा कि, कांग्रेस पार्टी ने चुनाव से पहले  वादा किया था, सरकार उस वादे को पूरा करेगी. हम 2500 रुपये कीमत के साथ ही किसानों से धान खरीदेंगे. पीडीएस के लिए 25 लाख मीट्रिक टन चावल लगता है और इसके लिए 38 लाख मीट्रिक टन धान की जरूरत होती है. बाकी शेष जो धान खरीदी का लक्ष्य है उसकी खरीदी को लेकर चर्चा हुई है. केंद्र सरकार से हमने आग्रह किया है.

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हमनें केंद्र सरकार से कहा है कि हम पूरा धान खरीदना चाहते हैं, जिस तरह से पूर्व में 24 लाख मीट्रिक टन उसना चावल जमा करने की अनुमति (पूर्ववर्ती  डाक्टर रमन सिंह सरकार को)  मिली थी, उसी तरह से इस बार भी केंद्र हमें अनुमति प्रदान करे. हमें उम्मीद केंद्र सरकार अनुमति मिल जाएगी. हम अपना वादा पूरा करेंगे. खरीदी को लेकर किसी तरह से दिक्कत नहीं आएगी. छत्तीसगढ़ सरकार  के मंत्रियों ने बड़ी चतुराई से धान खरीदी कि लेट  लतीफी को, मौसम पर डाल दिया और कहा

इस बार बेमौसम बारिश से धान के पैदावारी में देरी हुई है. लिहाजा खरीदी की शुरुआती समय-सीमा को आगे बढ़ा दिया गया है. इस बार 1 दिसंबर से धान खरीदी होगी. ताकि खरीदी केंद्रों तक किसान धान लेकर व्यवस्थित रूप से पहुँच सके. खरीदी की तैयारी करने के निर्देश विभाग को दे दिए गए हैं. खरीदी और संग्रहण केंद्रों में व्यापक तैयारी रखी जाएगी. किसानों को परेशानी न हो इस बात का विशेष ध्यान रखने को कहा गया है.

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मुश्किल मे है भूपेश सरकार!

छत्तीसगढ़  सरकार ने धान खरीदी को लेकर मुश्किलों में घिरने के बाद भी किसानों को बड़ा आश्वासन  दिया है. राज्य सरकार ने कहा है कि किसी भी सूरत में राज्य सरकार किसानों के धान खऱीदने से पीछे नहीं हटेगी. खाद्य मंत्री अमरजीत भगत ने कहा कि हर परिस्थिति में किसानों के धान खरीदी जाएगी.

कृषि मंत्री रविंद्र चौबे ने केंद्र से अनुनय विनय करते हुए जो कहा है वह गौरतलब है -” छत्तीसगढ़ के किसान भी भारत के ही किसान हैं. लिहाज़ा केंद्र सरकार को छत्तीसगढ़ के चावल खरीदने चाहिए.” उन्होंने कहा कि “उम्मीद है कि प्रधानमंत्री छत्तीसगढ़ के किसानों को अपना किसान मानेंगे.” चौबे ने कहा कि -“जब राज्य में भाजपाई सरकार थी तब उन्होंने भी 300 रुपये बोनस दिया था.

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तब केंद्र ने चावल भी खरीदे थे.” उन्होंने कहा-”  बोनस छत्तीसगढ़ की सरकार दे रही है. लिहाज़ा उसे( केंद्र को) चावल खरीदना चाहिए.” सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि नवीन परिस्थितियों में नरेंद्र दामोदरदास मोदी की सरकार ने

बोनस देने की सूरत में छत्तीसगढ़ से चावल खरीदने से मना कर दिया है. पिछले साल सरकार ने करीब 81 लाख मीट्रिक टन चावल किसानों से खऱीदा था. जिसमें से मिलिंग के बाद 24 लाख मीट्रिक टन चावल केंद्र ने अपने पूल में जमा किया था. इस बार केंद्र सरकार ने किसानों को बोनस देने की सूरत में चावल लेने से मना कर दिया है. जिसे लेकर राज्य सरकार लगातार कोशिश कर रही है.

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल तीन बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चिट्ठी लिख चुके हैं. राज्यपाल अनुसुइया उईके छत्तीसगढ़ के राजभवन में केंद्र सरकार की प्रतिनिधि है,भूपेश  सरकार ने अनुरोध कर के राज्यपाल से भी केंद्र को,भूपेश सरकार के पक्ष में धान खरीदी का पत्र लिखवा कर अपनी पीठ ठोंक ली है.

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ना खाते बन रहा ना उगलते!

हालात छत्तीसगढ़ में निरंतर विषम बनते जा रहे हैं, एक तरफ भूपेश सरकार केंद्र सरकार को आंख दिखाने से नहीं चूकती,  दूसरी तरफ भरपूर मदद भी चाहती है. परिणाम स्वरूप केंद्र की मोदी सरकार ने छत्तीसगढ़ को तवज्जो देना बंद कर दिया है. इन्हीं परिस्थितियों के कारण छत्तीसगढ़ के विकास को मानो  ब्रेक लग गया है. हालात निरंतर शोचनीय होते चले जा रहे हैं. एक डौक्टर रमन का छत्तीसगढ़ था, जहां हर विभाग में विकास तीव्र  गति से दौड़ रहा था.

रुपए पैसों की कभी कमी नहीं हुआ करती थी मगर भूपेश सरकार में जहां सड़कें गड्ढों में बदल गई हैं वही गोठान शुभारंभ और छुट्टी वाला बाबा बनकर भूपेश बघेल छत्तीसगढ़ की गली कूचे में भटक कर रह गए हैं.अब धान खरीदी का ही मसला लें, भूपेश सरकार मानो एक चक्रव्यू में फंस चुकी है. धान खरीदी के मसले पर सत्ता में वापसी के बाद केंद्र सरकार की मदद नहीं मिलने से भूपेश सरकार पसीना पसीना है. केंद्रीय खाद्य मंत्री रामविलास पासवान और प्रधानमंत्री मोदी तक धान खरीदी के लिए सहयोग की कामना के साथ भूपेश बघेल सरकार सरेंडर है. मगर जिस मिट्टी के बने हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ,उससे यह प्रतीत होता है कि वह छत्तीसगढ़ सरकार की कोई मदद करने के मूड में नहीं है.

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एक था पहलू खान

14 अगस्त, 2019 को अदालत का फैसला आया, जिस में सभी आरोपी बरी हो गए.

मतलब साफ है कि सिस्टम ठीक से पैरवी नहीं करता और अदालतें इंसाफ नहीं करती हैं. यह सिर्फ एक मामला नहीं है, बल्कि देश में खुली आजादी के लाखों फैसले ऐसे आए हैं जिन की बदौलत सिस्टम के प्रति नागरिकों में नफरत पैदा हुई है. देश की व्यवस्था से विश्वास डगमगाया है और अलगाववादी सोच पनपी है.

इस देश का सिस्टम और अदालतें बगावत के बीज बोती हैं. अराजकता की बुनियाद ही देश का सिस्टम है. ऐसे फैसलों के चलते ही देश आतंकवाद का शिकार है.

जोधपुर की सैशन कोर्ट ने काले हिरण के शिकार के मामले में फंसे सलमान खान को ले कर भी इसी तरह का फैसला दिया था और देशभर में अदालत के फैसले को ले कर मजाक का माहौल बना था.

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ये मामले देखने और सुनने में तो सरसरीतौर पर मजाक लगते हैं, मगर इंसाफ की उम्मीदों को अंदर तक नोच डालते हैं. सत्ता, सिस्टम व अदालतों को नागरिकों के खिलाफ खड़ा कर देते हैं.

पहलू खान पर आए फैसले को हिंदूमुसलिम नजरिए से मत देखिए. भारत का एक नागरिक सड़क पर मारा गया. वीडियो के जरीए सब ने देखा भी. काश, पुलिस और अदालत उस वीडियो को देख कर अनजान न बनतीं.

अगर एक नागरिक की मौत पर यही इंसाफ है तो यह मान लेना चाहिए कि आंखों पर पट्टी बांधे हाथ में इंसाफ का तराजू ले कर खड़ी इंसाफ की देवी ही आतंकवाद, नक्सलवाद, अलगाववाद, देशद्रोह और गद्दारी की सरगना है.

हमें यह मानने में बिलकुल गुरेज नहीं करना चाहिए कि पहलू खान की मौत सिर्फ एक इनसान की मौत नहीं, बल्कि इस देश के सिस्टम, सत्ता, सियासत और अदालत को बेमौत मार गई.

‘एक था पहलू खान’ नाम से फिल्में बनेंगी. देश में नए सिरे से चर्चाओं का दौर चलेगा और एक मरा हुआ इनसान इस देश की व्यवस्था को नंगा करेगा, जिस से लोगों का इंसाफ के तराजू से भरोसा उठेगा.

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पहलू खान की हत्या

पहलू खान की हत्या के मामले में अलवर जिला अदालत ने अपना फैसला सुना दिया है. अदालत ने मामले के सभी आरोपियों को बरी कर दिया है.

बता दें कि साल 2017 में इस भीड़ ने गौतस्करी के शक में पहलू खान की पीटपीट कर हत्या कर दी थी. कोर्ट ने इस मामले में सभी आरोपियों को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया है.

1 अप्रैल, 2017 को हरियाणा के मेवात जिले के बाशिंदे पहलू खान जयपुर से 2 गाय खरीद कर अपने घर ले जा रहे थे. शाम के तकरीबन 7 बजे बहरोड़ पुलिया से आगे निकलने पर भीड़ ने उन की पिकअप गाड़ी को रुकवा कर पहलू खान और उस के बेटों के साथ मारपीट की थी. इलाज के दौरान पहलू खान की अस्पताल में मौत हो गई थी.

पहलू खान की हत्या के मामले में 8 आरोपी पकड़े गए थे, जिन में 2 नाबालिग थे. अलवर कोर्ट में 6 आरोपियों पर फैसला सुनाया गया, 2 नाबालिग आरोपियों की सुनवाई जुवैनाइल कोर्ट में हो रही है.

होगी एसआईटी जांच

राजस्थान सरकार ने पहलू खान की पीटपीट कर हत्या किए जाने के मामले की जांच एसआईटी से कराने का फैसला लिया है.

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सरकार ने यह फैसला तब लिया, जब कांग्रेस की महासचिव प्रियंका गांधी ने अलवर की निचली अदालत के फैसले को चौंकाने वाला बताया. कांग्रेस सरकार मामले की जांच फिर से कराने के लिए एसआईटी गठित करेगी.

लिंचिंग संरक्षण विधेयक

राज्य विधानसभा में 30 जुलाई को राजस्थान लिंचिंग संरक्षण विधेयक 2019 और प्रेमी जोड़ों की सुरक्षा के लिए लाया गया विधेयक पास हो गया.

प्रेमी जोड़ों की सुरक्षा के लिए लाए गए विधेयक को ‘राजस्थान सम्मान और परंपरा के नाम पर वैवाहिक संबंधों की स्वतंत्रता में हस्तक्षेप का प्रतिषेध विधेयक 2019’ का नाम दिया गया है. 30 जुलाई को इन दोनों विधेयकों को सदन में पेश किया गया था.

इन दोनों विधेयकों के कानून का रूप लेने के बाद राज्य सरकार जहां एक ओर प्रेमी जोड़ों को सुरक्षा दे सकेगी, वहीं दूसरी ओर लिंचिंग से जुड़े अपराधों की रोकथाम के लिए भी सख्त कदम उठा सकेगी.

क्या है मौब लिंचिंग

नए विधेयक में धर्म, जाति, भाषा, राजनीतिक विचारधारा, समुदाय और जन्मस्थान के नाम पर भीड़ द्वारा की जाने वाली हिंसा को मौब लिंचिंग माना है. इस में 2 या 2 से ज्यादा लोगों को मौब की परिभाषा में शामिल किया गया है.

लिंचिंग की घटना में पीडि़त की मौत हो जाने पर दोषियों को आजीवन कठोर कारावास के साथ 5 लाख रुपए का जुर्माना लगाने का प्रावधान है, वहीं गंभीर रूप से घायल होने पर कुसूरवारों पर 10 साल का कठोर कारावास और 3 लाख रुपए का जुर्माना हो सकता है. मारपीट पर 7 साल के कठोर कारावास व एक लाख रुपए जुर्माने का प्रावधान है.

अगर कोई शख्स इलैक्ट्रौनिक माध्यम से समाज में नफरत बढ़ाने वाले संदेश भेजता है, तो ऐसे मामले में भी 5 साल तक का कारावास भुगतना पड़ेगा और एक लाख रुपए का जुर्माना भी देना होगा.

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इंस्पैक्टर रैंक का अफसर ही लिंचिंग से जुड़े मामलों की जांच करेगा. प्रदेश में आईजी रैंक व जिलों में डीएसपी रैंक का अफसर ही इस की मौनिटरिंग करेगा. तुरंत सुनवाई के लिए हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस की सलाह पर स्पैशल जज नियुक्त कर सकेंगे. सैशन लैवल के जज ही ऐसे मामलों की सुनवाई कर सकेंगे.

इस बिल में प्रावधान किया गया है कि पीडि़त को राजस्थान विक्टिम कंपनसैशन स्कीम के तहत मदद दी जाएगी और दोषियों से जो जुर्माना वसूला जाएगा, उसे पीडि़त को दिया जाएगा.

औनर किलिंग

जाति, समुदाय और परिवार के नाम पर वैवाहिक या प्रेमी जोड़े में से किसी को भी जान से मारने पर आरोपियों को फांसी या आजीवन कारावास की सजा दी जा सकेगी. ऐसे मामले गैरजमानती होंगे.

5 लाख रुपए का जुर्माना भी लगेगा.

वैवाहिक जोड़े पर प्राणघातक हमला करने वालों को 10 साल से ले कर आजीवन कारावास तक की सजा का प्रावधान है. अगर हमला प्राणघातक

नहीं है, तब भी आरोपियों की 3 साल से 5 साल तक की कठोर सजा का प्रावधान है, जो साजिश में शामिल होगा, उस के लिए भी सजा के यही प्रावधान होंगे.

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शादी से रोके जाने पर पीडि़त जोड़े एसडीएम और डीएम के यहां अपील कर सकेंगे. इस में एसडीएम और मजिस्ट्रेट संबंधित लोगों को पाबंद कर सकेंगे. जो भी मामले दर्ज होंगे, उन का ट्रायल सैशन कोर्ट में होगा.

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