छत्तीसगढ़ की राजनीतिक फिजा में आज सिर्फ एक ही मुद्दा है धान खरीदी और किसान का. छत्तीसगढ़ की सत्ता में वापसी के लिए कांग्रेस ने जो मास्टर स्ट्रोक चला था वह अब धीरे-धीरे कांग्रेस और भूपेश सरकार के लिए बढ़ते सर दर्द और ब्लड प्रेशर का हेतु बन रहा है. कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव से पूर्व धान की खरीदी 2500 रूपये क्विंटल खरीदने और कर्जा मुआफी का वादा किया था. किसानों की कृपा से छत्तीसगढ़ में यह कार्ड चल गया और भूपेश बघेल की सरकार बहुत ताकत के साथ बन गई 67 विधायक चुन लिए गए मगर एक वर्ष बाद जब पुन: खरीफ फसल का समय आया है तो भूपेश सरकार के हाथ पांव फूलने लगे हैं और मुख्यमंत्री प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी से रियायते चाहते हैं.

भूपेश बघेल ने मुख्यमंत्री बनते ही जो वादा किया था उसे पूरा करने का ऐलान कर दिया किसानों की जेबें भर गई यही नहीं किसानों को किया गया असीमित कर्जा भी उन्होंने भामाशाह की तरह माफ कर दिया जबकि मध्यप्रदेश में ऐसा नहीं हुआ. छत्तीसगढ़ की आर्थिक स्थिति इन्हीं कारणों से बदतर होती चली गई कर्ज पर कर्ज लेकर भूपेश सरकार एक खतरनाक 'भंवर' मे फंसती दिखाई दे रही है. जिसका अंजाम क्या होगा यह मुख्यमंत्री के रूप में एक कुशल रणनीतिक होने के कारण या तो प्रदेश को उबार ले जाएंगे अथवा छत्तीसगढ़ की आने वाले समय में बड़ी दुर्गति होगी यह बताएगा.

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मोदी सरकार से अपेक्षा !

भूपेश बघेल की सरकार किसानों से धान 2500 रूपये क्विंटल में खरीदने को कटिबद्ध है क्योंकि पीछे हटने का मतलब किसानों का रोष और छवि खराब होने की चिंता है .ऐसे में दो ही रास्ते हैं एक छत्तीसगढ़ सरकार शुचिता बरते, सादगी के साथ सिर्फ किसानों के हित साधती रहे और दूसरे दिगर विकास के कामों में ब्रेक लगा दे या फिर केंद्र के समक्ष हाथ पसारे.

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