समझने ही नहीं देती सियासत हम को सच्चाई, कभी चेहरा नहीं मिलता कभी दर्पन नहीं मिलता...सियासत के ऊपर अज्ञात का शेर मौजूदा महाराष्ट्र की राजनीति पर बिल्कुल सटीक बैठता है. एक पखवाड़ा बीत जाने के बाद भी अब तक महाराष्ट्र की जम्हूरियत को उनका निजाम नहीं मिला. जनता ने अपने मौलिक अधिकार का प्रयोग कर मतदान तो किया लेकिन सरकार का गठन अब तक नहीं हो पाया.

आखिरकार 30 साल की घनिष्ठ दोस्ती महज सीएम पद की लड़ाई कैसे टूट गई. इसके पीछे काफी लंबी सोची समझी रणनीति है. जरा गौर कीजिए 2014 विधानसभा चुनावों में. शिवसेना और बीजेपी दोनों ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था लेकिन बहुमत किसी को नहीं मिला जिसके बाद दोनों ने मिलकर सरकार बनी और देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री बनाया गया है.

2019 लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह, सीएम देवेंद्र फडणवीस उद्धव ठाकरे से मिलने मातोश्री पहुंचे थे. तब तीनों नेताओं ने मिलकर प्रेस कॉन्फ्रेंस कर ऐलान किया था शिवसेना और बीजेपी लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनाव दोनों मिलकर लड़ेंगे और सरकार में 50-50 प्रतिशत की भागीदारी होगी. लेकिन अब रिजल्ट आने के बाद पेंच फंस गया. शिवसेना स्टेट में अपना सीएम बनाना चाहती है. इसी रणनीति के तहत ही पहली बार ठाकरे परिवार को कोई सदस्त जनता की अदालत में उतरा था.

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क्यों महाराष्ट्र में शिवसेना चाह रही है मुख्यमंत्री पद
केंद्र में नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद बीजेपी का देश में ग्राफ बढ़ा है. भारत के उत्तर से लेकर दक्षिण और पूर्वोत्तर से लेकर पश्चिम के कई राज्यों में बीजेपी अपने दम पर सरकार बनाने में सफल रही है. उत्तर प्रदेश के बाद महाराष्ट्र देश का दूसरा सबसे बड़ा राज्य है, जिस पर बीजेपी की नजर है. 2014 से पहले तक महाराष्ट्र में शिवसेना बड़े भाई तो बीजेपी छोटे भाई की भूमिका में थी.

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