एक तीर कई शिकार: भाग 1

दरअसल मैं इस कहानी में कोई नहीं हूं, न ही इस में मौजूद पात्रों से अब मेरा कोई रिश्ता है. कह सकते हैं कि मैं वह हूं जो इन सब के बीच न हो कर भी हो. वजूद सिर्फ दो जोड़ी आंखों का मानिए, जो हमेशा इन पात्रों के इर्दगिर्द मौजूद है.

कहानी के इन मुख्य चरित्रों के सामने दूर की एक बिल्डिंग में मेरा निवास है और सरकारी स्कूल में सामान्य सी टीचर हूं. वैसे सामान्य रह कर भी असामान्य हो जाने के गुर में मैं माहिर हूं. ये आप पर आगे की कडि़यों में जाहिर होगा.

तो चलिए हमारी इन दो आंखों के जरिए आप उन पात्रों के जीवन में प्रवेश करें जिन्होंने अपने स्वार्थ, छोटी सोच और छल की वजह से यह कहानी रची.

दूसरी मंजिल पर स्थित मेरे फ्लैट की खिड़की की सीध में एक 3 मंजिला बिल्डिंग है. इस में कुल 8 फ्लैट हैं. इन में से नीचे वाले पीछे के एक फ्लैट पर हमारी नजर रहेगी और ठीक इस बिल्डिंग के पीछे वाली बिल्डिंग में हमारी अदृश्य आवाजाही होगी.

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8 फ्लैटों के समूह वाली बिल्डिंग का नाम ‘भव्य निलय’ और पीछे वाली दुमंजिली बिल्डिंग का नाम ‘निरंजन कोठी’ है. निरंजन कोठी का मालिक निरंजन बत्रा 52 साल का एक हट्टाकट्टा अधेड़ है, जिस के चलनेफिरने और बात करने का लहजा मात्र 35 साल के व्यक्ति जैसा है.

उस की पहचान में शायद ही कोई ऐसी युवती हो जो उस के शोख लहजों पर फिदा न हो. उस की एक खास विशेषता यह भी है कि वह अपना कारोबार बहुत बदलता है. कभी टूरिज्म ट्रैवल, कभी साइबर कैफे और मोबाइल शौप, कभी स्टेशनरी तो कभी ठेकेदारी, बंदा बड़ा अनप्रेडिक्टेबल है. कहूं तो रहस्यमय भी. वो अकेला जीना और अकेला राज करना चाहता है, लेकिन उसे स्त्रियों की कमी नहीं है. लिहाजा वह उन का उपयोग कर के फेंकने से नहीं कतराता.

निरंजन की फिलहाल एक बीवी है जिस की उम्र 24 साल है. हुआ यह था कि पहली शादी वाली पत्नी के चले जाने के बाद उस ने 9 साल बिना शादी के बिताए और लड़कियों से उस के संबंध जारी रहे. अभी ऐसे ही दिन निकल रहे थे कि वह 21 साल की एक लड़की से ब्याह कर बैठा.

यह लड़की उस के साइबर कैफे में अकसर ही आती थी. निरंजन लड़कियों को शीशे में उतारने की कला में माहिर था. इस लड़की के साइबर कैफे से उस के घर तक पहुंचने में ज्यादा दिन नहीं लगे.

रात भर की रंगीनियों के बाद जब सुबह लड़की की आंखें खुलीं तो उसे दिमाग कुछ ठिकाने पर महसूस हुआ. उसे घर में विधवा मां की याद आई. उस की बेचैनी की सुध हुई और वह घर वापस जाने के लिए तड़प उठी. लेकिन तब तक उस के अनजाने ही उस की जिंदगी पर निरंजन की पकड़ मजबूत हो गई थी.

निरंजन के सख्त रवैए से भयभीत हो लड़की घबरा गई. वह उस की हर शर्त को मानने के प्रस्ताव पर तुरंत राजी हो गई. निरंजन ने उसे उस की कोठी पर आते रहने का फरमान सुनाया. स्थिति कुछ ऐसी थी कि उसे लाचार हो कर मानना पड़ा.

यह सब 6 महीने चला और लड़की गर्भवती हो गई. रायता अब ज्यादा ही फैल चुका था. लड़की ने छिपे हुए बटन कैमरे से खुद निरंजन के साथ के अंतरंग क्षणों का वीडियो बना लिया. फिर वह वीडियो क्लिप निरंजन को भेज कर धमकी दी, ‘सारा बिजनैस ठप हो जाएगा अगर मैं ने यह वीडियो वायरल कर दी तो.

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‘‘मैं तो गरीब घर की लड़की हूं और क्या लुटेगा. बहुत हुआ तो शहर छोड़ दूंगी. लेकिन इस तरह लूट कर मुझे फेंकने नहीं दूंगी. मेरी मां को बेइज्जती से बचाने का एक ही रास्ता है कि तुम मुझे और मेरे होने वाले बच्चे को अपना लो. मुझ से शादी कर लो.’

समाज में निरंजन बड़े धौंस से रहता था. कोठी, गाड़ी, एक साथ कई बिजनैस, उस का डीलडौल सब उस की धौंस की वजह से थे. आखिर ऊंट आ ही गया पहाड़ के नीचे.

इस तरह लड़की नताशा उस की बीवी बन गई.

अभी 4 साल हुए थे उन की शादी को. फिर यूं अचानक निरंजन बत्रा की लाश रात गए उस की कोठी पर मिलना, पुलिस की रेड, नताशा को पुलिस कस्टडी में लिया जाना, जमानत पर सुबह तक उस का घर वापस आ जाना, माजरा आखिर क्या था?

रात से ले कर सुबह तक कोठी में अंदरबाहर लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा था. मीडिया वाले भी थे, पुलिस सब को बाहर ठेल रही थी. नताशा काले ब्लाउज, नेट वाली जौर्जेट की वाइट साड़ी में उन्मुक्त केश आंखों में आंसू हौल के फर्श पर बिखरी सी बैठी थी. इस के बावजूद लोगों के आकर्षण का केंद्र थी.

उस की आंखों में खुद को निर्दोष साबित करने की पीड़ा थी या वियोग की पीड़ा, अभी कुछ नहीं कहा जा सकता था. हां, मेरे होंठों पर जरूर विद्रूप की एक हलकी रेखा फैल गई. मैं ने इसे खुद से छिपाते हुए भी तुरंत वहां से दूर हट जाना ही ठीक समझा.

4-5 दिनों तक निरंजन बत्रा के घर भीड़ लगी रही. मांबाप कोई थे नहीं और संतान अब तक उस ने होने नहीं दी थी. किसी भी तरह उस ने अपने आसपास परिवार पैदा नहीं होने दिया. उसे उस की स्वच्छंदता में खलल नहीं चाहिए थी. नताशा इस वक्त अकेली ही जूझ रही थी.

निरंजन की मौत के बाद चचेरे, ममेरे भाई आसपास मंडराते नजर आए. 4 साल निरंजन के साथ रह कर नताशा इतनी तो चतुर हो ही गई थी कि चील, बाज और गिद्धों को पहचान ले. उस ने बड़ी ही चतुराई से उन्हें नजरअंदाज करते हुए रफादफा किया.

नताशा अब कठघरे में थी. सारा शक उसी पर था. जांच जारी थी. यह बात भी सच थी कि रात के 11 बजे जब कत्ल का खुलासा हुआ, तब तक नताशा और निरंजन घर में अकेले थे और दोनों इस के पहले तक चीखचीख कर लड़ रहे थे, पड़ोसियों ने सुना था.

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पुलिस अपनी ओर से शिनाख्त में व्यस्त थी, लेकिन मैं नताशा से मिलने के लिए उतावली थी. क्या निरंजन जैसे सख्त जान आदमी नताशा जैसी साधारण डीलडौल वाली लड़की से मात खाया होगा.

रात के 10 बज रहे थे जब मैं ने नताशा का दरवाजा खटखटाया. घर में छोटा सा टेलरिंग शौप चलाने वाली विधवा मां की जिस मुरछाई सी बेटी के रूप में नताशा ने इस घर में अपनी उपस्थिति की मुहर लगाई थी, आज वह सिग्नेचर पूरी तरह बदल चुका था.

थकी बोझिल और चिंतित रहने के बावजूद वह अपनी शौर्ट्स और क्रौप टौप में गजब ढा रही थी. वैसे उस के चेहरे पर उलझन की लकीरें साफ थीं, मुझे देख कर अवाक रह गई. शायद इसलिए कि मुझे कभी देखा नहीं था.

मैं ने उस से कहा, ‘‘मैं पर्णा हूं, तुम्हारी मदद कर सकती हूं.’’

‘‘किस सिलसिले में?’’

‘‘मासूम क्यों बनती हो? मुझ से मदद लिए बिना तुम इस भंवर से पार नहीं पा सकती.’’

‘‘आइए, अंदर आइए. आप कौन हैं? कैसे मदद करेंगी मेरी?’’

सीआईडी की तरह पूरे हौल का नजरों से मुआयना करते हुए मैं ने पूछा, ‘‘कहां पड़ी थी लाश और किस हाल में थी?’’

सवाल पूछा तो सही लेकिन मेरा ध्यान कहीं और चला गया था.

कुछ भी तो नहीं बदला था. बस कुछ सामान इधर से उधर हुए थे और कुछ नए जुड़े थे.

नताशा ने जो कुछ कहा, उस का आधा हिस्सा ही कानों तक पहुंचा और बाकी मैं स्वयं ही देख कर समझने की कोशिश कर रही थी. नताशा कुछ उतावली हो रही थी, ‘‘आप किस तरह मदद करेंगी?’’

‘‘निरंजन के बारे में तुम कितना आश्वस्त हो? मैं जानती हूं वह चंचल मति था, नई लड़कियां उस की बहुत बड़ी कमजोरी थीं.’’

‘‘सच मानिए, मैं ने उसे नहीं मारा. मैं उसे मार भी नहीं सकती. खासकर चाकू घोंप कर तो कभी नहीं.’’ बेसहारा नताशा जैसे अंधेरे में ही तिनके को पकड़ने की कोशिश में लगी थी.

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‘‘लेकिन तुम ने पहले उसे शराब में जहर मिला कर पिलाया, तब चाकू से…’’

‘‘मैं ने ऐसा कुछ नहीं किया, उलटा उसी ने…’’

‘‘उसी ने? क्या किया था उस ने?’’

‘‘मैं अभी हफ्ते भर पहले मिसकैरेज से निकली हूं. उस ने मुझ से छिपा कर दवा दे दी थी ताकि मेरा बच्चा खत्म हो जाए.’’

‘‘अच्छा, तो इस बार भी?’’

‘‘मतलब… इस बार भी मतलब?’’ मुझे पढ़ने की नाकाम कोशिश में उस का चेहरा लाल हो गया था, फिर उस ने आगे कुछ समझने का प्रयास करते हुए कहा, ‘‘हां, इस बार भी. शादी कर तो ली थी उस ने, लेकिन बाद में उसे लगा कि मेरे बच्चे के कारण वह जिम्मेदारियों में बंध जाएगा, इसलिए पहली बार भी मुझे मजबूर किया था उस ने.’’

नताशा का ध्यान खुद की तरफ ही था, ‘‘अच्छा ही है.’’ मैं ने बात बढ़ाते हुए कहा, ‘‘तुम्हें कैसे पता कि उस ने दवा खिलाई थी?’’

‘‘उस ने शरबत में घोल कर दवा खिलाई थी. जब तक समझ पाती पी चुकी थी मैं. बेबी नष्ट करने को ले कर वह वैसे भी मुझ से लड़ता रहता था.’’

‘‘कहीं और अफेयर था उस का?’’

अचानक जैसे होश आया हो उसे. एक सहारे के फेर में कहीं उस ने राज तो जाया नहीं कर दिए? शायद उसे निरंजन के लड़ते रहने की बात जाहिर करने का अफसोस था क्योंकि इस से नताशा के कत्ल का अंदेशा पुख्ता होता था.

उस ने हड़बड़ा कर पूछा, ‘‘आप हैं कौन? बताती क्यों नहीं?’’

‘‘मैं जो कोई भी हूं, बस जानो कि तुम से सहानुभूति है और मुझे लगता है कि इस मामले में तुम निर्दोष हो.’’

‘‘दीदी. मैं आप को दीदी कह सकती हूं? बड़ी ही हैं आप मुझ से.’’

‘‘20 साल बड़ी हूं तो कह ही सकती हो. इतना जान लो निरंजन ने अपनी पहली बीवी के बच्चे को भी मारा था.’’

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‘‘क्या कहती हैं आप? आप को कैसे पता?’’

‘‘तुम मेरा परिचय ढूंढने की कोशिश मत करो, बस जानकारी जुटाओ.’’

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एक तीर कई शिकार

चाहत का संग्राम

चाहत का संग्राम : भाग 3

कहावत है कि अविवेक हमेशा अनर्थ की ओर ले जाता है. प्रतीक्षा व संग्राम सिंह की घनिष्ठता और यशवंत सिंह के पीछे उस के घर आनेजाने को ले कर यशवंत सिंह की मां कमला के मन में संदेह के बीज उगने लगे. कमला ने इस की शिकायत बेटे से की.

पहले तो यशवंत सिंह ने इस ओर ध्यान नहीं दिया परंतु जब मोहल्ले के लोग संग्राम और प्रतीक्षा के अवैध रिश्तों की चर्चा करने लगे तो यशवंत सिंह ने इस बाबत प्रतीक्षा से जवाब तलब किया.

लेकिन वह साफ मुकर गई, ‘‘संग्राम से मैं हंसबोल क्या लेती हूं, मोहल्ले वालों ने उसे मेरी बदचलनी समझ लिया. हम से जलने वाले फिजूल की बातें फैला रहे हैं. रही बात मांजी की तो वह सुनीसुनाई बातों पर विश्वास कर लेती हैं.’’

यशवंत सिंह प्रतीक्षा पर जरूरत से ज्यादा विश्वास करता था, सो उस ने बात बढ़ाना उचित नहीं समझा और मान लिया कि प्रतीक्षा बदचलन नहीं है. पर मां की बात और मोहल्ले में फैली अफवाह को वह सिरे से नहीं नकार सकता था. शक के आधार पर उस ने संग्राम सिंह को सख्ती से मना कर दिया कि वह उस की गैरहाजिरी में उस के घर न आया करे.

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प्रेम के पंछी जब मिलने को आतुर हों तो वे जमाने की परवाह नहीं करते. मना करने के बाद भी प्रतीक्षा और संग्राम सिंह चोरीछिपे मिलते रहे. जिस दिन मौका मिलता, प्रतीक्षा फोन कर संग्राम सिंह को बुला लेती थी. लेकिन बेहद सतर्कता के बावजूद एक दिन प्रतीक्षा और संग्राम सिंह रंगेहाथ पकड़े गए.

हुआ यह कि उस दिन यशवंत सिंह खाद की बोरी लेने हुसैनगंज बाजार जाने को कह कर घर से निकला. साइकिल से आधा सफर तय करने के बाद उसे याद आया कि वह किसान बही तो लाया ही नहीं. जिस में खाद की मात्रा और रुपयों की एंट्री होनी थी. इस भूल के चलते वह वापस घर जा पहुंचा.

घर का मुख्य दरवाजा बंद था. कुछ देर दरवाजा पीटने पर प्रतीक्षा ने दरवाजा खोला तो उस के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं. अस्तव्यस्त कपड़े और बिखरे बाल चुगली कर रहे थे कि वह किसी के साथ हमबिस्तर थी.

प्रतीक्षा को धकेल कर यशवंत घर के अंदर पहुंचा तो वहां संग्राम सिंह मौजूद था. वह जल्दीजल्दी कपडे़ पहन रहा था. चारपाई पर तुड़ामुड़ा बिस्तर कुछ देर पहले गुजरे तूफान की चुगली कर रहा था. यह सब देख कर यशवंत सिंह का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया. वह संग्राम सिंह को पकड़ने दौड़ा तो वह भाग गया.

संग्राम सिंह तो भाग गया, पर प्रतीक्षा कहां जाती. यशवंत सिंह बीवी की बेवफाई से इतना आहत हुआ कि उस ने उसे मारमार कर अधमरा कर दिया. कुछ देर बाद जब उस का गुस्सा शांत हुआ तो वह बड़े भाई रवींद्र के घर चला गया.

वहां उस का सामना मां से हुआ तो वह समझ गई कि जरूर कोई बात है. कमला ने उसे कुरेदा तो यशवंत पहले तो टाल गया लेकिन ज्यादा कुरेदने पर उस ने मां को सब कुछ बता दिया. कमला को बहू के चरित्र पर शक तो था, लेकिन बात यहां तक पहुंच गई होगी, उसे उम्मीद नहीं थी.

यशवंत सिंह के बड़े भाई रवींद्र सिंह गांव के प्रतिष्ठित व्यक्ति थे. इज्जत पर आंच आते देख कर वह संग्राम सिंह के मामा फूल सिंह से मिले और उन्हें संग्राम की हरकतों की जानकारी दी. फूल सिंह ने संग्राम की तरफ से माफी मांगते हुए उसे समझाने का भरोसा दिया. इस के बाद फूल सिंह ने संग्राम सिंह को फटकारा और समझाया. संग्राम सिंह ने मामा से वादा किया कि आइंदा वह प्रतीक्षा से नहीं मिलेगा.

लेकिन मामा से किया वादा संग्राम सिंह ज्यादा दिन निभा नहीं पाया. एक शाम जब वह प्रतीक्षा के घर के सामने से गुजर रहा था तो प्रतीक्षा दरवाजे पर दिख गई.

उस ने जब मुसकरा कर इशारे से उसे बुलाया तो संग्राम अपने कदमों को रोक नहीं पाया.

उस समय प्रतीक्षा घर में अकेली थी. पति खेत पर था और बच्चे ननिहाल में. प्रतीक्षा ने यार को उलाहना दिया, ‘‘तुम तो मुझे बिलकुल ही भुला बैठे. अपना सिम भी बदल दिया. मैं ने कितनी बार बात करने की कोशिश की, लेकिन नंबर नहीं लगा. क्या यही था तुम्हारा प्यार?’’

‘‘ऐसा न कहो भाभी, भला मैं तुम्हें कैसे भूल सकता हूं. अगर निष्ठुर जमाना बीच में न आया होता तो मैं हमेशा के लिए तुम्हें अपनी बना लेता. रही बात सिम बदलने की तो मैं खुद परेशान हूं. मामा ने मेरा फोन तोड़ दिया था. अब मैं ने दूसरा फोन खरीद लिया है.’’

बातोंबातों में संग्राम और प्रतीक्षा मानव तन की कंदराओं तक पहुंच गए. बदकिस्मती से तभी यशवंत सिंह घर आ गया. उसे घर के अंदर किसी पुरुष के हंसने की आवाज सुनाई दी. गुस्से में दरवाजा धकेल कर वह अंदर घुस गया.

कमरे में संग्राम सिंह को देख कर वह उस पर टूट पड़ा. प्रतीक्षा ने रोकने की कोशिश की तो उस ने संग्राम को छोड़ कर प्रतीक्षा को पीटना शुरू कर दिया. मौका पाते ही संग्राम भाग निकला. उस रोज यशवंत सिंह ने प्रतीक्षा की इतनी पिटाई की कि उस के बदन पर स्याह निशान उभर आए. उस का चलनाफिरना भी दूभर हो गया.

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रोजरोज की टोकाटाकी और पति की बेरहम पिटाई से प्रतीक्षा यशवंत सिंह से नफरत करने लगी. उस ने घर का कामकाज भी छोड़ दिया. पतिपत्नी के बीच बढ़ते तनाव को कम करने के लिए कमला ने बहूबेटे को समझाया, लेकिन वह दोनों के बीच का तनाव कम करने में नाकाम रही.

जब कई दिनों तक प्रतीक्षा घर से बाहर नहीं निकली तो एक रोज दोपहर के वक्त संग्राम सिंह प्रतीक्षा से मिलने उस के घर पहुंच गया.

उसे देखते ही प्रतीक्षा उस पर बरस पड़ी, ‘‘अब क्यों आए हो यहां? उस दिन मुझे पिटता देख नामर्दों की तरह भाग गए. क्या यही था तुम्हारा प्यार?’’

‘‘भाभी, मैं क्या करता, तुम्हीं बताओ?’’

‘‘जो तुम्हारी चाहत को पीट रहा था, उस का टेंटुआ दबा देते.’’ प्रतीक्षा सिसक पड़ी, ‘‘जानते हो उस कमीने ने मेरे जिस्म पर कितने निशान बना दिए हैं. ये देखो.’’ कहते हुए प्रतीक्षा ने अपनी पीठ और जांघ उघाड़ दी. शरीर पर पिटाई के लाललाल निशान साफ दिख रहे थे.

प्रतीक्षा संग्राम से लिपट गई, ‘‘संग्राम, मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकती. तुम्हारी खातिर मुझे बहुत कुछ सुनना भी पड़ता है और पिटना भी पड़ता है. वह तुम्हें ठिकाने लगाने की सोच रहा है. इस से पहले कि दुश्मन वार करे, तुम उस पर वार कर दो. दिखा दो कि तुम असली मर्द हो.’’

प्रतीक्षा के आंसुओं ने संग्राम सिंह का दिल दहला दिया. उस ने आव देखा न ताव, प्रतीक्षा से वादा कर दिया कि वह उस की मांग से सिंदूर मिटा कर रहेगा. संग्राम के इस वादे से प्रतीक्षा उस के सीने से लग गई.

इस के बाद उसी रोज दोनों ने एक खतरनाक योजना बना ली. योजना के तहत संग्राम सिंह हुसैनगंज गया और बाजार से कीटनाशक पाउडर (जहरीला पदार्थ) खरीद लाया और प्रतीक्षा को थमा दिया.

21 मार्च, 2020 की रात 8 बजे प्रतीक्षा ने खाना बनाया. यशवंत सिंह खाना खाने बैठा तो प्रतीक्षा ने उस की दाल में जहरीला पाउडर मिला दिया. खाना खाने के कुछ देर बाद यशवंत सिंह मूर्छित हो कर चारपाई पर पसर गया. उस के बाद प्रतीक्षा ने फोन कर संग्राम सिंह को घर बुला लिया. योजना के तहत वह अपने साथ तेज धार वाली कुल्हाड़ी लाया था.

प्रतीक्षा और संग्राम सिंह उस कमरे में पहुंचे, जहां यशवंत सिंह बेसुध पड़ा था. संग्राम सिंह ने एक नजर यशवंत पर डाली और फिर उस की गरदन पर कुल्हाड़ी का भरपूर प्रहार कर दिया. पहले ही वार से उस की आधी गरदन कट गई. खून की धार बह निकली और वह छटपटाने लगा.

उसी समय प्रतीक्षा ने उस के पैर दबोच लिए और संग्राम ने उस के शरीर पर कुल्हाड़ी से वार कर उसे मौत के घाट उतार दिया. हत्या करने के बाद वह मय कुल्हाड़ी वहां से फरार हो गया. अपना सुहाग मिटाने के बाद प्रतीक्षा ने रात 10 बजे शोर मचाया तो उस के जेठजेठानी, सास और पड़ोसी आ गए.

प्रतीक्षा ने सब को बताया कि बदमाश घर में घुस आए और उन्होंने उस के पति यशवंत सिंह की हत्या कर दी. उस के बाद प्रतीक्षा ने अपने मोबाइल से डायल 112 को सूचना दी.

सूचना पाते ही पुलिस आ गई. चूंकि मामला हत्या का था तो डायल 112 पुलिस ने सूचना थाना हुसैनगंज पुलिस को दे दी.

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थानाप्रभारी राकेश कुमार सिंह पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर आ गए. उन्होंने शव को कब्जे में ले कर जांचपड़ताल शुरू की तो अवैध रिश्तों में हुई हत्या का परदाफाश हुआ और कातिल पकड़े गए.

23 मार्च, 2020 को थाना हुसैनगंज पुलिस ने अभियुक्ता प्रतीक्षा सिंह और अभियुक्त संग्राम सिंह को फतेहपुर कोर्ट में पेश किया, जहां से दोनों को जिला जेल भेज दिया गया.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

चाहत का संग्राम : भाग 2

शादी के बाद प्रतीक्षा यशवंत सिंह की दुलहन बन कर ससुराल आ गई. आते ही उस ने घर संभाल लिया. यशवंत सिंह जहां सुंदर पत्नी पा कर खुश था, वहीं उस के मांबाप इस बात से खुश थे कि बेटे का घर बस गया. प्रतीक्षा और यशवंत सिंह का दांपत्य जीवन हंसीखुशी से बीतने लगा. बीतते समय के साथ प्रतीक्षा 2 बेटों अजस और तेजस की मां बन गई.

प्रतीक्षा बचपन से ही चंचल स्वभाव की थी. विवाह के बाद उस के स्वभाव में कामुकता भी शामिल हो गई थी. जब तक यशवंत सिंह में जोश रहा, वह प्रतीक्षा की कामनाओं को दुलारता रहा. लेकिन जब बढ़ती उम्र के साथ जिम्मेदारियां भी बढ़ती गईं तो उस के जोश में भी कमी आ गई. जबकि प्रतीक्षा की कामुकता बेलगाम होने लगी थी.

अब यशवंत सिंह की भोगविलास में कोई खास रुचि नहीं रह गई थी. लिहाजा प्रतीक्षा ने भी हालात से समझौता कर लिया. बच्चों को संभालना, उन की देखभाल करना और घरगृहस्थी के कामों में जुटे रहना उस की दिनचर्या में शामिल हो गए.

पिछले कुछ समय से प्रतीक्षा महसूस कर रही थी कि उसे किसी चीज की कमी नहीं है, उस का जीवन भी ठीक से बीत रहा है. लेकिन अंदर से वह उत्साहहीन हो गई है. मन में न कोई उमंग है न कोई तरंग. मस्ती नाम की चीज तो उस के जीवन में मानो बची ही नहीं थी.

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दूसरी ओर प्रतीक्षा जब मायके जाती और अपनी सहेली माया को देखती तो सोचती कि माया भी 2 बच्चों की मां है. घर के सारे काम भी उसे ही करने पड़ते हैं. फिर भी हर वक्त उस के होंठों पर मुसकान सजी रहती है. बढ़ती उम्र के साथ माया की खूबसूरती घटने के बजाए बढ़ती जा रही थी.

प्रतीक्षा ने एकाध बार माया से दिनोंदिन निखरती उस की खूबसूरती, सेहत और जवानी के बारे में पूछा भी, लेकिन वह हंस कर टाल जाती. लेकिन अगली बार जब वह मायके गई और माया से मिली तो उस ने अपनी चुस्तीफुरती का राज बता दिया.

बातचीत के दौरान माया ने बताया कि जिस औरत की जिस्म की भूख शांत नहीं होती, वह कांतिहीन हो जाती है. शायद तुम्हारी भी यही समस्या है. तुम्हारा पति तुम्हारा साथ नहीं देता क्या? मेरा पति भी तुम्हारे जैसा था, पर मैं उस के सहारे नहीं रही. मैं ने खुद ही अपना इंतजाम कर लिया, जिस से आज मैं बेहद खुश हूं.

माया प्रतीक्षा के गाल पर चिकोटी काटते हुए बोली, ‘‘प्रतीक्षा, मेरी सलाह है कि जिंदगी को अगर मस्ती से भरना है तो खुद ही कुछ करना होगा.

तुम्हारी ससुराल में मोहल्ले पड़ोस में कोई न कोई तो ऐसा होगा, जिस की नजर तुम पर, मेरा मतलब तुम्हारी कोमल काया पर हो. उसे देखो, परखो और उसी से दिल के तार जोड़ लो. तुम भी मस्त हो जाओगी.’’

माया की सलाह प्रतीक्षा को मन भाई. मायके से ससुराल लौट कर माया की बातें उस के दिलोदिमाग को मथती रहीं. रात को सोने के लिए प्रतीक्षा बिस्तर पर लेटती उस की आंखों में नींद उतरती थी. वह सोचने लगी, माया ठीक कहती है सेहत, जवानी और खूबसूरती का फार्मूला उसे भी अपने जीवन में अपनाना चाहिए, अन्यथा समय से पहले ही बूढ़ी हो जाएगी.

जीवन में उमंग भरने के लिए प्रतीक्षा का मन पतन की ओर अग्रसर हुआ तो उसे माया की यह बात भी याद आई कि मोहल्ले पड़ोस में कोई तो होगा, जो तुम पर दिल रखता होगा. प्रतीक्षा का मन इसी दिशा में सोचने लगा. इस के बाद उसे पहला व आखिरी नाम याद आया, वह संग्राम सिंह का था.

संग्राम सिंह मूलरूप से फतेहपुर जिले के थाना मलवां में आने वाले गांव नसीरपुर बेलवारा का रहने वाला था. बचपन से ही वह चांदपुर में अपने मामा के घर रहता था. मामा की कोई संतान नहीं थी.

संग्राम सिंह 25-26 साल का गबरू जवान था, उस की शादी नहीं हुई थी. उस का घर प्रतीक्षा के घर से कुछ ही दूरी पर था. संग्राम सिंह किसान तो था ही, ट्यूबवेल का मैकेनिक भी था.

जब कभी यशवंत सिंह का ट्यूबवेल खराब हो जाता था तब ठीक करने के लिए उसे ही बुलाया जाता था. मोहल्ले के नाते संग्राम सिंह यशवंत सिंह को भैया और प्रतीक्षा को भाभी कहता था.

संग्राम सिंह का प्रतीक्षा के घर आनाजाना था. वह आता तो था यशवंत सिंह से मिलने, लेकिन उस की नजरें प्रतीक्षा के इर्दगिर्द ही घूमती रहती थीं. चायपानी देने के दौरान प्रतीक्षा की नजर संग्राम सिंह से टकराती तो वह मुसकरा देता था.

इस के अलावा वह प्रतीक्षा के घर के आसपास चक्कर भी लगाया करता था. प्रतीक्षा से आमनासामना होता तो वह कहता, ‘‘भाभी, कोई काम हो तो मुझे बताना.’’ पुरुष की नीयत को औरत बहुत जल्दी पढ़ लेती है. प्रतीक्षा ने भी संग्राम सिंह की आंखों में अजीब सी प्यास देखी थी. उस ने उस की हरकतों पर गौर किया तो उसे लगा कि संग्राम मन ही मन उसे चाहता है. संग्राम सिंह की अनकही चाहत से प्रतीक्षा को अजीब से सुख की अनुभूति हुई.

उसे लगा कि संग्राम कुंवारा है, मिल जाए तो उस के जीवन में बहार ला सकता है. अपने जीवन में बहार लाने के लिए प्रतीक्षा ने संग्राम को अपने प्रेम जाल में फंसाने का फैसला कर लिया.

संग्राम सिंह अकसर दोपहर के समय प्रतीक्षा के घर वाली गली का चक्कर लगाता था. दूसरे दिन प्रतीक्षा घर का कामकाज निपटा कर दरवाजे पर जा कर खड़ी हो गई. थोड़ी देर में संग्राम आता दिखाई दिया.

प्रतीक्षा को देख कर संग्राम के होंठ हिले तो प्रतीक्षा के दिल की धड़कनें तेज हो गईं. संग्राम पास आया तो उस ने रोज की तरह पूछा, ‘‘भाभी, कोई काम तो नहीं है?’’

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‘‘है न,’’ प्रतीक्षा मुसकराई, ‘‘भीतर आओ तो बताऊं.’’

संग्राम प्रतीक्षा के पीछेपीछे भीतर आ कर चारपाई पर बैठ गया. प्रतीक्षा ने उस की आंखों में देखते हुए सवाल किया, ‘‘संग्राम, तुम मुझे देख कर मुसकराते रहते हो, क्यों?’’

संग्राम सिंह सकपका गया, मानो चोरी पकड़ी गई हो. खुद को संभालने की कोशिश करते हुए वह बोला, ‘‘नहीं भाभी, ऐसा तो कुछ नहीं है. आप को भ्रम हुआ होगा.’’

प्रतीक्षा चेहरे पर मुसकान बिखेरते हुए बोली, ‘‘प्यार करते हो और झूठ भी बोलते हो. अगर तुम यों ही झूठ बोलते रहे तो प्यार का सफर कैसे पूरा करोगे?’’

संग्राम की आंखें आश्चर्य से फैल गईं, ‘‘भाभी, क्या तुम भी मुझ से प्यार करती हो?’’

प्रतीक्षा मुसकराई, ‘‘करती तो नहीं थी, पर अचानक ही प्यार हो गया.’’

‘‘ओह भाभी, आप कितनी अच्छी हो.’’ संग्राम ने चारपाई से उठ कर प्रतीक्षा को गले से लगा लिया.

संग्राम सिंह इतनी जल्दी मुट्ठी में आ जाएगा, प्रतीक्षा ने कल्पना तक नहीं की थी. वह जान गई कि संग्राम के मन में नारी तन की चाह है. प्रतीक्षा संग्राम से जिस्म की भूख मिटाना चाहती थी. उस से जिंदगी भर नाता जोड़े रखने का उस का कोई इरादा नहीं था.

मन की मुराद पूरी होते देख प्रतीक्षा मन ही मन खुश हुई. लेकिन उसे अपने से अलग करते हुए बोली, ‘‘संग्राम, यह क्या गजब कर रहे हो, दरवाजा खुला है. कोई आ गया तो मैं बदनाम हो जाऊंगी. छोड़ो मुझे.’’

‘‘छोड़ दूंगा भाभी, लेकिन पहले वादा करो कि मेरी मुराद पूरी करोगी.’’

‘‘रात को आ जाना, खेतों पर सिंचाई का काम चल रहा है. तुम्हारे भैया रात को ट्यूबवेल पर होंगे. अभी छोड़ो.’’

खुले दरवाजे से सचमुच कोई कभी भी आ सकता था. फिर प्रतीक्षा उसे रात को आने का निमंत्रण दे ही रही थी, इसलिए संग्राम ने उसे छोड़ दिया और मुसकराते हुए चला गया.

रात 10 बजे यशवंत सिंह सिंचाई के लिए खेतों पर चला गया. उस के जाने के बाद संग्राम सिंह आ गया. प्रतीक्षा उस का ही इंतजार कर रही थी. यशवंत सिंह था नहीं और बच्चे सो चुके थे. इसलिए प्रतीक्षा निश्चिंत थी. दरवाजे पर दस्तक सुनते ही उस ने दबे पांव उठ कर दरवाजा खोल दिया. संग्राम अंदर आ गया तो वह उसे दूसरे कमरे में ले गई.

देह मिलन के लिए दोनों ही बेताब थे. कमरे में पहुंचते ही दोनों एकदूसरे से लिपट गए. संग्राम सिंह ने प्रतीक्षा के नाजुक अंगों से छेड़छाड़ शुरू की तो प्रतीक्षा की प्यासी देह कामनाओं की आंच से तप कर पिघलने लगी. उस के उत्साहवर्धन ने खेल को और भी रोमांचक बना दिया. बरसों बाद प्रतीक्षा का तनमन जम कर भीगा था. उस ने तय कर लिया कि अब संग्राम का दामन कभी नहीं छोड़ेगी.

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उस रात के बाद संग्राम और प्रतीक्षा एकदूसरे के पूरक बन गए. पहले तो प्रतीक्षा संग्राम को रात में ही बुलाती थी, लेकिन फिर वह दिन में भी आने लगा. जिस दिन यशवंत सिंह को बाजार से सामान लेने जाना होता, उस दिन प्रतीक्षा फोन कर संग्राम को घर बुला लेती. मिलन कर संग्राम चला जाता. बाजार से वह प्रतीक्षा का सामान भी ले आता था.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

चाहत का संग्राम : भाग 1

21 मार्च, 2020 की रात. 11 बजे उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले के थाना हुसैनगंज को सूचना मिली कि चांदपुर गांव में एक युवक की हत्या कर दी गई है. सूचना मिलते ही थानाप्रभारी राकेश कुमार सिंह ने वारदात की जानकारी पुलिस अधिकारियों को दी और पुलिस टीम के साथ चांदपुर पहुंच गए.

पता चला किसानी करने वाले बाबू सिंह के बेटे यशवंत सिंह की हत्या हुई है. जब पुलिस पहुंची तब बाबू सिंह के घर के बाहर भीड़ जमा थी.

राकेश कुमार भीड़ को हटा कर उस जगह पहुंचे, जहां यशवंत सिंह की लाश पड़ी थी. घर के अंदर मृतक की पत्नी प्रतीक्षा सिंह मौजूद थी और किचन में बरतन साफ कर रही थी. पुलिस को देख कर वह रोनेपीटने लगी.

थानाप्रभारी राकेश कुमार सिंह ने घटनास्थल का निरीक्षण किया तो दहल उठे. यशवंत सिंह की हत्या बड़ी बेरहमी से की गई थी. उस के गले को किसी धारदार हथियार से काटा गया था. शरीर के अन्य हिस्सों पर भी घाव थे. मृतक के मुंह से झाग भी निकला था, जिस से लग रहा था कि हत्या से पहले उसे कोई जहरीला पदार्थ दिया गया होगा. मृतक की उम्र 40 साल के आसपास थी और वह शरीर से हृष्टपुष्ट था.

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राकेश कुमार सिंह अभी घटनास्थल का निरीक्षण कर ही रहे थे कि सूचना पा कर एसपी प्रशांत वर्मा, एएसपी राजेश कुमार तथा सीओ (सिटी) कपिलदेव मिश्रा भी आ गए.

पुलिस अधिकारियों ने मौके पर फोरैंसिक टीम को बुलवा लिया और खुद घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया. फोरैंसिक टीम भी साक्ष्य जुटाने में लग गई.

घटना के समय मृतक की पत्नी प्रतीक्षा सिंह घर में मौजूद थी. एसपी प्रशांत वर्मा ने उस से पूछताछ की. प्रतीक्षा ने बताया कि रात 9 बजे के आसपास 2 बदमाश लूटपाट के इरादे से घर में दाखिल हुए. एक बदमाश के हाथ में कुल्हाड़ी थी, दोनों मुंह ढके थे. पति ने लूटपाट का विरोध किया तो बदमाशों ने कुल्हाड़ी से वार कर पति को मौत के घाट उतार दिया.

हत्या करने के बाद दोनों भाग गए. उन के भाग जाने के बाद उस ने शोर मचाया तो घर के बाहर भीड़ जुट गई. इस के बाद उस ने मोबाइल से 112 नंबर पर फोन कर के पुलिस को सूचना दे दी थी.

घटनास्थल पर मृतक यशवंत सिंह का बड़ा भाई रवींद्र सिंह मौजूद था. पुलिस अधिकारियों ने उस से घटना के संबंध में जानकारी चाही तो वह फूटफूट कर रोते हुए बोला, ‘‘सर, मेरा छोटा भाई यशवंत सीधासादा किसान था. करीब 5 साल पहले उस ने प्रतीक्षा से शादी की थी.

‘‘प्रतीक्षा चरित्रहीन औरत है. उस के नाजायज संबंध संग्राम सिंह से हैं. संग्राम सिंह नसीरपुर बेलवारा गांव का रहने वाला है, लेकिन यहां चांदपुर में उस का ननिहाल है, इसलिए वह इसी गांव में रहता है और खेती करता है. यशवंत सिंह प्रतीक्षा और संग्राम सिंह के नाजायज रिश्तों का विरोध करता था. शक है, प्रतीक्षा सिंह ने अपने प्रेमी संग्राम के साथ मिल कर यशवंत की हत्या कराई है.’’

बेटे के शव के पास मां कमला गुमसुम बैठी थीं. पुलिस अधिकारियों ने जब उसे कुरेदा तो दर्द आंसुओं के रूप में बह निकला, ‘‘साहब, बहू बदचलन है. मेरे बेटे को खा गई. यशवंत ने कई बार प्रतीक्षा की बदचलनी की शिकायत की थी, तब मैं ने उसे समझाया भी था. लेकिन वह नहीं मानी.’’

इन जानकारियों के बाद प्रतीक्षा सिंह संदेह के दायरे में आ गई. यशवंत सिंह की हत्या लूट के लिए नहीं हुई थी. क्योंकि घर का सारा सामान व्यवस्थित था. बक्सों के ताले भी नहीं टूटे थे. अगर हत्या लूट के इरादे से होती तो घर का सारा सामान बिखरा मिला होता, बक्सों के ताले टूटे पड़े होते, नकदी जेवर गायब होते.

पुलिस अधिकारी समझ गए कि हत्या अवैध संबंधों के चलते हुई है. अत: उन्होंने संग्राम सिंह को पकड़ने के लिए उस के घर छापा मारा, लेकिन वह घर पर नहीं मिला.

उस की सुरागसी के लिए पुलिस अधिकारियों ने अपने मुखबिर लगा दिए. आला कत्ल (कुल्हाड़ी) बरामद करने के लिए सीओ कपिलदेव मिश्रा ने प्रतीक्षा सिंह के घर की तलाशी कराई.

तलाशी के दौरान पुलिस को रबड़ के दस्ताने मिले, जिन पर खून लगा था. ये दस्ताने वैसे ही थे, जिन्हें पहन कर डाक्टर औपरेशन करते हैं. उन्हें पुलिस ने सबूत के तौर पर सुरक्षित रख लिया.

सबूत हाथ लगते ही पुलिस अधिकारियों ने प्रतीक्षा सिंह को हिरासत में ले लिया. उस का मोबाइल फोन भी पुलिस ने ले लिया. इस के बाद यशवंत की लाश पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल फतेहपुर भिजवा दी गई.

प्रतीक्षा सिंह को पुलिस कस्टडी में थाना हुसैनगंज लाया गया. एसपी प्रशांत वर्मा ने उस के मोबाइल फोन को खंगाला तो उस में प्रतीक्षा और संग्राम सिंह के कई अश्लील फोटो मिले. फोन में संग्राम सिंह का मोबाइल नंबर भी सेव था. उस ने घटना के पहले संग्राम सिंह से बात भी की थी. इन सबूतों से स्पष्ट हो गया कि संग्राम सिंह से प्रतीक्षा सिंह के नाजायज संबंध थे. दोनों ने मिल कर यशवंत की हत्या की थी.

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एसपी ने प्रतीक्षा सिंह से यशवंत सिंह की हत्या के संबंध में पूछा तो वह साफ मुकर गई. लेकिन जब सख्ती की गई तो वह टूट गई और पति की हत्या कर जुर्म कबूल कर लिया. इस के बाद पुलिस ने प्रतीक्षा के माध्यम से संग्राम सिंह को गिरफ्तार करने के लिए जाल बिछाया.

प्रतीक्षा सिंह के मोबाइल में संग्राम सिंह का नंबर सेव था. प्रशांत वर्मा ने प्रतीक्षा की बात संग्राम सिंह से कराई, जिस से पता चला कि वह चांदपुर गांव के बाहर पंडितजी के ट्यूबवेल की कोठरी में छिपा है और सवेरा होते ही कहीं सुरक्षित जगह पर चला जाएगा.

यह पता चलते ही एसपी प्रशांत वर्मा के आदेश पर थानाप्रभारी राकेश कुमार सिंह ने सुबह 4 बजे छापा मारा और संग्राम सिंह को चांदपुर गांव के बाहर पंडितजी की ट्यूबवेल की कोठरी से मय आलाकत्ल गिरफ्तार कर लिया और उसे ले कर थाने लौट आए.

थाने पर एसपी प्रशांत वर्मा ने संग्राम सिंह से यशवंत सिंह की हत्या के संबंध में पूछा तो उस ने सहज ही हत्या का जुर्म कबूल कर लिया.

संग्राम सिंह ने बताया कि यशवंत सिंह की पत्नी प्रतीक्षा के साथ उस के नाजायज संबंध थे. उस का पति इस रिश्ते का विरोध करता था. प्रतीक्षा के उकसाने पर उस ने यशवंत सिंह की हत्या की थी.

चूंकि प्रतीक्षा सिंह और उस के प्रेमी संग्राम सिंह ने हत्या का जुर्म कबूल कर लिया था और आलाकत्ल कुल्हाड़ी भी बरामद हो गई थी. अत: थानाप्रभारी राकेश कुमार सिंह ने मृतक के भाई रवींद्र सिंह को वादी बना कर भादंसं की धारा 302, 120बी के तहत प्रतीक्षा सिंह और संग्राम सिंह के विरुद्ध मुकदमा दर्ज कर दोनों को गिरफ्तार कर लिया. पुलिस पूछताछ में वासना में अंधी एक ऐसी औरत की कहानी सामने आई, जिस ने खुद अपने हाथों से अपना सुहाग मिटा दिया.

फतेहपुर शहर के थाना सदर कोतवाली के क्षेत्र में एक मोहल्ला है हरिहरगंज. चंद्रभान सिंह इसी मोहल्ले में अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी सोमवती के अलावा 2 बेटियां थीं प्रतीक्षा, अंजू और एक बेटा रूपेश. चंद्रभान सिंह बिजली विभाग में काम करता था. उस के मासिक वेतन से परिवार का भरणपोषण होता था. वह सीधासादा मेहनतकश इंसान था. चंद्रभान की बड़ी बेटी प्रतीक्षा 20 साल की हो चुकी थी. वैसे तो प्रतीक्षा के चाहने वाले कई थे, पर जिस पर उस की नजर थी वह पड़ोस में रहने वाला युवक था.

एक रोज जब पड़ोसी युवक ने प्रतीक्षा से प्यार का इजहार किया तो प्रतीक्षा ने उस की चाहत स्वीकार कर ली. फलस्वरूप प्रतीक्षा और वह युवक प्यार की कश्ती में सवार हो गए. चंद्रभान को जब बेटी की करतूत पता चली तो उस ने उस के बहकते कदमों को रोकने के लिए उस की शादी कर देने का फैसला कर लिया.

चंद्रभान सिंह ने प्रतीक्षा के लिए घरवर की तलाश शुरू कर दी. उस की तलाश यशवंत सिंह पर जा कर खत्म हुई. यशवंत सिंह के पिता बाबू सिंह फतेहपुर जिले के हुसैनगंज थानाक्षेत्र के गांव चांदपुर के रहने वाले थे.

बाबू सिंह के परिवार में पत्नी कमला के अलावा 2 बेटे रवींद्र सिंह और यशवंत सिंह थे. उन के दोनों बेटों की शादियां हो चुकी थीं और दोनों भाई अलगअलग मकान में रहते थे.

दोनों के बीच जमीनजायदाद का बंटवारा भी हो चुका था. लेकिन शादी के 3 साल बाद यशवंत सिंह की पत्नी का निधन हो गया था. बाबू सिंह किसी तरह बेटे का घर बसाना चाहते थे. चंद्रभान जब अपनी बेटी का रिश्ता ले कर आए तो उन्होंने खुशीखुशी रिश्ता स्वीकार कर लिया.

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एक तो यशवंत सिंह दुहेजवा था, दूसरे वह प्रतीक्षा से 8 साल बड़ा भी था, लेकिन शरीर से गठीला और दिखने में स्मार्ट था. चंद्रभान ने यशवंत सिंह को अपनी बेटी प्रतीक्षा के लिए पसंद कर लिया. रिश्ता तय होने के बाद सन 2015 के जनवरी माह की 5 तारीख को प्रतीक्षा का विवाह यशवंत सिंह के साथ हो गया.

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अंजाम: भाग 4

तीसरा भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें- अंजाम: भाग 3

पहले तो उन्होंने उस से शादी तोड़ लेने का विचार किया. पर तुरंत अपने विचार को दरकिनार कर उसे एक मौका देने का फैसला कर लिया. वह वाकई पत्नी को बहुत प्यार करते थे.

उन्होंने सुचित्रा से स्वामीजी के बाबत पूछा तो वह फफकफफक कर रोने लगी. उन्होंने उसे आश्वस्त किया तो बोली, ‘‘आप को सब कुछ बताना चाह रही थी, पर हिम्मत नहीं जुटा पाई. अब आप को सब कुछ पता चल ही गया है तो मैं अपनी गलती स्वीकार करती हूं. प्लीज मुझे माफ कर दीजिए.’’

फिर उस ने सब कुछ सचसच बता दिया.

दरअसल, सुचित्रा कंपनी का चेयरमैन बनना चाहती थी, पर वह बन नहीं सकी. उस से 2 साल जूनियर नमिता भट्टाचार्य चेयरमैन बन गई. वह किसी की सिफारिश पर बनी थी.

इस से वह दुखी थी और जौब से त्यागपत्र देने का मन बना लिया था.

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त्यागपत्र देती उस से पहले नमिता भट्टाचार्य ने उस से कहा, ‘‘जानती हूं, तुम चेयरमैन नहीं बन सकी इसलिए दुखी हो. तुम त्यागपत्र मत दो. मुझ पर भरोसा रखो. जल्दी ही तुम्हें वाइस चेयरमैन बनवा दूंगी.’’

‘‘वह कैसे?’’

‘‘तुम्हारे जूनियर रहते हुए भी जिस ने मुझे अपने पावर से चेयरमैन बनवाया है, वही तुम्हें वाइस चेयरमैन बनवा देंगे. 3-4 महीने बाद वाइस चेयरमैन का पद खाली होने वाला है.’’

‘‘कौन है वह?’’ सुचित्रा ने पूछा.

‘‘2 दिन बाद उन के पास ले चलूंगी. सब कुछ जान जाओगी.’’

वाइस चेयरमैन का पद सुचित्रा को खराब नहीं लगा. 2 दिन बाद नमिता भट्टाचार्य उसे एक आश्रम में ले गई. स्वामीजी से पहली बार उस का परिचय हुआ. वहीं पर उसे पता चला कि वह सर्वशक्तिमान हैं. कुछ भी कर सकते हैं.

स्वामीजी 40-45 साल के थे. बड़े ही हैंडसम और स्मार्ट. वाकपटुता में दक्ष थे. सुचित्रा उन से बहुत प्रभावित हुई.

स्वामीजी ने उसे कहा, ‘‘3 महीने बाद मैं तुम्हें हर हाल में वाइस चेयरमैन बना दूंगा. पर याद रखना किसी को कभी भी बताना मत कि तुम्हें किस ने वाइस चेयरमैन बनवाया है. दूसरी बात यह कि इस के लिए तुम्हें 3 महीने तक रोज आश्रम में आ कर साधना करनी होगी. पर घर वालों को इस के बारे में कुछ पता नहीं चलना चाहिए.’’

सुचित्रा उन की बात मान गई. अगले दिन औफिस से छुट्टी होते ही आश्रम जा कर साधना करने लगी. इस के लिए उसे घर में तरहतरह के बहाने बनाने पड़ते थे.

2 महीने में ही वह स्वामीजी से घुलमिल गई. स्वामी उसे अच्छा और सच्चा इंसान लगा. लेकिन उन की सच्चाई जल्दी ही सामने आ गई.

हुआ यह कि एक दिन स्वामीजी ने चरणामृत के नाम पर उसे कुछ ऐसी चीज पिलाई कि अचेत हो गई.

एक घंटे बाद होश आया तो अपने आप को स्वामीजी के बिस्तर पर पाया.

वह चिंता में पड़ गई. सोचने लगी कि स्वामीजी ने कहीं उस की इज्जत तो नहीं लूट ली?

तभी स्वामीजी बोले, ‘‘तुम चिंता मत करो. तुम्हारी इज्जत सलामत है. हालांकि चाहता तो आराम से सब कुछ कर सकता था. लेकिन जो आनंद स्वेच्छा में है, वह जबरदस्ती या धोखे में नहीं.

‘‘यह सच है कि मैं तुम्हें पाना चाहता हूं लेकिन तुम्हें राजी कर के, जबरदस्ती नहीं. मैं तुम्हारा काम करूंगा तो क्या तुम मुझे खुश नहीं कर सकतीं? बेहतर यही है कि तुम मुझे खुश कर दो. वैसे भी ताली दोनों हाथों से बजती है.’’

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वह हर हाल में वाइस चेयरमैन बनना चाहती थी, अत: पतिव्रता धर्म को दरकिनार कर यह सोच कर अपने आप को स्वामीजी के हवाले कर दिया कि सिर्फ एक दिन की बात है.

पति से बेवफाई करते समय उसे बहुत बुरा लगा था. लेकिन स्वामीजी से अथाह सुख पा कर बेवफाई की भावना को मन से निकाल फेंका.

वैसा सुख उसे पति से कभी नहीं मिला था. इसलिए चाह कर भी स्वामीजी से नफरत नहीं कर सकी. उन के द्वारा दिए गए जिस्मानी सुख को दिल से लगा बैठी.

इसी कारण 2 दिन बाद स्वामीजी ने उसे फिर से बांहों में भरा तो सुचित्रा ने कोई विरोध नहीं किया. फिर तो सिलसिला बन गया.

स्वामीजी खिलाड़ी थे, औरतों के रसिया. उन्हें ऐसी मुद्राएं आती थीं, जिन्हें समझ पाना और अमल में लाना आम आदमी के वश की बात नहीं थी. उन की इस कला से औरतें खुश रहती थीं.

स्वामीजी से तरहतरह का सुख पा कर सुचित्रा आत्मविभोर हो उठती थी. इसी वजह से पति से विमुख हो कर उस ने पूरा ध्यान स्वामीजी पर केंद्रित कर दिया था.

वाइस चेयरमैन बनने के बाद स्वामीजी की सलाह पर वह प्रतिदिन औफिस से छूटते ही आश्रम में जा कर उन के साथ मौजमस्ती करने लगी थी.

स्वामीजी से उस का भ्रम तब टूटा जब उन के साथ इटली में 10 दिनों तक भरपूर आनंद लेने के बाद कोलकाता आई.

बातोंबातों में उस ने स्वामीजी से कहा, ‘‘आप मेरी जिंदगी में नहीं आते तो कुएं का मेंढक ही बनी रहती. पता ही नहीं चलता कि समुद्र क्या होता है. उस की लहरें क्या होती हैं. लहरों से कितना सुख मिलता है. मैं आप को कभी नहीं भूल सकती. जरूरत पड़ी तो आप पर अपनी जान भी न्यौछावर कर दूंगी.’’

  ठीक मौका देख कर स्वामीजी ने कहा, ‘‘ऐसी बात है तो यह बताओ, अगर मैं कुछ मांगू तो दोगी?’’

‘‘क्यों नहीं दूंगी? मांग कर देखिए.’’

‘‘तुम्हारा फार्महाउस चाहिए. उस पर एक नया आश्रम बनाना चाहता हूं.’’

अब स्वामीजी की चाल उस की समझ में आ गई. इस में कोई शक नहीं था कि उसे उन से अथाह सुख मिला था. आगे भी मिलने रहने की संभावना थी. परंतु इस के लिए बच्चों का अधिकार किसी और को देना उसे मुनासिब नहीं लगा. नतीजतन उस ने स्वामीजी को फार्महाउस देने से मना कर दिया.

स्वामीजी ने उसे बहुत समझाया पर वह नहीं मानी. तब उन्होंने अपने मोबाइल में ऐसा फोटो दिखाया कि उस के होश उड़ गए.

उस ने अब तक पति के अलावा सिर्फ स्वामीजी से संबंध बनाया था, जबकि फोटो में उसे अलगअलग 4 अजनबियों से 4 लोकेशन में संबंध बनाते हुए दिखाया गया था.

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उसे समझते देर नहीं लगी कि स्वामीजी ने यह सब उस का फार्महाउस लेने के लिए षडयंत्र के तहत किया था. वह उन के षडयंत्र में बुरी तरह फंस गई थी.

वह बहुत रोईगिड़गिड़ाई. लेकिन स्वामीजी पर कोई असर नहीं हुआ. अंतत: उस ने सोचने के लिए कुछ दिन का समय ले लिया.

4 दिन बीत गए, लेकिन उसे स्वामीजी के चक्रव्यूह से निकलने का कोई रास्ता दिखाई नहीं दिया तो उस ने सब कुछ पति को बता देने का निश्चय किया.

पति पर उसे भरोसा था कि माफ कर देंगे और स्वामीजी के चंगुल से निकलने का कोई रास्ता भी निकाल लेंगे.

सुचित्रा से सच जानने के बाद उन्होंने भी अपनी और रूना की बात बता कर माफी मांगी.

एकदूसरे को माफ करने के बाद दोनों ने मिल कर स्वामीजी और रूना को जेल भेजने की योजना बनाई.

सुचित्रा की सहेली का पति पुलिस में उच्च अधिकारी था. उन्हें सच्चाई बता कर मदद की गुहार की तो पुलिस की तरफ से भरपूर मदद मिल गई.

सादे लिबास में कुछ पुलिस वालों को रूना के घर के बाहर तैनात कर दिया गया. उन्हें बता दिया गया था कि घर के अंदर क्या होने वाला है और उन्हें अंदर कब आना है.

स्वामीजी और रूना को पुलिस गिरफ्तार कर ले गई तो पतिपत्नी दोनों अपनी योजना की सफलता पर खुश हो कर एकदूसरे से लिपट गए.

अपनों को छोड़ कर दूसरों में सुख ढूंढने के अंजाम से दोनों वाकिफ हो गए थे.

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अंजाम: भाग 3

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अगले दिन वह रूना के घर गए तो उस का रूप देख कर दंग रह गए. पहले तो उस ने 30 करोड़ रुपए मांगे. उन के गिड़गिड़ाने पर 25 करोड़ पर रुक गई, जबकि वह उसे 5 लाख से अधिक नहीं देना चाहते थे.

दोनों में बहुत देर तक गरमागरम बहस हुई. कोई समझौता नहीं हुआ तो रूना बोली, ‘‘आज एक सच बताती हूं. वह यह कि मैं किसी कंपनी में जौब नहीं करती. एक आश्रम के लिए काम करती हूं.

‘‘उस आश्रम के मालिक स्वामी सच्चिदानंद हैं. उन के कहने पर ही आप को अपने जाल में फंसा कर फोटो और वीडियो बनाया था. अंतिम फैसला स्वामीजी ही करेंगे.’’

उन्होंने आश्रम में जा कर स्वामीजी से बात की लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. वह 30 करोड़ से कम पर राजी नहीं हुए.

उन्होंने कैश न होने की बात की तो स्वामीजी ने कहा, ‘‘आप के पास कैश है कि नहीं, मैं नहीं जानता. पर इतना जानता हूं कि आप के पास एक पुश्तैनी मकान है जो आज की तारीख में 30-35 करोड़ का है. उसे आश्रम के नाम कर दीजिए. बात खत्म हो जाएगी.’’

वह समझ गए कि रोनेगिड़गिड़ाने से कोई फायदा नहीं होगा. इस के लिए कोई योजना बना कर उन के जाल से निकलना होगा.

सोचनेसमझने के नाम पर उन्होंने स्वामीजी  से 10 दिन का समय मांग लिया और घर आ कर उन्हें कानूनी चंगुल में फंसाने की योजना बनाई.

2 दिन बाद उन्होंने रूना को फोन पर कहा, ‘‘तुम से एक समझौता करना चाहता हूं, जिस में तुम्हें बहुत बड़ा फायदा होगा.’’

रूना ने अपने घर बुला लिया तो उन्होंने उसे समझाते हुए कहा, ‘‘मुझे अपना मकान किसी को देना ही है तो स्वामीजी को क्यों दूं? तुम्हें क्यों न दूं? सुख तो मुझे तुम से मिला है.

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‘‘इस के बदले में तुम्हें मेरे मोबाइल में स्वामीजी के खिलाफ अपना बयान रिकौर्ड करा देना है. तुम्हें कुछ नहीं होगा, स्वामीजी जेल चले जाएंगे.’’

‘‘स्वामीजी को कानून के जाल में फंसाना इतना आसान नहीं है. आप मेरे बयान पर पुलिस की मदद लेंगे तो वह आप की पत्नी को अपना हथियार बना कर आप को सरेंडर करने पर मजबूर कर देंगे.’’

उन्होंने चौंक कर पूछा, ‘‘मैं कुछ समझा नहीं. मेरे और स्वामीजी के बीच मेरी पत्नी कहां से आ गई?’’

‘‘बात यह है कि आप की पत्नी स्वामीजी पर फिदा है. वह साल भर से उन की गुलामी कर रही है. स्वामीजी ने आप की पत्नी की कई तरह की पोर्न फिल्में बना रखी हैं.

‘‘आप समझते हैं कि रात के 9 बजे तक वह औफिस में रहती है इसीलिए रात 10 बजे घर आती है. जबकि सच्चाई यह नहीं है. सच्चाई यह है कि रोज औफिस से शाम 5 बजे फ्री हो जाती है. फिर स्वामीजी के आश्रम जा कर स्वामीजी के साथ मौजमस्ती करती है, फिर घर जाती है.

‘‘10 दिनों के लिए आप की पत्नी कंपनी के काम से इटली नहीं गई थी. वह स्वामीजी के साथ मौजमस्ती करने इटली गई थी.’’

प्रमाणस्वरूप रूना ने अपने मोबाइल में उन की पत्नी और स्वामीजी का अंतरंग क्षणों का वीडियो दिखा कर कहा, ‘‘इसे मैं ने स्वामीजी से छिप कर इसलिए शूट किया था ताकि जरूरत पड़ने पर उन के खिलाफ इस्तेमाल कर सकूं.’’

सुन कर वह सकते में आ गए. जिस पत्नी को वह चरित्रवान समझ रहे थे, वह बदचलन निकली. बहुत देर बाद उन्होंने अपने आप को समझाया.

रूना से रिक्वेस्ट कर के उन्होंने अपने मोबाइल में वीडियो सेंड करवाया और यह कह कर चले गए कि 2-3 दिन में अच्छी योजना के साथ उस से मिलेंगे. उन्होंने उसे यह भी कहा कि वह हर हाल में अपना मकान उसे ही देंगे.

3 दिन बाद जबरदस्त योजना ले कर वह रूना के घर आ भी गए. योजना सुन कर वह खुशी से उछल पड़ी. वाकई जबरदस्त योजना थी.

‘‘मेरी जान भले चली जाए, लेकिन मैं आप की योजना सफल बना कर रहूंगी. मगर आप अपना मकान मेरे नाम कब करेंगे?’’ रूना ने पूछा.

‘‘मैं मकान के पेपर तैयार कर के साथ लाया हूं. योजना सफल होते ही उस पर दस्तखत कर दूंगा. इतना ही नहीं, मैं ने तुम से शादी करने का भी फैसला किया है.’’

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‘‘यह कैसे होगा? आप की पत्नी जो है?’’

‘‘अब मैं उसे अपने साथ नहीं रखना चाहता. वह भी मुझे तलाक देने के लिए राजी है.’’

रूना खुशी के मारे उन से लिपट गई.

रूना को हर तरह से खुश करने के बाद उन्होंने सब से पहले पूरे कमरे में सीसीटीवी कैमरे लगाए. उस के बाद स्वामीजी के खिलाफ रूना का बयान अपने मोबाइल में रिकौर्ड किया.

जरूरी काम कर के स्वामीजी को फोन किया, ‘‘आप के आश्रम के नाम मैं ने मकान के पेपर बनवा लिए हैं. शाम के 6 बजे रूना के घर आ जाइए. पेपर पर आप दोनों के सामने दस्तखत कर दूंगा.’’

स्वामीजी ने उन्हें पेपर ले कर आश्रम आने के लिए कहा. वह आश्रम में जाने के लिए राजी नहीं हुए तो स्वामी साढे़ 6 बजे अपने 2 सहयोगी के साथ रूना के घर आ गया.

आते ही स्वामी ने मकान के पेपर मांगे तो उन्होंने कहा, ‘‘पेपर तो दूंगा ही. पहले आप यह बताइए कि मेरी पत्नी पर आप ने कौन सा जादू कर रखा है कि आप की गुलाम बन गई है. खुशीखुशी अपना सर्वस्व तक सौंप देती है? उस से आप चाहते क्या हैं?’’

‘‘मेरी शिष्या नमिता जिस कंपनी में चेयरमैन है, उसी में आप की पत्नी है. नमिता से ही पता चला कि आप की पत्नी के पास एक फार्महाउस है और आप के पास पुश्तैनी मकान है.

‘‘नमिता को आप की पत्नी के पीछे लगा दिया. वह वाइस चेयरमैन बनना चाहती थी, सो मेरे इशारे पर चलने लगी. बाद में मैं ने रूना को आप के पीछे लगा दिया था.’’

स्वामीजी आगे कुछ कहते, उस से पहले दरवाजे की घंटी बजी. रूना ने दरवाजा खोला तो सुचित्रा थी.

वह कुछ कहती, उससे पहले सुचित्रा यह कहते हुए अंदर आ गई, ‘‘मैं जानती हूं, स्वामीजी और मेरे पति अंदर हैं. मुझे तुम लोगों के बारे में सब कुछ मालूम हो गया है. स्वामीजी से बात कर के चली जाऊंगी.’’

रूना दरवाजा बंद करने लगी तो सुचित्रा ने मना कर दिया. कहा, ‘‘2 मिनट में लौट जाऊंगी. दरवाजा बंद करने की जरूरत नहीं है.’’

सुचित्रा के आ जाने से सभी सकते में थे. रूना भी परेशान हो गई थी. वह कुछ समझ नहीं पा रही थी कि अब उसे क्या करना चाहिए.

सुचित्रा स्वामीजी से बोली, ‘‘आप को एक सच बताने आई हूं.’’

‘‘क्या?’’ स्वामीजी ने पूछा.

‘‘मेरे पति रूना को प्यार करते हैं. मुझे तलाक दे कर उस से शादी करना चाहते हैं. अपना मकान भी उसी को देना चाहते हैं. इसलिए मैं ने भी अपना फार्महाउस आप के आश्रम को दे कर अपनी शेष जिंदगी आप के साथ बिताने का फैसला किया है.’’

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सुचित्रा के चुप होते ही स्वामीजी दहाड़ उठे, ‘‘तुम तो अपनी संपत्ति दोगी ही. तुम्हारे पति को भी देनी होगी. अपनी संपत्ति रूना को देने वाला वह कौन होता है. यदि वह मेरी बात नहीं मानेगा तो मेरे लोग यहीं पर उस का कत्ल कर देंगे.’’

स्वामीजी प्रोफेसर साहब से कुछ कहते, उस से पहले खुले दरवाजे से पुलिस आ गई.  स्वामीजी और उन के दोनों सहयोगियों को गिरफ्तार कर लिया गया. रूना को भी गिरफ्तार कर लिया.

इंसपेक्टर ने स्वामीजी से कहा, ‘‘आप पर बहुत दिनों से पुलिस की नजर थी. सबूत के अभाव में गिरफ्तार नहीं कर पा रहे थे. आज पक्का सबूत मिल गया. कमरे में आप लोगों के बीच जो बातें हुई हैं, वे सब सीसीटीवी कैमरे में कैद हो चुकी हैं.’’

कहानी सौजन्य-मनोहर कहानियां

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अंजाम: भाग 2

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रूना आगे बोली, ‘‘रोजाना पार्क में वाक के लिए जाती थी, उस दिन के बाद आप को छिपछिप कर देखने लगी थी. आप से बात करने का मन होता था पर हिम्मत नहीं होती थी.

‘‘एक दिन पार्क में आप को कोई परिचित मिल गया था. उस के साथ आप की जो बात हुई, उस से पता चला कि आप प्रोफेसर हैं. शादीशुदा तो हैं ही, 2 बड़ेबड़े बच्चों के पिता भी हैं.

‘‘किस कालेज में पढ़ाते हैं और कहां रहते हैं, इस का पता भी चल गया था. इस के बावजूद आप के प्रति मेरा झुकाव कम नहीं हुआ.

‘‘आज इस पार्टी देने वाले की कृपा से आप से बात करने का मौका मिला है.यहां आते ही आप पर मेरी नजर पड़ी थी. मिलूं या न मिलूं, इसी उधेड़बुन में थी कि पत्नी से अपमानित हो कर आप इधर आ गए.

‘‘दुख में आप का साथ देना मुनासिब समझा और आप के पीछे आ गई. मेरी दोस्ती कबूल करें या न करें, पर जीवन भर आप को याद रखूंगी’’

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उन्हें समझते देर नहीं लगी कि रूना उन के शानदार व्यक्तित्व की कायल है.

इसी तरह कालेज लाइफ में भी कई लड़कियां उन पर घायल थीं. कुछ ने शादी का प्रस्ताव भी दिया था. लेकिन उन्होंने किसी का प्रस्ताव स्वीकार नहीं किया था. उस समय कैरियर ही सब कुछ था.

शिक्षा क्षेत्र में जाना चाहते थे, इसीलिए एमए के बाद पीएचडी की. फिर थोड़े से प्रयास के बाद कालेज में नियुक्ति हो गई.

एक वर्ष बाद शादी की सोची तो सुचित्रा  से परिचय हुआ. शादी का प्रस्ताव उसी ने दिया था. वह उन से बहुत प्रभावित थी.

काफी सोचने के बाद सुचित्रा का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया था. कारण यह कि वह अपने मातापिता की एकलौती बेटी थी. उस के पिता शहर के नामी अमीरों में थे. उन का कई तरह का बिजनैस था. उस का बड़ा भाई राजनीति में था, बहुत रुतबे वाला. उस के परिवार के सामने उन की कोई हैसियत नहीं थी.

उन का परिवार सामान्य था. पिता शिक्षक थे. मां हाउसवाइफ थी. कुछ दिन पहले ही कुछ अंतराल पर दोनों का देहांत हुआ था.

संपत्ति के नाम पर पार्कस्ट्रीट पर 6 कट्ठा में बना 4 मंजिला मकान था. दूसरी मंजिल उन के पास थी. बाकी किराए पर दे रखा था. अच्छाखासा किराया आता था. कुछ बैंक बैलेंस भी था.

सुचित्रा सुंदर थी और स्मार्ट भी. सीए के बाद भी उस ने कई डिग्रियां हासिल की थीं. उस के घर वाले भी उन से प्रभावित थे. फलस्वरूप जल्दी ही धूमधाम से दोनों की शादी हो गई.

उन के मना करने पर भी सुचित्रा के पापा ने दोनों के नाम एक आलीशान मकान खरीद दिया तो उन्होंने अपना घर किराए पर दे दिया और सुचित्रा के साथ नए मकान में आ गए.

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सुचित्रा के पिता के पास बाकुड़ा और मिदनापुर में 3 फार्महाउस थे. मिदनापुर वाला फार्महाउस 20 एकड़ का था. उसे उन्होंने सुचित्रा को दे दिया था. जबकि सुचित्रा कोलकाता में ही रह कर जौब करना चाहती थी. इसलिए फार्महाउस में मैनेजर रख दिया गया.

शादी के कुछ महीने बाद सुचित्रा ने जौब करने की बात कही तो उन्होंने इजाजत दे दी. वह होनहार थी ही. जल्दी ही एक बड़ी मल्टीनैशनल कंपनी में उच्च पद पर जौब मिल गया.

एकदूसरे की मोहब्बत से लबरेज जिंदगी समय की धारा के साथ दौड़ती चली गई. उन्हें लगा था कि सुचित्रा जीवन भर अपने प्यार के झूले पर झुलाती रहेगी, पर ऐसा नहीं हुआ. पिछले एक साल से न जाने क्यों वह उन से कतराने लगी थी.

कभी पराई स्त्री से संबंध बनाने के बारे में सोचना पड़ेगा, उन्होंने सोचा तक नहीं था. लेकिन सुचित्रा की अवहेलना से वह ऐसा करने पर मजबूर हो गए थे.

रूना से दोस्ती करने के बाद उस से बराबर मिलते रहे. उस के साथ मौल में 2 बार रोमांटिक मूवी भी देख आए थे. कालेज से छुट्टी ले कर पिकनिक भी मना चुके थे.

एक बार रूना उन्हें घर ले गई थी. बातोंबातों में वह अचानक उन से लिपट गई और बोली, ‘‘यदि आप की पत्नी नहीं होती तो आप से शादी कर लेती. आप को प्यार जो करने लगी हूं.’’

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उन्होंने भी रूना को एकाएक बांहों में कस लिया था. सीमाएं लांघ पाते, उस से पहले ही उन का विवेक लौट आया.

रूना को अपने से अलग कर के उन्होंने कहा, ‘‘दोस्ती की एक सीमा होती है. मैं हमेशा तुम्हें दोस्त बनाए रखना चाहता हूं.’’

फिर रूना के कुछ कहने से पहले ही वहां से चले गए थे.

इस के बावजूद रूना ने उन से मिलना बंद नहीं किया था. वह नियमित मिलती रही थी.

इस तरह 4 महीने में ही रूना ने उन के वजूद को कोहरे की चादर की तरह ढंक लिया था. इसीलिए सुचित्रा से बेवफाई करने का मन हुआ तो उस से ही संबंध बनाने का फैसला किया.

अगले दिन सुचित्रा सुबह 8 बजे एयरपोर्ट चली गई तो उन्होंने रूना को फोन किया. वह चहकती हुई बोली, ‘‘सुबहसुबह कैसे याद किया प्रोफेसर साहब? सब खैरियत है न?’’

‘‘खैरियत नहीं है. अकेला हूं और तनहाई में तुम्हारा साथ चाहता हूं.’’

‘‘मतलब?’’ रूना ने चौंक कर पूछा.

‘‘एक बार मैं ने मना कर दिया था. पर अब मैं तुम्हें पाने के लिए बेचैन हूं. तुम मिलोगी न?’’ उन्होंने बगैर कोई संकोच के अपने मन की बात कह दी.

‘‘आप को इतना प्यार करती हूं कि जान भी दे सकती हूं. शाम को कालेज से छुट्टी होते ही मेरे घर आ जाइए. पलकें बिछा कर आप की प्रतीक्षा करूंगी.’’

वह खुशी से झूम उठे. सारा दिन कैसे बीता, पता ही नहीं चला. रूना से मिलने की कल्पना से पुलकित होते रहे थे.

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छुट्टी हुई तो बिना देर किए उस के घर चले गए. रूना ने उन का भरपूर स्वागत किया.

रात के 11 बजे अपने घर वापस लौट रहे थे तो जैसे हवा में उड़ रहे थे. पहली बार महसूस किया कि कभीकभी अपनों से अधिक परायों से सुख मिलता है. रूना से उन्होंने भरपूर सुख महसूस किया था.

अचानक मोबाइल पर रूना का मैसेज आया, ‘‘आप को मैं अच्छी लगी तो जब जी चाहे, आ सकते हैं. आप मेरे रोमरोम में बस गए हैं. आप को नजरअंदाज कर जी नहीं सकती.’’

रूना का प्यार देख कर मन मयूर नाच उठा. फिर उन्होंने भी मैसेज किया, ‘‘तुम मेरी धड़कन बन चुकी हो. मैं भी अब तुम्हारे बिना नहीं रह सकता.’’

अगले दिन से ही वह प्रतिदिन बेटी से कोई न कोई बहाना बना कर रूना के घर जाने लगे.

कहावत है कि सच्चाई जानते हुए भी आंखें मूंद लेने में दिल को बहुत सुकून मिलता है. उन्होंने भी ऐसा ही किया.

वह अच्छी तरह जानते थे कि जो हो रहा है, वह मृगतृष्णा है, जहां रेत को पानी समझ कर मीलों दौड़ते रहना पड़ता है.

इस के बावजूद शबनम की बूंदों सी बरसती प्यार की तपिश को महसूस करने के लिए उन्होंने शतुरमुर्ग की तरह रेत में अपना मुंह छिपा लिया था.

जिस दिन सुचित्रा इटली से लौट कर आई, उस दिन वह रूना के घर नहीं गए. कुछ दिनों तक उस से न मिलने का फैसला लिया था.

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मुकुल रूना को अपना फैसला फोन पर बताने की सोच ही रहे थे कि उस का ही फोन आ गया, बोली, ‘‘जानती हूं, आप की पत्नी इटली से वापस आ गई है. अब आप नहीं आ पाएंगे. आएंगे भी तो कभीकभी. कोई बात नहीं. आप आएं या न आएं, मैं तो सदैव आप को याद रखूंगी.

‘‘आप भी मुझे हमेशा याद रखेंगे. इस के लिए कुछ उपाय मैं ने किए हैं. फोन पर भेज रही हूं. अच्छे से देख लीजिए और सोचसमझ कर कदम उठाइए.’’

फिर मोबाइल पर रूना के मैसेज पर मैसेज आने लगे. उन्होंने मैसेज खोलना शुरू किया तो दिल की धड़कन बेतरह बढ़ गई. आंखों के आगे अंधेरा छा गया.

मैसेज में कई एक फोटो थे. सारे के सारे रूना और उन के अंतरंग क्षणों के थे. जाहिर था रूना ने कैमरा लगा रखा था या फिर उस के किसी साथी ने छिप कर फोटो खींचे थे.

उन की समझ में आ गया कि सारा कुछ सुनियोजित था. उन के हाथपैर कांपने लगे. घबराहट में भय से रुलाई छूट गई.

ऐसे फोटो देखने के बाद समाज में उन की इज्जत राईरत्ती भी नहीं रहती. पत्नी की नजर में भी सदैव के लिए गिर जाते. वह उन्हें तलाक भी दे सकती थी.

कुछ देर बाद अपने आप को काबू में कर रूना को फोन किया, ‘‘तुम ने ऐसा क्यों किया? तुम तो मुझे प्यार करती थी.’’

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‘‘प्यार तो अब भी करती हूं प्रोफेसर साहब, पर प्यार से पेट थोड़े भरता है. इस के लिए रुपए की जरूरत होती है. मांगने से तो देते नहीं, इसीलिए ऐसा करना पड़ा.

‘‘लेकिन आप डरिए मत. बेफिक्र हो कर मेरे घर आ जाइए. मेरी बात मान लेंगे तो सब कुछ ठीक हो जाएगा.’’

कहानी सौजन्य-मनोहर कहानियां

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