कोरोना : उन्हें मौत का डर नहीं रोक पाया, आप की 2 रोटी क्या खाक रोकेंगी

केंद्र और राज्य सरकारें अपनी पूरी कोशिश में हैं कि लोग घर में रहें, बेवजह बाहर न निकलें. इसी उपाय से कोरोना को हराया जा सकता है. पर दिल्ली में बाहरी लोगों ने जो अपनेअपने राज्यों में जाने की जल्दबाजी दिखाई है उस से पूरा मामला गड़बड़ा सा गया है.

दिल्ली ही क्या पूरे एनसीआर में कुछकुछ ऐसे ही हालात हैं. फरीदाबाद को ही देख लें. वहां से भी बड़ी तादाद में प्रवासी मजदूर अपनेअपने घरों की ओर रुख कर रहे हैं. ऐसा नहीं है कि यहां के प्रशासन ने उन के ठहरने और खानेपीने के इंतजाम नहीं किए हैं, सरकारी स्कूलों में भी हर तरह की व्यवस्था है, पर वे नहीं मान रहे.

इस की सब से बड़ी वजह यह है कि बड़े शहरों में मजदूर तबके की रोजीरोटी के साधन छिन गए हैं. जब अमीर लोग घरों में बैठे हैं और सारे छोटेमोटे काम खुद कर रहे हैं तो गुमटी लगा कर प्रेस करने वाले, घरों में झाड़ूपोंछा लगाने वाले या वालियों की नौकरी चली गई है. इतना ही नहीं, शहरों में सन्नाटा है तो रिक्शा में  कौन बैठेगा, किसी कारखाने के बाहर रेहड़ी पर छोलेकुलचे बेचने वाले की कौन सुध लेगा.

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गरीबों पर मार इतनी ही नहीं पड़ी है. दड़बे जैसे घरों कमरों में 8-10 की तादाद में रहने वाले बाहरी मजदूरों को कौन मकान मालिक मुफ्त में रहने की जगह देगा. बीमारी फैलने का डर है तो उन पर मकान खाली करने का भारी दबाव. इतना ही नहीं, सरकारें बोल तो रही हैं कि कोरोना से लड़ने के सारे इंतजाम कर दिए गए हैं, पर जमीनी हकीकत से सभी वाकिफ हैं.

फरीदाबाद में पुलिस प्रवक्ता सूबे सिंह ने बताया कि 28 मार्च को पुलिस कंट्रोल रूम में शाम के 5 बजे तक 115 लोगों ने फोन कर के बताया कि उन के घर का राशन खत्म हो गया है. पुलिस पेट्रोलिंग कर के लोगों तक खानेपीने का सामान पहुंचा तो रही है, पर वह ऊंट के मुंह में जीरा है. जहांजहां गरीबों के लिए शिविर भी लगाए गए हैं वहां सन्नाटा पसरा है.

फरीदाबाद के तिलपत इलाके के सरकारी स्कूल में, जिसे ऐसा ही शिविर बना दिया गया है, केवल 7 लोग ही मिले. पहले 10-12 लोग आए थे, पर बाद में उन की तादाद घट गई.

ऐसा ही नजारा सराय ख्वाजा में भी देखने को मिला. वहां के सरकारी स्कूल को शिविर बनाया है, पर वहां भी लोग ज्यादा देर तक नहीं ठहर रहे हैं. इस सिलसिले में डीसी यशपाल यादव ने बताया, ‘हमारी तरफ से स्कूल में इंतजाम में कोई कमी नहीं है. मेरे पास रिपोर्ट आई थी कि लोग रुकना ही नहीं चाह रहे हैं. वे अपने घर जाने के लिए बस की डिमांड कर रहे हैं.’

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दरअसल, इस बड़े पलायन की एक और वजह यह भी है कि अब गरीब लोग ऐसा मानने लगे हैं कि उन का अपने गांव लौटना ही एकमात्र हल है. वहां कच्चापक्का ही सही अपना घर है और फसलें कटने वाली हैं तो शायद दो वक्त की रोटी का भी इंतजाम हो जाए,

इसलिए वे मौत से लड़ कर शहर छोड़ रहे हैं और फिर जान है तो जहान है, रोटी तो कहीं भी कमाई जा सकती है.

कोरोना : एक मौत के डर से मरा, दूसरे ने मौत को दी मात

फरीदाबाद में आज 4-5 दिनों के बाद सुबह दरवाजे पर अखबार की ‘धपाक’ हुई तो एक सुकून सा मिला कि अब छपी हुई खबरों से देशदुनिया को जानेंगे, पर जब खबरें पढ़ी तो लगा जैसे किसी क्लिनिक में रखी कोई हैल्थ मैगजीन को पलट रहा हूं. हर पन्ने पर कोरोना महामारी से जुड़ी खबरें.

लेकिन एक छोटी सी खबर के बड़े असर ने सोचने पर मजबूर कर दिया. मामला हरियाणा के बल्लभगढ़ के छांयसा इलाके में गढ़खेड़ा गांव का है जहां 27 मार्च को 40 साल के एक आदमी ने कोरोना के डर से फांसी लगा कर अपनी जिंदगी खत्म कर ली, जबकि उसे या उस के परिवार में तो किसी को यह बीमारी हुई भी नहीं थी.

पद्म सिंह नाम का वह किसान हर रोज कोरोना की खबरें जानसुन कर बहुत ज्यादा परेशान हो गया था. उस के घर वालों ने खूब समझाया भी, पर उस ने यह बचकाना कदम उठा लिया जिस से उस का पूरा परिवार अब सदमे में है.

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सवाल उठता है कि अभी जब कोरोना बीमारी का कोई इलाज नहीं है, कोई पुख्ता दवा नहीं है, तो इस बीमारी से जूझ रहे लोगों की मानसिक हालत कैसी होती होगी? और उन लोगों की सोचिए जो ऐसे लोगों की जान बचाने के लिए दिनरात लगे हुए हैं.

पद्म सिंह मानसिक रूप से कमजोर था और कोरोना से होने वाली संभावित तबाही से बुरी तरह घबरा गया था, पर हमारे देश से हजारों किलोमीटर दूर अमेरिका में इस बीमारी से पीड़ित नैशनल बास्केटबाल एसोसिएशन के 2 नामचीन खिलाड़ी रूडी गोबर्ट और डोनोवन मिचेल ठीक हो गए हैं.

यूटा जैज क्लब के हवाले से बताया गया था कि इन दोनों खिलाड़ियों का कोरोना का टैस्ट पाजिटिव पाया गया था लेकिन अब उन के अंदर कोई लक्षण नहीं है.

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यह रूडी गोबर्ट और डोनोवन मिचेल की खेल भावना का ही असर है कि उन्होंने इस बीमारी का डट कर सामना किया और अपने जीतने के जज्बे को जिंदा रखा.

डौक्टरों की लापरवाही से सैकड़ों को कोरोना का खतरा, 3 डौक्टर, 4 नर्स और 2 सहकर्मी हुए क्वारन्टीन

लेखक- हरीश भंडारी

उत्तराखंड के कोटद्वार बेस अस्पताल मे कोरोना आइसोलेशन वार्ड में भर्ती एक स्थानीय कोरोना पौजिटिव युवक के उपचार के दौरान डौक्टरों की लापरवाही सामने आने से उत्तराखंड स्वास्थ्य विभाग में हडकंप मच है. डॉक्टरों ने बिना पीपीई यानी पर्सनल इक्विपमेंट किट का इस्तेमाल किए ही 7 दिन तक स्पेन से लौटे इस युवक का इलाज किया, जिससे पूरे क्षेत्र में व अस्पताल स्टाफ में कोरोना संक्रमण की दहशत बनी है. एहतियात के तौर पर उसके उपचार में शामिल 3 डॉक्टर, 4 नर्स और 2 सफाईकर्मी को 14 दिन के लिए होम क्वारन्टीन किया गया है.

कोरोना से डरिए नहीं सावधानी बरतें

इस वायरस का फैलाव रोकने के लिए बार बार हाथों को साबुन से धोइए. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार लगभग 20 सेकंड तक हाथों को रगड़ें, तभी फायदा होगा. अकसर लोग केवल हथेलियों को रगड़कर आणि डालकर हाथ साफ कर लेते हैं, जोकि गलत तरीके है. यदि हमें कोरोना वायरस से लड़ना है तो विधिवत तरीके से हाथ धोकर उन्हें सेनेटाइज करना चाहिए.

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हाथों पर काम नहीं कर सेनेटाइज चिकनाईयुक्त

सेनेटाइज से हर तरह के कीटाणु नहीं मरते. बहुत गेंद या चिकनाई लगे हाथों को सेनेटाइजर से कोई लाभ नहीं होता, कीटाणुनाशक दवा या केमिकल लगे हाथों को यह साफ नहीं करता है. हाथों को ठंडे या कुनकुने पानी से गीला करें, हैंडवाश या साबुन दोनों हथेलियों में लगाकर रगड़ें फिर झाग बनाकर हथेलियों को एकदूसरे से रगड़ें और उंगलियों के पोरों को हथेलियों पर रगड़ें. अंगूठे और बीच के हिस्से को दूसरे हाथ से रगड़ें फिर हथेली को दूसरे हाथ की उंगलियों से घुमावदार तरीक़े से रगड़ें. नल खोलकर पानी से हाथों को धो लें. हाथों को साफ तोलिया या एयर ड्राई मशीन से सुखाएं.

हाथ धोना कब कब जरूरी-

  • भोजन पकाने से पहले और पकाने के बाद.
  • खाना खाने से पहले और बाद में
  • किसी घाव या कटी हुई चीज छूने के बाद.
  • शौचालय जाने के बाद.
  • बच्चे का डायपर बदलने और उसे शौच कराने के बाद.‌
  • खांसी, छींक या बहती नाक पोंछने के बाद.
  • किसी जानवर को छूने, खाना खिलाने या उसका मल साफ करने के बाद.
  • किसी भी कूड़े को छूने के बाद जरूर हाथ धोऐं.

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#coronavirus: कोरोना का शिकार सरकार

लेखक- एस. ए. जैदी

सरकार ने लौक डाउन और कर्फ्यू को इलाज मान लिया है जबकि इस से सिर्फ बीमारी को एक हद तक ही रोका जा सकता है. ये  मान लेना चाहिए कि सरकार असल मरीज़ों की पहचान करने में नाकाम रही है. संक्रमित लोगों की पहचान करके उन को सामान्य लोगों से अलग करने के बजाय सही लोगों को भी संक्रमित लोगों के साथ बंद कर दिया गया है. अगर पहला केस मिलते ही लौक डाउन हुआ होता तब शायद कुछ अलग स्थिति की कल्पना की जा सकती थी.

सरकार न सिर्फ समय रहते स्थिति की गंभीरता को भांप पाने में नाकाम रही बल्कि आपदा को उत्सव में बदलने की गुनहगार भी है। कम से कम दो मौके़ ऐसे आए हैं जिन की वजह से कोरोना संक्रमण बुरी तरह फैला है. पहला थाली उत्सव और दूसरा प्रधानमंत्री के संबोधन के बाद लोगों में राशन समेटने के लिए मची मार.

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अब ये प्राकृतिक नहीं बल्कि मानव निर्मित आपदा है. जितनी बेशर्मी से सरकार ने जांच उपलब्ध कराने, मरीजों की पहचान और इलाज मुहैया कराने में अपनी नाकामी छिपाने के लिए लौक डाउन के बाद लोगों पर लाठियों से प्रहार किया है वो मानवीय अपराध है. पहले लोगों को मरने के लिए छोड़ दिया गया, फिर बिना तैयारी के उन का राशन, पानी और आवागमन रोकने का ऐलान किया और अब जान बचाने के लिए घर लौट रहे लोगों का बर्बर दमन मानवीय इतिहास में कहीं और नहीं मिलेगा.

जिन लोगों का नैसर्गिक न्याय में यकीन है वो यक़ीनन सरकार और उस का समर्थन कर रहे लोगों के लिए इस घड़ी में दुआ नहीं कर रहे होंगे. अगर गरीब, कमज़ोर, असहाय की हाय में वाक़ई कोई असर होता होगा तो इतनी अमानवीयता, बर्बरता और दुष्टता के बाद न सिर्फ आपदा कुप्रबंधन के लिए ज़िम्मेदार लोगों का बल्कि जाने अंजाने उन का समर्थन कर रहे मध्यम और कारोबारी वर्ग का भी बेड़ा गर्क होगा.

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क्या आने वाले 29 अप्रैल को दुनिया खत्म हो जाएगी!

व्हाट्सअप, फेसबुक, यूट्यूब जैसे सोशल मीडिया पर आजकल अफवाहों का बाजार गरम है. व्हाट्सअप के एक ग्रुप में विजय नाम के एक शख्स ने पृथ्वी की एक तसवीर शेयर करते हुए लिखा,”दोस्तो, देख लो हमारी धरती को. इस बार महाप्रलय आने वाला है. मुझे एक ज्योतिषी ने बताया है कि कलयुग का दौर अब खत्म होने वाला है और यह पृथ्वी नष्ट होने वाली है क्योंकि आने वाले 29 नवंबर को एक विशालकाय ग्रह पृथ्वी से टकराने वाला है जो आकार में हिमालय पर्वत से भी बड़ा है.

इस के पृथ्वी से टकराते ही महाविनाश होगा और सभी जीवजंतु, पेड़-पौधे का अंत हो जाएगा.

कोरोना के खतरों के बीच क्या है नई मुसीबत

सोशल मीडिया पर इस तरह की खबरों ने लोगों को उस समय और परेशानी में डाल दिया है जब कोरोना वायरस महामारी बन कर लोगों की जिंदगियां छीन रहा है.

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एक यूजर ने लिखा,”सही कहते हो भाई, शायद तभी आजकल बेमौसम बारिश हो रही हैं, ओले पङ रहे हैं.

जाहिर है, अगर ऐसा होता है तो निश्चित ही महाविनाश होगा.

कोरोना के खतरों के बीच यह नई मुसीबत इन दिनों सोशल मीडिया पर लोगों को डरा रहा है. सोशल मीडिया पर धरती के अंत का दावा करने वाली इस तरह की खबरें मानसिक तनाव बढ़ा देती हैं.

यूट्यूब पर ढेरों वीडियो

यू ट्यूब पर ऐसे कई वीडियो इन दिनों चल रहे हैं जिन में यह दावा किया जा रहा है कि आगामी 29 एक लघु या क्षुद्र ग्रह Asteroid पृथ्‍वी से टकराएगा और इस के साथ ही बड़ी तबाही मच सकती है. वायरल हो रहे इन वीडियो में दावा किया जा रहा है कि यह Asteroid आकार में एवरेस्‍ट पर्वत के बराबर है. यह बेहद तेज़ गति से पृथ्‍वी की ओर हर पल बढ़ रहा है.

जानें क्या है सचाई

यह सच है कि 29 अप्रैल के आसपास एक Asteroid पृथ्वी के सौर मंडल से और वह भी बेहद पास से गुजरेगा पर इस का पृथ्वी से टकराने की संभावना न के बराबर है. दुनियाभर के वैज्ञानिकों ने कहा है कि जिस समय यह पृथ्वी से गुजरेगा तब उस की यहां से दूरी लगभग 4 मिलियन किलोमीटर यानी 40 लाख किलोमीटर होगी. इस Asteroid की गति पृथ्वी के पास से गुजरते समय 20 हजार मील प्रति घंटा होगी. अमेरिका की अंतरिक्ष शोध अनुसंधान ऐजेंसी NASA ने इस का नाम 52768 व 1998 ओआर-2 दिया है. यह चपटी आकार की है और इस की खोज साल 1998 में ही हो गई थी और तभी से वैज्ञानिक इस का गहन अध्ययन कर रहे हैं.

यह लघुग्रह 1344 दिनों में सूर्य की परिक्रमा पूरी करता है. यह सच है कि यह बेहद खतरनाक ग्रह है और यदि यह पृथ्वी से टकरा जाता है तो महाविनाश ला सकता है पर इस की संभावना न के बराबर है. इसलिए डरने की जरूरत नहीं है.

क्या कहा है वैज्ञानिकों ने

दरअसल, हमारे सौरमंडल में ऐसे लघुग्रह गुजरते रहते हैं पर पृथ्वी से लाखों किलोमीटर दूर ही.

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भारत के वैज्ञानिकों ने भी इस का पृथ्वी पर टकराने की किसी संभावना से इनकार किया है. भारतीय भौतिकी संस्थान बैंगलुरू के वरिष्ठ प्रोफैसर व वैज्ञानिक आरसी कपूर ने भी कहा है कि यह उपग्रह पृथ्वी से बिलकुल नहीं टकराने वाला है.

वैज्ञानिकों ने इस लघुग्रह का पृथ्वी से टकराने और महाविनाश होने की बात को सिरे से नकार दिया है.

हां 2079 में यह उपग्रह जरूर पृथ्वी के काफी करीब से गुजरेगा बावजूद भी यह टकराएगा नहीं.

इसलिए बेहतर यही है कि कोरी अफवाहों पर कतई ध्यान नहीं दें और सोशल मीडिया पर ऐसी किसी खबर पर भरोसा नहीं करें.

मजदूरों पर बरसा लौकडाउन का कहर

लेखक- हरीश भंडारी

कोरोना वायरस के चलते मंगलवार की रात यानी 21 मार्च से लौक डाउन का सबसे ज्यादा असर मजदूरों पर पड़ा, जहां उन्हें दैनिक मजदूरी से हाथ धोना पीडीए, वहीं उन्हें अपने मौजूदा आवासों को भी छोड़ना पड़ा. यही नहीं उन्हें अपने पैतृक शहरों, कस्बों और गांवों तक सैकड़ों किलोमीटर तक जाने के लिए कोई व्यवस्था सरकार की तरफ से नहीं कि गई, जिसके फलस्वरूप उन्हें पैदल ही भूखे प्यासे यह सफर तय करना पड़ रहा है. यही नहीं वे अपने परिवार और छोटे मोटे समान को कंधों व सिर पर लादकर अपने गंतव्य की तरफ जा रहे हैं. ये बड़े ही भयावह हृदय विदारक दृश्य हैं, जिन्हें देखकर हर किसी का रोमरोम कांप जाता है, लेकिन हमारी केंद्र व राज्य सरकार ने अपने नाककान बंद कर रखे हैं. वे धिरतराष्ट्र की तरह बस अपने कौरवों की चिंता करते हैं, अन्य से उन्हें कुछ लेनादेना नहीं. केंद्र और. राज्य सरकारें दिशा निर्देश देकर अपनी इतिश्री समझ रही हैं.

चारों तरफ अफरा तफरी

इस वायरस की भयावहता से जहां आमजन भयभीत हैं वहीं ये असहाय अपने परिवार, भूख प्यास और बारिश की परवाह न करते हुए येनकेन प्रकारेण अपने घर पहुचना  चाहते हैं. ये लोग राष्ट्रीय राजमार्गों पर सैकड़ों किलोमीटर का सफर पैदल ही तय कर रहे हैं. सरकार की तरफ से इनके लिए कोई व्यवस्था नहीं की गई है. बस सरकार लॉक डाउन का शंखनाद करके इतिश्री समझ रही है. उसे न तो यह दिखाई दे रहा है कि किस तरह ये लोग सेकड़ों किलोमीटर का सफर तय करेंगे. हां, कहीं न कहीं गलती इनकी भी है, इन्हें आ  निवास से बाहर नहीं निकलना चाहिए था, लेकिन कहते हैं न मरता क्या नहीं करता, ये बिना काम के कैसे रहते, क्योंकि दिनभर ये लोग जो कमाते हैं शाम को वही खाते हैं, यानी हैंड टू माउथ वाला हिसाब है.

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अच्छा तो यह होता कि जहां भी ये मजदूर थे उन्हें वहीं रैनबसेरों में रखा जाता, जिससे ये लोग कुछ हद तक निश्चिंत हो जाते और इस भयानक वायरस को भी फैलने से रोका जा सकता था. लेकिन भई ये तो मजदूर हैं , हां अगर किसी राजनेता या उद्योग पति का बेटा होता तो उसे एयर लिफ्ट किया जाता, कैसे भी samdamdndbhed से उन्हें लाया जाता. लेकिन सरकार की ओर से इनके लिए कोई उचित व्यवस्था नहीं कि गई. यह तसवीर पिछले 3-4 दिन से लगभग सभी टीवी चैनल और अखबारों में प्रकाशित किए जा रहे हैं लेकिन सरकार के कानों पर जूं नहीं रेंग रही है. सोशल मीडिया द्वारा जरूर इस पर हायतोबा मचाई गई तो देश के सफेद पोशों की कुंभकर्णी निंद टूटी और सर कुछ हरकत में आई. इनके लिए रैनबसेरों में खानेपीने की व्यवस्था की गई. जैसे दिल्ली सरकार ने कश्मीरी गेट, आनंदविहार, रेलवे स्टेशनों पर फंसे हुए यात्रियों को खानापानी मुहैया कराया.

देश ने ठाना है कोरोना को हराना है

उपरोक्त स्लोगन जहां कोरोना वायरस को मात देने कि  बात करता है, लेकिन देश में तो इसे मात देने वाले पहले ही सैकड़ों किलोमीटर पैदल चल कर ह र गये हैं. इस स्थिति में वे कोरोना को कैसे हराएंगे. कहते हैं न भूखे पेट भजन नहीं भाई. दूसरी बात जो सोशल डिस्टेंस की है वह भी सड़कों पर उमड़े इस रैली जैसे माहौल में कैसे सम्भव होगा.

वहीं कुछ लोग ऐसे भी दिखे जो दिल्ली से बिहार के आरा तक अपनी हाथ ठेलों से ही जाने की कूवत रखते हैं, जबकि यदि ये सही सलामत चले तो इन्हें वहां पहुंचने में लगभग एक सप्ताह लगेगा. क्या इस स्थिति में देश की जनता कोरोना को मात दे पाएगी.

चारों तरफ अफरा तफरी

देश में हर तरफ अफरा तफरी मची है. प्रधानमंत्री की लक्षमण रेखा न पार करने की अपील को बिगड़ैल जनता मुंह चिढ़ा रही है. हर तरफ रेला दिखाई देता है चाहे वह राशन की दुकान हो, सब्जियों की या फिर दवाइयों की. जमकर कर्फ़्यू का उल्लंघन हो रहा है. प्रशासन को इनसे दोदो हाथ करने पड़ रहे हैं. पुलिस को इन्हें काबू करने में नाकों चने चबाने पड़ रहे हैं. कहीं पुलिस इन्हें मुर्गा बना कर लठ बज रही है तो कहीं वह इनके हाथ पिटती भी नजर आ रही है.

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वसूली करने वालों की पौबारह

कोरोना वायरस के भय से जहाँ लोग अपने घर मे दुबके हैं, वहीं कुछ मौके का फायदा उठाने से भी नहीं चूक रहे हैं. भले ही सरकार ने इन वाहनों को सड़क पर चलने की छूट दे रखी है, लेकिन यह मौके का गलत फायदा उठा कर मुनाफा कमाने कीसोच रहे हैं. जैसे दूध के टैंकर और बड़े बड़े कन्टेनर मजदूरों की मजबूरी का फायदा उठा कर उनसे जरा सी दूरी का भी 2 हजार किराया वसूल रहे हैं.

कुलमिलाकर हर तरफ से गरीब ही मारा जा रहा है.सरकार इन बातों पर बारीकी से नजर रखे और इन जालसाजों पर कड़ी कार्रवाई करे अन्यथा इस अफरा तफरी के माहौल को कंट्रोल करना मुश्किल हो जाएगा.

#coronavirus: कोरोना के कहर के बीच बदलते मौसम में रखें सेहत का ख्याल

मार्च से लेकर अप्रैल का पहला हफ्ता मौसम में बदलाव का होता है. इस महीनें में मौसम हल्का सर्द तो हल्का गर्म होता है. इस दौर में दिन में गर्माहट महसूस होती है, और सुबह-शाम हल्की नमी और ठंडक पड़ने लगती है. ऐसे में ज़रा सी लापरवाही आपके बीमार पड़ने का कारण बन सकती हैं. इन दिनों जुकाम, खांसी, बुखार, चेचक, खसरा,डायरिया, पेचिस जैसी स्वास्थ्य समस्याएं आम बात हैं. ऐसे में जब पूरी दुनियाँ कोरोना यानी COVID-19 के प्रकोप से दो-चार हो रही हैं तो और भी जरुरी हो जाता है की हम अपने सेहत को लेकर बेहद सचेत रहें. क्यों की इस मौसम में होनी वाली अधिकतर बीमारियों के लक्षण कोरोना के लक्षण से मिलते हैं. फिर कहीं ऐसा न हो की आप मौसमी बीमारियों के चपेट में आकर नाहक ही कोरोना के शक में अस्पतालों की ख़ाक छानने लगें. इस दशा में अगर हम बदलते मौसम में कुछ चीजों पर ध्यान दें तो मौसम के बदलाव से होने वाली बिमारियों से बच सकतें हैं.

ऐसे पहचानें मौसमी बिमारियों को – कहीं ऐसा न हो की आप को कोई मौसमी बिमारी हो और आप उसे कोरोना समझ बैठें. अगर ऐसा हुआ तो डर की वजह से आप के परिवार के लोग भी आप से किनारा कर सकतें हैं. क्यों की लोगों के सिर पर कोरोना का खौफ इस कदर चढ़ा हुआ है की हल्की सर्दी, खांसी जुकाम भी डराने के लिए काफी है. इस लिए जरुरी हो जाता है की हम कोरोना और मौसमी बीमारियों के लक्षण में अंतर करना जानें. जिससे हम सही देखभाल से मौसमी बिमारियों से निजात भी पा सकें. क्यों की इस संक्रमण के बीच अस्पतालों में जाना भी खतरे से खाली नहीं है और वैसे भी लॉक डाउन में सामान्य परिस्थियों में घर से बाहर नहीं निकला जा सकता है.

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मौसम के बदलाव के दौर में जो बीमारियाँ होती हैं उसका कारण है की इस मौसम में इस मौसम में विभिन्न प्रकार बैक्टीरिया और वायरस जो मौसम के बदलाव के दौर में काफी सक्रिय होतें हैं.और इनके पनपने की आशंका भी काफी होती है. यही बैक्टीरिया और वायरस कई तरह की बीमारियों का कारण बनते हैं. वहीँ दूसरी तरफ मौसम में होने वाला बदलाव हमारे शरीर के इम्यून सिस्टम में भी बदलाव ला रहा होता है. क्यों की शरीर को एक मौसम से दूसरे मौसम के काबिल बनाने की प्रक्रिया से गुजरता है.

यही वह दौरा होता है जब हमारा शरीर और वायरल, बैक्टीरियल और फंगल इम्फेक्शन के चपेट में आने के लिए सबसे मुफीद होता है. इस स्थिति में अगर आप को बदन तोड़ने वाले दर्द के साथ बुखार हो, खांसी, खांसी और  जुकाम हो या शरीर में दाने और खुजलाहट हो. तो यह सभी लक्षण मौसम में बदलाव में होने वाली बिमारियों के हो सकतें हैं. इस मौसम में एलर्जी, निमोनिया और फेफड़े के संक्रमण के बढ़ने की संभावनाएं भी ज्यादा होती हैं. ऐसे में कुछ सावधानियां बरत कर हम मौसमी बीमारियों से बच सकतें हैं.

खानपान की आदतों में लायें बदलाव – लॉक डाउन के चलते ज्यादातर लोग अपने घरों से बाहर नहीं निकल रहें हैं. ऐसे में लोगों के खान-पान में तली भुनी चीजें ज्यादा शामिल हो गई हैं. मौसमी बिमारियों को न्योता देने के लिए इस तरह की खाने-पीने की चीजें ज्यादा नुकसानदायक हो सकतीं है. इस लिए हमें चाहिए की हम अपने डेली रूटीन में खाने की ऐसी वस्तुएं शामिल करें जो बदलते मौसम में शरीर और सेहत के नजरिये से फायदेमंद हो. इस दशा में हम सुबह नाश्ते के पहले बादाम, पिस्ता ग्रीन टी या अदरक, तुलसी और काली मिर्च वाली एक कप गर्म चाय ले सकतें हैं. यह फेफड़े और इम्यून सिस्टम के लिए बहुत फायदेमंद हो सकता है. सर्दी-जुकाम से राहत पाने के लिए सूप का सेवन भी किया जा सकता है. आप सुबह उठकर एक गिलास ताजा पानी पीएं, यह स्किन को ड्राई होने से बचाता है. फिटनेस पर ध्यान दें, रोज जिम जाएं,और रोज आधा घंटे टहलें.

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खानपान में विटामिन-सी व कार्बोहाइड्रेट की मात्रा बढाने की जरूरत होती है यह डिप्रेशन से दूर रखता है और दिमाग को तरोताजा रखता है. हम खाने में टमाटर, सलाद, हरी पत्तेदार सब्जियां, हरी सब्जियां, चावल, गेहूं, सेब और ड्राइफ्रूट्स मात्रा भी बढ़ा कर मौसमी बिमारियों को कंट्रोल कर सकतें हैं. इसके अलावा हमें इस बात पर विशेष ध्यान देनें की जरूरत होती है की हम खाना खाने के एक घंटा पहले और खाना खाने के आधे घंटे बाद ही पानी पिएं कोशिश करें की खाने में खट्टी-मसालेदार, तली हुई चीजों, ठंडी चीजें जैसे आइसक्रीम, कोल्र्ड ड्रिंक से दूरी बना लें.

साफ़-सफाई का रखें विशेष ख्याल- कोरोना महामारी के इस दौर में लोगों में साफ-सफाई की आदतों में इजाफा हुआ फिर भी हमें मौसम के अनुकूल कुछ ज्यादा ही साफ़-सफाई पर ध्यान देनें की जरूरत है. इस दौर में हमें अपने हाथों की साफ़ –सफाई के साथ ही पहनें और ओढ़े जाने वाले कपड़ों की सफाई, घर की सफाई का भी विशेष ध्यान देनें की जरूरत होती है. हमें हाथों की सफाई पर विशेष सतर्कता बरतनें की जरूरत होती है इस लिए को कम से कम 20 सेकंड तक हथेली, उंगली, उंगली के टिप्स, हाथों के पीछे का हिस्सा और नाखून के आसपास के हिस्से को अच्छी तरह से साफ करना चाहिए. इसके अलावा आप सैनिटाइजर का इस्तेमाल कर सकतें हैं. हम कोशिश करें की घर के फर्श को फिनाइल या किसी कीटनाशक से सफाई करें. क्यों की इससे बैक्टीरिया और वायरस के पनपने की शंका कम होती है जिससे यह शरीर में प्रवेश नहीं कर पाते हैं.

बीमार लोगों से बनाएं दूरी- कोरोना महामारी में आपके सामने एक नया शब्द बार-बार आ रहा है उसका नाम है सोसल डिस्टेसिन्ग. इसी को बनाए रखने के लिए सरकार द्वारा लॉक डाउन लगाया गया है. इसका सीधा मतलब है की कई बीमारियों का कारण आपसी संक्रमण भी होता है. क्यों की बीमार लोगों के संपर्क में आने से बैक्टीरिया और वायरस दूसरे व्यक्ति में प्रवेश कर जाते हैं. चूँकि मौसम के बदलाव में होने वाली अधिकाँश बीमारियाँ ही बैक्टीरिया और वायरस के चलते होती हैं. इस लिए किसी बीमार व्यक्ति के संपर्क में आप न आयें इससे बचने के लिए आप भीड़ भाड़ वाले इलाके में न जाएं. अगर कोई व्यक्ति पहले से ही सर्दी-जुकाम या बुखार से पीड़ित है तो उससे हाथ मिलाने या गले मिलने से बचें. आप इस तरह से ऊपर बताये गए टिप्स को अपना कर बदलते मौसम में खुद को बीमारियों बचा कर रख सकतें हैं.

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घट रही है या बढ़ रही है, Lockdown में कंडोम की बिक्री

फरवरी के दूसरे हफ्ते यह खबर तेजी से वायरल हुई थी कि चीन और सिंगापुर में कंडोम की बिक्री बहुत तेजी से बढ़ रही है लेकिन सेक्स के लिए नहीं बल्कि लोग कंडोम का इस्तेमाल बतौर हेंड ग्लब्स ज्यादा कर रहे थे. यह वह वक्त था जब लोग कंडोम को कोरोना वायरस से लड़ने का कारगर तरीका बता रहे थे .  इस आशय की खबरें और फोटो भी तेजी से वायरल हुये  थे कि लिफ्ट के बटन और कार के हेंडल तक को पकड़ने हर कोई कंडोम का दास्ताना पहने था .

19 मार्च के बाद हमारे देश में कंडोम की बिक्री घटी है या बढ़ी है इस पर जबरजस्त विरोधाभास देखने में आ रहा है . कुछ मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो कंडोम की बिक्री बढ़ी है लेकिन हमारे यहाँ इसे हाथ के दास्तानों की तरह कहीं इस्तेमाल नहीं किया जा रहा बल्कि जिस काम के लिए यह बना है उस के लिए ही इस्तेमाल किया जा रहा है . कहा तो यह तक गया कि मास्क और सेनेटाइजर के साथ साथ दवा की दुकानों से सबसे ज्यादा बिकने बाला आइटम कंडोम है और लोग इसके छोटे नहीं बल्कि बड़े पेक खरीद रहे हैं.

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यह एक रोमांटिक अंदाजा भर हो सकता है कि लाक डाउन के चलते पति पत्नी खाली वक्त में इफ़रात से सेक्स करेंगे और किसी भी खतरे से बचने कंडोम स्वाभाविक रूप से इस्तेमाल करेंगे इसलिए वे थोक में कंडोम खरीद रहे हैं . हालांकि इस बात से पूरी तरह इंकार नहीं किया जा सकता लेकिन अगर वाकई कंडोम के लिए मारामारी मची होती और यह भी ब्लेक में या ऊंचे दाम पर बिक रहा होता तो लाक डाउन की दिलचस्प खबरों में इसे निश्चित रूप से शुमार होना चाहिए था .

सच क्या है इसकी पड़ताल के लिए जब भोपाल के कुछ केमिस्टों से बात की गई तो उन्होने निराशा प्रदर्शित करते हुये बताया कि कंडोम की बिक्री में कोई खास इजाफा नहीं हुआ है उल्टे गिरावट आई है . भोपाल के पाश इलाके शाहपुरा के मनीषा मार्केट के एक केमिस्ट अनिल ललवानी का कहना है कि उनकी दुकान से औसतन 8 पेकेट कंडोम के रोज बिकते हैं लेकिन लाक डाउन के बाद बिक्री न के बराबर हो रही है .

ऐसा क्यों इस पर अनिल बताते हैं कि दरअसल में कंडोम के बड़े खरीददार कालेज स्टूडेंट और होस्टलर्स होते हैं जो अपने अपने घरों को चले गए हैं .  ये लोग अक्सर दोपहर में या फिर देर रात कंडोम खरीदते थे अब मौज मस्ती करने बाले इन लोगों के अते पते नहीं है लिहाजा मुश्किल से एक पेकेट रोज बिक पा रहा है और खरीददार लाइसेन्सशुदा यानि शादी शुदा हैं.

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कारोबारी इलाके एमपी नगर के एक केमिस्ट इस बात की पुष्टि करते हुये बताते हैं कि होस्टल्स खाली हो जाने से कंडोम की बिक्री घटी है . गौरतलब है कि भोपाल में लगभग 1 लाख बाहरी स्टूडेंट हैं ये लोग किराए के मकानों में भी रहते हैं . सेक्स संबंध इनके लिए गोल गप्पे खाने जैसी आम और रोजमरराई बात है , अब जब शहर वीरान सा है तो कंडोम शो केस की ही शोभा बढ़ा रहे हैं .

पुराने भोपाल के गांधी मेडिकल कालेज के नजदीक के एक केमिस्ट की माने तो दरअसल में लाक डाउन के चलते देह व्यापार भी लाक हो गया है स्टूडेंट्स के साथ काल गर्ल्स और उनके ग्राहक भी कंडोम के नियमित और अनिवार्य ग्राहक होते हैं जो अब नदारद हैं .  इस केमिस्ट ने दूसरी दिलचस्प बात यह बताई कि आम शादीशुदा भी कंडोम नवरात्रि के चलते नहीं खरीद रहे क्योंकि व्रत उपवास के दिनों में पति पत्नी सहवास नहीं करते हैं . मुमकिन है नवरात्रि के बाद थोड़ी बहुत मांग बढ़े लेकिन वह रूटीनी होगी उल्लेखनीय नहीं .

दरअसल में कंडोम की बिक्री का भी अपना सीजन होता है. दुनिया भर में दिसंबर के आखिर के दिनों और नए साल पर इफ़रात से कंडोम बिकते हैं लिहाजा थोक और फुटकर व्यापारी भारी  भरकम स्टाक इन दिनों रखते हैं लेकिन अब जब देश भर में सन्नाटा है तब कंडोम बिक्री में बढ़ोत्री अति उत्साह में की गई कल्पना ज्यादा लगती है.

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यह ठीक है कि यंग कपल्स फुर्सत में हैं और कंडोम भी खरीद रहे हैं लेकिन ये कंडोम का उतना बड़ा ग्राहक वर्ग नहीं है जो बाजार में हलचल मचा दे. एक अंदाजे के मुताबिक कंडोम के 70 फीसदी ग्राहक प्रेमी प्रेमिकाए और देह व्यापार से जुड़े लोग होते हैं जो लाक डाउन के चलते तितर बितर हो गए हैं हाँ इतना तय है कि लाक डाउन के खत्म होते ही जरूर कंडोम की मांग में जबरजस्त इजाफा होगा.

#Lockdown: लौक डाउन में फेल हो रही “औन लाइन शौपिंग”

लौक डाउन के 21 दिनों में जनता को घर से कम से कम निकलना पड़े इसको इंतजाम करने के लिए सरकारी और गैर सरकारी स्तर पर कई प्रयोग किये जा रहे है. सरकार की सोच है कि यह काम सफल होने से लोग घरों से कम निकलेंगे जिससे करोना वायरस के फैलने का खतरा कम होगा. सड़को पर सामान खरीदने के लिए जुटने वॉले लोगो को निकलने से रोका जा सकता है.

लखनऊ में सरकार ने ईजी डे, बिग बाजार, विशाल मेगा मार्ट, स्मार्ट बनिया, राउंड ओ क्लौक, फैमली बाजार, स्पेंसर, बिग बास्केट, ग्रॉफर, स्वगी, जोमैटो, अमेजन और फिल्पकार्ड को लोगो को औन लाइन समान पहुचने के लिए कहा है. औन लाइन डिलीवरी करने वाली यह सभी दुकानें एक सप्ताह से अधिक का समय सामान डिलीवरी करने में लगा रही है. इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि इनके पास ऐसी बड़ी व्यवस्था नही है जो इतनी बड़ी संख्या में लोगो तक माल पहुचा सके. ऐसे में घर और कालोनियों के खुली दुकानें मनमाने भाव मे समान बेच रही है. सरकार ने मूल्य सूची भी दुकानों पर लगवा दी है इसके बाद भी मुनाफाखोरी कम नही हो रही. सबसे बड़ी परेशानी फल और सब्जियों की आ रही है. गांवों के आसपास लगने वाली बाज़ारो को बंद कर दिया गया है. मंडियों में केवल थोक व्यापारी को ही जाने की अनुमति है. इसके अलावा वहां पुलिस की अपनी अलग मनमानी चल रही है. पुलिस की पिटाई को “सुताई” का नाम प्रचलित हो गया है.

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सरकारी स्तर पर प्रयास :

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने “डोर टू डोर डिलीवरी” के निर्देश दिए.

26 मार्च तक प्रदेश में 18570 मोबाइल वैन प्रदेश में डोर टू डोर डिलीवरी के लिए लागये गए .लखनऊ और कानपुर में बड़ी संख्या में मोबाइल में लगाई गई है. शहरों और गांव में अधिक से अधिक मोबाइल वैन लगाई जा रही है. जिससे वँहा के लोगो को ज्यादा मदद की जा सके.

इसी तरह पशुपालन विभाग के अंतर्गत पता चला है कि 700000 लीटर दूध का वितरण आधा किलो 1 किलो के पैकेट में बांटा गया जा रहा है. लगभग 1100000 दूध के पैकेट बांटे गए हैं जो कि प्रदेश में 8000 गाड़ियों के माध्यम से पहुंचाया जा रहा है और इसे और अधिक बढ़ाकर लगभग 20000 वाहनों से दूध का पैकेट बांटा जाएगा लगभग प्रदेश में 1500000 दूध के पैकेट बांटने की सरकार तैयारी पशुपालन विभाग कर रहा है. सरकारी सूत्रों से मिली जानकारी के हिसाब से सरकार कम से कम 3 माह का प्लान बना कर इस काम को कर रही है. सरकार ने अनाज के पैकेट बना कर लोगो तक पहुचने की व्यवस्था की है.

सरकार भले ही कह रही हो कि उसने लोगो तक सामान पहुचने की व्यवस्था कर ली हो पर सच्चाई यह है कि लोगो को अपनी जरूरत का सामान नही मिल रहा है. लखनऊ के गोमतीनगर जैसे पॉश इलाके में सरकार की “डोर टू डोर डिलिवरी” वाली गाड़िया नही पहुच पा रही है. यहां रहने वाली जूही सिंह कहती है ”सरकारी गाड़िया 3 दिन से एक बार भी यँहा नही आई हैं. प्रशासन ने जिन ऑन लाइन कम्पनियों के नम्बर जनता को बातए उनमें फोन करने पर जायदातर फोन रिसीव नही हो रहे या फिर कम्पनियों एक सप्ताह से 10 दिन का समय सामान पहुचने के बात रही है.”

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जिला प्रशासन का कहना है कि डोर टू डोर डिलीवरी वाली गाड़िया बराबर जा रही है. उनकी  संख्या और बढ़ाने का काम हो रहा. ऑन लाइन कम्पनियां भी तेजी से इस काम मे लगी है. इसके अलावा पुलिस भी इस काम मे मदद कर रही है.

#coronavirus: कोरोना महामारी में भी हंसी की फुलझड़ियां

बेशक चीन की देन कोरोना वायरस का नाम सुनते ही शरीर में झुरझुरी सी दौड़ जाती है. फिलहाल हालात बेकाबू से लगते हैं और जिस तरह लोग इस महामारी के खतरनाक असर को समझ नहीं पा रहे हैं, उस से तो आने वाले दिनों में कैसे हालात बनेंगे, उस की कल्पना भी नहीं की जा सकती है.

अब जबकि पूरा भारत लाकडाउन का दंश झेल रहा है, तो घर पर उस के साथी परिवार वाले तो हैं ही, पत्रिकाएं और पुस्तकें भी उसे सही राह दिखा रही हैं, फिर वे लोगों के घर में रखी हों या डिजिटल एडिशन ही सही.

सोशल मीडिया के जरिए सब हर तरह की जानकारी पा रहे हैं. इन में सच भी होता है तो अफवाहें भी. सरकार की तारीफ होती है तो उस की खिंचाई भी. लोगों की जान बचाते डाक्टरों के वायरल होते वीडियो होते हैं तो कहींकहीं पुलिस की ज्यादती या दूसरे लोगों की कालाबाजारी के चर्चे भी उघाड़ दिए जाते हैं.

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इन सब के बीच कुछ ऐसा मनोरंजन भी हो रहा है जो कोरोना की महामारी के डर के बावजूद घर बैठे लोगों के चेहरे पर मुसकान ले आता है. बहुत बार तो खिलखिलाहट भी. ऐसे ही चंद चुटकुले हैं जो सोशल मीडिया पर चकरघिन्नी की तरह घूम रहे हैं. इन में से कुछ खास इस तरह हैं :

कोरोना महामारी न फैले इसलिए एक बार एक आदमी वर्किंग फ्राम होम कर रहा था. उस का क्लाइंट किसी बात पर नाराज हो कर बोला, ‘मैं आप के काम से खुश नहीं हूं. आप अपने बौस से मेरी बात कराइए.’

इतना सुनते ही वह आदमी जोर से चिल्लाया, ‘अजी सुनती हो, ये जनाब तुम से बात करना चाहते हैं.’

इसी तरह घर पर बैठे 2 दोस्त फोन पर अपना दुखड़ा रो रहे थे. पहला दोस्त बोला, ‘मैं इस समय  स्टेज 3 में हूं. पहली स्टेज में बरतन मांजे, दूसरी स्टेज में खाना बनाया, तीसरी स्टेज में कपड़े धो रहा हूं. और तुम?’

दूसरा दोस्त ने सीना तान कर कहा, ‘मैं ने बेलन से मार खा ली मगर काम नही किया… भाई, कोरोना तो थोड़े दिन में चला जाएगा, मगर पत्नी को पता चल गया कि इस को यह सब आता है तो जिंदगीभर करना पड़ेगा.’

एक भाई ने तो अपनी भड़ास कुछ इस तरह निकाली, ‘इसी तरह लाकडाउन बढ़ता रहा और 24 घंटे मियांबीवी को साथ रहना पड़ा, तो वैज्ञानिकों से पहले कोई पति ही कोरोना वायरस का टीका बना देगा.’

कर्फ्यू लगने के बावजूद एक बंदा बाहर सड़क पर टहल रहा था कि पुलिस ने उस से पूछा, ‘कहां जा रहे हो मुंह उठाए…पता नही कर्फ्यू लगा है…’

उस आदमी ने दर्द को पीते हुए कहा, ‘जनाब, दर्द दूर करने की मलहम लेने जा रहा हूं, कर्फ्यू का पता तो पिछले चौक में ही लग गया…’

इसी तरह एक आदमी डाक्टर के पास गया और बोला, ‘डाक्टर साहब, मुझे बैठने मे काफी तकलीफ हो रही है.’

डाक्टर ने छूटते ही पूछा, ‘कर्फ्यू देखने गए थे क्या?’

उस आदमी ने हैरान हो कर पूछा, ‘आप ने कैसे पहचाना?’

‘क्योंकि आजकल ऐसे लोग ज्यादा दवा लेने आ रहे हैं,’ डाक्टर ने चुटकी ली.

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घर में बैठेबैठे पक चुके एक आदमी ने अपने दोस्त पर भड़ास निकाली, ‘बिलकुल रेलवे के डब्बे में बैठने जैसी फीलिंग आ रही है … सिर्फ टायलेट के लिए उठ कर जाना है और फिर वापस आ कर अपनी जगह पर बैठ जाना है.’

एक आदमी ने तो हद ही कर डाली और बोला, ‘वह दिन दूर नहीं जब लोग कहेंगे कि यह छोटा वाला तो कोरोना के चक्कर में पैदा हो गया.’

एक आदमी ने तो चेतावनी दे डाली, ‘अगर बीवी से लड़ाई भी हो जाए तो भी घर से बाहर नहीं निकले.. इज्जत ही सबकुछ नहीं होती, जान है तो जहान है…’

एक भाई ने तो ज्ञान की गंगा ही बहा दी, ‘नोटबंदी की अपार सफलता के बाद पेश है ‘घरबंदी’ और वह भी अपनी ही बंदी के साथ…’

एक कवि टाइप शादीशुदा मर्द ने घर से ही एक चेतावनी दे डाली, ‘हवा की लहर बन कर, तू मेरी खिड़की न खटखटा. मैं बंद कमरे में बैठा हूं… तूफान से सटा…’

दरअसल, यहां वह आदमी अपनी गर्लफ्रैंड को बता रहा है कि मिसकाल मत देना, बीवी पास ही बैठी है.

लाकडाउन के इस समय में समय का सदुपयोग करें. खुद को साफसुथरा रखें, टाइमपास के लिए अच्छी पत्रिकाएं पढ़ें, जागरूक बनें और मौका मिलते ही चेहरे पर मुसकान ले आएं.

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