सोमवती के होंठ सूख गए हैं, पैरों में छाले पङ गए हैं. दोनों बच्चे पारो और फेकन को 2 दिनों से खाना नहीं मिला है. उन के पैरों में भी छाले पङ गए हैं और भूख से छटपटा रहे हैं.

सोमवती कहती है,”इस से तो अच्छा है यह बीमारी हमें मार ही डाले. बच्चों को तड़पता देख कुछ समझ नहीं आ रहा क्या करें.”

पति राजभर की भी यही हालत है. जेब में 100-200 बचे हैं और उसे अपने परिवार के साथ बक्सर से राजस्थान लगभग 1,600 किलोमीटर तक पैदल ही चलना है.

राजस्थान का यह परिवार बिहार के बक्सर में एक आइसक्रीम फैक्ट्री में काम करता था. राजभर और सोमवती दोनों ही इस फैक्ट्री में पिछले 3 सालों से काम करते हैं और यहीं से मिले रोजाना पैसों से वे अपने परिवार का पेट पालते हैं.

1600 किलोमीटर पैदल चलने को मजबूर

कोरोना बीमारी से पूरे देश में लौक डाऊन होने की वजह से फैक्ट्री बंद हो गई तो उन्होंने और लोगों के साथ राजस्थान अपने गांव जाने की सोची.  कम पढेलिखे होने की वजह से उन्हें यह पता ही नहीं था कि न तो ट्रेन चल रही है न ही बस. रोड पर न गाङी चल रही न यातायात के अन्य कोई साधन.

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यहां उस के गांव के 14-15 लोग और थे. वे भी परेशान थे और गांव लौट जाना चाहते थे. कोई साधन न मिलता देख उन्होंने पैदल ही जाने फैसला किया. पर 1,600 किलोमीटर की दूरी तय करना इतना आसान भी नहीं. रास्ते में वे कहां रूकेंगे, कहां उन्हें भोजन मिलेगा इस की कोई गारंटी नहीं. पर जान है तो जहान है, यही सोच कर वे सब अपने गांव की ओर निकल पङे हैं.

दो जून की रोटी भी नसीब नहीं

इधर दिल्ली में रहने वाला राजेश बोतल में पानी भरभर कर घरघर पहुंचाने का काम करता है. अब कोरोना वायरस के कारण दिल्ली में कर्फ्यू है और वह निकल नहीं पा रहा. घर वाले भी उसे मना कर चुके हैं. अब उस के पास दो जून की रोटी की समस्या आ खङी हुई है.

यही हाल फेकनराम का है. वह बिहार का रहने वाला है और दिहाङी मजदूर है. बीते 4-5 सालों से वह देश की राजधानी दिल्ली और आसपास के इलाके में टेंट लगाने का काम करता है लेकिन बीते कुछ दिनों से सार्वजनिक कार्यक्रमों का आयोजन नहीं होने से उसे कोई काम नहीं मिल रहा.

भुखमरी की समस्या

कोरोना के कहर से दुनियाभर में घबराहट का माहौल है और लोगों के कामकाज पर गहरा असर पङा है. सामाजिक कार्यों से ले कर अन्य प्रकार के कार्यक्रम रद्द होने की वजह से दिहाङी मजदूरों के सामने भुखमरी की समस्या खङी हो गई है.

बिजनौर के रहने वाले अंबिका ने फोन पर बताया कि इस बीमारी के डर से वे और उन के साथ करीब 20-25 लोग दिल्ली से बिजनौर पैदल ही निकल पङे हैं. उन्हें पता है कि इसी में उन की जान बची रहेगी. मगर नोएडा पार करतेकरते कईयों की हालत पतली हो चुकी है और अभी उन्हें लगभग 250 किलोमीटर और चलना पङेगा.

दिल्ली का दर्द भी जुदा नहीं

दिल्ली में ऐसे कई दिहाङी मजदूर हैं जो दिल्ली छोङना चाहते हैं. हालांकि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने सभी मजदूरों को आश्वस्त किया है कि उन्हें खाना मिलेगा पर बहुतों के पास दिक्कत यह है कि वे सरकारी रजिस्टर्ड मजदूर नहीं हैं और इन वजहों से उन्हें न तो सरकारी सुविधाओं से लाभ मिलेगा और न ही कोई सहायता ही उन तक पहुंच पा रही है.

हालांकि दिल्ली सरकार बारबार यह घोषणा कर रही है कि दिल्ली में किसी मजदूर को भूखे नहीं मरने दिया जाएगा और इस के लिए लगभग हर विधानसभा के विधायक को यह जिम्मेदारी सौंपी गई है कि वे कार्यकर्ताओं से बात कर हालात पर नजर रखें और परेशान लोगों तक जरूरी चीजें पहुंचाएं.

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बुराङी विधानसभा आम आदमी पार्टी के मीडिया प्रमुख संदीप भोनवाल ने बताया,”देखिए, यह सही है कि अभी हम मुश्किल दौर से गुजर रहे हैं और इस का सब से अधिक नुकसान दिहाङी मजदूरों को हो रहा है. पर सरकार के निर्देश पर बुराङी के 6 स्कूलों में राहत सामग्री और भोजन की व्यवस्था की गई है जो दिन में 12 बजे और शाम में 6 बजे जरूरतमंद लोगों को भोजन और जरूरत की चीजें दी जाएंगी.”

उन्होंने बताया,”बुराङी में काफी संख्या में मजदूर तबके के लोग रहते हैं जो दिल्ली के विभिन्न जगहों पर दिहाङी मजदूरी करते हैं अब सब बंद हो जाने के बाद इन के सामने खानेपीने की समस्या आ खङी हुई है और इसीलिए यहां कादीपुर, बुराङी, मुकुंदपुर व जहांगीरपुरी आदि के 6 स्कूलों में राहत शिविर लगाया गया है जहां जरूरतमंद लोगों को दोनों टाइम भोजन उपलब्ध कराया जाएगा.”

चक्का जाम, खाने के लाले

उधर, के कई अन्य जगहों से ट्रक चलाने वाले ड्राइवर व खलासियों की हालत भी पतली है. ट्रक अनलोड करने के बाद राज्य की सीमाएं सील हैं जिस की वजह से वे कहीं निकल नहीं पा रहे. सारे होटलमोटल बंद हैं और इन के जेब में पैसे तो हैं पर खाना देने वाला कोई नहीं.

इस की वजह से शहरों में जरूरी चीजों का भी अभाव हो गया है. आलू, प्याज, टमाटर की कीमतों में भारी इजाफा हो गया है.

मंडी में बुरा हाल

दिल्ली के आजादपुर सब्जी मंडी में काम करने वाले चंदन कुमार सिंह ने बताया,”अभी मंडी मात्र 3 घंटे यानी सुबह 6 बजे से 9 बजे तक ही खुली रहती है. इस को बढाया जाना चाहिए. साथ ही मंडी में जिन को सरकार ने पास दिया है वे तो आजा रहे हैं पर जिन गाड़ियों को पास नहीं मिला है उन की सैकड़ों गाङियां सङक पर खङी हैं. मंडी में केला व संतरा का काफी स्टौक है पर आवाजाही बंद होने अथवा सीमित होने से इन का सङने का डर है.”

बौलीवुड भी अछूता नहीं

उधर कोरोना वायरस से बौलीवुड भी परेशान है. यहां काम करने वाले मजदूरों की हालत पतली है और उन के सामने खानेपीने की समस्या मुंह बाए खड़ी है.

फेडरेशन औफ वेस्टर्न इंडिया सिने ऐंपलौइज (एफडब्ल्यूआईसी) के प्रमुख बीएन तिवारी ने इस पर सिने अभिनेताओं पर जम कर भड़ास निकाली है और कहा है कि ज्यादातर अभिनेता, डायरैक्टर दिनभर ट्विटर पर ट्वीट करते हैं पर मदद के नाम पर एक धेला भी मजदूरों के बने राहतकोष में नहीं देते.

उन्होंने सिने अभिनेता अमिताभ बच्चन और सलमान खान से मदद की गुहार लगाई है.

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सरकारी सहायता पर्याप्त नहीं

देश के कई जगहों में लौकडाऊन ने लोगों का जीना मुहाल कर दिया है और लोग अब केंद्र सरकार की अपर्याप्त मदद को ले कर उन्हें जम कर कोस रहे हैं.

वैसे भी पहले नोटबंदी और फिर जीएसटी से कई कंपनियों पर ताला लग चुका और अब यह कोरोना वायरस पर सरकारी उदासीनता से लोगों की रोजीरोटी पर खासा असर पङा है.

केंद्र सरकार ने महिलाओं के लिए भी धेला ही दिया और उन्हें जनधन खाते में महज 500-500 रूपए 3 महीने देने की घोषणा कर हाथ खङे कर दिए.

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