लेखक- सीताराम गुप्ता

सब की नजरें इमारत की ऊपरी मंजिल पर लगी हुई थीं. पूरी इमारत अंधेरे में डूबी हुई थी. सिर्फ बरामदों में कहींकहीं कोई एकाध धूल जमा बल्ब टिमटिमा रहा था.

लेकिन ऊपरी मंजिल के एक कमरे की लाइटें जली हुई थीं और वहां से अजीबअजीब सी आवाजें आ रही थीं, कभी किसी के रोने की आवाज आ रही थी, तो कभी किसी की गुर्राहट भरी आवाज सुनाई दे रही थी. कभी ऐसी आवाज सुनाई दे रही थी, जैसे किसी का गला घोंटा जा रहा हो.

काफी देर बाद अचानक कमरे की लाइटें बंद हो गईं और एक हलकी सी चीख सुनाई दी. उस के बाद भागते हुए कदमों की आहट, जो लगता था, सीढि़यों में ही कहीं गुम हो गई है.

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यह इमारत इलाके के एक स्कूल  की थी, जहां पिछले दिनों एक बड़ा  ही दर्दनाक हादसा हो गया था. रात  को इमारत की ऊपरी मंजिल के जिस कमरे की लाइटें जली हुई थीं और  जहां से अजीबअजीब सी आवाजें  आ रही थीं, उस कमरे में स्कूल की  एक सीनियर क्लास बैठती थी.

एक दिन सुबहसुबह जैसे ही उस कमरे के छात्र अपनी क्लास में गए, वहां का कमरा अंदर से बंद था. छात्रों ने दरवाजा खटखटाया, पर बेकार.

थोड़ी देर बाद एक लड़के की नजर रोशनदान से अंदर पड़ी, तो उस की चीख निकल गई. वह ‘भूतभूत’ चिल्लाते हुए नीचे की तरफ दौड़ने लगा.

अध्यापकों के पूछने पर उस छात्र ने किसी तरह अपनी सांसों पर काबू करते हुए बताया, ‘‘सर, कमरे में पंखे से कोई लटका हुआ है.’’

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