योगी सरकार आने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर पंचायत चुनाव को देख रही है, तो विपक्ष पूरा जोर लगा कर अपना दबदबा दिखाना चाहेगा.

इस बार उत्तर प्रदेश के पंचायत चुनाव इतने खास हैं कि इन्हें ले कर तमाम तरह के लोकगीत बन चुके हैं. इन में से सब से मशहूर गीत 'जब नौकरी न मिली जवानी में, तो कूद पड़े परधानी में...' है. गांव के बेरोजगार नौजवानों के लिए यह एक सुनहरे मौके की तरह से दिख रहा है. इस की वजह यह है कि एक गांव को साल में विकास के लिए कम से कम 5 लाख से 10 लाख रुपए की सरकारी योजना मिलती है. ऐसे में 5 साल में अच्छीखासी रकम हो जाती है. इस के अलावा सड़क, खड़ंजा वगैरह बनाने का ठेका मिल जाता है और राजनीतिक ताकत बन कर बिचौलिए के रूप में काम करने का मौका भी मिल जाता है. इस वजह से प्रधान का पद बेहद खास हो जाता है.

पंचायत चुनाव जीतने के लिए उम्मीदवार हर तरह के दांव आजमा रहे हैं. जो सीटें महिलाओं के लिए रिजर्व हैं उन पर प्रधानी का सपना देखने वालों ने अपनी पत्नी, मां या दूसरी महिला रिश्तेदार को चुनाव मैदान में उतारा है. महिला उम्मीदवारों में से 90 फीसदी ऐसी हैं जो मुखौटाभर हैं. उन के नाम पर घर के मर्द काम करेंगे. यही वजह है कि बहुत सी कोशिशों के बाद भी महिलाओं को रिजर्व सीट का फायदा नहीं मिल सका है.

पैसे और दबदबे वाले लोग पंचायत चुनाव के जरीए सत्ता में अपना दखल बनाए रखना चाहते हैं. नौजवान तबका अपने राजनीतिक कैरियर के लिए पंचायत चुनाव को अहम मान कर चुनाव मैदान में है. राजनीतिक दलों को इस बहाने नए कार्यकर्ता भी मिल रहे हैं.

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