सौजन्य- सत्यकथा
इस दौरान वह जब भी गांव जाता तो वर्षा के शानोशौकत भरे खर्चे देख कर उसे बेहद पीड़ा होती थी. उसे लगता था कि उस का परिवार आर्थिक दिक्कत झेल रहा है और वर्षा उस के भाई की मौत के बाद मिले पैसों से ऐश कर रही है. कुछ दिनों बाद कृष्णकांत को पता चला की वर्षा किसी और व्यक्ति के साथ लिवइन में रहने लगी है तो उसे और बुरा लगा. उसे लगा कि अब तो वर्षा की संपत्ति उसे कभी नहीं मिलेगी.
लाखों के लालच में उस ने वर्षा को मारने का फैसला कर लिया. इस के लिए उस ने कीर्ति को अपने विश्वास में लिया और उस से दोस्ती कर ली. कीर्ति को उस ने यह जिम्मेदारी दी कि वर्षा की हर गतिविधि पर नजर रखे और उस की हर गतिविधि की उसे फोन द्वारा जानकारी देती रहे.
6 फरवरी, 2021 को वर्षा अपनी मां के यहां आई थी. कीर्ति ने इस की जानकारी फोन पर कृष्णकांत को दी. कृष्णकांत को लगा कि अच्छा मौका है. शाम के समय वैसे भी गांव में अंधेरा छा जाता है और अधिकांश लोग अपने घरों में कैद हो जाते हैं. ऐसे मे वर्षा की हत्या करना को आसान लगा.
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उस ने अपने एक मित्र से एक तमंचे का जुगाड़ किया और शाम को मोटरसाइकिल से सीधा कनौजिया गांव पहुंचा और वर्षा के घर के सामने जा कर खड़ा हो गया. वहां उस समय कुछ लोग उसे दिखे और घर का दरवाजा भी बाहर से बंद था.
लिहाजा वह घर के पीछे गया. वहां वर्षा की दादी बरतन साफ कर रही थीं. बूढ़ी होने के कारण उन्हें कम दिखाई और कम सुनाई देता था. उन्हें चकमा दे कर वह पीछे के दरवाजे से अंदर घुस गया. वर्षा कमरे में किसी से फोन पर बात कर रही थी. कृष्णकांत ने बिना समय गंवाए उस पर गोली चला दी.
गोली लगते ही वर्षा ढेर हो गई. उधर अपना काम करने के बाद कृष्णकांत पीछे के दरवाजे से फरार हो गया. उसी रात वह मोटरसाइकिल से भोपाल आ गया. कोर्ट के काम से उसे फिर आमला जाना पड़ा. हालांकि वह 2 दिन में निश्चिंत हो चुका था कि उसे किसी ने नहीं देखा होगा. इस कारण वह पकड़ा नहीं जाएगा.
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लेकिन कहते हैं न कि जुर्म कहीं न कहीं अपने निशान छोड़ ही जाता है. कृष्णकांत के साथ भी यही हुआ. पुलिस ने कड़ी से कड़ी जोड़ी तो उस का जुर्म सामने आ गया. पुलिस ने कृष्णकांत और कीर्ति से पूछताछ के बाद उन्हें गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया
सौजन्य- सत्यकथा
पुलिस को यह भी पता चला कि वह कोर्ट के काम से आमला आने वाला है. लिहाजा पुलिस मुस्तैद हो कर उस के आने का इंतजार करने लगी. अगले दिन जैसे ही वह आमला आया, पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया. पुलिस ने थाने ले जा कर जब कृष्णकांत से पूछताछ की तो वह खुद को बेगुनाह बताने लगा. उस ने बताया कि घटना वाली तारीख को वह भोपाल में था.
पुलिस ने जब उसे बताया कि घटना की रात उस का मोबाइल देर रात तक आमला के आसपास ही लोकेशन दिखा रहा था. उसे उस के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स दिखाई तो वह टूट गया. उस ने कबूल कर लिया कि उस ने अपनी दोस्त कीर्ति की मदद से अपनी भाभी वर्षा की हत्या की है. वर्षा ने हालात ही ऐसे बना दिए थे, जिस से उसे उस की हत्या करने के लिए मजबूर होना पड़ा.
कृष्णकांत ने पुलिस को जो बताया उस के अनुसार कहानी कुछ इस प्रकार सामने आई—
बैतूल जिले के आमला गांव के समीप बोडखी में रहने वाले आर.के. नागपुरे के 3 बेटों में सब से बड़ा चंद्रशेखर नागपुरे था. इंटरमीडिएट की पढ़ाई करने के बाद चंद्रशेखर सेना में भरती हो गया.
नौकरी से छुट्टी मिलने पर जब वह घर आता तो कनोजिया में रहने वाले अपने मामा के यहां भी जाता था. उस के मामा की बेटी वर्षा उस समय जवानी की दहलीज पर कदम रख ही रही थी और महज 16 साल की थी. इधर चंद्रशेखर 27 की उम्र छू रहा था. पर सेना में होने के कारण उस का बदन गठीला था और सेना में होने का रौब तो उस पर था ही. उसी दौरान वर्षा से उसे प्यार हो गया. दोनों ही एकदूसरे को दिलोजान से चाहने लगे.
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रिश्ते मे वर्षा चंद्रशेखर की ममेरी बहन थी, पर इस के बाद भी दोनों रिश्तों की मर्यादा भूल गए और प्यार की पींगे बढ़ाने लगे.
जब इस बात की भनक चंद्रशेखर के घर वालों को लगी तो वे उस पर नाराज हुए. उन को कतई गवारा नहीं था कि उन का बेटा ऐसी युवती से प्रेम करे, जो उस के सगे रिश्ते में आती हो. वे चंद्रशेखर का रिश्ता कहीं दूसरी जगह करने की योजना बना रहे थे. उन्होंने चंद्रशेखर को काफी समझाया पर वह नहीं माना.
चंद्रशेखर ने घर वालों के विरोध की परवाह नहीं की ओर वर्षा से मिलना जारी रखा. वर्षा भी उस के प्यार में दीवानी थी. लिहाजा उस ने नजदीकी रिश्ते से ज्यादा अपने प्यार को अहमियत दी. नतीजा यह हुआ कि घर वालों के विरोध के बावजूद चंद्रशेखर और वर्षा ने शादी का फैसला कर लिया और घर वालों के विरोध के बावजूद उन्होंने शादी कर ली.
शादी चूंकि चंद्रशेखर ने घर वालों के विरोध के बावजूद की थी, लिहाजा शादी के बाद वह घर से अलग हो गया और बोखड़ी में ही अलग मकान ले कर रहने लगा. समय अपनी गति से बीतता रहा. कुछ समय बाद वर्षा एक बेटे की मां भी बन गई.
बात 2013 के आसपास की है. चंद्रशेखर की जहर खाने से संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई. उस ने जहर कैसे खाया, इस बात का खुलासा तो नहीं हो पाया, पर कहा यह जाता है कि चंद्रशेखर अपने घर वालों के व्यवहार से दुखी था और घर वालों द्वारा उसे स्वीकार नहीं किया तो उस ने यह कदम उठा लिया.
हालांकि उस ने जहर खाया था या उसे दिया गया था, यह भी एक रहस्य था. चंद्रशेखर की मृत्यु के बाद उस की सारी संपत्ति की वारिस उस की पत्नी वर्षा बन गई. चंद्रशेखर के घर वाले वर्षा को पहले ही नापसंद करते थे. उन्होंने इस शादी को भी मान्यता नहीं दी थी, लिहाजा वे इस के खिलाफ हो गए कि वर्षा को उस की संपत्ति में से कुछ मिले. पर उन के चाहने से कुछ नहीं हुआ.
सेना ने वर्षा को उस की पत्नी मानते हुए उस की मौत के बाद उस के सारे देय दे दिए. बताया जाता है कि वर्षा को चंद्रशेखर की मौत के बाद करीब 30 लाख रुपए मिले थे. चंद्रशेखर का भाई कृष्णकांत इसे अपनी संपत्ति मान रहा था और उस का मानना था कि इस से उस के घर वालों को काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है.
उस ने सेना मुख्यालय में भी पत्र लिख कर इस धनराशि में अपना अधिकार बताया. कृष्णकांत ने कहा कि चंद्रशेखर का वर्षा के साथ कभी विवाह हुआ ही नहीं था. दोनों भाईबहन थे, लिहाजा उस की संपत्ति पर घर वालों का अधिकार है.
उस ने चंद्रशेखर की मौत के बाद खुद को अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति देने की मांग भी सेना से की थी. जब यह बात नहीं बनी तो वह कोर्ट चला गया. कोर्ट में इस मामले की सुनवाई अभी जारी थी.
अब बात करते हैं हत्या के कारणों की. बड़े भाई चंद्रशेखर की मौत के बाद कृष्णकांत भोपाल आ गया और यहां एक कंपनी में मोटरसाइकिल राइडर बन गया. वह कंपनी के निर्देश पर लोगों को लाने ओर छोड़ने का काम करने लगा.
अगले भाग में पढ़ें- कृष्णकांत ने वर्षा की हत्या कैसे की?
सौजन्य- सत्यकथा
वर्षा से शादी के बाद से ही खफा चल रहे उस के देवर कृष्णकांत को जब यह पता चला की वर्षा किसी और के साथ लिवइन में रह रही है तो यह उस से सहा नहीं गया. बड़े भाई चंद्रशेखर की मौत के बाद उस का सारा पैसा भी उस की भाभी वर्षा ही ले गई थी. भाई के बदले वह सेना में नौकरी चाह रहा था. यह मामला भी कोर्ट की दहलीज पर पहुंच चुका था.
भाभी के लिवइन में रहने की खबर के बाद कृष्णकांत को लगा कि भाभी उस के भाई की ही संपत्ति और पैसे पर ऐश कर रही है. तब कृष्णकांत ने अपनी भाभी को सदा के लिए मौत की नींद सुला देने का भयानक निर्णय ले लिया.
मध्य प्रदेश के जिला बैतूल से करीब 22 किलोमीटर की दूरी पर बसा है आमला कस्बा. आदिवासी बाहुल्य यह कस्बा ज्यादा बड़ा तो नहीं है पर आसपास के गांव वाले यहां खरीदारी करने आया करते हैं.
लिहाजा शाम तक यहां के बाजार भीड़ से भरे होते हैं. ऐसे में पुलिस को भी कानूनव्यवस्था के लिए चुस्त रहना पड़ता है. 6 फरवरी, 2021 को रात करीब 9 बजे का वक्त रहा होगा. आमला के टीआई सुनील लाटा शहर में भ्रमण पर थे. इसी बीच उन्हें पुलिस कंट्रोल रूम से सूचना मिली कि कनौजिया गांव में गोली चली है, इस में एक महिला गंभीर रूप से घायल है.
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सूचना मिलते ही टीआई कनौजिया गांव पहुंचे, इस इलाके में गोली चलने की वारदात अमूमन कम ही होती है. बरहाल, टीआई ने इस घटना की जानकारी एसपी सिमाला प्रसाद को दी. साथ ही एसडीपीओ मुलताई नम्रता सोंधिया समेत फोरैंसिक टीम के सदस्यों को दी और वह तत्काल कुछ पुलिसकर्मियों को ले कर घटनास्थल पर पहुंच गए.
आमला से कनौजिया की दूरी करीब 5 किलोमीटर है, लिहाजा पुलिस को यहां पहुंचने में ज्यादा वक्त नहीं लगा. पुलिस जब घटनास्थल पर पहुंची, तब तक भीड़ काफी जमा हो चुकी थी. कनौजिया गांव के जिस मकान में गोली चलने की घटना हुई थी, वहां करीब 4-5 कमरे थे.
पहले कमरे में बैड पर खून से लथपथ एक 27-28 वर्षीय युवती का शव पड़ा था. पास में ही उस का मोबाइल पड़ा था. पुलिस ने अनुमान लगाया कि घटना के समय युवती मोबाइल पर बात कर रही होगी.
टीआई सुनील लाटा अभी मौकामुआयना कर ही रहे थे कि इतने में एसडीपीओ (मुलताई) नम्रता सोंधिया भी मौके पर आ गईं. इस के बाद एसपी सिमाला प्रसाद भी वहां पहुंच गईं.
पूछताछ में पता चला कि मृतका का नाम वर्षा नागपुरे है और वह बोखड़ी कस्बे की रहने वाली थी. सुबह ही वह अपनी मां के पास कनोजिया आई थी.
पुलिस ने यहां लोगों से प्रारंभिक पूछताछ भी की, पर वे कुछ बताने की स्थिति में नहीं थे. उन का कहना था कि कौन आया, किस ने वर्षा को गोली मारी, पता ही नहीं चला. वे तो गोली चलने की आवाज के बाद अपने घरों से बाहर आए थे.
वर्षा की हत्या की वजह पुलिस को भी समझ नहीं आ रही थी. पुलिस समझ नहीं पा रही थी कि मायके में आने के बाद उस की हत्या किस ने की? एफएसएल टीम द्वारा जांच करने के बाद पुलिस ने शव पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया.
पुलिस ने इस के बाद वर्षा के मायके वालों से पूछताछ की तो वर्षा के भाई कृष्णा पवार ने बहन वर्षा की हत्या का संदेह उस के देवर कृष्णकांत नागपुरे और महेश नागपुरे निवासी बोडखी पर व्यक्त किया था. इधर पुलिस को जांच में यह भी पता चला कि वर्षा किसी के साथ लिवइन रिलेशन में रह रही थी.
बहरहाल, सारी जानकारी जुटाने के बाद टीआई सुनील लाटा आमला लौट आए. उन के सामने जिन लोगों के नाम संदेह के तौर पर सामने आए थे, उन पर नजर रखने के लिए उन्होंने कुछ पुलिसकर्मियों को लगा दिया. पुलिस को अपनी जांच में यह भी पता चला कि अपनी ससुराल वालों से वर्षा के रिश्ते ठीक नहीं थे, लिहाजा उन्होंने जांच का रुख ससुराल वालों की तरफ मोड़ लिया.
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इस बीच टीआई सुनील लाटा को खबर मिली कि वर्षा का देवर कृष्णकांत घटना से कुछ दिनों से गांव बोडखी में ही देखा गया था. पर घटना के बाद से वह गायब है. पुलिस ने अब अपना ध्यान कृष्णकांत की ओर लगा दिया.
पुलिस की जांच आगे बढ़ी तो यह भी पता चला कि कृष्णकांत का अपनी भाभी वर्षा से काफी समय से विवाद चल रहा था. जब से उस ने कृष्णकांत के बड़े भाई चंद्रशेखर नागपुरे से लवमैरिज की थी, तभी से ससुराल वाले उस से नाराज चल रहे थे. जिस से वह शादी के बाद से ही ससुराल वालों से अलग पति के साथ रह रही थी. वह भी उस से खुश नहीं थे.
पुलिस ने वर्षा की सास और जेठ से भी पूछताछ की. उन्होंने बताया कि वर्षा उन से अलग रहती थी. लिहाजा उन्होंने भी उस से रिश्ता लगभग खत्म कर रखा था. इस मामले में पता चला कि कीर्ति नाम की युवती से मृतका के देवर की मित्रता थी.
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पुलिस ने कीर्ति के बारे में पता किया तो जानकारी मिली कि उस का कृष्णकांत से मिलनाजुलना था. पुलिस ने कीर्ति से पूछताछ की और उस की काल डिटेल्स निकलवाई तो पता चला कि घटना के दिन कई बार उस की कृष्णकांत से बात भी हुई थी.
कीर्ति से जब पुलिस ने थोड़ी सख्ती से पूछताछ की तो उस ने बताया कि कृष्णकांत अकसर उस से वर्षा के बारे में पूछता रहता था. तब वह उसे वर्षा की लोकेशन बता देती थी. कीर्ति ने पुलिस को बताया कि अब कृष्णकांत कहां है, इस बारे में उसे कुछ भी पता नहीं है.
कृष्णकांत का मोबाइल फोन भी बंद था. पुलिस ने अपने मुखबिरों को लगातार इस मामले में नजर रखने को कहा था. इस का परिणाम यह हुआ की पुलिस को जानकरी मिली कि कृष्णकांत भोपाल में है.
अगले भाग में पढ़ें- कृष्णकांत ने पुलिस को क्या बताया
पश्चिम बंगाल ही नहीं, तमिलनाडु और केरल में भी भारतीय जनता पार्टी की हार से यह साबित हो गया है कि भारतीय जनता पार्टी का ऊंचनीच और भेदभाव वाला खेल कम से कम कुछ राज्यों में तो नहीं चलेगा. पश्चिम बंगाल में जिस तरह से छोटी सी, अकेली सी, कमजोर सी ममता बनर्जी ने भारतीय जनता पार्टी के खातेपीते दिखते लोगों की, धन्ना सेठों की बरात का मुकाबला किया यह काबिलेतारीफ था. 213 सीटें जीत कर उन्होंने भाजपा का इस बार 200 से पार का सपना धराशायी कर डाला.
तमिलनाडु और केरल में भारतीय जनता पार्टी इतनी बेचैन भी नहीं थी. प्रधानमंत्री और गृह मंत्री दिल्ली में कामधाम छोड़छाड़ कर पश्चिम बंगाल में दिन में 3-3, 4-4 रैलियां करते फिरे जिन में दिखने को भारी भीड़ थी. कुछ ने बताया भी कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने तकरीबन 1,00,000 लोग वेतन पर 4 साल से बंगाल में हर जिले में फैला रखे थे जो रैलियों में भीड़ बढ़ाते थे. अब भीड़ में क्या पता चलता है कि यह बाहरी है या बंगाल का.
ममता बनर्जी की खासीयत रही कि उन्होंने हिम्मत नहीं हारी, वे रोईगिड़गिड़ाई नहीं. वे दूसरी पार्टियों के पीछे भी नहीं भागीं. उन्होंने अपने विधायकों और सांसदों की ब्लैकमेल के जरीए चोरी को सीना तान कर सहा, उन की पार्टी ने सीबीआई और एनफोर्समैंट डिपार्टमैंट का कहर झेला, उन्होंने चुनाव आयोग की साफ दिखती एकतरफा केंद्र सरकार की जीहुजूरी देखी. पर यह बंगाल की जनता भी देख रही थी.
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बंगाल को सम झ आ गया था कि भाजपा का मकसद तो पूजापाठी लोगों को सत्ता में बैठाना है. जो जमींदारी पहले अंगरेजों ने थोपी थी, वह अब मंदिरों, सरकारी दफ्तरों, सरकार के तलुए चाटते धन्ना सेठों को सौंपनी है. ममता बनर्जी छोटे मकान में खुश हैं, नरेंद्र मोदी और अमित शाह अपने लिए राजपथ को तुड़वा कर विशाल बंगले, जिन में गुफाएं, कई मंजिल गहरे तहखाने और बंकर भी होंगे, बनवा रहे हैं. बंगाल की भूखी जनता को मालूम था कि ये लोग देने, बांटने नहीं लेने व छीनने आ रहे हैं.
देश के दूसरे राज्य में अगर भाजपा का पैर जमा है तो इसलिए कि भाजपा के बहुत से लोग छीन और लूट कर मजबूत हो गए हैं और वे जातजात, धर्मधर्म में अलगाव करा कर लोगों के कर्म का फल गीता के उपदेश पर डकार रहे हैं. भाजपा ने हर जाति के लिए हर गांव में एक छोटा मंदिर बनवा दिया है जो भाजपा कार्यालय का काम भी करता है और सरकार के अत्याचारों के समय जनता का मुंह बंद रखने का काम भी करता है. सदियों से इस देश में केवट, धींवर, निषाद, एकलव्य बस देते रहे हैं. लेना तो एकतरफा रहा है. पश्चिम बंगाल में यह रुका है. हालांकि कोई बड़ा बदलाव नहीं होने वाला.
यह देश उसी तरह चलता रहेगा. तानाशाही चाहे दिल्ली की हो, कोलकाता, चेन्नई की हो या गली के महाजन की, चालू रहेगी. जब तक आम मेहनतकश धर्म और जाति की दीवारें नहीं तोड़ता, पूजापाठ के फंदे से नहीं निकलता, ये चुनाव नतीजे रेगिस्तान में बारिश से ज्यादा नहीं हैं. सारा पानी कुछ ही देर में रेत में जज्ब हो जाएगा.
इस बार महामारी ने अमीरों को भी डसा है. कोविड ने लगता है कि अमीरों को ज्यादा बीमार किया है जो वायरस से मुकाबला करना नहीं जानते. जो पहले से गंदे मकानों, गंदी सड़कों, गंदे पाखानों, गंदे कपड़ों के आदी हैं, उन्हें यह रोग या तो पकड़ नहीं पाया या फिर बिना पहचान कराए वे बीमार पड़े, मरे या ठीक हो गए, पर अस्पताल नहीं गए, सरकारी नंबरों में शामिल नहीं हुए.
कोविड ने गरीबों को बेकारी से ज्यादा मारा है. पिछले मार्चअप्रैल 2020 में जब कारखाने बंद हुए और इस बार फिर जब दोबारा बंद होने लगे तो लाखों की नौकरियां या धंधे चौपट हो गए. फर्क तो अमीरों को भी पड़ा जिन की बचत खत्म हो गई पर वे सह सकते थे. उन्हें भी दर्द झेलना पड़ा क्योंकि वे इस के आदी नहीं थे. आम गरीब के लिए तो यह रोज की बात है.
यह गनीमत है कि देश में जगहजगह अस्पताल बन चुके हैं. 2014 के बाद तो मंदिर ही बन रहे हैं पर पहले धड़ाधड़ स्कूल और क्लिनिक बने थे. गांवोंकसबों में स्कूलों को अस्पतालों की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है और जो भी दवा मिल रही है वह ले कर बचने की कोशिश हो रही है. यह पक्का है कि दिल्ली में बैठी नरेंद्र मोदी की सरकार ने जिस हलके से इस बीमारी का गरीबों पर पड़ने वाले असर को लिया, वह बेहद खलता है.
हारीबीमारी किसी को भी हो सकती है और इसलिए इलाज की सुविधा सरकार को मुफ्त देनी होगी. मुफ्त का मतलब सिर्फ इतना है कि सब थोड़ाथोड़ा पैसा टैक्स की शक्ल में देंगे. हर गांवकसबे में एंबुलैंस और अस्पताल होने चाहिए चाहे केंद्र सरकार के हों, राज्य सरकार के या पंचायत के. जब थाने हर जगह बन सकते हैं तो अस्पताल क्यों नहीं. शायद इसलिए कि थानों के जरीए लोगों पर राज किया जाता है और अस्पताल में सेवा करनी होती है. सरकार के दिमाग में कहीं यह कीड़ा बैठा है कि वह राज करने के लिए है, लूटने के लिए, मंदिरों की तरह लेने के लिए है, किसी को कुछ देने के लिए नहीं.
अस्पताल खोलो तो नेताओं की मुसीबत आती है. शिकायतें शुरू हो जाती हैं कि डाक्टर समय पर नहीं आते, सफाई नहीं होती, दवाएं चोरी हो रही हैं, जगह कम है. थाना खोलो तो कोई शिकायत नहीं. पुलिस वालों का डंडा सब को ठीक कर देता है.
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नरेंद्र मोदी की सरकार वैसे भी उस पौराणिक सोच पर चलती है कि एक बड़े हिस्से का काम सेवा करना है, कुछ पाना नहीं. हमारे पुराण कहीं भी गरीबों को दान देने की बात करते नजर नहीं आते. फिर कोविड जैसी बीमारी के लिए, बेकारी के लिए या बीमारी के लिए दान की उम्मीद करना ही बेकार है. देशभर में गरीब यह मांग कर भी नहीं रहे. शहरी लोग ही औक्सीजन, वैंटिलेटर, बैड, रेमेडिसिवर का हल्ला मचा रहे हैं.
लेकिन यह न भूलें कि कोविड ने देश को 10-15 साल पीछे धकेल दिया है. सरकार टैक्स चाहे ज्यादा वसूल ले पर आम जनता गरीब हो गई है और गरीब और गरीब हो गया है. वह कोविड से चाहे मरे या न मरे खराब खाने और बेरोजगारी से जरूर मरेगा.
लेखक- गजाला जलील
मुझे उतार कर कार आगे बढ़ गई. मेरे लिए अम्मा परेशान बैठी थीं. मैं ने उन्हें दिलासा दिया और बताया रशना के ड्राइवर चाचा मुझे छोड़ने आए थे. ताकि वह किसी शक में न पड़ें. जब मैं बिस्तर पर लेटी तो दिल बुरी तरह धड़क रहा था. आंखों में वही खूबसूरत चेहरा बसा था. उन्हीं के खयालों में खोए पता नहीं कब सो गई.
दूसरे दिन फिर वही औफिस था, वही काम, वही लोग. मेरी निगाहें बारबार बौस के औफिस की तरफ उठ रही थीं, दिल में प्यार का तूफान उमड़ रहा था. आंखों में दीदार की आस थी. लेकिन बौस के रूटीन में कोई फर्क नहीं आया, वह पिछले दरवाजे से ही आतेजाते रहे. मेरा दिल दीदार को तड़पता रहा.
कई बार जी चाहा, उन के औफिस में चली जाऊं, पर हिम्मत नहीं हुई. मैं ने दिल को समझा कर खुद को काम में मसरूफ कर लिया. बारबार सोचती, उस दिन रात को मेरी तारीफ करना, प्यार से बातें करना, वह सब क्या था?
उस दिन मैनेजर अहमद साहब मेरे पास आए और कहने लगे, ‘‘सुहाना, आप टाइपिंग सीख लीजिए. आगे आप के बहुत काम आएगी.’’
मुझे अहमद साहब ने दूसरी टेबल पर बिठा दिया. थोड़ा खुद ने सिखाया फिर साथी की ड्यूटी लगा दी कि मुझे बाकायदा टाइपिंग सिखाए. मैं ने दिल लगा कर सीखना शुरू कर दिया.
करीब 20 दिन के बाद अहमद साहब ने एक टेस्ट लिया. अच्छीखासी स्पीड हो गई थी. उन्होंने कहा, ‘‘वैरी गुड, अब आप आइए मेरे साथ.’’
मैं उन के अंदाज पर हैरान थी. वह मुझे ले कर इमरान साहब के औफिस में गए. मैं पहली बार वहां आई थी. औफिस की सजावट और खूबसूरती देख कर मैं चकाचौंध हो गई. कमरे में हलका अंधेरा था. एसी की ठंडक, टेबल पर हलकी नीली रोशनी थी. उन की गूंजती सी आवाज सुनाई दी, ‘‘आइए अहमद साहब, आप कैसी हैं मिस सुहाना.’’
मेरी आवाज मुश्किल से निकली, ‘‘मैं अच्छी हूं सर.’’
इतने दिनों के बाद बौस को देखने से मेरी तड़प और चाहत और बढ़ गई थी. मैं प्यासी निगाहों से उन्हें देखती रही. अहमद साहब बोले, ‘‘सर, मैं ने आप के लिए टाइपिस्ट का बंदोबस्त कर लिया है, ये हैं.’’
‘‘वैरी गुड, मिस सुहाना क्या आप टाइपिंग जानती हैं?’’
‘‘जी सर, इन्होंने अच्छे से सीख लिया है.’’
‘‘अहमद साहब, आप ने ये बड़ा अच्छा काम किया. एक बड़ा मसला हल हो गया.’’
उन के कमरे में एक तरफ एक छोटी टेबल रखी थी, जिस पर टाइपराइटर रखा था. मुझे वहां बिठा दिया गया. इमरान साहब ने मुझे कुछ कागजात टाइप करने को दिए.
शाम को जब मैं टेबल से उठी तो इमरान साहब ने कहा, ‘‘मिस सुहाना, टाइपिस्ट की हैसियत से आप की तनख्वाह में 300 रुपए का इजाफा कर दिया गया है.’’
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मुझे बड़ी खुशी हुई. मैं ने अम्मा को बताया तो वह खुश नहीं हुईं. कहने लगीं, ‘‘मैं कैसी मजबूर मां हूं कि तुम्हारी कमाई खा रही हूं. मुझे तो तुम्हारी शादी का सोचना चाहिए. तुम्हारी कमाई जमा कर के मुझे शादी की तैयारी करनी होगी.’’
मेरा दिल भी उदास हो गया. मैं ने कहा, ‘‘अम्मा, मैं शादी नहीं करूंगी. आप को छोड़ कर कहीं नहीं जाऊंगी.’’
‘‘नहीं बेटी, ये तो दुनिया का दस्तूर है. हर लड़की को विदा हो कर अपने असली घर जाना पड़ता है.’’ अम्मा ने दुखी मन से कहा.
वक्त गुजरता रहा. मैं इमरान हसन के औफिस में मेहनत और लगन से काम करती रही. वह भी बड़ी मोहब्बत और इज्जत से पेश आते. मेरी नजरों में उन की इज्जत और सम्मान दिनबदिन बढ़ता जा रहा था.
जिंदगी बड़ी अच्छी गुजर रही थी. उस दिन मैं घर पर ही अम्मा के साथ किचन में थी. मैं ने देखा अम्मा टटोलटटोल कर काम कर रही थीं. वह दूध का पतीला ठीक से देख नहीं पाईं. दूध नीचे गिर गया. कुछ गरम दूध पांव पर भी गिरा. उन्हें चक्कर आ गया. मैं उन्हें कमरे में लाई और ग्लूकोज पिलाया. पैर पर दवा लगाई, फिर पूछा, ‘‘अम्मा, ये सब क्या है? आप को क्या कम दिखाई देने लगा है?’’
‘‘कुछ नहीं बेटा, ऐसे ही जरा चक्कर आ गया था.’’
‘‘नहीं अम्मा, आप सच बताएं, आप को मेरी जान की कसम, आप को मुझे सच बताना होगा.’’
वह फूटफूट कर रोने लगीं फिर बताया, ‘‘बेटी, कुछ दिनों से मुझे चक्कर आ रहे हैं. धीरेधीरे मेरी आंखों की रोशनी कम होने लगी. अब तो बहुत ही कम दिखाई देता है. चक्कर भी आते हैं.’’
‘‘अम्मा, आप ने मुझे बताया क्यों नहीं, हम किसी डाक्टर को दिखाते, यह नौबत यहां तक आती ही नहीं. चलिए, उठिए डाक्टर के पास चलते हैं.’’
‘‘नहीं सुहाना, तुम मेरी बेटी हो. बेटी की कमाई कर्ज की तरह होती है. तुम्हारी कमाई सिर्फ तुम्हारी शादी पर खर्च होगी, इलाज पर नहीं.’’
‘‘नहीं अम्मा, मैं आप को किसी अच्छे डाक्टर के पास ले चलूंगी.’’
मैं ने बहुत कुछ कहा लेकिन अम्मा किसी कीमत पर इलाज के लिए तैयार नहीं हुईं.
दूसरे दिन औफिस में मैं उदास सी थी. इमरान हसन ने मुझे देखते ही कहा, ‘‘क्या बात है सुहाना, आप उदास लग रही हैं?’’
‘‘नहीं सर, ऐसी कोई बात नहीं है.’’
‘‘मिस सुहाना, आप मुझे गैर समझती हैं. आप नहीं जानतीं, मैं आप के बारे में क्या सोचता हूं. मेरा दिल चाहता है सारी दुनिया की खुशियां ला कर आप के कदमों में डाल दूं.’’
फिर वह अचकचा कर चुप हो गए.
‘‘शायद मैं कुछ ज्यादा बोल गया, मुझे माफ करना सुहाना.’’
‘‘नहीं सर, आप मेरे हमदर्द हैं. दरअसल मेरी अम्मा की आंखों की रोशनी जा रही है. उन्हें बहुत कम दिखाई देने लगा है. मैं क्या करूं?’’
‘‘आप परेशान न हों सुहाना. मैं आज आप के साथ आप के घर चलूंगा. हम उन्हें अच्छे डाक्टर को दिखाएंगे. क्या आप की अम्मा मेरी मां जैसी नहीं हैं?’’
‘‘यह बात नहीं है सर, असल में वह इलाज कराने को राजी ही नहीं होतीं.’’
‘‘मैं उन्हें समझा लूंगा, आप फिक्र न करें.’’
शाम को वह मेरे साथ मेरे घर आए. उन्होंने अम्मा से उन की बीमारी के बारे में पूछा, ‘‘इस की शुरुआत करीब 3 महीने पहले हुई थी, पर अम्मा ने मुझ से छिपाया.’’
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इमरान साहब ने बड़े प्यार से कहा, ‘‘आप घबराएं नहीं, मैं आप का इलाज कराऊंगा. आप ठीक हो जाएंगी.’’
‘‘नहीं बेटे, हम कुदरत से जंग नहीं लड़ सकते. मैं डाक्टरों का सहारा नहीं लेना चाहती. मैं आप का अहसान भी नहीं ले सकूंगी. मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो.’’
इमरान साहब भी नाकाम हो कर वापस चले गए. अम्मा ने कहा, ‘‘बड़ा नेक आदमी है. क्या तुम्हारे औफिस में काम करता है. अल्लाह उसे अच्छा रखे. वैसे कितनी उम्र है उस की?’’
मैं ने यहां झूठ बोलना ठीक समझते हुए कहा, ‘‘हां, अम्मा मेरे औफिस में काम करता है. अधेड़ आदमी है. 3 बच्चों का बाप है. भला आदमी है.’’
अम्मा को इत्मीनान हो गया.
दूसरे दिन इमरान साहब ने बड़े जज्बाती ढंग से कहा, ‘‘सुहाना, आज मैं दिल की बात तुम से कहना चाहता हूं. मैं तुम्हें दुलहन बना कर अपने घर ले जाना चाहता हूं. मैं तुम से बेहद मोहब्बत करता हूं. मुझे जवाब दो सुहाना.’’
मेरा दिल जोर से धड़क रहा था. मैं ने शरमा कर कहा, ‘‘सर, पर हमारे हालात में जमीनआसमान का फर्क है. मैं एक गरीब लड़की हूं और आप…’’
‘‘सुहाना, दिल के रिश्तों में ऊंचनीच, गरीब अमीर कुछ नहीं देखते. तुम मेरे लिए क्या हो, यह बस मैं जानता हूं.’’
‘‘क्या जिंदगी के किसी मोड़ पर आप को यह अहसास नहीं होगा कि आप ने बराबरी में शादी नहीं की?’’
‘‘नहीं, मैं ने बचपन में अपनी अम्मी को खो दिया था. फिर अब्बू चल बसे. मैं प्यार को तरसा हुआ इंसान हूं. तुम मेरे लिए मोहब्बत का समंदर हो. मेरी मंजिल हो. बस तुम राजी हो जाओ.’’
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मैं सोच में थी. मैं ने कहा, ‘‘इमरान साहब, मैं नहीं जानती, यह कैसे मुमकिन होगा?’’
‘‘तुम परेशान न हो, मैं सब देख लूंगा.’’
सौजन्य- सत्यकथा
वैभव को पुचकार कर पुलिस अधिकारियों ने कुछ और जानकारी पूछी तो उस ने एक पत्र ला कर पुलिस अधिकारियों को दिया. वैभव ने कहा, ‘‘यह चिट्ठी मेरी बड़ी बहन, जो शादीशुदा है, ने पापा को लिखी थी. यह पत्र हम भाईबहनों को मिला तो हम ने छिपा दिया था.’’
उस पत्र में मृतक की बड़ी बेटी ने पापा प्रेमनारायण को लिखा था कि वह मम्मी को बदनाम नहीं करना चाहती है. नौकर जितेंद्र को अब अपने यहां नहीं रखना चाहिए.
पुलिस ने चिट्ठी के आधार पर तथा वारदात से जुड़े अन्य पहलुओं पर जांच करते हुए जांच आगे बढ़ाई. पुलिस ने साइबर एक्सपर्ट सत्येंद्र सिंह की भी मदद ली.
बच्चों ने पुलिस अधिकारियों से यहां तक कहा कि पापा की हत्या किसी और ने नहीं बल्कि मम्मी ने ही नौकर जितेंद्र उर्फ जीतू बैरवा (मेघवाल) के साथ मिल कर रात में की है. रात में वैभव कमरे से बाहर आना चाहता था मगर कमरा बाहर से लौक था. इस कारण वह वापस जा कर सो गया था.
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इसी दौरान मुखबिरों ने भी पुलिस को जानकारी दी. इन सब तथ्यों पर गौर किया गया तो मृतक की पत्नी का किरदार संदिग्ध नजर आया. पुलिस अधिकारियों ने तब उसे पूछताछ के लिए हिरासत में ले लिया.
पुलिस ने रुक्मिणी से कड़ी पूछताछ की. पूछताछ में वह टूट गई. उस ने अपना जुर्म कबूल कर लिया. उस ने अपने प्रेमी व नौकर जितेंद्र उर्फ जीतू बैरवा और एक अन्य हंसराज भील के साथ मिल कर पति की हत्या करने का जुर्म स्वीकार कर लिया. बस, फिर क्या था, पुलिस ने उसी दिन जितेंद्र और हंसराज भील को भी दबोच लिया. थाने ला कर उन से पूछताछ की.
पूछताछ में उन्होंने भी अपना जुर्म कबूल कर लिया. जितेंद्र ने बताया कि वह पिछले 2 साल से टीचर प्रेमनारायण के घर नौकर था. वह खेतों की रखवाली और खेतीबाड़ी करता था. जितेंद्र को 65 हजार रुपए सालाना तनख्वाह पर रखा हुआ था.
प्रेमनारायण ज्यादातर समय अपनी ड्यूटी पर फतेहगढ़, मध्य प्रदेश में रहते थे. वह 15-20 दिन बाद ही अपने गांव आखाखेड़ी आते थे. प्रेमनारायण की अपनी बीवी से नहीं बनती थी. दोनों में मनमुटाव रहता था. इस कारण रुक्मिणी ने पति की गैरमौजूदगी में अपने नौकर से अवैध संबंध बना लिए थे.
प्रेमनारायण की बड़ी बेटी ने एक दिन अपनी मम्मी और नौकर जितेंद्र को रंगरलियां मनाते देख लिया था. इस कारण वह चिट्ठी लिख कर पापा को अपनी मम्मी की करतूत बताना चाहती थी. मगर यह चिट्ठी उस के छोटे भाईबहनों के हाथ लग गई थी. तब उन्होंने चिट्ठी पढ़ कर छिपा ली.
26 मार्च, 2021 को यह चिट्ठी बच्चों ने पुलिस अधिकारियों को सौंपी. तब जा कर इस घटना की परतें खुलनी शुरू हुईं. प्रेमनारायण को किसी तरह बीवी और नौकर के अवैध संबंधों की खबर लग गई थी. इस कारण वह इन दोनों के बीच राह का रोड़ा बन चुके थे. इस रोड़े को हमेशा के लिए रास्ते से हटाने के लिए रुक्मिणी ने एक योजना बना ली.
फिर जितेंद्र ने 31 वर्षीय हंसराज भील को 20 हजार रुपए दे कर योजना में शामिल कर लिया. हंसराज जितेंद्र का दोस्त था. पुलिस ने मात्र 3 घंटे में ही मास्टर प्रेमनारायण मीणा की हत्या का राजफाश कर दिया.
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मृतक के शव का मैडिकल बोर्ड से पोस्टमार्टम करा कर शव परिजनों को सौंप दिया गया. परिजनों ने उसी रोज दोपहर बाद अंतिम संस्कार क र दिया. आखाखेड़ी में मास्टर की मौत से सनसनी फैल गई थी. जिस ने भी बीवी और उस के प्रेमी नौकर की करतूत के बारे में सुना, सन्न रह गया.
आरोपी पुलिस हिरासत में थे, जिन से पुलिस अधिकारियों ने पूछताछ की. पूछताछ में जो घटना प्रकाश में आई, वह इस प्रकार थी.
प्रेमनारायण मीणा अपनी पत्नी रुक्मिणी और 3 बच्चों के साथ जिला बारां के गांव आखाखेड़ी में रहते थे. वह सरकारी अध्यापक थे.
प्रेमनारायण की ड्यूटी इन दिनों मध्य प्रदेश के जिला गुना के फतेहगढ़ में थी. वह महीने में एकाध बार अपने गांव बीवीबच्चों से मिलने आते रहते थे.
प्रेमनारायण जहां शांत स्वभाव के थे तो वहीं उन की बीवी कर्कश स्वभाव की थी. उन की शादी को 20 साल से ज्यादा हो गए थे मगर इतना समय साथ गुजारने के बाद भी मियांबीवी में अकसर झड़प हो जाया करती थी. उन के बच्चे बड़े हो गए थे. मगर दोनों का मनमुटाव कम नहीं हुआ.
रुक्मिणी दिनरात काम कर के थक जाने का रोना रोती रहती थी. तब प्रेमनारायण ने वार्षिक तनख्वाह पर जितेंद्र उर्फ जीतू बैरवा को 2 साल पहले घर का नौकर रख लिया. जितेंद्र जहां खेतों पर काम करता, वहीं घर पर भी काम करता था. रुक्मिणी और जितेंद्र का रिश्ता मालकिन और नौकर का था. मगर पति के दूर रहने और मनमुटाव के चलते रुक्मिणी शारीरिक सुख से वंचित थी.
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जब उसे जितेंद्र नौकर के रूप में मिला तो वह उसे बिस्तर तक ले आई. रुक्मिणी की उम्र 40 साल थी. इस के बावजूद वह अपने से 8 साल छोटे नौकर के साथ सेज सजाने लगी. उस ने नौकर को प्रेमी बना लिया और उस की बांहों में झूला झूलने लगी.
रुक्मिणी की बड़ी बेटी शादी लायक हो गई थी. इस के बावजूद अधेड़ उम्र में उस पर वासना का ऐसा भूत सवार हुआ कि वह जबतब मौका पा कर नौकर जितेंद्र बैरवा के साथ शारीरिक संबंध बनाने लगी.
अगले भाग में पढ़ें- क्या प्रेमनारायण को रुक्मिणी और जितेंद्र के बारे में पता चला?
सुरेश चुपचाप वहां से निकल लिए और सुकन्या को ढूंढ़ने लगे.
‘‘क्या बात है, भाई साहब, कहां नैनमटक्का कर रहे हैं,’’ मिसेज साहनी ने कहा, जो सुकन्या के साथ गोलगप्पे के स्टाल पर खट्टेमीठे पानी का मजा ले रही थी और साथ कह रही थी, ‘‘सुकन्या, गोलगप्पे का पानी बड़ा बकवास है, इतनी बड़ी पार्टी और चाटपकौड़ी तो एकदम थर्ड क्लास.’’
सुकन्या मुसकरा दी.
‘‘मुझ से तो भूखा नहीं रहा जाता,’’ मिसेज साहनी बोलीं, ‘‘शगुन दिया है, डबल तो वसूल करने हैं.’’
उन की बातें सुन कर सुरेश मुसकरा दिए कि दोनों मियांबीवी एक ही थैली के चट्टेबट्टे हैं. मियां ज्यादा पी कर होश खो बैठा है और बीवी मीनमेख के बावजूद खाए जा रही है.
सुरेश ने सुकन्या से कहा, ‘‘खाना शुरू हुआ है, तो थोड़ा खा लेते हैं, नहीं तो निकलने की सोचते हैं.’’
‘‘इतनी जल्दी क्या है, अभी तो कोई भी नहीं जा रहा है.’’
‘‘पूरे दिन काम की थकान, फिर फार्म हाउस पहुंचने का थकान भरा सफर और अब खाने का लंबा इंतजार, बेगम साहिबा घर वापस जाने में भी कम से कम 1 घंटा तो लग ही जाएगा. चलते हैं, आंखें नींद से बोझिल हो रही हैं, इस वाहन चालक पर भी कुछ तरस करो.’’
‘‘तुम भी बच्चों की तरह मचल जाते हो और रट लगा लेते हो कि घर चलो, घर चलो.’’
‘‘मैं फिर इधर सोफे पर थोड़ा आराम कर लेता हूं, अभी तो वहां कोई नहीं है.’’
‘‘ठीक है,’’ कह कर सुकन्या सोसाइटी की अन्य महिलाआें के साथ बातें करने लगी और सुरेश एक खाली सोफे पर आराम से पैर फैला कर अधलेटे हो गए. आंखें बंद कर के सुरेश आराम की सोच रहे थे कि एक जोर का हाथ कंधे पर लगा, ‘‘सुरेश बाबू, यह अच्छी बात नहीं है, अकेलेअकेले सो रहे हो. जश्न मनाने के बजाय सुस्ती फैला रहे हो.’’
सुरेश ने आंखें खोल कर देखा तो गुप्ताजी दांत फाड़ रहे थे.
मन ही मन भद्दी गाली निकाल कर प्रत्यक्ष में सुरेश बोले, ‘‘गुप्ताजी, आफिस में कुछ अधिक काम की वजह से थक गया था, सोचा कि 5 मिनट आराम कर लूं.’’
‘‘उठ यार, यह मौका जश्न मनाने का है, सोने का नहीं,’’ गुप्ताजी हाथ पकड़ कर सुरेश को डीजे फ्लोर पर ले गए जहां डीजे के शोर में वर और वधू पक्ष के नजदीकी नाच रहे थे, ‘‘देख नंदकिशोर के ठुमके,’’ गुप्ताजी बोले पर सुरेश का ध्यान सुकन्या को ढूंढ़ने में था कि किस तरीके से अलविदा कह कर वापस घर रवानगी की जाए.
सुकन्या सोसाइटी की महिलाओं के साथ गपशप में व्यस्त थी. सुरेश को नजदीक आता देख मिसेज रस्तोगी ने कहा, ‘‘भाई साहब को कह, आज तो मंडराना छोड़ें, मर्द पार्टी में जाएं. बारबार महिला पार्टी में आ जाते हैं.’’
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‘‘भाभीजी, कल मैं आफिस से छुट्टी नहीं ले सकता, जरूरी काम है, घर भी जाना है, रात की नींद पूरी नहीं होगी तो आफिस में काम कैसे करूंगा. अब तो आप सुकन्या को मेरे हवाले कीजिए, नहीं तो उठा के ले जाना पड़ेगा,’’ सुरेश के इतना कहते ही पूरी महिला पार्टी ठहाके में डूब गई.
‘‘क्या बचपना करते हो, थोड़ी देर इंतजार करो, सब के साथ चलेंगे. पार्टी का आनंद उठाओ. थोड़ा सुस्ता लो. देखो, उस कोने में सोफे खाली हैं, आप थोड़ा आराम करो, मैं अभी वहीं आती हूं.’’
मुंह लटका कर सुरेश फिर खाली सोफे पर अधलेटे हो गए और उन की आंख लग गई.
नींद में सुरेश ने करवट बदली तो सोफे से नीचे गिरतेगिरते बचे. इस चक्कर में उन की नींद खुल गई. चंद मिनटों की गहरी नींद ने सुरेश की थकान दूर कर दी थी. तभी सुकन्या आई, ‘‘तुम बड़े अच्छे हो, एक नींद पूरी कर ली. चलो, खाना शुरू हो गया है.’’
सुरेश ने घड़ी देखी, ‘‘रात का 1 बजा था. अब 1 बजे खाना परोस रहे हैं.’’
खाना खाते और फिर मिलते, अलविदा लेते ढाई बज गए. कार स्टार्ट कर के सुरेश बोले, ‘‘आज रात लांग ड्राइव होगी, घर पहुंचतेपहुंचते साढ़े 3 बज जाएंगे. मैं सोचता हूं कि उस समय सोने के बजाय चाय पी जाए और सुबह की सैर की जाए, मजा आ जाएगा.’’
‘‘आप तो सो लिए थे, मैं बुरी तरह थक चुकी हूं. मैं तो नींद जरूर लूंगी… लेकिन आप इतनी धीरे कार क्यों चला रहे हो?’’
‘‘रात के खाली सड़कों पर तेज रफ्तार की वजह से ही भयानक दुर्घटनाएं होती हैं. दरअसल, पार्टियों से वापस आते लोग शराब के नशे में तेज रफ्तार के कारण कार को संभाल नहीं पाते. इसी से दुर्घटनाएं होती हैं. सड़कों पर रोशनी पूरी नहीं होती, सामने से आने वाले वाहनों की हैडलाइट से आंखों में चौंध पड़ती है, पटरी और रोडडिवाइडर नजर नहीं आते हैं, इसलिए जब देरी हो गई है तो आधा घंटा और सही.’’
पौने 4 बजे वे घर पहुंचे, लाइट खोली तो रोहिणी उठ गई, ‘‘क्या बात है पापा, पूरी रात शादी में बिता दी. कल आफिस की छुट्टी करोगे क्या?’’
सुरेश ने हंसते हुए कहा, ‘‘कल नहीं, आज. अब तो तारीख भी बदल गई है. आज आफिस में जरूरी काम है, छुट्टी का मतलब ही नहीं. अगर अब सो गया तो समझ लो, दोपहर से पहले उठना ही नहीं होगा. बेटे, अब तो एक कप चाय पी कर सुबह की सैर पर जाऊंगा.’’
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‘‘पापा, आप कपड़े बदलिए, मैं चाय बनाती हूं,’’ रोहिणी ने आंखें मलते हुए कहा.
‘‘तुम सो जाओ, बेटे, हमारी नींद तो खराब हो गई है, मैं चाय बनाती हूं,’’ सुकन्या ने रोहिणी से कहा.
चाय पीने के बाद सुरेश, सुकन्या और रोहिणी सुबह की सैर के लिए पार्क में गए.
‘‘आज असली आनंद आएगा सैर करने का, पूरा पार्क खाली, ऐसे लगता है कि हमारा प्राइवेट पार्क हो, हम आलसियों की तरह सोते रहते हैं. सुबह सैर का अपना अलग ही आनंद है,’’ सुरेश बांहें फैला कर गहरी सांस खींचता हुआ बोला.
‘‘आज क्या बात है, बड़ी दार्शनिक बातें कर रहे हो.’’
‘‘बात दार्शनिकता की नहीं, बल्कि जीवन की सचाई की है. कल रात शादी में देखा, दिखावा ही दिखावा. क्या हम शादियां सादगी से नहीं कर सकते? अगर सच कहें तो सारा शादी खर्च व्यर्थ है, फुजूल का है, जिस का कोई अर्थ नहीं है.’’
तभी रोहिणी जौगिंग करते हुए समीप पहुंच कर बोली, ‘‘पापा, बिलकुल ठीक है, शादियों पर सारा व्यर्थ का खर्चा होता है.’’
सुकन्या सुरेश के चेहरे को देखती हुई कुछ समझने की कोशिश करने लगी. फिर कुछ पल रुक कर बोली, ‘‘मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा है. आज सुबह बापबेटी को क्या हो गया है?’’
‘‘बहुत आसान सी बात है, शादी में सारे रिश्तेदारों को, यारों को, पड़ोसियों को, मिलनेजुलने वालों को न्योता दिया जाता है कि शादी में आ कर शान बढ़ाओ. सब आते हैं, कुछ कामधंधा तो करते नहीं…उस पर सब यही चाहते हैं कि उन की साहबों जैसी खातिरदारी हो और तनिक भी कमी हो गई तो उलटासीधा बोलेंगे, जैसे कि नंदकिशोर के बेटे की शादी में देखा, हम सब जम कर दावत उड़ाए जा रहे थे और कमियां भी निकाल रहे थे.’’
तभी रोहिणी जौगिंग का एक और चक्कर पूरा कर के समीप आई और बोलने लगी तो सुकन्या ने टोक दिया, ‘‘आप की कोई विशेष टिप्पणी.’’
यह सुन कर रोहिणी ने हांफते हुए कहा, ‘‘पापा ने बिलकुल सही विश्लेषण किया है शादी का. शादी हमारी, बिरादरी को खुश करते फिरें, यह कहां की अक्लमंदी है और तुर्रा यह कि खुश फिर भी कोई नहीं होता. आखिर शादी को हम तमाशा बनाते ही क्यों हैं. अगर कोई शादी में किसी कारण से नहीं पहुंचा तो हम भी गिला रखते हैं कि आया नहीं. कोई किसी को नहीं छोड़ता. शादी करनी है तो घरपरिवार के सदस्यों में ही संपन्न हो जाए, जितना खच?र् शादी में हम करते हैं, अगर वह बचा कर बैंक में जमा करवा लें तो बुढ़ापे की पेंशन बन सकती है.’’
‘‘देखा सुकन्या, हमारी बेटी कितनी समझदार हो गई है. मुझे रोहिणी पर गर्व है. कितनी अच्छी तरह से भविष्य की सोच रही है. हम अपनी सारी जमापूंजी शादियों में खर्च कर देते हैं, अकसर तो उधार भी लेते हैं, जिस को चुकाना भी कई बार मुश्किल हो जाता है. अपनी चादर से अधिक खर्च जो करते हैं.’’
‘‘क्या बापबेटी को किसी प्रतियोगिता में भाग लेना है, जो वहां देने वाले भाषण का अभ्यास हो रहा है या कोई निबंध लिखना है.’’
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‘‘काश, भारत का हर व्यक्ति ऐसा सोचता.
लेखक- नीरज कुमार मिश्रा
‘‘अरे धनिया, आप चिंता क्यों करती हो… आप तो बस दवा खाओ और आराम करो… हम खाना भी बना लेंगे और बच्चों को भी संभाल लेंगे,’’ छंगा कह रहा था. उस की बात सुन कर खटिया पर लेटी हुई धनिया की आंखों में आंसू आ गए.
बीरू के मर जाने के बाद उस के हिस्से की जमीन धनिया के नाम कर दी गई थी. छंगा के मन में तो खोट था. वह उस जमीन को अपने नाम पर करा कर धनिया से छुटकारा पाना चाहता था, इसलिए एक दिन जब धनिया बुखार की दवा खा कर सो रही थी, तब धोखे से छंगा ने जमीन के कागजों पर धनिया का अंगूठा लगवा लिया.
शायद छंगा को इसी दिन का इंतजार ही था कि कागजों पर अंगूठा लग जाए और वह अकेला ही इस जमीन पर राज करे.
जब कुछ दिनों बाद धनिया की सेहत में सुधार हो गया, तब उस ने गौर किया कि छंगा का उस के और उस की बेटियों के प्रति बरताव बदल सा गया है. जहां पहले वह बच्चियों के लिए खानेपीने की चीजें लाता था, वहीं अब वह खाली हाथ चला आता है और सीधे मुंह बात भी नहीं करता और उन्हें मारनापीटना भी शुरू कर दिया है.
‘‘अब तो तुम्हारा बुखार सही हो गया है… कुछ कामधाम भी किया करो… सारा दिन तुम्हारे बच्चे मुझे तंग करते रहते हैं और मेरे पैसे खर्च करवाते हैं. अब इन का और खर्चा मुझ से नहीं उठाया जाता,’’ छंगा गरज रहा था.
‘शायद बाहर की कुछ परेशानी होगी, तभी तो ऐसे कह रहा है छंगा, नहीं तो मीठा बोलने वाला छंगा इतना कड़वा क्यों बोलता,’ ऐसा सोच कर धनिया खुद ही खेत की तरफ सब्जी तोड़ने चल दी.
खेत पर पहुंचते ही उस की आंखें हैरत से फटी रह गईं. खेत में खड़े नीम के पेड़ की छांव में गांव के कुछ मुस्टंडे शराब और मांस खा रहे थे.
‘‘तुम लोग मेरे खेत में गंदगी क्यों फैला रहे हो… क्या तुम लोगों को और कोई जगह नहीं मिली… चलो, भागो यहां से,’’ धनिया चीख रही थी.
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‘‘तुम्हारा खेत… पर, यह खेत तो तुम अपनी मरजी से छंगा के नाम पर चुकी हो… और उसी ने हमें यहां बुला कर खानेपीने का इंतजाम करवाया है. अगर हमारी बात पर यकीन न आ रहा हो, तो पंचायत बुला कर पूछ लो,’’ उन में से एक ने धनिया से कहा.
धनिया ने उन लोगों को तो किसी तरह वहां से चलता किया, पर उन लोगों की बात उस के कानों में गूंजती रही.
धनिया घर लौटी, तो अपनी बेटियों को उस ने दरवाजे पर ही रोते पाया.
‘‘देखो अम्मां… पापा ने हमें मार कर घर से बाहर निकाल दिया है,’’ एक बेटी ने बताया.
धनिया का दिल दहल उठा था. उस ने बाहर से ही छंगा को आवाज लगाई.
‘‘अब मुझे तेरी जरूरत नहीं है… तू मेरी जिंदगी से चली जा, तुझ में है ही क्या? भला कोई 2 बेटियों की मां के साथ कैसे खुश रह सकता है,’’ छंगा अंदर से ही बोला और दरवाजा बंद कर लिया.
रोती हुई धनिया पंचायत पहुंची. पंचों ने तुरंत ही छंगा को तलब किया और उस से पूछा कि जिस औरत के साथ अभी कुछ दिन पहले ही तुम ने ब्याह किया है, आज उस के साथ ऐसा सुलूक क्यों कर रहे हो?
‘‘भला मैं ऐसा सुलूक करने वाला कौन होता हूं… इस कागज पर खुद धनिया का अंगूठा लगा है और जिस में लिखा हुआ है कि मैं अब अपनी सारी खेती छंगा के नाम कर रही हूं और अपनी मरजी से छंगा का घर छोड़ कर जा रही हूं, इसलिए भविष्य में उसे मेरा पति और मुझे उस की पत्नी न समझा जाए,’’ कह कर छंगा ने कागज आगे बढ़ा दिया.
पंचों ने उन कागजों को उलटापलटा. कागज पर यही लिखा हुआ था, जिस के नीचे धनिया का अंगूठा भी लगा हुआ था.
‘‘तुम ने तो अपनी मरजी से ही ये सब किया है… यह अंगूठे का निशान तो तुम्हारा ही है न?’’ पंचों में से एक ने कागज दिखाते हुए पूछा.
धनिया हैरान थी. अंगूठे का निशान तो उसी का था, पर भला वह क्यों ऐसा करने लगी? यह सोच कर वह परेशान हो उठी.
कागजों के आगे पंच भी मजबूर थे, इसलिए उन्होंने छंगा के हक में फैसला सुना दिया और धनिया सड़क पर आ गई.
रात हुई तो धनिया को डर लगने लगा. कुछ सोच कर वह बेटियों को ले कर अपने घर गई. दरवाजा अंदर से भिड़ा हुआ था. सामने छंगा बैठा हुआ ढेर सारे नोटों की गड्डियां गिन रहा था.
धनिया सन्न रह गई थी, उस की आंखें फटी की फटी रह गई थीं. आखिरकार आज से पहले इतना पैसा तो छंगा के पास नहीं देखा था उस ने.
‘‘ऐसे चुड़ैल की तरह क्या देख रही है… क्या कभी पैसा नहीं देखा… और फिर मेरे घर क्यों आई हो, जब तुझे पंचायत में शिकायत ले कर जाना ही है… अब मुझे तेरा साथ नहीं चाहिए,’’ छंगा ने धनिया को देख कर कहा.
‘‘मैं कोई भीख मांगने नहीं आई… मेरे हिस्से की जमीन…’’
‘‘तेरी कोई जमीन नहीं… और जो जमीन तू ने मेरे नाम कर दी थी, वह भी मैं ने कालिया को बेच दी है,’’ कह कर छंगा ने दरवाजा बंद कर दिया था.
लखनऊ . मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ऑक्सीजन की पर्याप्त मात्रा में उपलब्धता के लिए बड़ी पहल की है. जल्द ही ऑक्सीजन को लेकर प्रदेश आत्मनिर्भर हो जाएगा और दूसरे राज्यों से ऑक्सीजन मंगाने की जरूरत नहीं पड़ेगी. सीएम के निर्देश के बाद प्रदेश में युद्ध स्तर पर 485 ऑक्सीजन प्लांट में से 290 ऑक्सीजन प्लांट पर काम चल रहा है. जबकि 167 के प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजे गए हैं.
सीएम योगी की पहल पर प्रदेश में पहली बार इतने बड़े पैमाने पर ऑक्सीजन प्लांट लगाए जा रहे हैं. सीएम योगी ने निजी मेडिकल कॉलेजों में भी ऑक्सीजन प्लांट लगाने के निर्देश दिए हैं. ऐसे निजी मेडिकल कॉलेज जिन्हें सरकार की ओर से टेकओवर किया गया है, उनमें अगर ऑक्सीजन प्लांट नहीं है, तो सरकार की ओर से ऑक्सीजन प्लांट लगाया जाएगा और इसकी प्रतिपूर्ति निजी मेडिकल कॉलेजों को दी जाने वाली धनराशि से की जाएगी.
प्रदेश में ऑक्सीजन आडिट और साफ्टवेयर आधारित ट्रैकिंग के बेहतर परिणाम मिल रहे हैं. मौजूदा समय में सभी जिलों में पर्याप्त बैकअप है. मेडिकल कॉलेजों में भी ढाई दिन तक का ऑक्सीजन स्टोर है, पिछले 24 घंटों में प्रदेश में 753 एमटी ऑक्सीजन की आपूर्ति की गई है. होम आइसोलेशन में रह रहे लोगों को भी ऑक्सीजन दिया जा रहा है.
33 ऑक्सीजन प्लांट लगे, 258 पर चल रहा काम
प्रदेश में 25 ऑक्सीजन प्लांट कार्य कर रहे हैं. पीएम केयर फंड से कुल 188 नए ऑक्सीजन प्लांट लगने हैं, जिसमें से पांच लग गए हैं और 16 पर काम चल रहा है. इसके अलावा 167 प्लांट के लिए केंद्र सरकार को प्रस्ताव भेजा गया है. राज्य सरकार की ओर से 27, चीनी मिलों और आबकारी विभाग की ओर से 79, बिल एंड मिलिंडा गेट्स फाउंडेशन की ओर से 10, सांसद निधि से छह और विधायक निधि से 37, स्टेट डिजास्टर रीलिफ फंड (एसडीआरएफ) से 25 और पाथ की ओर से दो ऑक्सीजन प्लांट लग रहे हैं. इसके अलावा सीएसआर फंड से 59 प्लांट लग रहे हैं, जिसमें तीन लग चुके हैं. सांसद निधि से दो, विधायक निधि से 20, एसडीआरएफ से पांच ऑक्सीजन प्लांट जल्द स्वीकृत होने की उम्मीद है.
इन 10 अस्पतालों में भी लगे रहे आक्सीजन प्लांट
प्रदेश के 10 अस्पतालों में लखनऊ के अवन्तीबाई, महिला चिकित्सालय और आरएसएम हास्पिटल-साढ़ामऊ, गौतमबुद्धनगर के 300 बेडेड कोविड हास्पिटल, कानपुरनगर के मान्यवर कांशीराम ट्रामा सेंटर, अमेठी के डीसीएच गौरीगंज, बिजनौर, देवरिया और इटावा के जिला चिकित्सालय, मथुरा के कम्बाइंड हास्पिटल वृन्दावन और पीलीभीत के जिला चिकित्सालय में भी ऑक्सीजन प्लांट लगाया जा रहा है.