हर जवान की इच्छा होती है कि उस की कोई गर्लफ्रैंड हो. आजकल गांवकसबों में लड़केलड़कियों को मिलने के इतने मौके मिलने लगे हैं कि आसानी से गर्लफ्रैंड बन जाती हैं. पर आज के छोटे शहरों, कसबों और गांवों की लड़कियां भोलीभाली नहीं हैं. वे अपनी कीमत जानती हैं. वे लड़कों से ज्यादा पढ़ रही हैं. वे लड़कों से ज्यादा हुनरमंद हैं. घरों में रहते हुए भी उन्हें पैसे की कीमत मालूम है.
आज गांवों की लड़कियों को भी काम के मौके मिलने लगे हैं. थोड़ी पढ़ाई हो, थोड़ा काम तो उम्मीदों के पंख लग जाते हैं. शहर जा कर मौल में खाना और पिक्चर देखना, स्मार्ट फोन खरीदना, डाटा चार्ज कराना, घरेलू रोटी, शरबत की जगह बर्गर, पिज्जा और कोक लेना वे जानती हैं और इन सब का भुगतान बौयफ्रैंड ही करेगा, वे यह भी जानती हैं.
आज की लड़कियां अपने साथ की कीमत भी जानती हैं और अपने बदन की भी. उन्हें अगर सैक्स पर कोई एतराज न हो तो वे यह भी जानती हैं कि यह चीज कीमती है. वे इस की कीमत लेना शादी तक नहीं टालना चाहतीं. उन्हें आज ही चाहिए और इसीलिए लड़कों को मरखप कर कमा कर, चोरी कर के गर्लफ्रैंड के लिए पैसा जमा करना ही होता है. घरों में लड़की को आज भी कमतर माना जाता है पर लड़कियां फिर भी जुगत भिड़ा कर आसमान में उड़ने के लिए एक साथी को ढूंढ़ने से कतराती नहीं हैं और इस साथी को ही पंखों को हवा देनी होती है.
दिल्ली में अप्रैल के दूसरे सप्ताह में एक लड़के ने अपनी गर्लफ्रैंड के खर्च उठाने के लिए 7 महीने का एक बच्चा ही अगवा कर लिया और 40 लाख रुपयों की मांग कर डाली. इस नौसिखिए अपराधी कोपकड़ लिया गया पर वह बक गया कि इस तरह का जोखिम उस ने क्यों लिया था.

लड़कियों की खातिर गलियों में आएदिन मारपीट होती रहती है. लव जिहाद का शिगूफा इसीलिए उठाया गया है क्योंकि हिंदू लड़कियों को मुसलिम लड़के भाते हैं जो मेहनती हैं, काम करना जानते हैं और हिंदू लड़कों के मुकाबले ज्यादा तहजीब वाले हैं. मुसलमानों में लड़कियों को बहुत आजादी नहीं है. परदा है, बुरका है पर फिर भी धार्मिक कानूनों में वे बराबर की सी हैं. उन के बीच पलेबढ़े हुए लड़के हिंदू निकम्मों से ज्यादा बेहतर हैं.

फिर हिंदू दलित लड़कियां सुंदर हों तो हिंदू लड़के गर्लफ्रैंड नहीं बनाना चाहते, बस उन से सैक्स चाहते हैं, राजीराजी या जबरन. लव जिहाद का शिगूफा हिंदू लड़कों की पोल खोल रहा है कि आखिर क्यों हिंदू लड़कियां मुसलिम लड़कों को मरने तक की हद तक चाहने लगी हैं.

गर्लफ्रैंड चाहे हिंदू हो या मुसलिम पालना आसान नहीं है. आज शादी की उम्र टल रही है. 30-35 साल तक की उम्र के लड़के भी एक छत पा सकने लायक नहीं कमा पा रहे. उन्हें गर्लफ्रैंड ही चाहिए क्योंकि शादी कर नहीं सकते, घर ला नहीं सकते. दोजनी मोदीशाहसरकार को वैसे तो समाज की बड़ी चिंता है पर उस के लठैतों की क्या बुरी हालत समाज में है, उस की कोई फिक्र नहीं. इसलिए गर्लफ्रैंड बनाओ, खर्च करो, रोओ, लड़कोंकेलिए यही बचा है.

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