भोजपुरी भाषी दर्शकों का निरंतर अपनी गायकी व अभिनय से मनेारजन करते आ रहे हरदिल अजीज अभिनेता व गायक पवन सिंह बौलीवुड के मशहूर संगीतकार सलीम सुलेमान के साथ धमाल मचाने के बाद अब ‘गल बन गयी’,‘चीटिया कलाईयाँ, छमछम फेम संगीतकार मीत ब्रदर्स के निर्देशन में गाना गाएंगे.
सूत्रों की माने तो मीत ब्रदर्स ने पवन सिंह के लिए गाने की धुन भी तैयार कर चुके हैं. अब केवल कोरोना महमारी के चलते लगे हुए लॉकडाउन के खत्म होने का हर किसी को बेसब्री से इंतजार है. लाॅकडाउन खत्म होने के बाद पवन सिंह आरा,बिहार से मुंबई आकर इस गीत को अपनी आवाज में स्वरबद्ध करने वाले हैं.
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सूत्रों का दावा है कि इस गाने में पवन सिंह के साथ बौलीवुड की एक सुपर हॉट अभिनेत्री भी नजर आने वाली हैं. ज्ञातब्य है कि भोजपुरी जगत के चर्चित गायक व अभिनेता पवन सिंह फिलहाल बिहार के आरा जिले में अपने गाँव में हैं, जहां बीते वर्ष उन्होंने लॉकडाउन के दौरान अपने घर में म्यूजिक स्टूडियो बनवाया था, जहां अभी वह अपने गानों की रिकॉर्डिंग में लगे रहते हैं और वह शीघ्र ही आसपास के जगहों पर उन गानों का फिल्मांकन भी करने वाले हैं.लेकिन इससे बड़ी खबर ये है कि पवन का इंतजार मुंबई में सिर्फ मीत ब्रदर्स को ही नहीं, सलीम सुलेमान को भी है, जिन्होंने पवन सिंह को लेकर अपने दूसरे गाने की भी तैयारी पूरी कर ली.
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इतना ही नही बौलीवुड गायक व संगीतकार पायल देव के साथ भी पवन सिंह का एक पंजाबी गाना जल्द आने वाला है.पायल देव पवन सिंह के साथ इससे पहले सलीम सुलेमान के होली सॉन्ग ‘बबुनी तेरे रंग’ में कर चुकी हैं, जो गाना देशभर में लोगों के बीच खूब पसंद किया गया.यह गाना उस समय ट्रेंड भी कर रहा था.अब जब वह मीत ब्रदर्स के लिए गाने करेंगें,तो एक बार फिर से भोजपुरी ही नहीं, पूरे बौलीवुड की नजर पवन और मीत ब्रदर्स के इस नए गाने पर होगी.
मशहूर एक्ट्रेस हिना खान (Hina Khan) के पिता का निधन कुछ दिन पहले ही हुआ. और इस घटना से वह बुरी तरह टूट गई. अब वह आए दिन अपने पिता को लेकर सोशल मीडिया पर पोस्ट करती रहती हैं. अब उन्होंने कुछ फोटोज और वीडियो शेयर कर सोशल मीडिया पर सभी का ध्यान खींच लिया है.
हिना खान इन तस्वीरों में अपनी मां के साथ दिखाई दे रही हैं. इन फोटोज में एक्ट्रेस पिता के निधन के बाद अपनी मां को दिलासा देती नजर आ रही हैं.
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इन तस्वीरों में आप देख सकते हैं कि एकट्रेस अपनी मां के लिए प्यार जता रही हैं और उन्हें दिलासा देती हुई नजर आ रही हैं. हिना खान (Hina Khan) ने इन तस्वीरों को शेयर करते हुए कैप्शन में लिखा कि ‘मां, तेरी खुशी मेरी ख्वाहिश, तेरी हिफाजत मेरा हक, मैं कोई थेरेपिस्ट नहीं हूं मां, लेकिन मैं वादा करती हूं कि मैं आपका ध्यान रखूंगी. आपके आंसुओं को पोंछ आपकी बातें सुनूंगी. हमेशा..’
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इन तस्वीरों को देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि एक्ट्रेस हिना खान अपनी मां से घंटों बातें करती हुई नजर आ रही है. फैंस को एक्ट्रेस की ये तस्वीर काफी पसंद आ रही है.
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स्टार प्लस का ‘गुम है किसी के प्यार में’ (Ghum Hai Kisikey Pyaar Meiin) की कहानी एक नया मोड़ ले रही है. चौहान हाउस में जबसे सई आई है, घर का पूरा माहौल बदल चुका है. एक तरफ विराट ने ठान लिया है कि वह सई का साथ कभी नहीं छोड़ेगा तो दूसरी तरफ पाखी उन दोनों को अलग करने के लिए नया प्लान बनाती नजर आ रही है. और इस बार पाखी ने कुछ ऐसा प्लान किया है, सई और विराट अलग हो जाएंगे? तो आइए बताते हैं, शो के नए ट्विस्ट के बारे में.
शो के लेटेस्ट ट्रैक में खूब हंगामा होने वाला है. सीरियल में दिखाया जा रहा है कि पाखी ने भवानी के साथ हाथ मिलाकर सई को चौहान हाउस से आउट करने के लिए जबरदस्त प्लान बनाया है. दूसरी ओर विराट, सई के करीब आते हुए दिखाई दे रहा है. वहीं अब पाखी को लग रहा है कि सबकुछ हाथ से निकलता जा रहा है. ऐसे में पाखी विराट के पास जाती है और उसका वादा याद दिलाती है.
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पाखी याद दिलाती है कि विराट ने उससे वादा किया था, जो जगह उसकी है, वो कोई भी नहीं लेगा. विराट पाखी से वादा करता है कि वो कभी भी किसी से प्यार नहीं करेगा. पाखी विराट को एक-एक बात याद दिलाती है और उसे उसकी ही नजरों में गिराने की कोशिश करती है.
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शो के अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि पाखी और विराट की बातों को सई सुन लेगी और वो विराट को इन सवालों के बीच घिरा देखकर परेशान हो जाएगी. आप ये भी देखेंगे कि सई चाहेगी कि विराट पाखी से वादा निभा सके. इसलिए वह चौहान हाउस को छोड़ने का फैसला लेगी.
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तो वहीं विराट सई को हर तरह से समझाने की कोशिश करेगा लेकिन सई उसकी एक भी नहीं सुनेगी. अब शो के नये एपिसोड में ये देखना दिलचस्प होगा कि क्या पाखी की ये चाल कामयाब होगी? सई-विराट अलग हो जाएंगे?
जन्मदिन के अगले ही दिन क्षितिज ने बड़े नाटकीय अंदाज में उस के सामने विवाह प्रस्ताव रख दिया था.
‘तुम होश में तो हो, क्षितिज? तुम मुझ से कम से कम 3 वर्ष छोटे हो. तुम्हारे मातापिता क्या सोचेंगे?’
‘मातापिता नहीं हैं, भैयाभाभी हैं और उन्हें मैं अच्छी तरह जानता हूं. मैं मना लूंगा उन्हें. तुम अपनी बात कहो.’
‘मुझे तो लगता है कि हम मित्र ही बने रहें तो ठीक है.’
‘नहीं, यह ठीक नहीं है. पिछले 2 सालों में हर पल मुझे यही लगता रहा है कि तुम्हारे बिना मेरा जीवन अधूरा है,’ क्षितिज ने स्पष्ट किया था.
प्राची ने अपनी मां और पिताजी को जब इस विवाह प्रस्ताव के बारे में बताया तो मां देर तक हंसती रही थीं. उन की ठहाकेदार हंसी देख कर प्राची भौचक रह गई थी.
‘इस में इतना हंसने की क्या बात है, मां?’ वह पूछ बैठी थी.
‘हंसने की नहीं तो क्या रोने की बात है? तुम्हें क्या लगता है, वह तुम से विवाह करेगा? तुम्हीं कह रही हो कि वह तुम से 3 साल छोटा है.’
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‘क्षितिज इन सब बातों को नहीं मानता.’
‘हां, वह क्यों मानेगा. वह तो तुम्हारे मोटे वेतन के लिए विवाह कर ही लेगा पर यह विवाह चलेगा कितने दिन?’
‘क्या कह रही हो मां, क्षितिज की कमाई मुझ से कम नहीं है, और क्षितिज आयु के अंतर को खास महत्त्व नहीं देता.’
‘तो फिर देर किस बात की है. जाओ, जा कर शान से विवाह रचाओ, मातापिता की चिंता तो तुम्हें है नहीं.’
‘मुझे तो इस प्रस्ताव में कोई बुराई नजर नहीं आती,’ नीरज बाबू ने कहा.
‘तुम्हें दीनदुनिया की कुछ खबर भी है? लोग कितने स्वार्थी हो गए हैं?’ मां ने यह कह कर पापा को चुप करा दिया था.
क्षितिज नहीं माना. लगभग 6 माह तक दोनों के बीच तर्कवितर्क चलते रहे थे. आखिर दोनों ने विवाह करने का निर्णय लिया था, लेकिन विवाह कर प्राची के घर जाने पर दोनों का ऐसा स्वागत होगा, यह क्षितिज तो क्या प्राची ने भी नहीं सोचा था.
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जाने अभी और कितनी देर तक प्राची अतीत के विचारों में खोई रहती अगर क्षितिज ने झकझोर कर उस की तंद्रा भंग न की होती.
‘‘क्या हुआ? सो गई थीं क्या? लीजिए, गरमागरम कौफी,’’ क्षितिज ने जिस नाटकीय अंदाज में कौफी का प्याला प्राची की ओर बढ़ाया उसे देख कर वह हंस पड़ी.
‘‘तुम कौफी बना रहे थे? मुझ से क्यों नहीं कहा. मैं भी अच्छी कौफी बना लेती हूं.’’
‘‘क्यों, मेरी कौफी अच्छी नहीं बनी क्या?’’
‘‘नहीं, कौफी तो अच्छी है, पर तुम्हारे घर पहली कौफी मुझे बनानी चाहिए थी,’’ प्राची शर्माते हुए बोली.
‘‘सुनो, हमारी बहस में तो यह कौफी ठंडी हो जाएगी. यह कौफी खत्म कर के जल्दी से तैयार हो जाओ. आज हम खाना बाहर खाएंगे. हां, लौट कर गांव जाने की तैयारी भी हमें करनी है. भैयाभाभी को मैं ने अपने विवाह की सूचना दी तो उन्होंने तुरंत गांव आने का आदेश दे दिया.’’
‘‘ठीक है, जो आज्ञा महाराज. कौफी समाप्त होते ही आप की आज्ञा का अक्षरश: पालन किया जाएगा,’’ प्राची भी उतने ही नाटकीय स्वर में बोली थी.
दूसरे ही क्षण दरवाजे की घंटी बजी और दरवाजा खोलते ही सामने प्राची और क्षितिज के सहयोगी खड़े थे.
‘बधाई हो’ के स्वर से सारा फ्लैट गूंज उठा था और फिर दूसरे ही क्षण उलाहनों का सिलसिला शुरू हो गया.
‘‘वह तो मनोहर और ऋचा ने तुम्हारे विवाह का राज खोल दिया वरना तुम तो इतनी बड़ी बात को हजम कर गए थे,’’ विशाल ने शिकायत की थी.
‘‘आज हम नहीं टलने वाले. आज तो हमें शानदार पार्टी चाहिए,’’ सभी समवेत स्वर में बोले थे.
‘‘पार्टी तो अवश्य मिलेगी पर आज नहीं, आज तो मुंह मीठा कीजिए,’’ प्राची और क्षितिज ने अनुनय की थी.
उन के विदा लेते ही दरवाजा बंद कर प्राची जैसे ही मुड़ी कि घंटी फिर बज उठी. इस बार दरवाजा खोला तो सामने राजा, प्रवीण, निधि और वीणा खड़े थे.
‘‘दीदी, जीवन के इतने महत्त्वपूर्ण क्षण में आप ने हमें कैसे भुला दिया?’’ प्रवीण साथ लाए कुछ उपहार प्राची को थमाते हुए बोला था. राजा, निधि और वीणा ने भी दोनों को बधाई दी थी.
‘‘हम सब आप दोनों को लेने आए हैं. पापा ने बुलावा भेजा है. आप तो जानती हैं, वह खुद यहां नहीं आ सकते,’’ राजा ने आग्रह किया था.
‘‘भैया, हम दोनों आशीर्वाद लेने घर गए थे, पर मां ने तो हमें श्राप ही दे डाला,’’ प्राची यह कहते रो पड़ी थी.
‘‘मां का श्राप भी कभी फलीभूत होता है, दीदी? शब्दों पर मत जाओ, उन के मन में तो आप के लिए लबालब प्यार भरा है.’’
प्राची और क्षितिज जब घर पहुंचे तो सारा घर बिजली की रोशनी में जगमगा रहा था. व्हील चेयर पर बैठे नीरज बाबू ने प्राची और क्षितिज को गले से लगा लिया था.
‘‘यह क्या, प्राची? घर आ कर पापा से मिले बिना चली गई. इस दिन को देखने के लिए तो मेरी आंखें तरस रही थीं.’’
प्राची कुछ कहती इस से पहले ही यह मिलन पारिवारिक बहस में बदल गया था. कोई फिर से विधि विधान के साथ विवाह के पक्ष में था तो कोई बड़ी सी दावत के. आखिर निर्णय मां पर छोड़ दिया गया.
‘‘सब से पहले तो क्षितिज बेटा, तुम अपने भैयाभाभी को आमंत्रित करो और उन की इच्छानुसार ही आगे का कार्यक्रम होगा,’’ मां ने यह कह कर अपना मौन तोड़ा. प्राची को आशीर्वाद देते हुए मां की आंखें भर आईं और स्वर रुंध गया था.
‘‘हो सके तो तुम दोनों मुझे क्षमा कर देना,’’
सौजन्य- सत्यकथा
मनमोहन दास जिला कामरूप मेट्रो, असम के रहने वाले थे. उन के 2 बेटे थे. बड़ा तपन और छोटा उत्तम. उत्तम ने रूपा से लवमैरिज की थी. रूपा उन महिलाओं की तरह थी, जो कभी एक मर्द के पल्ले से बंध कर नहीं रहतीं.
उत्तम से लव मैरिज के बाद रूपा को अहसास हुआ कि उस ने गलत और ठंडे व्यक्ति से शादी की है. रूपा चाहती थी कि उसे पति रात भर बांहों में भर कर मथता रहे. मगर उत्तम में इतना दमखम नहीं था.
ऐसे में जब कई महीनों तक भी रूपा के बदन की आग मंद नहीं पड़ी तब उस के कदम बहक गए. उस ने घर में ही अपने जेठ तपन दास पर ध्यान देना शुरू कर दिया. तपन उस से उम्र में 10 साल बड़ा था, मगर वह था गबरू. हृष्टपुष्ट तपन ने छोटे भाई की पत्नी रूपा को अपनी तरफ ताकते व मूक आमंत्रण देते देखा तो वह आशय समझ गया.
एक रोज घर में जब कोई नहीं था तो तपन ने रूपा को अपनी मजबूत बांहों में भर लिया. रूपा ने कुछ प्रतिक्रिया नहीं की, तो तपन का हौसला बढ़ गया. वह उसे बिस्तर पर ले गया. तब दोनों ने अपनी हसरतें पूरी कीं.
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वैसे तो रूपा तपन की बहू लगती थी. मगर उन दोनों ने जेठ बहू के रिश्ते को कलंकित कर के एक नया रिश्ता बना लिया था, अवैध संबंधों का रिश्ता. एक बार दोनों के बीच की मर्यादा रेखा टूटी तो वे अकसर मौका निकाल कर हसरतें पूरी करते रहे.
तपन उदयपुर, राजस्थान स्थित एक कंपनी में नौकरी करता था. वह छुट्टी पर घर आता तो रूपा के इर्दगिर्द ही मंडराता रहता था. दोनों एकदूसरे से खुश थे. मगर कभीकभार उन का मन होने पर भी उत्तम के होने की वजह से संबंध नहीं बना पाते थे. ऐसे में उन्हें उत्तम राह का कांटा दिखने लगा.
उत्तम दास वहीं कामरूप में ही काम करता था. कई साल तक रूपा और तपन के बीच यह खेल चोरीछिपे चलता रहा. घरपरिवार में किसी को भनक तक नहीं लगी थी.
तपन की उम्र 50 वर्ष की हो गई थी फिर भी वह बिस्तर का अच्छा खिलाड़ी था. रूपा ने तय कर लिया कि वह उत्तम को रास्ते से हटवा कर उस की पैतृक संपत्ति एवं इंश्योरेंस के पैसे से तपन के साथ ताउम्र मौज करेगी.
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उस ने अपनी योजना प्रेमी जेठ तपन को बताई तो वह बहुत खुश हुआ. वह भी यही चाहता था. सन 2020 में कोरोना के कारण कामधंधा बंद हो गया था. तपन उदयपुर से अपने घर कामरूप लौट आया.
जब कामधंधा शुरू होने वाला था तब तपन ने अपने भाई उत्तम से कहा, ‘‘उत्तम, यहां काम नहीं है. मैं ने तेरे लिए उदयपुर स्थित अपनी कंपनी में बात की है. तुम वहां जा कर साइट देख लो. पसंद आए तो वहीं काम करना.’’
उत्तम को बड़े भाई की बात बात जंच गई. वह अगले दिन ही उदयपुर के लिए निकल पड़ा. तपन ने इस से पहले रूपा के साथ मिल कर उत्तम की कहानी खत्म करने की योजना बना ली थी.
रूपा ने तपन को साढ़े 12 लाख रुपए दे कर कहा था कि पति जिंदा नहीं लौटना चाहिए. तपन अपने भाई से मोबाइल के जरिए कांटैक्ट में रहा. तपन ने उदयपुर में अपनी पहचान के राकेश लोहार को फोन कर के कहा, ‘‘एक आदमी जयपुर आ रहा है. उसे गाड़ी में ले जा कर उस का काम तमाम कर देना. तुम्हें साढ़े 12 लाख रुपए दे दूंगा.’’
‘‘ठीक है तपन भाई. उस का मोबाइल नंबर दे दो. मैं मिलता हूं और उस का खेल खत्म कर दूंगा.’’ राकेश लोहार ने भरोसा दिया.
राकेश लोहार ने उत्तम का मोबाइल नंबर ले लिया. राकेश ने अपने 4 साथियों सुरेंद्र, संजय, अजय व जयवर्द्धन को पूरी बात बता कर कहा कि एक दिन में
2-2 लाख रुपए मिलेंगे. राकेश ने खुद साढ़े 4 लाख रुपए रखे.
सब दोस्त गाड़ी ले कर जयपुर पहुंच गए. मोबाइल पर उत्तम से संपर्क कर उसे गाड़ी में बिठा लिया. उधर तपन भी असम से फ्लाइट पकड़ कर उदयपुर आ गया. ये लोग जयपुर से उदयपुर तक मौका नहीं मिलने के कारण उत्तम को मार नहीं सके. ये लोग उदयपुर आ गए. उन से तपन भी आ मिला. इस के बाद शराब में नींद की गोलियां डाल कर उत्तम को रास्ते में ही पिला कर नींद की आगोश में पहुंचा दिया.
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लेखक- एम. अशफाक
नई उम्र के 2 थानेदार थे, जिन में से एक का नाम था अकबर शाह और दूसरे का नाम तलजा राम. दोनों बहुत बहादुर, दिलेर और निडर थे. दोनों में घनिष्ठ मित्रता थी, इतनी घनिष्ठता कि एकदूसरे के बिना जीना भी अच्छा नहीं लगता था. उन की तैनाती कहीं भी हो, लेकिन मिलने के लिए समय निकाल ही लेते थे. दोनों कभीकभी अवैध काम भी कर जाते थे, लेकिन करते इतनी चालाकी से थे कि किसी को उस की भनक तक नहीं लगती थी. दोनों बहुत बुद्धिमान थे, इसीलिए बहुत अकड़ कर चलते थे.
सन 1930 की जब की यह कहानी है तब सिंध में पुलिस के थानेदार को सूबेदार कहते थे. उस समय सूबेदार इलाके का राजा हुआ करता था. अकबर शाह और तलजा राम की भी दूसरे सूबेदारों की तरह बहुत इज्जत थी. अकबर शाह ऊंचे परिवार का था, इसलिए हर मिलने वाला पहले उस के पैर छूता था और बाद में बात करता था. तलजा राम भी उच्च जाति का ब्राह्मण था.
एक बार दोनों एक हत्या के मामले में फंस गए. हत्या जिला मीरपुर खास के पथोरो रेलवे स्टेशन पर हुई थी. वहीं से कुछ देर पहले अकबर शाह और तलजा राम गाड़ी में सवार हुए थे. रेलवे पुलिस के एसपी ने स्वयं विवेचना की और कह दिया कि हत्या दोनों के उकसावे पर की गई. देश की सभी रेलवे लाइन एकदूसरे से जुड़ी हुई थीं. फरंटियर मेल (अब स्वर्ण मंदिर मेल) मुंबई और लाहौर तक आतीजाती थीं, इसी तरह बीकानेर और जोधपुर से रेलवे की गाडि़यां हैदराबाद सिंध तक आतीजाती थीं.
एक शाम ऐसी ही एक गाड़ी में अकबर शाह और तलजा राम सवार होने के लिए पथोरो रेलवे स्टेशन पर बड़ी शानबान से आए. जोधपुर से आने वाली गाड़ी जब पथोरो स्टेशन पर आ कर रुकी तो दोनों झट से फर्स्ट क्लास के डिब्बे में बैठ गए.
उन दिनों गाडि़यों में इतनी भीड़ नहीं हुआ करती थी. उस डिब्बे से जिस में ये दोनों सवार हुए थे, रेलवे का एक अधिकारी उतरा जो पथोरो स्टेशन का निरीक्षण करने आया था. जब उस ने प्लेटफार्म पर भीड़ एकत्र देखी तो स्टेशन मास्टर से पूछा. उस ने बताया कि इस इलाके का सूबेदार सफर करने जा रहा है, ये भीड़ उसे छोड़ने आई है.
रेलवे का अधिकारी कुछ अनाड़ी किस्म का था, वह रेलवे का कुछ ज्यादा ही हितैषी था. उसे लगा कि पुलिस का एक सूबेदार फर्स्ट क्लास में कैसे यात्रा कर सकता है. उस ने टीटी को बुला कर कहा कि उन के टिकट चैक करे. जब टीटी ने टिकट मांगे तो अकबर शाह जो इलाके का सूबेदार था, उसे अपना अपमान लगा. उस ने गुस्से में दोनों टिकट निकाल कर टीटी के मुंह पर दे मारे. टिकट सेकेंड क्लास के थे. टीटी ने रेलवे अधिकारी की ओर देखा तो उस ने कहा, ‘‘इन से कहो कि उतर कर सेकेंड क्लास में चले जाएं.’’
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अकबर शाह को बहुत गुस्सा आया. लेकिन मजबूरी यह थी कि यह थाना नहीं रेलवे स्टेशन था, इसलिए उस ने तलजा राम को इशारा किया. दोनों उतर कर सेकेंड क्लास के डिब्बे में बैठ गए. गाड़ी हैदराबाद के लिए रवाना हो गई. अगली सुबह पुलिस को सूचना मिली कि पथोरो स्टेशन के प्लेटफार्म पर जोधपुर से आए रेलवे अधिकारी को किसी ने सोते में कुल्हाडि़यों के घातक वार कर के मार डाला है.
रेलवे के एसपी मंझे हुए अधिकारी थे, चूंकि हत्या रेलवे स्टेशन की सीमा में हुई थी इसलिए विवेचना भी रेलवे पुलिस को करनी थी. मृतक बीकानेर रेलवे का कर्मचारी था. उन लोगों ने शोर मचा दिया, जिस से सिंध की बदनामी होने लगी. जोधपुर रेलवे पुलिस ने हत्यारों का पता बताने वाले को 500 रुपए का इनाम देने की घोषणा कर दी. बीकानेर वाले क्यों पीछे रहते उन्होंने भी 1000 रुपए के इनाम का ऐलान कर दिया.
मामला बहुत नाजुक था, इसलिए उस की तफ्तीश स्वयं एसपी ने संभाल ली. वह घटनास्थल पर पहुंचे. उन्होंने घटनास्थल का निरीक्षण किया, गवाहों के बयान लिए. जब उन्हें पता लगा कि मृतक की 2 सूबेदारों से तूतूमैंमैं हुई थी तो उन्हें पक्का यकीन हो गया कि हत्या उन दोनों ने ही कराई होगी. वे दोनों सूबेदार थे, यह कैसे सहन कर सकते थे कि उन्हें फर्स्ट क्लास के डिब्बे से उतर कर सेकेंड क्लास में बैठना पड़ा.
वह भी उन चाटुकारों के सामने जो उन्हें स्टेशन पर छोड़ने आए थे. उन दोनों के बारे में यह भी मशहूर था कि वे अपराधी प्रवृत्ति के लोगों से संबंध रखते थे. उन के लिए हत्या कराना बाएं हाथ का खेल था.
मृतक परदेसी आदमी था, जो एक दिन के लिए यहां आया था. वहां न तो उसे कोई पहचानता था और न उस की किसी से दुश्मनी थी. उस की हत्या उन दोनों सूबेदारों ने ही कराई थी. माना यह गया कि उन्होंने पथोरो से अगले स्टेशन पर पहुंच कर किसी बदमाश को इशारा कर दिया और वह बदमाश एक माल गाड़ी से जो पथोरो जा रही थी, उस में बैठ कर पथोरो स्टेशन पहुंचा. वह अफसर प्लेटफार्म पर सो रहा था, उस बदमाश ने कुल्हाड़ी के वार कर के उस की हत्या कर दी और भाग गया.
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एसपी साहब ने अपनी रिपोर्ट डीआईजी को भेज दी और दोनों सूबेदारों की गिरफ्तारी की इजाजत मांगी. उन दिनों सिंध का उच्च अधिकारी डीआईजी हुआ करता था. रिपोर्ट डीआईजी के पास पहुंची तो उन्होंने एसपी साहब को बुला कर उन से इस मामले में बात की. फिर दोनों सूबेदारों को बुला कर पूछा कि उन पर हत्या का आरोप है तो दोनों भौचक्के रह गए.
हत्या और हम, दोनों ने कानों पर हाथ रख कर कहा, ‘‘आप यह सोच भी कैसे सकते हैं. हम कानून के रक्षक हैं और कानून तोड़ने की सोच भी नहीं सकते. हमारा काम लोगों की जान बचाना है, जान लेना नहीं. मृतक ने हमारा अपमान जरूर किया था और हमें गुस्सा भी आया था लेकिन इतनी छोटीसी बात पर हत्या नहीं हुआ करती.’’
लेखक- नीरज कुमार मिश्रा
उस लड़की को अपने साथ पीछे वाली गाड़ी में ही बिठा लाया था रणबीर, जबकि कैंप में नेताजी की उदारवादिता की चर्चा होने लगी थी कि नेताजी कितने अच्छे हैं, जो हम लोगों के लिए रोजगार जुटा रहे हैं. शायद वे धीरेधीरे हम सब को रोजगार देंगे. जैसे आज रजिया को दिया है.
‘रजिया‘ हां, यही तो नाम था उस भोली सी दिखने वाली लड़की का, जो खूबसूरती में किसी भी फिल्म हीरोइन को टक्कर देती थी. बस उस का गूंगापन ही उस के लिए एक बड़ी समस्या थी. उस के मांबाप बचपन में ही मर गए थे. कैसे, वह रजिया को पता नहीं, सिर्फ उस की एक बहन थी, जो अब भी उसी कैंप में ही थी.
जब से रजिया ने होश संभाला, तब से उस की मौसी ने ही उसे पाला है और जब वह जवान हुई तो पाकिस्तान के खराब हालात उसे एक शरणार्थी बना कर आज यहां तक ले आए थे.
जब रजिया बाथरूम से नहा कर निकली, तो रणबीर सिंह को भी अपने फैसले पर सुखद आश्चर्य हो रहा था. रजिया को देख कर उस के मुंह में भी पानी आ गया था. अमूमन तो किसी भी नए फल को नेताजी ही चखते थे, पर रजिया को तो आज रणबीर सिंह ही खा जाने वाला था.
रात को जब रजिया फर्श पर बिछे कालीन पर सो रही थी, तभी शराब के नशे में रणबीर सिंह ने रजिया के जिस्म को नोच डाला… बेचारी गूंगी लड़की चीख भी नहीं सकी थी.
हांफता हुआ जब रणबीर रजिया के जिस्म से अलग हुआ, तो अनायास ही उस के मुंह से ये शब्द निकल पड़े, ‘‘स्साला… गूंगी लड़की के साथ तो सैक्स करने का अपना ही मजा है,‘‘ और धूर्तता से मुसकरा उठा था रणबीर.
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रजिया जब उठ पाने की हालत में आई, तो वह भाग कर नेताजी के पास पहुंची. नेताजी अभी अपने बिस्तर पर ही थे. रजिया ने हाथों के इशारों से ही अपने साथ हुए अत्याचार की सारी बात नेताजी को बता डाली.
नेताजी के गुस्से का पारावार नहीं रहा. उन्होंने तुरंत ही रणबीर को बुला कर खूब डांटा.
‘‘जिस लड़की के जिस्म पर पहले हमारा अधिकार था, उसे तुम ने हम से पहले जूठा कर दिया. लगता है कि अब हमारे साथ काम करने का मन नहीं है तुम्हारा.‘‘
‘‘माफ कर दीजिए सर. कल रात थोड़ी ज्यादा हो गई थी, इसलिए होश खो बैठा. आगे से ऐसा नहीं होगा,‘‘ गिड़गिड़ा रहा था रणबीर.
उस के इस तरह माफी मांगने पर नेताजी का गुस्सा थोड़ा शांत तो हुआ, पर अंदर ही अंदर उन के मन में नाराजगी ने घर कर लिया था.
नेताजी ने इशारों में रजिया को समझाया और जा कर नहाने को कहा.
नेताजी की डांट का असर बहुत दिनों तक रणबीर पर नहीं रहा. एक नेता का पीए होने के नाते वह जनता के सीधे संपर्क में रहता था, इसलिए उसे गलत तरीके से पैसे कमाने में कोई परेशानी नहीं होती थी. कुछ दिनों बाद ही उस ने लोगों से फिर पैसा उगाहना शुरू कर दिया.
रणबीर सिंह द्वारा बलात्कार किए जाने के सदमे से रजिया बहुत घबराई हुई थी. वह न खाती थी और न ही पीती थी. उस की ये हालत देख कर नेताजी समझ गए कि अगर इस की यही हालत रही, तो इस लड़की के साथ कुछ भी करना ठीक नहीं होगा, क्योंकि गुस्से में आ कर ये लड़की आत्महत्या भी कर सकती है, इसलिए उन्होंने रजिया को प्यारदुलार से समझाना शुरू किया और रणबीर को तो बिलकुल रजिया के पास फटकने नहीं दिया. तब रजिया को कुछ सुरक्षित माहौल का अनुभव हुआ.
जब उन्होंने धीरेधीरे रजिया का विश्वास जीत लिया, तो उसे लगने लगा कि अब उस पर रणबीर का कोई खतरा नहीं है और भविष्य में उस की अस्मत पर कोई आंच नहीं आएगी, तब एक दिन जब नेताजी अपने कमरे में आराम कर रहे थे, तभी उस ने नेताजी को एक कागज के टुकड़े पर टूटीफूटी हिंदी में जो लिखा, वह इस प्रकार था, ‘‘इस दुनिया में हम 2 बहनें ही हैं. मेरे यहां आ जाने से वह कैंप में अकेली रह गई है. आप बड़े दयालु हैं. हो सके तो उस को भी यहीं मेरे पास बुलवा दीजिए. आप को शुक्रिया.‘‘
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‘‘ओह्ह… तो ये मतलब है… इस की एक बहन और भी है. इस लड़की को मानसिक रूप से सही होने के लिए उस की बहन का यहां होना ठीक होगा, तो हम कल ही उस को भी बुलवा लेते हैं.‘‘
फिर क्या था, नेताजी ने तुरंत ही रणबीर सिंह को शरणार्थी कैंप में रजिया की बहन को लाने के लिए भेज दिया. कैंप में होने वाली कागजी कार्यवाही के लिए वहां के प्रबंधक के लिए नजराना भी भिजवाना नहीं भूले थे नेताजी.
‘‘क्या नाम है तुम्हारा?‘‘ नेताजी ने अपने साथ खड़ी रजिया की बहन से इशारों में पूछा.
‘‘जी, हमारा नाम मुमताज है,‘‘ उसे बोलते हुए सुन कर नेताजी हैरान हो गए.
उन्होंने तो सोचा था कि गूंगी रजिया की बहन भी गूंगी ही होगी, पर यह तो बोलती भी है. मतलब यह हुआ कि मुमताज खूबसूरती में भी रजिया से कहीं आगे थी और उस का बोलना तो एक तरह से सोने पे सुहागा हो गया था.
जब मुमताज ने नहाधो कर साफ कपडे़ पहन लिए, तो उसे देख कर रजिया बहुत खुश हो गई और उस से लिपट गई. जब रात को दोनों बहनें पास में लेटीं, तो रजिया ने अपने साथ हुए बलात्कार के बारे में मुमताज को सब बता दिया.
यह जान कर मुमताज के गुस्से का पारावार नहीं रहा, पर उसे वक्त के थपेड़ों ने बहुत ही समझदार लड़की में तबदील कर दिया था, इसलिए उस ने अपने तरीके से ही रणबीर सिंह को सबक सिखाने की बात सोची, क्योंकि वह जानती थी कि सीधी लड़ाई में तो वह रणबीर से नहीं जीत सकती है.
मुमताज को देख कर नेताजी और रणबीर के मुंह में पानी आ गया. दोनों ही उसे भोगने का सपना देखने लगे.
रणबीर ने अपनी आदत के अनुसार ही उस पर डोरे डालने शुरू कर दिए.
‘‘हां सुनो मुमताज, आज मैं बहुत खुश हूं… बताओ, तुम्हें क्या गिफ्ट दूं,‘‘ रणबीर ने मुमताज से कहा.
‘‘पर, भला आप इतना खुश क्यों हो?‘‘ मुमताज ने पूछा.
‘‘क्योंकि, आज मेरा जन्मदिन है. मैं आज किसी को भी दुखी नहीं देखना चाहता और खुशियां बांटना चाहता हूं,‘‘ रणबीर ने मुमताज की आंखों में झांकते हुए कहा.
‘‘तो… अगर ऐसा है तो मुझे थोड़ा शहर घुमा दो. मैं काफी दिन से बाहर नहीं गई हूं,‘‘ मुमताज ने भी बनावटी प्रेम दिखाते हुए कहा.
अपने जाल में खुद ही मछली को फंसते देख मन ही मन खुश हो रहा था रणबीर.
शहर में कई जगहों पर घुमाने के बाद एक अच्छे से रैस्टोरैंट में दोनों ने साथ खाना खाया. मुमताज के हावभाव से कतई नहीं लग रहा था कि वह एक शरणार्थी कैंप से आई हुई लड़की है.
इस बीच रणबीर ने कई बार मुमताज के नाजुक अंगों को छूने की कोशिश की, जिसे वह बड़ी ही सफाई से बचा गई थी.
‘‘घूमना तो काफी हो गया… अब बताओ, मैं तुम्हें क्या तोहफा दूं?‘‘ रणबीर ने मुमताज के हाथ को अपने हाथों में लेते हुए कहा. इस बार मुमताज ने कोई विरोध नहीं किया.
‘‘आप मुझे कुछ दिलाना ही चाहते हैं, तो फिर मुझे एक अच्छा सा मोबाइल दिला दीजिए… दरअसल, मुझे फेसबुक चलाने का बहुत शौक है,‘‘ मुसकराते हुए मुमताज ने कहा.
‘‘बस, इतनी सी बात… अभी चल कर दिलवा देता हूं.‘‘
अपनी पसंद का मोबाइल ले कर उस पर गुलाबी रंग का कवर भी लगवा लिया था मुमताज ने.
मुमताज को घुमाने, खिलानेपिलाने और तोहफे के तौर पर रणबीर मन ही मन इतना तो बेफिक्र हो ही चुका था कि अब मुमताज को पाना कठिन नहीं होगा और यही बात सोच कर रणबीर ने मुमताज से कहा, ‘‘मुमताज, तुम ने मोबाइल तो ले लिया है, पर इसे चलाना तो तुम्हें अभी आता नहीं. अगर आज रात तुम मेरे घर आ जाओ, तो मैं तुम्हें सबकुछ सिखा दूंगा… सबकुछ,‘‘ रणबीर ने अपनी आंख दबाते हुए कहा. बदले में मुमताज ने सिर्फ मुसकरा कर हामी भर दी.
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पूरे दिन रणबीर सिंह मुमताज के जिस्म के बारे में कल्पनाएं करता रहा और शाम से ही शराब पीनी भी शुरू कर दी थी.
आने वाले समय में शायद हमारे देश में एक कहावत प्रचलित हो जाएगी-” नरेंद्र मोदी के आंसू…”
बीते दिनों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी डॉक्टरों से संवाद कर रहे थे इसी दरमियान एक बार पुनः आंसू बहाने लगे . मोदी के साथ विसंगति यह है कि अपने आप को चट्टान की तरह कठोर भी साबित करना चाहते हैं और खुद को 56 इंच का सीने वाला बताने में गर्व महसूस करते थे और आजकल उन्होंने आंसू बहा कर संवेदना का चोला पहन कर देश की जनता को यह बताने का प्रयास किया है कि वे बहुत ही नरम हृदय के स्वामी है.
कोरोना कोविड-19 के इस संक्रमण काल में देश के प्रधानमंत्री को मजबूती के साथ खड़े होने की आवश्यकता है जैसे देश के हालात बन गए हैं उसके लिए एक मजबूत और विवेकशील नेतृत्व की आवश्यकता है.
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मगर, दो नावों की सवारी से मोदी अपनी छवि जो देश के जनमानस पर गढ़ना चाहते हैं, उसमें स्वयं ही अपनी भद पिटवा कर देशभर में कौतुक और हास्य का विषय बन गए हैं.
प्रधानमंत्री कैसा हो?
सीधी सी बात है कि हर आदमी, देश का हर एक नागरिक चाहता है कि उसका नेतृत्व करने वाला प्रधानमंत्री विवेकशील और संवेदनशील हो. वह आम जनता के दुख, दर्द समस्या को महसूस करें और उसे दूर करने का ईमानदारी से प्रयास करें.
मगर आज कोरोना वायरस के इस समय में हमारे देश के प्रधानमंत्री की गतिविधि और व्यवहार से आम जनता संतुष्ट नजर नहीं आती. जिस तरीके से देश में ऑक्सीजन की कमी हुई क्या वह जायज है ? जिस तरीके से हॉस्पिटलों में लोगों के लिए बेड और चिकित्सा की व्यवस्था नहीं थी क्या वह जायज है? जिस तरीके से डॉक्टरों, प्रशासन का व्यवहार आम जनता के साथ देखा गया क्या वह जायज है? ऐसे ही कुछ और भी महत्वपूर्ण पहलू हैं जिन्हें देखकर के आम जनमानस में यह धारणा बनी है कि हमारे देश के नेतृत्व था प्रधानमंत्री आज पूरी तरीके से असफल हो गए हैं. दुनिया के लगभग 40 से ज्यादा देशों ने हमें ऑक्सीजन भेजा, हमें मदद की, छोटे-छोटे देशों ने आगे आकर मदद का आह्वान किया और बिना मांगे चिकित्सा रसद भेजी इन सब बातों से यह संदेश गया कि हमारा देश और हमारा नेतृत्व कितना कमजोर है. आज हमें हाथ पसारना पड़ रहा है हम विश्व गुरु बनने की दौड़ में है हम बड़ी-बड़ी बातें करते रहते हैं, हमारे प्रधानमंत्री इतना ऊंचा ऊंचा हांकते हैं कि लोग उनके मुरीद हो गए, लेकिन जमीनी हकीकत को देख कर के मानो धरती का सीना है फट गया.
अगर मोदी एक प्रधानमंत्री और मुखिया होने के नाते अपने आप को असहाय बताएंगे आंसू बहाने लगेंगे तो देश की जनता का क्या होगा… हमें अखिर कैसा प्रधानमंत्री चाहिए? 56 इंच के सीने के झूठे वादे के साथ चुनाव के दंगल में आप ने बाजी मार ली. मगर हकीकत यह है कि आप एक बहुत ही कमजोर प्रधानमंत्री के रूप में याद किए जाएंगे एक सीधा सा उदाहरण यह है कि संकट आने पर अगर घर का मुखिया आंसू बहाने लगेगा तो घर के दूसरे सदस्यों पर क्या बीतेगी. शायद इसीलिए कहा जाता है कहावत है कि घर के मुखिया को मजबूत होना चाहिए उसे आंसू नहीं बहाना चाहिए . मगर यह एक छोटी सी बात प्रधानमंत्री जी को शायद पता नहीं है.क्योंकि आप के आंसू आपकी कमजोरी भारत देश के इस परिवार को कमजोर बनाने वाली है.
आंसू, प्रधानमंत्री और प्रोटोकॉल!
शायद आने वाले समय में इतिहास में नरेंद्र दामोदरदास मोदी को एक आंसू बहाने वाले प्रधानमंत्री के रूप में याद किया जाएगा. शायद ही देश में कोई ऐसा प्रधानमंत्री हुआ हो जो इस तरह बात बेबात आंसू बहाने लगा हो. अभी तक जाने कितनी बार में अपने आंसू देश की जनता को दिखा चुके हैं और अब शायद आगे इस पर शोध भी होने लगेगा.
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एक महत्वपूर्ण तथ्य हमें नहीं भूलना चाहिए कि एक बैठक में अभी हाल ही में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को प्रोटोकॉल बताया गया था. याद दिला कर कहा गया था कि प्रोटोकॉल का पालन करना चाहिए! तो क्या देश के प्रधानमंत्री के लिए प्रोटोकॉल का कोई नियम नहीं है, उन्हें भी तो स्वप्रेरणा से इस बात को महसूस करना चाहिए कि वह इस महान देश के एक प्रधानमंत्री हैं और उनका भी कुछ धर्म है, एक प्रोटोकॉल है. छोटी-छोटी बात पर उन्हें आंसू नहीं बहाना चाहिए इसका गलत संदेश देश की जनता में जाता है.
मगर, नरेंद्र दामोदरदास मोदी बारंबार अपने आप जनता की सपोर्ट प्राप्त करने के लिए देश की जनता की संवेदना और प्यार पाने के लिए आंसू बहाने लगते हैं.
जिस तरह एक अभिनेता का व्यवहार होता है आंसू बहाने के दृश्य को जीवंत बना करके तालियां बटोर लेता है, अपने आप को एक अच्छा महान अभिनेता सिद्ध करना चाहता है वैसे ही प्रधानमंत्री मोदी भी बड़ी ही चतुराई के साथ देश की जनता को भ्रमित करना चाहते हैं यही कारण है कि उनके आंसुओं को मगरमच्छ के आंसू जैसा बता करके उनका देश भर में खूब मजाक उड़ा है.
बंदर और मगरमच्छ की कहानी को याद किया है – शायद आपको भी मगरमच्छ और बंदर कहानी याद होगी. मगरमच्छ की पत्नी बंदर का मीठा कलेजा खाना चाहती है क्योंकि जिस पेड़ पर बंदर रहता है और जामुन खाता है तो उसका हृदय कितना मीठा होगा ? और पत्नी के दबाव दबाव में बंदर का कलेजा लेकर मगरमच्छ जब पानी में आगे बढ़ता है और बंदर चतुराई के साथ कहता है मेरा हृदय तो जामुन के पेड़ पर ही रह गया. मगरमच्छ बंदर को वापिस पेड़ पर छोड़ देता है तो बंदर कहता है कि अरे मूर्ख तेरी मेरी दोस्ती आज से खत्म….!
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अब सवाल लाख टके का यह है कि देश की जनता को क्या कोरोंना संक्रमण काल की पीड़ा, त्रासदी से सबक सीखा है या फिर आंसुओं में बह जाती है.