टोक्यो पैरालिंपिक 2020: कल तक अनजान, आज हीरो

भारत जैसे देश में जहां खेलों को सरकारी नौकरी पाने का जरीया माना जाता है, वहां खेल के प्रति इज्जत और खेल प्रेमी बहुत कम ही हैं. उन के लिए वही खिलाड़ी बड़ा है, जो ओलिंपिक खेलों में मैडल जीते.

इस बार के मेन टोक्यो ओलिंपिक खेलों में नीरज चोपड़ा ने भाला फेंक खेल इवैंट में सोने का तमगा क्या जीता, वे रातोंरात हीरो बन गए. राखी सावंत भी बीच सड़क पर लकड़ी को भाला बना कर फेंकती नजर आईं.

चूंकि नीरज चोपड़ा देखने में हैंडसम हैं, लंबेचौड़े हैं, तो वे जवान लड़कियों के क्रश बन गए. इस सब में खेल कहीं खो गया और वह सारी मेहनत भी जो नीरज चोपड़ा ने कई साल से एक गुमनाम खिलाड़ी की तरह की थी.

अब उन खिलाडि़यों की बात करते हैं, जो शरीर से कमतर होते हैं, पर मन से ताकतवर और जिन्हें सरकार ‘दिव्यांग’ कहती है. चूंकि इस बार के ओलिंपिक खेलों में भारत ने 7 तमगे जीत कर 48वां नंबर पाया था, तो टोक्यो में हुए पैरालिंपिक खेलों पर भी लोगों की नजर थी, जिन में ‘दिव्यांग’ खिलाड़ी हिस्सा लेते हैं.

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24 अगस्त, 2021 से 5 सितंबर, 2021 तक चले दिव्यांग खिलाडि़यों के इस विश्व खेल में भारतीय खिलाडि़यों  ने शानदार प्रदर्शन किया और कुल  19 तमगे जीते.

इस बार कुल 54 खिलाड़ी टोक्यो पैरालिंपिक में हिस्सा लेने गए थे, जिन में से कामयाब खिलाडि़यों ने 19 तमगे जीते. इन में 5 सोने के तमगे, 8 चांदी के तमगे और 6 कांसे के तमगे शामिल थे. भारत का रैंक 24वां रहा, जो अपनेआप में रिकौर्ड है.

मैडल जीतने की शुरुआत टेबल टैनिस खिलाड़ी भाविनाबेन पटेल ने की थी. उन्होंने भारत के लिए चांदी का तमगा जीता था, जबकि इस खेल में चीन, जापान जैसे देशों का दबदबा ज्यादा है.  29 अगस्त, 2021 को भाविनाबेन पटेल ने टेबल टैनिस क्लास 4 इवैंट के महिला एकल फाइनल में चीन की ?ाउ यिंग से मुकाबला किया, पर 7-11, 5-11, 6-11 की शिकस्त के साथ उन्हें चांदी के तमगे से संतोष करना पड़ा.

34 साल की भाविनाबेन पटेल गुजरात के मेहसाणा की रहने वाली हैं. यहां तक पहुंचने के लिए उन्हें कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा है. महज एक साल की उम्र में उन्हें पोलियो हो गया था. भाविनाबेन पटेल के पिता हंसमुख पटेल ने बेटी के पैरालिंपिक के लिए ठीक से ट्रेनिंग दिलाने के लिए अपनी दुकान बेचने का फैसला किया था. जैसा हर जगह होता है, सरकार की सहायता तो नाम की थी.

इस के बाद एथलैटिक्स में दूसरा तमगा आया. 29 अगस्त, 2021 को ऊंची कूद टी 47 इवैंट में भाग लेने वाले निषाद कुमार ने 2.06 मीटर की ऊंची छलांग लगाने के साथ चांदी का तमगा अपने नाम किया.

हिमाचल प्रदेश के अंब शहर के निषाद कुमार के पिता किसान हैं. जब निषाद 8 साल के थे, तब उन का दायां हाथ खेत पर घास काटने वाली मशीन से कट गया था. इस के बाद उन की मां ने ही उन्हें हौसला दिया था. पिता ने भी उन्हें यह महसूस नहीं होने दिया कि वे दिव्यांग हो गए हैं. हमारे देश में तो इस तरह के लोगों को पाप का भागी ही माना जाता रहा है.

मैडल जीतने के बाद निषाद कुमार बोले थे कि अगर वे अपनी दिव्यांगता या गरीबी के बारे में सोचते रहते तो यकीनन आज पैरालिंपिक में चांदी का तमगा नहीं जीत पाते.

इस के बाद देश को पहला सोने का तमगा मिला. 30 अगस्त, 2021 को जयपुर की रहने वाली पैराशूटर अवनि लेखड़ा ने महिलाओं के 10 मीटर एयर राइफल स्टैंडिंग एसएच 1 इवैंट में यह तमगा जीता. उन्होंने फाइनल मुकाबले में 249.6 अंक हासिल किए और वर्ल्ड रिकौर्ड की बराबरी की.

अवनि लेखड़ा साल 2012 में अपने पिता के साथ जयपुर से धौलपुर जा रही थीं, तो एक सड़क हादसे में वे दोनों घायल हो गए थे. पिता प्रवीण लेखड़ा तो कुछ समय बाद ठीक हो गए, पर अवनि रीढ़ की हड्डी में चोट लगने के चलते खड़े होने और चलने में नाकाम हो गईं.

इस के बाद अवनि लेखड़ा बहुत निराशा से भर गईं और अपनेआप को कमरे में बंद कर लिया, पर बाद में मातापिता की कोशिशों और अभिनव बिंद्रा की जीवनी से प्रेरणा ले कर वे निशानेबाजी करने लगीं.

30 अगस्त, 2021 को ही योगेश कथुनिया ने पुरुष डिस्कस थ्रो एफ 56 इवैंट में चांदी का तमगा जीता. उन्होंने अपना बैस्ट थ्रो 44.38 मीटर का किया.

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3 मार्च, 1997 को जनमे योगेश कथुनिया जब 8 साल के थे, तभी उन्हें लकवा हो गया था. काफी इलाज के बाद उन के हाथों ने तो काम करना शुरू कर दिया, लेकिन पैर वैसे ही रहे. हालांकि, वे ह्वीलचेयर से अपने पैरों पर आ गए थे.

योगेश कथुनिया को एक बार पैरिस में होने वाली ओपन ग्रांप्री चैंपियनशिप में जाना था. इस के लिए टिकट और दूसरे खर्चों के लिए उन्हें 86,000 रुपए की जरूरत थी. पर, घर में पैसे की तंगी पहले से ही थी. इस के बाद योगेश के एक दोस्त सचिन ने उन की मदद की और वहां जा कर उन्होंने सोने का तमगा जीता था. कोई मंदिर, कोई खाप, कोर्ट, बड़ी कंपनी उन की मदद के लिए नहीं आई.

30 अगस्त, 2021 को ही भारत के देवेंद्र ?ा?ाडि़या ने पुरुषों के जैवलिन थ्रो एफ 46 इवैंट में चांदी का तमगा हासिल किया. उन्होंने 64.35 मीटर भाला फेंक कर यह कारनामा किया.

देवेंद्र ?ा?ाडि़या एकलौते पैरालिंपिक एथलीट हैं, जिन के नाम पुरुष भाला फेंक में 2 सोने के तमगे हैं. उन्होंने अपना पहला सुनहरी तमगा साल 2004 में एथेंस पैरालिंपिक में और दूसरा साल 2016 में रियो पैरालिंपिक में जीता था.

देवेंद्र ?ा?ाडि़या जब 8 साल के थे, तब करंट लगने के चलते उन का हाथ बुरी तरह से जख्मी हो गया था. जब उन्होंने अपने स्कूल में भाला फेंकना शुरू किया, तो उन्हें लोगों के ताने ?ोलने पड़े, मगर उन्होंने हार नहीं मानी.

40 साल के देवेंद्र ?ा?ाडि़या का जन्म राजस्थान के एक साधारण किसान परिवार में हुआ था. उन के पिता किसान हैं और उन की मां गृहिणी हैं. उन के पिता राम सिंह ने दूर रहते हुए भी उन्हें खेत की ताजा दाल और गेहूं भेजा था, ताकि वे सेहतमंद रह कर प्रैक्टिस करते रहें.

इतना ही नहीं, इसी इवैंट में भारत के सुंदर सिंह गुर्जर ने कांसे का तमगा जीता. 25 साल के सुंदर सिंह गुर्जर ने साल 2015 में एक हादसे में अपना बायां हाथ गंवा दिया था. दरअसल, अपने एक दोस्त के घर पर काम करने के दौरान वे टिन की चादर पर गिर गए थे. इस से उन के बाएं हाथ की हथेली कट गई थी.

सुंदर सिंह गुर्जर का जन्म राजस्थान के करौली जिले में हुआ था. जब वे छोटे थे, तो पढ़ाई में उन का मन नहीं लगता था. वे 10वीं जमात में फेल हो गए थे. तब उन के एक टीचर ने खेलों में जाने को कहा था.

30 अगस्त, 2021 को भारत का दूसरा सोने का तमगा आया. सुमित अंतिल ने पुरुषों के भाला फेंक एफ 64 इवैंट में वर्ल्ड रिकौर्ड के साथ यह तमगा जीता. उन्होंने 68.55 मीटर का थ्रो करते हुए इतिहास रचा.

7 जून, 1998 को पैदा होने वाले सुमित अंतिल ने 6 साल पहले हुए एक सड़क हादसे में अपना एक पैर गंवा दिया था. इस के बावजूद उन्होंने हर हालात का डट कर सामना किया. उन के पिता भी नहीं थे और 3 बेटियों और सुमित को पालना मां के लिए आसान नहीं था.

सुमित पहलवान बनना चाहते थे, पर हादसे के बाद लगे नकली पैर और भाला फेंक खिलाड़ी नीरज चोपड़ा के हौसला बढ़ाने से उन्होंने यह कारनामा किया.

31 अगस्त को भारतीय निशानेबाज सिंहराज अधाना ने पी 1 पुरुष 10 मीटर एयर पिस्टल एसएच 1 इवैंट में कांसे का तमगा जीता.

जन्म से पोलियोग्रस्त सिंहराज अधाना मूलरूप से फरीदाबाद के तिगांव निवासी हैं. परिवार ने तमाम तरह की मुश्किलों का सामना कर उन्हें इस मुकाम तक पहुंचाया है.

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सिंहराज अधाना की जिंदगी में एक ऐसा समय भी आया था, जब उन की पत्नी कविता ने अपने गहने गिरवी रख कर उन्हें खेल के लिए बढ़ावा दिया था.

रियो पैरालिंपिक में सोने का तमगा जीतने वाले मरियप्पन थंगवेलु ने  31 अगस्त, 2021 को हाई जंप के टी 42 वर्ग में 1.86 मीटर की छलांग के साथ चांदी का तमगा जीता.

मरियप्पन थंगवेलु का जन्म तमिलनाडु के सेलम जिले से तकरीबन 50 किलोमीटर दूर पेरिअवाडागमपत्ती गांव में हुआ था. पिता उन के बचपन में ही परिवार को छोड़ कर कहीं चले गए थे. अब परिवार की जिम्मेदारी उन की मां पर थी, जिन की रोज की आमदनी महज 100 रुपए थी.

5 साल के मरियप्पन थंगवेलु एक दिन सुबह अपने स्कूल जा रहे थे कि तभी किसी शराब पिए हुए बस चालक ने उन्हें टक्कर मार दी. इस से घुटने के नीचे का पैर काटना पड़ा.

मरियप्पन थंगवेलु की मां के पास इतने पैसे भी नहीं थे कि वे उन का अच्छा इलाज करा सकें. उन्होंने इस के लिए बैंक से 3 लाख रुपए का लोन लिया था.

इसी इवैंट में बिहार के मोतिहारी  में पैदा हुए शरद कुमार ने 1.83 मीटर की छलांग के साथ कांसे का तमगा अपने नाम किया. जब वे महज 2 साल के थे, तब डाक्टर ने उन्हें गलत इंजैक्शन दे दिया था, जिस से वे पोलियो से ग्रसित हो गए थे. मांबाप ने उन्हें दूर दार्जिलिंग के बोर्डिंग स्कूल में भेज दिया था, जिस की फीस वे रिश्तेदारों से उधार मांग कर भरा करते थे.

3 सितंबर, 2021 को महज 18 साल के प्रवीण कुमार ने हाई जंप टी 44 इवैंट में 2.07 मीटर की छलांग लगाते हुए चांदी का तमगा जीता. उन्होंने एशियन रिकौर्ड भी बनाया. वे उत्तर प्रदेश के नोएडा के रहने वाले हैं. उन का एक पैर सामान्य रूप से छोटा है, लेकिन इसी को उन्होंने अपनी ताकत बनाया और नया इतिहास रच दिया.

शुरू में प्रवीण कुमार ने वौलीबाल खेलना शुरू किया था, पर बाद में उन्होंने हाई जंप में अपना कैरियर बनाना चाहा. जब वे 16 साल के थे, तो उस दौरान उन्हें ऊंची कूद करने का जुनून चढ़ गया था, जिस के बाद वे स्कूल की तरफ से जिला स्तर पर भी खेले.

पैराशूटर अवनि लेखड़ा ने  3 सितंबर, 2021 को हुए महिलाओं के 50 मीटर राइफल  3 पोजिशन एसएच 1 इवैंट में 445.9 पौइंट के साथ कांसे का तमगा जीता. इस से पहले उन्होंने 10 मीटर राइफल में सोने का तमगा हासिल किया था.

3 सितंबर, 2021 को तीरंदाज हरविंदर सिंह ने पुरुषों के व्यक्तिगत रिकर्व इवैंट में भारत को कांसे का तमगा दिलाया. उन्होंने रोमांचक शूट औफ मैच में दक्षिण कोरिया के एमएस किम को  6-5 से हराया. वे पैरालिंपिक में तमगा जीतने वाले पहले भारतीय तीरंदाज बने.

हरियाणा के कैथल गांव के मध्यम तबके के किसान परिवार के हरविंदर सिंह जब डेढ़ साल के थे, तो उन्हें डेंगू हो गया था और स्थानीय डाक्टर ने एक इंजैक्शन लगाया, जिस का गलत असर पड़ा और तब से उन के पैरों ने ठीक से काम करना बंद कर दिया.

हरविंदर सिंह वर्तमान में पंजाब यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र की पढ़ाई कर रहे हैं.

4 सितंबर, 2021 को निशानेबाज मनीष नरवाल ने भारत की ?ाली में तीसरा सोने का तमगा डाला. उन्होंने निशानेबाजी के मिक्स्ड 50 मीटर पिस्टल इवैंट में 218.2 स्कोर किया.

मनीष नरवाल का जन्म 17, अक्तूबर 2001 में हरियाणा के फरीदाबाद में हुआ था. दाहिने हाथ में जन्मजात बीमारी के साथ पैदा हुए मनीष नरवाल को फुटबाल खेलने का काफी शौक था, लेकिन शारीरिक कमी के चलते वे प्रोफैशनल फुटबालर नहीं बन पाए. पिता दिलबाग के दोस्तों ने मनीष नरवाल को निशानेबाजी में कैरियर बनाने की राय दी, जिस के बाद उन्होंने साल 2016 में फरीदाबाद में ही निशानेबाजी की शुरुआत की.

इसी इवैंट में सिंहराज अधाना ने 216.7 अंक बना कर चांदी का तमगा अपने नाम किया. इस से पहले वे भारत के लिए कांसे का तमगा भी जीत चुके थे.

4 सितंबर, 2021 को बैडमिंटन में प्रमोद भगत ने पुरुष के एसएल 3 वर्ग में सोने का तमगा जीत कर इतिहास रच दिया. उन्होंने ब्रिटेन के डेनियल बेथेल को फाइनल मुकाबले में हराया.

प्रमोद भगत का जन्म ओडिशा के बरगढ़ जिले के अट्ताबीर गांव में 4 जून, 1989 को हुआ था. उन्हें बचपन से ही खेल में बहुत दिलचस्पी थी, पर बचपन में ही वे पोलियो के शिकार हो गए. उन्हें बैडमिंटन खेल में काफी दिलचस्पी थी और पैसों की कमी के चलते वे एक शटल खरीद कर उस से कई दिनों तक खेलते थे.

प्रमोद भगत के पिता खेल को पसंद नहीं करते थे. लिहाजा, प्रमोद दिन में पढ़ाई करते थे और रात में चोरीछिपे बैडमिंटन की प्रैक्टिस करते थे.

4 सितंबर, 2021 को मनोज सरकार ने बैडमिंटन में कांसे का तमगा जीता. उन्होंने जापान के दैसुके फुजिहारा को सीधे सैटों में 22-20 और 21-13 से हराया. मनोज सरकार ने एसएल 3 वर्ग में यह मैच जीता.

उत्तराखंड के मनोज सरकार जब डेढ़ साल के थे, तो उन्हें तेज बुखार आया था. एक ?ालाछाप से इलाज कराया गया. इस इलाज का उन पर बुरा असर पड़ा और दवा खाने के बाद उन के पैर में कमजोरी आ गई.

लोगों को बैडमिंटन खेलता देख मनोज ने भी परिवार से रैकेट खरीदने की मांग की, लेकिन रैकेट खरीदने के लिए परिवार के पास पैसे नहीं थे. मां जमुना ने खेतों में काम कर पैसे जुटाए और बेटे के लिए बैडमिंटन रैकेट खरीदा.

5 सितंबर, 2021 को नोएडा के डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट और बैडमिंटन खिलाड़ी सुहास यथिराज पुरुष एकल एसएल 4 क्लास बैडमिंटन इवैंट के फाइनल मुकाबले में फ्रांस के लुकास माजूर से 21-15, 17-21, 15-21 से हार गए. उन्हें चांदी के तमगे से ही संतोष करना पड़ा.

सुहास यथिराज का जन्म कर्नाटक के शिमोगा में हुआ था. जन्म से ही दिव्यांग सुहास की बचपन से ही खेल के प्रति बेहद दिलचस्पी थी. इस के लिए उन्हें पिता और परिवार का भरपूर साथ मिला.

सुहास यथिराज की शुरुआती पढ़ाई गांव में हुई थी. इस के बाद उन्होंने नैशनल इंस्टीट्यूट औफ टैक्नोलौजी से कंप्यूटर साइंस में इंजीनियरिंग की. साल 2005 में पिता की मौत के बाद वे टूट गए थे. इस के बाद उन्होंने ठान लिया था कि उन्हें आईएएस बनना है और वे बने भी, लेकिन अपना बैडमिंटन के प्रति लगाव नहीं छोड़ा.

इस खेल महाकुंभ के आखिरी दिन  5 सितंबर, 2021 को बैडमिंटन खिलाड़ी कृष्णा नागर ने पुरुष एकल एसएच 6 वर्ग के फाइनल मुकाबले में हौंगकौंग के चू मान काई को हरा कर सोने का तमगा अपने नाम किया.

कृष्णा नागर का जन्म 12 जनवरी, 1999 को जयपुर में हुआ था. 2 साल की उम्र में उन के बौनेपन का पता चला था. उन्हें समाज में आसानी से स्वीकार नहीं किया जाता था और लोग उन के छोटे कद का मजाक उड़ाते थे.

फिर कृष्णा नागर ने अपनी कमजोरी को ताकत बनाया और बैडमिंटन खेलना शुरू किया. बाद में कोच गौरव खन्ना ने उन के खेल को निखारा और इस मुकाम तक पहुंचाने में मदद की.

टोक्यो पैरालिंपिक में भारतीय दिव्यांग खिलाडि़यों ने अपने खेल जज्बे से यह साबित कर दिया है कि वे भी किसी से कम नहीं हैं. उन्होंने खेल को अपनाने के लिए बहुत पापड़ बेले हैं. उन्होंने अपनी शारीरिक कमियों पर जीत हासिल की, समाज की टोकाटोकी को नजरअंदाज किया, अपने खेल पर  फोकस किया और कड़ी मेहनत से यह मुकाम हासिल किया.

इन खिलाडि़यों को मिलने वाली सरकारी मदद पर भारतीय पैरालिंपिक संघ की अध्यक्ष दीपा मलिक ने बताया, ‘‘भारत सरकार ने 17 करोड़ रुपए पैरा खिलाडि़यों की ट्रेनिंग, विदेशी दौरे और दूसरी सुविधाएं देने में खर्च किए हैं. अब जिस चीज की सब से ज्यादा जरूरत है, वह है अच्छे कोच और अच्छी ट्रेनिंग की सुविधाएं.’’

केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार इन खिलाडि़यों की जीत का सेहरा अपने सिर बांधना चाहती है, पर उस की दी गई सुविधाएं ऊंट के मुंह में जीरा हैं. सरकार को ध्यान रखना चाहिए कि ये साधारण खिलाड़ी नहीं हैं. ये तन के साथसाथ मन की कमियों से भी जू?ा रहे होते हैं. इन को खेल की सुविधाएं देने के साथसाथ मानसिक ताकत भी चाहिए, तभी इन से सीख ले कर दूसरे ‘दिव्यांग’ बच्चे भी खेलों को अपनाने की सोचेंगे.

वैसे, यह उन बच्चों के लिए अपनेआप में नई राह है, जो ‘दिव्यांग’ होने के चलते खुद को नकारा मान लेते हैं. बहुत से तो भीख मांगने की राह पर निकल पड़ते हैं. पर अगर उन के घर वाले थोड़ा ध्यान दें, तो वे भी कल के ‘तमगावीर’ हो सकते हैं.

बहरहाल, इन खिलाडि़यों की इस ऐतिहासिक जीत से हर कोई प्रेरणा ले सकता है कि शारीरिक कमी आप की राह में तब तक रोड़ा नहीं बन सकती है, जब तक आप मानसिक तौर पर मजबूत हैं. इस लिहाज से इन खिलाडि़यों की यह उपलब्धि शानदार है.

सब से बड़ी बात यह है कि ये सारे खिलाड़ी उस वर्ग से आते हैं, जिन्हें जरा सी सुविधाएं देने पर ऊंची जातियों के लोगों की छातियों पर सांप लोटने लगते हैं. आजकल वे इन लोगों को मंदिरों में बहलाफुसला कर ले जा रहे हैं ताकि हिंदूमुसलिम खेल में उन का साथ दें. यह बहुत बड़ी बात है कि गरीब घरों से आने वाले ये वंचित, ओबीसी या एससी खिलाड़ी हर तरह का अभाव ?ोल कर देश का नाम ऊंचा कर रहे हैं.

टोक्यो ओलिंपिक: खेल को अर्श और फर्श पर ले जाने वाले 2 खिलाड़ी

इस बार के ओलिंपिक खेलों में 2 ऐसी बातें या घटनाएं देखने को मिलीं, जिन में पहली घटना में एक खिलाड़ी ने वह कारनामा किया कि उस की दुनिया जहान में खूब वाहवाही हुई, जबकि दूसरी घटना में एक खिलाड़ी ने अपनी करतूत से खेल को ही शर्मसार कर दिया.

पहला मामला ऊंची कूद यानी हाई जंप से जुड़ा है. दरअसल, 30 साल के मुताज बरशीम और 29 साल के गियानमार्को टेंबरी ने हाई जंप के फाइनल में 2.37 मीटर जंप के साथ मुकाबला खत्म किया था. वे दोनों खिलाड़ी 3-3 बार 2.39 मीटर जंप की कोशिश में नाकाम रहे थे.

इस टाई पर ओलिंपिक रैफरी ने दोनों को ‘जंप औफ’ रूल के बारे में बताया और कहा कि इस ‘जंप औफ’ में जो जीतेगा, गोल्ड मैडल उस का होगा.

रैफरी के प्रस्ताव के बाद मुताज बरशीम ने उन से पूछा कि अगर आगे मुकाबला न हो तो क्या उन दोनों को गोल्ड मिल सकता है?

इस पर रैफरी ने हामी भरी, तो यह सुनते ही मुताज बरशीम तुरंत गियानमार्को टेंबरी के पास गए और हाथ मिला कर गोल्ड मैडल की जीत का गोल्डन हैंडशेक किया.

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इतना सुनते ही खुशी के मारे गियानमार्को टेंबरी ने मुताज बरशीम को गले से लगा लिया और तकरीबन उन पर कूद पड़े. इस के बाद उन दोनों ने पूरे मैदान का चक्कर लगाया.

यह वाकई एक ऐतिहासिक पल था जब ओलिंपिक हाई जंप में इन 2 दोस्तों ने मैच टाईब्रेकर में ले जाने के बजाय गोल्ड मैडल साझा करने का सुनहरा रास्ता चुना.

गौरतलब है कि मुताज बरशीम और गियानमार्को टेंबरी दोनों अच्छे दोस्त हैं. मुताज बरशीम ने लंदन और रियो ओलिंपिक में सिल्वर मैडल जीता था.  इस के अलावा वे साल 2017 और साल 2019 में 2 वर्ल्ड चैंपियनशिप का खिताब भी हासिल कर चुके हैं.

इटली के गियानमार्को टेंबरी के पैर में साल 2016 के रियो ओलिंपिक से पहले चोट लग गई थी. चोट के बाद वे खेलों में अच्छी वापसी चाहते थे और उन्हें अब गोल्ड मैडल मिल गया है. भावुक गियानमार्को टेंबरी ने बताया कि उन्होंने इस पल का कई बार सपना देखा, जो अब पूरा हुआ है.

खेल भावना की इस शानदार मिसाल के बाद उस मामले पर गौर करते हैं, जिस ने टोक्यो ओलिंपिक का मजा किरकिरा कर दिया.

हुआ यों कि मैराथन के दौरान अपने साथ दौड़ रहे धावकों से आगे निकलने के लिए एथलीट मोरहाद अमदौनी ने तमाम एथलीटों के लिए रखी पानी की बोतलों को गिरा दिया. उन की यह करतूत वहां मौजूद कैमरे में कैद हो गई.

टोक्यो में भीषण गरमी के बावजूद एथलीटों को किसी भी तरह की छूट नहीं दी गई थी, लेकिन उन के लिए आयोजकों ने ट्रैक के किनारे मेज पर पानी की बोतलें रखी थीं, ताकि एथलीट दौड़ते हुए ही पानी की बोतल उठा सकें और पिए या फिर सिर पर उड़ेल लें, ताकि प्यास और गरमी से बचे रहें.

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लेकिन मोरहाद अमदौनी ने पानी की बोतल उठाने की जगह बाकी बोतलों को भी जानबूझ कर गिरा दिया. शायद उस की मंशा थी कि कुछ खिलाड़ी गिरी बोतलों में उलझ कर पीछे रह जाएं. ऐसा कितना हुआ यह तो पता नहीं, पर सोशल मीडिया पर यह वीडियो सामने आने के बाद इस खिलाड़ी की खूब किरकिरी हुई.

एक शख्स ने अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा, ‘टोक्यो ओलिंपिक में सब से घटिया करतूत करने वाले इस फ्रांसीसी खिलाड़ी धावक मोरहाद अमदौनी को गोल्ड मैडल मिलना चाहिए, जिन्होंने जानबूझ कर अपने साथियों का पानी गिरा दिया.’

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वैसे, फ्रांसीसी खिलाड़ी अमदौनी की इस घटिया हरकत से कोई खास फर्क नहीं पड़ा, क्योंकि वे खुद 2 घंटे, 14 मिनट और 33 सैकंड में रेस पूरी करने के बाद 17वें नंबर पर रहे, जबकि उन के पीछे नीदरलैंड्स के आब्दी नगेई थे, जिन्होंने 2 घंटे, 9 मिनट और 58 सैकंड के साथ अपनी रेस पूरी की और  सिल्वर मैडल पर अपना कब्जा जमाया.

केन्या के एलियुड किपचोगे ने 2 घंटे, 8 मिनट और 38 सैकंड के समय में ओलिंपिक पुरुष मैराथन का खिताब अपने पास ही बरकरार रखा.

ओलंपिक: नीरज भारत का “गोल्डन सन”

टोक्यो ओलंपिक 2021 में जिस चीज पर संपूर्ण देश की निगाह थी उसे नीरज चोपड़ा ने देखते ही देखते हासिल कर लिया और संपूर्ण देश की आंखों में खुशी के आंसू छलक आए. नीरज चोपड़ा ने स्वर्ण पदक दिलाकर भारतीय खेलों के लिए एक नये अध्याय को खोल दिया है.

“ट्रैक एंड फील्ड” मे भारत को पहला स्वर्ण पदक दिलाकर देशवासियों को गौरव करने का अवसर दिया है.मिल्खा सिंह,अंजू बॉबी जॉर्ज,पी टी उषा के सपनों को आगे बढ़ाने और एक नए क्षितिज देने का काम नीरज चोपड़ा के मजबूत देखते ही देखते कर दिखाया है.

सच तो यह है कि जिसका देश को लंबे समय से इंतजार था उसे सच कर दिखाया है.
टोक्यो ओलिंपिक 2021 मे जेवलिन थ्रो मे 87.58 मीटर भाला फेंक कर नीरज चोपड़ा ने भारत का गौरव बढ़ाया है और एक इतिहास रच दिया है.

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दरअसल, अभिनव बिंद्रा के बाद व्यक्तिगत प्रतियोगिताओं मे स्वर्ण पदक लाने वाले दूसरे भारतीय बन गये हैं.नीरज ने क्वालीफाइंग राउंड मे जो बढ़त बनाई वह अद्भुत अकल्पनीय थी. उनका प्रदर्शन सतत रूप से बेहतर उत्कृष्ट था. स्वर्ण मिलने के बाद राष्ट्रगान ने नीरज चोपड़ा के साथ ही सभी भारतीय की आंखे भी नम हो गई.

वस्तुत: पदकों की दृष्टि से टोक्यो ओलिंपिक 2021 का 7 अगस्त यानी 16वां दिन हमारे देश के लिए सबसे ज्यादा खुशी लेकर आया था. भारत के स्टार पहलवान बजरंग पूनिया ने कुश्ती का ब्रॉन्ज मेडल मैच कजाखस्तान के पहलवान को चारों खाने चित कर भारत की झोली मे डाल दिया. साथ ही भारत ने ओलंपिक खेलों में सबसे ज्यादा पदक जीतने के अपने रिकॉर्ड की बराबरी कर ली है. और फिर आया स्वर्णिम क्षण जब नीरज चोपड़ा के स्वर्ण पदक के साथ भारत ने लंदन ओलंपिक खेलों में सर्वाधिक 6 पदक के रिकॉर्ड को तोड़ते हुए सात पदक का नया रिकार्ड बनाया.

भारत की बेटी अदिति ने भी गोल्फ कोर्स मे बेहतरीन प्रदर्शन करते हुए चौथा स्थान प्राप्त किया.

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“गोल्डन सन” पर रुपयों की बरसात

जैसा कि हमारे यहां पुरानी परंपरा है खिलाड़ी जब कमाल दिखाता है तो हम रूपए पैसों से उसे निहाल कर देते हैं. यहां भी कुछ ऐसा ही देखने को मिला. जहां देश के गणमान्य लोगों ने नीरज को बधाई दी बातचीत की, वहीं करोड़ों रुपए की बरसात नीरज चोपड़ा पर होने लगी है.

जो हमें, हमारी खेल दृष्टिकोण पर सोचने पर मजबूर करती है. उस पर हम आगे बात करेंगे. यहां हम आपको बताते चलें कि किस-किस ने कितने करोड रुपए नीरज पर न्योछावर कर दिए हैं.

गोल्ड मेडल जीतने के बाद धन वर्षा का सिलसिला हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने शुरू किया. नीरज की जीत के बाद मुख्यमंत्री खट्टार ने कहा- इस स्टार खिलाड़ी को राज्य सरकार की तरफ से 6 करोड़ रुपये मिलेंगे. यही नहीं हरियाणा ने चोपड़ा को क्लास-1 की नौकरी भी देने का ऐलान किया है.
हरियाणा के बाद पंजाब पीछे नहीं था मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने 2 करोड़ रुपए देने का ऐलान कर दिया. उन्होंने कहा कि नीरज चोपड़ा का पंजाब से एक गहरा नाता है, ऐसे में उनका गोल्ड जीतना सभी पंजाबियों के लिए गर्व की बात है.

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मणिपुर की सरकार भी पीछे नहीं रही उसने भी नीरज चोपड़ा को 1 करोड़ रुपये देने का ऐलान किया है. रुपयों की बरसात का यह तो पहला ही दिन था आने वाले समय में हम देखेंगे कि किस तरह नीरज चोपड़ा पर करोड़ों रुपए की और भी बारिश हो रही है. जो उनके लिए जहां देश के प्रेम को दर्शाता है वहीं यह भी प्रश्न उठ खड़ा हुआ है कि अगर खेलों को लेकर के हमारे नियम कायदे और दृष्टि बदल जाए तो हम भी चीन से पीछे नहीं रहेंगे.

ओलंपिक: खिलाड़ी गालियां नहीं सम्मान के पात्र हैं

निसंदेह ऐतिहासिक ओलंपिक खेल में शिरकत करना ही सम्मान की बात है गौरव की बात है. ऐसे में अगर वंदना कटारिया और अन्य खिलाड़ी हाकी के सेमीफाइनल में अच्छा परफारमेंस नहीं दिखा पाए तो क्या किसी एक खिलाड़ी को उसके जाते पात को लेकर, उसे या उसके परिजनों को गाली दी जानी चाहिए या फिर अथवा उत्साहवर्धन करना चाहिए.

दरअसल,खिलाड़ी हमारे देश के गौरव हैं खेल में हार जीत तो होती ही है. और खेल को खेल भावना के साथ खेलने की नसीहत दी जाती है. ऐसे में अगर दो चार लोग उत्तेजित होकर के किसी खिलाड़ी के घर के सामने नारेबाजी करने लगे तो यह देश के लिए शर्मनाक है. ऐसे लोगों को माफ नहीं किया जाना चाहिए.

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ऐतिहासिक तोक्यो ओलंपिक के एक सौ पच्चीस साल का आगाज और खेलों का आनंद लोग उठा रहे हैं.ऐसे में सेमीफाइनल में अर्जेंटीना से हारने के बाद भारतीय महिला हॉकी टीम की सदस्य वंदना कटारिया के परिजनों के साथ कथित तौर पर गाली-गलौच तथा जातिसूचक टिप्पणी घटना घटित हो गई जो यह बता रही है कि अभी भी हमारे देश के कुछ अंचल में कैसी क्षुद्र भावना रखते हुए लोग जिंदगी बसर कर रहे हैं.

वस्तुत: जातिसूचक शब्दों के प्रयोग और घर के सामने पटाखे जलाकर अपमानित करने के संदर्भ में पुलिस ने बृहस्पतिवार को हरिद्वार जिले के रोशनाबाद क्षेत्र में एक व्यक्ति को गिरफ्तार कर भारतीय दंड विधान की धाराओं के तहत मामला पंजीबद्ध किया है जो एक सबक हो सकता है कि हमें जाती पाती भेदभाव से ऊपर उठना चाहिए.

हरिद्वार के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक के मुताबिक वंदना के भाई चंद्रशेखर कटारिया की शिकायत पर कार्रवाई करते हुए पुलिस ने मामले में तीन नामजद सहित अन्य अज्ञात आरोपियों के विरूद्ध प्राथमिकी दर्ज कर अभी एक शख्स को गिरफ्तार किया है. पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ भारतीय दंड संहित की धारा 504 और अनुसूचित जाति/ अनुसूचित जनजाति अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया है.

जातिगत गालियां! शर्मनाक स्थिति!!

सच तो यह है कि आप किसी को न तो अपमानित कर सकते हैं और नहीं गाली गलौज. भारतीय दंड विधान की धाराओं के तहत यह संज्ञेय अपराध है.

ऐसे में जातिगत गाली गलौज तो और भी गंभीर अपराध के रूप में गिना जाएगा. अब भारतीय हाकी की एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी जिसने बहुत ही अच्छी तरीके से अपना खेल दिखाया है और एक बड़ा प्रशंसक वर्ग देश में हासिल किया है तो उसके घर के सामने सेमीफाइनल में हार जाने के कारण पटाखे जलाना और परिजनों के साथ गाली गलौज करना यह दर्शाता है कि आज भी हमारे समाज में कितनी छोटी सोच के लोग सीना तान कर , कानून को आंखें दिखा करके रौब गांठते हुए लाठी भांज रहे हैं.

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कानून और पुलिस प्रशासन का भय ऐसा मालूम होता है मानो हमारे देश में खत्म होता चला जा रहा है. यही कारण है कि ओलंपिक में शिरकत कर रही एक खिलाड़ी के परिजनों को अपमानित होना पड़ा है.
दरअसल, हमें अपनी सोच को बदलने की आवश्यकता है हमें यह समझना चाहिए कि अगर ओलंपिक के ऐतिहासिक मंच पर अगरचे कोई भारत का खिलाड़ी बेटी अपना प्रदर्शन दिखा रही है तो निसंदेह अपनी पूरी ताकत के साथ निष्ठा के साथ देश के लिए खेल रही है. और हमें उसकी हौसला अफजाई करनी चाहिए. अगर हम ऐसा नहीं कर सकते तो जहां खिलाड़ियों के परफॉर्मेंस पर इसका असर दिखाई देगा वही अंतरराष्ट्रीय मीडिया में भी भारत की छवि किस तरह प्रस्तुत होगी इसकी कल्पना सहज की जा सकती है.

ऊंची जाति नीची जाति

देश की सामाजिक स्थिति की सच्चाई यह है कि वर्तमान में जातियों का वर्चस्व खत्म होता चला जा रहा है. अब जातियां आज से 25 वर्ष पूर्व की कट्टर कठोर स्थितियों में नहीं है. इस सब के बावजूद अगर ऐसी घटनाएं सामने आ रही है तो यह चिंता का सबब है.

यह भी सच है कि टोक्यो ओलंपिक के सेमीफाइनल में भारतीय महिला हॉकी टीम भले ही पराजित हो गई लेकिन भारतीय महिला टीम के पास अभी कांस्य मेडल जीतने का मौका हैं और पूरा देश उनकी हौसलाफजाई और खेल भावना के साथ उत्सव से सराबोर है.

ऐसे में महिला हॉकी टीम की सदस्य वंदना कटारिया के परिवार का आरोप‌ देशवासियों के लिए एक गंभीर चिंतन का विषय बन कर सामने आ गया है.

वंदना कटारिया के भाईयों का आरोप है कि हार के बाद कथित तौर पर ऊंची जाति से ताल्लुक रखने वाले कुछ लोगों ने उन्हें गालियां दी और जातिसूचक नाम लेकर कोसा.दरअसल अर्जेंटीना के खिलाफ सेमीफाइनल में हार के बाद ही हरिद्वार जिले के रोशनाबाद गांव की रहने वालीं वंदना के घर के निकट ऊंची जाति से ताल्लुक रखने वाले दो शख्स पहुंचे वे पटाखे फोड़ने लगे और वंदना के परिवार को भद्दी गालियां देनी शुरू कर दी.

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वह लोग कह रहे थे – भारतीय टीम की इसलिए हार हुई क्योंकि टीम में जरूरत से ज्यादा दलित खिलाड़ी हैं.

ऐसी छोटी सोच रखने वाले लोगों से यह पूछना चाहिए कि क्या अगर वह स्वयं ओलंपिक में भाग नहीं ले पा रहे हैं तो क्या इसका दोष उनके ऊंची जात को दिया जा सकता है?

ऊंची जाति, नीची जाति कुछ नहीं होती.यह सब हमारे छोटी सोच का नतीजा है और यही बात हमारे विकास में बाधक भी है.

खिलाड़ी गाली के नहीं इज्जत के हकदार

ओलिंपिक खेलों में शिरकत करना इज्जत और गौरव की बात है. ऐसे में अगर वंदना कटारिया और दूसरी महिला खिलाड़ी हौकी के सैमीफाइनल मुकाबले में अच्छा खेल नहीं दिखा पाईं, तो क्या किसी एक खिलाड़ी को उस की जाति को ले कर उसे या उस के परिवार वालों को गाली दी जानी चाहिए या फिर खिलाड़ी का जोश बढ़ाना चाहिए?

दरअसल, खिलाड़ी हमारे देश के गौरव हैं और खेल में हारजीत तो होती ही रहती है. इस के अलावा खेल को खेल भावना के साथ अंजाम देने की नसीहत भी दी जाती है. ऐसे में अगर 2-4 लोग बेकाबू हो कर किसी खिलाड़ी के घर के सामने ऊलजुलूल नारेबाजी करने लगें, तो यह बात पूरे देश के लिए शर्मनाक है. ऐसे लोगों को माफ नहीं किया जाना चाहिए.

इस से यह भी साबित होता है कि अभी भी हमारे देश के बहुत से इलाकों में जातपांत की छोटी सोच रखते हुए लोग अपनी जिंदगी बसर कर रहे हैं.

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मामला कुछ यूं है कि जातिसूचक शब्दों के इस्तेमाल और घर के सामने पटाके जला कर बेइज्जती करने के सिलसिले में पुलिस ने 5 अगस्त, 2021 को हरिद्वार जिले के रोशनाबाद इलाके में एक आदमी को गिरफ्तार कर भारतीय दंड संहिता की धाराओं के तहत मामला दर्ज किया, जो एक सबक हो सकता है कि अब हमें जातपांत के भेदभाव से ऊपर उठना चाहिए.

हरिद्वार के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक के मुताबिक, हौकी खिलाड़ी वंदना कटारिया के भाई चंद्रशेखर कटारिया की शिकायत पर कार्यवाही करते हुए पुलिस ने मामले में 3 नामजद समेत दूसरे अज्ञात आरोपियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कर एक शख्स को गिरफ्तार किया. पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 504 और अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया.

जातिगत गालियां हैं शर्मनाक

सच तो यह है कि आप किसी की न तो बेइज्जती कर सकते हैं और न ही गाली दे सकते हैं. भारतीय दंड संहिता की धाराओं के तहत यह संज्ञेय अपराध है. ऐसे में जातिगत गालीगलौज तो और भी गंभीर अपराध के रूप में गिना जाएगा. अब भारतीय हौकी टीम की एक खास खिलाड़ी, जिस ने बहुत ही अच्छे तरीके से अपना खेल दिखाया और एक बड़ा प्रशंसक वर्ग देश में हासिल किया, उस के घर के सामने सैमीफाइनल मुकाबले में हार जाने के चलते पटाके जलाना और परिवार वालों के साथ गालीगलौज करना यह दिखाता है कि आज भी हमारे समाज में कितनी छोटी सोच के लोग सीना तान कर और कानून को आंखें दिखा कर रोब गांठ रहे हैं.

ऐसा मालूम होता है कि हमारे देश में कानून और पुलिस प्रशासन का डर तो मानो खत्म होता चला जा रहा है. यही वजह है कि ओलिंपिक खेलों में शिरकत कर रही एक खिलाड़ी के परिवार वालों को बेइज्जत होना पड़ा.

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दरअसल, हमें अपनी सोच को बदलने की जरूरत है. हमें यह समझना चाहिए कि अगर ओलिंपिक खेलों के ऐतिहासिक मंच पर भारत की कोई बेटी अपना प्रदर्शन दिखा रही है तो यकीनन वह अपनी पूरी ताकत और निष्ठा के साथ देश के लिए खेल रही है और हमें उस की हौसलाअफजाई करनी चाहिए. अगर हम ऐसा नहीं कर सकते तो इस से जहां एक तरफ खिलाड़ियों के प्रदर्शन पर बुरा असर पड़ेगा, वही इंटरनैशनल मीडिया में भी भारत की इमेज किस तरह पेश होगी, इस की कल्पना आसानी से की जा सकती है.

ऊंची जाति, नीची जाति

देश के सामाजिक हालात की सचाई यह है कि वर्तमान में जातियों का दबदबा खत्म होता चला जा रहा है. अब जातियां आज से 25 साल पहले के कट्टर और कठोर हालात में नहीं दिखती हैं. इस सब के बावजूद अगर ऐसी वारदातें सामने आ रही हैं, तो यह चिंता का सबब है.

यह भी सच है कि टोक्यो ओलिंपिक खेलों के सेमीफाइनल मुकाबले में भारतीय महिला हौकी टीम भले ही हार गई थी, लेकिन उस के बाद कांस्य पदक जीतने के लिए उसने जो जोर लगाया था और ग्रेट ब्रिटेन को पसीना ला दिया था, उस का जवाब नहीं था. पदक चूकने के बाद भी पूरा देश उन की हौसलाअफजाई कर रहा था और उन की खेल भावना के उत्सव से सराबोर था.

ऐसे शानदार माहौल में महिला हौकी टीम की सदस्य वंदना कटारिया के परिवार का आरोप‌ देशवासियों के लिए एक गंभीर मुद्दा बन कर सामने आया है. जो लोग यह सोचते हैं कि भारतीय टीम की इसलिए हार हुई, क्योंकि टीम में जरूरत से ज्यादा दलित खिलाड़ी हैं, तो ऐसी छोटी सोच रखने वाले लोगों से यह सवाल पूछना चाहिए कि जब वे खुद ओलिंपिक खेलों में भाग नहीं ले पा रहे हैं, तो क्या इस का ठीकरा उन की ऊंची जाति के सिर पर फोड़ा जाना चाहिए?

ऊंची या नीची जाति कुछ नहीं होती. यह सब हमारी छोटी सोच का नतीजा है और यही बात हमारी तरक्की में बहुत बड़ी रुकावट भी है.

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Mirabai Chanu को सिल्वर नहीं , गोल्ड मेडल

टोक्यो ओलंपिक में पहले ही दिन भारत का सर ऊंचा करने वाली भारत की बेटी मीराबाई चनू ने सिल्वर जीत कर देश सीना गर्व से चौड़ा कर दिया, अपना नाम एक अमर खिलाड़ी के रूप में दर्ज करा लिया है. मगर आज हम आपको यहां बताएं मीराबाई चनू को मिला सिल्वर किस तरह गोल्ड मेडल में भी बदल सकता है ? जिसकी बहुत ज्यादा संभावना दिखाई दे रही है.

दरअसल, हमारे पड़ोसी चीन की वेटलिफ्टर होऊ झिऊई पर डोपिंग का शक है, उसकी जांच शुरू हो गई है. ऐसे में अगर डोपिंग आती है तो क्या होगा आप अंदाज लगाइए.
कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि टोक्यो ओलंपिक -2021 में भारत के हिस्से में अनायास ही पहला गोल्ड आ सकता है.

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खेल समीक्षक अनुमान लगा रहे हैं कि वेटलिफ्टिंग (49 किग्रा वर्ग) में रजत पदक हासिल करने वालीं मीराबाई चनू का मेडल गोल्ड में बदल सकता है. यह इसलिए क्योंकि चीनी खिलाड़ी होऊ झिऊई पर डोपिंग के शक के बाद उसकी जांच प्रारंभ हो गई है.

टोक्यो ओलंपिक में इस तरह पहला ही गोल्ड पाने वाले चीनी खिलाड़ी होउ जिहूई का परीक्षण किया जा रहा है आसानी से अनुमान लगाया जा सकता है कि आगे क्या क्या हो सकता है.

हालांकि इस संदर्भ में भारतीय खेल उच्च अधिकारी मौन है क्योंकि अभी कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी. मगर दुनिया की मीडिया व खेल प्रेमियों की निगाह इस मसले पर टकटकी लगाए हुए हैं कि आगे क्या होने वाला है. अगर परीक्षण में डोपिंग पाई गई तो परिणाम बहुत चौंकाने वाले होंगे और यह खबर अपने आप में विश्वव्यापी होगी और भारत के लिए एक सुखद समाचार ऐतिहासिक समय.

चीन लौटने से पहले गिरी गाज

दरअसल, चीन की खिलाड़ी होऊ झिऊई जब अपने देश लौटने वाली थीं, अधिकारियों को उसकी गतिविधि पर शक हुआ और उन्हें रुकने को कहा गया. यहां यह जानना जरूरी है कि ओलंपिक खेलों के इतिहास में ऐसा पूर्व में भी हो चुका है, जब डोपिंग में फेल होने पर खिलाड़ी का मेडल छीन लिया गया है.

वेटलिफ्टिंग में सोना जीतने वाली चीनी एथलीट होउ पर डोपिंग का शक गहरा गया है. सैंपल-ए में संदेह के बाद सैंपल-बी के लिए बुलाया गया.

इस तरह बड़ी संभावना है कि वेटलिफ्टिंग में भारत के लिए सिल्वर मेडल जीतने वाली मीराबाई चानू का मेडल गोल्ड में बदल सकता है.

यह माना जा रहा है कि टोक्यो ओलंपिक के महिला भारोत्तोलन (49 किग्रा) में मीराबाई चनू का सिल्वर पदक स्वर्ण पदक (गोल्ड मेडल) में बदल सकता है, अगरचे यह हो गया तो ओलंपिक के इतिहास में भारत के नाम व्यक्तिगत स्पर्धा में यह दूसरा स्वर्ण पदक होगा. बताते चलें कि शूटर अभिनव बिंद्रा ने भारत को पहला गोल्ड मेडल (बीजिंग, चीन 2008) दिलाया था.

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महत्वपूर्ण बात यह भी है कि टोक्यो ओलंपिक में मीराबाई ने भारोत्तोलन स्पर्धा में पदक का भारत का एक लंबे, 21 साल के इंतजार को खत्म किया है. इससे पूर्व कर्णम मल्लेश्वरी ने सिडनी ओलंपिक 2000 में देश को भारोत्तोलन में कांस्य पदक दिलाया था.

चनू ने क्लीन एवं जर्क में 115 किग्रा और स्नैच में 87 किग्रा से कुल 202 किग्रा वजन उठाकर रजत पदक अपने नाम किया है. चीन की होऊ झिऊई ने कुल 210 किग्रा (स्नैच में 94 किग्रा, क्लीन एवं जर्क में 116 किग्रा) से स्वर्ण पदक अपने नाम किया . इंडोनेशिया की ऐसाह विंडी कांटिका ने कुल 194 किग्रा का वजन उठाकर कांस्य पदक हासिल किया है.

मीराबाई के नाम अब महिला 49 किग्रा वर्ग में क्लीन एवं जर्क में विश्व रिकॉर्ड भी है. उन्होंने टोक्यो ओलंपिक से पहले अपने अपने अंतिम टूर्नामेंट एशियाई चैम्पियनशिप में 119 किग्रा का वजन उठाया और इस वर्ग में स्वर्ण और ओवरऑल वजन में कांस्य पदक जीता है.

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यही नहीं इस सब के बीच टोक्यो ओलिंपिक में रजत पदक जीतने वाली वेटलिफ्टर मीराबाई चानू के लिए एक और खुशखबरी है. 26 वर्षीय यह वेटलिफ्टर पुलिस विभाग में एएसपी बना दी गईं हैं. मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने इसकी घोषणा की है.और दूसरी तरफ मीरा बाई पर लाखों रुपए की बारिश हो रही है.

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