छुटकारा: क्या ऐसे मिलता है लड़की से छुटकारा

खुला सा आंगन. आंगन में ही है टूटाफूटा सा बड़ा दरवाजा और उस दरवाजे से लग कर 2 कमरे. कमरों से सटे हुए बरामदे में रसोई. यह है गंजोई का घर. 4 बेटियां और पत्नी है गंजोई के परिवार में.

गंजोई की पत्नी सुगना पुरानी साड़ी की फटी पट्टियों से गुंथी रहती. मैली सी चारपाई पर गंजोई पैर फैला कर लेटा रहता और सुगना अपनी बातों से उस का मन बहलाया करती.

सुगना को पति की सेवा से फुरसत मिलती, तो घर की खोजखबर लेती. गंजोई तो अजगर था. दास मलूका का शुक्रिया अदा करता और अपने दाने के इंतजार में पड़ा रहता. गंजोई की बड़ी बेटी अंजू 15 साल से कुछ ऊपर. काली, ठिगनी, सुस्त, थोड़ी मोटी और चुपचुप सी रहती थी. वह लोगों के घरों में झाड़ूबरतन किया करती और धीरेधीरे उस ने अपनी दोनों छोटी बहनों को भी जानपहचान के घरों में काम पर लगवा दिया था.

अंजू के बाद वाली संजू 13 साल की दुबलीपतली, गठी हुई, उम्र के मुताबिक सही कदकाठी. खूबसूरत तो नहीं, पर बदसूरत भी नहीं थी वह. धीमी और मीठी आवाज. जल्दीजल्दी काम निबटाती. जिन घरों में काम करती, वहीं के बच्चों से वह अपना मन बहलाती.

8 साल की रंजू बेहद दुबली. गेहुआं रंग. उलझेउलझे तेल चुपड़े बाल और मैली सी फ्रौक. उस के काम में सब से ज्यादा फुरती थी. उस का मन मचलता था अपने साथ के बच्चों के साथ खेलने और भागनेदौड़ने के लिए, इसलिए वह जल्दीजल्दी काम करने की कोशिश में कुछ न कुछ गड़बड़ करती रहती और डांट सुनती रहती, पर थी धुन की पक्की.

सब से छोटी रीना 6 साल की थी. अंजू के साथ काम पर जाती और उस की मदद करती. बरतन मांजना अभी वह सीख रही थी और झाड़ू ठीकठाक लगा लेती थी  कुलमिला कर सारी बहनें मिल कर दालरोटी का जुगाड़ कर लेती थीं.

एक चीज थी, जो चारों बहनों में एकजैसी थी. उन की खाली आंखों में जिंदगी की चमक. खूब जीना चाहती थीं. वे सब जो भी थीं, जैसे भी थीं, खूब हंसना और कुछ न कुछ गुनगुनाते रहना उन की आदत थी.

महल्ले की औरतें ज्यादातर मजदूर थीं या फिर लोगों के यहां आया, महरी का काम करती थीं. गंजोई जब घर पर नहीं होता था, तो सुगना रेशमी साड़ी पहन कर किसी पड़ोसन के यहां जा बैठती. औरतें भी बातोंबातों मे उसे छेड़तीं, ‘ये चटकमटक के दिन तेरे नहीं तेरी बेटियों के हैं. जवानी में भी उन से अपने ही घर का पानी भरवाएगी क्या?

‘लड़कियां बड़ी हो रही हैं. भेज अपने निठल्ले मरद को बाहर. घरबार देखे. रिश्ताकुनबा देखे. ऐसे घर बैठे तो कोई तुम्हारे दरवाजे चढ़ेगा नहीं.’

सुगना खिसियानी सी हंसी हंसती और बोलती, ‘‘तू ही बता सरोज, हमारे पास न जेवर है, न जमीन. जो थोड़ाबहुत मेरी सास के गांठपल्ले था, वह पहले ही अंजू के बापू ने दारू में घोल कर चढ़ा लिया. अब तो ऐसा है कि चूल्हा भी अनाज देख कर ही गरम होता है.’’ ‘‘अरे तो उसे काम पर क्यों नहीं भेजती? इतनी बड़ी अनाज की मंडी है, बड़ेबड़े आढ़ती बैठते हैं. जाए किसी के पास. कोई न कोई काम मिल ही जाएगा, बेटियों की कमाई से घर चलता है कोई,’’ सरोज की सास ने दोटूक सुनाया.

अब सुगना ने वहां से खिसकने में ही अपनी भलाई समझी. ऐसा नहीं है कि सुगना और गंजोई को अपनी जवान होती बेटियों की फिक्र नहीं थी, पर वे दोनों ठहरे मिजाज के मस्तमौला. उन्हें लगता था कि एक दिन सब ठीक हो जाएगा.

सुगना और गंजोई का परिवार समय की ताल में ताल मिलाता एकएक कदम उस के साथ चलता चला जा रहा था. समय भी चिकनी सड़क पर सरपट चाल चल रहा था बिना किसी रुकावट के, बिना किसी मुश्किल के. अंजू की ज्यादातर सखियों का ब्याह हो चुका था, पर उसे अपने ब्याह न होने का मलाल न था. न ही उसे जरूरत महसूस होती थी. सुगना और गंजोई को उस के ब्याह की काई आस न थी. इसलिए कोशिश करने का खयाल भी किसी के धकियाने से ही आता था और धक्का हटते ही वे फिर आराम की मुद्रा में टेक लगा लेते और फिर घर चलाने में अंजू का अहम योगदान था.

संजू भी 14 साल की उम्र में ज्यादा तीखी और मुखर हो गई थी. अब वह घर से निकलती, तो उस की उभरती देह पर चुस्त फिटिंग वाला सूट होता. अपनी मालकिनों की उतरन को सजाचमका कर जब वह अपने तन पर डालती, तो उन पुराने कपड़ों से भी ताजगी फूट पड़ती. महल्ले के जवान होते मजदूर बच्चे छिपछिप कर उसे देखते और वह उन्हें देख कर बड़ी अदा से अनदेखा कर देती, मानो सावन को पता ही न हो कि उस की बारिश में सब भीग जाता है.

अब संजू का ध्यान काम में कम लगता, सोचती और मुसकराती रहती. उस के साथ की लड़कियां उस से चिढ़तीं, ‘बड़ी फैशन वाली बन गई है. बरतन मांजने जाती है या थाली में मुंह देखने? ’ अंजू भी पीछे न रहती. वह कहती, ‘‘अरे, बरतन तो मुझे देखते ही चमक जाते हैं. तुम्हारी तरह नहीं कि शक्ल देख कर घूरा भी छींक दे.’’

गंजोई के घर से बाईं तरफ 3 मकान छोड़ कर कमलकिशोर का घर था. वह एक 17 साल का ठीकठाक सी शक्ल वाला लड़का था, जो बाजार में साइकिल की दुकान पर पंचर लगाने का काम करता था.वह जवानी के उस पायदान पर था, जहां सबकुछ खूबसूरत और आसान लगता है. खाली समय में रंगीन चश्मा लगा कर वह फिल्मी गाने गुनगुनाता.उस ने मालिक से बड़ी मिन्नत कर के दुकान से एक पुरानी साइकिल ले ली थी और साइकिल की दुकान पर मंजे हुए अपने हुनर को आजमा कर उस साइकिल को नई जिंदगी दे डाली थी.

एक दिन कमलकिशोर घर के बाहर खड़ा हो कर अपनी साइकिल को साफ कर रहा था और साथ ही कुछ गाना गुनगुना रहा था, ‘‘चोरीचोरी आ जा गोरी पीपल की छांव में, कहीं कोई…’’ तभी उस की नजर संजू पर पड़ी, ‘‘यह कौन है. बड़ी मस्त दिख रही है.’’

इतने में संजू की नजर कमलकिशोर पर पड़ी. आंखें सिकोड़, कमर पर हाथ रख संजू थोड़ा गुस्से और बड़ी अदा से गुर्रा कर बोली, ‘‘आंखें फाड़ कर क्या देख रहा है? बोलूं तेरे बापू को?’’

‘‘भड़क क्यों रही है? देख ही तो रहा हूं. तू सुगना काकी की बेटी है न? चल, नाम बता अपना?’’ कमलकिशोर ने उस की तरफ बढ़ते हुए फिल्मी अंदाज में पूछा.

संजू को हंसी आ गई, ‘‘चल जा अपना काम कर,’’ कह कर वह घर में घुस गई. कमलकिशोर का मन गुदगुदाहट से भर गया. संजू को गए बहुत वक्त बीत चुका था, पर वह वहीं खड़ा अब भी उन पलों को आगेपीछे कर के अपने सपनों में जी रहा था.

‘‘संजू, जरा चूल्हा जला दे और आटे में थोड़ा नमक डाल कर मुझे दे दे. खाने का समय हो गया है. बस, अभी सब खाना मांगने वाले हैं,’’ अंजू ने कहा. इतने में ही सुगना की आवाज आई, ‘‘ऐ अंजू, खाना कब देगी? मुझे जोरों की भूख लगी है.’’

सुगना और गंजोई आंगन में पड़ी खाट पर जमे हुए थे. गंजोई आसमान की ओर मुंह कर के लेटा था और सुगना उस के पैर दबा रही थी. रसोई में जान खपाने से ज्यादा आसान था यह काम. गंजोई के खाते ही सुगना खुद खाने बैठ जाती, फिर बाद में बच्चे आपस में मिलबैठ कर खा लेते.

‘‘हांहां, खाना बन रहा है,’’ संजू ने चिढ़ कर जवाब दिया. अंजू ने संजू की तरफ देखा, पर बोली कुछ भी नहीं. अब उसे संजू के लिए फिक्र होने लगी थी. जब तक उस का खुद का ब्याह न हो जाता, तब तक संजू का ब्याह होना मुश्किल था. अपनी आस उसे थी नहीं, पर संजू…

आज रात संजू को भी नींद नहीं आ रही थी. ‘चल, नाम बता अपना’ उस के कानों में गूंज रहा था. उसे फिर हंसी आने लगी. वह कमलकिशोर ही तो था. कितनी ही बार तो देखा है उसे, फिर आज क्या बात हो गई? संजू समझने की कोशिश कर रही थी.

आज संजू की लाली में कुछ ज्यादा ही चमक थी. शायद सुबह की धूप का असर था या फिर रात को दबे पैर उस की चारपाई में घुस आए खयालों का, पता नहीं. घर से पहला कदम ही निकला था कि नजर बाईं ओर मुड़ गई. हड़बड़ाहट में दूसरा कदम तो बाहर निकला नहीं, पहला भी अंदर चला गया.

दरवाजे की ओट ले कर संजू अपनी घबराहट पर काबू पाने की कोशिश करने लगी. अपने घर के बाहर कमलकिशोर पूरी तरह मुस्तैद खड़ा था. आखिर संजू की चारपाई से निकल कर वह खयाल उस के भी तो बिस्तर में घुसा था.

कमलकिशोर की नजर संजू पर पड़ चुकी थी. वह समझ गया था कि संजू काम पर जाने वाली है. वह पहले ही साइकिल ले कर उस के काम की दिशा की ओर चल पड़ा थाइधर संजू भी संभल चुकी थी. वह तन कर बाहर निकली, बाएं देखा, फिर दाएं देखा, फिर एक निराशा की ढीली सांस, जिस में राहत पाने की भरसक कोशिश की गई थी, छोड़ते हुए अनमनी सी काम पर चल दी.

‘‘संजू, तेरे मांबापू तेरा ब्याह मुझ से तो क्या किसी से भी नहीं होने देंगे,’’ कमलकिशोर संजू से कह रहा था. कमलकिशोर और संजू को एकदूसरे के नजदीक आने में ज्यादा समय नहीं लगा था. दोनों को एकदूसरे का साथ अच्छा लगता. अपना काम खत्म कर दोनों रोज मिलते, एकदूसरे के साथ जीने के सपने देखते. सुगना और गंजोई की बेजारी संजू की चाह को और हवा देती, पर वह अंजू के बारे में सोच कर बेचैन हो जाती. उसे कोई रास्ता नजर नहीं आता था, जो उस घर की बेटियों को ससुराल के दरवाजे तक पहुंचाता हो. मांबाप को अपनी कमाऊ बेटियों को विदा करने की कोई जल्दी न थी.

अंजू को संजू और कमलकिशोर के इश्क की खबर थी, संजू ने ही उसे बताया था एक दिन.

‘‘संजू, भाग कर जाएगी मेरे साथ?’’

‘‘चल हट. बड़ा आया भगा कर ले जाने वाला. कहां रखेगा? क्या खिलाएगा मुझे? और मेरे घर वाले? महल्ले वाले जीने नहीं देंगे. मेरी बहनों की जिंदगी खराब हो जाएगी,’’ संजू ने उसे घुड़का और आखिरी बात कहतेकहते उसे खुद की आवाज सुनाई नहीं दी, आंखें सिकुड़ गईं और चेहरे पर उदासी उभर आई.

कमलकिशोर ने हलके से झिड़क कर कहा, ‘‘तो यहां रह कर तू कौन सा उन का घर भर देगी. भाग चल. तेरे बाप का बोझ कुछ कम हो जाएगा. यहां रह कर जिंदा भूत की तरह बरतन ही तो घिसेगी. मेरे साथ चल, तेरी जिंदगी संवार दूंगा.’’

संजू ने उसे घूर कर देखा, पर बोली कुछ नहीं . गरमी की रात में सभी आंगन और बरामदे में ही सोते थे. आज संजू ने अपना बिस्तर अंजू के साथ जमीन पर ही बिछा लिया था. चारपाइयां कम थीं, सो अंजू जमीन पर ही सोती थी. रीना और रंजू भी एक चारपाई पर वहां बेसुध सो रही थीं. सुगना बरामदे में थी.

संजू और अंजू दोनों चुपचाप सी आसमान को घूर रही थीं. दोनों को नींद नहीं आ रही थी. वे चुप थीं, पर शायद उन के मन के बीच संवाद चल रहा था. संजू जरा बेचैन दिखी, तो अंजू ने अपना हाथ उस के सिर पर रखते हुए पूछा, ‘‘क्या हुआ संजू, नींद नहीं आ रही है?’’

बेहद अपनेपन में भीगे शब्दों की नमी में संजू भी नहा गई, ‘‘हां दीदी, आज तो नींद सचमुच नहीं आ रही.’’

‘‘अच्छा, यह बता कि कमलकिशोर कैसा है? क्या लाया वह आज तेरे लिए? आजकल तो तू कुछ बताती ही नहीं मुझे,’’ अंजू ने बनावटी गुस्से से मुंह फुला कर कहा.

संजू ने अंजू की तरफ देखा और खिलखिला कर हंस दी, ‘‘दीदी, तुम बड़ी चालाक हो. मेरा मुंह खुलवाने के लिए कमलकिशोर का नाम ले दिया.’’

कमलकिशोर का नाम लेते ही संजू जरा संजीदा हो गई. ठंडी सांस छोड़ते हुए उस ने कहा, ‘‘दीदी, आज वह मुझे अपने साथ भाग चलने के लिए कह रहा था.’’

‘‘तो भाग जा. किस के लिए रुकी हुई है?’’ अंजू ने सहज भाव से कहा.

और एक दिन महल्ले में आग लग गई. गंजोई पहली बार हरकत में आया, ‘‘अरी सुगना, संजू आई क्या?’’

‘‘नहीं. अंजू के बापू,’’ कहते हुए सुगना बीच आंगन में बैठ छाती पीटपीट कर रो रही थी.

दिन ढल रहा था. सुबह से निकली संजू का अब तक कुछ पता न था. गंजोई ने हर जगह खबर ले ली थी और यह बात अब पूरे महल्ले को पता थी. पता चला था कि कमलकिशोर भी सुबह से गायब था. दो और दो चार भांपने में किसी ने समय न गंवाया. गंजोई ने अपना सिर पीट लिया.

सुगना रोरो कर बच्चियों को कोस रही थी, ‘‘जाओ, तुम लोग भी भाग जाओ, कोई न कोई मिल ही जाएगा चौक पर. अरे, भागना ही था तो तू ही भाग जाती,’’ उस ने अंजू की तरफ इशारा कर के कहा, ‘‘भगोड़ों का घर नाम धरा जाएगा हमारा. अंजू के बापू कुछ करो. हाय, यह क्या कर दिया? अब तो जिंदगी पत्थर जैसी भारी हो जाएगी. लोग हमें जीने नहीं देंगे, कौन ब्याहेगा इन बेटियों को?’’

गंजोई महल्ले के बड़ेबूढ़ों के आगे रो रहा था. एक बुजुर्ग ने अपनी घरघराती आवाज में लताड़ा, ‘‘देख गंजोई, तू ने तो कभी खबर ली नहीं अपने बच्चों की, अब पछताने से क्या होगा. लड़की भाग गई और धर गई कलंक तेरी सात पुश्तों पर. अब जरा सुध ले और बाकियों को संभाल.’’

‘‘देख, अब तू हमारी बिरादरी से बाहर हो गया है. हमारे भी लड़केलड़कियां हैं. कुछ तो कायदाकानून रखना पड़ेगा,’’ एक ने कहा था.

यह सुन कर गंजोई फफक कर रो पड़ा. वह हाथ जोड़ कर बोला, ‘‘देखिए, आप लोग ऐसा मत कहिए. आप ही साथ छोड़ने की बात करेंगे, तो हम किस से मदद मांगेंगे. मुश्किल में तो अपने ही काम आते हैं.’’

हुमेशा यहां के एक मंदिर के बुजुर्ग थे. वे बहुत ही कांइयां मिजाज के थे. कुछ सोच कर उन्होंने कहा, ‘‘देख गंजोई, जब हम गांव में रहते थे, वहां के नियमकानून अलग थे. या यों कह लो कि बड़ेबुजुर्गों ने बड़ी सूझबूझ के साथ परिवार पर विपत्ति का तोड़ निकाला था. जो तब भी सही थे और अब भी सही ही माने जाएंगे.

‘‘गांव में जब कोई लड़की भाग जाती थी, तो उस परिवार को जाति से बाहर कर दिया जाता था और बच्चे की एक नादानी की वजह से पूरा कुनबा बरबाद हो जाता था.

‘‘तू अपनी लड़की को न खोज, न ही उसे दोबारा घर में घुसने देना. तू उस का श्राद्ध कर दे, ऐसा करने से माना जाता है कि लड़की भागी नहीं मर गई. फिर कोई उंगली नहीं उठाता. यह हमारी जाति का एक रिवाज है, जो गांव में आज भी माना जाता है. गांव वालों को खूब खिलापिला कर खुश कर दिया जाता है. फिर सब उसे मरा मान कर भूल जाते हैं.’’

गंजोई ने संजू का श्राद्ध करने में कोई कसर नहीं छोड़ी. उस ने तय भोजन से 2 अतिरिक्त पकवान बनवाए. सुगना ने चाव से सब को परोसा. अंजू ने भी जलेबी खाई. हुमेशा को 2 जोड़ी कपड़े भी दिए गए. कमलकिशोर के परिवार को उस का श्राद्ध करने की जरूरत नहीं थी. वह तो लड़का था न.

19 दिन 19 कहानियां : कातिल बहन की आशिकी

इस साल गणतंत्र दिवस की बात है. अन्य शहरों की तरह इस मौके पर उत्तर प्रदेश के इटावा शहर में भी स्कूल, कालेज, व्यापारिक प्रतिष्ठान व मुख्य चौराहों पर राष्ट्रीय ध्वज फहराया जा रहा था. शहर का ही सराय एसर निवासी श्याम सिंह यादव भी अपने स्कूल में मौजूद था और बच्चों के रंगारंग कार्यक्रम को तन्मयता से देख रहा था. श्याम सिंह यादव एक प्राइवेट स्कूल में वैन चालक था. वैन द्वारा सुबह के समय बच्चों को स्कूल लाना फिर छुट्टी होने के बाद उन्हें उन के घर छोड़ना उस का रोजाना का काम था.

स्कूल में चल रहे सांस्कृतिक कार्यक्रम समाप्त होने के बाद श्याम सिंह ने स्कूल के बच्चों को घर छोड़ा, फिर वैन को स्कूल में खड़ा कर के वह दोपहर बाद अपने घर पहुंचा. घर में उस ने इधरउधर नजर दौड़ाई तो उसे बड़ी बेटी पूजा तो दिखाई पड़ी, लेकिन छोटी बेटी दीपांशु उर्फ रचना दिखाई नहीं दी. रचना को घर में न देख कर श्याम सिंह ने पूजा से पूछा, ‘‘पूजा, रचना घर में नहीं दिख रही है. कहीं गई है क्या?’’

‘‘पापा, रचना कुछ देर पहले स्कूल से आई थी, फिर सहेली के घर चली गई. थोड़ी देर में आ जाएगी.’’ पूजा ने बताया.

श्याम सिंह ने बेटी की बात पर यकीन कर लिया और चारपाई पर जा कर लेट गया. लगभग एक घंटे बाद उस की नींद टूटी तो उसे फिर बेटी की याद आ गई. उस ने पूजा से पूछा, ‘‘बेटा, रचना आ गई क्या?’’

‘‘नहीं पापा, अभी तक नहीं आई.’’ पूजा ने जवाब दिया.

‘‘कहां चली गई जो अभी नहीं आई.’’ श्याम सिंह ने चिंता जताते हुए कहा.

इस के बाद वह घर से निकला और पासपड़ोस के घरों में रचना के बारे में पूछा. लेकिन रचना का पता नहीं चला. फिर उस ने रचना के साथ पढ़ने वाली लड़कियों से उस के बारे में जानकारी जुटाई तो पता चला कि रचना आज स्कूल गई ही नहीं थी.

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श्याम सिंह का माथा ठनका. क्योंकि पूजा कह रही थी कि रचना स्कूल से वापस आई थी. श्याम सिंह के माथे पर चिंता की लकीरें खिंचने लगीं. उस के मन में तरहतरह के विचार आने लगे. श्याम सिंह की पत्नी सर्वेश कुमारी अपने बेटे विवेक के साथ कहीं रिश्तेदारी में गई हुई थी. श्याम सिंह ने रचना के गुम होने की जानकारी पत्नी को दी और तुरंत घर वापस आने को कहा.

शाम होतेहोते 17 वर्षीय दीपांशी उर्फ रचना के गुम होने की खबर पूरे मोहल्ले में फैल गई. कई हमदर्द लोग श्याम सिंह के साथ रचना की खोज में जुट गए. जब कोई जवान लड़की घर से गायब हो जाती है तो तमाम लोग तरहतरह की कानाफूसी करने लगते हैं. श्याम सिंह के पड़ोस की महिलाएं भी कानाफूसी करने लगीं.

श्याम सिंह ने लोगों के साथ तमाम संभावित जगहों पर बेटी को तलाशा, लेकिन उस का कुछ पता नहीं चला. इटावा के रेलवे स्टेशन, रोडवेज व प्राइवेट बसअड्डे पर भी रचना को ढूंढा गया. लेकिन उस का कहीं कोई पता नहीं लगा.

जब रचना का कुछ भी पता नहीं चला, तब श्याम सिंह थाना सिविल लाइंस पहुंचा. उस ने वहां मौजूद ड्यूटी अफसर आर.पी. सिंह को अपनी बेटी दीपांशी उर्फ रचना के गुम होने की जानकारी दी. थानाप्रभारी ने दीपांशु उर्फ रचना की गुमशुदगी दर्ज कर ली. इस के बाद उन्होंने इटावा जिले के सभी थानों में रचना के गुम होने की सूचना हुलिया तथा उम्र के साथ प्रसारित करा दी.

बड़ी बेटी पर हुआ शक

रात 10 बजे तक श्याम सिंह की पत्नी सर्वेश कुमारी बेटे के साथ अपने घर पहुंच गई. पतिपत्नी ने सिर से सिर जोड़ कर परामर्श किया तो उन्हें बड़ी बेटी पूजा पर शक हुआ. उन्हें लग रहा था कि रचना के गुम होने का रहस्य पूजा के पेट में छिपा है. इसलिए श्याम सिंह ने पूजा से बड़े प्यार से रचना के बारे में पूछा.

लेकिन जब पूजा ने कुछ नहीं बताया तो श्याम सिंह ने उस की पिटाई की. इस के बाद भी पूजा ने अपनी जुबान नहीं खोली. रात भर श्याम सिंह व सर्वेश कुमारी परेशान होते रहे. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर रचना कहां गुम हो गई.

अगले दिन 27 जनवरी की सुबह गांव के कुछ लोग तालाब की तरफ गए तो उन्होंने तालाब के किनारे पानी में एक बोरी पड़ी देखी. बोरी को कुत्ते पानी से बाहर निकालने की कोशिश कर रहे थे. बोरी को देखने से लग रहा था कि उस में किसी की लाश है.

यह तालाब श्याम सिंह के घर के पिछवाड़े था, इसलिए बहुत जल्द उसे भी तालाब में संदिग्ध बोरी पड़ी होने की जानकारी मिल गई. खबर पाते ही वह तालाब किनारे पहुंच गया. उस ने बोरी पर एक नजर डाली फिर तमाम आशंकाओं के बीच बदहवास हालत में थाना सिविल लाइंस पहुंचा. थानाप्रभारी जे.के. शर्मा को उस ने तालाब किनारे मुंह बंद बोरी पड़ी होने की सूचना दी और आशंका जताई कि उस में कोई लाश हो सकती है.

सूचना मिलने पर थानाप्रभारी जे.के. शर्मा पुलिस टीम के साथ सराय एसर गांव के उस तालाब के किनारे पहुंचे, जहां संदिग्ध बोरी पड़ी थी. उन्होंने 2 सिपाहियों की मदद से बोरी को तालाब से बाहर निकलवाया. बोरी का मुंह खुलवा कर देखा गया तो उस में एक लड़की की लाश निकली.

लाश बोरी से निकाली गई तो उसे देखते ही श्याम सिंह फफक कर रो पड़ा. लाश उस की 17 वर्षीय बेटी दीपांशी उर्फ रचना की थी. रचना की लाश मिलने की खबर पाते ही उस की मां सर्वेश कुमारी रोतीबिलखती तालाब किनारे पहुंच गई.

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इधर थानाप्रभारी जे.के. शर्मा ने रचना की लाश मिलने की सूचना पुलिस अधिकारियों को दी तो कुछ देर में एसएसपी अशोक कुमार त्रिपाठी तथा एडीशनल एसपी डा. रामयश सिंह घटनास्थल पर आ गए. पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया और मृतका के पिता श्याम सिंह से इस बारे में पूछताछ की.

श्याम सिंह ने पुलिस अधिकारियों को बताया कि रचना की हत्या का राज उन की बड़ी बेटी पूजा के पेट में छिपा है जो इस समय घर में मौजूद है. अगर उस से सख्ती से पूछताछ की जाए तो सारी सच्चाई सामने आ जाएगी.

अपनी ही बेटी पर छोटी बेटी की हत्या का आरोप लगाने की बात सुन कर एसएसपी त्रिपाठी भी चौंके. उन्होंने पूछा, ‘‘बड़ी बहन अपनी छोटी बहन की हत्या आखिर क्यों कराएगी?’’

‘‘साहब, मेरी बड़ी बेटी के लक्षण ठीक नहीं हैं. हो सकता है इस हत्या में पड़ोस का अनिल और उस का दोस्त अवध पाल भी शामिल रहे हों.’’ श्याम सिंह ने बताया.

श्याम सिंह की बातों से एसएसपी को मामला प्रेम प्रसंग का लगा. अत: उन्होंने थानाप्रभारी को निर्देश दिया कि वह डेडबौडी को पोस्टमार्टम हाउस भिजवाने के बाद आरोपियों को हिरासत में ले कर उन से पूछताछ करें. इस के बाद थानाप्रभारी जे.के. शर्मा ने मौके की काररवाई पूरी करने के बाद रचना का शव पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया.

फिर उन्होंने महिला पुलिस के सहयोग से मृतका की बड़ी बहन पूजा यादव को हिरासत में ले लिया. इस के अलावा आरोपी अनिल व उस के दोस्त अवध पाल को भी सरैया चुंगी के पास से पकड़ लिया गया.

थाने में एडीशनल एसपी डा. रामयश सिंह की मौजूदगी में पुलिस ने सब से पहले श्याम सिंह की बड़ी बेटी पूजा यादव से पूछजाछ शुरू की. शुरू में तो पूजा अपनी बहन की हत्या से इनकार करती रही लेकिन जब थोड़ी सख्ती की गई तो उस ने बताया कि छोटी बहन रचना से उस का झगड़ा हुआ था. झगडे़ के बाद उस ने कमरा बंद कर फांसी लगा ली थी. इस से वह बुरी तरह डर गई. इसलिए शव को उस ने बोरी में भरा और साइकिल पर लाद कर घर से थोड़ी दूर स्थित तालाब में फेंक आई.

थानाप्रभारी जे.के. शर्मा ने अवध पाल से पूछताछ की तो उस ने पूजा से प्रेम संबंधों को तो स्वीकार कर लिया, पर हत्या व लाश ठिकाने लगाने में शामिल होने से साफ मना कर दिया. अनिल ने भी वारदात में शामिल होने से इनकार किया. उस ने कहा कि अवध पाल उस का दोस्त है. अवध पाल व पूजा की दोस्ती को मजबूत करने में उस ने बिचौलिए की भूमिका निभाई थी. लेकिन रचना की हत्या के बारे में उसे कोई जानकारी नहीं है.

पूजा के इस कथन पर पुलिस को यकीन तो नहीं हुआ, फिर भी जांच करने के लिए पुलिस पूजा के घर पहुंची. पुलिस ने कमरे में लगे पंखे को देखा, उस पर धूल जमी थी और उस के ब्लेड जैसे के तैसे थे. रस्सी या दुपट्टा भी नहीं मिला. कमरे में पुलिस को कोई ऐसा सबूत नहीं था, जिस से साबित होता कि रचना ने फांसी लगाई थी.

पुलिस को लगा कि पूजा बेहद शातिर है. वह पुलिस से झूठ बोल रही है. लिहाजा महिला पुलिसकर्मियों ने पूजा से सख्ती से पूछताछ की तो जल्द ही उस ने सच्चाई उगल दी. उस ने स्वीकार कर लिया कि उस ने ही अपनी बहन रचना की हत्या कर डेडबौडी खुद ही तालाब में फेंकी थी. पूजा से पूछताछ के बाद उस की छोटी बहन की हत्या की जो कहानी सामने आई, चौंकाने वाली निकली—

उत्तर प्रदेश के इटावा शहर के सिविल लाइंस थाना क्षेत्र में एक गांव है सराय एसर. शहर से नजदीक बसे इसी गांव में श्याम सिंह यादव अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी सर्वेश कुमारी के अलावा एक बेटा था विवेक तथा 2 बेटियां थीं पूजा और दीपांशी उर्फ रचना. श्याम सिंह यादव शहर के एक प्राइवेट स्कूल में वैन चलाता था. स्कूल से मिलने वाले वेतन से उस के परिवार का भरणपोषण हो रहा था.

श्याम सिंह के बच्चों में पूजा सब से बड़ी थी. चेहरेमोहरे से वह काफी सुंदर थी. पूजा जैसेजैसे सयानी होने लगी, उस के रूपलावण्य में निखार आता गया. उस के हुस्न ने बहुतों को दीवाना बना दिया था. अवध पाल भी पूजा का दीवाना था.

अवध पाल ने पूजा पर डाले डोरे

अवध पाल यादव, सरैया चुंगी पर रहता था. उस के भाई वीरपाल की दूध डेयरी थी. अवध पाल भी भाई के साथ दूध डेयरी पर काम करता था. अवध पाल का एक दोस्त अनिल यादव था जो सराय एसर में रहता था. अनिल, पूजा के परिवार का था और पूजा के घर के पास ही रहता था. अवध पाल का अनिल के घर आनाजाना था. उस के यहां आतेजाते ही अवध पाल की नजर पूजा पर पड़ी थी. वह उसे मन ही मन चाहने लगा था.

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अवध पाल भाई के साथ खूब कमाता था, इसलिए वह खूब बनठन कर रहता था. अवध पाल जिस चाहत के साथ पूजा को देखता था, उसे पूजा भी समझती थी. उस की नजरों से ही वह उस के मन की बात भांप चुकी थी. धीरेधीरे पूजा भी उस की दीवानी होने लगी. उस के मन में भी अवध पाल के प्रति आकर्षण पैदा हो गया.

पूजा पंचशील इंटर कालेज में पढ़ती थी. इसी कालेज में उस की छोटी बहन दीपांशी उर्फ रचना भी पढ़ती थी. पूजा इंटरमीडिएट की छात्रा थी जबकि दीपांशी 10वीं में पढ़ रही थी. पूजा घर से पैदल ही स्कूल जाती थी.

अवध पाल ने जब से पूजा को देखा था, तब से उस ने उसे अपने दिल में बसा लिया था. पूजा के स्कूल आनेजाने के समय वह उस के पीछेपीछे स्कूल तक जाता था. पूजा भी उसे कनखियों से देखती रहती थी.

पूजा की इस अदा से अवध पाल समझ गया कि पूजा भी उसे चाहने लगी है. दोनों के दिलों में प्यार की हिलोरें उमड़ने लगीं. प्यार के समंदर को भला कौन बांध कर रख सका है. वैसे भी कहते हैं कि जहां चाह होती है, वहां राह निकल ही आती है.

अवध पाल को पीछे आते देख कर एक दिन पूजा ठिठक कर रुक गई. उस का दिल जोरों से धड़क रहा था. पूजा के अचानक रुकने से अवध पाल भी चौंक कर ठिठक गया. आखिर उस से रहा नहीं गया और वह लंबेलंबे डग भरता हुआ पूजा के सामने जा कर खड़ा हो गया.

‘‘तुम आजकल मेरे पीछे क्यों पड़े हो?’’ पूजा ने माथे पर त्यौरियां चढ़ा कर अवध पाल से पूछा.

‘‘तुम से एक बात कहनी थी पूजा.’’ अवध पाल ने झिझकते हुए कहा.

‘‘बताओ, क्या कहना चाहते हो?’’ पूजा ने उस की आंखों में देखते हुए पूछा.

तभी अवध पाल ने अपनी जेब से कागज की एक परची निकाली और पूजा को थमा कर बोला, ‘‘घर जा कर इसे पढ़ लेना, सब समझ में आ जाएगा.’’

मन ही मन मुसकराते हुए पूजा ने वह कागज ले लिया और बिना कुछ बोले अपने घर चली गई. हालांकि पूजा को इस बात का अहसास था कि उस परची में क्या लिखा होगा, फिर भी वह उसे पढ़ कर अपने दिल की तसल्ली कर लेना चाहती थी. घर पहुंच कर पूजा ने अपने कमरे में जा कर अवध पाल का दिया हुआ कागज निकाल कर पढ़ा. उस पर लिखा था, ‘मेरी प्यारी पूजा, आई लव यू. मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं. तुम्हें देखे बगैर मुझे चैन नहीं मिलता. इसीलिए अकसर स्कूल तक तुम्हारे पीछे आता हूं. तुम अगर मुझे न मिली तो मैं जिंदा नहीं रह पाऊंगा. तुम्हारा और सिर्फ तुम्हारा अवध पाल सिंह.’

पत्र पढ़ कर पूजा के दिल के तार झनझना उठे. उस की आकांक्षाओं को पंख लग गए. उस दिन पूजा ने उस पत्र को कई बार पढ़ा. पूजा के मन में सतरंगी सपने तैरने लगे थे. उसी दिन रात को पूजा ने अवध पाल के नाम एक पत्र लिखा.

पत्र में उस ने सारी भावनाएं उड़ेल दीं, ‘प्रिय अवध पाल, मैं भी तुम से इतना प्यार करती हूं जितना कभी किसी ने नहीं किया होगा. कह इसलिए नहीं सकी कि कहीं तुम बुरा न मान जाओ. तुम्हारे बिना मैं भी जीना नहीं चाहती. मैं तो चाहती हूं कि हर समय तुम्हारी बांहों के घेरे में बंधी रहूं. तुम्हारी पूजा.’

उस दिन मारे खुशी के पूजा को नींद नहीं आई. अगली सुबह वह कालेज जाने के लिए घर से निकली तो अवध पाल उसे पीछेपीछे आता दिखाई दिया. दोनों की नजरें मिलीं तो वे मुसकरा दिए. पूजा बेहद खुश नजर आ रही थी. सावधानी से पूजा ने अपना लिखा खत जमीन पर गिरा दिया और आगे चली गई.

पीछेपीछे चल रहे अवध पाल ने इधरउधर देखा और उस पत्र को उठा कर दूसरी तरफ चला गया. एकांत में जा कर उस ने पूजा का पत्र पढ़ा तो खुशी से झूम उठा. जो हाल पूजा के दिल का था, वही अवध पाल का भी था. पूजा ने पत्र का जवाब दे कर उस का प्यार स्वीकार कर लिया था.

शुरू हो गई प्रेम कहानी

दोपहर बाद जब कालेज की छुट्टी हुई तो पूजा ने गेट पर अवध पाल को इंतजार करते पाया. एकदूसरे को देख कर दोनों के दिल मचल उठे. वे दोनों एक पार्क में जा पहुंचे.

पार्क के सुनसान कोने में बैठ कर दोनों ने अपने दिल का हाल एकदूसरे को कह सुनाया. पार्क में कुछ देर प्यार की अठखेलियां कर के दोनों घर लौट आए. दोनों के बीच प्यार का इजहार हुआ तो मानो उन की दुनिया ही बदल गई. फिर दोनों अकसर मिलने लगे.

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पूजा और अवध पाल के दिलोदिमाग पर प्यार का ऐसा जादू चढ़ा कि उन्हें एकदूजे के बिना सब कुछ सूनासूना लगने लगा. जब भी मौका मिलता, दोनों एकांत में साथ बैठ कर अपने ख्वाबों की दुनिया में खो जाते. इसी प्यार के चलते दोनों ने साथसाथ जीनेमरने की कसमें भी खा लीं. एक बार मन से मन मिले तो फिर तन मिलने में भी देर नहीं लगी.

पूजा और अवध पाल ने लाख कोशिश की कि उन के प्रेम संबंधों का पता किसी को न चले. लेकिन प्यार की महक को भला कोई रोक सका है. एक दिन पूजा की छोटी बहन दीपांशी उर्फ रचना ने पूजा और अवध पाल को रास्ते में हंसीठिठोली करते देख लिया. रास्ते में तो उस ने कुछ नहीं कहा, लेकिन घर आ कर उस ने पापा और मम्मी के कान भर दिए.

कुछ देर बाद पूजा कालेज से घर आई तो मांबाप की त्यौरियां चढ़ी हुई थीं. श्याम सिंह ने गुस्से में उस से पूछा, ‘‘रास्ते में किस के साथ हंसीठिठोली कर रही थी? कौन है वह, जो हमारी इज्जत को नीलाम करना चाहता है? सचसच बता वरना…’’

पिता का गुस्सा देख कर पूजा सहम गई. वह जान गई कि उस के प्यार का भांडा फूट गया है, इसलिए झूठ बोलने से कुछ नहीं होगा. अत: वह सिर झुका कर बोली, ‘‘पापा, वह लड़का है अवध पाल. सरैया चुंगी में रहता है. वह अपने बड़े भाई वीरपाल के साथ डेयरी चलाता है. हम दोनों एकदूसरे से प्यार करते हैं और शादी करना चाहते हैं.’’

पूजा की बात सुनते ही श्याम सिंह का गुस्सा सीमा लांघ गया. उस ने पूजा की जम कर पिटाई की और उसे हिदायत दी कि आइंदा वह अवध पाल से न मिले. पूजा की मां सर्वेश कुमारी ने भी उसे खूब समझाया. पूजा पर लगाम कसने के लिए सर्वेश ने उस का कालेज जाना बंद करा दिया, साथ ही उस पर निगरानी भी रखने लगी. पूजा पर निगाह रखने के लिए श्याम सिंह और उस की पत्नी ने छोटी बेटी रचना को भी लगा दिया. पूजा जब भी कालेज जाने की बात कहती तो रचना उस के साथ होती और उस की हर गतिविधि पर नजर रखती.

पाबंदी लगी तो पूजा व अवध पाल का मिलनाजुलना बंद हो गया. इस से दोनों परेशान रहने लगे. अवध पाल ने अपनी परेशानी अपने दोस्त अनिल को बताई और इस मामले में मदद मांगी. अनिल रचना का नातेदार था और पास में ही रहता था. वह दोनों के प्यार से वाकिफ था, सो मदद करने को राजी हो गया.

इस के बाद अवध पाल ने अनिल को एक मोबाइल फोन दे कर कहा, ‘‘दोस्त, तुम पूजा के पड़ोसी हो. पूजा तुम्हारे परिवार की है. तुम उस के घर वालों पर नजर रखो और जब भी पूजा घर में अकेली हो तो उसे फोन दे कर मेरी बात करा दिया करना.’’

इस के बाद अनिल पूजा और अवध पाल के प्यार का राजदार बन गया. पूजा जब भी घर में अकेली होती तो अनिल उसे मोबाइल दे कर अवध पाल से बात करा देता. प्यार भरी बातें करने के बाद पूजा अनिल को मोबाइल वापस कर देती. कभीकभी पूजा बहाना कर के अनिल के घर चली जाती और मोबाइल से देर तक प्रेमी अवध पाल से बतिया कर वापस आ जाती.

परंतु पूजा और अवध पाल का मोबाइल पर बतियाना ज्यादा समय तक राज न रह सका. एक रोज रचना ने पूजा को बतियाते सुन लिया. यही नहीं, उस ने अनिल को मोबाइल वापस करते भी देख लिया. इस की जानकारी उस ने मांबाप को दी तो पूजा की पिटाई हुई.

इस के बाद तो यह सिलसिला बन गया. रचना जब भी पूजा को बतियाते हुए देख लेती तो मांबाप को बता देती. फिर उस की पिटाई होती. पूजा अब रचना को अपने प्यार का दुश्मन समझने लगी थी. वह प्रतिशोध की आग में जल रही थी.

24 जनवरी, 2019 को श्याम सिंह की पत्नी बेटे विवेक के साथ किसी काम से चरुआभानी, मैनपुरी रिश्तेदारी में चली गई. इस की जानकारी अनिल को हुई तो वह पूजा और अवध पाल का मिलाप कराने का प्रयास करने लगा, लेकिन रचना की कड़ी निगरानी की वजह से वह मिलाप न करा सका.

गुस्सा बना रचना की मौत की वजह

26 जनवरी, 2019 को गणतंत्र दिवस था. लगभग साढ़े 7 बजे श्याम सिंह यादव अपनी ड्यूटी चला गया. श्याम सिंह के जाने के बाद अनिल पूजा के घर पहुंच गया और उसे मोबाइल दे गया. कुछ देर बाद रचना भी किसी काम से पड़ोसी के घर चली गई. इसी बीच पूजा को मौका मिल गया और वह मोबाइल पर प्रेमी अवध पाल से बतियाने लगी.

पूजा, प्रेमी से रसभरी बातें कर ही रही थी कि रचना आ गई. उस ने मोबाइल पर बहन द्वारा बात करने का विरोध किया और धमकी देते हुए कहा कि आने दो पापा को तुम्हारे प्यार का भूत न उतरवाया तो मेरा नाम रचना नहीं.

रचना की धमकी से पूजा का गुस्सा सातवें आसमान पर जा पहुंचा और दोनों में कहासुनी होने लगी. इसी कहासुनी के बीच रचना ने पूजा के हाथ से मोबाइल छीन कर जमीन पर पटक दिया, जिस से वह टूट गया. इस के अलावा उस ने ऐसे गंदे शब्दों का प्रयोग किया, जिस से पूजा का गुस्सा और बढ़ गया. वह नफरत की आग में जल उठी.

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पूजा ने लपक कर रचना के गले में पड़ा स्कार्फ दोनों हाथों से पकड़ा और पूरी ताकत से उसे खींचने लगी. नफरत की आग में जल रही पूजा भूल गई कि जिस का वह गला कस रही है, वह उस की छोटी बहन है. पूजा के हाथ तभी ढीले हुए जब रचना की आंखें फट गईं और वह जमीन पर गिर पड़ी.

पूजा को यकीन नहीं हो रहा था कि उस की छोटी बहन की सांसें थम गई हैं. वह उसे हिलानेडुलाने लगी. नाम ले कर पुकारने लगी, ‘‘उठो रचना, उठो. मुझे माफ कर दो.’’

लेकिन रचना कैसे उठती. उस की तो दम घुटने से मौत हो चुकी थी. पूजा कुछ देर तक लाश के पास बैठी पछताती रही. फिर पकड़े जाने के डर से वह घबरा गई. पुलिस से बचने के लिए उस ने गले में लिपटा स्कार्फ निकाला और बक्से में छिपा दिया. फिर रचना के शव को प्लास्टिक की बोरी में तोड़मरोड़ कर भरा और बोरी का मुंह बंद कर दिया.

घर के पिछवाड़े कुछ ही कदम की दूरी पर तालाब था. घर के कमरे का एक दरवाजा इसी तालाब की ओर खुलता था. पूजा ने दरवाजा खोला, आवाजाही की टोह ली और फिर शव को साइकिल पर लाद कर तालाब किनारे फेंक दिया. फिर दरवाजा बंद कर साइकिल जहां की तहां खड़ी कर दी. टूटे मोबाइल को उस ने कबाड़ में फेंक दिया और घर साफसुथरा कर दिया.

दोपहर बाद जब श्याम सिंह घर आया तो उसे रचना नहीं दिखी. तब उस ने पूजा से पूछा. पूजा ने उसे गुमराह कर दिया. श्याम सिंह देर रात तक रचना की खोज में जुटा रहा. जब वह नहीं मिली तब वह वह थाना सिविल लाइंस चला गया और पुलिस जांच के बाद प्यार में बाधक बनी छोटी बहन की बड़ी बहन द्वारा हत्या किए जाने की सनसनीखेज घटना सामने आई.

पूजा से पूछताछ के बाद पुलिस ने 28 जनवरी, 2019 को उसे इटावा की अदालत में रिमांड मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया, जहां से उसे जिला कारागार भेज दिया गया. अनिल व अवध पाल के खिलाफ पुलिस को कोई साक्ष्य नहीं मिला, जिस से उन्हें छोड़ दिया गया.

-कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

तांत्रिक दिनेश और कोरोना

लेखक- रंगनाथ द्विवेदी

तांत्रिक दिनेश के पास दो उसके समकक्ष तांत्रिक चेले थे खुर्शीद और संजय यह कभी-कभी अपने तांत्रिक गुरु की भी खाट खड़ी कर देते थे. और इस समय तो कोरोना वायरस जैसी महामारी के चलते इनके–“तांत्रिक खेत की उर्वरता अपने चरम पर थी”. तांत्रिक दिनेश के दोनो चेलो ने इस वायरस की तांत्रिक शुरुआत से पहले की रखी हुई पुरानी इंसानी खोपड़ी व  हाथ की पुरानी हड्डी को फेंक कर कब्रिस्तान से एक मजबूत व नई हड्डी को लाकर धुला-पोछा और तांत्रिक क्रिया के अनुकूल उसका मेकअप कर दिया.

फिर उस गांव की ही एक महिला जो की अक्सर कमीशन पर तांत्रिक दिनेश के संपर्क में रहती थी. वे औरतों को झाड़-फूंक के लिए बहलाने और फूशलाने की जादूगर थी. तांत्रिक दिनेश के दोनों चेलो ने उस महिला से मिलकर तांत्रिक दिनेश की पूरी योजना समझाई व कहा कि वे शाम तलक 10 -12 महिलाओं की व्यवस्था कर उन्हें तांत्रिक दिनेश से मिलवाए और यह बताएं कि वह बहुत पहुंचे हुए तांत्रिक हैं जिन्होंने बड़े-बड़े भूत प्रेत बाधा को न केवल दूर किया, बल्कि उन्होंने उस घर और गांव से उस प्रेत बाधा को हमेशा के लिए खत्म कर दिया. तांत्रिक दिनेश बंगाल, आसाम की तंत्र साधना जानने के अलावा लाल किताब के भी बड़े पहुंचे जानकार है.

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वह एक हफ्ते तक ही गांव में रुकेंगे, फिर इसके बाद एक अनजानी अंधेरी गुफा में  कोरोना के शैतान को मंत्र से बांधने के लिए चले जाएंगे. रात को 9:00 बजे 12 का क्या वे 20 महिलाओं के साथ तांत्रिक दिनेश के आश्रम में आई, उस आश्रम में प्रवेश करते ही जैसे सभी महिलाओं की बुद्धि 50% तांत्रिक दिनेश के वश में हो गई हो. इसका कारण था,  वे अंदर का धुआँ जो कि महिलाएं कह रही थी कि जादू था. तांत्रिक दिनेश भी अपने तंत्र के उस ड्रेस में था, जोकि अक्सर सुपर हिट भुतहे फिल्म के तांत्रिकों की होती हैं.

इतना ही नहीं वे अस्त्र-शस्त्र भी तंत्र साधना के  वहीं मौजूद थे. जैसे आज तांत्रिक दिनेश इस कोरोना वायरस की ऐसी-तैसी कर देगा सिंदूर से खींची लाल सुर्ख आड़ी तिरछी रेखा बड़ी ही डरावनी लग रही थी. उसमें से ऐसी चमक निकल रही थी, मानो वहां कोई रोशनी की गई हो. हड्डी से चारों तरफ सिंदूर के घुमाना चीखना खोपड़ी को स्पर्श करना, तीन नींबू, एक कागज में रखें लौंग, कपूर अगरबत्ती यह कोरोना वायरस को तंत्र-मंत्र और इस देश से भगाने की उठापटक का एक अद्भुत दृश्य था.

तभी उसकी पेटेंट महिला अपने फिक्स तांत्रिक व नाटकीय तरीके से बाल खोले गाली देती सिंदूर वाली घेरे के पास पहुंची और जोर-जोर से अजीब अजीब आवाजें निकालने लगी,  सारी औरतें एकटक अवाक व डरी सी उसको देखने लगीं. तभी वे  उठी और तांत्रिक दिनेश से उलझ गई. तांत्रिक जैसे हवा में कोरोना वायरस रूपी शैतान व उसकी आस -पास के चुड़ैलों को कहने लगा कि, -” जा मेरे मंत्र तंत्र को चैलेंज मत कर, नहीं तो,  तुम्हें नष्ट कर दूंगा. मैं नहीं जाऊंगी, पूरे गांव को निकल जाऊंगी ” इतना कहते ही तांत्रिक दिनेश ने पास में रखी राखी उस पर फेंकी वह हाथ के शमशान वाली हड्डी से उसे पीटा, वह गुर्राते  हुए बेहोश हो गई.

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उसके बेहोश होते ही तांत्रिक दिनेश ने अपने तांत्रिक चेलों से चाकू मांगा फिर उस चाकू से तीनों नींबू में से एक नींबू को काटा तो लाल खून बहने लगा उसने इस औरत के अंदर मौजूद कोरोना के शैतान व उसके साथ की चुड़ैल को काटा हो उस उस खून को उस दिन उसने सिंदूर पर निचोड़ा , फिर दूसरे नींबू को उस औरत के ऊपर काटकर के निचोड़ा तो वे औरत अचानक सकपका कर उठी जैसे ही उठी तो उसने कहा,  मैं कहां हूं? मुझे क्या हुआ? उसके इतना पूछते ही तांत्रिक दिनेश ने झट तीसरा नींबू काटकर उस खोपड़ी पर निचोड़  दिया इतना करते ही वे खोपड़ी और भी खतरनाक और डरावनी दिखने लगी.

फिर उसके चेले पैसे ऐंठने और निकलवाने के अपने हुनर का प्रयोग करने लगे. उन सबको इस कोरोना वायरस की तांत्रिक झाड़-फूंक कराने के लिए प्रेरित किया. फिर सारी औरतें चली गई. क्योंकि तंत्र मत्र के धंधे की सबसे बड़ी ग्राहक व प्रचारक यह औरतें ही हैं फिर आधे घंटे बाद इनकी पेटेंट और फिक्स औरत अपना कमीशन लेने दिनेश के आश्रम पर आई.

अब तक इस गांव से कोरोना वायरस के शैतान को तंत्र मत्र से भगाने के नाम पर तांत्रिक दिनेश ने अपने दोनों तांत्रिक चेलों के व इस फिक्स  महिला के मिलीभगत से ₹80000 आ चुके हैं क्योंकि दिनेश भी अब कोई साधारण तांत्रिक नहीं है. बल्कि अपनी कमाई का कोरोना तांत्रिक हो गया है.

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एक लाश और Lockdown के इक्कीस दिन

मानपाडा , घोरबंदर रोड , ठाणे, के थोड़ा नए , सुनसान जगह में निम्न वर्ग के लिए  नयी बनी एक आम सी हाउसिंग सोसाइटी , नीलकंठ , की एक बिल्डिंग के ग्राउंड फ्लोर के फ्लैट में दो प्लास्टिक की चेयर्स पर बैठे सुमन सिंह  और अजय हेगड़े,बेड पर पड़ी अनिल की लाश को देखते , फिर एक दूसरे को , जैसे कोई महान  काम अंजाम दे दिया हो . सुमन ने कहा ,” अजय , ये जनता कर्फ्यू तो नौ बजे ख़तम हो जायेगा , इसे रात को ठिकाने लगा पाएंगे न ?”

”हाँ , सुमन , कुछ दूरी पर नयी बिल्डिंग बन रही थी , आजकल काम बंद है , वहीँ गड्ढा खोदकर इसे दबा देंगें , बस , अब इसे बड़े सूट केस में भर लेते हैं .” सुमन ने फिर एक बार लाश को देखा , बदन में एक झुरझुरी सी हुई . अनिल के साथ पांच सालों के वैवाहिक जीवन का अंत ऐसे होना था , यह कभी सोचा नहीं था . वह यूँ ही पानी पीने उठ गयी , अजय भी पीछे पीछे उठा , और उसकी कमर में  हाथ डाल दिया ,बोला ,”क्यों परेशान हो रही हो , डिअर ? चार साल से इसी दिन का तो इंतज़ार किया है , हमारे प्यार के बीच कीअब सब दीवार हट चुकी हैं, . ” सुमन पलटी और उसके गले लग गयी . सुमन और अजय फिर भविष्य की योजनाएं बनाते रहे , रिश्तेदारों  और पड़ोसियों को क्या कहना है , रोने की कितनी एक्टिंग करनी है .अनिल बिहार के हाजीपुर से मुंबई आया था , वह और अजय एक आइस फैक्ट्री में काम करते थे , कोरोना के टाइम अनिल के रिश्तेदार बिहार के गावों  से मुंबई आने से रहे , उसके माता  पिता थे नहीं , भाई बहन थे , वे कहाँ आ पायेंगें , इसलिए दोनों ने अनिल को मारने का यही समय चुना था . आजकल लोग कोरोना वायरस के चलते डरे सहमे से थे . बिल्डिंग का जो चौकीदार रहता  , वह भी अपने गांव जा चुका था .

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इस बिल्डिंग में आम से लोग थे जिनकासमय अपनी जरूरतें पूरी करने में ही बीत जाता , वैसे भी ये मुंबई के लोग थे जिनके पास एक दूसरे के जीवन में ताकाझांकी के लिए न समय होता है , न आदत . दोनों ने अनिल की लाश को मिलकर सूटकेस में भर दिया , सुमन बीच बीच में विचलित होती पर अजय उसे बातों में लगा लेता . दोनों फिर थक से गए तो फर्श पर ही लेट गए . दोनों ने फिर चाय , नाश्ता , खाना पीना , प्यार मोहब्बत सब आराम से किया जैसे कुछ हुआ ही न हो . आज के दिन के लिए वे दोनों ही पूर्ण रूप से मानसिक रूप से तैयार थे .नौ बजे अजय ने बाहर झाँका ,कहा ,”बस अब यह बैग लेकर बाहर जाना है , ऑटो मिल जाए अब , और कोई बाहर न मिले .” अजय और सुमन ने इतने में ही आवाजें सुनी , किचन की खिड़की से झाँका , काफी लोग दिन भर रहने के बाद बाहर निकल आये थे , अजय ने अपना सर पकड़ लिया , ”यह तो बड़ी मुश्किल हो गयी , बाहर तो बहुत लोग आ गए .”

सुमन अब घबराई ,” अब क्या करेंगें ?” अजय थोड़ी देर सोचता रहा , फिर बोला ,” मैं कल एक टेम्पो लेकर आऊंगा , फिर यह सूट केस ले जाऊंगा .” सुमन हड़बड़ा गयी ,” तो क्या इसके साथ मैं अकेली रहूं?”

अजय इस समय भी हंस दिया , ” अरे , पांच साल रह ली , एक रात और बिता लो पति के साथ .” सुमन ने गुस्से से घूरा , तो बोला ,”अरे , पड़ा रहने दो बेचारे को एक कोने में , लो , यहाँ रख देता हूँ , दरवाजे के पीछे , तुम्हे अब नहीं दिखेगा . सुमन , आज कितना फ्री फील हो रहा है न ?”सुमन अब भी चिंतित थी ,”तुम यहीं रुक जाओ , अजय .”

”माँ को भी जाकर शकल दिखा दूँ , अकेली परेशान हो रही होंगीं , सुबह से ही यहाँ हूँ , मैं जाकर टेम्पो वाले से भी बात कर लेता हूँ ,” सुमन को किस करके , उसे तसल्ली देकर अजय चला गया . सुमन ने बेड की चादर बदली , बहुत थकान थी , आराम करने लेट तो गयी पर बंद आँखों के आगे अनिल से मिलने से लेकर आज तक की घटनाएं सिलसिलेवार घूमने लगीं .

आइस फैक्ट्री में ही सुमन के चाचा काम करते थे , उन्ही के पास आते जाते उसकी मुलाकात अनिल से हुई थी ,उसका  सरल , गंभीर सा स्वभाव उस समय तो सुमन के मन को छू गया था ,अनाथ सुमन और अनिल के  विवाह पर  किसी को आपत्ति नहीं हुई , विवाह के कुछ ही दिन बाद उसे अनिल के गहरे दोस्त अजय का खिलंदड़ा, मस्त मौला स्वभाव इस कदर भाया कि आज सूटकेस में रखी लाश उसी लगाव की निशानी थी जो दिन पर दिन बढ़ता गया था और दोनों ऐसे दीवाने हो चुके थे कि कई महीनों से अनिल से पीछा छुड़ाने की बात करने लगे थे . अजय अनिल की अनुपस्थिति में खूब आता जाता रहा तो अनिल के घर होने पर भी आता जाता , जिससे किसी देखने वाले को लगे कि यह घर जैसा ही कोई दोस्त है . अजय का विवाह तो हुआ था पर उसका तलाक हो चुका था , वह अपनी माँ के साथ ही ठाणे की ही एक सोसाइटी में रहता था , सुमन अनिल के साथ उसकी माँ से मिलने भी जाती रहती . आज भी पूरी योजना के साथ जब अजय के साथ अनिल ने सुबह बैठ कर सुमन के हाथ का बना नाश्ता किया तो वह अजय पर हमेशा की तरह  स्नेह ही लुटाता रहा था , उसे सपने में भी गुमान नहीं रहा होगा कि आज कैसे वह बेवफा  पत्नी और धोखेबाज  दोस्त के हाथों जान गवाने वाला है .

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सुबह नाश्ते के बाद अनिल और अजय ऐसे ही बेड पर बातें करते रहे तो अनिल के चाय मांगने पर सुमन ने अजय के इशारे पर उसे उसका एक दिन पहले ला कर दिया जहर चाय में मिलाकर देने का इशारा किया , सुमन अजय के प्रेम में इतनी अंधी थी कि उसके हाथ अनिल को जहर वाली चाय देते हुए जरा भी नहीं कांपे. अनिल चाय पीकर तुरंत बेसुध हुआ तो अजय ने उसके मुँह पर तकिया रख दिया , कुछ ही सेकंड तड़पकर अनिल ने आखिरी सांस ली , तो अजय ने उठकर सुमन को गले लगा कर उसे किस किया तो सुमन भी उससे लिपट गयी थी , कोई पछतावा नहीं , बस , दो बहके से इंसान !

इतने में अजय के फ़ोन से सुमन चौंक कर उठी , अजय ने कहा ,” डर तो नहीं लग रहा ?”

”नहीं , तुम साथ हो तो डर कैसा ?”

” तो सोई क्यों नहीं ?”

”ऐसे ही , नींद नहीं आयी .”

”पति की याद आ रही हो तो एक नजर सूट केस पर डाल लेना ,” कहकर अजय जोर से हस दिया तो सुमन ने बनावटी गुस्सा दिखाया ,” पति की इतनी याद आती तो आज वह सूट केस में न होता ,” दोनों हँसे,सुमन ने कहा , अच्छा , टेम्पो वाले से बात हुई ?”

”हाँ , कल रात को लेकर आता हूँ , माँ की तबियत ख़राब है , उन्हें शाम को डॉक्टर को दिखा कर फिर रात को आता हूँ .”

”ठीक है .”

हमेशा वही नहीं हो सकता जैसा इंसान सोचता है , अगले दिन  महामारी को काबू करने के लिए लॉक डाउन की घोषणा हो गयी  तो सुमन बुरी तरह घबराई , उसने अजय को फ़ोन किया कि फौरन आओ , उसने कहा ,”हाँ , माँ को डॉक्टर के पास जल्दी ले जा रहा हूँ , फिर आता हूँ .” पर फिर अजय का फ़ोन आया कि सब बंद होने लगा है , टेम्पो वाले ने तो मना कर दिया है , कोरोना से डरकर सब एकदम बंद होता जा रहा है , कोई ऑटो भी नहीं दिख रही . कैसे आऊंगा ?”

सुमन चिल्लाई ,” मुझे नहीं पता , अजय , कैसे भी आओ , जल्दी आओ . ”

उसके बाद तो सुमन को झटके पर झटके लगते रहे , जब अजय का फ़ोन ही बंद आने लगा . पहले उसने सोचा कि नेटवर्क की प्रॉब्लम होगी फिर समय बीतते बीतते उसे समझ आ गया कि उसका प्रेमी उसे धोखा देकर गायब हो चुका है , उसे इतना गुस्सा आया , सोचा , उसके घर पहुँच जाए , पर उसका घर भी दूर था , और कोई ऑटो सचमुच रोड पर अब नहीं थी . पूरा दिन सुमन भूखी , प्यासी , बेचैन सी इधर से उधर फ्लैट में चक्कर काटती रही , सूट केस पर नजर डालती , क्या होगा अब , कुछ समझ नहीं आ रहा था , फिर अजय को फ़ोन मिलाती , फ़ोन अब बंद ही था . इस समय वह अजय को ढूंढने नहीं निकल सकती थी , बस एक आशा थी मन में कि शायद फ़ोन खराब हो , वह अचानक आ जाए . पर अजय लॉक डाउन की खबर से सचमुच भाग खड़ा हुआ था , वह इस समय किसी मुसीबत में नहीं पड़ना चाहता था , वह फौरन अपनी माँ के साथ नवी मुंबई , अपनी  मौसी के घर चला गया था .

अब दो दिन बीत गए , सुमन को समझ आ गया कि इस लाश का जो भी करना है , उसे ही करना है , उसका शैतानी दिमाग अपने काम पर लग गया था , अब उसे कोई ऐसा इंसान पकड़ना था जो वही करे , जो वह कहेगी . अब उसे अपने ऊपर रहने वाले करीब तीस साल के  राजू की याद आयी , राजू एक फोटोग्राफर के यहाँ फ्रेम बनाने का काम करता था . राजू से वह अक्सर आते जाती मिलती थी तो राजू की नजरों को पढ़कर उसे मन ही मन बहुत हसी आती थी , अनिल के पास भी अक्सर वह आ जाता , चाय पीने के टाइम उसे ही जिन नजरों  से देखता , उन नजरों को वह खूब पहचानती . राजू अपने फ्लैट में अकेला ही रहता . लॉक डाउन के बाद अब सब घर में ही थे . एक सब्जी वाला नीचे आता , सब लेने उतरते, उसने राजू को भी सब्जी लेते देखा तो फौरन उतर गयी , पूरी अदाओं से उसके हाल चाल पूछे , और चलते चलते कहा ,” बोर हो रहे होंगे तुम ?”

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राजू ने हाँ में सर हिलाया , सुमन ने कहा ,” आओ , चाय पीयोगे ?”

”अनिल है ?”

”नहीं .”

राजू को भला क्या आपत्ति होती ,वह तो मन ही मन सुमन के रूप पर फ़िदा था सालों से , उसके पीछे पीछे अंदर गया , सुमन ने बड़ी शराफत से चाय पिलाई ,मासूम सी शकल बना कर बातें करती रही , बता दिया , अनिल बाहर गया है , तुम आते रहना .” और सच में राजू फिर आता ही रहा , तीसरे ही दिन सुमन ने बाकी दूरियां भी ख़तम कर दी तो राजू तो जैसे उसका गुलाम ही हो गया , यही लगा सुमन को , यह सच भी था , राजू दिलो जान से फ़िदा हो गया उसपर , तो सुमन ने सूट केस में रखी लाश का पूरा सच बताकर उससे हेल्प मांगी , सुमन ने इतना ही बताया कि अनिल उसे बहुत मारता था , उसे गुस्सा आया तो उसने अनिल की हत्या कर दी , वह सालों से मार पिटाई की शिकार थी , उसने अपनी कहानी रो रोकर ऐसे सुनाई कि राजू उसकी हेल्प करने के लिए फौरन तैयार हो गया . अनिल का फ़ोन तो सुमन कब का बंद कर चुकी थी जिससे कोई भी संपर्क  करने की कोशिश न करे , उसके पास कोई फ़ोन आया भी तो उसने उठाया नहीं . अब राजू रात में लाश ठिकाने लगाने के लिए तैयार  हो गया , उसने कहा ,” अकेले तो बहुत मुश्किल है , साथ चलोगी ?”

”हाँ .”

दोनों ने सचमुच रात को राजू की बाइक पर छुपते छुपाते  एक बजे सूट केस ले जाकर घोड़बंदर रोड पर ही आगे जाकर खाड़ी में फेंक दिया .सुमन ने राजू को बहुत थैंक्स बोला , दोस्ती अब और पक्की हुई , आना जाना , साथ रहना कुछ और बढ़ा.  लॉक डाउन का टाइम था , रहना तो घर में ही था , घर का सामान राजू ही ले आता , सुमन बीच बीच में अजय का फ़ोन मिला कर देखती , फ़ोन शायद अब बंद ही रहता , अब सुमन सोच रही थी कि लॉक डाउन ख़तम होते ही यह घर बेच कर कहीं और चली जाएगी , यहाँ कोई भी अनिल के बारे में पूछ सकता था . वह आगे की बहुत सी प्लानिंग मन में ही करती रहती , लाश दफ़नाने के पांचवे दिन ही राजू एक लड़के के साथ आया , परिचय हुआ , यह विनय था , थोड़ी देर में ही एक और लड़का आया , राजू ने परिचय करवाया , यह सुनील है . सुमन का माथा ठनका , पर ये मुझसे मिलने क्यों आये हैं ?” राजू ने दुष्टता  से कहा ,ये सब मेरे कुछ  दोस्त हैं , अभी और भी आयेंगें ,इन्होने  अनिल की लाश दफनाने का वीडियो बनाया है ,ये सब उस समय पहले से वहीँ थे . तुम्हे दिखाना चाहते थे .” कहकर सब हँसे, सुमन पसीने पसीने हो गयी , डर गयी, समझ गयी , वह बहुत बुरी तरह फंस चुकी है . ” फिर भी उसने पूछा , राजू , तुमने मुझे धोखा  दिया ? मैंने तुम्हे अपना समझा .”

राजू गुर्राया ,” तुम किसी को अपना समझ ही नहीं सकती , तुम बहुत ही खतरनाक औरत हो .”

सुमन ने पूछा ,” मुझसे क्या चाहते हो ?”

विनय ने उसके पास जाते हुए कहा ,” वही जो हमारे जैसे लड़के एक जवान , सुन्दर औरत से चाह सकते हैं .”

”चले जाओ , यहाँ से , मैं अभी शोर मचाती हूँ .”

” हाँ , बुलाओ सबको , सब वीडियो देख लें .” राजू ने सचमुच सुमन को वीडियो दिखाया , साफ साफ़ दिख रहा था कि वह राजू की हेल्प कर रही है , दोनों सूट केस खाड़ी में मिलकर फेंक रहे हैं .

सुमन सर पकडे बैठी रह गयी , दोनों ने सुमन के साथ जबरदस्ती करनी शुरू की , वह जितना भी रोक सकती थी , रोकने की कोशिश की , पर कोई असर  नहीं , दोनों ने मिलकर सुमन के साथ रेप किया , राजू रेप का वीडियो बनाता रहा , सुमन बेबसी में रोती रह गयी , किसी पडोसी को भी नहीं बता सकती थी , संगीम जुर्म कैमरे में कैद था , जिसके बाहर आने पर भी हालत खराब होनी ही थी , अब भी खराब ही थी . वह हर तरफ से अब मजबूर थी , यह सिलसिला रोज का हो गया ,वह सबका खाना बनाती , थक जाती , फिर उनकी हवस का निशाना बनती , उसे बाद में उनकी बातों से ही पता चला कि राजू तो पहले दिन से उन्हें सब बता रहा था , लॉक डाउन में ये लड़के राजू के फ्लैट पर ही आ चुके थे , और भी तीन दोस्त आसपास की बिल्डिंग में थे , विनय ने एक दिन भद्दा मजाक करते हुए कहा ,” अच्छा हुआ , सुमन , तुमने लॉक डाउन का टाइम चुना , नहीं तो हम तो बहुत बोर हो जाते .” सुमन मन ही मन दिन गिनती कि लॉक डाउन ख़तम हो तो वह यहाँ से भाग जाएगी , लॉक डाउन ख़तम होने में अभी सात दिन और थे , एक दिन एक आदमी राजू के साथ आया , राजू ने कहा ,सुमन , ये हैं तुम्हारे स्पेशल गेस्ट .”विनय ने कहा ,” यही हैं हमारे फोटोग्राफर  रवि साहब , अब तुम्हे इनके लिए मॉडलिंग करनी है , इन्हे तुम्हारा वीडियो बहुत पसंद आया .” राजू को छोड़कर सब लड़के हँसते हुए सुमन के घर से चले गए , राजू ने हँसते हुए कहा ,” सुमन , तुम्हारे लिए लॉक डाउन में भी छुपते छुपते आये हैं , चलो , अपनी अब तक की बेस्ट परफॉरमेंस दो ” रवि दुष्ट सेभाव लिए आगे बढ़ा , सुमन ने  गुस्से में हाथ उठा दिया उस पर , रवि ने उसे कसकर वापस थप्पड़ लगाए , सुमन बेबसी में जोर जोर से रोने लगी . रवि रेप करता रहा , राजू शूट करता रहा . सुमन रोते रोते बेजान सी हो गयी तो  दोनों उसे छोड़ कर रूम से जाने लगे तो राजू ने  हंसकर कहा ,” सुमन , अब आराम करलो , मैं अब रात को आऊंगा , मेरा तो नंबर ही नहीं आ रहा .” उस दिन सुमन बहुत रोई , बहुत पछतायी , बहुत बुरी फंसी थी , किसी को बताने का मतलब था , अनिल की हत्या का पता चलना , न बताने का मतलब था , इतने लड़कों की हवस का शिकार बनते रहना , इनके इशारे पर नाचना , पर कब तक !

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यह जानलेवा सिलसिला चलता जा रहा था , उसकी शकल बिलकुल उजड़ सी गयी थी , रोम रोम दुखता , लॉक डाउन ख़तम होने तक तो उसकी हिम्मत जवाब दे गयी . अब उसके घर की एक चाभी भी राजू ने रख ली थी , अगले दिन जब राजू अंदर आया , खड़े का खड़ा रह गया , सुमन ने किसी टाइम अपनी कलाई काट ली थी , खून भी बहकर सूख चुका था , उसने फौरन उसकी साँसे चैक की , वह जा  चुकी थी . मिनटों में ही सब लड़के गायब हो गए , बहुत  देर बाद लोगों को पता चला कि लॉक डाउन में क्या घट चुका था , आसपास क्या अनहोनी होती रही  , किसी को खबर ही नहीं हुई थी . पुलिस सब लड़कों और अनिल की तलाश में जुट चुकी थी .

लौकडाउन जिंदगी

लेखक- पुखराज सोलंकी

गांव से मीलों दूर दिल्ली शहर के इंडस्ट्रीज एरिया की एक फैक्ट्री मे काम कर रहा लीलाधर इस बार शहर आते वक्त अपनी गर्भवती पत्नी रुक्मणी और चार साल की मुनिया से वादा कर के आया था, कि इस बार हमेशा की तुलना में वापस जल्दी ही गांव लौटेगा.

वक्त-वक्त पर पत्नी की खैर खबर के लिए आने वाली आशा दीदी ने भी अप्रैल महिने की ही तारीख़ बताते हुए कहा था कि- ‘ऐसे वक्त में तुम्हारा यहां होना बेहद जरूरी है.

‘जबाब में लीलाधर बोला- ‘मैं तो उससे पहले ही पहुंच जाऊंगा, बस ये मार्च के महीने में काम का कुछ ज्यादा ही दबाव रहता है, जिसके चलते साहब लोग छुट्टी नही देते लेकिन उसके बाद लम्बी छुट्टी पर ही आऊंगा और आते वक्त मुनिया, उसकी मम्मी और नए वाले बाबू के लिए कुछ कपड़े लत्ते भी तो लाने हैं न.’

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लौकडाउन के दौरान उस काट खाने वाले कमरे में छत को घूरते हुए लीलाधर अपने अतीत में खोया यह सब सोच ही रहा था कि कुंडी के खडकने से उसकी तंद्रा टूटी. लुंगी लपेटते हुए दरवाजा खोला तो सामने फैक्ट्री का सुपरवाइजर खड़ा था, वो बाहर खड़े-खड़े ही बोला-

‘कुछ जुगाड़ बिठाया कि नहीं गांव जाने का, फैक्ट्री अभी बंद है और मालिक भी किसकिस को खिलाएगा घर से, ये पकड़ पांच सौ रूपये, मालिक ने भेजें है, और आज शाम तक कमरा खाली कर देना, बाकी का हिसाब वापसी पर ही होगा.’

यह सुनकर लीलाधर को एक बार तो ऐसा लगा जैसे इस वायरस ने उसके भविष्य के सपनों को अभी से ही संक्रमित करना शुरू कर दिया हो. अब कोई और चारा नही था, लिहाजा कमरा खाली करना पड़ा. अब जाए तो जाए कहां ना बस ना ट्रेन जेब में पांच का नोट और कुछ पांच-दस के सिक्के, अब अगर यहां रूका तो जो हैं वो भी खर्च हो जाएंगें.

यही सब कुछ सोचते विचारते आखिर फैसला कर ही लिया और घर रुकमणी को फोन किया- ‘एक दो दिन में कुछ जुगाड़ बिठाकर गांव के निकल जाऊंगा, तुम अपना और मुनियां का ख्याल रखना, हाथ धोते रहना और उसे बाहर मत निकलने देना.’

अपने घर आने की खबर पत्नी को देकर लीलाधर निकल पड़ा नेशनल हाइवे पर, मन ही मन उसने हिसाब भी लगा लिया कि 24 घंटों में अगर 16 घंटे भी लगातार चला सात-आठ दिनों में तो गांव पहुंच ही जाएंगा । उसने ठान लिया था कि अब वो पैदल ही इस सफर को पूरा करेगा, वो खुश था. घर की और बढ़ते कदमों में एक अलग ही उत्साह था. उसे मलाल बस इसी बात का था कि वो मुनिया और नए बाबू के लिए कुछ कपड़े लत्ते और खिलोने नही खरीद नही सका.

सफर तय करते-करते लीलाधर रुकमणी से फोन पर बात करते हुए बोला, ‘मेरे फ़ोन की बैटरी डाउन होने लगी है. बाद में अगर फोन न कर पाऊं तो परेशान मत होना, बस कुछ ही दिनों की बात है, जल्दी ही सफर तय करूंगा.’ बैटरी डाउन की वजह से न चाहते हुए भी उसे फोन काटना पड़ा.

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सफर के दौरान लीलाधर ने रुकमणी को लाॅकडाउन की वजह से शहर में हो रही परेशानियों और पाबंदियों से अवगत तो कराया. लेकिन यह नही बताया कि वह पैदल ही गांव पहुंच रहा है, बताता भी कैसे, उसे डर था कि पत्नी कही मना न कर दें. वह अनवरत चलता रहा, उसके आगे पीछे जो लोग चल रहें थें धीरेधीरे उनकी संख्या कम होती गयी, दिल्ली के आसपास इलाकों वाले लोग अपने गंतव्य तक पहुंच चुके थें. लेकिन उसका चलना जारी था.

उधर चार-पाँच दिन बीतने पर पत्नी को घर से बाहर होने वाली हर आहट पर यही लगता कि शायद अब वो आएं हो. फोन लगना तो कब का बंद हो चूका था. एक तो लाॅकडाउन और ऊपर से ये इन्तजार, वो दोहरी मार झेल रही थी. दिन में तो चलो जैसेतैसे मुनिया और मां बाबा के साथ समय निकल जाता, लेकिन रात होतेहोते उसे बेचैनी सी होने लगती है, बात करने के लिए फोन उठाती लेकिन फोन स्विच ऑफ मिलता.

अगले दिन सुबहसुबह जब घर की कुंडी खड़की तो मुनिया खुशी से चहकी पापा आ गये.. पापा आ गये, घर में मां बाबा सहित सब के चेहरे पर खुशी के भाव साफ दिखने लगे थें. हाथों का काम छोड़कर वो दरवाजे की और दोड़ी, चुन्नी का पल्लू अपने सर पर रख के उसने दरवाजा खोला तो सामने गांव के ही दरोगा साहब थे,

‘लीलाधर का घर यही है ?’
‘जी, यही है.
‘क्या लगते है आप उनके ?’
रुकमणी पास खड़ी मुनिया की और इशारा करते हुए बोली,
‘जी, इसके पापा है.’
‘घर में कोई और है बड़ा.’

बातचीत सुनकर बाबा बाहर की और आएं और बोलें
‘क्या बात है, दरोगा साहब ?, बेटी तुम अंदर जाओ.’
वो मुनिया को लेकर अंदर तो चली गयी लेकिन उसके कानों ने अभी भी दरवाजे पर हो रही गुफ्तगू का पीछा नही छोड़ा.

‘जी, आप कौन ?’
‘मैं उसका बाबा हूं.’
दारोगा ने हाथ में थाम रखा डंडा बगल में दबाकर अपनी टोपी उतारते हुए कहा- ‘बहुत अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है लीलाधर अब इस दुनिया में नही रहा, नेशनल हाइवे पर रात के समय गश्त पर गए पुलिस दस्ते को सड़क पर एक लहू-लुहान हालत में लाश पड़ी मिली, शायद किसी अज्ञात वाहन ने टक्कर मार दी, शिनाख्त के दौरान जेब व बैग में मिलें कुछ कागजों की वजह हम यहां तक पहुंच पाएं. शव फिलहाल मोर्चेरी में है.

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यह सुनते बूढ़े बाबा की टांगों ने जवाब दे दिया था, दरवाजा पकड़कर खड़े रहने की हिम्मत जुटाई क्यूकिं बहु के आगे वे ऐसा करेंगे तो फिर उसको कोन संभालेगा. उधर दारोगा के आते ही रुकमणी को भी कुछ अनहोनी का अंदेशा होने लगा था, वो अंदर थी लेकिन उसके कान आसानी से बातचीत सुन पा रहें थें.

‘हिम्मत रखिये, और बताएं की इतनी रात को आपका बेटा कैसे इतनी दूर निकल गया था, क्या घर में कोई बात हुई थी ?.’ दारोगा ने प्रश्न किया.

‘हमारी किस्मत फूटी थी जो उसे रोजगार के लिए दिल्ली भेजा, वो तो नहीं आया. लेकिन आप…

तभी लीलाधर की माँ चिल्लाई, ‘अरे.. कोई बचाओ, मुनिया की माँ उसे लेकर पानी के कुएं में कूद गयी.

दारोगा साहब अंदर की और दोड़े, पीछे-पीछे बाबा आएं, दारोगा ने बाहर जीप के पास खड़े अपने सहकर्मी को आवाज दी. हड़बड़ाहट में किसी को कुछ नही सुझ रहा था, जब तक रस्सी का इंतेज़ाम हुआ तब तक दोनों लाशें पानी में तैरने लगी थी. लीलाधर और उसके परिवार की जिंदगियां बिना किसी संक्रमण के हमेशा के लिए लाॅकडाउन की भेंट चढ़ चुकी थी.

पापियों ने बढ़ाया कोरोना को

लेखक- सुरेश सौरभ

होली में मुझे ससुराल जाना था, इसलिए पत्नी का सख्त आदेश था कि अपनी डेंटिंग-पेंटिंग करा डालूं. लिहाजा होली के एक रोज पहले, उनके हुक्म की तामील करते हुए मैं अपने मोहल्ले की एक नाई की दुकान पर अपनी हजामत कराने के लिए जा पहुंचा. वहां पहले से बैठे अपने मोहल्ले के ग्राहकों की भीड़ से मुझे यह अहसास हुआ कि मेरा सिर नाई के हाथों में बहुत देर से पहुंचेगा.

वहां की भीड़ से मुझे यह भी लग रहा था कि मेरे जैसे ही कई पति अपनी पत्नियों के आदेश का पालन करने के लिए बेहद लाचारी में बैठे हैं और बेचारगी से नाई को बड़ी हसरत से देखते हुए अपने नंबर के आने का इंतजार कर रहें हैं. टाइम काटने की गरज से मैंने वहां आड़ा-तिरछा मुंह बिसूरता पड़ा अखबार का एक पन्ना उठा लिया. तभी कोरोना  पर एक महाज्ञानी ने बात खोद दी-अगर कोरोना से बचना है, तो हल्दी वाला शाम को एक गिलास दूध पीना चाहिए. दूसरे ने ताल ठोंक कर कहा-यहां इतनी जलवायु गरम है कि कोरोना तो क्या उसके बाप का भी कोई असर न होगा.

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नाई के चेहरे की चमक बढ़ रही थी वह यह सोच कर खुश था, चलो मेरे ग्राहक कोरोना की बहस में उलझ कर बैठे रहेंगे, ऊबेंगे नहीं, कहीं जायेंगे नहीं. इसलिए उसने भी एक मुक्तक उछाल कर कहा-ये बात मैंने भी कहीं से सुनी है कि खूब हल्दी खाने वालों के ऊपर कोरोना का असर बिलकुल नहीं होता है. भैया मेरे ऊपर तो कोरोना का बिलकुल असर नहीं होगा. मेरी तो घरवाली सब्जी-दाल में खूब रेलम-पेलम हल्दी मिर्च झोंकती है. भैया हम लोग तो पीने-खाने वाले आदमी हैं. हमें खूब तीखा खाने में मजा भी आता है.’ मेरे सामने ,एक महोदय अखबार का एक पन्ना बांच रहे थे, उसे परे हटा कर अपना सिर खुजाते हुए बोले-साला डेढ़ रुपया वाला फेस मास्क मारकेट में पच्चीस रुपये का.

नामुराद दुकानदार उल्लू बना कर ग्राहकों की गर्दनें काट रहें हैं. ऐसा ही रहा, तो फेस मास्क को नागमणि की तरह खोजना पड़ेगा. एक सज्जन ने उबांसी लेते हुए कहा-पाकिस्तान भारत का जानी दुश्मन है. जब वह भारत से, आतंकवाद से, न जीत सका तो, भारत की अर्थव्यवस्था को खराब करने के लिए साजिशन कोरोना को भारत भेजवा रहा है. तभी उस नाई का  चलता हाथ ग्राहक के सिर पर ठहर गया. वह बीड़ी का लम्बा सुट्टा खींच, पाक को भद्दी गाली देते हुए बोला-साला है, पाकिस्तान बड़ा हरामखोर है. अपनी पर आ जाए तो गिरी से गिरी हद तक जा सकता है.

तभी एक अधेड़ अपनी बड़ी-बड़ी दाढ़ी खुजाते हुए बोला-मेरा तो मानना है कि इस बार होली में होलिका को जलाने के बजाय कोरोना वायरस का पुतला बनाया जाए और किसी बड़े पंडित से मंत्र-वंत्र पढ़ा कर, उसे होलिका दहन की तरह फूंका दिया जाए, इससे राक्षस कोरोना दुम दबाकर भाग जायेगा. एक बैरागी टाइप के आदमी ने कहा-ये सब  बढ़ रहे पापों का नतीजा है. चीन बहुत पापी है. जब कुत्ता, घोड़ा, गदहा सांप चमगादड़ सब खायेंगे तो कोरोना उन्हें नहीं, क्या हमें खायेगा.

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भारत में भी जानवर खाने वाले पापी बढ़ रहे है. अगर ऐसे ही निरन्तर बढ़ते रहे, तो कोरोना हमारे देश में भी आ जायेगा, पर हमें ये सब चिन्ता नहीं करनी चाहिए जब तक मोदी जी इस देश में है तब तक हमारे देश में न तो जानवर खाने वाले पापी बढ़ पायेंगे और न कोरोना राक्षस भारत का कुछ बिगाड़ पायेगा.

कोरोना का साइड इफेक्ट

लेखक- नीरज कुमार मिश्रा

देश में लौकडाऊन अब भी जारी था, और  लोगों के अंदर एक क्षोभ  सा भरा हुआ था. यह कहना कठिन था कि ये गुस्सा किसके प्रति था.

उस देश के खिलाफ जहाँ से ये वायरस आया है या सरकार द्वारा अचानक से लॉकडाऊन ठोंक दिए जाने की नीति पर ,पर सच तो ये था कि एक वायरस ने अचानक कहीं से प्रकट होकर उनकी सामान्य तौर से चलती हुई ज़िंदगी में एक उथलपुथल ज़रूर मचा दी थी .

ऐसी ही कुछ उथलपुथल मोबीना की ज़िंदगी में मच गयी थी. सलीम और सलीम  के दो बेटियां थी ,वैसे तो वह प्रकट रूप से कुछ नहीं कहता था पर एक बेटे की चाह तो उसके मन में बनी ही हुई थी.

सलीम की बेगम मोबीना एक सीधी सादी महिला थी जो मोहल्ले में अपने सद्व्यवहार के लिए जानी जाती थी.

मोबीना मोहल्ले में रमिया चाची को देखने गयी थी क्योंकि जीने पर से फिसलने से उनके घुटनो में थोड़ी चोट आ गयी थी और फिलहाल वो बिस्तर पर ही थी.

रमिया चाची के सिरहाने बैठी मोबीना पंखा झल रही थी कि तभी उसे पता चला कि रमिया चाची का लड़का जो  दुबई में काम करता है ,वो वापिस आ गया है .

उसे ये जानकर अच्छा भी लगा कि चलो अब कोई तो रमिया चाची को सहारा देने वाला आ गया है.

मोबीना ने भी सुना है कि कोई कीड़ा वाली बीमारी, मने जिसे वायरस वाली बीमारी कहते हैं वो फैल रही है और लोगों की जान ही ले लेती है वो बीमारी ,और इसीलिये देश की सरकार ने सबसे दूर दूर बैठने को कहा है .

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अरे पर आदमी आस पड़ोस में न जायेगा तो फिर ऐसे व्यवहार का क्या अचार डालना है और फिर अगर अच्छे में नहीं गये तो क्या ,कम से कम बीमारी अज़ारी में मिजाजपुर्सी के लिए तो जा ही सकते हैं ना. और फिर हम मेलजोल नहीं रखेंगे तो हमसे मिलने कौन आएगा?

“ये लो भाभी ,कोल्डड्रिंक पी लो ,बहुत गर्मी हो रही है न ,लो अम्मा तुम भी ले लो थोड़ा सा ” चाची के लड़के सुरेश ने कोल्ड ड्रिंक का गिलास पकड़ाते हुए कहा “अरे नहीं भैया ,आप ही पियो  ,हमे नुकसान न कर जाये कहीं ” मोबीना ने कहा

“अरे भाभी ,कुछ नहीं नुकसान करेगा ,हमें देखो अब हमें तो जुकाम है फिर भी हम पी रहे हैं कोल्ड ड्रिंक”कहते हुए कोल्ड ड्रिंक का पूरा गिलास खाली कर दिया सुरेश ने “तो भैया ,कैसे आ पाये दुबई  से तुम ,सुना है कि विदेश में बहुत मारा मारी चल रही है और पुलिस हवाई अड्डे पर ही बहुत जांच करती है तब ही आने देती है “मोबीना ने पुछा

“हाँ …मुश्किल तो बहुत था ..बस किसी तरह आ गए समझ लीजिए” सुरेश अचानक से खों खों करके खासने लगा

“क्या हुआ तबीयत नहीं सही है क्या ?” मोबीना ने पूछा

“पता नहीं जबसे आया है तबसे ही कुछ परेशान सा लग रहा है सुरेश” रमिया चाची ने बताया

मोबीना कुछ देर रमिया चाची के पास बैठने के बाद घर वापिस चली आयी .

घर में मोबीना के ससुर अपने लड़के सलीम के साथ बैठे कुछ चर्चा कर रहे थे

“अरे भाई बीमारी अगर फैली है तो उसका कोई इलाज़ भी तो होगा , अब ये तो कोई बात नहीं न हुई कि भाई बीमारी से डरकर घर से ही निकलना छोड़ दिया जाये ,हाँ ..ये मुमकिन हो सकता है अमीर लोगों के लिए ,पर हमारे जैसे रोज़ कमाने खाने वाले लोगों के लिए  तो ये बड़ी मुश्किल पैदा करने वाली बात है भाई ”

सलीम  खबरें टीवी आदि पर सुनता रहता था इसलिए उसने भी अपना ज्ञान बघारा

“नहीं अब्बू ,इस कम्बखत वायरस का यही इलाज़ है कि लोगों को एक दुसरे से मिलने से रोक दिया जाए तभी इसको रोक जा सकता है वरना ये सबकी जान इसी तरह ले लेगा”

बापबेटे की ये बातें सुनती हुयी मोबीना सीधे किचन में चली आईऔर रोटियां बनाने के लिए आटा लगाने लगी.

एक दो दिन बीतें होंगे ,अचानक से मोहल्ले में कानाफूसी तेज़ हो गयी थी ,मोबीना ने भी जानकारी ली कि माज़रा क्या है तो उसे पता चला कि रमिया चाची का लड़का सुरेश अस्पताल गया था दवाई लेने के लिए ,वहां डॉक्टरों ने कुछ सवाल जवाब किये तो उसमें सुरेश के दुबई से वापिस आने और हवाई अड्डे से बाथरूम जाने का बहाना करके और बिना जांच कर घर आने की बात सामने आयी थी डॉक्टरों ने कुछ जाँचे करी तो सुरेश को कोरोना वायरस से ग्रसित पाया गया और अब उसको क्वारंटीन में रखा गया है.

मोबीना ये सब सुनकर परेशान हो उठी क्योंकि टी वी पर देखकर वह इतना तो जान ही गयी थी कि जो व्यक्ति कोरोना वायरस से ग्रसित हो जाता है उसके संपर्क में आने वाले व्यक्ति को भी संक्रमण का खतरा भी रहता है और वह भी तो सुरेश के संपर्क में आयी थी और तो और कोल्ड ड्रिंक भी पिया था .

तो क्या उसे भी संक्रमण हो गया होगा ?

और उसे भी संक्रमण हो गया ,तो क्या वह मर जायेगी ?

कुछ दिन ही बीतें थे कि सलीम के मोहल्ले मे डॉक्टरों की एक टीम आयी ,डॉक्टरों की टीम यह सुनिश्चित कर रही थी कि दुबई से लौटे हुए सुरेश के संपर्क में जो लोग आये थे उन्हें कोई संक्रमण तो नहीं है .

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उन डॉक्टरों की टीम ने अपने आपको पूरी तरह से एक विशेष प्रकार के आवरण से कवर कर रखा था  और अपने मुंह पर मास्क लगाया हुआ था और वे डॉक्टरी उपकरणो से लोगों को चेक कर रहे थे .

डॉक्टरों की टीम ने अभी तक कुल आठ दस लोगों को चिन्हित कर लिया था ,जिन्हें कोरोना पॉजिटिव होने का खतरा लग रहा था .

मोबीना घर में ही दुबक गयी थी उसे डर लग रहा था  ,वह मन ही मन ये सोच रही थी कि कहीं वो भी कोरोना वायरस से संक्रमित न हो पर जब कोई आपदा इतने बड़े स्तर पर फ़ैल कर पूरी मानवता को तबाह करने पर लगी हो तो भला घर में छुपने से काम कहाँ चलता है  .

डॉक्टरों ने मोबीना को भी घर से बुलवाया और उसके भी प्रारंभिक टेस्ट किये ,और टेस्ट के बाद  कुछ लोगों को क्वारंटीन में रहने के लिए साथ में ले गए जिसमे से रमिया चाची के साथ मोबीना भी थी .

मोबीना ने जब क्वारंटीन में जाने का विरोध किये तो उसके शौहर सलीम ने ही उसको समझाया

“अरे तुम घबराओ मत मोबीना ,ये डॉक्टर ,ये जाँचे ये सब हमारे अच्छे के लिए ही है ,तू बेफिक्र होकर जनके साथ जाओ और यहाँ की चिंता छोड़ दे ,हम सब तुम्हारे लौटने की दुआ कर रहें हैं ,उम्म्मीद है तुम जल्दी ही सेहतमंद हो जाओगी ”

“हाँ ..पर मेरी बेटियों का धयान कौन रखेगा ,आपको तो घर का काम काज भी नहीं आता है फिर उनका ध्यान कौन रखेगा ” मोबीना ने रोते हुए चिंता व्यक्त करी

“अरे …हाँ तुम मत घबराओ ,घर के काम काज के लिए मैं यास्मीन को बुला लूंगा

वैसे तो मोबीना बहुत फिक्रमंद हो रही थी पर जब उसने यास्मीन का नाम सुना तो उसके बेचैन मन को थोड़ी राहत मिली ,फिर भी घर से दूर जाने का गम तो उसे सता ही रहा था .

यास्मीन जो मोबीना की छोटी  बहन थी ,वह मोबीना से छह साल छोटी थी .

आम तौर पर गाँव कस्बों मे आसपास के रिश्तेदार आज भी विपत्ति के समय एकदूसरे के काम आते हैं और इसी कारण ऐसे समय सलीम को अपनी साली की याद आयी थी

लौकडाउन में वैसे तो किसी भी काम के घर से निकलना मना था पर एक गाँव से पास के गाँव में खेती किसानी के काम के बहाने चोरी छुपे जाया जा सकता था .

इसी बहाने का सहारा लेकर यास्मीन को उसके घर से लिवा लाया था सलीम .

अपनी बहन के घर आकर यास्मीन ने सारा काम काज संभाल लिया था ,बच्चे भी मौसी के साथ घुल मिल गए थे और यास्मीन भी अच्छे तरह से उन लोगों को संभाल ले रही थी .

उधर मोबीना को क्वारंटीन में रखा गया था ताकि बीमारी की अच्छी  तरह से जांच हो सके ,इसी जगह पर कहीं सुरेश और रमिया चाची भी होंगी ,पर क्या फायदा ?

जब एक दूसरे से मिल ही नहीं सकते मिलना तो दूर वो सब अपने लोग तो मोबीना को दिखाई ही नहीं देतें है

बस डौक्टर और नर्स  का ही आना जाना रहता है ,वो भी अपने आपको पूरी तरह से ढके हुए

किसी की भी शक्लें सही से देखे हुए कितना टाइम हो गया है यही सब की उधेड़बुन में रहती थी मोबीना .

मोहल्ले के लोग हैरान और परेशान थे कि कैसे इस कोरोना वायरस की जद में उनके मोहल्ले के लोग भी आ गए ,

क्या सच में वह वायरस सुरेश के साथ आया था ?

या फिर और कोई संक्रमित होकर आया और उसने मोहल्ले में संक्रमण फैलाया ?

हाँ इतना ज़रूर था कि इन बातों को कोई एक दूसरे से कहता नहीं था पर परेशान तो मोहल्ले के सभी लोग थे .

पर ऐसी दशा में कोई था जो मोबीना के जाने और यास्मीन के आने से खुश था पर कौन था वो?

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वो कोई और नहीं बल्कि सलीम था क्योंकि उसकी नज़र हमेशा से ही यास्मीन  पर थी और इसी के चलते उसे अपनी पत्नी के क्वारंटीन में जाने का कोई दुःख नहीं हुआ बल्कि वो यास्मीन को लॉक डाऊन के खतरे के बाद भी लिवा लाया था .

“यास्मीन …देखो आज तक मैंने मन की बात तुमसे सामने से कभी नहीं कही ..हाँ पर ये अलग बात है कि तुम शायद उस बात को मन ही मन समझती रही …

दरअसल जब मैंने तुम्हे  मामा के यहाँ एक शादी में देखा था तभी तुम मुझे पसंद आ गयी थी और मैंने तुम्हरे लिए पैगाम भी भिजवाया था पर

मोबीना तुमसे उम्र में बड़ी थी और उसके रहते तुम्हारी शादी करने में तुम्हारे घर वालों ने आना कानी करी और  उल्टा मेरे घर वालों से मोबीना की शादी मेरे साथ करने पर ज़ोर दिया …तुम्हारे घर की माली हालत देखकर मेरे घर वालों ने मेरे साथ मोबीना की शादी करा दी  और …और इस ज़माने के कारण मैं कुछ कह भी न सका ,पर आज मैंने अपने दिल की बात तुमसे कह दी है और हैं मैं तुमसे बेपनाह मोहब्बत करता हूँ”  रसोईघर में खाना बनाती यास्मीन से सलीम ने मन की बात कह डाली

बच्चे घर में टीवी देखने में व्यस्त थे इसीलिये यास्मीन ने भी अपनी बात कह देने ठीक समझी

“देखिये  जो बीत गया है  उसे भूल जाइए ,मैं आपको अच्छी लगी या आप मुझे अच्छे लगे पर अब काफी समय बीत चुका है आप अब  दो लड़कियों के बाप है और आपको ये सब करना अच्छा नहीं लगता …इसलिए किसी नए रिश्ते को जन्म मत दीजिये ”

यास्मीन का दो  टूक का उत्तर सुनकर सलीम जड़वत हो गया था ,उसे इस तरह के सूखे उत्तर की आशा नहीं थी उसे ,बेचारा मन मसोस कर रह गया था .

कोरोना से संक्रमित होने वाले लोगों की संख्या में इज़ाफ़ा हो रहा था ,कस्बे और गाँव में भी पुलिस की गश्त बढ़ती जा रही थी जोये सुनिश्चित करती थी कि लोग सामाजिक दूरी बनाकर रहें.

रात गहरी हो रही थी ,यास्मीन भी नींद में थी ,अचानक एक हाथ  उसकी जांघो को सहलाने  लगा ,कुछ देर बाद यास्मीन ने अपने सीने पर किसी के हाथों का दबाव महसूस किया ,यास्मीन समझ गयी थी कि वह सलीम ही होगा जो दिन के उजाले में अपनी बात नहीं मनवा पाया तो रात में जबरदस्ती अपनई मर्दानिगी दिखाने आया है उसने धक्का देकर हटाने की कोशिश करी पर औरत तो औरत है ,मर्द ही हमेशा औरत पर भारी पड़ता आया है और आज भी वही हुआ .

सलीम का पुरुषत्व यास्मीन के कोमल जिस्म को दबा चुका था और सलीम ने अपने को तृप्त करने के लिए शुरुवात  कर दी थी ,हालाँकि यास्मीन आज तक तो कुंवारी थी पर आज जब उसका कौमार्य भंग हुआ तो उसे भी कुछ अच्छा सा लगा उस ने कुछ देर तक तो विरोध किया पर कुछ देर बाद उसे भी आनंद आने लगा पर उसने प्रकट रूप में अपने गुस्से को बनाये ही रखा .

सुबह सलीम विजयी भाव से अपने घर में घूम रहा था ,कभी तो बेवजह यास्मीन के आगे पीछे घूमता तो कभी जबर्दस्ती उससे बोलने की कोशिश करता .

और बच्चे तो यही समझ कर खुश होते रहे कि मौसी उनको समय पर खाना और पानी देती है पर दूसरी तरफ तो और ही खेल चल रहा था

उधर मोबीना को क्वारंटीन में रखा गया था और  सही सामाजिक दूरी ,एहतियात के बाद जब मोबीना के सारे टेस्ट कोरोना नेगेटिव आये तो डौक्टरों ने मोबीना को घर जाकर रहने की सलाह दी और कुछ नियम भी बताये जो उसे अब भी बरतने थे .

आज मोबीना घर आकर बहुत खुश थी ,उसके बच्चे बार बार माँ  -माँ कह  कर आ लिपट जाते थे .

यास्मीन भी अपनी बहन के सकुशल घर आ जाने से खुश थी .

एक सलीम ही ऐसा व्यक्ति था ,जिसके सीने पर मोबीना को देख सांप लोटे जाते थे .

रात को खाना खाने के बाद जब मोबीना अपने होठो से सलीम के होठों को चूमने लगी तो सलीम ने उसे हाथ मारकर  अलग कर दिया .

“उफ़ मोबीना …तुम अपना इलाज़ करा कर आयी हो और तुम्हे तो अभी मुझसे दूर रहना चाहिए पर ऐसा लगता है कि तुम अपनी  सेक्स की प्यास बुझाने के लिए मुझे भी बीमार करने से बाज़ नहीं आओगी”

आँसुओं में टूट गयी थी मोबीना ,बीमारी के बाद अपने शौहर से ऐसी उम्मीद नहीं थी उसे ,पर अपने मन को उसने के कहकर समझा लिया कि कोई बात नहीं कुछ दिन में सब सही हो जायेगा.

पर सही तो जब होता जब सलीम की नीयत सही होती ,सलीम का व्यवहार दिनबदिन मोबीना के प्रति खराब होता गया .

मोबीना ने यही समझ कि लॉकडाऊन में ज़रा पैसे की किल्लत हो रही है इसीलिये सलीम ज़रा चिड़चिड़े हो गए हैं .

“अप्पी …अब आप आ गयी हो और आपकी तबीयत भी ठीक हो गयी है इसलिए …हो सके तो मुझे घर भिजवा दो”यास्मीन ने मोबीना से कहा

“अरे …ऐसी भी क्या बात है …चली जाना “मोबीना ने कहा

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“हाँ …पर घर पर भी कुछ काम है इसलिए ….मेरा घर जाना ही उचित होगा” यास्मीन ने सलीम और मोबीना की कलह की जड़ को भांपते हुए कहा

“ठीक है मैं  बात करती हूँ तेरे जीजा से”

रात को बिस्तर पर मोबीना ने यास्मीन को घर छोड़कर आने की बात कही तो अचानक चौक उठा था सलीम पर उसने अपने गुस्से का प्रदर्शन नहीं किया और चुपचाप सो गया.

रात में मोबीना की आंख खुली तो सलीम को उसने बिस्तर पर नहीं पाया  पर यास्मीन वाले कमरे से कुछ आवाज़ आती सुनाई दी तो उसने कान लगाकर सुनने की कोशिश की ओर की ओट से अंदर झाँका तो उसे वो दिखा जो नहीं दिखना चाहिए था .

अंदर कमरे में सलीम और यास्मीन  एक दुसरे से लिपटे हुए थे और सलीम कह रहा था .

“ओह…जानेमन …भला तुम जाने की बात क्यों करती हो ….अगर किसी को जाना होगा तो वो यास्मीन जाएगी …तुम नहीं”  यास्मीन के होठो को चूसते हुए सलीम ने कहा.

“पर वो अबकी बीवी है और मैं तो कुछ भी नहीं ..मेरा और आपका रिश्ता भी तो नाज़ायज़ है ….फिर मैं कैसे?”

“अरे नाज़ायज़ और जायज़ कुछ भी नहीं होता …और वैसे भी मैं उसे तलाक़ देने जा रहा हूँ और  जबसे  मोबीना को ये छूत की कोरोना वाली बीमारी लगी है न तबसे मुझे तो उसे छूने में भी घिन आती है ”

मोबीना पर तो जैसे आसमान ही टूट पड़ा था  अब क्या करेगी वो ?कहाँ जायेगी वो?

वो तो इतनी पढ़ी लिखी भी नहीं कि चार पैसे कमाकर  अपना और बच्चों का पेट ही भर ले ,फिर ,फिर क्या करेगी अब मोबीना …..

मोबीना वहीँ फर्श पर पछाड़ खा कर गिर गयी थी.

कोरोना और लौकडाउन ने मोबीना की पूरी ज़िंदगी ही तबाह कर दी थी .

ये था मोबीना की ज़िंदगी पर कोरोना का साइड इफेक्ट.

कमली और कोरोना

लेखक- नीरज कुमार मिश्रा

“जब सब लोग अपने अपने घर म आराम से सो रहे होते ह तब हम लोग क सुबह होती है और जब सब लोग सुबह के  सूरज को सलाम कर रहे होते है, उस समय तक हम लोग थककर चूर हो जाते है “मुबई क एक सुनसान सड़क पर खड़ी ई कमली अपने आप से  ही बुदबुदा उठ थी “पता नह य ,आजकल सड़क पर इतना साटा य रहने लगा है ,पहले तो अपने को शाम आठ बजे से ही ाहक मलने शु हो जाते थे और रात के एक बजे तक तो म तीन चाराहक से धधा कर लेती थी पर अभी दस बजने को आये और एक भी ाहक नह आया ” ाहक के ना आने से झुंझुला रही थी कमली

“ऐ…तुम लोग को कुछ समझ म नह आता ….सारी नया  म बीमारी फ़ैल रही है ,लोग को घर से नकलने को मना कया गया है और तुम लोग को घर म भी चैन नह मल रहा है ….रात यी नह क नकल पड़ी सड़क पर” पीछे से मोटरसाइकल पर सवार दो पुलिसवाल में से एक ने चिल्लाकर कहा…

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“अरे….या साहब …हम लोग बाहर नह नकलगे तो  खाएंगे या ,कौन हमको बैठे बैठे खलायेगा .…हम लोग को तो रोज़ ही कुआं खोदना है और तभी अपुन लोग को पानी नसीब होता है साहब ” कमली ने तवाद कया “चलो….चलो …बक बक  मत करो अब ….बत देर यी ….अब भागो यहाँ से “एक पुलसवाला चलाते ए बोला “अरे …तुमको भी कुछ चाहए तो बोलो …और नह चाहए …तो आप अपने काम पर जाओ और मुझे अपना काम करने दो साहब ,अभी तक बोहनी भी नह ई है अपनी” कमली ने अपनी आवाज़ म मठास घोलते ए कहा जब कमली ने इस तरह से पुलस वाल से रकवेट करी तो वे भी मुकराते ए वहां से नकल गए और जाते जाते कमली को चेताया क थोड़ी देर के लए ही वे छूट दे रह है और उनक वापसी करने तक वह वापस चली जाए ,बदले म कमली ने भी सर झुकाकर उनक बात मान लेने का अभनय कया. सूनी आँख से अब भी सड़क को नहार रही थी कमली , जो सड़क रात को और अधक गुलज़ार रहती थी उन पर आज साटा है जसका कारण कोरोना वायरस ारा संमण का फैलना है जसके कारण ज़री कामो को छोड़कर बाक लोग को घर से नकलने को मना कया गया है ,पर कमली जैसी औरत जो धधा करती है अगर वो बाहर नह नकलेगी तो खायेगी या, उसके लए तो सड़क पर नकलना बत ज़री है. “आज भी खाली हाथ ही वापस लौटना पड़ेगा ,कोई भी ाहक नह दख रहा …….”मायूस हो चुक थी कमली “सुनो..”कोई मदाना आवाज़ थी जो कमली के ठक पीछे से आयी थी कमली ने बड़ी ही आशा भरी नज़र से पीछे घूमकर देखा वह एक लंबा सा युवक था ,जसक उ करीब अड़तीस -चालीस के पास होगी , और देखने से काफ  पैसे वाला लग रहा था वह लगातार कमली को घूरे जा रहा था  उस युवक को अपनी और ऐसे घूरते देखकर कमली को लगा क कम से कम एक ाहक तो आया “ऐसे य घूरे जा रहे हो…..यहाँ घूरने का भी पैसा लगता है”कमली ने इठलाते ए कहा “नह ….मेरा काम सफ घूरने भर से नह होगा ….म तो तुहारे  साथ एजॉय करना चाहता हूं “उस युवक ने कमली के उत सीने पर नज़र टिका दे.

“वो…एजॉय तो ठक है पर …उसका पैसा देना होगा”कमली ने अपने खुले सीने को ढकते ए कहा “कतना पैसा लोगी तुम?बताओ तो सही” वह युवक बत हड़बड़ी म और थोड़ा घबराया आ सा लग रहा था “अब साहब ….वैसे तो म तीस हज़ार लेती ँ तुम बोहनी के समय आये हो इसलये थोड़ा कम दे दो म कुछ नह कँगी….”कमली ने अंगड़ाई लेते ए कहा “अरे …तुम तीस क बजाय पैतीस ले लेना….. बस तुम मुझे एक बार खुश कर दो…  जतना मांगो म उतना पैसा देने को तैयार ँ ” युवक के वर म उेजना थी ये बात उस युवक ने कुछ इस कार थी क कमली भी एक पल को कुछ सोचने लगी थी अगले ही पल कमली ने उस युवक से सवाल कया “पर ..अभी तक तुमने अपना नाम तो बताया ही नह”कमली ने पूछा ” अजीत …अजीत सह है मेरा नाम”जद से युवक ने अपना नाम बताया “हाँ तो ठक है अजीत बाबू …अपनी डील पक हो गयी है …तो चलो .कस होटल म  ले चलना है ….या फर अपनी गाड़ी म ही अपने अरमान पूरे करने का इरादा है”कहने के साथ ही कमली मादक ढंग से हँसने लगी थी “देखो सारे होटल तो बंद ह …और मेरे पास गाड़ी वगैरह भी नह है” अजीत ने कहा “ऐ…तो या यह सड़क पर नपटने का इरादा है या” कमली ने आँख तरेरी “नह …नह यहाँ नह…अगर हम दोन लोग तुहारे घर पर चलकर…. एजॉय कर तो तुहे कोई एतराज तो नह होगा” अजीत सकुचा रहा था “वह अजीत बाबू …एक ही मुलाकात म इतनी मोहबत कर बैठे क मेरा घर तक देख लेना चाहते हो ..पर बाबूजी म तुहे बता ँ क घर के नाम पर अपने पास एक खोली है …और वहां तक जाने के लए हम लोग को थोड़ा पैदल चलना होगा”  “हाँ…..हाँ ..म तैयार ँ  बताओ कधर चलना है “अजीत कमली क हर बात म राज़ी होता दख रहा था चौड़ी सड़क को छोड़कर वे दोन अब तंग गलय म आ गए थे.

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इन गलय म साफ़ सफाई क कोई वथा भी नह दख रही थी ,अचानक से अजीत सह को सूखी खांसी आने लगी  ,पहले तो उसक खांसी पर कमली का यान नह गया पर जब अजीत सह क खासी कुछ यादा ही बढ़ गयी तो कमली ठठक “या बात है तुहे तो लगातार खासी आ रही है?”कमली ने पूछा “हाँ ….वो ज़रा गले म कुछ फस गया था इसलए खासी आ गयी”अजीत ने सामाय दखने का यास कया “फर भी …ये मेरे पास खासी क गोली है …तुम इसे खा लो …तुहे आराम मल जायेगा” कमली ने अजीत को खासी क गोलयां देते ए कहा अजीत ने भी बना कोई वरोध कये वो खांसी के गोली चुपचाप खा ली. “तुहे पता है क आजकल पूरी नया म एक वायरस ने खौफ फैला रखा  है ,उस वायरस को कोरोना वायरस कहते ह और सुना है क जो  कोरोना वायरस से संमत होता है उसे भी मेरी तरह खासी आती है  ,और बुखार भी आता है और बाद म सांस लेने म भी दकत   होती है ,पर मुझे डरने क ज़रत नह है ये खासी वासी तो ऐसे भी आती ही रहती है “कहकर अजीत मुकुराने लगा था “वैसे तुहारा नाम या है”अजीत ने चलते ए पूछा “कमली” “बत सुंदर नाम है तुहारा ,पर सोचता ँ क अगर तुम धंधे वाली नह होती तो एक बत अछ डॉटर बन सकती थी” मुकुरा रहा था अजीत “अरे य मज़ाक करते हो साहब …म भला या डॉटर बन सकती थी”कमली शमा सी गयी “हाँ हाँ बलकुल …एक अछ डॉटर ..देख न तुहारे बैग म मेरे लए दवा भी मल गयी…अब तुमने दवा द है तो मुझे तुहारी फस भी तो देनी होगी ना” इतना कहते ए अजीत सह ने अपनी जेब म हाथ डाल कर दस बीस नोट कमली क तरफ बढ़ाए  पर वह  कोई वदेशी करसी  थी जसे देखकर कमली के मन म कुछ संदेह उ होने लगा तो अजीत सह उसक मनोभावना को समझते ए हँसने लगा और बोला  “अरे तुम घबराओ मत …बई क करसी के अलावा  भारत के नोट भी है …ये लो भारतीय नोट “कहकर अजीत सह ने 500 के ढेर सारे नोट कमली क तरफ बढ़ दये ढेर सारे नोट देखकर कमली क आँख म चमक आ गयी ,उसने लपकर पये ले लए और अपनी चोली म खस लए अभी भी दोन लोग तंग गलय से ही गुज़र रहे थे ,बीच बीच म अचानक कुो के भोकने क आवाज़ आने लगती तो कमली धत कहकर कु को खामोश कर देती एक खोली के बाहर पँच कर कमली क गयी थी ,हाँ यही तो थी उसक खोली ,अजीत सह ने उसक खोली देखकर राहत क सांस ली.

अब वे दोन खोली के अंदर थे ,अजीत सह ने कमली को अपनी बाह म जकड लया और बेतहाशा उसे चूमने लगा ,कमली भी उसका भरपूर साथ दे रही थी ,अजीत क साँसे फूल रही थी ,उसने कमली के जूड़े म लगा आ पन नकाल दया और उसक कैद जफ को आज़ाद कर दया , और बारी बारी कमली के कपड़ो को भी हटा दया वे दोन पैदायशी हालत म बतर पर पँच गए . अजीत सह बतर पर पचते ही लेट गया  “अछा …अजीत बाबू …मजा भी चाहए ..और मेहनत भी नह करना चाहते ..अब सब कुछ हम  को ही  करना पड़ेगा या?  अजीत क टांग के ऊपर बैठते ए कमली ने कहा  “हाँ…दरअसल …अपनी जदगी म म कभी भी अछा ाइवर नह रहा ँ ….इसीलये आज गाड़ी चलाने क ज़मेदारी तुहे दे द है ….गाड़ी तुम चलाना शु तो करो ….अगर मेरा मन करेगा तो बाद म ाइवग सीट पर म आ जाऊँगा” अजीत सह ने  कमली क कमर वाले हसे को दबाते हटे कहा रात के साटे म उन दोन क साँस क आवाज़ खोली म गूंज रही थी और जम दहक रहे थे ,अजीत के शरीर के ऊपर बैठ ई कमली अचानक से नढाल होकर एक और गर गयी और अजीत भी नढाल होकर कमली क पीठ से लपट गया.

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थोड़ी देर तक दोन इसी हालत म  पड़े रहे करीब दस मनट बाद अजीत ने कमली के कान पर पडी यी जुफ हटाकर  धीरे से कहा “कमली …मुझे भूख लगी है ….कुछ खाने को दे ना” अजीत क ये खाने वाली फरमाइश ने कमली को वच हालात म लाकर खड़ा कर दया था एक तो खोली म खाने क कोई चीज़ नह थी और सरी बात ये क आज तक जतने भी ाहक आये वे सब कमली के साथ सेस करने के बाद वहां से  चले गए पर ये पहली बार था क कसी ाहक ने उससे खाना माँगा था ये बात कमली को हैरान भी कर रही थी और कसी के ारा अपनेपन से खाना मांगने के कारण खुश भी हो रही थी.हालाँक कमली का शरीर आराम मांग रहा था और उसक पलक भारी हो रही थी लेकन वह खाना बनाने क गरज   से बतर छोड़कर उठ . खोली के एक कोने म ज़रत का सारा सामान जमा करके उसे कचन क सी शल दे द गयी थी ,एक गैस चूहा और कुछ बतन और कुछ सजयां और आटा ,चावल ,दाल के कुछ डबे म ही कमली खाना बनाने का उपम करने लगी. बतर  म लेटे लेटे ही अजीत ने कमली क और देखा कहा  “तुमने पैसा कमाने के लए कोई और काम य नह पकड़ा कमली”  कमली के लए ये सवाल कुछ नया नह था इससे पहले भी कई ाहक आते थे जो पहले कमली के जम से अपनी द ई पूरी कमत वसूलते और बाद म शराब के नशे  कुछ इसी तरह क बाते करके फालतू क हमदद दखाते अजीत क बात सुनकर हँस पडी थी कमली  “या अजीत बाबू ….पूछा भी तो या पूछा …वEही दल को खाने वाली कहानी ….वैसे म सबको  बताती भी नह पर तुम अछे आदमी दखते हो इसलये बताती ँ  महारा के एक छोटे से गांव म हमारा घर था ,घर म पैसे क बत कमी थी और बाबूजी को शराब क लत लग गयी थी ,घर म जब पैसे खम हो गए तो बाबू जी ने मुझे एक दलाल को बेच दया और फर उस दलाल ने मुझे एक कोठे पर पचा दया और फर या था मुझे एक वैया बनने म समय नह लगा फर एक दन अचानक कोठे पर रेड पड़ गयी और हम लोग को गरतार कर लया गया ,म नाबालग थी इसलए मुझे बाल सुधार गृह भेज दया गया  पर वहां भी नेता टाइप के लोग आते और हमारा शारीरक शोषण करते थे ,मुझे वहां का माहौल पसंद नह था इसलए म एक दन वहां से मौका देखकर भाग गयी  और वहां से बाहर आते ही इस नया म जदा रहने के लए मुझे पैसे क ज़रत थी ,जो क अपने शरीर को बेचकर आसानी से कमाया जा सकता था और …..बस तबसे लेकर आज तक मेरा सफर ऐसे ही चल रहा है”कमली ने अपनी कहानी बयां कर द “ओह काफ खभरी कहानी है तुहारी …पर एक बात बताओ ….लोग कहते ह क तुहारे जैसे सेसवकर संमण फैलाते है ,जससे लोग म बीमारी फैलती है ,एड्स जैसी बीमारी फ़ैलाने म तुम लोग का अहम् रोल रहता है”अजीत ने पूछा “हाँ साहब….गलत काम करने का इलज़ाम हमेशा से ही गरीब लोग पर लगता आया है अरे कंडोम का यूज़ करने से हर बीमारी र रहती है तो आप लोग को कंडोम यूज़ करने म मज़ा नह आता है और अगर बाद म अगर कुछ हो गया तो दोष हम लोग का आता है और तो और अजीत बाबू कंडोम तो आज तुमने भी नह उसे कया है ” इसलए हो सकता है क कह तुहे भी कोई बीमारी न लग जाए” कमली बोली खाने क लेट अजीत के हाथ म देकर कमली भी उसी के साथ खाना खाने लगी “वैसे भी आजकल देश म कोरोना को लेकर बत सती चल रही है  यक अभी तक कोरोना क कोई भी दवाई भी नह बन पायी है

दरअसल म भी अभी तीन दन पहले ही बई से लौटा ँ ,जब म भारत पंच तो हवाई अे पर मेरा गहन चेकअप आ और उसके बाद मुझे एक अलग कमरे म रख दया गया और मुझसे ऐसा वहार कया जाने लगा जैसे मुझे कोई छूत क बीमारी हो ,मुझे लगने लगा था क शायद म कोरोना से त हो गया ँ और बत मुमकन है क म जीवत न रँ इसलये बत ही सुरा होने के बावजूद म सबक नजर बचाकर वहां से भाग नकला  और सीधा तुहारे पास पंचा यक म मरने से पहले जी भरकर जी लेना चाहता था और मन ही मन म बत घबराया आ था यक सीसीटवी म मेरी तवीर आ चुक होगी और अगर म कसी भी बस अे या टेशन पर अपने घर जाने के लए जाता  भी  तो  हो सकता था क मेरी खासी या बुखार को चेक कया जाता और मुझे कोरोना से संमत पाये जाने पर फर से मुझे अकेले कमरे म डाल दया जाता ,जो क म बलकुल नह चाहता था”इतना कहने के बाद अजीत ने घड़ी पर नज़र डाली ,सुबह के पांच बजने वाले थे  “अब मुझे जाना होगा ,  सुबह होने वाली है और मुझे खांसी भी आ रही है ….तुम मुझे खासी क दवाई और दे दो ताक म ठक से अपने घर तक पँच जाऊँ”ये कहकर अजीत क खासी और तेज़ हो गई थी और बुखार के कारण उसके माथे से पसीना भी आने लगा था कमली फट नज़र से अजीत को देख रही थी ,उसने कांपते हाथ से खासी क दवा अजीत के हाथ म दे द  अजीत हांफता आ तेज़ी से कमली क खोली के बाहर नकल गया. कमली अंदर साटे म बैठ ई थी और अचानक से कमली का सर भारी होने लगा था.

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