नौकर गणेश ने आ कर ठाकुर सोहन सिंह से घबराते हुए कहा, ‘‘हुजूर, थानेदार साहब आए हैं.’’
‘‘क्या कहा, थानेदार साहब आए हैं…’’ चौंकते हुए सोहन सिंह बोले, ‘‘उन्हें बैठक में बिठा दे. मैं अभी आया.’’
‘‘अच्छा हुजूर,’’ कह कर गणेश चला गया.
ठाकुर सोहन सिंह सोचते रह गए कि थानेदार राम सिंह आज उन की हवेली में क्यों आए हैं?
इस क्यों का जवाब उन के पास नहीं था, मगर थानेदार साहब का हवेली में आना कई बुरी शंकाओं को जन्म दे गया.
जब राम सिंह इस थाने के थानेदार बन कर आए थे, तब ठाकुर सोहन सिंह बड़े खुश हुए थे कि नया थानेदार किसी ठाकुर घराने का ही है और ठाकुर होने के नाते वे उन से हर तरह का फायदा उठाते रहेंगे. जैसा कि वे अब तक हर थानेदार से उठाते रहे हैं.
जिस दिन राम सिंह ने इस थाने का काम संभाला, उसी दिन ठाकुर सोहन सिंह अपने आदमियों के साथ उन का स्वागत करने थाने में पहुंच गए थे.
वहां जा कर उन्होंने कहा था, ‘हुजूर, इस थाने में आप का स्वागत है. मैं इस गांव का ठाकुर सोहन सिंह हूं.’
‘हां, मुझे मालूम है,’ थानेदार राम सिंह ने बेरुखी से जवाब दिया था.
‘हुजूर, इस गांव में आप किसी तरह की तकलीफ मत उठाना,’ ठाकुर सोहन सिंह उन के रूखेपन की परवाह न करते हुए बोले थे.
‘तकलीफ किस चिडि़या का नाम है? हम पुलिस वालों के शब्दकोश में यह नाम नहीं होता है,’ थानेदार राम सिंह के लहजे में वही अकड़ थी. वे बोले, ‘कहिए, किसलिए आए हैं आप लोग?’
नया थानेदार इस तरह की बेरुखी से सवाल पूछेगा, इस की सोहन सिंह को जरा भी उम्मीद न थी, इसलिए वे शालीनता से बोले थे, ‘बस, आप के दर्शन करने आए हैं हुजूर. आप से भेंटमुलाकात हो जाए और फिर आप का भी काम चलता रहे, साथ में हमारा भी.’
‘कहने का मतलब क्या है आप का?’ थानेदार राम सिंह गुस्से से उबल पड़े.
‘मतलब यह है हुजूर कि हम तो आप से दोस्ती बढ़ाने आए हैं. दोस्ती का रंग खूब निखरे, इस के लिए यह छोटा सा तोहफा लाए हैं,’ एक आदमी से सूटकेस ले कर थानेदार को देते हुए वे बोले, ‘लीजिए हुजूर, हमारी तरफ से तोहफा.’
‘क्या है इस में?’ थानेदार राम सिंह ने पूछा.
‘कहा न, उपहार…’ होंठों पर दिखावटी हंसी बिखेरते हुए ठाकुर सोहन सिंह ने कहा.
‘देखिए ठाकुर साहब, गांव का आदमी होने के नाते मैं आप की इज्जत करता हूं…’ थानेदार राम सिंह जरा नरम पड़ते हुए बोले, ‘आप घूस दे कर मुझे खरीदने की कोशिश मत कीजिए. चुपचाप यह सूटकेस उठाइए और बाहर चले जाइए.’
उस दिन थानेदार की ऐसी धमकी सुन कर ठाकुर सोहन सिंह का खून अंदर ही अंदर खौल उठा था, मगर वे बोले कुछ नहीं थे.
इस थाने में अभी तक जितने भी थानेदार आए थे, उन सब को ठाकुर सोहन सिंह ने खरीद लिया था. फिर पूरे गांव में उन का दबदबा था. मगर उस दिन वे चुपचाप सूटकेस उठा कर चलते बने थे. उस दिन वे इस थानेदार को खरीद नहीं सके थे, इसी का उन्हें मलाल हो रहा था.
थोड़े दिनों में ही थानेदार राम सिंह की ईमानदारी की छाप थाने में फैल चुकी थी.
गांव का ठाकुर होने के चलते सोहन सिंह का पूरे गांव में दबदबा था. लोगों से जमीनें हड़पना उन का धंधा था. कहने को आजकल सरकार ने राजेरजवाड़े सब छीन लिए हैं, मगर ठाकुर सोहन सिंह का अब भी उस इलाके में दबदबा था.
गरीब गांव वालों को ठाकुर सोहन सिंह कर्ज देते थे. कर्ज न चुकाने पर वे उन की जमीन हड़प लेते थे और फिर उन्हें बंधुआ मजदूर बना लेते थे.
जिस दिन ठाकुर सोहन सिंह को थाने से बाहर किया गया, उस की चर्चा पूरे गांव में फैल गई थी. लिहाजा, लोग अब खुल कर सांस लेने लगे थे.
मगर आज अचानक थानेदार राम सिंह का ठाकुर सोहन सिंह की हवेली में आना कई बुरी शंकाओं को जन्म दे गया, इसलिए झटपट तैयार हो कर बैठक में वे आ कर हाथ जोड़ते हुए बोले, ‘‘पधारिए हुजूर, हमें ही बुला लिया होता. आप ने आने की तकलीफ क्यों की?’’
‘‘ठाकुर साहब, आप के ही गांव के गणपत ने आप के खिलाफ रिपोर्ट लिखाई है,’’ थानेदार राम सिंह बिना किसी भूमिका के बोले.
यह सुन कर ठाकुर सोहन सिंह ने घबराते हुए पूछा, ‘‘मगर रिपोर्ट क्यों लिखाई उस ने?’’
‘‘आप ने उस की जमीन जबरदस्ती हड़प ली है…’’ थानेदार राम सिंह ने बेफिक्र हो कर कहा, ‘‘सुना है, गांव के गरीब किसानों को आप कर्ज देते हैं और बदले में वे अपनी जमीनें गिरवी रखते हैं. आप उन्हें दारू पिला कर कागज पर उन से अंगूठे का निशान लगवा लेते हैं.’’
‘‘नहीं हुजूर, यह झूठ है. उस से तो पूरे होशोहवास में अंगूठे का निशान लगवाया था,’’ ठाकुर सोहन सिंह की बात में गुस्सा था.
‘‘ठाकुर साहब, ठंडे दिमाग से बात कीजिए,’’ थानेदार राम सिंह ने कहा.
‘‘माफ करें थानेदार साहब,’’ नरम पड़ते हुए ठाकुर सोहन सिंह बोले, ‘‘गुस्सैल स्वभाव है न, इसलिए…’’
‘‘अपना स्वभाव बदलिए. लोगों के साथ प्रेम से रहना सीखिए,’’ थानेदार राम सिंह ने कहा.
‘‘देखिए ठाकुर साहब, आप गांव के इज्जतदार आदमी हैं. मैं नहीं चाहता कि गांव का साधारण सा आदमी आप पर कीचड़ उछाले… मेरा इशारा समझ गएन आप?’’
‘‘हां हुजूर, सबकुछ समझ गया…’’ मन में खुश होते हुए ठाकुर सोहन सिंह बोले, ‘‘यह केस रफादफा कर दें, तो मेहरबानी होगी.’’
‘‘मैं ने उस की रिपोर्ट रोजनामचे में नहीं लिखी है, क्योंकि आप की इज्जत का सवाल था,’’ थानेदार राम सिंह ने कहा.
‘‘बहुत अच्छा किया आप ने. आप ने हमारी आपसदारी की लाज रख ली.’’
‘‘पुलिस की नौकरी में आपसदारी नहीं चलती है ठाकुर साहब…’’ सोहन सिंह को नीचा दिखाने के अंदाज में थानेदार राम सिंह ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘मैं आप की मदद करूं और आप मेरी करें, इस बात को समझते हैं न आप?’’
‘‘समझ गया हुजूर, सब समझ गया,’’ फिर सोहन सिंह तिजोरी में से सौसौ की गड्डियां निकाल कर देते हुए बोले, ‘‘लीजिए हुजूर.’’
‘‘समझिए, आप का काम हो गया,’’ गड्डियों को जेब में रखते हुए थानेदार साहब अदा से बोले, ‘‘आप सोच रहे होंगे कि मैं ने यह सब उस दिन क्यों नहीं लिया?’’
‘‘मैं सब समझ गया हुजूर?’’
‘‘क्या समझ गए?’’
‘‘यही कि आप जनता की नजरों में ईमानदार बने रहना चाहते थे…’’ खुश होते हुए ठाकुर सोहन सिंह बोले, ‘‘मगर हुजूर, आप के काम करने का तरीका अनोखा लगा.’’
‘‘हां ठाकुर साहब, जनता में छवि बनाने के लिए ढोंग का सहारा तो लेना ही पड़ता है…’’ थानेदार राम सिंह बोले, ‘‘फिर आप भी जानते हैं, आजकल थानों की बोली लगती है. मैं इस थाने की बोली 6 लाख रुपए की लगा कर आया हूं. लिहाजा, अब मुझे 6 लाख रुपए का इंतजाम करना पड़ेगा. इसलिए तस्कर, चोर और बदमाशों से रिश्ते रखने पड़ेंगे.’’
‘‘वाह हुजूर, वाह. तब तो आप भी हमारी ही बिरादरी के हैं.’’
‘‘हां ठाकुर साहब, हमारी बिरादरी एक है. अब चलने की इजाजत दें,’’ कह कर थानेदार साहब चले गए.
थानेदार के जाते ही ठाकुर सोहन सिंह खुशी से झूम उठे और अपने नौकर गणेश से बोले, ‘‘अरे, ओ गणेश…’’
‘‘हां हुजूर, कहिए…’’ पास आ कर गणेश बोला.
‘‘थानेदार क्या कह गया, सुना कुछ तू ने?’’
‘‘क्या कह गया हुजूर?’’
‘‘अरे, वह भी इस थाने की बोली लगा कर आया है. अब उस से घबराने की कोई जरूरत नहीं…’’ खुशी से ठाकुर सोहन सिंह बोले, ‘‘ईमानदार के वेश में वह भी बेईमान निकला,’’ इतना कह कर वे अलमारी में से शराब की बोतल निकालने लगे.