लेखक- सुरेश सौरभ

होली में मुझे ससुराल जाना था, इसलिए पत्नी का सख्त आदेश था कि अपनी डेंटिंग-पेंटिंग करा डालूं. लिहाजा होली के एक रोज पहले, उनके हुक्म की तामील करते हुए मैं अपने मोहल्ले की एक नाई की दुकान पर अपनी हजामत कराने के लिए जा पहुंचा. वहां पहले से बैठे अपने मोहल्ले के ग्राहकों की भीड़ से मुझे यह अहसास हुआ कि मेरा सिर नाई के हाथों में बहुत देर से पहुंचेगा.

वहां की भीड़ से मुझे यह भी लग रहा था कि मेरे जैसे ही कई पति अपनी पत्नियों के आदेश का पालन करने के लिए बेहद लाचारी में बैठे हैं और बेचारगी से नाई को बड़ी हसरत से देखते हुए अपने नंबर के आने का इंतजार कर रहें हैं. टाइम काटने की गरज से मैंने वहां आड़ा-तिरछा मुंह बिसूरता पड़ा अखबार का एक पन्ना उठा लिया. तभी कोरोना  पर एक महाज्ञानी ने बात खोद दी-अगर कोरोना से बचना है, तो हल्दी वाला शाम को एक गिलास दूध पीना चाहिए. दूसरे ने ताल ठोंक कर कहा-यहां इतनी जलवायु गरम है कि कोरोना तो क्या उसके बाप का भी कोई असर न होगा.

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नाई के चेहरे की चमक बढ़ रही थी वह यह सोच कर खुश था, चलो मेरे ग्राहक कोरोना की बहस में उलझ कर बैठे रहेंगे, ऊबेंगे नहीं, कहीं जायेंगे नहीं. इसलिए उसने भी एक मुक्तक उछाल कर कहा-ये बात मैंने भी कहीं से सुनी है कि खूब हल्दी खाने वालों के ऊपर कोरोना का असर बिलकुल नहीं होता है. भैया मेरे ऊपर तो कोरोना का बिलकुल असर नहीं होगा. मेरी तो घरवाली सब्जी-दाल में खूब रेलम-पेलम हल्दी मिर्च झोंकती है. भैया हम लोग तो पीने-खाने वाले आदमी हैं. हमें खूब तीखा खाने में मजा भी आता है.' मेरे सामने ,एक महोदय अखबार का एक पन्ना बांच रहे थे, उसे परे हटा कर अपना सिर खुजाते हुए बोले-साला डेढ़ रुपया वाला फेस मास्क मारकेट में पच्चीस रुपये का.

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