लेखक- नीरज कुमार मिश्रा

देश में लौकडाऊन अब भी जारी था, और  लोगों के अंदर एक क्षोभ  सा भरा हुआ था. यह कहना कठिन था कि ये गुस्सा किसके प्रति था.

उस देश के खिलाफ जहाँ से ये वायरस आया है या सरकार द्वारा अचानक से लॉकडाऊन ठोंक दिए जाने की नीति पर ,पर सच तो ये था कि एक वायरस ने अचानक कहीं से प्रकट होकर उनकी सामान्य तौर से चलती हुई ज़िंदगी में एक उथलपुथल ज़रूर मचा दी थी .

ऐसी ही कुछ उथलपुथल मोबीना की ज़िंदगी में मच गयी थी. सलीम और सलीम  के दो बेटियां थी ,वैसे तो वह प्रकट रूप से कुछ नहीं कहता था पर एक बेटे की चाह तो उसके मन में बनी ही हुई थी.

सलीम की बेगम मोबीना एक सीधी सादी महिला थी जो मोहल्ले में अपने सद्व्यवहार के लिए जानी जाती थी.

मोबीना मोहल्ले में रमिया चाची को देखने गयी थी क्योंकि जीने पर से फिसलने से उनके घुटनो में थोड़ी चोट आ गयी थी और फिलहाल वो बिस्तर पर ही थी.

रमिया चाची के सिरहाने बैठी मोबीना पंखा झल रही थी कि तभी उसे पता चला कि रमिया चाची का लड़का जो  दुबई में काम करता है ,वो वापिस आ गया है .

उसे ये जानकर अच्छा भी लगा कि चलो अब कोई तो रमिया चाची को सहारा देने वाला आ गया है.

मोबीना ने भी सुना है कि कोई कीड़ा वाली बीमारी, मने जिसे वायरस वाली बीमारी कहते हैं वो फैल रही है और लोगों की जान ही ले लेती है वो बीमारी ,और इसीलिये देश की सरकार ने सबसे दूर दूर बैठने को कहा है .

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