दूर दूर तक जहां तक नजर जा सकती थी, पहाड़ों पर बर्फ की सफेद चादर बिछी हुई थी. प्रेमी जोड़ों के लिए यह एक शानदार जगह हो सकती थी, पर सरहद पर इन पहाड़ियों की शांति के पीछे जानलेवा अशांति छिपी हुई थी. पिछले कई महीनों से कोई भी दिन ऐसा नहीं बीता था, जब तोपों के धमाकों और गोलियों की तड़तड़ाहट ने यहां की शांति भंग न की हो.
‘‘साहबजी, आप कौफी पीजिए. ठंड दूर हो जाएगी,’’ हवलदार बलवंत सिंह ने गरम कौफी का बड़ा सा मग मेजर जतिन खन्ना की ओर बढ़ाते हुए कहा.
‘‘ओए बलवंत, लड़ तो हम दिनरात रहे हैं, मगर क्यों यह तो शायद ऊपर वाला ही जाने. अब तू कहता है, तो ठंड से भी लड़ लेते हैं,’’ मेजर जतिन खन्ना ने हंसते हुए मग थाम लिया.
कौफी का एक लंबा घूंट भरते हुए वे बोले, ‘‘वाह, मजा आ गया. अगर ऐसी कौफी हर घंटे मिल जाया करे, तो वक्त बिताना मुश्किल न होगा.’’
‘‘साहबजी, आप की मुश्किल तो हल हो जाएगी, लेकिन मेरी मुश्किल कब हल होगी ’’ बलवंत सिंह ने भी कौफी का लंबा घूंट भरते हुए कहा.
‘‘कैसी मुश्किल ’’ मेजर जतिन खन्ना ने चौंकते हुए पूछा.
‘‘साहबजी, अगले हफ्ते मेरी बीवी का आपरेशन है. मेरी छुट्टियों का क्या हुआ ’’ बलवंत सिंह ने पूछा.
‘‘सरहद पर इतना तनाव चल रहा है. हम लोगों के कंधों पर बहुत बड़ी जिम्मेदारी है. ऐसे में छुट्टी मिलना थोड़ा मुश्किल है, पर मैं कोशिश कर रहा हूं,’’ मेजर जतिन खन्ना ने समझाया.
‘‘लेकिन सर, क्या देशभक्ति का सारा ठेका हम फौजियों ने ही ले रखा है ’’ कहते हुए बलवंत सिंह ने मेजर जतिन खन्ना के चेहरे की ओर देखा.
‘‘क्या मतलब… ’’ मेजर जतिन खन्ना ने पूछा.
‘‘यहां जान हथेली पर ले कर डटे रहें हम, वहां देश में हमारी कोई कद्र नहीं. सालभर गांव न जाओ, तो दबंग फसल काट ले जाते हैं. रिश्तेदार जमीन हथिया लेते हैं. ट्रेन में टीटी भी पैसे लिए बिना हमें सीट नहीं देता. पुलिस वाले भी मौका पड़ने पर फौजियों से वसूली करने से नहीं चूकते,’’ बलवंत सिंह के सीने का दर्द बाहर उभर आया.
‘‘सारे जुल्म सह कर भी हम देश पर अपनी जान न्योछावर करने के लिए तैयार हैं, मगर कम से कम हमें इनसान तो समझा जाए.
‘‘घर में कोई त्योहार हो, तो छुट्टी नहीं मिलेगी. कोई रिश्तेदार मरने वाला हो, तो छुट्टी नहीं मिलेगी. जमीनजायदाद का मुकदमा हो, तो छुट्टी नहीं मिलेगी. अब बीवी का आपरेशन है, तो भी छुट्टी नहीं मिलेगी. लानत है ऐसी नौकरी
पर, जहां कोई इज्जत न हो.’’
‘‘ओए बलवंत, आज क्या हो गया है तुझे कैसी बहकीबहकी बातें कर रहा है अरे, हम फौजियों की पूरी देश इज्जत करता है. हमें सिरआंखों पर बिठाया जाता है,’’ मेजर जतिन खन्ना ने आगे बढ़ कर बलवंत सिंह के कंधे पर हाथ रखा.
‘‘हां, इज्जत मिलती है, लेकिन मर जाने के बाद. हमें सिरआंखों पर बिठाया जाता है, मगर शहीद हो जाने के बाद. जिंदा रहते हमें बस और ट्रेन में जगह नहीं मिलेगी, हमारे बच्चे एकएक पैसे को तरसेंगे, मगर मरते ही हमारी लाश को हवाईजहाज पर लाद कर ले जाया जाएगा. परिवार के दुख को लाखों रुपए की सौगात से खरीद लिया जाएगा. जिस के घर में कभी कोई झांकने भी न आया हो, उसे सलामी देने हुक्मरानों की लाइन लग जाएगी.
‘‘हमारी जिंदगी से तो हमारी मौत लाख गुना अच्छी है. जी करता है कि उसे आज ही गले लगा लूं, कम से कम परिवार वालों को तो सुख मिल सकेगा,’’ कहते हुए बलवंत सिंह का चेहरा तमतमा उठा.
‘‘ओए बलवंत…’’
‘‘ओए मेजर…’’ इतना कह कर बलवंत सिंह चीते की फुरती से मेजर जतिन खन्ना के ऊपर झपट पड़ा और उन्हें दबोचे हुए चट्टान के नीचे आ गिरा. इस से पहले कि वे कुछ समझ पाते, बलवंत सिंह के कंधे पर टंगी स्टेनगन आग उगलने लगी.
गोलियों की ‘तड़…तड़…तड़…’ की आवाज के साथ तेज चीखें गूंजीं और चंद पलों बाद सबकुछ शांत हो गया.
‘‘ओए बलवंत मेरे यार, तू ठीक तो है न ’’ मेजर जतिन खन्ना ने अपने को संभालते हुए पूछा.
‘‘हां, साहबजी, मैं बिलकुल ठीक हूं,’’ बलवंत सिंह हलका सा हंसा, फिर बोला, ‘‘मगर, ये पाकिस्तानी कभी ठीक नहीं होंगे. इन की समझ में क्यों नहीं आता कि जब तक एक भी हिंदुस्तानी फौजी जिंदा है, तब तक वे हमारी चौकी को हाथ भी नहीं लगा सकते,’’ इतना कह कर बलवंत सिंह ने चट्टान के पीछे से झांका. थोड़ी दूरी पर ही 3 पाकिस्तानी सैनिकों की लाशें पड़ी थीं. छिपतेछिपाते वे कब यहां आ गए थे, पता ही नहीं चला था. उन में से एक ने अपनी एके 47 से मेजर जतिन खन्ना के सीने को निशाना लगाया ही था कि उस पर बलवंत सिंह की नजर पड़ गई और वह बिजली की रफ्तार से मेजर साहब को ले कर जमीन पर आ गिरा.
‘‘बलवंत, तेरी बांह से खून बह रहा है,’’ गोलियों की आवाज सुन कर खंदक से निकल आए फौजी निहाल सिंह ने कहा. उस के पीछेपीछे उस चौकी की सिक्योरिटी के लिए तैनात कई और जवान दौडे़ चले आए थे.
‘‘कुछ नहीं, मामूली सी खरोंच है. पाकिस्तानियों की गोली जरा सा छूते हुए निकल गई थी,’’ कह कर बलवंत सिंह मुसकराया.
‘‘बलवंत, तू ने मेरी खातिर अपनी जान दांव पर लगा दी. बता, तू ने ऐसा क्यों किया ’’ कह कर मेजर जतिन खन्ना ने आगे बढ़ कर बलवंत सिंह को अपनी बांहों में भर लिया.
‘‘क्योंकि देशभक्ति का ठेका हम फौजियों ने ले रखा है,’’ कह कर बलवंत सिंह फिर मुसकराया.
‘‘तू कैसा इनसान है. अभी तो तू सौ बुराइयां गिना रहा था और अब देशभक्ति का राग अलाप रहा है,’’ मेजर जतिन खन्ना ने दर्दभरी आवाज में कहा.
‘‘साहबजी, हम फौजी हैं. लड़ना हमारा काम है. हम लड़ेंगे. अपने ऊपर होने वाले जुल्म के खिलाफ लड़ेंगे, मगर जब देश की बात आएगी, तो सबकुछ भूल कर देश के लिए लड़तेलड़ते जान न्योछावर कर देंगे. कुरबानी देने का पहला हक हमारा है. उसे हम से कोई नहीं छीन सकता,’’ कहतेकहते बलवंत सिंह तड़प कर जोर से उछला.
उस के बाद एक तेज धमाका हुआ और फिर सबकुछ शांत हो गया.
बलवंत सिंह की जब आंखें खुलीं, तो वह अस्पताल में था. मेजर जतिन खन्ना उस के सामने ही थे.
‘‘सरजी, मैं यहां कैसे आ गया ’’ बलवंत सिंह के होंठ हिले.
‘‘अपने ठेके के चलते…’’ मेजर जतिन खन्ना ने आगे बढ़ कर बलवंत सिंह के सिर पर हाथ फेरा, फिर बोले, ‘‘तू ने कमाल कर दिया. दुश्मन के
3 सैनिक एक तरफ से आए थे, जिन्हें तू ने मार गिराया था. बाकी के सैनिक दूसरी तरफ से आए थे. उन्होंने हमारे ऊपर हथगोला फेंका था, जिसे तू ने उछल कर हवा में ही थाम कर उन की ओर वापस उछाल दिया था. वे सारे के सारे मारे गए और हमारी चौकी बिना किसी नुकसान के बच गई.’’
‘‘तेरे जैसे बहादुरों पर देश को नाज है,’’ मेजर जतिन खन्ना ने बलवंत सिंह का कंधा थपथपाया, फिर बोले, ‘‘तू भी बिलकुल ठीक है. डाक्टर बता रहे थे कि मामूली जख्म है. एकदो दिन में यहां से छुट्टी मिल जाएगी.
‘‘छुट्टी…’’ बलवंत सिंह के होंठ धीरे से हिले.
‘‘हां, वह भी मंजूर हो गई है. यहां से तू सीधे घर जा सकता है,’’ मेजर जतिन खन्ना ने बताया, फिर चौंकते हुए बोले, ‘‘एक बात बताना तो मैं भूल ही गया था.’’
‘‘क्या… ’’ बलवंत सिंह ने पूछा.
‘‘तुझे हैलीकौफ्टर से यहां तक लाया गया था.’’
‘‘पर अब हवाईजहाज से घर नहीं भेजेंगे ’’ कह कर बलवंत सिंह मुसकराया.
‘‘कभी नहीं…’’ मेजर जतिन खन्ना भी मुसकराए, फिर बोले, ‘‘ब्रिगेडियर साहब ने सरकार से तुझे इनाम देने की सिफारिश की है.’’
‘‘साहबजी, एक बात बोलूं ’’
‘‘बोलो…’’
‘‘इनाम दिलवाइए या न दिलवाइए, मगर सरकार से इतनी सिफारिश जरूर करा दीजिए कि हम फौजियों की जमीनजायदाद के मुकदमों का फैसला करने के लिए अलग से अदालतें बना दी जाएं, जहां फटाफट इंसाफ हो, वरना हजारों किलोमीटर दूर से हम पैरवी नहीं कर पाते.
‘‘सरहद पर हम भले ही न हारें, मगर अपनों से लड़ाई में जरूर हार जाते हैं,’’ बलवंत सिंह ने उम्मीद भरी आवाज में कहा.
मेजर जतिन खन्ना की निगाहें कहीं आसमान में खो गईं. बलवंत सिंह ने जोकुछ भी कहा था, वह सच था, मगर जो वह कह रहा है, क्या वह कभी मुमकिन हो सकेगा.