इस देश की पुलिस पूरी तरह से कोरोना से लड़ने को तैयार है जैसे वह हर आपदा में तैयार रहती है. हर आपदा में पुलिस का पहला काम होता है कि निहत्थे, बेगुनाहों, बेचारों और गरीबों को कैसे मारापीटा जाए. चाहे नोटबंदी हो, चाहे जीएसटी हो, चाहे नागरिक कानून हों, हमारी पुलिस ने हमेशा सरकार का पूरा साथ दे कर बेगुनाह गरीबों पर जीभर के डंडे बरसाए हैं. किसान आंदोलन में भी लोगों ने देखा और उस से पहले लौकडाउन के समय सैकड़ों मील पैदल चल रहे गरीब मजदूरों की पिटाई भी देखी.
किसी भी बात पर पुलिस सरकार की हठधर्मी के लिए उस के साथ खड़ी होती है और जरूरत से ज्यादा बल दिखाने का कोई मौका नहीं छोड़ती. पश्चिम बंगाल, बिहार, असम, तमिलनाडु में केंद्र के साथ पार्टियों की पुलिस 5 नहीं 50,000 से 5 लाख तक लोगों के गृह मंत्री या प्रधानमंत्री की चुनावी भीड़ को कोरोना के खिलाफ नहीं मान रही थी पर अब जब चुनाव खत्म हो गए हैं, हर चौथे दिन एकदो घटनाएं सामने आ ही जाती हैं, जिन में लौकडाउन को लागू कराने के लिए धड़ाधड़ डंडे बरसाए जा रहे थे.
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भारत की जनता अमेरिकी जनता की तरह नहीं जो पुलिस से 2-2 हाथ भी कर सकती है. यह तो वैसे ही डरीसहमी रहती है. बस भीड़ हो तो थोड़ी हिम्मत रहती है पर इस पर जो बेरहमी बरती जाती है वह अमेरिका के जार्ज फ्लायड की हत्या की याद दिलाती है. फर्क इतना है कि अमेरिका में दोषी पुलिसमैन को लंबी जेल की सजा दी गई. यहां 5-7 दिन लाइनहाजिर कर इज्जत से बुला लिया जाएगा.
अदालत में तो मामला चलाना ही बेकार है क्योंकि पुलिस वालों के अत्याचार, डंडों, मामलों में फंसा देने की धमकियों से गवाह आगे आते ही नहीं. कोविड की तैयारी भी यहां पुलिस कर रही है, अस्पताल, डाक्टर, लैब या दवा कंपनियां नहीं. सरकार को मालूम है कि पुलिस हर मौके का पूरा नाजायज फायदा उठाएगी. कोविड के लिए लौकडाउन में जो लोग सड़क पर चल रहे हैं या दुकान चला रहे हैं वे अपने लिए खुद जोखिम ले रहे हैं. वे नियम तोड़ रहे हैं पर दूसरों से ज्यादा नुकसान उन्हीं को है. सिर्फ इसलिए उन पर डंडे बरसाना कि आदेश को तोड़ा जा रहा है बेरहमी है. यह सिनेमाघर के आगे टिकट के लिए लगी लंबी लाइन पर आंसू गैस छोड़ने की तरह है क्योंकि इस से किसी और को नुकसान नहीं हो रहा है.
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पुलिस असल में मौका ढूंढ़ती है कि अपनी ताकत आम जनता को दिखा सके ताकि हर समय दहशत का माहौल बना रहे. यहां आमतौर पर शिकायत करने वालों को भी शक की निगाह से देखा जाता है. सिर्फ खेलेखाए लोग ही पुलिस की मिलीभगत से शिकायतें करने की हिम्मत करते हैं. गरीब आदमी तो दूसरों की मार भी खा लेता है पुलिस की भी. उम्मीद थी कि कोरोना में लोग बाहर न निकलें, इसे समझाने के लिए सत्ता में बैठी पार्टियों के पेशेवर ग्राहक आगे आएंगे. लेकिन उन्हें तो वोट चाहिए, मंदिर चाहिए, सत्ता चाहिए, ठेके चाहिए. जनता की जान बचानी है तो डंडाधारी पुलिस ही है उन के पास. बस, यही इस देश की हालत है.