जहरीली कच्ची शराब का कहर

पूरा उत्तर भारत प्रदूषण के अटैक से बेहाल है. दमघोंटू धुआं दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों के इनसानी फेफड़ों को कमजोर कर रहा है. दिल्ली के डाक्टरों का कहना है कि जिस लैवल पर इस समय प्रदूषण है, उस में अगर कोई सांस लेता है तो वह 30 सिगरेट जितना धुआं बिना सिगरेट पिए ले रहा है.

इतने बुरे हालात के बावजूद बहुत से लोग सोशल मीडिया पर चुटकी लेना नहीं भूलते. किसी ने मैसेज डाल दिया कि अब अगर चखना और शराब का भी इंतजाम हो जाए तो मजा आ जाए. सिगरेट के मजे मुफ्त में मिल रहे हैं, तो शराब की डिमांड करने में क्या हर्ज है?

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पर शराब की यह डिमांड कइयों पर भारी पड़ जाती है. इतनी ज्यादा कि वे फिर कभी ऐसी डिमांड नहीं कर पाते हैं. हरियाणा में पानीपत का ही किस्सा ले लो. वहां के सनौली इलाके के एक गांव धनसौली में कथित तौर पर जहरीली शराब पीने से एक बुजुर्ग समेत 4 लोगों की मौत हो गई. वे सभी लोग तामशाबाद की एक औरत से 80 से 100 रुपए की देशी शराब खरीद कर लाए थे.

इसी तरह हरियाणा के ही बल्लभगढ़ इलाके के छायंसा गांव में चरण सिंह की भी जहरीली शराब पीने से मौत हो गई, जबकि उस के साथी जसवीर की हालत गंभीर थी.

आरोप है कि चरण सिंह ने जिस संजीव से शराब खरीदी थी, वह गैरकानूनी शराब बेचने का धंधा करता है. यह भी सुनने में आया है कि कोरोना काल में इस इलाके के यमुना नदी किनारे बसे गांवों में कच्ची शराब बेचने का धंधा जोरों पर है.

इसी साल अप्रैल महीने में पुलिस ने एक मुखबिर की सूचना पर छायंसा गांव के रहने वाले देवन उर्फ देवेंद्र को उस के घर के सामने से गिरफ्तार किया था. वह घर के बाहर ही कच्ची शराब से भरी थैलियां बेच रहा था. उस के कब्जे से कच्ची शराब से भरी 12 थैलियां बरामद की गई थीं.

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इतना ही नहीं, जब हरियाणा के सारे नेता बरोदा उपचुनाव में अपनी ताकत झोंक रहे थे तब उन्हीं दिनों सोनीपत जिले में कच्ची या जहरीली शराब पीने से कुल 31 लोगों की जान जा चुकी थी. फरीदाबाद में एक आदमी और पानीपत में भी 6 लोगों की माैत हो गई थी.

इस मामले ने इतना तूल पकड़ा कि हरियाणा में लौकडाउन में शराब घोटाले और जहरीली शराब पीने से तथाकथित 40 लोगों की हुई मौत के मुद्दे पर विपक्ष ने सरकार को घेरा और कहा कि प्रदेश में शराब माफिया सक्रिय है और इसे सरकारी सरपरस्ती हासिल है, जबकि हरियाणा के गृह मंत्री ने सदन में दावा किया कि जहरीली शराब पीने से 40 लोगों की नहीं, बल्कि 9 लोगों की मौत हुई है.

नेताओं की यह नूराकुश्ती चलती रहेगी और लोग सस्ती के चक्कर में कच्ची और जहरीली शराब गटक कर यों ही अपनी जान देते रहेंगे और अपने परिवार को दुख के पहाड़ के नीचे दबा देंगे.

कच्ची शराब जानलेवा क्यों बन जाती है? दरअसल, माहिर डाक्टरों की मानें तो बीयर और व्हिस्की में इथेनौल होता है, लेकिन देशी और कच्ची शराब में मिथेनौल मिला दिया जाता है. इस की मात्रा कम हो ज्यादा, दोनों ही रूप में यह खतरनाक है. 500 मिलीग्राम से ज्यादा इथेनौल की मात्रा होने पर शराब जानलेवा बन जाती है.

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शराब में आमतौर पर तय मात्रा में इथेनौल का ही इस्तेमाल होता है, लेकिन कच्ची और देशी शराब को  ज्यादा नशे के लिए उस में मिथेनौल मिला दिया जाता है. कई बार अंगूर या संतरा ज्यादा सड़ जाने से भी इथेनौल बढ़ जाता है.

गन्ने की खोई और लकड़ी से मिथेनौल एल्कोहल बनने की संभावनाएं ज्यादा होती है. अगर 80 मिलीग्राम मिथेनौल एल्कोहल शरीर के अंदर चला जाए तो शराब जानलेवा होती है. यह कैमिकल सीधा नर्वस सिस्टम पर अटैक करता है और पीने वाले की मौत हो जाती है.

बहुत सी जगह कच्ची शराब को बनाने के लिए औक्सीटोसिन, नौसादर और यूरिया का इस्तेमाल किया जाता है. जहरीली शराब मिथाइल अल्कोहल कहलाती है. कोई भी अल्कोहल शरीर के अंदर जाने पर लिवर के जरीए एल्डिहाइड में बदल जाती है, लेकिन मिथाइल अल्कोहल फौर्मेल्डाइड नामक के जहर में बदल जाता है. यह जहर सब से पहले आंखों पर असर डालता है. इस के बाद लिवर को प्रभावित करता है. अगर शराब में मिथाइल की मात्रा ज्यादा है तो लिवर काम करना बंद कर देता है और पीने वाले की मौत हो जाती है.

जब लोगों को पता होता है कि कच्ची शराब उन के लिए जानलेवा होती है तो वे क्यों पीते हैं? इस की एक ही वजह है शराब पीने के लत होना. लोग लाख कहें के वे अपना तनाव दूर करने या खुशियों का मजा लेने के लिए शराब पीते हैं, लेकिन सच तो यह है वे इस के आदी हो चुके होते हैं.

पहले वे, ज्यादातर गरीब लोग, कानूनी तौर पर बिकने वाली शराब पीते हैं, फिर जब लती हो जाते हैं तो जो शराब मिल जाए, उसी से काम चलाते हैं. अपराधी किस्म के लोग उन की इस लत का फायदा उठाते हुए और ज्यादा मुनाफे के चक्कर में गैरकानूनी तौर पर बनाई गई कच्ची शराब उन्हें परोस देते हैं, जो उन्हें मौत के मुंह तक ले जाती है.

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समाजसेवी और रोहतक कोर्ट में वकील नीरज वशिष्ठ का कहना है, “यह खेल सिर्फ कच्ची शराब का नहीं है, बल्कि नकली शराब का भी है. बहुत से शराब ठेकेदार ज्यादा मुनाफा कमाने के चक्कर में कैप्सूल मिला कर नकली शराब बना देते हैं. यह और भी ज्यादा खतरनाक है.

“सब से पहले सरकार को शराब की बिक्री बंद करनी चाहिए, क्योंकि शराब तो होती ही है जानलेवा, चाहे जहरीली हो या नकली आया फिर कोई और.

“आज कम उम्र के बच्चों से ले कर बुजुर्गों तक को शराब ने बरबाद किया है. जब देश का भविष्य ही नशेड़ी होगा तो हम सोच सकते हैं कि आने वाला समय कैसा होगा. किसी भी देश की तरक्की में नौजवानों का बहुत अहम रोल होता है, पर यहां तो सरकार ही अपने भविष्य से खिलवाड़ कर रही है.

“एक तरफ सरकार कहती है कि शराब बुरी चीज है, दूसरी तरफ इस बुरी चीज को बेचने के लिए हर गलीमहल्ले में दुकान खोल रही है.”

यह देशभर का हाल है. लौकडाउन में जब शराब की दुकानें खुली थीं, तब ठेकों के बाहर लगी शराबियों की लाइनों पर बहुत मीम बनाए गए थे, लोगों ने खूब मखौल उड़ाया था, पर जरा उन परिवारों से पूछो, जिन के घर का कोई शराब के चलते इस दुनिया से ही रुखसत हो चुका है. याद रखिए, शराब जानलेवा है और रहेगी, जिस ने इस सामाजिक बुराई से पीछा छुड़ा लिया, वह बच गया.

हरियाणा में खोखले महिला सुरक्षा के दावे

सोमवार, 26 अक्तूबर को राजधानी नई दिल्ली से सटे राज्य हरियाणा के बल्लभगढ़ (फरीदाबाद) इलाके से एक दिल दहला देने वाली हत्या की वारदात सामने आई है. अग्रवाल कालेज से बीकौम फाइनल ईयर की 21 साल की छात्रा निकिता तोमर को 2 नौजवानों तौसीफ और रेहान ने दिनदहाड़े पिस्तौल से शूट कर के जान से मार डाला.

यह कालेज बल्लभगढ़ के नाहर सिंह मैट्रो स्टेशन से महज एक किलोमीटर की दूरी पर है. यह वारदात तब हुई जब निकिता अपना बीकौम फाइनल ईयर का एग्जाम दे कर घर लौट रही थी. आरोपियों ने उसे कालेज के बाहर ही घेर लिया. कुछ देर चली जोरजबरदस्ती और किडनैप करने की नाकाम कोशिश के बाद आरोपी ने देशी तमंचे से 2 फुट की दूरी से निकिता के माथे पर गोली मार दी.

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गोली लगने के तुरंत बाद घायल निकिता को बल्लभगढ़ के ‘मानवता अस्पताल’ में ले जाया गया जहां डाक्टरों ने उसे मरा हुआ बता दिया.

इस घटना के बाद सिर्फ बल्लभगढ़ में ही नहीं, बल्कि पूरे राज्य में सन्नाटा पसर चुका है और यह मामला एक बार फिर पूरे देश में लचर होती महिला सिक्योरिटी पर सवालिया निशान लगा गया है.

आरोपी और पीड़िता की जानपहचान

हत्या का मुख्य आरोपी तौसीफ खानपुर इलाके से संबंध रखता है. यह इलाका मेवात जिले की नूह तहसील में पड़ता है. मेवात जिला भारत के कुल 739 जिलों में से सब से ज्यादा पिछड़े जिलों में आता है. यहां की बहुसंख्यक आबादी अल्संख्यक समुदाय से है व यहां के वर्तमान विधायक आफताब अहमद हैं जो खुद आरोपी के खास रिश्ते में लगते हैं. कहा जाता है कि आरोपी परिवार के लोगों का राजनीतिक और सामाजिक तौर पर खासा दबदबा है. वहीं, इस हत्याकांड में मारी गई निकिता तोमर का घर ‘अपना घर सोसाइटी’ में था. यह सोसाइटी बल्लभगढ़ के सैक्टर 52 के पास सोहना रोड़ बनी है. इस इलाके के भीतर कई निजी अपार्टमैंट्स हैं, जो पूरी तरह से लोगों के रहने के लिए बनाए गए हैं.

इस वारदात के सामने आने के बाद कुछ लोगों से बात कर के पता चला कि आरोपी और पीड़िता एकदूसरे को पहले से जानते थे. दोनों ने एक ही स्कूल में पढ़ाई की थी. तौसीफ स्कूल समय से ही कथिततौर पर पीड़िता को परेशान करता रहा था. निकिता और आरोपी तौसीफ दोनों की स्कूली पढ़ाई बल्लभगढ़ में सोहना रोड पर बने एक प्राइवेट ‘रावल स्कूल’ से हुई थी. स्कूल के समय में साल 2018 में एक दफा तौसीफ पर निकिता के अपहरण और परेशान करने का मामला भी दर्ज हुआ था, जिसे बाद में दोनों पक्षों की आपसी रजामंदी के बाद मामला पंचायत में ही निबटा दिया गया. हालांकि इस मामले को ले कर पीड़ित पक्ष का कहना है कि उस दौरान आरोपी के राजनीतिक रसूख और इलाकाई दबदबे के दबाव में उन्हें यह फैसला लेना पड़ा.

गिरफ्त में आरोपी

यह पूरी वारदात सीसीटीवी में कैद हुई है, जो काफी तेजी से वायरल भी हो रही है. वीडियो के बाहर आने के बाद स्थानीय जनाक्रोश भड़कता दिखाई दे रहा है. इसी का नतीजा यह रहा कि मंगलवार, 27 अक्तूबर को पीड़ित परिजन और स्थानीय लोगों ने सैकड़ों की तादाद में जमा हो कर मथुरा नैशनल हाईवे पर फ्लाईओवर के नजदीक चक्का जाम किया. उसी दिन देर शाम अधिकारियों द्वारा मिले आश्वासन के बाद ही लोग वहां से हटे और हाईवे का रास्ता खोला गया. निकिता के पार्थिव शरीर का देर शाम बल्लभगढ़ के सैक्टर 55 के श्मशान घाट पर किया गया.

वारदात के बाद ही उसी दिन देर रात तक पुलिस द्वारा मुख्य आरोपी 21 साला तौसीफ को गिरफ्तार कर लिया गया था. उस के सहयोगी आरोपी रेहान को 24 घंटों के भीतर गिरफ्तार किया गया. इन हुई गिरफ्तारियों को पुलिस और राज्य सरकार अपनी मुस्तैदी से जोड़ कर बता रही हैं.

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पुलिस द्वारा बताई जानकारी के मुताबिक आरोपी तौसीफ गुरुग्राम के सोहना रोड का रहने वाला है, जबकि रेहान हरियाणा के नूह जिले का रहने वाला है. गिरफ्तारी के बाद तौसीफ ने अपना जुर्म कुबूल कर लिया है, जिस के बाद आगे की जांच जारी रखी गई है. हालांकि राज्य सरकार द्वारा यह मामला एसआईटी को सौंपा जा चुका है और इस मामले को फास्ट ट्रैक कोर्ट में भी भेजा जा चुका है, जिस के चलते दोनों आरोपियों को फिलहाल हाईकोर्ट ने 2 दिन की पुलिस रिमांड पर रखने को कहा है.

इलाके में दहशत व गुस्सा

इस वारदात के बाद से इलाके में दहशत और गुस्से दोनों तरह का माहौल बना हुआ है. मैट्रो स्टेशन से बाहर निकलते ही लोगों के बीच दबी जबान में इस मामले को ले कर बातें होने लगीं. उसी कालेज से बीएससी सैकंड ईयर की पढ़ाई कर रहे हिमांशु बताते हैं, ‘अग्रवाल कॉलेज की 2 ब्रांच हैं. यह वारदात कालेज के मेन गेट से थोड़ी सी दूरी पर हुई थी. मुझे इस वारदात के बारे में रात को तब पता चला, जब मेरे फोन पर यह वायरल वीडियो आया था. मैं पूरी तरह घबरा गया था, क्योंकि यह मेरे कालेज का मामला था. अब उस एरिया के आसपास जाने में अजीब सी कसमसाहट होने लगी है. मेरे मातापिता को जब इस बारे में पता चला तो वे भी घबरा गए. दिनदहाड़े इस तरह की वारदात होना किसी भी छात्र के लिए डरने वाली बात है.’

हिमांशु के साथ आई उन की दोस्त अनु (बदला नाम) का कहना है, ‘इस तरह की वारदात अगर घटेगी तो कोई लड़की कैसे पढ़ पाएगी. वैसे ही लड़कियां बहुत कम बाहर निकल कर पढ़ाई या काम कर पाती हैं, ऊपर से अगर इस तरह की वारदातें सामने आती हैं तो हम तो उन परिवारों में से हैं जहां मांबाप सीधे पढ़ाई छुड़वा देते हैं.’

जहां एक तरफ इस वारदात से दहशत का माहौल पनपा है, वहीं दूसरी तरफ लोगों में इसे ले कर गुस्सा भी देखने को मिला. काफी तादाद में लोगों ने बल्लभगढ़ नैशनल हाईवे को पूरे दिन जाम कर के रखा था. कांग्रेस व भाजपा के कई स्थानीय नेता इस में शामिल हुए थे. मौजूदा हरियाणा के कैबिनेट मंत्री मूल चंद शर्मा भी थे, पर उन्हें भी नाराज प्रदर्शनकारियों ने वहां से जाने को कह दिया. इन्हीं के बीच पीड़ित परिजन दोषियों को तुरंत फांसी दिए जाने या एनकाउंटर की बात कर रहे थे.

लव जिहाद का आरोप

धरने पर बैठी निकिता की मां से जब पूछा गया कि उन की सरकार से क्या मांग हैं, तो उन का साफ कहना है, ‘जो मेरी बेटी के साथ हुआ है उन का (आरोपियों) भी पुलिस वाले एनकाउंटर करें मेरे सामने. मैं बेटी को अग्नि तब दूंगी जब उस का एनकाउंटर हो जाएगा.’

निकिता के भाई ने कहा, ‘2018 में पहले भी आरोपी तौसीफ के खिलाफ हम ने शिकायत दर्ज करवाई थी. उस समय मामला निकिता के अपहरण का था. पुलिस ने उस समय आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया था. लेकिन उस के बाद हमारा (दोनों पक्षों का) बैठ कर पंचायत में समझौता हो गया था. हम ने केस वापस ले लिया था.’

2 अगस्त, 2018 को पीड़ित परिजन (पिता) द्वारा आरोपी के खिलाफ पुलिस में पहले भी शिकायत दर्ज की गई थी, जिस में निकिता को आरोपी द्वारा लगातार परेशान किए जाने और लड़की के लापता होने की बात आई थी. कुछ ही समय में पुलिस ने लड़की को छुड़वा लिया था.

हालांकि अब निकिता की हत्या के बाद पीड़ित परिजन ने आरोपियों पर यह आरोप भी लगाया है कि निकिता की हत्या लव जिहाद और धर्मांतरण को नकारने के चलते की गई है.

निकिता के मामा अदल सिंह ने इस मामले पर हम से बात करते हुए कहा, ‘यह लव जिहाद है. वह लड़की से जबरदस्ती शादी कर रहा था, तो क्या इस का मतलब है, बताइए आप? इन का (मुसलिमों) यह है कि हिंदुओं की लड़की को खत्म करो, हिंदुओं की लड़कियों को भगाओ, फिर बाहर विदेशों में बेच देते हैं.’

जारी राजनीतिक उठापटक

मामले के चर्चा में आने के बाद दक्षिणपंथी संगठन इस मामले पर सक्रिय हो गए हैं. इसे ले कर वहां शामिल धार्मिक संगठन, देव सेना, के कथित राष्ट्रीय अध्यक्ष बृजभूषण सैनी, जिन के कंधे पर सवा फुट की कृपाण टंगी थी, का कहना है, “यह कोई पहला मामला नहीं है इस देश में, बल्कि हर राज्य और है जिले में हिंदुओं को टारगेट किया जा रहा है. बेटी हिंदुओं की अपहरण करने वाले, लव जिहाद करने वाले सारे जिहादी हैं. पूरे देश में साजिश के तहत इन की लौबी काम कर रही है, जिस में हिंदुओं को अपहरण कर के ले जाने की कोशिश थी मेवात में’

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‘सरकार चाहे भाजपा की हो या कांग्रेस की, तुष्टिकरण की नीति हर कोई अपनाता है. वोट इन्हें हिंदुओं के चाहिए, लेकिन काम इन्हें मुसलमानों के करने हैं.’

इस मसले पर फरीदाबाद पुलिस कमिश्नर ओपी सिंह ने अधिकारिक तौर पर जो बयान दिया, उस में उन्होंने कहा, ‘इस मामले को ले कर हम काफी संजीदा हैं. एक युवती के साथ घिनौना अपराध हुआ है, जिस कारण इसे क्राइम ब्रांच को ट्रांसफर कर दिया गया है. इस के ऊपर एक एसआईटी बनाया है और एक राज्यपद अधिकारी इस की जांच करेंगे, जिस में तमाम सुबूतों को जमा कर जिस में वीडियो फुटेज, चश्मदीद गवाह, डिजिटल व फोरैंसिक सुबूतों को जमा कर के केस बनाया जाएगा.’

फिलहाल इस मामले को ले कर आरोपी पक्ष की तरफ से मिली जानकारी के मुताबिक जो बात सामने आई है वह यह कि उस ने निकिता तोमर की हत्या बदला लेने के मकसद से की था, जिस में पुलिस जांच के दौरान आरोपी ने बताया कि उस ने बदला इसलिए लिया, क्योंकि 2018 की घटना के बाद वह अपनी पढ़ाई नहीं कर पाया था और निकिता किसी और से शादी करने जा रही थी.

आरोपियों के खिलाफ फिलहाल सैक्शन 302 (हत्या), 34 (क्रिमिनल ऐक्ट डन बाई सैवेरल पर्सन) आईपीसी और सैक्शन 25 (गैरकानूनी हथियार रखने) के तहत मामला दर्ज किया गया है. हालांकि पीड़ित परिजन एफआईआर में कुछ बातें शामिल करने की बात कर रहे हैं, जिन में लव जिहाद का पहलू जुड़वाना शामिल है.

राजनीति गरमाने लगी

इस हत्याकांड के आरोपी तौसीफ के दादा कबीर अहमद 2 बार  विधायक रह चुके हैं. दादा के भाई खुर्शीद अहमद हरियाणा से गृह मंत्री भी रह चुके हैं. वहीं चचेरा भाई भी विधायक रहे हैं, साथ ही हुड्डा सरकार में परिवहन मंत्री भी रहे हैं. चाचा जावेद अहमद ने इस साल बसपा से चुनाव लड़ा था, पर वे हार गए थे.

जहां एक तरफ कांग्रेस पार्टी के आरोपी के परिवार से राजनीतिक संबंध के चलते वह रडार पर है, वहीं भाजपा राज में बढ़ते गुंडाराज और खराब होती कानून व्यवस्था से भी लोग खासा नाराज हैं.

मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने इस मसले पीड़ित परिवार को इंसाफ दिलाने का आश्वासन दिया. उन्होंने अपना बचाव करते हुए कहा, ‘अपराधी को पूरी सजा दी जाएगी. अपराध होने के बाद पुलिस ने 24 घंटे में ही आरोपी को पकड़ लिया.’

कांग्रेस के हरियाणा के मुख्य नेता व प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला इस मसले पर मुख्यमंत्री पर जम कर बरसे. उन्होंने हरियाणा में महिलाओं की सुरक्षा को ले कर सवाल किए, ‘क्या बेटियां इसी प्रकार से सुरक्षित रहेंगी खट्टर साहब? हरियाणा में पिछले 2 साल में महिला अपराधों में 45 फीसदी बढ़ोतरी हुई है. हरियाणा गैंगरेप में नंबर 1 पर है.’

इस के अलावा उन्होंने दोषियों को 30 दिन के सीमित समय में सजा दिए जाने की बात कही.

फिलहाल इस मामले में एसीपी अनिल कुमार की अगुआई में एसआईटी का गठन किया गया है, जो पीड़ित परिवार से मिलने उन के घर पहुंचा. फरीदाबाद के सांसद और मंत्री कृष्ण पाल गुर्जर भी पीड़ित परिवार से मिले थे.

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पुलिस ने अपराध के दौरान इस्तेमाल की गई कार का भी पता लगा लिया है जिस का लिंक दिल्ली से बताया जा रहा है. अपराध के दौरान इस्तेमाल किए गए हथियार को भी बरामद कर लिया गया है.

चिंता की बात

खैर, अब यह देखना है कि पीड़ित परिजन को इस मामले में कितने दिन में इंसाफ मिलता है. भले सरकार में बैठे पदाधिकारी अपनी पीठ यह कह कर ठपथपा रहे हों कि उन्होंने आरोपियों को जल्द से जल्द पकड़ने की कोशिश की है, पर सवाल यह है कि आखिर ऐसी नौबत आई ही क्यों? आखिर क्यों जब पुलिस के संज्ञान में यह मामला 2018 से आ चुका था, तो निकिता को सुरक्षा मुहैया करने में कोताही क्यों की गई?

2018 की एनसीआरबी की रिपोर्ट बताती है कि हरियाणा में क्राइम रेट पहले से 45 फीसदी बढ़ा है. पहले जो आंकड़े 9,839 थे वे बढ़ कर औसतन 15,336 हो गए हैं. हरियाणा उन 4 टौप राज्यों में है जहां रैप के बाद मर्डर की अधिकाधिक वारदातें हुई हैं. ‘हरियाणा स्टेट कमीशन फौर वीमेन’ की इस साल की रिपोर्ट अनुसार लौकडाउन में हरियाणा के अंदर रिकौर्ड 78 फीसदी महिला विरोधी अपराधों में वृद्धि हुई है.फिर सवाल यह कि महिला सुरक्षा के नाम पर सरकारें बेदम क्यों हैं? जगह बदल जाती है, पर अपराध वही रहता है और शिकार भी औरत समाज ही बनता है. यह देश के रहनुमाओं लिए शर्मनाक बात है.

प्यार की त्रासदी : फिर तेरी कहानी याद आई..!

प्यार की पींगे भरकर  एक व्यक्ति ने एक युवती को ऐसा धोखा दिया कि वह युवती ने घर की रही न घाट की. जैसा कि अक्सर होता है एक बार फिर वही सब कुछ घटित हो गया. जी हां! प्रेम के अगले पायदान में युवक ने विवाह का प्रस्ताव रखा और चालाकी से शारीरिक संबंध स्थापित कर लिया . आगे बड़ी नाटकीयता के साथ नोटरी के शपथपत्र के माध्यम से विवाह रचाकर धोखा देता रहा और अंत में पल्ला झाड़ लिया. युवती को जब एहसास हुआ कि वह तो बर्बाद हो चुकी है, तब प्रेमी युवक के खिलाफ प्रेमिका की शिकायत पर पुलिस द्वारा अपराध दर्ज कर आरोपी को  जेल भेज दिया गया .जी हां! मगर थोड़ा रूकिए पीड़ित लड़की की आपबीती अभी खत्म नहीं हुई है.आगे कहानी में एक बार फिर ट्विस्ट है.

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जमानत पर जेल से छूटने के बाद आरोपी पुनः युवती को मीठी चुपड़ी बातें करके अपनी हवस का शिकार बनाता है. वह अपनी गलतियां स्वीकार करता है और आश्वस्त करता है कि मैं विवाह तो तुम्हीं से करूंगा, युवती उसके प्रेम जाल के भुलावे में फंस जाती है. मगर जब सच्चाई खुलती जाती है तो वह अपने को पुनः लूटा हुआ पाती है.पीड़िता की दोबारा शिकायत पर पुलिस “बलात्कार” का अपराध दर्ज करती है. अब आज की हकीकत यह है कि युवक फरार हो गया है और युवती को फोन पर लगातार जान से मारने की धमकी दे रहा है.पीडिता अपनी आपबीती पुलिस को बताती है थाने के लगातार चक्कर लगा रही है लेकिन पुलिस आरोपी की खोजबीन कर गिरफ्तार करने की कागजी कोशिश कर रही है.भयभीत व परेशान युवती का  कहना है कि यदि पुलिस एक सप्ताह के भीतर आरोपी को गिरफ्तार नही करती है तो वह आत्महत्या करने को मजबूर रहेगी.जिसकी सारी जवाबदारी पुलिस प्रशासन की होगी.

युवती ने “वीडियो” जारी किया

अक्सर इस तरह की घटनाएं सुर्खियों में रहती हैं. युवा वर्ग प्रेम प्यार और शारीरिक आकर्षण में फंस कर एक ऐसे भंवर जाल में फंसते चले जाते हैं कि आगे जीवन में सिर्फ अंधकार होता है. और ताजिंदगी अवसाद के अलावा कुछ नहीं मिलता. अक्सर फिल्मों में कहानियों में यही तथ्य और कथ्य रहता है जिसमें विस्तार से बताया जाता है कि किस तरह कोई युवक ठाट बाट और पैसों की झलक दिखा कर युवतियो को अपने जाल में फांस लेता है और  धोखा देकर शारीरिक संबंध बनाता है. और फिर गायब हो जाता हैं. “हरि अनंत हरि कथा अनंता” की तरह यह बानगी वर्षों वर्षों से चली आ रही है. मगर अब समय आ गया है कि इस आधुनिक 21 वी शताब्दी के समय में जब ज्ञान के अनेक स्रोत हमारे पास हैं पुस्तकें हैं, नेट है अगर आज भी स्त्री और पुरुष का यह छलावा चल रहा है तो ठहर कर सोचने की बात है कि आखिर चूक कहां है?

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भ्रम और मानसिक यंत्रणा की कहानी

ऊपर वर्णित घटनाक्रम छत्तीसगढ़ जिला के कोरबा के कटघोरा थानांतर्गत ग्राम कसनिया का है. जहाँ निवासरत युवती रजनी (बदला हुआ नाम) को  कटघोरा पुरानी बस्ती निवासी आसीम खान पिता अकरम सेठ अपने प्रेमजाल में फंसा लेता है और शादी करने का झांसा देते हुए लगातार लंबे समय तक शारीरिक संबंध स्थापित करता है.इस बीच रजनी द्वारा शादी का दबाव बनाए जाने पर तीन दिसंबर 2019 को आरोपी द्वारा शपथपत्र करके विवाह का भ्रमजाल फैलाया गया. लेकिन शादी के तीन दिन पश्चात छः दिसंबर 2019 को शारीरिक एवं मानसिक यातना देते हुए नाटकीय ढंग से पुनः शपथपत्र के माध्यम से दबावपूर्वक संबंध विच्छेद कर लेता है. पीड़िता इस मामले की शिकायत कटघोरा थाना में करती है. शिकायत के आधार पर पुलिस आरोपी के विरुद्ध भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता की धाराओं के तहत गिरफ्तार कर न्यायालय में पेश करती है जहां से आरोपी को जेल चला जाता है.

आरोपी जमानत पर जेल से छूटने पश्चात पीड़िता को बार-बार फोन करके अश्लील गाली-गलौज व मारने- पीटने की धमकी देने लगता है और एक रात  आरोपी प्रेमी, युवती के घर आ धमकता है तथा अकेलेपन का फायदा उठाकर जेल भेजे जाने की बात कहते हुए गाली-गलौज के अलावा मारपीट करते हुए बलपूर्वक शारीरिक संबंध स्थापित करता है.पीड़िता द्वारा  कटघोरा थाना पहुँचकर इस बाबत लिखित शिकायत दी जाती है.लेकिन पुलिस कोई कार्यवाही नही करती. आगे एक जुलाई 2020 को पीड़िता पुलिस अधीक्षक कार्यालय पहुँचकर अपनी शिकायत पत्र सौंप उचित कार्यवाही एवं न्याय की मांग करती है.जिसके बाद आरोपी युवक के विरुद्ध  कटघोरा पुलिस द्वारा  धारा 376, 506 के तहत अपराध दर्ज किया गया है.

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लेकिन अपराध दर्ज होने के बाद आरोपी फरार हो जाता है.जिसे पुलिस अभी तलक फरार बता रही है.जबकि पीड़िता का कथन है कि आरोपी आए दिन फोन पर जान से मारने की धमकी दे रहा है.धमकी से भयभीत हो इस बीच कई बार वह कटघोरा थाना पहुँचकर पुलिस को अपनी आपबीती सुनाते हुए आरोपी की जल्द गिरफ्तारी की मांग भी कर चुकी है.लेकिन फरार आरोपी की खोजबीन कर उसे गिरफ्तार करने की प्रक्रिया को लेकर पुलिस सुस्त बनी  है.मामले में पुलिस के सुस्ती भरे रवैये को लेकर भय के माहौल में जीवन व्यतीत कर रही पीड़िता ने  अब एक वीडियो क्लिप  जारी कर‌ सनसनी  पैदा कर कहा है कि फरार आरोपी कभी भी उसके साथ गंभीर घटना को अंजाम दे सकता है.यदि पुलिस एक सप्ताह के भीतर आरोपी की तलाश कर गिरफ्तार नही करती है तो वह “आत्महत्या” के लिए मजबूर  होगी, जिसकी सारी जवाबदारी  पुलिस प्रशासन की रहेगी.

पुलिस वालों की दबंगई

हिंदी फिल्म ‘दबंग’ में हीरो सलमान खान को इतना बेखौफ दिखाया गया है कि वह हर बुरा काम करने वाले के लिए शामत बन कर उस के होश ठिकाने लगा देता है. इस सब के बावजूद उस में रत्तीभर भी घमंड नहीं होता है और न ही वह अपनी खाकी वरदी का गलत इस्तेमाल करता है.

पर क्या असली जिंदगी में भी ऐसा होता है? शायद नहीं, तभी तो मीडिया में तमाम ऐसी खबरें आती रहती हैं, जिन में पुलिस वाले ही आम जनता का खून चूसने वाले बन जाते हैं. कभीकभार तो इतने जालिम हो जाते हैं कि वे खूनखराबे पर उतर आते हैं.

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देश का दिल दिल्ली को ही ले लीजिए. यहां के अलीपुर इलाके में रविवार, 27 सितंबर ?की शाम को दिल्ली पुलिस के एक सबइंस्पैक्टर संदीप दहिया ने अपनी एक महिला दोस्त को गोली मार दी.

यह कांड सबइंस्पैक्टर संदीप दहिया की सर्विस रिवाल्वर से चलती कार में हुआ. उस महिला को 3 गोलियां मारी गईं. इस वारदात को अंजाम देने के बाद संदीप दहिया अपनी कार से फरार हो गया, जबकि बाद में गंभीर रूप से घायल उस महिला को लोकल लोगों ने अस्पताल पहुंचाया.

इस के बाद भी सबइंस्पैक्टर संदीप दहिया का गुस्सा ठंडा नहीं हुआ. रविवार, 27 सितंबर को उस ने दिल्लीहरियाणा बौर्डर पर एक राह चलते आदमी सतबीर के पैर में गोली मार दी और फिर सोमवार, 28 सितंबर की सुबह रोहतक जिले के गांव बैंसी में अपने ससुर रणबीर सिंह के माथे पर गोली मार कर उन की जान ले ली. संदीप दहिया का काफी समय से अपनी पत्नी से विवाद चल रहा है.

एक और मामले में दिल्ली पुलिस के एक इंस्पैक्टर के खिलाफ देश के प्रधानमंत्री से गुहार लगाई गई. हुआ यों कि भलस्वा डेरी थाने के एसएचओ रहे इंस्पैक्टर के खिलाफ करोड़ों रुपए की जमीन कब्जाने का मुकदमा इसी थाने में दर्ज हुआ.

उस इंस्पैक्टर पर आरोप लगाया गया कि उस ने जबरन उगाही और करोड़ों रुपए के प्लाट और दूसरी जमीन पर कब्जा कर के अपने रिश्तेदारों के नाम करा ली. जिस पीडि़त सुजीत कुमार की एफआईआर पर यह मामला उछला, उस का आरोप है कि वह इंस्पैक्टर पीडि़त का 100 गज का प्लाट कब्जाने की कोशिश कर रहा है.

पीडि़त सुजीत कुमार ने पुलिस महकमे के ऊंचे अफसरों तक यह मामला पहुंचाया, पर कोई सुनवाई नहीं हुई. बाद में थकहार कर सुजीत कुमार ने प्रधानमंत्री को संबंधित दस्तावेज के साथ अपनी लिखित शिकायत भेजी, जिस में लिखा था, ‘मैं शिकायतें देदे कर थक चुका हूं और मजबूरन मुझे आप के पास शिकायत करनी पड़ रही है. आप के दफ्तर पर मुझे भरोसा है कि इंसाफ मिलेगा और आरोपी को कानून के शिकंजे में ले कर सख्त कार्यवाही की जाएगी, जिस से बाकी भ्रष्ट अफसरों को सबक मिल सके.’

उस पुलिस इंस्पैक्टर पर यह भी आरोप लगाया गया है कि उस ने दिल्ली के स्वरूप नगर में 300 गज का डेढ़ करोड़ रुपए का एक गोदाम बना लिया है और गलीप्लाट वगैरह पर कब्जा करने की कोशिश करते हुए तकरीबन 1,500 गज जमीन में बिना पार्किंग के एक मैरिज होम बना लिया है, जिस की बाजार कीमत तकरीबन 10 करोड़ रुपए है.

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पीडि़त का यह भी आरोप है कि मुकुंदर में उस इंस्पैक्टर के रिश्तेदारों के नाम 40 बीघा जमीन में कई बड़े प्लाट हैं. इतना ही नहीं, बुराड़ी थाने के सामने 100 फुटा रोड पर ग्राम सभा की जमीन पर 350 गज और उसी से लगती हुई जमीन पर 300 गज जगह भी कब्जा ली है. इन की कीमत भी 12 करोड़ रुपए के आसपास बताई जा रही है.

मुंबई में ड्रग्स और फिल्मी सितारों के रिश्तों को ले कर हड़कंप मचा हुआ है, पर दिल्ली के जहांगीरपुरी पुलिस स्टेशन के 4 पुलिस वालों के खिलाफ पकड़े गए गांजे को खुद ही बेच देने का आरोप लगा. उन के खिलाफ भ्रष्टाचार के तहत मामला दर्ज करने के साथ एसएचओ को निलंबित कर दिया गया.

दरअसल, कुछ दिनों पहले जहांगीरपुरी थाना पुलिस ने 160 किलो गांजा बरामद किया था, लेकिन सरकारी रिकौर्ड में पुलिस ने गांजे की बड़ी खेप की एक किलो से भी कम 920 ग्राम की बरामदगी दिखाई और बाकी खेप खुद ही ब्लैक में बेच दी.

जब इस गोलमाल की जानकारी पुलिस के बड़े अफसरों तक पहुंची, तो शुरुआती जांच में 2 सबइंस्पैक्टर और 2 हैडकांस्टेबल पर गाज गिरी थी, पर इस के बाद एसएचओ को भी निलंबित कर दिया गया.

ड्रग पैडलर अनिल को छोड़ने के बाद आरोपी पुलिस वालों ने गांजा बेचने से आई रकम आपस में बांट ली थी.

ये तो चंद किस्से हैं पुलिस की करतूतों के, फेहरिस्त तो बहुत लंबी है. पर ऐसा होता क्यों है? क्यों जनता की हिफाजत करने वाले उसी को सताने लग जाते हैं, अपराध कर के खाकी वरदी को दागदार करते हैं?

यह सब इसलिए होता है, क्योंकि पुलिस के पास बहुत ज्यादा ताकत होती है. वह कानून के बारे में जानती है तो उस से खिलवाड़ करने के दांवपेंच भी बखूबी समझती है. आम आदमी तभी तो थाने में दाखिल होने से डरता है, क्योंकि उसे पता होता है कि वहां किसी न किसी बहाने से उस की खाल उतारी जाएगी.

वरदी की यही गरमी और जनता का डर पुलिस को तानाशाह बना देता है, तभी तो कोई पुलिस वाला अपनी महिला साथी से नाराज होने पर उसे सरेआम गोलियों से भून कर फरार हो जाता है या फिर कोई दूसरा पुलिस वाला अपने इलाके में इतना आतंक मचा देता है कि गैरकानूनी तौर पर जमीन हथियाने लगता है. रहीसही कसर पुलिस की वे धांधलियां पूरी कर देती हैं, जहां वह नशीली चीजों की बरामदगी में ही घपला कर देती है.

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इस तरह की घटनाओं से एक बात और उभरती है, इस से पुलिस और जनता के बीच दूरियां बढ़ जाती हैं. कोई भी शरीफ आदमी पुलिस और थाने से बचने लगता है. यह सभ्य समाज के लिए बेहद खतरनाक है.

दुख तो इस बात से होता है कि ऐसे अपराधी पुलिस वालों के खिलाफ उन के ही बड़े अफसर भी कोई कार्यवाही नहीं करते हैं. अगर ऐसा होता तो पीडि़त सुजीत कुमार को प्रधानमंत्री के पास जा कर गुहार नहीं लगानी पड़ती.

बेड़ियां तोड़ कर आसमान चूमती मुस्लिम लड़कियां

मुस्लिम कौम की लड़कियों और औरतों के हिस्से खबरों की सुर्खियां तो बहुत आती हैं, लेकिन वे या तो तीन तलाक जैसे मसलों को ले कर होती हैं या फिर उन के प्रति मौलवियों के विवादास्पद बयानों से जुड़ी होती हैं.

जो इसलाम तालीम हासिल करने के लिए सुदूर पूर्व जाने की वकालत करता हो, उसी इसलाम के तथाकथित मठाधीश लड़कियों और औरतों को घर की दहलीज पार करने की इजाजत तक नहीं देना चाहते हैं. उन की नजर में महिला होने मतलब परदा, पति की सेवा और घर की चारदीवारी में रहने से है.

मजे की बात तो यह है कि घर के माली मसलों में उन की हिस्सेदारी की उम्मीद भी की जाती है, लेकिन उन उसूलों पर चल कर जो मौलवियों ने उन के लिए तय किए हैं. शायद इसीलिए अकसर घर के भीतर बीड़ी बनाती या जरदोजी का काम करती मुस्लिम महिलाओं की तसवीर सामने आती थी.

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लेकिन जब समय करवट बदलता है, तो अंगड़ाई भी लेता है. अब बदलते समय की अंगड़ाइयां ही बरसों पुराने बंधन की बेड़ियों को तोड़ रही हैं. मध्यम वर्ग और निम्न मध्यम वर्ग की मुस्लिम महिलाएं अपने दम पर रोजगार और शिक्षा के क्षेत्र में तो कामयाब हो ही रही हैं, अब खेल के मैदान से भी मुस्लिम महिलाओं की कामयाबी की कहानी सामने आने लगी है.

खेल के मैदान की उपलब्धियां इसलिए अहम हैं कि जिस समाज में मर्दों के साथ बैठ कर मैच देखने पर मुल्लामौलवियों ने अकसर विवादास्पद बयानों से असहज स्थितियां पैदा की हों, वहां बिना हिजाब के और गैरपरंपरागत कपड़ों के साथ मैदान में अपनी खेल प्रतिभा दिखाना बड़ी बात है.

दरअसल, पिछले कुछ सालों में यह देखा गया है कि मुस्लिम महिलाएं प्रतियोगी परीक्षाओं में तमाम मुश्किलों के सामने खुद चुनौती बन कर कामयाबी के झंडे गाड़ रही हैं. अब केवल मजहबी शिक्षा ही उन का लक्ष्य नहीं रहा है, बल्कि आईएएस, पीसीएस, पीसीएसजे के साथ दूसरी प्रतियोगी परीक्षाओं के जरीए देशसेवा करना उन का लक्ष्य बन गया है.

जाहिर है कि जो सपने देखता है, वही सपनों को हकीकत में भी बदलता है या कोशिश करता है. संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा में अपनी प्रतिभा का लोहा तो कई दर्जन मुस्लिम महिलाओं ने मनवाया है और हर साल यह सूची लंबी हो रही है. हर साल संघ लोक सेवा आयोग परीक्षा में सफल प्रतियोगियों की सूची में मुस्लिम महिलाओं का नाम दिखता है, लेकिन इलाहाबाद की सीरत फातिमा, पूर्वांचल की हसीन जहरा रिजवी जैसी प्रतिभाएं उन की मिसाल भी बनती हैं. रेहाना बशीर, बुशरा बानो, बुशरा अंसारी, जमील फातिमा जेबा और इल्मा अफरोज की कामयाबी इस सूची को और लंबा बनाती है.

दरअसल, बात यहां क्रिकेटर नुजहत परवीन की करनी थी, जो देश में ‘महिला क्रिकेट की धौनी’ कही जाती हैं. नुजहत परवीन एक सामान्य मुस्लिम परिवार से आती हैं. वे मध्य प्रदेश के रीवा संभाग के छोटे शहर सिंगरौली में पलीबढ़ी हैं. जाहिर है कि महानगरीय चकाचौंध और क्रिकेट जैसे खेल में राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाने के लिए वहां जरूरी संसाधन नहीं हैं, लेकिन नुजहत परवीन ने इन सब बातों को नकारते हुए खुद सफलता का पाठ पढ़ कर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है.

नुजहत परवीन अपने खेल जीवन के शुरुआती दिनों में न तो क्रिकेट खेलती थीं और न ही उस के बारे मे कुछ जानती थीं. क्रिकेट के प्रति उन का रुझान भी नहीं था. स्कूली स्तर पर वे फुटबाल की आक्रामक खिलाड़ी रही थीं और एमपी अंडर-16 फुटबाल टीम की कप्तान बनाई गई थीं और उन्होंने राज्य का प्रतिनिधित्व भी किया था. यही नहीं, वे 100 मीटर दौड़ की फर्राटा घावक भी थीं, लेकिन सिंगरौली क्रिकेट संघ के अध्यक्ष रहे राजमोहन श्रीवास्तव को उन में एक अलग प्रतिभा दिखी और उन की साथी खिलाड़ी की समझाइश पर नुजहत परवीन ने बल्ला थामा और विकेटकीपिंग के दस्ताने पहन लिए.

विकेटकीपर बनने के पीछे भी एक कहानी है कि सिंगरौली की जिला टीम में विकेटकीपर की जगह ही खाली थी. आप को याद होगा कि महेंद्र सिंह धौनी भी पहले फुटबाल खेलते थे. नुजहत परवीन एक आक्रामक बल्लेबाज और विकेट के पीछे चपल भी हैं, इसीलिए उन को ‘महिला क्रिकेट की धौनी’ कहा जाने लगा है.

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अंतर संभागीय स्पर्धा में रीवा संभाग स्तर पर कमल श्रीवास्तव और एमआरएफ पेस फाउंडेशन में आस्ट्रेलिया के डेनिस लिली की निगरानी में निखरे कोच एरिल एंथनी की पारखी नजरों ने नुजहत परवीन के अंदर छिपी प्रतिभा को पहचाना और उन के लिए आगे का रास्ता बनाया. विजयानंद ने उन को क्रिकेट की बारीकियां सिखाईं.

नुजहत परवीन की प्रतिभा का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि क्रिकेट बल्ला थामने के 4 साल बाद ही सीनियर इंटर जोनल टूर्नामैंट में उन्होंने 2 शतक जड़ दिए थे. यह प्रदर्शन उन का मध्य प्रदेश की अंडर 19 टीम में चयन के लिए काफी था.

मध्य प्रदेश की जूनियर टीम की तरफ से खेलते हुए उन्होंने भारतीय चयनकर्ताओं का ध्यान अपनी तरफ खींचा. प्रदेश की सीनियर टीम में आने के बाद वे सैंट्रल जोन के लिए चुनी गईं, लेकिन उन को बड़ी सफलता साल 2016 में तब मिली जब वे भारत और वैस्टइंडीज के बीच होने वाली 3 टी 20 मैचों की सीरीज और उस के बाद होने वाले एशिया कप में भी बतौर विकेटकीपर चुनी गईं. बस, यहीं से वे देश के लिए खेलने लगीं यानी महज 5 साल में वे जिला स्तर से राष्ट्रीय फलक पर छा गईं. फिर महिला विश्वकप के लिए भी वे बतौर विकेटकीपर चुनी गईं.

नुजहत परवीन आजकल फिर सुर्खियों में हैं. भारतीय क्रिकेट बोर्ड ने इस साल आईपीएल चैलेंज मे महिलाओं को भी शामिल किया है. इस के लिए महिला खिलाड़ियों की 3 टीमें बनाई हैं, जिन में से एक टीम स्मृति मंधाना के नेतृत्व में बनाई गई है. उस टीम में नुजहत परवीन को बतौर विकेटकीपर बल्लेबाज शामिल किया गया है.

नुजहत परवीन देश के लिए खेलने वाली मध्य प्रदेश की पहली मुस्लिम महिला खिलाड़ी हैं. यहां यह भी काबिलेगौर है कि नुजहत देश के महिला क्रिकेट इतिहास में देश के लिए खेलने वाली चौथी मुस्लिम महिला खिलाड़ी हैं. मद्रास (अब चेन्नई) में जनमी फौजिया खलील भारत के लिए खेलने वाली पहली मुस्लिम खिलाड़ी रहीं. वे साल 1976 से साल 1982 तक देश के लिए खेलती रहीं. कर्नाटक की नौशीन अलकादिर अब तक सब से ज्यादा दिनों तक खेलीं और 78 वनडे मैचों में 100 विकेट ले कर सफल भी रहीं. हैदराबाद की गौहर सुलताना ने भी देश के लिए 50 वनडे मैच खेल कर 66 विकेट लिए.

आज जब संचार क्रांति का दौर है, तब भी ज्यादातर घरों के मांबाप बेटियों को घर से बाहर भेजने की मनाही करते हैं. मुस्लिम समाज में तो ये बंदिशें और ज्यादा रहती हैं. जिला स्तर से ले कर राष्ट्रीय स्तर तक किसी भी खेल में देखा जा सकता है कि मुस्लिम खिलाड़ी इक्कादुक्का ही मिलती हैं.

मुस्लिम मांबाप लड़कियों को खेलों से दूर रखते हैं. स्कूलकालेज जाने वाली मुस्लिम लड़कियां अकसर हिजाब में ही दिखती हैं और कई बार उन की पढ़ाई भी आगे नहीं बढ़ पाती है. मुल्लामौलवियों की तरफ से तय की गई पहनावे की बंदिशों के चलते, सामाजिक बंधनों में मुस्लिम लड़कियों का खेल के मैदान की तरफ रुख करना दूर की कौड़ी लगता है, लेकिन नुजहत परवीन के परिवार वालों ने इस सब की परवाह किए बिना उन को खेल के मैदान में खुद अपनी पहचान बनाने के लिए भेजा. 8-9 साल पहले तो हालात और मुश्किल थे.

कोल माइन में मशीन आपरेटर उन के पिता मसीह आलम ने अपनी 5 औलादों में तीसरे नंबर की नुजहत परवीन को हमेशा खेलने के लिए बढ़ावा किया और हमेशा उन के हौसले को बल दिया. मां नसीमा बेगम गृहिणी हैं और भाई आमिर ने भी उन को खेल के प्रति ध्यान लगाने के लिए प्रेरित किया.

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नुजहत परवीन भी इस समय भरतीय रेलवे में हैं. रेलवे में जाने का अवसर उन को खेल के मैदान ने ही दिया है. वे उन मुस्लिम लड़कियों के लिए एक मिसाल हैं जो बंधनों को तोड़ कर आसमान चूमने की तमन्ना रखती हैं. उन के पिता मसीह आलम भी उन मुस्लिम मांबाप के लिए सबक हैं जो अपनी बेटियों को माहौल के आईने में सिर्फ डर दिखाते हैं, उन में हिम्मत और अपनी प्रतिभा को निखारने का जज्बा नहीं पैदा करते हैं.

प्राध्यापक और पूर्व संभागीय क्रिकेट खिलाड़ी अजय मिश्रा कहते हैं कि कुछ ऐसे मंच हैं जहां खिलाड़ी अपनी पहचान अपनी प्रतिभा के दम पर बनाता है. यहां कौम माने नहीं रखती और खिलाड़ी इन सब धरातलों से ऊपर उठ कर पहचाना जाता है.

नुजहत परवीन अब तक महिला विश्व कप, दक्षिण अफ्रीका, आयरलैंड और वैस्टइंडीज के खिलाफ भारतीय जर्सी पहन चुकी हैं. अब पहली बार आईपीएल के लिए बनी महिलाओं की 3 टीमों में से एक टीम में वे भी शामिल हैं. उम्मीद है कि वे इस मंच पर भी बल्ले से अपने अंदाज में धमाल जरूर मचाएंगी.

मरवाही : भदेस राजनीति की ऐतिहासिक नजीर

राजनीति में कहा जाता है, सब कुछ संभव है .मगर छत्तीसगढ़ के बहुप्रतीक्षित और बहुप्रतिष्ठित “मरवाही उपचुनाव” में सत्तारूढ़ कांग्रेस के मुखिया भूपेश बघेल ने जिस राजनीति का चक्रव्यू बुना है, वैसा शायद इतिहास में कभी नहीं देखा गया . आज हालात यह है कि अमित जोगी का मामला देश के उच्चतम न्यायालय में पहुंच चुका अगर यहां अमित जोगी को किंचित मात्र भी राहत मिल जाती है तो यह मामला देश भर में चर्चा का विषय बनने के साथ मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की कार्यशैली पर भी एक प्रश्नचिन्ह बन कर खड़ा हो सकता है.

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यह शायद छत्तीसगढ़ की राजनीति में अपने आप में एक नजीर बन जाएगा, क्योंकि चुनाव को  भदेस करने का काम आज तलक किसी भी सत्ता प्रतिष्ठान ने नहीं किया था. सनद रहे, मरवाही विधानसभा अनुसूचित जनजाति प्रत्याशी के लिए सुरक्षित है और विधानसभा उप चुनाव इसलिए हो रहा है क्योंकि पूर्व मुख्यमंत्री अजीत प्रमोद कुमार जोगी का देहांत हो चुका है. अजीत जोगी कभी यहां से कांग्रेस से विधायक हुआ करते थे, बाद में जब उन्होंने अपनी पार्टी बनाई तो उन्होंने मरवाही से चुनाव लड़ा और जीता. मगर कभी भी उनके आदिवासी होने पर कम से कम कांग्रेस पार्टी ने  प्रश्नचिन्ह नहीं खड़ा किया था. आज छत्तीसगढ़ की  राजनीति में तलवारें कुछ इस तरह भांजी जा रही है कि  कांग्रेस पार्टी भूल गई है कि अजीत जोगी कभी कांग्रेस में अनुसूचित जनजाति के सर्वोच्च नेता हुआ करते थे.

राजनीतिक मतभेदों के कारण उन्होंने जनता कांग्रेस जोगी का गठन किया और 2018 के चुनाव में ताल ठोकी थी. मगर उनके देहावसान के पश्चात उनके सुपुत्र और जनता कांग्रेस जोगी के अध्यक्ष अमित जोगी ने यहां ताल ठोकी तो कांग्रेस का पसीना निकलने लगा. अमित जोगी ने नाजुक माहौल को महसूस किया और अपनी पत्नी डाक्टर ऋचा ऋचा जोगी का भी यहां से नामांकन दाखिल कराया. मगर राजनीति की एक काली मिसाल यह की अमित जोगी व उनकी धर्मपत्नी ऋचा जोगी दोनों के जाति प्रमाण पत्र और नामांकन खारिज कर दिए गए. और प्रतिकार ऐसा कि जिन लोगों ने अमित जोगी का आशीर्वाद लेकर डमी रूप में फॉर्म भरा था उनका भी चुन चुन करके नामांकन रद्द कर दिया गया ताकि कोई भी जोगी समर्थक निर्दलीय भी चुनाव मैदान में रहे ही नहीं.

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सभी मंत्री और विधायक झोंक दिए !

कभी छत्तीसगढ़ में कांग्रेस पार्टी डॉ रमन सिंह सरकार पर चुनाव के समय सत्ता के दुरुपयोग की तोहमत लगाया करती थी. और यह सच भी हुआ करता था. भाजपा  हरएक चुनाव में पूरी  ताकत लगाकर कांग्रेस पार्टी को हराने का काम करती थी, तब कांग्रेस के छोटे बड़े नेता, भाजपा  पर खूब लांछन लगाते और आज जब कांग्रेस पार्टी स्वयं सत्ता में आ गई है तो मरवाही के प्रतिष्ठा पूर्ण चुनाव में अपने सारे मंत्रियों संसदीय सचिवों, विधायक को चुनाव मैदान में उतार दिया है. स्वयं मुख्यमंत्री भूपेश बघेल चुनाव पर  पल पल की निगाह रखे हुए थे, ऐसे में जनता कांग्रेस जोगी के अध्यक्ष और मरवाही उपचुनाव में प्रत्याशी अमित जोगी रिचा जोगी को जिस तरह चुनाव से बाहर किया गया. वह अपने आप में एक गलत परंपरा बन गई है और यह इंगित कर रही है कि चुनाव किस तरह सत्ता दल के लिए प्रतिष्ठा पूर्व बन जाता है और सत्ता का दुरुपयोग “खुला खेल फर्रुखाबादी” होता है .

भूपेश बघेल का चक्रव्यूह

दरअसल, अजीत जोगी के जाति के मामले को लेकर भारतीय जनता पार्टी के शासनकाल के 15 वर्ष में डॉ रमन सिंह सरकार नहीं कर पाई वह काम चंद दिनों में भूपेश बघेल सरकार ने कर दिखाया. कुछ नए नियम कायदे बनवाकर भूपेश बघेल ने पहले अजीत प्रमोद कुमार जोगी के कंवर जाति प्रमाण पत्र को निरस्त करवाया इस आधार पर अमित जोगी का भी प्रमाण पत्र निरस्त होने की कगार पर पहुंच गया जिसका परिणाम अब सामने आया है.

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आज मुख्यमंत्री बन चुके भूपेश बघेल और कभी पूर्व मुख्यमंत्री रहे अजीत प्रमोद कुमार जोगी का  आपसी द्वंद्व छतीसगढ़ की जनता ने चुनाव से पहले लंबे समय तक देखा है. जब भूपेश बघेल कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष रहे अजीत जोगी ने कांग्रेस को उसके महत्वपूर्ण नेताओं को   राजनीति की चौपड़ पर हमेशा  घात प्रतिघात करके जताया  कि वे छत्तीसगढ़ के राजनीति के नियंता हैं. मगर अब परिस्थितियां बदल चुकी हैं छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल मुख्यमंत्री है, ऐसे में भूपेश बघेल ने  यह चक्रव्यूह  बुना और दिखा दिया कि सत्ता को  कैसे साधा और निशाना लगाया जाता है. यहां अजीत जोगी और भूपेश बघेल में अंतर यह है कि अजीत जोगी  के राजनीतिक दांव में एक नफासत हुआ करती थी. विरोधी बिलबिला जाते थे और अजीत जोगी पर दाग नहीं लगता था.अब परिस्थितियां बदल गई हैं अमित जोगी और ऋचा जोगी  नामांकन खारिज के मामले में सीधे-सीधे भूपेश बघेल सरकार कटघरे में है. अमित जोगी अब देश की उच्चतम न्यायालय में अपना मामला लेकर पहुंच चुके हैं आने वाले समय में ऊंट किस करवट बैठेगा यह देश और प्रदेश की जनता देखने को उत्सुक है.

रेलवे के निजीकरण से किसान मजदूर के बेटे निराश

22 साल के रंजन का चयन रेलवे में टैक्नीशियन पद के लिए जनवरी में हुआ था. आईटीआई करने के बाद 3 साल की कड़ी मेहनत करने के बाद आए इस रिजल्ट से वह काफी खुश था.

रंजन के पिता साधारण किसान हैं. उन्होंने रोजमर्रा की जरूरी चीजों में कटौती कर के रंजन को पढ़ने के लिए खर्च दिया. रंजन का रिजल्ट आने के बाद परिवार में खुशी का माहौल था. आखिर हो भी क्यों नहीं, परिवार वालों में उम्मीद की किरण जगी थी कि अब घर में खुशियाली आएगी. दोनों बेटियों की शादी अब अच्छे घर में हो जाएगी.

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रंजन की तरह अभिषेक, राहुल और संजय का भी चयन रेलवे में ड्राइवर पद के लिए हुआ. सभी एक ही कमरे में रह कर पटना में तैयारी करते थे. वे सभी किसान मजदूर के बेटे हैं.

बिहार के साधारण किसान मजदूर के बेटों को अगर सब से ज्यादा सरकारी नौकरी मिलती थी तो वह था रेलवे महकमा, जिस में फोर्थ ग्रेड से ले कर रेलवे ड्राइवर, टैक्नीशियन, टीटी और स्टेशन मास्टर पद की नौकरी लगती थी.

रेलवे ने बिहार के किसान मजदूर तबके के मेधावी लड़कों को देशभर में सब से ज्यादा नौकरी दी, जिस से लोगों के हालात में काफी सुधार हुआ.

पर रेलवे के निजीकरण की चर्चा सुनते ही किसान मजदूरों के 3-4 साल से तैयारी कर रहे नौजवानों के होश उड़ गए हैं. वे निराश हो गए हैं. जिन का चयन हो गया है यानी रिजल्ट आ गया है, वे भी उलझन में पड़ गए हैं कि उन्हें जौइन कराया जाएगा या नहीं.

रंजन, जिस का टैक्नीशियन का रिजल्ट आया है, बताता है कि अब कहना मुश्किल है कि हम लोगों का क्या होगा? वह अब किसी प्राइवेट डाक्टर के रह कर कंपाउंडर का काम सीखना चाहता है.

रवींद्र, आलोक, आदिल जैसे दर्जनों छात्रों ने बताया कि वे लोग आईटीआई करने के बाद 3 साल से रेलवे की तैयारी कर रहे थे. उन्हें पूरी उम्मीद थी कि रेलवे में नौकरी जरूर लग जाएगी. वे लोग आपस मे क्विज करते थे. उस क्विज करने वालों में से 32 लोगों की नौकरी लग गई. रेलवे के नीजिकरण की चर्चा जब से सुनी है, उन्हें समझ में नहीं आ रहा है कि वे क्या करेंगे. आखिर में वे लोग भी लुधियाना, सूरत जैसे शहरों की प्राइवेट फैक्टरियों में वही काम करने के लिए मजबूर हो जाएंगे, जो काम अनपढ़ लोग करते हैं. उन के मांबाप तो यही सोंचेंगे कि उन की मेहनत की कमाई अपनी पढ़ाई पर ऐसे ही उड़ा दी. उन को देश के इन हालात के बारे में जानकारी थोड़े है.

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हमारा हक के राष्ट्रीय प्रचारक प्रकाश कुमार ने बताया कि अब दिमाग से हटा दीजिए और भूल जाइए कि अब देश के किसान मजदूरों के बेटों को रेलवे में सरकारी नौकरी मिलेगी. भारतीय रेल जो देश का सब से बड़ा सार्वजनिक उद्यम और सब से बड़ा नियोक्ता था, आज मोदी सरकार उसे खंडखंड कर दिया है और उस का निजीकरण करने का पूरा मैप बन चुका है.

रेलवे की 2 बड़ी परीक्षाएं 2020 में होने वाली थीं. आरआरबीएनटीपीसी एग्जाम, जिस में 35,208 भरतियों के लिए 1.25 करोड़ से ज्यादा औनलाइन आवेदन आए थे. आरआरसी ग्रुप डी एग्जाम में एक लाख से ज्यादा सीटें बताई गई थीं. यह इस एक्जाम के बाद होना था.

रेलवे मंत्रालय ने 109 रूटों पर 151 प्राइवेट ट्रेन चलाने के लिए योजना बनाई है. पूरे देश के रेलवे नैटवर्क को 12 क्लस्टर में बांटा गया है. इन्हीं 12 क्लस्टर में 151 प्राइवेट ट्रेनें चलेंगी. इन ट्रेनों में रेलवे सिर्फ ड्राइवर और गार्ड देगा यानी अब नए पदों की जरूरत ही खत्म कर दी गई है.

लोगों की आंखों में धूल झोंक कर निजीकरण करने पर सरकार तुल गई है. जिस तरह से एयरपोर्ट को एकएक कर अडाणी के हवाले किया जा रहा है, प्राइवेट सैक्टर को अपनी ही ट्रेन रेक तैयार करने की इजाजत दी जाएगी. निजी औपरेटरों को मार्केट के मुताबिक किराया तय करने की इजाजत दी जाएगी. वे इन गाड़ियों को अपनी सुविधा के हिसाब से विभिन्न श्रेणियों की बोगियां लगाने के साथसाथ रूट पर उन के ठहराव वाले स्टेशन का भी चयन कर सकेंगे.

फिलहाल तो मेक इन इंडिया की बात की जा रही है, लेकिन बाद में प्राईवेट आपरेटर जहां से भी चाहेंगे अपनी ट्रेन हासिल कर सकेंगे. रेलवे से ट्रेन खरीदना उन के लिए जरूरी नहीं होगा. यह इन के करार में साफतौर पर लिखा हुआ है. दूसरी सब से बड़ी बात है कि संचालन में निजी ट्रेन को वरीयता मिलने से सामान्य ट्रेनों की लेटलतीफी बेहद बढ़ जाएगी जिस से जनता परेशान होगी और इस का कुसूरवार रेलवे को बना कर और रूट को भी प्राइवेट कर दिया जाएगा.

सभी लोग जानते हैं कि निजी उद्यमियों का मकसद केवल फायदा कमाना होता है और जिन्हें जिस क्षेत्र से फायदा नहीं होता वे वहां काम बंद कर देते हैं. पूरी दुनिया में रेलवे निजीकरण से राष्ट्रीयकरण की ओर लौट रहा है, लेकिन भारत में अडाणी जैसे पूंजीपतियों को फायदा पहुंचाने के लिए सरकार जुटी हुई है. रेलवे में रोजगार देने की बात तो दूर जिन को रोजगार मिला हुआ है, उन का भी छीना जाएगा. टिकट की कीमत आईआरसीटीसी तय करता है. ट्रेन की सफाई का काम, पैंटीकार का काम, टिकट बिक्री इंटरनैट का काम प्राइवेट तौर पर ही होता है.

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गरीबों को 32,000 करोड़ की सब्सिडी खत्म. सरकार कोई भी ट्रेन आने वाले समय में नहीं चलाएगी. केवल प्राइवेट कंपनी ही ट्रेन चलाएगी. रेल यात्री भाड़ा में जबरदस्त बढ़ोतरी होगी. रेल कर्मी और सीनियर सिटीजन की छूट खत्म, जैसे तेजस में बच्चों को भी छूट नहीं है.

देशभर में रेलवे में 70 रेल मंडल है. इन में रेल कर्मचारियों के लिए बनी कालोनी की जमीन को फिर से नए निर्माण के नाम पर बिक्री के आदेश हो गए हैं. इस से रेल कर्मचारियों में अब आक्रोश गहराता जा रहा है. इस का रेलवे मजदूर संघ विरोध कर रहा है, लेकिन सरकार के कानों पर जूं नहीं रेंग रही है. यह साफ हो गया है कि सरकार किसी भी हालत में बड़े बदलाव की तैयारी में है.

कोरोना की वजह बेरोजगार युवा और रेलवे यूनियन के लोग भीड़भाड़ जैसे आंदोलन नहीं कर सकते. कोरोना काल में ही रेलवे का निजीकरण करना सरकार के लिए आसान होगा.

आत्महत्या : तुम मायके मत जइयो!

पति और पत्नी का संबंध कहा जाता है कि सात जन्मों का गठबंधन होता है. ऐसे में जब  आसपास यह देखते हैं कि कोई महिला अथवा पुरुष इसलिए आत्महत्या कर लेता है कि उसके साथी ने उसे समझने से इंकार कर दिया. और प्रताड़ना का दौर कुछ ऐसा बढ़ा की पुरुष हो या फिर स्त्री उसके सामने आत्महत्या के द्वारा अपनी इहलीला समाप्त करने के अलावा कोई चारा नहीं रह जाता.

यह त्रासदी इतनी भीषण है कि आए दिन ऐसी घटनाएं सुर्ख़ियों में रहती है. आज हम इस लेख में यह विवेचना का प्रयास करेंगे कि शादीशुदा पुरुष, ऐसी कौन सी परिस्थितियां होती हैं, जब गले में फंदा लगाकर आत्महत्या कर लेते हैं. हाल ही में छत्तीसगढ़ में ऐसी अनेक घटनाएं घटी हुई जिसमें पुरुषों ने अपनी पत्नी अथवा सांस पर आरोप लगाकर आत्महत्या कर ली.

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ऐसे ही एक परिवार से जब यह संवाददाता मिला और चर्चा की तो अनेक ऐसे तथ्य खुलकर सामने आ गए जिन्हें समझना और जानना आज एक जागरूक पाठक के लिए बहुत जरूरी है.

प्रथम घटना-

छत्तीसगढ़ की न्यायधानी बिलासपुर में हाईकोर्ट के एक वकील ने आत्महत्या कर ली. सुसाइड नोट में लिखा कि वह पत्नी के व्यवहार से क्षुब्ध होकर आत्महत्या कर रहा है. वह अपनी धर्मपत्नी से प्रताड़ित हो रहा है.

दूसरी घटना-

छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिला में एक व्यक्ति ने आत्महत्या कर ली और सुसाइड नोट में लिखा कि उसे पत्नी की प्रताड़ना के कारण आत्महत्या करनी पड़ रही है.

तीसरी घटना-

जिला कोरबा के एक व्यापारी ने आत्महत्या कर ली जांच पड़ताल में यह तथ्य सामने आया कि उसका वैवाहिक जीवन सुखद नहीं था. पत्नी के व्यवहार के कारण उसने अपनी जान दे दी.

मैं मायके चली जाऊंगी…!

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के कबीर नगर थाना क्षेत्र में पत्नी और सास से प्रताड़ित होकर एक शख्स द्वारा द्वारा आत्महत्या का मामला सुर्खियों में है. पुलिस द्वारा मिली जानकारी के अनुसार मौके से पुलिस को  दो पन्नों का सुसाइड नोट मृतक के जेब से मिला है. कबीर नगर थाने मैं पदस्थ पुलिस अधिकारी के अनुसार मृतक ने अपनी मौत का जिम्मेदार अपनी पत्नी और सास को बताया है.

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सुसाइड नोट में मृतक ने लिखा है – उसकी पत्नी बार-बार घर में झगड़ा कर के अपने मायके चली जाती थी और  दो साल की बेटी से भी  मिलने नहीं दिया जाता था. जिसके कारण तनाव में आकर उसने आत्महत्या कर ली. मृतक का नाम मनीष चावड़ा है.  इस मामले में अब तक पुलिस अन्य एंगल से भी तहकीकात कर रही है. मगर जो तथ्य सामने आए हैं उनके अनुसार जब पत्नी अक्सर अपने मायके से संबंध रखे हुए थी. दरअसल, जब पत्नी बार-बार पति को छोड़कर चले जाती है तो डिप्रेशन में आकर पुरुष आत्महत्या कर लेते हैं. ऐसी अनेक घटनाएं घटित हो चुकी है. ऐसे में यही कहा जा सकता है कि वैवाहिक जीवन को सुखमय बनाने के लिए पति और पत्नी दोनों  एक दूसरे की भावना का सम्मान करते हुए यह जानने और समझने की दरकार है कि पूरी जिंदगी दुख सुख में साथ  निभाना है. अगर यह बात गांठ बांध ली जाए तो आत्महत्या और तलाक अर्थात संबंध विच्छेद के मामलों में कमी आ सकती है.

मां और भाइयों की नासमझी

आत्महत्या और संबंध विच्छेद के मामलों में आमतौर पर देखा गया है कि विवाह के पश्चात भी अपनी बेटी और बहन के साथ मायके वालों  के गठबंधन कुछ ऐसे होते हैं कि पति बेचारा विवश और असहाय  हो जाता है. सामाजिक कार्यकर्ता इंजीनियर रमाकांत श्रीवास कहते हैं- यहां यह बात समझने की है कि बेटी के ब्याह के पश्चात मायके पक्ष को यह समझना चाहिए कि अब बेटी की विदाई हो चुकी है और जब तलक उसके साथ अत्याचार, अथवा प्रताड़ना की घटना सामने नहीं आती, छोटी-छोटी बातों पर उसे प्रोत्साहित करने का मतलब यह होगा कि बेटी के वैवाहिक जीवन में जहर घोलना.

उम्र के इस पड़ाव में परिस्थितियां कुछ ऐसी मोड़ लेती है कि पति बेचारा मानसिक रूप से परेशान होकर आत्महत्या कर लेता है. और इस तरह एक  सुखद परिवार टूट कर बिखर जाता है. कई बार देखा गया है कि बाद में पति की मौत के बाद पत्नी को यह समझ आता है कि उसने कितनी बड़ी भूल कर दी. अतः समझदारी का ताकाजा यही है कि जब हाथ थामा है तो पति का साथ दें और छोटी-छोटी बातों पर कभी भी परिवार को तोड़ने की कोशिश दोनों ही पक्ष में से कोई भी न करें.

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गहरी पैठ

हमारे देश में फालतू बातों पर समय और दम बरबाद करने की पुरानी आदत है. यहां तो बेबात की, तो सिर भी फोड़ लेंगे पर काम की बात के लिए 4 जने जमा नहीं होंगे. बकबक करनी हो, होहल्ला मचाना हो, तो सैकड़ों की तमाशाई भीड़ जमा भी हो जाएगी और अपनाअपना गुट भी बना लेगी. जब देश के सामने चीन की आफत खड़ी है, जब बेकारी हर रोज बढ़ रही है, जब उद्योगधंधे बंद हो रहे हैं, जब कोरोना की बीमारी दुनियाभर के रिकौर्ड बना रही है, हम क्या बोल रहे हैं, सुन रहे हैं? रिया चक्रवर्ती और सुशांत सिंह के किस्से, जिस में ऐक्टै्रस कंगना राणावत बेबात में कूद कर हीरोइन बन गई है.

यह आज की बात नहीं है. रामायण काल में राजा दशरथ को राज करने की जगह फालतू में शिकार पर जाने की लगी थी, जब उन्होंने एक अंधे मांबाप के बेटे को तीर से मार डाला. राजा का काम राज करने का था. उस के बाद जंगल में राम ने शूर्पणखा की नाक सिर्फ इसलिए काट ली कि वह प्यार करने का आग्रह बारबार कर रही थी. दोनों का नतीजा बुरा हुआ. श्रवण कुमार के मांबाप के श्राप की वजह से राम को वनवास लेना पड़ा और उस के गम में राजा दशरथ की मौत हो गई.

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महाभारत काल में इंद्रप्रस्थ में द्रौपदी का दुर्योधन और उस के भाइयों को महल में अंधे के बेटे कहना इतना गंभीर बना कि महाभारत का युद्ध हो गया और कुरु वंश ही खत्म हो गया. गीता का उपदेश चाहे जैसा हो, उस में यह नहीं कहा गया कि फालतू की भीड़ और फालतू की बकबक से समाज और देश नहीं बनते.

आज चीन, कोरोना, उद्योगों, भूख, गरीबी से न लड़ कर हमारी चैनलों की भीड़ एकसुर में कंगना और रिया का अलाप कर रही है. ऐसा लगता है मानो रामायण और महाभारत के पात्र ये एंकर हर रोज सुबह पढ़ते हैं और दिनभर उसे ही दोहराते हैं.

हमारे यहां गांवों में ऐसा हर रोज होता है. हर रोज गांव में लड़ाईझगड़े इसी तरह छोटीछोटी बातों पर होते हैं. घरों में सासबहू और जेठानीदेवरानी से ले कर पड़ोसियों और जातियों के विवाद इसी तरह बेबात में तू ने यह क्यों कहा, वह क्यों कहा पर होते हैं. रिया चक्रवर्ती और सुशांत सिंह जो भी कर रहे थे, उस का आम जनता से लेनादेना नहीं है पर चैनल ही नहीं, बल्कि राज्य सरकारें और यहां तक कि केंद्र सरकार भी इस छोटे से मामले में कूद पड़ी हैं, ताकि बड़े मामलों को भुलाया जा सके.

यहां तक कि बिहार में मुद्दा बनाया जा रहा है कि सुशांत सिंह की हत्या का मामला चुनावों में पहला होगा, राज्य में लूटपाट, गरीबी, बदहाली नहीं. पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी अब बंगाली ब्राह्मण रिया चक्रवर्ती का मामला उठा रही हैं.

किसानों ने इन दिनों देशभर में बड़े आंदोलन किए पर चैनलों ने दिखाए ही नहीं. छात्रों ने बेकारी का मुद्दा उठाया और रात को मशाल जुलूस निकाले पर उन की बात करने की फुरसत नहीं रही. रामायण और महाभारत काल की तरह युद्ध राजाओं के आपसी मतलब के हुए और आम जनता बेकार में पिसी थी. दोनों ही लड़ाइयों के बाद आम जनता को कुछ नहीं मिला. राम को सीता मिली और युधिष्ठिर को राज, पर तब जब सब मर गए. क्या हम इसे दोहराने में लगे हुए हैं?

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अब देश को सीमाओं की चिंता ही नहीं है. देश की सरकार को अब देश में होने वाले भयंकर बड़े झगड़ों, खूनखराबों की फिक्र नहीं है. देश को चिंता है गाय की. गाय है तो जहां है, जान का क्या आतीजाती रहती है. गरीब, किसान, मजदूर, व्यापारी जिएंमरें कोई फर्क नहीं पड़ता, पर गौमाता नहीं मरनी चाहिए, खासतौर पर मुसलमान के हाथों. ब्राह्मण उसे भूखा रख कर मार दें तो कोई बात नहीं क्योंकि उन्हें तो कोई पाप लगता ही नहीं.

एक कानून है राष्ट्रीय सुरक्षा कानून. इस में बिना जमानत, बिना दलील, बिना वकील किसी को भी महीनों तक जेल में रखा जा सकता है और हर चौकी का मुंशी इसे लागू कर सकता है. थोड़ी सी कागजी घोडि़यां बनानी होती हैं, वे पकड़ कर बंद करे जाने के बाद बनाई जाती रहती हैं.

उत्तर प्रदेश में अप्रैल, 20 से अगस्त, 20 तक 139 लोगों पर यह कानून लागू किया जिन में से 44 को गौहत्या के अपराध का नाम लगा कर पकड़ा गया था. मजे की बात है 4,000 तो गौहत्या कानून में वैसे ही बंद हैं. कुछ को गैंगस्टर ऐक्ट में बंद कर रखा है तो कुछ को गुंडा ऐक्ट में भी. ये सब बंद लोग धन्ना सेठ नहीं हैं. ये आम आदमी हैं. हो सकता है, ज्यादातर मुसलमान यह दलित हों पर गौमांस या दूसरा कोई और मांस खरीदनेबेचने वाले कहीं पकड़े नहीं जाते. अगर कभीकभार चंगुल में आ जाएं तो वे वकील कर के निकल जाते हैं. गरीब ही सड़ते रहते हैं.

यह न समझें कि इस पकड़धकड़ से गायों की मौतों को बंद कर दिया गया है. वे तो पहले की तरह ही मरेंगी. दान में ब्राह्मण तो केवल दूध देने वाली गाय लेगा. जब दूध देना बंद कर देगी तो पहले वही ही बेच देता था. अब खेतों में छोड़ देता है, जहां वे खड़ी फसलों को खाती रहती हैं. उत्तर प्रदेश की ही नहीं दिल्ली तक की सड़कों पर गायों को आराम से मरते देखा जा सकता है.

इस कानून का फायदा भगवा गैंग वाले जम कर उठा रहे हैं. वे किसी भी घर में गौमांस होने का आरोप लगा सकते हैं. पुलिस छापा मारती है, घर वालों को गिरफ्तार करती है और मांस को लैब में भेज देती है. आमतौर पर 3-4 महीने में रिपोर्ट आती है कि मांस तो भैंस का था पर तब तक पुलिस वाले और भगवा गैंग वाले कमाई कर चुके होते हैं.

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इस धांधली के खिलाफ कोई बोल भी नहीं रहा क्योंकि पार्टी सुनेगी नहीं, मीडिया बढ़ाचढ़ा कर दिखाता है और जज खुद तिलकधारी, जनेऊधारी हैं. वे क्यों पुण्य के काम में दखल दें, चाहे गलत क्यों न हो. गाय के नाम पर जो आपाधापी हो रही है वह बहुत कमाई कर रही है. यह मौका भी एक ही पार्टी के पास है जिसे अपने वर्करों को पैसे नहीं देने पड़ते क्योंकि वर्कर इस तरह हफ्तावसूली कर रहे हैं. गौपूजा का मतलब ही यही है कि गौपालकों की पूजा हो, गौ जिएमरे कौन चिंता करता है?

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