धनबाद और बोकारो जिले की सरहद के पास बसे अमलाबाद इलाके में बिहार से आ कर रह रहे पासियों की लौकडाउन में लौटरी ही लग गई है. धनबाद में शराब की तमाम दुकानें बंद होने के चलते शराबियों को आसानी शराब नहीं मिल रही है. अगर शराब मिल भी रही है, तो उन्हें चोरीछिपे इसे खरीदने के लिए मोटी कीमत चुकानी पड़ रही है. पहले 500 रुपए में मिलने वाली शराब के लिए उन्हें अब 1,000 से 1,200 रुपए देने पड़ रहे हैं, जिस का सीधा असर उन की जेब पर पड़ रहा है. साथ ही, इतनी मोटी रकम चुकाने के लिए शराबी तैयार भी नहीं दिखते.
बढ़ी ताड़ी की मांग
शराबबंदी के चलते अब कई शराबी शराब की जगह ताड़ी पीने को मजबूर हो गए हैं. यह ताड़ी उन्हें कम पैसे में मिल रही है. नशेड़ियों का मानना है कि जो नशा 500 रुपए की शराब में होता था, वही नशा 40 रुपए की ताड़ी में होता है.
इन लोगों का यह भी कहना है कि लौकडाउन के चलते 500 रुपए की शराब 1,200 रुपए तक में मिलने लगी है. इस वजह से लोग शराब छोड़ कर ताड़ी पीने लगे हैं. अमलाबाद से सटे भौंरा, सुदामडीह, डिगवाडीह के रहने वाले लोग सुबह दामोदर नदी पार कर पैदल ही अमलाबाद पहुंच जाते हैं. इन्हें लौकडाउन की भी कोई परवाह नहीं होती और न ही इन पर किसी तरह की ठोस कार्यवाही की जा रही है.
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गोली का गोलमाल
अचानक से बढ़ी ताड़ी की मांग को देख ताड़ी बेचने वाले पासी भी जम कर फायदा उठा रहे हैं और ताड़ी में ज्यादा नशा करने के लिए वे एक दिन या 2 दिन पुरानी ताड़ी और उस में नशे की कोई गोली मिला कर लोगों को दे रहे हैं, जिस वजह से इन दिनों ताड़ी पीने वाले लोगों के लिए भी खतरा बढ़ गया है.
इधर नशा न मिलने पर बिहार का रहने वाला कमल दवा की दुकानों व दूसरी दुकानों पर भटकता फिर रहा है, पर उसे कहीं नशा नहीं मिल पा रहा. वह कहता है, ‘‘आप की कोई पहचान वाला हो तो दिलवा दो भाई साहब, क्योंकि अब मुझ से नशे के बिना रहा नहीं जा रहा है.”
कमल का आगे कहना है कि उस के जैसे कई लोग हैं जो नशे के लिए भटक रहे हैं. चाहो तो शहर की बस्तियों में सर्वे करवा लो. एक स्टडी के मुताबिक, कोरोना संक्रमण के डर से, अकेलेपन से घबरा कर, आनेजाने की मनाही से बड़ी तादाद में लोगों ने खुदकुशी की है. मिसाल के तौर पर विड्रोल सिम्टम्स से ठीक तरह से निकल पाने के साथ लोगों ने आफ्टर शेव लोशन या सैनेटाइजर पी लिया, जिस से कइयों की जान भी जा चुकी है.
कोरोना के चलते लौकडाउन होने से मुजफ्फरपुर समेत 11 जिलों में मानसिक रोगियों की तादाद बढ़ रही है. बेचैनी, घबराहट, चिंता, माइनिया व डिप्रैशन के मरीजों की तादाद में बढ़ोतरी दर्ज की गई है. इन में कई ऐसे हैं जिन में खुदकुशी करने की सोच की शिकायत मिली है और कइयों ने नशा का रुख अपना लिया है.
नशे के मामले में बिहार भी पंजाब की राह पर चल पड़ा है. राजधानी पटना और आसपास के इलाकों में ड्रग्स का कारोबार तेजी से फैल रहा है. हेरोइन, ब्राउन शुगर और गांजा जैसी नशीली चीजों के सौदागरों की लगातार गिरफ्तारी से इस बात की तसदीक हो रही है कि बिहार में ड्रग्स के जब्त किए जाने का ग्राफ बढ़ता ही जा रहा है.
दरअसल, यह ग्राफ सरकार ही दिखा रही है और यह भी बता रही है कि कैसे ट्रेन और हवाईजहाज से अब नशीली चीजें बिहार पहुंच रही हैं. बिहार सरकार ने भले ही शराब के कारोबारियों के अरमानों पर बुलडोजर चला दिया हो, लेकिन बिहार में नशे के सौदागरों की जड़ें और मजबूत हो गई हैं.
सरकार भले ही दावा करती है कि बिहार में शराबियों की तादाद अब कम हो गई है, लेकिन हकीकत यह है कि बिहार अब उड़ता पंजाब की तरह उड़ता बिहार बन चुका है, जहां राजधानी पटना से ले कर हर शहर, कसबे तक में नशे के सौदागरों का जाल बिछ गया है. चाहे पड़ोसी देश नेपाल का ड्रग माफिया हो या मुंबई से ले कर कोलकाता तक के नशे के सौदागर, सभी का नैटवर्क बिहार में फैला हुआ है. सरकारी रिपोर्ट की ही मानें तो शराबबंदी के बाद बिहार में नशीली चीजों की बरामदगी का आंकड़ा 1000 गुना बढ़ गया है. ब्राउन शुगर, अफीम, गांजा, चरस और हेरोइन से ले कर नशे की दवाओं का सेवन इस कदर बढ़ा है कि शराबियों की तादाद भी पीछे छूट गई है.
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आखिर क्या हो रहा है ? बिहार में ऐसी चीजों की तस्करी एकाएक कैसे बढ़ गई? कैसे बिहार में नशे का कारोबार रोजाना फलफूल रहा है? यह सब पुलिस के लिए भी परेशानी का सबब बना हुआ है.
पटना में बड़ा गिरोह
साल 2016 में पटना पुलिस ने थाईलैंड से आई हेरोइन पकड़ी थी. चूंकि इस की कीमत ब्राउन शुगर से ज्यादा होती है, इसलिए तस्करों ने इसे बेचना शुरू कर दिया. पिछले 6 महीने में डीआरआई (डायरैक्टोरेट औफ रेवेन्यू इंटैलिजैंस) और बिहार पुलिस ने 30 क्विंटल से ज्यादा गांजा जब्त किया है. वहां साढ़े 6 किलो चरस, 15 किलो ब्राउन शुगर और हेरोइन बरामद की जा चुकी है.
पटना में ब्राउन शुगर ने भी पैर पसार लिए हैं. भाभीजी उर्फ राधा का गिरोह बड़े पैमाने पर यह काम कर रहा है. पुलिस ने उसे 10 लाख रुपए और एक किलोग्राम ब्राउन शुगर के साथ गर्दनीबाग से दबोचा था, वह इन रुपयों से नशे का स्टॉक करने जा रही थी.
इस के बाद अभिमन्यु नामक एक शख्स को 4 किलोग्राम ब्राउन शुगर के साथ पकड़ कर जेल भेजा गया. बेउर जेल में रहने के बावजूद भाभीजी ने धंधा जारी रखा. इस राज पर से परदा तब उठा, जब 3 दिन पहले पोस्टल पार्क से उस के गुरगे सुदामा की गिरफ्तारी हुई. सुदामा के कमरे में पुलिस ने 2.111 किलोग्राम गांजा और 80,000 की नकदी बरामद की थी.
सुदामा ने बताया कि भाभीजी जेल से उसे फोन से बताती है कि कब, कहां और किस के पास माल लेना है. माल (ब्राउन शुगर) ले कर वह कमरे में आता था, एक ग्राम पुड़िया तैयार करता था, जिसे वह एजेंट को 400 रुपए में बेच देता था.
एजेंट नशे के आदी लोगों को 100 रुपए मुनाफे पर एक पुड़िया बेचता था. केवल सुदामा के जरीए भाभीजी उर्फ राधा जेल में रहते हुए 50 लाख रुपए का कारोबार कर लेती थी. उस के जैसे कितने लोग भाभीजी के लिए काम कर रहे हैं , यह उसे नहीं पता.
नैटवर्क दूसरे राज्यों तक
हेरोइन की खरीद और बिक्री के लिए आरा शहर का गंगा इलाका भी बदनाम हो रहा है. यहां के तस्करों का नैटवर्क बिहार की राजधानी पटना से ले कर, झारखंड, कोलकाता और दिल्ली तक फैला हुआ है. भोजपुर का बिहिया और शाहपुर इलाका भी इस की जद में है.
बिहार के बक्सर जिले के कई इलाकों के अलावा शहर के शांतिनगर को हेरोइन की उपलब्धता के लिए चिन्हित किया गया है. 28 मार्च, 2019 को बिहार की भोजपुर पुलिस ने झारखंड के जसीडीह इलाके के गिधनी गांव के बाशिंदे सिकंदर को गिरफ्तार किया था. उस के पास से ब्राउन शुगर की 300 पुड़िया बरामद की गई थी. पूछताछ में पता चला कि बरामद ब्राउन शुगर आरा शहर के गंगाजी इलाके से खरीदने के बाद झारखंड में बेचा जाता है.
अब तक की पूछताछ से पुलिस को जो जानकारी मिली है उस के मुताबिक बक्सर जिले से हेरोइन की तस्करी उत्तर प्रदेश के गाजीपुर से संचालित की जाती है. वहां से माल बक्सर आता है, फिर बक्सर से दूसरे ब्लौकों में रहने वाले तस्करों को इस की सप्लाई की जाती है.
बिहार में पूरी तरह से नशाबंदी है. इस के लिए कठोर कानून भी लागू है, जिस के तहत बिहार में शराब बेचना, पीना और रखना कठोर दंडनीय अपराध है, लेकिन शराबबंदी कानून के लागू होने के बाद भी बिहार के लोग खासकर नौजवान पीढ़ी नशे के लिए तरहतरह की नशीली चीजों का सेवन करने लगे हैं. शराबबंदी के बाद बिहार ड्रग माफिया के लिए बड़े मार्केट में तबदील होता जा चला गया और लोग नशे की तलाश में नएनए रास्ते तलाशते चले गए, जिस में चरस, गांजा, अफीम, हेरोइन के बाद सांप के जहर का भी खूब इस्तेमाल होने लगा.
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नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो के पटना जोन के मुताबिक, ओपियम और हाशिश जैसी ड्रग्स के जब्ती मामले में बिहार देश में अव्वल है. गांजा जब्ती में आंध्र प्रदेश के बाद बिहार दूसरे नंबर पर है. सब से खास बात यह है कि साल 2015 के बाद बिहार में ड्रग्स की जब्ती में 1000 फीसदी की बढ़ोतरी हुई थी. साल 2015 में 14.4 किलो ग्राम गांजा जब्त हुआ, साल 2016 में यह 10,800 किलोग्राम हो गया और साल 2017 में 28,888 किलोग्राम की जब्ती यह बताने को काफी है कि शराब का विकल्प गांजा बना.
साल 2015 में बिहार में हशिश जैसे नशीली चीज की कोई जब्ती नहीं हुई, जबकि साल 2017 में यह 244 किलोग्राम हो गया, 2015 में 1.7 किलोग्राम ओपियम जब्त हुआ, जबकि साल 2016 में 14 किलोग्राम और साल 2017 में यह आंकड़ा 329 किलोग्राम पहुंच गया.
नशे के बाजार की पड़ताल
राजधानी पटना की सड़कों पर जब न्यूज 18 ने एक खबर शुरू की तो महज 10 साल के बच्चे ने सब के होश फाख्ता कर दिए और राज्य सरकार की तमाम बंदिशों को ठेंगा दिखाते हुए बताया कि हर दुकान में इन दिनों नशे का कारोबार चल रहा है. जब न्यूज 18 ने इस जाल में फंसे लोगों की नजात में जुटे पटना के सब से बड़े अस्पताल ‘पीएमसीएच’ में जानकारी लेनी चाही तो डाक्टर के साथ मरीज के सवालों ने भी सब को चौंका दिया.
नशे के मकड़जाल में फंसे लोगों को इस जाल से निकालने में जुटी संस्थाओं की भी मानें तो इन संस्थाओं में भी मरीजों की तादाद में इजाफा हुआ.
बिहार के मुख्यमंत्री भी ड्रग्स के इस फैलते जाल से हैरान थे. इधर विपक्ष ने भी शराबबंदी को ही मुख्य मुद्दा बना डाला. राजद के एक नेता का कहना था कि नीतीश सरकार ने जब शराबबंदी का ऐलान किया था, तो यह आत्ममुग्धता वाला कदम था. कोई फ्रेमवर्क नहीं था. कोई तैयारी नहीं थी, इसलिए नशाबंदी में कोई कमी नहीं आई, जिस का नतीजा बिहार भुगत रहा है.
तस्कर नएनए तरीकों से ड्रग्स की तस्करी में जुटे हैं. पटना में गांजा की खेप पकड़ी गई. यह तस्करों का खेल बड़े ही शातिर दिमाग के साथ खेला जा रहा है. सरकार के डाक महकमे के जरीए तस्करी की जा रही है.
बिहार एसटीएफ एसओजी-एक की टीम ने पटना जंक्शन पर बनी रेल मेल सर्विस यानी आरएमएस से तकरीबन डेढ़ क्विंटल गांजे को जब्त किया था. रेलवे पोस्टल महकमे के दफ्तर में रखी गई 7 बोरियों को जब खोला गया तो उस में 13 बंडल मिले और हर बंडल में 10-10 किलोग्राम गांजा रखा था. गांजे के इन बंडलों की पैकिंग इस अंदाज में की गई थी कि किसी को भी भनक न लगे.
जानकारों के मुताबिक, यह गांजे की तस्करी का बिलकुल ही नया तरीका सामने आया. 130 किलोग्राम गांजे की इस खेप को त्रिपुरा से हाजीपुर के लिए बुक कराया गया था. लेकिन यह जान कर हैरानी होगी कि यह खेप सीधे सड़क या ट्रेन से नहीं, बल्कि फ्लाइट के जरीए पटना लाई गई था और फिर ट्रेन से उसे जगहजगह पहुंचाया गया था. इतना ही नहीं, सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ ) की एक टीम ने सांप के 1.87 किलोग्राम जहर पाउडर के साथ 3 लोगों को गिरफ्तार किया था.
आंकड़ों में नशे का कारोबार
जुलाई, 2017 के जो आंकड़े सामने आए हैं, वे काफी चौंकाने वाले थे. शराबबंदी के बाद कुल दर्ज मामले, 25,528 थे, जबकि कुल गिरफ्तारियां 35,414 तक थीं. इस में देशी शराब की जब्ती 3,85,719 लिटर थी और विदेशी शराब की जब्ती 5,961,172 लिटर थी. अप्रैल, 2016 से जून, 2017 तक 1,931 दोपहिया वाहनों को जब्त किया गया, जबकि 739 अन्य वाहन जब्त किए जिन में ट्रक भी शामिल थे. दिलचस्प बात यह है कि ऐसे ही एक ट्रक की 8.5 लाख रुपए में नीलामी की गई थी. 284 निजी भवन या भूखंडों को सील किया गया था और 59 कमर्शियल भवनों मसलन होटल वगैरह पर ताला लगाया गया था.
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शराब नष्ट करने का आंकड़ा देखें तो जून, 2017 तक 97,714 लिटर देशी शराब और 15,8,829 लिटर विदेशी शराब नष्ट की गई थी. शराबबंदी के बाद, बिहार के अलगअलग हिस्सों में साल 2015-16 में 2,492 किलोग्राम गांजा, 17 किलोग्राम चरस, 19 किलोग्राम अफीम, 205 ग्राम हेरोइन के अलावा नशीली दवाओं की 462 गोलियां बरामद की गईं, वहीं साल 2016-17 में 13,884 किलोग्राम गांजा, 63 किलोग्राम चरस, 95 किलोग्राम अफीम और 71 किलोग्राम हेरोइन के साथ नशीली दवाओं की 20,308 गोलियां जब्त की गईं. हालांकि, यह आंकड़ा सरकारी है, लेकिन विभागीय सूत्रों की मानें, तो बरामदगी इस से कहीं ज्यादा थी.
इंटरस्टेट सिंडीकेट ड्रग्स के कारोबार में सक्रिय है और बिहार में धड़ल्ले से ब्राउन शुगर, सांप के जहर और चरस को असम, त्रिपुरा, ओडिशा और दूसरे राज्यों से लाया जाता है.
खोखला करता नशे का कारोबार
बिहार में नशे का कारोबार तेजी से फलफूल रहा है और शराबबंदी के बाद तो इस में और भी तेजी देखी जा रही है, लेकिन दुखद बात यह है कि नशे के इस दुष्चक्र में किशोर और युवा वर्ग के लोग दिनप्रतिदिन फंसते जा रहे हैं. एक तरह से कहें तो जिस तरह चीन में ब्रिटेन ने अफीम युद्ध शुरू किया, ठीक उसी तरह प्रशासनिक अनदेखी ने देश के किशोर और युवाओं को नशे के दलदल में धकेलने का काम किया है. बिहार के कई इलाकों में नशा करने वाले, जुआ खेलने वाले हर चौकचौराहे पर नजर आ जाएंगे. पुराने खंडहरनुमा मकान, गंदी जगह, टूटीफूटी झोंपड़पट्टी या सुनसान जगहों पर धंसी हुई आंखें, पिचके गाल और बेतरतीब बिखरे हुए बाल के साथ हिलते हुए शरीर इन की पहचान हैं. ये नौजवान ब्राउन शुगर, अफीम, चरस और गांजे का सेवन करते हैं. कुछ तो फोर्टविन नामक इंजैक्शन के आदी भी बन गए हैं.
युवा मन को जोश और उमंग की उम्र कहा जाता है. यही उम्र का वह पड़ाव होता है जब वे अपने भविष्य के सपने बुनते हैं और उन्हें आकार देते हैं, पर आज कुछ युवाओं की नसों में जोश कम और नशा ज्यादा दौड़ रहा है. नशा का कारोबार बढ़ता ही जा रहा है और युवा पीढ़ी नशे की आदी होती जा रही है. जिस युवा पीढ़ी के बल पर भारत विकास के पथ पर प्रगतिशील होने का दंभ भर रहा है, उस युवा पीढ़ी में नशे की सेंध लग रही है, जो दिन पर दिन युवा पीढ़ी में अपने पैर पसार रही है. युवाओं में नशा इस कदर हावी हो गया है कि नशा अब मौजमस्ती की नहीं, बल्कि आज की युवा पीढ़ी की जरूरत बन गया है.
अगर हम आंकड़ों की बात करें तो चाइल्ड लाइन इंडिया फाउंडेशन 2014 की रिपोर्ट के मुताबिक, देश में 65 फीसदी युवा नशाखोरी से ग्रस्त हैं, जिन की उम्र 18 साल से भी कम है. सरकारी आंकड़ों के हिसाब से देश की 70 से 75 फीसदी आबादी किसी न किसी तरह का नशा करती है, जिस में सिगरेट, शराब व गुटका की ओर युवा सब से ज्यादा आकर्षित हो रहे हैं और 3 में से एक युवा किसी न किसी तरह के नशे का आदी है.
एक सर्वे के मुताबिक, देश में हर रोज तकरीबन 5,500 युवा तंबाकू से बनी चीजों का सेवन करने वालों की श्रेणी में आते हैं. तंबाकू का इस्तेमाल 48 फीसदी चबाने, 38 फीसदी बीड़ी और 14 फीसदी सिगरेट के रूप में होता है. उस में सब से ज्यादा 86 फीसदी तंबाकू खैनी, जर्दा के रूप में इस्तेमाल होता है.
औरतें भी पीछे नहीं
भारत में 12 करोड़ से भी ज्यादा लोग धूम्रपान करते हैं, जिस में 20 फीसदी औरतें धूम्रपान करती हैं. सिगरेट पीने के मामले में भारत की लड़कियां और औरतें अमेरिका के बाद पूरी दुनिया में दूसरे नंबर पर हैं.
वाशिंगटन यूनिवर्सिटी ने साल 1980 से साल 2012 तक 185 देशों में सिगरेट पीने वालों पर एक रिसर्च करने के बाद बताया कि औरतों के धूम्रपान के मामले में भारत दुनिया में दूसरे नंबर पर है. साल 1980 में भारत में तकरीबन 53 लाख औरतें सिगरेट पी रही थीं, जिन की तादाद साल 2012 में बढ़ कर 1 करोड़, 27 लाख तक पहुंच गई.
इस के अलावा शराब का सेवन भी भारतीय युवाओं में तेजी से फैल रहा है जिस में औरतें भी अछूती नहीं हैं. पैरिस की और्गनाइजेशन फोर इकोनौमिक कारपोरेशन ऐंड डवलपमैंट नामक एनजीओ द्वारा अमेरिका, चीन, जापान, रूस, ब्रिटेन, फ्रांस और जरमनी समेत 40 देशों में शराबखोरी के हानिकारक असर संबंधी स्टडी में यह बात सामने आई है कि साल 1992 से साल 2012 तक महज 20 सालों में ही भारत में शराब के उपयोग में 55 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई. 20 साल पहले जहां 300 लोगों में से एक आदमी शराब का सेवन करता था, वहीं आज 20 में से एक से ज्यादा आदमी शराब का सेवन कर रहा है. पर औरतों में इस प्रवृत्ति का आना समस्या की गंभीरता को दिखाता है. पिछले 20 सालों में मद्यपान करने वाली औरतों की तादाद में तेजी से बढ़ोतरी हुई है खासकर अमीर और मध्यम वर्ग की औरतों में यह एक फैशन के रूप में शुरू हुआ और फिर धीरेधीरे आदत में शुमार होता चला गया.
औरतों में मद्यपान की बढ़ती प्रवृत्ति के संबंध में किए गए सर्वे दिखाते हैं कि तकरीबन 40 फीसदी औरतें इस की गिरफ्त में आ चुकी हैं.
विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के मुताबिक, तकरीबन 30 फीसदी भारतीय शराब पीने की लत के शिकार हैं और इन में से 50 फीसदी बुरी तरह शराबखोरी की लत के शिकार हैं. अगर सरकारी आंकड़ों की बात करें तो देश में 50 लाख युवा हेरोइन जैसे नशे के आदी हैं. हेरोइन की तरह युवाओं में नशीली दवाओं का सेवन भी नशे के रूप में तेजी से बढ़ रहा है.
भारतीय राष्ट्रीय सर्वेक्षण की रिपोर्ट की मानें, तो भारत की आबादी का बहुत बड़ा हिस्सा नशीली दवाओं का सेवन ही नहीं करता, बल्कि इस का पूरी तरह से आदी हो चुका है, जिस में पंजाब, उत्तर प्रदेश, बिहार समेत कई राज्यों में बड़ी तादाद के लोग शामिल हैं.
भारत में नशे का कारोबार बहुत बड़ा है और यह दिन पर दिन एक विकराल रूप लेता जा रहा है. भारत में हर साल इस का 181 अरब रुपए का कारोबार होता है. राज्यों की बात करें तो इस में पंजाब सब से पहले नंबर पर है. एक गैरसरकारी संस्था की रिपोर्ट के मुताबिक, पंजाब में इस समय 75,000 करोड़ रुपए का ड्रग्स की खपत हर साल हो रही है. यही नहीं, विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, तंबाकू के इस्तेमाल के चलते दुनियाभर में 54 लाख लोग हर साल अपनी जान गंवाते हैं, जिस में से 19 लाख मौतें केवल भारत में होती हैं. प्रतिदिन हमारे देश में 2,500 लोग तंबाकू की वजह से मौत के मुंह में जा रहे हैं, वहीं शराब के चलते हर साल लाखों लोग मर रहे हैं.
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अगर सरकार और प्रशासन ने इस दिशा में समय रहते कोई ठोस पहल नहीं की तो एक दिन पूरा देश और युवा भारत नशे की गिरफ्त में होगा, जो आने वाले समय के लिए खतरनाक संकेत है. इस के लिए समाज के सभी वर्गों को जागरूक रहने की जरूरत है, वरना यह देश खत्म होते समय नहीं लगेगा, क्योंकि जब युवा ही नहीं रहेगा, फिर देश का भविष्य क्या होगा, इसलिए सरकार को अपने राजस्व का लालच को छोड़ कर नशे के खिलाफ कोई गंभीर कदम उठाने चाहिए.
लौकडाउन के बीच…
बिहार के हाजीपुर में एक सबइंस्पैक्टर शराब के नशे में धुत्त सड़क किनारे पड़ा मिला जिसे स्थानीय युवकों ने उठाया और नगर थाने की पुलिस को इस की सूचना दी. उस ने खुद ही लोगों को बताया कि वह जहानाबाद टाउन थाने में सबइंस्पैक्टर के पद पर तैनात है. सड़क किनारे पड़े इस पुलिस वाले के कपड़े गीले थे और उस की हालत बेहाल दिखी.
उस पुलिस वाले का कहना था कि वह जहानाबाद से पहले मुजफ्फरपुर जिले के थाने में पोस्टेड था, इसलिए तनख्वाह लेने वहीं जाना पड़ता था. वहीं कुछ लोगों के साथ पार्टी में शराब पी ली थी. लेकिन उसे नहीं पता कि वह मुजफ्फरपुर से हाजीपुर कैसे पहुंच गया?
सोचने वाली बात है कि जब पुलिस ही नियमों को तोड़ रही है, तो आम जनता से क्या उम्मीद की जाए.