दिवाकर को एक ही मलाल था कि वह ज्यादा पढ़लिख नहीं पाए. अपनी इस कमी को ले कर उन्होंने घरवालों की आंखों में दूसरों के सामने शर्मिंदगी का एहसास देखा था. उसी शर्मिंदगी को गर्व में बदलना चाहते थे लेकिन यह कैसे संभव हो सकता था?
दिवाकर को एक ही मलाल था कि वह ज्यादा पढ़लिख नहीं पाए. अपनी इस कमी को ले कर उन्होंने घरवालों की आंखों में दूसरों के सामने शर्मिंदगी का एहसास देखा था. उसी शर्मिंदगी को गर्व में बदलना चाहते थे लेकिन यह कैसे संभव हो सकता था?
ठाणे के विधायक दिवाकर की कार में ड्राइवर के अलावा पिछली सीट पर दिवाकर उन की पत्नी मालिनी थीं. पीछे वाली कार में उन के दोनों युवा बच्चे पर्व और सुरभि और दिवाकर का सहायक विकास थे. आज दिवाकर को एक स्कूल का उद्घाटन करने जाना था.
दिवाकर का अपने क्षेत्र में बड़ा नाम था. पर्व और सुरभि अकसर उन के साथ ऐसे उद्घाटनों में जा कर बोर होते थे, इसलिए बहुत कम ही जाते थे. पर कारमेल स्कूल की काफी चर्चा हो रही थी, काफी बड़ा स्कूल बना था, सो आज फिर दोनों बच्चे आ ही गए. वैसे, उद्घाटन तो किसी न किसी जगह का दिवाकर करते ही रहते थे. पर स्कूल का उद्घाटन पहली बार करने गए थे.
विकास ने भाषण तैयार कर लिया था. मीडिया थी ही वहां. मालिनी भी उन के साथ कम ही आती थी, पर आज बच्चे उसे भी जबरदस्ती ले आए थे. वैसे भी स्कूल की प्रबंध कमेटी ने दिवाकर को सपरिवार आने के लिए बारबार आग्रह किया था. विकास का भी यही कहना था ‘सर, ऐसे संपर्क बढ़ेंगे तो पार्टी के लिए ठीक रहेगा. टीचर्स होंगे, अभिभावक होंगे, आप का सपरिवार जाना काफी प्रभाव डालेगा.’
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कार से उतरते ही दिवाकर और बाकी सब का स्वागत जोरशोर से हुआ. स्कूल की पिं्रसिपल विभा पारिख, मैनेजर सुदीप राठी और प्रबंधन समिति के अन्य सदस्य सब का स्वागत करते हुए उन्हें गेट पर लगे लाल रिबन तक ले गए. दिवाकर ने उसे काटा तो तालियों की आवाज से एक उत्साहपूर्ण माहौल बन गया. दिवाकर स्टेज पर चले गए. दर्शकों की पंक्ति में सब से आगे रखे गए सोफे पर मालिनी विकास और बच्चों के साथ बैठ गई.
विभा पारिख ने दिवाकर को सपरिवार आने के लिए धन्यवाद देते हुए एक बुके दे कर उन का अभिनंदन किया. फिर उन्होंने अपने स्कूल के बारे में काफीकुछ बताया. अभिभावकगण बड़ी संख्या में थे. स्कूल की बिल्ंिडग वाकई बहुत शानदार थी. कैमरों की लाइट चमकती रही. दिवाकर से भी दो शब्द बोलने का आग्रह किया गया.
दिवाकर माइक पर खड़े हुए. शिक्षा के महत्त्व शिक्षा के विकास, नए बने स्कूल की तारीफ कर के भाषण खत्म कर ही रहे थे कि एक मीडियाकर्मी ने पूछ लिया, ‘‘सर, आप ने शिक्षा के संदर्भ में बहुत अच्छी बातें कहीं, आप प्लीज अपनी शिक्षा के बारे में भी आज बताना पसंद करेंगे?’’
शर्मिंदगी का एक साया दिवाकर के चेहरे पर आ कर लहराया. उन की नजरें मालिनी और अपने बच्चों से मिलीं तो उन की आंखों में भी अपने लिए शर्मिंदगी सी दिखी. नपेतुले, सपाट शब्दों में उन्होंने कहा, ‘‘अपने बारे में फिर कभी बात करूंगा, आज इस नए स्कूल के लिए, इस के सुनहरे भविष्य के लिए मैं शुभकामनाएं देता हूं. बच्चे यहां ज्ञान अर्जित करें, सफलता पाएं.’’
तालियों की गड़गड़ाहट से सभा समाप्त हुई पर शर्मिंदगी का जो एक कांटा आज दिवाकर के गले में अटका था, लौटते समय कुछ बोल ही नहीं पाए, चुप ही रहे. मालिनी को घर छोड़ा और विकास के साथ अपने औफिस निकल गए. विकास दिवाकर के साथ सालों से काम कर रहा था. दोनों के बीच आत्मीय संबंध थे. दिवाकर के तनाव का पूरा अंदाजा विकास को था. वह सम झ रहा था कि अपनी शिक्षा पर उसे सवाल दिवाकर को शर्मिंदा कर गए हैं. पूरे रास्ते दिवाकर गंभीर विचारों में डूबे रहे, विकास भी चुप ही रहा.
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औफिस पहुंचते ही विकास ने उन के लिए जब कौफी मंगवाई इतनी देर में वे पहली बार हलके से मुसकराए. कहा, ‘‘तुम्हें सब पता है, मु झे कब क्या चाहिए,’’ विकास भी हंस दिया, ‘‘चलो सर, आप ने कम से कम कुछ बोला तो. आप इतने परेशान न हों. खोदखोद कर सवाल पूछना मीडिया का काम ही है. और यह पहली बार तो हुआ नहीं है. पर आज आप इतने सीरियस क्यों हो गए? एक ठंडी सांस ली दिवाकर ने. ‘‘बहुत कुछ सोच रहा था, विकास मु झे तुम्हारी हैल्प चाहिए.’’
‘‘हुक्म दीजिए सर.’’
‘‘तुम तो जानते हो, बहुत गरीबी में पलाबढ़ा हूं. गांव से काम की तलाश में यहां आया था और अपने ही प्रदेश के यहां के विधायक के लिए काम करता था. उन की मृत्यु के बाद बड़ी मेहनत से यहां पहुंचा हूं. आज लोगों की नजरों में अपने लिए उस समय एक उपहास सा देखा तो बड़ा दुख हुआ. अपने परिवार की नजरों में भी अपने लिए एक शर्मिंदगी सी देखी, तो मन बड़ा आहत हुआ. सच तो यही है कि इतने बड़े स्कूल के उद्घाटन में जा कर स्वयं कम शिक्षित रह कर शिक्षा के महत्त्व और विकास पर बड़ीबड़ी बातें करना खुद को ही एक खोखलेपन से भरता चला जाता है. आज मैं ने सोच लिया है कि मैं किसी दूसरे राज्य से पत्राचार के जरिए आगे पढ़ाई करूंगा. यहां किसी को बताऊंगा ही नहीं, मालिनी और बच्चों तक को नहीं.’’
विकास को जैसे एक करंट लगा, ‘‘सर, यह क्या कह रहे हैं? यह तो बहुत ज्यादा मुश्किल है, असंभव सा है.’’
‘‘कुछ भी असंभव नहीं है. मैं आगे पढ़ूंगा, तुम इस में मेरी मदद करोगे और किसी को भी इस बात की खबर नहीं होनी चाहिए.’’
‘‘सर, कैसे होगा? पढ़ाई कहां होगी? बुक्स, कालेज?’’
घंटी बजते ही फराह ने मोबाइल उठा कर स्क्रीन पर नजर डाली तो अनायास ही उस के मुंह से निकल गया, ‘अम्मी का फोन.’ फोन रिसीव करते हुए उस ने उत्साह से कहा, ‘‘अम्मी सलाम.’’
‘‘वालेकुम सलाम, कैसी हो फराह?’’ अम्मी ने पूछा.
‘‘ठीक हूं अम्मीजान, आप कैसी हैं?’’
‘‘सब ठीक है बेटी, आप के शौहर हैं घर पर?’’
‘‘वह तो दुकान पर गए हैं. क्यों, क्या बात है?’’ फराह ने पूछा.
‘‘कोई खास बात नहीं है. आज सलीम मामू के बेटे शोएब की बर्थडे पार्टी है, आप दोनों को भी आना है. शोएब खासतौर पर तुम दोनों के लिए कह कर गया है.’’
‘‘हम उन से पूछ लेंगे, अगर इजाजत दे दी तो जरूर आएंगे.’’ कह कर फराह ने फोन काट दिया. इस के बाद उस ने अपने शौहर पुष्पेंद्र को फोन कर के घर बुला लिया. पुष्पेंद्र ने इस तरह बुलाने की वजह पूछी तो फराह ने कहा, ‘‘अम्मी का फोन आया था, कह रही थीं कि हम दोनों को मामू के यहां बर्थडे पार्टी में आना है.’’
‘‘तुम ने क्या कहा?’’ पुष्पेंद्र ने पूछा.
‘‘मैं क्या कहती, कह दिया कि इजाजत मिली तो जरूर आ जाएंगे.’’ फराह बोली.
‘‘तुम चली जाओ. बेटी को भी साथ ले जाओ. मैं तुम दोनों को छोड़ आऊंगा. तुम तैयारी करो, जब तैयार हो जाओ तो मुझे फोन कर देना, मैं दुकान से आ जाऊंगा.’’ पुष्पेंद्र ने कहा.
जवाब में फराह बोली, ‘‘आप बिना वजह परेशान होंगे. हम दोनों रिक्शे से चले जाएंगे.’’
‘‘ठीक है, पर रात गहराती दिखे तो फोन कर देना. मैं छोड़ आऊंगा.’’ कह कर पुष्पेंद्र दुकान पर चला गया.
फराह बेटी स्नेहा को तैयार कर के खुद तैयार होने लगी. तैयार होने के बाद फराह बेटी को ले कर रिक्शे से मायके पहुंचीं तो वहां उस के बड़े भाई तारिक और अम्मी तैयार थे, उन्हें ले कर फराह शोएब की बर्थडे पार्टी में शामिल होने मामू के घर पहुंच गईं.
चांद सी सुंदर फराह को आया देख शोएब ने पलकें बिछा दीं. जब तक फराह वहां रही, वह उसी के इर्दगिर्द घूमता रहा, उस की खातिरदारी में लगा रहा. घर जाने से पहले फराह ने शोएब से हंसते हुए कहा, ‘‘शोएब, अब मैं आप के निकाह की दावत खाने वलीमा में ही आऊंगी.’’
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‘‘आप मुझे बददुआ मत दीजिए. मैं निकाह की बात ख्वाब में भी नहीं सोच सकता.’’ शोएब ने दुखी स्वर में कहा.
‘‘क्यों, कहीं प्यार में चोट खाई है क्या आप ने?’’ चंचल स्वभाव की फराह ने यूं ही पूछ लिया.
‘‘कुछ लोगों को तो मन की मुरादें मिल जाती हैं, जबकि कुछ लोग मेरी तरह रह जाते हैं.’’
‘‘क्यों नहीं हो पाई मुराद पूरी?’’ फराह ने यूं ही पूछ लिया.
‘‘मेरी ही गलती थी फराह, जिसे मैं चाहता था, उस से कभी कह नहीं पाया कि मैं तुम्हें प्यार करता हूं.’’
‘‘कौन थी वह और अब कहां है? आप मुझे बताएं. मैं बात करती हूं उस से.’’ फराह ने अफसोस जताते हुए शोएब से मदद की पेशकश की.
‘‘क्या करेंगी जान कर आप?’’ कह कर शोएब ने पल्ला झाड़ना चाहा, पर फराह अपनी आदत से मजबूर थी.
वह उस के पीछे पड़ने वाले अंदाज में बोली, ‘‘शोएब, अगर तुम उसे दिल से चाहते हो तो मैं वादा करती हूं, वह तुम्हारे कदमों में होगी. मुझे पूरा यकीन है, वह तुम्हें जरूर मिल जाएगी.’’
‘‘अगर हम आप से कहें कि वह लड़की आप ही थीं तो..?’’ शोएब ने मन की बात कह दी.
‘‘शोएब, लगता है आप की दीवानगी से आप का दिमाग घूम गया है.’’ चेहरे पर हलका सा गुस्सा लाते हुए फराह ने कहा, ‘‘आप मेरे मुंह पर ही मेरी मोहब्बत को गाली दे रहे हैं. यह जानते हुए भी कि मैं किसी की बीवी हूं और एक बच्ची की मां भी.’’
‘‘आप खामख्वाह ताव में आ गईं. आप पूछती रहीं और मैं टालने की कोशिश करता रहा. लेकिन आप ने मुझे मजबूर कर दिया तो मैं अपने जज्बात को छिपा नहीं पाया.’’ कह कर शोएब वहां से चला गया.
फराह अपनी 7 साल की बेटी स्नेहा के साथ घर लौट आई. दुकान पर दोस्तों के साथ गप्पें मारता पुष्पेंद्र उसी के फोन का इंतजार कर रहा था. रात साढ़े 10 बजे फराह ने फोन कर के कहा, ‘‘आज घर नहीं आना क्या?’’
‘‘तुम अकेली ही आ गईं? मैं तो तुम्हारे फोन का इंतजार कर रहा था, बता देतीं तो मैं आ जाता लेने.’’
‘‘बड़े भाई छोड़ गए थे. आप घर आ जाइए.’’ कह कर फराह ने पूछा, ‘‘सब्जी क्या बनाऊं?’’
‘‘खाना बनाने की जरूरत नहीं है. मैं ने होटल से मंगा कर खा लिया है. मैं घर आ रहा हूं.’’ कह कर पुष्पेंद्र ने दुकान का शटर गिरा कर ताले लगाए और मोटरसाइकिल से घर के लिए चल पड़ा.
फराह और पुष्पेंद्र एकदूसरे पर जान न्यौछावर करते थे. दोनों की मुलाकात सन 2006 में अलीगढ़ शहर के एक सिनेमाघर में हुई थी. पुष्पेंद्र शहर के थाना सासनीगेट के मोहल्ला खिरनीगेट (हाथरस अड्डा) निवासी हेमेंद्र अग्रवाल का बड़ा बेटा था. वह अपने पिता के साथ कारोबार में हाथ बंटाता था.
जबकि फराह शहर के थाना सिविललाइंस की पौश कालोनी मैरिस रोड निवासी मोहम्मद शमीम की बेटी थी. उन की 2 संतानों में बड़ा बेटा था तारिक और छोटी बेटी थी फराह. मांबाप के लाड़प्यार ने खूबसूरत फराह को बंदिशों से आजाद कर रखा था.
पुष्पेंद्र से हुई मुलाकात में न जाने ऐसी क्या कशिश थी कि फराह के दिल में अजीब सी हलचल मच गई थी. यही वजह थी कि सिनेमाहाल में बैठेबैठे दोनों ने एकदूसरे के नाम तक जान लिए थे. इतना ही नहीं, दोनों ने एकदूसरे को अपने मोबाइल नंबर भी दे दिए थे.
इस के बाद दोनों के बीच मोबाइल पर लंबीलंबी बातें होने लगीं. इस का नतीजा यह निकला कि फराह और पुष्पेंद्र ने जल्दी ही एकदूसरे के दिलों में ऐसी जगह बना ली, जहां से पीछे लौटना संभव नहीं था. दोनों ने प्यार में साथसाथ जीनेमरने की कसमें खाते हुए वादा कर लिया कि जल्दी ही शादी के बंधन में बंध कर अपनी अलग दुनिया बसा लेंगे.
आखिर पुष्पेंद्र ने फराह की जिद पर कोर्ट मैरिज कर ली. जब वह फराह को दुलहन के रूप में ले कर घर पहुंचा तो उसे उलटे पांव लौटना पड़ा. घर वालों ने मुसलिम लड़की को बहू के रूप में स्वीकार नहीं किया और साफ कह दिया कि वह उसे ले कर कहीं दूसरी जगह जा कर रहे.
पुष्पेंद्र ने जरा भी हिम्मत नहीं हारी. फराह को ले कर वह कभी कहीं तो कभी कहीं रहता रहा. दूसरी ओर कट्टरपंथियों ने फराह द्वारा एक हिंदू युवक से शादी करने की बात को तूल दे कर अलीगढ़ में तनाव की स्थिति पैदा करने की कोशिश की.
लेकिन फराह की दृढ इच्छाशक्ति के सामने कट्टरपंथियों को घुटने टेकने पड़े. धीरेधीरे माहौल शांत हो गया. कुछ समय बाद पुष्पेंद्र ने फराह के नाम शहर की पौश कालोनी मैरिस रोड पर नंदनी अपार्टमेंट में 55 लाख रुपए में एक शानदार फ्लैट खरीदा और उसी में रहने लगा. पुष्पेंद्र थोक दवाओं की बाजार फफाला मार्केट में दवाइयों की थोक की दुकान थी. वह अपनी उसी दुकान पर बैठता था. चूंकि आमदनी अच्छी थी, इसलिए उसे परिवार द्वारा अलग कर दिए जाने के बाद भी कोई परेशानी नहीं हुई.
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डेढ़ साल बाद फराह और पुष्पेंद्र एक बेटी के मातापिता बन गए. उन्होंने बेटी का नाम रखा स्नेहा. धीरेधीरे 4 साल गुजर गए. गुजरते वक्त के साथ फराह के मायके वालों की उस के प्रति कटुता खत्म होती गई. जब फराह की मां का दिल नहीं माना तो उन्होंने एक दिन बेटी से फोन पर बात कर के घर आने का न्यौता दे दिया.
पुष्पेंद्र से पूछ कर फराह बेटी स्नेहा को ले कर मायके चली गई. जब मायके वालों को पता चला कि पुष्पेंद्र ने जो फ्लैट खरीदा है, वह फराह के नाम है तो उन्हें खुशी हुई. इस के बाद फराह मायके आनेजाना शुरू हो गया. धीरेधीरे मायके के अलावा दूसरी करीबी रिश्तेदारियों में भी उस का आनाजाना शुरू हो गया.
इसी के चलते फराह शोएब की बर्थडे पार्टी में गई थी, जहां शोएब से उस की जो बातें हुईं, उन्हें सुन कर उस के दिल को चोट सी लगी.
29 अक्तूबर, 2016 की रात फराह को जो खबर मिली, उसे सुन कर वह बेहोश हो कर गिर पड़ी. छोटी दिवाली की रात 9 बजे से पहले फराह ने पुष्पेंद्र को फोन कर के कहा था, ‘‘आप कह कर गए थे कि तैयार रहना बाजार चलेंगे. मैं तैयार हूं, आप आ जाइए.’’
पुष्पेंद्र ने 15 मिनट में आने को कह कर फोन काट दिया. वह दुकान बंद कर के केलानगर के पास पहुंचा ही था कि पीछा कर रहे बदमाशों ने उसे घेर लिया. उन्होंने पहले उस के साथ लूटपाट की, उस के बाद उसे गोली मार कर हत्या कर दी. लूटा हुआ माल ले कर वे फरार हो गए.
यह सूचना थाना क्वारसी पुलिस को मिली तो वह तुरंत घटनास्थल पर पहुंची. इंसपेक्टर श्रीप्रकाश चंद्र यादव ने आननफानन में घायल पुष्पेंद्र को अस्पताल पहुंचाया, जहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया.
श्रीप्रकाश चंद्र यादव को पता चल गया था कि मृतक थोक दवा विक्रेता पुष्पेंद्र अग्रवाल है. उन्होंने उस की पत्नी फराह के साथसाथ उस के घर वालों को भी घटना की सूचना दे दी थी. हत्या की सूचना पा कर फराह का रोरो कर बुरा हाल था. वह बदहवास हालत में अस्पताल पहुंची तो पति की लाश देख कर बेहोश हो गई.
पुष्पेंद्र की विधवा मां राजरानी और घर के अन्य लोग भी रोतेबिलखते अस्पताल पहुंचे. इस घटना से क्षेत्र में सनसनी फैल गई थी. पुष्पेंद्र की हत्या की खबर पा कर जिला कैमिस्ट ऐंड ड्रगिस्ट एसोसिएशन के अध्यक्ष शैलेंद्र सिंह टिल्लू, महामंत्री आलोक गुप्ता भी अन्य पदाधिकारियों के साथ अस्पताल आ गए थे. उन्होंने पुलिस के प्रति आक्रोश जताते हुए हत्यारों को तुरंत पकड़ने की मांग की.
दवाई व्यापारी की हत्या की सूचना पर एसएसपी राजेश पांडेय, एसपी (सिटी) अतुल श्रीवास्तव, सीओ तृतीय राजीव सिंह भी घटनास्थल पर पहुंच गए थे. घटनास्थल का निरीक्षण कर के सभी लोग अस्पताल गए, जहां अध्यक्ष शैलेंद्र सिंह टिल्लू सहित तमाम दवा विक्रेताओं की पुलिस से नोकझोंक भी हुई. काफी मशक्कत के बाद लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेजा जा सका.
लूट और हत्या का यह मामला थाना क्वारसी में अज्ञात लोगों के खिलाफ दर्ज किया गया. एसपी (सिटी) के निर्देशन में थाना क्वारसी के थानाप्रभारी श्रीप्रकाश चंद्र यादव की टीम हत्यारों की टोह में लग गई. दवा विक्रेताओं की एसोसिएशन के अध्यक्ष शैलेंद्र सिंह टिल्लू ने पुलिस को अल्टीमेटम दिया कि अगर 7 दिनों में हत्याकांड का खुलासा नहीं हुआ तो सभी दवा व्यापारी हड़ताल करने को बाध्य हो जाएंगे.
30 अक्तूबर, 2016 दिवाली के दिन पोस्टमार्टम के बाद पुष्पेंद्र के शव को उस के पैतृक निवास हाथरस अड्डा, खिरनीगेट लाया गया, जहां नारेबाजी के साथ पुलिस को अल्टीमेटम दे कर अंतिम संस्कार किया गया. दवा व्यापारियों ने फफाला मार्केट बंद करने का ऐलान कर दिया. अगले दिन थोक दवा व्यापारियों ने एकजुटता का परिचय देते हुए सभी दुकानें बंद रखीं.
श्रीप्रकाश चंद्र यादव को घटना के तीसरे दिन इस बात का अहसास हो गया था कि पुष्पेंद्र की हत्या में अप्रत्यक्ष रूप से कहीं न कहीं उस की पत्नी फराह का हाथ है. लेकिन शोकग्रस्त पत्नी की हालत देखते हुए वे उस पर हाथ डालने में घबरा रहे थे. वैसे भी जब तक ठोस सबूत हाथ में न आ जाएं, तब तक पुलिस चुप ही रहना चाहती है. बहरहाल श्रीप्रकाश चंद्र रातदिन लग कर इस केस की कडि़यां जोड़ने में लगे थे.
पुलिस जब 7 दिनों में हत्याकांड का खुलासा करने के आश्वासन को पूरा नहीं कर सकी तो अध्यक्ष शैलेंद्र सिंह टिल्लू ने शहर भर की दवा की दुकानों को बंद करने का ऐलान कर दिया. शहर भर की दवा की दुकानें यहां तक कि निजी नर्सिंग होम के अंदर की दुकानों पर भी ताले जड़ दिए गए. 2 दिन तक दुकानों के बंद होने से मरीज इधरउधर भटकते रहे.
तीसरे दिन शहर के साथ ब्लौक और देहातों की दवाई की दुकानें भी बंद रखने का ऐलान कर दिया गया. पूरे अलीगढ़ जिले के दवाई व्यापारी दुकानें बंद कर के आंदोलन में शामिल हो गए. मरीजों की परेशानी के साथ पुलिस की कार्यशैली की चारों ओर भर्त्सना होने से एसएसपी राजेश पांडेय ने एसोसिएशन के सभी पदाधिकारियों के साथ मीटिंग कर कहा कि पुलिस हत्याकांड के खुलासे के एकदम करीब पहुंच चुकी है, इसलिए उन्हें 72 घंटे की मोहलत और दी जाए.
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अध्यक्ष शैलेंद्र सिंह टिल्लू और अन्य उपस्थित पदाधिकारियों ने 72 घंटे की मोहलत दे कर दुकान खोलना स्वीकार कर लिया. इस के बाद पुलिस के काम में तेजी आ गई. एसपी सिटी के निर्देशन में लगी सर्विलांस टीम प्रभारी के साथ तेजतर्रार एसओजी प्रभारी छोटेलाल के अलावा कई अन्य तेजतर्रार पुलिस वालों को भी इस में लगा दिया गया.
2 दिनों तक यह टीम श्रीप्रकाश चंद्र यादव के साथ पुष्पेंद्र की हत्या व लूट के खुलासे में लगी रही, तब कहीं जा कर श्रीप्रकाश चंद्र को उम्मीद की किरण दिखाई दी. उन का अनुमान सही साबित हुआ. सीसीटीवी कैमरे और सर्विलांस की मदद से पता चला कि पुष्पेंद्र की हत्या में उस की पत्नी फराह और उस के प्रेमी शोएब, निवासी 179 नई आबादी, केलानगर, मैरिस रोड का हाथ था.
श्रीप्रकाश चंद यादव ने महिला पुलिस की मदद से मृतक की पत्नी फराह और उस के प्रेमी शोएब को पूछताछ के लिए हिरासत में ले लिया. पुलिस पूछताछ में फराह ज्यादा देर तक नहीं टिक सकी और अपना अपराध स्वीकार कर लिया.
हत्या किस उद्देश्य से की गई, उस ने सब कुछ साफसाफ बता दिया. शोएब ने भी हत्या और लूट की कहानी बयान करते हुए अपने साथियों के नामपते बता दिए. पुलिस ने समय गंवाए बिना अरहम, निवासी मोहल्ला रंगरेजान मामूभांजा, थाना गांधीपार्क, अलीगढ़, दीपक चौधरी निवासी गांव आमरी, शिकोहाबाद, जिला फिरोजाबाद को गिरफ्तार कर लिया. पुलिस उस के एक अन्य साथी आशू को गिरफ्तार नहीं कर पाई.
पुलिस ने गिरफ्तार किए गए शोएब, अरहम और दीपक से लूटे गए 1 लाख 53 हजार रुपयों में से 42 हजार रुपए के अलावा एक 32 बोर की पिस्टल, 2 तमंचे, कारतूस, करिज्मा बाइक नंबर यूपी81ए के5766, बैग और चाबियां बरामद कर लीं.
पूछताछ में फराह ने हत्या के बारे में विस्तार से जो कुछ बताया, उस से पुष्पेंद्र की हत्या की कहानी कुछ इस तरह सामने आई.
फराह जब शोएब की बर्थडे पार्टी में गई थी, वहां शोएब से हुई बातों के बाद उस का खिंचाव शोएब की ओर होने लगा था. फोन पर दोनों के बीच घंटों बातें होने लगी थीं. इस के बाद दोनों की घर के बाहर मुलाकातें भी होने लगीं. इन मुलाकातों ने जब जिस्मानी संबंध का रूप ले लिया तो फराह पूरी तरह शोएब की होने की योजना बनाने लगी.
अब वह पुष्पेंद्र के प्यार को भूल जाना चाहती थी. लेकिन शोएब की वह तभी बन सकती थी, जब पुष्पेंद्र रास्ते से हट जाता. इस के लिए वह शोएब के साथ मिल कर पुष्पेंद्र को रास्ते से हटाने की योजना बनाने लगी.
पुष्पेंद्र पत्नी में आए बदलाव का जरा भी अंदाजा नहीं लगा सका. फराह की बेरुखी को उस ने बेटी के साथ व्यस्तता माना. उस ने फराह के सामने बेटी की देखरेख के लिए किसी आया को रखने का प्रस्ताव भी रखा, लेकिन उस ने मना कर दिया.
पुष्पेंद्र सुबह दुकान पर जाता था तो रात 9-10 बजे तक लौटता था. इस लंबे वक्त में फराह किस से मिलती है, कहां आतीजाती है? पुष्पेंद्र को भनक तक नहीं थी. जबकि खुद को वफा की देवी बताने वाली फराह अपने प्रेमी के साथ रंगरलियां ही नहीं मनाती थी, बल्कि उस की हत्या की योजना भी बना रही थी.
शोएब भी कम घाघ नहीं था. उस की नीयत पुष्पेंद्र के फ्लैट, बैंकों में जमा धन और फराह व उस की बेटी की लाखों की एफडी पर थी, जो सब मिला कर करोड़ों की रकम थी. फ्लैट फराह के ही नाम था, जिस पर वह गिद्धदृष्टि जमाए बैठा था. इसी के लिए उस ने फराह को अपने जाल में फंसाया था.
फराह के प्यार में अंधे पुष्पेंद्र को फराह की साजिश का आभास तक नहीं हुआ. जबकि वह अपने यार के साथ मिल कर उस की हत्या की योजना बना चुकी थी. पहले इन लोगों की योजना पुष्पेंद्र को दुर्घटना में मरवाने की थी. लेकिन इस में उस के बच जाने का डर था, इसलिए उसे गोली मारने का फैसला लिया गया.
शोएब ने अपने साथियों को एकत्र कर के लूट की योजना बना डाली. किसे लूटना है, उस ने अपने साथियों को यह भी बता दिया. दोस्तों को इस बात का जरा भी आभास नहीं था कि लूट के पीछे शोएब का असल मकसद क्या है.
लूट की तारीख तय हुई 27 अक्तूबर, 2016. लेकिन उस दिन ये लोग कामयाब नहीं हुए. इस के बाद 29 अक्तूबर को पांचों लोग केलानगर तक पुष्पेंद्र के पीछे लगे रहे. मौका मिलते ही उन्होंने उस की स्कूटी रुकवा ली और गन पौइंट पर उस से एक लाख 53 हजार रुपए का बैग छीन लिया.
पुष्पेंद्र ने कोई विरोध नहीं किया. करिज्मा मोटरसाइकिल पर पीछे बैठे शोएब ने पिस्तौल से 3 गोलियां पुष्पेंद्र के शरीर में उतार कर उसे हमेशाहमेशा के लिए शांत कर दिया. गाड़ी चला रहे आशू ने उस से तुरंत कहा कि जब उस ने चुपचाप रकम हमारे हवाले कर दी थी, तो तूने उस की हत्या क्यों की? शोएब चुप बैठा रहा. काम हो जाने के बाद शोएब ने इस की सूचना फराह को दे दी.
पकड़े जाने के बाद शोएब के साथियों को पता चला कि उस का असल मकसद हत्या करना था. पूछताछ के बाद पुलिस अधिकारियों ने प्रैस कौन्फ्रैंस कर के इस पूरी घटना का खुलासा किया. 23 नवंबर, 2016 को फराह, शोएब, अरहम व दीपक चौधरी को कोर्ट में पेश कर के जेल भेज दिया गया.
थाना क्वारसी इंसपेक्टर श्रीप्रकाश चंद्र यादव की भूमिका प्रशंसनीय रही, जिन्होंने लूट और हत्या के दूसरे ही दिन इस गहरी साजिश बताते हुए मृतक की पत्नी को अपने राडार पर ले लिया था. लेकिन ठोस सबूत न मिल पाने की वजह से उन्होंने फराह पर हाथ नहीं डाला था.
Writer- जीतेंद्र मोहन भटनागर
घसीटा ऐसे ही दिल मसोस कर रह जाता. उसे कहीं राहत मिलती तो महुआ के करीब पहुंच कर. एक वही थी, जिस का प्यार पा कर वह सबकुछ भूल जाता, इसलिए जब भी अपने घर से निकलता तो साइकिल की घंटी बजाता हुआ ही निकलता और महुआ के घर के सामने घंटी बजाने की रफ्तार तेज हो जाती.
एक दिन दूर से ही घंटी की आवाज सुन कर महुआ बाहरी दरवाजे पर
खड़ी हो गई और उस से बोली, ‘‘अरे, तुम से एक जरूरी काम है. तुम अंदर
आ जाओ.’’
महुआ उसे अपने कमरे में ले गई और पूछा, ‘‘क्या तुम मुझ से प्यार करते हो?’’
‘‘हां, बहुत ज्यादा… और तुम से ही शादी करना चाहता हूं, पर पता नहीं पिताजी और भैयाभाभी तैयार होंगे
या नहीं.’’
‘‘तुम ऐसा क्यों कह रहे हो?’’ जब महुआ ने पूछा, तो वह बोला, ‘‘अरे महुआ, मेरी भाभी बहुत तेज हैं. घर में उन की ही चलती है. मुझ से तो कई बार कह चुकी है कि तुम कहीं और न मुंह मार देना देवरजी, मैं तुम्हारी शादी अपनी छोटी बहन से ही करवाऊंगी, लेकिन मुझे उन की छोटी बहन बिलकुल पसंद नहीं है,’’ कहतेकहते जब घसीटा चुप हुआ, तो महुआ बोली, ‘‘और इधर मेरा
बाप मेरी शादी किसी से भी नहीं होने देगा, जबकि मैं तुम को ही अपना मान चुकी हूं.’’
‘‘तो फिर…?’’ घसीटा ने चिंता जताई.
‘‘हमें हर हाल में भाग कर शादी करनी होगी. बोलो, इस के लिए तुम तैयार हो?’’
घसीटा सोच में पड़ गया. कुछ देर बाद वह बोला, ‘‘मान लो, हम भाग भी जाते हैं, तो जाएंगे कहां?’’
‘‘इतनी बड़ी दुनिया है, कहीं भी. फिर मैं घरों का काम कर के कमाऊंगी और तुम फल बेच कर कमाई करना. बस, यह सोच लो कि हमें इस दलदल से निकलना है,’’ महुआ की बात में दम था.
‘‘हमें इस गंदी बस्ती से दूर जाना है,’’ इतना कह कर उस ने घसीटा को अपनी बांहों में भर लिया और उसे प्यार करने लगी.
घसीटा ने भी उसे अपने प्यार से भर दिया.
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ऐसे ही घसीटा का महुआ से मिलनाजुलना होने लगा. हर बार महुआ का खाली घर ही काम आया.
अपने घर के करीब स्थायी रूप से घसीटा के आ कर बस जाने पर सब से ज्यादा कोई खुश था, तो वह थी महुआ. पर घसीटा के घर जा कर उस से मिल पाना इतना आसान नहीं था.
फिर उस की भाभी के बारे में सुन कर तो वह और भी नहीं जाना
चाहती थी, इसलिए महुआ ने हिम्मत दिखाते हुए खुद आगे बढ़ कर यह रास्ता चुना था.
उस दलित बस्ती में अपनेअपने हिसाब से रेलवे ट्रैक के पास की जमीन पर दलितों ने झुग्गीझोंपडि़यां बना कर ऐसा तगड़ा कब्जा कर रखा था कि उन्हें अब हटाना मुश्किल था.
सब के राशनकार्ड बने हुए थे, वोटर आईकार्ड के साथसाथ अब तो आधारकार्ड भी बन गए थे. तकरीबन सभी झुग्गियों की छतों पर डिश एंटीना लगा दिख जाता था. बहुतों के पास मोबाइल फोन भी थे.
लाइन से बनी झुग्गियों से बाहर आ कर गिरने वाले गंदे पानी के लिए दूर तक एक पतली नाली बनी हुई थी, जो आगे जा कर रेलवे ट्रैक के बराबर बहने वाले गंदे, बदबूदार बहते नाले में मिल जाती थी.
नाले के सामने ही रेलवे की खाली, प्लास्टिक की पन्नियों वाले गंदे कूड़े से पटी हुई जमीन और उसी जमीन की उठान पर रेलवे का यह एक बना ट्रैक था, जहां से रोज ही कई रेलगाडि़यां गुजरा करती थीं.
पहले तो भोर होते ही बस्ती के सभी आदमीऔरत, लड़केलड़कियां, बूढ़ेबच्चे सभी उस रेलवे ट्रैक पर शौच के लिए बैठ जाते थे, पर इधर जब से दलित बस्ती के लिए शौचालय बन गए, तब से उस ट्रैक का इस्तेमाल बंद तो नहीं हुआ, पर कम जरूर हो गया था.
चमकी को फंसा लाने के बाद से जब बांके पीछे खुले हिस्से और आगे बरामदे के साथ 2 कमरों वाली इस झुग्गी में आया था, तब सबकुछ कच्चा था और छत पर खपरैल था.
बाद में रेलवे ट्रैक के नजदीक होने का फायदा उठाते हुए और आसपास बनते फ्लैटों से चुराई गई सीमेंट और ईंटों से उस ने धीरेधीरे अपनी पक्की झुग्गी बना ली.
शराब पीने की बुरी लत के साथसाथ काम करने वाली औरतों पर हमेशा बांके की बुरी नीयत रहती थी और वह हमेशा उन्हें किसी भी तरह फंसाने की कोशिश में लगा रहता था.
आजकल उस की नजर बिंदा पर थी. गरीब बिंदा का पति मर चुका था और एक साल के बच्चे को ले कर वह काम पर आती थी.
चूंकि बांके के चरित्र से बद्री अच्छी तरह वाकिफ था, इसलिए उस ने नई लेबर होने के चलते बिंदा को अपने साथ लगा लिया था, जिस के चलते बद्री से लड़झगड़ कर वह घर चला आया था.
आते समय उस ने रास्ते में पड़ने वाले शराब के ठेके पर बैठ कर खूब शराब पी…
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चूंकि बिंदा के प्रति बहुत गंदे खयाल उस के दिमाग में उमड़घुमड़ रहे थे और शराब पूरी तरह असर कर चुकी थी, इसलिए जब महुआ उस के सामने पड़ी तो उसे देख कर बांके ने अपने होशोहवास खो दिए.
यह तो अच्छा हुआ, जो श्याम सुंदर उसे बुलाने आ गया, वरना पता नहीं महुआ का क्या होता.
उस के जाने के बाद महुआ बहुत देर तक सोचविचार में खोई रही. क्या अपनी इज्जत गंवाने के बाद वह भी फिरोजा की तरह खुदकुशी कर लेती या फिर पिता को मार डालती?
स्टार प्लस (Star Plus) का सीरियल इमली (Imlie) में इन दिनों हाईवोल्टेज ड्रामा चल रहा है. शो में अब तक आपने देखा कि कॉलेज में इमली ने डिबेट जीत लिया है. और वह कॉलेज से आने के लिए आदित्य का वेट कर रही है तो उधर मालिनी आदित्य को इंगेज कर लेती है. तो वहीं रास्ते में इमली एक लड़के से लिफ्ट मांगती है. और वह लड़का रास्ते में इमली के साथ मिसबिहेव करता है. इमली उस लड़के का बैंड बजा देती है. वह लड़का डरकर भाग जाता है. शो के अपकमिंग एपिसोड में खूब धमाल होने वाला है. आइए बताते हैं शो के आगे की कहानी.
शो में दिखाया जा रहा है कि मालिनी आदित्य को पाने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार है. ऐसे में वह हर समय अपने होने वाले बच्चे की दुहाई देकर आदित्य के करीब जाने की कोशिश कर रही है. दरअसल, आदित्य ने इमली को डेट पर ले जाने का प्लान बनाया था. तो वहीं मालिनी ने दोनों की डेट बर्बाद करने का सोच लिया.
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शो में दिखाया गया कि उसने अपनी मां से मदद मांगी कि वह इमली का डेट कैसे बर्बाद करे. दोनों मां-बेटी ने उसी समय घर पर बच्चे के लिए पूजा रख ली और पूरे त्रिपाठी परिवार को बुला लेते हैं. तो आदित्य, इमली लंच डेट पर ले जाने की बजाय मालिनी के घर पूजा में चला जाता है.
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शो में ये भी दिखाया जाएगा कि मालिनी और अनु जब इस बारे में बात कर रहे होंगे तो इमली दोनों की बातें सुन लेगी. उसे पता चल जाएगा कि ये मालिनी का प्लान है कि वह और आदित्य लॉन्च डेट पर न जाए.
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शो के अपकमिंग एपिसोड में ये भी दिखाया जाएगा कि मालिनी की मां अनु इमली को नीचा दिखाने के लिए एक नई चाल चलेगी अनु इमली की मां मीठी को अपने घर में नौकरानी रख लेगी. वह मीठी से मेहमानों को नाश्ता परोसने के लिए कहेगी. अब शो में ये देखना होगा कि इमली अपनी मां को इस हालत में देखकर क्या कदम उठाएगी.
सुधांशु पांडे (Sudhanshu Pandey) और रूपाली गांगुली (Rupali Ganguly) स्टारर सीरियल अनुपमा (Anupamaa) में इन दिनों हाईवोल्टेज ड्रामा चल रहा है. शो में अब तक आपने देखा कि अनुज भूमि पूजन के इनविटेशन कार्ड पर अपने नाम के साथ अनुपमा का भी नाम लिखवाता है. ये देखकर अनुपमा बहुत खुश होती है तो वहीं बा और वनराज हंगामा करते हैं. पर बापू जी और बाकी घरवाले अनुपमा का साथ देते हैं. बा मना करती है कि कोई भी सदस्य भूमि पूजन में नहीं जाएगा. लेकिन बापू जी और किंजल, बा के सामने ही कह देते हैं कि वो दोनों, पाखी और समर जरूर जाएंगे. शो के अपकमिंग एपिसोड में बड़ा ट्विस्ट आने वाला है. आइए बताते हैं, शो के आगे की कहानी.
शो के आने वाले एपिसोड में आप देखेंगे कि अनुपमा और अनुज कपाड़िया भूमि पूजन के दौरान एक साथ बैठे हैं. और हवन कर रहे हैं तभी वनराज-काव्या वहां पहुंच जाएंगे. अनुपमा उन्हें देखकर हैरान हो जाएगी. वनराज फिर से अनुपमा के साथ बिताए हुए पल को याद करने लगेगा और उसका पारा चढ़ जाएगा.
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शो में आप ये भी देखेंगे कि भूमि पूजन के दौरान अनुपमा और अनुज अपने हाथ की छाप एक कागज में लगाते हैं. और वह कागज वनराज के शर्ट पर लग जाता है. वनराज के शर्ट पर उन दोनों के हाथ के निशान छप जाते हैं.
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अनुपमा और अनुज मीडिया को इंटरव्यू देते हैं. इस दौरान काव्या वनराज को समझाती है कि वह अनुज कपाड़िया से दुश्मनी न करें. क्योंकि उसका ही नुकसान होगा. वनराज कहता है उसे फर्क नहीं पड़ता, वह अनुज कपाड़िया के एहसान के नीचे नहीं दबना चाहता है.
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तो दूसरी तरफ अनुज वनराज का प्रपोजल स्वीकार कर लेता है. वनराज घरवालों को बताएगा कि अनुज कपाड़िया ने उसका प्रपोजल भी स्वीकार कर लिया है. वह ये भी कहेगा है कि उसकी भीख मुझे नहीं चाहिए. वह अनुज के पास जाएगा और बदतमीजी करेगा. अनुज कहेगा कि ये प्रपोजल उसने नहीं बल्कि उसकी टीम ने वनराज को भेजा है. वनराज अनुज कपाड़िया के लेटर को फाड़कर हवन यज्ञ में फेक देगा.
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मनरेगा कर्मियों को दशहरा और दीपावली के पहले बड़ा तोहफा दिया है. उन्होंने मनरेगा कर्मियों के मानदेय वृद्धि की इसी माह से देने की घोषणा की है.
उन्होंने मनरेगा कर्मियों के लिए उत्तर प्रदेश राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन की तरह एचआर पालिसी एक माह के अंदर लाने की घोषणा की है, जिसमें आकष्मिक अवकाश 24 दिन और चिकित्सा अवकाश 12 दिन मिलेगा. यह बातें उन्होंने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी सम्मेलन के दौरान कहीं.
कार्यक्रम का आयोजन डिफेंस एक्सपो मैदान वृंदावन लखनऊ में किया गया था. सीएम योगी ने मनरेगा कर्मियों के जॉब चार्ट में ग्राम्य विकास विभाग के कई अन्य कार्यों को भी जोड़ने का ऐलान किया है. साथ ही उन्होंने कहा कि रोजगार सेवक की सेवा समाप्ति के पूर्व उपायुक्त मनरेगा की सहमति आवश्यक होगी. यानि कोई जबरदस्ती नहीं हटा पाएगा.
उन्होंने कहा कि ग्राम रोजगार सेवक यदि नवनिर्वाचित ग्राम प्रधान के निकटतम संबंधी या परिवारीजन हैं, तो उन्हें निकटतम रिक्त ग्राम पंचायत में तैनात किया जाएगा. उनकी सेवाएं समाप्त नहीं होंगी. इसी तरह उन्होंने महिला ग्राम रोजगार सेविका के विवाह के बाद उन्हें नए जिले में तैनात किया जाएगा. इसके अलावा सभी महिला संविदा कार्मिकों 180 दिन का मातृत्व अवकाश लागू कर दिया गया है.
सीएम योगी ने उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले राज्य स्तर पर अपर आयुक्त मनरेगा योगेश कुमार आदि, विकास खंड के अधिकारियों, कई मनरेगा कर्मियों को प्रशस्ति पत्र देकर पुरस्कृत भी किया. इस दौरान ग्राम्य विकास एवं समग्र ग्राम विकास विभाग के मंत्री राजेंद्र प्रताप सिंह मोती सिंह और राज्य मंत्री आनंद स्वरूप शुक्ल ने भी कार्यक्रम को संबोधित किया.
इन मनरेगा कर्मियों का बढ़ा मानदेय
सीएम योगी ने मनरेगा कर्मियों को अब ग्राम रोजगार सेवकों को 10 हजार, तकनीकी सहायकों को 15,656, कंप्यूटर आपरेटरों को 15,156, अतिरिक्त कार्यक्रम अधिकारी को 34,140, लेखा सहायक को 15,156, आपरेशन सहायक को 18,320, हेल्पलाइन एक्जीक्यूटिव को 18,320, चतुर्थ श्रेणी कर्मी को नौ हजार, ब्लॉक सोशल आडिट कोआर्डिनेटर को 14,100, डिस्ट्रिक्ट सोशल आडिट कोआर्डिनेटर को 19 हजार नौ सौ रुपए का मानदेय अक्तूबर माह से देने की घोषणा की है.
भ्रष्टाचार संज्ञान में आए, तो करें कठोरता पूर्वक कार्यवाही: सीएम योगी
उन्होंने कहा कि प्रदेश सरकार का यह संकल्प है कि भ्रष्टाचार मुक्त पूणर्त: पारदर्शी ढंग से लाभार्थियों को योजनाओं का लाभ उपलब्ध कराया जाए और जहां कहीं भी भ्रष्टाचार के प्रकरण संज्ञान में आएं, उसमें कठोरता पूर्वक कार्यवाही भी की जाए. उन्होंने कहा कि विभाग को इस वर्ष कम से कम 20 लाख परिवारों को सौ दिन का रोजगार देते हुए 13 हजार करोड़ का कार्य कराना चाहिए. महिला मेटों का समयबद्ध ढंग से प्रशिक्षण होने पर ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाली महिलाओं के स्वावलंबन में बड़ी भूमिका हो सकती है.
225 करोड़ रुपए स्वीकृत कर दिया ग्राम रोजगार सेवकों को मानदेय
उन्होंने कहा कि मुझे याद है, जब ग्राम रोजगार सेवकों को कई-कई वर्षों से मानदेय का भुगतान नहीं हो पाता था. यह बात अकसर हमारे सामने आती थी. हमने कहा कि यह सभी लोग शासन से अल्प मानदेय पाते हैं और इसे भी हम कई-कई वर्षों तक न दें, तो अन्याय है. तत्काल हमने शासन से 225 करोड़ रुपए स्वीकृत किए और विभाग ने समयबद्ध ढंग से पहुंचाने का कार्य किया. इसी प्रकार से अप्रैल 2020 में मनरेगा संविदा कर्मियों का भुगतान राज्य स्तरीय केंद्रीयकृत पूल के माध्यम से जो पहले नहीं हो पाता था, उसे अब सीधे उनके खाते में भेजने की व्यवस्था कर दी गई है.
सौजन्य- मनोहर कहानियां
लेखक- शाहनवाज
यह कहते हुए प्रवीण ने भी एक एक कर सब के नंबर पर फोन किया. जब उन का फोन भी किसी ने नहीं उठाया तो बिना देरी किए प्रवीण ने अपनी गाड़ी निकाली, उस से तुरंत ही अभिषेक के घर के लिए निकल गए और रास्ते में उन्होंने अभिषेक को फोन किया.
प्रवीण ने अभिषेक से कहा, ‘‘सुन अभिषेक, मैं अपने घर से निकल गया हूं वहां आने के लिए. तू घबरा मत. मैं 15 मिनट में पहुंच जाऊंगा. तब तक मैं कुछ जानकारों को फोन कर के वहां पहुंचने के लिए कहता हूं.’’
प्रवीण ने ये कह कर फोन काट दिया और अपनी कार में बैठेबैठे उन्होंने उसी इलाके में अपने जानकारों को फोन कर जल्द से जल्द अभिषेक के घर पर पहुंचने को कहा.
उधर देखते ही देखते मलिक परिवार के घर के आगे लोगों की भीड़ जुटनी शुरू हो गई थी. अभिषेक के साथ मिल कर कुछ लोग घर का दरवाजा तोड़ने में लगे थे, जोकि आसान काम बिलकुल भी नहीं था.
अभिषेक के घर से लग कर साथ वाले मकान से तमाशा देख रहे लोगों ने उसे अपनी छत से उस के घर में प्रवेश करने के लिए कहा तो अभिषेक भाग कर उन की छत पर
जा पहुंचा और छत फांद कर वह अपने घर में जा घुसा.
घर में घुसते ही उस ने सब से पहले नीचे आ कर मकान का मेन गेट खोला और एकएक कर बाकी लोग उस के घर में आ घुसे. ग्राउंड फ्लोर में जिस कमरे में अभिषेक ने आखिरी बार अपने पापा को देखा था उस के नीचे से खून बह रहा था. ये देख कर अभिषेक की आंखों से आंसू बहने शुरू हो गए और बाकी लोग दंग रह गए.
सब लोगों ने मिल कर कमरे का दरवाजा तोड़ा और अंदर प्रदीप मलिक उर्फ बबलू पहलवान की लाश सोफे पर बैठी हालत में मिली. यह देख कर अभिषेक खुद को रोक नहीं पाया और वह जोरजोर से ‘पापा…पापा’ कहते हुए चिल्लाने लगा.
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इतने में उस के मामा प्रवीण आ पहुंचे और वह अपने बहनोई प्रदीप की लाश देख कर टूट गए. लेकिन हिम्मत जुटाते हुए उन्होंने अभिषेक को ले कर ऊपर कमरे की ओर जाने को कहा, जहां घर के अन्य सदस्य मौजूद हो सकते थे. अभिषेक ने भी अचानक से अपने आंसू पोंछे और ‘नेहा…नेहा’ चीखतेचिल्लाते हुए वह घर की पहली मंजिल पर बने कमरे में जा पहुंचा.
यह कमरा भी बाहर से बंद था तो सब ने मिल कर दरवाजा तोड़ा और कमरे में घुसते के साथ अभिषेक और प्रवीण समेत बाकी सभी ने जो देखा उसे देख कर सभी के पैरों के नीचे से जैसे जमीन खिसक गई.
पहली मंजिल के कमरे का दरवाजा टूटा तो अभिषेक ने सब से पहले अपनी मां संतोष देवी, उस के बाद अपनी नानी रोशनी देवी और अंत में अपनी बहन नेहा की लाश देखी. यह देख कर अभिषेक पागलों की तरह रोनेपीटने लगा. प्रवीण समेत मकान में मौजूद कुछ लोग अभिषेक को संभालने में लगे थे. अभिषेक का पूरा परिवार ही उजड़ गया था.
वक्त बरबाद न करते हुए प्रवीण ने भीड़ से हटते हुए बाहर निकल कर पुलिस को फोन कर इस घटना की सूचना दी और पलक झपकते ही रोहतक के थाना शिवाजी कालोनी के थानाप्रभारी सुरेश कुमार टीम के साथ वहां पहुंच गए.
पुलिस की टीम के आते ही सब से पहले सभी लोगों को बाहर निकाला गया ताकि वहां से कुछ सबूत जुटाए जा सकें. घटनास्थल की जांच की गई. एकएक कर मृतकों के शरीर को लपेटते हुए बाहर निकाला गया और एक टीम ने इस हत्याकांड में एकमात्र बचे शख्स, अभिषेक का बयान लिया. शुरुआती पूछताछ में अभिषेक ने पुलिस को दिए अपने बयान में बताया कि प्रौपर्टी डीलर होने की वजह से उस के पिता की लोगों से दुश्मनी थी. उस ने एकदो लोगों के नाम भी पुलिस टीम को दिए.
जानकारी मिलते ही शिवाजी कालोनी पुलिस थाने के थानाप्रभारी एसआई सुरेश कुमार ने मामले की जांच तुरंत शुरू कर दी. सभी की हत्या गोली मार कर की गई थी. घटनास्थल की काररवाई पूरी कर लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी. टैक्निकल टीम की मदद ले कर घर के सभी लोगों की लोकेशन का पता लगाया गया और लाश की पोस्टमार्टम रिपोर्ट का इंतजार किया गया.
इस केस के जांच अधिकारी इंसपेक्टर बलवंत सिंह ने बारीकी से इस केस के संबंधित हर व्यक्ति की आखिरी लोकेशन का पता लगाया. लेकिन अभिषेक की लोकेशन और उस के द्वारा दिए गए बयान आपस में मेल नहीं खा रहे थे.
इस बिंदु को संज्ञान में लेते हुए इंसपेक्टर बलवंत सिंह ने फिर से अभिषेक से पूछताछ की और अभिषेक ने अपना बयान बदल दिया. थानाप्रभारी को अभिषेक पर शक गहराता गया. उसी दौरान जब मृतकों की पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ गई तो अभिषेक पर शक की सुई और गहराती चली गई.
पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार पीडि़तों को गोली मारने का टाइम उस समय का था, जब अभिषेक अपने घर पर ही था. अंत में जब शक की सभी सुई अभिषेक पर आ रुकीं तो अभिषेक को हिरासत में लेते हुए इंसपेक्टर बलवंत सिंह से कड़ाई से पूछताछ की.
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इस पूछताछ के दौरान भी अभिषेक ने पुलिस टीम को गुमराह करने का प्रयास किया लेकिन उस का यह प्रयास व्यर्थ गया. इंसपेक्टर बलवंत सिंह और थानाप्रभारी रमेश कुमार ने अभिषेक को सब कुछ सचसच बताने को कहा.
उन्होंने अभिषेक को बताया कि इस हत्याकांड के सारे सबूत उसी की ओर इशारा कर रहे हैं, बेहतर है की वह अब सच बता दे.
अभिषेक ने भी अंत में हार मान ली और जांच अधिकारी बलवंत सिंह को बताया कि उस ने अपने घर के 4 जनों को गोली मारी थी. इस चौहरे हत्याकांड की जो वजह सामने आई, वह इस प्रकार निकली.
बात 3 साल पहले की है. अभिषेक ने जब 12वीं क्लास पास की तो उस के पिता प्रदीप मलिक ने उसे कोई भी एक स्किल कोर्स करने की सलाह दी. वैसे उन के पास पैसों की कभी कोई किल्लत नहीं थी. फिर भी प्रदीप रोहतक में प्रौपर्टी डीलिंग करते थे. वह चाहते थे कि अभिषेक भी खाली न बैठे. इसलिए उन्होंने उसे कुछ भी करने की छूट दे दी थी. तब अभिषेक ने जानबूझ कर रोहतक से दूर दिल्ली में स्थित एक इंस्टीट्यूट में एयरप्लेन कैबिन क्रू का कोर्स करने की जिद की.
प्रदीप मलिक ने अपने इकलौते बेटे की इच्छा का ध्यान रखते हुए उसे कोर्स करने के लिए दिल्ली जाने की इजाजत दे दी. तब अभिषेक ने दिल्ली जा कर एक इंस्टीट्यूट में दाखिला ले लिया और उस के एक हफ्ते बाद ही उस की क्लासेज शुरू हो गईं. अभिषेक को उस दौरान पहली बार आजादी महसूस हुई थी. नए लोगों से मिलना उन से बातें करना उसे बेहद अच्छा लगने लगा.
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इंस्टीट्यूट में उस के बैच में सिर्फ 10-12 स्टूडेंट्स ही थे. सब से उस की अच्छी जानपहचान हो गई थी, लेकिन उन में से कार्तिक उस का करीबी दोस्त बन गया था. वह उत्तराखंड का रहने वाला था और दिल्ली में अपने रिश्तेदार के साथ रहता था.
अगले भाग में पढ़ें- खुद को लड़की मानता था अभिषेक
Writer- डा. भारत खुशालानी
हवाई जहाज दुर्घटना- भाग 1: आकृति का मन नकारात्मकता से क्यों घिर गयाआकृति ने अपना ध्यान विमान को नियंत्रित रखने पर केंद्रित किया और रनवे पर लगी बत्तियों को सामने के शीशे के बीचोंबीच रखने का प्रयास किया. उस ने ऊंचाईसूचक यंत्र की तरफ जल्दी से नजर डाली. यंत्र की सूई 500 फुट से गिर कर 400 फुट हुई, फिर 300 फुट, फिर 200 फुट और फिर 100 फुट.
100 फुट के बाद आकृति ने विमान को रनवे की रोशनियों के सहारे बिलकुल बीच में लाने का प्रयास किया. यंत्र की सूई 50 फुट तक आई, फिर 25, फिर 10 और फिर विमान तीव्रता से रनवे से आ कर मिला. एक गतिरोधक के ऊपर से गुजरने वाली वेदना के साथ विमान ठोस धरती से टकराया और रनवे पर दौड़ने लगा.
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विमान की उतरन बदसूरत थी. आकृति ने जोर से ब्रेक दबाए. उस ने तेज गति से और झटके से विमान को मोड़ा, ताकि विमान के पंख अपने निर्धारित रनवे की रेखाओं के अंदर आ जाएं. अगर उतरने के बाद भी विमान को काबू में न रखा गया तो वह आसपास के रनवे पर जा कर दूसरी चीजों से टकरा सकता था.
विमान सुरक्षित तो नीचे उतर गया था, लेकिन उतरने के बाद जोर से ब्रेक लगने और झटके से मुड़ने के कारण वह रनवे पर अस्थिर रूप से इधरउधर दौड़ रहा था.
आकृति ने अपना हौसला नहीं खोया. इंजन में आग लग जाने के बावजूद भी वह विमान को सुरक्षित तरीके से नीचे ले आने में कामयाब हो पाई थी, इस बात से उस का आत्मविश्वास अब काफी हद तक बढ़ गया था. उस ने जोत को कस कर पकड़ लिया और उसे एकदम सीधे मजबूती से पकड़ कर रखा. इस से विमान की लहरदार चाल पर लगाम लग गई और विमान धीरेधीरे कर के रनवे के बीच की रेखा में सीधा आ गया.
जोर से ब्रेक लगाने के कारण विमान ने रनवे पर अपनी निश्चित सीमा का उल्लंघन नहीं किया और रनवे खत्म होने से पहले ही अपनी दौड़ को विराम दिया.
जब विमान पूरी तरह से स्थिर हो कर खड़ा हो गया तो आकृति ने अपने हाथ जोत पर से हटाए, अपने माथे को जोर से रगड़ा और दो पल के लिए अपना सिर नीचे की ओर झुकाया.
आज की अविश्वसनीय घटना आकृति ने दूसरों से होती हुई सुनी थी, लेकिन जिंदगी में कभी भी यह नहीं सोचा था कि किसी दिन उस के साथ भी ऐसा होगा.
विमान के बाहर अग्निशामक दस्ते दौड़ते हुए विमान की तरफ आ रहे थे. मई की भीषण गरमी में बदन को झुलसाती इस विमान में लगी आग. विमान के अंदर कोरोना से बचने के लिए मास्क काफी नहीं था, यात्रियों को ऊपर से गिरा औक्सीजन का मास्क भी पहनना पड़ा था.
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विमान के इंजन में आग लगते ही औक्सीजन के मास्क नीचे आ गए थे और एयरहोस्टेस ने यात्रियों की मदद की थी औक्सीजन मास्क पहनने में, हालांकि यात्रियों से थोड़ा सा दूर रह कर. जब एक के ऊपर एक आपदाएं आती हैं, तो उन सब से एकसाथ निबटने के लिए नए आयामों को ईजाद करना पड़ता है.
यात्रियों ने विमान के जमीन पर उतरते ही एक नए जीवन को अपने भीतर जाते हुए महसूस किया. विमान के पूरी तरह से स्थिर हो जाने के बाद भी तब तक खतरा बना हुआ था, जब तक सभी यात्रियों को सुरक्षित बाहर नहीं निकाल लिया जाता. एक तरफ आग को काबू में लाने के लिए पानी की बौछारें बरसाई जा रही थीं, तो वहीं दूसरी तरफ यात्रियों को सुरक्षित नीचे उतारने के लिए सीढि़यां पीछे के दरवाजे पर लगाई जा रही थीं.
आकृति अपना सिर नीचे झुकाए बैठी थी. उस की आंखों में आंसू आ गए थे. वह अपनेआप को ही इस विपदा का कारण सम झने लगी थी, ‘मेरी ही गलत सोच थी यह, जिस ने ऐसी परिस्थितियों को पैदा किया, जिस से विमान के इंजन में आग लग गई. अगर मेरी सोच सकारात्मक होती तो विमान के इंजन में आग कभी नहीं लगती,’ यही सोच आकृति को खाए जा रही थी. वह यह भूल गई कि अगर उस की जगह कोई और होता तो शायद विमान उसी प्रकार की दुर्घटना का शिकार हो गया होता, जैसे 2 दिन पहले कराची में हुआ था.