नई रोशनी की एक किरण- भाग 1: सबा की जिंदगी क्यों गुनाह बनकर रह गई थी

बेटियां जिस घर में जाती हैं खुशी और सुकून की रोशनी फैला देती हैं. पर पता नहीं, बेटी के पैदा होने पर लोग गम क्यों मनाते हैं. सबा थकीहारी शाम को घर पहुंची. अम्मी नमाज पढ़ रही थीं. नमाज खत्म कर उन्होंने प्यार से बेटी के सलाम का जवाब दिया. उस ने थकान एक मुसकान में लपेट मां की खैरियत पूछी. फिर वह उठ कर किचन में गई जहां उस की भाभी रीमा खाना बना रही थीं. सबा अपने लिए चाय बनाने लगी. सुबह का पूरा काम कर के वह स्कूल जाती थी. बस, शाम के खाने की जिम्मेदारी भाभी की थी, वह भी उन्हें भारी पड़ती थी. जब सबा ने चाय का पहला घूंट लिया तो उसे सुकून सा महसूस हुआ.

‘‘सबा आपी, गुलशन खाला आई थीं, आप के लिए एक रिश्ता बताया है. अम्मी ने ‘हां’ कही है, परसों वे लोग आएंगे,’’ भाभी ने खनकते हुए लहजे में उसे बताया. सबा का गला अंदर तक कड़वा हो गया. आंखों में नमकीन पानी उतर आया. भाभी अपने अंदाज में बोले जा रही थीं, ‘‘लड़के का खुद का जनरल स्टोर है, देखने में ठीकठाक है पर ज्यादा पढ़ालिखा नहीं है. स्टोर से काफी अच्छी कमाई हो जाती है, आप के लिए बहुत अच्छा है.’’

सबा को लगा वह तनहा तपते रेगिस्तान में खड़ी है. दिल ने चाहा, अपनी डिगरी को पुरजेपुरजे कर के जला दे. भाभी ने मुड़ कर उस के धुआं हुए चेहरे को देखा और समझाने लगीं, ‘‘सबा आपी, देखें, आदमी का पढ़ालिखा होना ज्यादा जरूरी नहीं है. बस, कमाऊ और दुनियादारी को समझने वाला होना चाहिए.’’

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सबा ने दुख से रीमा को देखा. रीमा एक कम पढ़ी, नासमझ लड़की थी. वह आटेसाटे की शादी (लड़की दे कर लड़की ब्याहना) में सबा की भाभी बन कर आ गई थी. सबा की छोटी बहन लुबना की शादी रीमा के भाई आजाद से हुई थी. आज वही रीमा कितनी आसानी से सबा की शादी के बारे में सबकुछ कह रही हैं.

अब्बा ने एक के बाद एक लड़कियां होने का इलजाम भी अम्मी पर लगाया, हफ्तों बेटियों की सूरत नहीं देखी. वह तो अच्छा हुआ तीसरी बार बेटा हो गया, तो अम्मी की हैसियत का ग्राफ कुछ ऊंचा हो गया और अब्बा भी कुछ नरम पड़े. बेटियों का भार कम करने की खातिर बचपन में ही भाई की शादी मामू की बेटी रीमा से और छोटी बहन लुबना की शादी रीमा के भाई आजाद से तय कर दी. आजाद सबा से उम्र में छोटा था इसलिए लुबना की बात तय कर दी. आज पहली बार उसे लड़की होने की बेबसी का एहसास हुआ.

‘‘रीमा, तुम क्या जानो इल्म कैसी दौलत है? कैसी रोशनी है, जो इंसान को जीने का सलीका सिखाती है? वहीं यह डिगरी मर्दऔरत के बीच ऐसे फासले भी पैदा कर देती है कि औरत की सारी उम्र इन फासलों को पाटने में कट जाती है.’’

सबा का कतई दिल न चाह रहा था कि एक बार फिर उसे शोपीस की तरह लड़के वालों को दिखाया जाए पर अम्मी की मिन्नत और बेबसी के आगे वह मजबूर हो गई. वे कहने लगीं, ‘‘सबा, मेरी खातिर मान जाओ. मुझे पूरी उम्मीद है कि वे लोग तुम्हें जरूर पसंद करेंगे.’’

उस ने दुखी हो सोचा, ‘उस की ख्वाहिश व पसंद का किसी को एहसास नहीं. वह एमएससी पास है और एक अच्छे प्राइवेट स्कूल में नौकरी करती है फिर भी पसंद लड़का ही करेगा,’ उस ने उलझ कर कहा, ‘‘अम्मी, कितने लोग तो आ कर रिजैक्ट कर गए हैं, किसी को सांवले रंग पर एतराज, किसी को उम्र ज्यादा लगी, किसी को पढ़ालिखा होना और किसी को नौकरी करना नागवार गुजरा. अब फिर वही नाटक.’’

अम्मी रो पड़ीं, ‘‘बेटी, मैं बहुत शर्मिंदा हूं. तुम्हारी शादी मुझे सब से पहले करनी थी पर तुम हमारी मजबूरी और हालात की भेंट चढ़ गईं.’’

सबा यह नौकरी करीब 8 साल से कर रही थी, जब वह बीएससी फाइनल में थी तो अब्बा की एक ऐक्सिडैंट में टांग टूट गई, नौकरी प्राइवेट कंपनी में थी. बहुत दिनों के इलाज के बाद लकड़ी के सहारे चलने लगे. इस अरसे में नौकरी खत्म हो गई.

कंपनी से मिला पैसा कुछ इलाज में खर्च हुआ, कुछ घर में. अब आमदनी का कोई जरिया न था. लुबना और छोटा भाई जोहेब अभी पढ़ रहे थे. उस ने बीएससी पास करते ही नौकरी की तलाश शुरू कर दी. अच्छी डिवीजन होने के कारण उसे इसी स्कूल में प्राइमरी सैक्शन में नौकरी मिल गई. उस ने नाइट क्लासेस से एमएससी और बीएड पूरा किया और फिर सेकेंडरी सैक्शन में प्रमोट हो गई. अब अब्बा उसे बेहद प्यार करते. वही तो घर की गाड़ी खींच रही थी.

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शाम को गहरे रंगों के रेशमी कपड़ों में लड़के की अम्मी और 2 बहनें आईं. उन लोगों ने बताया कि लड़के, नईम की ख्वाहिश है कि लड़की पढ़ीलिखी हो, इसलिए वे लोग सबा को देखने आए हैं.

लड़के की अम्मी ने हाथों में ढेर सी चमकती चूडि़यां पहन रखी थीं. खनखनाते हुए वे बोलीं, ‘‘हमारे बेटे की डिमांड पढ़ीलिखी लड़की है, इसलिए हमें तो आप की बेटी पसंद है.’’

अम्मी ने शादी में देर न की क्योंकि जोहेब की बहुत अच्छी नौकरी लगे 2 साल हो चुके थे. काफी कुछ तो उन्होंने दहेज में देने को बना रखा था. कुछ और तैयारी हुई और सबा दुलहन बन कर नईम के घर पहुंच गई.

दो कदम तन्हा- भाग 4: अंजलि ने क्यों किया डा. दास का विश्वास

Writer- डा. पी. के. सिंह 

अंजलि चली गई. डा. दास बुत बने बहुत देर तक उसे जाते देखते रहे. ऐसे ही एक दिन वह चली गई थी…बिना किसी आहट, बिना दस्तक दिए.

डा. दास गरीब परिवार से थे. इसलिए एम.बी.बी.एस. पास कर के हाउसजाब खत्म होते ही उन्हें तुरंत नौकरी की जरूरत थी. वह डा. दामोदर के अधीन काम कर रहे थे और टर्म समाप्त होने को था कि उसी समय उन के सीनियर की कोशिश से उन्हें इंगलैंड जाने का मौका मिला.

पटना कालिज के टेनिस लान की बगल में दोनों घास पर बैठे थे. डा. दास ने अंजलि को बताया कि अगले हफ्ते इंगलैंड जा रहा हूं. सभी कागजी काररवाई पूरी हो चुकी है. एम.आर.सी.पी. करते ही तुरंत वापस लौटेंगे. उम्मीद है वापस लौटने पर मेडिकल कालिज में नौकरी मिल जाएगी और नौकरी मिलते ही…’’

अंजलि ने केवल इतना ही कहा था कि जल्दी लौटना. डा. दास ने वादा किया था कि जिस दिन एम.आर.सी.पी. की डिगरी मिलेगी उस के दूसरे ही दिन जहाज पकड़ कर वापस लौटेंगे.

लेकिन इंगलैंड से लौटने में डा. दास को 1 साल लग गया. वहां उन्हें नौकरी करनी पड़ी. रहने, खाने और पढ़ने के लिए पैसे की जरूरत थी. फीस के लिए भी धन जमा करना था. नौकरी करते हुए उन्होंने परीक्षा दी और 1 वर्ष बाद एम.आर.सी.पी. कर के पटना लौटे.

होस्टल में दोस्त के यहां सामान रख कर वह सीधे अंजलि के घर पहुंचे. लेकिन घर में नए लोग थे. डा. दास दुविधा में गेट के बाहर खड़े रहे. उन्हें वहां का पुराना चौकीदार दिखाई दिया तो उन्होंने उसे बुला कर पूछा, ‘‘प्रोफेसर साहब कहां हैं?’’

चौकीदार डा. दास को पहचानता था, प्रोफेसर साहब का मतलब समझ गया और बोला, ‘‘अंजलि दीदी के पिताजी? वह तो चले गए?’’

‘‘कहां?’’

‘‘दिल्ली.’’

‘‘और अंजलि?’’

‘‘वह भी साथ चली गईं. वहीं पीएच.डी. करेंगी.’’

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‘‘ओह,’’ डा. दास पत्थर की मूर्ति की भांति खड़े रहे. सबकुछ धुंधला सा नजर आ रहा था. कुछ देर बाद दृष्टि कुछ स्पष्ट हुई तो उन्होंने चौकीदार को अपनी ओर गौर से देखते पाया. वह झट से मुड़ कर वहां से जाने लगे.

चौकीदार ने पुकारा, ‘‘सुनिए.’’

डा. दास ठिठक कर खड़े हो गए तो उस ने पीछे से कहा, ‘‘अंजलि दीदी की शादी हो गई.’’

‘‘शादी?’’ कोई आवाज नहीं निकल पाई.

‘‘हां, 6 महीने हुए. अच्छा लड़का मिल गया. बहुत बड़ा अधिकारी है. यहां सब के नाम कार्ड आया था. शादी में बहुत लोग गए भी थे.’’

रविवार को 12 बजे अंजलि डा. दास के घर पहुंची. सामने छोटे से लान में हरी दूब पर 2 लड़कियां खेल रही थीं. बरामदे में एक बूढ़ी दाई बैठी थी. अंजलि ने दाई को पुकारा, ‘‘सुनो.’’

दाई गेट के पास आई तो अंजलि ने पूछा, ‘‘डाक्टर साहब से कहो अंजलि आई है.’’

दाई ने दिलचस्पी से अंजलि को देखा फिर गेट खोलते हुए बोली, ‘‘डाक्टर साहब घर पर नहीं हैं. कल रात को ही कोलकाता चले गए.’’

‘‘कल रात को?’’

‘‘हां, परीक्षा लेने. अचानक बुलावा आ गया. फिर वहां से पुरी जाएंगे…एक हफ्ते बाद लौटेंगे.’’

दाई बातूनी थी, शायद अकेले बोर हो जाती होगी. आग्रह से अंजलि को अंदर ले जा कर बरामदे में कुरसी पर बैठाया. जानना चाहती थी उस के बारे में कि यह कौन है?

अंजलि ने अपने हाथों में पकड़े गिफ्ट की ओर देखा फिर अंदर की ओर देखते हुए पूछा, ‘‘मेम साहब तो घर में हैं न?’’

‘‘मेम साहब, कौन मेम साहब?’’

‘‘डा. दास की पत्नी.’’

‘‘उन की शादी कहां हुई?’’

‘‘क्या?’’

‘‘हां, मेम साहब, साहब ने आज तक शादी नहीं की.’’

‘‘शादी नहीं की?’’

‘‘नहीं, मेम साहब, हम पुरानी दाई हैं. शुरू से बहुत समझाया लेकिन कुछ नहीं बोलते हैं…कितने रिश्ते आए, एक से एक…’’

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अंजलि ने कुछ नहीं कहा. आई तो सोच कर थी कि बहुत कुछ कहेगी, लेकिन केवल मूक बन दाई की बात सुन रही थी.

दाई ने उत्साहित हो कर कहा, ‘‘अब क्या कहें, मेम साहब, सब तो हम को संभालना पड़ता है. बूढे़ हो गए हम लोग, कब तक जिंदा रहेंगे. इन दोनों बच्चियों की भी परवरिश. अब क्या बोलें, दिन भर तो ठीक रहता है. सांझ को क्लिनिक में बैठते हैं,’’ उस ने परिसर में ही एक ओर इशारा किया फिर आवाज को धीमा कर के गोपनीयता के स्तर पर ले आई, ‘‘बाकी साढ़े 8 बजे क्लब जाते हैं तो 12 के पहले नहीं आते हैं…बहुत तेज गाड़ी चला कर…पूरे नशे में. हम रोज चिंता में डूबे 12 बजे रात तक रास्ता देखते रहते हैं. कहीं कुछ हो गया तो? बड़े डाक्टर हैं, अब हम गंवार क्या समझाएं.’’

अंजलि ने गहरी धुंध से निकल कर पूछा, ‘‘शराब पीते हैं?’’

‘‘दिन में नहीं, रात को क्लब में बहुत पीते हैं.’’

‘‘कब से शराब पीने लगे हैं?’’

‘‘वही इंगलैंड से वापस आने के कुछ दिन बाद से. हम तब से इन के यहां हैं.’’

इंगलैंड से लौटने के बाद. अंजलि ने हाथ में पकड़े गिफ्ट को दाई की ओर बढ़ाते हुए पूछा, ‘‘शादी नहीं हुई तो ये दोनों लड़कियां?’’

दाई ने दोनों लड़कियों की ओर देखा, फिर हंसी, ‘‘ये दोनों बच्चे तो अनाथ हैं, मेम साहब. डाक्टर साहब दोनों को बच्चा वार्ड से लाए हैं. वहां कभीकभार कोई औरत बच्चा पैदा कर के उस को छोड़ कर भाग जाती है. लावारिस बच्चा वहीं अस्पताल में ही पलता है. बहुत से लोग ऐसे बच्चों को गोद ले लेते हैं. अच्छेअच्छे परिवार के लोग.

Manohar Kahaniya: करोड़ों की चोरियां कर बना रौबिनहुड- भाग 4

सौजन्य- मनोहर कहानियां

इंसान में कुछ खूबियां होती हैं तो कुछ बुरी लतें भी होती हैं. इरफान की 2 बीवी तथा  4 प्रेमिकाएं हैं. चोरी में मोटा माल हाथ लगने के बाद सब से पहले किसी प्रेमिका के पास ही जाता था. दोनों बीवियों के अलावा वह अपनी इन प्रेमिकाओं पर भी दिल खोल कर पैसा खर्च करता था.

इन में से अलीगढ़ में रहने वाली प्रेमिका रूपाली को तो कविनगर पुलिस ने गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया. जबकि उस की दूसरी माशूकाएं आगरा, सवाई माधोपुर तथा बंगलुरु की रहने वाली हैं. चोरी की रकम से वह इन्हें महंगे उपहार देता था. बदले में वे उसे न सिर्फ छिपने में मदद करतीं बल्कि उस की अय्याशी का सामान भी बनतीं.

इरफान मुंबई, चंडीगढ़, बंगलुरु और दिल्ली के लाउंज व बारों में जम कर मौजमस्ती करता व रुपए उड़ाता था. महंगी कारों, डिजाइनर कपड़ों और विलासितापूर्ण जीवन का शौकीन इरफान बार में एकएक गाने की फरमाइश पूरी करने पर 10-10 हजार रुपए उड़ाता था.

भोजपुरी फिल्मों की एक अभिनेत्री मुंबई में रहने के दौरान उस की दोस्त बन गई थी, जो मुंबई में रहती थी, जब भी चोरी की बड़ी वारदात को अंजाम देता तो पहले गांव जाता, वहां लोगों की मदद करने के लिए जो भी पैसा खर्च करना होता करता.

कुछ रोज अपनी पत्नी गुलशन के साथ गुजरता, उस के बाद वह मुंबई चला जाता और अपनी भोजपुरी फिल्मों की अभिनेत्री प्रेमिका के साथ रह कर जम कर मौजमस्ती करता.

उस की पहचान एक पैसे वाले के रूप में होने लगी. अपनी फिल्मी माशूका पर दिल खोल कर पैसे खर्च करता और जब पैसा खत्म होने लगता तो किसी दूसरे शिकार की तलाश में मोटा हाथ मारने के लिए किसी दूसरे शहर का रुख कर लेता. बाद में उस ने इस एक्ट्रैस से शादी कर ली.

उस की कमजोरी थी फेसबुक, जिस पर इरफान अपनी विलासितापूर्ण जिदंगी की फोटो और वीडियो अपलोड करता रहता था.

इरफान ने एक साल पहले ही अपनी पत्नी के नाम से महंगी जगुआर कार खरीदी थी, जिस से इलाके में उस की शान और भी बढ़ गई. शोएब नाम के अपने ड्राइवर के साथ वह कार में चलता था.

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जब वह दूसरे महानगरों में चोरी करने के लिए जाता तो अकसर अपने ड्राइवर व गाड़ी को ले कर चोरी करने जाता था. इतनी महंगी कार होने के कारण कोई भी उस पर शक नहीं करता था. वह महंगे होटलों में रुकता है. जब वह कार से चोरी करने नहीं जाता तो बिहार से दूसरे शहरों में आनेजाने के लिए हवाई जहाज से सफर करता था.

धीरेधीरे जब दूसरे राज्यों की पुलिस उसे गिरफ्तार करने गांव पहुंचने लगी तो गांव वालों को पता चल गया कि वह एक कुख्यात चोर है. लेकिन तब तक वह गांव वालों के बीच अपनी छवि एक फरिश्ते के रूप में गढ़ चुका था. पुलिस कुछ भी कहती, लेकिन लोग उस के खिलाफ न तो कुछ बोलते न ही उस के बारे में गलत सुनने को तैयार होते थे.

चोरी के पैसों से उस ने धीरेधीरे अपने गांव व आसपास के लोगों को सहयोग करना शुरू कर दिया. अपने गांव की नाली खडं़जे से ले कर जर्जर सड़कों को भी बनवाना शुरू कर दिया. धीरेधीरे लोग उस के पास मदद मांगने आने लगे तो उसे भी अपनी तारीफें सुनने के कारण उन की मदद करने का चस्का लग गया. वह कभी किसी गरीब की बेटी की शादी करा देता तो कभी गांव में किसी बीमार के इलाज का खर्च उठा लेता.

जरूरतमंदों की खुले रूप से करता था आर्थिक मदद

उस की छवि गांव में रौबिनहुड जैसी बन गई. सामाजिक काम में इरफान किस कदर सक्रिय हो चुका था, इस का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 2 साल पहले अपने पड़ोस में रहने वाली एक गरीब लड़की के कैंसर के औपरेशन पर उस ने 20 लाख रुपए खर्च कर दिए थे.

वह अपने गांव में हर महीने चिकित्सा शिविर का आयोजन करता था. गांव के लोगों को अब पता था कि वह बड़े शहरों का महाचोर है. इस के बावजूद गांव के लोगों के लिए वह फरिश्ता ही था, जो उन की जिंदगी में उजाला भरने के लिए चोरी कर अपनी जिंदगी दांव पर लगा रहा था. इसीलिए लोग उस के नाम के आगे उजाला लगाने लगे थे.

इरफान जब लोगों की मदद करता तो इस में वह ये नहीं देखता था कि मदद मांगने वाला किस मजहब का है. इरफान के मुसलिम बहुल गांव जोगिया में केवल 4 हिंदू परिवार रहते हैं. वहां के जोगिंदर राम की भी उजाला ने मदद की है.

उस ने 3 महीने पहले ही जोगिंदर की बेटी की शादी में 4 हजार रुपए से मदद की तो कुछ साल पहले लीवर इंफेक्शन के औपरेशन के लिए उसे 5 हजार रुपए दिए थे. इसी गांव में रहने वाली रामसती का 2 साल पहले बच्चेदानी का औपरेशन कराने के लिए इरफान उर्फ उजाला ने उसे 10 हजार रुपए दिए थे.

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सामाजिक काम कर के फरिश्ते के रूप में बनाई गई छवि के कारण गांव तथा आसपास के इलाकों के लोग अब इरफान पर दबाव डालने लगे कि अगर वह राजनीति में आ जाएगा तो उन की जिंदगी संवर जाएगी. इरफान भी जानता था कि राजनीति में आने के बाद ही वह अपनी कौम और लोगों की मदद कर सकता है.

लोगों ने उस पर ज्यादा दबाव डाला तो उस ने गांव व आसपास के क्षेत्र में और तेजी से सामाजिक कार्य शुरू कर दिए. उस ने राजनीति में कदम रखने के लिए अपनी पत्नी गुलशन परवीन को आगे कर दिया.

वह गांव और इलाके की राजनीति से राजनीति में आगे बढ़ना चाहता था. इसलिए उस ने कुछ दिन पहले ही पुपरी के जिला परिषद क्षेत्र संख्या 34 से अपनी पत्नी को प्रत्याशी बनाया. नामांकन से ले कर चुनाव प्रचारप्रसार में उस ने दिल खोल कर रुपए खर्च किए.

हालांकि इस दौरान पुलिस ने गुलशन को गिरफ्तार कर के जेल भी भेजा, लेकिन जेल से निकलने के बाद उस ने नामांकन किया और लोगों ने जम कर उस के प्रचार में साथ दिया.

इसे इरफान की पत्नी की मेहनत कहें या इरफान की सामाजिक कामों से मिली शोहरत, उस की पत्नी भारी मतों से चुनाव जीत गई. दरअसल, चुनाव से कुछ दिन पहले ही इरफान ने करीब डेढ़ करोड़ रुपया खर्च कर के 7 गांवों की सड़कें बनवाई थीं. इस से इलाके के लोगों को लगने लगा कि वह चुनाव जीतने से पहले इतना विकास कर सकती है तो चुनाव जीतने के बाद इलाके को जन्नत बना देगी.

कविनगर पुलिस ने इरफान व उस के पकड़े गए साथियों से अब तक चोरी में प्रयुक्त की जाने वाली स्कौर्पियो व जगुआर समेत एक करोड़ की कीमत से अधिक के सोने व हीरे के जेवर बरामद किए हैं. उस के खिलाफ विभिन्न प्रदेशों में चोरी के 25 मामले दर्ज हैं. तथा उस ने अब तक करीब 20 करोड़ से अधिक की चोरियां की हैं.

उस ने अपनी पत्नी गुलशन परवीन से चुनाव जीतने के बाद चोरी न करने का वायदा किया था. उस की पत्नी अब जिला पंचायत सदस्य का चुनाव जीत चुकी है. लेकिन रौबिनहुड बनने का उस का ख्वाब उसे जरायम की दुनिया से दूर नहीं रख पाया.

—कथा पुलिस की जांचपड़ताल व आरोपियों से हुई पूछताछ पर आधारित

Manohar Kahaniya: आस्था की चोट- भाग 2

Writer- शाहनवाज 

सौजन्य- मनोहर कहानियां

आरोपियों को जल्द से जल्द पकड़ने के लिए सीओ श्वेताभ पांडेय ने कई टीमों का गठन कर लिया. टैक्निकल टीम की मदद से पुलिस ने इलाके के सभी सीसीटीवी कैमरों की फुटेज खंगालनी शुरू की.

इलाके में हत्या के दिन की फुटेज पर कई घंटों की मेहनत के बाद पुलिस को अरुण के घर के सामने 3 संदिग्ध लोगों के भटकने की फुटेज मिल गई. फुटेज में उन तीनों संदिग्धों के साथ अरुण भी मिलते हुए नजर आ रहा था.

यह पता चलने के बाद पुलिस ने जल्द काररवाई करते हुए अरुण को ढूंढने की प्रक्रिया और तेज कर दी. सीओ श्वेताभ पांडेय ने मामले के मुख्य आरोपी अरुण अग्रवाल को पकड़ने के लिए अलीगढ़ में 2 स्वाट टीमों की सहायता भी ली. एसआई संजीव कुमार और एसआई संदीप कुमार के नेतृत्व में स्वाट टीमें पूरे अलीगढ़ में अरुण को ढूंढने में जुट गईं.

अरुण को ढूंढने के पुलिस के सारे तरीके फेल साबित हो रहे थे, क्योंकि अरुण का फोन बंद आ रहा था. लगातार प्रयास करने के बाद पुलिस को तब सफलता हासिल हुई, जब अरुण का फोन अचानक से 17 अक्तूबर की रात को औन हुआ.

अरुण का फोन औन होते ही पुलिस की टैक्निकल टीम को उस की लोकेशन का पता चल गया. वह अलीगढ़ के कासिमपुर क्षेत्र की थी. पता चला कि वहां उस का औक्सीजन प्लांट था.

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सूचना मिलते ही पुलिस जल्द ही वहां पहुंच गई और 18 अक्तूबर की सुबहसुबह अरुण को उस की फैक्ट्री इलाके से गिरफ्तार कर लिया गया. गिरफ्तारी के बाद अरुण ने पुलिस पूछताछ में आस्था की हत्या की जो वजह पुलिस को बताई, हैरान करने वाली थी.

आखिर अरुण ने अपनी डाक्टर पत्नी को क्यों मारा

आज से लगभग 13 साल पहले सन 2007 में आस्था की शादी अरुण अग्रवाल से हुई थी. इन की अरेंज मैरिज नहीं बल्कि लवमैरिज थी. वे दोनों एकदूसरे को अपने कालेज के दिनों से ही जानते थे.

कालेज में मुलाकात हुई, दोनों के बीच दोस्ती हुई, कुछ समय साथ रहने के बाद दोनों की दोस्ती प्यार में बदल गई और उस के बाद दोनों की शादी भी हो गई. उन की शादी पर दोनों के ही परिवारों में से किसी को भी कोई आपत्ति नहीं हुई थी.

अरुण का परिवार सुखीसंपन्न था. अरुण के परिवार की ओर से शादी के समय भी किसी तरह की कोई मांग (दहेज) नहीं थी. दोनों एकदूसरे से बहुत प्यार करते थे.

मैडिकल परीक्षा पास करने के बाद आस्था ने डाक्टरी की पढ़ाई की और शादी के बाद ही आस्था की गवर्नमेंट जौब भी लगी थी. वह स्वास्थ्य विभाग में संविदा (कौन्ट्रैक्ट) पर मैडिकल औफिसर के रूप में नियुक्त हो गई. डा. आस्था की इस कामयाबी पर दोनों परिवार बहुत खुश हुए.

आस्था की इस नियुक्ति के बाद अरुण ने भी अलीगढ़ के कासिमपुर में राधिका नाम से औक्सीजन प्लांट खोल लिया था और इस काम के लिए डा. आस्था ने अपने पति अरुण का पूरा सहयोग भी किया था.

समय के साथ आस्था के 2 बच्चे हुए. 10 वर्षीय बेटा अर्नव और 8 वर्षीय बेटी आन्या उन के जीवन में नई खुशियां ले कर आई. लेकिन उन दोनों के जीवन में खुशियां ज्यादा दिनों तक नहीं टिक पाईं.

अरुण ने पुलिस की पूछताछ के दौरान बताया कि 2 साल पहले जब उन के जीवन में सब कुछ सही चल रहा था, उस समय आस्था के जीवन में एक और व्यक्ति ने कदम रखा. उस के आने के बाद से ही उन के संबंधों में दरार पैदा होना शुरू हो गई.

डा. आस्था के जीवन में इस नए व्यक्ति के आने के बाद से वह हर समय खोईखोई सी नजर आया करती थी. वह अकसर रात को घंटों तक फोन पर किसी युवक से बात किया करती थी. यदि आस्था से पूछा जाता कि वह किस से बात कर रही है तो उस के जवाब में वह कहती कि अपने कालेज की फ्रैंड्स से बात कर रही है.

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डा. आस्था की बदल गईं एक्टिविटीज

डा. आस्था अपने घर से निकलती तो काम के लिए ही थी, लेकिन वह अकसर अपने अस्पताल में पहुंचती ही नहीं थी. समय के साथसाथ उस का काम से घर पर आने के नियत टाइम में इजाफा होने लगा था.

जो आस्था पहले अपने परिवार के साथ, अपने बच्चों के साथ समय गुजारने में विश्वास किया करती थी, उस का हर दिन काम पर जाना, छुट्टी न लेना, वीकेंड और हौलिडे वाले दिन भी काम पर जाना इत्यादि की वजह से आस्था पर अरुण का शक बढ़ने लगा था. यहां तक कि आस्था उस नए युवक को अपने घर पर भी बुलाया करती थी, जब अरुण घर पर नहीं होता था.

अरुण को यह बात तब पता चली जब पड़ोस के एक दोस्त ने फोन कर के इस बात की सूचना उसे दी थी. शक बढ़ने के साथसाथ इन दोनों के बीच प्यार की जगह झगड़े ने ले ली थी.

वह लगभग हर दिन एकदूसरे के साथ इसी बात को ले कर झगड़ते थे. उन के आपस का यह झगड़ा बच्चों से भी नहीं छिपा था. बच्चों पर उन के झगड़े का बहुत असर पड़ने लगा था. अर्नव और आन्या दोनों अकसर एक साथ ही कमरे में खेलते थे, उन का अपने मांबाप से मिलनाजुलना, खेलना, बातें करना इत्यादि लगभग खत्म ही हो गया था.

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समय के साथसाथ इस दंपति के बीच होने वाला जुबानी झगड़ा मारपीट में तब्दील होने लगा था. झगड़े के बाद अरुण अकसर रात को अपनी फैक्ट्री में सोने के लिए चला जाया करता था. वह लगभग हर दिन ही अपनी फैक्ट्री में सोता था.

उन के बीच इस झगड़े की खबर फैक्ट्री में सिक्युरिटी गार्ड विकास को भी थी. क्योंकि झगड़ा करने के बाद विकास हर रात दारू की बोतल ले कर आता था, अपने गार्ड के साथ बैठ कर दारू पीतेपीते अपने दुखदर्द को बयान करता था और वहीं सो जाता था.

अगले भाग में पढ़ेंदोस्त से करा दी पति की पिटाई

Satyakatha: विदेशियों से साइबर ठगी- भाग 3

सौजन्य- सत्यकथा

काल सेंटर के इशारे पर ऐसा करने वाले युवाओं को इस का जरा भी अंदेशा नहीं था कि उन के द्वारा पुष्कर में बैठ कर सात समंदर पार के लोगों को चूना लगाया जा रहा है और इस जालसाजी की आंच में वे भी झुलस जाएंगे.

औनलाइन ठगी का कारनामा ज्यादा दिनों तक नहीं चल पाया. कारण स्मार्ट टेक्नोलौजी की वजह से  पुलिस के इंटेलिजेंस और साइबर सेल को इस की भनक लगने में जरा भी देरी नहीं हुई. ठगे गए विदेशियों की शिकायत पर पुलिस के दोनों सेल ने तत्परता दिखाई.

इंटेलिजेंस के डीजी उमेश मिश्रा और पुलिस आईजी एस. सेंगाथिर ने इस पर गहन विचारविमर्श के बाद मामले की तह तक जाने के लिए अजमेर के एसपी जगदीश चंद्र शर्मा को काररवाई करने का निर्देश दे दिया.

इंटेलिजेंस और पुलिस के आला अधिकारियों के निर्देश पर इंटेलिजेंस के इंसपेक्टर महेंद्र शर्मा और प्रशिक्षु आईपीएस सुमित महरड़ा के नेतृत्व में पुलिस टीमों का गठन किया गया. जिन में पुष्कर थाने के थानाप्रभारी सुनील बेड़ा के साथ एसआई मुकेश यादव, नरेंद्र सिंह, पवन शर्मा, हैडकांस्टेबल सरफराज आदि शामिल किए गए.

इस के अलावा जयपुर की इंटेलिजेंस टीम में इंसपेक्टर महेंद्र शर्मा, एसआई गंगा सिंह गौड़, हैडकांस्टेबल विजय खंडेलवाल, सिपाही राजेंद्र तोगड़ा, फिरोज भाटी के साथ अजमेर के इंसपेक्टर नरेंद्र शर्मा, पुष्कर के एएसआई शक्ति सिंह भी शामिल थे.

पुलिस की दोनों टीमों ने 2 दिनों तक सेंटर के गिरोह पर कड़ी नजर रखी और फिर उन्हें धर दबोचा. बाद में एक अन्य अरोपी सौरभ शर्मा को भी गिरफ्तार कर लिया.

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पुलिस ने जिन लोगों को गिरफ्तार किया, पूछताछ में उन के नाम यश खन्ना, झिलमिल कालोनी, नई दिल्ली. रवि कुमार मल्हार, लोघी कालोनी, नई दिल्ली. अभिषेक मीणा, दक्षिणपुरी, नई दिल्ली. तुषार बारोदिया, श्रीनाथपुरम, कोटा. कृष शुक्ला, वंदना एन्कलेव, गाजियाबाद. स्वाति सिलश्वाल, संगम विहार, नई दिल्ली. विकास समारिया, उद्योग नगर कोटा. विकास राजपुरोहित, खाती टिब्बा, मकराना, नागौर. राहुल जुल्हा, हौज खास, नई दिल्ली. राहुल राज, बिहार. लक्ष्मण राउत, भायंदर ईस्ट, मुंबई. दर्शन दवे, आनंद, गुजरात. रोहन यादव, मीरा रोड, मुंबई. बाबर शेख, मीरा रोड ईस्ट, मुंबई. कमल राठौड़, गोकुल धाम, मुंबई. राहुल राज, प्रगति विहार, अजमेर. विनीत उर्फ विक्की, लोहा खान अजमेर. तेजदीप, जवाहर नगर.

सभी आरोपियों के खिलाफ पुष्कर थाने में आईपीसी की धारा 419, 420,120बी और आईटी ऐक्ट की धारा 46 , 65, 66सी, 66डी में मुकदमे दर्ज कर दिए गए. उन्हें कोर्ट में पेश कर रिमांड पर ले लिया गया. उन से कड़ी पूछताछ की गई.

पूछताछ में सभी आरोपियों ने अपनेअपने राज खोले. उन्हीं में गिरोह का सरगना दिल्ली निवासी राहुल ने भी राज खोलते हुए बताया कि उस ने किन वजहों से ऐसा किया.

राहुल ने बताया कि कोरोना काल में उस के बिजनैसमैन पिता की मौत हो गई थी और 15 लाख रुपए के कर्ज में आ गया था. उसे चुकाने के लिए उसे आमदनी का कोई जरिया नहीं सूझ रहा था. उस के बाद ही उस ने पुष्कर में काल सेंटर खोला था.

करीब साढ़े 3 महीने से होटल में कमरा बुक कर रखा था. सेंटर चलाने के लिए दोनों होटल के सभी कमरे बुक कर लिए थे, ताकि वहां वे अपना काम बेरोकटोक कर सके.

इस तरह से काम शुरू होते ही आय होने लगी और कुछ महीने में ही उस ने 40 लाख रुपए से अधिक की रकम जुटा ली. पकड़े जाने तक वह करीब साढ़े 3 करोड़ रुपए की ठगी कर चुका था.

काल सेंटर चलाने के लिए राहुल ने स्थानीय लोगों को जानबूझ कर स्टाफ नहीं बनाया, बल्कि स्टाफ के जानकार की मदद से ही उस की संख्या बढ़ाई.

कुछ लोगों को औनलाइन वैकेंसी के जरिए जौब मिला था. उन्हें अपने स्तर से एक सप्ताह की ट्रेनिंग दी और काम के मुताबिक ब्रेनवाश कर दिया.

विदेशियों से क्या बात करनी है, कैसे समझाना है, कैसे पेश आना आदि की वाकायदा एक स्क्रिप्ट तैयार की गई थी. इस के अलावा औनलाइन डाटा मुहैया करवाने वाली कंपनियों से उस ने अमेरिका और आस्ट्रेलिया के आम नागरिकों के डाटा खरीद लिए थे.

यश की तरह काम करने वाले सभी कर्मचारी अनजाने में सेंटर से जुड़ गए थे. सभी में एक समानता थी कि वे बेरोजगार थे और कोरोना काल की वजह से उन्हें कहीं नौकरी नहीं मिल रही थी.

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वे सैलरी और इंसेंटिव के लालच में आ कर हजारों किलोमीटर दूर जा कर भी काल सेंटर में काम करने को राजी हो गए थे. पुलिस ने सभी आरोपियों से पूछताछ के बाद उन्हें जेल भेज दिया.

फरजी काल सेंटर में काम करने वाले 17 युवकों और एक युवती ने भले ही बेरोजगारी दूर करने के लिए द नेचर स्ट्रीट को चुना हो, लेकिन उन्हें मोहरा बना कर कंपनी ने विदेशियों को जिस तरह से चूना लगाया गया, वह बेरोजगारों के लिए भी एक सबक बन गया. कथा लिखे जाने तक आरोपियों को जमानत नहीं मिल पाई थी.

जीने की राह- भाग 2: उदास और हताश सोनू के जीवन की कहानी

Writer- संध्या 

सामाजिक और पारिवारिक वर्जनाओं को तोड़ने में उसे मजा आता. समाज के स्थापित मूल्यों की खिल्ली उड़ाना और उन के विपरीत काम करना उस के स्वभाव में शामिल था और प्यार, प्यार से बच कर आज तक इस दुनिया में शायद ही कोई रह पाया हो. प्रेम एक भाव है, एक अनुभूति है, जो मन की सोच और हृदय के स्पंदन से जुड़ा हुआ होता है. प्रेम एक प्राकृतिक अवस्था है, इसलिए इस से बचना बिलकुल असंभव है. परंतु वह किसी से प्यार भी करती थी या नहीं, यह किसी को पता नहीं चला था, क्योंकि वह बहुत चंचल थी और हर बात को चुटकियों में उड़ाना उस का शगल था.

कालेज के दिनों में वह हर तरह की गतिविधियों में भाग लेती थी. खेलकूद, नाटक, साहित्य और कला से ले कर विश्वविद्यालय संगठन के चुनाव तक में उस की सक्रिय भागीदारी होती थी. वह कई सारे लड़कों के साथ घूमती थी और पता नहीं चलता था कि वह पढ़ाई कब करती थी. बहुत कम लड़कियों के साथ उस का उठनाबैठना और घूमनाफिरना होता था, जबकि वह गर्ल्स होस्टल में रहती थी.

एक दिन पता चला कि वह यूनियन अध्यक्ष राघवेंद्र के साथ एक ही कमरे में रहने लगी थी. दोनों ने विश्वविद्यालय के होस्टलों के अपनेअपने कमरे छोड़ दिए थे और ममफोर्डगंज में एक कमरा ले कर रहने लगे थे. उस कालेज के लिए ही नहीं, पूरे शहर के लिए बिना ब्याह किए एक लड़की का एक लड़के के साथ रहने की शायद यह पहली घटना थी. वह छोटा शहर था, परंतु इस बात को ले कर कहीं कोई हंगामा नहीं मचा. राघवेंद्र यूनियन का लीडर था और स्निग्धा के विद्रोही व उग्र स्वभाव के कारण किसी ने खुले रूप में इस की चर्चा नहीं की. स्निग्धा के घर वालों को पता चला या नहीं, यह किसी को नहीं मालूम, क्योंकि उस के परिवार के लोग फतेहपुर जिले के किसी गांव में रहते थे. उस के पिता उस गांव के एक संपन्न किसान थे.

अगर कहीं कोई हलचल हुई थी तो केवल निशांत के हृदय में जो मन ही मन स्निग्धा को प्यार करने लगा था. वे दोनों सहपाठी थे और एक ही क्लास में पढ़तेपढ़ते पता नहीं कब स्निग्धा का मोहक रूप और चंचल स्वभाव निशांत के मन में घर कर गया था और उस के हृदय ने स्निग्धा के लिए धड़कना शुरू कर दिया था. स्निग्धा के दिल में निशांत के लिए ऐसी कोई बात थी, यह नितांत असंभव था. अगर ऐसा होता तो स्निग्धा राघवेंद्र के साथ बिना शादी किए क्यों रहने लगती?

यह उन दोनों का यूनिवर्सिटी में अंतिम वर्ष था. निशांत प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहा था. एमए करने के तुरंत बाद उसे नौकरी मिल गई और वह स्निग्धा की छवि को अपने दिल में बसाए दिल्ली चला आया.

निशांत के सिवा किसी को पता नहीं था कि वह स्निग्धा को प्यार भी करता था. 5 साल तक उसे यह भी पता नहीं चला कि स्निग्धा कहां और किस अवस्था में है. उस ने पता करने की कोशिश भी नहीं की, क्योंकि वह अच्छी तरह जानता था कि स्निग्धा अब न तो किसी रूप में उस की हो सकती थी न उसे कभी मिल सकती थी. दोनों के रास्ते कब के जुदा हो चुके थे.

फिर एक दिन कश्मीरी गेट जाने वाली मैट्रो ट्रेन में वे दोनों आमनेसामने बैठे थे. भीड़ नहीं थी, इसलिए वे एकदूसरे को अच्छी तरह देख सकते थे. पहले तो दोनों सामान्य यात्रियों की तरह बैठे अपनेआप में मग्न थे. लेकिन थोड़ी देर बाद सहज रूप से उन की निगाहें एकदूसरे से टकराईं. पहले तो समझ में नहीं आया, फिर अचानक पहचान के भाव उन की आंखों में तैर गए. लगातार कुछ पलों तक टकटकी बांध कर एकदूसरे को देखते रहे. फिर उन की आंखों में पूर्ण पहचान के साथसाथ आश्चर्य और कुतूहल के भाव जागृत हुए.

निशांत का दिल धड़क उठा, बिलकुल किशोर की तरह, जिसे किसी लड़की से पहली नजर में प्यार हो जाता है. अपनी अस्तव्यस्त सांसों के बीच उस ने अपनी उंगली उस की तरफ उठाई और फिर एकसाथ ही दोनों के मुंह से निकला, ‘आप…’

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उन के बीच में कभी अपनत्व नहीं रहा था. एकसाथ एक ही कक्षा में पढ़ते हुए भी कभीकभार ही उन के बीच बातचीत हुई होगी, परंतु उन बातों में न तो आत्मीय मित्रता थी, न प्रगाढ़ता. इसलिए औपचारिकतावश उन के मुंह से एकसाथ ‘आप’ निकला था.

वह अपनी सीट से उठ खड़ा हुआ और उस के नजदीक आ कर बोला, ‘स्निग्धा.’

‘हां,’ वह भी अपनी सीट से उठ कर खड़ी हो गई और उस की आंखों में झांकते हुए बोली, ‘मैं तो देखते ही पहचान गई थी.’

‘मैं भी. परंतु विश्वास नहीं होता. आप यहां…?’ उस के मुंह में शब्द अटक गए. गौर से स्निग्धा को देखने लगा. वह कितनी बदल गई थी. पहले और आज की स्निग्धा में जमीनआसमान का अंतर था. उस का प्राकृतिक सौंदर्य विलुप्त हो चुका था. चेहरे का लावण्य, आंखों की चंचलता, माथे की आभा, चेहरे की लाली और होंठों का गुलाबीपन कहीं खो सा गया था. उस के होंठ सूख कर डंठल की तरह हो गए थे. आंखों के नीचे कालीकाली झाइयां थीं, जैसे वह कई रातों से ढंग से सोई न हो. वह पहले से काफी दुबली भी हो गई थी. छरहरी तो पहले से थी, लेकिन तब शरीर में कसाव और मादकता थी.

परंतु अब उस की त्वचा में रूखापन आ गया था, जैसे रेगिस्तान में कई सालों से वर्षा न हुई हो. निशांत को उस का यह रूप देख कर काफी दुख हुआ, परंतु वह उस के बारे में पूछने का साहस नहीं कर सकता था. उन के बीच बस पहचान के अलावा कोई बात नहीं थी. वह भले ही उसे प्यार करता था परंतु उस के भाव उस के मन में थे और मन में ही रह गए थे. क्या स्निग्धा को पता होगा कि वह कभी उसे प्यार करता था? शायद नहीं, वरना क्या वह दूसरे की हो जाती और वह भटकने के लिए अकेला रह जाता.

यह तो वही जानता था कि उस का प्यार अभी मरा नहीं था, वरना अच्छीभली नौकरी मिलने और घर वालों के दबाव के बावजूद वह शादी क्यों न करता? उसे स्निग्धा का इंतजार नहीं था, परंतु एकतरफा प्यार करने की जो चोट उस के दिल पर पड़ी थी उस से अभी तक वह उबर नहीं पाया था और आज स्निग्धा फिर उस के सामने बैठी थी. क्या सचमुच जीवन में…कह नहीं सकता. वह तो आज दोबारा मिली ही है. क्या पता यह मुलाकात क्षणिक हो. कल फिर वह वापस चली जाए. उस के जीवन में तो पहले से ही राघवेंद्र बैठा है. उस ने अपने दिल में एक कसक सी महसूस की.

‘हां, मैं यहां,’ वह बोली. स्निग्धा स्वयं भी निशांत के साथ अकेले में समय बिताने को व्याकुल थी, ‘पर क्या सारी बातें हम ट्रेन में ही करेंगे?’ वह बोली, ‘कहीं बैठ नहीं सकते?’

‘क्या इतनी फुरसत है आप के पास? मैं तो औफिस से छुट्टी कर लेता हूं.’

‘हां, अब मेरे पास फुरसत ही फुरसत है. बस, कुछ देर के लिए बाराखंबा रोड के एक औफिस में काम है. उस के बाद मैं तुम्हारी हूं,’ स्निग्धा के मुरझाए चेहरे पर एक चमक आ गई थी. उस की आंखों की चंचलता लौट आई थी. निशांत ने आश्चर्य से उस की तरफ देखा. उस की अंतिम बात का क्या अर्थ हो सकता था? क्या वह सचमुच उस की हो सकती थी?

दोनों ने आपस में सलाह की. निशांत ने अपने औफिस फोन कर के बता दिया कि तबीयत खराब होने के कारण वह आज औफिस नहीं आ सकता था. वह लोधी रोड स्थित सीजीओ कौंप्लैक्स के एक सरकारी दफ्तर में जूनियर औफिसर था.

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स्निग्धा ने बताया कि उसे बाराखंभा रोड स्थित एक प्राइवेट औफिस में इंटरव्यू के लिए जाना था. दिल्ली आने के बाद वह एक सहेली के साथ पेइंगगेस्ट के रूप में पीतमपुरा में रहती थी. निशांत भी उसी तरफ रोहिणी में रहता था. कनाट प्लेस या सैंट्रल दिल्ली जाने के लिए उन दोनों का मैट्रो से एक ही रास्ता था, परंतु उन दोनों की मुलाकात आज पहली बार हुई थी.

अब और नहीं- भाग 3: आखिर क्या करना चाहती थी दीपमाला

Writer- ममता रैना

भूपेश के पास ओहदा और पैसा दोनों थे. उस के साथ रह कर उपासना को अपना भविष्य सुनहरा लग रहा था. उस ने अब अपना दांव फेंकना शुरू किया. वह भूपेश पर दीपमाला को तलाक देने का दबाव डालने लगी. शातिर दिमाग भूपेश को घरवाली और बाहरवाली दोनों का सुख मिल रहा था. वह शादी के पचड़े में नहीं पड़ना चाहता था. उस ने उपासना को कई तरीकों से समझाने की कोशिश की तो वह जिद पर अड़ गई. उस ने भूपेश के सामने शर्त रख दी कि या तो वह दीपमाला को तलाक दे कर उस से शादी करे या फिर वह सदा के लिए उस से अपना रिश्ता तोड़ लेगी.

कंटीली चितवन और मदमस्त हुस्न की मालकिन उपासना को भूपेश कतई नहीं छोड़ना चाहता था. उस ने उपासना से कुछ दिन की मोहलत मांगी.

एक रात दीपमाला की नींद अचानक खुली तो उस ने पाया भूपेश बिस्तर से नदारद है. दीपमाला को बातचीत की आवाजें सुनाई दीं तो वह कमरे से बाहर आई. आवाजें उपासना के कमरे से आ रही थीं. दरवाजा पूरी तरह बंद नहीं था. एक झिरी से दीपमाला ने अंदर झांका. बिस्तर पर उपासना और भूपेश सिर्फ एक चादर लपेटे हमबिस्तर थे. दोनों इतने बेखबर थे कि उन्हें दीपमाला के वहां होने का भी पता नहीं चला.

उस दृश्य ने दीपमाला को जड़ कर दिया. उस की हिम्मत नहीं हुई कुछ देर और वहां रुकने की. जैसे गई थी वैसे ही उलटे पांव कमरे में लौट आई. आंखों से लगातार आंसू बहते जा रहे थे. उस की नाक के नीचे ये सब हो रहा था और वह बेखबर रही. वह यकीन नहीं कर पा रही थी कि इतना बड़ा विश्वासघात किया दोनों ने उस के साथ.

दीपमाला के दिल में नफरत का ज्वारभाटा उछाल मार रहा था. उस के आंसू पोंछने वाला वहां कोई नहीं था. दिमाग में बहुत से विचार कुलबुलाने लगे. अगर अभी कमरे में जा कर दोनों को जलील करे तो उस का मन शांत हो और फिर वह हमेशा के लिए यह घर छोड़ कर चली जाए. फिर उसे खयाल आया कि वह क्यों अपना घर छोड़ कर जाए. यहां से जाएगी तो उपासना जिस ने उस के सुहाग पर डाका डाला. अपने सोते हुए बच्चे पर नजर डाल दीपमाला ने खुद को किसी तरह सयंत किया और फिर एक फैसला ले लिया.

दीपमाला को नींद में बेखबर समझ बड़ी देर बाद भूपेश अपने कमरे में लौट आया और चुपचाप बिस्तर पर लेट गया मानो कुछ हुआ ही नहीं.

दूसरी सुबह जब उपासना औफिस के लिए निकली रही थी तभी दीपमाला ने उस का रास्ता रोक लिया. बोली, ‘‘सुनो उपासना अब तुम यहां नहीं रह सकती. इसलिए आज ही अपना सामान उठा कर चली जाओ,’’ दीपमाला की आंखों में उस के लिए नफरत के शोले धधक रहे थे.

‘‘यह क्या कह रही हो तुम? उपासना कहीं नहीं जाएगी,’’ भूपेश ने बीच में आते हुए कहा.

‘‘मैं ने बोल दिया है. इसे जाना ही होगा.’’

भूपेश की शह पा कर उपासना भूपेश के साथ खड़ी हो गई तो दीपमाला के तनबदन में आग लग गई.

एक तो चोरी ऊपर से सीनाजोरी, उपासना की ढिठाई देख कर दीपमाला से रहा नहीं गया. गुस्से की ज्वाला में उबलती दीपमाला ने उपासना की बांह पकड़ कर उसे लगभग धकेल दिया.

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तभी एक जोरदार तमाचा दीपमाला के गाल पर पड़ा. वह सन्न रह गई. एक दूसरी औरत के लिए भूपेश उस पर हाथ उठा सकता है, वह सोच भी नहीं सकती थी. उस की आंखें भर आईं. भूपेश के रूप में एक अजनबी वहां खड़ा था उस का पति नहीं.

किसी जख्मी शेरनी सी गुर्रा कर दीपमाला बोली, ‘‘सब समझती हूं मैं. तुम इसे यहां क्यों रखना चाहते हो… कल रात अपनी आंखों से देख चुकी हूं तुम दोनों की घिनौनी करतूत.’’

मर्यादा की सारी हदें तोड़ते हुए भूपेश ने दीपमाला के सामने ही उपासना की कमर में हाथ डाल दिया और एक कुटिल मुसकान उस के होंठों पर आ गई.

‘‘चलो अच्छा हुआ जो तुम सब जान गई, तो अब यह भी सुन लो मैं उपासना से शादी करने वाला हूं और यह मेरा अंतिम फैसला है.’’

दीपमाला अवाक रह गई. उसे यकीन हो गया भूपेश अपने होशोहवास में नहीं है. जो कुछ कियाधरा है उपासना का किया है.

‘‘तुम अपने होश में नहीं हो भूपेश… यह हम दोनों के बीच नहीं आ सकती… मैं तुम्हारी बीवी हूं.’’

‘‘तुम हम दोनों के बीच आ रही हो. मैं अब तुम्हारे साथ एक पल भी नहीं रहना चाहता,’’ भूपेश ने बिना किसी लागलपेट के दोटूक जवाब दिया.

दीपमाला अपने ही घर में अपराधी की तरह खड़ी थी. भूपेश और उपासना एक पलड़े में थे और उन का पलड़ा भारी था.

जिस आदमी के साथ ब्याह कर वह इस घर में आई थी, वही अब उस का नहीं रहा तो उस घर में उस का हक ही क्या रह जाता है.

बसीबसाई गृहस्थी उजड़ चुकी थी. भूपेश ने जब तलाक का नोटिस भिजवाया तो दीपमाला की मां और भाई का खून खौल उठा. वे किसी भी कीमत पर भूपेश को सबक सिखाना चाहते थे, जिस ने दीपमाला की जिंदगी से खिलवाड़ किया. रहरह कर दीपमाला को वह थप्पड़ याद आता जो भूपेश ने उसे उपासना की खातिर मारा था.

दीपमाला के दिल में भूपेश की याद तक मर चुकी थी. उस ने ठंडे लहजे में घर वालों को समझाबुझा लिया और तलाकनामे पर हां की मुहर लगा दी. जिस रिश्ते की मौत हो चुकी थी उसे कफन पहनाना बाकी था.

वक्त ने गम का बोझ कुछ कम किया तो दीपमाला अपने आपे में लौटी. अपने घर वालों पर मुहताज होने के बजाय उस ने फिर से नौकरी करने का फैसला लिया. दीपमाला दिल कड़ा कर चुकी थी. नन्ही जान को अपनी मां की देखरेख में छोड़ वह उसी शहर में चली आई, जिस ने उस का सब कुछ छीन लिया था. सीने में धधकती आग ले कर दीपमाला ने अपने को काम के प्रति समर्पित कर दिया. जिंदगी की गाड़ी एक बार फिर पटरी पर आने लगी.

ब्यूटी सैलून में उस के हाथों के हुनर के ग्राहक कायल थे. उसे अपने काम में महारत हासिल हो चुकी थी. कुछ समय बाद ही दीपमाला ने नौकरी छोड़ दी. अब वह खुद का काम शुरू करना चाहती थी. अपने बेटे की याद आते ही तड़प उठती. वह उसे अपने पास रखना चाहती थी, मगर फिलहाल उसे किसी ढंग की जगह की जरूरत थी जहां वह अपना सैलून खोल सके.

तलाक के बाद कोर्ट के आदेश पर दीपमाला को भूपेश से जो रुपए मिले उन में अपनी कुछ जमापूंजी मिला कर उस के पास इतना पैसा हो गया कि वह अपना सपना पूरा कर सकती थी.

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अपने सैलून के लिए जगह तलाश करने की दौड़धूप में उस की मुलाकात प्रौपर्टी डीलर अमित से हुई, जिस ने दीपमाला को शहर के कुछ इलाकों में कुछ जगहें दिखाईं. असमंजस में पड़ी दीपमाला जब कुछ तय नहीं कर पाई तो अमित ने खुद ही उस की परेशानी दूर करते हुए एक अच्छी रिहायशी जगह में उसे जगह दिलवा दी. अपना कमीशन भी थोड़ा कम कर दिया तो दीपमाला अमित की एहसानमंद हो गई.

अमित के प्रौपर्टी डीलिंग के औफिस के पास ही दीपमाला का सैलून खुल गया. आतेजाते दोनों की अकसर मुलाकात हो जाती. कुछ समय बाद उन का साथ उठनाबैठना भी हो गया.

अमित दीपमाला के अतीत से वाकिफ था, बावजूद इस के वह कभी भूल से भी दीपमाला को पुरानी बातें याद नहीं करने देता. उस की हमदर्दी भरी बातें दीपमाला के टूटे मन को सुकून देतीं. जिंदगी ने मानो हंसनेमुसकराने का बहाना दे दिया था.

दोस्ती कुछ गहरी हुई तो दोनों की शामें साथ गुजरने लगीं. शहर में अकेली रह रही दीपमाला पर कोई बंदिश नहीं थी. वह जब चाहती तब अमित की बांहों में चली आती.

एक सुहानी शाम दीपमाला की गोद में सिर रख कर उस के महकते आंचल से आंखें मूंदे लेटे अमित से दीपमाला ने पूछा, ‘‘अमित हम कब तक यों ही मिलते रहेंगे. क्या कोई भविष्य है इस रिश्ते का?’’

रोमानी खयालों में डूबा अमित एकाएक पूछे गए इस सवाल से चौंक गया. बोला, ‘‘जब तक तुम चाहो दीप, मैं हमेशा तुम्हारे साथ रहूंगा.’’

दीपमाला खुद तय नहीं कर पा रही थी कि इस रिश्ते का कोई अंजाम भी है या नहीं. किसी की प्रेमिका बन कर प्यार का मीठा फल चखने में उसे आनंद आने लगा था, पर यह साथ न जाने कब छूट जाए, इस बात से उस का दिल डरता था.

जब अमित ने उसे बताया कि उस के घर वाले पुराने विचारों के हैं तो दीपमाला को यकीन हो गया कि उस के तलाकशुदा होने की बात जान कर वे अमित के साथ उस की शादी को कभी स्वीकार नहीं करेंगे. आने वाले कल का डर मन में छिपा था, मगर अपने वर्तमान में वह अमित के साथ खुश थी.

अमित की बाइक पर उस के साथ सट कर बैठी दीपमाला को एक दिन जब भूपेश ने बाजार में देखा तो वह नाग की तरह फुफकार उठा. दीपमाला अब उस की पत्नी नहीं थी, यह बात जानते हुए भी दीपमाला का किसी और मर्द के साथ इस तरह घूमनाफिरना उसे नागवार गुजरा. उस की कुंठित मानसिकता यह बात हजम नहीं कर पा रही थी कि उस की छोड़ी हुई औरत किसी और मर्द के साथ गुलछर्रे उड़ाए.

घर आ कर भूपेश बहुत देर तक उत्तेजित होता रहा. दीपमाला उस आदमी के साथ कितनी खुश लग रही थी, उसे यह बात रहरह कर दंश मार रही थी. उपासना से शादी कर के उस के अहं को संतुष्टि तो मिली, लेकिन उपासना दीपमाला नहीं थी. शादी के बाद भी उपासना पत्नी न हो कर प्रेमिका की तरह रहती थी. घर के कामों में बिलकुल फूहड़ थी.

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