मैं हैरान हो गया ‘खिचड़ी’ शब्द को ले कर. उस मैसेज का मतलब था उन सरकारी स्कूलों से जिन में सरकार द्वारा मिड डे मील योजना लागू है और जिन में बच्चे केवल खिचड़ी खाने के लिए जाते हैं, पढ़ने के लिए नहीं.

खैर, वह तो मैसेज था खिचड़ी को ले कर, पर हकीकत पर ध्यान दिया जाए तो यह विचार आम लोगों की सोच से भी जुड़ा हो सकता है. सरकार करना कुछ और चाहती है, पर समाज में कुछ और मैसेज जाता है. सरकार तो बच्चों की पढ़ाई के साथसाथ उन के पोषण लैवल में सुधार करना चाहती है, पर कुछ लोगों की सोच ही बड़ी अजीब है.

उसी सोच के लोगों के घोर असर से मेरा घर भी बच न सका. मैं एक दिन जब औफिस से घर आया, तो मेरी पत्नी ने अपनी खिचड़ी अलग पकाई हुई थी. वह बोली, ‘‘आप ईशान को प्राइवेट स्कूल में क्यों नहीं डाल देते?’’

आप जरा सोचिए कि ईशान अभी  2 साल का ही है और उस की पढ़ाई की चिंता मेरी धर्मपत्नी को हो गई है, वह भी प्राइवेट स्कूल में.

अपने देश में स्कूलों पर सरकारी शब्द का ठप्पा लग जाने से न जाने क्यों लोगों को चिढ़ हो जाती है. सरकारी नौकरी तो सब करना चाहते हैं, पर सरकारी स्कूल में कोई अपने बच्चों को पढ़ाना नहीं चाहता है. जैसे प्यार तो सभी करना चाहते हैं या लिव इन रिलेशन में तो सभी रहना चाहते हैं, पर शादी के नाम से ही आज की तथाकथित नौजवान पीढ़ी को चिढ़ हो जाती है.

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